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AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR

सुलवचार
कलम तभी साफ़ और अच्छा ललख पाती है जब..
वो थोडा झुक कर चलती है , वही हाल “लजिंदगी” में
इिं सान का है ..!!

AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR
नशा- प्रश्नोत्तर
AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR
प्रश्न १- कहानी के मुख्य पात्ोिं के नाम बताइए।
उत्तर- ये कहानी बीर और ईश्वरी की है । इन दो पात्ोिं के
अलावा कहानी में ररयासत अली, रामहरख तथा ठाकुर ने भी
भूलमका लनभाई है ।

प्रश्न २- लेखक ईश्वरी के घर जाने को क्ोिं तैयार हो गया ?


उत्तर- दशहरे की छु लियोिं में हॉस्टल के सभी छात् घर जा रहे थे
परिं तु लेखक के पास घर जाने के ललए लकराये के पैसे न थे। वह
पैसे मााँ ग कर अपने गरीब घरवालोिं को परे शान नहीिं करना
चाहता था और न ही भूतोिं की तरह हॉस्टल में अकेला रहना
चाहता था इसललए ईश्वरी के एक बार कहने पर वह उसके घर
जाने को तैयार हो गया। साथ ही उसे लगा ईश्वरी एक मेधावी
छात् है , उसके साथ पढ़कर वह अपनी परीक्षा की तैयारी भी
कर लेगा। AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR
प्रश्न ३- वह क्ा कहकर ज़मीदारोिं की लनिंदा करता था?
उत्तर- वह जमीिंदारी की बुराई उन्हें लहिं सक पशु और खून
चूसने वाली जोिंक और वृक्षोिं की चोटी पर फूलने वाला बिंझा
कहकर करता था।

प्रश्न ४- लेखक को जलपान-गृह में भोजन स्वाधीन क्ोिं लगा ?


उत्तर- जलपान गृह में खानसामे लजस तत्परता और लवनय से
ईश्वरी की सेवा कर रहे थे उतनी आवभगत लेखक की नहीिं
कर रहे थे। खानसामे समझ गए थे लक माललक कौन है और
लपछलग्गू कौन। खानसामोिं का यह भेद-भाव लेखक को पसिंद
नहीिं आया इसललए उसे वहााँ खाना स्वादहीन लगा।

AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR
प्रश्न ५- ईश्वरी को क्ा यह अनुमान था लक उसका लमत् उसके घर
जाकर बदल जाएगा ?
उत्तर- हााँ ईश्वरी को यह अनुमान था लक ईश्वरी वहााँ जाकर कुछ
और हो जाएगा तभी जब लेखक ने पूछा लक क्ा तुम्हें लगता है
लक मैं वहााँ जाकर कुछ और हो जाऊाँगा तो ईश्वरी ने कहा था हााँ
मुझे तो यही लगता है ।

प्रश्न ६- लेखक की आलथिक स्थथलत कैसी थी ?


