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काल और नर्वषय की दृनि से मुख्य रूप से दो भागों में नर्वभक्त ककया जा सकता है- स्र्वातन्रय
अकांक्षा और ईसके नलये संघषव के स्र्वर मुखर हुए हैं; भले ही र्वह गद्य हो पद्य हो या किर
जनसामान्य तक पहुुँचाने में अधुननक संस्कृ त सानहत्य के सुधी अचायों र्व समीक्षकों का
1. पनडडता क्षमारार्व- संस्कृ त र्वाङ्मय में नारी रचनाकार के रूप में क्षमारार्व का स्थान
मूधवन्य है एर्वं स्तुत्य है । आनका जन्म 1890 इ. में हुअ था और मृत्यु 1953 इ. हुइ । आनके
नपता पंनडत शंकर पांडुरंग संस्कृ त के नर्वद्वान थे । पंनडता क्षमारार्व बाल्यकाल में ही ऄपने
महात्मा गांधी के व्यनक्तत्र्व एर्वं चचतन से कािी प्रभानर्वत थी आसी प्रभार्व के कारण
‘ईत्तरजयसत्याग्रहगीता’ में है ।
मुंबइ से प्रकानशत हुइ नजसमें ऄपने नपता शंकर पांडुरंग के जीर्वन चररर पर आन्होंने प्रकाश
जीर्वन पर अधाररत है ।
काव्य में ईत्तम काव्य ‘मीरालहरी’ नामक एक काव्य है नजसमें ईन्होंने मीरा की कि
गाथा का र्वणवन ककया है । आस काव्य के माध्यम से यह ज्ञात होता है मानो पंनडता क्षमारार्व
ने स्र्वयं मीरा से एकाकार होकर यह काव्य नलखा हो । आसमें मीरा की कि गाथा के नचरण
मुंबइ से 1933 इस्र्वी में प्रकानशत ऄनुिुप छंद में ननबद्ध ‘कथापञ्चकम्’ में संकनलत
आनकी कहाननयां संस्कृ त की नइ कथा का प्राणर्वान् रूप प्रस्तुत करती हैं । पंनडत क्षमारार्व की
प्रथम में ऄपने नपता की जीर्वनी प्रस्तुत की है तो दूसरे में ऄनंतशयन की यारा का संस्मरण
ककया है ।
पंनडता क्षमारार्व के सानहत्य में नचनरत सामानजक संबंध ना के र्वल प्रासंनगक है बनल्क
ऄतः कहा जा सकता है कक पनडडता क्षमारार्व अधुननक युग में ऄपने र्वणवन कौशल,
ऄपनी ऄनभव्यनक्त शैली और ऄपनी नर्वचार दृनि से अधुननक समाज के प्रनत, स्त्री के प्रनत,
गया नजले के मैगरा नामक ग्राम में 1916 इ. में हुअ था । आनके नपता का नाम पंनडत
रामानुग्रह शमाव था । आन्होंने ऄपनी परीक्षायें ईत्तम श्रेणी में ईत्तीणव करते हुये 18 र्वषव की
चहदी सानहत्य में छायार्वादी कनर्व के रूप में प्रनतनित हैं । शास्त्री जी ने 16 र्वषव की
अयु में संस्कृ त मुक्तकों की रचना की नजनका संकलन ‘काकली’ नाम से 1935 इस्र्वी में
प्रकानशत हुअ । स्र्वतंरता संग्राम की पृिभूनम पर रनचत ‘बंदीमंकदरम्’ आनके द्वारा रनचत
खंडकाव्य है ।
जानकी र्वल्लभ शास्त्री ने अधुननक संस्कृ त काव्य में नए युग का सूरपात ककया है ।
आन्होंने गीत, स्त्रोत, गजल, श्लोक अकद ऄनेक शैनलयों में संस्कृ त में रचनाएुँ की हैं । साथ ही
करुणा कू ट-कू ट कर भरी है । संस्कृ त कनर्वता में रोमांरटक प्रर्वृनत्त के पुरोधा कहे जा सकते हैं ।
ककया है । आनके काव्यों में चहदी के छायार्वादी काव्य की छटा भी है । आनकी रचनाओं में
3. अचायव बच्चू लाल ऄर्वस्थी- अधुननक कनर्व बच्चू लाल ऄर्वस्थी का जन्म 8 ऄगस्त
1918 इस्र्वी में ईत्तर प्रदेश के बहराआच जनपद के िरुहाघाट ग्राम में हुअ था । आनके नपता
का नाम पंनडत बद्रीनाथ ऄर्वस्थी था । आन्होंने प्रारं नभक नशक्षा ईदूव भाषा में प्राप्त की
तत्पश्चात् 1933 इस्र्वी में बसंत पंचमी के कदन संस्कृ त का ऄध्ययन प्रारं भ ककया ।
लखनउ नर्वश्वनर्वद्यालय से दशवन शास्त्र एर्वं सानहत्य में अचायव पररक्षा ईत्तीणव की ।
अगरा नर्वश्वनर्वद्यालय से संस्कृ त और चहदी में एम.ए. ककया आन्होंने 1963 इ. में पीएचडी
की । ऄंत में 1975 इस्र्वी में सागर नर्वश्वनर्वद्यालय से नड.लीट्. । ईत्तर प्रदेश के नर्वनभन्न
महानर्वद्यालयों में ऄध्यापन कायव ककया तथा नर्वश्वनर्वद्यालय में चहदी नर्वभाग में कायव करते
शुकर्वृत्तम्, देर्वदूतम् आत्याकद । आन्होंने संस्कृ त में स्तोर काव्य, र्वणवनात्मक, खंडकाव्य, गजल
व्यनक्तयों की प्रर्वृनत्तयों का भंडािोड ककया है । कनर्व का अशय है कक एक तरि र्वे लोग हैं जो
समाज की भलाइ के नलए घर छोडकर गुिाओं में चचतन करते हैं दूसरी ओर र्वे संपन्न व्यनक्त
हैं नजनकी दृनि में सामानजक व्यनक्त हीन एर्वं ईपेनक्षत होते हैं ।
र्वतवमान समय के तनार्व और संशय की नस्थनत कनर्व को परं परा से हटकर नइ नर्वधा
Rekha Kumari
Department of Sanskrit