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म बटें हए

कब एक ह गे?

मु मद सािबर क़ादरी
सला सल
म बटें हए
सु ी
कब एक ह गे?
अ़ े मु फ़ा
मु मद सािबर क़ादरी
तफ़सीलात
नाम
सलािसल म बटें हए सु नी कब एक ह गे?
अज़ क़लम
दे मु तफ़ा मु मद सािबर क़ादरी

सना इशाअ़त कुल सफ़ह़ात


शाबान 1444 ि जरी 23
फ़रवरी 2023 सवी

हमारे डज़ाइ नग पाटनर


PURE SUNNI
GRAPHICS

ना शर

SABIYA VIRTUAL PUBLICATION

POWERED BY ABDE MUSTAFA OFFICIAL


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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?

फ़ेहरिस्त
नासिर की तरफ से कुछ अहम बातें .............................................. 2
ये कै सी तक़सीम है? ............................................................... 4
इन इख़सतलाफात ने हमारी कमर तोड़ डाली ................................ 4
मजु ररम सकसे कहें?................................................................. 5
दसु नया-दार उलमा .................................................................. 5
तन्ज़ीमों से दीन का नक़्ु सान ........................................................ 8
दीन मगर तंज़ीमी िक्ल में, तंज़ीमी रंग में..................................... 9
सलाससल और तज़ं ीम........................................................... 10
एक अहम वज़ाहत ............................................................... 10
हालाते पीर सासहबान............................................................ 11
पीर सासहबान के जज़बाती बयानात ......................................... 11
अकासबरीन ने दीन का काम कै से सकया .................................... 12
सफर उसी की ज़रूरत है ......................................................... 13
हमारी सकताबें सहदं ी में........................................................... 16

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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?

नाशिर की तरफ से कुछ अहम बातें


मख़्ु तलफ ममासलक से कई सलखने वाले हमें अपना सरमाया इरसाल
फरमा रहे हैं सजन्हें हम िाया (Publish) कर रहे हैं, हम ये बताना जरूरी
समझते हैं सक हमारी िाया करदा सकताबों की मंदु ररजात (Contents) की
सज़म्मेदारी हम इस ह़द तक लेते हैं सक ये सब अहले सन्ु नत व जमाअ़त से
है और ये ज़ासहर भी है सक हर सलखारी का ताल्लक़ ु अहले सन्ु नत से है,
दसू री जासनब अकासबरीने अहले सन्ु नत की जो सकताबें िाया की जा रही
हैं तो उन के मतु ासल्लक़ कुछ कहने की हाजत ही नहीं। सफर बात आती है
लफ्ज़ी और इमलाई ग़लसतयों की, तो जो सकताबें "टीम अ़ब्दे मस्ु तफा
ऑसफसियल" की पेिकि होती हैं उनके सलये हम सज़म्मेदार हैं और वो
सकताबें जो मख़्ु तलफ ज़राए से हमें मौसल ू होती हैं, उन में इस तरह की
ग़लसतयों के हवाले से हम बरी हैं सक वहााँ हम हर हर लफ्ज़ की छान फटक
नहीं करते और हमारा सकरदार बस एक नासिर का होता है।
ये भी मसु म्कन है सक कई सकताबों में ऐसी बातें भी हों सजन से हम
इसिफाक़ नहीं रखते, समसाल के तौर पर सकसी सकताब में कोई ऐसी
ररवायत भी हो सकती है सक तहक़ीक़ से सजसका झटू ा होना अब सासबत
हो चक ु ा है लेसकन उसे सलखने वाले ने अदमे तवज्जो की सबना पर नक़्ल
कर सदया या सकसी और वजह से वो सकताब में आ गई जैसा सक अहले
इल्म पर मख़फी नहीं सक कई वजु हू ात की सबना पर ऐसा होता है, तो जैसा
हमने अज़़ सकया सक अगचे उसे हम िाया करते हैं लेसकन इससे ये ना
समझा जाए सक हम उससे इसिफाक़ भी करते हैं।
एक समसाल और हम अहले सन्ु नत के माबैन इसख़्तलाफी मसाइल की
पेि करना चाहते हैं सक कई मसाइल ऐसे हैं सजन में उलमा -ए- अहले
सन्ु नत का इसख़्तलाफ है और सकसी एक अमल को कोई ह़राम कहता है
2
सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
तो दसू रा उसके जवाज़ का क़ाइल है, ऐसे में जब हम एक नासिर का
सकरदार अदा कर रहे हैं तो दोनों की सकताबों को िाया करना हमारा काम
है लेसकन हमारा मौसकफ क्या है, ये एक अलग बात है, हम फरीकै ै़न की
सकताबों को इस बसु नयाद पर िाया कर सकते हैं सक दोनो अहले सन्ु नत से
हैं और ये इसख़्तलाफात फुरूई हैं।
इसी तरह हमने लफ़्ज़ी और इमलाई गलसतयों का सज़क्र सकया था सजस
में थोड़ी तफ़्सील ये भी मल ु ासहज़ा फरमाएाँ सक कई अल्फाज़ ऐसे हैं के सजन
के तलफ़्फुज़ और इमला में इसख़्तलाफ पाया जाता है, अब यहााँ भी कुछ
ऐसी ही सरू त बनेगी सक हम अगचे सकसी एक तरीक़े की ससह़्हह़त के क़ाइल
हों लेसकन उसके सख़लाफ भी हमारी इिाअत में मौजदू होगा, इस फक़़ को
बयान करना ज़रूरी था तासक क़ारईन में से सकसी को िब्ु हा न रहे।
टीम अ़ब्दे मस्ु तफा ऑसफसियल की इ़ल्मी, तहक़ीक़ी और इस्लाह़ी
सकताबें और ररसाले कई मरासहल ै़ से गजु रने के बाद िाया होते हैं लेसकन
इसके बावजदू इन में भी ऐसी ग़लसतयों का पाया जाना मसु म्कन है सलहाज़ा
अगर आप उन्हें पाएाँ तो हमें ज़रूर बताएाँ तासक उसकी तस्हीह़ै़ की जा सके ।

