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न्यायालय: जिला न्यायाधीश, उदयपुर (राज.

पीठासीन अधिकारी चंचल मिश्रा,

सिविल मूल प्रकरण संख्या : 487 सन्‌ 2022 (0..5.५०. 87/2022)


(पार १९०. पाए 00-00526-2022

।. ... हीरालाल पुत्र स्वर्गीय बसंतीलाल बया, जाति जैन, उम्र 48 वर्ष, निवासी
महावीर कॉलोनी, गाँव नाई, तहसील गिर्वा, जिला उदयपुर (राज.) |

2. ... श्रीमती गणेशी बाई पत्नी कन्हैयालाल जाति जैन, आयु 46 वर्ष, निवासी
आवरी माता कच्ची बस्ती, रेती स्टेण्ड, तहसील गिर्वा,जिला उदयपुर (राज.) |

--पवादीगण

विरूद्द

...... पन्‍नालाल पुत्र रामलाल जाति चौधरी कलाल, आयु 54 वर्ष, निवासी 428,
खटीकों का मोहल्ला, गाँव नाई, तहसील गिर्वा, जिला उदयपुर (राज.) |

2. ... नारायण लाल पुत्र स्वर्गीय बसंतीलाल बया, जाति जैन, आयु 54 वर्ष,
निवासी महावीर कॉलोनी, गाँव नाई, तहसील गिर्वा, जिला उदयपुर (राज.) |

--प्रतिवादीगण

प्रार्थना पत्र अंतर्गत आदेश 7 नियम 44 (ए) व (डी) सि.प्र.सं.

उपस्थिति :-

. श्री घनश्याम आमेटा, अधिवक्ता, वादीगण की ओर से।

2. श्री सुशील कोठारी, अधिवक्ता प्रतिवादी संख्या 4 की ओर से।


3. श्री शुरवीर सिंह, अधिवक्ता, प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से।

आदेश
दिनांक :-6.02.2023
. ... प्रतिवादी संख्या । पन्‍नालाल द्वारा एक प्रार्थना पत्र अन्तर्गत आदेश 7 नियम

44 (ए) व (डी) सिविल प्रकिया संहिता का प्रस्तुत कर वादीगण का वाद निरस्त

करने का अनुतोष चाहा है | प्रार्थना पत्र में अंकित तथ्यों को दोहराते हुए प्रतिवादी

संख्या के अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किए है कि वादीगण द्वारा अपना वादपत्र

निरस्ती विकय पत्र दिनांक १ 2.04.2022 माननीय न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है।

उक्त विकय पत्र प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा प्रतिवादी संख्या 4 के पक्ष में निष्पादित

किया गया है। वादीगण इस दस्तावेज में के ता अथवा विके ता नहीं है। वादीगण ने

अपने वाद का मुख्य आधार यह बताया है कि प्रतिवादी संख्या 4 ने प्रतिवादी संख्या


(2)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

को

2 को धोखे में रखकर एवं टॉवर वाली भूमि का दुगुना किराया देने का कहकर

विकय

विकय विलेख अपने हक में निष्पादित करवा उसका पंजीयन करवा लिया। इस

संबंध में वादीगण के अभिवचन वादपत्र के पैरा संख्या 7 व ४ में किए गए है।

विलेख

प्रतिवादी संख्या 4 के पक्ष में निष्पादित विकय विलेख दिनांक 2.04.2022 को

निरस्त कराने का मुख्य आधार धारा 44 संविदा अधिनियम का बताया गया है

एवं यह कथन किए गए है कि प्रतिवादी संख्या 2 विकृ त्तचित होकर संविदा करने के
लिए सक्षम नहीं है। इस बाबत अभिवचन वादपत्र के पैरा संख्या 4 में किए गए है।
)2 प्रतिवादी संख्या । के विद्वान अधिवक्ता ने यह तर्क प्रस्तुत किए है कि

वादीगण को वादपत्र में अंकित आधारों पर वाद लाने का कोई अधिकार नहीं है।

उन्हें कोई वाद हेतुक उत्पन्न नहीं होता है। वादपत्र में अंकित तथ्यों के आधार पर

दस्तावेज निरस्ती का वाद, दस्तावेज के पक्षकार ही ला सकते है, न की तृतीय

पक्षकार। वादीगण के वादपत्र में अंकित तथ्यों के अनुसार प्रतिवादी संख्या 2

विकृ त्तचित व्यक्ति है, ऐसी स्थिति में दस्तावेज निरस्ती का वाद दस्तावेज का

निष्पादक जरिए संरक्षक या वादमित्र प्रस्तुत कर सकता है, किसी तृतीय व्यक्ति को

इस संबंध में वाद लाने का अधिकार नहीं है। वादीगण द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 को

