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1 © Prateek Shivalik

पयया वरण अध्ययन

कक्षय 3
पयठ 2: पोधों की परी  जो लोग बोल और सनु नही सकते, उन्हें ववशेष

ik
आवश्यकतय वयले लोग कहते हैं।
 मशहूर कलयकयर ववषणु विन्ियल्कर (इन्दोर, मध्य
प्रदेश) सूखे पत्तों से बवढयय वित्र बनयते थे। पयठ 8: पाँख फै लयएाँ, उडते जयएाँ

al
 मोर एक रयवरिय पक्षी है।
पयठ 6: खयनय अपनय अपनय
 िील िूहे खयती है। उसकी पूछ ाँ लम्बी और खयाँिे
 रोविययाँ बनयने की वववध
वयली होती है।

iv
 एक बता न मे आिय लें
 तोते के पाँख हरे रिंग के और िोंि लयल रिंग की
 वफ़र आिे को गूधाँ लें
होती है। यह अमरुद और वमिा खयतय है और
 अब आिे की छोिी-छोिी गोल लोई बनयएाँ
 इसे बेलें और आग पर पकय दें।
Sh लोगों की आवयज की नकल कर सकतय है।
 कौआ कयले पाँखों वयलय होतय है और कयाँव कयाँव
 हयाँगकयाँग मे लोग "वलिंग हू ाँ फ़े न" खयते हैं। यह सयाँप करतय है।
से बनय होतय है।  कोयल के कयले पाँख होते हैं और यह कूहू कूहू की
 कश्मीर मे लोग सरसों के तेल मे पकी हुई तयलयब आवयज लगयती है। यह अपनी मीठी आवयज के
की मवललययाँ खयते हैं। वलये प्रवसद्द है।
 गोवय मे लोग नयररयल के तेल मे पकी हुई
k
 वगद्द मरे हुए जयनवर खयतय है।
मवललययाँ खयते हैं।  कबूतर की िोंि गल ु यबी होती है। इसके पिंख
ee

 के रल मे लोग उबले हुए िैवपओकय को नयररयल से सलेिी होते हैं और यह गिु र-गूाँ की आवयज
बनी हुई वकसी भी करी के सयथ खयते हैं। वनकयलतय है।
 अहमदयबयद (गज ु रयत) में लोग ढोकलय, ििनी,  दवजा न विवड़यय अपनी िोंि कय सईु की तरह
नींबू वयले ियवल और वमठयई खयनय पसिंद करयते इस्तेमयल करके पवत्तयों को बनु कर घोंसलय
हैं बनयती है।
at

 वलसयड़ स्िेशन (गज ु रयत) पर लोग बियिय-बड़य,  कठ् फोड़वय पेड़ के तने में छे द बनयतय है और वहयाँ
पूरी-सयग, ठिंडय द्दूध, फल व ियय बेिते हुए वमल वछपे हुए कीड़े खयतय है।
जयएाँगे  मैनय झि् के से अपनी गदा न को आगे-पीछे कर
Pr

सकती है
पयठ 7: वबन बोले बयत
 उल्लू अपनी गदा न पीछे तक घमु य सकतय है।
 मूक नयि् क एक ऐसय खेल है वजसमें वबनय बोले
सभी को अपनी बयत दूसरो तक पहुिाँ यनी होती है।  पवक्षयों के पिंख अलग-अलग रिंग, आकयर व
वडजयईन के होते हैं। उनके पिंख उड़ने में उनकी
 जो लोग सनु नही सकते, वो होठों को पढ् कर मदद करते हैं और उन्हें गमा भी रखते हैं। समय-
दूसरों की बयत समझते हैं।

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समय पर पवक्षयों के परु यने पिंख झड़ जयते हैं और और वदमयग लगयने के बयद, लोग बता न बनयनय
नये पिंख आ जयते हैं। सीख गए।
 पक्षी अपनी गदा न बहुत अवधक वहलयते हैं क्योंवक  शरुु आत में, बता न पत्थर और वमट्टी से बनयये जयते
उनकी आाँखों की पतु ली घूम नहीं सकती थे। लोग पत्थर के बता न हयथों से पत्थरों को
खोदक ् र यय कुरेद कर और वमट्टी के बता न वमट्टी
को गूधाँ कर और अपने हयथों से आकयर देकर
बनयते थे।

ik
पयठ 13: छूकर देखें  लोगों ने यह भी खोज वलयय वक वमट्टी के बता नों को
 जो लोग देख नहीं सकते उनके पढ़्ने और वलखने मजबूत बनयने के वलये उन्हें आग में पकयनय
कय एक खयस तरीकय होतय है, वजसे ब्रेल कहते हैं। ियवहए।

al
 ब्रेल एक मोिे कयगज पर एक नक ु ीले औजयर से
वबिंदु बनय कर वलखय जयतय है। ब्रेल को वबिंदओ
ु िं पर पयठ 16: खेल-खेल में
हयथ फै रते हुए पढ़य जयतय है।  "स्ियपू" एक स्थयनीय खेल है वजसे हयाँप-स्कयाँि भी

iv
 ब्रेल लीवप "लुई ब्रेल" द्वयरय खोजी गयी है। वह कहय जयतय है, इसे "वठप्पी" से खेलय जयतय है।
फ़्याँस कय रहने वयलय थय। जब वह तीन सयल कय
थय, तब एक वदन अपने वपतय के औजयरों से खेल पयठ 18: ऐसे भी होते हैं घर
रहय थय। अियनक एक नक
Sh
ु ीले औजयर से उसकी
आाँखों में िोि लग गई और आाँखें खरयब हो गई
 मोलन, गयाँव असम में है। यहयाँ बहुत वषया होती है ।
इसवलए यहयाँ घर जमीन से लगभग दस से बयरह
उसे आाँखों से वदखनय वबल्कुल बन्द हो गयय फ़ुि ऊाँिे बने होते हैं। ये मजबूत बयाँस के खम्भों
 लुई ब्रेल की पड़ने में बहुत रुवि थी। उसने हयर पर बने होते हैं। ये घर अन्दर से भी लकड़ी के ही
नहीं मयनी वह पढ़्ने के वलये तरह-तरह की बने होते हैं।
तरकीबें सोितय रहतय थय। आवखर उसने एक  मनयली एक पहयड़ी ईलयकय है। यहयाँ बहुत वषया
k
तरीकय ढूाँढ ही वलयय "छूकर और महसूस करके होती है और बफ़ा भी पड़ती है। यहयाँ मकयन पत्थर
पढ़ने कय" । यह बयद में ब्रेल वलपी के नयम से जयनी यय लकड़ी से बनते हैं।
ee

जयने लगी।  नई वदल्ली भयरत की रयजधयनी है। कयम की खोज


 ब्रेल वलपी में, मोिे कयगज पर उभरे हुए वबिंदु बने में, लोग गयाँव व शहरों से वदल्ली जैसे बड़े शहर में
होते हैं। उभरे होने के कयरण इन्हें छूकर पढ़य जय आते हैं, ये लोग अक्सर शहर में ही बस जयते हैं।
सकतय है। यहयाँ रहने वयले लोग ज्ययदय हैं और जगह कम।
 ब्रेल वलपी 6 वबिंदओ ु िं पर आधयररत होती है। बहुत से लोगों के पयस मकयन ही नहीं होते उन्हें
at

आजकल इसमें नये-नये पररवता न हुए हैं, वजससे झग्ु गी-झोपवड़यों में रहनय पड़तय है और कई लोगों
इसे पढ़नय-वलखनय और भी आसयन हो गयय है। के पयस वह भी नहीं है। लोग जहयाँ जगह वमले वहीं
यह अब किं प्यूिर द्वयरय भी वलखी जय सकती है। सो जयते हैं सड़क पर, फ़ुि् पयथ पर, स्िेशन पर।
Pr

वयस्तव में, शहरों में घर वमलनय बहुत बड़ी


पयठ 15: आओ बनयएाँ बता न समस्यय है।
 बहुत, बहुत सयल पहले एक ऐसय समय थय, जब  रयजस्थयन में, बयररश कम होती है और यहयाँ गमी
लोगों के पयस बता न नहीं थे। लोगों को खयने-पीने बहुत पड़्ती है। लोग यहयाँ वमट्टी के घरों में रहते हैं
की िीजों को पकयने और सयमयन रखने के वलये घरों की दीवयरें बहुत मोिी होती हैं। इन दीवयरों को
बता न की जरुरत पड़्ने लगी। बहुत कोवशश करने वमट्टी से लीप-पोतकर सन्ु दर बनययय जयतय है। लतें
काँ िीली झयवड़यों की बनी होती है।

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 कश्मीर में ियय को कहवय भी कहय जयतय है। इसे  इस गयाँव के सभी लोग बयररश कय पयनी इकट्ठय
इलययिी और बयदयम डयलकर बनययय जयतय है। करते हैं। यह खयस तरह से वकयय जयतय है िैंक
 ड् ल झील कश्मीर की प्रवसद्द झील है। लोग घर (ियाँकय) बनय कर।
नयव (हयऊस बोि) में रहते हैं। वशकयरय एक खुली  ियाँकय बनयने के वलये, आाँगन में गडढय बनयकर उसे
नयव है जो िप्पू से िलयई जयती है। पककय वकयय जयतय है। ियाँके को ढक्कन से बन्द
 "ियर विनयरी" झील कश्मीर में नीले पहयड़ों से रखते हैं। ियाँके के वलये घर की छत को कुछ
वघरी होती है। ढलवयाँ बनय देते हैं, वजससे छत पर वगरय बयररश

ik
कय पयनी नीिे ियाँके में इकट्ठय हो सके । छत की
पयठ 20: बूदाँ -बूदाँ से नयली पर जयली लगय देते हैं वजससे कूड़य-किरय
 "बज्जू" रयजस्थयन कय एक छोिय सय गयाँव है। यहयाँ ियाँके में न जय सके ! यह पयनी सयफ़ करके पीने के

al
हर तरफ़ रेत ही रेत वदखयई देती है। जब कभी रेत कयम में लगययय जयतय है।
नहीं उड़ती, तब कुछ घर वदख जयते हैं।  पयनी की कमी भयवनगर(गज ु रयत) में भी है।

