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बसंत ऋतु में आहार-विहार
बसंत ऋतु में आहार-विहार
बसंत ऋतु में आहार-विहार
ु र्या -----
हमारे शरीर पर खान - पान के अलावा ऋतओ ु ं और जलवायु का भी प्रभाव पड़ता है । एक ऋतु में कोई एक दोष
बढ़ता है , तो कोई शांत होता है और दस
ू री ऋतु में कोई दस
ू रा दोष बढ़ता है तथा अन्य शांत होता है ।
इसके अनस
ु ार आहार - विहार अपनाने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा मनष्ु य रोगों से बचा रहता है ।
ये ऋतए
ु ँ है --- वसंत , ग्रीष्म , वर्षा , शरद , हे मत
ं और शिशिर ।
प्रत्येक ऋतु दो - दो मास की होती है । चैत्र - वैशाख में वसन्त , ज्येष्ठ - आषाढ में ग्रीष्म , श्रावण -
भाद्रपद में वर्षा , अश्विन - कार्तिक में शरद , मार्गशीर्ष - पौष में हे मन्त तथा माघ - फाल्गनु में शिशिर ऋतु
होती है ।
(1.)
बसंत ऋतु ( मार्च - अप्रैल ) -----
यह ऋतु शीतकाल और ग्रीष्म काल का संधि समय होता है । मौसम समशीतोष्ण होता है । अर्थात न तो
कंपकंपाती सर्दी होती है और न ही कड़ाके की धप
ू या गर्मी ही। मौसम मिला - जल
ु ा होता है , दिन में गर्मी और
रात में सर्दी होती है ।
प्रबल रस कषाय
प्रबल महाभत
ू वायु + पथ्
ृ वी
बल मध्यम
बसंत ऋतु में आहार के सेवन पर विशेष ध्यान रखना चाहिए , अन्यथा स्वास्थ्य बिगड़ते दे र नहीं लगती
क्योंकि इस ऋतु में पाचक शक्ति शिशिर ऋतु (ठं डी) की अपेक्षा धीरे -धीरे मंद होने लगती है । इस बात
पर ध्यान दे ते हुए आहार में बदलाव लाना जरूरी है ।
(2.)
ऐसी सद ंु र ऋतु में आयर्वे
ु द ने खान-पान में संयम की बात कह कर व्यक्ति एवम ् समाज की निरोगता का ध्यान
रखा है ।
मधरु रस वाले पौष्टिक पदार्थ एवम ् खट्टे -मीठे रस वाले फल आदि पदार्थ जो कि शीत ऋतु में खाये जाते हैं
उन्हें खाना बंद कर दे ना चाहिए।
क्योंकि वे कफ को बढ़ाते हैं। अत: इस ऋतु में ऐसे आहार-विहार का सेवन करना चाहिए , जिससे शरीर
में संचित कफ का प्रकोप न हो , बसंत ऋतु के कारण स्वाभाविक ही पाचन शक्ति कम हो जाती है । अतः पचने
में भारी पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। अतः खाने में हल्का आहार लेना चाहिए जो कि आसानी से पच
सके । शीत ऋतु की तरह भारी आहार लेना बंद कर दें ।
अतः भारी , खट्टे , चीकने , अधिक मीठे और बासी खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
क्योंकि इस ऋतु में जठराग्नि मंद होने के कारण ऐसे आहारों का पाचन ठीक से नहीं होता। केवल कटु
(तीखा), तिक्त (कड़वा) और कषाय (कसैला) इस वाले वाले पदार्थ ही इस ऋतु में लाभकारी होते हैं। इसलिए
ऐसे पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए।
पथ्य आहार ( खाने योग्य आहार ) --- इस ऋतु में पाचक अग्नि की मंदता के कारण परु ाने अन्नों का भी सेवन
करना चाहिए।
क्योंकि परु ाना अन्न पाचक और लघु (हल्का) होने के कारण बसंत ऋतु में उपयोगी और स्वास्थ्यप्रद
होता है । (आयर्वेु द में एक साल या इससे ज्यादा समय के अन्न को परु ाना कहते हैं ।) हरी साग सब्जियाँ ,
छिलके वाली मँग ू की दाल , मौसमी फल , भन ु े हुए चने , गन्ने का रस , ताजी हल्दी , ताजी मल
ू ी , परु ाने जौ ,
परु ाने गेहूँ की चीजें , अदरक तथा गरम व तीखे पदार्थों का सेवन विशेष तौर पर करना चाहिए। टमाटर , ककड़ी
, गोभी , पालक आदि को काटकर उसका सलाद बनाकर उस पर नमक व काली मिर्च छिड़क कर खायें। भोजन
के साथ हरा धनिया , पद ु ीना आदि की चटनी का सेवन अवश्य करना चाहिए। हींग , राई , जीरा , अजवाइन ,
मेथी , परवल , करे ला आदि का उपयोग बसंत ऋतु में जरूर करना चाहिए।
जौ तथा बाजरे की रोटी हल्की तथा कफनाशक होती है । अतः इसका भी सेवन हफ्ते में 2-3 बार करना
स्वास्थ्यप्रद होता है ।
• अदरक का पानी लो— बसंत ऋतु में अदरक पानी उत्तम है । यह बनाना एकदम सरल है । गरम करके ठं डा
किया सादा एक गिलास पानी लो , उसमें अदरक का आधा से एक चमची रस मिलाकर वह पानी पीओ ।
• लहसन
ु की चटनी — लहसनु ज्यादा मात्रा में , नारियल कसा हुआ , लाल मिर्च या हरी मिर्च , जीरा चपटी
जितना , यह सब पीसकर चटनी बना लो । ऊपर से नींबू का रस निचोड़ लो ।
अपथ्य आहार ( न खाने योग्य आहार ) – [बसंत ऋत,ु ऋतु संधिकाल है । ऐसे वक्त वायु तथा जल दषि ू त हो
जाता है । लोग समझे वगर ठं डक कम करने के लिए , प्यास छिपाने के लिए बर्फ डाला हुआ शर्बत , छाछ ,
गन्ने का रस वगैरह का छूट से प्रयोग करते हैं। इससे वायरस यक् ु त सर्दी , खाँसी , साइनोसाइटिस , टॉयफाइड ,
पीलिया , गैस्ट्रो वगैरह बीमारी तरु न्त हो जाती है । ऐसी अवस्था में तीनों दोष ( वात , पित्त , कफ) बिगड़ते हैं।]
(3.)