सामान्य बुद्धि का मानते हुए, प्रस्तुत वाद में उसे बतौर पक्षकार प्रतिवादी संख्या 2
बनाया है |

)3. विद्वान अधिवक्ता प्रतिवादी संख्या 4 द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किए गए है


कि संपूर्ण वाद में वादीगण का यह कथन नहीं रहा है कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा

वादीगण के खातेदारी भूमि का हस्तांतरण किया हो बल्कि यह स्पष्ट कथन है कि


प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा अपने संपूर्ण 4/3 हिस्से की भूमि को विकय नहीं कर

उसके एक भाग (रंग) का ही विकय किया है। वादीगण ने अपने वाद में
स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि प्रतिवादी सं. 2 द्वारा अपने हिस्से की कृ षि भूमि

का हस्तांतरण किया गया है। धारा 44 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम किसी भी

सह-खातेदार को अपने हिस्से की भूमि विकय करने हेतु अधिकृ त करती है। इस

बाबत्‌ अन्य सह-खातेदार की अनुमति आवश्यक नहीं है। वादीगण द्वारा प्रस्तुत वाद

में विकय विलेख दिनांक 2.04.2022 के आधार पर प्रतिवादी संख्या 4 के नाम पर

किए गए नामांतरकरण को निरस्त कराने का भी अनुतोष चाहा गया है। जिसके


संबंध में वादपत्र के पैरा संख्या 44 में अभिवचन किए गए है। नामांतरकरण के

विरूद्ध अपील राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 75 व 76 के तहत प्रथम

अपील व द्वितीय अपील के रूप में होती है। राजस्थान भू राजस्व अधिनियम की
(3)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

धारा 259 से सिविल न्यायालय की अधिकारिता बाधित है। अंत में उनके द्वारा तर्क

प्रस्तुत किए गए कि वादीगण को हस्तगत वाद प्रस्तुत करने का कोई वादकारण

प्राप्त नहीं है। उनके द्वारा यह भी निवेदन किया गया है कि वादीगण का वाद

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम व राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम के अनुसार

बाधित होने से वादीगण का वादपत्र निरस्त किए जाने योग्य है।

2... वादीगण की ओर से प्रार्थना पत्र का जवाब प्रस्तुत कर उसमें अंकित

अभिवचन को दोहराते हुए तर्क प्रस्तुत किए है कि वादग्रस्त भूमि अविभाजित कृ षि

भूमि होने से उसके प्रत्येक इंच पर, उसके प्रत्येक सह-खातेदार का हक, हित व

अधिकार होता है। प्रतिवादी संख्या 2 अविकसित मस्तिष्क का है अथवा नहीं, यह

दौराने वाद दीवानी प्रकिया संहिता के आदेश 32 नियम 42 के अंतर्गत न्यायालय


को देखने का अधिकार है। न्यायालय इस बारे में जांच कर सकता है। प्रतिवादी
संख्या । को इस संबंध में आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं है। उनके द्वारा
प्रार्थना पत्र की चरण संख्या 6 में वर्णित तथ्यों को दोहराते हुए यह तर्क भी प्रस्तुत
किया गया है कि कृ षि भूमि का सह खातेदार अविभाजित कृ षि भूमि का अपना पूरा

हिस्सा तो विकय कर सकता है, परन्तु अविभाजित कृ षि भूमि में से अपने हिस्से का

भाग (000 विधि अनुसार विकय नहीं कर सकता है, ऐसा विकय पत्र कानून की

निगाह में शून्य एवं निरस्तनीय है ।

2) विद्वान अधिवक्ता वादीगण का यह भी तर्क है कि कोई भी ऐसा बिन्दु जो

राजस्व न्यायालय द्वारा विचारणीय है, राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 4955 की

धारा 242 के अनुसार राजस्व न्यायालय को भेजा जा सकता है किन्तु इस आधार

पर वादपत्र निरस्त नहीं किया जा सकता है।

2)2 वादीगण के विद्वान अधिवक्ता ने विशेष उत्तर में अंकित अभिवचनों को


दोहराते हुए यह भी तर्क दिए है कि आदेश 7 नियम +44 सी.पी.सी. के प्रावधानों के
अंतर्गत कार्यवाही करने का अधिकार के वल मात्र न्यायालय को है, न्यायालय वाद
दर्ज करने से पहले मुंसरिम या रीडर की दावे पर की गई जांच रिपोर्ट को देखेगा
और उक्त रिपोर्ट से संतुष्ट होने पर ही न्यायालय वाद को दर्ज करने का आदेश

