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Aadi Puran

श्रीमद् आददपुराण में श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराम नाम की


मदिमा ~

श्रीकृष्ण उवाच अर्जुन के प्रति~

१)
रामनाम सदा ग्रािो रामनाम दियः सदा ।
भक्तिस्तस्मै िदातव्या न च मुक्तिः कदाचन ।।

अर्ु:~हे तप्रय! र्ो श्रीराम नाम का उच्चारण करिे हैं


िर्ा तर्नको श्रीराम नाम सदा तप्रय लगिा है । उनको मैं
स्वयं भक्ति प्रदान करिा हं कभी मजक्ति प्रदान नहीं
करिा।

२)
गायक्ति रामनामादन वैष्णवाश्च युगे युगे ।
त्यक्त्वा च सववकमावदण धमावदण च कदपध्वज ।।
अर्ु:~वैष्णव र्न श्रीराम नाम का गजणगान प्रिेक यजग में
करिे हैं । हे कतिध्वर्! वे सभी कमों और सभी धमों
का त्याग करके श्रीराम नाम को र्ििे हैं ।

३)
रामनामैव नामैव रामनामैव केवलम् ।
गदतस्तेषाां गदतस्तेषाां गदतस्तेषाां सुदनदश्चतम् ।।

अर्ु:~तर्नको तसर्ु राम नाम और तसर्ु राम नाम का


ही आधार है , उनकी सजगति िीनों काल में सजतनतिि
बनी रहिी है ।

४)
श्रद्धया िे लया नाम वदक्ति मनुजा भुदव ।
तेषाां नाक्तस्त भयां पार्व रामनामिसादतः॥

अर्ु:~हे िार्ु! इस भूतम िर श्रद्धा से अर्वा तनंदा से


कैसे भी मनजष्य यतद श्रीराम का नाम लेिा है िो उसे
श्रीराम की कृिा से कभी कोई भय नही ं रहिा।
५)
रामनाम रता यत्र गच्छक्ति िेम सम्प्लुताः ।
भिानामनुगच्छक्ति मुियः स्तुदतदभस्सि ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम के प्रेम रस में डूबे हुए भि र्हां


भी र्ािे हैं , वहां मजक्ति उनकी स्तजति करिे हुए िीछे
िीछे चलिी हैं ।

६)
मानवा ये सुधासारां रामनाम जपक्ति दि ।
ते धन्या मृत्यु सांत्रास रदिता रामवल्लभाः ।।

अर्ु:~र्ो मनजष्य इस सजधासागर श्रीराम नाम को तनरं िर


र्ि करिे हैं , उनको मृत्यज का कभी भय नहीं रहिा
क्ोंतक वे श्रीराम के दज लारे बन र्ािे हैं ।

७)
नामैव परमा मुक्तिनावमैव परमा गदतः ।
नामैव परमा शाक्तिनावमैव परमा मदतः ।।

अर्ु:~ श्री रामनाम ही िरम मजक्ति, िरम गति, िरम


शां ति और िरम गति दे िा है ।

८)
नामैव परमा भक्तिनावमैव परमा धृदतः ।
नामैव परमा िीदतनावमैव परमा स्मृदतः ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही िरम भक्ति है , नाम ही िरम


धैयु है , नाम ही सवोच्च प्रेम है और नाम ही सवोच्च
स्मृति है ।

९)
नामै व परमां पुण्यां नामै व परमां तपः ।
नामैव परमो धमो नामैव परमो गुरः ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम लेना ही िरम िजण्य है , िरम िि


है , िरम धमु है और उनका नाम ही िरम गजरु है ।
१०)
नामैव परमां ज्ञानां नामैव चाक्तिलां जगत् ।
नामैव जीवनां जिोनावमैव दवपुलां धनम् ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही अक्तिल लोक में िरम ज्ञान


है , उन्ीं का नाम मनजष्य का र्ीवन है और र्ािकों का
श्रेष्ठ धन है ।

११)
नामैव जगताां सत्यां नामैव जगताां दियम् ।
नामैव जगताां ध्यानां नामैव जगताां परम् ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही र्गि में सत्य है , उनका नाम


ही तप्रय है , उनका नाम ही ध्यान करने योग्य है और
र्गि में सबसे िरम उन्ीं का नाम है ।