बसंत ऋतु में अनकु ू ल आहार-विहार का सेवन करने से हम स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। इसका पालन न
करने से या उसमें जरा भी चकू की तो शारीरिक व्याधियाँ हमें घेर लेती हैं।
अतः अपथ्य आहार-विहार के सेवन से हमें बचना चाहिए। इस ऋतु में पचने में भारी (गरिष्ठ), खट्ठे व
चिकनाई वाले पदार्थों का परहे ज करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त अधिक ठण्डे पदार्थों का सेवन व ठं डी भी बसंत ऋतु में हानिकारक है ।
अत: ठं डे पेय , आइसक्रीम , बर्फ के गोले , चॉकलेट , मैदे की चीजें , खमीर वाली चीजें (जो खट्टास
दे कर बनाई गई हो जैसे इडली , डोसा , ढोकला वगैरह) आदि पदार्थ बिल्कुल त्याग दे ने चाहिए।
भारी , खट्ठे , मीठे पदार्थों का सेवन तथा दिन में सोना नहीं चाहिए , साथ ही खल
ु े आकाश के नीचे अर्थात ् ओस
में सोना भी ठीक नहीं है ।
प्रातः काल उठकर आयु और बल के अनस ु ार व्यायाम तथा योगासन करना , दौड़ना , टहलना और प्रातःकालीन
वायु का सेवन करना चाहिए। सरसों तेल की मालिश करना , गरम पानी से स्नान करना , बसंत ऋतु में विशेष
हितकारी होता है ।
बसंत ऋतु में शरीर का बल मध्यम होता है । इसलिए बसंत ऋतु कामोद्दीपक होते हुए भी स्त्री-परु ु ष को संसर्ग
कम करना चाहिए। स्त्रियों को यव
ु ावस्था और पष्ु पवाटिका के फूलों (बाग-बगीचों में घम
ू ने जाना) का अनभु व
अवश्य करना चाहिए।
• बसंत ऋतु में आने वाला होली का त्यौहार , इस ओर संकेत करता है कि शरीर को थोड़ा सख
ू ा सेक दे ना चाहिए
, जिससे कफ पिघलकर बाहर निकल जाये।
गन ु गन
ु ा पानी में स्नान करना ठीक है । परन्तु सिर को ठं डे पानी से धोना चाहिए नहीं तो आँखें कमजोर हो जाती
हैं। पहले सिर को ठं डे पानी से धोकर बाद में शरीर पर गर्म पानी डाले । स्नान करने के बाद अगर , केशर ,
चंदन , कपरू का लेप शरीर पर करना चाहिए।
• इस ऋतु में शरीर पर चंदन , अगर का लेप करने से शीतलता का अहसास होता है ।
(4.)