देता है। आदेश 7 नियम 44 सी.पी.सी. के प्रार्थना पत्र का निस्तारण के वल मात्र

वादीगण के वादपत्र को देखकर ही किया जा सकता है। ऐसे किसी भी तथ्य का

निर्धारण जो तथ्य एवं विधि का प्रश्न है, पक्षकारान की साक्ष्य के पश्चात ही किया

जा सकता है। प्रतिवादी संख्या 4 द्वारा वाद की कार्यवाही में विलम्ब करने के

उद्देश्य से दुर्भावनापूर्वक उक्त प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है। प्रतिवादी संख्या १
(व)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

अपने सारे उच्च जवाब दावे में ले सकता है। उनके द्वारा निवेदन किया गया कि

धारा 35-बी सिविल प्रकिया संहिता के अनुसार प्रतिवादी संख्या 4 का प्रार्थना पत्र

सर्च खारिज योग्य


मय . सार फरमाये जाने योग्य है।

3... प्रतिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्यायिक निर्णय -

लि

निंगौवा' से मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि ऐसी संविदा व संव्यहार जो

कपट के आधार पर किए गए है, शून्य नहीं है बल्कि वे के वल संविदा

के उस पक्षकार के विकल्प पर शून्यकरणीय है जिसके साथ कपट


किया गया है।
रामस्वरूप* से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि विधि की आवश्यकता

नहीं है कि एक सहस्वामी संपत्ति में अपने हित का अंतरण करते

समय अन्य सहस्वामी की सम्मति प्राप्त करे। सहस्वामी संपत्ति का

कोई विशेष हिस्सा संपत्ति के विभाजन के बिना अंतरित नहीं कर

सकता है। धारा 244 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम एक खातेदार

को अपने अन्य सहखातेदार की सम्मति के बिना संपत्ति में अपने

हिस्से के अन्तरण से नहीं रोकती है।

तेज बहादुर से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि यदि वादपत्र के

कथनों से वादी को ऐसा कोई वाद कारण प्राप्त नहीं है जिससे उसे

वाद करने का अधिकार प्राप्त हो वादी का वाद निरस्त किए जाने

योग्य है। अर्थात यदि वादी का वाद में कोई हित नहीं है या उसका

हित नहीं

वाद में पर्याप्त हित नहीं है तो उसे वाद प्रस्तुत करने का कोई
अधिकार नहीं है।
के . अकबर अली' से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि आदेश 7 नियम

44 सीपीसी के अनुसार वादपत्र को नांमगजूर किए जाने के लिए

वादपत्र के समग्र रूप से पठन की आवश्यकता होती है। वादपत्र की

चतुरता पूर्ण प्रारूपण से वाद कारण का श्रम पैदा करने की विधि

अनुज्ञा नहीं देती है। वाद करने का अधिकार वादपत्र में स्पष्टतया

दिखाया जाना चाहिए। न्यायालय के पास यह देखने के लिए


अंतर्निहित शक्ति है कि तुच्छ व तगं करने वाले वाद से न्यायालय

* फघाइ 8 नाफा8 8 छिन्ाघफ 08 उवतफू ए& साव०इपाफ 08ा, 2ार 968 (80) 956
2 [रघता 5000 ए 5 वघ्ाछण |977 पारा) 470
ै पुल ० 8800 ए 5 पं क्षलाता8 ि० 0ां, 2020 8 पूक़ालााल(50) 67;

* द. 2 क्ष 2 ए 8 द. एफ छा, 202 0 8 फ् ानाण७(50) 372;


4.