साशबया वर्ुअल पशललके िन


SABIYA VIRTUAL PUBLICATION
POWERED BY ABDE MUSTAFA OFFICIAL

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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?

सलाशसल में बंटे हुए सुन्नी कब एक होंगे?

ये कै सी तक़सीम है?
सलाससल के मा'ना तो जोड़ने के हैं सफर यहां तक़सीम की बात कहााँ से
आ गई? अगर हम मानते हैं सक ये सलाससल अहले सन्ु नत "में" हैं तो सफर
हम बटं े हुए क्यों हैं? सलाससल की वजह से अहले सन्ु नत का बटं वारा हो
रहा है तो सफर ये मानना पड़ेगा सक सलाससल के नाम पर मन-मानी हो रही
है। उसलू ों को फरामोि कर के काम सकया जा रहा है, जभी तो नताइज ऐसे
हैं। काम ठीक से सकया जाता तो सन्ु नीयों के दरमयान इसिहाद होता मगर
हाल ये है सक "काम" बटवारे की िक्ल इख़सतयार कर रहा है। सजस चीज़
से इसिहाद होना चासहए था, उस से इसं तिार हो रहा है तो सफर हमें सोचना
चासहए सक आसख़र ये कै से हो रहा है और... आसख़र ये कै सी तक़सीम है?

इन इख़शतलाफात ने हमारी कमर तोड़ डाली


एक तक़सीम तो उम्मते मसु स्लमा में सफक़़ों की िक्ल में हुई। लोगों ने
अहल सन्ु नत के बसु नयादी अक़ीदों से हट कर अक़ीदे बनाए और इस तरह
कई सफरक़े वजदू में आ गए। इस से मस्ु लमानों को बहुत ज़्यादा नक़्ु सान
पहुचं ा। इन सफक़़ों ने अपने बासतल नज़ररयात को ख़बू आम करना िरू ु
सकया और इस से अहले सन्ु नत के सलए जंग के कई महाज़ खल ु गए। ये
जंगें जारी ही थीं सक अब अहले सन्ु नत के अंदर सलाससल के नाम पर
बंटवारा िरूु हो गया। अहले सन्ु नत को जो चैलेंसजज़ दरपेि थे वही कम
नहीं थे सक अब अंदरूनी मआ ु मलात में लड़ाई झगड़ों का आग़ाज़ हो गया।
इन इख़सतलाफात ने हमारी कमर तोड़ डाली है। एक ऐसी सफज़ा क़ायम हो
गई है सक सजधर नज़र करें , उधर मख़ु ासलफत है। अगर कोई बड़ा काम हो
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
रहा होता है तो इन इख़सतलाफात की वजह से रुक जाता है। अगर काम
सकसी तरह िरू ु भी हो जाये तो ये आपस की नफरतें उसे तकमील तक
पहुचं ने नहीं देती। एक दसू रे से लड़ने में जो वक़्त बबा़द सकया जा रहा है
वो वक़्त वासपस नहीं समलने वाला और इसी वक़्त का फायदा उठाने वाले,
भरपरू फायदा उठा रहे हैं। हमने आपस में ये ससलससला िरू ु कर के ग़ैरों
को मौक़ा फराहम सकया है। हमारे अदं र की ये कमज़ोरी हमें पस्ती की तरफ
ले जा रही है। अब हमें चासहए सक हम अपनी टूटी हुई कमर को मज़ीद
टूटने से बचाएं और उसे तक़सवयत पहुचं ाने के सलए इख़लास के साथ काम
करें ।

मुजररम शकसे कहें?


