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Class- BA(Hons.

) Sanaskrit 4th SEM

Subject- Modern Sanskrit Literature

Topic- अधुननक संस्कृ त सानहत्य का सामान्य सर्वेक्षण- भाग ‘क’

अधुननक काल का संस्कृ त सानहत्य ऄत्यंत समृद्ध है । अधुननक संस्कृ त सानहत्य को

काल और नर्वषय की दृनि से मुख्य रूप से दो भागों में नर्वभक्त ककया जा सकता है- स्र्वातन्रय

पूर्वव और स्र्वान््योत्तर । सन् 1947 इ. से पूर्वव की रचनाओं में देशभनक्त, स्र्वतन्रता की

अकांक्षा और ईसके नलये संघषव के स्र्वर मुखर हुए हैं; भले ही र्वह गद्य हो पद्य हो या किर

नाटक हो । स्र्वतन्रता के बाद के सानहत्य में अशा, ईत्साह और अत्मसम्मान का भार्व

ऄनधक प्रखर होकर ईभरा ।

अधुननक संस्कृ त सानहत्य की श्रीर्वृनद्ध में रचनाकारों के बहुमूल्य योगदान को

जनसामान्य तक पहुुँचाने में अधुननक संस्कृ त सानहत्य के सुधी अचायों र्व समीक्षकों का

योगदान और भी महत्त्र्वपूणव है । ऄतः अधुननक संस्कृ त सानहत्य का सामन्य सर्वेक्षण हमें

अधुननक संस्कृ त नर्वद्वानों से पररनचत कराता है ।

1. पनडडता क्षमारार्व- संस्कृ त र्वाङ्मय में नारी रचनाकार के रूप में क्षमारार्व का स्थान

मूधवन्य है एर्वं स्तुत्य है । आनका जन्म 1890 इ. में हुअ था और मृत्यु 1953 इ. हुइ । आनके
नपता पंनडत शंकर पांडुरंग संस्कृ त के नर्वद्वान थे । पंनडता क्षमारार्व बाल्यकाल में ही ऄपने

नपता की छरछाया से र्वंनचत हो गइ थी । पनडडता क्षमारार्व का सम्पूणव जीर्वन कठोर संघषव

में व्यतीत हुअ है ।

महात्मा गांधी के व्यनक्तत्र्व एर्वं चचतन से कािी प्रभानर्वत थी आसी प्रभार्व के कारण

आन्होंने ‘सत्याग्रहगीता’, ‘ईत्तरसत्याग्रहगीता’ और ‘ईत्तरजयसत्याग्रहगीता’ आस प्रकार तीन

काव्य की रचना की । 1931 से ‘गांधी आरनर्वन समझौता’ तक की घटनाओं का र्वणवन प्रथम

भाग ‘सत्याग्रहगीता’ में है । 1931 से 1944 तक की घटनाओं का र्वणवन नद्वतीय भाग

‘ईत्तरसत्याग्रहगीता’ में तथा भारतीय स्र्वतंरता के स्र्वरूप का र्वणवन तृतीय भाग

‘ईत्तरजयसत्याग्रहगीता’ में है ।

एक ऄन्य रचना ‘शंकरजीर्वनअख्यानाम्’ जो कक 17 ईल्लास में है यह 1939 में

मुंबइ से प्रकानशत हुइ नजसमें ऄपने नपता शंकर पांडुरंग के जीर्वन चररर पर आन्होंने प्रकाश

डाला है । पंनडता क्षमारार्व की ऄन्य रचनाओं में से ‘तुकारामचररत’, ‘श्रीरामचररत’ तथा

‘श्रीज्ञानेश्वरचररतम्’ महाकाव्य है । यह तीनों ही रचनाएं महाराष्ट्र के 3 महान संतों के