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Sh
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कक्षय 4
पयठ 1: िलो, िलें स्कूल  ऐसे जयनवर वजनके कयन तुम देख सकते हो,
 असम में बहुत अवधक वषया होती है। लोग एक उनकी खयल पर बयल होते हैं और वे बच्िे देते हैं।
जगह से दूसरी जगह तक जयने के वलये बयाँस और  वजन जयनवरों के कयन बयहर वदखयई नहीं देते,
रस्सी से बने पल ु क उपयोग करते हैं। उनके शरीर पर बयल नहीं होते हैं और वे अिंडे देते
 लद्दयख में लोग एक जगह से दूसरी जगह तक

ik
हैं।
जयने के वलये रस्सी से बाँधी लकड़ी की ियली कय
उपयोग करते हैं। पयठ 3: नन्दू हयथी

al
 के रल के कुछ भयगों में लोग एक जगह से दूसरी  एक बड़य हयथी एक वदन में १०० वकलोग्रयम से
जगह तक जयने के वलये वल्लम(लकड़ी की बनी ज्ययदय पत्ते और झयवड़ययाँ खय सकतय है।
छोिी नयव) कय उपयोग करते हैं।  हयथी ज्ययदय आरयम नहीं करते। ये एक वदन में
 रयजस्थयन में बच्िे ऊाँि-गयड़ी क प्रयोग करके

iv
के वल दो से ियर घन्िे ही सोते हैं।
स्कूल जयते हैं।  हयथी को पयनी और कीिड़ से खेलनय बहुत पसिंद
 बैलगयड़ी कय प्रयोग मैदयनी इलयकों में वकयय जयतय है। इससे उसके शरीर को ठिंडक वमलती है, उसके
है।
Sh कयन भी पिंखे की तरह कयम करते हैं। गरमी लगने
 जगु यड़- इसे दूसरी गयवड़यों के पज ु ों को एक-सयथ पर हयथी अपने कयन वहलयकर हवय करतय है।
जोड़कर बनययय जयतय है। इसकय आगे कय वहस्सय  जयनवर झिंडु में वमल-जल ु कर खयने की तलयश में
मोिर-बयईक की तरह वदखयई देतय है पर पीछे से घमु ते हैं।
यह लकड़ी के फ़ट्टों से बनय होतय है।  हयवथयों कय झिंडु :
 बफ़ा पर िलनय मवु श्कल होतय है। अगर बफ़ा तयजी  हयवथयों के झिंडु में के वल हवथवनययाँ और बच्िे
k
है तो बफ़ा में पैर धाँस जयते हैं। जब बफ़ा जमी होती रहते हैं।
है तब लोग वफ़सल कर वगर भी सकते हैं।  झिंडु की सबसे बज ु गु ा हवथनी ही पूरे झिंडु की
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नेतय होती है।


पयठ 2: कयन-कयन में  एक झिंडु में 10 से 12 हवथवनययाँ और बच्िे
 कयन हमयरी सनु ने में मदद करते हैं। कुछ जयनवरों होते हैं।
में तमु कयन देख सकते हो और कुछ में नहीं। हम  हयथी 14-15 सयल तक ही झिंडु में रहते हैं,
पक्षी के कयनों को नहीं देख सकते। एक पक्षी के
at

वफ़र वे झिंडु छोड़ देते हैं और अके ले रहते हैं।


वसर के दोनों तरफ़ छोिे-छोिे छे द होते हैं।
 तीन महीने के हयथी के बच्िों कय वजन
अवधकयिंशतः ये पिंखों से ढाँके रहते हैं। यह सनु ने में
लगभग 200 वकलोग्रयम होतय है
पक्षी की मदद करते हैं।
Pr

 अगर तुम ध्ययन से देखोगे, तो वछपकली के भी पयठ 4: अमतृ य की कहयनी


छोिे छे द जैसे कयन वदखयई देंगे। मगरमच्छ के भी
 खेजड़ी के पेड़ रेवगस्तयनी इलयके में पयए जयते हैं।
छोिे छे द जैसे कयन होते हैं, लेवकन ह उसे
यह पयनी की अवधक मयत्रय नय होने पर भी उग
आसयनी से नहीं देख सकते।
सकते हैं। खेजड़ी के पेड़ की छयल दवय बनयने के
 जयनवरों की खयल पर अलग-अलग वडजयइन कयम भी आती है। लोग इस पेड़ की फ़वलययाँ
उनके शरीर पर बयल होने के कयरण होते हैं। पकयकर इन्हें खयते हैं, इसकी लकड़ी को कीड़य

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भी नही लगतय। यहयाँ रहने वयले जयनवर इस पेड़ शहद इकट्ठय हो। शहद के वबनय छत्ते की सयरी
की पवत्तययाँ खयते हैं। मधमु वक्खययाँ भूखी ही रह जयती हैं। नर-मक्खी
 पौधे और जयनवर हमयरे वबनय रह सकते हैं पर हम छत्ते के वलये कुछ खयस कयम नहीं करते।
इनके वबन नहीं रह सकते।  मधमु क्खी पयलने और उनके द्वयरय उत्पयवदत शहद
 खेजड़ली गयाँव रयजस्थयन में जोधपरु के पयस है। कय भिंडयरण करने के वलए बक्सों की आवश्यकतय
गयाँव में खेजड़ी के बहुत से पेड़ होने के कयरण होती है
इस्कय नयम खेजड़ली पड़य। यहयाँ के लोगों को  मधमु वक्खयों के वलए मीठय घोल बनयने के वलए

ik
"वबशनोइ" कहय जयतय है। यह पौधों और जयनवरों िीनी खरीदी जयती है
की रक्षय करते हैं। रेवगस्तयन के मध्य होने पर भी  छत्तों को सयफ करने के वलए दवयईयों कय प्रयोग
यह इलयकय हरय-भरय है। यहयाँ जयनवर वबनय वकसी वकयय जयतय है

al
डर के इधर-उधर घूमते हैं।
 मधमु वक्खयों की तरह ही िीविययाँ भी वमल-
जलु कर रहती हैं। रयनी िीविययाँ अिंडे देती है,
पयठ 5: अनीतय की मधमु वक्खययाँ
वसपयही िींिी वबल कय ध्ययन रखती हैं और कयम

iv
 बोियहय गयाँव वबहयर के मज ु फ़्फ़रपरु वजले में है। इस करने वयली िीविययाँ भोजन ढूाँढ कर वबल तक
जगह पर लीिी के बहुत से पेड़ है। लीिी के फ़ूल लयती हैं। दीमक और ततैये भी इसी तरह समूह में
फ़रवरी में वखलते हैं। रहते हैं।
 लीिी के फ़ूल मधमु वक्खयों को लुभयते हैं। यहयाँ
लोग मधमु वक्खयों को पयलकर शहद बनयने कय
Sh  "िमकतय वसतयरय (गला स्ियर)" उन सयधयरण
लड़्वकयों की असयधयरण कहयवनययाँ हैं, वजन्होनें
कयम करते हैं। स्कूल जयकर अपनी वजिंदगी बदल दी।
 मधमु वक्खययाँ अक्तूबर से वदसम्बर तक के समय में
अन्डे देती हैं। मधमु क्खी पयलन शरुु करने कय पयठ 6: ओमनय कय सफ़र
सबसे अच्छय समय यही होतय है।
k
 हर छत्ते में एक रयनी मक्खी होती है, जो अिंडे देती  गयाँधीधयम अहमदयबयद और वलसयड़ गज ु रयत में है।
है। छत्ते में कुछ नर-मक्खी भी होते हैं।  मड् गयाँव गोवय के रयज्य में है।
ee

 छत्ते में बहुत सयरी कयम करने वयली मवक्खययाँ भी पयठ 7: वखड़्की से
होती हैं। यह वदनभर कयम करती हैं, इनके कयम  गोवय से के रल तक के रेल के रयस्ते में 92 सरु गिं े
कुछ इस प्रकयर के होते हैं-: और 2000 पल ु हैं।
 ये छत्ते बनयती हैं और अपने बच्िों को भी
पयठ 8: नयनी के घर तक
at

पयलती हैं।
 ये फ़ूलों के रस को ढूाँढ्ने के वलये उनके  मल्ययलम में मयाँ की बड़ी बहन को ववलयम्मय कहते
आसपयस माँडरयती हैं। हैं और "मयाँ" की "मयाँ"(नयनी) को अम्मूमय कहते हैं।
 ये शहद बनयने के वलये फ़ूलों कय रस इकट्ठय  के रल में लोग पयनी को पयर करने और दूसरी
Pr

करती हैं। तरफ़ जयने के वलये फ़ै री(नयव) कय इस्तेमयल करते


 जब वकसी मक्खी को रस वमल जयतय है, तो हैं।
वह एक तरह कय नयि करती है, वजससे  रेलवे ियईम िेबल से हमें प्रत्येक रेल की जयन्कयरी
दूसरी मवक्खयों को पतय िल जयतय है वक रस वमलती है, जैसे स्िेशन से सम्बवन्धत, िेन वकस
कहयाँ है। स्िेशन पर वकस समय पहुिाँ ेगी, वकस समय
 कयम करने वयली मवक्खययाँ छत्ते के वलये बहुत स्िेशन छोड़ेगी, वकतनी दरू ी तय करेगी, आवद।
जरुरी होती हैं। ये न हों तो, न छत्तय बने और न ही

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पयठ 10: हु तू तू , हु तू तू  महयरयरि में सहजन के फ़ूलों के पकौड़े बनयये


 खेलों से हम सीखते हैं वक हमयरे आपस में मतभेद जयते हैं।
और झगड़े भी होते हैं और हम उन्हें सलु झयते भी  कुछ फ़ूलों की सूखी सब्जी, सयलन(तरीदयर
हैं। सब्जी) और ििनी बनययी जयती है।
 कबड् डी के खेल में आाँख, पैर तथय हयथ कय  फ़ूलों कय इस्तेमयल बहुत सी दवयईययाँ बनयने
जबरदस्् त तयलमेल रखनय होतय है। में भी वकयय जयतय है।
 कणा नम मल्लेश्वरी एक वेि वलफ़्िर हैं। ये आिंध्र  बहुत से फ़ूलों जैसे गल्ु दयवरी, जीवनयय से रिंग

ik
प्रदेश की रहने वयली हैं। इनके पयपय पवु लस में बनयये जयते हैं। इन रिंगो कय इस्तेमयल कपड़ों
हवलदयर हैं। जब ये 12 सयल की थीं, तभी से को रिंगने में भी वकयय जयतय है।
वजन उथयने कय अभ्ययस करने लगीं थी। अब वे  गलु यब जल और वग्लसरीन बरयबर मयत्रय में

al
एक बयर में 130 वकलोग्रयम तक वजन उठय लेती वमलयकर शीशी में भर लो। इसमें कुछ बूदाँ ें नींबू की
हैं। कणा नम ने भयरत के बयहर 29 मेडल जीते हैं। डयलो। सवदा यों में इस्कय इस्तेमयल अपनी त्विय पर
उनकी 4 बहनें भी रोज वजन उठयने कय अभ्ययस करें। इसके इस्तेमयल से आपकी त्विय फ़ि् ती व

iv
करती हैं। सूखती नहीं है।
 इत्र की एक छोिी सी शीशी बहुत सयरे फ़ूलों से
पयठ 11: फ़ुलवयरी बनती है। उत्तर प्रदेश ककय कन्नौज वजलय इत्र के
Sh
 उत्तरयिंिल में पहयड़ों के बीि में एक ऐसी जगह है,
जहयाँ फ़ूल ही फ़ूल होते हैं। यह "फ़ूलों की घयिी
वलये मशहूर है। यहयाँ पर इत्र बनयने के वलये पयस
के इलयकों से ि्कों में भरकर फ़ूल लयये जयते हैं।
कहलयती है"। यह फ़ूल सयल में कुछ ही हफ़्तों के वफ़र उनसे इत्र , गल ु यब जल और के वड़य तैययर
वलये वखलते हैं। वकयय जयतय है। कन्नौज में इस कयम में हजयरों
 मधबु नी लोक वित्रकलय कय बहुत परु यनय रुप है। लोग लगे हुए हैं।
वबहयर में मधबु नी नयम कय एक वजलय है। त्योहयरों  पिंखुवड़यों के अिंदर, फूल के बीि में जो कुछ पतली
k
और खशु ी के मौकों पर वहयाँ घर की दीवयरों पर पयउडर जैसी रिनयएाँ वदखयई देती हैं, उन्हें परयग
और आाँगन में वित्र बनयये जयते हैं। यह वित्र वपसे कहते हैं।
ee

