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शब्दार्थ

यत्-जिसका कीतथनम्-
महिमागान; वत्-जिसका;
स्मरणम्-स्मरण; बत्-
जिसका क्षिणम्-दशथन; यत्-
जिसका; बन्दनम्-प्रार्थना;
बत्-जिसका; अवणम्-
श्रवण; बत्-जिसका;
अिणम्-पूिा; लोकस्य-
लोगों का; सरा:-तुरन्त
े रूप स े
हवधुनोहत-हवशष
स्वच्छ करता िै: कल्मषम्-
पापों के प्रभावों को; तस्मै-
सको सुभत्र-मंगलमय
े वण हकया गया;
अवसश्र
नमः-नमस्कार: नमः-पुनः
पुनः।
मैं उन सवथमंगलमय भगवान्
श्रीकृष्ण को सादर नमस्कार
करता हूँ जिनके यशोगान,
स्मरण, दशथन, बन्दन, श्रवण
तर्ा पूिन स े पाप करनव
े ाल े
के सारे पाप-फल तुरन्त धुल
िात े िैं।
तात्पयथ :

यिाूँ पर सवोच्च अहधकारी श्री


े गोस्वामी द्वारा समस्त
शुकदव
पापों के फलों (कल्मषों)

स े मुक्त िोन े के जलए भव्य


धार्ममक कृत्यों का सुझाव
रखा हदया िै। कीतथन अर्ाथत्
यशोगान कई प्रकार स े सम्पन्न
हकया िा सकता िै-यर्ा
े दशथन के
स्मरण करन,े दव
जलए मक्षन्दरों म ें िान,े भगवान्
के समि प्रार्थना करन े तर्ा
श्रीमदभागवत या भगवद्गीता
म ें वर्णणत हवहध स े भगवान् की
महिमा का पाठ सुनन े

े मुधर संगीत के सार्


स।
भगवान् के यश का गायन
करके तर्ा श्रीमद्भागवत या
भगवद्गीता िैस े

शास्त्रों का पाठ करके कीतथन


सम्पन्न हकया िा सकता िै।

भक्तों को चाहिए हक व े

भगवान् की सदि
अनुपक्षस्र्हत स े हनराश न िों,
भल े िी व े अपन े को उनकी
संगहत म ें न पा रि े िों। कीतथन,
श्रवण, स्मरण आहद (या तो
सभी या इनम ें स े कुछ या
केवल एक) की भहक्त-हवहध
िम ें उपयुक्त प्रकार स े भगवान्
े ा-भहक्त सम्पन्न
की हदव्य प्रम
करके उनके साहनध्य का
वांहछत फल प्रदान कर
सकती िै। यिाूँ तक हक कृष्ण
या राम के नाम के उच्चारण
मात्र स े वायुमण्डल
आध्याक्षत्मक िो उठता िै।
िम ें भलीभाूँहत िान लन
े ा
चाहिए हक ििाूँ भी ऐसी
े ा की िाती िै,
शुद्ध हदव्य सव
विाूँ भगवान् हवद्यमान रित े
िैं। इस प्रकार हनरपराध
कीतथनम् सम्पन्न करनव
े ाल े को
भगवान् का सकारात्मक
साहन्नध्य प्राप्त िोता िै। इसी
प्रकार कुशल मागथदशथन के
अन्तगथत सम्पा स्मरण तर्ा
वन्दन स े भी वांहछत फल प्राप्त
िो सकता िै। मनुष्य को
चाहिए हक भहक्त के स्वरूपों
े वि
को मनमाना निीं गढ।
हकसी मक्षन्दर म ें िाकर
भगवान के स्वरूप की पूिा
कर सकता िै या हकसी
मक्षस्िद या हगरिाघर म ें

भगवान् की हनर्मवशष
भहक्तमयी प्रार्थना कर सकता
िै। मनुष्य हनश्चय िी पाप
फलों स े छू ट सकता िै बशत े
हक वि मक्षन्दर, मक्षस्िद या
हगरिाघर म ें पूिा करके पापों
के फलों स े मुक्त िोन े की
आशा स े िानबूझकर पाप न
करन े के बारे म ें सावधान रि।

े ा के बल पर
भहक्तमय सव
िानबूझकर पाप करन े की
यि मनोवृहि नाम्नो बलाद ्
यस्य हि पापबुहद्धः किलाती
िै और भहक्त के मागथ म ें यि
सबस े बडा अपराध िै।
अतएव ऐस े पापगतों स े
सावधान रिन े के जलए श्रवण
अत्यन्त आवश्यक िै। इस
े बल
श्रवण हवहध पर हवशष
े े के उद्देश्य स े िी शुकदव
दन े
गोस्वामी समस्त कल्याण का
आह्वान करत े िैं।

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