जीर्वन पर अधाररत है ।

काव्य में ईत्तम काव्य ‘मीरालहरी’ नामक एक काव्य है नजसमें ईन्होंने मीरा की कि

गाथा का र्वणवन ककया है । आस काव्य के माध्यम से यह ज्ञात होता है मानो पंनडता क्षमारार्व
ने स्र्वयं मीरा से एकाकार होकर यह काव्य नलखा हो । आसमें मीरा की कि गाथा के नचरण

से ऄपने ननजी जीर्वन की व्यथा ऄंतर्नननहत की है ।

मुंबइ से 1933 इस्र्वी में प्रकानशत ऄनुिुप छंद में ननबद्ध ‘कथापञ्चकम्’ में संकनलत

आनकी कहाननयां संस्कृ त की नइ कथा का प्राणर्वान् रूप प्रस्तुत करती हैं । पंनडत क्षमारार्व की

भाषा प्रसादमयी है । आनकी गद्यकथाओं में तत्कालीन पररनस्थनतयों और सामानजक रूक़ियों

से रस्त नारी तथा शोनषत र्वगव की दुदश


व ा नचनरत की गइ है ।

ऄनधकांशतः दुखांत कहाननयां है, कु छ कथाएं राष्ट्रीय अंदोलनों से संबद्ध है । पंनडत

क्षमारार्व की दो लघु पद्यात्मक रचनाएं ‘शंकरजीर्वनाख्यानाम्’ और ‘नर्वनचरपररषद्यारा’ ।

प्रथम में ऄपने नपता की जीर्वनी प्रस्तुत की है तो दूसरे में ऄनंतशयन की यारा का संस्मरण

ककया है ।

पंनडता क्षमारार्व के सानहत्य में नचनरत सामानजक संबंध ना के र्वल प्रासंनगक है बनल्क

अज भी जीनर्वत हैं । पंनडता क्षमारार्व के स्त्री पार ऄपने सौंदयव और तप-दोनों से ही

सराहनीय हैं । क्षमारार्व एक और तो नारी की ऄनस्मता को रे खांककत करती हैं तो दूसरी और

ऄमयावकदत अचरण को त्याज्य भी बताती हैं ।

ऄतः कहा जा सकता है कक पनडडता क्षमारार्व अधुननक युग में ऄपने र्वणवन कौशल,

ऄपनी ऄनभव्यनक्त शैली और ऄपनी नर्वचार दृनि से अधुननक समाज के प्रनत, स्त्री के प्रनत,

देश के प्रनत और राष्ट्र के प्रनत प्रेरणा प्रदान करती हैं ।


2. श्री जानकी र्वल्लभ शास्त्री- अधुननक कनर्व श्री जानकी र्वल्लभ शास्त्री का जन्म नबहार के

गया नजले के मैगरा नामक ग्राम में 1916 इ. में हुअ था । आनके नपता का नाम पंनडत

रामानुग्रह शमाव था । आन्होंने ऄपनी परीक्षायें ईत्तम श्रेणी में ईत्तीणव करते हुये 18 र्वषव की

अयु में सानहत्याचायव की ईपानध प्राप्त की ।

चहदी सानहत्य में छायार्वादी कनर्व के रूप में प्रनतनित हैं । शास्त्री जी ने 16 र्वषव की

अयु में संस्कृ त मुक्तकों की रचना की नजनका संकलन ‘काकली’ नाम से 1935 इस्र्वी में

प्रकानशत हुअ । स्र्वतंरता संग्राम की पृिभूनम पर रनचत ‘बंदीमंकदरम्’ आनके द्वारा रनचत

खंडकाव्य है ।

जानकी र्वल्लभ शास्त्री ने अधुननक संस्कृ त काव्य में नए युग का सूरपात ककया है ।

आन्होंने गीत, स्त्रोत, गजल, श्लोक अकद ऄनेक शैनलयों में संस्कृ त में रचनाएुँ की हैं । साथ ही

संस्कृ त में कहाननयाुँ, ईपन्यास, नाटक, व्यंग्य और अलोचनाएुँ भी नलखी हैं ।

ईन्होंने प्राचीन काव्य धारा को अज के सानहत्य की नइ चेतना से जोडा है । ईनके

गीतों में ऄनुप्रास का ननर्वावह पदार्वली की कोमलता, सप्राणता, रागात्मकता और र्वैयनक्तक