हुए ियवल के घोल में रिंग वमलयकर बनयये जयते हैं।


 मधबु नी लोक वित्रकलय में प्रयोग वकये जयने वयले पयठ 12: कै से-कै से बदल् े घर
रिंग भी खयस तरह के होते हैं। इन्हें बनयने के वलये  डेरय "गयजीखयन" पयवकस्तयन में है।
नील, हल्दी, फ़ूल पेड़ों के रिंग आवद को इस्तेमयल  गयाँवों में फ़शा की वलपयई गयय के गोबर और वमट्टी
में लययय जयतय है। वित्रों में इिंसयन, जयनवर, पेड़, के वमश्रण से की जयती है। इससे कीड़य नहीं
at

फ़ूल, पिंछी, मवललययाँ और अन्य कई जीव-जन्तु लगतय।


सयथ में बनयये जयते हैं।
 नीम और कीकर की लकवड़ययाँ दीमक से लकड़ी
 हमयरे दैवनक जीवन में फ़ूलों कय इस्तेमयल कुछ को नक ु सयन पहुिाँ ने से रोकती है।
Pr

इस प्रकयर हैं
 लोग नदी के पयनी कय इस्तेमयल बहुत से कयमों के
 फ़ूलों को खययय भी जय सकतय है। बहुत से वलये करते हैं जैसे कपड़े धोने, जयनवरों को
फ़ूलों की सब्जी बनती है। नहलयने और बरतन सयफ़ करने के वलये। इस
 उत्तर प्रदेश में किनयर के फ़ूलों की सब्जी प्रकयर की गवतवववधययाँ पयनी को गिंदय करती हैं।
बनययी जयती है। नवदयों कय पयनी बदलतय रहतय है क्योंवक यह
 के रल में के ले के फ़ूलों की सब्जी बनययी कई जगहों पर बहतय है। तयलयबों व झीलो कय
जयती है। पयनी भी इन्हीं कयरणों से गिंदय रहतय है।

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 ऐसी बहुत सी िीजें है जो पयनी में आसयनी से घलु  फ़यख्तय कै क्िस के कयाँिों के बीि यय मेंहदी की
जयती हैं। इनमें से कुछ हमयरे शरीर के वलये बहुत मेढ़ मेम अपनय घोंसलय बनयतय है।
नक
ु सयनदययक है। इसवलये यह आश्यक है वक हम  गौरैयय हमयरे घर में यय आसपयस वदखयई देती है।
पीने से पहले पयनी को सयफ़ करें। इस्कय सबसे वह कहीं भी घोंसलय बनय लेती है- अलमयरी के
अच्छय तरीकय है पयनी को उबयलनय। ऊपर, आईने के पीछे , घर की दीवयर के आले में।
 कबूतर भी अपनय घोंसलय ऐसे ही बनयते हैं।
पयठ 14: बसवय कय खेत
आमतौर पर ये अपनय घोंसलय परु यने मकयन यय

ik
 पौधों के सयथ-सयथ खरपतवयर भी वनकल आती खिंडहरों में बनयते हैं।
है। खरपतवयर खेत यय बगीिे में अपने आप उग
 बसिंत गौरी को गवमा यों में "िुक-िुक" की आवयज
जयती है, इन्हें उगययय नहीं जयतय। खरपतवयर को
लगयते हुए सनु य जयतय है। ये अपनय घोंसलय पेड़ के

al
वनकयलनय जरूरी है तयवक सयरय खयद-पयनी
तने में छे द करके बनयती है।
खरपतवयर न ले। अगर खरपतवयर ज्ययदय हुई तो
पौधे स्वस्थ नहीं रहेंगे।  दवजा न विवड़यय अपनी नक ु ीलीं िोंि कय इस्तेमयल
झयड़ी की दो पवत्तयों को एक-सयथ सीने के वलये

iv
 प्ययज की फ़सल में प्ययज के बीज, बोये जयने के
करती है और उसके बीि में बनी थैली को अिंडे
20 वदन बयद अिंकुररत होने शुरु हो जयते हैं। जब
देने के वलये तैययर करती है। यही उसकय घोंसलय
पवत्तययाँ पीली होने और सूखने लगती है तो प्ययज
है।
वनकयलने के वलये तैययर हो जयती है।
 प्ययज की फ़सल में इस्तेमयल वकये जयने वयले
Sh  शककर खोरय वकसी छोिे पेड़ यय झयड़ी की डयली
पर अपनय लिकतय घोंसलय बनयते हैं। घोंसले में
औजयर:-
बयल, बयरीक घयस, पतली िहवनययाँ, सूखे पत्ते,
 "खिुाँ ी" (लोहे की छड़) कय इस्तेमयल वमट्टी रुई, पेड़ की छयल के िुकड़े और कपड़ों के िीथड़े
को खोदने, ढीलय करने व नरम बनयने के होते हैं। यहयाँ तक की मकड़ी के जयले भी होते हैं।
वलये वकयय जयतय है।
 नर वीवर(बनु कर) पक्षी खूबसूरती से बनु े हुए
k
 "इवलगे" कय इस्तेमयल प्ययज के ऊपर से घोंसले बनयतय है। मयदय वीवर उन सभी घोंस्लों
सूखी हुई पवत्तयों को अलग करने के वलये को देखती है। उनमें से जो उन्हें सबसे अच्छय
ee

वकयय जयतय है। लगतय है, उसमें ही वह अिंडे देती है।


 "कुररगे" (हल जैसय वदखने वयलय)
 पवक्षयों के बहुत से दश्ु मन होते हैं मनरु य और
जयनवर भी। कौए, वगलहरी, वबल्ली और िूहे
पयठ 16: िू-ाँ िूाँ करती आई विवड़यय
आवद मौकय देखते ही अिंडे िरु य लेते हैं। कई बयर
 वगजभु यई बधेकय गज ु रयत में रहते थे। उन्होनें बच्िों
at

घोंसले को भी तोड़ देते हैं।


के वलये बहुत सी कहयवनययाँ वलखी।
 गयय के आगे के दयाँत छोिे होते हैं, वजनसे वह पतों
 पक्षी के वल अिंडे देने के वलये घोंसलय बनयते हैं। को कयिती है। घयस िबयने के वलये पीछे के दयाँत
जब अिंडों से बच्िे वनकल जयते हैं, तो वे घोंसलय िपिे और बड़े होते हैं।
Pr

छोड़ देते हैं।


 वबल्ली के दयाँत नक ु ीले होते हैं, जो मयाँस फ़यड़्ने
 कोयल मीठय गयती है। वह अपनय खदु कय घोंसलय और कयिने के कयम आते हैं।
नहीं बनयती। वह कौए के घोंसले मेम अिंडे देती है।
 सयाँप के दयाँत होते तो नक ु ीले हैं, पर वह अपने
कौआ अपने अिंडों के सयथ कोयल के अिंडे को भी
वशकयर को िबयकर नहीं खयतय बवल्क पूरय वनगल
सेतय है।
जयतय है।
 कौआ पेड़ की ऊाँिी डयल पर घोंसलय बनयतय है।

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 वगलहरी के दयाँत हमेशय बढ् ते रहते हैं। इन्हें िीजों वहयाँ के लोग इसके तने के अिंदर पतलय पयईप
को दयाँतों से कयिनय और कुतरनय पड़तय है तयवक डयलकर इस पयनी को पीने के वलये वनकयल लेते
इनके दयाँत वघसते रहें। थे।

पयठ 20: वमलकर खयएाँ


पयठ 18: पयनी कहीं ज्ययदय, कहीं कम  "बीहू" असम क एक खयस त्योहयर है। यह त्योहयर
 नल्लयमडय आाँध्र-प्रदेश में है। ियवल की नई फ़सल के किने पर मनययय जयतय

ik
 बयजयर गयाँव महयरयरि में है। है।
 कफ़ परेड मम्ु बई में है।  "उरुकय", बीहू से वपलले वदन की शयम को कहते
हैं। इस वदन लोग अस्थययी मेलय घर बनयते हैं और
 जब हमें दस्त लगते हैं यय उवल्िययाँ होती हैं, तो

al
सयमूवहक दयवत करते हैं।
हमयरे शरीर से बहुत सयरय पयनी बयहर वनकल
जयतय है। यह शरीर के वलये हयवनकयरक हो सकतय  मयघ बीहू 14 और 15 जनवरी को मनययय जयतय
है अगर हम देखभयल नहीं करते। इसवलये जरुरी है। (मयघ की पहली और दूसरी वतवथ को, मयघ

iv
है वक शरीर में पयनी की कमी पूरी की जयए। अगर आसयमी कै लेण्डर कय दसवयाँ महीनय है)
अभी उल्िी व दस्त हों तो हमें खूब पयनी पीनय  "बोरय और िेवय" ियवल की वकस्म है जो असम में
ियवहए। पयनी में कुछ मयत्रय में नमक व िीनी भी खययय जयतय है, ये "विपविपे" ियवल होते हैं
वमलयनी ियवहये। पयनी थोड़ी-थोड़ी देर में पीते
रहनय ियवहये।
Sh  िेवय ियवल: (बीहू व्यिंजन) लोग आग जलयते हैं
और एक बड़े तौआ(कड़यही) को आग पर रखकर
 होल्गण्ु डी कनया िक मेम है। यहयाँ बच्िों की पिंिययत उसमें पयनी उबयलते हैं वफ़र उस पर भीगे हुए
को "भीमय सिंघ" कहय जयतय है। ियवल से भरी कड़यही रखते हैं और के ले के पत्तों
से ढाँक देते हैं।
पयठ 19: जड़ों कय जयल  "वमड-डे-मील" प्रयइमरी स्कूल के सभी बच्िों को
k
 घयस की जड़ें बहुत मजबूत होती है। घयस कय पकय हुआ गरम खयनय वमलनय ही ियवहये, ये सभी
पौधय वजतनय जमीन के ऊपर होतय है उससे कहीं बच्िों कय अवधकयर है।
ee

ज्ययदय गहरी और लम्बी घयस की जड़ें जमीन के


नीिे फ़ै ली होती हैं। पयठ 21: खयनय वखलयनय
 बरगद के पेड़ की लिकन, असल में इसकी जड़ें  गरुु द्वयरे में एक सयथ वमलकर खयनय पकयने और
है, वे िहवनयों से वनकलती हैं और बढ़्ते-बढ़्ते खयने को "लिंगर" कहते हैं।
जमीन के अिंदर िली जयती हैं। ये मजबूत खम्भों  "कड़यह प्रसयद" एक प्रकयर कय हलवय है जो आिय,
at

की तरह पेड़ को सहयरय देती हैं। दूसरे पेड़ों की घी, िीनी और पयनी से बनतय है।
तरह जमीन के अिंदर भी बरगद की जड़ें होती है।
 "रेवगस्तयनी ओक" एक पेड़ है जो आस्िेवलयय में पयठ 23: पोिमपल्ली
Pr

पययय जयतय है। इसकी ऊाँियई क्लयस(कक्षय) की  मख्ु तयपरु गयाँव आाँध्र प्रदेश के पोिमपल्ली वजले में
दीवयर के लगभग होती है। इसकी पवत्तययाँ बहुत ही है। इस वजले के ज्ययदयतर पररवयर बनु कर है।
कम होती हैं। इस पेड़ की जड़ें जमीन में उस इसवलये इस बनु यई को पोिमपल्ली नयम से
लम्बयई तक गहरी जयतीहैं जब तक पयनी तक न पहियनय जयतय है।
पहुिाँ जयएाँ। यह पयनी पेड़ के तने में जमय होतय
 सबसे पहले धयगे की लवड़यों को उबले हुए पयनी
रहतय है। इस इलयके के लोग यह बयत जयनते थे,
में डयलकर उनकी गिंदगी और दयग धोए जयते हैं
जब कभी इस इलयके में पयनी नहीं होतय थय तो
वफ़र धयगों को सिंदु र रिंग में रिंगय जयतय है। उसके