ये जानना भी ज़रूरी है सक आसख़र कौन कौन अहले सन्ु नत को बांटने
के संगीन जमु ़ में िासमल है। जब उनकी पहचान होगी तभी उनसे बचा जा
सकता है वना़ मसु म्कन है सक हम भी मजु ररमों में िासमल हो जाएं। मजु ररमों
की फहररस्त तो लंबी है सलहाज़ा हम यहां "बड़े मजु ररमों" का सज़क्र करें गे
सक इन्होंने ही बाक़ी छोटे मजु ररमों को जन्म सदया है। सबसे बड़े मजु ररम वो
हैं सजन्हें मन्सब समला और इन्होंने उस का ग़लत इसस्तमाल सकया। एक
सासहब-ए -मन्सब के ऐसा करने से बहुत फक़़ पड़ता है। इस में दसु नया-दार
उलमा, पीर सासहबान और ससयासी सक़यादत करने वाले अफराद सब
िासमल हैं। इन्होंने अपने मन्सब पर ज़ल्ु म कर के अहले सन्ु नत को इलमी,
सफक्री और मआ ु िी तौर पर भी कमज़ोर सकया है।

दुशनया-दार उलमा
एक आसलम लोगों के सलए समसाल होता है सक सजसके तरीक़े को
अपनाया जाये लेसकन अगर यही सख़लाफे िरा काम करेंगे तो क्या होगा?
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
हक़ीक़तन देखा जाये तो ये आसलम होते भी नहीं, बस लोगों की नज़रों में
आसलम बने सफरते हैं। ऐसे दसु नया-दार लोगों की वजह से अहले सन्ु नत में
बहुत इसं तिार बढा है। ये लोग पहली बात तो जासहल होते हैं और ऊपर से
उन्हें ऐसा मन्सब भी दे सदया जाता है सक अवाम उन्ही की सनु ती है और
उनके मक़ ु ाबले में उलमा-ए-सकराम की जल्दी सनु ती भी नहीं।

हमारे मदाररस का हाल भी एक अलग उनवान है। बस रस्म अदा की


जा रही है। फाररग़-उत-तहसील हज़रात हों या वो सजन्होंने फराग़त समलने
से पहले ख़दु को फाररग़ कर सलया, दोनों का हाल एक जैसा नज़र आ रहा
है। अपने नाम के साथ "अल्लामा, फहामा" तो िौक़ से लगाते हैं लेसकन
सकसी काम के नहीं हैं, उल्टा काम बढाते हैं और अहले सन्ु नत को नक़्ु सान
पहुचं ाते हैं। उनकी हक़ीक़त बयान करने का मक़सद ये है सक लोग ऐसों को
अच्छी तरह जान लें और उनसे दरू हो कर हक़ीक़ी उलमा की तरफ रुजू
करें और जब ऐसा होगा तो इसिहाद यक़ीनी होता जाएगा। आज जो
इख़सतलाफात अहले सन्ु नत के माबैन ऐसी सरू त इख़सतयार कर चक ु े हैं तो
इस में ऐसे दसु नया-दार उलमा का बहुत अहम सकरदार है। इन्होंने फक़त
अपने फायदे के सलए और अपनी आराम की सज़दं गी के सलए सन्ु नीयों को
आपस में लड़ाया है। हम ऐसे दसु नया-दार उलमा के बारे में थोड़ा और
सलखेंगे तासक बात मज़ीद वाज़ेह हो सके ।

मदाररस से फराग़त हाससल करने वाले कहीं ना कहीं सकसी दीनी मन्सब
पर फाइज़ हो जाते हैं लेसकन इस का हक़ अदा नहीं कर पाते। मसासजद में
इमामत करने वाले अक्सर का हाल देखें और बताएं सक ऐसे लोगों के होते
हुए बेहतरी की सकतनी उम्मीद की जा सकती है? उन्हें ठीक से नमाज़
पढानी नहीं आती, दसू रे इल्मी और तहक़ीक़ी मसाइल तो बहुत दौर की
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
बात है। ऐसे लोग जमु ा जमु ा और सफर महासफले मीलाद के नाम पर आए
सदन तक़रीर के सलए खड़े होते हैं और सजन मौज़आ ू त पर कलाम करने की
सख़्त ज़रूरत है, उनसे कोसों दरू अपनी धनु में बयान कर के सकसी तरह
वक़्त गज़ु ारते हैं और ज़बरदस्ती की वाह वाही के साथ पैसे लटू कर सनकल
लेते हैं। बेचारी क़ौम जो सक इल्म की प्यासी तो है लेसकन उनकी प्यास
बझु ाने वाले अपनी दसु नया में मगन हैं। अब ऐसी अवाम को सजन्हें हमने
कोरा छोड़ सदया है, वो कब तक कोरा रहेगा? कभी भी कोई आकर इस
पर कुछ भी सलख देगा और सफर बाद में इस का तदारुक मसु ककल होगा।
अगर ख़वास और अवाम की ये हालत होगी तो सलाससल के नाम पर ही
नहीं बसल्क सकसी भी नाम को आड़ बना कर कोई भी अपना मतलब परू ा
कर के सनकल जाएगा।

