Compilation - Haridra

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हरिद्रा

 निरुक्ति- (नि.आ)

हरिद्रा - हरि पीतवर्णं द्राति गच्छति इति हरिद्रा।


यह पीत वर्ण को प्राप्त करती है |

पीता- पीयते स्म प्रमेहादि रोगिभिः इति|


प्रमेह आदिl रोगों से पीड़ित रोगी इसका पान करते
है |

निशाख्य- निशा इति आख्या यस्याः सा।


रात्रि के जितने नाम हैं.उन नामों से इसका परिचय दिया जाता है ।

वरवर्णिनी - वरश्वासो वर्णश्च इति वरवर्णः सः अस्याः अस्ति इति ।


इसका वर्णं उत्तम होता है ; अतः यह वरवर्णिनी है ।

योषित ् प्रिया - योषितां प्रिया इति|


यह स्त्रियों को प्रिय होती है ।
हलदी - हलति विलखति भूमि, 'हल ् विलेखने'; हलः कर्षकः; तमपि दापयत
इति; दे प ् शोधने' ।

खेती करने- वाले—हलदी बोने वाले को भी यह शुद्ध करती।

 नाम/पर्याय-

नाम- हरिद्रा ,रजनी, गौर, रञ्जिनी,पिण्डा,वर्णवत,वर्णा निशा विलासि

पर्याय-
क. 'हरिद्रा काञ्चनी पीता निशाऽऽख्या वरवर्णिनी । कृमिघ्नीहलदी
योषित्प्रिया हट्टविलासिनी । । ' (भा.प्र.)

हरिद्रा, काञ्चनी, पीता, निशाख्या,हल्दी, वरवर्णिनी, योषित्प्रिया,


कृमिघ्नी, हट्टविलासिनं।

ख. हरिद्रा पीतिका पिङ्गा रजनी रञ्जनी निशा ।


गौरी वर्णवती पीता हरिता वरवर्शिनी ।।
हलदिका भद्वलता ज्ञेया वर्णविलासिनी ।
विषघ्नी च जयन्ती च दीर्घरङ्गा तु रङ्गिणी।। (ध.नि.)

ग. हरिद्रा वर्णिनी गौरी पीता च वरवर्णिनी।


भद्रलता सुमङ्गल्या हरिद्रा हरिता तथा ।।
विषघ्नी च जयन्ती च पिङ्गा वनविलासिनी रङ्गिणी दीर्घरागा सैव
वर्णप्रदायिनी ।।

अन्य नाम-

वनविलासिनी,दीर्घरागा, भद्रलता, दीर्घरङ्गा, रङ्गिणी,वर्णवती,जयन्ती,


 संहिता औषध गण-

1. चरक संहिता- लेखनीय, कण्डूघ्न,


शिरोविरे चन,क्रिमिघ्न,कुष्ठघ्न।

2. सुश्रुत संहिता-हरिद्रादि गण, मुस्तादि गण,


श्लेष्मसंशमन।

3. अष्टाङ्ग हृदय- हरिद्रादि गण, मुस्तादिगण।

 BOTONICAL NAME –

Curcuma longa Linn. (C. domestica Val.)

 FAMILY –

SCITAMINAE (ZINZEBERCEAE)

 Vernacular Names-

Hindi- Haldi

English- Turmeric

Telugu- Pasupu, Pasupu Kommulu

Tamil-Manzal

Kannada- Aabhinin

 Botanical Description-
Annual herb

Root-stock large, ovoid; sessile tubers thick, cylendric, bright yellow


inside.

Leaves- long petiole; oblong, narrow at the base.

Flower- bracts pale green .


flowers as long as the bracts, pale green

Flowers during rainy season.

 Distribution-

 Cultivated throughout India.

 स्वरूप-(भा.नि)

 क्षुप— १ मी. तक ऊँचा होता है ।

 पत्ते - केले के नवीन पौधे से निकले हुए पत्ते के समान ३०-४५ से.मी.
लम्बे तथा १५-१८ से.मी. थौड़े, उतने ही लम्बे पर्णवन्ृ त से यक्
ु त,
आयताकार-भालाकार एवं पर्णतल की तरफ कुछ नक
ु ीले होते है ।
पत्तों में आम के समान गन्ध आती है ।
 फूल—अवन्ृ त काण्डज क्रम में निकले हुए, पीतवर्ण के, संख्या में अल्प तथा
करीब ३ से.मी. लम्बे, पष्ु पदण्ड - १५ से.मी. या अधिक लम्बा।

 जड़- के नीचे अदरख के समान बड़े-बड़े कन्द होते हैं। यह सर्वाङ्ग पीला
होता है इन्ही कन्दों को हल्दी कहते हैं। ये कन्द विभिन्न आकार के, मूल
एवं पर्णवन्ृ तों के चिह्नों से यक्
ु त होते हैं अन्दर का भाग पीला या
नारं गपीत |

 भग्न— शङ्
ृ गवत ्

 गन्य—मधरु

 स्वाद— कड़वा

 वर्ण- पीत

 Major Chemical Constituents-

Curcumene, Curcumenone, curcone, curdione, cineole


curzerenone, epiprocurcumenol, eugenol, camphene, camphor,
borneol, procurcumadiol, procurcumenol, curcumins, ukonan A,
B & D, B-sitosterol etc.

