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बचपन
बचपन
बचपन
-कृष्णा सोबती
विधा- सं स्म रण
रचनाएँ - वजिंदगीनामा, वमत्रिं मरजानी, तीन प ाड़, डार से वबछड़ी, बादलरिं के घेरे।
पाठ का सार
‘बचपन’ संस्मरण की लेखिका कृष्णा सरबती हैं । इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की कई मनमोहक घटनाओं
के बारे में उल्लेि वकया है। लेखिका का बचपन कई मायने में आज के बच्ों के बचपन के जैसा ही था तो कई मायने
में अलग भी था।
लेखिका का जन्म वपछली शताब्दी में हुआ था। इनकी उम्र दादी या नानी की होगी। पररिार में सबसे बडी होने के
कारण सभी लोग इन्हें ‘जीजी’ कहकर बुलाते हैं । लेखिका स्वयं को उम्र में सयाना महसूस करती है । िह अपने
बचपन के बारे में कहती है वक तब से लेकर अब तक उनके पहनािे में काफ़ी बदलाि आया है। बचपन में िह गहरे
रं ग के कपडे पहनती थी, जैसे- नीला, जामुनी, ग्रे, काला और चॉकलेटी। अब हलके रं ग के कपडे पहनती है। पहले
फ्रॉक, वनकर-िॉकर, स्कटट , लहँगे, गरारे पहनती थी जबवक अब चूडीदार और घेरदार कुते पहनती हैं। बचपन के
कुछ फ्रॉक अभी भी उन्हें याद है , वजनमें वफ्रल लगे होते थे । उन्हें अपने मोज़े और स्टॉवकंग भी याद हैं । बचपन में
इतिार की सुबह उन्हें अपने मोज़े स्वयं धोने पडते थे और जूते पॉवलश भी करती थी। उन वदनों नए जूते पहनने पर
लेखिका के पैर में छाले पड जाते थे, वजससे बचने के वलए िह अपने साथ रुई रिती थी। हर शवनिार को सेहत ठीक
रिने के वलए घर के सभी बच्ों को ऑवलि ऑयल ि कैस्टर ऑयल पीना पडता था, जो इन्हें वबलकुल पसंद नहीं
था।
उनवदनों मनोरं जन के साधन सीवमत थे। कुछ घरों में ग्रामोफ़ोन थे, रे वियो और टे लीविजन नहीं थे। पहले और आज
के िानपान में भी अंतर आया है। अब कुल्फ़ी की जगहआइसक्रीम ने ले ली है । कचौडी-समोसा पैटीज़ में बदल गया
है। शहतूत, फाल्से और िसिस के शरबत की जगह कोक-पेप्सी ने ले ली है। लेखिका को हफ़्ते में एक बार चॉकलेट
िरीदने की छूट थी, वजसे िह रात के िाने के बाद वबस्तर पर िाया करती थी। उनवदनों लेखिका अपने भाई-बहनों
के साथ वशमला ररज पर भी बहुत मज़े वकया करती थीं। वशमला ररज पर शाम को रं ग-वबरं गे गुब्बारे दे िना, घोडों
की सिारी करना, जािू का पहाड और चचट की घंवटयों की गूँज उन्हें आज भी याद है। िहाँ गाडी िाले मॉिल की
दु कान के साथ एक और दु कान थी जहाँ लेखिका ने पहला चश्मा बनिाया था, जो उन्हें बख़ूबी याद है। वजसे लगाने
के बाद उनके चचेरे भाई अकसर उन्हें वचढ़ाया करते थे -
आँ ि पर चश्मा लगाया
तावक सूझे दू र की
यह नहीं लडकी को मालूम
सूरत बनी लंगूर की!
पाठाधाररत प्रश्नरत्तर
2. ‘‘तुम्हें बताऊँगी वक मारे समय और तुम्हारे समय में वकतनी दू री र चुकी ै ’’- इस बात के वलए लेखिका
क्या-क्या उदा रण दे ती ै ?
उत्तर- लेखिका के अनुसार उनके बचपन और आज के समय में काफ़ी दू री आई है, जो इस प्रकार है - उन वदनों
रे वियो और टे लीविजन की जगह ग्रामोफ़ोन था। बच्े उस समय कुल्फी िाना पसंद करते थे, आज उसकी जगह
आइसक्रीम ने ले ली है। कचौडी-समोसा की जगह पैटीज़ ने ले ली है । शहतूत, फाल्से, िसिस और नींबू के शरबत
पीने का प्रचलन कम हुआ है। इसकी जगह लोग कोक-पेप्सी पीने लगे हैं ।
3. पाठ से पता करके वलिर वक लेखिका कर चश्मा क्यरिं लगाना पड़ा? उनके चचेरे भाई ने चश्मा लगाने पर उन्हें
क्या क कर वचढ़ाते थे?
