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गुनाह का देवता
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Gunahon Ka Devta
novel by
Dharmveer Bharti
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धमवीर भारती
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978-1-61301-248-2
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काशकः
भारतीय सािह य सं ह
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दो श द
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धमवीर भारती के इस उप यास का काशन और इसके ित पाठक का अटू ट स मोहन
िह दी सािह य-जगत् क एक बड़ी उपलि ध बन गये ह। दरअसल, यह उप यास हमारे
समय म भारतीय भाषा क सबसे अिधक िबकने वाली लोकि य सािहि यक पु तक म
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पहली पंि म है। लाख -लाख पाठक के िलए ि य इस अनूठे उप यास क माँग आज भी
वैसी ही बनी ई है जैसी क उसके काशन के ारि भक वष म थी।–और इस सबका
बड़ा कारण शायद एक समथ रचनाकार क कोई अ पीड़ा और एका त आ था है,
िजसने इस उप यास को एक अि तीय कृ ित बना दया है।
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डॉ. धमवीर भारती
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is (1926 - 1997 )
प ी : पु पा भारती
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अंक ा कर चंतामिण घोष मैडल के हकदार बने। सन् 1947 म वह से थम ेणी म
एम.ए. करने के बाद डॉ. धीरे वमा के िनदशन म िस सािह य पर शोध बंध िलखकर
पी.एच.डी. क िड ी ा क ।
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आजीिवका : छा जीवन से ही ूशन पर आ मिनभर होना पड़ा। एम.ए. क पढ़ाई का
ख़च ‘अ युदय’ (स पादक : ी प कांत मालवीय) म पाट टाइम काम करके िनकाला।
1948 म ‘संगम’ (संपादक ी इलाचं जोशी) म सहकारी संपादक िनयु ए। दो वष
वहाँ काम करने के बाद हंद ु तानी अकादमी म उपसिचव का काय कया। तदुपरांत याग
िव िव ालय के िह दी िवभाग म अ यापक िनयु ए। सन् 1960 तक वहाँ काय कया।
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याग िव िव ालय म अ यापन के दौरान ‘ हंदी सािह य कोश’ के स पादन म सहयोग
दया। ‘िनकष’ पि का िनकाली तथा ‘आलोचना’ का स पादन भी कया। उसके बाद
‘धमयुग’ म धान स पादक पद पर ब बई आ गये। ‘धमयुग’ हंदी के सव े सा ािहक के
प म थािपत आ। 1987 म डॉ. भारती ने अवकाश हण कया। 1989 म दय रोग से
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गंभीर प से बीमार हो गये। गहन िच क सा के बाद ाण तो बच गये क तु वा य पूरी
तरह कभी सुधरा नह और 4 िसतंबर 1997 को देहावसान हो गया। न द म ही मृ यु ने
वरण कर िलया। is
या ाएँ : सन् 1961 म कामनवे थ रलेश स कमेटी के आमं ण पर थम िवदेश या ा पर
इं गलड तथा यूरोप मण। पि म जमन सरकार के आमं ण पर 1964 म जमनी या ा
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तथा 1966 म भारतीय दूतावास के िनमं ण पर इं डोनेिशया तथा थाइलड क या ाएँ क ।
िसत बर 1971 म मुि वािहनी के साथ बां ला देश क गु या ा क तथा ाि त का
पहला आँख देखा ामािणक िववरण तुत कया। भारत-पाक यु 1971 के दौरान
भारतीय थल सेना के साथ वा तिवक यु् थल पर िनरं तर उपि थत रहकर यु के
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वा तिवक मोच के रोमांचक अनुभव को िलिपब कया। इसके पहले ऐसा काम कभी
कसी प कार ने नह कया। भारतीय मूल क मा रशसीय जनता क सम या का
अ ययन करने के िलए जून 1974 म मा रशस क या ा क । फर ए ो एिशयाई का स
म भाग लेने के िलए पुनः मा रशस गये। 1978 म चीन क िसनुआ संवाद सिमित के
आमं ण पर भारत सरकार के डेलीगेशन के सद य के प म चीन क या ा पर गये। 1991
म प रवार के साथ अमरीका या ा पर गये। और अपने भारत देश के तो हर ांत म बार-
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है—‘‘धमवीर भारती महारा सार वत स मान’’ 1999 म युवा कहानीकार उदय काश
के िनदशन म सािह य अकादमी द ली के िलए डॉ. भारती पर वृ िच का िनमाण आ।
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अनेक पुर कार म से कु छ इस कार ह—
पुर कार :-
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1997 - संगीत नाटक अकादमी के मनोनीत सद य
1984 - ह दी घाटी े प का रता पुर कार (महाराणा मेवाड़ फाउं डेशन)
1985 - सािह य अकादमी र सद यता स मान
1986 - सं था स मान-उ र देश हंदी सं थान
1988 - सव े नाटककार पुर कार, संगीत नाटक अकादमी, द ली
1989 - डॉ. राजे साद िशखर स मान, िबहार सरकार
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1989 - गणेश शंकर िव ाथ पुर कार, क ीय हंदी सं थान, आगरा
1989 - भारत भारती पुर कार, उ र देश िह दी सं थान
1990 - महारा गौरव – महारा सरकार
1991 - साधना स मान, के िडया मृित यास
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1992 - महारा ा या सुपु ांचे अिभनंदन स मान, वसंत राव नाईक ित ान
1994 - ास स मान, के .के . िबड़ला फा़उंडेशन
1996 - शासन स मान, उ र देश िह दी सं थान
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1997 - उ र देश गौरव, अिभयान स मान सं थान
रचनाएँ -
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कहानी सं ह :- मुद का गाँव (1946), वग और पृ वी (1949), चाँद और टू टे ए लोग
(1955), बंद गली का आिख़री मकान (1969), साँस क कलम से (सम त कहािनयाँ एक
साथ) (2000)।
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किवता :- ठं डा लोहा (1952), अंधा युग (1954), सात गीत वष (1959), कनुि या
(1959), सपना अभी भी (1993), कु छ ल बी किवताएँ (1998), आ त (1999), मेरी
वाणी गै रक वासना (1999)।
उप यास :- गुनाह का देवता (1949), सूरज का सातवां घोड़ा (1952), यारह सपन का
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एकांक सं ह :- नदी यासी थी – (1954)
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किवताएँ) – (1960)
या ा िववरण :- या ा च – (1994)
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प संकलन :- अ र अ र य – (1999)।
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ंथावली :- धमवीर भारती ंथावली (9 खंड म) – (1998)।
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थम ख ड
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तो म कहता क इलाहाबाद का नगर-देवता ज र कोई रोमैि टक कलाकार है। ऐसा
लगता है क इस शहर क बनावट, गठन, जंदगी और रहन-सहन म कोई बँधे-बँधाये
िनयम नह , कह कोई कसाव नह , हर जगह एक व छ द खुलाव, एक िबखरी ई-सी
अिनयिमतता। बनारस क गिलय से भी पतली गिलयाँ और लखनऊ क सडक़ से चौड़ी
सडक़। याकशायर और ाइटन के उपनगर का मुकाबला करने वाले िसिवल लाइ स और
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दलदल क ग दगी को मात करने वाले मुह ले। मौसम म भी कह कोई सम नह , कोई
स तुलन नह । सुबह मलयजी, दोपहर अंगारी, तो शाम रे शमी! धरती ऐसी क सहारा के
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रे िग तान क तरह बालू भी िमले, मालवा क तरह हरे -भरे खेत भी िमल और ऊसर और
परती क भी कमी नह । सचमुच लगता है क याग का नगर-देवता वग-कुं ज से
िनवािसत कोई मनमौजी कलाकार है िजसके सृजन म हर रं ग के डोरे ह।
और चाहे जो हो, मगर इधर ार, का तक तथा उधर वस त के बाद और होली के बीच के
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मौसम से इलाहाबाद का वातावरण नै ट शयम और पजी के फू ल से भी यादा खूबसूरत
और आम के बौर क खुशबू से भी यादा महकदार होता है। िसिवल लाइ स हो या
अ े ड पाक, गंगातट हो या खुस बाग, लगता है क हवा एक नटखट दोशीजा क तरह
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क पेशावरी सैि डल, भरा आ गोरा चेहरा और ऊँचे चमकते ए माथे पर झूलती ई एक
खी भूरी लट। चलते-चलते उसने एक रं ग-िबरं गा गु छा इक ा कर िलया था और रह-रह
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कर वह उसे सूँघ लेता था।
पूरब के आसमान क गुलाबी पाँखु रयाँ िबखरने लगी थ और सुनहले पराग क एक
बौछार सुबह के ताजे फू ल पर िबछ रही थी। “अरे सुबह हो गयी?” उसने च ककर कहा
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और पास क एक बच पर बैठ गया। सामने से एक माली आ रहा था। “ य जी, लाइ ेरी
खुल गयी?” “अभी नह बाबूजी!” उसने जवाब दया। वह फर स तोष से बैठ गया और
फू ल क पाँखु रयाँ नोचकर नीचे फकने लगा। जमीन पर िबछाने वाली सोने क चादर
परत पर परत िबछाती जा रही थी और पेड़ क छाया का रं ग गहराने लगा था। उसक
बच के नीचे फू ल क चुनी ई पि याँ िबखरी थ और अब उसके पास िसफ एक फू ल
बाक रह गया था। हलके फालसई रं ग के उस फू ल पर गहरे बजनी डोरे थे।
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“हलो कपूर!” सहसा कसी ने पीछे से क धे पर हाथ रखकर कहा, “यहाँ या झक मार रहे
हो सुबह-सुबह?”
उसने मुडक़र पीछे देखा, “आओ, ठाकु र साहब! आओ बैठो यार, लाइ ेरी खुलने का
इ तजार कर रहा ।ँ ”
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“ य , यूिनव सटी लाइ ेरी चाट डाली, अब इसे तो शरीफ लोग के िलए छोड़ दो!”
“हाँ, हाँ, शरीफ लोग ही के िलए छोड़ रहा ;ँ डॉ टर शु ला क लड़क है न, वह इसक
मे बर बनना चाहती थी तो मुझे आना पड़ा, उसी का इ तजार भी कर रहा ।ँ ”
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“डॉ टर शु ला तो पॉिल ट स िडपाटमट म ह?”
“नह , गवनमट साइकोलॉिजकल यूरो म।”
“और तुम पॉिल ट स म रसच कर रहे हो?”
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“नह , इकनॉिम स म!”
“ब त अ छे! तो उनक लड़क को सद य बनवाने आये हो?” कु छ अजब वर म ठाकु र ने
कहा।
“िछः!” कपूर ने हँसते ए, कु छ अपने को बचाते ए कहा, “यार, तुम जानते हो क मेरा
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दोन उठकर एक कृ ि म कमल-सरोवर क ओर चल दये जो पास ही म बना आ था।
सी ढय़ाँ चढक़र ही उ ह ने देखा क एक स न कनारे बैठे कमल क ओर एकटक देखते
ए यान म त लीन ह। िछपकली से दुबले-पतले, बाल क एक लट माथे पर झूमती ई-
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“कोई ेमी ह, या कोई फलासफर ह, देखा ठाकु र?”
“नह यार, दोन से िनकृ को ट के जीव ह-ये किव ह। म इ ह जानता ।ँ ये रवी
िबस रया ह। एम. ए. म पढ़ता है। आओ, िमलाएँ तु ह!”
ठाकु र साहब ने एक बड़ा-सा घास का ितनका तोडक़र पीछे से चुपके -से जाकर उसक
गरदन गुदगुदायी। िबस रया च क उठा-पीछे मुडक़र देखा और िबगड़ गया-”यह या
बदतमीजी है, ठाकु र साहब! म कतने ग भीर िवचार म डू बा था।” और सहसा बड़े
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िविच वर म आँख ब द कर िबस रया बोला, “आह! कै सा मनोरम भात है! मेरी आ मा
म घोर अनुभूित हो रही थी...।”
कपूर िबस रया क मु ा पर ठाकु र साहब क ओर देखकर मुसकराया और इशारे म बोला,
“है यार शगल क चीज। छेड़ो जरा!”
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ठाकु र साहब ने ितनका फक दया और बोले, “माफ करना, भाई िबस रया! बात यह है क
हम लोग किव तो ह नह , इसिलए समझ नह पाते। या सोच रहे थे तुम?”
िबस रया ने आँख खोल और एक गहरी साँस लेकर बोला, “म सोच रहा था क आिखर
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ेम या होता है, य होता है? किवता य िलखी जाती है? फर किवता के सं ह उतने
य नह िबकते िजतने उप यास या कहानी-सं ह?”
“बात तो ग भीर है।” कपूर बोला, “जहाँ तक मने समझा और पढ़ा है- ेम एक तरह क
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बीमारी होती है, मानिसक बीमारी, जो मौसम बदलने के दन म होती है, मसलन ार-
का तक या फागुन-चैत। उसका स ब ध रीढ़ क ह ी से होता है। और किवता एक तरह का
सि पात होता है। मेरा मतलब आप समझ रहे ह, िम. िसब रया?”
“िसब रया नह , िबस रया?” ठाकु र साहब ने टोका।
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अ छे किव ह।”
कपूर ने हाथ िमलाया और फर ग भीरता से बोला, “ य साहब, आपको दुिनया म और
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य नह करते। वरना कपूर साहब तु हारी किवता के ब त शौक न ह। मुझसे बराबर
तारीफ करते ह।”
िबस रया िपघल गया और बोला, “ मा क िजएगा। मने गलत समझा, अब मेरा किवता-
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सं ह छप रहा है, म आपको अव य भट क ँ गा।” और फर िबस रया ठाकु र साहब क
ओर मुडक़र बोला, “अब लोग मेरी किवता क इतनी माँग करते ह क म परे शान हो
गया ।ँ अभी कल 'ि वेणी' के स पादक िमले। कहने लगे अपना िच दे दो। मने कहा क
कोई िच नह है तो पीछे पड़ गये। आिखरकार मने आइडेि टटी काड उठाकर दे दया!”
“वाह!” कपूर बोला, “मान गये आपको हम! तो आप रा ीय किवताएँ िलखते ह या ेम
क ?”
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“जब जैसा अवसर हो!” ठाकु र साहब ने जड़ दया, “वैसे तो यह वार ट का किव-
स मेलन, शराबब दी कॉ े स का किव-स मेलन, शादी- याह का किव-स मेलन,
सािह य-स मेलन का किव-स मेलन सभी जगह बुलाये जाते ह। बड़ा यश है इनका!”
िबस रया ने शंसा से मु ध होकर देखा, मगर फर एक गव का भाव मुँह पर लाकर
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ग भीर हो गया।
कपूर थोड़ी देर चुप रहा, फर बोला, “तो कु छ हम लोग को भी सुनाइए न!”
“अभी तो मूड नह है।” िबस रया बोला।
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ठाकु र साहब िबस रया को िपछले पाँच साल से जानते थे, वे अ छी तरह जानते थे क
िबस रया कस समय और कै से किवता सुनाता है। अत: बोले, “ऐसे नह कपूर, आज शाम
को आओ। ज़रा गंगाजी चल, कु छ बो टंग रहे, कु छ खाना-पीना रहे तब किवता भी
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सुनना!”
कपूर को बो टंग का बेहद शौक था। फौरन राजी हो गया और शाम का िव तृत काय म
बन गया।
इतने म एक कार उधर से लाइ ेरी क ओर गुजरी। कपूर ने देखा और बोला, “अ छा,
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ठाकु र साहब, मुझे तो इजाजत दीिजए। अब चलूँ लाइ ेरी म। वो लोग आ गये। आप कहाँ
चल रहे ह?”
“म ज़रा िजमखाने क ओर जा रहा ।ँ अ छा भाई, तो शाम को प रही।”
“िब कु ल प !” कपूर बोला और चल दया।
लाइ ेरी के पो टको म कार क थी और उसके अ दर ही डॉ टर साहब क लड़क बैठी
थी।
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“हाँ! य ?”
“तो...तो...” उसने बड़े भोलेपन से मुसकराते ए कहा, “तो तुम अपने नाम से मे बर बन
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जाओ और दो कताब हम दे दया करना बस, यादा का हम या करगे?”
“नह !” च दर हँसा, “तु हारा तो दमाग खराब है। खुद य नह बनत मे बर?”
“नह , हम शरम लगती है, तुम बन जाओ मे बर हमारी जगह पर।”
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“पगली कह क !” च दर ने उसका क धा पकडक़र आगे ले चलते ए कहा, “वाह रे शरम!
अभी कल याह होगा तो कहना, हमारी जगह तुम बैठ जाओ च दर! कॉलेज म प च ँ गयी
लड़क ; अभी शरम नह छू टी इसक ! चल अ दर!”
और वह िहचकती, ठठकती, झपती और मुड़-मुडक़र च दर क ओर ठी ई िनगाह से
देखती ई अ दर चली गयी।
थोड़ी देर बाद सुधा चार कताब लादे ए िनकली। कपूर ने कहा, “लाओ, म ले लूँ!” तो
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बाँस क पतली टहनी क तरह लहराकर बोली, “सद य म ।ँ तु ह य दूँ कताब?” और
जाकर कार के अ दर कताब पटक द । फर बोली, “आओ, बैठो, च दर!”
“म अब घर जाऊँगा।”
“ऊँ ,ँ यह देखो!” और उसने भीतर से कागज का एक बंडल िनकाला और बोली, “देखो,
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यह पापा ने तु हारे िलए दया है। लखनऊ म कॉ े स है न। वह पढऩे के िलए यह िनब ध
िलखा है उ ह ने। शाम तक यह टाइप हो जाना चािहए। जहाँ सं याएँ ह वहाँ खुद आपको
बैठकर बोलना होगा। और पापा सुबह से ही कह गये ह। समझे जनाब!” उसने िब कु ल
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अ हड़ ब क तरह गरदन िहलाकर शोख वर म कहा।
कपूर ने बंडल ले िलया और कु छ सोचता आ बोला, “ले कन डॉ टर साहब का ह तलेख,
इतने पृ , शाम तक कौन टाइप कर देगा?”
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“इसका भी इ तजाम है,” और अपने लाउज म से एक प िनकालकर च दर के हाथ म
देती ई बोली, “यह कोई पापा क पुरानी ईसाई छा ा है। टाइिप ट। इसके घर म तु ह
प चँ ाये देती ।ँ मुकज रोड पर रहती है यह। उसी के यहाँ टाइप करवा लेना और यह खत
उसे दे देना।”
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वैसे तो यह घर, यह प रवार च कपूर का अपना हो चुका था; जब से वह अपनी माँ से
झगडक़र याग भाग आया था पढऩे के िलए, यहाँ आकर बी. ए. म भरती आ था और
कम खच के खयाल से चौक म एक कमरा लेकर रहता था, तभी डॉ टर शु ला उसके
सीिनयर टीचर थे और उसक प रि थितय से अवगत थे। च दर क अँ ेजी ब त ही
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अ छी थी और डॉ. शु ला उससे अ सर छोटे-छोटे लेख िलखवाकर पि का म िभजवाते
थे। उ ह ने कई प के आ थक त भ का काम च दर को दलवा दया था और उसके बाद
च दर के िलए डॉ. शु ला का थान अपने संर क और िपता से भी यादा हो गया था।
च दर शरमीला लड़का था, बेहद शरमीला, कभी उसने यूिनव सटी के वजीफे के िलए भी
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कोिशश न क थी, ले कन जब बी. ए. म वह सारी यूिनव सटी म सव थम आया तब वयं
इकनॉिम स िवभाग ने उसे यूिनव सटी के आ थक काशन का वैतिनक स पादक बना
दया था। एम. ए. म भी वह सव थम आया और उसके बाद उसने रसच ले ली। उसके
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बाद डॉ. शु ला यूिनव सटी से हटकर यूरो म चले गये थे। अगर सच पूछा जाय तो उसके
सारे कै रयर का ेय डॉ. शु ला को था िज ह ने हमेशा उसक िह मत बढ़ायी और उसको
अपने लड़के से बढक़र माना। अपनी सारी मदद के बावजूद डॉ. शु ला ने उससे इतना
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अपनापन बनाये रखा क कै से धीरे -धीरे च दर सारी गै रयत खो बैठा; यह उसे खुद नह
मालूम। यह बँगला, इसके कमरे , इसके लॉन, इसक कताब, इसके िनवासी, सभी कु छ जैसे
उसके अपने थे और सभी का उससे जाने कतने ज म का स ब ध था।
और यह न ही दुबली-पतली रं गीन च करन-सी सुधा। जब आज से वष पहले यह
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वष क होने पर गाँव वाल ने उसक शादी पर जोर देना और शादी न होने पर गाँव क
औरत ने हाथ नचाना और मुँह मटकाना शु कया तो डॉ टर साहब ने उसे इलाहाबाद
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अ सर च दर ने िपता और पु ी का समझौता कराया था, अ सर सुधा को डाँटा था,
समझाया था, और सुधा, घर-भर से अ हड़ पुरवाई और िव ोही झ के क तरह तोड़-फोड़
मचाती रहने वाली सुधा, च दर क आँख के इशारे पर सुबह क नसीम क तरह शा त हो
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जाती थी। कब और य उसने च दर के इशार का यह मौन अनुशासन वीकार कर िलया
था, यह उसे खुद नह मालूम था, और यह सभी कु छ इतने वाभािवक ढंग से, इतना अपने-
आप होता गया क दोन म से कोई भी इस या से वा कफ नह था, कोई भी इसके ित
जाग क न था, दोन का एक-दूसरे के ित अिधकार और आकषण इतना वाभािवक था
जैसे शरद क पिव ता या सुबह क रोशनी।
और मजा तो यह था क च दर क श ल देखकर िछप जाने वाली सुधा इतनी ढीठ हो गयी
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थी क उसका सारा िव ोह, सारी झुँझलाहट, िमजाज क सारी तेजी, सारा तीखापन और
सारा लड़ाई-झगड़ा, सभी क तरफ से हटकर च दर क ओर के ि त हो गया था। वह
िव ोिहनी अब शा त हो गयी थी। इतनी शा त, इतनी सुशील, इतनी िवन , इतनी
िम भािषणी क सभी को देखकर ता ुब होता था, ले कन च दर को देखकर जैसे उसका
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बचपन फर लौट आता था और जब तक वह च दर को िखझाकर, छेडक़र लड़ नह लेती
थी उसे चैन नह पड़ता था। अ सर दोन म अनबोला रहता था, ले कन जब दो दन तक
दोन मुँह फु लाये रहते थे और डॉ टर साहब के लौटने पर सुधा उ साह से उनके यूरो का
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हाल नह पूछती थी और खाते व दुलार नह दखाती थी तो डॉ टर साहब फौरन पूछते
थे, “ या... च दर से लड़ाई हो गयी या?” फर वह मुँह फु लाकर िशकायत करती थी और
िशकायत भी या- या होती थ , च दर ने उसक हेड िम ेस का नाम एलीफटा ( ीमती
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हिथनी) रखा था, या च दर ने उसको िडबेट के भाषण के वाइं ट नह बताये, या च दर
कहता है क सुधा क सिखयाँ कोयला बेचती ह, और जब डॉ टर साहब कहते ह क वह
च दर को डाँट दगे तो वह खुशी से फू ल उठती और च दर के आने पर आँख नचाती ई
िचढ़ाती थी, “कहो, कै सी डाँट पड़ी?”
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को दे डालती थी। च दर कै बजे खाना खाता है, यहाँ से जाकर घर पर कतनी देर पढ़ता है,
रात को सोते व दूध पीता है या नह , इन सबका लेखा-जोखा उसे सुधा को देना पड़ता,
और जब कभी उसके खाने-पीने म कोई कमी रह जाती तो उसे सुधा क डाँट खानी ही
Hi
पड़ती थी। पापा के िलए सुधा अभी ब ी थी; और वा य के मामले म सुधा के िलए
च दर अभी ब ा था। और कभी-कभी तो सुधा क वा य-िच ता इतनी यादा हो जाती
थी क च दर बेचारा जो खुद त दु त था, घबरा उठता था। एक बार सुधा ने कमाल कर
दया। उसक तबीयत खराब ई और डॉ टर ने उसे लड़ कय का एक टॉिनक पीने के िलए
बताया। इ तहान म जब च दर कु छ दुबला-सा हो गया तो सुधा अपनी बची ई दवा ले
आयी। और लगी च दर से िजद करने क “िपयो इसे!” जब च दर ने कसी अखबार म
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उसका िव ापन दखाकर बताया क लड़ कय के िलए है, तब कह जाकर उसक जान
बची।
इसीिलए जब आज सुधा ने चाय के िलए कहा तो उसक ह काँप गयी य क जब कभी
सुधा चाय बनाती थी तो याले के मुँह तक दूध भरकर उसम दो-तीन च मच चाय का
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पानी डाल देती थी और अगर उसने यादा ांग चाय क माँग क तो उसे खािलस दूध
पीना पड़ता था। और चाय के साथ फल और मेवा और खुदा जाने या- या, और उसके
बाद सुधा का इसरार, न खाने पर सुधा का गु सा और उसके बाद क ल बी-चौड़ी मनुहार;
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इस सबसे च दर ब त घबराता था। ले कन जब सुधा उसे टडी म म िबठाकर ज दी से
चाय बना लायी तो उसे मजबूर होना पड़ा, और बैठे-बैठे िनहायत बेबसी से उसने देखा क
सुधा ने याले म दूध डाला और उसके बाद थोड़ी-सी चाय डाल दी। उसके बाद अपने
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याले म चाय डालकर और दो च मच दूध डालकर आप ठाठ से पीने लगे, और बेतक लुफ
से दूिधया चाय का याला च दर के सामने िखसकाकर बोली, “पीिजए, ना ता आ रहा
है।”
च दर ने याले को अपने सामने रखा और उसे चार तरफ घुमाकर देखता रहा क कस
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तरफ से उसे चाय का अंश िमल सकता है। जब सभी ओर से याले म ीरसागर नजर
आया तो उसने हारकर याला रख दया।
“ य , पीते य नह ?” सुधा ने अपना याला रख दया।
“पीएँ या? कह चाय भी हो?”
“तो और या खािलस चाय पीिजएगा? दमागी काम करने वाल को ऐसी ही चाय पीनी
चािहए।”
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“तो अब मुझे सोचना पड़ेगा क म चाय छोड़ूँ या रसच। न ऐसी चाय मुझे पस द, न ऐसा
दमागी काम!”
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“लो, आपको िव ास नह होता। मेरी लासफे लो है गेसू काजमी; सबसे तेज लड़क है,
उसक अ मी उसे दूध म चाय उबालकर देती है।”
“ या नाम है तु हारी सखी का?”
“गेसू!”
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“ज र-ज र,” मुँह िबचकाते ए च दर ने कहा, “और उतनी ही काली होगी, िजतने काले
गेसू।”
“धत्, शरम नह आती कसी लड़क के िलए ऐसा कहते ए!”
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“और हमारे दो त क बुराई करती हो तब?”
“तब या! वे तो सब ह ही बुरे! अ छा तो ना ता, पहले फल खाओ,” और वह लेट म
छील-छीलकर स तरा रखने लगी। इतने म य ही वह झुककर एक िगरे ए स तरे को
नीचे से उठाने लगी क च दर ने झट से उसका याला अपने सामने रख िलया और अपना
याला उधर रख दया और शा त िच से पीने लगा। स तरे क फाँक उसक ओर बढ़ाते
ए य ही उसने एक घूँट चाय ली तो वह च ककर बोली, “अरे , यह या आ?”
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“कु छ नह , हमने उसम दूध डाल दया। तु ह दमागी काम ब त रहता है!” च दर ने ठाठ
से चाय घूँटते ए कहा। सुधा कु ढ़ गयी। कु छ बोली नह । चाय ख म करके च दर ने घड़ी
देखी।
“अ छा लाओ, या टाइप कराना है? अब ब त देर हो रही है।”
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“बस यहाँ तो एक िमनट बैठना बुरा लगता है आपको! हम कहते ह क ना ते और खाने के
व आदमी को ज दी नह करनी चािहए। बै ठए न!”
“अरे , तो तु ह कॉलेज क तैयारी नह करनी है?”
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“करनी य नह है। आज तो गेसू को मोटर पर लेते ए तब जाना है!”
“तु हारी गेसू और कभी मोटर पर चढ़ी है?”
“जी, वह सािबर सैन काजमी क लड़क है, उसके यहाँ दो मोटर ह और रोज तो उसके
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यहाँ दावत होती रहती ह।”
“अ छा, हमारी तो दावत कभी नह क ?”
“अहा हा, गेसू के यहाँ दावत खाएँगे! इसी मुँह से! जनाब उसक शादी भी तय हो गयी है,
अगले जाड़ तक शायद हो भी जाय।”
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च दर ने िखिसयाकर बड़ी जोर से सुधा का हाथ दबा दया। “हाय रे !” सुधा ने हाथ
छु ड़ाकर मुँह बनाते ए कहा, “लो बाबा, हम जा रहे ह, काहे िबगड़ रहे ह आप?” और वह
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चली गयी! डॉ टर साहब का िलखा आ िनब ध उठा लायी और बोली, “लो, यह िनब ध
क पा डु िलिप है।” उसके बाद च दर क ओर बड़े दुलार से देखती ई बोली, “शाम को
आओगे?”
“न!”
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“अ छा, हम परे शान नह करगे। तुम चुपचाप पढऩा। जब रात को पापा आ जाएँ तो उ ह
िनब ध क ितिलिप देकर चले जाना!”
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“नह , आज शाम को मेरी दावत है ठाकु र साहब के यहाँ।”
“तो उसके बाद आ जाना। और देखो, अब फरवरी आ गयी है, मा टर ढू ँढ़ दो हम।”
“नह , ये सब झूठी बात है। हम कल सुबह आएँगे।”
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“अ छा, तो सुबह ज दी आना और देखो, मा टर लाना मत भूलना। ाइवर तु ह मुकज
रोड प चँ ा देगा।”
वह कार म बैठ गया और कार टाट हो गयी क फर सुधा ने पुकारा। वह फर उतरा।
सुधा बोली, “लो, यह िलफाफा तो भूल ही गये थे। पापा ने िलख दया है। उसे दे देना।”
“अ छा।” कहकर फर च दर चला क फर सुधा ने पुकारा, “सुनो!”
“एक बार म य नह कह देती सब!” च दर ने झ लाकर कहा।
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“अरे बड़ी ग भीर बात है। देखो, वहाँ कु छ ऐसी-वैसी बात मत कहना लड़क से, वरना
उसके यहाँ दो बड़े-बड़े बुलडॉग ह।” कहकर उसने गाल फु लाकर, आँख फै लाकर ऐसी
बुलडॉग क भंिगमा बनायी क च दर हँस पड़ा। सुधा भी हँस पड़ी।
ऐसी थी सुधा, और ऐसा था च दर।
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Hi
िसिवल लाइ स के एक उजाड़ िह से म एक पुराने-से बँगले के सामने आकर मोटर क ।
बँगले का नाम था 'रोजलान' ले कन सामने के क पाउं ड म जंगली घास उग रही थी और
गुलाब के फू ल के बजाय अहाते म मुरगी के पंख िबखरे पड़े थे। रा ते पर भी घास उग
आयी थी और और फाटक पर, िजसके एक ख भे क कॉ नस टू ट चुक थी, बजाय लोहे के
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दरवाजे के दो आड़े बाँस लगे ए थे। फाटक के एक ओर एक छोटा-सा लकड़ी का नामपटल
लगा था, जो कभी काला रहा होगा, ले कन िजसे धूल, बरसात और हवा ने िचतकबरा
बना दया था। च दर मोटर से उतरकर उस बोड पर िलखे ए अधिमटे सफे द अ र को
पढऩे क कोिशश करने लगा, और जाने कसका मुँह देखकर सुबह उठा था क उसे सफलता
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भी िमल गयी। उस पर िलखा था, 'ए. एफ. िड ू ज'। उसने जेब से िलफाफा िनकाला और
पता िमलाया। िलफाफे पर िलखा था, 'िमस पी. िड ू ज'। यही बँगला है, उसे स तोष आ।
“हॉन दो!” उसने ाइवर से कहा। ाइवर ने हॉन दया। ले कन कसी का बाहर आना तो
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दूर, एक मुरगा, जो अहाते म कु डक़ु ड़ा रहा था, उसने मुडक़र बड़े स देह और ास से च दर
क ओर देखा और उसके बाद पंख फडफ़ड़ाते ए, चीखते ए जान छोडक़र भागा। “बड़ा
मन स बँगला है, यहाँ आदमी रहते ह या ेत?” कपूर ने ऊबकर कहा और ाइवर से
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बोला, “जाओ तुम, हम अ दर जाकर देखते ह!”
“अ छा जूर, सुधा बीबी से या कह दगे?”
“कह देना, प चँ ा दया।”
कार मुड़ी और कपूर बाँस फाँदकर अ दर घुसा। आगे का पो टको खाली पड़ा था और नीचे
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क जमीन ऐसी थी जैसे कई साल से उस बँगले म कोई सवारी गाड़ी न आयी हो। वह
बरामदे म गया। दरवाजे ब द थे और उन पर धूल जमी थी। एक जगह चौखट और दरवाजे
के बीच म मकड़ी ने जाला बुन रखा था। 'यह बँगला खाली है या?' कपूर ने सोचा। सुबह
साढ़े आठ बजे ही वहाँ ऐसा स ाटा छाया था क दल घबरा जाय। आस-पास चार ओर
आधी फलाग तक कोई बँगला नह था। उसने सोचा बँगले के पीछे क ओर शायद नौकर
क झ पिडय़ाँ ह । वह दाय बाजू से मुड़ा और खुशबू का एक तेज झ का उसे चूमता आ
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थी, झ क म खुशबू थी, ले कन फर भी सारा बाग एक ऐसे िसतार का गुलद ता लग रहा
था िजनक चमक, िजनक रोशनी और िजनक ऊँचाई लुट चुक हो। लगता था जैसे बाग
का मािलक मौसमी रं गीनी भूल चुका हो, य क नै ट शयम या वीटपी या ला स, कोई
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भी मौसमी फू ल न था, िसफ गुलाब थे और जंगली चमेली थी और बेगमबेिलया थी जो
साल पहले बोये गये थे। उसके बाद उ ह क काट-छाँट पर बाग चल रहा था। बागबानी
म कोई नवीनता और मौसम का उ लास न था।
च दर फू ल का बेहद शौक न था। सुबह घूमने के िलए उसने द रया कनारे के बजाय
अ े ड पाक चुना था य क पानी क लहर के बजाय उसे फू ल के बाग के रं ग और
सौरभ क लहर से बेहद यार था। और उसे दूसरा शौक था क फू ल के पौध के पास से
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गुजरते ए हर फू ल को समझने क कोिशश करना। अपनी नाजुक टहिनय पर हँसते-
मुसकराते ए ये फू ल जैसे अपने रं ग क बोली म आदमी से जंदगी का जाने कौन-सा राज
कहना चाहते ह। और ऐसा लगता है क जैसे हर फू ल के पास अपना ि गत स देश है
िजसे वह अपने दल क पाँखु रय म आिह ते से सहेज कर रखे ए ह क कोई सुनने वाला
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िमले और वह अपनी दा ताँ कह जाए। पौधे क ऊपरी फु नगी पर मुसकराता आ आसमान
क तरफ मुँह कये ए यह गुलाब जो रात-भर िसतार क मुसकराहट चुपचाप पीता रहा
है, यह अपने मोितय -पाँखु रय के होठ से जाने य िखलिखलाता ही जा रहा है। जाने
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इसे कौन-सा रह य िमल गया है। और वह एक नीचे वाली टहनी म आधा झुका आ
गुलाब, झुक ई पलक -सी पाँखु रयाँ और दोहरे मखमली तार-सी उसक डंडी, यह
गुलाब जाने य उदास है? और यह दुबली-पतली ल बी-सी नाजुक कली जो ब त
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सावधानी से हरा आँचल लपेटे है और थम ात-यौवना क तरह लाज म जो िसमटी तो
िसमटी ही चली जा रही है, ले कन िजसके यौवन क गुलाबी लपट सात हरे परद म से
झलक ही पड़ती ह, झलक ही पड़ती ह। और फारस के शाहजादे जैसा शान से िखला आ
पीला गुलाब! उस पीले गुलाब के पास आकर च दर क गया और झुककर देखने लगा।
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काितक पूनो के चाँद से झरने वाले अमृत को पीने के िलए ाकु ल कसी सुकुमार, भावुक
परी क फै ली ई अंजिल के बराबर बड़ा-सा वह फू ल जैसे रोशनी िबखेर रहा था।
बेगमबेिलया के कुं ज से छनकर आनेवाली तोतापंखी धूप ने जैसे उस पर धान-पान क तरह
खुशनुमा ह रयाली िबखेर दी थी। च दर ने सोचा, उसे तोड़ ल ले कन िह मत न पड़ी। वह
झुका क उसे सूँघ ही ल। सूँघने के इरादे से उसने हाथ बढ़ाया ही था क कसी ने पीछे से
गरजकर कहा, “हीयर यू आर, आई हैव काट रे ड-है डेड टु ड!े ” (यह तुम हो; आज तु ह मौके
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पर पकड़ पाया )ँ
और उसके बाद कसी ने अपने दोन हाथ म जकड़ िलया और उसक गरदन पर सवार हो
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है। हो...हो...,” वह हाँफता जा रहा था, “आज मने पकड़ा तु ह। रोज चुपके से चले जाते
थे...” वह च दर को कसकर पकड़े था ले कन उस बीमार गोरे क साँस जैसे छू टी जा रही
थी। च दर ने उसे झटका देकर धके ल दया और डाँटकर बोला, “ या मतलब है तु हारा!
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पागल है या! खबरदार जो हाथ बढ़ाया, अभी ढेर कर दूग ँ ा तुझे! गोरा सुअर!” और उसने
अपनी आ तीन चढ़ाय ।
वह ध े से िगर गया था, धूल झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवाज म बोला,
“ कतना जु म है, कतना जु म है! मेरे फू ल भी तुम चुरा ले गये और मुझे इतना हक भी
नह क तु ह धमकाऊँ! अब तुम मुझसे लड़ोगे! तुम जवान हो, म बूढ़ा ।ँ हाय रे म!” और
सचमुच वह जैसे रोने लगा हो।
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च दर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गु सा हवा हो गया और हँसी रोककर बोला,
“गलतफहमी है, जनाब! म ब त दूर रहता ।ँ म िच ी लेकर िमस िड ू ज से िमलने आया
था।”
उसका रोना नह का, “तुम बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर म िव ास
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नह करता तो तुम मारने क धमक देते हो? अगर म कमजोर न होता...तो तु ह पीसकर
खा जाता और तु हारी खोपड़ी कु चलकर फक देता जैसे तुमने मेरे फू ल फके ह गे?”
“ फर तुमने गाली दी! म उठाकर तु ह अभी नाले म फक दूग
is ँ ा!”
“अरे बाप रे ! दौड़ो, दौड़ो, मुझे मार डाला...पॉपी...टॉमी...अरे दोन कु े मर गये...।”
उसने डर के मारे चीखना शु कया।
“ या है, बट ? य िच ला रहे हो?” बाथ म के अ दर से कसी ने िच लाकर कहा।
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“अरे मार डाला इसने...दौड़ो-दौड़ो!”
झटके से बाथ म का दरवाजा खुला बे दङ् -गाउन पहने ए एक लड़क दौड़ती ई आयी
और च दर को देखकर क गयी।
“ या है?” उसने डाँटकर पूछा।
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तु हारे दाँत तोड़ दूगँ ा। बदमाश कह का, चुपके -चुपके आया और गुलाब तोडऩे लगा। म
चमेली के झाड़ के पीछे िछपा देख रहा था।”
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“देिखए तो यह खत!”
लड़क ने खत खोला और पढ़ा और एकदम उसने आवाज बदल दी।
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“िछः बट , तुम कसी दन पागलखाने जाओगे। आपको डॉ. शु ला ने भेजा है। तुम तो मुझे
बदनाम करा डालोगे!”
उसक श ल और भी रोनी हो गयी , “म नह जानता था, म जानता नह था।” उसने और
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भी घबराकर कहा।
“माफ क िजएगा!” लड़क ने बड़े मीठे वर म साफ िह दु तानी म कहा, “मेरे भाई का
दमाग ज़रा ठीक नह रहता, जब से इनक प ी क मौत हो गयी।”
“इसका मतलब ये नह क ये कसी भले आदमी क इ त उतार ल।” च दर ने िबगडक़र
कहा।
“देिखए, बुरा मत मािनए। म इनक ओर से माफ माँगती ।ँ आइए, अ दर चिलए।” उसने
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च दर का हाथ पकड़ िलया। उसका हाथ बेहद ठ डा था। वह नहाकर आ रही थी। उसके
हाथ के उस तुषार पश से च दर िसहर उठा और उसने हाथ झटककर कहा, “अफसोस,
आपका हाथ तो बफ है?”
लड़क च क गयी। वह स : ाता सहसा सचेत हो गयी और बोली, “अरे शैतान तु ह ले
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जाए, बट ! तु हारे पीछे म बे दङ् गाउन म भाग आयी।” और बे दङ् गाउन के दोन कालर
पकडक़र उसने अपनी खुली गरदन ढँकने का यास कया और फर अपनी पोशाक पर
लि त होकर भागी। is
अभी तक गु से के मारे च दर ने उस पर यान ही नह दया था। ले कन उसने देखा क वह
तेईस बरस क दुबली-पतली त णी है। लहराता आ बदन, गले तक कटे ए बाल। एं लो-
इं िडयन होने के बावजूद गोरी नह है। चाय क तरह वह ह क , पतली, भूरी और तुश थी।
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भागते व ऐसी लग रही थी जैसे छलकती ई चाय।
इतने म वह गोरा उठा और च दर का क धा छू कर बोला, “माफ करना, भाई! उससे मेरी
िशकायत मत करना। असल म ये गुलाब मेरी मृत प ी क यादगार ह। जब इनका पहला
पेड़ आया था तब म इतना ही जवान था िजतने तुम, और मेरी प ी उतनी ही अ छी थी
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िजतनी प मी।”
“कौन प मी?”
“यह मेरी बहन िमला िड ू ज!”
“ओह! कब मरी आपक प ी?ï माफ क िजएगा मुझे भी मालूम नह था!”
“हाँ, म बड़ा अभागा ।ँ मेरा दमाग कु छ खराब है; देिखए!” कहकर उसने झुककर अपनी
खोपड़ी च दर के सामने कर दी और ब त िगड़िगड़ाकर बोला, “पता नह कौन मेरे फू ल
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होठ पर एक ह क िलपि टक क झलक मा थी, और गले तक ब त ह का पाउडर, जो
ब त नजदीक से ही मालूम होता था। ल बे नाखून पर ह क गुलाबी पट। वह आयी,
िन संकोच भाव से उसी सोफे पर कपूर के बगल म बैठ गयी और बड़ी मुलायम आवाज म
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बोली, “मुझे बड़ा दु:ख है, िम टर कपूर! आपको ब त तवालत उठानी पड़ी। चोट तो नह
आयी?”