१२)
नामैव शरणां जांतोनावमैव जगताां गुरः ।
नामैव जगताां बीजां नामैव पादनां परम् ॥

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही र्गि की शरणागति है


,र्गिगजरु है , इस सृति का बीर् है और िरम िद
प्रदान करने वाला है ।

१३)
रामनामरता ये च ते वै श्रीरामभावकाः ।
तेषाां सांदशवनादे व भवेद्भदक रसाक्तिका ।।

अर्ु:~र्ो तनरं िर श्रीराम नाम का र्ि करिे हैं वे श्रीराम


के प्रति प्रेम भावना से सराबोर हो र्ािे हैं । ऐसे रतसकों
के दशुन मात्र से हृदय तवदारक भक्ति उत्पन्न हो र्ािी
है ।

१४)
कामादद गुण सांयुि नाममावैक बान्धवाः ।
िोदतां कुववक्ति ते पार्व न तर्ा दजत षड् गुणाः ।।
अर्ु:~हे िार्ु! काम आतद गजण सब संयजि रुि से
श्रीराम नाम को अिना स्वामी मानिे हैं और र्ो नाम
र्ि नहीं करिे वे काम आतद छः गजणों िर कभी तवर्य
नहीं प्राप्त कर िािे।

१५)
तां दे शां पदततां मन्ये यत्र नाक्तस्त सु वैष्णवः ।
रामनाम परो दनत्यां परानन्द दववद्धव नः ।।

अर्ु:~वह रािर ितिि हो गया है र्हां िरम तनत्य और


सबके आनंद का वधुन करने वाला श्रीराम नाम र्ािक
वैष्णव नहीं है ।

१६)
रामनाम रता जीवा न पतक्ति कदाचन ।
इन्द्राद्दास्सम्पतन्त्यिे तर्ा चान्येऽदधकाररणः ॥
अर्ु:~र्ो लोग श्रीराम के नाम के प्रति समतिुि हैं , वे
कभी नीचे नहीं तगरिे, इं द्र आतद उनके सेवक और
अन्य अतधकारी भी नीचे तगर र्ािे हैं ।

१७)
राम स्मरणमात्रेण िाणान्मुञ्चक्ति ये नराः ।
फलां तेषाां न पश्यादम भजादम ताांश्च पादर्वव ।।

अर्ु:~र्ो श्रीराम का स्मरण करिे हुए अिने प्राणों का


त्याग करिे हैं , मैं स्वयं उनके र्ल को नही ं र्ानिा
अतििज मैं स्वयं उनको तनत्य भर्िा हं ।

१८)
नाम स्मरणमात्रेण नरो यादत दनरापदम् ।
ये स्मरक्ति सदारामां तेषाां ज्ञानेन दकां फलम् ।।

अर्ु:~र्ो मनजष्य श्रीराम नाम का स्मरण मात्र क्षण भर


के तलए कर लेिे हैं वे िरम िद को प्राप्त हो र्ािे हैं
और र्ो सदा श्रीराम नाम में ही रमण करिे हैं उनके
र्ल को िो मैं स्वयं नही ं र्ानिा।

१९)
नामैव जगताां बन्धुनावमेव जगताां िभुः ।
नामैव जगताां जन्म नामैव सचराचरम् ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही संिूणु र्गि का तमत्र एवं


संिूणु र्गि का स्वामी है । उनके नाम से ही इस र्गि
का प्राकट्य होिा है और संिूणु र्ड़ चेिन वस्तज नाम के
ही प्रभाव से है ।

२०)
नामैव धायवते दवश्वां नामैव पाल्यते जगत् ।
नाम्नैव नीयते नाम नामैव भुञ्चते फलम् ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही इस संिूणु ब्रह्ांड को धारण


करिा है एवं उसका िालन करिा है । उनके नाम से ही
नाम र्ि तकया र्ािा है और उनके नाम से ही नाम
का आनंद र्ल तमलिा है ।

२१)
नामैव गृह्यते नाम गोप्यां परतरात्परम् ।
नामैव कायवते कमव नामैव नीयते फलम् ।।

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही ग्रहण करने योग्य िरम ित्व


है , नाम ही समस्त कमों को तनधाु ररि करिा है और
समस्त र्ल दे िा है ।

२२)
नाम्नैव चाङ्गशास्त्राणाां तात्पयावर्वमुत्तमम् ।
नामैववेद साराांश दसद्धािां सववदा दशवम् ॥