मसासजद के अइम्मा अगर अच्छे हों और अपने इलाक़े की ज़रूरत को


समझ कर काम करें तो सफर कौन है जो वहां आकर सलाससल के नाम पर
इसं तिार फै लाने में कामयाब होगा? अगर ख़तरे से पहले ही आगाह कर
सदया जाये तो कई लोगों को ख़तरे से बचाया जा सकता है लेसकन ये
आगाह करें भी तो कै से, उन्हें ख़दु की ख़बर नहीं है। एक आसलम तो सफत्ने
में आते ही उसे पहचान लेता है और जासहलों को तब पता चलता है जब
वो जा रहा होता है। ऐसे ही ना जाने सकतने सफत्ने आते हैं और हमारे
सन्ु नीयों को अपने साथ ले जाते हैं लेसकन मन्सब पर फाइज़ ये हज़रात वही
रट्टा मारते रहते हैं जो उन्हें बारह महीने के सलए ससखा सदया गया है।

अच्छा ये लोग जहां से आए हैं उधर चलते हैं यानी मदाररसे इस्लामीया
सक जहां उलमा तैयार सकए जाते हैं, दस्तार और सनद दी जाती है। जब हम
उनकी तरफ देखते हैं तो ये नज़र आता है सक वहां भी कसमयां ही कसमयां
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
हैं, कोतासहयां और लापरवाहीयां वाज़ेह नज़र आती हैं। फक़त सनद दे देना
और दस़-ए-सनज़ामी में मौजदू सकताबों को पढा देना ही मदाररस का काम
नहीं है। मदाररस में अफ़्क़ार की तामीर होनी चासहए जो सक असल है। अगर
अफ़्क़ार नहीं तो महज़ रटी हुई सकताबों से सालाना इमसतहान में ही
कामयाबी हाससल की जा सकती है, और इस से आगे कुछ सदखाई भी नहीं
देगा क्यों सक अफ़्क़ार तो एक रस्म को अदा करने तक ही महददू रह गए।
जब मदाररस से ऐसे लोग बाहर आएाँगे अवामे अहले सन्ु नत की रहनमु ाई
करने के सलए तो क्या होगा? इस का अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत नहीं क्यों
सक मौजदू ा हालात हमारे सामने हैं। ऐसी हालत में सलाससल के नाम पर
बंटवारा होने से कौन रोके गा? क्या ये अहले मन्सब इस फरीज़े को अंजाम
दे पाएाँगे? सबलकुल नहीं दे पाएाँगे बसल्क इस बंटवारे में जहालत के सबब
अपना सहस्सा भी िासमल कर बैठेंगे। इसी तरह वो पीर सासहबान और
ससयासी क़ाइदीन सजनके अफ़्क़ार में फक़त दसु नयादारी है तो क्या वो
मस्ु लमानों को ऐसे बंटने से बचा पाएाँगे? बसल्क उल्टा वो भी अपने फायदे
के सलए क़ौम को और बांट देंगे। और ये सबलकुल ज़ासहर भी है सक आपने
देखा होगा ससयासत में आने वाले मसु लमानों के क्या हालात हैं और वो
क़ौम को सकस क़दर बाटं ने का काम कर रहे हैं। ये सब के सब मजु ररम हैं।
उनके जमु ़ों को सगनाते सगनाते उम्र गज़ु र जाएगी पर मकु म्मल बयान ना हो
पाएगा। आज जो हालात ऐसे हैं तो वो याँहू ी नहीं, बहुत गलतीयां हुई हैं तो
उन हालात को हम पहुचं े हैं। इन मजु ररमों में एक और नाम िासमल है और
वो है "तन्ज़ीमों का", जी हााँ, तंज़ीमें भी इस में िासमल हैं

तन्ज़ीमों से दीन का नुक़्सान


हम कुछ ऐसी बातों की तरफ तवज्जो सदलाना चाहते हैं सजन पर बहुत
कम लोगों ने ग़ौर सकया होगा। सब ये तो समझते ही हैं सक अहले सन्ु नत में
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
जो हर सदन दस बीस तंज़ीमें बन रही हैं, उनसे ससु न्नयत को फायदा पहुचं
रहा है लेसकन हम तस्वीर का एक दसू रा रुख भी आपके सामने रखना
चाहते हैं। तन्ज़ीमों ने दीन का काम सकया है लेसकन पहले तंज़ीम का काम
सकया है। इस जमु ले पर ग़ौर करें । दीन का काम या तंज़ीम का काम? अगर
दीन का काम ही करना है तो सकसी भी तज़ं ीम के सलए सकया जा सकता है
लेसकन "अपनी तज़ं ीम का ही काम करना कै सा दीन का काम है? क्या हम
ग़लत कह रहे हैं? क्या ऐसा नहीं है सक एक तज़ं ीम से जड़ु ने के बाद बदं ा
उसी का पाबंद हो कर रह जाता है? क्या तन्ज़ीमों को चलाने वाले ऐसे
उसल ू नहीं बना रहे हैं सक ससफ़ हमारी तंज़ीम के सलए और हमारे तरीक़े के
मतु ासबक़ ही काम सकया जाये वना़ आप इस तंज़ीम में काम नहीं कर सकते।
बात ससफ़ इतनी ही नहीं है बसल्क इख़सतलाफी मसाइल में भी इन तन्ज़ीमों
ने यही रवैय्या अपनाया सक जो बानी-ए-तंज़ीम का मौसक़फ है वही हर
रूक्न का हो वना़ उस की यहां कोई जगह नहीं है। सजन्होंने इख़सतलाफ
करने की कोसिि की उन्हें धक्के देकर सनकालने का काम इन तन्ज़ीमों ने
सकया है।

