Japa Talk 108 (H)

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श्रीभक्तिचन्द्रिका के सप्तम पटल में

कहा गया है कि-

अथ मन्त्रवरं वक्ष्ये द्वात्रिं शदक्षरान्वितम्।


सर्वपापप्रशमनं सर्वदुर्वासनाऽनलम्॥

चतुर्वर्गप्रद सौम्यं भक्तिदम् प्रेमपूर्वकम्।


दुर्बुद्धिहरणं शुद्धसत्त्वबुद्धिप्रदायकम्॥

सर्वाराध्यं सर्वसेव्यं सर्वेषां कामपूरकम्।


सर्वाधिकारसयुक्तं सर्वलोकै कबान्धवम्॥

सर्वाकर्षणसयुक्तं दुष्टव्याधिविनाशनम्।
दीक्षाविधिविहीनं च कालाकालविवर्जितम्॥

वाङ्मात्रेण सर्वेषां फलदायकम्।


देशकाल च नियमितं
सर्ववादिसु सम्मतम्॥८॥

यह 'महामन्त्र' बत्तीस अक्षरों


से युक्त है, समस्त पापों का
नाशक है, सभी प्रकार की
दुर्वासनाओं को जलाने के
लिए अग्निस्वरूप है, धर्म-
अर्थ, काम-मोक्ष को देने
वाला है, दुर्बुद्धि को हरने
वाला है, एवं शुद्धसत्त्वस्वरूप
भगवद्वृ त्तिवाली बुद्धि को
देनेवाला है।

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