“नह , नह , कोई बात नह !” कपूर का सारा गु सा हवा हो गया। कोई भी लड़क
िन:संकोच भाव से, इतनी अपनायत से सहानुभूित दखाये और माफ माँगे, तो उसके
सामने कौन पानी-पानी नह हो जाएगा, और फर वह भी तब जब क उसके होठ पर न
के वल बोली अ छी लगती हो, वरन िलपि टक भी इतनी यारी हो। ले कन च दर क एक
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आदत थी। और चाहे कु छ न हो, कम-से-कम वह यह अ छी तरह जानता था क नारी
जाित से वहार करते समय कहाँ पर कतनी ढील देनी चािहए, कतना कसना चािहए,
कब सहानुभूित से उ ह झुकाया जा सकता है, कब अकड़कर। इस व जानता था क इस
लड़क से वह िजतनी सहानुभूित चाहे, ले सकता है, अपने अपमान के हजाने के तौर पर।
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इसिलए कपूर साहब बोले, “ले कन िमस िड ू ज, आपके भाई बीमार होने के बावजूद ब त
मजबूत ह। उफ! गरदन पर जैसे अभी तक जलन हो रही है।”
“ओहो! सचमुच म ब त श म दा ।ँ देखूँ!” और कालर हटाकर उसने गरदन पर अपनी
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बफ ली अँगुिलयाँ रख द , “लाइए, लोशन मल दूँ म!”
“ध यवाद, ध यवाद, इतना क न क िजए। आपक अँगुिलयाँ ग दी हो जाएँगी!” कपूर ने
बड़ी शालीनता से कहा।
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प मी के होठ पर एक ह क -सी मु कराहट, आँख म ह क -सी लाज और व म एक
ह का-सा क पन दौड़ गया। यह वा य कपूर ने चाहे शरारत म ही कहा हो, ले कन कहा
इतने शा त और संयत वर म क प मी कु छ ितवाद भी न कर सक और फर छह बरस
से साठ बरस तक क कौन ऐसी ी है जो अपने प क शंसा पर बेहोश न हो जाए।
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“अ छा लाइए, वह पीच कहाँ है जो मुझे टाइप करनी है।” उसने िवषय बदलते ए कहा।
ब त िश ता से पूछा।
“जी नह !” प मी ने उ ह कागज पर नजर गड़ाते ए कहा, “मने कभी टाइ पंग और
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शाटहड सीखी थी, और तब म सीिनयर के ि ज पास करके यूिनव सटी गयी थी।
यूिनव सटी मुझे छोडऩी पड़ी य क मने अपनी शादी कर ली।”
“अ छा, आपके पित कहाँ ह?”
“रावल पंडी म, आम म।”
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“िम टर कपूर, आप अिववािहत ह?”
“जी हाँ?”
“और िववाह करने का इरादा तो नह रखते?”
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“नह ।”
“ब त अ छे। तब तो हम लोग म िनभ जाएगी। म शादी से ब त नफरत करती ।ँ शादी
अपने को दया जानेवाला सबसे बड़ा धोखा है। देिखए, ये मेरे भाई ह न, कै से पीले और
बीमार-से ह। ये पहले बड़े त दु त और टेिनस म ा त के अ छे िखलािडय़ म से थे। एक
िबशप क दुबली-पतली भावुक लड़क से इ ह ने शादी कर ली, और उसे बेहद यार करते
थे। सुबह-शाम, दोपहर, रात कभी उसे अलग नह होने देते थे। हनीमून के िलए उसे लेकर
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सीलोन गये थे। वह लड़क ब त कलाि य थी। ब त अ छा नाचती थी, ब त अ छा गाती
थी और खुद गीत िलखती थी। यह गुलाब का बाग उसी ने बनवाया था और इ ह के बीच
म दोन बैठकर घंट गुजार देते थे।
“कु छ दन बाद दोन म झगड़ा आ। लब म बॉल डा स था और उस दन वह लड़क
h
ब त अ छी लग रही थी। ब त अ छी। डा स के व इनका यान डा स क तरफ कम था,
अपनी प ी क तरफ यादा। इ ह ने आवेश म उसक अँगुिलयाँ जोर से दबा द । वह चीख
पड़ी और सभी इन लोग क ओर देखकर हँस पड़े।
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“वह घर आयी और ब त िबगड़ी, बोली, 'आप नाच रहे थे या टेिनस का मैच खेल रहे थे,
मेरा हाथ था या टेिनस का रै कट?' इस बात पर बट भी िबगड़ गया, और उस दन से जो
इन लोग म खटक तो फर कभी न बनी। धीरे -धीरे वह लड़क एक साजट को यार करने
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लगी। बट को इतना सदमा आ क वह बीमार पड़ गया। ले कन बट ने तलाक नह
दया, उस लड़क से कु छ कहा भी नह , और उस लड़क ने साजट से यार जारी रखा
ले कन बीमारी म बट क ब त सेवा क । बट अ छा हो गया। उसके बाद उसको एक
ब ी ई और उसी म वह मर गयी। हालाँ क हम लोग सब जानते ह क वह ब ी उस
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करने लगी। च दर घूमकर कताब देखने लगा। एक कोने म कु छ मराठी क कताब रखी
थ । उसे बड़ा ता ुब आ-”अ छा प मी, ओह, माफ क िजएगा, िमस िड ू ज...”
“नह , आप मुझे प मी पुकार सकते ह। मुझे यही नाम अ छा लगता है-हाँ, या पूछ रहे थे
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आप?”
“ या आप मराठी भी जानती ह?”
“नह , म तो नह , मेरी नानीजी जानती थ । या आपको डॉ टर शु ला ने हमलोग के
बारे म कु छ नह बताया?”
“नह !” कपूर ने कहा।
“अ छा! ता ुब है!” प मी बोली, “आपने ेनाली िड ू ज का नाम सुना है न?”
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“हाँ हाँ, िड ू ज िज ह ने कौशा बी क खुदाई करवायी थी। वह तो ब त बड़े पुरात ववे ा
थे?” कपूर ने कहा।
“हाँ, वही। वह मेरे सगे नाना थे। और वह अँ ेज नह थे, मराठा थे और उ ह ने मेरी नानी
से शादी क थी जो एक क मीरी ईसाई मिहला थ । उनके कारण भारत म उ ह ईसाइयत
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अपनानी पड़ी। यह मेरे नाना का ही मकान है और अब हम लोग को िमल गया है। डॉ.
शु ला के दो त िम टर ीवा तव बै र टर ह न, वे हमारे खानदान के ऐटन थे। उ ह ने
और डॉ. शु ला ने ही यह जायदाद हम दलवायी। लीिजए, मशीन तो ठीक हो गयी।”
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उसने टाइपराइटर म काबन और कागज लगाकर कहा, “लाइए िनब ध!”
इसके बाद घंटे-भर तक टाइपराइटर का नह । कपूर ने देखा क यह लड़क जो वहार
म इतनी सरल और प है, फै शन म इतनी नाजुक और शौक न है, काम करने म उतनी ही
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मेहनती और तेज भी है। उसक अँगुिलयाँ मशीन क तरह चल रही थ । और तेज इतनी क
एक घंटे म उसने लगभग आधी पांडुिलिप टाइप कर डाली थी। ठीक एक घ टे के बाद उसने
टाइपराइटर ब द कर दया, बगल म बैठे ए कपूर क ओर झुककर कहा, “अब थोड़ी देर
आराम।” और अपनी अँगुिलयाँ चटखाने के बाद वह कु रसी िखसकाकर उठी और एक
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भरपूर अँगड़ाई ली। उसका अंग-अंग धनुष क तरह झुक गया। उसके बाद कपूर के क धे
पर बेतक लुफ से हाथ रखकर बोली, “ य , एक याला चाय मँगवायी जाय?”
“म तो पी चुका ।ँ ”
“ले कन मुझसे तो काम होने से रहा अब िबना चाय के ।” प मी एक अ हड़ ब ी क तरह
बोली, और अ दर चली गयी। कपूर ने टाइप कये ए कागज उठाये और कलम िनकालकर
उनक गलितयाँ सुधारने लगा। चाय पीकर थोड़ी देर म प मी वापस आयी और बैठ गयी।
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और अपने तलाक के बाद मुझे लो-इं िडयन समाज से नफरत हो गयी है। म अपने दल से
िह दु तानी ।ँ ले कन िह दु तािनय से घुलना-िमलना हमारे िलए स भव नह । घर म
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अके ले रहती ।ँ िसगरे ट और चाय से तबीयत बदल जाती है। कताब का मुझे शौक
नह ।”
“तलाक के बाद आपने पढ़ाई जारी य नह रखी?” कपूर ने पूछा।
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“मने कहा न, क कताब का मुझे शौक नह िब कु ल!” प मी बोली। “और म अपने को
आदिमय म घुलने-िमलने के लायक नह पाती। तलाक के बाद साल-भर तक म अपने घर
म ब द रही। म और बट । िसफ बट से बात करने का मौका िमला। बट मेरा भाई, वह भी
बीमार और बूढ़ा। कह कोई तक लुफ क गुंजाइश नह । अब म हरे क से बेतक लुफ से
बात करती ँ तो कु छ लोग मुझ पर हँसते ह, कु छ लोग मुझे स य समाज के लायक नह
समझते, कु छ लोग उसका गलत मतलब िनकालते ह। इसिलए मने अपने को अपने बँगले म
&
ही कै द कर िलया है। अब आप ही ह, आज पहली बार मने देखा आपको। म समझी ही नह
क आपसे कतना दुराव रखना चािहए। अगर आप भलेमानस न ह तो आप इसका गलत
मतलब िनकाल सकते ह।”
“अगर यही बात हो तो...” कपूर हँसकर बोला, “स भव है क म भलेमानस बनने के
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बजाय गलत मतलब िनकालना यादा पस द क ँ ।”
“तो स भव है म मजबूर होकर आपसे भी न िमलूँ!” प मी ग भीरता से बोली।
“नह , िमस िड ू ज...” is
“नह , आप प मी किहए, िड ू ज नह !”
“प मी सही, आप गलत न समझ, म मजाक कर रहा था।” कपूर बोला। उसने इतनी देर म
समझ िलया था क यह साधारण ईसाई छोकरी नह है।
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इतने म बट लडख़ड़ाता आ, हाथ म धूल सना खुरपा िलये आया और चुपचाप खड़ा हो
गया और अपनी धुँधली पीली आँख से एकटक कपूर को देखने लगा। कपूर ने एक कु रसी
िखसका दी और कहा, “आइए!” प मी उठी और बट के क धे पर एक हाथ रखकर उसे
सहारा देकर कु रसी पर िबठा दया। बट बैठ गया और आँख ब द कर ल । उसका बीमार
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मने झट अपनी आँख ढँक ल क कह आँख का पीलापन देख न ले। मने कहा, तबीयत अब
ठीक है, म अ छा ँ तो उठी और जाने लगी। मने पूछा, कहाँ चली, तो बोली साजट के
साथ ज़रा लब जा रही ।ँ तुमने सुना था प मी?”
कपूर त ध-सा उन दोन क ओर देख रहा था। प मी ने कपूर को आँख का इशारा करते
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“वह बोली, बट के ये गुलाब साजट से यादा यारे ह।” प मी बोली।
“अ छा!” मुसकराहट से बट का चेहरा िखल उठा, उसक पीली-पीली आँख और धँस गय
और दाँत बाहर झलकने लगे, “ !ँ या कहा उसने, फर तो कहो!”
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उसने कहा, “ये गुलाब साजट से यादा यारे ह, फर इ ह गुलाब पर नाचती रही और
सुबह होते ही इ ह फू ल म िछप गयी! तु ह सुबह कसी फू ल म तो नह िमली?”
“उ ,ँ तु ह तो कसी फू ल म नह िमली?” बट ने ब के -से भोले िव ास के वर म कपूर
से पूछा।
च दर च क उठा। प मी और बट क इन बात पर उसका मन बेहद भर आया था। बट
क मुसकराहट पर उसक नस थरथरा उठी थ ।
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“नह ; मने तो नह देखा था।” च दर ने कहा।
बट ने फर मायूसी से िसर झुका िलया और आँख ब द कर ल और कराहती ई आवाज म
बोला, “िजस फू ल म वह िछप गयी थी, उसी को कसी ने चुरा िलया होगा!” फर सहसा
वह तनकर खड़ा हो गया और पुचकारते ए बोला, “जाने कौन ये फू ल चुराता है! अगर
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मुझे एक बार िमल जाए तो म उसका खून ऐसे पी लूँ!” उसने हाथ क अँगुली काटते ए
कहा और उठकर लडख़ड़ाता आ चला गया।
वातावरण इतना भारी हो गया था क फर प मी और कपूर ने कोई बात नह क । प मी
is
ने चुपचाप टाइप करना शु कया और कपूर चुपचाप बट क बात सोचता रहा। घंटा-
भर बाद टाइपराइटर खामोश आ तो कपूर ने कहा-
“प मी, मने िजतने लोग देखे ह उनम शायद बट सबसे िविच है और शायद सबसे
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दयनीय!”
प मी खामोश रही। फर उसी लापरवाही से अँगड़ाई लेते ए बोली, “मुझे बट क बात
पर ज़रा भी दया नह आती। म उसको दलासा देती ँ य क वह मेरा भाई है और ब े
क तरह नासमझ और लाचार है।”
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खूबसूरत होने के िलए आदमी क जंदगी म इतनी बड़ी ेजेडी आना ज री है तो लानत है
उस फू ल क खूबसूरती पर! म उससे नफरत करती ।ँ इसीिलए म कताब से नफरत
करती ।ँ एक कहानी िलखने के िलए कतनी कहािनय क ेजेडी बदा त करनी होती
है।”
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प मी चुप हो गयी। उसका चेहरा सुख हो गया था। थोड़ी देर बाद उसका तैश उतर गया
और वह अपने आवेश पर खुद शरमा गयी। उठकर वह कपूर के पास गयी और उसके क ध
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पर हाथ रखकर बोली, “बट से मत कहना, अ छा?”
कपूर ने िसर िहलाकर वीकृ ित दी और कागज समेटकर खड़ा आ। प मी ने उसके क ध
पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर घुमाकर कहा, “देखो, िपछले चार साल से म अके ली थी,
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और कसी दो त का इ तजार कर रही थी, तुम आये और दो त बन गये। तो अब अ सर
आना, ?”
“अ छा!” कपूर ने ग भीरता से कहा।
“डॉ. शु ला से मेरा अिभवादन कहना, कभी यहाँ ज र आएँ।”
“आप कभी चिलए, वहाँ उनक लड़क है। आप उससे िमलकर खुश ह गी।”
प मी उसके साथ फाटक तक प च ँ ाने चली तो देखा बट एक चमेली के झाड़ म टहिनयाँ
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हटा-हटाकर कु छ ढू ँढ़ रहा था। प मी को देखकर पूछा उसने-”तु ह याद है; वह चमेली के
झाड़ म तो नह िछपी थी?” कपूर ने पता नह य ज दी प मी को अिभवादन कया और
चल दया। उसे बट को देखकर डर लगता था।
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सुधा का कॉलेज बड़ा एका त और खूबसूरत जगह बना आ था। दोन ओर ऊँची-सी मेड़
और बीच म से कं कड़ क एक खूबसूरत घुमावदार सड़क। दाय ओर चने और गे ँ के खेत,
बेर और शहतूत के झाड़ और बाय ओर ऊँचे-ऊँचे टीले और ताड़ के ल बे-ल बे पेड़। शहर
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से काफ बाहर देहात का-सा नजारा और इतना शा त वातावरण लगता था क यहाँ कोई
उथल-पुथल, कोई शोरगुल है ही नह । जगह इतनी हरी-भरी क दज के कमर के पीछे ही
म आ चूता था और ल बी-ल बी घास क दुपह रया के नीले फू ल क जंगली लतर उलझी
रहती थ ।
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और इस वातावरण ने अगर कसी पर सबसे यादा भाव डाला था तो वह थी गेसू। उसे
अ छी तरह मालूम था क बाँस के झाड़ के पीछे कस चीज के फू ल ह। पुराने पीपल पर
िगलोय क लतर चढ़ी है और कर दे के झाड़ के पीछे एक साही क माँद है। नागफनी क
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झाड़ी के पास एक बार उसने एक लोमड़ी भी देखी थी। शहर के एक मश र रईस सािबर
सैन काजमी क वह सबसे बड़ी लड़क थी। उसक माँ, िज ह उसके िपता अदन से याह
कर लाये थे, शहर क मश र शायरा थ । हालाँ क उनका दीवान छपकर मश र हो चुका
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था, मगर वह कसी भी बाहरी आदमी से कभी नह िमलती-जुलती थ , उनक सारी
दुिनया अपने पित और अपने ब तक सीिमत थी। उ ह शायराना नाम रखने का ब त
शौक था। अपनी दोन लड़ कय का नाम उ ह ने गेसू और फू ल रखा था और अपने छोटे
ब े का नाम हसरत। हाँ, अपने पितदेव सािबर साहब के े से बेहद िचढ़ती थ और
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घनी छाँह म हरी-हरी दूब म दोन िसर के नीचे हाथ रखकर लेट रहत और दुिनया-भर
क बात करत । बात म छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी कस तरह क बात करती थ ,
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यह वही समझ सकता है िजसने कभी दो अिभ सहेिलय क एका त वाता सुनी हो।
गािलब क शायरी से लेकर, उनके छोटे भाई हसरत ने एक कु े का िप ला पाला है, यह
गेसू सुनाया करती थी और शरत के उप यास से लेकर यह क उसक मािलन ने िगलट का
कड़ा बनवाया है, यह सुधा बताया करती थी। दोन अपने-अपने मन क बात एक-दूसरे को
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दोन म एक अ तर था। गेसू शायर होते ए भी इस दुिनया क थी और सुधा शायर न होते
ए भी क पनालोक क थी। गेसू अगर झािड़य म से कु छ फू ल चुनती तो उ ह सूँघती, उ ह
अपनी चोटी म सजाती और उन पर च द शे'र कहने के बाद भी उ ह माला म िपरोकर
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अपनी कलाई म लपेट लेती। सुधा लतर के बीच म िसर रखकर लेट जाती और िन नमेष
पलक से फू ल को देखती रहती और आँख से न जाने या पीकर उ ह उ ह क डाल पर
फू लता आ छोड़ देती। गेसू हर चीज का उिचत इ तेमाल जानती थी, कसी भी चीज को
पस द करने या यार करने के बाद अब उसका या उपयोग है, या मक यथाथ जीवन म
उसका या थान है, यह गेसू खूब समझती थी। ले कन सुधा कसी भी फू ल के जादू म बँध
जाना चाहती थी, उसी क क पना म डू ब जाना जानती थी, ले कन उसके बाद सुधा को
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कु छ नह मालूम था। गेसू क क पना और भावुक सू मता शायरी म हो जाती थी,
अत: उसक जंदगी म काफ ावहा रकता और यथाथ था, ले कन सुधा, जो शायरी
िलख नह सकती थी, अपने वभाव और गठन म खुद ही एक मासूम शायरी बन गयी थी।
वह भी िपछले दो साल म तो सचमुच ही इतनी ग भीर, सुकुमार और भावनामयी बन
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गयी थी क लगता था क सूर के गीत से उसके ि व के रे शे बुन गये ह।
लड़ कयाँ, गेसू और सुधा के इस वभाव और उनक अिभ ता से वा कफ थ । और इसिलए
जब आज सुधा क मोटर आकर सायबान म क और उसम से सुधा और गेसू हाथ म
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फाइल िलये उतर तो कािमनी ने हँसकर भा से कहा, “लो, च दा-सूरज क जोड़ी आ
गयी!” सुधा ने सुन िलया। मुसकराकर गेसू क ओर फर कािमनी और भा क ओर
देखकर हँस दी। सुधा ब त कम बोलती थी, ले कन उसक हँसी ने उसे खुशिमजाज सािबत
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कर रखा था और वह सभी क यारी थी। भा ने आकर सुधा के गले म बाँह डालकर कहा,
“गेसू बानो, थोड़ी देर के िलए सुधारानी को हम दे दो। जरा कल के नो स उतारने ह इनसे
पूछकर।”
गेसू हँसकर बोली, “उसके पापा से तय कर ले, फर तू जंदगी भर सुधा को पाल-पोस, मुझे
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या करना है।”
जब सुधा भा के साथ चली गयी तो गेसू ने कािमनी के क धे पर हाथ रखा और कहा,
“क मो रानी, अब तो तु ह हमारे िह से म पड़ी, आओ। चलो, देख लतर म कु द ह?”
“कु द तो नह , अब चने का खेत ह रया आया है।” क मो बोली।
गृह-िव ान का पी रयड था और िमस उमालकर पढ़ा रही थ । बीच क कतार क एक बच
पर कािमनी, भा, गेसू और सुधा बैठी थ । िह सा बाँट अभी तक कायम था, अत: कािमनी
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के बगल म गेसू, गेसू के बगल म भा और भा के बाद बच के कोने पर सुधा बैठी थी। िमस
उमालकर रोिगय के खान-पान के बारे म समझा रही थ । मेज के बगल म खड़ी ई, हाथ
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सहसा गेसू ने एकदम बीच से पूछा, “गु जी, गाँधी जी आलू खाते ह या नह ?” सभी हँस
पड़े।
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िमस उमालकर ने ब त गु से से गेसू क ओर देखा और डाँटकर कहा, “ हाइ टॉक ऑव
गाँधी? आई वा ट नो पोिल टकल िड शन इन लास। (गाँधी से या मतलब? म दज म
राजनीितक बहस नह चाहती।)” इस पर तो सभी लड़ कय क दबी ई हँसी फू ट पड़ी।
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िमस उमालकर झ ला गय और मेज पर कताब पटकते ए बोल , “साइले स
(खामोश)!” सभी चुप हो गये। उ ह ने फर पढ़ाना शु कया।
“िजगर के रोिगय के िलए हरी तरका रयाँ ब त फायदेम द होती ह। लौक , पालक और
हर क म के हरे साग त दु ती के िलए ब त फायदेम द होते ह।”
सहसा भा ने कु हनी मारकर गेसू से कहा, “ले, फर या है, िनकाल चने का हरा साग,
खा-खाकर मोटे ह िमस उमालकर के घंटे म!”
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गेसू ने अपने कु रते क जेब से ब त-सा साग िनकालकर कािमनी और भा को दया।
िमस उमालकर अब श र के हािन-लाभ बता रही थ , “ल बे रोग के बाद रोगी को श र
कम देनी चािहए। दूध या साबूदाने म ताड़ क िम ी िमला सकते ह। दूध तो लूकोज के
साथ ब त वा द लगता है।”
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इतने म जब तक सुधा के पास साग प च ँ ा क फौरन िमस उमालकर ने देख िलया। वह
समझ गय , यह शरारत गेसू क होगी, “िमस गेसू, बीमारी क हालत म दूध काहे के साथ
वा द लगता है?” is
इतने म सुधा के मुँह से िनकला, “साग काहे के साथ खाएँ?” और गेसू ने कहा, “नमक के
साथ!”
“ ?ँ नमक के साथ?” िमस उमालकर ने कहा, “बीमारी म दूध नमक के साथ अ छा लगता
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है। खड़ी हो! कहाँ था यान तु हारा?”
गेसू स । िमस उमालकर का चेहरा मारे गु से के लाल हो रहा था।
“ या बात कर रही थ तुम और सुधा?”
गेसू स !
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जमीन पर बादल क साँवली छायाएँ दौड़ रही थ । घास के ल बे-चौड़े मैदान पर बादल
क छाया का खेल बड़ा मासूम लग रहा था। िजतनी दूर तक छाँह रहती थी, उतनी दूर
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तक घास का रं ग गहरा काही हो जाता था, और जहाँ-जहाँ बादल से छनकर धूप बरसने
लगती थी वहाँ-वहाँ घास सुनहरे धानी रं ग क हो जाती थी। दूर कह पर पानी बरसा था
और बादल ह के होकर खरगोश के मासूम व छ द ब क तरह दौड़ रहे थे। सुधा आँख
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पर फाइल क छाँह कये ए बादल क ओर एकटक देख रही थी। गेसू ने उसक ओर
करवट बदली और उसक वेणी म लगे ए रे शमी फ ते को उँ गली म उमेठते ए एक
ल बी-सी साँस भरकर कहा-
बादशाह क मुअ र वाबगाह म कहाँ
वह मजा जो भीगी-भीगी घास पर सोने म है,
मुतमइन बे फ लोग क हँसी म भी कहाँ
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लु फ जो एक-दूसरे को देखकर रोने म है।
सुधा ने बादल से अपनी िनगाह नह हटायी, बस एक क ण सपनीली मुसकराहट
िबखेरकर रह गयी।
या देख रही है, सुधा?” गेसू ने पूछा।
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“बादल को देख रही ।ँ ” सुधा ने बेहोश आवाज म जवाब दया। गेसू उठी और सुधा क
छाती पर िसर रखकर बोली-
कै फ बरदोश, बादल को न देख, is
बेखबर, तू न कु चल जाय कह !
और सुधा के गाल म जोर क चुटक काट ली। “हाय रे !” सुधा ने चीखकर कहा और उठ
बैठी, “वाह वाह! कतना अ छा शेर है! कसका है?”
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“पता नह कसका है।” गेसू बोली, “ले कन ब त सच है सुधी, आ माँ के बादल के दामन
म अपने वाब टाँक लेना और उनके सहारे जंदगी बसर करने का खयाल है तो बड़ा
नाजुक, मगर रानी बड़ा खतरनाक भी है। आदमी बड़ी ठोकर खाता है। इससे तो अ छा है
क आदमी को नाजुकखयाली से सािबका ही न पड़े। खाते-पीते, हँसते-बोलते आदमी क
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जंदगी कट जाए।”
सुधा ने अपना आँचल ठीक कया, और लट म से घास के ितनके िनकालते ए कहा, “गेसू,
अगर हम लोग को भी शादी- याह के झंझट म न फँ सना पड़े और इसी तरह दन कटते
जाएँ तो कतना मजा आए। हँसते-बोलते, पढ़ते-िलखते, घास म लेटकर बादल से यार
करते ए कतना अ छा लगता है, ले कन हम लड़ कय क जंदगी भी या! म तो सोचती
ँ गेसू; कभी याह ही न क ँ । हमारे पापा का यान कौन रखेगा?”
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गेसू थोड़ी देर तक सुधा क आँख म आँख डालकर शरारत-भरी िनगाह से देखती रही
और मुसकराकर बोली, “अरे , अब ऐसी भोली नह हो रानी तुम! ये शबाब, ये उठान और
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तेरे अ तर िमयाँ का? मँगनी कब होगी तेरी?”
“मँगनी या, कसी भी दन हो जाय, बस फू फ जान के यहाँ आने-भर क कसर है। वैसे
अ मी तो फू ल क बात उनसे चला रही थ , पर उ ह ने मेरे िलए इरादा जािहर कया। बड़े
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अ छे ह, आते ह तो घर-भर म रोशनी छा जाती है।” गेसू ने ब त भोलेपन से गोद म सुधा
का हाथ रखकर उसक उँ गिलयाँ िचटकाते ए कहा।
“वे तो तेरे चचाजाद भाई ह न? तुझसे तो पहले उनसे बोल-चाल रही होगी।” सुधा ने
पूछा।
“हाँ-हाँ, खूब अ छी तरह से। मौलवी साहब हम लोग को साथ-साथ पढ़ाते थे और जब
हम दोन सबक भूल जाते थे तो एक-दूसरे का कान पकडक़र साथ-साथ उठते-बैठते थे।”
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गेसू कु छ झपते ए बोली।
सुधा हँस पड़ी, “वाह रे ! ेम क इतनी िविच शु आत मने कह नह सुनी थी। तब तो
तुम लोग एक-दूसरे का कान पकडऩे के िलए अपने-आप सबक भूल जाते ह गे?”
“नह जी, एक बार फर पढक़र कौन सबक भूलता है और एक बार सबक याद होने के बाद
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जानती हो इ क म या होता है-
मकतबे इ क म इक ढंग िनराला देखा,
उसको छु ी न िमली िजसको सबक याद आ"
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“खैर, यह सब बात जाने दे सुधा, अब तू कब याह करे गी?”
“ज दी ही क ँ गी।” सुधा बोली।
“ कससे?”
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“तुझसे।” और दोन िखलिखलाकर हँस पड़ ।
बादल हट गये थे और पाकड़ क छाँह को चीरते ए एक सुनहली रोशनी का तार
िझलिमला उठा। हँसते व गेसू के कान के टॉप चमक उठे और सुधा का यान उधर खंच
गया। “ये कब बनवाया तूने?”
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“बनवाया नह ।”
“तो उ ह ने दये ह गे, य ?”
गेसू ने शरमाकर िसर िहला दया।
सुधा ने उठकर हाथ से छू ते ए कहा, “ कतने सु दर कमल ह! वाह! य , गेसू! तूने सचमुच
के कमल देखे ह?”
“न।”
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ल बा-सा स टा लेकर गािलयाँ देती ई आती थ मुझे पकड़ने के िलए। जहाँ वह कनारे
पर प च ँ त तो म कहती, अभी डू ब जाएँगे बुआ, अभी डू बे, तो ब त रबड़ी-मलाई क
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लालच देकर वह िम त करत -िनकल आओ, तो म िनकलती थी। तुमने तो कभी देखा नह
होगा हमारी बुआ को?”
“न, तूने कभी दखाया ही नह ।”
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“इधर ब त दन से आय ही नह वे। आएँगी तो दखाऊँगी तुझे। और उनक एक लड़क
है। बड़ी यारी, ब त मजे क है। उसे देखकर तो तुम उसे ब त यार करोगी। वो तो अब
यह आने वाली है। अब यह पढ़ेगी।”
“ कस दज म पढ़ती है?”
“ ाइवेट िवदुषी म बैठेगी इस साल। खूब गोल-मटोल और हँसमुख है।” सुधा बोली।
इतने म घंटा बोला और गेसू ने सुधा के पैर के नीचे दबी ई अपनी ओढ़नी ख ची।
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“अरे , अब आिखरी घंटे म जाकर या पढ़ोगी! हािजरी कट ही गयी। अब बैठो यह
बातचीत कर, आराम कर।” सुधा ने अलसाये वर म कहा और खड़ी होकर एक मदमाती
ई अँगड़ाई ली-गेसू ने हाथ पकडक़र उसे िबठा िलया और बड़ी ग भीरता से कहा, “देखो,
ऐसी अरसौह अँगड़ाई न िलया करो, इससे लोग समझ जाते ह क अब बचपन करवट
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बदल रहा है।”
“धत्!” बेहद झपकर और फाइल म मुँह िछपाकर सुधा बोली।
“लो, तुम मजाक समझती हो, एक शायर ने तु हारी अँगड़ाई के िलए कहा है-
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कौन ये ले रहा है अँगड़ाई
आसमान को न द आती है”
“वाह!” सुधा बोली, “अ छा गेसू, आज ब त-से शेर सुनाओ।”
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“सुनो-
इक रदायेतीरगी है और खाबेकायनात
डू बते जाते ह तारे , भीगती जाती है रात!”
“पहली लाइन के या मतलब ह?” सुधा ने पूछा।
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पर बैठ गयी।
गेसू बाहर खड़ी थी। “चल तू भी न!”
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“नह , म गाड़ी पर चली जाऊँगी।”
“अरे चलो, गाड़ी साढ़े चार बजे जाएगी। अभी घंटा-भर है। घर पर चाय िपएँगे, फर
मोटर प च ँ ा देगी। जब तक पापा नह ह, तब तक िजतना चाहो कार िघसो!”
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गेसू भी आ बैठी और कार चल दी।
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जब वह बँगले पर प च ँ ा तो धूप फै ल चुक थी। अब धूप भली नह मालूम देती थी, धूप क
तेजी बदा त के बाहर होने लगी थी, ले कन सुधा नीलकाँटे के ऊँचे-ऊँचे झाड़ क छाँह म
एक छोटी-सी कु रसी डाले बैठी थी। बगल म एक छोटी-सी मेज थी िजस पर कोई कताब
खुली ई रखी थी, हाथ म ोिशया थी और उँ गिलयाँ एक नाजुक तेजी से डोरे से उलझ-
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सुलझ रही थ । ह के बादामी रं ग क इकलाई क लहराती ई धोती, नारं गी और काली
ितरछी धा रय का कलफ कया चु त लाउज और एक क धे पर उभरा एक उसका पफ
ऐसा लग रहा था जैसे क बाँह पर कोई रं गीन िततली आकर बैठी ई हो और उसका िसफ
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एक पंख उठा हो! अभी-अभी शायद नहाकर उठी थी य क शरद क खुशनुमा धूप क
तरह हलके सुनहले बाल पीठ पर लहरा रहे थे। नीलकाँटे क टहिनयाँ उनको सुनहली लहर
समझकर अठखेिलयाँ कर रही थ ।
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च दर क साइ कल जब अ दर दख पड़ी तो सुधा ने उधर देखा ले कन कु छ भी न कहकर
फर अपनी ोिशया बुनने म लग गयी। च दर सीधा पो टको म गया और अपनी साइ कल
रखकर भीतर चला गया डॉ. शु ला के पास। टडी- म म, बैठक म, सोने के कमरे म कह
भी डॉ. शु ला नजर नह आये। हारकर वह बाहर आया तो देखा मोटर अभी गैरज म है।
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या नह !”
“हाँ-हाँ, देनी है तो म या क ँ ? नहा रहे ह गे। अभी कोई ये तो है नह क तुम िनब ध क
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िलिप लाये हो तो कोई नहाये-धोये न, बस सुबह से बैठा रहे क अब िनब ध आ रहा है,
अब आ रहा है!” सुधा ने मुँह बनाकर आँख नचाते ए कहा।
“तो सीधे य नह कहती क नहा रहे ह।” च दर ने सुधा के गु से पर हँसकर कहा। च दर
क हँसी पर तो सुधा का िमजाज और भी िबगड़ गया और अपनी ोिशया उठाकर और
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खबरदार कोई बोलना मत!”
सुधा जाते-जाते मुडक़र खड़ी हो गयी।
“हमने कह दया च दर एक बार क हम ये सब बात अ छी नह लगत । जब देखो तुम
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िचढ़ाते रहते हो!” सुधा ने गु से से कहा।
“नह ! िचढ़ाएँगे नह तो पूजा करगे! तुम अपने मौके पर छोड़ देती हो!” च दर ने उसी
लापरवाही से कहा।
सुधा गयी नह । वह घास पर बैठ गयी और कताब खोलकर पढऩे लगी। जब पाँच िमनट
तक वह कु छ नह बोली तो च दर ने सोचा आज बात कु छ ग भीर है।
“सुधा!” उसने बड़े दुलार से पुकारा। “सुधा!”
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सुधा ने कु छ नह कहा मगर दो बड़े-बड़े आँसू टप से नीचे कताब पर िगर गये।
“अरे या बात है सुधा, नह बताओगी?”
“कु छ नह ।”
“बता दो, तु ह हमारी कसम है।”
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“कल शाम को तुम आये नह ...” सुधा रोनी आवाज म बोली।
“बस इस बात पर इतनी नाराज हो, पागल!”
“हाँ, इस बात पर इतनी नाराज !ँ तुम आओ चाहे हजार बार न आओ; इस पर हम य
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नाराज ह गे! बड़े कह के आये, नह आएँगे तो जैसे हमारा घर-बार नह है। अपने को जाने
या समझ िलया है!” सुधा ने िचढक़र जवाब दया।
“अरे तो तु ह तो कह रही थी, भाई।” च दर ने हँसकर कहा।
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“तो बात पूरी भी सुनो। शाम को गेसू का नौकर आया था। उसके छोटे भाई हसरत क
सालिगरह थी। सुबह 'कु रानखानी' होने वाली थी और उसक माँ ने बुलाया था।”
“तो गयी य नह ?”
“गयी य नह ! कससे पूछकर जाती? आप तो इस व आ रहे ह जब सब ख म हो
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“कहगे-कहगे नह , आज दोपहर को आप बुला लाइए, वरना हम सब कताब म लगाये
देते ह आग। समझे क नह !”
“अ छा-अ छा, आज दोपहर को बुला लाएँगे। ठीक, अ छा याद आया िबस रया से क ग ँ ा
Hi
तु ह पढ़ाने के िलए। उसे पये क ज रत भी है।” च दर ने छु टकारे का कोई रा ता न
पाकर कहा।
“आज दोपहर को ज र से।” सुधा ने फर आँख नचाकर कहा। “लो, पापा आ गये नहाकर,
जाओ!”
च दर उठा और चल दया। सुधा उठी और अ दर चली गयी।
डॉ. शु ला ह के -साँवले रं ग के जरा थूलकाय-से थे। ब त ग भीर अ ययन और अ यापन
&
और उ के साथ-साथ ही उनक न ता और भी बढ़ती जा रही थी।
ले कन वे लोग से िमलते-जुलते कम थे। ि गत दो ती उनक कसी से नह थी। ले कन
उ र भारत के मुख िव ान् होने के नाते का े स म, मौिखक परी ा म, सरकारी
कमे टय म वे बराबर बुलाये जाते थे और इसम मुख दलच पी से िह सा लेते थे। ऐसी
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जगह म च दर अ सर उनका मुख सहायक रहता था और इसी नाते च दर भी ा त के
बड़े-बड़े लोग से प रिचत हो गया था। जब वह एम. ए. पास आ था तब से फाइने स
िवभाग म उसे कई बार ऊँचे-ऊँचे पद का 'ऑफर' आ चुका था ले कन डॉ. शु ला इसके
is
िखलाफ थे। वे चाहते थे क पहले वह रसच पूरी कर ले। स भव हो तो िवदेश हो आये, तब
चाहे कु छ काम करे । अपने ि गत जीवन म डॉ. शु ला अ त वरोध के ि थे।
पा टय म मुसलमान और ईसाइय के साथ खाने म उ ह कोई एतराज नह था ले कन
gl
क ा खाना वे चौके म आसन पर बैठकर, रे शमी धोती पहनकर खाते थे। सरकार को
उ ह ने सलाह दी क साधु और सं यािसय को जबरद ती काम म लगाया जाए और
मि दर क जायदाद ज त कर ली जाएँ, ले कन सुबह घंटे-भर तक पूजा ज र करते थे।
पूजा-पाठ, खान-पान, जात-पाँत के प े हामी, ले कन ि गत जीवन म कभी यह नह
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“वह मर गयी।”
“राम-राम, तब तो घर ही बदल गया होगा।”
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“पापा, पूजा के िलए सब िबछा दया है।” सहसा सुधा बोली।
“अ छा बेटी, अ छा च दर, म पूजा कर आऊँ ज दी से। तुम चाय पी चुके?”
“जी हाँ।”
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“अ छा तो मेरी मेज पर एक चाट है, जरा इसको ठीक तो कर दो तब तक। म अभी
आया।”
च दर टडी- म म गया और मेज पर बैठ गया। कोट उतारकर उसने खूँटी पर टाँग दया
और न शा देखने लगा। पास म एक छोटी-सी चीनी क याली म चाइना इं क रखी थी और
मेज पर पानी। उसने दो बूँद पानी डालकर चाइना इं क िघसनी शु क , इतने म सुधा
कमरे म दािखल, “ऐ सुनो!” उसने चार ओर देखकर बड़े सशं कत वर म कहा और फर
&
झुककर च दर के कान के पास मुँह लगाकर कहा, “चावल क नानखटाई खाओगे?”
“ये या बला है?” च दर ने इं क िघसते-िघसते पूछा।
“बड़ी अ छी चीज होती है; पापा को ब त अ छी लगती है। आज हमने सुबह अपने हाथ
से बनायी थी। , खाओगे?” सुधा ने बड़े दुलार से पूछा।
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“ले आओ।” च दर ने कहा।
“ले आये हम, लो!” और सुधा ने अपने आँचल म िलपटी ई दो नानखटाई िनकालकर मेज
पर रख दी। is
“अरे त तरी म य नह लायी? सब धोती म घी लग गया। इतनी बड़ी हो गयी, शऊर
नह जरा-सा।” च दर ने िबगडक़र कहा।
“िछपा करके लाये ह, फर ये सकरी होती ह क नह ? चौके के बाहर कै से लाते! तु हारे
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िलये तो लाये ह और तु ह िबगड़ रहे हो। अ धे को नोन दो, अ धा कहे मेरी आँख फोड़ ।”
सुधा ने मुँह बनाकर कहा, “खाना है क नह ?”