दीन मगर तज़ ं ीमी िक्ल में, तज़ ं ीमी रंग में


इन तन्ज़ीमों ने दीन को तो पेि सकया इस में कोई िक नहीं लेसकन एक
तंज़ीमी रंग में और एक तंज़ीमी िक्ल देकर सजससे ऐसा तास्सरु समलने
लगा सक ये एक अलग सगरोह है और इस के सख़लाफ करने वाले अलग
और इस अलग अलग के चक्कर में सब कुछ अलग होना िरू ु हो गया।
अब हाल ये हो गया सक बदं ा अल्लाह और इस के रसल ू के सख़लाफ
सनु कर उतना जज़बाती नहीं होता सजतना अपनी तंज़ीम के सख़लाफ सनु कर
हो जाता है। ये बातें हो सकता है कई लोगों को बरु ी लगे लेसकन कभी इस
पर ग़ौर ज़रूर करें । तन्ज़ीमों का काम ये नहीं था सक वो अहले सन्ु नत के
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
अंदर सगरोह बना कर बटवारा करे लेसकन ऐसा हुआ और इतना तक हुआ
सक कपड़े अलग हुए, बोल-चाल का तरीक़ा अलग हुआ, काम करने का
तरीक़ा अलग हुआ, िहरों को ख़ासकर के पहचान बनाई जाने लगी और
सबसे बड़ी बात सक लोगों की अक़ीदत को ग़लत रास्ता सदखा कर उनके
साथ सखलवाड़ सकया गया। दौर-ए-हासज़र के एक बहुत बड़े महु सक़्क़क़
आसलमे दीन से ये जमु ला सनु ा सक "ये तज़ं ीमें बनाना चौधवीं सदी की
सबद्दत है सफर आगे इन्होंने बताया सक बज़ु गु ़ों ने इस तरह काम नहीं सकया,
वो अहले सन्ु नत के सलए काम करते थे और सफर ये भी सक अगरचे ये बरु ी
सबद्दत नहीं सक मतु सल्लक़न उसे मज़ममू क़रार सदया जाये लेसकन जो बातें
तन्ज़ीमों में, उनके सनज़ाम में आ गई हैं वो ज़रूर मज़म्मत के कासबल हैं।

सलाशसल और तंज़ीम
सलाससल हों, तंज़ीमें हों, या दसू रे मसाइल हों सक सजनकी वजह से
अहले सन्ु नत में बंटवारे जैसी सरू त बन रही है तो सब मसाइल एक ही मौज़ू
के तहत आते हैं और हम इसी मौज़ू पर कलाम कर रहे हैं। इन सब का
आपस में गहरा ताल्लक़ ु है। सलाससल यानी तरीक़त और एक सन्ु नी ने
सजसको पीर बनाया तो उस की अपनी एक तज़ं ीम भी है सजससे जड़ु ना इस
पर गोया फज़़ है तो यहां वाज़ेह ताल्लक़ ु है सफर अगर तज़ं ीम नहीं भी है तो
ससलससला है ही सगरोहबंदी कर के बटवारा करने के सलए।

एक अहम वज़ाहत
ख़्याल रहे सक ये बातें उममू ी तौर पर की जा रही हैं और सकसी एक दो
को टागेट नहीं सकया गया है सलहाज़ा अपने मन से इसे इधर उधर चस्पााँ ना
करते हुए इन्साफ से काम सलया जाये और जो वाक़ई ऐसा है जैसा सक
बयान सकया गया है तो सफर इस उममू का इतलाक़ वहां भी होगा।
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
हालाते पीर साशहबान
पीर सासहबान के हालात का क्या कहना, उनकी तो बात ही सनराली है।
सलाससल के नाम पर जो तक़सीम हुई है इस में उनके सकरदार की भला
कै से नफी की जा सकती है, ये तो मक़ ज़ी सकरदार अदा कर रहे हैं। उन्हें
अवाम की असल हालत की ख़बर नहीं या जान कर अजं ान बनते हैं पता
नहीं। अवाम को सकस चीज़ की ज़रूरत है, उनके दरमयान सकन मौज़आ ू त
पर बात करनी है ये सब बातें एक तरफ, उन्हें बस नारे लगाने हैं और फुरूई
इख़सतलाफी मसाइल पर लोगों को भड़काना है। अगर सकसी से उनका
इख़सतलाफ है तो इस अंदाज़ से इस का रद्द करते हैं सक मानो वो इस्लाम
से ही ख़ाररज हो गया। हमारे इलाक़े में ही ऐसा हुआ सक अवाम पहले
अच्छी ख़ासी सज़दं गी बसर कर रही थी लेसकन एक दो बार सालाना जलसों
में ऐसे ही पीर सासहबान को दावत दे दी गई और इन्होंने आकर ऐसा बयान
सदया सक इसिहाद चरू चरू हो गया। आपसी इख़सतलाफात सन्ु नीयों के
दरमयान इतने बढ गए सक एक दसू रे को अपनी मसस्जदों से भगाने तक
लगे, ये तक़सीम आसख़र क्यों हुई? साफ मालमू हो रहा है सक इस में पीर
सासहबान का हाथ है वना़ अवाम अहले सन्ु नत तो मिु सहद है।