(5)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

का समय व्यर्थ नहीं हो।

विद्वान अधिवक्ता वादीगण की और से प्रस्तुत न्यायिक निर्णय-

।.... जगन सिंह" चैनराम भट्ट* से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि

जहां विकय पत्र शून्य है, वहां वाद का विचारण राजस्व न्यायालय के

द्वारा तथा जहां विकय पत्र शून्यकरणीय है, वहां वाद का विचारण

सिविल न्यायालय द्वारा किया जाएगा।


2 सांगानेर ऐग्रो ओर कोल्ड स्टोरेज से यह मार्गदर्शन प्राप्त
होता है कि वादपत्र को अकृ त व शून्य घोषित करने का वाद

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की तृतीय अनुसूची में नहीं आता है


तथा धारा 207 के अनुसार बाधित नहीं है।

3... परमल सिंह" से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि संयुक्त हिन्दु


परिवार की संपत्ति में विभाजन के बिना कोई भी सह स्वामी संपत्ति

का कोई विर्निदिष्ट हिस्सा विकय नहीं कर सकता है। उनके द्वारा

न्यायिक दृष्टांत विनिता शर्मा* प्रस्तुत कर भी यही तर्क दिया गया है

कि विभाजन के बिना सह स्वामी द्वारा संपत्ति का कोई विनिर्दिष्ट

हिस्सा विकय नहीं किया जा सकता है।

विश्वविद्यालय

4... मोहन लाल सुखाड़िया "" से यह मार्गदर्शन प्राप्त

होता है कि किसी परिसीमा से संबंघित विवादित प्रश्न का निस्तारण

दोनों पक्षों की साक्ष्य लेने के उपरांत किया जाना चाहिए उस पर

आदेश 7 नियम 4+4 सी.पी.सी. के प्रार्थना पत्र के निस्तारण के समय

विचार नहीं किया जाना चाहिए।

5... नाथूलाल"' प्रस्तुत कर तर्क दिया है कि न्यायालय को

क्षेत्राधिकार व वाद कारण प्रकट नहीं होने से संबंधित तथ्यों का

पक्षकारों के अभिवचनों के आधार पर प्रांरभिक बिन्दु बनाकर निस्तारण


करना चाहिए ।

6... रामू* से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि जहां एक

सहस्वामी द्वारा अपने हिस्से का अंतरण किसी अजनबी को किया

न दा अड्डा! ;४ (०७१४ .8 पर छा 973 ९८ 674


* (क्षंताकषाा 008 एड हा आधा 6 णड. 208 (3) पा. 2097 पर८ 7

7 इद्ाइुशाल' औट्टा० & 0 णठ डाणबघड् ू6 एएा. .06. 75 वाह 9 ०एां, 203 () छाया ए८ 2 358
१ एक् ााा8 उाड्टॉष पििणाड् ी पन.5 क् ार्त 05. 5 एड घफ़धाा धाएँं 0ाह. 2 तार 209 ।वा? 3]
9 चलल 8, डदाण# 8 ४६० 5) अकाणा8, 2020 2 र(80) 377

१०९ गा 7.8। प्रति घतीफए 8 एफ्ं पलडआडि 8 सिंज़र 8 3000 ध 0 तार 999 ८. 02

77 पिप 8 5 0 ०पांर्त 28 204 () छाचा पर 62

72 हरि80000 ए 8 पकाएा।धा 987 पारा) 330


5.

(6)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

जाता है वहां शेष सहस्वामियों को यह अधिकार है कि वे उस

को

अजनबी को संपत्ति पर कब्जे से रोक सकते है। उस अजनबी को

विभाजन का वाद लाना होगा।

7... लालाराम से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि संयुक्त हिन्दु

परिवार की संपत्ति में सहदायक के अशं के के ता को बेची गई संपत्ति


में कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते है और वह संपत्ति में किसी विशेष

हिस्से पर कब्जे का दावा नहीं कर सकता है। के ता को के वल

विके ता के अधिकार प्राप्त होते है तथा वह उसके स्थान पर आ जाता


है। वह अपने अधिकार के वल संपत्ति के विभाजन के द्वारा ही प्राप्त

कर सकता है, वह संपत्ति पर जबरन कब्जा प्राप्त नहीं कर सकता है

और अन्य सहदायक के ता के द्वारा संपत्ति पर कब्जे को रोकने के

लिए निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते है।

8 प्रहलाद'” से यह मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि विधि का यह

सुस्थापित सिद्धांत है कि धारा 53 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के

अनुसार विभाजन के बिना कोई विशेष खसरा नंबर या कोई विशेष

हिस्सा विकय नहीं किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अपने हिस्से

से अधिक भूमि का अंतरण नहीं कर सकता है।

9... गावरा देवी" प्रस्तुत कर यह तर्क दिया है कि विचारण

न्यायालय को यह निष्कर्ष देना होगा कि उसके समक्ष प्रस्तुत माननीय

उच्च न्यायालय का न्यायिक निर्णय क्यों लागू नहीं होता है।

आदेश 7 नियम 44 सिविल प्रकिया संहिता के प्रार्थना पत्र के निस्तारण के

लिए के वल वादपत्र के अभिवचन ही सुसंगत होते है।

6.

