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धवतर

धवतर ह धम म एक दे वता ह। वे महान


च क सक थे ज ह दे व पद ा त आ। ह धा मक
मा यता के अनुसार ये भगवान व णु के अवतार
समझे जाते ह। इनका पृ वी लोक म अवतरण समु
मंथन के समय आ था। शरद पू णमा को चं मा,
का तक ादशी को कामधेनु गाय, योदशी को
ध वंतरी[4], चतुदशी को काली माता और अमाव या
को भगवती ल मी जी का सागर से ा भाव आ था।
इसी लये द पावली के दो दन पूव धनतेरस को
भगवान ध वंतरी का ज म धनतेरस के प म मनाया
जाता है। इसी दन इ ह ने आयुवद का भी ा भाव
कया था।[5] इ ह भगवान व णु का प कहते ह
जनक चार भुजाय ह। उपर क द न भुजा म शंख
और च धारण कये ये ह। जब क दो अ य भुजा
मे से एक म जलूका और औषध तथा सरे मे अमृत
कलश लये ये ह। इनका य धातु पीतल माना जाता
है। इसी लये धनतेरस को पीतल आ द के बतन
खरीदने क परंपरा भी है।[6] इ हे आयुवद क
च क सा करन वाले वै आरो य का दे वता कहते ह।
इ ह ने ही अमृतमय औष धय क खोज क थी। इनके
वंश म दवोदास ए ज ह ने 'श य च क सा' का व
का पहला व ालय काशी म था पत कया जसके
धानाचाय सु ुत बनाये गए थे।[7] सु ुत दवोदास के
ही श य और ॠ ष व ा म के पु थे। उ ह ने ही
सु ुत सं हता लखी थी। सु ुत व के पहले सजन
(श य च क सक) थे। द पावली के अवसर पर
का तक योदशी-धनतेरस को भगवान ध वंत र क
पूजा करते ह। कहते ह क शंकर ने वषपान कया,
ध वंत र ने अमृत दान कया और इस कार काशी
कालजयी नगरी बन गयी।
ध व तरी
आयुवद च क सा

आयुवद के दे व

संबंध दे वता, व णु के अवतार

नवास थान वनश सैन

मं ॐ नमो भगवते
महासुदशनाय वासुदेवाय
ध वंतरये
अमृतकलशह ताय
सवभय वनाशाय
सवरोग नवारणाय
लोकपथाय लोकनाथाय
ीमहा व णु व पाय
ीध वंतरी व पाय
ी ी ी औषधच ाय
नारायणाय नमः॥

[1][2][3]

अ शंख, च ,
अमृत-कलश और औष ध

सवारी कमल

आयुवद के संबंध म सु ुत का मत है क ाजी ने


पहली बार एक लाख ोक के, आयुवद का काशन
कया था जसम एक सह अ याय थे। उनसे जाप त
ने पढ़ा त परांत उनसे अ नी कुमार ने पढ़ा और उन
से इ ने पढ़ा। इ दे व से ध वंत र ने पढ़ा और उ ह
सुन कर सु ुत मु न ने आयुवद क रचना क ।[7]
भाव काश के अनुसार आ ेय मुख मु नय ने इ से
आयुवद का ान ा त कर उसे अ नवेश तथा अ य
श य को दया।

व याताथव सव वमायुवदं काशयन्।


वना ना सं हतां च े ल
ोकमयीमृजुम्।।[8]

इसके उपरा त अ नवेश तथा अ य श य के त को


संक लत तथा तसं कृत कर चरक रा 'चरक सं हता'
के नमाण का भी आ यान है। वेद के सं हता तथा
ा ण भाग म ध वंत र का कह नामो लेख भी नह
है। महाभारत तथा पुराण म व णु के अंश के पम
उनका उ लेख ा त होता है। उनका ा भाव
समु मंथन के बाद नगत कलश से अ ड के प मे
आ। समु के नकलने के बाद उ ह ने भगवान व णु
से कहा क लोक म मेरा थान और भाग न त कर
द। इस पर व णु ने कहा क य का वभाग तो
दे वता म पहले ही हो चुका है अत: यह अब संभव
नह है। दे व के बाद आने के कारण तुम (दे व) ई र नह
हो। अत: तु ह अगले ज म म स याँ ा त ह गी और
तुम लोक म स होगे। तु ह उसी शरीर से दे व व ा त
होगा और जा तगण तु हारी सभी तरह से पूजा करगे।
तुम आयुवद का अ ांग वभाजन भी करोगे। तीय
ापर युग म तुम पुन: ज म लोगे इसम कोई स दे ह नह
है।[7] इस वर के अनुसार पु काम का शराज ध व क
तप या से स हो कर अ ज भगवान ने उसके पु के
प म ज म लया और ध वंत र नाम धारण कया।
ध व काशी नगरी के सं थापक काश के पु थे।
वे सभी रोग के नवराण म न णात थे। उ ह ने
भर ाज से आयुवद हण कर उसे अ ांग म वभ
कर अपने श य म बाँट दया। ध वंत र क पर परा
इस कार है -