“हाथ म तो हमारे याही लगी है।” च दर बोला।
“हम अपने हाथ से नह िखलाएँगे, हमारा हाथ जूठा हो जाएगा और राम राम! पता नह
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पर िब दु क एक सघनता से मृ यु-सं या का िनदश करना था। च दर क एक आदत थी
वह काम म लगता था तो भूत क तरह लगता था। फर उसे दीन-दुिनया, कसी क खबर
नह रहती थी। खाना-पीना, तन-बदन, कसी का होश नह रहता था। इसका एक कारण
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था। च दर उन लड़क म से था िजनक जंदगी बाहर से ब त ह क -फु क होते ए भी
अ दर से ब त ग भीर और अथमयी होती है, िजनके सामने एक प उ े य, एक ल य
होता है। बाहर से चाहे जैसे होने पर भी अपने आ त रक स य के ित घोर ईमानदारी यह
इन लोग क िवशेषता होती है और सारी दुिनया के ित अग भीर और उ छृ ंखल होने पर
भी जो चीज इनक ल यप रिध म आ जाती ह, उनके ित उनक ग भीरता, साधना और
पूजा बन जाती है। इसिलए बाहर से इतना ि वादी और सारी दुिनया के ित िनरपे
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और लापरवाह दख पडऩे पर भी वह अ तरतम से समाज और युग और अपने आसपास के
जीवन और ि य के ित अपने को बेहद उ रदायी अनुभव करता था। वह देशभ भी
था और शायद समाजवादी भी, पर अपने तरीके से। वह ख र नह पहनता था, कां ेस का
सद य नह था, जेल नह गया था, फर भी वह अपने देश को यार करता था। बेहद यार।
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उसक देशभि , उसका समाजवाद, सभी उसके अ ययन और खोज म समा गया था। वह
यह जानता था क समाज के सभी त भ का थान अपना अलग होता है। अगर सभी
मि दर के कं गूरे का फू ल बनने क कोिशश करने लग तो न व क ट और सीढ़ी का प थर
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कौन बनेगा? और वह जानता था क अथशा वह प थर है िजस पर समाज के सारे भवन
का बोझ है। और उसने िन य कया था क अपने देश, अपने युग के आ थक पहलू को वह
खूब अ छी तरह से अपने ढंग से िव ेषण करके देखेगा और उसे आशा थी क वह एक दन
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ऐसा समाधान खोज िनकालेगा क मानव क ब त-सी सम याएँ हल हो जाएँगी और
आ थक और राजनीितक े म अगर आदमी खूँखार जानवर बन गया है तो एक दन
दुिनया उसक एक आवाज पर देवता बन सके गी। इसिलए जब वह बैठकर कानपुर क
िमल के मजदूर के वेतन का चाट बनाता था, या उपयु साधन के अभाव म मर जाने
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ढाँचा बदल देने-भर क ज रत नह है। उसके िलए आदमी का सुधार करना होगा, ि
का सुधार करना होगा। वरना एक भरे -पूरे और वैभवशाली समाज म भी आज के -से
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अ व थ और पाशिवक वृि य वाले ि रहगे तो दुिनया ऐसी ही लगेगी जैसे एक
खूबसूरत सजा-सजाया महल िजसम क ड़े और रा स रहते ह ।
वह यह भी समझता था क वह िजस तरह क दुिनया का सपना देखता, वह दुिनया आज
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कसी भी एक राजनीितक ाि त या कसी भी िवशेष पाट क सहायता मा से नह बन
सकती है। उसके िलए आदमी को अपने को बदलना होगा, कसी समाज को बदलने से काम
नह चलेगा। इसिलए वह अपने ि के संसार म िनर तर लगा रहता था और समाज के
आ थक पहलू को समझने क कोिशश करता रहता था। यही कारण है क अपने जीवन म
आनेवाले ि य के ित वह बेहद ईमानदार रहता था और अपने अ ययन और काम के
ित वह सचेत और जाग क रहता था और वह अ छी तरह समझता था क इस तरह वह
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दुिनया को उस ओर बढ़ाने म थोड़ी-सी मदद कर रहा है। चूँ क अपने म भी वह स य क
वही िचनगारी पाता था इसिलए किव या दाशिनक न होते ए भी वह इतना भावुक,
इतना दृढ़-च र , इतना सश और इतना ग भीर था और काम तो अपना वह इस तरह
करता था जैसे वह कसी क एका उपासना कर रहा हो। इसिलए जब वह चाट के न शे
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पर कलम चला रहा था तो उसे मालूम नह आ क कतनी देर से डॉ. शु ला आकर उसके
पीछे खड़े हो गये।
“वाह, न शे पर तो तु हारा हाथ ब त अ छा चलता है। ब त अ छा! अब उसे रहने दो।
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लाओ, देख, तु हारा काम कै सा चल रहा है। आज तो इतवार है न?”
डॉ. शु ला पास क कु रसी पर बैठकर बोले, “च दर! आजकल म एक कताब िलखने क
सोच रहा ।ँ मने सोचा क भारतवष क जाित- व था का नये वै ािनक ढंग से अ ययन
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और िव ेषण कया जाए। तुम इसके बारे म या सोचते हो?”
“ थ है! जो व था आज नह तो कल चूर-चूर होने जा रही है, उसके बारे म तूमार
बाँधना और समय बरबाद करना बेकार है।” च दर ने ब त आ मिव ास से कहा।
“यही तो तुम लोग म खराबी है। कु छ थोड़ी-सी खरािबयाँ जाित- व था क देख ल और
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उसके िखलाफ हो गये। एक रसच कॉलर का दृि कोण ही दूसरा होना चािहए। फर
हमारे भारत क ाचीन सां कृ ितक पर परा को तो ब त ही सावधानी से समझने क
आव यकता है। यह समझ लो क मानव जाित दुबल नह है। अपने िवकास- म म वह
उ ह सं था , रीित- रवाज और पर परा को रहने देती है जो उसके अि त व के िलए
ब त आव यक होती है। अगर वे आव यक न तो मानव उससे छु टकारा माँग लेता है।
यह जाित- व था जाने कतने साल से िह दु तान म कायम है, या यही इस बात का
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से कायम है तो या वह भी ज री है।”
“िब कु ल ज री है।” डॉ. शु ला बोले, “मुझे भी िह दु तान पर गव है। मने कभी कां ेस
का काम कया, ले कन म इसे नतीजे पर प च ँ ा ँ क जरा-सी आजादी अगर िमलती है
िह दु तािनय को, तो वे उसका भरपूर दु पयोग करने से बाज नह आते और कभी भी ये
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िह दु तान ने ही तो च गु और अशोक पैदा कये थे और रही जाित- व था क बात तो
मुझे तो प दख रहा है क जाित- व था टू ट रही है।” कपूर बोला, “रोटी-बेटी क कै द
थी। रोटी क कै द तो करीब-करीब टू ट गयी, अब बेटी क कै द भी... याह-शा दयाँ भी दो-
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एक पीढ़ी के बाद व छ दता से होने लगगी।”
“अगर ऐसा होगा तो ब त गलत होगा। इससे जाितगत पतन होता है। याह-शादी को
कम-से-कम म भावना क दृि से नह देखता। यह एक सामािजक त य है और उसी
दृि कोण से हम देखना चािहए। शादी म सबसे बड़ी बात होती है सां कृ ितक समानता।
और जब अलग-अलग जाित म अलग-अलग रीित- रवाज ह तो एक जाित क लड़क
दूसरी जाित म जाकर कभी भी अपने को ठीक से स तुिलत नह कर सकती। और फर एक
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बिनया क ापा रक वृि य क लड़क और एक ा ïण का अ ययन वृि का लड़का,
इनक स तान न इधर िवकास कर सकती है न उधर। यह तो सामािजक व था को थ
के िलए अस तुिलत करना आ।”
“हाँ, ले कन िववाह को आप के वल समाज के दृि कोण से य देखते ह? ि के दृि कोण
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से भी देिखए। अगर दो िविभ जाित के लड़के -लड़क अपना मानिसक स तुलन यादा
अ छा कर सकते ह तो य न िववाह क इजाजत दी जाए!”
“ओह, एक ि के सुझाव के िलए हम समाज को य नुकसान प च
is ँ ाएँ! और इसका
या िन य क िववाह के समय य द दोन म मानिसक स तुलन है तो िववाह के बाद भी
रहेगा ही। मानिसक स तुलन और ेम िजतना अपने मन पर आधा रत होता है उतना ही
बाहरी प रि थितय पर। या जाने याह के व क प रि थित का दोन के मन पर
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कतना भाव है और उसके बाद स तुलन रह पाता है या नह ? और मने तो लव-मै रजेज
( ेम-िववाह) को असफल ही होते देखा है। बोलो है या नह ?” डॉ. शु ला ने कहा।
“हाँ, ेम-िववाह अकसर असफल होते ह, ले कन स भव है वह ेम न होता हो। जहाँ स ा
ेम होगा वहाँ कभी असफल िववाह नह ह गे।” च दर ने ब त साहस करके कहा।
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चाट बना डालो और एक िनब ध िलख डालना - 'पूव िजल म िशशु मृ यु।' ा त के
वा य िवभाग ने एक पुर कार घोिषत कया है।”
डॉ. शु ला चले गये। च दर ने फर चाट म हाथ लगाया।
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च दर के जाने के जरा ही देर बाद पापा आये और खाने बैठे। सुधा ने रसोई क रे शमी धोती
पहनी और पापा को पंखा झलने बैठ गयी। सुधा अपने पापा क िसरचढ़ी दुलारी बे टय म
से थी और इतनी बड़ी हो जाने पर भी वह दुलार दखाने से बाज नह आती थी। फर आज
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तो उसने पापा क ि य नानखटाई अपने हाथ से बनायी थी। आज तो दुलार दखाने का
उसका हक था और भली-बुरी हर तरह क िजद को मान लेना करना, यह पापा क
मजबूरी थी।
मुि कल से डॉ. साहब ने अभी दो कौर खाये ह गे क सुधा ने कहा, “नानखटाई खाओ,
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पापा!”
डॉ. शु ला ने एक नानखटाई तोडक़र खाते ए कहा, “ब त अ छी है!” खाते-खाते उ ह ने
पूछा, “सोमवार को कौन दन है, सुधा!”
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“सोमवार को कौन दन है? सोमवार को 'म डे' है।” सुधा ने हँसकर कहा। डॉ. शु ला भी
अपनी भूल पर हँस पड़े। “अरे देख तो म कतना भुल ड़ हो गया ।ँ मेरा मतलब था क
सोमवार को कौन तारीख है?”
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“11 तारीख।” सुधा बोली, “ य ?”
“कु छ नह , 10 को कॉ े स है और 14 को तु हारी बुआ आ रही ह।”
“बुआ आ रही ह, और िबनती भी आएगी?”
“हाँ, उसी को तो प चँ ाने आ रही ह। िवदुषी का के यह तो है।”
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“तब?”
“बस हम पढ़गे। एफ.ए. कर लगे, फर बी.ए., फर एम.ए., फर रसच, फर बराबर पढ़ते
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“ला, रख।”
“नह , पहले बता दो।”
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“अ छा-अ छा, नह करगे।”
सुधा ने दोन नानखटाइयाँ रखकर पंखा झलना शु कया। इतने म फर नानखटाइयाँ
खाते ए डॉ. शु ला बोले, “तेरी सास तुझे देखने आएगी तो यही नानखटाइयाँ तुमसे
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बनवा कर िखलाएँगे।”
“ फर वही बात!” सुधा ने पंखा पटककर कहा, “अभी तुम वादा कर चुके हो क याह नह
करगे।”
“हाँ-हाँ, याह नह क ँ गा, यह तो कह दया मने। ले कन तेरा याह नह क ँ गा, यह मने
कब कहा?”
“हाँ आँ, ये तो फर झूठ बोल गये तुम...” सुधा बोली।
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“अ छा, ए! चलो ओहर।” महरािजन ने डाँटकर कहा, “ए ी बड़ी िब टया हो गयी, मारे
दुलारे के बररानी जात है।” महरािजन पुरानी थी और सुधा को डाँटने का पूरा हक था उसे,
और सुधा भी उसका ब त िलहाज करती थी। वह उठी और चुपचाप जाकर अपने कमरे म
लेट गयी। बारह बज रहे थे।
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वह लेटी-लेटी कल रात क बात सोचने लगी। लास म या मजा आया था कल; गेसू
कतनी अ छी लड़क है! इस व गेसू के यहाँ खाना-पीना हो रहा होगा और फर सब
लोग िमलकर गाएँगे। कौन जाने शायद दोपहर को क वाली भी हो। इन लोग के यहाँ
is
क वाली इतनी अ छी होती है। सुधा सुन नह पाएगी और गेसू ने भी कतना बुरा माना
होगा। और यह सब च दर क वजह से। च दर हमेशा उसके आने-जाने, उठने-बैठने म
कतर- य त करता रहता है। एक बार वह अपने मन से लड़ कय के साथ िपकिनक म चली
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गयी। वह च दर के ब त-से दो त भी थे। एक दो त ने जाकर च दर से जाने या कह
दया क च दर उस पर ब त िबगड़ा। और सुधा कतनी रोयी थी उस दन। यह च दर
ब त खराब है। सच पूछो तो अगर कभी-कभी वह सुधा का कहना मान लेता है तो उससे
दुगुना सुधा पर रोब जमाता है और सुधा को ला- लाकर मार डालता है। और खुद अपने-
En
आप दुिनयाभर म घूमगे। अपना काम होगा तो 'चलो सुधा, अभी करो, फौरन।' और सुधा
का काम होगा तो-'अरे भाई, या कर, भूल गये।' अब आज ही देखो, सुबह आठ बजे आये
और अब देखो दो बजे भी जनाब आते ह या नह ? और कह गये ह दो बजे तक के िलए तो
दो बजे तक सुधा को चैन नह पड़ेगी। न न द आएगी, न कसी काम म तबीयत लगेगी।
ले कन अब ऐसे काम कै से चलेगा। इ तहान को कतने थोड़े दन रह गये ह। और सुधा क
तबीयत िसवा पोय ी (किवता) के और कु छ पढऩे म लगती ही नह । कब से वह च दर से
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उसके हाथ म िमठाई थी जो उसक माँ ने सुधा के िलए भेजी थी। वह पल-भर खड़ी रही
और फर उसने मेज पर िमठाई रख दी और ोिशया से सुधा क गदन गुदगुदाने लगी।
सुधा ने करवट बदल ली। गेसू ने नीचे पड़ा आ डोरा उठाया और आिह ते से उसका
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चुटीला डोरे के एक छोर से बाँधकर दूसरा छोर मेज के पाये से बाँध दया। और उसके बाद
बोली, “सुधा, सुधा उठो।”
सुधा च ककर उठ गयी और आँख मलते-मलते बोली, “अब दो बजे ह? लाये उ ह या
नह ?”
“ओहो! उ ह लाये या नह कसे बुलाया था रानी, दो बजे; जरा हम भी तो मालूम हो?”
गेसू ने बाँह म चुटक काटते ए पूछा।
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“उ फोह!” सुधा बाँह झटककर बोली, “मार डाला! बेदद कह क ! ये सब अपने उ ह
अ तर िमयाँ को दखाया कर!” और य ही सुधा ने िसर ढँकने के िलए प ला उठाया तो
देखा क चोटी डोर म बँधी ई है। इसके पहले क सुधा कु छ कहे, गेसू बोली, “या सनम!
जरा पढ़ाई तो देखो, मने तो सुना था क न द न आये इसिलए लड़के अपनी चोटी खूँटी म
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बाँध लेते ह पर यह नह मालूम था क लड़ कयाँ भी अब वही करने लगी ह।”
सुधा ने चोटी से डोर खोलते ए कहा, “म ही सताने को रह गयी ।ँ अ तर िमयाँ क
चोटी बाँधकर नचाना उ ह। अभी से बेताब य ई जाती है?”
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“अरे रानी, उनके चोटी कहाँ? िमयाँ ह िमयाँ?”
“चोटी न सही, दाढ़ी सही।”
“दाढ़ी, खुदा खैर करे , मगर वो दाढ़ी रख ल तो म उनसे मोह बत तोड़ लूँ।”
gl
सुधा हँसने लगी।
“ले, अ मी ने तेरे िलए िमठाई भेजी है। तू आयी य नह ?”
“ या बताऊँ?”
“बताऊँ-वताऊँ कु छ नह । अब कब आएगी तू?”
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“गेसू, सुनो, इसी मंगल, नह -नह बृह पित को बुआ आ रही ह। वो चली जाएँगी तब
आऊँगी म।”
“अ छा, अब म चलूँ। अभी कािमनी और भा के यहाँ िमठाई प च ँ ानी है।”
गेसू मुड़ते ए बोली।
“अरे बैठो भी।” सुधा ने गेसू क ओढऩी पकडक़र उसे ख चकर िबठलाते ए कहा, “अभी
आये हो, बैठे हो, दामन सँभाला है।”
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डू बी रहती है हमेशा।” गेसू ने सुधा क ओर देखते ए कहा।
“धत् पगली कह क ।” सुधा ने गेसू के एक ह क -सी चपत मारकर कहा, “यह सब तेरे
अपने खयाली-पुलाव ह। म कसी के यान म डू बूँगी, ये हमारे गु ने नह िसखाया।”
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“गु तो कसी के नह िसखाते सुधा रानी, िब कु ल सच-सच, या कभी तु हारे मन म
कसी के िलए मोह बत नह जागी?” गेसू ने ब त ग भीरता से पूछा।
“देख गेसू, तुझसे मने आज तक तो कभी कु छ नह िछपाया, न शायद कभी िछपाऊँगी।
अगर कभी कोई बात होती तो तुझसे िछपी न रहती और रहा मुह बत का, तो सच पूछ तो
मने जो कु छ कहािनय म पढ़ा है क कसी को देखकर म रोने लगूँ, गाने लगूँ, पागल हो
जाऊँ यह सब कभी मुझे नह आ। और रह किवताएँ तो उनम क बात मुझे ब त अ छी
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लगती ह। क स क किवताएँ पढक़र ऐसा लगा है अ सर क मेरी नस का कतरा-कतरा
आँसू बनकर छलकने वाला है। ले कन वह महज किवता का असर होता है।”
“महज किवता का असर,” गेसू ने पूछा, “कभी कसी खास आदमी के िलए तेरे मन म हँसी
या आँसू नह उमड़ते! कभी अपने मन को जाँचकर तो देख, कह तेरी नाजुक-खयाली के
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परदे म कसी एक क सूरत तो नह िछपी है।”
“नह गेसू बानो, नह , इसम मन को जाँचने क या बात है। ऐसी बात होती और मन
कसी के िलए झुकता तो या खुद मुझे नह मालूम होता?” सुधा बोली, “ले कन तुम ऐसा
is
य सोचती हो?”
“बात यह है, सुधी!” गेसू ने सुधा को अपनी गोद म ख चते ए कहा, “देखो, तुम मुझसे
इ म म ऊँची हो, तुमने अँ ेजी शायरी छान डाली है ले कन जंदगी से िजतना मुझे
gl
सािबका पड़ चुका है, अभी तु ह नह पड़ा। अ सर कब, कहाँ और कै से मन अपने को हार
बैठता है, यह खुद हम पता नह लगता। मालूम तब होता है जब िजसके कदम पर हमने
िसर रखा है, वह झटके से अपने कदम घसीट ले। उस व हमारी न द टू ट जाती है और तब
हम जाकर देखते ह क अरे हमारा िसर तो कसी के कदम पर रखा आ था और उनके
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सुधा ने अपना िसर उठाया और घड़ी क ओर देखकर कहा-
“ओ फोह, साढ़े तीन बजे गये और अभी तक गायब!”
“ कसके इ तजार म बेताब है तू?” गेसू ने उठकर पूछा।
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“बस दद दल, मुह बत, इ तजार, बेताबी, तेरे दमाग म तो यही सब भरा रहता है आज
कल, वही तू सबको समझती है। इ तजार-िव तजार नह , च दर अभी मा टर लेकर
आएँगे। अब इ तहान कतना नजदीक है।”
“हाँ, ये तो सच है और अभी तक मुझसे पूछ, या पढ़ाई ई है। असल बात तो यह है क
कॉलेज म पढ़ाई हो तो घर म पढऩे म मन लगे और राजा कॉलेज म पढ़ाई नह होती।
इससे अ छा सीधे यूिनव सटी म बी.ए. करते तो अ छा था। मेरी तो अ मी ने कहा क
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वहाँ लड़के पढ़ते ह, वहाँ नह भेजूँगी, ले कन तू य नह गयी, सुधा?”
“मुझे भी च दर ने मना कर दया था।” सुधा बोली।
सहसा गेसू ने एक ण को सुधा क ओर देखा और कहा, “सुधी, तुझसे एक बात पूछूँ!”
“हाँ!”
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“अ छा जाने दे!”
“पूछो न!”
“नह , पूछना या, खुद जािहर है।”
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“ या?”
“कु छ नह ।”
“पूछो न!”
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“अ छा, फर कभी पूछ लगे! अब देर हो रही है। आधा घंटा हो गया। कोचवान बाहर खड़ा
है।”
सुधा गेसू को प च
ँ ाने बाहर तक आयी।
“कभी हसरत को लेकर आओ।” सुधा बोली।
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करे गा। इस बात पर सुधा कभी-कभी दु:खी हो जाती है और घर म कससे वह कहे काम के
िलए। खुद कभी बाजार नह जाती। नतीजा यह होता है क वह छोटी-से-छोटी चीज के
िलए मोहताज होकर बैठ जाती है। और काम नौकर से करवा भी ले, पर अब मा टर तो
नौकर से नह ढु ँढ़वाया जा सकता? ऊन तो नौकर नह पस द कर सकता? कताब तो
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च दर ने आकर बरामदे म साइ कल रखी और सुधा का चेहरा देखते ही वह समझ गया।
“काहे मुँह बना रखा है, पाँच बजे मा टर साहब आएँगे तु हारे । अभी उ ह के यहाँ से आ
रहे ह। िबस रया को जानती हो, वही आएँगे।” और उसके बाद च दर सीधा टडी- म म
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प च ँ गया। वहाँ जाकर देखा तो आराम-कु स पर बैठे-ही-बैठे डॉ. शु ला सो रहे ह, अत:
उसने अपना चाट और पेन उठाया और ाइं ग म म आकर चुपचाप काम करने लगा।
बड़ा ग भीर था वह। जब इं क घोलने के िलए उसने सुधा से पानी नह माँगा और खुद
िगलास लाकर आँगन म पानी लेने लगा, तब सुधा समझ गयी क आज दमाग कु छ िबगड़ा
है। वह एकदम तड़प उठी। या करे वह! वैसे चाहे वह च दर से कतना ही ढीठ य न हो
पर च दर गु सा रहता था तब सुधा क ह काँप उठती थी। उसक िह मत नह पड़ती थी
&
क वह कु छ भी कहे। ले कन अ दर-ही-अ दर वह इतनी परे शान हो उठती थी क बस।
कई बार वह कसी-न- कसी बहाने से ाइं ग म म आयी, कभी गुलद ता बदलने, कभी
मेजपोश बदलने, कभी आलमारी म कु छ रखने, कभी आलमारी म से कु छ िनकालने, ले कन
च दर अपने चाट म िनगाह गड़ाये रहा। उसने सुधा क ओर देखा तक नह । सुधा क आँख
h
म आँसू छलक आये और वह चुपचाप अपने कमरे म चली गयी और लेट गयी। थोड़ी देर
वह पड़ी रही, पता नह य वह फू ट-फू टकर रो पड़ी। खूब रोयी, खूब रोयी और फर मुँह
धोकर आकर पढऩे क कोिशश करने लगी। जब हर अ र म उसे च दर का उदास चेहरा
is
नजर आने लगा तो उसने कताब ब द करके रख दी और ाइं ग म म गयी। च दर ने चाट
बनाना भी ब द कर दया था और कु रसी पर िसर टेके छत क ओर देखता आ जाने या
सोच रहा था।
gl
वह जाकर सामने बैठ गयी तो च दर ने च ककर िसर उठाया और फर चाट को सामने
िखसका िलया। सुधा ने बड़ी िह मत करके कहा-
“च दर!”
“ या!” बड़े भराये गले से च दर बोला।
En
“ या बात है, अगर बता सको तो बताओ, वरना हम कौन ह तुमसे पूछने वाले।” सुधा ने
बड़े क ण वर म कहा।
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“तो तु हारा दमाग खराब आ। हमने कभी तुमसे कोई बात िछपायी? जाओ, अ छी
लड़क क तरह मुँह धो आओ।”
सुधा उठी और मुँह धोकर आकर बैठ गयी।
Hi
“अब बताओ, या बात थी?”
“कोई एक बात हो तो बताएँ। पता नह तु हारे घर से गये तो एक-न-एक ऐसी बात होती
गयी क मन बड़ा उदास हो गया।”
“आिखर फर भी कोई बात तो ई ही होगी!”
“बात यह ई क तु हारे यहाँ से म घर गया खाना खाने। वहाँ देखा चाचाजी आये ए ह,
उनके साथ एक कोई साहब और ह। खैर बड़ी खुशी ई। खाना-वाना खाकर जब बैठे तब
&
मालूम आ क चाचाजी मेरा याह तय करने के िलए आये ह और साथ वाले साहब मेरे
होनेवाले ससुर ह। जब मने इनकार कर दया तो ब त िबगडक़र चले गये और बोले हम
आज से तु हारे िलए मर गये और तुम हमारे िलए मर गये।”
“तु हारी माताजी कहाँ ह?”
h
“ तापगढ़ म, ले कन वो तो सौतेली ह और वे तो चाहती ही नह क म घर लौटूँ, ले कन
चाचाजी ज र आज तक मुझसे कु छ मुह बत करते थे। आज वह भी नाराज होकर चले
गये।” is
सुधा कु छ देर तक सोचती रही, फर बोली, “तो च दर, तुम शादी कर य नह लेते?”
“नह सुधा, शादी नह करनी है मुझे। मने देखा क िजसक शादी ई, कोई भी सुखी नह
आ। सभी का भिव य िबगड़ गया। और य एक तवालत पाली जाए? जाने कै सी लड़क
gl
हो, या हो?”
“तो उसम या? पापा से कहो उस लड़क को जाकर देख ल। हम भी पापा के साथ चले
जाएँगे। अ छी हो तो कर लो न, च दर। फर यह रहना। हम अके ला भी नह लगेगा।
य ?”
En
“नह जी, तुम तो समझती नह हो। जंदगी िनभानी है क कोई गाय-भस खरीदना है!”
च दर ने हँसकर कहा, “आदमी एक-दूसरे को समझे, बूझे, यार करे , तब याह के भी कोई
माने ह।”
“तो उसी से कर लो िजससे यार करते हो!”
च दर ने कु छ जवाब नह दया।
“बोलो! चुप य हो गये! अ छा, तुमने कसी को यार कया, च दर!”
s
“ य ?”
“बताओ न!”
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“शायद नह !”
“िब कु ल ठीक, हम भी यही सोच रहे थे अभी।” सुधा बोली।
“ य , ये य सोच रही थी?”
“इसिलए क तुमने कया होता तो तुम हमसे थोड़़े ही िछपाते, हम ज र बताते, और नह
ov
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“कु छ नह , अभी गेसू आयी थी। वह बोली-सुधा, तुमने कसी से कभी यार कया है, असल
म वह अ तर को यार करती है। उससे उसका िववाह होनेवाला है। हाँ, तो उसने पूछा क
तूने कसी से यार कया है, हमने कहा, नह । बोली, तू अपने से िछपाती है। तो हम मन-
Hi
ही-मन म सोचते रहे क तुम आओगे तो तुमसे पूछगे क हमने कभी यार तो नह कया है।
य क तु ह एक हो िजससे हमारा मन कभी कोई बात नह िछपाता, अगर कोई बात
िछपाई भी होती हमने, तो तु ह ज र बता देती। फर हमने सोचा, शायद कभी हमने
यार कया हो और तु ह बताया हो, फर हम भूल गये ह । अभी उसी दन देखो, हम पापा
क दवाई का नाम भूल गये और तु ह याद रहा। शायद हम भूल गये ह और तु ह मालूम
हो। कभी हमने यार तो नह कया न?”
&
“नह , हम तो कभी नह बताया।” च दर बोला।
“तब तो हमने यार-वार नह कया। गेसू यूँ ही ग प उड़ा रही थी।” सुधा ने स तोष क
साँस लेकर कहा, “ले कन बस! चाचाजी के नाराज होने पर तुम इतने दु:खी हो गये हो! हो
जाने दो नाराज। पापा तो ह अभी, या पापा मुह बत नह करते तुमसे?”
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“सो य नह करते, तुमसे यादा मुझसे करते ह ले कन उनक बात से मन तो भारी हो ही
गया। उसके बाद गये िबस रया के यहाँ। िबस रया ने कु छ बड़ी अ छी किवताएँ सुनाय ।
और भी मन भारी हो गया।” च दर ने कहा।
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“लो, तब तो च दर, तुम यार करते होगे! ज र से?” सुधा ने हाथ पटककर कहा।
“ य ?”
“गेसू कह रही थी-शायरी पर जो उदास हो जाता है वह ज र मुह बत-वुह बत करता है।”
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सुधा ने कहा, “अरे यह पो टको म कौन है?”
च दर ने देखा, “लो िबस रया आ गया!”
च दर उसे बुलाने उठा तो सुधा ने कहा, “अभी बाहर िबठलाना उ ह, म तब तक कमरा
ठीक कर लूँ।”
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िबस रया को बाहर िबठाकर च दर भीतर आया, अपना चाट वगैरह समेटने के िलए, तो
सुधा ने कहा, “सुनो!”
च दर क गया।
सुधा ने पास आकर कहा, “तो अब तो उदास नह हो तुम। नह चाहते मत करो शादी,
इसम उदास या होना। और किवता-विवता पर मुँह बनाकर बैठे तो अ छी बात नह
होगी।”
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“अ छा!” च दर ने कहा।
“अ छा-व छा नह , बताओ, तु ह मेरी कसम है, उदास मत आ करो फर हमसे कोई
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काम नह होता।”
“अ छा, उदास नह ह गे, पगली!” च दर ने ह क -सी चपत मारकर कहा और बरबस
उसके मुँह से एक ठ डी साँस िनकली। उसने चाट उठाकर टडी म म रखा। देखा डॉ टर
साहब अभी सो ही रहे ह। सुधा कमरा ठीक कर रही थी। वह आकर िबस रया के पास बैठ
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गया।
थोड़ी देर म कमरा ठीक करके सुधा आकर कमरे के दरवाजे पर खड़ी हो गयी। च दर ने
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पूछा-” य , सब ठीक है?”
उसने िसर िहला दया, कु छ बोली नह ।
“यही ह आपक िश या। सु ी सुधा शु ला। इस साल बी.ए. फाइनल का इ तहान दगी।”
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िबस रया ने िबना आँख उठाये ही हाथ जोड़ िलये। सुधा ने हाथ जोड़े फर ब त सकु चा-सी
गयी। च दर उठा और िबस रया को लाकर उसने अ दर िबठा दया। िबस रया के सामने
सुधा और उसक बगल म च दर।
चुप। सभी चुप।
अ त म च दर बोला-”लो, तु हारे मा टर साहब आ गये। अब बताओ न, तु ह या- या
पढऩा है?”
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सुधा चुप। िबस रया कभी यह पु तक उलटता, कभी वह। थोड़ी देर बाद वह बोला-”आपके
या िवषय ह?”
“जी!” बड़ी कोिशश से बोलते ए सुधा ने कहा-”िह दी, इकनॉिम स और गृह-िव ान।”
और उसके माथे पर पसीना झलक आया।
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“आपको िह दी कौन पढ़ाता है?” िबस रया ने कताब म ही िनगाह गड़ाये ए कहा।
सुधा ने च दर क ओर देखा और मु कराकर फर मुँह झुका िलया।
“बोलो न तुम खुद, ये राजा ग स कॉलेज म ह। शायद िमस पवार िह दी पढ़ाती ह।” च दर
is
ने कहा-”अ छा, अब आप पढ़ाइए, म अपना काम क ँ ।” च दर उठकर चल दया। टडी
म म मुि कल से च दर दरवाजे तक प च ँ ा होगा क सुधा ने िबस रया से कहा-
“जी, म पेन ले आऊँ!” और लपकती ई च दर के पास प च ँ ी।
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“ए सुनो, च दर!” च दर क गया और उसका कु रता पकडक़र छोटे ब क तरह मचलते
ए सुधा बोली-”तुम चलकर बैठो तो हम पढ़गे। ऐसे शरम लगती है।”
“जाओ, चलो! हर व वही बचपना!” च दर ने डाँटकर कहा-”चलो, पढ़ो सीधे से। इतनी
बड़ी हो गयी, अभी तक वही आदत!”
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सुधा चुपचाप मुँह लटकाकर खड़ी हो गयी और फर धीरे -धीरे पढ़ने लग गयी। च दर
डटी म म जाकर चाट बनाने लगा। डॉ टर साहब अभी तक सो रहे थे। एक म खी
उडक़र उनके गले पर बैठ गयी और उ ह ने बाय हाथ से म खी मारते ए न द म कहा-”म
इस मामले म सरकार क नीित का िवरोध करता ।ँ ”
च दर ने च ककर पीछे देखा। डॉ टर साहब जग गये थे और जमुहाई ले रहे थे।
“जी, आपने मुझसे कु छ कहा?” च दर ने पूछा।
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सुधा को।”
च दर जब ाइं ग म म प च ँ ा तो देखा सुधा कताब समेट रही है और िबस रया जा चुका
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है। उसने सुधा से कहना चाहा ले कन सुधा का मुँह देखते ही उसने अनुमान कया क सुधा
लड़ने के मूड म है, अत: वह वयं ही जाकर महरािजन से कह आया क तीन याला चाय
पढ़ने के कमरे म भेज दो। जब वह लौटने लगा तो खुद सुधा ही उसके रा ते म खड़ी हो गयी
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और धमक के वर म बोली-”अगर कल से साथ नह बैठोगे तुम, तो हम नह पढ़गे।”
“हम साथ नह बैठ सकते, चाहे तुम पढ़ो या न पढ़ो।” च दर ने ठं डे वर म कहा और आगे
बढ़ा।
“तो फर हम नह पढ़गे।” सुधा ने जोर से कहा।
“ या बात है? य लड़ रहे हो तुम लोग?” डॉ. शु ला अपने कमरे से बोले। च दर कमरे म
जाकर बोला, “कु छ नह , ये कह रही ह क...”
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“पहले हम कहगे,” बात काटकर सुधा बोली-”पापा, हमने इनसे कहा क तुम पढ़ाते व
बैठा करो, हम ब त शरम लगती है, ये कहते ह पढ़ो चाहे न पढ़ो, हम नह बैठगे।”
“अ छा-अ छा, जाओ चाय लाओ।”
जब सुधा चाय लाने गयी तो डॉ टर साहब बोले-”कोई िव ासपा लड़का है? अपने घर
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क लड़क समझकर सुधा को स पना पढ़ने के िलए। सुधा अब ब ी नह है।”
“हाँ-हाँ, अरे यह भी कोई कहने क बात है!”
“हाँ, वैसे अभी तक सुधा तु हारी ही िनगहबानी म रही है। तुम खुद ही अपनी िज मेवारी
is
समझते हो। लड़का िह दी म एम.ए. है?”
“हाँ, एम.ए. कर रहा है।”
“अ छा है, तब तो िबनती आ रही है, उसे भी पढ़ा देगा।”
gl
सुधा चाय लेकर आ गयी थी।
“पापा, तुम लखनऊ कब जाओगे?”
“शु वार को, य ?”
“और ये भी जाएँगे?”
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“हाँ।”
“और हम अके ले रहगे?”
“ य , महरािजन यह सोएगी और अगले सोमवार को हम लौट आएँगे।”
डॉ. शु ला ने चाय का याला मुँह से लगाते ए कहा।
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पेड़ म छोटी-छोटी गौरै य ने िमलकर इतनी जोर से चहचहाना शु कया क उसक
तबीयत घबरा उठी। वह इस व एका त चाहती थी और सबसे बढ़कर स ाटा चाहती थी
जहाँ कोई न बोले, कोई बात न करे , सभी खामोशी म डू बे ए ह ।
वह उठकर टहलने लगी और जब लगा क पैर म ताकत ही नह रही तो फर लेट गयी,
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हरी-हरी घास पर। मंगलवार क शाम थी और अभी तक पापा नह आये थे। आना तो दूर,
पापा या च दर के हाथ के एक पुरजे के िलए तरस गयी थी। कसी ने यह भी नह िलखा
क वे लोग कहाँ रह गये ह, या कब तक आएँगे। कसी को भी सुधा का खयाल नह ।
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शिनवार या इतवार को तो वह हर रोज खाना खाते व रोयी, चाय पीना तो उसने उसी
दन से छोड़ दया था और सोमवार को सुबह पापा नह आये तो वह इतना फू ट-फू टकर
रोयी क महरािजन को संकती ई रोटी छोड़कर चू हे क आँच िनकालकर सुधा को
gl
समझाने आना पड़ा। और सुधा क लाई देखकर तो महरािजन के हाथ-पाँव ढीले हो गये
थे। उसक सारी डाँट हवा हो गयी थी और वह सुधा का मुँह-ही-मुँह देखती थी। कल से
कॉलेज भी नह गयी थी। और दोन दन इ तजार करती रही क कह दोपहर को पापा न
आ जाएँ। गेसू से भी दो दन से मुलाकात नह ई थी।
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रोके पड़े थे और खामोश िसतारे टम टमा रहे थे। बगुल क धुँधली-धुँधली कतार पर
मारती ई गुजर रही थ । सुधा ने एक ल बी साँस लेकर सोचा क अगर वह िचिडय़ा होती
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तो एक ण म उडक़र जहाँ चाहती वहाँ क खबर ले आती। पापा इस व घूमने गये ह गे।
च दर अपने दो त क टोली म बैठा रँ गरे िलयाँ कर रहा होगा। वहाँ भी दो त बना ही
िलये ह गे उसने। बड़ा बातूनी है च दर और बड़ा मीठे वभाव का। आज तक कसी से सुधा
ने उसक बुराई नह सुनी। सभी उसको यार करते थे। यहाँ तक क महरािजन, जो सुधा
ov
को हमेशा डाँटती रहती थी, च दर का हमेशा प लेती थी। और सुधा हरे क से पूछ लेती
थी क च दर के बारे म उसक या राय है? ले कन सब लोग िजतनी च दर क तारीफ
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करते वह उतना अ छा उसे नह समझती थी। आदमी क परख तब होती है जब दन-रात
बरते। च दर उसका ऊन कभी नह लाकर देता था, बादामी रं ग का रे शम मँगाओ तो
के स रया रं ग का ला देता था। इतने न शे बनाता रहता था, और सुधा ने हमेशा उससे कहा
Hi
क मेजपोश क कोई िडजाइन बना दो तो उसने कभी नह बनायी। एक बार सुधा ने ब त
अ छी वायल कानपुर से मँगवायी और च दर ने कहा, “लाओ, यह ब त अ छी है, इस पर
हम कनारे क िडजाइन बना दगे।” और उसके बाद उसने उसम तमाम पान-जैसा जाने
या बना दया और जब सुधा ने पूछा, “यह या है?” तो बोला, “लंका का न शा है।” जब
सुधा िबगड़ी तो बोला, “लड़़ कय के दय म रावण से मेघनाद तक करोड़ रा स का
वास होता है, इसिलए उनक पोशाक म लंका का न शा यादा सुशोिभत होता है।” मारे
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गु से के सुधा ने वह धोती अपनी मािलन को दे डाली थी। यह सब बात तो कसी को
मालूम नह । उनके सामने तो जरा-सा कपूर साहब हँस दये, चार मजाक क बात कर द ,
छोटे-मोटे उनके काम कर दये, मीठी बात कर ल और सब समझे कपूर साहब तो िब कु ल
गुलाब के फू ल ह। ले कन कपूर साहब एक तीखे काँटे ह जो दन-रात सुधा के मन म चुभते
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रहते ह, यह तो दुिनया को नह मालूम। दुिनया या जाने क सुधा कतनी परे शानी रहती
है च दर क आदत से! अगर दुिनया को मालूम हो जाए तो कोई च दर क जरा भी
तारीफ न करे , सब सुधा को ही यादा अ छा कह, ले कन सुधा कभी कसी से कु छ नह
is
कहती, मगर आज उसका मन हो रहा था क कसी से च दर क जी भरकर बुराई कर ले
तो उसका मन ब त ह का हो जाए।
“चलो िब टया रानी, तई खाय लेव, फर भीतर लेटो। अबिहन लेटे का बखत नह आवा!”
gl
सहसा महरािजन ने आकर सुधा क व -शृंखला तोड़ते ए कहा।
“अब हम नह खाएँगे, भूख नह ।” सुधा ने अपने सुनहले सपन म ही डू बी ई बेहोश
आवाज म जवाब दया।
“खाय लेव िब टया, खाय-िपयै छोड़ै से कसस काम चली, आव उठौ!” महरािजन ने बड़े
En
दुलार से कहा। सुधा पीछा छू टने क कोई आशा न देखकर उठ गयी और चल दी खाने। कौर
उठाते ही उसक आँख म आँसू छलक आये, ले कन अपने को रोक िलया उसने। दूसर के
सामने अपने को ब त शा त रखना आता था। उसे। दो कौर खाने के बाद वह महरािजन से
बोली, “आज कोई िच ी तो नह आयी?”
“नह िब टया, आज तो दन भर घरै म र ो!” महरािजन ने पराठे उलटते ए जवाब
दया-”काहे िब टया, बाबूजी कु छौ नाही िलिखन तो छोटे बाबू तो िलख देते।”
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“अरे महरािजन, यही तो हमारी जान का रोना है। हम चाहे रो-रोकर मर जाएँ मगर न
पापा को खयाल, न पापा के िश य को। और च दर तो ऐसे खराब ह क हम या कर। ऐसे
el
करते तो हमारी जान नोच खाते! और पापा को देखो, उनके दुलारे उनके साथ ह तो बस
और कसी क फ ही नह । अब तुम महरािजन, च दर को तो कभी कु छ चाय-वाय बना
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के मत देना।”
“काहे िब टया, काहे कोसत हो। कै सा चाँद-से तो ह छोटे बाबू, और कै सा हँस के बात करत
ह। माई का जाने कै से िहयाव पड़ा क उ ह अलग कै दिहस। बेचारा होटल म जाने कै से
Hi
रोटी खात होई। उ ह हंयई बुलाय लेव तो अपने हाथ क िखलाय के दुई महीना माँ मोटा
कै दे । हम तोसे यादा उसक ममता लगत है।”
“बीबीजी, बाहर एक मेम पूछत ह- हंया कोनो डाकदर रहत ह? हम कहा, नाह , हंया तो
बाबूजी रहत ह तो कहत ह, नह यही मकान आय।” मािलन ने सहसा आकर ब त वतं
वर म कहा।
“बैठाओ उ ह, हम आते ह।” सुधा ने कहा और ज दी-ज दी खाना शु कया और ज दी-
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ज दी ख म कर दया।
बाहर जाकर उसने देखा तो नीलकाँटे के झाड़ से टक ई एक बाइिस कल रखी थी और
एक ईसाई लड़क लॉन पर टहल रही है। होगी करीब चौबीस-प ीस बरस क , ले कन
ब त अ छी लग रही थी।
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“किहए, आप कसे पूछ रही ह?” सुधा ने अँ ेजी म पूछा।
“म डॉ टर शु ला से िमलने आयी ।ँ ” उसने शु िह दु तानी म कहा।
“वे तो बाहर गये ह और कब आएँगे, कु छ पता नह । कोई खास काम है आपको?” सुधा ने
is
पूछा।
“नह , यूँ ही िमलने आ गयी। आप उनक लड़क ह?” उसने साइ कल उठाते ए कहा।
“जी हाँ, ले कन अपना नाम तो बताती जाइए।”
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“मेरा नाम कोई मह वपूण नह । म उनसे िमल लूँगी। और हाँ, आप उसे जानती ह, िम टर
कपूर को?”
