ले कै उपदे श-ओ-सँदेस पन ऊधौ चले सज ु स-कमाइब उछाह-उदगार म कहै रतनाकर नहा र का ह कांतर पै आतुर भए य र यौ मन न सँभार म ॥ ान-गठर क गाँ ठ छर क न जा यौ कब हर-हर पँज ू ी सब सर क कछार म । डार म तमाल न क कछु बरमानी अ कछ अ झानी है कर र न के झार म ॥ 22 ॥
हर-हर ान के गुमान घ ट जा न लगे
जोग के वधान यान हूँ त ट रबै लगे । नैन न म नीर रोम सकल शर र यौ ेम- अ भुत-सुख सू झ प रबै लगे ॥ गोकुल के गाँव क गल म पग पारत ह भू म क भाव भाव ओरै भ रबै लगे । ान-मारतंड के सुखाए मनु मानस क सरस सह ु ाये घन याम क रबै लगे ॥ 23 ॥