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बयद उन्हें सख ु यकर उनकी गट्ठी बनयते हैं। धयगे की  गमी के कयरण लोग वखड़वकययाँ नहीं खोलते। जहयाँ
गरट्ठययाँ करघे पर लपेिी जयती है वफ़र इसमें कपड़े सब होते हैं वहयाँ अन्दर एयर-किं डीशनर िलते हैं।
बनु े जयते हैं। रेशमी कपड़े व सयवड़ययाँ रेशम के धयगे गरमी के वजह से वहयाँ के लोग ढीले-ढयले सूती
से बनु ी जयती है। सूती धयगे से सयवड़ययाँ, कपड़ों के कपड़े पहनते हैं और पूरय शरीर और वसर भी
थयन और ियदरें आवद बनु ी जयती हैं। ढाँककर रखते हैं। इससे वे तेज धूप से बि जयते हैं।
पयठ 24: दूर देश की बयत पयठ 26: फ़ौजी वहीदय

ik
 मलययलम में "विट्टप्पन" वपतय के छोिे भयई को  थन्नयमिंडी जम्मू के रयजौरी वजले में है।
और "किंु जम्मय" वपतय के छोिे भयई की पतनी
 लेफ़्िीनेंि कमयिंडर वहीदय वप्रज़्म ऐसी पहली
अथया त ियिी को कहते हैं।
मवहलय हैं वजन्होनें एक पूरी परेड की कमयन

al
 अबु धयबी और उसके आस-पयस के देश साँभयली। ये भयरतीय नौसेनय में डयाँक्िर हैं। इनकी
रेवगस्तयनी इलयके में है। रेवगस्तयन में बयररश नहीं वजम्मेदयरी होती है वक सबकी तबीयत ठीक रहे। ये
होती। वहयाँ पयनी सिमिु बहुत कीमती है, वहयाँ न जहयज पर मौजूद सभी अवधकयररयों और नयववकों

iv
बयररश है, न ही नवदययाँ, न ही झील हैं और न ही कय िेकअप करती है। इसके अलयवय यह भी
तयलयब है"। जमीन के नीिे भी वहयाँ पयनी नहीं है। देखनय होतय है वक कहीं गिंदगी न फ़ै ले और िूहे न
लेवकन वहयाँ रेतीली जमीन के नीिे तेल होतय है आएाँ। जब परेड होती है, तो उसके पीछे ियर
इसवलये वहयाँ पेिोल आसयनी से वमल जयतय है
बवल्क वहयाँ पेिोल पयनी से सस्तय है।
Sh िुकवड़ययाँ िलती हैं। पूरी परेड में 36 वनदेश देने
होते हैं।
 रेवगस्तयन में के वल एक ही प्रकयर के पेड़ देखे जय  नौसेनय के हर जहयज पर "फ़स्िा -एड" दी जयती है।
सकते हैं- "खजूर के पेड़" जहयज पर एक डयाँक्िर और दो तीन सहययक होते
 क्योंवक वही एक ऐसय पेड़ है, जो वहयाँ उग सकतय हैं। जरूरी दवयईययाँ और कुछ मशीनें भी होती है। ये
है। रेवगस्तयन में खजूर आसयनी से वमल जयतय है। सब एक छोिे से कमरे में रखी जयती हैं।
k
 रेत के िीले जैसे पहयड़ हैं जो के वल रेत से बनते  वप्रज़्म ऐसय कयाँि होतय है, जो सयत रिंग वदखयतय है।
हैं।  वस्कि् पो पल ु गयाँव लद्दयख में है।
ee

 अबू धयबी में उपयोग वकये जयने वयले पैसों को


"वदरहम" कहय जयतय है। उन पर वहयाँ की अरबी
भयषय में कुछ वलखय होतय है।
at
Pr

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कक्षय 5
पयठ 1: कै से पहियनय िींिी ने दोस्त को  रयत में जयगने वयले जयनवर को हर िीज सफ़े द
 जयनवरों में भी अलग-अलग प्रकयर की ज्ञयनेवन्िययाँ और कयली वदखती है। वदन में जयगने वयले जयनवर
होती है। इनमें देखने, सनु ने, िखने, सूघाँ ने व कुछ रिंग देख पयते हैं।
महसूस करने की शवक्त होती है। कुछ जयनवर  सयाँप के बयहरी कयन नहीं होते। जमीन पर हुए
मीलों दूर से वशकयर को देख सकते हैं। कोई हल्की

ik
किं पन को वह के वल महसूस कर सकतय है।
से हल्की आहि को भी सनु लेतय है। कोई जयनवर
 ऊाँिे पेड़ पर बैठय लाँगूर पयस आती मस ु ीबत (जैसे-
अपने सयथी को सूघाँ कर ढूाँढ लेतय है।
शेर, िीतय) को देखकर एक खयस आवयज
 िींविययाँ िलते समय जमीन पर कुछ ऐसी गिंध

al
वनकयलकर अपने सयवथयों को सिंदशे देतय है। इस
छोड़ती हैं, वजसे सूघाँ कर पीछे आने वयली कयम के वलये पक्षी भी खयस आवयजें वनकयलते हैं।
िींवियों को रयस्तय वमल जयतय है। कुछ पक्षी अल्लग-अलग खतरों के वलये अलग-
 कुछ नर कीड़े-मकौड़े, अपनी मयदय कीड़े की गाँध अलग आवयजें वनकयलते हैं जैसे उड़कर आने

iv
से उसकी पहियन कर लेते हैं। वयले दश्ु मन के वलये एक तरह की आवयज और
 मच्छर इिंसयन की शरीर की गिंध से उसे पहियन जमीन पर िलकर आने वयले के वलये दस ू री तरह
की आवयज। आवयज ियहे वकसी भी जयनवर ने
लेतय है। ये उनके पैरों के तलवों और शरीर की
गमी से भी उन्हें ढूाँढ लेते हैं।
Sh वनकयली हो, एक ही इलयके में रहने वयले बयकी
सभी जयनवर इन िेतयवनी भरी आवयजों से सिेत
 रेशम कय कीड़य अपनी मयदय को उसकी गिंध से
हो जयते हैं।
कई वकलोमीिर दूर से ही पहियन लेतय है।
 कुछ जयनवर तूफ़यन यय भूकिंप आने से कुछ समय
 सड़कों पर कुत्तों की भी अपनी जगह बाँिी होती है।
पहले अजीब हरकत करने लगते हैं। जो लोग
एक कुत्तय दूसरे कुत्ते के मल-मूत्र की गिंध से जयन
जिंगल में रहते हैं और जयनवर के इस व्यवहयर को
k
लेतय है वक उसके इलयके में बयहर कय कुत्तय आयय
समझते हैं, वे जयन लेते हैं वक भूकिंप आने वयलय है
थय।
यय कुछ अनहोनी होने वयली है। सन 2004,
ee

 ज्ययदयतर पवक्षयों की आाँखें उनके वसर के दोनों वदसम्बर में आये सनु यमी से कुछ समय पहले
तरफ़ होती है। ये एक ही समय में दो अलग-अलग जयनवरों के अजीब व्यवहयर और उनके द्वयरय दी
िीजों पर नजर डयल लेते हैं। जब ये वबल्कुल गई िेतयवनी भरी आवयजों को अिंडमयन की एक
सयमने देखते है, तब इनकी आाँखें एक ही िीज पर खयस आवदवयसी जयवत समझ गई और उन्होनें वह
होती है। कई पक्षी अपनी गदा न बहुत ज्ययदय इलयकय खयली कर वदयय। इस प्रकयर इस जयवत के
at

वहलयते हैं। ऐसय इसवलये होतय है क्योंवक लोग सनु यमी के कहर से अपनी जयन बिय पयए।
ज्ययदयतर पक्षीयों की आाँखों की पतु ली घूम नही
 डयाँलवफ़न भी अलग-अलग तरह की आवयजें
सकती, वे अपनी गदा न घमु यकर ही आस-पयस
वनकयलती हैं और एक-दस ू रे से बयत करती हैं।
देखते हैं।
Pr

वैज्ञयवनकों कय मयननय है वक कई जयनवरों की


 कुछ पक्षी जैसे िील, बयज और वगदध हमसे ियर अपनी खुद की एक पूरी भयषय है।
गनु य ज्ययदय दरू तक देख पयते हैं। जो िीज हमें दो
 कुछ जयनवर वकसी खयस मौसम में लिंबी व गहरी
मीिर की दूरी से वदखयई पड़ती है, वही िीज ये
नींद में िले जयते हैं और कई महीनों तक वफ़र
पक्षी आठ मीिर की दूरी से देख लेते हैं।
वदखयई नही देते। सवदा यों में वछपकली भी घर में
वदखयई नहीं देती।

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 "स्लयाँथ" भयलू जैसे वदखते हैं, पर भयलू नही होते जयतय है। जयनवरों को मयरने वयले लोगों को
हैं। ये वदन के करीब सत्रह घिंिे पेड़ों से उलिे वसर वशकयरी कहते हैं।
लिकयकर सोते हैं। ये वजस पेड़ पर रहते हैं उसी  हमयरे देश में बयघ और अन्य कई जयनवरों की
के पत्ते खयकर पलते हैं। इसवलये इन्हें कहीं ओर वगनती इतनी कम हो गई है वक इनके लुप्त हो जयने
जयने की जरूरत नहीं पड़ती। जब ये अपने पेड़ के कय खतरय है। हमयरे देश की सकया र इन्हें बियने के
सयरे पत्ते खय लेते हैं, तभी वह पयस के पेड़ पर वलये बहुत से जिंगलों को सरु क्षय दे रही है। जैसे-
जयते हैं। उत्तरयखिंड कय "वजम कयाँरबेि नेशनल पयका" और

ik
 लगभग 40 वषा के अपने पूरे जीवन में ये मवु श्कल रयजस्थयन के भरतपरु वजले में "घयनय"। यहयाँ लोग
से आठ पेड़ों पर घूमने के तकलीफ़ उठयते हैं। ये जयनवरों यय जिंगल को कोई नक ु सयन नहीं पहुिाँ य
सप्तयह में एक बयर ही शौि के वलये नीिे उतरते हैं। सकते।

al
 बयघ अाँधरे े में हमसे लह गनु य बेहतर देख सकतय
पयठ 2: कहयनी सपेरों की
है। बयघ की मूछ ाँ े सिंवेदनशील होती हैं और हवय में
हुए किं पन को भयाँप लेती है। इनसे बयघ को अाँधरे े में  सयाँपों के वडज़यइन रिंगोली, कढयई और दीवयरों को

iv
रयस्तय और वशकयर ढूाँढने में मदद वमलती है। सजयने के वलये सौरयरि, गज ु रयत और दवक्षण
भयरत में प्रयोग वकये जयते हैं।
 बयघ की सनु ने के क्षमतय इतनी तेज होती है वक
वह हवय के पत्तों के वहलने और वशकयर के  "कयलबेवलयय" लोग सयाँपों को अपनी बीन की धनु
Sh
झयवड़यों में वहलने से हुई आवयज में अिंतर को भयाँप
लेतय है। बयघ के दोनों कयन बयहर की आवयज
पर निय सकते हैं। सयाँप इनकी पूज ाँ ी हैं जो ये
अपनी आने वयली पीढ़ी को सौंपते हैं। सयाँपो को
इकट्ठय करने के वलये अलग-अलग वदशयओिं में घूम तो यह लोग अपनी बेवियों को शयदी में तोहफ़े के
भी जयते हैं। रूप मे देते हैं। बीन, तुम्बय, खिंजरी और ढोल ऐसे
सिंगीत वयदययिंत्र हैं जो बीन पयिी में प्रयोग वकये
 बयघ मौके के अनस ु यर अपनी आवयज बदलतय
जयते हैं। ढोल के अलयवय बयकी तीनों बयजे सूखी
रहतय है जैसे गस्ु से में अलग आवयज और बयवघन
लौकी से बनयए जयते हैं।
k
को बल ु यनय हो तो अलग आवयज। ये कभी करयहतय
है तो कभी गरु ा तय भी है। बयघ कय गरु या नय 3  सयाँप वकसयनों के दोस्त होते हैं क्योंवक यह खेत के
िूहों को खय लेते हैं नहीं तो िूहे फ़सल को खय
ee