“आहा! आप प मी ह, िमस िड ू ज!” सुधा को एकदम खयाल आ गया-”आइए, आइए; हम
आपको ऐसे नह जाने दगे। चिलए, बै ठए।” सुधा ने बड़ी बेतक लुफ से उसक साइ कल
En
पकड़ ली।
“अ छा-अ छा, चलो!” कहकर प मी जाकर ाइं ग म म बैठ गयी।
“िम टर कपूर रहते कहाँ ह?” प मी ने बैठने से पहले पूछा।
“रहते तो वे चौक म ह, ले कन आजकल तो वे भी पापा के साथ बाहर गये ह। वे तो आपक
एक दन ब त तारीफ कर रहे थे, ब त तारीफ। इतनी तारीफ कसी लड़क क करते तो
हमने सुना नह ।”
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“हाँ, तो िमस प मी, शायद इसीिलए आप उसे इतनी अ छी लग क आप कह आती-
जाती नह , वह लड़ कय का आना-जाना और आजादी ब त नापस द करता है।” सुधा
बोली।
Hi
“नह , वह ठीक सोचता है।” प मी बोली-”म शादी और तलाक के बाद इसी नतीजे पर
प च ँ ी ँ क चौदह बरस से च तीस बरस तक लड़ कय को ब त शासन म रखना
चािहए।” प मी ने ग भीरता से कहा।
एक ईसाई मेम के मुँह से यह बात सुनकर सुधा दंग रह गयी।
“ य ?” उसने पूछा।
“इसिलए क इस उ म लड़ कयाँ ब त नादान होती ह और जो कोई भी चार मीठी बात
&
करता है, तो लड़ कयाँ समझती ह क इससे यादा यार उ ह कोई नह करता। और इस
उ म जो कोई भी ऐरा-गैरा उनके संसग म आ जाता है, उसे वे यार का देवता समझने
लगती ह और नतीजा यह होता है क वे ऐसे जाल म फँ स जाती ह क जंदगी भर उससे
छु टकारा नह िमलता। मेरा तो यह िवचार है क या तो लड़ कयाँ च तीस बरस के बाद
h
शा दयाँ कर जब वे अ छा-बुरा समझने के लायक हो जाएँ, नह तो मुझे तो िह दु का
कायदा सबसे यादा पस द आता है क चौदह वष के पहले ही लड़क क शादी कर दी
जाए और उसके बाद उसका संसग उसी आदमी से रहे िजससे उसे जंदगी भर िनबाह
is
करना है और अपने िवकास- म से दोन ही एक-दूसरे को समझते चल। ले कन यह तो
सबसे भ ा तरीका है क चौदह और च तीस बरस के बीच म लड़क क शादी हो, या उसे
आजादी दी जाए। मने तो वयं अपने ऊपर ब धन बाँध िलये थे।....तु हारी तो शादी अभी
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नह ई?”
“नह ।”
“ब त ठीक, तुम च तीस बरस के पहले शादी मत करना, अ छा हाँ, और या बताया
च दर ने मेरे बारे म?”
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म एक-दूसरे से िनबाह ही करना पड़ता है। उसने आपसे यह नह बताया क मने उसे दो त
मान िलया है?” प मी ने पूछा।
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“तब तो ठीक है, स े दल के आदमी मालूम पड़ते ह। आप तो यह बता सकती ह क उ ह
या- या चीज पस द ह?”
“हाँ...उ ह किवता पस द है। बस किवता के बारे म बात न क िजए, किवता सुना दीिजए
Hi
उ ह या किवता क कताब दे दीिजए उ ह और उनको सुबह घूमना पस द है। रात को
गंगाजी क सैर करना पस द है। िसनेमा तो बेहद पस द है। और, और या, चाय क प ी
का हलुआ पस द है।”
“यह या होता है?”
“मेरा मतलब िबना दूध क चाय उ ह पस द है।”
“अ छा, अ छा। देिखए आप सोचगी क म इस तरह से िम. कपूर के बारे म पूछ रही ँ
&
जैसे म कोई जासूस होऊँ, ले कन असल बात म आपको बता दू।ँ म िपछले दो-तीन साल से
अके ली रहती रही। कसी से भी नह िमलती-जुलती थी। उस दन िम टर कपूर गये तो
पता नह य मुझ पर भाव पड़ा। उनको देखकर ऐसा लगा क यह आदमी है िजसम
दल क स ाई है, जो आदिमय म िब कु ल नह होती। तभी मने सोचा, इनसे दो ती कर
h
लूँ। ले कन चूँ क एक बार दो ती करके िववाह, और िववाह के बाद अलगाव, म भोग चुक
ँ इसिलए इनके बारे म पूरी जाँच-पड़ताल कर लेना चाहती ।ँ ले कन दो त तो अब बना
ही चुक ।ँ ” चाय आ गयी थी और प मी ने सुधा के याले म चाय ढाली।
is
“न, म तो अभी खाना खा चुक ।ँ ” सुधा बोली।
“प मी ने दो-तीन चुि कय के बाद कहा-”आपके बारे म च दर ने मुझसे कहा था।”
“कहा होगा!” सुधा मुँह िबगाडक़र बोली-”मेरी बुराई कर रहे ह गे और या?”
gl
प मी चाय के याले से उठते ए धुएँ को देखती ई अपने ही खयाल म डू बी थी। थोड़ी देर
बाद बोली, “मेरा अनुमान गलत नह होता। मने कपूर को देखते ही समझ िलया था क
यही मेरे िलए उपयु िम ह। मने किवता पढऩी ब त दन से छोड़ दी ले कन कसी
कविय ी ने, शायद िमसेज ाउ नंग ने कह िलखा था, क वह मेरी जंदगी म रोशनी
En
बनकर आया, उसे देखते ही म समझ गयी क यह वह आदमी है िजसके हाथ म मेरे दल के
सभी राज सुरि त रहगे। वह खेल नह करे गा, और यार भी नह करे गा। जंदगी म आकर
भी जंदगी से दूर और सपन म बँधकर भी सपन से अलग...यह बात कपूर पर ब त लागू
होती है। माफ करना िमस सुधा, म आपसे इसिलए कह रही ँ क आप इनक घिन ह
और आप उ ह बतला दगी क मेरा या खयाल है उनके बारे म। अ छा, अब म चलूँगी।”
“बै ठए न!” सुधा बोली।
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“नह , मेरा भाई अके ला खाने के िलए इ तजार कर रहा होगा।” उठते ए प मी ने कहा।
“आप ब त अ छी ह। इस व आप आय तो म थोड़ी-सी िच ता भूल गयी वरना म तीन
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था कपूर को किवता पस द है।”
“जी हाँ, गुडनाइट।”
जब प मी बँगले पर प च ँ ी तो उसक साइ कल के कै रयर म अँगरे जी किवता के पाँच-छह
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थ बँधे थे।
आठ बज चुके थे। सुधा जाकर अपने िब तरे पर लेटकर पढऩे लगी। अँगरे जी किवता पढ़
रही थी। अँगरे जी लड़ कयाँ कतनी आजाद और व छ द होती ह गी! जब प मी, जो
ईसाई है, इतनी आजाद है, उसने सोचा और प मी कतनी अ छी है उसक बेतक लुफ म
भोलापन तो नह है, पर सरलता बेहद है। बड़ा साफ दल है, कु छ िछपाना नह जानती।
और सुधा से िसफ पाँच-छह साल बड़ी है, ले कन सुधा उसके सामने ब ी लगती है।
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कतना जानती है प मी और कतनी अ छी समझ है उसक । और च दर क तारीफ करते
नह थकती। च दर के िलए उसने िसगरे ट छोड़ दी। च दर उसका दो त है, इतनी पढ़ी-
िलखी लड़क के िलए रोशनी का देवदूत है। सचमुच च दर पर सुधा को गव है। और उसी
च दर से वह लड़-झगड़ लेती है, इतनी मान-मनुहार कर लेती है और च दर सब बदा त
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कर लेता है वरना च दर के इतने बड़े-बड़े दो त ह और च दर क इतनी इ त है। अगर
च दर चाहे तो सुधा क र ी भर परवाह न करे ले कन च दर सुधा क भली-बुरी बात
बदा त कर लेता है। और वह कतना परे शान करती रहती है च दर को।
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कभी अगर सचमुच च दर ब त नाराज हो गया और सचमुच हमेशा के िलए बोलना छोड़
दे तब या होगा? या च दर यहाँ से कह चला जाए तब या होगा? खैर, च दर जाएगा
तो नह इलाहाबाद छोडक़र, ले कन अगर वह खुद कह चली गयी तब या होगा? वह
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कहाँ जाएगी! अरे पापा को मनाना तो बाय हाथ का खेल है, और ऐसा यार वह करे गी
नह क शादी करनी पड़े।
ले कन यह सब तो ठीक है। पर च दर ने िच ी य नह भेजी? या नाराज होकर गया है?
जाते व सुधा ने परे शान तो ब त कया था। होलडॉल क पेटी का ब सुआ खोल दया
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“अ छा! आ गये च दर!” सुधा आलू छोडक़र उठ बैठी, “ या लाये हमारे िलए लखनऊ
से?”
“ब त कु छ, सुधा!”
“के है सुधा!” सहसा कमरे म से कोई बोला।
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“च दर ह।” सुधा ने कहा, “च दर, बुआ आ गय ।” और कमरे से बुआजी बाहर आय ।
“ णाम, बुआजी!” च दर बोला और पैर छू ने के िलए झुका।
“हाँ, हाँ, हाँ!” बुआजी तीन कदम पीछे हट गय । “देख य न हम पूजा क धोती पहने ह। ई
के है, सुधा!”
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सुधा ने बुआ क बात का कु छ जवाब नह दया-”च दर, चलो अपने कमरे म; यहाँ बुआ
पूजा करगी।”
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च दर अलग हटा। बुआ ने हाथ के पंचपा से वहाँ पानी िछडक़ा और जमीन फूँ कने लग ।
“सुधा, िबनती को भेज देव।” बुआजी ने धूपदानी म महरािजन से कोयला लेते ए कहा।
सुधा अपने कमरे म प च ँ कर च दर को खाट पर िबठाकर नीचे बैठ गयी।
“अरे , ऊपर बैठो।”
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बाहर कोई गाता आ आ रहा था, “आँचल म य बाँध िलया मुझ परदेशी का
यार....आँचल म य ...” और च दर को देखते ही उस लड़क ने च ककर कहा, “अरे ?”
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ण-भर त ध, और फर शरम से लाल होकर भागी बाहर।
“अरे , भागती य है? यही तो ह च दर।” सुधा ने कहा।
लड़क बाहर क गयी और गरदन िहलाकर इशारे से कहा, “म नह आऊँगी। मुझे शरम
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लगती है।”
“अरे चली आ, देखो हम अभी पकड़ लाते ह, बड़ी झ है यह।” कहकर सुधा उठी, वह
फर भागी। सुधा पीछे-पीछे भागी। थोड़ी देर बाद सुधा अ दर आयी तो सुधा के हाथ म
उस लड़क क चोटी और वह बेचारी बुरी तरह अ त- त थी। दाँत से अपने आँचल का
छोर दबाये ए थी बाल क तीन-चार लट मुँह पर झुक रही थ और लाज के मारे िसमटी
जा रही थी और आँख थ क मु काये या रोये, यह तय ही नह कर पायी थ ।
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“देखो...च दर...देखो।” सुधा हाँफ रही थी-”यही है िबनती मोटक कह क , इतनी मोटी है
क दम िनकल गया हमारा।” सुधा बुरी तरह हाँफ रही थी।
च दर ने देखा-बेचारी क बुरी हालत थी। मोटी तो ब त नह थी पर हाँ, गाँव क
त दु ती थी, लाल चेहरा, िजसे शरम ने तो दूना बना दया था। एक हाथ से अपनी चोटी
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पकड़े थी, दूसरे से अपने कपड़े ठीक कर रही थी और दाँत से आँचल पकड़े।
“छोड़ दो उसे, यह या है सुधा! बड़ी जंगली हो तुम।” च दर ने डाँटकर कहा।
“जंगली म ँ या यह?” चोटी छोड़कर सुधा बोली-”यह देखो, दाँत काट िलया है इसने।”
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सचमुच सुधा के क धे पर दाँत के िनशान बने ए थे।
च दर इस स भावना पर बेतहाशा हँसने लगा क इतनी बड़ी लड़क दाँत काट सकती
है-” य जी, इतनी बड़ी हो गयी और दाँत काटती हो?” उसक हँसी क नह रही थी।
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“सचमुच यह तो बड़े मजे क लड़क है। िबनती है इसका नाम? य रे , म आ बीनती थी
या वहाँ, जो बुआजी ने िबनती नाम रखा है?”
वह प ला ठीक से ओढ़ चुक थी। बोली, “नम ते।”
च दर और सुधा दोन हँस पड़े। “अब इतनी देर बाद याद आयी।” च दर और भी हँसने
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लगा।
“िबनती! ए िबनती!” बुआ क आवाज आयी। िबनती ने सुधा क ओर देखा और चली
गयी।
“और कहो सुधी,” च दर बोला-” या हाल-चाल रहा यहाँ?”
“ फर भी एक िच ी भी तो नह िलखी तुमने।” सुधा बड़ी िशकायत के वर म बोली, “हम
रोज लाई आती थी। और तु हारी वो आयी थी।”
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बोली।
“हम तो तु ह ब त-ब त बात बताएँगे। पूरी कहानी है।”
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इतने म िबनती आयी। उसके हाथ म एक त तरी थी और एक िगलास। त तरी म कु छ
िमठाई थी, और िगलास म शरबत। उसने लाकर त तरी च दर के सामने रख दी।
“ना भई, हम नह खाएँगे।” च दर ने इनकार कया।
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िबनती ने सुधा क ओर देखा।
“खा लो। लगे नखरा करने। लखनऊ से आ रहे ह न, तक लुफ न कर तो मालूम कै से हो?”
सुधा ने मुँह िचढ़ाते ए कहा। च दर मुसकराकर खाने लगा।
“दीदी के कहने पर खाने लगे आप!” िबनती ने अपने हाथ क अँगूठी क ओर देखते ए
कहा।
च दर हँस दया, कु छ बोला नह । िबनती चली गयी।
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“बड़ी अ छी लड़क मालूम पड़ती है यह।” च दर बोला।
“ब त यारी है। और पढऩे म हमारी तरह नह है, ब त तेज है।”
“अ छा! तु हारी पढ़ाई कै सी चल रही है?”
“मा टर साहब ब त अ छा पढ़ाते ह। और च दर, अब हम खूब बात करते ह उनसे दुिनया-
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भर क और वे बस हमेशा िसर नीचे कये रहते ह। एक दन पढ़ते व हम गरी पास म
रखकर खाते गये, उ ह मालूम ही नह आ। उनसे एक दन किवता सुनवा दो।” सुधा
बोली। is
च दर ने कु छ जवाब नह दया और डॉ. साहब के कमरे म जाकर कताब उलटने लगा।
इतने म बुआजी का तेज वर आया-”हम मालूम होता क ई मुँह-झ सी हमके ऐसी नाच
नचइहै तौ हम पैदा होतै गला घ ट देइत। हरे राम! अ ाश िसर पर उठाये है। कै घंटे से
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न रयात-न रयात गटई फट गयी। ई बोलतै नाह जैसे साँप सूँघ गवा होय।”
ोफे सर शु ला के घर म वह नया सां कृ ितक त व था। कतनी शालीनता और िश ता से
वह रहते थे। कभी इस तरह क भाषा भी उनके घर म सुनने को िमलेगी, इसक च दर को
जरा भी उ मीद न थी। च दर च ककर उधर देखने लगा। डॉ. शु ला समझ गये। कु छ
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लि त-से और मुसकराकर लािन िछपाते ए-से बोले, “मेरी िवधवा बहन है, कल गाँव से
आयी है लड़क को प च ँ ाने।”
उसके बाद कु छ पटकने का वर आया, शायद कसी बरतन के । इतने म सुधा आयी, गु से
से लाल-”सुना पापा तुमने, बुआ िबनती को मार डालगी।”
“ या आ आिखर?” डॉ. शु ला ने पूछा।
“कु छ नह , िबनती ने पूजा का पंचपा उठाकर ठाकु रजी के संहासन के पीछे रख दया
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ट बोल गये। मर गये र ो तो आपन स तानौ अपने साथ लै जा यौ। हमारे मूड़ पर ई ह या
काहे डाल गयौ। ऐसी कु ल छनी है क पैदा होतेिहन बाप को खाय गयी।”
“सुना पापा तुमने?”
“चलो हम चलते ह।” डॉ. शु ला ने कहा। सुधा वह रह गयी। च दर से बोली, “ऐसा बुरा
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बाप को ग रयावा है क ई अँसुआ ढरकाय रही हो। ई सब चोचला अपने ओ को दखाओ
जायके । दुई महीना और ह-अबिहन से उिधयानी न जाओ।”
अब अभ ता सीमा पार कर चुक थी।
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“िबनती, चलो कमरे के अ दर, हटो सामने से।” डॉ. शु ला ने डाँटकर कहा, “अब ये चरखा
ब द होगा या नह । कु छ शरम-हया है या नह तुमम?”
िबनती िससकते ए अ दर गयी। टडी म म देखा क च दर है तो उलटे पाँव लौट आयी
सुधा के कमरे म और फू ट-फू टकर रोने लगी।
डॉ. शु ला लौट आये-”अब हम ये सब कर क अपना काम कर! अ छा कल से घर म
महाभारत मचा रखा है। कब जाएँगी ये, सुधा?”
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“कल जाएँगी। पापा अब िबनती को कभी मत भेजना इनके पास।” सुधा ने गु सा-भरे वर
म कहा।
“अ छा-जाओ, हमारा खाना परसो। च दर, तुम अपना काम यहाँ करो। यहाँ शोर यादा
हो तो तुम लाइ ेरी म चले जाना। आज भर क तकलीफ है।”
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च दर ने अपनी कु छ कताब उठाय और उसने चला जाना ही ठीक समझा। सुधा खाना
परोसने चली गयी। िबनती रो-रोकर और त कये पर िसर पटककर अपनी कुं ठा और दु:ख
उतार रही थी। बुआ घंटी बजा रही थ , दबी जबान जाने या बकती जा रही थ , यह घंटी
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के भि -भावना-भरे मधुर वर म सुनायी नह देता था।
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पास प च ँ ने पर फौरन वे चुप हो गय और च दर क ओर सशं कत ने से देखने लग ।
डॉ. शु ला बोले, “आओ च दर, बैठो।” च दर बगल क कु स ख चकर बैठ गया तो डॉ.
साहब बुआजी से बोले, “हाँ, हाँ, बात करो, अरे ये तो घर के आदमी ह। इनके बारे म सुधा
ने नह बताया तु ह? ये च दर ह हमारे िश य, ब त अ छा लड़का है।”
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“अ छा, अ छा, भइया बइठो, तू तो एक दन अउर आये र ो, बी. ए. म पढ़त हौ सुधा के
संगे।”
“नह बुआजी, म रसच कर रहा ।ँ ”
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“वाह, ब त खुशी भई तोको देख के -हाँ तो सुकुल!” वे अपने भाई से बोल , “ फर यही
ठीक होई। िबनती का िबयाह टाल देव और अगर ई लड़का ठीक ई जाय तो सुधा का
िबयाह अषाढ़-भर म िनपटाय देव। अब अ छा नाह लागत। ठूँ ठ ऐसी िब टया, सूनी माँग
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िलये छररावा करत है एहर-ओहर!” बुआ बोल ।
“हाँ, ये तो ठीक है।” डॉ. शु ला बोले, “म खुद सुधा का याह अब टालना नह चाहता।
बी.ए. तक क िश ा काफ है वरना फर हमारी जाित म तो लड़के नह िमलते। ले कन ये
जो लड़कातुम बता रही हो तो घर वाले कु छ एतराज तो नह करगे! और फर, लड़का तो
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पूछा।
“हाँ हाँ,” डॉ. शु ला ने िवचार म डू बे ए कहा।
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च दर चुपचाप बैठा था। जाने या सोच रहा था। शायद कु छ भी नह सोच रहा था! मगर
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साहब ने कहा, “अरे ! तु हारी तबीयत खराब है या?”
“नह तो।” एक फ क हँसी हँसकर च दर ने कहा।
“तो मेहनत ब त कर रहे होगे। कतने अ याय िलखे अपनी थीिसस के ? अब माच ख म हो
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रहा है और पूरा अ ैल तु ह थीिसस टाइप कराने म लगेगा और मई म हर हालत म जमा
हो जानी चािहए।”
“जी, हाँ।” बड़े थके वर म च दर ने कहा, “दस अ याय हो ही गये ह। तीन अ याय और
होने ह और अनु मिणका बनानी है। अ ैल के पहले स ाह तक ख म हो ही जायेगा। अब
िसवा थीिसस के और करना ही या है?” एक ब त गहरी साँस लेते ए च दर ने कहा और
माथा थामकर बैठ गया।
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“कु छ तबीयत ठीक नह है तु हारी। चाय बनवा लो! ले कन सुधा तो है नह , न महरािजन
है।” डॉ टर साहब बोले।
अरे सुधा, सुधा के नाम पर च दर च क गया। हाँ, अभी वह सुधा के ही बारे म सोच रहा
था, जब बुआजी बात कर रही थ । या सोच रहा था। देखो...उसने याद करने क कोिशश
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क पर कु छ याद ही नह आ रहा था, पता नह या सोच रहा था। पता नह था...कु छ
सुधा के याह क बात हो रही थी शायद। या बात हो रही थी...?
“कहाँ गयी है सुधा?” च दर ने पूछा।
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“आज शायद सािबर साहब के यहाँ गयी है। उनक लड़क उनके साथ पढ़ती है न, वह
गयी है िबनती के साथ।”
“अब इ तहान को कतने दन रह गये ह, अभी घूमना ब द नह आ उनका?”
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“नह , दन-भर पढ़ने के बाद उठी थी, उसके भी िसर म दद था, चली गयी। घूम- फर लेने
दो बेचारी को, अब तो जा ही रही है।” डॉ. शु ला बोले, एक हँसी के साथ िजसम आँसू
छलके पड़ते थे।
“कहाँ तय हो रही है सुधा क शादी?”
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“हाँ, वही। उसके ससुर आये ए ह; उनसे कहना है क अब शादी अगहन-पूस के िलए टाल
द। पहले सुधा क हो जाए, वह बड़ी है और हम चाहते ह क िबनती को तब तक िवदुषी
का दूसरा खंड भी दला द। आओ, उनसे बात कर ल अभी।” डॉ. शु ला उठे । च दर भी
उठा।
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थे तो पुराण क उस कथा का दशन हो जाता था क धीरे -धीरे पृ वी का गोला वाराह के
मुँह पर कै से ऊपर उठा होगा। िसर पर छोटे-छोटे बाल और कमर म एक अँगोछे के अलावा
सारा शरीर दग बर। सुबह शायद गंगा नहाकर आये थे य क पेट तक म च दन, रोली
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लगी ई थी।
डॉ. शु ला जाकर बगल म कु स पर बैठ गये; “किहए दुबेजी, कु छ जलपान कया आपने?”
पलँग चरमराया। उस िवशाल मांस- पंड म एक भूडोल आया और दुबेजी जलपान क याद
करके ग द होकर हँसने लगे। एक थलथलाहट ई और कमरे क दीवार िगरते-िगरते
बच । दुबेजी ने उठकर बैठने क कोिशश क ले कन असफल होकर लेटे-ही-लेटे कहा, “हो-
हो! सब आपक कृ पा है। खूब छकके िम ा पाया। अब जरा सरबत-उरबत कु छ िमलै तो
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जो कु छ पेट म जलन है, सो शा त होय!” उ ह ने पेट पर अपना हाथ फे रते ए कहा।
“अ छा, अरे भाई जरा शरबत बना देना।” डॉ. शु ला ने दरवाजे क ओट म खड़ी ई
बुआजी से कहा। बुआजी क आवाज सुनाई पड़ी, “बाप रे ! ई ढाई मन क लहास कम-से-
कम मसक-भर के शरबत तो उलीचै लै ह।” च दर को हँसी आ गयी, डॉ. शु ला मुसकराने
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लगे ले कन दुबेजी के द मुखमंडल पर कह ोभ या उ लास क रे खा तक न आयी।
च दर मन-ही-मन सोचने लगा, ाचीन काल के ान द िस महा मा ऐसे ही होते ह गे।
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बुआ एक िगलास म शरबत ले आय । दुबेजी काँख-काँखकर उठे और एक साँस म शरबत
गले से नीचे उतारकर, िगलास नीचे रख दया।
“दुबेजी, एक ाथना है आपसे!” डॉ. शु ला ने हाथ जोडक़र बड़े िवनीत वर म कहा।
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“नह ! नह !” बात काटकर दुबेजी बोले, “बस अब हम कु छ न खाव। आप ब त स कार
कये। हम एही से छक गये। आपको देखके तो हम बड़ी स ता भई। आप सचमुच द
पु ष हौ! और फर आप तो लड़क के मामा हो, और िबयाह-शादी म जो है सो मामा का
प देखा जाता है। ई तो भगवान् ऐसा जोड़ िमलाइन ह क वरप अउर क याप दुइन
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दुबेजी इसके िलए तैयार नह थे। वे बड़े अचरज म भरकर उनक ओर देखने लगे। ले कन
ब त कहने-सुनने के बाद अ त म वे इस शत पर राजी ए क अगहन तक हर तीज-
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तो दुबेजी ने उठकर अपना झालम-झोला कु रता गले म अटकाया और अपनी गठरी हाथ म
उठाकर बोले-
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“अ छा तो अब आ ा देव, हम चली अब, और ई िपया लड़क को दै दयो, अब बात प
है।” और अपनी टट से उ ह ने एक मुड़ा-मुड़ाया तेल लगा आ पाँच पये का नोट िनकाला
और डॉ. साहब को दे दया।
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“च दर एक ताँगा कर दो, दुबेजी को। अ छा, आओ हम भी चल।”
जब ये लोग लौटे तो बुआजी एक थैली से कु छ धर-िनकाल रही थ । डॉ. शु ला ने नोट
बुआजी को देते ए कहा, “लो, ये दे गये तु हारे समधी जी, लड़क को।”
पाँच का नोट देखा तो बुआजी सुलग उठ -”न गहना न गु रया, िबयाह प ा कर गये ई
कागज के टु कड़े से। अपना-आप तो सोना और िपया और कपड़ा सब लीलै को तैयार और
देत के दाँई पेट िपराता है जूता-िपटऊ का। अरे राम चाही तो जमदूत ई लहास क बोटी-
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बोटी करके रामजी के कु न को िखलइह।”
च दर हँसी के मारे पागल हो गया।
बुआजी ने थैली का मुँह बाँधा और बोल , “अबिहन तक िबनती का पता नै, और ऊ तुरकन-
मले छन के िहयाँ कु छ खा-पी िलिहस तो फर हमरे िहयाँ गुजारा नािह ना ओका। बड़ी
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आजाद ई गयी है सुधा क सह पाय के । आवै देव, आज हम भ ा उता रत ही।”
डॉ. शु ला अपने कमरे म चले गये। च दर को यास लगी थी। उसने बुआजी से एक िगलास
पानी माँगा। बुआ ने एक िगलास म पानी दया और बोल , “बैठ के िपयो बेटा; बैठ के । कु छ
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खाय का देई?”
“नह , बुआजी!” बुआ बैठकर हँिसया से कटहल छीलने लग और च दर पानी पीता आ
सोचने लगा, बुआजी सभी से इतनी मीठी बात करती ह तो आिखर िबनती से ही इतनी
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कटु य ह?
इतने म अ दर च पल क आहट सुनाई पड़ी। च दर ने देखा, सुधा और िबनती आ गयी
थ । सुधा अपनी च पल उतारकर अपने कमरे म चली गयी और िबनती आँगन म आयी।
बुआजी के पास आकर बोली, “लाओ, हम तरकारी काट द।”
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“चल हट ओहर। पिहले नहाव जाय के । कु छ खाय तो नै रहयो। ए ी देर कहाँ घूमित रहयो
? हम खूब अ छी तरह जािनत ही तूँ हमार नाक कटाइन के रहबो। पतु रयन के ढँग सीखे
ह!”
िबनती चुप। एक तीखी वेदना का भाव उसके मुँह पर आया। उसने आँख झुका ल । रोयी
नह और चुपचाप िसर झुकाये ए सुधा के कमरे म चली गयी।
च दर ण-भर खड़ा रहा। फर सुधा के पास गया। सुधा के कमरे म अके ले िबनती खाट पर
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पड़ी थी- धे मुँह, त कया म मुँह िछपाये। च दर को जाने कै सा लगा। उसके मन म बेहद
तरस आ रहा था इस बेचारी लड़क के िलए, िजसके िपता ह ही नह और िजसे ताडऩा के
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इतने म सुधा कपड़े बदलकर हाथ म कताब िलये, उसे पढ़ती ई, उसी म डू बी ई आयी
और खाट पर बैठ गयी। “अरे ! िबनती! कै से पड़ी हो? अ छा तुम हो च दर! िबनती! उठो!”
उसने िबनती क पीठ पर हाथ रखकर कहा।
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िबनती, जो अभी तक िनचे पड़ी थी, सुधा के ममता-भरे पश पर फू ट-फू टकर रो पड़ी।
तो सुधा ने च दर से कहा, “ या आ िबनती रानी को।” और िबनती भी जोर से
िसस कयाँ भरने लगी तो सुधा ने च दर से कहा, “कु छ तुमने कहा होगा। चौदह दन बाद
आये और आते ही लगे लाने उसे। कु छ कहा होगा तुमने! समझ गये। घूमने के िलए उसे भी
डाँटा होगा। हम साफ-साफ बताये देते ह च दर, हम तु हारी डाँट सह लेते ह इसके ये
मतलब नह क अब तुम इस बेचारी पर भी रोब झाडऩे लगो। इससे कभी कु छ कहा तो
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अ छी बात नह होगी!”
“तु हारे दमाग का कोई पुरजा ढीला हो गया है या? म य क ग ँ ा िबनती को कु छ!”
“बस फर यही बात तु हारी बुरी लगती है।” सुधा िबगड़कर बोली, “ य नह कहोगे
िबनती को कु छ? जब हम कहते हो तो उसे य नह कहोगे? हम तु हारे अपने ह तो या
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वो तु हारी अपनी नह है?”
च दर हँस पड़ा-”सो य नह है, ले कन तु हारे साथ न ऐसे िनबाह, न वैसे िनबाह।”
“ये सब कु छ हम नह जानते! य रो रही है यह?” सुधा बोली धमक के वर म।
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“बुआजी ने कु छ कहा था।” च दर बोला।
“अरे तो उसके िलए या रोना! इतना समझाया तुझे क उनक तो आदत है। हँसकर टाल
दया कर। चल उठ! हँसती है क गुदगुदाऊँ।” सुधा ने गुदगुदाते ए कहा। िबनती ने उसका
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हाथ पकडक़र झटक दया और फर िसस कयाँ भरने लगी।
“नह मानेगी तू?” सुधा बोली, “अभी ठीक करती ँ तुझे म। च दर, पकड़ो तो इसका
हाथ।”
च दर चुप रहा।
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“नह उठे । उठो, तुम इसका हाथ पकड़ लो तो हम अभी इसे हँसाते ह।” सुधा ने च दर का
हाथ पकडक़र िबनती क ओर बढ़ते ए कहा। च दर ने अपना हाथ ख च िलया और
बोला, “वह तो रो रही है और तुम बजाय समझाने के उसे परे शान कर रही हो।”
“अरे जानते हो, य रो रही है? अभी इसके ससुर आये थे, वो ब त मोटे थे तो ये सोच रही
है कह 'वो' भी मोटे ह !” सुधा ने फर उसक गरदन गुदगुदाकर कहा।
िबनती हँस पड़ी। सुधा उछल पड़ी-”लो, ये तो हँस पड़ी, अब रोओगी?” अब फर सुधा ने
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उ ह। बेचारे घबरा गये। फू ल ब त चुलबुली है और बड़ी नाजुक है। बड़ी बोलने वाली है
और िबनती और फू ल का खूब जोड़ िमला। दोन खूब गाती ह।”
“िबनती गाती भी है?” च दर ने पूछा, “हमने तो रोते ही देखा।”
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“अरे ब त अ छा गाती है। इसने एक गाँव का गाना ब त अ छा गाया था।...अरे देखो वह
सब बताने म हम तुम पर गु सा होना तो भूल ही गये। कहाँ रहे चार रोज? बोलो, बताओ
ज दी से।”
“ त थे सुधा, अब थीिसस तीन िह सा िलख गयी। इधर हम लगातार पाँच घंटे से
बैठकर िलखते थे!” च दर बोला।
“पाँच घंटे!” सुधा बोली, “दूध आजकल पीते हो क नह ?”
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“हाँ-हाँ, तीन गाय खरीद ली ह...।” च दर बोला।
“नह , मजाक नह , कु छ खाते-पीते रहना, कह तबीयत खराब ई तो अब हमारा
इ तहान है, पड़े-पड़े म खी मारोगे और अब हम देखने भी नह आ सकगे।”
“अब कतना कोस बाक है तु हारा?”
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“कोस तो ख म था हमारा। कु छ क ठनाइयाँ थ सो िपछले दो-तीन ह ते म मा टर साहब
ने बता दी थ । अब दोहराना है। ले कन िबनती का इ तहान मई म है, उसे भी तो पढ़ाना
है।” is
“अ छा, अब चल हम।”
“अरे बैठो! फर जाने कै दन बाद आओगे। आज बुआ तो चली जाएँगी फर कल से यह
पढ़ो न। तुमने िबनती के ससुर को देखा था?”
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“हाँ, देखा था!” च दर उनक परे खा याद करके हँस पड़ा-”बाप रे ! पूरे टक थे वे तो।”
“िबनती क ननद से तु हारा याह करवा द। करोगे?” सुधा बोली, “लड़क इतनी ही मोटी
है। उसे कभी डाँट लेना तो देखगे तु हारी िह मत।”
याह! एकदम से च दर को याद आ गया। अभी बुआ ने बात क थी सुधा के याह क । तब
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उसे कै सा लगा था? कै सा लगा था? उसका दमाग घूम गया था। लगा जैसे एक असहनीय
दद था या या था-जो उसक नस-नस को तोड़ गया। एकदम...।
“ या आ, च दर? अरे चुप य हो गये? डर गये मोटी लड़क के नाम से?” सुधा ने च दर
का क धा पकड़कर झकझोरते ए कहा।
च दर एक फ क हँसी हँसकर रह गया और चुपचाप सुधा क ओर देखने लगा। सुधा च दर
क िनगाह से सहम गयी। च दर क िनगाह म जाने या था, एक अजब-सा पथराया
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च दर है जो उसे इस तरह देख रहा है। यह कोई अप रिचत है, कोई अजनबी, कसी दूसरे
देश का कोई ि जो सुधा को...
“च दर, च दर! तु ह या हो गया!” सुधा क आवाज मारे डर के काँप रही थी, उसका मुँह
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पीला पड़ गया, उसक साँस बैठने लगी थी-”च दर...” और जब उसका कु छ बस न चला
तो उसक आँख म आँसू छलक आये।
हाथ पर एक गरम-गरम बूँद आकर पड़ते ही च दर च क गया। “अरे सुधी! रोओ मत।
नह पगली। हमारी तबीयत कु छ ठीक नह है, एक िगलास पानी तो ले आओ।”
सुधा अब भी काँप रही थी। च दर क आवाज म अभी भी वह मुलायिमयत नह आ पायी
थी। वह पानी लाने के िलए उठी।
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“नह , तुम कह जाओ मत, तुम बैठो यह ।” उसने उसक हथेली अपने माथे पर रखकर
जोर से अपने हाथ म दबा ली और कहा, “सुधा!...”
“ य , च दर!”
“कु छ नह !” च दर ने आवाज दी ले कन लगता था वह आवाज च दर क नह थी। न जाने
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कहाँ से आ रही थी...
“ या िसर म दद है? िबनती, एक िगलास पानी लाओ ज दी से।”
सुधा ने आवाज दी। च दर जैसे पहले-सा हो गया-”अरे ! अभी मुझे या हो गया था? तुम
is
या बात कर रही थ सुधा?”
“पता नह तु ह अभी या हो गया था?” सुधा ने घबरायी ई गौरे या क तरह सहमकर
कहा।
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च दर व थ हो गया-”कु छ नह सुधा! म ठीक ।ँ म तो यूँ ही तु ह परे शान करने के िलए
चुप था।” उसने हँसकर कहा।
“हाँ, चलो रहने दो। तु हारे िसर म दद है ज र से।” सुधा बोली। िबनती पानी लेकर आ
गयी थी।
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लड़के के माथे पर कै से पेनबाम लगा दे। “चलती है या अभी काट के गाड़ दगे यह । मोटक
कह क ! खा-खाकर मुटानी है। जरा-सा काम नह होता।”
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िबनती ने हारकर पेनबाम लगाया। च दर ने उसका हाथ हटा दया तो सुधा ने िबनती के
हाथ से पेनबाम लेकर कहा, “आओ, हम लगा द।” िबनती पेनबाम देकर चली गयी तो
च दर बोला, “अब बताओ, या बात कर रही थ ? हाँ, िबनती के याह क । ये उनके ससुर
तो ब त ही भ े मालूम पड़ रहे थे। या देखकर याह कर रही हो तुम लोग?”
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िबनती बड़ी खुश है। यह तो चाहती है कसी तरह ज दी से याह हो!” सुधा मुसकराती
ई बोली।
“अ छा, यह खुद याह करना चाहती है!” च दर ने ता ुब से पूछा।
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“और या? अपने ससुर क खूब सेवा कर रही थी सुबह। बि क पापा तो कह रहे थे क
अभी यह बी.ए. कर ले तब याह करो। हमसे पापा ने कहा इससे पूछने को। हमने पूछा तो
कहने लगी बी.ए. करके भी वही करना होगा तो बेकार टालने से या फायदा। फर पापा
हमसे बोले क कु छ वजह से अगहन म याह होगा, तो बड़े ता ुब से बोली, “अगहन
म?”
“सुधी, तुम जानती हो अगहन म उसका याह य टल रहा है? पहले तु हारा याह
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होगा।” च दर हँसकर बोला। वह पूणतया शा त था और उसके वर म कम-से-कम बाहर
िसवा चुहल के और कु छ भी न था।
“मेरा याह, मेरा याह!” आँख फाडक़र, मुँह फै लाकर, हाथ नचाकर, कु तूहल-भरे आ य
से सुधा ने कहा और फर हँस पड़ी, खूब हँसी-”कौन करे गा मेरा याह? बुआ? पापा करने
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ही नह दगे। हमारे िबना पापा का काम ही नह चलेगा और बाबूसाहब, तुम कस पर
आकर रं ग जमाओगे? याह मेरा। !ँ ” सुधा ने मुँह िबचकाकर उपे ा से कहा।
“नह सुधा, म ग भीरता से कह रहा ।ँ तीन-चार महीने के अ दर तु हारा याह हो
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जाएगा।” च दर उसे िव ास दलाते ए बोला।
“अरे जाओ!” सुधा ने हँसते ए कहा, “ऐसे हम तु हारे बनाने म आ जाएँ तो हो चुका।”
“अ छा जाने दो। तु हारे पास कोई पो टकाड है? लाओ जरा इस कॉमरे ड को एक िच ी तो
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िलख द।” च दर बात बदलकर बोला। पता नह य इस िवषय क बात के चलने म उसे
कै सा लगता था।
“कौन कामरे ड?” सुधा ने पूछा, “तुम भी क युिन ट हो गये या?”
“नह , जी, वो बरे ली का सोशिल ट लड़का कै लाश िजसने झगड़े म हम लोग क जान
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ले चर देते ह।”
“धत्, हम कोई बेवकू फ ह या?” सुधा ने िबगडक़र कहा।
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“नह , सो तो तुम बुि सागर हो, ले कन लड़ कय क राजनीितक बुि कु छ ऐसी ही होती
है!” च दर बोला।
“अ छा रहने दो। लड़ कयाँ न ह तो काम ही न चले।” सुधा ने कहा।
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“अ छा, सुधा! आज कु छ पये दोगी। हमारे पास पैसे खतम ह। और िसनेमा देखना है
जरा।” च दर ने ब त दुलार से कहा।
“हाँ-हाँ, ज र दगे तु ह। मतलबी कह के !” सुधा बोली, “अभी-अभी तुम लड़ कय क
बुराई कर रहे थे न?”
“तो तुम और लड़ कय म से थोड़े ही हो। तुम तो हमारी सुधा हो। सुधा महान।”
सुधा िपघल गयी-”अ छा, कतना लोगे?” अपनी पॉके ट म से पाँच पये का नोट
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िनकालकर बोली, “इससे काम चल जाएगा?”
“हाँ-हाँ, आज जरा सोच रहे ह प मी के यहाँ जाएँ, तब सेकड शो जाएँ।”
“प मी रानी के यहाँ जाओगे। समझ गये, तभी तुमने चाचाजी से याह करने से इनकार
कर दया। ले कन प मी तुमसे तीन साल बड़ी है। लोग या कहगे?” सुधा ने छेड़ा।
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“ऊँह, तो या आ जी! सब य ही चलता है!” च दर हँसकर टाल गया।
“तो फर खाना यह खाये जाओ और कार लेते जाओ।” सुधा ने कहा।
“मँगाओ!” च दर ने पलँग पर पैर फै लाते ए कहा। खाना आ गया। और जब तक च दर
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खाता रहा, सुधा सामने बैठी रही और िबनती दौड़-दौडक़र पूड़ी लाती रही।
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पर का पीलापन भी कु छ कम था। वह देखने से इतना भयंकर नह मालूम पड़ता था।
ले कन उसक आँख का पागलपन अभी वैसा ही था और खूबसूरत सूट पहनने पर भी
उसका हाल यह था क एक कालर अ दर था और एक बाहर।
प मी ने च दर को आते देखा तो िखल गयी। “ह लो, कपूर! या हाल है। पता नह य
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आज सुबह से मेरा मन कह रहा था क आज मेरे िम ज र आएँगे। और शाम के व तुम
तो इतने अ छे लगते हो जैसे वह जगमग िसतारा िजसे देखकर क स ने अपनी आिखरी
सानेट िलखी थी।” प मी ने एक गुलाब तोड़ा और च दर के कोट के बटन होल म लगा
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दया। च दर ने बड़े भय से बट क ओर देखा क कह गुलाब को तोड़े जाने पर वह फर
च दर क गरदन पर सवार न हो जाए। ले कन बट कु छ बोला नह । बट ने िसफ हाथ
उठाकर अिभवादन कया और फर बैठकर सोचने लगा।
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प मी ने कहा, “आओ, अ दर चल।” और च दर और प मी दोन ाइं ग म म बैठ गये।
च दर ने कहा, “म तो डर रहा था क तुमने गुलाब तोडक़र मुझे दया तो कह बट नाराज
न हो जाए, ले कन वह कु छ बोला नह ।”
प मी मुसकरायी, “हाँ, अब वह कु छ कहता नह और पता नह य गुलाब से उसक
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भी नह चुराता, अब भी वह इन फू ल म नह िमलती। वह ज र साजट के साथ जाती है।
वह मुझे यार नह करती, हरिगज नह करती, और वह रोने लगा।” बस उसी दन से वह
गुलाब के पास नह जाता और आजकल ब त अ छे-अ छे सूट पहनकर घूमता है और
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कहता है- या म साजट से कम सु दर !ँ और इधर वह िब कु ल पागल हो गया है। पता
नह कससे अपने-आप लड़ता रहता है।”
च दर ने ता ुब से िसर िहलाया।
“हाँ, मुझे बड़ा दु:ख आ!” प मी बोली, “मने तो, हमदद क क फू ल चुराने ब द कर दये
और उसका नतीजा यह आ। पता नह य कपूर, मुझे लगता है क हमदद करना इस
दुिनया म सबसे बड़ा पाप है। आदमी से हमदद कभी नह करनी चािहए।”
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च दर ने सहसा अपनी घड़ी देखी।
“ य , अभी तुम नह जा सकते। बैठो और बात सुनो, इसिलए मने तु ह दो त बनाया है।
आज दो-तीन साल हो गये, मने कसी से बात ही नह क ह और तुमसे इसिलए मैने
िम ता क है क बात क ँ गी।”
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च दर हँसा, “आपने मेरा अ छा उपयोग ढू ँढ़ िनकाला।”
“नह , उपयोग नह , कपूर! तुम मुझे गलत न समझना। जंदगी ने मुझे इतनी बात बतायी
ह और यह कताब जो म इधर पढ़ने लगी ,ँ इ ह ने मुझे इतनी बात बतायी ह क म
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चाहती ँ क उन पर बातचीत करके अपने मन का बोझ ह का कर लूँ। और तु ह बैठकर
सुननी ह गी सभी बात!”
