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का य काश - भाग -१

तोता -अ ण पा डे य
का य काश
 का य काश के रचियता का मीरदे शीय म मट ह ।
 इनको सम वयवादी, वा दे वतावतार इ यािद नाम से भी जाना
जाता है ।
 म मट का समय एकादशशता दी (11th A.D.) मानी जाती है ।
 म मट के िपता का नाम जैयट था ।
 का मीरी होने के कारण इ हे राजानक उपािध ा है ।
 सािह य के ायः सभी िवषय इस थ म ितपािदत ह ।
 श द यापारिवचार नामक एक अ य थ भी म मट क ही
रचना है ।
का य काश का िवभाजन १० उ लास म है । िजनके नाम –
१- का य व पिन पण, का य कारिनणय ।
२ – श दाथ व पिन पण, शा दी य जनािवचार ।
३ – आथ य जनािवचार ।
४ – उ म( विन) का य िन पण , रसािद विनिवचार ।
५ – म यमका यिन पण , य जना क थापना ।
६ – अधम(अवर) का यिन पण ।
७ – दोषिन पण ।
८ – गु णिन पण ।
९ – श दालङ्कारिन पण ।
१० – अथालङ्कारिन पण ।
का य योजन
का यं यशसेऽथकृते यवहारिवदे िशवेतर तये ।
स ः परिनवृ ये का तासि मततयोपदेशयुजे ॥
 म मट के अनु सार का य के ६ योजन होते ह –
१. यशसे - कािलदासादीनािमव यशः ।
२. अथकृ ते - ीहषादे धावकादीनािमव धनम् ।
३. यवहारिवदे - राजािदगतोिचताचार प र ानम् ।
४. िशवेतर तये – आिद यादे मयूरादीनािमवानथिनवारणम् ।
५. स ः परिनवृ ये - सकल योजनमौिलभूतं समन तरमे व रसा वादन-
समु ूतं िवगिलतवे ा तरमान दम्
६. य का यं लोको रवणनािनपु णं किवकम तत् का तेव सरसतापादनेन
आिभमु खीकृ य रामािदव ि त यं न रावणािदविद युपदे शं च यथायोगं कवेः
स दय य च करोतीित सवथा त यतनीयम् ॥
का यहेतु
शि िनपुणता लोकका यशा ा वे णात् ।
का य िश याऽ यास इित हेतु तदु वे ॥
 म मट के अनु सार का य के तीन हे तु (कारण) ह ।
१ . शि = किव ितभा ।
२. िनपुणता= यु पि जो िक लोक अनु भव, का य शा आिद के
अनु शीलन से ा होती है ।
३. अ यास = किव अथवा का यपरामशक के उपदे श का अनु सरण करते हए
का य िनमाण म वृ होना ।
उपरो तीन सि मिलत होकर का य के हेतु ह तीन म से कोई एक
अलग से हेतु नही माना जा सकता ।
का यल ण
ल ण - तददोषौ श दाथ सगुणावनलङ्कृती पुनः वािप ।
अ वय – अदोषौ सगु णौ पु नः वािप अनलङ्कृ ती श दाथ तत् ।
 अदोषौ – दोषरिहत ।
 सगु णौ – गु णयु ।
 अनलङ्कृ ती पु नः वािप – कह पर फुट अलंकार न हो तो भी ।
 श दाथ – श द और अथ ।
 तत् – का य ।
अथात् – ऐसे श द और अथ जो दोषरिहत ह , गु ण (माधु य आिद) से यु हो वे
का य कहे जाते ह । यिद कह पर फुट अलंकार न हो तो भी वह का य
होता है ।
जैसे –
यः कौमारहरः स एव िह वर ता एव चै पा-
ते चो मीिलतमालतीसुरभयः ौढाः कद बािनलाः ।
सा चैवाि म तथािप त सुरत यापारलीलािवधौ
रे वारोधिस वेतसीत तले चेतः समु क ठते ॥
इस का य म कोई अलंकार फुट नह है । रस क धानता मा है ।
का यभेद
॥ उ मका य ॥
ल ण - इदमु ममितशियिन यङ् ये वा याद् विनबुधैः किथतः ॥
जहां पर वा याथ (मु याथ) क अपे ा यङ् याथ अिधक चम कारी
होता है वह विनका य उ मका य कहा जाता है ।
उदाहरण - िनःशेष यु तच दनं तनतटं िनमृ रागोऽधरो
ने े दू रमन जने पु लिकता त वी तवेयं तनु ः ।
िम यावािदिन दू ित बा धवजन या ातपीडागमे
वाप नातु िमतो गतािस न पु न त याधम याि तकम् ॥
अ तदि तकमेव र तुं गतासीित ाधा येनाधमपदेन य यते ।
म यमका य
ल ण - अता िश गु णीभू त यङ् यं यङ् ये तु म यमम् ॥
यिद यङ् याथ क अपे ा वा याथ ही अिधक चम कारी हो तो
गु णीभूत यङ् य का य म यम का य कहा जाता है । जैसे -
ामत णं त या नवव जु लम जरीसनाथकरम् ।
प य या भवित मुहिनतरां मिलना मुख छाया ॥
उपरो उदाहरण म व जु ल लतागृह म आने का संकेत दे कर भी नही
गई यह यं य गौण है , उसक अपे ा वा याथ ही अिधक सु दर
(चम कारयु ) तीत होता है ।
अधमका य
ल ण – श दिच ं वा यिच म यङ् यं ववरं मृतम् ।
 यङ् य से रिहत का य अवर(अधम) का य कहा जाता है जो िक २
कार का होता है ।
१- श दिच –
व छ दो छलद छक छकुहर छातेतरा बु छटा-
मू छ मोहमहिषहषिविहत नानाि का ाय वः ।
िभ ादु दुदारददु रदरीदीघाद र म
ु ः
ोहो क
े महोिममेदरु मदा म दािकनी म दताम् ॥ ४॥
उपरो उदाहरण म किव क गंगा क भि म उतनी त मयता
नह है िजतनी िक श द के िच बनाने म ।
२ – वा यिच -
िविनगतं मानदमा ममि दराद्-
भव युप ु य य छयाऽिप यम् ।
ससं मे त ु पािततागला
िनमीिलता ीव िभयाऽमरावती ॥
िजस दे व-मान-मदन दै यराज हय ीव का य भी अपने राज साद
से बाहर िनकल पडना सु न लेने से अमरावती – िजस पु र के ार
क अगला दे वराज इ न भयभीत होकर िगरा दी है वह ऐसी हो
गई है िक मानो आंखे ब द िकये पडी हो ।
ध यवादः

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