वादपत्र में अंकित अभिवचनों के अनुसार वादीगण व प्रतिवादी संख्या 2,

बसंतीलाल बया जिनका की स्वर्गवास दिनांक 49.05.202 को हो चुका है, की

संताने है। बसंतीलाल बया की कृ षि भूमि का विवरण वादपत्र की चरण संख्या 2 में

दिया गया है। वादीगण के अनुसार वादपत्र के चरण संख्या 2 में अंकित भूमि
अविभाजित है तथा वह वादीगण व प्रतिवादी संख्या 2 के नाम दर्ज है। वादीगण का

यह अभिवचन है कि प्रतिवादी संख्या 2 अविकसित मस्तिष्क का है, जिसे अपनी

लाभ हानि का पूरा ज्ञान नहीं है और वह बिना सोचे-समझे किसी की भी बात पर

१ [8 नातवाा घ 5 चिडप रि-व 590 6 ० 5. 2994 पारा) 97


१ 4 शिव ननिपं घ 5 टकाापाघिघा। .997 २९४] 345
7? छा एघए 8ा8 6 ०४ पड अधि 04 हरिभुभडधिा 200 () छाावप 404 हर.)
(र)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

विश्वास कर लेता है। वादीगण के पिता ने प्रतिवादी संख्या 2 की स्थिति को ध्यान

में रखते हुए उसके भोजन, चाय-पानी, कपड़े-लत्ते आदि की जिम्मेदारी वादी

संख्या 4 को दी थी। वादीगण के पिता के देहान्त के उपरांत प्रतिवादी संख्या 2 की

मानसिक स्थिति ज्यादा बिगड़ गई, उसने वादी संख्या 4 के घर आना जाना बंद

कर दिया, वह पागल टाईप रहने लगा, अपनी सुदबुध खो चुका है, यह बात

प्रतिवादी संख्या । सहित गाँव नाई के अन्य सभी लोगों को पता है। वादीगण

का यह अभिवचन है कि प्रतिवादी संख्या 4 ने षड्यंत्रपूर्वक बदनियति से प्रतिवादी


संख्या को बहलाफु सला कर प्रतिवादी संख्या 4 के हिस्से की /3 कृ षि भूमि
अपने नाम चढ़वा ली है। उनका अभिवचन है कि प्रतिवादी संख्या-', प्रतिवादी

संख्या 2 को बैंक खाता खुलवाने के नाम पर कोर्ट ले गया, वहां पर उसने प्रतिवादी

संख्या 2 के नाम स्टाम्प खरीदे, तत्पश्चात वह प्रतिवादी संख्या 2 को रजिस्ट्री

कार्यालय में ले गया, वहां पर उसने प्रतिवादी संख्या 2 को यह कहकर कि टॉवर

वाली भूमि का ठेका दूसरी कं पनी को दे रहे है, जिससे दुगुना किराया मिलेगा,

टाईपशुदा कागजों पर उसके हस्ताक्षर करवा लिए और अंगूठा लगवा लिया।

प्रतिवादी संख्या +, प्रतिवादी संख्या 2 को वादी संख्या 2 के घर के पास छोड़

गया। जहां पर प्रतिवादी संख्या 2 ने सारी बात वादी संख्या 2 को बतायी।

प्रतिवादी संख्या 4 ने वादपत्र के चरण संख्या 2 में अंकित आराजी नम्बर की कु ल


कृ षि भूमि 0.6400 हैक्टेयर में से /3 हिस्से की भूमि 0.2433 हैक्टेयर भूमि जो
22954 वर्गफीट होती है, उसमें से 0.2090 हैक्टेयर भूमि की रजिस्ट्री अपने नाम
करवा ली और के वल 0.043 हैक्टेयर भूमि ही प्रतिवादी संख्या 2 के हिस्से में शेष

रखी है, जिसमें रिलायन्स कं पनी का टॉवर लगा हुआ है एवं एक मकान बना हुआ

अविकसित मस्तिष्क

है। वादीगण का यह भी अभिवचन है कि प्रतिवादी संख्या 2 अविकसित मस्तिष्क

का है, इस कारण भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 4। के अनुसार उसके द्वारा