“हाँ, म तैयार ँ ले कन कताब पढ़नी कब से शु कर द तुमने?” च दर ने ता ुब से
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पूछा।
“अभी उस दन म डॉ. शु ला के यहाँ गयी। उनक लड़क से मालूम आ क तु ह किवता
पस द है। मने सोचा, उसी पर बात क ँ और मने किवताएँ पढ़नी शु कर द ।”
“अ छा, तो देखता ँ क दो-तीन ह ते म भाई और बहन दोन म कु छ प रवतन आ गये।”
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“बट को ले चलोगे?”
“हाँ, हाँ! तो चलो उठो, फर देर हो जाएगी!” च दर ने घड़ी देखते ए कहा।
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दोन बाहर आये तो बट लॉन पर घूम रहा था। उसके पैर लडख़ड़ा रहे थे। ले कन वह बड़ी
शान से सीना ताने था। “बट , आज िम टर कपूर मुझे िसनेमा दखलाने जा रहे ह। तुम भी
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चलोगे?”
“ !ँ ” बट ने िसर िहलाकर जोर से कहा, “िसनेमा जाऊँगा? कभी नह । भूलकर भी नह ।
तुमने मुझे या समझा है? म िसनेमा जाऊँगा?” धीरे -धीरे उसका वर म द पड़
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गया...”अगर िसनेमा म वह साजट के साथ िमल गयी तो! तो म उसका गला घ ट दूग ँ ा।”
अपने गले को दबाते ए बट बोला और इतनी जोर से दबा दया अपना गला क आँख
लाल हो गय और खाँसने लगा। खाँसी ब द ई तो बोला, “वह मुझे यार नह करती। वह
साजट को यार करती है। वह उसी के साथ घूमती है। अगर वह िमल जाएगी िसनेमा म तो
उसक ह या कर डालूँगा, तो पुिलस आएगी और खेल ख म हो जाएगा। तुम जानते हो िम.
कपूर, म उससे कतना नफरत करता .ँ ..और...और ले कन नह , कौन जानता है म नफरत
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करता होऊँ और वह मुझे...कु छ समझ म नह आता, म पागल ,ँ ओफ।” और वह िसर
थामकर बैठ गया।
प मी ने च दर का हाथ पकडक़र कहा, “चलो, यहाँ रहने से उसका दमाग और खराब
होगा। आओ!”
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दोन जाकर कार म बैठे। च दर खुद ही ाइव कर रहा था। प मी बोली, “ब त दन से
मने कार नह ाइव क है। लाओ, आज ाइव क ँ ।”
प मी ने टीय रं ग अपने हाथ म ले ली। च दर इधर बैठ गया।
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थोड़ी देर म कार रीजट के सामने जा प च ँ ी। िच था-'सेलामी, वेयर शी डां ड'
('सेलामी, जहाँ वह नाची थी')। च दर ने टकट िलया और दोन ऊपर बैठ गये। अभी यूज
रील चल रही थी। सहसा प मी ने कहा, “कपूर, सेलामी क कहानी मालूम है?”
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“न! या यह कोई उप यास है!” च दर ने पूछा।
“नह , यह बाइिबल क एक कहानी है। असल म एक राजा था हैराद। उसने अपने भाई को
मारकर उसक प ी से अपनी शादी कर ली। उसक भतीजी थी सेलामी, जो ब त सु दर
थी और ब त अ छा नाचती थी। हैराद उस पर मु ध हो गया। ले कन सेलामी एक पैग बर
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कतनी भयंकर चीज है। आदमी के सामने व -बेव , नाता- र ता, मयादा-अमयादा कु छ
भी नह रह जाता। वह अपनी भतीजी पर मोिहत आ तो या? मने तो तु हारे यहाँ एक
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पौरािणक कहानी पढ़ी थी क महादेव अपनी लड़क सर वती पर मु ध हो गये।”
“महादेव नह , ा।” च दर बोला।
“हाँ, हाँ, ाï। म भूल गयी थी। तो यह तो से स है। आदमी को कहाँ ले जाता है, यह
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अ दाज भी नह कया जा सकता। तुम तो अभी ब क तरह भोले हो और ई र न करे
तुम कभी इस याले का शरबत चखो। म भी तो तु हारी इसी पिव ता को यार करती
।ँ ” प मी ने च दर क ओर देखकर कहा, “तुम जानते हो, मने तलाक य दया? मेरा
पित मुझे ब त चाहता था ले कन म िववािहत जीवन के वासना मक पहलू से घबरा उठी!
मुझे लगने लगा, म आदमी नह ँ बस मांस का लोथड़ा ँ िजसे मेरा पित जब चाहे मसल
दे, जब चाहे...ऊब गयी थी! एक गहरी नफरत थी मेरे मन म। तुम आये तो तुम बड़े पिव
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लगे। तुमने आते ही णय-याचना नह क । तु हारी आँख म भूख नह थी। हमदद थी,
ेह था, कोमलता थी, िन छलता थी। मुझे तुम काफ अ छे लगे। तुमने मुझे अपनी
पिव ता देकर िजला दया...।”
च दर को एक अजब-सा गौरव अनुभव आ और प मी के ित एक ब त ऊँची आदर-
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भावना। उसने पिव ता देकर िजला दया। सहसा च दर के मन म आया-ले कन यह उसके
ि व क पिव ता कसक दी ई है। सुधा क ही न! उसी ने तो उसे िसखाया है क
पु ष और नारी म कतने ऊँचे स ब ध रह सकते ह।
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“ या सोच रहे हो?” प मी ने अपना हाथ कपूर क गोद म रख दया।
कपूर िसहर गया ले कन िश ाचारवश उसने अपना हाथ प मी के क धे पर रख दया।
प मी ने दो ण के बाद अपना हाथ हटा िलया और बोली, “कपूर, म सोच रही ँ अगर
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यह िववाह सं था हट जाए तो कतना अ छा हो। पु ष और नारी म िम ता हो। बौि क
िम ता और दल क हमदद । यह नह क आदमी औरत को वासना क यास बुझाने का
याला समझे और औरत आदमी को अपना मािलक। असल म बँधने के बाद ही, पता नह
य स ब ध म िवकृ ित आ जाती है। म तो देखती ँ क णय िववाह भी होते ह तो वह
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असफल हो जाते ह य क िववाह के पहले आदमी औरत को ऊँची िनगाह से देखता है,
हमदद और यार क चीज समझता है और िववाह के बाद िसफ वासना क । म तो ेम म
भी िववाह-प म नह ँ और ेम म भी वासना का िवरोध करती ।ँ ”
“ले कन हर लड़क ऐसी थोड़े ही होती है!” च दर बोला, “तु ह वासना से नफरत हो
ले कन हर एक को तो नह ।”
“हर एक को होती है। लड़ कयाँ बस वासना क झलक, एक ह क िसहरन, एक गुदगुदी
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तबीयत ऊब गयी।”
दोन उठ खड़े ए और नीचे आये।
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“कपूर, अबक बार तुम ाइव करो!” प मी बोली।
“नह , तु ह ाइव करो” कपूर बोला।
“कहाँ चल,” प मी ने टाट करते ए कहा।
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“जहाँ चाहो।” कपूर ने िवचार म डू बे ए कहा।
प मी ने गाड़ी खूब तेज चला दी। सड़क साफ थ । प मी का कालर फहराने लगा और
उड़कर च दर के गाल पर थप कयाँ लगाने लगा। च दर दूर िखसक गया। प मी ने च दर
क ओर देखा और बजाय कालर ठीक करने के , गले का एक बटन और खोल दया और
च दर को पास ख च िलया। च दर चुपचाप बैठ गया। प मी ने एक हाथ टीय रं ग पर
रखा और एक हाथ से च दर का हाथ पकड़े रही जैसे वह च दर को दूर नह जाने देगी।
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च दर के बदन म एक ह क िसहरन नाच रही थी। य ? शायद इसिलए क हवा ठं डी थी
या शायद इसिलए क...उसने प मी का हाथ अपने हाथ से हटाने क कोिशश क । प मी ने
हाथ ख च िलया और कार के अ दर क िबजली जला दी।
कपूर चुपचाप ठाकु र साहब के बारे म सोचता रहा। कार चलती रही। जब च दर का यान
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टू टा तो उसने देखा कार मैकफसन लेक के पास क है।
दोन उतरे । बीच म सड़क थी, इधर नीचे उतरकर झील और उधर गंगा बह रही थी। आठ
बजा होगा। रात हो गयी थी, चार तरफ स ाटा था। बस िसतार क ह क रोशनी थी।
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मैकफसन झील काफ सूख गयी थी। कनारे - कनारे मछली मारने के मचान बने थे।
“इधर आओ!” प मी बोली। और दोन नीचे उतरकर मचान पर जा बैठे। पानी का धरातल
शा त था। िसफ कह -कह मछिलय के उछलने या साँस लेने से पानी िहल जाता था। पास
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ही के नीवाँ गाँव म कसी के यहाँ शायद शादी थी जो शहनाई का ह का वर हवा क
तरं ग पर िहलता-डु लता आ आ रहा था। दोन चुपचाप थे। थोड़ी देर बाद प मी ने कहा,
“कपूर, चुपचाप रहो, कु छ बात मत करना। उधर देखो पानी म। िसतार का ितिब ब देख
रहे हो। चु पे से सुनो, ये िसतारे या बात कर रहे ह।”
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अगर आदमी हमेशा स ब ध म एक दूरी रखे। से स न आने दे। ये िसतारे ह, देखो कतने
नजदीक ह। करोड़ बरस से साथ ह, ले कन कभी भी एक दूसरे को छू ते तक नह , तभी तो
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संग िनभ जाता है।” सहसा उसक आवाज म जाने या छलक आया क च दर जैसे
मदहोश हो गया-बोली वह-”बस ऐसा हो क आदमी अपने ेमा पद को िनकटतम लाकर
छोड़ दे, उसको बाँधे न। कु छ ऐसा हो क होठ के पास ख चकर छोड़ दे।” और प मी ने
च दर का माथा होठ तक लाकर छोड़ दया। उसक गरम-गरम साँस च दर क पलक पर
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गरमाई च दर के रोम-रोम म सुलग उठी, वह बेचैन हो उठा। उसके मन म आया क वह
अभी यहाँ से चला जाए। जाने कै सा लग रहा था उसे। सहसा प मी बोली, “ले कन नह ,
हम लोग िम ह और कपूर, तुम ब त पिव हो, िन कलंक हो और तुम पिव रहोगे। म
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िजतनी दूरी, िजतना अ तर, िजतनी पिव ता पस द करती ,ँ वह तुमम है और हम लोग
म हमेशा िनभेगी जैसे इन िसतार म हमेशा िनभती आयी है।”
च दर चुपचाप सोचने लगा, “वह पिव है। एकाएक उसका मन जैसे ऊबने लगा। जैसे एक
िवहग िशशु घबराकर अपने नीड़ के िलए तड़प उठता है, वैसे ही वह इस व तड़प उठा
सुधा के पास जाने के िलए- य ? पता नह य ? यहाँ कु छ है जो उसे जकड़ लेना चाहता
है। वह या करे ?
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प मी उठी, वह भी उठा। बाँस का मचान िहला। लहर म हरकत ई। करोड़ साल से
अलग और पिव िसतारे िहले, आपसे म टकराये और चूर-चूर होकर िबखर गये।
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चादर लपेट लेता था, फर जब उसक तबीयत घुटने लगती तो वह उठ बैठता था। उसे
रात-भर न द नह आयी; बार-बार झपक आयी और लगा क िखड़क के बाहर सुनसान
अँधेरे म से अजब-सी आवाज आती ह और नािगन बनकर उसक साँस म िलपट जाती ह।
वह परे शान हो उठता है, इतने म फर कह से कोई मीठी सतरं गी संगीत क लहर आती है
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और उसे सचेत और सजग कर जाती है। एक बार उसने देखा क सुधा और गेसू कह चली
जा रही ह। उसने गेसू को कभी नह देखा था ले कन उसने सपने म गेसू को पहचान िलया।
ले कन गेसू तो प मी क तरह गाउन पहने ए थी! फर देखा िबनती रो रही है और इतना
is
िबलख-िबलखकर रो रही है क तबीयत घबरा जाए। घर म कोई नह है। च दर समझ
नह पाता क वह या करे ! अके ले घर म एक अप रिचत लड़क से बोलने का साहस भी
नह होता उसका। कसी तरह िह मत करके वह समीप प च ँ ा तो देखा अरे , यह तो सुधा
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है। सुधा लुटी ई-सी मालूम पड़ती है। वह ब त िह मत करके सुधा के पास बैठ गया।
उसने सोचा, सुधा को आ ासन दे ले कन उसके हाथ पर जाने कै से सुकुमार जंजीर कसी
ई ह। उसके मुँह पर कसी क साँस का भार है। वह िन े है। उसका मन अकु ला उठा।
वह च ककर जाग गया तो देखा वह पसीने से तर है। वह उठकर टहलने लगा। वह जाग
En
थ । य क िबनती बैठी तरकारी काट रही थी और खुश नजर आ रही थी। च दर सुधा के
कमरे म गया। देखते ही सुधा मुसकरा पड़ी। बोली कु छ नह ले कन आते ही उसने च दर के
el
अंग-अंग को अपनी िनगाह के वागत म समेट िलया। च दर सुधा के पैर के पास बैठ
गया।
“कल रात को तुम कार लेकर वापस आये तो चु पे से चले गये!” सुधा बोली, “कहो, कल
कौन-सा खेल देखा?”
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“कल ब त बड़ा खेल देखा; ब त बड़ा खेल, सुधी!” च दर ाकु लता से बोला, “अरे जाने
कै सा मन हो गया क रात-भर न द ही नह आयी।” और उसके बाद च दर सब बता गया।
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कै से वह िसनेमा गया। उसने प मी से या बात क । उसके बाद कै से कार पर उसने च दर
को पास ख च िलया। कै से वे लोग मैकफसन झील गये और वहाँ प मी पागल हो गयी।
फर कै से च दर को एकदम सुधा क याद आने लगी और फर रात-भर च दर को कै से-कै से
Hi
सपने आये। सुधा ब त ग भीर होकर मुँह म पेि सल दबाये कु हनी टेके बस चुपचाप सुनती
रही और अ त म बोली, “तो तुम इतने परे शान य हो गये, च दर! उसने तो अ छी ही
बात कही थी। यह तो अ छा ही है क ये सब िजसे तुम से स कहते हो, यह स ब ध म न
आए। उसम या बुराई है? या तुम चाहते हो क से स आए?”
“कभी नह , तुम मुझे अभी तक नह समझ पाय ।”
“तो ठीक है, तुम भी नह चाहते क से स आए और वह भी नह चाहती क से स आए तो
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झगड़ा या है? य , तुम उदास य हो इतने?” सुधा बोली बड़े अचरज से।
“ले कन उसका वहार कै सा है?” च दर ने सुधा से कहा।
“ठीक तो है। उसने बता दया तु ह क इतना अ तर होना चािहए। समझ गये। तुम लालची
आदमी, चाहते होगे यह भी अ तर न रहे! इसीिलए तुम उदास हो गये, िछः!” ह ठ म
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मुसकराहट और आँख म शरारत क झलक िछपाते ए सुधा बोली।
“तुम तो मजाक करने लग ।” च दर बोला।
सुधा िसफ च दर क ओर देखकर मुसकराती रही। च दर सामने लगी ई तसवीर क ओर
is
देखता रहा। फर उसने सुधा के कबूतर -जैसे उजले मासूम न हे पैर अपने हाथ म ले िलये
और भरायी ई आवाज म बोला, “सुधा, तुम कभी हम पर िव ास न हार बैठना।”
सुधा ने कताब ब द करके रख दी और उठकर बैठ गयी। उसने च दर के दोन हाथ अपने
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हाथ म लेकर कहा, “पागल कह के ! हम कहते हो, अभी सुधा म बचपन है और तुमम या
है! वाह रे छु ईमुई के फू ल! कसी ने हाथ पकड़ िलया, कसी ने बदन छू िलया तो घबरा
गये! तुमसे अ छी लड़ कयाँ होती ह।” सुधा ने उसके दोन हाथ झकझोरते ए कहा।
“नह सुधी, तुम नह समझत । मेरी जंदगी म एक ही िव ास क च ान है। वह हो तुम।
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सुधा ने फूँ ककर कहा, “जाओ, तु हारे हाथ से प मी के पश का जहर उतर गया। अब तो
ठीक हो गये! पिव हो गये! छू -म तर!”
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च दर हँस पड़ा। उसका मन शा त हो गया। सुधा म जादू था। सचमुच जादू था। िबनती
चाय ले आयी। दो याले। सुधा बोली, “अपने िलए भी लाओ।” िबनती ने िसर िहलाया।
सुधा ने च दर क ओर देखकर कहा, “ये पगली जाने य तुमसे झपती है?”
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“झपती कहाँ ?ँ ” िबनती ने ितवाद कया और याला भी ले आयी और जमीन पर बैठ
गयी। सुधा ने याला मुँह से लगाया और बोली, “च दर, तुमने प मी को गलत समझा है।
प मी ब त अ छी लड़क है। तुमसे बड़ी भी है और तुमसे यादा समझदार, और उसी
तरह वहार भी करती है। तुम अगर कु छ सोचते हो तो गलत सोचते हो। मेरा मतलब
समझ गये न।”
“जी हाँ, गु आनीजी, अ छी तरह से!” च दर ने हाथ जोडक़र िवन ता से कहा। िबनती
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हँस पड़ी और उसक चाय छलक गयी। नीचे रखी ई च दर क जरीदार पेशावरी सिडल
भीग गयी। िबनती ने झुककर एक अँगोछे से उसे प छना चाहा तो सुधा िच ला उठी-”हाँ-
हाँ, छु ओ मत। कह इनक सिडल भी बाद म आके न रोने लगे। सुन िबनती, एक लड़क ने
कल इ ह छू िलया तो आप आज उदास थे। अभी तुम सिडल छु ओ तो कह जाके कोतावली
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म रपट न कर द।”
च दर हँस पड़ा। और उसका मन धुलकर ऐसे िनखर गया जैसे शरद का नीलाभ आकाश।
“अब प मी के यहाँ कब जाओगे?” सुधा ने शरारत-भरी मुसकराहट से पूछा।
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“कल जाऊँगा! ठाकु र साहब प मी के हाथ अपनी कार बेच रहे ह तो कागज पर द तखत
करना है।” च दर ने कहा, “अब म िनडर ।ँ कहो िबनती, तु हारे ससुर का या कोई खत
नह आया।”
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िबनती झप गयी। च दर चल दया।
थोड़ी दूर जाकर फर मुड़ा और बोला, “अ छा सुधा, आज तक जो काम हो बता दो फर
एक महीने तक मुझसे कोई मतलब नह । हम थीिसस पूरी करगे। समझ ?”
“समझे!” हाथ पटककर सुधा बोली।
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सचमुच डेढ़ महीने तक च दर को होश नह रहा क कहाँ या हो रहा है। िबस रया रोज
सुधा और िबनती को पढ़ाने आता रहा, सुधा और िबनती दोन ही का इ तहान ख म हो
गया। प मी दो बार सुधा और च दर से िमलने आयी ले कन च दर एक बार भी उसके यहाँ
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नह गया। िम ा का एक खत बरे ली से आया ले कन च दर ने उसका भी जवाब नह
दया। डॉ टर साहब ने अपनी पु तक के दो अ याय िलख डाले ले कन उसने एक दन भी
बहस नह क । िबनती उसे बराबर चाय, दूध, ना ता, शरबत और खरबूजा देती रही
ले कन च दर ने एक बार भी उसके ससुर का नाम लेकर नह िचढ़ाया। सुधा या करती है,
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कहाँ जाती है, च दर से या कहती है, च दर को कोई होश नह , बस उसका पेन, उसके
कागज, टडी म क मेज और च दर है क आिखर थीिसस पूरी करके ही माना।
7 मई को जब उसने थीिसस का आिखरी प ा िलखकर पूरा कया और स तोष क साँस
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ली तो देखा क शाम के पाँच बजे ह, सायबान म अभी परदा पड़ा है ले कन धूप उतार पर
है और लू ब द हो गयी है। उसक कु स के पीछे एक चटाई िबछाये ए सुधा बैठी है। यूगो
का अधपढ़ा आ उप यास बगल म खुला आ धा पड़ा है और आप च दर क एक मोटी-
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सी इकनॉिम स क कताब खोले उस पर कलम से कु छ गोदा-गोदी कर रही है।
“सुधा!” एक गहरी साँस लेकर अँगड़ाई लेते ए च दर ने कहा, “लो, आज आिखरकार
जान छू टी। बस, अब दो-तीन महीने म माबदौलत डॉ टर बन जाएँगे!”
सुधा अपने काय म त। च दर ने या कहा, यह सुनकर भी गुम। च दर ने हाथ बढ़ाकर
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चोटी झटक दी। “हाय रे ! हम नह अ छा लगता, च दर!” सुधा िबगडक़र बोली, “तु हारे
काम के बीच म कोई बोलता है तो िबगड़ जाते हो और हमारा काम थोड़े ही मह वपूण है!”
कहकर सुधा फर पेन लेकर गोदने लगी।
“आिखर कौन-सा उपिनषद िलख रही ह आप? जरा देख तो!” च दर ने कताब ख च ली।
टािजग क इकनॉिम स क कताब म एक पूरे प े पर सुधा ने एक िब ली बनायी थी और
अगर िनगाह जरा चूक जाए तो आप कह नह सकते थे यह चौरासी लाख योिनय म से
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तुम डॉ टर हो जाओगे?”
“और या?”
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“आहा!” कहकर जो सुधा उछली तो फाइल हाथ से िखसक और सभी प े जमीन पर।
च दर झ ला गया। उसने गु से से लाल होकर एक घूँसा सुधा को मार दया। “अरे राम रे !”
सुधा ने पीठ सीधी करते ए कहा, “बड़े परोपकारी हो डॉ टर च दर कपूर! हम िबना
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थीिसस िलखे िड ी दे दी! ले कन ब त जोर क थी!”
च दर हँस पड़ा।
खैर दोन पापा के पास गये। वे भी िलखकर ही उठे थे और शरबत पी रहे थे। च दर ने
जाकर कहा, “पूरी हो गयी।” और झुककर पैर छू िलये। उ ह ने च दर को सीने से लगाकर
कहा, “बस बेटा, अब तु हारी तप या पूरी हो गयी। अब जुलाई से यूिनव सटी म ज र आ
जाओगे तुम!”
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सुधा ने पोथा कोच पर रख दया और अपने पैर बढ़ाकर खड़ी हो गयी। “ये या?” पापा ने
पूछा।
“हमारे पैर नह छु एँगे या?” सुधा ने ग भीरता से कहा।
“चल पगली! ब त बदतमीज होती जा रही है!” पापा ने कृ ि म गु से से कहा, “च दर!
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ब त िसर चढ़ी हो गयी है। जरा दबाकर रखा करो। तुमसे छोटी है क नह ?”
“अ छा पापा, अब आज िमठाई िमलनी चािहए।” सुधा बोली, “च दर ने थीिसस ख म क
है?” is
“ज र, ज र बेटी!” डॉ टर शु ला ने जेब से दस का नोट िनकालकर दे दया, “जाओ,
िमठाई मँगवाकर खाओ तुम लोग।”
सुधा हाथ म नोट िलये उछलते ए टडी म म आयी, पीछे-पीछे च दर। सुधा क गयी
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और अपने मन म िहसाब लगाते ए बोली, “दस पये प ड ऊन। एक प ड म आठ ल छी।
छह ल छी म एक शाल। बाक बची दो ल छी। दो ल छी म एक वेटर। बस एक िबनती
का वेटर, एक हमारा शाल।”
च दर का माथा ठनका। अब िमठाई क उ मीद नह । फर भी कोिशश करनी चािहए।
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“ य ?”
“इसक वजह से तुम डेढ़ महीने सीधे से बोले तक नह । इ तहान वाले दन सुबह-सुबह
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तु ह हाथ जोडऩे आयी तो तुमने िसर पर हाथ भी नह रखा!” सुधा ने िशकायत के वर म
कहा।
“तो अब आशीवाद दे द। अब तो ख म ई थीिसस। अब िजतना चाहो बात कर लो।
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थीिसस न िलखते तो फर तु हारे च दर को उपािध कहाँ से िमलती?” च दर ने दुलार से
कहा।
“तो फर क वोके शन पर तु हारी गाउन हम पहनकर फोटो खंचाएँगे!” सुधा मचलकर
बोली। इतने म नौकर िमठाई ले आया। “जाओ, िबनतीजी को बुला लाओ।” च दर ने कहा।
िबनती आयी।
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“तुम पढ़ चुक !” च दर ने पूछा।
“अभी नह ।” िबनती बोली।
“अ छा, अब आज पढ़ाई ब द करो, उ ह भी बुला लाओ। िमठाई खाई जाए।” च दर ने
कहा।
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“अ छा!” कहकर िबनती जो मुड़ी तो सुधा बोली, “अरे लालिचन! ये तो पूछ ले क िमठाई
काहे क है?”
“मुझे मालूम है!” िबनती मुसकराती ई बोली, “उनके यहाँ आज गये ह गे, प मी के यहाँ
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फर आज कु छ उस दन जैसी बात ई होगी।”
सुधा हँस पड़ी। च दर झप गया। िबनती चली गयी िबस रया को बुलाने।
“अब तो ये तुमसे बोलने लगी!” सुधा ने कहा।
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“हाँ, यह है बड़ी सुशील लड़क और ब त शा त। हम ब त अ छी लगती है। बोलना तो
जैसे आता ही नह इसे।”
“हाँ, ले कन अब खूब सीख रही है। इसक गु िमली है गेसू। हमसे भी यादा गेसू से पटने
लगी है इसक । दोन याह करने जा रही ह और दोन उसी क बात करती ह जब िमलती
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देखकर।
“और ये सुधा कै सी थी?”
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“बस अि तीय।” िबस रया ने उसी तरह कहा।
“दोन अि तीय ह? साथ ही!” च दर ने पूछा।
सुधा और िबनती दोन हँस द । िबस रया नह समझ पाया क उसने कौन-सी हँसने क
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बात क थी और जब नह समझ पाया तो पहले िसर खुजलाने लगा फर खुद भी हँस पड़ा।
उसक हँसी पर तीन और हँस पड़े।
“च दर, मा टर साहब भी खूब ह। एक दन िबनती को महादेवी क वह किवता पढ़ा रहे
थे, 'िवरह का जलजात जीवन,' तो पढ़ते-पढ़ते बड़ी गहरी साँस भरने लगे।”
च दर और िबनती दोन हँस पड़े। िबस रया पहले तो खुद हँसा फर बोला, “हाँ भाई, या
कर, कपूर! तुम तो जानते ही हो, म ब त भावुक ।ँ मुझसे बदा त नह होता। एक बार तो
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ऐसा आ क पच म एक क ण रस का गीत आ गया अथ िलखने को। म उसे पढ़ते ही
इतना िथत हो गया क उठकर टहलने लगा। ोफे सर समझे म दूसरे लड़के क कॉपी
देखने उठा ,ँ तो उ ह ने िनकाल दया। मुझे िनकाले जाने का अफसोस नह आ ले कन
किवता पढक़र मुझे ब त लाई आयी।”
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सुधा हँसी तो च दर ने आँख के इशारे से मना कया और ग भीरता से बोला, “हाँ भाई
िबस रया, सो तो सही है ही। तुम इतने भावुक न हो तो इतना अ छा कै से िलख सकते हो?
तो तुमने पचा छोड़ दया?” is
“हाँ, म पच वगैरह क या परवाह करता ?ँ मेरे िलए इन सभी व तु का कु छ भी अथ
नह । म भावना क उपासना करता ।ँ उस समय परी ा देने क भावना से यादा सबल
उस किवता क क ण भावना थी। और इस तरह म कतनी बार फे ल हो चुका ।ँ मेरे साथ
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वह पढ़ता था न ह रहर टंडन, वह अब ब ती कॉलेज का ि ि सपल है। एक मेरा सहपाठी
था, वह रे िडयो का ो ाम ए जी यू टव है...”
“और एक तु हारा सहपाठी तो हमने सुना क असे बली का पीकर भी है!” च दर बात
काटकर बोला। सुधा फर हँस पड़ी। िबनती भी हँस पड़ी।
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“हम अपनी दीदी के ह!” सुधा ने आधा रसगु ला िबनती को दे दया तो िबनती च दर को
दखलाकर खाते ए सुधा से बोली, “दीदी, ये हम ब त बनाते ह, अब हम भी तु हारी
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तरह बोलगे तो इनका दमाग ठीक हो जाएगा।”
“हम-तुम दोन िमलके इनका दमाग ठीक करगे?” सुधा ने यार से िबनती को थपथपाते
ए कहा, “अब हम त त रयाँ धोकर रख द।” और त त रयाँ उठाकर चल दी।
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“पानी नह दोगी?” च दर बोला।
िबनती पानी ले आयी और बोली, “हम तो आपका इतना काम करते ह और आप जब देखो
तब हम बनाते रहते ह। आपको या आन द आता है हम बनाने म?”
च दर ने पल-भर िबनती क ओर देखा और बोला, “असल म बनने के बाद जब तुम झप
जाती हो तो...हाँ ऐसे ही।”
िबनती ने फर झपकर मुँह िछपा िलया और लाज से सकु चाकर इ वधू बन गयी। िबनती
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देखने-सुनने म बड़ी अ छी थी। उसक गठन तो सुधा क तरह नह थी ले कन उसके चेहरे
पर एक फरोजी आभा थी िजसम गुलाल के डोरे थे। आँख उसक बड़ी-बड़ी और पलक म
इस तरह डोलती थ जैसे कसी सुकुमार सीपी म कोई ब त बड़ा मोती डोले। झपती थी
तो मुँह पर साँझ मुसकरा उठती थी और गाल म फू ल के कटोर जैसे दो छोटे-छोटे ग ो।
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और िबनती के अंग-अंग म एक प क लहर थी जो नािगन क तरह लहराती थी और
उसक आदत थी क बात करते समय अपनी गरदन जरा टेढ़ी कर लेती थी और अँगुिलय
से अपने आँचल का छोर उमेठने लगती थी।
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इस व च दर क बात पर झप गयी और उसी तरह आँचल के छोर को उमेठती ई,
मुसकान िछपाकर उसने ऐसी िनगाह से च दर क ओर देखा िजसम थोड़ी लाज, थोड़ा
गु सा, थोड़ी स ता और थोड़ी शरारत थी।
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च दर एकदम बोला उठा, “अरे सुधा, सुधा, जरा िबनती क आँख देखो इस व !”
“आयी अभी।” बगल के कमरे म त तरी रखते ए सुधा बोली।
“बड़े खराब ह आप?” िबनती बोली।
“हाँ, बनाओगी न आज से हम? हमारा दमाग ठीक करोगी न? ब त बोल रही थी, अब
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बताओ!”
“बताएँ या? अभी तक हम बोलते नह थे तभी न?”
“अब अपनी ससुराल म बोलना टु इयाँ ऐसी! वह तु हारे बोल पर रीझगे लोग।” च दर ने
फर छेड़ा।
“िछः, राम-राम! ये सब मजाक हमसे मत कया क िजए। दीदी से य नह कहते िजनक
अभी शादी होने जा रही है।”
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“हाँ, यही तो बात है।” िबनती सहसा ग भीर हो गयी-”आप समझते ह गे क म याह के
िलए उ सुक ,ँ दीदी भी समझती ह; ले कन मेरा ही दल जानता है क याह क बात
सुनकर मुझे कै सा लगने लगता है। ले कन फर भी मने याह करने से इनकार नह कया।
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खुद दौड़-दौडक़र उस दन दुबेजी क सेवा म लगी रही, इसिलए क आप देख चुके ह क
माँ का वहार मुझसे कै सा है? आप यहाँ इस प रवार को देखकर समझ नह सकते क म
वहाँ कै से रहती ,ँ कै से माँजी क बात बदा त करती ,ँ वह नरक है मेरे िलए, माँ क गोद
नरक है और म कसी तरह िनकल भागना चाहती ।ँ कु छ चैन तो िमलेगा!” िबनती क
आँख म आँसू आ गये और िससकती ई बोली, “ले कन आप या दीदी जब यह कहते ह, तो
मुझे लगता है क म कतनी नीच ,ँ कतनी पितत ँ क खुद अपने याह के िलए ाकु ल
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,ँ ले कन आप न कहा कर तो अ छा है!” िबनती को आँसु का तार बँध गया था।
सुधा बगल के कमरे से सब कु छ सुन रही थी। आयी और च दर से बोली, “ब त बुरी बात
है, च दर! िबनती, य रो रही हो, रानी? बुआ का वभाव ही ऐसा है, उससे हमेशा
अपना दल दुखाने से या लाभ?” और पास जाकर उसको छाती से लगाकर सुधा बोली,
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“मेरी राजदुलारी! अब रोना मत, ! अ छा, हम लोग कभी मजाक नह करगे! बस अब
चुप हो जाओ, रानी िब टया क तरह जाओ मुँह धो आओ।”
िबनती चली गयी। च दर लि त-सा बैठा था।
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“लो, अब तु ह भी लाई आ रही है या?” सुधा ने ब त दुलार से कहा, “तुम उससे
ससुराल का मजाक मत कया करो। वह ब त दु:खी है और ब त कदर करती है तु हारी।
और कसी क मजाक क बात और है। हम या तुम कहते ह तो उसे लग जाता है।”
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“अ छा, वो कह रही थी, तु हारी फोटो उन लोग ने पस द कर ली है”-च दर ने बात
बदलने के खयाल से कहा।
“और या, कोई हमारी श ल तु हारी तरह है क लोग नापस द कर द।” सुधा अकड़कर
बोली।
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ह क -सी चपत मारकर कहा। िबनती का मुँह अपनी हथेिलय म लेकर अपने मुँह के पास
लाकर आँख म आँख डालकर कहा, “पगली कह क , आँसू का खजाना लुटाती फरती
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है।”
“च दर!” डॉ. शु ला ने पुकारा और च दर उठकर चला गया।
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था, हाँ जब कभी सुधा गेसू के यहाँ जाती थी तो िबनती ज र जाती थी, उसे सुधा क सभी
िम म गेसू सबसे यादा पस द थी। डॉ टर शु ला के यूरो म छु ी हो चुक थी पर वे
सुधा का याह तय करने क कोिशश कर रहे थे। इसिलए वह बाहर भी नह गये थे। च दर
डेढ़ महीने तक लगातार मेहनत करने के बाद पढ़ाई-िलखाई क ओर से आराम कर रहा था
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और उसने िनि त कर िलया था क अब बरसात के पहले वह कताब छु एगा नह । बड़े
आराम के दन कटते थे उसके । सुबह उठकर साइ कल पर गंगा नहाने जाता था और वहाँ
अ सर ठाकु र साहब से भी मुलाकात हो जाती थी। डॉ टर शु ला ने भी कई दफे इरादा
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कया क वे गंगाजी चला कर ले कन एक तो उनसे दन म काम नह होता था, शाम को वे
घूमते और सुबह उठकर कताब िलखते थे।
एक दन सुबह िलख रहे थे क च दर आया और उनके पैर छू कर बोला, “ ा तीय सरकार
gl
का वह पुर कार कल शाम को आ गया!”
“कौन-सा?”
“वह जो उ र ा त म माता और िशशु क मृ यु-सं या पर मने िनब ध िलखा था, उसी
पर।”
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करना है। हमसे तो कु छ होने से रहा, तु ह को सब करना होगा। और सुनो, जेठ दशहरा को
लड़के का भाई और माँ देखने आ रही ह। और बहन भी आएँगी गाँव से।”
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कु छ भी नह वीकार करगे।”
“अ छा, ा ण म तो ऐसा कु ल नह िमलेगा।”
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“तभी तो! सुधा क क मत है, वरना तुम िबनती के ससुर को तो देख ही चुके हो। अ छा
जाओ, सुधा से िमल आओ।”
वह सुधा के कमरे म आ गया। सुधा थी ही नह । वह आँगन म आया। देखा महरािजन खाना
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बना रही है और िबनती बरामदे म बुरादे क अँगीठी पर पकोिड़याँ बना रही है।
“आइए,” िबनती बोली, “दीदी तो गयी ह गेसू को बुलाने। आज गेसू क दावत है।...पीढ़े
पर बै ठएगा, लीिजए।” एक पीढ़ा च दर क ओर िबनती ने िखसका दया। च दर बैठ
गया। िबनती ने उसके हाथ म मखमली िड बा देखा तो पूछा, “यह या लाये? कु छ दीदी
के िलए है या? यह तो अँगूठी मालूम पड़ती है।”
“अँगूठी, वह या दाल म िमला के खाएगी! जंगली कह क ! उसे या तमीज है अँगूठी
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पहनने क !”
“हमारी दीदी के िलए ऐसी बात क तो अ छा नह होगा, हाँ!” उसे िबनती ने उसी तरह
गरदन टेढ़ी कर आँख डु लाते ए धमकाया-”उ ह नह अँगूठी पहननी आएगी तो या
आपको आएगी? अब याह म सोलह संगार करगी! अ छा, दीदी कै सी लगगी घूँघट काढ़
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के ? अभी तक तो िसर खोले चकई क तरह घूमती- फरती ह।”
“तुमने तो डाल ली आदत, ससुराल म रहने क !” च दर ने िबनती से कहा।
“अरे हमारा या!” एक गहरी साँस लेते ए िबनती ने कहा, “हम तो उसी के िलए बने थे।
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ले कन सुधा दीदी को याह-शादी म न फँ सना पड़ता तो अ छा था। दीदी इन सबके िलए
नह बनी थ । आप मामाजी से कहते य नह ?”
च दर ने कु छ जवाब नह दया। चुपचाप बैठा आ सोचता रहा। िबनती भी कड़ाही म से
gl
पकौिड़याँ िनकाल-िनकालकर थाली म रखने लगी। थोड़ी देर बाद जब वह घी म
पकौिड़याँ डाल चुक तब भी वह वैसे ही गुमसुम बैठा सोच रहा था।
“ या सोच रहे ह आप? नह बताइएगा। फर अभी हम दीदी से कह दगे क बैठ-बैठे सोच
रहे थे।” िबनती बोली।
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“िछपाने क बात थोड़े ही है। देखकर तब उ ह बता दीिजएगा। वैसे वह खुद ही सुधा दीदी
से या िछपाते ह? लो, सुधा दीदी तो आ गय ...”
च दर ने पीछे मुडक़र देखा। सुधा के हाथ म एक ल बा-सा सरकं डा था और उसे झंडे क
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तरह फहराती ई चली आ रही थी। च दर हँस पड़ा।
“िखल गये दीदी को देखते ही!” िबनती बोली और एक गरम पकौड़ी च दर के ऊपर फक
दी।
“अरे , बड़ी शैतान हो गयी हो तुम इधर! पाजी कह क !” च दर बोला।
सुधा च पल उतारकर अ दर आयी। झूमती-इठलाती ई चली आ रही थी।
“कहो, सेठ वाथ मल!” उसने च दर को देखते ही कहा, “सुबह ई और पकौड़ी क महक
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लग गयी तु ह!” पीढ़ा ख चकर उसके बगल म बैठ गयी और सरकं डा च दर के हाथ पर
रखते ए बोली, “लो, यह ग ा। घर म बो देना। और गँडरे ी खाना! अ छा!” और हाथ
बढ़ाकर वह िडिबया उठा ली और बोली, “इसम या है? खोल या न खोल?”
“अ छा, खत तक तो हमारे िबना पूछे खोल लेती हो। इसे पूछ के खोलोगी!”
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“अरे हमने सोचा शायद इस िडिबया म प मी का दल ब द हो। तु हारी िम है, शायद
मृित-िच नï म वही दे दया हो।” और सुधा ने िडिबया खोली तो उछल पड़ी, “यह तो
उसी िनब ध पर िमला है िजसका चाट तुम बनाये थे!”
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“हाँ!”
“तब तो ये हमारा है।” िडिबया अपने व म िछपाकर सुधा बोली।
“तु हारा तो है ही। म अपना कब कहता ?ँ ” च दर ने कहा।
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“लगाकर देख!” और उठकर सुधा चल दी।
“िबनती, दो पकौड़ी तो दो।” और दो पकौिड़याँ लेकर खाते ए च दर सुधा के कमरे म
गया। देखा, सुधा शीशे के सामने खड़ी है और मेडल अपनी साड़ी म लगा रही है। वह
चुपचाप खड़ा होकर देखने लगा। सुधा ने मेडल लगाया और ण-भर तनकर देखती रही
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“ना बाबा, परायी चीज, अभी खो जाये तो डाँड़ भरना पड़े।” और मेडल च दर क गोद म
रख दया।
िबनती ने धीमे से कहा, “या मुरली मुरलीधर क अधरा न धरी अधरा न धर गी।”
च दर और सुधा दोन झप गये। “लो, गेसू आ गयी।”
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िबनती ने कान छु ड़ाते ए कहा, “कोई झूठ थोड़े ही कहती !ँ ”
च दर चुपचाप सुधा के कमरे म पकौिडय़ाँ खाता रहा। बगल के कमरे म सुधा, गेसू, फू ल
और हसरत बैठे बात करते रहे। िबनती उन लोग को ना ता देती रही। उस कमरे म ना ता
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प च ँ ाकर िबनती एक िगलास म पानी लेकर च दर के पास आयी और पानी रखकर बोली,
“अभी हलुआ ला रही ,ँ जाना मत!” और पल-भर म त तरी म हलुआ रखकर ले आयी।
“अब म चल रहा !ँ ” च दर ने कहा।
“बैठो, अभी हम एक चीज दखाएँगे। जरा गेसू से बात कर आएँ।” िबनती बड़े भोले वर म
बोली, “आइए, हसरत िमयाँ।” और पल-भर म न ह-मु े-से छह वष के हसरत िमयाँ
तनजेब का कु रता और चूड़ीदार पायजामे पर पीले रे शम क जाके ट पहने कमरे म खरगोश
&
क तरह उछल आये।
“आदाबज।” बड़े तमीज से उ ह ने च दर को सलाम कया।
च दर ने उसे गोद म उठाकर पास िबठा दया। “लो, हलुआ खाओ, हसरत!”
