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हिन्दी हदवस का इतििास

आज़ादी मिलने के दो स़ाल ब़ाद


14 मसतंबर 1949 को संविध़ान सभ़ा
िें हिन्दी को ऱाजभ़ाष़ा घोवषत ककय़ा गय़ा
थ़ा और इसके ब़ाद से िी िर िषष 14 मसतंबर
को "हिन्दी हदिस " के रूप िें िऩाय़ा ज़ाने
लग़ा॥
हिन्दी हदवस

बड़ी अनोखी हिन्दी भाषा


सबके मन को भात़ी है ॥

अहं कार को प़ीछे छोड


सबसे घल
ु -मिल जािी िै ॥

अग्रेजी को गले लगाकर


कभी "रे लगाड़ी" बन जािी िै ॥
संस्कृत भी हिन्दी से मिलकर
सदा अपऩी "वषषगााँठ" िनािी िै ॥

उदष द भी ििारी बगगया को


संद
ु र अल्फाज़ों से सजािी िै ॥

रे फ बनकर कभी छाया दे िी


पदे न बन कभी झक
ु भी जािी िै ॥

कभी चााँद पर बबन्द ु बन


मााँ का "आाँचल" किलािी िै ॥
प्रथि शब्द "िााँ" बच्चे से सन
ु कर
भावक
ु िो िााँ उसे गले लगािी िै ॥

संयुक्िाक्षर की िरि गले मिलकर


प्रेम से रहना ससखात़ी है ॥

सदनी आखों िें चंद्रबबंद ु लाकर


आशा की नई ज्योति जलािी िै ॥

सच हिन्दी भाषा िझ
ु े
इसमलए िी भािी िै ॥
लेखिक़ा-शगुफ्त़ा नेित
िि़ारे हिन्दी विभ़ाग की ओर से
प्ऱाध़ाऩाच़ाय़ाष ििोदय़ा,
उपप्ऱाध़ाऩाच़ाय़ाष ििोदय़ा, विद्य़ालय
प्रबंधक समितत, मशक्षकगण,
अमभभ़ािकगण तथ़ा सभी विद्य़ार्थषयों को
हिन्दी हदिस की ि़ाहदषक शभ
ु क़ािऩाएँ॥

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