काश-द घतपा-ध व-ध वंत र-केतुमान्-


भीमरथ (भीमसेन)- दवोदास- तदन-व स-
अलक।

यह वंश-पर परा ह रवंश पुराण के आ यान के अनुसार


है।[9] व णुपुराण म यह थोड़ी भ है-

काश-काशेय-रा -द घतपा-ध वंत र-


केतुमान्-भीरथ- दवोदास।

म हमा
वै दक काल म जो मह व और थान अ नी को ा त
था वही पौरा णक काल म ध वंत र को ा त आ।
जहाँ अ नी के हाथ म मधुकलश था वहाँ ध वंत र को
अमृत कलश मला, य क व णु संसार क र ा करते
ह अत: रोग से र ा करने वाले ध वंत र को व णु का
अंश माना गया।[7] वष व ा के संबंध म क यप और
त क का जो संवाद महाभारत म आया है, वैसा ही
ध वंत र और नागदे वी मनसा का वैवत पुराण[10]
म आया है। उ ह ग ड़ का श य कहा गया है -

सववेदेषु न णातो म त वशारद:।


श यो ह वैनतेय य शंकरो योप श यक:।।[11]

मं
त के र मं दर म ध व तरी क मू त

भगवाण ध वंतरी क साधना के लये एक साधारण


मं है:

ॐ ध वंतरये नमः॥[1]

इसके अलावा उनका एक और मं भी है:

ॐ नमो भगवते महासुदशनाय वासुदेवाय


ध वंतरये
अमृतकलशह ताय सवभय वनाशाय
सवरोग नवारणाय
लोकपथाय लोकनाथाय ी
महा व णु व पाय
ीध वंतरी व पाय ी ी ी औषधच ाय
नारायणाय नमः॥[1][2][3]
ॐ नमो भगवते ध व तरये
अमृतकलशह ताय सव आमय
वनाशनाय लोकनाथाय ीमहा व णुवे
नम: ||
अथात
परम भगवान् को, ज ह सुदशन वासुदेव ध वंतरी
कहते ह, जो अमृत कलश लये ह, सवभय
नाशक ह, सररोग नाश करते ह, तीन लोक के
वामी ह और उनका नवाह करने वाले ह; उन
व णु व प ध वंतरी को नमन है।

ध वंतरी तो म् …

च ल ध वंतरी तो इस कार से है।


ॐ शंखं च ं जलौकां दधदमृतघटं
चा दो भ तु मः।
सू म व छा त ांशुक
प र वलस मौ लमंभोजने म्॥
काला भोदो वलांगं
क टतट वलस चा पीतांबरा म्।
व दे ध वंत र तं
न खलगदवन ौढदावा नलीलम्॥[1]

स दभ
1. ॐ ध वंतरये नमः
2. ध वंतरी मं , आई लव इं डया
3. मं ाज़ ऑफ लॉड ध वंतरी, द सेले टयल हीलर
ए ड फ़ज़ी शयन
4. व णु पुराण-४ Archived 27 फ़रवरी 2018
at the वेबैक मशीन.। २६ माच २०१०। भागव
5. द पावली – पूजन का शा ो वधान
Archived 6 दस बर 2010 at the वेबैक
मशीन.। आ म.ऑग। २८ अ टू बर २००८
. धनतेरस पर सोना नह पीतल खरीद
Archived 1 नव बर 2013 at the वेबैक
मशीन.। वेब नया
7. काशी क वभू तयाँ Archived 4 माच 2016
at the वेबैक मशीन.। वाराणसी वैभव
. भाव काश
9. ह रवंश पुराण (पव १ अ २९)
10. वैवत पुराण (३.५१)
11. वैवत पुराण३.५१
२०३ २०० ११३ १०५

इ ह भी दे ख
धन तेरस - भगवान ध वत र क जय ती
भैष यगु
अ नीकुमार
समु मंथन
चरक

बाहरी क ड़याँ
आयुवद के जनक भगवान ध वंत र
ध वंत र का अमृत
धवतर
आयुवद के दे वता भगवान ध व त र ( लाइड
दशन)
धवतर
भागवत पुराण म ध वंतरी
ध वंतरी तो का ऑ डयो सुन
काशी क वभू तयाँ : ी ध वंत र

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Last edited 22 days ago by QueerEcofeminist

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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