हसरत ने िसर िहला दया और बोला, “गेसू ने कहा था, जाकर च दर भाई से हमारा
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आदाब कहना और कु छ खाना मत! हम खाएँगे नह ।”
च दर बोला, “हमारा भी नम ते कह दो उनसे जाकर।”
हसरत उठ खड़ा आ-”हम कह आएँ।” फर मुडक़र बोला, “आप तब तक हलुआ ख म कर
is
दगे?”
च दर हँस पड़ा, “नह , हम तु हारा इ तजार करगे, जाओ।”
हसरत िसर िहलाता आ चला गया।
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इतने म सुधा आयी और बोली, “गेसू क गजल सुनो यहाँ बैठकर। आवाज आ रही है न!
फू ल भी आयी है इसिलए गेसू तु हारे सामने नह आएगी वरना फू ल अ मीजान से
िशकायत कर देगी। ले कन वह तुमसे िमलने को ब त इ छु क है, अ छा यह से सुनना बैठे-
बैठे...”
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सुधा चली गयी। गेसू ने गाना शु कया ब त महीन, पतली ले कन बेहद मीठी आवाज म
िजसम कसक और नशा दोन घुले-िमले थे। च दर एक त कया टेककर बैठ गया और
उन दा-सा सुनने लगा। गजल ख म होते ही सुधा भागकर आयी-”कहो, सुन िलया न!”
और उसके पीछे-पीछे आया हसरत और सुधा के पैर म िलपटकर बोला, “सुधा, हम हलुआ
नह खाएँगे!”
सुधा हँस पड़ी, “पागल कह का। ले खा।” और उसके मुँह म हलुआ ठूँ स दया। हसरत को
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गोद म लेकर वह च दर के पास बैठ गयी और गेसू के बारे म बताने लगी, “गेसू ग मयाँ
िबताने नैनीताल जा रही है। वह अ तर क अ मी भी आएँगी और मँगनी क र म वह
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करते रहना।”
थोड़ी देर बाद िबनती आयी। उसके हाथ म कु छ था िजसे वह अपने आँचल से िछपाये ई
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थी। आयी और बोली, “अब दीदी नह ह, ज दी से देख लीिजए।”
“ या है?” च दर ने ता ुब से पूछा।
“जीजाजी क फोटो।” िबनती ने मुसकराकर कहा और एक छोटी-सी ब त कला मक फोटो
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च दर के हाथ म रख दी।
“अरे यह तो िम है। कॉमरे ड कै लाश िम ।” और च दर के दमाग म बरे ली क बात,
लाठी चाज...सभी कु छ घूम गया। च दर के मन म इस व जाने कै सा-सा लग रहा था।
कभी बड़ा अचरज होता, कभी एक स तोष होता क चलो सुधा के भा य क रे खा उसे
अ छी जगह ले गयी, फर कभी सोचता क िम इतना िविच वभाव का है, सुधा क
उससे िनभेगी या नह ? फर सोचता, नह सुधा भा यवान है। इतना अ छा लड़का िमलना
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मुि कल था।
“आप इ ह जानते ह?” िबनती ने पूछा।
“हाँ, सुधा भी उ ह नाम से जानती है श ल से नह । ले कन अ छा लड़का है, ब त अ छा
लड़का।” च दर ने एक गहरी साँस लेकर कहा और फर चुप हो गया। िबनती बोली, “ या
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सोच रहे ह आप?”
“कु छ नह ।” पलक म आये ए आँसू रोककर और होठ पर मुसकान लाने क कोिशश
करते ए बोला, “म सोच रहा ,ँ आज कतना स तोष है मुझे, कतनी खुशी है मुझे, क
is
सुधा एक ऐसे घर जा रही है जो इतना अ छा है, ऐसे लड़के के साथ जा रही है जो इतना
ऊँचा”...कहते-कहते च दर क आँख भर आय ।
िबनती च दर के पास खड़ी होकर बोली, “िछः, च दर बाबू! आपक आँख म आँसू! यह तो
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अ छा नह लगता। िजतनी पिव ता और ऊँचाई से आपने सुधा के साथ िनबाह कया है,
यह तो शायद देवता भी नह कर पाते और दीदी ने आपको जैसा िन छल यार दया है
उसको पाकर तो आदमी वग से भी ऊँचा उठ जाता है, फौलाद से भी यादा ताकतवर हो
जाता है, फर आज इतने शुभ अवसर पर आप म कमजोरी कहाँ से? हम तो बड़ी शरम लग
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“इसिलए क मने सुना था, देवता क पलक कभी नह िगरत ।”
च दर एक फ क हँसी हँसकर रह गया।
“नह , आप मजाक न समझ। मने अपनी जंदगी म िजतने लोग देखे, उनम आप-जैसा कोई
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भी नह िमला। कतने ऊँचे ह आप, कतना िवशाल दय है आपका! दीदी कतनी
भा यशाली ह।”
च दर ने कु छ जवाब नह दया। “जाओ, फोटो ले आओ।” उसने कहा, “आज ही दखा दू।ँ
जाओ, खाना भी ले आओ। अब घर जाकर या करना है।”
पापा को खाना िखलाने के बाद च दर और सुधा खाने बैठे। महरािजन चली गयी थी।
इसिलए िबनती सक-सककर रोटी दे रही थी। सुधा एक रे शमी सिनया पहने चौके के अ दर
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खा रही थी। और च दर चौके के बाहर। सुबह के क े खाने म डॉ टर शु ला ब त छू त-
छात का िवचार रखते थे।
“देखो, आज िबनती ने रोटी बनायी है तो कतनी मीठी लग रही है, एक तुम बनाती हो क
मालूम ही नह पड़ता रोटी है क सो ता!” च दर ने सुधा को िचढ़ाते ए कहा।
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सुधा ने हँसकर कहा, “हम िबनती से लड़ाने क कोिशश कर रहे हो! िबनती क हमसे
जंदगी-भर लड़ाई नह हो सकती!”
“अरे हम सब समझते ह इनक बात!” िबनती ने रोटी पटकते ए कहा और जब सुधा िसर
is
झुकाकर खाने लगी तो िबनती ने आँख के इशारे से पूछा, “कब दखाओगे?”
च दर ने िसर िहलाया और फर सुधा से बोला, “तुम उ ह िच ी िलखोगी?”
“ क ह?”
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“कै लाश िम ा को, वही बरे ली वाले? उ ह ने हम खत िलखा था उसम तु ह णाम िलखा
था।” च दर बोला।
“नह , खत-वत नह िलखते। उ ह एक दफे बुलाओ तो यहाँ।”
“हाँ, बुलाएँगे अब महीने-दो महीने बाद, तब तुमसे खूब प रचय करा दगे और तु ह उसक
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कहा।
“इनाम दगे इ ह!” सुधा बोली और झट से झपटकर िच छीन िलया।
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सुधा ने हाथ धोकर आँचल के छोर से पकडक़र फोटो देखी और बोली, “च दर, सचमुच
देखो! कतने अ छे लग रहे ह। कतना तेज है चेहरे पर, और माथा देखो कतना ऊँचा है।”
सुधा फोटो देखती ई बोली।
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“अ छी लगी फोटो? पस द है?” च दर ने ब त ग भीरता से पूछा।
“हाँ, हाँ, और समाजवा दय क तरह नह लगते ये।” सुधा बोली।
“अ छा सुधा, यहाँ आओ।” और च दर के साथ सुधा अपने कमरे म जाकर पलँग पर बैठ
गयी। च दर उसके पास बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ म लेकर उसक अँगूठी घुमाते
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ए बोला, “सुधा, एक बात कह, मानोगी?”
“ या?” सुधा ने ब त दुलार और भोलेपन से पूछा।
“पहले बता दो क मानोगी?” च दर ने उसक अँगूठी क ओर एकटक देखते ए कहा।
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“ फर, हमने कभी कोई बात तु हारी टाली है! या बात है?”
“तुम मानोगी चाहे कु छ भी हो?” च दर ने पूछा।
“हाँ-हाँ, कह तो दया। अब कौन-सी तु हारी ऐसी बात है जो तु हारी सुधा नह मान
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सकती!” आँख म, वाणी म, अंग-अंग से सुधा के आ मसमपण छलक रहा था।
“ फर अपनी बात पर कायम रहना, सुधा! देखो!” उसने सुधा क उँ गिलयाँ अपनी पलक
से लगाते ए कहा, “सुधी मेरी! तुम उस लड़के से याह कर लो!”
“ या?” सुधा चोट खायी नािगन क तरह तड़प उठी-”इस लड़के से? यही शकल है इसक
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हमसे याह करने क ! च दर, हम ऐसा मजाक नापस द करते ह, समझे क नह ! इसिलए
बड़े यार से बुला लाये, बड़ा दुलार कर रहे थे!”
“तुम अभी वायदा कर चुक हो!” च दर ने ब त आिजजी से कहा।
“वायदा कै सा? तुम कब अपने वायदे िनभाते हो? और फर यह धोखा देकर वायदा कराना
या? िह मत थी तो साफ-साफ कहते हमसे! हमारे मन म आता सो कहते। हम इस तरह से
बाँध कर य बिलदान चढ़ा रहे हो!” और सुधा मारे गु से के रोने लगी।
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रख दया। “हटो उधर!” सुधा ने ब त खाई से हाथ हटा दया और आँचल से िसर ढकती
ई बोली, “म याह नह क ँ गी, कभी नह क ँ गी। कसी से नह क ँ गी। तुम सभी लोग
ने िमलकर मुझे मार डालने क ठानी है। तो म अभी िसर पटककर मर जाऊँगी।” और मारे
तैश के सचमुच सुधा ने अपना िसर दीवार पर पटक दया। “अरे !” दौडक़र च दर, ने सुधा
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को पकड़ िलया। मगर सुधा ने गरजकर कहा, “दूर हटो च दर, छू ना मत मुझे।” और जैसे
उसम जाने कहाँ क ताकत आ गयी है, उसने अपने को छु ड़ा िलया।
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च दर ने दबी जबान से कहा, “िछः सुधा! यह तुमसे उ मीद नह थी मुझे। यह भावुकता
तु ह शोभा नह देती। बात कै सी कर रही हो तुम! हम वही च दर ह न!”
“हाँ, वही च दर हो! और तभी तो! इस सारी दुिनया म तु ह एक रह गये हो मुझे फोटो
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दखाकर पस द कराने को।” सुधा िससक-िससककर रोने लगी-”पापा ने भी धोखा दे
दया। हम पापा से यह उ मीद नह थी।”
“पगली! कौन अपनी लड़क को हमेशा अपने पास रख पाया है!” च दर बोला।
“तुम चुप रहो, च दर। हम तु हारी बोली जहर लगती है। 'सुधा, यह फोटो तु ह पस द है?'
तु हारी जबान िहली कै से? शरम नह आयी तु ह। हम कतना मानते थे पापा को, कतना
मानते थे तु ह? हम यह नह मालूम था क तुम लोग ऐसा करोगे।” थोड़ी देर चुपचाप
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िससकती रही सुधा और फर धधककर उठी-”कहाँ है वह फोटो? लाओ, अभी म जाऊँगी
पापा के पास! म क ग ँ ी उनसे हाँ, म इस लड़के को पस द करती ।ँ वह ब त अ छा है,
ब त सु दर है। ले कन म उससे शादी नह क ँ गी, म कसी से शादी नह क ँ गी! झूठी
बात है...” और उठकर पापा के कमरे क ओर जाने लगी।
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“खबरदार, जो कदम बढ़ाया!” च दर ने डाँटकर कहा, “बैठो इधर।”
“म नह कूँ गी!” सुधा ने अकडक़र कहा।
“नह कोगी?” is
“नह कूँ गी।”
और च दर का हाथ तैश म उठा और एक भरपूर तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा। सुधा के
गाल पर नीली उँ गिलयाँ उपट आय । वह त ध! जैसे प थर बन गयी हो। आँख म आँसू
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जम गये। पलक म िनगाह जम गय । होठ म आवाज जम गय और सीने म िसस कयाँ
जम गय ।
च दर ने एक बार सुधा क ओर देखा और कु स पर जैसे िगर पड़ा और िसर पटककर बैठ
गया। सुधा कु स के पास जमीन पर बैठ गयी। च दर के घुटन पर िसर रख दया। बड़ी
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गये। कमरे म स ाटा, गहन खामोशी। सुधा च दर के पाँव को छाती से िचपकाये सूनी-
सूनी िनगाह से जाने कु छ देख रही थी दीवार के पार, दशा के पार, ि ितज से
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कमजोर बना द या हम लोग ने वग क ऊँचाइय पर साथ बैठकर आ मा का संगीत सुना
िसफ इसीिलए क उसे अपने याह क शहनाई म बदल द?”
“गलत मत समझो च दर, म गेसू नह क अ तर से याह के सपने देखूँ और न तु ह
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अ तर हो, च दर! म जानती ँ क म तु हारे िलए राखी के सूत से भी यादा पिव रही ँ
ले कन म जैसी ,ँ मुझे वैसी ही य नह रहने देते! म कसी से शादी नह क ँ गी। म पापा
के पास र ग ँ ी। शादी को मेरा मन नह कहता, म य क ँ ? तुम गु सा मत हो, दुखी मत
हो, तुम आ ा दोगे तो म कु छ भी कर सकती ,ँ ले कन ह या करने से पहले यह तो देख लो
क मेरे दय म या है?” सुधा ने च दर के पाँव को अपने दय से और भी दबाकर कहा।
“सुधा, तुम एक बात सोचो। अगर तुम सबका यार बटोरती चलती हो तो कु छ तु हारी
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िज मेदारी है या नह ? पापा ने आज तक तु ह कस तरह पाला। अब या तु हारा यह फज
है क तुम उनक बात को ठु कराओ? और एक बात और सोचो-हम पर कु छ िव ास करके
ही उ ह ने कहा है क म तुमसे फोटो पस द कराऊँ? अगर अब तुम इनकार कर देती हो तो
एक तरफ पापा को तुमसे ध ा प च ँ ेगा, दूसरी ओर मेरे ित उनके िव ास को कतनी
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चोट लगेगी। हम उ ह या मुँह दखाने लायक रहगे भला! तो तुम या चाहती हो? महज
अपनी थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तुम सभी क जंदगी चौपट करने के िलए तैयार हो?
यह तु ह शोभा नह देता है। या कहगे पापा, क च दर ने अभी तक तु ह यही िसखाया
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था? हम लोग या कहगे? बताओ। आज तुम शादी न करो। उसके बाद पापा हमेशा के
िलए दु:खी रहा कर और दुिनया हम कहा करे , तब तु ह अ छा लगेगा?”
“नह ।” सुधा ने भराये ए गले से कहा।
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“तब, और फर एक बात और है न सुधी! सोने क पहचान आग म होती है न! लपट म
अगर उसम और िनखार आये तभी वह स ा सोना है। सचमुच मने तु हारे ि व को
बनाया है या तुमने मेरे ि व को बनाया है, यह तो तभी मालूम होगा जब क हम लोग
क ठनाइय से, वेदना से, संघष से खेल और बाद म िवजयी ह और तभी मालूम होगा
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क सचमुच मने तु हारे जीवन म काश और बल दया था। अगर सदा तुम मेरी बाँह क
सीमा म रह और म तु हारी पलक क छाँव म रहा और बाहर के संघष से हम लोग डरते
रहे तो कायरता है। और मुझे अ छा लगेगा क दुिनया कहे क मेरी सुधा, िजस पर मुझे
नाज था, वह कायर है? बोलो। तुम कायर कहलाना पस द करोगी?”
“हाँ!” सुधा ने फर च दर के घुटन म मुँह िछपा िलया।
“ या? यह म सुधा के मुँह से सुन रहा !ँ िछः पगली! अभी तक तेरी िनगाह ने मेरे ाण
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सुधा ने आँख उठाय , बड़ी कातर िनगाह से च दर क ओर देखा और िसर झुका िलया।
सुधा के िसर पर हाथ फे रते ए च दर बोला-
“सुधा, म जानता ँ म तुम पर शायद ब त स ती कर रहा ,ँ ले कन तु हारे िसवा और
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कौन है मेरा? बताओ। तु ह पर अपना अिधकार भी आजमा सकता ।ँ िव ास करो मुझ
पर सुधा, जीवन म अलगाव, दूरी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है।
भावुकता और सुख हम ऊँचे नह उठाते। बताओ सुधा, तु ह या पस द है? म ऊँचा उठूँ
तु हारे िव ास के सहारे , तुम ऊँची उठो मेरे िव ास के सहारे , इससे अ छा और या है
सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक पिव साधन बना दो, चाहो तो एक िछछली
अनुभूित।”
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सुधा ने एक गहरी साँस ली, ण-भर घड़ी क ओर देखा और बोली, “इतनी ज दी या है
अभी, च दर? तुम जो कहोगे म कर लूँगी!” और फर वह िससकने लगी-”ले कन इतनी
ज दी या हैï? अभी मुझे पढ़ लेने दो!”
“नह , इतना अ छा लड़का फर िमलेगा नह । और इस लड़के के साथ तुम वहाँ पढ़ भी
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सकती हो। म जानता ँ उसे। वह देवता -सा िन छल है। बोलो, म पापा से कह दूँ क
तु ह पस द है?”
सुधा कु छ नह बोली। is
“मौन का मतलब हाँ है न?” च दर ने पूछा।
सुधा ने कु छ नह कहा। झुककर च दर के पैर को अपने होठ से छू िलया और पलक से दो
आँसू चू पड़े। च दर ने सुधा को उठा िलया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, “ई र
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तु हारी आ मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!” उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, “मुझे
तुम पर गव है,” और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा।
“कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!” सुधा ने उसका कु रता पकडक़र बड़ी आिजजी से कहा, “मेरे
पास रहो, तबीयत घबराती है?”
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च दर पलँग पर बैठ गया। सुधा त कये पर िसर रखकर लेट गयी और फटी-फटी पथराई
आँख से जाने या देखने लगी। च दर भी चुप था, िब कु ल खामोश। कमरे म िसफ घड़ी
चल रही थी, टक... टक...
थोड़ी देर बाद सुधा ने च दर के पैर को अपने त कये के पास ख च िलया और उसके तलव
पर होठ रखकर उसम मुँह िछपाकर चुपचाप लेटी रही। िबनती आयी। सुधा िहली भी
नह ! च दर ने देखा वह सो गयी थी। िबनती ने फोटो उठाकर इशारे से पूछा, “मंजूर?”
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“हाँ।” िबनती ने बजाय खुश होने के च दर क ओर देखकर िसर झुका िलया और चली
गयी।
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सुधा सो रही थी और च दर के तलव म उसक नरम ाँरी साँस गूँज रही थ । च दर बैठा
रहा चुपचाप। उसक िह मत न पड़ी क वह िहले और सुधा क न द तोड़ दे। थोड़ी देर
बाद सुधा ने करवट बदली तो वह उठकर आँगन के सोफे पर जाकर लेट रहा और जाने या
सोचता रहा।
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जब उठा तो देखा धूप ढल गयी है और सुधा उसके िसरहाने बैठी उसे पंखा झल रही है।
उसने सुधा क ओर एक अपराधी जैसी कातर िनगाह से देखा और सुधा ने ब त दद से
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आँख फे र ल और ऊँचाइय पर आिखरी साँस लेती ई मरणास धूप क ओर देखने लगी।
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“ य नह आऊँगा?” च दर बोला।
“मने सोचा शायद अभी से दूर होना चाहते हो।” एक गहरी साँस लेकर सुधा बोली और
पंखे क ओट म आँसू प छ िलये।
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च दर दूसरे दन सुबह नह गया। उसक थीिसस का ब त-सा भाग टाइप होकर आ गया
था और उसे बैठा वह सुधार रहा था। ले कन साथ ही पता नह य उसका साहस नह हो
रहा था वहाँ जाने का। ले कन मन म एक िच ता थी सुधा क । वह कल से िब कु ल मुरझा
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गयी थी। च दर को अपने ऊपर कभी-कभी ोध आता था। ले कन वह जानता था क यह
तकलीफ का ही रा ता ठीक रा ता है। वह अपनी जंदगी म स तेपन के िखलाफ था।
ले कन उसके िलए सुधा क पलक का एक आँसू भी देवता क तरह था और सुधा के फू ल -
जैसे चेहरे पर उदासी क एक रे खा भी उसे पागल बना देती थी। सुबह पहले तो वह नह
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गया, बाद म वयं उसे पछतावा होने लगा और वह अधीरता से पाँच बजने का इ तजार
करने लगा।
पाँच बजे, और वह साइ कल लेकर प च ँ ा। देखा, सुधा और िबनती दोन नह ह। अके ले
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डॉ टर शु ला अपने कमरे म बैठे ह। च दर गया। “आओ, सुधा ने तुमसे कह दया, उसे
पस द है?” डॉ टर शु ला ने पूछा।
“हाँ, उसे कोई एतराज नह ।” च दर ने कहा।
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“म पहले से जानता था। सुधा मेरी इतनी अ छी है, इतनी सुशील है क वह मेरी इ छा का
उ लंघन तो कर ही नह सकती। ले कन च दर, कल से उसने खाना-पीना छोड़ दया है।
बताओ, इससे या फायदा? मेरे बस म या है? म उसे हमेशा तो रख नह सकता। ले कन,
ले कन आज सुबह खाते व वह बैठी भी नह मेरे पास बताओ...” उनका गला भर
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च दर उठकर गया। मोटर गैरेज म काफ गरमी थी, ले कन िबनती वह एक चटाई िबछाये
पड़ी सो रही थी और सुधा इं जन का कवर उठाये मोटर साफ करने म लगी ई थी। िबनती
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बेहोश सो रही थी। त कया चटाई से हटकर जमीन पर चला गया था और चोटी फश पर
सोयी ई नािगन क तरह पड़ी थी। िबनती का एक हाथ छाती पर था और एक हाथ
जमीन पर। आँचल, आँचल न रहकर चादर बन गया था। च दर के जाते ही सुधा ने मुँह
फे रकर देखा-”च दर, आओ।” ीण मुसकराहट उसके होठ पर दौड़ गयी। ले कन इस
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मुसकराहट म उ लास लुट चुका था, रे खाएँ बाक थ । सहसा उसने मुडक़र देखा-”िबनती!
अरे , कै से घोड़ा बेचकर सो रही है! उठ! च दर आये ह!” िबनती ने आँख खोल , च दर क
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ओर देखा, लेटे-ही-लेटे नम ते कया और आँचल सँभालकर फर करवट बदलकर सो गयी।
“ब त सोती है क ब त!” सुधा बोली, “इतना कहा इससे कमरे म जाकर पंखे म सो!
ले कन नह , जहाँ दीदी रहेगी, वह यह भी रहेगी। म गैरेज म ँ तो यह कै से कमरे म रहे।
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वह मरे गी जहाँ म म ँ गी।”
“तो तु ह य गैरेज म थ ! ऐसी या ज रत थी अभी ठीक करने क !” च दर ने कहा,
ले कन कोिशश करने पर भी सुधा को आज डाँट नह पा रहा था। पता नह कहाँ पर या
टू ट गया था।
“नह च दर, तबीयत ही नह लग रही थी। या करती! ोिसया उठायी, वह भी रख
दया। किवता उठायी, वह भी रख दी। किवता वगैरह म तबीयत नह लगी। मन म आया,
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कोई कठोर काम हो, कोई नीरस काम हो लोहे-ल ड़, पीतल-फौलाद का, तो मन लग
जाए। तो चली आयी मोटर ठीक करने।”
“ य , किवता म भी तबीयत नह लगी? ता ुब है, गेसू के साथ बैठकर तुम तो किवता म
घंट गुजार देती थ !” च दर बोला।
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“उन दन शायद कसी को यार करती रही होऊँ तभी किवता म मन लगता था!” सुधा
उस दन क पुरानी बात याद करके ब त उदास हँसी हँसी-”अब यार नह करती होऊँगी,
अब तबीयत नह लगती। बड़ी फ क , बड़ी बेजार, बड़ी बनावटी लगती ह ये किवताएँ,
is
मन के दद के आगे सभी फ क ह।” और फर वह उ ह पुरज म डू ब गयी। च दर भी
चुपचाप मोटर क िखडक़ से टककर खड़ा हो गया। और चुपचाप कु छ सोचने लगा।
सुधा ने िबना िसर उठाये, झुके-ही-झुके, एक हाथ से एक तार लपेटते ए कहा-
gl
“च दर, तु हारे िम का प रवार आ रहा है, इसी मंगल को। तैयारी करो ज दी।”
“कौन प रवार, सुधा?”
“हमारे जेठ और सास आ रही ह, इसी बैसाखी को हम देखने। उ ह ने ितिथ बदल दी है। तो
अब छह ही दन रह गये ह।”
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हमारी बात का? या कर च दर, कल से हम मजाक करना भी भूल गये। मजाक करते ह
तो ं य बन जाता है। ले कन हम तुमको कु छ कह नह रहे थे, च दर। उदास न होओ।”
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च दर को सोफे पर िबठाकर उसी क बगल म सुधा बैठ गयी और अँगुिलयाँ तोड़ते ए
कहा, “च दर, िसर म ब त दद हो रहा है मेरे।”
“िसर म दद नह होगा तो या? इतनी तिपश म मोटर बना रही थ ! पापा कतने दुखी हो
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रहे थे आज? तु ह इस तरह करना चािहए? फर फायदा या आ? न ऐसे दु:खी कया,
वैसे दु:खी कर िलया। बात तो वही रही न? तारीफ तो तब थी क तुम अपनी दुिनया म
अपने हाथ से आग लगा देती और चेहरे पर िशकन न आती। अभी तक दुिनया क सभी
ऊँचाई समेटकर भी बाहर से वही बचपन कायम रखा था तुमने, अब दुिनया का सारा सुख
अपने हाथ से लुटाने पर भी वही बचपन, वही उ लास य नह कायम रखती!”
“बचपन!” सुधा हँसी-”बचपन अब ख म हो गया, च दर! अब म बड़ी हो गयी।”
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“बड़ी हो गयी! कब से?”
“कल दोपहर से, च दर!”
च दर चुप। थोड़ी देर बाद फर वयं सुधा ही बोली, “नह च दर, दो-तीन दन म ठीक हो
जाऊँगी! तुम घबराओ मत। म मृ यु-शै या पर भी होऊँगी तो तु हारे आदेश पर हँस सकती
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।ँ ” और फर सुधा गुमसुम बैठ गयी। च दर चुपचाप सोचता रहा और बोला, “सुधी! मेरा
तु ह कु छ भी यान नह है?”
“और कसका है, च दर! तु हारा यान न होता तो देखती मुझे कौन झुका सकता था। आज
is
से साल पहले जब म पापा के पास आयी थी तो मने कभी न सोचा था क कोई भी होगा
िजसके सामने म इतना झुक जाऊँगी।...अ छा च दर, मन ब त उचट रहा है! चलो, कह
घूम आएँ! चलोगे?”
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“चलो!” च दर ने कहा।
“जाएँ िबनती को जगा लाएँ। वह कमब त अभी पड़ी सो रही है।” सुधा उठकर चली गयी।
थोड़ी देर म िबनती आँख मलते बगल म चटाई दाबे आयी और फर बरामदे म बैठकर
ऊँघने लगी। पीछे-पीछे सुधा आयी और चोटी ख चकर बोली, “चल तैयार हो! चलगे
En
घूमने।”
थोड़ी देर म तैयार हो गये। सुधा ने जाकर मोटर िनकाली और बोली च दर से-”तुम
चलाओगे या हम? आज हम चलाएँ। चलो, कसी पेड़ से लड़ा द मोटर आज!”
“अरे बाप रे ।” पीछे िबनती िच लायी, “तब हम नह जाएँगे।”
सुधा और च दर दोन ने मुडक़र उसे देखा और उसक घबराहट देखकर दंग रह गये।
“नह । मरे गी नह तू!” सुधा ने कहा। और आगे बैठ गयी।
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“अरे कोई मोटर के पीछे बैठने के िलए थोड़ी कह रही ।ँ पीछे क सीट पर बैठेगी?” सुधा
ने पूछा।
“ओ! म समझी तुम कह रही हो पीछे बैठने के िलए जैसी ब घी म साईस बैठते ह! हम
तु हारे पास बैठगे।” िबनती ने मचलकर कहा।
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“अब तेरा बचपन इठला रहा है, िब ली कह क , चल आ मेरे पास!” िबनती मुसकराती
ई जाकर सुधा के बगल म बैठ गयी। सुधा ने उसे दुलार से पास ख च िलया। च दर पीछे
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बैठा तो सुधा बोली, “अगर कु छ हज न समझो तो तुम भी आगे आ जाओ या दूरी रखनी हो
तो पीछे ही बैठो।”
च दर आगे बैठ गया। बीच म िबनती, इधर च दर उधर सुधा।
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मोटर चली तो िबनती चीखी, “अरे मेरे मा टर साहब!”
च दर ने देखा, िबस रया चला जा रहा था, “आज नह पढ़गे...” च दर ने िच लाकर कहा।
सुधा ने मोटर रोक नह ।
च दर को बेहद अचरज आ जब उसने देखा क मोटर प मी के बँगले पर क । “अरे यहाँ
य ?” च दर ने पूछा।
“य ही।” सुधा ने कहा। “आज मन आ क िमस प मी से अँगरे जी किवता सुन।”
&
“ य , अभी तो तुम कह रही थ क किवता पढऩे म आज तु हारा मन ही नह लग रहा
है!”
“कु छ कहो मत च दर, आज मुझे जो मन म आये, कर लेने दो। मेरा िसर बेहद दद कर रहा
है। और म कु छ समझ नह पाती या क ँ । च दर तुमने अ छा नह कया?”
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च दर कु छ नह बोला। चुपचाप आगे चल दया। सुधा के पीछे-पीछे कु छ संकोच करती
ई-सी िबनती आ रही थी।
प मी बैठी कु छ िलख रही थी। उसने उठकर सब का वागत कया। वह कोच पर बैठ
is
गयी। दूसरी पर सुधा, च दर और िबनती। सुधा ने िबनती का प रचय प मी से कराया
और प मी ने िबनती से हाथ िमलाया तो िबनती जाने य च दर क ओर देखकर हँस
पड़ी। शायद उस दन क घटना क याद म।
gl
सहसा सुधा को जाने या खयाल आ गया, िबनती क शरारत-भरी हँसी देखकर क उसने
फौरन कहा च दर से-”च दर, तुम प मी के पास बैठो, दो िम को साथ बैठना चािहए।”
“हाँ, और खास तौर से जब वह कभी-कभी िमलते ह ।”-िबनती ने मुसकराते ए जोड़
दया। प मी ने मजाक समझ िलया और िबना शरमाये बोली-
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थी। सहसा प मी ने िबनती से कहा, “आपको पहली दफे देखा मने। आप बात य नह
करत ?”
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िबनती ने झपकर मुँह झुका िलया। बड़ी िविच लड़क थी। हमेशा चुप रहती थी और
कभी-कभी बोलने क लहर आती तो गुटरगूँ करके घर गुँजा देती थी और िजन दन चुप
रहती थी उन दन यादातर आँख क िनगाह, कपोल क आशनाई या अधर क
मुसकान के ारा बात करती थी। प मी बोली, “आपको फू ल से शौक है?”
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िबनती ने सुधा से कहा, “चलो दीदी।” और च दर के साथ बढ़ गयी।
फू ल के बीच म प च ँ कर, िबनती ने च दर से कहा, “सुिनए, दीदी को तो जाने या होता
जा रहा है। बताइए, ऐसे या होगा?”
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“म खुद परे शान ,ँ िबनती! ले कन पता नह कहाँ मन म कौन-सा िव ास है जो कहता है
क नह , सुधा अपने को सँभालना जानती है, अपने मन को स तुिलत करना जानती है और
सुधा सचमुच ही याग म यादा गौरवमयी हो सकती है।” इसके बाद च दर ने बात टाल
दी। वह िबनती से यादा बात करना नह चाहता था, सुधा के बारे म।
िबनती ने च दर को मौन देखा तो बोली, “एक बात कह आपसे? मािनएगा!”
“ या?”
&
“अगर हमसे कभी कोई अनिधकार चे ा हो जाए तो मा कर दीिजएगा, ले कन आप और
दीदी दोन मुझे इतना चाहते ह क हम समझ नह पाते क वहार को कहाँ सीिमत
रखूँ!” िबनती ने िसर झुकाये एक फू ल को नोचते ए कहा।
च दर ने उसक ओर देखा, ण-भर चुप रहा, फर बोला, “नह िबनती, जब सुधा तु ह
h
इतना चाहती है तो तुम हमेशा मुझ पर उतना ही अिधकार समझना िजतना सुधा पर।”
उधर प मी ने च दर के जाते ही सुधा से कहा, “ या आपक तबीयत खराब है?”
“नह तो।” is
“आज आप ब त पीली नजर आती ह!” प मी ने पूछा।
“हाँ, कु छ मन नह लग रहा था तो म आपके पास चली आयी क आपसे कु छ किवताएँ
सुनूँ, अँगरे जी क । दोपहर को मने किवता पढऩे क कोिशश क तो तबीयत नह लगी और
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शाम को लगा क अगर किवता नह सुनूँगी तो िसर फट जाएगा।” सुधा बोली।
“आपके मन म कु छ संघष मालूम पड़ता है, या शायद...एक बात पूछूँ आपसे?”
“ या, पूिछए?”
“आप बुरा तो नह मानगी?”
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इतने म च दर और िबनती आ गये। सुधा बोली अधीरता से, “मेरा एक-एक ण कटना
मुि कल हो रहा है, आप शु क िजए कु छ गाना!”
“कपूर, या सुनोगे?” प मी ने कहा।
“अपने मन से सुनाओ! चलो, सुधा ने कहा तो किवता सुनने को िमली!”
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गयी और कताब च दर क गोद म रख दी। िबनती मुसकरायी तो सुधा ने आँख के इशारे
से मना कर दया। प मी ने गाना शु कया, लेडी नाटन का एक गीत-
म तु ह यार नह करती ँ न! म तु ह यार नह करती ।ँ
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फर भी म उदास रहती ँ जब तुम पास नह होते हो!
और म उस चमकदार नीले आकाश से भी ई या करती ँ
िजसके नीचे तुम खड़े होगे और िजसके िसतारे तु ह देख सकते ह...”
च दर ने प मी क ओर देखा। सुधा ने अपने ही व म अपना िसर छु पा िलया। प मी ने
एक पद समा कर एक गहरी साँस ली और फर शु कया-
“म तु ह यार नह करती -ँ फर भी तु हारी बोलती ई आँख;
&
िजनक नीिलमा म गहराई, चमक और अिभ ि है-
मेरी िन नमेष पलक और जागते अधराि के आकाश म नाच जाती ह!
और कसी क आँख के बारे म ऐसा नह होता...”
सुधा ने िबनती को अपने पास ख च िलया और उसके क धे पर िसर टेककर बैठ गयी।
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प मी गाती गयी-
“न मुझे मालूम है क म तु ह यार नह करती ,ँ ले कन फर भी,
कोई शायद मेरे साफ दल पर िव ास नह करे गा।
is
और अकसर मने देखा है, क लोग मुझे देखकर मुसकरा देते ह
य क म उधर एकटक देखती ,ँ िजधर से तुम आया करते हो!”
गीत का वर बड़े वाभािवक ढंग से उठा, लहराने लगा, काँप उठा और फर धीरे -धीरे एक
gl
क ण िससकती ई लय म डू ब गया। गीत ख म आ तो सुधा का िसर िबनती के कं धे पर
था और च दर का हाथ प मी के क धे पर। च दर थोड़ी देर सुधा क ओर देखता रहा फर
प मी क एक ह क सुनहरी लट से खेलते ए बोला, “प मी, तुम ब त अ छा गाती हो!”
“अ छा? आ यजनक! कहो च दर, प मी इतनी अ छी है यह तुमने कभी नह बताया था,
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हम फर कभी सुनाइएगा?”
“हाँ, हाँ िमस शु ला! काश क बजाय लेडी नाटन के यह गीत आपने िलखा होता!”
सुधा घबरा गयी, “चलो। च दर, चल अब! चलो।” उसने च दर का हाथ पकडक़र ख च
िलया-”िमस प मी, अब फर कभी आएँगे। आज मेरा मन ठीक नह है।”
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च दर ाइव करने लगा। िबनती बोली, “हम आगे हवा लगती है, हम पीछे बैठगे।”
कार चली तो सुधा बोली, “अब मन कु छ शा त है, च दर। इसके पहले तो मन म कै से
तूफान आपस म लड़ रहे थे, कु छ समझ म नह आता। अब तूफान बीत गये। तूफान के बाद
&
क खामोश उदासी है।” सुधा ने गहरी साँस ली, “आज जाने य बदन टू ट रहा है।” बैठे ही
बैठे बदन उमेठते ए कहा।
दूसरे दन च दर गया तो सुधा को बुखार आ गया था। अंग-अंग जैसे टू ट रहा हो और आँख
म ऐसी तीखी जलन क मानो कसी ने अंगारे भर दये ह । रात-भर वह बेचैन रही, आधी
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पागल-सी रही। उसने त कया, चादर, पानी का िगलास सभी उठाकर फक दया, िबनती
को कभी बुलाकर पास िबठा लेती, कभी उसे दूर ढके ल देती। डॉ टर साहब परे शान, रात-
भर सुधा के पास बैठे, कभी उसका माथा, कभी उसके तलव म बफ मलते रहे। डॉ टर
is
घोष ने बताया यह कल क गरमी का असर है। िबनती ने एक बार पूछा, “च दर को बुलवा
द?” तो सुधा ने कहा, “नह , म मर जाऊँ तो! मेरे जीते जी नह !” िबनती ने ाइवर से
कहा, “च दर को बुला लाओ।” तो सुधा ने िबगडक़र कहा, “ य तुम सब लोग मेरी जान
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लेने पर तुले हो?” और उसके बाद कमजोरी से हाँफने लगी। ाइवर च दर को बुलाने नह
गया।
जब च दर प च ँ ा तो डॉ टर साहब रात-भर के जागरण के बाद उठकर नहाने-धोने जा रहे
थे। “पता नह सुधा को या हो गया कल से! इस व तो कु छ शा त है पर रात-भर बुखार
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मने कहा था क गैरेज म मोटर साफ मत करो। परस इतना रोयी, िसर पटका, कल धूप
खायी। आज पड़ रही! कै सी तबीयत है?”
सुधा उधर िखसक गयी और अपने कपड़े समेट िलये, जैसे च दर क छाँह से भी बचना
चाहती है और तेज, कड़वी और हाँफती ई आवाज म बोली, “िबनती, इनसे कह दो जाएँ
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यहाँ से।”
च दर चुप हो गया और एकटक सुधा क ओर देखने लगा और सुधा क बात ने जैसे च दर
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का मन मरोड़ दया। कतनी गै रयत से बात कर रही है सुधा! सुधा, जो उसके अपने
ि व से यादा अपनी थी, आज कस वर म बोल रही है! “सुधी, या आ तु ह?”
च दर ने ब त आहत हो ब त दुलार-भरी आवाज म पूछा।
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“म कहती ँ जाओगे नह तुम?” फु फकारकर सुधा बोली, “कौन हो तुम मेरी बीमारी पर
सहानुभूित कट करने वाले? मेरी कु शल पूछने वाले? म बीमार ,ँ म मर रही ,ँ तुमसे
मतलब? तुम कौन हो? मेरे भाई हो? मेरे िपता हो? कल अपने िम के यहाँ मेरा अपमान
कराने ले गये थे!” सुधा हाँफने लगी।
“अपमान! कसने तु हारा अपमान कया, सुधा? प मी ने तो कु छ भी नह कहा? तुम
पागल तो नह हो गय ?” च दर ने सुधा के पैर पर हाथ रखते ए कहा।
&
“पागल हो नह गयी तो हो जाऊँगी!” उसने पैर हटा िलये, “तुम, प मी, गेसू, पापा डॉ टर
सब लोग िमलकर मुझे पागल कर दोगे। पापा कहते है याह करो, प मी कहती है मत
करो, गेसू कहती है तुम यार करती हो और तुम...तुम कु छ भी नह कहते। तुम मुझे इस
नरक म बरस से सुलगते देख रहे हो और बजाय इसके क तुम कु छ कहो, तुमने मुझे खुद
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इस भ ी म ढके ल दया!...च दर, म पागल ,ँ म या क ँ ?” सुधा बड़े कातर वर म
बोली। च दर चुप था। िसफ िसर झुकाये, हाथ पर माथा रखे बैठा था। सुधा थोड़ी देर
हाँफती रही। फर बोली- is
“तु ह या हक था कल प मी के यहाँ ले जाने का? उसने य कल गीत म कहा क म तु ह
यार करती ?ँ ” सुधा बोली। च दर ने िबनती क ओर देखा-” य िबनती? िबनती से म
कु छ नह िछपाता!” “ य प मी ने कल कहा, म तु ह यार नह करती! मेरा मन मुझे
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धोखा नह दे सकता। म तुमसे िसफ जाने या करती .ँ .. फर प मी ने कल ऐसी बात य
कही? मेरे रोम-रोम म जाने कौन-सा वालामुखी धधक उठता है ऐसी बात सुनकर? तुम
य प मी के यहाँ ले गये?”
“तुम खुद गयी थ , सुधा!” च दर बोला।
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“तो तुम रोक नह सकते थे! तुम कह देते मत जाओ तो म कभी जा सकती थी? तुमने य
नह रोका? तुम हाथ पकड़ लेते। तुम डाँट देते। तुमने य नह डाँटा? एक ही दन म म
तु हारी गैर हो गयी? गैर ँ तो फर य आये हो? जाओ यहाँ से। म कहती ;ँ जाओ यहाँ
से?” दाँत पीसकर सुधा बोली।
“सुधा...”
“म तु हारी बोली नह सुनना चाहती। जाते हो क नह ...” और सुधा ने अपने माथे पर से
s
ले िलया?
और य ले िलया? जब वह अपने मन को शा त रख सकता है, जब वह सभी कु छ हँसते-
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हँसते बरदा त कर सकता है तो सुधा य नह कर सकती? उसने आज तक अपनी साँस
से सुधा का िनमाण कया है। सुधा को ितल-ितल बनाया, सजाया, सँवारा है फर सुधा म
यह कमजोरी य ?
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या उसने यह रा ता अि तयार करके भूल क ? या सुधा भी एक साधारण-सी लड़क है
िजसके ेम और घृणा का तर उतना ही साधारण है? माना उसने अपने दोन के िलए एक
ऐसा रा ता अपनाया है जो िवल ण है ले कन इससे या! सुधा और वह दोन ही या
िवल ण नह ह? फर सुधा य िबखर रही है? लड़ कयाँ भावना क ही बनी होती ह?