वकलोमीिर दरू तक सनु य जय सकतय है। हर बयघ


कय अपनय कई वकलोमीिर बड़य एक इलयकय होतय लेते हैं।
है।  हमयरे देश में पयए जयने वयले सयाँपों में से के वल ियर
 बयघ अपने इलयके में मूत्र करके अपनी गिंध छोड़्ते तरह के सयाँप ही जहरीले होते हैं। ये हैं- नयग,
जयते हैं। एक बयघ दूसरे बयघ की मौजूदगी को करैत, दबु ोईयय और अफ़यई।
at

उसके मूत्र की गिंध से झि पहियन लेतय है। एक  सयाँप के दो खोखले जहर वयले दयाँत होते हैं। सयाँप
बयघ दूसरे बयघ के इलयके में जयनय पसिंद नहीं के महुाँ में एक जहरीली थैली भी होती है। सयाँप जब
करतय। वकसी को कयि् तय है तो उसके खोखले जहरीले
Pr

 बयघ सबसे ज्ययदय सतका जयनवरों में से एक है। दयाँतों से उस व्यवक्त के शरीर में जहर िलय जयतय
है। सयाँप के कयिे हुए के वलये दवयई(सीरम) होती
 आज बहुत से जयनवरों को मयरय जयतय है और
है। यह सीरम सयाँप के जहर से हे बनययय जयतय है
उनके शरीर के वहस्सों को बेिय जयतय है। हयथी को
और सभी सरकयरी स्वयस््य के न्िों में वमलतय है।
उसके दयाँतों, गैंडे को सींग, बयघ, मगरमच्छ और
सयाँप को उनकी खयल के वलये मयर वदयय जयतय ह
कस्तूरी वहरण को थोड़ी सी खशु बू के वलए मयरय

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पयठ 3: िखने से पिने तक पयपड़, ििनी, विकी आवद। आम कय आियर


 डयाँक्िर बोमोंि ने नौ सयल तक जख्मी सैवनक अगले मौसम के आम आने तक सयल भर िलतय
"मयविा न"(1822) के पेि के सयथ प्रयोग वकयय। है।
उनके प्रयोग के वनरकषा इस प्रकयर हैं  मयवमडी तयन्रय मयवमडी तयन्रय(आम-पयपड़) बनयने
 खयनय बयहर की अपेक्षय पेत में जल्दी पितय है। के वलये बहुत सयरे आमों की जरूरत होती है।
 जब भी मयविा न परेशयन होतय थय, उसकय मयवमडी तयन्रय बनयने के वलये ियर हफ़्तों की
खयनय ठीक से नहीं पितय थय। मेहनत िवहये होती है। आम के गूदे की परत पर

ik
 अलग-अलग भोजन को पिने में अलग-अलग परत तब तक सख ु यई जयती है जब तक वह ियर
समय लगतय है, जैसय की नीिे तयवलकय में सेंिीमीिर मोिी और एक सनु हरी वबछौनी की
वदखययय गयय है :- तरह नहीं लगती।

al
पिने में लगने वयलय समय  पणु े से कोलकयतय तक रेलगयड़ी से जयने में दो
खयने की िीज वगलयस के वदन लगते हैं।
पेि में
पयिक रस में  कयाँि के घड़े और शीवशयों में आियर भरने से

iv
कच्िय दूध 2 घिंिे 15 4 घिंिे 45 वमन्ि पहले उन्हें अच्छी तरह से धूप में सख
ु ययय(कीि-
वमन्ि मक्त
ु करनय) जयतय है।
उबलय दधू 2 घिंिे 4 घिंिे 15 वमन्ि
पूरी तरह उबलय 3 घिंिे 30 8 घिंिे
अिंडय वमन्ि
Sh पयठ 5: बीज, बीज, बीज
 वशकयरी पौधे : कुछ ऐसे पौधे भी होते हैं, जो िूहों,
कम उबलय अिंडय 3 घिंिे 6 घिंिे 30 वमन्ि मेंढ़्कों, कीड़े-मकोड़ों और छोिे जीवों कय वशकयर
फ़ैं िय हुआ कच्िय 2 घिंिे 4 घिंिे 15 वमन्ि करते हैं। इनमें वपिर प्लयिंि(नीपेवन्थस) सबसे
अिंडय ज्ययदय मशहूर है। यह आस्िेवलयय, इिंडोनेवशयय
कच्िय अिंडय 1 घिंिे 30 4 घिंिे और भयरत के मेघयलय रयज्य में पययय जयतय है।
k
वमन्ि इसकय आकयर लिंबे घड़े जैसय होतय है। वजसके
ऊपर पत्ती कय ढक्कन लगय रहतय है। घड़े से
 हमयरय पेि खयने को पियने के वलये इसे खूब खयस खशु बू वनकलती है वजसकी वजह से कीड़े
ee

घमु यतय वहलयतय है। वखिंिे िले आते हैं। पौधों के ऊपर पहुिाँ ते ही कीड़े
 यवद वकसी को जक ु यम है तो उसे खयनय अिंदर फ़िं स जयते हैं और बयहर नहीं वनकल पयते।
बेस्वयद लगतय है।  "वेल्रो" की कहयनी : यह घिनय 1948 की है।
 यवद कोई व्यवक्त ठीक से खयनय नहीं खयतय यय एक वदन जयजा मेस्िल अपने कुत्ते के सयथ सैर से
at

खयनय नहीं पितय तो उसे "एवसवडिी" हो लौिे तो उन्होनें पययय वक उन दोनों पर बीज
जयती है। विपके हैं। इन बीजों को अपने कपड़ों पर विपकय
 कयलयहयिंडी वज़लय उड़ीसय में है। कयलयहयिंडी में देखकर वे हैरयन रह गए। उन्होनें मयइरोस्कोप
वनकयलय, बीजों को बयरीकी से देखने के वलये।
Pr

सबसे ज्ययदय ियवल पैदय वकयय जयतय हैऔर दूसरे


रयज्यों में बेिय जयतय है। बीजों में छोिे-छोिे हुक थे इनकी मदद से बीज
कपड़ों के रेशों पर अिक गए थे। यह देख के
पयठ 4: खयाँए आम बयरहों महीने मेस्िल को आइवडयय आयय "वेलरो" बनयने कय।
उन्होनें ऐसे ही छोिे हुकों से ऐसय पदयथा बनययय
 आत्रेयपरु म गयाँव आिंध्र-प्रदेश में है। जो विपक जयतय हो। वेल्रो से बहुत सी िीजों को
 पूरे सयल आम खयने के वलये हम अलग-अलग एक सयथ विप्कययय जय सकतय है जैसे- कपड़े,
प्रकयर की िीजें बनयते हैं जैसे आियर, आम-

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जूते, बैग, बेल्ि आवद। यह वकतनय अच्छय तरीकय कहते हैं। अल-वबरूनी ने बहुत ही बयरीकी से
है प्ररवत से प्रेरणय लेने कय। िीजों और जगहों को देखय और उनके बयरे में
 भयरत में वमिी दवक्षण अमरीकय के व्ययपयरी लेकर वलखय। खयस तौर से वह जो उन्हेंअपने देश से
आए थे। अलग लगीं। यहयाँ के लोग तयलयब बनयने में मयवहर
हैं। ये बहुत बड़े-बड़े भयरी पत्थरों को लोहे के
 ि् मयिर, आलू और हरी वमिी दवक्षण अमरीकय से
कुन्डों और सररयों से जोड़कर तयलयब के ियरों
आए।
तरफ़ िबूतरे बनयते हैं। इन िबूतरों के बीि में
 गोभी और मिर यरू ोप से आई। वभिंडी और कयाँफ़ी

ik
ऊपर से नीिे जयती हुई सीवढ़यों की लम्बी कतयरें
अफ़्ीकय से आई। भी होती हैं।
 सोययबीन ियईनय से आई, जब सोययबीन की  रयज़स्थयन में जैसलमेर के अलयवय बहुत से इलयके
फ़वलययाँ पककर सूख जयती हैं तो वििि् कर

al
ऐसे हैं जहयाँ बहुत कम बयररश होती है और सयल में
वबखरने लगती है। बस दस-बयरह वदन ही बयररश होती है। कई बयर
इससे भी कम।
पयठ 6: बूदाँ बूदाँ , दररयय-दररयय

iv
रयज़स्थयन में पयनी की हर बूदाँ बहुत दल ु ा भ और
 घड़्सीसर की कहयनी : "सर" कय अथा है कीमती है। इनकी कीमती बूदाँ ों को इकट्ठय करने के
"तयलयब"। इसे जैसलमेर के रयजय घड़्सी ने 650 वलये तयलयब और जोहड़ बनयए गए।
सयल पहले लोगों के सयथ वमलकर बनवययय थय।
इसके दोनों तरफ़ पकके घयि, सजे हुए बरयमदे,
Sh  सीवढ़दयर कुआाँ (बयवड़ी) पयनी इकट्ठय करने कय
एक अलग तरीकय है। इसमें सीवढ़ययाँ जमीन के
कमरे, बड़े हयाँल और बहुत सी िीजें हैं। यहयाँ लोग
नीिे कई मिंवजल तक जयती हैं। पयनी ऊपर से
वमलते-जल ु ते थे, जलसे होते थे और गयने-बजयने
खींिने की बजयए लोग खुद पयनी तक पहुिाँ सकते
कय प्रोग्रयम भी होतय थय। इसके घयि पर बनयये गये
थे। इसवलये इसे सीवढ़दयर कुआाँ भी कहते हैं।
स्कूल में बच्िे आते थे। सभी इस बयत कय ध्ययन
रखते थे वक तयलयब गिंदय न हो और वो सफ़यई में  1986 में जोधपरु और उसके आसपयस के
k
भी हयथ बाँियते थे। इलयकों में जब सूखय पड़य थय, तब भूली-वबसरी
बयववड़यों को एक बयर वफ़र से ययद वकयय गयय।
 मीलों तक फ़ै ले इस घड़्सीसर में बयररश कय पयनी
मोहल्ले के लोगों ने वमल-जल ु कर बयवड़ी में से
ee

