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जान न यमत

ृ ं वहाय गरलं भु जे वयं ब धम-

या त ात नब धनं ढतरं कुव सु क् वंधवत ् ।

ीव ृ दाट व ! मातरे क मह म जीवातरु ि त वयं

य वं नेहमयी वकृ य जनतां वांकं समाने य स।।६३।।

ले कै उपदे श-ओ-सँदेस पन ऊधौ चले


सुजस-कमाइब उछाह-उदगार म
कहै रतनाकर नहा र का ह कांतर पै
आतुर भए य र यौ मन न सँभार म ॥
ान-गठर क गाँ ठ छर क न जा यौ कब
हर-हर पँज
ू ी सब सर क कछार म ।
डार म तमाल न क कछु बरमानी अ
कछ अ झानी है कर र न के झार म ॥ 22 ॥

हर-हर ान के गुमान घ ट जा न लगे


जोग के वधान यान हूँ त ट रबै लगे ।
नैन न म नीर रोम सकल शर र यौ
े म- अ भ त
ु -सख
ु सू झ प रबै लगे ॥
गोकुल के गाँव क गल म पग पारत ह
भू म क भाव भाव ओरै भ रबै लगे ।
ान-मारतंड के सुखाए मनु मानस क
सरस सह
ु ाये घन याम क रबै लगे ॥ 23 ॥

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