पीर साशहबान के जज़बाती बयानात


ये पीर हज़रात जलसों में जाते हैं और इनकी आमद का एक मतलब ये
भी होता है सक सजस जलसे में तीन चार लाख का ख़च़ होना होता है तो
उनकी तिरीफ आवरी के नाम पर वो ख़च़ और बढ जाता है, इस के बाद
जब ये जलसे के स्टेज पर जल्वा-अफरोज़ होते हैं तो बयान के नाम पर
नफरतें फै लाने का काम करते हैं। भोली-भाली अवाम ने लाखों रुपय क्या
ससफ़ इसी सलए ख़च़ सकए थे सक आप सन्ु नीयों का ही रद्द करें ? और वो भी
इस अंदाज़ में सक लोग तजीहात को मक ु म्मल तक़ कर के उन्ही चीज़ों में
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
लग जाएं? इन पीर सासहबान को इन बातों की सबलकुल सफक्र नहीं है, उन्हें
बस अपने जज़बात से मतलब है। जो उन्हें अच्छा लगता है वो ये करते हैं,
अवाम के सलए अच्छा क्या है वो उन्हें सोचने की फुस़त नहीं। जब तक
पीर सासहबान ऐसे बयानात करें गे, मसु म्कन ही नहीं सक अहले सन्ु नत में
इसिहाद हो जाये। अवाम के नज़दीक पीर सासहबान का वो मत़बा है सक
जो बात इन्होंने इरिाद फमा़ दी गोया वो पत्थर की लकीर है और इस के
मक़ु ाबले में दसु नया-भर के उलमा भी आ जाएं तो उन्हें फक़़ नहीं पड़ता।
अब सोचें सक जब अवाम अहले सन्ु नत के सदलों में पीर सासहबान के कहने
पर सकया-क्या हो सकता है। एक पीर सासहब ने अगर एक जलसे में सकसी
सन्ु नी तंज़ीम का रद्द कर सदया तो अवाम अहले सन्ु नत सकसी आसलम की
बात नहीं सनु ती, कोई आसलम उन्हें बताने की कोसिि करे तो वो फौरन
कहते हैं सक क्या तमु पीर सासहब से ज़्यादा जानते हो? इन सारी बातों का
मक़सद ससफ़ ये बताना है सक उनके कुछ बोलने से बहुत फक़़ पड़ता है
और इतना फक़़ पड़ता है सक जो आग ये लगा देते हैं उसे बुझाना एक असे
तक के सलए मसु ककल हो जाता है। अब सफर हम अपने सवाल को दोहराएाँ
सक सलाससल में बंटे हुए सनु ी कब एक होंगे तो जवाब ये भी होगा सक जब
तक इस तरह बयानबाज़ी होगी और ये करने वाले ख़दु पीर सासहबान होंगे
तो एक होना बहुत मसु ककल है।

अकाशबरीन ने दीन का काम कै से शकया


अकासबरीने अहले सन्ु नत ने अस्लन कोई तंज़ीम नहीं बनाई और कुछ
तन्ज़ीमों की बसु नयाद रखी भी तो मरु व्वजा तन्ज़ीमों से वो सबलकुल अलग
थी, वहां ऐसी तक़सीम या सगरोहबंदी वाला मआ ु मला नहीं था। यही वजह
है सक इन्होंने दीन का काम ज़बरदस्त अंदाज़ में सकया और उन में
इसन्फरासदयत थी। ऐसी इसन्फरासदयत सक जो जामेअ् थी। आजकल जो
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
इजसतमाईयत है इस में वो इसन्फरासदयत है सक सफ-ए-अहले सन्ु नत में हर
एक को मनु फरद करती जा रही है