अर्ु:~श्रीराम का नाम ही सभी शास्त्ों और उनके अंगों


का सवोत्तम अर्ु है । श्रीराम का नाम ही सभी तसद्धां िों
का सार और सदै व शजभ र्ल दे ने वाला है ।
२३)
नाम्नैव नीयते मेघा परे ब्रह्मदण दनश्चला ।
नाम्नैव चञ्चलां दचत्तां मनस्तक्तस्मन्प्रलीयते ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम से ही मनजष्य की बजक्तद्ध उन िरम ब्रह्


में तनिल हो र्ािी है और श्रीराम नाम के बल से ही
चंचल तचत्त भी उन में तवलीन हो र्ािा है ।

२४)
श्रीरामस्मरणेनैव नरो यादत पराङ्गदतम् ।
सत्यां सत्यां सदा सत्यां न जाने नामजां फलम् ।।

अर्ु:~श्री राम नाम के मात्र स्मरण से मनजष्य िरम िद


को प्राप्त हो र्ािा है । मैं सत्य सत्य और सदै व सत्य
कहिा हं मैं स्वयं श्रीराम नाम के र्ल को नहीं र्ानिा।

२५)
रामनाम िभावोऽयां सवोत्तम उदाहृतः ।
समासेन तर्ा पार्व वक्ष्येऽिां तव िे तवे ।।

अर्ु:~हे िार्ु श्रीराम नाम का प्रभाव सवोिरी कहा गया


है , मैं संक्षेि में कहिा हं उसे सजनो।

२६)
न नाम सदृशां ध्यानां न नाम सदृशो जपः ।
न नाम सदृशस्त्यागो न नाम सदृशी गदतः ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम िजल्य ना कोई ध्यान है , ना कोई र्ि


है , ना कोई त्याग है और ना कोई गति है ।

२७)
न नाम सदृशी मुक्तिनव नाम सदृशः िभुः ।
ये गृह्णक्ति सदा नाम त एवां दजत षड् गुणाः ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम के िजल्य ना िो कोई मोक्ष है और ना


कोई दे विा इनके नाम के बराबर है । तर्सने तनरं िर
श्रीराम नाम का र्ि कर तलया उसने कामआतद समेि
छः गजणों को र्ीि तलया।

२८)
कुववन् वा कारयन्वाऽदप रामनामजपांस्तर्ा ।
नोत्वा कुल सिस्रादण परां धामादम गच्छदत ।।

अर्ु:~र्ो स्वयं श्रीराम नाम का र्ि करिे हैं और दू सरों


को भी करवािे हैं , वे अिनी हर्ारों िीत़ियों को
िरमधाम िहुं चा दे िे हैं ।

२९)
नाम्नैव नीयते पुण्यां नाम्नैव नीयते तपः ।
नाम्नेव नीयते धमो जगदे तच्चराचरम् ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम से ही िजण्य होिा है , उनके नाम से


ही िि होिा है और र्गि में धमु का िालन होिा है ।

३०)
रामनाम िभावेण सवव दसद्धे श्वरो भवेत् ।
दवश्वासेनैव श्रीरामनाम जाप्यां सदा बुधैः ।।

अर्ु:~श्रीराम नाम के ही प्रभाव से व्यक्ति सभी तसक्तद्धयों


को प्राप्त कर लेिा है इसीतलए तवश्वास िूवुक बजक्तद्धमान
र्नों को श्रीराम नाम का र्ि करना चातहए।

३१)
शािो दािः क्षमाशीलो रामनाम परायणः ।
असांख्य कुलजानाां वैतारणे सववदा क्षमः ॥

अर्ु:~र्ो शां तििूवुक, आत्मतनयंतत्रि और क्षमाशील होकर


श्रीराम नाम को धारण करिा है , वह अिने असंख्य
कजल को वैिरणी के िार करने में सक्षम हो र्ािा है ।

३२)
ये नाम युिा दवचरक्ति भृमौत्यक्त्वाऽर्वकामाक्तन्वषयश्च
भोगान् ।
तेषाां च भक्तिः परमा च दनष्ठा सदै व शुद्धा सुभगा
भवक्ति ।।

