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अधं ेर नगरी

-भारतेन्दु हररश्चन्र
एकांकी सार (के वल कक्षा पठन हेतु)
प्रस्ततु एक ांकी में भारतेंदु जी ने चौपट र ज के म ध्यम से र जनीततक भ्रष्ट च र, दरू दृतष्ट हीनत और कौशल हीनत को
प्रकट तकय है न टक क के न्द्र अांधेर नगरी क चौपट र ज है जो अपनी ही दतु नय में रहत हुआ असतलयत को कतई
नहीं ज न लेत है ।
कोशी नदी के तकन रे एक महांत (सांत) जी अपने तशष्यों के स थ कुतटय बन कर रहते थे । वह अपने तशष्य न र यणद स
और गोबरधनद स के स थ देश भ्रमण क तनश्चय तकय । गुरु-तशष्य घूमते-घूमते एक अजनबी देश में ज पहुुँचे। गुरु ने
तशष्य को ब ज र से सब्जी ल ने को कह । तशष्य गोबरधनद स जब सब्जी मांडी पहुुँच तब उसने सतब्जयों क मोल
भ व पूछन शुरू तकय । उसे यह देखकर क फी आश्चयय हुआ तक वह ुँ सभी वस्तुएुँ टक (एक रुपये) सेर के भ व से
तबक रही थी। सब्जी क्य , दधू -दही, तमठ ई सब एक ही भ व थ । उसने सोच तक सब्जी-रोटी तो रोज ख ते हैं, क्यों न
आज एक सेर तमठ ई ही खरीदी ज ए । सो उसने सतब्जयों के बदले एक सेर अच्छी सी तमठ ई खरीद ली । तमठ ई लेकर
वह खुशी-खुशी अपनी कुतटय पर पहुुँच । उसने गुरु जी को स री ब तें बतल ई ब ज र ह ल यह है र ज्य में भ जी हो
य ख ज , सब टके सेर गुरुजी ध्य नमग्न होकर बोले बेट गोबरधनद स तजतन शीघ्र हो हमें यह स्थ न को छोड़ देन
च तहए । यह अांधेर नगरी है लगत है यह ुँ क र ज मह चौपट और मूख यतधर ज है । कभी भी हम रे प्र ण पर सांकट आ
सकत है । परन्द्तु तशष्य को यह सुझ व तबल्कुल पसांद नहीं आय । वह गुरु जी से बोल , गुरुजी मुझे तो यह स्थ न बहुत
भ गय है । यतद आपक आदेश हो तो कुछ तदन रह लू । गुरुजी को उसकी ब त पर हांसी आ गई । बोले ठीक है बेट
टके सेर की तमठ ई ख कर थोड़ सेहत बन लें । यतद कोई सांकट आए तो मुझे य द कर लेन । यह कहकर वह ुँ से चले
गय । गोबरधनद स रोज प्र तः नगर में तभक्ष टन को तनकलत और जो एक-दो रुपय प्र प्त होत उसकी अच्छी-अच्छी
तमठ ई खरीदकर उसक सेवन करत । इस प्रक र कई मतहने गुजर गए । ख -पीकर वह क फी मोट तगड़ हो गय ।
कल्लू बतनय क दीव र तगरने से बकरी मर गई। रोती कल वती न्द्य य हेतु र ज के प स पहुुँची। कल्लू बतनय को
पकड़कर र ज के स मने पेश तकय गय । उसकी ब तें सुनकर र ज ने हुक्म तदय ज न के बदले ज न दो । र ज ने
कल्लू बतनय से कह य तो बकरी को तजांद कर दो अथव फ ुँसी पर चढो। कल्लू बतनय दीव र को दोषी ठहर य
दीव र बन नेव ले क रीगर, चूनेव ले, तभश्ती की सफ ई लेते हैं । सब एक दसू रे पर आरोप लग ते है । अांत में कोतव ल
को फ ुँसी की सज देते हैं । कोतव ल पतल व्यति थ । फ ुँसी क फांद उसके गले में क फी ढील पड़ रह थ ।
जल्ल द र ज से कहने लग , म ई-ब प फ ुँसी क फांद इसके गले के आक र से क फी बड़ है। कुछ देर तक र ज
तचतां न करत रह और जल्ल द से बोल , ज आसप स में जो सब से मोट तदख ई पड़े उसे फ ुँसी दे दो ।