शफर उसी की ज़रूरत है


आज भी ज़रूरत है सक अकासबरीन का तरीक़ा अपनाया जाये। अगर
हम इस के मतु ासबक़ काम करें गे तो इख़सतलाफात की गजंु ाइि बहुत कम
रहेगी और जो इख़सतलाफात होंगे वो भी तरीक़े से होंगे। वो नफरतों का
सबब नहीं बनेंगे। अगर बन भी जाते हैं तो ज़्यादा देर तक नहीं सटकने वाले।
इस को मज़ीद वाज़ेह करने के सलए मैं "टीम अब्दे मस्ु तफा ऑसफसियल"
की समसाल पेि करना चाहता ह।ाँ अगर आप ये नाम पहली बार सनु रहे हैं
तो अज़़ कर दंू सक ये रासक़म उल-हरूफ की तज़ं ीम है जो असलन तंज़ीम
है ही नहीं। जी हााँ, ये मजाज़ी तौर पर एक तंज़ीम है लेसकन असल में ये
बस एक काम करने वालों की टीम है। हम यहां इस की समसाल समझाने
के सलए पेि कर रहे हैं, इस की तारीफ के सलए नहीं। सबला-िबु ा ऐसी और
भी तंज़ीमें हैं सजन्हें बस तंज़ीम िनाख़ती तौर पर कहा जा सकता है। अब
हमारा तरीक़ा क्या है वो देखें और फक़़ को महससू करें । सबसे पहले तो
हम अपनी तज़ं ीम में लोगों को िासमल करने और सनकालने का काम नहीं
करते यानी यहां ऐसे उसल ू ों की लबं ी चौड़ी फहररस्त नहीं है सक हमारी
तंज़ीम में आने के सलए ये, ये और ये करना होगा और अगर ये, ये और ये
सकया तो हम आपको तज़ं ीम से सनकाल देंगे, ऐसा करने वाले आग़ाज़ में
ही काम िरू ु करने से पहले सगरोहबंदी िरू ु कर देते हैं। हमारे पास
मआु मला कुछ ऐसा है सक आने वाले के सलए सबस्तर हासज़र और जानेवाले
के सलए रास्ता...
तन्ज़ीमों का मआ ु मला कुछ ऐसा होता है सक वहां काम करने का
मतलब है सक आपको उन्ही के साथ काम करना होगा, आप सकसी दसू री
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
तंज़ीम के सलए काम नहीं कर सकते और अगर सकया तो फौरी तौर पर
आपको तंज़ीम से सनकाल सदया जाएगा। अब हम सकस तरह काम करते हैं
वो मल ु ासहज़ा फरमाएं, हमारे पास कोई भी सन्ु नी आकर काम कर सकता
है, सजतना और जब चाहे कर सकता है। इस बात से आप अंदाज़ा लगाऐ ं
सक हमारी टीम में सजतने लोग काम करने वाले हैं सब सकसी ना सकसी
तज़ं ीम के मेंबर हैं और तो और कई ऐसे भी हैं सक जो ख़दु तज़ं ीम, मदाररस
और इदारे वग़ैरा चलाते हैं लेसकन इस के बावजदू ये हमारी टीम के मेंबर
हैं, यही तो अहले सन्ु नत का वो हुस्न है सजसकी हम बात कर रहे हैं। हम
कभी सकसी को पाबंद नहीं करते और ना सकसी की सलाहीयतों को अपनी
मज़ी और उसल ू ों तले दबाते हैं। फक़़ को अगर और तफसील से बयान
करूाँ तो बहुत सारी बातें हैं। एक फक़़ ये है सक मरु व्वजा तन्ज़ीमों में कोसिि
ये की जाती है सक ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपनी तज़ं ीम में िासमल
सकया जाये लेसकन हमारा तरीक़ा ये है सक जो लोग जहां काम कर रहे हैं,
वो वहीं काम करें बसल्क हमारी भी मदद ले लें अपने काम को आगे बढाने
के सलए लेसकन हमारी तंज़ीम में ना आएं। मेरे घर कुछ तन्ज़ीमों के
मबु ल्लग़ीन आए, सोिल मीडीया पर भी कई लोगों से राब्ता हुआ सजन्होंने
कहा सक आप हमें अपनी तज़ं ीम में रख लें, हमारा जवाब ये होता है सक
आप काम करें , जहां कर रहे हैं वहां करें , हमारी टीम का हर सन्ु नी एक
रूक्न है, आप भी इस टीम में िासमल हैं, आप हमारे कामों में सजस तरह
चाहें मदद कर सकते हैं, यहां भी दीन का काम होगा और आप कहीं और
करें गे तो भी दीन का काम होगा, हमारा असल मक़सद तो बस यही है। हम
ऐसा क्यों करें सक आपको अपनी तंज़ीम के साथ ख़ासकर के आपकी
असल उड़ान के आड़े आ जाएं? ये तो मनु ाससब नहीं है सक सकसी को हम
अपने साथ काम करने के नाम पर ही सबठा कर रखें और इस का सजतना
काम हो वो हमारे साथ ही हो वना़ ना हो। ये बहुत ग़ौर करने वाली बातें हैं
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
जो हम बयान कर रहे हैं। अहले सन्ु नत में इसिहाद की कंु जी इन बातों में है
अगर तन्ज़ीमों ने फक़त अपनी अपनी छोड़कर ऐसा तरीक़ा इख़सतयार
कर सलया तो सब एक ही जगह दीन का काम करते नज़र आएाँगे
अल्लाह त'आला हमें सहदायत पर क़ायम रखे और हम सब का ख़ातमा
इसी पर फरमाए।

अलदे मस्ु तफा


मह़ु म्मद सासबर क़ादरी

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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?