अर्ु:~र्ो श्रीराम नाम से यज ि होिे हैं वह अिने धन


की कामनाओं और वस्तजओं के सजि की तचंिा तकए तबना
िृथ्वी िर तवचरण करिे हैं । वे अिनी भक्ति और अिने
प्रचंड तनष्ठा के चलिे हमेशा ितवत्र और भाग्यशाली रहिे
हैं ।

३३)
स्मरद्दो रामनामादन त्यक्त्वा कमावदणचाक्तिलम् ।
स पूतः सववपापेभ्यः पद्मपत्रदमवाम्भसा ।।

अर्ु:~र्ो सभी कमों का त्याग करके श्रीराम नाम का


स्मरण करिे हैं वह सभी िािों से मजि हुए रहिे हैं ,
र्ैसे कमल को र्ल स्पशु नही ं करिा।

३४)
त्यक्त्वा श्रीरामनामादन कमव कुववक्ति येऽधमाः ।
तेषाां कमावदणबन्धाय न सुिाय कदाचन ।।

अर्ु:~र्ो मूिु श्री रामनाम को त्याग कर के अन्य कमु


में रुतच लेिे हैं उनके कमु सजि का नहीं अतििज बंधन
का कारण बनिे हैं ।

३५)
यस्य चेतदस श्रीराममिामाङ्गदलकां परम् ।
स दजत्वा सकल ांल्लोकान् परां धाम पररव्रजेत् ॥

अर्ु:~तर्नके तचत्त में सदै व श्रीराम नाम का िरम मंगल


धाम तवरातर्ि है वे समस्त लोकों को लां घ करके
िरमधाम में तवरातर्ि हो र्ािे हैं ।

७०)
रामनाम जपाज्जीवा अनायासेन मांसृदतम् ।
तरन्त्येव तरन्त्येव तरन्त्येव सुदनदश्चतम् ॥
अर्ु:~श्रीरामनाम र्ि से समस्त र्ीव संसार सागर को
िर र्ायेंगे, सन्दे ह तबना िार उिरें गे। मैं बारम्बार कहिा
हुं तनिय करके मानना।

अर्जुन उवाच~

७१)
भवत्येव भवत्येव भवत्येव मिामते ।
सववपाप पररव्याप्तास्तरक्ति नामबान्धवाः ।।
अर्ु:~हे महात्मा!ये बाि सवुर्ा, सवुर्ा और सवुर्ा है ,
चाहे कैसा भी िािी हो श्रीराम नाम के बल से वो
समस्त िािों से मजि हो र्ािा है ।

७२)
नमोस्तु नामरूपाय नमोस्तु नामजक्तिने ।
नमोस्तु नाम सान्ध्याय वेदवेद्याय शाश्वते ।।
अर्ु:~श्रीरामनाम के िरात्पर स्वरूि को मेरा नमस्कार
है , श्रीनाम र्ािक को मेरा दं डवि् है , िरम र्लरूि
श्रीरामनाम के तलए मेरा मति है की सकल वेद के सार
श्रीरामनाम को मेरा प्रणाम हैं ।

७३)
नमोस्तु नामदनत्याय नमो नाम िभादवने ।
नमोस्तु नामशुद्धाय नमो नाममयाय च ।।

अर्ु:~िरम तनत्य, महाप्रभाव संयजि, िरम शजद्ध सवु


शक्तिमान श्रीरामनाम को मेरा िजनः िजनः प्रणाम है ।

७४)
श्रीरामनाम मािात्म्यां यः पठे च्छु द्धयाक्तन्वतः ।
स यादत परमां स्र्ानां रामनाम िमादतः ।।
अर्ु:~श्रीरामनाम का माहात्म्य र्ो श्रद्धा समेि सजनिे,
ि़ििे या गािे हैं , वो सज्जन श्रीरामनाम प्रिाि से
िरमधाम प्राप्त करिे हैं ।

७५)
रामनामार्वमुत्कृष्टां पदवत्रां पावनां परम् ।
ये ध्यायक्ति सदास्नेिात्ते कृतार्ावः जगत्त्रये ।।

अर्ु:~श्रीरामनाम का उज्जवल गजन अर्ु िरम श्रेष्ठ है ,


िरम ितवत्र है , र्ो सनेह समेि मनन करिे हैं वे िजनीि
होिे हैं । वे ही िीनों लोकों में कृिार्ु रूि हैं ।

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