जल्ल द नगर कोतव ल के स थ मोटे व्यति की तल श में तनकल पड़ । वे गोबरधनद स की कुतटय के तरफ तनकल
रहे थे । गोबरधनद स तमठ ई ख ते हुए तदख ई तदय । उसे देखकर कोतव ल बोल लो हो गय क म हम र तशक र
तमल गय । गोबरधनद स को पकड़कर वध स्थल तक ल ए । उसने र ज से तगड़तगड़ कर कह , सरक र मेर क्य कसूर
है जो फ ुँसी दे रहे है । र ज ने कह , फ ुँसी क फांद तम्ु ह रे गले के न प क है, इसतलए फ ुँसी के तख्त पर तम्ु हें ही
चढन होग । उसे गरुु जी की ब तें य द आ गयी । वह बोल थोड़ रुक ज इए मझु े अपने गरुु क ध्य न करने दीतजए
।उसके ध्य न लग ते ही गरुु जी वह ुँ पहुुँच गए । उन्द्होंने एक तां में उसके क न में कह देख न टके सेर तमठ ई ख ने क
मज अब जैस कहत हुँ वैस ही करन । गरुु जी जल्ल द से बोले, मैं भी मोट हुँ पहले मझु े फ ुँसी पर चढ उधर
गोबरधनद स जल्ल द क ह थ खींचते हुए बोल नहीं नहीं पहले मझु े फ ुँसी दें । अब एक और जल्ल द को गरुु जी
खींच रहे थे तो दसू री ओर से गोबरधनद स । गस्ु स कर र ज बोल - फ ुँसी के न म से अच्छे -अच्छों के होश उड़ ज ते हैं
और एक तमु दोनों हो तक फ ुँसी चढने के तलए म र -म री कर रहे हो इसक क रण क्य है ? अधां ेर नगरी क र ज मख ू य
और चौपट थ । वह अव्वल दजे क ल लची भी थ । गरुु जी ने उसे यह बत य तक अब जो मरे ग , सीध बैकुांठ
पहुुँचेग । तब र ज ने कह -" र ज के रहते और कौन बैकुांठ ज सकत हैम मैं खदु फ ुँसी चढूुँग । यह कहकर उसने
जल्ल द से फ ुँसी क फांद छीनकर अपने गले में ड ल तलय और फ ुँसी पर लटक गय । गोबरधनद स और गरुु जी
वह ुँ से तुरन्द्त तखसक गए । तब से यह कह वत प्रचतलत है "अांधेर नगरी चौपट र ज टके सेर भ जी टके सेर ख ज ।
प्रश्नोत्तर (ननम्न प्रश्नों के उत्तर तीन-चार वाक्यों में नलनिए |
1. गोबरधनदास के बारे में आप क्या जानते है ?
ज: महांत (सांत) जी क तशष्य गोबरधनद स है । गुरुजी के आदेश से वह सब्जी मांडी पहुुँच । वह ुँ सब्जी दधू -दही,
तमठ ई सब एक ही भ व क थ । वह लोभी और ख द्य तप्रय है । टके सेर तमठ ई खरीद तलय । वह गुरुजी की अनुमतत
से अांधेर नगरी में रोज प्र तः तभक्ष टन को तनकलत और जो एक-दो रुपय प्र प्त होत उसकी अच्छी अच्छी तमठ ई
खरीदकर उसक सेवन करत । इस प्रक र कई म ह गुजर गए । ख -पीकर वह क फी मोट तगड़ हो गय । कोतव ल ने
उसे फ ुँसी पर चढ ने ले गय । लेतकन गुरु जी की च ल से बच तनकल ।
2. अंधेर नगरी एकांकी के अंत में फााँसी पर कौन चढा और क्यों ?
ज : अांधेर नगरी क र ज मूखय और चौपट थ । वह अव्वल दजे क ल लची भी थ । गुरुजी ने उसे यह बत य तक
अब जो मरे ग , सीध वैकुांठ पहुुँचेग । तब र ज ने कह " र ज के रहते और कौन बैकुांठ ज सकत है मैं खुद फ ुँसी
चढूुँग । यह कहकर उसने जल्ल द से फ ुँसी क फांद छीनकर अपने गले में ड ल तलय और फ ुँसी पर लटक गय ।
गोबरधद स और गुरुजी वह ुँ से तुरन्द्त तखसक गए ।

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