इकट्ठय होतय है। तयलयब इस तरह बनययय गयय थय


200 िक से भी ज्ययदय कूड़य वनकयलय। बयवड़ी ने
वक जब वह पयनी से भर जयतय, तब बयकी पयनी
वफ़र से प्ययसे शहर को पयनी वपलययय। इसके वलये
बहकर नीिे बने हुए तयलयब में िलय जयतय। जब
ििंदय भी मोहल्ले वयलों ने ही वदयय। कुछ सयल बयद
वह भी लबयलब भर जयतय तो पयनी तीसरे तयलयब
वफ़र से अच्छी बयररश हुई और पयनी की परेशयनी
में िलय जयतय। इस तरह नौ तयलयब एक-दूसरे से
at

कम हुई। लेवकन अब वफ़र से बयवड़ी को भल ु य


आपस में जड़ु े थे। जमय वकये गये पयनी कय सयल
वदयय गयय है।
भर प्रयोग वकयय जयतय थय और पयनी की कोई
कमी नहीं होती थी। पर आज घड़्सीसर कय  अलवर वज़लय रयजस्थयन में है।

Pr

उपयोग नहीं है। नौ तयलयबों के रयस्ते में मकयन कुओिं के सूखने के कयरण : मोिर लगयकर ज़मीन
और कयाँलोवनययाँ बन गई हैं। यहयाँ इकट्ठय होने वयलय कय पयनी वनकयलय जय रहय है। तयलयब वजन्में
पयनी अब तयलयब की तरफ़ न जयकर बेकयर बह बयररश कय पयनी इकट्ठय होतय थय, वो अब नहीं रहे।
जयतय है। पेड़ों के आसपयस और पयका में भी ज़मीन को
 हज़यर से भी ज्ययदय सयल पहले एक ययत्री भयरत सीमेंि से पक्कय कर वदयय गयय है।
आए। इनकय नयम थय "अल-वबरूनी"। अल-वबरूनी
वजस देश से आए थे उसे आजकल उज्बेवकस्तयन

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 अलवर वजले की दड़की मयई ने तयलयब बनयने कय जो जगह दलदली होती है। मलेररयय मच्छर भूरे
वनशिय वकयय तब भोजन और पयनी सम्बन्धी रिंग कय होतय है और इसके पिंख धब्बेदयर होते हैं।
वदक्कते कम हो गई ।  मलेररयय के वलये दवयई : मलेररयय की दवयई बहुत
परु यने समय से वसनकोनय पेड़ की छयल से बनयई
पयठ 7: पयनी कय प्रयोग जयती है। पहले तो लोग छयल को उबयलकर और
 म्रत सयगर :- सभी महयसयगर और समिु कय पयनी छयनकर ही इसतेमयल करते थे, लेवकन अब छयल
नमकीन होतय है लेवकन म्रत सयगर दवु नयय कय से दवयई बनयते हैं।

ik
सबसे नमकीन सयगर है। इतनय नमकीन वक  अनीवमयय खून में "हीमोग्लोवबन" यय "आयरन" की
लगभग एक लीिर पयनी में 300 ग्रयम नमक। क्यय कमी से होतय है। अनीवमयय होने पर गड़ु , आाँवलय
इतनय नमक तुम िख पयओगे? यह बहुत ही और हरी पत्तेदयर सवब्जययाँ जरूर खयनी ियवहये

al
कड़्वय लगेगय। मजेदयर बयत यह है वक यदी वकसी क्योंवक इनमें लोहय होतय है।
को तैरनय नहीं आतय, तो वह पयनी में नहीं डूबेगय  वदल्ली के स्कूलों में अनीवमयय होनय आम बयत है।
वह पयनी में ऐसे तैरगे य जैसे आरयम से लैिय हो। इससे बच्िों की शयरीररक और मयनवसक

iv
 डयाँडी ययत्रय : यह घिनय 1930 की है। भयरत की तिंदरू
ु स्ती पर असर पड़तय है। इस कयरण बच्िे
आजयदी से पहले बहुत सयलों से आम लोगों ने ठीक से बड़ नहीं पयते हैं। उनमें फ़ूती भी कम होती
नमक बनयने पर रोक लगयई हुई थी। ऊपर से है
नमक पर भयरी िैक्स भी लगय वदयय। इस कयनून
से तो लोग अपने घर के इस्तेमयल के वलये भी
Sh  मच्छर पयनी में अिंडे देते हैं। इनमें से पतले-पतले,
छोिे, भूरे से रिंग के कीड़े(लयरवे) वनकलते हैं।
नहीं बनय सकते थे। "नमक के वबनय कै से कोई रह
 मलेररयय से बिने के उपयये :
सकतय है"। गयाँधी जी कय कहनय थय वक जो िीज
हमें कुदरत ने दी है, उसे बनयने पर बिंवदश कै सी।  आस-पयस पयने जमय न होने दें और गढडों
उनहोनें लोगों के सयथ वमलकर अहमयदयबयद से को भर दें।
डयाँडी के समिु ति तक एक लिंबी ययत्रय की और  पयनी के बरतन, कूलर और ििंकी को सयफ़
k

इस गलत कयनून को तोड़य। रखें और हफ़्ते सख ु यएाँ।


 नमक बनयनय : समिु के पयनी को ज़मीन पर  तयलयबों में मवललययाँ छोड़ें तयवक वह मच्छर
ee

क्ययररयों की तरह बनयये गए गढ् डों में भर वदयय के लयरवे को खय लें।


जयतय है। तेज धपू में पयनी सूख जयतय है और  मच्छरदयनी कय प्रयोग करें।
नमक के ढेर वहीं रह जयते हैं।  जमय हुए पयनी मे वमट्टी कय तेल वछड़कें ।
 मवक्खयों से पेि की बीमयरी होती है।
at

पयठ 8: मच्छरों की दयवत  आज से लगभग सौ सयल पहले एक वैज्ञयवनक


 मयइरोस्कोप से एक िीज हजयर गनु य बड़ी वदखती रोनयल्ड रोंस ने पतय लगययय वक मलेररयय मच्छर
है इसवलये खून के अिंदर की बयरीवकययाँ सयफ़ से फ़ै लतय है। रोनयल्ड रोंस को वदसम्बर, 1902 में
वदखयई पड़ती है। कई मयइरोस्कोप से तो इससे
Pr

विवकत्सय के क्षेत्र में बड़य परुु स्कयर वमलय, "नोबेल


भी ज्ययदय बड़य वदखयई देतय है। परुु स्कयर"।
 मलेररयय एक खयस मच्छर मयदय "एनयाँफ़ेलीज" के
कयिने से होतय है। पयठ 9: डययरी : कमर सीधी ऊपर िढ़ो
 मलेररयय वजसकय अथा है "बरु ी हवय", यह उन क्षेत्रों  िैवकिं ग के वलये नयशतय : "सी" आयरन की
में पययय जयतय है जहयाँ ज्ययदय बयररश होती है और गोवलययाँ और सयथ गरम-गरम ियाँकलेि वयलय दधू ,
ठिंड से बियव और ज्ययद शवक्त के वलये।

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 िैवकिं ग में हर ग्रपु में एक लीडर होतय है, वजसकी वकले में घसु भी नहीं पयई और उसकी पूरी सेनय
वनमनवलवखत वजम्मेदयररययाँ होती हैं :- आठ महीनों तक बयहर ही बैठी रही।
 बयकी लोगों कय सयमयन उठयने में मदद करनय।  उस समय में बयदशयह और रयजय खेल खेलते थे।
 पूरे ग्रपु के आगे बढ़ जयने पर ही आगे बढ़नय। वे छोिे रयज्यों को अपने रयज्य कय वहस्सय बनयने
 जो िल नय पयए उनकी मदद करनय। की कोवशश करते रहते थे। इसके वलये कभी
दोस्ती तो कभी ियपलूसी से कयम िलयते थे, तो
 रुकने और आरयम करने के वलये एक अच्छी कभी पररवयर में शयदी करयकर। अगर इन सबसे
जगह ढूाँढनय।

ik
भी कुछ नहीं होतय थय तो वे उन पर आरमण भी
 बीमयर पड़ने पर उनकय ध्ययन रखनय। कर देते थे।
 सबके खयने-पीने कय इिंतजयम करनय।  फ़तेह दरवयजे पर खड़े होकर कोई कुछ भी बोले

al
 ग्रपु के वकसी भी सदस्य से गल्ती हो जयने पर तो वह रयजय के महल में सनु यई देतय है।
सज़य सनु यने को तैययर रहनय।
 मल्लयपरु म वज़लय के रल में है।
 पहयड़ों पर िढ़ते समय अपने शरीर कय 90 कय

iv
कोण बनयते हुए िलें। अपनी कमर को सीधय रखें पयठ 11: सनु ीतय अिंतररक्ष में
और मौड़ें नहीं।
 सनु ीतय वववलयम्स और कल्पनय ियवलय भयरतीय-
 िट्टयन से उतरते समय रस्सी को एक तरीके से अमेरीकी अिंतररक्ष ययत्री हैं। सनु ीतय वववलयम्स
उपयोग वकयय जयतय है वजसे "रैवप्लिंग कहते हैं।
 बच्छे न्िी पयल उत्तरयखिंड के गढ़्वयल के नयकुरी
Sh प्ृ वी से 360 वकलोमीिर दूर स्पेसवशप में गई।
 2007 में सनु ीतय वववलयम्स ने अिंतररक्ष में सबसे
गयाँव में पलीं-बढ़ी। उन्होनें नेहरू इिंस्िीियूि आाँफ़ लिंबे समय तक रहने वयली पहली मवहलय होने कय
मयउन्िेवनयररिंग(उत्तरकयशी) पर पहयड़ पर िढ़ने ररकयडा बनययय।
की िैवनिंग ली और उनके गयइड वब्रगेवडयर ज्ञयन
 अवसमोव(लोंगमेन) ने अिंतररक्ष ययत्रय के बयरे में
वसिंह थे।
वकतयब वलखी
k
 बच्छे न्िी पयल भयरत की पहली और सिंसयर की
 अिंतररक्ष में सनु ीतय कय अनभु व :-
पयाँिवी मवहलय है वजन्होनें एवरेस्ि पर कदम रखय।
 हम एक जगह विककर तो बैठ ही नहीं सकते
ee

 पवा तयरोहण में इस्तेमयल की जयने वयली कुछ आम थे। ययन में हम एक जगह से दूसरी जगह
िीज़ें हैं वस्लिंग, वपि-आाँन, हाँिर सूज़, स्लीवपिंग बैग तैरते हुए पहुिाँ ते।
इत्ययदी।
 पयनी भी एक जगह विकय नहीं रहतय। वह
बल
ु बल ु ों की तरह इधर-उधर उड़तय वफ़रतय।
पयठ 10: बोलती इमयरतें
at

हयथ-महुाँ धोने के वलये हम तैरते बल ु बल


ु ों को
 गोलकोंडय वकले की बयहरी दीवयर में 87 बज ु ा हैं। ये पकड़कर कपड़य गीलय करते और हयथ-महुाँ
बज
ु ा दीवयर से ज्ययदय ऊाँिे हैं। सयफ़ करते।
 कुतुबशयही सल ु तयनों ने सन 1518 से 1687 तक  वहयाँ खयनय भी अलग तरीके से खयनय पड़तय
Pr