उत्तर- लेखक की आलथिक स्थथलत बहुत दयनीय थी। वह एक
मामूली क्लकि का बेटा था लजसके पास मेहनत-मज़दू री के
अलावा कोई उपाय न था। लेखक इतना गरीब था लक दशहरे
की छु लियोिं में घर जाने के ललए उनके पास लकराये के भी पैसे
नहीिं थे।
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प्रश्न ७- लेखक आदशिवादी सोच रखता था लेलकन अपने लमत्
ईश्वरी के घर पहुाँ चकर उसके व्यवहार में क्ा पररवतिन आया तथा
क्ोिं ?स्पष्ट कीलजए।
उत्तर- लेखक आदशिवादी सोच रखता था और मानता था लक
समाज में प्रत्येक व्यस्ि को सामान अलधकार लमलने चालहए और
सभी को अपना काम स्वयिं करना चालहए । उसे ज़मीदारोिं के रौब
व अत्याचार से एतराज़ था परिं तु जब वह ईश्वरी के घर पहुाँ चा तो
ईश्वरी ने उन्हें वहााँ खानदानी रईस बताकर सभी से पररलचत
करवाया। लेखक वहााँ जाकर अपने सभी कायि नौकरोिं से करवाने
लगा तथा नौकरोिं को काम दे र से होने पर डााँ टने -फटकारने लगा।
लेखक के व्यव्हार में इस पररवतिन का यह कारण था लक लेखक
का लोकप्रेम व आदशि लसद्ािं तोिं पर नहीिं, लनजी दशाओिं पर लटके
हुए थे।
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प्रश्न ८- लेखक एविं ईश्वरी के व्यवहार में क्ा अिंतर था ? उदाहरण दे कर स्पष्ट
कीलजए।
उत्तर- ईश्वरी प्रकृलत से ही लवलासी और ऐश्वयि-लप्रय था। वह नौकरोिं से वह
सीधे मुाँह बात नहीिं करता था। अमीरोिं में जो एक बेददी और उद्दण्डता होती
है , इसमें उसे भी प्रचुर भाग लमला था। नौकर ने लबस्तर लगाने में जरा भी दे र
की, दू ध ज़रूरत से ज़्यादा गमि या ठिं डा हुआ, साइलकल अच्छी तरह साफ़
नहीिं हुई, तो वह आपे से बाहर हो जाता। सुस्ती या बदतमीज़ी उसे ज़रा भी
बदाि श्त न थी, पर दोस्तोिं से और लवशेषकर लेखक से उसका व्यवहार
सौहादि और नम्रता से भरा हुआ होता था। वह कभी भी लेखक से बहस में
जीतने का प्रयास नहीिं लकया करता था। लेखक आदशिवादी सोच रखता था
परिं तु उनके आदशि व लोकप्रेम लनजी दशाओिं पर आधाररत थे। ईश्वरी के घर
जाकर उन्हें सुख समृस्द् का ऐसा नशा चढ़ा लक वह भी नौकरोिं व गरीबोिं को
छोटा मानने लगा और उनके साथ कठोर व्यवहार करने लगा। उसने छोटे -
छोटे काम दे र से होने पर ईश्वरी के घर नौकरोिं को खूब डााँ टा तथा टर े न में तो
एक गरीब को बेवजह घमिंड में मार भी लदया।
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प्रश्न ९- लेखक का नशा कब और कैसे उतरा ?
उत्तर- ईश्वरी के घर जाकर लेखक के व्यवहार में बहुत अलधक
पररवतिन हुआ। उसे 'सुख समृस्द्' का झूठा नशा हो गया था।
दु गाि पूजा की छु लियोिं के बाद वापस आते हुए ईश्वरी तथा लेखक
को तीसरे दजे में ही बडी मुस्िल से जगह लमल पाई थी। वहााँ
एक गरीब व्यस्ि अपना गट्ठर ललए बार-बार हवा लेने के ललए
स्खडकी के पास आ जाता। लेखक को उसका वहााँ आना और
गट्ठर का उससे रगडना पसिंद न आ रहा था। नाराज़ होकर लेखक
ने उसे मार लदया लजसे वहााँ उपस्थथत लोगोिं ने आडे हाथोिं ललया
और लेखक को खूब खरी-खोटी सुनाई। ईश्वरी को भी यह बात
अच्छी न लगी और उसने लेखक से कहा,"व्हाट एन ईलडयट यू
आर बीर। " ईश्वरी की यह बात सुनकर लेखक का 'ऐश्वयि और
लवलालसता' का झूठा नशा उतर गया।
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प्रश्न १०- कहानी के शीषिक की साथिकता स्पष्ट कीलजए।
उत्तर- 'नशा' का अथि होता है 'लकसी भी चीज़ की अलधकता से
आपका मानलसक क्षमता कम हो जाए और आप सोचने
समझने की शस्ि खो दो और आपकी कथनी तथा करनी में
अिंतर आ जाए'। लेखक की आदशिवादी सोच ईश्वरी के घर
जाकर सुख समृस्द् के नशे में गायब ही हो गई थी। वह
सोचने-समझने की शस्ि ही खो बैठा और उसका व्यवहार
लोगोिं के प्रलत गलत होने लगा। नशा केवल मादक पदाथि से
नहीिं होता अलपतु लकसी भी वस्तु की अलत जो आपको आपके
आदशि से भटका दे , एक नशा ही है इसललए इस कहानी का
यह शीषिक उलचत है ।

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प्रश्न ११- 'सभी मनुष्य बराबर नहीिं होते, छोटे -बडे होते रहते हैं और
होते रहें गे।' यह कथन लकसने कहा, लकससे कहा। इस लवषय पर
अपने लवचार प्रकट कीलजए।
उत्तर- 'सभी मनु ष्य बराबर नहीिं होते , छोटे -बडे होते रहते हैं और
होते रहें गे।' यह कथन ईश्वर ने लेखक से कहा।मेरे लवचार से ईश्वरी
ने सत्य कहा। जन्म तथा कमि के आधार पर आप समाज में अपनी
स्थथलत सुलनलित करते हैं । सिंलवधान की दृलष्ट में सभी बराबर हैं तथा
सभी के समान अलधकार तथा कतिव्य हैं लफर भी मानलसक एविं
आलथिक दृलष्ट से मदभेद हैं तथा रहें गे। और यही मदभेद समाज में
आपको ऊाँचा या नीचा दजाि लदलाते हैं । सामालजक व्यवथथा को
सुचारू रूप से इसी भेद के अनुसार चलाया जा सकता है । अब
ज़मीदारी प्रथा नहीिं है परिं तु आज भी नौकर तथा माललक होते हैं ।
हर व्यस्ि दे श का प्रधानमिं त्ी नहीिं हो सकता परिं तु दे श प्रत्येक
व्यस्ि का होता है ।
AISV6_VIII_HINDI_NASHA_PRASHNOTTAR
धन्यवाद
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