करायी गई रजिस्ट्री अवैध व शून्य है। उक्त रजिस्ट्री वादी संख्या 4 व 2 के हित

को प्रभावित करती है, इसलिए वादीगण संयुक्त रूप से उक्त विकय पत्र एवं

उसका पंजीयन दिनांक 2.04.2022 को निरस्त कराने हेतु यह वाद प्रस्तुत कर रहे

है। उनके यह भी अभिवचन है कि अविभाजित कृ षि भूमि का बंटवारा हुए बिना

प्रतिवादी संख्या 4 ने प्रतिवादी संख्या 2 से उसके हिस्से की कृ षि भूमि का पूरा

हिस्सा नहीं खरीद कर के वल मात्र उसके हिस्से की कृ षि भूमि का एक भाग


(रणएंण) ही खरीदा है, जो विधि द्वारा स्थापित प्रावधानों के विपरीत है। उनके यह
भी अभिवचन है कि उक्त विकय पत्र के आधार पर प्रतिवादी संख्या 4 भूमि का
(8)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

नामांतरकरण अपने नाम खुलवाना चाहता है। वादीगण द्वारा वादपत्र में निम्न

अनुतोष चाहा गया है- प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा प्रतिवादी संख्या 4 के पक्ष में

दिनांक १ 4.04.2022 को लिखा गया व 42.04.2022 को पंजीकृ त कराया गया विकय

विलेख निरस्त किया जाये व दिनांक 2.04.2022 के बाद और दौराने वाद यदि

प्रतिवादी संख्या 4 उक्त विकय विलेख के आधार पर अपने नाम विवादित कृ षि भूमि

का नामांतरण खुला लेता है तो उसे निरस्त किया जाए तथा प्रतिवादी संख्या । को

इस आशय की स्थायी निषेधाज्ञा से पाबंद किया जाये कि विवादित विकय विलेख

दिनांक 2.04.2022 में अंकित कृ षि भूमि को प्रतिवादी संख्या अन्य किसी व्यक्ति,

संस्था, फर्म अथवा कं पनी आदि को विकय नहीं करे, उसे गिरवी नहीं रखे और न
ही ठेके पर या किराये पर या सिजारे पर देवे तथा न ही विवादित कृ षि भूमि का

दौराने वाद हस्तांतरण करे और यदि दौराने वाद प्रतिवादी संख्या । उक्त कार्य कर

लेता है तो उसे निरस्त किया जाए।

7... न्यायालय को वादपत्र के अवलोकन से यह देखना है कि क्या वादी को

हस्तगत वाद प्रस्तुत करने के संबंध में वाद कारण प्राप्त है ? व क्‍या वादीगण का
वाद विधि द्वारा बाधित है ?
8... वाद कारण क्या है ? वाद कारण से तात्पर्य ऐसे कारण से जो किसी

कारवाई को जन्म देता है।

9... वादी को वाद करने का अधिकार तब उत्पन्न होता है जब किसी व्यक्ति

के ऐसे अधिकार का उल्लंघन होता है जिसका विधि में मान्यता प्राप्त उपचार है।

वाद करने का अधिकार का सामान्य अर्थ विधिक कार्यवाही के माध्यम से उपचार

प्राप्त करने का अधिकार है। यह तब प्राप्त होता है जब वाद करने का कारण

उत्पन्न हो अर्थात विधि अनुसार अनुतोष प्राप्त करने का अधिकार तब प्रारम्भ होता

है जब वाद में दावा किए गए अधिकार का उल्लंघन किया गया हो या प्रतिवादी के

द्वारा ऐसा उल्लंघन करने का स्पष्ट खतरा हो |

0. प्रश्नगत प्रकरण में वादीगण का यह स्पष्ट अभिवचन है कि प्रतिवादी संख्या

दो, अविकसित मस्तिष्क का है। उसे अपनी लाभ-हानि का पूरा ज्ञान नहीं है।

प्रतिवादी संख्या 4 ने प्रतिवादी संख्या 2 के भोलेपन एवं अविकसीत मस्तिष्क का

फायदा उठाकर उसके हिस्से की कृ षि भूमि 0.2090 है0 अर्थात 22488 वर्गफीट भूमि

की रजिस्ट्री उसको धोखे में रखकर प्रतिवादी संख्या 4 ने अपने नाम पर दिनांक
42.04.2022 को करा दी। वादीगण का यह अभिवचन है कि रजिस्ट्री भारतीय
संविदा अधिनियम की धारा 44 के अनुसार अवैध व शून्य है। उनके यह भी
(9)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