गोलकोंडय वकले पर एक के बयद एक रयज वकयय। थय। सबसे ज्ययदय मजय तब आतय थय, जब
उससे भी पहले सन 1200 में यह वकलय वमट्टी कय हम सभी उड़ते हुए खयने वयले कमरे में जयते
बनय थय और यहयाँ दूसरे रयजयओिं कय रयज थय। और उड़ते हुए खयने के पैकेिों को पकड़ते।
 औरिंगजेब ने गोलकोंडय वज़ले पर तोप के सयथ  अिंतररक्ष में मझ ु े किं घी करने की जरुरत ही
आरमण वकयय थय। उसकी पूरी फ़ौज बिंदक ू ों और नहीं पड़ती थी। बयल हमेशय खड़े रहते थे।
तोपों के सयथ यहयाँ हमलय करने आई थी पर वह

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 िल नय पयनय, हए समय तैरते रहनय और हर  पेिोल और डीज़ल अपने आप बनतय रहतय है पर


कयम अलग तरीके से करनय- यह सब करने धीरे-धीरे। ये वकसी मनरु य यय मशीन द्वयरय नहीं
की आदत डयलनय आसयन नहीं थय। बनययय जय सकतय। पर वजतनी तेज़ी से हम तेल
 एक जगह विककर कयम करनय हो तो अपने वनकयलते हैं यह उतनी तेज़ी से नहीं बनतय। इसके
आप को बेल्ि से बयाँधो। कयगज को भी ऐसे बनने में लयखों-लयख सयल लग जयते हैं।
नहीं छोड़ सकते, उसे भी दीवयर के सयथ  यह हर जगह नहीं वमलतय बवल्क कुछ ही जगहों
बयाँधकर रखो। अिंतररक्ष में रहनय बहुत ही पर वमलतय है।

ik
मज़ेदयर थय लेवकन मवु श्कल भी।  यह पतय लगयनय आसयन नहीं है वक जमीन के
 प्ृ वी पर जब हम कुछ भी ऊपर की तरफ़ अिंदर गहरयई में तेल कहयाँ मौजूद है। वैझयवनक
उछयलते हैं तो वह वयपस नीिे आ जयतय है। जब खयस तरीकों और मशीनों से यह समझते हैं और

al
हम एक बयाँल ऊपर हवय में उछयलते हैं, वह नीिे अिंदयजय लगयते हैं वफ़र गहरयई तक पयईप और
वयपस आ जयती है और हम उसे पकड़ पयते हैं। मशींने डयलकर तेल ऊपर खींिय जयतय है। यह
प्ृ वी पर हम तैरते नहीं रहते। जब हम एक तेल गहरे रिंग कय गयढ़य और बदबूदयर होतय है।

iv
वगलयस यय बयल्िी में पयनी भरकर रखते हैं, तो इसमें बहुत सी िीजें घल ु ी-वमली होती हैं।
पयनी वहीं विकय रहतय है, वह बल ु बलु े बनकर नहीं  इसे सयफ़ और अलग-अलग करने के वलये
घूमतय। यह कमयल प्ृ वी कय ही है। प्ृ वी हर िीज़ ररफ़यइनरी में भेजय जयतय है। इसी तेल से हमें


को अपनी तरफ़ खींिकर रखती है।
जब सनु ीतय अिंतररक्ष से प्ृ वी को देखती है तो
Sh के रोवसन, डीज़ल,पेिोल, इिंजन आाँयल और हवयई
जहयज के वलये ई िंधन वमलतय है। एल.पी.जी
उन्हें प्ृ वी बहुत ही सिंदु र वदखती है। उनके वदमयग (खयनय पकयने की गैस) , मोम, कोलतयर और ग्रीस
में बहुत से ववियर आते हैं। वो कहती हैं,"इतनी दूर भी इसी से वमलते हैं। प्लयवस्िक और पैंि को
से बस इतनय वदखतय है वक प्ृ वी पर समिु और बनयने के वलये भी तेल क इस्तेमयल होतय है।
ज़मीन कहयाँ है। अलग-अलग देश नहीं वदखते।  सी.एन.जी से धआ ुाँ कम होतय है।
ज़मीन कय देशों में बाँिवयरय तो हमने ही वकयय है।
k

मयनवित्र पर सभी लयईनें भी हमयरे द्वयरय बनयई गई  आज हमयरे देश के लगभग 2/3 (दो-वतहयई) लोग
हैं। अिंतररक्ष ययन में सनु ीतय को प्ृ वी के वखिंियव उपले, लकड़ी,सूखी िहवनययाँ आवद कय इस्तेमयल
ee

बल कय आभयस नहीं हुआ क्योंवक अिंतररक्षययन करते हैं। इनकय इस्तेमयल ये के वल खयनय पकयने
प्ृ वी कय परररमण कर रहय थय। के वलये नहीं करते बवल्क आग सेंकने, पयनी गरम
करने और रोशनी के वलये भी करते हैं। घर के
 सन 1969 में, नील आमा स्ियाँग ियाँद पर उतरने अलग-अलग कयमों के वलये कई और िीजों कय
वयले पहले व्यवक्त थे। भी इस्तेमयल होतय है जैसे के रोवसन, एल.पी.जी,
at

 तयरे अकसर विमविमयते हैं। कोयलय, वबजली आवद। सीली हुई लकवड़ययाँ
 उपग्रह :- ऐसी िमकती िीज़ जो तेज गवत से जलयने पर बहुत धआ ुाँ वनकलतय है।
आसमयन में िलती हुई वदखयई देती है।
Pr

 उलकय वपिंड :- िूितय तयरय(उलकय वपिंड) वह होतय पयठ13: बसेरय ऊाँियई पर


है जो प्ृ वी के वययमु िंडल में आते ही जल जयतय  मम्ु बई-वदल्ली से सड़क के रयस्ते से 1400
है। वकलोमीिर दूर है।
 लद्दयख में बहुत ही कम बयररश होती है। यहयाँ दूर-
पयठ 12: खत्म हो जयए तो...? दूर तक बफ़ा से ढ़के पहयड़ और सूखय ठिंडय मैदयन
 अडयलज की बयवड़ी अहमयदयबयद से लगभग 18 है।
वकलोमीिर दूर है।  लेह भयषय में "जूले" कय अथा "स्वयगत" है।

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 लेह और लद्दयख में छत घर कय सबसे महत्वपूणा  इनके िेंि बड़े वतकोने आकयर के होते हैं। ये अपने
वहस्सय होतय है। सभी घरों की छतें सम्तल होती िेंि को "रेबो" कहते हैं। ययक के बयलों से बनु यई
हैं। छतों को मजबूत बनयने के वलये लकड़ी के मोिे करके ियिंगपय परट्टययाँ बनयते हैं, वजन्हें वसलकर
तने इस्तेमयल वकए गए हैं। जोड़ लेते हैं। ये मजबूत और गमा होती हैं जो
 गवमा यों में लेह और लद्दयख के लोग बहुत से फ़ल बफ़ीली तेज हवयओिं से बियती है। िेंि लगयने से
और सवब्जययाँ सख ु य लेते हैं और इन्हें ठिंडे वदनों में पहले जमीन में दो फ़ुि गहरय गढ् डय खोदय जयतय है
तब इस्तेमयल करते हैं जब फ़ल सब्जी नहीं वमल वफ़र गढ़्डे के आस-पयस की ऊाँिी जमीन पर िेंि

ik
पयती। लगयते हैं। "रेबो" फ़्लैि के कमरे वजतनय बड़य होतय
है। यह लकड़ी के बड़े डिंडो के सहयरे बीि में खड़य
 लद्दयख में ियिंगथयिंग लगभग 5000 मीिर की
होतय है। "रेबो" के बीिों बीि एक खल ु य छे द होतय
ऊाँियई पर बनय है। ये इतनय ऊाँिय है वक सयमयन्य

al
है, जहयाँ से िूल्हों कय धआ
ु ाँ बयहर जयतय है। इस िेंि
रूप से सयाँस लेनय भी मवु श्कल हो जयतय है। तुम्हें
कय वडजयईन एक हजयर सयल से भी परु यनय है।
इससे वसरददा और कमजोरी महसूस होगी। यहयाँ
इससे िेंि में रहने वयले ियिंगपय ठिं ड से बिे रहते हैं।
दूर-दूर तक कोई भी वदखयई नहीं पड़तय। बस
 पहयड़ों पर ऊाँियई पर जयने से हवय में आाँक्सीजन

iv
सयफ़ नीलय आसमयन और पहयड़ों के बीि बहुत से
तयलयब वदखयई देते हैं। यहयाँ सवदा यों में तयपमयन 0 की मयत्रय कम हो जयती है और कई बयर लोगों को
सेंिीग्रेड से भी बहुत कम हो जयतय है और हवय 70 आाँक्सीजन वसवलिंडर भी ले जयने पड़ते हैं।
वक.मी प्रवत घिंिे की रफ़्तयर से बहती है।
 ियिंगपय एक जयवत है जो लद्दयख के पहयड़ों पर
Sh  पशमीनय शयल :- मयनय जयतय है वक एक पशमीनय
शयल में छः स्वेिरों के बरयबर गमी होती है। ये
रहती है। इस जनजयवत में के वल 5000 लोग हैं। बहुत पतली होती है वफ़र भी बहुत गमा होती है। वो
ियिंगपय के लोग हमेशय अपनी भेड़-बकररयों के झिंडु बकररययाँ वजनसे पशमीनय वमलतय है, लगभग
के सयथ घूमते-रहते हैं। इनहीं जयनवरों से इन्हें 5000 मीिर की ऊाँियई पर पयई जयती हैं। यहयाँ
अपनी जरूरत कय सयमयन वमलतय है जैसे- दूध, सवदा यों में तयपमयन 0 सेंिीग्रेड से भी बहुत कम (-
40 वडग्री सेंिीग्रेड तक) िलय जयतय है। इतनी सदी
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मयाँस, िेंि के वलए िमड़य, स्वेिर और कोि के
वलये ऊन आवद। भेड़-बकररययाँ ही इनकी सबसे से बिने के वलए बकररयों के शरीर पर बहुत ही
बड़ी पूज ाँ ी है। वजतनी ज्ययदय भेड़-बकररययाँ होती बयरीक और नरम बयल उग आते हैं, जो गवमा यों में
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थी, पररवयर कय स्तर उतनय ही ऊाँिय समझय झड़ जयते हैं। ये बयल बहुत पतले होते हैं, इतने
जयतय थय। पतले वक बकरी के छः बयल वमलयकर तम्ु हयरे वसर
के एक बयल की मोियई के बरयबर होंगे। इसवलये
 ियिंगपय खयस तरह की बकररययाँ पयलते हैं। इन्हीं
पशमीनय शयलों को मशीनों द्वयरय नहीं बनु य जय
जयनवरों से उन्हें दवु नयय की मशहूर पशमीनय ऊन
सकतय। इनकी बनु यई हयथों से करने के वलये खयस
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वमलती है। ियिंगपय के लोग भेड़ों को ठिंडी और