बसंत ऋतु में गर्मी के कारण ठं डक की आवश्यकता होती है । पंखा की जरूरत पड़ती है । पंखा की हवा सीधे शरीर
को लगे नहीं उसका ध्यान रखना चाहिए अन्यथा कफ प्रकोप बढ़ने की अधिक शक्यता रहती है ।
● दिन में सोना नहीं चाहिए। दिन में सोने से कफ कुपित होता है । जिन्हें रात्रि में जागना आवश्यक हो वे थोड़ा
सोयें तो ठीक है । इस ऋतु में रात्रि जागरण नहीं करना चाहिए।
दिन में सोना नहीं चाहिए। साथ ही खल ु े आकाश के नीचे अर्थात ् ओस में सोना भी ठीक नहीं। इसके अतिरिक्त ,
अधिक ठण्डे पदार्थों का सेवन व ठं डी भी बसंत ऋतु में हानिकारक है ।
• सर्दी , खाँसी और बढ़े हुए कफ के शमन के लिए आधा चम्मच सिलोपलदी चर्ण ू , एक चौथाई चम्मच जेठीमघ
(मलु ेठी , यष्टीमध)ु का चर्ण
ू , दोनों को आधा चम्मच शहद में मिलाकर प्रात: काल सेवन करने से कफ का
शमन होता है ।
• पद
ु ीना का ताजा रस या अर्क कफ , सर्दी एवम ् मस्तिष्क की सर्दी में अत्यन्त उपयोगी है ।
• अदरक का रस , नींबू का रस और सैंधा नमक एक साथ मिलाकर भोजन के पहले सेवन करने से अग्नि
प्रदीप्त होती है । खाँसी , सज
ू न , कफ विकार और श्वास रोग में भी फायदे मद
ं है ।
• चार लीटर पानी में एक चम्मच सौंठ डालकर उबालें , आधा रह जाए तब इस पानी को छानकर दिन में यही
पानी पियें या एक चटु की सौंठ एक गिलास पानी में डालकर उकालें या पानी गन
ु गन
ु ा सब
ु ह खाली पेट और रात
को पियें।
• नागरमोथ- आधा चम्मच एक गिलास पानी में डालकर उकाल कर छानकर पीए , दिन में दो समय।
• सौंठ डालकर उकाला हुआ जल , शहद का शरबत ( पानी में शहद मिलाकर ) तथा नागरमोथ से सिद्ध जल
पीना भी अत्यन्त लाभप्रद है ।
(5.)
• कफ विकार के लिए सबसे उत्तम उपाय है वमन (उल्टी) । वमन मतलब औषधि द्रव्य दे कर जबरदस्ती उल्टी
करवाना । उल्टी करने से कफ निकल जाएगा। कफ विकारों के लिए यह प्रतिबंधक उपाय है । इसी तरह नमक
डालकर गनु गनु ा किया पानी पेट भरकर गला तक आये उतना पीकर उल्टी करलें ।
• कफ बढ़ा हो तो सठ
ंू , काली मिर्च , पीपर ( त्रिकटु चर्ण
ू ) का चर्ण
ू गनु गन
ु ा पानी से सब
ु ह-शाम 1-1 चमची लेना
चाहिये।
• बसंत ऋतु में शिशओु ं एवम ् बच्चों में कफ न बढ़े इसके लिए आधा कप में एक पीपल डालकर उसे उबालकर
एक हफ्ते तक सब ु पिलायें ।
ह
• नागरवेल का पत्ता (पान) पर अरं डी का तेल लगाकर और उसे थोड़ा सा गर्म करके छोटे बच्चों की छाती पर
हल्का सेक करना चाहिए। इससे बच्चे की छाती में जमा कफ पिघलकर निकल जाता है ।
• शहद (मधु ) – मधु उत्तम कफनाशक है । इसलिए शीत ऋतु में मधु का सेवन उपयोगी होता है । दिन में एक
चम्मच की मात्रा में मधु (शहद) तीन से चार बार सेवन करना चाहिए। शहद को किसी चीज में मिलाकर लेना
चाहिए , चाहे पानी हो या दधू या फलों का रस।
• आसव-अरिष्ट – चाहे तो मन को प्रसन्न करें एवम ् हृदय के लिए हितकारी हो ऐसे आसव-अरिष्ट जैसे कि
महवारिष्ट , द्राक्षारिष्ट , सिरका आदि पीना शरद ऋतु में लाभदायक है । यह व्यस्क व्यक्ति को पीना चाहिए।
(6.)
(1.) नीम का रस पीने से वायु दोष नहीं होता और पित्त की समस्या से बचा जा सकता है । यह 18-20 दिन तक
ले सकते हैं ।
(2.) नीम की पत्तियों को पानी में उकालकर उसका रस भी सब ु ह पीया जा सकता है । इसमें शरीर की प्रकृति के
हिसाब से शहद या गड़ ु डाला जा सकता है । शहद डालने से पहले इस उकाले को ठं डा कर लें। तो कोई काली मिर्च
, सठ
ंू या गंठोडा (पीपरामल ू ) डाला हुआ नीम का रस पीता है । इससे वायु दोष नहीं होता।
(4.) इस ऋतु में कड़वे नीम की नई कोपलें फूटती हैं। नीम की 15-20 कोपलें , 2-3 काली मिर्च के साथ खब ू
चबा-चबाकर खानी चाहिए। 15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्ष भर चर्म रोग , रक्त विकार और ज्वर आदि
रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवम ् आरोग्यता (स्वास्थ्य) की रक्षा होती है ।
(5.) इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा रोग एवम ् मलेरिया जैसे ज्वर से
भी बचाव होता है । इस प्रकार योग्य बसंत ऋतचु र्या का पालन कर इस ऋतु में होने वाले मंदाग्नि , अपच ,
खाँसी , सर्दी-जक
ु ाम आदि कफ-प्रधान रोगों से बचा जा सकता है तथा इससे हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर
सकते हैं ।
नोट – इधर नीम का मतलब कड़वे नीम से है । सब्जी में डालने वाला मीठा नीम नहीं।
लेखक -----
वैद्य : सध
ु ीर कुमार गप्ु ता
(7.)