अभिवचन है कि अविभाजित कृ षि भूमि का बंटवारा हुए बिना प्रतिवादी संख्या 4 ने

प्रतिवादी संख्या 2 से उसके हिस्से की कृ षि भूमि का पूरा हिस्सा नहीं खरीद कर

के वल मात्र उसके हिस्से की कृ षि भूमि का एक भाग (रणएंण) ही खरीदा है, जो


विधि द्वारा स्थापित प्रावधानों के विपरीत है।
. भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 44 के अनुसार हर व्यक्ति जो वयस्क है

तथा स्वस्थचित्त संविदा करने के लिए सक्षम है। धारा 42 के अनुसार कोई भी

व्यक्ति स्वस्थचित्त कहा जाता है जो संविदा को समझने और अपने हितों पर उसके

प्रभाव के बारे में युक्तिसंगत निर्णय लेने में समर्थ है |


2. भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 49 के अनुसार जब किसी करार के

लिए सम्मति, प्रपीडन, कपट या दुर्व्यपदेशन से कारित हो तब वह करार ऐसी

संविदा है जो उस पक्षकार के विकल्प पर शून्यकरणीय है जिसकी सम्मति ऐसे

कारित हुई थी |

3. . वादीगण द्वारा प्रश्नगत वाद प्रतिवादी संख्या 2 को विकृ तचित्त व्यक्ति होने

का अभिवचन करते हुए प्रतिवादी संख्या 2 की और से उसके संरक्षक की हैसियत

से प्रस्तुत नहीं किया गया है। वादीगण द्वारा प्रतिवादी संख्या 2 को स्वस्थचित्त

मानते हुए प्रकरण में पक्षकार बनाया है जिसने न्यायालय के समक्ष अपना

वकालतनामा भी प्रस्तुत किया है। वादीगण द्वारा अपने वादपत्र में भी प्रतिवादी

संख्या 2 को विकृ तचित्त के रूप में पक्षकार बनाते हुए उसके वादार्थ संरक्षक की
नियुक्ति के संबंध में कोई प्रार्थना नहीं की गई है। वादीगण द्वारा के वल उसे

अविकसित मस्तिष्क का व्यक्ति बताया गया है। ऐसी स्थिति में वादपत्र में अंकित

तथ्यों के आधार पर यह नहीं माना जा सकता है कि प्रतिवादी संख्या 2 स्वस्थचित्त


नहीं है ।
4. मेरे विनम्र मत में किसी संविदा को विकृ त्तचित्ता या अव्यस्कता के आधार पर

शून्य घोषित करवाने या संविदा को निरस्त करने के लिए वाद के वल उस व्यक्ति

(निष्पादक) के संरक्षक की और से ही प्रस्तुत किया जा सकता है जिसका

विकृ त्तचित्त होना या अवयस्क होना बताया जा रहा है। किसी तृतीय पक्षकार की

और से ऐसी संविदा के संबंध में वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। इसी तरह

किसी व्यक्ति की सम्मति प्रपीडन, कपट या दुर्व्यपदेशन से प्राप्त करने के संबंध में

भी वाद ऐसी सम्मति देने वाले व्यक्ति की और से ही प्रस्तुत किया जा सकता

है। ऐसी स्थिति में इस आधार पर की प्रतिवादी संख्या 2 स्वस्थचित्त नहीं होने के
कारण उसके द्वारा निष्पादित विकय पत्र धारा 4। संविदा अधिनियम के अनुसार
(0)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

अवैध व शून्य है, वादीगण को वाद लाने का अधिकार नहीं है। इस आधार पर

वादीगण को धारा 44 संविदा अधिनियम के अनुसार वादकारण प्राप्त नहीं होता

है। धारा 49 संविदा अधिनियम के अनुसार भी के वल संविदा के निष्पादक के द्वारा

ही वाद प्रस्तुत किया जा सकता है। इस कारण इस आधार पर भी वादीगण को

वाद लाने का अधिकार नहीं होकर कोई वादकारण प्राप्त नहीं होता है।

5. धारा 43 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के अनुसार एक खातेदार संपत्ति में

अपने हित का अंतरण कर सकता है। वादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत
न्यायिक निर्णयों से भी यही मार्गदर्शन प्राप्त होता है कि कोई भी सह-खातेदार
संपत्ति में अपना अविभक्त हिस्सा विकय कर सकता है किं तु वह संपत्ति का कोई