हमारी शकताबें शहदं ी में


(1) बहारे तह़रीर - अ़ब्दे मस्ु तफा ऑसफसियल (अब तक चौदह सहस्से)
(2) अल्लाह त'आला को ऊपरवाला या अल्लाह समयााँ कहना कै सा?
- अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(3) अज़ाने सबलाल और सरू ज का सनकलना - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(4) इकके ै़ मजाजी (म ै़ ंतु ख़ब मज़ामीन का मजमआु ) - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(5) गाना बजाना बंद करो, तुम मसु लमान हो! - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(6) िबे मेराज गौसे पाक - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(7) िबे मेराज नालैन अि़ पर - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(8) हज़रते उवैस क़रनी का एक वासक़या - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(9) डॉक्टर तासहर और वक़ारे समल्लत - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(10) ग़ैरे सहाबा में रसदअल्लाहु त'आला अन्हु का इसस्तमाल - अ़ब्दे मस्ु तफा ऑसफसियल
इस ररसाले में कई दलाइल से सासबत सकया गया है सक सहाबा के अलावा भी तरद्दी (यानी
रसदअल्लाहु त'आला अन्हु) का इसस्तमाल सकया जा सकता है।
(11) चंद वासक़याते कब़ला का तहक़ीक़ी जाइज़ा - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(12) सबन्ते ह़व्वा (एक संजीदा तहरीर) - कनीज़े अख़्तर
(13) सेक्स नॉलेज (इस्लाम में सोहबत के आदाब) - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(14) हज़रते अय्यूब अलैसहस्सलाम के वासक़ए पर तहकीक़ै़
- अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(15) औरत का जनाजा -ै़ जनाबे ग़ज़ल सासहबा
(16) एक आसिक़ की कहानी अल्लामा इब्ने जौज़ी की जबु ानी
- अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(17) आईये नमाज़ सीखें (पाट़ 1)
- अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(18) सक़यामत के सदन लोगों को सकस के नाम के साथ पक ु ारा जाएगा?
- अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(19) सिक़ क्या है? - अल्लामा मह़ु म्मद अहमद समस्बाही
(20) इस्लामी तअ़लीम (सहस़्सा अव्वल)
- अल्लामा मफ़्ु ती जलालुद्दीन अहमद अ़मजदी रहमतुल्लाह अलैह
ये सकताब इस्लाम की बसु नयादी मालमू ात पर मकु तसमल है, बच्चों को पढाने के सलये ये एक
अच्छी सकताब है।
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सलाससल में बंटे हुए सन्ु नी कब एक होंगे?
(21) महु ऱ म में सनकाह - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(22) ररवायतों की तहकीक़ै़ (पहला सहस्सा) - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(23) ररवायतों की तहकीक़ै़ (दसू रा सहस्सा) - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(24) ब्रेक अप के बाद क्या करें ? - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(25) एक सनकाह ऐसा भी - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(26) कासफर से सदू - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(27) मैं खान तू अंसारी - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(28) ररवायतों की तहकीक़ै़ (तीसरा सहस्सा) - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(29) जमु ा़ना - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(44) ला इलाहा इल्लल्लाह, सचकती रसल ू ुल्लाह? - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(31) हैज़, सनफास और इसस्तहाज़ा का बयान बहारे िरीअत से
- अल्लामा मफ़्ु ती अमजद अली आज़मी
(32) रमज़ान और क़ज़ा -ए- उमरी की नमाज़ - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(33) 40 अहादीसे िफाअत - आला हज़रत, इमाम अहमद रज़ा खान बरे लवी
(34) बीमारी का उड़ कर लगना - आला हज़रत, इमाम अहमद रज़ा खान बरे लवी
(35) ज़न और यक़ीन - आला हज़रत, इमाम अहमद रज़ा बरे लवी
(36) ज़मीन सासकन है - आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरे लवी
(37) अबू तासलब पर तहक़ीक़ - आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान बरे लवी
(38) क़ुरबानी का बयान बहारे िरीअत से - अल्लामा मफ़्ु ती अमजद अली आज़मी
(39) इस्लामी तालीम (पाट़ 2) - अल्लामा मफ़्ु ती जलालद्दु ीन अहमद अमजदी
(40) सफीना -ए- बसख़्िि - ताजकु िररया, अल्लामा मफ़्ु ती अख़्तर रज़ा खान
(41) मैं नहीं जानता - मौलाना हसन नूरी गोंडवी
(42) जंगे बद्र के हालात इसख़्तसार के साथ
- मौलाना अबू मसरूर असलम रज़ा समस्बाही कसटहारी
(43) तह़कीक़ेै़ इमामत - आला हज़रत, इमाम अहमद रज़ा खान बरे लवी
(44) सफरनामा सबलादे ख़मसा - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(45) मंसरू हल्लाज - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(46) फज़ी क़ब्रें - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(47) इमाम अबू यूसफ ु का सदफा - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हज़रत रहीमहुल्लाहु त'आला
(48) इमाम क़ुरै िी होगा - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हज़रत रहीमहुल्लाहु त'आला
(49) सहन्दस्ु तान दारुल ह़रब या दरुल इस्लाम? - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
(50) वबा से फरार - इमामे अहले सन्ु नत, आ़ला हज़रत रहीमहुल्लाहु त'आला
(51) रज़ा या ररज़ा - अ़ब्दे मस्ु तफा मह़ु म्मद सासबर क़ादरी
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