उत्तर- लेखिका वदन की रोशनी को छोडकर रात में टे बल लैंप के सामने काम करती थी, वजससे इनकी आँ ि की
रोशनी धीरे -धीरे कमज़ोर हो गई। िॉक्टर की सलाह पर इन्हें चश्मा लगाना पडा। इस बात के वलए िह स्वयं को
वजम्मेदार मानती थी। चश्मा लग जाने के उपरांत अकसर उनके चचेरे भाई उन्हें वचढ़ाया करते थे। िे कहते थे -
आँ ि पर चश्मा लगाया
तावक सूझे दू र की
यह नहीं लडकी को मालूम
सूरत बनी लंगूर की!
4. लेखिका अपने बचपन में कौन-कौन सी चीज़ें मजा ले-लेकर िाती थी िं? उनमें से कुछ प्रमुि फलरिं के नाम
वलिर।
उत्तर- लेखिका रात में सोते समय चॉकलेट मज़े से िाती थी। इसके अलािा उन्हें चेस्टनट, चनाज़ोर गरम और
अनारदाने का चूणट बहुत पसंद था। वशमला में पाए जाने िाले िट्टे -मीठे फल िाना इन्हें बहुत अच्छा लगता था, जैसे-
काफल, कसमल और रसभरी आवद ।
अवतररक्त प्रश्न
1. बढ़ती उम्र के साथ-साथ लेखिका के प नािे में वकस प्रकार के बदलाि आए?
उत्तर- बढ़ती उम्र के साथ-साथ लेखिका के पहनने-ओढ़ने में काफी बदलाि आए। बचपन में गहरे रं ग के कपडे
पहनती थी। वकंतु, बडी होने पर िह हलके रं ग के कपडे पहनने लगी। पहले फ्रॉक, वनकर-िॉकर, स्कटट , लहँ गे, गरारे
पहनना उन्हें अच्छा लगता था जबवक अब कुताट और चूडीदार।
3. लेखिका के बचपन में िाई ज ाज़ की आिाज़ें , घुड़सिारी, ग्रामरफ़रन और िररूम में विमला-कालका ट्र े न
का मॉडल ी आश्चयथजनक आधुवनक चीज़ें थी िं। आज तुम्हें आश्चयथजनक आधुवनक कौन-कौन सी चीज़ें
आकवषथत करती ैं?
उत्तर- आज हमें वनम्नवलखित चीज़ें आकवर्टत करती हैं -
िाई-फाई और इिं ट्रनेट् सेिा किंप्यूट्र
लैपट्ॉप मरबाइल
वपछली सदी में तेज रफ़्तारिाली गाडी िही थी। कभी-कभी हिाई जहाज़ भी दे िने को वमलते! वदल्ली में जब भी
उनकी आिाज़ आती, बच्े उन्हें दे िने बाहर दौडते। दीिता एक भारी-भरकम पक्षी उडा जा रहा है पंि फैलाकर।
यह दे िो और िह गायब! उसकी स्पीि ही इतनी ते ज़ लगती। हाँ, गाडी के मॉिलिाली दु कान के साथ एक और
ऐसी दु कान थी जो मुझे कभी नहीं भूलती। जहाँ मेरा पहला चश्मा बना था। िहाँ आँ िों के िॉक्टर अंग्रेज़ थे।
घ. िाई ज ाज़ उड़ते हुए कैसा दीिता था और उसकी िास बात क्या थी?
उ० उडता हुआ जहाज़ एक भारी-भरकम पक्षी की तरह दीिता था। उसकी िास बात यह थी वक िह पलभर
में गायब हो जाता था। उसकी रफ़्तार बहुत तेज़ थी।
ड. गाड़ी के मॉडलिाली दु कान के पास कौन-सी दु कान थी, वजसे ि कभी न ी िं भूल पाई?
उ० गाडी के मॉिलिाली दु कान के पास एक चश्मे की दु कान थी। जहाँ लेखिका का पहला चश्मा बना था, वजसे
िह कभी नहीं भूल पाई।
भाषा की बात
1. भाििाचक सिंज्ञा बनाइए-