 Part Used –

Rhizome

प्रयोज्याङ्ग – इस (कृषित क्षुप) के कन्द (नवीन ताजी तथा शुष्क-सूखे)


औषधोपयोगी हैं। यह आहार पाक (भोजन पकाने) में दै निक प्रयुक्त प्रमुख
रसोईधर का मसाला है ।(म.नी)

 Dosage-

Fresh juice 10-20 ml, powder 1-3 g


 Properties-

Rasa- Tikta, Katu

Guna- Ruksha, Laghu

Virya- Uṣṇa

Vipaka- katu

Karma - Kapha-vātahara, Lekhana, Viṣaghna, Varnya

गण
ु -

-हरिद्रा कटुका तिक्ता रूक्षोष्णा श्लेष्मपित्तनुत ् ।


वर्ष्या त्वग्दाहमेहास्त्रशोफपाण्डुव्रणापहा।। २२९ ।।(म.नि)

कटु,श्लेष्मघ्न, त्वक् रोग, तिक्त, उष्ण, वर्ण्य, प्रमेह ,त्वक् रोग


पाण्डु, रूक्ष, पित्तहर, अस्त्र (रक्त) विकार , व्रण

-हरिद्राकटुतिक्तोष्णा कफवातास्रकुष्ठनुत ् ।
मेहकण्डूव्रणान ् हन्ति दे हवर्ण विधायिनी ॥ ( रा. नि. )

 Pharmacological actions-

कर्म- (म.नि)

1. दाह प्रशमन
2. लेखन
3. ग्राही
4. दीपन
5. विषघ्न
6. शोथहर
7. कण्डून
8. वेदनास्थान
9. रसायन
10..कुष्ठघ्न
11.व्रणरोपण
12.भगन्दर
13.कृमि

 INDICATIONS-

 Prameha
 Kusta
 Krimi
 Kandu
 Vraṇa
 Pāṇdu
 Kāmalā

 रोग-(म.नि)
1. त्वचा विकार

2. अपची

3. व्रण

4. विसर्प

5. सद्यक्षत

6. कुष्ठ

7. नाडीव्रण

8. कास

9. २उन्माद

10. कण्डू-पामा-दद्र ु

11. रक्तस्राव

12. श्वास

13. भूतग्रहबाधा

14. हिक्का

15. प्रदर
16. तमक श्वास

17. अतिसार - संग्रहणी

18. वर्ण विकृति

19. क्षुद्ररोग

20. प्रमेह

21. वातरोग

22. प्रतिश्याय

23. प्लीहा

24. विष

25. कफरोग

26. शोथ

27. पाण्डु

28. शीतपित्त उदर्द

29. पीनस

30. संक्रमण - प्लीहा निरोधक


 Therapeutic Uses-

 Vyanga, Haridra and Rakta Candana are made into


paste। with bufallo's milk and applied externally
(R.R.S.)

 Ślipada & Dadru Kuştha- Haridra powder is taken with


jaggery and Cow's urine (V.M. & B.P.)

 Pişṭameha- Haridrā andDāruharidrā Kaṣāya(S.S.Ci.


11).

अमायिक उपयोग- (नि.आ)

चरक-

प्रमेह में - आमलों के रस और मधु के साथ हरिद्रा चूर्णं पिलाना चाहिए; इससे
प्रमेह नष्ट होता है । (चि. ६)

सुश्रुत-

कुष्ठ में - एक मास पर्यन्त गोमूत्र के साथ १ पल=४ तोले की मात्रा में हरिदाचूर्णं
पिलाना चाहिए; इससे दष्ु ट कुष्ठ रोग से भी मक्ति
ु मिलती है । -( चि. १-४३ )

वाग्भट-

कफजन्य तष्ृ णा मे
हरिद्रा में - आमलों के रस और मधु के साथ हरिद्रा चूर्णं पिलाना चाहिए; इससे
प्रमेह नष्ट होता है । (चि. ६)

चक्रदत्त-

श्लीपद में -
हरिद्राचूर्ण और गुड़ को गोमूत्र के साथ दे ना चाहिए।

बंगसेन-

मत्र
ू न्द्रि
े य से
ू के साथ पड़ता हो तो- रोगी को किंचित ् गड़
रे ती जैसा पदार्थ मत्र ु यक्
ु त
कांजी के साथ हरिद्रा-चर्णं
ू पिलाना चाहिए ।

(३६ नि० पा०)

इयोसीनोफिलिया में
हल्दी से भी लाभ होता है । हरिद्रा उत्तम रक्तशोधक
एवं यकृदत्ु तेजक हैं।
 FORMULATIONS-

1. Haridra Khaṇḍa

2. Vrana śōdhana tailam

3. Niśamalaki

4.Haridrādidhūma varti

 RESEARCH-

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