विनिर्दिष्ट हिस्सा विकय नहीं कर सकता है। वादीगण के अभिवचन से यह स्प्ब्ट है

कि प्रतिवादी संख्या 2 द्वारा संपत्ति के किसी विनिर्दिष्ट हिस्से का विकय नहीं किया
है। उसके द्वारा संपत्ति में से अपने हिस्से की भूमि से 0.2090 हैक्टेयर अर्थात
22488 भूमि का विक्रय किया है। इस कारण इस आधार पर भी की प्रतिवादी संख्या

2 द्वारा भूमि का बंटवारा हुए बिना अपने हिस्से का विकय कर दिया गया है,

वादीगण को वाद लाने का अधिकार नहीं होने से कोई वादकारण प्राप्त नहीं होता
है।
6. . वादीगण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्यायिक निर्णयों के अनुसार

अविभक्त संपत्ति में से किसी हिस्सेदार के हिस्से के के त्ता को अविभक्त भूमि पर

कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है जब तक की वह संपत्ति का विभाजन नहीं

करवा लेता है। वह संपत्ति पर जबरन कब्जा प्राप्त नहीं कर सकता है और अन्य,

हिस्सेदार के ता के द्वारा संपत्ति पर कब्जे को रोकने के लिए निषेधाज़ा प्राप्त कर

सकते है। प्रश्नगत भूमि कृ षि भूमि है जिसके विभाजन व निषेधाज्ञा के संबंध में वाद

सुनने का अधिकार राजस्व न्यायालय को प्राप्त है। हस्तगत वाद में वादीगण द्वारा

ऐसी कोई निषेधाज्ञा भी नहीं चाही गई है कि प्रतिवादी संख्या 4 को वादग्रस्त भूमि

पर कब्जा करने से रोका जाए।

7.. आदेश 7 नियम १ 4 सी.पी.सी. के अवलोकन के उपरांत यह प्रकट नहीं होता


है कि के वल न्यायालय, वाद दर्ज करने से पूर्व मुंसरिम या रीडर की रिपोर्ट के
आधार पर ही वादपत्र को नामंजूर कर सकता है। मेरे विनम्र मत में वादपत्र किसी

भी स्तर पर आदेश 7 नियम 4। सी.पी.सी. में वर्णित आधारों पर नामंजूर किया जा

सकता है। इस कारण इस संबंध में वादीगण की ओर से प्रस्तुत तर्क स्वीकार किए
जाने योग्य नहीं है|
(7)

हीरालाल व अन्य बनाम पन्‍नालाल व अन्य (सिविल मूल प्रकरण संख्या १ 87/2022) आदेश दिनांक 6.02.2023

8. उपरोक्त समस्त विवेचनानुसार मेरे विनम्र मत में वादीगण को प्रश्ननत वाद

प्रस्तुत करने के संबंध में कोई वादकारण प्राप्त नहीं होने से वादीगण का वादपत्र

नामंजूर किए जाने योग्य है।

9. पक्षकारान द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्तों का ससम्मान अवलोकन किया गया

और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त किया गया। वादीगण द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृष्टान्तों से

उन्हें हस्तगत प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों के अनुरूप उपरोक्त विवेचनानुसार

कोई नहीं होती


कोई मदद प्राप्त नहीं होती है।

20. _ वादपत्र प्रारंभिक स्तर पर ही नामंजूर किए जाने से न्यायालय के मत में यह

उचित है कि राजस्थान न्यायालय फीस एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम 496। की

घारा 6। के अनुसार वादीगण द्वारा संदत्त की गई कोर्टफीस उन्हें वापस लौटाई


जावे |

आदेश
फलतः प्रतिवादी संख्या- द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र अंतर्गत आदेश 7 नियम

4 सिविल प्रकिया संहिता स्वीकार किया जाकर वादीगण का वादपत्र नामंजूर किया

जाता है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेंगे। तद्अनुसार डिक़ी पर्चा मुर्तिव
किया जाए।

राजस्थान न्यायालय फीस एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम 496 की धारा 6

के अनुसार वादीगण द्वारा संदत्त की गई कोर्टफीस उन्हें वापस लौटाई जावे |

(चंचल मिश्रा)
जिला न्यायाधीश
उदयपुर (राज.)

आदेश आज दिनांक 46.02.2023 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में


सुनाया गया।
(चंचल मिश्रा)

जिला न्यायाधीश
उदयपुर (राज.)

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