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DeshbhaKti Ek Dikhawa - Hindi
DeshbhaKti Ek Dikhawa - Hindi
असली भारत ने अपने मसाला की चुनिंद्य खुशबू से पूरी दुनिया को आकर्षित किया था |
पर दिल देहला दिया था भाईचारे की नारे ने
क्या एककिस्वी शताब्दी की –
हिंदू, मुस्लिम, सिख इसाई के भेदभाव के लिए
हमारे प्यारें विश्व कवि ने डोर को अपना था|
अरे मुर्खो;
जिस देश की मिट्टी आज मुफ्त होकर चल पा रहे हो |
इसके पानी की स्वद ले पा रहे हो |
बेझिझक अपने भाषा को प्रकाश कर पा रहे हो |
मुफ्त हवा में सांस ले पा रहे हो |
बस इतनी ही तमन्ना है की -
आगर देश भक्ति दीखानी ही तो –
हर दिन दिखाओ –
अंदर की आवाज़ को जगाओ
और बोलो
"हिंदुस्तानी हूं;
हमारे हर करम में हिंदुस्तान की छबी दिखलाएंगे'
फिर से भारत 'सोने की चिड़िया' कहलाएंगे'|
जय हिन्द
- हिमाली