साधना उ ह आती ही नह या? उसने सुधा का गलत मू यांकन कया था? या सुधा इस
'तलवार क धार' पर चलने म असमथ सािबत होगी? यह तो च दर क हार थी।
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और फर सुधा ऐसी ही रही तो च दर? सुधा च दर क आ मा है; इसे अब च दर खूब
अ छी तरह पहचान गया। तो या अपनी ही आ मा को घ ट डालने क ह या का पाप
च दर के िसर पर है?
तो या याग मा नाम ही है? या पु ष और नारी के स ब ध का एक ही रा ता है- णय,
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िववाह और तृि ! पिव ता, याग और दूरी या स ब ध को, िव ास को िज दा नह
रहने दे सकते? तो फर सुधा और प मी म या अ तर है? या सुधा के दय के इतने
समीप रहकर, सुधा के ि व म घुल-िमलकर और आज सुधा को इतने अ तर पर
is
डालकर च दर पाप कर रहा है? तो या फू ल को तोड़कर अपने ही बटन होल म लगा लेना
ही पु य है और दूसरा रा ता ग हत है? िवनाशकारी है? य उसने सुधा का ि व तोड़
दया है?
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कसी ने उसके क धे पर हाथ रखा। िवचार-शृंखला टू ट गयी...िबनती थी। “ या सोच रहे
ह आप?” िबनती ने पूछा, ब त ेह से।
“कु छ नह !”
“नह बताइएगा? हम नह जान सकते?” िबनती के वर म ऐसा आ ह, ऐसा अपनापन,
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ऐसी िन छलता रहती थी क च दर अपने को कभी नह रोक पाता था। िछपा नह पाता
था।
“कु छ नह िबनती! तुम कहती हो, सुधा को इतने अ तर पर मने रखा तो म देवता !ँ सुधा
कहती है, मने अ तर पर रखा, मने पाप कया! जाने या कया है मने? या मुझे कम
तकलीफ है? मेरा जीवन आजकल कस तरह घायल हो गया है, म जानता ।ँ एक पल मुझे
आराम नह िमलता। या उतनी सजा काफ नह थी जो सुधा को भी क मत यह द ड दे
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रही है? मुझी को सभी बचैनी और दु:ख िमल जाता। सुधा को मेरे पाप का द ड य िमल
रहा है? िबनती, तुमसे अब कु छ नह िछपा। िजसको म अपनी साँस म दुबकाकर इ धनुष
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हमारी कसम है। उदास मत होइए। कु छ सोिचए मत। दीदी बीमार ह, आप इस तरह से
करगे तो कै से काम चलेगा! उ ठए, दीदी बुला रही ह।”
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च दर गया। सुधा ने इशारे से पास बुलाकर िबठा िलया। “च दर, हमारा दमाग ठीक नह
है। बैठ जाओ ले कन कु छ बोलना मत, बैठे रहो।”
उसके बाद दन भर अजब-सा गुजरा। जब-जब च दर ने उठने क कोिशश क , सुधा ने उसे
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ख चकर िबठा िलया। घर तो उसे जाने ही नह दया। िबनती वह खाना ले आयी। सुधा
कभी च दर क ओर देख लेती। फर त कये म मुँह गड़ा लेती। बोली एक श द भी नह ,
ले कन उसक आँख म अजब-सी कातरता थी। पापा आये, घंट बैठे रहे; पापा चले गये तो
उसने च दर का हाथ अपने हाथ म ले िलया, करवट बदली और त कये पर अपने कपोल से
च दर क हथेली दबाकर लेटी रही। पलक से कतने ही गरम-गरम आँसू छलककर गाल
पर फसलकर च दर क हथेली िभगोते रहे।
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च दर चुप रहा। ले कन सुधा के आँसू जैसे नस के सहारे उसके दय म उतर गये और जब
दय डू बने लगा तो उसक पलक पर उतर आये। सुधा ने देखा ले कन कु छ भी नह बोली।
घंटा-भर ब त गहरी साँस ली; बेहद उदासी से मुसकराकर कहा, “हम दोन पागल हो गये
ह, य च दर? अ छा, अब शाम हो गयी। जरा लॉन पर चल।”
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सुधा च दर के क धे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी। िबनती ने दवा दी, थमामीटर से बुखार
देखा। बुखार नह था। च दर ने सुधा के िलए कु रसी उठायी। सुधा ने हँसकर कहा, “च दर,
आज बीमार ँ तो कु रसी उठा रहे हो, मर जाऊँगी तो अरथी उठाने भी आना, वरना नरक
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िमलेगा! समझे न!”
“िछः, ऐसा कु बोल न बोला करो, दीदी?”
सुधा लॉन म कु रसी पर बैठ गयी। बगल म नीचे च दर बैठ गया। सुधा ने च दर का िसर
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अपनी कु रसी म टका िलया और अपनी उँ गिलय से च दर के सूखे होठ को छू ते ए कहा,
“च दर, आज मने तु ह ब त दु:खी कया, य ? ले कन जाने य , दु:खी न करती तो आज
मुझे वह ताकत न िमलती जो िमल गयी।” और सहसा च दर के िसर को अपनी गोद म
ख चती ई-सी सुधा ने कहा, “आरा य मेरे! आज तु ह ब त-सी बात बताऊँगी। ब त-
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सी।”
िबनती उठकर जाने लगी तो सुधा ने कहा, “कहाँ चली? बैठ तू यहाँ। तू गवाह रहेगी ता क
बाद म च दर यह न कहे क सुधा कमजोर िनकल गयी।” िबनती बैठ गयी। सुधा ने ण-
भर आँख ब द कर ल और अपनी वेणी पीठ पर से ख चकर गोद म ढाल ली और बोली,
“च दर, आज कतने ही साल ए, जबसे मने तु ह जाना है, तब से अ छे-बुरे सभी काम
का फै सला तु ही करते रहे हो। आज भी तु ह बताओ च दर क अगर म अपने को ब त
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हो, म भी उतना ही मजबूत बनने क कोिशश करती ,ँ उतने ही ऊँचे उठने क कोिशश
करती ,ँ अगर कभी-कभी फसल जाती ँ तो यह अपराध तो नह ?”
“नह ।” च दर बोला।
“और अगर अपने उस अ त के ण म तुम पर कठोर हो जाती ,ँ तो तुम सह लेते हो।
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म जानती ,ँ तुम मुझे िजतना ेह करते हो, उसम मेरी सभी दुबलताएँ धुल जाती ह।
ले कन आज म तु ह िव ास दलाती ँ च दर क मुझे खुद अपनी दुबलता पर शरम
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आती है और आगे से म वैसी ही बनूँगी जैसा तुमने सोचा है, च दर।”
च दर कु छ नह बोला िसफ घास पर रखे ए सुधा के पाँव पर अपनी काँपती उँ गिलयाँ
रख द । सुधा कहती गयी, “च दर, आज से कु छ ही महीने पहले जब गेसू ने मुझसे पूछा था
Hi
क तु हारा दल कह झुका था तो मने इनकार कर दया था, कल प मी ने पूछा, तुम
च दर को यार करती हो तो मने इनकार कर दया था, म आज भी इनकार करती ँ क
मने तु ह यार कया है, या तुमने मुझे यार कया है। म भी समझती ँ और तुम भी
समझते हो ले कन यह न तुमसे िछपा है न मुझसे क तुमने जो कु छ दया है वह यार से
कह यादा ऊँचा और यार से कह यादा महान है।...म याह नह करना चाहती थी,
मने परस इनकार कर दया था, इतनी रोयी थी, खीझी थी, बाद म मने सोचा क यह
&
गलत है, यह वाथ है। जब पापा मुझे इतना यार करते ह तो मुझे उनका दल नह
दुखाना चािहए। पर मन के अ दर क जो खीझ थी, जो कु ढऩ थी, वह कह तो उतरती ही।
वह म अपने पर उतार देना चाहती थी, मन म आता था अपने को कतना क दे डालूँ
इसीिलए अपने गैरेज म जाकर मोटर सँभाल रही थी, ले कन वहाँ भी असफल रही और
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अ त म वह खीझ अपने मन पर भी न उतारकर उस पर उतारी िजसको मने अपने से भी
बढ़कर माना है। वह खीझ उतरी तुम पर!”
च दर ने सुधा क ओर देखा। सुधा मुसकराकर बोली, “न, ऐसे मत देखो। यह मत समझो
is
क अपने आज के वहार के िलए म तुमसे मा मागूँगी। म जानती ,ँ माँगने से तुम दु:खी
भी होगे और डाँटने भी लगोगे। खैर, आज से म अपना रा ता पहचान गयी ।ँ म जानती ँ
क मुझे कतना सँभलकर चलना है। तु हारे सपने को पूरा करने के िलए मुझे अपने को
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या बनाना होगा, यह भी म समझ गयी ।ँ म खुश र ग ँ ी, सबल र गँ ी और सश र ग ँ ी
और जो रा ता तुम दखलाओगे उधर ही चलूँगी। ले कन एक बात बताओ च दर, मने
याह कर िलया और वहाँ सुखी न रह पायी, फर और उ ह वह भावना, उपासना न दे
पायी और फर तु ह दु:ख आ, तब?”
En
खोकर भी अगर मुझे कोई स तोष रहेगा तो यह देखकर क मेरी सुधा अपने जीवन म
कतनी ऊँची है। म तुमसे इस िव ास क भीख माँगता ।ँ ”
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“िछः, मुझसे बड़े हो, च दर! ऐसी बात नह कहते! ले कन एक बात है। म जानती ँ क म
च मा ,ँ सूय क करण से ही िजसम चमक आती है। तुमने जैसे आज तक मुझे सँवारा
है, आगे भी तुम अपनी रोशनी अगर मेरी आ मा म भरते गये तो म अपना भिव य भी नह
Hi
पहचान सकूँ गी। समझे!”
“समझा, पगली कह क !” थोड़ी देर च दर चुप बैठा रहा फर सुधा के पाँव से िसर
टकाकर बोला-”परे शान कर डाला, तीन रोज से। सूरत तो देखो कै सी िनकल आयी है और
बैसाखी को कु ल चार रोज रह गये। अब मत दमाग िबगाड़ना! वे लोग आते ही ह गे!”
“िबनती! दवा ले आ...” िबनती उठकर गयी तो सुधा बोली, “हटो, अब हम घास पर
बैठगे!” और घास पर बैठकर वह बोली, “ले कन एक बात है, आज से लेकर याह तक तुम
&
हर अवसर पर हमारे सामने रहना, जो कहोगे वह हम करते जाएँगे।”
“हाँ, यह हम जानते ह।” च दर ने कहा और कु छ दूर हटकर घास पर लेट गया और आकाश
क ओर देखने लगा। शाम हो गयी थी और दन-भर क उड़ी ई धूल अब ब त कु छ बैठ
गयी थी। आकाश के बादल ठहरे ए थे और उन पर अ णाई झलक रही थी। एक दुरंगी
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पतंग ब त ऊँचे पर उड़ रही थी। च दर का मन भारी था। हालाँ क जो तूफान परस उठा
था वह ख म हो गया था, ले कन च दर का मन अभी मरा-मरा आ-सा था। वह चुपचाप
लेटा रहा। िबनती दवा और पानी ले आयी। दवा पीकर सुधा बोली, “ य , चुप य हो,
is
च दर?”
“कोई बात नह ।”
“ फर बोलते य नह , देखा िबनती, अभी-अभी या कह रहे थे और अब देखो इ ह।”
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सुधा बोली।
“हम अभी बताते ह इ ह!” िबनती बोली और िगलास म थोड़ा-सा पानी लेकर च दर के
ऊपर फक दया। च दर च ककर उठ बैठा और िबगड़क़र बोला, “यह या बदतमीजी है?
अपनी दीदी को यह सब दुलार दखाया करो।”
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“तो य पड़े थे ऐसे? बात करगे ऋिष-मुिनय जैसे और उदास रहगे ब क तरह! वाह रे
च दर बाबू!” िबनती ने हँसकर कहा, “दीदी, ठीक कया न मने?”
“िब कु ल ठीक, ऐसे ही इनका दमाग ठीक होगा।”
“इतने म डॉ टर शु ला आये और कु रसी पर बैठ गये। सुधा के माथे पर हाथ रखकर देखा,
“अब तो तू ठीक है?”
“हाँ, पापा!”
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“िबनती, कल तु हारी माताजी आ रही ह। अब बैसाखी क तैयारी करनी है। सुधा के जेठ
आ रहे ह और सास।”
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17
च दर को सबसे बड़ा स तोष था क सुधा ठीक हो गयी थी। बैसाख पूनो के एक दन पहले
ही से िबनती ने घर को इतना साफ कर डाला था क घर चमक उठा था। यह बात तो
दूसरी है क टडी- म क सफाई म िबनती ने च दर के ब त-से कागज बुहारकर फक दये
&
थे और आँगन धोते व उसने च दर के कपड़ को छीट से तर कर दया था। उसके बदले
म च दर ने िबनती को डाँटा था और सुधा देख-देखकर हँस रही थी और कह रही थी, “तुम
य िचढ़ रहे हो? तु ह देखने थोड़े ही आ रही ह हमारी सास।”
बैशाखी पूनो क सुबह डॉ टर साहब और बुआजी गाड़ी लेकर उनको िलवा लाने गये थे।
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च दर बाहर बरामदे म बैठा अखबार पढ़ रहा था और सुधा अ दर कमरे म बैठी थी। अब
दो दन उसे ब त दब-ढँककर रहना होगा। वह बाहर नह घूम सकती थी; य क जाने
कै से और कब उसक सास आ जाएँ और देख ल। बुआ उसे समझा गयी थ और उसने एक
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ग भीर आ ाकारी लड़क क तरह मान िलया था और अपने कमरे म चुपचाप बैठी थी।
िबनती कढ़ी के िलए बेसन फट रही थी और महरािजन ने रसोई म दूध चढ़ा रखा था।
सुधा चुपके से आयी, कवाड़ क आड़ से देखा क पापा और बुआ क मोटर आ तो नह रही
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है! जब देखा क कोई नह है तो आकर चु पे से खड़ी हो गयी और पीछे से च दर के हाथ से
अखबार ले िलया। च दर ने पीछे देखा तो सुधा एक ब े क तरह मुसकरा दी और बोली,
“ य च दर, हम ठीक ह न? ऐसे ही रह न? देखा तु हारा कहना मानते ह न हम?”
“हाँ सुधी, तभी तो हम तुमको इतना दुलार करते ह!”
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कार रोक ।
“हैलो, मेरे जुड़वा िम , या हाल है तुम लोग का?” और हाथ िमलाकर बेतक लुफ से
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आज जा रही ।ँ ”
सुधा बोली, “हम ले चिलएगा?”
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“चिलए। कपूर, तुम भी चलो, जुलाई म लौट आना!” प मी ने कहा।
“जब अगले साल हम लोग क िम ता क वषगाँठ होगी तो म चलूँगा।” च दर ने कहा।
“अ छा, िवदा!” प मी बोली। च दर और सुधा ने हाथ जोड़े तो प मी ने आगे बढक़र सुधा
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का मुँह हथेिलय म उठाकर उसक पलक चूम ल और बोली, “मुझे तु हारी पलक ब त
अ छी लगती ह। अरे ! इनम आँसु का वाद है, अभी रोयी थ या?” सुधा झप गयी।
च दर के क धे पर हाथ रखकर प मी ने कहा, “कपूर, तुम खत ज र िलखते रहना। चलते
तो बड़ा अ छा रहता। अ छा, आप दोन िम का समय अ छी तरह बीते।” और प मी
चल दी।
थोड़ी देर म डॉ टर साहब क कार आयी। सुधा ने अपने कमरे के दरवाजे ब द कर िलये,
&
िबनती ने िसर पर प ला ढक िलया और च दर दौड़कर बाहर गया। डॉ टर साहब के साथ
जो स न उतरे वे ठगने-से, गोरे -से, गोल चेहरे के कु लीन स न थे और ख र का कु रता
और धोती पहने ए थे। हाथ म एक छोटा-सा सफरी बैग था। च दर ने लेने को हाथ
बढ़ाया तो हँसकर बोले, “नह जी, या इतना-सा बैग ले चलने म मेरा हाथ थक जाएगा।
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आप लोग तो खाितर करके मुझे मह वपूण बना दगे!”
सब लोग टडी म म गये। वह डॉ टर शु ला ने प रचय कराया-”यह हमारे िश य और
लड़के , ा त के होनहार अथशा ी च कु मार कपूर और आप शाहजहाँपुर के िस
is
काँ ेसी कायकता और युिनिसपल किम र ी शंकरलाल िम ।”
“अब तू नहाय लेव संकरी, फर चाय ठं डाय जइहै।” बुआजी ने आकर कहा। आज बुआजी ने
ब त दन पहले क बूटीदार साड़ी पहन रखी थी और शायद वह खुश थ य क िबनती
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को डाँट नह रही थ ।
“नह , म तो वे टंग- म म नहा चुका। चाय म पीता नह । खाना ही तैयार कराइए।” और
घड़ी देखकर शंकर बाबू बोले, “मुझे जरा वरा य-भवन जाना है और दो बजे क गाड़ी से
वापस चले जाना है और शायद उधर से ही चला जाऊँगा।” उ ह ने ब त मीठे वर से
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मुसकराते ए कहा।
“यह तो अ छा नह लगता क आप आये भी और कु छ के नह ।” डॉ टर शु ला बोले।
“हाँ, म खुद कना चाहता था ले कन माँजी क तबीयत ठीक नह है। कै लाश भी कानपुर
गया आ है। मुझे ज दी जाना चािहए।”
िबनती ने लाकर थाली रखी। च दर ने आ य से डॉ टर साहब क ओर देखा। वे हँसकर
बोले, “भाई, यह लोग हमारी तरह छू त-पाक नह मानते। शंकर तु हारे स दाय के ह,
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यह क ा खाना खा लगे।”
“इ ह ा ïण कहत के है, ई तो क र तान है, हमरो धरम िबगािडऩ हंयाँ आय कै !”
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हाथ म तरकारी लगी रह गयी तो आपके िलए वग का फाटक फौरन खुल जाएगा!
खाओ।”
दो कौर खाने के बाद शंकर बाबू ने बुआजी से कहा, “यही ब है, जो लड़क थाली रख गयी
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थी?”
“अरे राम कहौ, ऊ तो हमार छोरी है िबनती! पहचन यौ नै। िपछले साल तो मु े के
िववाह म देखे होबो!” बुआजी बोल ।
शंकर बाबू कै लाश से काफ बड़े थे ले कन देखने म ब त बड़े नह लगते थे। खाते-पीते
बोले, “डॉ टर साहब! लड़क से किहए, रोटी दे जाये। म इसी तरह देख लूँगा, और यादा
तडक़-भड़क क कोई ज रत नह !”
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डॉ टर साहब ने बुआजी को इशारा कया और वे उठकर चली गय । थोड़ी देर म सुधा
आयी। सादी सफे द धोती पहने, हाथ म रोटी िलये दरवाजे पर आकर िहचक , फर आकर
च दर से बोली, “रोटी लोगे!” और िबना च दर क आवाज सुने रोटी च दर के आगे
रखकर बोली, “और या चािहए?”
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“मुझे कढ़ी चािहए!” शंकर बाबू ने कहा। सुधा गयी और कढ़ी ले आयी। शंकर बाबू के
सामने रख दी। शंकर बाबू ने आँख उठाकर सुधा क ओर देखा, सुधा ने िनगाह नीची कर
ल और चली गयी। is
“ब त अ छी है लड़क !” शंकर बाबू ने कहा। “इतनी पढ़ी-िलखी लड़क म इतनी शम-
िलहाज नह िमलती। सचमुच जैसे आपक एक ही लड़क थी, आपने उसे खूब बनाया है।
कै लाश के िब कु ल यो य लड़क है। यह तो किहए डॉ टर साहब क िश ा बल होती है
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वरना हमारा कहाँ सौभा य था! जब से मेरी प ी मरी तभी से माताजी कै लाश के िववाह
क िजद कर रही ह। कै लाश अ तजातीय िववाह करना चाहता था, ले कन हम तो अपनी
जाित म ही इतना अ छा स ब ध िमल गया।”
“तो तोहरे अबिहन कौन बैस वा गयी। तुहौ काहे नाही ब रया लै अउ यौ। सुधी के
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ने कहा, “दीदी पूछ रही ह, ये कतनी देर म जाएँगे?”
“ य ?”
“कह रही ह अब च दर को याद थोड़े ही है क सुधा भी इसी घर म है। उ ह से बात कर
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रहे ह।”
च दर हँस दया और कु छ नह कहा। िबनती बोली, “ये लोग तो ब त अ छे ह। म तो
क ग ँ ी सुधा दीदी को इससे अ छा प रवार िमलना मुि कल है। हमारे ससुर क तरह नह
ह ये लोग।”
“हाँ, फर भी सुधा इतनी सेवा नह कर रही है इनक । िबनती, तुम सुधा को कु छ िश ा दे
दो इस मामले म।”
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“हाँ-हाँ, हम सेवा करने क िश ा दे दगे और याह करने के बाद क िश ा अपनी प मी से
दलवा देना। खुद तो उनसे ले ही चुके ह गे आप!”
च दर झप गया। “पाजी कह क , ब त बेशरम हो गयी है। पहले मुँह से बोल नह
िनकलता था!”
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“तुमने और दीदी ने ही तो कया बेशरम! हम या कर? पहले हम कतना डरते थे!”
िबनती ने उसी तरह गदन टेढ़ी करके कहा और मुसकराकर भाग गयी।
जब डॉ टर साहब आये तो शंकर बाबू ने कहा, “अब तो म जा रहा ,ँ यह माला मेरी ओर
is
से ब को दे दीिजए।” और उ ह ने बड़ी सु दर मोितय क माला बैग से िनकाली और
बुआजी के हाथ म दे दी।
“हाँ, एक बात है!” शंकर बाबू बोले, “ याह हम लोग महीने भर के अ दर ही करगे।
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आपक सब बात हमने मानी, यह बात आपको हमारी माननी होगी।”
“इतनी ज दी!” डॉ टर शु ला च क उठे , “यह अस भव है, शंकर बाबू ! म अके ला ,ँ आप
जानते ह।”
“नह , आपको कोई क न होगा।” शंकर बाबू ब त मीठे वर म बोले, “हम लोग रीित-
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कु छ देर तक बात होती रह , अ त म शंकर बाबू ने अपने सौज य और मीठे वभाव से सभी
को राजी कर ही िलया। उसके बाद उ ह ने सबसे िवदा माँगी, चलते व बुआजी और
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डॉ टर साहब के पैर छु ए, च दर से हाथ िमलाया और शंकर बाबू सबका मन जीतकर चले
गये।
बुआजी ने माला हाथ म ली, उसे उलट-पलटकर देखा और बोल , “एक ऊ आये रहे
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जूताखोर! एक ठो कागज थमाय के चले गये!” और एक गहरी साँस लेके चली गय ।
डॉ. साहब ने सुधा को बुलाया। उसके हाथ म वह माला रखकर उसे िचपटा िलया। सुधा
पापा क गोद म मुँह िछपाकर रो पड़ी।
उसके बाद सुधा चली गयी और च दर, डॉ टर साहब और बुआजी बैठे शादी के इ तजाम
क बात करते रहे। यह तय आ क अभी तो इ ह क इ छानुसार िववाह कर दया जाए
फर यूिनव सटी खुलने पर सभी को बुलाकर अ छी दावत वगैरह दे दी जाए। यह भी तय
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आ क बुआजी गाँव जाकर अनाज, घी, बिडय़ाँ और नौकर वगैरह का इ तजाम कर लाएँ
और प ह दन के अ दर लौट आएँ। अगवानी ठीक छह बजे शाम को हो जाए और सुबह
के ना ते म या दया जाए, यह सभी डॉ टर साहब ने तय कर डाला। ले कन िन य यह
कया गया क चूँ क आदमी ब त कम आ रहे ह, अत: सुबह-शाम के ना ते का काम
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यूिनव सटी के कसी रे तराँ को दे दया जाए।
इसी बीच म िबनती खरबूजा और शरबत लाकर रख गयी और च दर ने ब त आराम से
शरबत पीते ए पूछा, “ कसने बनाया है?”
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“सुधा दीदी ने।”
“आज बड़ी खुश मालूम पड़ती है, चीनी ब त कम छोड़ी है!” च दर बोला। बुआ और
िबनती दोन हँस पड़ ।
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थोड़ी देर बाद च दर उठकर भीतर गया तो देखा क सुधा अपने पलँग पर बैठी सामने एक
कताब रखे जाने या देख रही है और सामने वह माला पड़ी है। च दर गया और बोला,
“सुधा! आज म ब त खुश ।ँ ”
सुधा ने आँख उठाय और च दर क ओर देखकर मुसकराने क कोिशश क और बोली, “म
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भी ब त खुश ।ँ ”
“ य , तय हो गया इसिलए?” िबनती ने पूछा।
“नह , च दर ब त खुश ह इसिलए!” और एक गहरी साँस लेकर कताब ब द कर दी।
“कौन-सी कताब है, सुधा?” च दर ने पूछा।
“कु छ नह , इस पर उदू के कु छ अशआर िलखे ह जो गेसू ने सुनाये थे।” सुधा बोली।
च दर ने िबनती क ओर देखा और कहा, “िबनती, कै लाश तो जैसा है वैसा ही है, ले कन
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िबनती बोली।
“और हम भी मत भूलना सुधा!” च दर ने सुधा क उदासी दूर करने के िलए छेड़ते ए
कहा।
“हाँ, तु ह भूले िबना कै से काम चलेगा।” सुधा ने और भी गहरी साँस लेते ए कहा और
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हो। फर यह आँसू कै से? िछः! और यह माला सामने रखे या कर रही हो?” च दर ने
बहलाया।
“माला तो दीदी इसिलए सामने रखे थ क बतलाऊँ...बतलाऊँ!” िबनती बोली, “असल म
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रामायण क कहानी तो सुनी है च दर, तुमने? रामच ने अपने एक भ को मोती क
माला दी तो वह उसे दाँत से तोडक़र देख रहा था क उसके अ दर रामनाम है या नह । सो
यह माला सामने रखकर देख रही थ , इसम कह च दर क झलक है या नह ?”
“चुप िगलहरी कह क ?” सुधा हँस पड़ी, “ब त बोलना आ गया है!” सुधा ने हँसते ए
बनावटी गु से से कहा। फर सुधा त कये से टककर बैठ गयी-”आज गेसू नह है। मुझे गेसू
क ब त याद आ रही है।”
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“ य ?”
“इसिलए क आज उसके कई शेर याद आ रहे ह। एक दफे उसने सुनाया था-
ये आज फजा खामोश है य , हर जर को आिखर होश है य ?
या तुम ही कसी के हो न सके , या कोई तु हारा हो न सका।'
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इसी क अि तम पंि है-
मौज भी हमारी हो न सक , तूफाँ भी हमारा हो न सका'!”
“वाह! यह पंि ब त अ छी है,” च दर ने कहा।
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“आज गेसू होती तो ब त-सी बात करते!” सुधा बोली, “देखो च दर, जंदगी भी या
होती है! आदमी या सोचता है और या हो जाता है। आज से तीन-चार महीने पहले मने
या सोचा था! लास- म से भागकर हम लोग पेड़ के नीचे लेटकर बात करते थे, तो म
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हमेशा कहती थी-म शादी नह क ँ गी। पापा को समझा लूँगी। उस दन या मालूम था
क इतनी ज दी जुए के नीचे गरदन डाल देनी होगी और पापा को भी जीतकर कसी दूसरे
से हार जाना होगा। अभी उसक तय भी नह ई और महीने-भर बाद मेरी...” सुधा थोड़ी
देर चुप रही और फर-”और दूसरी बात उसक , जो मने तु ह बतायी थी। उसने कहा था
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जब कसी के कदम हट जाते ह िसर के नीचे से, तब मालूम होता है क हम कसका सपना
देख रहे थे। पहले हम भी नह मालूम होता था क हमारे िसर कसके कदम पर झुक चुके
ह। याद है? मने तु ह बताया था, तुमने पूछा था!”
“याद है।” च दर ने कहा। िबनती उठकर चली गयी ले कन सुधा या च दर कसी ने यान
भी नह दया। च दर बोला, “ले कन सुधा, इन सब बात को सोचने से या फायदा, आगे
का रा ता सामने है, बढ़ो।”
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बदले म कु छ भी नह देती। आओ, चलो लॉन पर चल। शाम को तुमसे बात ही करगे!”
उसके बाद सुधा रात को आठ बजे उठी, जब बुआ तैयार होकर टेशन जा रही थ और
ाइवर मोटर िनकाल रहा था। और उदास टम टमाते ए िसतार ने देखा क च दर और
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सुधा दोन क आँख म आँसु क अवशेष नमी िझलिमला रही थी। उठते ए सुधा ने
ण-भर च दर क ओर देखा, च दर ने िसर झुका िलया और ब त उदास आवाज म कहा,
“चलो सुधा, ब त देर कर दी हम लोग ने।”
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म क सभी कताब समेट दी गय और वहाँ एक बड़ी-सी मशीन लाकर रख दी गयी िजस
पर बैठकर िबनती िसलाई करती थी। उसी को कपड़े और गहन का भंडार-घर बनाया
गया और उसक चाबी िबनती या बुआ के पास रहती थी। गाँव से एक महरािजन, एक
कहा रन और दो मजदूर आये थे, वे सभी गैरेज म सोते थे और दन-भर काम करते थे और
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'पानी पीने' को माँगते रहते थे। सभी कु सयाँ और सोफासेट िनकलवाकर सायबान म
लगवा दये गये थे। रसोई के पार वाली कोठरी म कु हड़, प ल, याले वगैरह रखे थे और
पूजा वाले कमरे म श र, घी, तरकारी और अनाज था। िमठाई कहाँ रखी जाएगी, इस पर
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बुआजी, महरािजन और िबनती म घंटे-भर तक बहस ई ले कन जब बुआजी ने िबनती से
कहा, “आपन लड़के -ब े का िबयाह कयो तो कतरनी अस जबान चलाय िल ो, अबिहन
हर काम म काहे टाँग अड़ावा करत हौ!” तो िबनती चुप हो गयी और अ त म बुआजी क
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राय सव प र मानी गयी। बुआजी क जबान िजतनी तेज थी, हाथ भी उतने ही तेज। चार
बोरा गे ँ उ ह ने साफ करके कोठ रय म भरवा दये। कम-से-कम पाँच तरह क दाल
लायी थ । बेसन िपसवाया, दाल दरवायी, पापड़ बनवाये, मैदा छनवाया, सूजी दरवायी,
बरी-मुँगौरी डलवाय , चावल क कचौ रयाँ बनवाय और सबको अलग-अलग गठरी म
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बाँधकर रख दया। रात को अकसर बुआजी, महरािजन तथा गाँव क मह रन ढोलक लेकर
बैठ जात और गीत गात । िबनती उनम भी शािमल रहती।
सच पूछो तो सुधा के याह का िजतना उछाह बुआ को नह था, उतना िबनती को था। वह
सुबह से उठकर झाड़ू लेकर सारा घर बुहार डालती थी, इसके बाद नहाकर तरकारी
काटती, उसके बाद फर चाय चढ़ाती। डॉ टर साहब, च दर, सुधा सभी को चाय देती,
बैठकर च दर अगर कु छ िहसाब िलखाता तो िहसाब िलखती, फर अपनी मशीन पर बैठ
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दीदी को हँसाने क कोिशश करती। एक दन सुधा ने कहा, “मेरे याह म तो इतनी खुश है,
अपने याह म या करे गी?” तो िबनती ने जवाब दया, “अपने याह म तो म खुद बड
बजाऊँगी, वद पहनकर!”
घर चमक उठा था जैसे रे शम! ले कन रे शम के चमकदार, रं गीन उ लास भरे गोले के अ दर
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एक ाणी था िजसक साँस धीरे -धीरे डू ब रही थी, िजसक आँख क चमक धीरे -धीरे
कु हला रही थी, िजसक चंचलता ने उसक नजर से िवदा माँग ली थी, वह थी-सुधा।
सुधा बदल गयी थी। गोरा च पई चेहरा पीला पड़ गया था, और लगता था जैसे वह
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बीमार हो। खाना उसे जहर लगने लगा था, अपने कमरे को छोड़कर कह जाती न थी। एक
शीतलपाटी िबछाये उसी पर दन-रात पड़ी रहती थी। िबनती जब हँसती ई खाना लाती
और सुधा के इनकार पर िबनती के आँसू छलछला आते तब सुधा पानी के घूँट के सहारे कु छ
खा लेती और उदास, फर अपनी शीतलपाटी पर लेट जाती। वग को कोई इ धनुष से
भर दे और शची को जहर िपला दे, कु छ ऐसा ही लग रहा था वह घर।
डॉ टर शु ला का साहस न होता था सुधा से बोलने का। वह रोज िबनती से पूछ
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लेते-”सुधा खाना खाती है या नह ?” िबनती कहती, “हाँ।” तो एक गहरी साँस लेकर अपने
कमरे म चले जाते।
च दर परे शान था। उसने इतना काम शायद कभी भी न कया हो अपनी जंदगी म। सुनार
के यहाँ, कपड़े वाले के यहाँ, फर राश नंग अफसर के यहाँ, पुिलस बड ठीक कराने पुिलस
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लाइं स, अज देने मैिज ेट के यहाँ, पया िनकालने बक, शािमयाने का इ तजाम, पलँग,
कु स वगैरह का इ तजाम, खाने-परोसने के बरतन के इ तजाम और जाने या- या...और
जब बुरी तरह थककर आता, जेठ क तपती ई दोपहरी म, तब िबनती आकर बताती-
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सुधा ने आज फर कु छ नह खाया तो उसका मन होता था वह िसर पटक-पटक दे। वह
सुधा के पास जाता, सुधा आँसू प छकर बैठती, एक टू टी-फू टी मुसकान से च दर का वागत
करती। च दर उससे पूछता, “खाती य नह ?”
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“खाती तो ँ च दर, इससे यादा गरिमय म म कभी नह खाती थी।” सुधा कहती और
इतने दृढ़ वर से क च दर से कु छ ितवाद नह करते बनता।
अब बाहरी काम लगभग समा हो गये थे। वैसे तो सभी जगह ह दी िछडक़कर प रवाना
कये जा चुके थे ले कन िनमं ण-प भी ब त सु दर छपकर आये थे, हालाँ क कु छ देर हो
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जैसे गाँठ पड़ गयी ह ।” च दर ने काड फै लाते ए कहा, “शादी तु हारी होगी और जान
मेरी िनकली जा रही है मेहनत से।”
“हाँ च दर, इतना उ साह तो और कसी को नह है मेरी शादी का!” सुधा ने कहा और
ब त दुलार से बोली, “लाओ, पैर दबा दूँ तु हारे ?”
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छू ने का। मा करना, म भूल गयी थी क म पुरानी सुधा नह ।ँ ” और टप से दो आँसू िगर
पड़े। सुधा ने पंखे क ओट कर आँख प छ ल ।
“तुम तो बुरा मान गय , सुधा!” च दर ने पैर नीचे रखते ए कहा।
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“नह च दर, अब बुरा-भला मानने के दन बीत गये। अब गैर क बात का भी बुरा-भला
नह मान पाऊँगी, फर घर के लोग क बात का बुरा-भला या...छोड़ो ये सब बात। ये
या िनमं ण-प छपा है, देख!”
च दर ने एक िनमं ण-प उठाया, उसे िलफाफे म भरकर उस पर सुधा का नाम िलखकर
कहा, “लो, हमारी सुधा का याह है, आइएगा ज र!”
सुधा ने िनमं ण प ले िलया-”अ छा!” एक फ क हँसी हँसकर बोली, “अ छा, अगर
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हमारे पितदेव ने आ ा दे दी तो आऊँगी आपके यहाँ। उनका भी नाम िलख दीिजए वरना
बुरा न मान जाएँ।” और सुधा उठ खड़ी ई।
“कहाँ चली?” च दर ने पूछा।
“यहाँ ब त रोशनी है! मुझे अपना अँधेरा कमरा ही अ छा लगता है।” सुधा बोली।
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“चलो िबनती, वह काड ले चलो!” च दर ने कहा, “आओ सुधा, आज काड िलखते जाएँगे,
तुमसे बात करते जाएँगे। जंदगी देखो, सुधी! आज प ह दन से तुमसे दो िमनट बैठकर
बात भी न कर सके ।” is
“अब या करना है, च दर! जैसा कह रहे हो वैसा कर तो रही ।ँ अभी कु छ और बाक है
या? बता दो वह भी कर डालूँ। अब तो रो-पीटकर ऊँचा बनना ही है।”
िबनती ने काड समेटे तो सुधा डाँटकर बोली-”रख इसे यह ; चली उठा के ! बड़ी च दर क
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आ ाकारी बनी है। ये भी हमारी जान क गाहक हो गयी अब! हमारे कमरे म लायी ये
सब, तो टाँग तोड़ दूगँ ी! पाजी कह क !”
िबनती ने काड धर दये। नौकर ने आकर कहा, “बाबूजी, कु हार अपना िहसाब माँगता
है!”
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और इस तरह दन बीत रहे थे। शादी नजदीक आती जा रही थी और सभी का सहारा एक-
दूसरे से छू टता जा रहा था। सुधा के मन पर जो कु छ भी धीरे -धीरे मरघट क उदासी क
तरह बैठता जा रहा था और च दर अपने यार से, अपनी मुसकान से, अपने आँसु से धो
&
देने के िलए ाकु ल हो उठा था, ले कन यह जंदगी थी जहाँ यार हार जाता है, मुसकान
हार जाती ह, आँसू हार जाते ह-त तरी, याले, कु हड़, प ल, कालीन, द रयाँ और बाजे
जीत जाते ह। जहाँ अपनी जंदगी क ेरणा-मू त के आँसू िगनने के बजाय कु हड़ और
याले िगनवाकर रखने पड़ते ह और जहाँ कसी आ मा क उदासी को अपने आँसु से
h
धोने के बजाय प ल धुलवाना यादा मह वपूण होता है, जहाँ भावना और अ त के
सारे तूफान सुनार और िबजलीवाल क बात म डू ब जाते ह, और जहाँ दो आँसु म डू बते
ए ि य क पुकार शहनाइय क आवाज म डू ब जाती है और िजस व क आदमी के
is
दय का कण-कण तिव त हो जाता है, िजस व उसक नस म िसतारे टू टते ह, िजस
व उसके माथे पर आग धधकती है, िजस व उसके िसर पर से आसमान और पाँव तले
से धरती हट जाती है, उस समय उसे शादी क सािड़य का मोल-तोल करना पड़ता है और
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बाजे वाले को एडवा स पया देना पड़ता है।
ऐसी थी उस व च दर क जंदगी और उस जंदगी ने अपना च पूरी तरह चला दया
था। करोड़ तूफान घुमड़ाते ए उसे नचा रहे थे। वह एक ण भी कह नह टक पाता था।
एक पल भी उसे चैन नह था, एक पल भी वह यह नह सोच पाता था क उसके चार ओर
En
या हो रहा है? वह बेहोशी म, मूछा म मशीन क तरह काम कर रहा था। आवाज थ क
उसके कान से टकराकर चली जाती थ , आँसू थे क दय को छू नह पाते थे, च उसे
फँ साकर ख चे िलये जा रहा था। िबजली से भी यादा तेज, लय से भी यादा सश वह
खंचा जा रहा था। िसफ एक ओर। शादी का दन। सुधा ने नथुनी पहनी, उसे नह मालूम।
सुधा ने कोरे कपड़े पहने, उसे नह मालूम। सुधा ने चूड़े पहने, उसे नह मालूम। घर म गीत
ए, उसे नह मालूम। सुधा ने चू हा पूजते व अपना िसर पटक दया, उसे नह
s
और उसे होश आया तब, जब िबनती जबरद ती उसका हाथ पकडक़र ख च ले गयी बारात
आने के एक दन पहले। उस छत पर, जहाँ सुधा पड़ी रो रही थी, च दर को ढके लकर चली
आयी।
च दर के सामने सुधा थी। सुधा, िजससे वह पता नह य बचना चाहता था। अपनी
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आ मा के संघष से, अपने अ त:करण के घाव क कसक से घबराकर जैसे कोई आदमी
एका त कमरे से भागकर भीड़ म िमल जाता है, भीड़ के िनरथक शोर म अपने को खो देना
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चाहता है, बाहर के शोर म अ दर का तूफान भुला देना चाहता है; उसी तरह च दर िपछले
ह ते से सब कु छ भूल गया; उसे िसफ एक चीज याद रहती थी-शादी का ब ध। सुबह से
लेकर सोने के व तक वह इतना काम कर डालना चाहता था क उसे एक ण भी बैठने
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का मौका न िमले, और सोने से पहले वह इतना थक जाये, इतना चूर-चूर हो जाये क
लेटते ही न द उसे जकड़ ले और उसे बेहोश कर दे। ले कन उस व िबनती उसे उसके
िव मरण- थल से ख चकर एका त म ले आयी है जहाँ उसक ताकत और उसक कमजोरी,
उसक पिव ता और उसका पाप, उसक मुसकान और उसके आँसू, उसक ितभा और
उसक िव मृित; उसक सुधा अपनी जंदगी के िचर तन मोड़ पर खड़ी अपना सब कु छ
लुटा रही थी। च दर को लगा जैसे उसको अभी च र आ जाएगा। वह अकु लाकर खाट पर
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बैठ गया।
शाम थी, सूरज डू ब रहा था और दन-भर क तपी ई छत पर जलती ई बरसाती के नीचे
एक खरहरी खाट पर सुधा लेटी थी। एक महीन पीली धोती पहने, कोरी मारक न क
कु त , पहने, खे िचकटे ए बाल और नाक म ब त बड़ी-सी नथ। प ह दन के आँसु ने
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चेहरे को जाने कै सा बना दया। न चेहरे पर सुकुमारता थी, न कठोरता। न प था, न
ताजगी। िसफ ऐसा लगता था क जैसा सुधा का सब कु छ लुट चुका है। न के वल यार और
जंदगी लुटी है, वरन आवाज भी लुट गयी है और नीरवता भी। वैभव भी लुट गया और
is
याचना भी।
सुधा ने अपने पीले प ले से आँसू प छे और उठकर बैठ गयी। दोन चुप। पहले कौन बोले!
िबनती आयी, च दर और सुधा का खाना रखकर चली गयी। “खाना खाओगी, सुधा?”