बनु कर होते हैं। ये एक लिंबय और कवठन कयम है।
ऊाँिी जगहों पर िरयते हैं तयवक बकररयों के बयल
अगर एक बनु कर 250 घिंिे बनु यई करे, तब जयकर
ज्ययदय और नरम रहें। ियिंगपय इतने मवु श्कल
एक सयधयरण पशमीनय शयल तैययर होती है।
हयलयत में भी इतनी ऊाँियई पर रहते हैं क्योंवक
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यही वह जगह है जहयाँ यह बकररययाँ रह सकती हैं।  "लेखय" एक ऐसी जगह है जहयाँ भेड़ और बकररयों
को रखय जयतय है। लेखय की दीवयरें पत्थरों से
 ियिंगपय के लोग अपनय सयरय सयमयन घोड़ों और
बनती हैं। हर पररवयर अपने जयनवरों के झिंडु पर
ययक पर लयदकर घूमते हैं। जब इन्हें आगे बढ़्नय
पहियन के वलये खयस वनशयन बनयतय है।
हो तो ये वसफ़ा ढ़यई घिंिे में अपनय डेरय समेिकर
वनकल पड़ते हैं। इन्हें जहयाँ भी ठहरनय हो वहयाँ कुछ  कश्मीर की हर गली मे बेकरी वदखती है। कश्मीरी
ही देर में ये अपनय िेंि गयड़ लेते हैं। सयमयन लोग खयने के वलए रोिी घर में नहीं बनयते बवल्क
वनकयलते हैं और इनकय घर तैययर हो जयतय है इन्हीं बेकरी से खरीदते हैं।

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 क्षीनगर मे िूररस्ि लोग ’हयउसबोि’ में रहनय  सयबरमती आश्रम गज ु रयत में है
पसन्द करते हैं। हयउसबोि 80 फुि तक लम्बे  वधया और गोरेगयाँव महयरयरि में है।
होते हैं और बीि से इनकी िौड़यई आठ-नौ फुि
 नयगपयड़य मम्ु बई में है।
तक होती है।
 ववक्िोररयय िवमा नल रेलवे स्िेशन भी मम्ु बई में है।
 "हयउसबोि" और कई बड़े घरो की अदिंर की छत
पर लकड़ी की सन्ु दर नक्कयशी होती है। इनमें एक  नीम की पवत्तयों कय प्रयोग कीड़ों से बिने के वलये
खयस वडज़यइन "खतमबिंद" है, जो "वजग्सयाँ-पज़ल" वकयय जयतय है।

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जैसय वदखतय है।
पयठ19: वकसयनों की कहयनी बीज की जबु यनी
 श्रीनगर के बहुत से पररवयर "डोंगय’ में रहते हैं। डल
झील और झेलम नदी में इस तरह के डोंगे देखे जय  वयनगयम गज ु रयत में है। यह इलयकय अपने अनयज

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सकते हैं। मकयन की तरह डोंगे में भी अलग-अलग और सयग-सब्जी के वलये मशहूर है। जब फ़सल
कमरे होते हैं। तैययर हो जयती है और इसे कयि वलयय जयतय है
तब सभी वमलकर त्योहयर मनयते हैं। बड़ी-बड़ी
 कश्मीर के गयाँवो में, पत्थरों को कयिकर एक के

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दयवतें होती हैं, वजस्में खयने के वलये बहुत सयरे
ऊपर एक रखकर घर बनयए जयते हैं और पत्थरों
व्यिंजन होते हैं। सवदा यों में सब "उाँधीयू"ाँ (एक प्रकयर
के ऊपर वमट्टी की पतु यई की जयती है। लकड़ी कय
की पकी हुई सब्जी) कय आनिंद लेते हैं।
भी इस्तेमयल वकयय जयतय है। इन घरों की छत
 दयवत के वलये, सवब्जयों को तयजे मसयलों के सयथ
ढ़्लवयाँ होती है।
Sh वमट्टी के घड़ों में रख देते थे वफ़र मिके को
 कश्मीर के कुछ परु यने घरों में एक खयस प्रकयर की
सीलबिंद कर देते और उसे कोयले के अिंगयरों पर
वखड़की होती है जो बयहर जी ओर उभरी होती है।
रख वदयय जयतय थय। इन खयस तरह के मिकों में
इन्हें "डब" कहते हैं, इन पर लकड़ी कय सिंदु र
सवब्जययाँ धीरे-धीरे पकती रहती थी। मिके को
वडज़यइन होतय है। इनमें बैठकर बयहर कय नजयरय
उलिय रखय जयतय थय। इसवलये इस पकी हुई
बवढ़यय वदखतय है।
सब्जी को गज ु रती में "उाँधीयू"ाँ यय "उलिय" कहय
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 यहयाँ पर परु यने घर पत्थर, ईिोंिं और लकड़ी से बने जयतय है। "उाँधीयू"ाँ को वमट्टी के िूल्हे में पकी
हुए हैं घर के दरवयजों, वखड़्वकयों पर वडज़यइनदयर बयजरे की रोवियों के सयथ खययय जयतय है। यह
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ियप (मेहरयब) होते हैं। बहुत ही स्वयवदष्ट होतय है। इसके सयथ घर कय बनय
 कश्मीर में कुछ घर पत्थर और वमट्टी से बनते हैं। हुआ मक्खन, दही और छयछ भी दी जयती है।
पर सवदा यों में इन घरों में कोई नहीं रहतय। गवमा यों  सरकयरी आाँकड़ों के अनस ु यर सन 1997 से
में बकरवयल लोग यहयाँ रहने आते हैं, जब वे 2005 तक आाँध्र प्रदेश में 1,50,000 वकसयन
बकररयों को िरयने के वलये पहयड़ों की ऊाँियईयों
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कजा न िक ु यने के कयरण मर गए।


पर ले जयते हैं।
पयठ 20: वकसके जिंगल
पयठ 14: जब धरती कयाँपी
 झयरखिंड की "कुडुक" भयषय में जिंगल को तोरयिंग
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 "कच्छ" गज ु रयत में है। कहते हैं।


 26 जनवरी 2001 को गज ु रयत में भयरी भूकिंप  जिंगल अवधकयर कयनून 2007 :- इसके अनस ु यर
आयय थय। इस भूकिंप में बहुत से लोग मरे और जो लोग कम से कम 25 सयलों से जिंगल में रह रहे
जख्मी हुए। हैं, उनकय उस जिंगल की भूवम और उस पर उगयई
 डयाँक्िर हमयरी धड़कनें सनु ने के वलये स्िेथोस्कोप जयने वयली फ़सल पर अवधकयर है। उन्हें जिंगल से
कय इस्तेमयल करते हैं। हिययय नय जयए। जिंगल बियने कय कयम भी उनकी
ग्रयम सभय द्वयरय वकयय जयए।

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 वमज़ोरम में लगभग तीन िौथयई लोग जिंगलों से होकर डिंवडयों के अिंदर और बयहर कूदते हैं और
जड़ु े हैं। यहयाँ मवु श्कल जीवन जीते हुए भी लगभग तयल पर नयिते हैं।
सभी बच्िे स्कूल जयते हैं।  पूरनपोली ऐसी मीठी रोविययाँ हैं जो गड़ु और आिे
 झूम खेती :- वमज़ोरम और उत्तर-पूवी की झूम से बनयई जयती है।
खेती बहुत ही रूविकर प्रकयर की खेती है। एक  ऐसे दलयल जो पैसे उधयर देते हैं उन्हें मकु दयम
फ़सल कयिने के बयद ज़मीन को कुछ सयल तक कहते हैं।
छोड़ वदयय जयतय है। उसमें खेती नहीं की जयती।

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इस जगह जो बयाँस यय जिंगल उग जयतय है उसे पयठ 21: वकसकी झलक, वकसकी छयप
उखयड़तय नहीं। इन्हें बस कयिय और जलययय जयतय  ग्रगोर मेंडल कय जन्म सन 1822 में आस्िेवलयय में
है। यह रयख ज़मीन में खयद कय कयम करती है। एक गरीब वकसयन पररवयर में हुआ। उन्हें पढ़यई कय

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ज़मीन को जलयते हुए आस-पयस के पेड़ और बहुत शौक थय पर यूवनववसा िी की पढ़यई के वलये
जिंगलों को नक ु सयन न पहुिाँ े इसकय ध्ययन रखनय पैसे नहीं थे। इसवलये उन्होनें एक मठ में रहकर
पड़तय है।वफ़र जब ज़मीन खेती के वलए तैययर हो "मिंक"(मवु न) बनने कय सोिय। पर उन्होनें प्रयोग

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जयती है तो ज़मीन को हल्के से खोदय जयतय है, करनय नहीं छोड़य। सयत सयल तक मठ के बगीिे में
इसे जोतय नहीं जयतय। इस पर बीज वछड़के जयते 28,000 पौधों पर बयरीकी से कई प्रयोग वकए।
हैं। एक ही खेत में अलग-अलग तरह के बीज जैसे उन्होनें खूब मेहनत की और ढ़ेरों आाँकड़े इकट्ठय
मकई, सवब्जययाँ, वमिा और ियवल बोए जयते हैं।
 फ़सल के समय अनियही घयस और पौधों को
Sh वकए और एक नई बयत खोज़ वनकयली।
 उन्होनें पययय की मिर के पौधों में कुछ ऐसे गणु
उखयड़ते नहीं, उन्हें कयि कर वगरय वदयय जयतय है होते हैं जो जोवड़यों में आते है, जैसे बीज कय
तयवक वह ज़मीन की वमट्टी में वमल जयएाँ। इससे भी विकनय यय खुरदरु य होनय। पीलय यय हरय होनय और
ज़मीन उपजयऊ बनती है। अगर वकसी पररवयर में पौधे के तने कय लिंबय यय नयिय होनय। इनकय वमलय
वकसी कयरण खेती कय कयम वपछड़ जयतय है तो जलु य नहीं होतय।
दूसरे लोग उसकी मदद करते हैं और उन्हें खयनय
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 ऐसे पौधे वजनके बीज खरु दरे यय विकने होते हैं,
देते हैं।
उनकी अगली पीढ़ी(बच्िे) के पौधों में भी बीज़ यय
 यहयाँ की मख्ु य फ़सल ियवल है। इसे कयिने के
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तो खरु दरु े यय विकने ही होते हैं। ऐसय नहीं होतय है


बयद इसे घेर पे ले जयनय एक मवु श्कल कयम है। यहयाँ वक एक बीज़ थोड़य विकनय और थोड़य खरु दरय हो
सड़के नहीं हैं के वल ऊाँिे-नीिे पहयड़ हैं। लोगों को जयए। उन्होनें "रिंग" के सयथ भी ऐसय ही पययय। ऐसे
फ़सल को अपनी पीठ पर लयदनय पड़तय है और बीज़ जो यय तो हरे यय पीले होते हैं उनकी अगली
इस कयम में कई हफ़्ते लग जयते हैं। कयम खत्म हो पीढ़ी के बीज़ भी यय तो हरे होंगे यय पीले।
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जयने पर पूरय गयाँव खुवशययाँ मनयतय है। लोग एक


 अगली पीढ़ी के बीज़ हरे और पीले रिंग के बीज़ों के
सयथ वमलकर खयनय पकयते, खयते, गयते और
वमश्रण से बने नहीं होंगे। मेंडल ने यह भी बतययय
नयिते हैं और अपनय खयस तरीके कय नत्ृ य
वक मिर की अगली पीढी के पौधों में ज्ययदय पीले
"िेरयओ" करते हैं। इस नयि में ज़मीन पर बयाँस की
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बीज़ वयले ही होंगे। इसी तरह उन्होनें बतययय वक


डिंडी लेकर दो-दो लोगों की जोड़ी आमने-सयमने
अगली पीढी में विकने बीज़ ज्ययदय होंगे।
बैठती है। ढोल की तयल पर डिंवडयों को ज़मीन पर
पीिते हैं। डिंवडयों के बीि लोग एक कतयर मे खड़े

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