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Compilation - Haridra
Compilation - Haridra
Compilation - Haridra
निरुक्ति- (नि.आ)
नाम/पर्याय-
पर्याय-
क. 'हरिद्रा काञ्चनी पीता निशाऽऽख्या वरवर्णिनी । कृमिघ्नीहलदी
योषित्प्रिया हट्टविलासिनी । । ' (भा.प्र.)
अन्य नाम-
BOTONICAL NAME –
FAMILY –
SCITAMINAE (ZINZEBERCEAE)
Vernacular Names-
Hindi- Haldi
English- Turmeric
Tamil-Manzal
Kannada- Aabhinin
Botanical Description-
Annual herb
Distribution-
स्वरूप-(भा.नि)
पत्ते - केले के नवीन पौधे से निकले हुए पत्ते के समान ३०-४५ से.मी.
लम्बे तथा १५-१८ से.मी. थौड़े, उतने ही लम्बे पर्णवन्ृ त से यक्
ु त,
आयताकार-भालाकार एवं पर्णतल की तरफ कुछ नक
ु ीले होते है ।
पत्तों में आम के समान गन्ध आती है ।
फूल—अवन्ृ त काण्डज क्रम में निकले हुए, पीतवर्ण के, संख्या में अल्प तथा
करीब ३ से.मी. लम्बे, पष्ु पदण्ड - १५ से.मी. या अधिक लम्बा।
जड़- के नीचे अदरख के समान बड़े-बड़े कन्द होते हैं। यह सर्वाङ्ग पीला
होता है इन्ही कन्दों को हल्दी कहते हैं। ये कन्द विभिन्न आकार के, मूल
एवं पर्णवन्ृ तों के चिह्नों से यक्
ु त होते हैं अन्दर का भाग पीला या
नारं गपीत |
भग्न— शङ्
ृ गवत ्
गन्य—मधरु
स्वाद— कड़वा
वर्ण- पीत
Part Used –
Rhizome
Dosage-
Virya- Uṣṇa
Vipaka- katu
गण
ु -
-हरिद्राकटुतिक्तोष्णा कफवातास्रकुष्ठनुत ् ।
मेहकण्डूव्रणान ् हन्ति दे हवर्ण विधायिनी ॥ ( रा. नि. )
Pharmacological actions-
कर्म- (म.नि)
1. दाह प्रशमन
2. लेखन
3. ग्राही
4. दीपन
5. विषघ्न
6. शोथहर
7. कण्डून
8. वेदनास्थान
9. रसायन
10..कुष्ठघ्न
11.व्रणरोपण
12.भगन्दर
13.कृमि
INDICATIONS-
Prameha
Kusta
Krimi
Kandu
Vraṇa
Pāṇdu
Kāmalā
रोग-(म.नि)
1. त्वचा विकार
2. अपची
3. व्रण
4. विसर्प
5. सद्यक्षत
6. कुष्ठ
7. नाडीव्रण
8. कास
9. २उन्माद
10. कण्डू-पामा-दद्र ु
11. रक्तस्राव
12. श्वास
13. भूतग्रहबाधा
14. हिक्का
15. प्रदर
16. तमक श्वास
19. क्षुद्ररोग
20. प्रमेह
21. वातरोग
22. प्रतिश्याय
23. प्लीहा
24. विष
25. कफरोग
26. शोथ
27. पाण्डु
29. पीनस
चरक-
प्रमेह में - आमलों के रस और मधु के साथ हरिद्रा चूर्णं पिलाना चाहिए; इससे
प्रमेह नष्ट होता है । (चि. ६)
सुश्रुत-
कुष्ठ में - एक मास पर्यन्त गोमूत्र के साथ १ पल=४ तोले की मात्रा में हरिदाचूर्णं
पिलाना चाहिए; इससे दष्ु ट कुष्ठ रोग से भी मक्ति
ु मिलती है । -( चि. १-४३ )
वाग्भट-
कफजन्य तष्ृ णा मे
हरिद्रा में - आमलों के रस और मधु के साथ हरिद्रा चूर्णं पिलाना चाहिए; इससे
प्रमेह नष्ट होता है । (चि. ६)
चक्रदत्त-
श्लीपद में -
हरिद्राचूर्ण और गुड़ को गोमूत्र के साथ दे ना चाहिए।
बंगसेन-
मत्र
ू न्द्रि
े य से
ू के साथ पड़ता हो तो- रोगी को किंचित ् गड़
रे ती जैसा पदार्थ मत्र ु यक्
ु त
कांजी के साथ हरिद्रा-चर्णं
ू पिलाना चाहिए ।
इयोसीनोफिलिया में
हल्दी से भी लाभ होता है । हरिद्रा उत्तम रक्तशोधक
एवं यकृदत्ु तेजक हैं।
FORMULATIONS-
1. Haridra Khaṇḍa
3. Niśamalaki
4.Haridrādidhūma varti
RESEARCH-