करुणा कू ट-कू ट कर भरी है । संस्कृ त कनर्वता में रोमांरटक प्रर्वृनत्त के पुरोधा कहे जा सकते हैं ।

अज के संस्कृ त कनर्वता को ईन्होंने ऄपनी प्रयोगशीलता के द्वारा नए अयाम कदए ।


‘गीतगोचर्वद’ जैसी कोमलकान्त पदार्वली में अज की संर्वेदनाओं को आन्होंने स्पि

ककया है । आनके काव्यों में चहदी के छायार्वादी काव्य की छटा भी है । आनकी रचनाओं में

अधुननक बोध के साथ-साथ प्राचीन परं परा का ननर्वावह देखने को नमलता है ।

3. अचायव बच्चू लाल ऄर्वस्थी- अधुननक कनर्व बच्चू लाल ऄर्वस्थी का जन्म 8 ऄगस्त

1918 इस्र्वी में ईत्तर प्रदेश के बहराआच जनपद के िरुहाघाट ग्राम में हुअ था । आनके नपता

का नाम पंनडत बद्रीनाथ ऄर्वस्थी था । आन्होंने प्रारं नभक नशक्षा ईदूव भाषा में प्राप्त की

तत्पश्चात् 1933 इस्र्वी में बसंत पंचमी के कदन संस्कृ त का ऄध्ययन प्रारं भ ककया ।

लखनउ नर्वश्वनर्वद्यालय से दशवन शास्त्र एर्वं सानहत्य में अचायव पररक्षा ईत्तीणव की ।

अगरा नर्वश्वनर्वद्यालय से संस्कृ त और चहदी में एम.ए. ककया आन्होंने 1963 इ. में पीएचडी

की । ऄंत में 1975 इस्र्वी में सागर नर्वश्वनर्वद्यालय से नड.लीट्. । ईत्तर प्रदेश के नर्वनभन्न

महानर्वद्यालयों में ऄध्यापन कायव ककया तथा नर्वश्वनर्वद्यालय में चहदी नर्वभाग में कायव करते

हुये सेर्वाननर्वृत्त हुए ।

ऄर्वस्थी जी संस्कृ त, नहन्दी, ऄंग्रेजी, ब्रजभाषा, िारसी भाषा के ममज्ञव थे । आनकी

प्रमुख रचनाएुँ हैं- भारतीयदशवनेषु कमवर्वादः, नेतृस्तर्वः, कानलदासस्य जगाम भारती,

शुकर्वृत्तम्, देर्वदूतम् आत्याकद । आन्होंने संस्कृ त में स्तोर काव्य, र्वणवनात्मक, खंडकाव्य, गजल

अकद नर्वधाओं में भी नलखा है ।


ऄर्वस्थी जी की ‘एकदन्तर्वृत्तम्’ कनर्वता में मतर्वाले हाथी को प्रतीक बनाकर समृद्ध

व्यनक्तयों की प्रर्वृनत्तयों का भंडािोड ककया है । कनर्व का अशय है कक एक तरि र्वे लोग हैं जो

समाज की भलाइ के नलए घर छोडकर गुिाओं में चचतन करते हैं दूसरी ओर र्वे संपन्न व्यनक्त

हैं नजनकी दृनि में सामानजक व्यनक्त हीन एर्वं ईपेनक्षत होते हैं ।

र्वतवमान समय के तनार्व और संशय की नस्थनत कनर्व को परं परा से हटकर नइ नर्वधा

की ओर ले गइ है । बच्चू लाल ऄर्वस्थी की सभी रचनाएुँ और ग़ज़ल भार्वपूणव, चचतनीय एर्वं

नर्वचारणीय हैं जो कक अधुननक समाज को एक नइ दृनि देते हैं ।

Rekha Kumari

Department of Sanskrit

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