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च दर ने पूछा। सुधा कु छ बोली नह िसफ िसर िहला दया। और डू बते ए सूरज और
उड़ते ए बादल क ओर देखकर जाने या सोचने लगी। च दर ने थाली िखसका दी और
सुधा को अपनी ओर ख चकर बोला, “सुधा, इस तरह कै से काम चलेगा। तु ह को देखकर
तो म अपना धीरज सँभालूँगा, बताओ और तु ह यह कर रही हो!” सुधा च दर के पास
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कराते िबनती भी रोने लगी। और आँसू प छते ए चली गयी।
पापा आये। सुधा चुप हो गयी और कु छ कहा नह , फर रोने लगी। डॉ टर शु ला भराये
गले से बोले, “मुझे यह रोआई अ छी नह लगती। यह भावुकता य ? तुम पढ़ी-िलखी
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लड़क हो। इसी दन के िलए तु ह पढ़ाया-िलखाया गया था! भावुकता से या फायदा?”
कहते-कहते डॉ टर शु ला खुद रोने लगे। “चलो च दर यहाँ से! अभी जनवासा ठीक
करवाना है।” च दर और डॉ टर शु ला दोन उठकर चले गये।
अपनी शादी के पहले, हमेशा के िलए अलग होने से पहले सुधा को इतना ही मौका
िमला...उसके बाद...
सुबह छह बजे गाड़ी आती थी, ले कन खुश क मती से गाड़ी लेट थी; डॉ टर शु ला तथा
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अ य लोग बारात का वागत करने टेशन पर जा रहे थे और च दर घर पर ही रह गया था
जनवासे का इ तजाम करने। जनवासा बगल म था। माथुर साहब के बँगले के दोन हॉल
और कमरा खाली करवा िलये गये थे। च दर सुबह छह ही बजे आ गया था और जनवासे म
सब सामान लगवा दया था। नहाने का पानी और बाक इ तजाम कर वह घर आया।
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जलपान का इ तजाम तो के दार के हाथ म था ले कन कु छ तौिलये िभजवाने थे।
“िबनती, कु छ तौिलये िनकाल दो।” च दर ने िबनती से कहा।
िबनती उद क दाल धो रही थी। उसने फौरन उठकर हाथ धोये और कमरे क ओर चली
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गयी।
“ऐ िबनती...” बुआजी ने भंडारे के अ दर से आवाज लगायी-”जाने कहाँ मर गयी
मुँहझ सी! अरे संगार-पटार बाद म कर िलयो, काम म तिनक दीदा नै लगते। बेसन का
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कन टर कहाँ रखा है?”
“अभी आये!” िबनती ने च दर से कहा और अपनी माँ के पास दौड़ी, प ह िमनट हो गये
ले कन िबनती लौटी ही नह । याह का घर! हर तरफ से िबनती क पुकार मचती और
िबनती पंख लगाये उड़ रही थी। जब िबनती नह लौटी तो च दर ने सुधा को ढु ँढक़र कहा,
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कु छ बोला नह । आँसू बहते गये, सुधा िखलाती गयी, वह खाता गया। सुधा ने िगलास म
पानी दया, उसने हाथ धोया और जेब से माल िनकाला।
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“ य , आज आँचल म हाथ नह प छोगे?” सुधा बोली। च दर ने आँचल हाथ म ले िलया
और पलक पर आँचल दबाकर फू ट-फू टकर रो पड़ा।
“िछः, च दर! आज तो हम सँभल गये ह, हमने सब वीकार कर िलया चुपचाप। अब तुम
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कमजोर मत बनो, तुमने कहा था, म शा त र ँ तो शा त हो गयी। अब य मुझे भी
लाओगे! उठो।” च दर उठ खड़ा आ।
सुधा ने एक पान च दर के मुँह म देकर क था उसक कमीज से लगा दया। च दर कु छ नह
बोला।
“अरे , आज तो लड़ लो, च दर! आज से ख म कर देना।”
इतने म िबनती तौिलया ले आयी। “दीदी, इ ह कु छ िखला दो। ये खा नह रहे ह।” िबनती
&
ने कहा।
“िखला दया।” सुधा बोली, “देखो च दर, आज म नह रोऊँगी ले कन एक शत पर। तुम
बराबर मेरे सामने रहना। मंडप म रहोगे न?”
“हाँ, र ग
ँ ा।” च दर ने आँसू पीते ए कहा।
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“कह चले मत जाना! मेरी आिखरी िबनती है।” सुधा बोली। च दर तौिलया लेकर चला
आया।
चूँ क बारात म कु ल आठ ही लोग थे अत: घर क और माथुर साहब क दो ही कार से
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काम चल गया। जब ये लोग आये तो ना ते का सामान तैयार था और च दर चुपचाप बैठा
था। उसने फौरन सबका सामान लगवाया और सामान रखवाकर वह जा ही रहा था क
कै लाश ने पीछे से क धे पर हाथ रखकर उसे पीछे घुमा िलया और गले से लगकर बोला,
gl
“कहाँ चले कपूर साहब, नम ते! चलो, पहले ना ता करो।” और ख चकर वह च दर को ले
गया। अपने बगल क मेज पर िबठाकर, उसक चाय अपने हाथ से बनायी और बोला,
“कु छ नाराज थे या, कपूर? खत का जवाब य नह देते थे?”
“हम तो बराबर खत का जवाब देते रहे, यार!” कपूर चाय पीते ए बोला।
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और डॉ टर साहब इतना अ छा इनाम दोगे, अपने को बचाने का। हमारे लायक कोई काम
हो तो बताओ!”
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“आपक दुआ है!” च दर ने िसर झुकाकर कहा, और सभी हँस पड़े। इतने म शंकर बाबू
डॉ टर साहब के साथ आये और सब लोग चुप हो गये।
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Hi
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थोड़ा िनि त हो गया। अब सुधा िनभा ले जाएगी। वह मौका िनकालकर घर म गया।
देखा, सुधा को औरत घेरे ए बैठी ह और महावर लगा रही ह। िबनती कन तर म से घी
िनकाल रही थी। च दर गया और िबनती क चोटी घसीटकर बोला, “ओ िगलहरी, घी पी
रही है या?”
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िबनती ने दंग होकर च दर क ओर देखा। आज तक कभी अ छे-भले म तो च दर ने उसे
नह िचढ़ाया था। आज या हो गया? आज जब क िपछले प ह रोज से च दर के होठ
मुसकराना भूल गये ह।
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“आँख फाड़कर या देख रही है? कै लाश ब त अ छा लड़का है, ब त अ छा। अब सुधा
ब त सुखी रहेगी। कतना अ छा होगा, िबनती! हँसती य नह िगलहरी!” और च दर ने
िबनती क बाँह म चुटक काट ली।
gl
“अ छा! हम दीदी समझा है या? अभी बताती ।ँ ” और घी भरे हाथ से च दर क बाँह
पकड़कर िबनती ने जोर से घुमा दी। च दर ने अपने को छु ड़ाया और िबनती को चपत
मारकर गुनगुनाता आ चला गया।
िबनती ने कन तर के मुँह पर लगा घी प छा और मन म बोली, 'देवता और कसे कहते ह?'
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अ त म पापा उसे लेकर मंडप म आये। घर का काम-काज िनबट गया था। सभी लोग आँगन
म बैठे थे। कािमनी, भा, लीला सभी थ , एक ओर बाराती बैठे थे। सुधा शा त थी ले कन
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उसने कहा, “िबनती को हमारे पास भेज दो।” िबनती आकर सुधा के पीछे बैठ गयी।
कै लाश ने आँख के इशारे से च दर को बुलाया। च दर जाकर पीछे बैठा तो कै लाश ने कहा,
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“यार, यहाँ जो लोग खड़े ह इनका प रचय तो बता दो चुपके से!” च दर ने सभी का
प रचय बताया। कािमनी, भा, लीला सभी के बारे म जब च दर बता रहा था तो िबनती
बोली, “बड़े लालची मालूम देते ह आप? एक से स तोष नह है या? वाह रे जीजाजी!”
Hi
कै लाश ने मुसकराकर च दर से पूछा, “इसका याह तय आ क नह ?”
“हो गया।” च दर ने कहा।
“तभी बोलने का अ यास कर रही ह; मंडप म भी इसीिलए बैठी ह या?” कै लाश ने कहा।
िबनती झप गयी और उठकर चली गयी।
सं कार शु आ। कै लाश के हाथ म ना रयल और उसक मु ी पर सुधा के दोन हाथ।
सुधा अब चुप थी। इतनी चुप...इतनी चुप क लगता था उसके होठ ने कभी बोलना जाना
&
ही नह । सं कार के दौरान ही पार प रक वचन का समय आया। कै लाश ने सभी ित ाएँ
वयं कह । शंकरबाबू ने कहा, लड़क भी िशि त है और उसे भी वयं वचन करने ह गे।
सुधा ने िसर िहला दया। एक अस तोष क लहर-सी बाराितय म फै ल गयी। च दर ने
िबनती को बुलाया। उसके कान म कहा, “जाकर सुधा से कह दो क पागलपन नह करते।
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इससे या फायदा?” िबनती ने जाकर ब त धीरे से सुधा के कान म कहा। सुधा ने िसर
उठाकर देखा। सामने बरामदे क सी ढय़ पर च दर बैठा आ बड़ा िचि तत-सा कभी
शंकरबाबू क ओर देखता और कभी सुधा क ओर। सुधा से उसक िनगाह िमली और वह
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िसहर-सा उठा, सुधा ण-भर उसक ओर देखती रही। च दर ने जाने या कहा और सुधा
ने आँख -ही-आँख म उसे या जवाब दे दया। उसके बाद सुधा नीचे रखे ए पूजा के
ना रयल पर लगे ए िस दूर को देखती रही फर एक बार च दर क ओर देखा। िविच -
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सी थी वह िनगाह, िजसम कातरता नह थी, क णा नह थी, आँसू नह थे, कमजोरी नह
थी, था एक ग भीरतम िव ास, एक उपमाहीन ेह, एक स पूणतम समपण। लगा, जैसे
वह कह रही हो-सचमुच तुम कह रहे हो, फर सोच लो च दर...इतने दृढ़ हो...इतने कठोर
हो...मुझसे मुँह से य कहलवाना चाहते हो... या सारा सुख लूटकर थोड़ी-सी आ मवंचना
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भी मेरे पास नह छोड़ोगे?...अ छा लो, मेरे देवता! और उसने हारकर िसस कय से सने
वर म अपने को कै लाश को सम पत कर दया। ित ाएँ दोहरा द और उसके बाद साड़ी
का एक छोर ख चकर, नथ क डोरी ठीक करने के बहाने उसने आँसू प छ िलये।
च दर ने एक गहरी साँस ली और बगल म बैठी ई बुआजी से कहा, “बुआजी, अब तो बैठा
नह जाता। आँख म जैसे कसी ने िमच भर दी हो।”
“जाओ...जाओ, सोय रहो ऊपर, खाट िबछी है। कल सुबह दस बजे िवदा करे को है। कु छ
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च दर...अब... या...होगा?”
च दर क आँख म आँसू आ गये, वह फू ट पड़ा और िबनती को एक डू बते ए सहारे क
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तरह पकडक़र उसक माँग पर मुँह रखकर फू ट-फू टकर रो पड़ा। ले कन फर भी सँभल
गया और िबनती का माथा सहलाते ए और अपनी िसस कय को रोकते ए कहा, “रो
मत पगली!”
Hi
धीरे -धीरे िबनती चुप ई। और खाट के पास नीचे छत पर बैठ गयी और च दर के घुटन
पर हाथ रखकर बोली, “च दर, तुम आना मत छोड़ना। तुम इसी तरह आते रहना! जब
तक दीदी ससुराल से लौट न आएँ।”
“अ छा!” च दर ने िबनती क पीठ पर हाथ रखकर कहा, “घबराते नह । तुम तो बहादुर
लड़क हो न! सब चीज बहादुरी से सहना चािहए। कै सी दीदी क बहन हो? य ?”
िबनती उठकर नीचे चली गयी।
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च दर लेट रहा। उसक पोर-पोर म दद हो रहा था। नस-नस को जैसे कोई तोड़ रहा हो,
ख च रहा हो। हि य के रे शे-रे शे म थकान िमल गयी थी ले कन उसे न द नही आयी।
आँगन म पुरोिहतजी के मं -पाठ का वर और बीच-बीच म आने वाले कसी बाराती या
औरत क आवाज उसके मन को अ त- त कर देती थ । उसक थकान और उसक
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अशाि त ही उसको बार-बार झटके से जगा देती थी। वह करवट बदलता, कभी ऊपर
देखता, कभी आँख ब द कर लेता क शायद न द आ जाए ले कन न द नह ही आयी। धीरे -
धीरे नीचे का रव भी शा त हो गया। सं कार भी समा आ। बाराती उठकर चलने लगे
is
और वह आवाज से यह पहचानने क कोिशश करने लगा क अब कौन या कर रहा है।
धीरे -धीरे सब शोर शा त हो गया।
च दर ने फर करवट बदली और आँख ब द कर ली। धीरे -धीरे एक कोहरा उसके मन पर
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छा गया। वह इतना जागा क अब अगर वह आँख भी ब द करता तो जब पलक पुतिलय
से छा जात तो एक ब त कड़आ दद होने लगा था। जैसे-तैसे उसक थोड़ी-सी आँख
लगी...
कसी ने सहसा जगा दया। पलक ब द करने म िजतना दद आ था उतना ही पलक
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हाथ जोड़े और झुककर च दर के पैर पर माथा टेक दया। च दर ने उसके िसर पर हाथ
रखकर कहा, “ई र तु हारा सुहाग अटल करे ! तुम ब त महान हो। मुझे तुम पर आज से
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नह , तुम जो कु छ दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दंड तो अब भगवान भी नह दे सकगे?” सुधा
ने च दर के पाँव पर फू ल रखकर उ ह चूम िलया और अपनी कलाई म बँधी ई एक
पुिड़या खोलकर उसम से थोड़ा-सा िस दूर उन फू ल पर िछडक़कर, च दर के पाँव पर
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िसर रखकर चुपचाप रोती रही।
थोड़ी देर बाद उठी और उन फू ल को समेटा। अपने आँचल के छोर म उ ह बाँध िलया और
उठकर चली...धीमे-धीमे िन:श द...
“कहाँ चली, सुधा?” च दर ने सुधा का हाथ पकड़ िलया।
“कह नह !” अपना हाथ छु ड़ाते ए सुधा ने कहा।
“नह -नह , सुधा, लाओ ये हम रखगे!” च दर ने सुधा को रोकते ए कहा।
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“बेकार है, च दर! कल तक, परस तक ये जूठे हो जाएँगे, देवता मेरे!” और सुधा िससकते
ए चली गयी।
एक चमकदार िसतारा टू टा और पूरे आकाश पर फसलते ए जाने कस ि ितज म खो
गया।
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दूसरे दन आठ बजे तक सारा सामान टेशन प च ँ गया था। शंकर बाबू और डॉ टर साहब
पहले ही टेशन प च ँ गये थे। बाराती भी सब वह चले गये थे। कै लाश और सुधा को
टेशन तक लाने का िज मा च दर पर था। ब त ज दी करते-कराते भी सवा नौ बजे गये
&
थे। उसने फर जाकर कहा। कै लाश और सुधा खड़े ए थे। पीछे से नाइन सुधा के िसर पर
पंखा रखी थी और बुआजी रोचना कर रही थ । च दर के ज दी मचाने पर अ त म उ ह
फु रसत िमली और वह आगे बढ़े। मोटर पर सुधा ने य ही पाँव रखा क िबनती पाँव से
िलपट गयी और रोने लगी। सुधा जोर से िबलख-िबलखकर रो पड़ी। च दर ने िबनती को
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छु ड़ाया। सुधा पीछे बैठकर िखड़क पर मुँह रखकर िससकती रही। मोटर चल दी। सुधा
मुडक़र अपने घर क ओर देख रही थी। िबनती ने हाथ जोड़े तो सुधा चीखकर रो पड़ी।
फर चुप हो गयी।
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टेशन पर भी सुधा िब कु ल शा त रही। सुधा और कै लाश के िलए सेकड लास म एक बथ
सुरि त थी। बाक लोग ोढ़े म थे। शंकर बाबू ने दोन को उस िड बे म प च ँ ाया और
बोले, “कै लाश, तुम जरा हमारे साथ आओ। िम टर कपूर, जरा ब के पास आप रिहए। म
gl
डॉ टर साहब को यहाँ भेज रहा ।ँ ”
च दर िखडक़ के पास खड़ा हो गया। शंकर बाबू का छोटा ब ा आकर अपनी नयी चाची
के पास बैठ गया और उनक रे शमी चादर से खेलने लगा। च दर चुपचाप खड़ा था।
सहसा सुधा ने उसके हाथ पर अपना मेहद ँ ी लगा हाथ रख दया और धीमे से कहा,
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“च दर!” च दर ने मुडक़र देखा तो बोली, “अब कु छ सोचो मत। इधर देखो!” और सुधा ने
जाने कतने दुलार से च दर से कहा, “देखो, िबनती का यान रखना। उसे तु हारे ही
भरोसे छोड़ रही ँ और सुनो, पापा को रात को सोते व दूध म ओव टीन ज र दे देना।
खाने-पीने म गड़बड़ी मत करना, यह मत समझना क सुधा मर गयी तो फर िबना दूध क
चाय पीने लगो। हम ज दी से आ जाएँगे। प मी का कोई खत आये तो हम िलखना।”
इतने म डॉ टर साहब और कै लाश आ गये। कै लाश क पाटमट के बाथ म म चला गया।
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डॉ टर साहब आये और सुधा के िसर पर हाथ रखकर बोले, “बेटा! आज तेरी माँ होती तो
कतना अ छा होता। और देख, महीने-भर म बुला लगे तुझे! वहाँ घबराना मत।”
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सुधा बोली, “पापा, तु हारा ओव टीन का िड बा शीशे वाली मेज पर है। उसे पी िलया
करना और पापा, िबनती को गाँव मत भेजना। च दर को अब घर पर ही बुला लो। तुम
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अके ले पड़ गये! और हम ज दी बुला लेना...”
गाड ने सीटी दी। कै लाश ने ज दी से डॉ टर साहब के पैर छु ए। च दर से हाथ िमला िलया।
सुधा बोली, “च दर, ये पुजा िबनती को देना और देखो मेरा नतीजा िनकले तो तार देना।”
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गाड़ी चल पड़ी। “अ छा पापा, अ छा च दर...” सुधा ने हाथ जोड़े और िखडक़ पर
टककर रोने लगी। और बार-बार आँसू प छ-प छकर देखने लगी।...
गाड़ी लेटफाम के बाहर चली गयी तब च दर मुड़ा। उसके बदन म पोर-पोर म दद हो रहा
था। वह कै से घर पर प चँ ा उसे मालूम नह ।
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ि तीय ख ड
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च दर को ह ते-भर तक होश नह रहा। शादी के दन म उसे एक नशा था िजसके बल पर
वह मशीन क तरह काम करता गया। शादी के बाद इतनी भयंकर थकावट उसक नस म
कसक उठी क उसका चलना- फरना मुि कल हो गया था। वह अपने घर से होटल तक
h
खाना खाने नह जा पाता था। बस पड़ा-पड़ा सोता रहता। सुबह नौ बजे सोता; पाँच बजे
उठता; थोड़ी देर होटल म बैठकर फर वापस आ जाता। चुपचाप छत पर लेटा रहता और
is
फर सो जाता। उसका मन एक उजड़े ए नीड़ क तरह था िजसम से िवचार, अनुभूित,
प दन और रस के िवहंगम कह दूर उड़ गये थे। लगता था, जैसे वह सब कु छ भूल गया है।
सुधा, िबनती, प मी, डॉ टर साहब, रसच, थीिसस, सभी कु छ! ये सब चीज कभी-कभी
उसके मन म नाच जात ले कन च दर को ऐसा लगता क ये कसी ऐसी दुिनया क चीज
gl
ह िजसको वह भूल गया है, जो उसके मृित-पटल से िमट चुक है, कोई ऐसी दुिनया जो
कभी थी, कह थी, ले कन कसी भयंकर जल लय ने िजसका कण-कण व त कर दया
था। उसक दुिनया अपनी छत तक सीिमत थी, छत के चार ओर क ऊँची दीवार और
En
गयी हो। उ ह ने च दर का वागत भी उस तरह नह कया जैसे पहले करते थे। िसफ
इतना बोले, “च दर, दो दफे ाइवर को भेजकर बुलाया तो मालूम आ तुम सो रहे हो।
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अब अपना सामान यह ले आओ।” और वे बैठकर कताब उलट-पलट कर देखने लगे। अभी
तक वे बूढ़े थे, उनका ि व त ण था। आज लगता था जैसे उनके ि व पर झु रयाँ
पडऩे लगी ह, उनके ि व क कमर भी झुक गयी है। च दर कु छ नह बोला। चुपचाप
Hi
खड़ा रहा। सामने आकाश पर एक अजब-सी जद छा रही थी। डॉ टर साहब ने कताब
ब द क और बोले, “सुना है...कॉलेज के ि ि सपल आ गये ह। जाऊँ जरा उनसे तु हारे बारे
म बात कर आऊँ। तुम जाओ, सुधा का खत आया है िबनती के पास।”
“बुआजी ह?” च दर ने पूछा।
“नह , आज ही सुबह तो गय । हम लोग कतना रोकते रहे ले कन उ ह कह और चैन ही
नह पड़ता। िबनती को बड़ी मुि कल से रोका मने।” और डॉ टर साहब गैरेज क ओर चल
&
पड़े।
च दर भीतर गया। सारा घर इतना सुनसान था, इतना भयंकर स ाटा क च दर के रोएँ-
रोएँ खड़े हो गये। शायद मौत के बाद का घर भी इतना नीरव और इतना भयानक न
लगता होगा िजतना यह शादी के बाद का घर। िसफ रसोई से कु छ खटपट क आवाज आ
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रही थी। “िबनती!” च दर ने पुकारा। िबनती चौके म थी। वह िनकल आयी। िबनती को
देखते ही च दर दंग हो गया। वह लड़क इतनी दुबली हो गयी थी क जैसे बीमार हो। रो-
रोकर उसक आँख सूज गयी थ और होठ मोटे पड़ गये थे। च दर को देखते ही उसने
is
कड़ाही उतारकर नीचे रख दी और िबखरी ई लट सुधारकर, आँचल ठीक कर बाहर
िनकल आयी। कमरे से ख चकर एक चौक आँगन म डालकर च दर से ब त उदास वर म
बोली, “बै ठए!”
gl
“घर कतना सूना लग रहा है िबनती, तुम अके ले कै से रहती होगी?” च दर ने कहा।
िबनती क आँख म आँसू छलछला आये।
“िबनती, रोती य हो? िछः! मुझे देखो। म कै से प थर बन गया ।ँ य ? तुम तो इतनी
अ छी लड़क हो।” च दर ने िबनती के क धे पर हाथ रखकर कहा।
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“िछः, ऐसी बात नह करते, िबनती! महीने-भर म सुधा आ जाएगी। और माँ क बात का
या बुरा मानना?”
“आप लड़क होते तो समझते, च दर बाबू!” िबनती बोली और जाकर एक त तरी म
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ना ता ले आयी, “लो, दीदी कह गयी थ क च दर के खाने-पीने का खयाल रखना ले कन
यह कसको मालूम था क दीदी के जाते ही च दर गैर हो जाएँगे।”
“नह िबनती, तुम गलत समझ रही हो। जाने य एक अजीब-सी िख ता मन म आ गयी
थी। कु छ करने क तबीयत ही नह होती थी। आज कु छ तबीयत ठीक ई तो सबसे पहले
तु हारे ही पास आया। िबनती! अब सुधा के बाद मेरा है ही कौन, िसवा तु हारे ?” च दर ने
ब त उदास वर म कहा।
&
“तभी न! उस दन म बुलाती रह गयी और आप यह गये, वह गये और आँख से ओझल! मने
तो उसी दन समझ िलया था क अब पुराने च दर बाबू बदल गये।” िबनती ने रोते ए
कहा।
च दर का मन भर आया था, गले म आँसू अटक रहे थे ले कन आदमी क जंदगी भी कै सी
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अजब होती है। वह रो भी नह सकता था, माथे पर दुख क रे खा भी झलकने नह दे
सकता था, इसिलए क सामने कोई ऐसा था, जो खुद दुखी था और सुधा क थाती होने के
नाते िबनती को समझाना उसका पहला कत था। िबनती के आँसू रोकने के िलए वह खुद
is
अपने आँसू पी गया और िबनती से बोला, “लो, कु छ तुम भी खाओ।” िबनती ने मना कया
तो उसने अपने हाथ से िबनती को िखला दया। िबनती चुपचाप खाती रही और रह-
रहकर आँसू प छती रही।
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इतने म महरािजन आयी। िबनती ने चौके के काम समझा दये और च दर से बोली,
“चिलए, ऊपर चल।” च दर ने चार ओर देखा। घर का स ाटा वैसा ही था। सहसा उसके
मन म एक अजीब-सी बात आयी। सुधा के साथ कभी भी कह भी वह जा सकता था,
ले कन िबनती के साथ छत पर अके ले जाने म य उसके अ त:करण ने गवाही नह दी।
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वह चुपचाप बैठा रहा। िबनती कु छ भी हो, कतनी ही समीप य न हो, िबनती सुधा नह
थी, सुधा नह हो सकती थी। “नह , यह ठीक है।” च दर बोला।
िबनती गयी। सुधा का प ले आयी। च दर का मन जाने कै सा होने लगा। लगता था जैसे
अब आँसू नह कगे। उसके मन म िसफ इतना आया क अभी बह र घंटे पहले सुधा यह
थी, इस घर क ाण थी; आज लगता है जैसे इस घर म सुधा थी ही नह ...
आँगन म अँधेरा होने लगा था। वह उठकर सुधा के कमरे के सामने पड़ी ई कोच पर बैठ
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जहाँ दन म चौबीस घंटे तुम आँख के सामने रहते थे, वहाँ अब तु हारे बारे म एक श द
सुनने के िलए तड़प उठती ।ँ कई दफे तबीयत आती है क जैसे िबनती से तु हारे बारे म
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बात करती थी वैसे ही इनसे (तु हारे िम से) तु हारे बारे म बात क ँ ले कन ये तो जाने
कै सी-कै सी बात करते ह।
और सब ठीक है। यहाँ ब त आजादी है मुझे। माँजी भी ब त अ छी ह। परदा िब कु ल नह
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करत । अपने पूजा के सारे बरतन पहले ही दन हमसे मँजवाये।
देखो, पापा का यान रखना। और िबनती को जैसे म छोड़ आयी ँ उतनी ही मोटी रहे। म
महीने-भर बाद आकर तु ह से िबनती को वापस लूँगी, समझे? यह न करना क म न र ँ
तो मेरे बजाय िबनती को ला- लाकर, कु ढ़ा-कु ढ़ाकर मार डालो, जैसी तु हारी आदत है।
चाय यादा मत पीना-खत का जवाब फौरन!
तु हारी-सुधा।”
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च दर ने िच ी एक बार फर पढ़ी, दो बार पढ़ी, और बार-बार पढ़ता गया। हलके हरे
कागज पर छोटे-छोटे काले अ र जाने कै से लग रहे थे। जाने या कह रहे थे, छोटे-छोटे
अथात कु छ उनम अथ था जो श द से भी यादा ग भीर था। युग पहले वैयाकरण ने उन
श द के जो अथ िनि त कये थे, सुधा क कलम से जैसे उन श द को एक नया अथ िमल
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गया था। च दर बेसुध-सा त मय होकर उस खत को बार-बार पढ़ता गया और कस समय
वे छोटे-छोटे नादान अ र उसके दय के चार ओर कवच-जैसे बौि कता और स तुलन के
लौह प को चीरकर अ दर बंध गये और दय क धड़कन को मरोडऩा शु कर दया,
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यह च दर को खुद नह मालूम आ जब तक क उसक पलक से एक गरम आँसू खत पर
नह टपक पड़ा। ले कन उसने िबनती से वह आँसू िछपा िलया और खत मोड़क़र िबनती को
दे दया। िबनती ने खत लेकर रख िलया और बोली, “अब चिलए खाना खा लीिजए!”
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च दर इनकार नह कर सका।
महरािजन ने थाली लगायी और बोली, “भइया, नीचे अबिहन आँगन धोवा जाई, आप
जाय के ऊपर खाय लेव।”
च दर को मजबूरन ऊपर जाना पड़ा। िबनती ने खाट िबछा दी। एक टू ल डाल दया।
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पानी रख दया और नीचे थाली लाने चली गयी। च दर का मन भारी हो गया था। यह
वही जगह है, वही खाट है िजस पर शादी क रात वह सोया था। इसी के पैताने सुधा
आकर बैठी थी अपने नये सुहाग म िलपटी ई-सी। यही पर सुधा के आँसू िगरे थे...।
िबनती थाली लेकर आयी और नीचे बैठकर पंखा करने लगी।
“हमारी तबीयत तो है ही नह खाने क , िबनती!” च दर ने भराये ए वर म कहा।
“अरे , िबना खाये-पीये कै से काम चलेगा? और फर आप ऐसा करगे तो हमारी या हालत
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होगी? दीदी के बाद और कौन सहारा है! खाइए!” और िबनती ने अपने हाथ से एक कौर
बनाकर च दर को िखला दया! च दर खाने लगा। च दर चुप था, वह जाने या सोच रहा
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च दर एक फ क मुसकान के साथ बोला, “िबनती! अब तुम इतना यान न रखा करो! तुम
समझती नह , बाद म कतनी तकलीफ होती है। सुधा ने या कर दया है यह वह खुद नह
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समझती!”
“कौन नह समझता!” िबनती एक गहरी साँस लेकर बोली, “दीदी नह समझती या हम
नह समझते! सब समझते ह ले कन जाने मन कै सा पागल है क सब कु छ समझकर धोखा
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खाता है। अरे दही तो आपने खाया ही नह ।” वह पूड़ी लाने चली गयी।
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और इस तरह दन कटने लगे। जब आदमी अपने हाथ से आँसू मोल लेता है, अपने-आप दद
का सौदा करता है, तब दद और आँसू तकलीफ-देह नह लगते। और जब कोई ऐसा हो जो
आपके दद के आधार पर आपको देवता बनाने के िलए तैयार हो और आपके एक-एक आँसू
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पर अपने सौ-सौ आँसू िबखेर दे, तब तो कभी-कभी तकलीफ भी भली मालूम देने लगती
है। ले कन फर भी च दर के दन कै से कट रहे थे यह वही जानता था। ले कन अकबर के
महल म जलते ए दीपक को देखकर अगर कसी ने जाड़े क रात जमुना के घुटन -घुटन
पानी म खड़े होकर काट दी, तो च दर अगर सुधा के यारे - यारे खत के सहारे समय काट
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रहा था तो कोई ता ुब नह । अपने अ ययन म ौढ़, अपने िवचार म उदार होने के
बावजूद च दर अपने वभाव म ब ा था, िजससे जंदगी कु छ भी करवा सकती थी बशत
जंदगी को यह आता हो क इस भोले-भाले ब े को कै से बहलावा दया जाये।
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बहलावे के िलए मुसकान ही ज री नह होती ह, शायद आँसु से मन ज दी बहल जाता
है। िबनती के आँसु म च दर सुधा क तसवीर देखता था और बहल जाता था। वह रोज
शाम को आता और िबनती से सुधा क बात करता, जाने कतनी बात, जाने कै सी बात और
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िबनती के मा यम से सुधा म डू बकर चला आता था। चूँ क सुधा के िबना उसका दन कटना
मुि कल था, एक ण कटना मुि कल था इसिलए िबनती उसक एक ज रत बन गयी थी।
वह जब तक िबनती से सुधा क बात नह कर लेता था, तब तक जैसे वह बेचैन रहता था,
तब तक उसक कसी काम म तबीयत नह लगती थी।
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िबनती को इस तरह अपनी साँस क छाँह म दुबकाये रहा जैसे िबनती सुधा का पश हो,
सुधा का यार हो।
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था, िबनती के पास भी नह जाता था, िबनती के आँसु क भी परवाह नह करता था।
खाना नह खाता था, और अपने को िजतनी तकलीफ हो सकती थी, देता था। फर य ही
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सुधा का कोई खत आता था, वह उसे चूम लेता और फर व थ हो जाता था। िबनती चाहे
िजतना करे ले कन च दर क इन भयंकर उदासी क लहर को च दर से छीन नह पायी
थी। चाँद कतनी कोिशश य न करे , वह रात को दन नह बना सकता।
Hi
ले कन आदमी हँसता है, दुख-दद सभी म आदमी हँसता है। जैसे हँसते-हँसते आदमी क
स ता थक जाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदमी क उदासी थक जाती है और
आदमी करवट बदलता है। ता क हँसी क छाँह म कु छ िव ाम कर फर वह आँसु क
कड़ी धूप म चल सके ।
ऐसी ही एक सुबह थी जब क च दर के उदास मन म आ रहा था क वह थोड़ी देर हँस भी
ले। बात य ई थी क उसे शेली क एक किवता ब त पस द आयी थी िजसम शैली ने
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भारतीय मलयज को स बोिधत कया है। उसने अपना शेली-क स का थ उठाया और
उसे खोला तो वही आम के अचार के दाग सामने पड़ गये जो सुधा ने शरारतन डाल दये
थे। बस वह शेली क किवता तो भूल गया और उसे याद आ गयी आम क फाँक और सुधा
क शरारत से भरी शोख आँख। फर तो एक के बाद दूसरी शरारत ाण म उठ-उठकर
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च दर क नस को गुदगुदाने लगी और च दर उस दन जाने य हँसने के िलए ाकु ल हो
उठा। उसे ऐसा लगा जैसे सुधा क यह दूरी, यह अलगाव सभी कु छ झूठ है। सच तो वे
सुनहले दन थे जो सुधा क शरारत से मुसकराते थे, सुधा के दुलार म जगमगाते थे। और
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कु छ भी हो जाये, सुधा उसके जीवन का एक ऐसा अमर स य है जो कभी भी डगमगा नह
सकता। अगर वह उदास होता है, दु:खी होता है तो वह गलत है। वह अपने ही आदश को
झूठा बना रहा है, अपने ही सपने का अपमान कर रहा है। और उसी दन सुधा का खत भी
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आया िजसम सुधा ने साफ-साफ तो नह पर इशारे से िलखा था क वह च दर के भरोसे ही
कसी तरह दन काट रही थी। उसने सुधा को एक प िलखा, िजसम वही शरारत, वही
िखझाने क बात थ जो वह हमेशा सुधा से करता था ले कन िजसे वह िपछले तीन महीने
म भूल गया था।
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क धे से फर सूई चुभोकर कहा, “आपको एक बड़े मजे क बात बतानी है आज!”
“ या?”
“ फर हँिसएगा मत! और िचढ़ाइएगा नह !” िबनती बोली।
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“कु छ तेरे याह क बात होगी!” च दर ने कहा।
“नह , याह क नह , ेम क !” िबनती ने हँसकर कहा और झप गयी।
“अ छा, िगलहरी को यह रोग कब सेï?” च दर ने हँसकर पूछा, “अपनी माँजी क शकल
देखी है न, काटकर कु एँ म फक दगी तुझे!”
“अब या कर, कोई िसर पर ेम मढ़ ही दे तो!” िबनती ने बड़े आ मिव ास से कहा। थी
बड़ी खुले वभाव क लड़क ।
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“आिखर कौन अभागा है वह! जरा नाम तो सुन।” च दर बोला।
“हमारे महाकिव मा टर साहब।” िबनती ने हँसकर कहा।
“अ छा, यह कब से! तूने पहले तो कभी बताया नह ।”
“अब तो जाकर हम मालूम आ। पहले सोचा दीदी को िलख द। फर कहा वहाँ जाने
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कसके हाथ म िच ी पड़े। तो सोचा तु ह बता द!”
“ आ या आिखर?” च दर ने पूछा।
“बात यह ई क पहले तो हम दीदी के साथ पढ़ते थे तब तो मा टर साहब कु छ नह
is
बोलते थे, इधर जबसे हम अके ले पढऩे लगे तब से किवताएँ समझाने के बहाने दुिनया-भर
क बात करते रहे। एक बार क दगु पढ़ाते-पढ़ाते बड़ी ठं डी साँस लेकर बोले, काश क
आप भी देवसेना बन सकत । बड़ा गु सा आया मुझे। मन म आया कह दूँ क म तो देवसेना
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बन जाती ले कन आप अपना किव स मेलन का पेशा छोड़कर क दगु कै से बन पाएँगे।
ले कन फर मने कु छ कहा नह । दीदी से सब बात कह दी। दीदी तो ह ही लापरवाह। कु छ
कहा ही नह उ ह ने। और मा टर साहब वैसे अ छे ह, पढ़ाते भी अ छा ह, ले कन यह
फतूर जाने कै से उनके दमाग म चढ़ गया।” िबनती बड़े सहज वभाव से बोली।
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“अरे हाँ, मुसलमान भी हो तो बेहना के संग! किवय से यार लगाकर कौन बवालत
पाले!” िबनती ने झपते ए कहा।
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दूसरे दन सुबह प च ँ ा तो िबस रया साहब पढ़ा रहे थे। िबस रया क श ल पर कु छ
मायूसी, कु छ परे शानी, कु छ िच ता थी। उसको िबनती ने बता दया क सं ह च दर के
पास प च ँ गया है। च दर को देखते ही वह बोला, “अरे कपूर, या हाल है?” और उसके
&
बाद अपने को िनद ष बताने के िलए फौरन बोला, “कहो, हमारा सं ह देखा है?”
“हाँ देखा है, जरा आप इ ह पढ़ा लीिजए। आपसे कु छ ज री बात करनी ह।” च दर ने
इतने कठोर वर म कहा क िबस रया के दल क धडक़न डू बने-सी लग । वह काँपती ई
आवाज म ब त मुि कल से अपने को स हालते ए बोला, “कै सी बात? कपूर, तुम कु छ
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गलत समझ रहे हो।”
कपूर एक उपे ा क हँसी हँसा और चला गया। डॉ टर साहब पूजा करके उठे थे। दोन म
बात होती रह । उनसे मालूम आ क अगले महीने म स भवत: च दर क िनयुि हो
is
जाएगी और तीन दन बाद डॉ टर साहब खुद सुधा को लाने के िलए शाहजहाँपुर जाएँगे।
उ ह ने बुआजी को प िलखा है क य द वह आ जाएँ तो अ छा है, वरना च दर को दो-
तीन दन बाद यह रहना पड़ेगा य क िबनती अके ली है। च दर क बात दूसरी है ले कन
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और लोग के भरोसे डॉ टर साहब िबनती को अके ले नह छोड़ सकते।
अिव ास आदमी क वृि य को िजतना िबगाड़ता है, िव ास आदमी को उतना ही
बनाता है। डॉ टर साहब च दर पर िजतना िव ास करते थे, सुधा च दर पर िजतना
िव ास करती थी और इधर िबनती उस पर िजतना िव ास करने लगी थी उसके कारण
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िबस रया ने अपने गले क टाई ठीक क , वह गरमी म भी टाई लगाता था, और दन म
नाइट कै प पहनता था। टाई ठीक कर, खँखारकर बोला, “म भी यही समझता था क
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आपको यह गलत-फहमी होगी। ले कन वा तिवक बात यह है क मुझे म यकाल क
किवता ब त पस द है, खासतौर म उसम िबनती ( ाथना) श द बड़ा मधुर है। मने यह
सं ह तो ब त पहले तैयार कया था। मुझे बड़ा ता ुब आ जब म िबनती से िमला। मने
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उनसे कहा क यह सं ह भी िबनती नाम का है। फर मने उ ह लाकर दखला दया।”
च दर मुसकराया और मन-ही-मन कहा, 'है िबस रया ब त चालाक। ले कन खैर म हार
नह मान सकता।' और ब त ग भीर होकर बैठ गया।
“तो यह सं ह इस लड़क के नाम पर नह है?”
“िब कु ल नह ।”
“और िबनती के िलए आपके मन म कह कोई आकषण नह ?”
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“िब कु ल नह । िछः, आप मुझे या समझते ह।” िबस रया बोला।
“िछः, म भी कै सा आदमी ,ँ माफ करना िबस रया! मने थ म शक कया।”
िबस रया यह नह जानता था क यह दाँव इतना सफल होगा। वह खुशी से फू ल उठा।
सहसा च दर ने एक गहरी साँस ली।
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“ या बात है च दर बाबू?” िबस रया ने पूछा।
“कु छ नह िबस रया, आज तक मुझे तु हारी ितभा, तु हारी भावना, तु हारी कला पर
िव ास था, आज से उठ गया।” is
“ य ?”
“ य या? अगर िबनती-जैसी लड़क के साथ रहकर भी तुम उसके आ त रक सौ दय से
अपनी कला को अिभ संिचत न कर सके तो तु हारे मन म कला मकता है; यह म िव ास
gl
नह कर पाता। तुम जानते हो, म पुराने िवचार का संक ण, बड़ा बुजुग तो ँ नह , म भी
भावना को समझता ।ँ म सौ दय-पूजा या यार को पाप नह समझता और मुझे तो
ब त खुशी होती यह जानकर क तुमने ये किवताएँ िबनती पर िलखी ह, उसक ेरणा से
िलखी ह। यह मत समझना क मुझे इससे जरा भी बुरा लगता। यह तो कला का स य है।
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प रवार को जान जाएगी। ले कन खैर, मने गलत समझा था क िबनती तु हारी ेरणा-
िब दु थी।” और च दर चुपचाप ग भीरता से िबस रया के सं ह के पृ उलटने लगा।
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िबनती म क एक किवता भी नह िलख पाया। मेरा सं ह छपने जा रहा था तो मने सोचा
क इसका नाम ही य न 'िबनती' रखूँ।”
च दर ने बड़ी मुि कल से अपनी हँसी रोक । दरवाजे के पास िछपी खड़ी ई िबनती
Hi
िखलिखलाकर हँस पड़ी। च दर बोला, “नाम तो 'िबनती' ब त अ छा सोचा तुमने, ले कन
िसफ एक बात है। मेरे जैसे िवचार के लोग सभी नह होते। अगर घर के और लोग को यह
मालूम हो गया, मसलन डॉ टर साहब को, तो वह न जाने या कर डालगे। इन लोग को
किवता और उसक ेरणा का मह व ही नह मालूम। उस हालत म अगर तु हारी ब त
बेइ ती ई तो न हम कु छ बोल पाएँगे न िबनती। डॉ टर साहब पुिलस को स प द, यह
अ छा नह लगता। वैसे मेरी राय है क तुम िबनती ही नाम रखो; बड़ा नया नाम है;
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ले कन यह समझ लो क डॉ टर साहब ब त स त ह इस मामले म।”
िबस रया क समझ म नह आता था क वह या करे । थोड़ी देर तक िसर खुजलाता रहा,
फर बोला, “ या राय है कपूर, तु हारी? अगर म कोई दूसरा नाम रख दूँ तो कै सा
रहेगा?”
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“ब त अ छा रहेगा और सुरि त रहेगा। अभी अगर तुम बदनाम हो गये तो आगे तु हारी
उ ित के सभी माग ब द हो जाएँगे। आदमी ेम करे मगर जरा सोच-समझकर; म तो इस
प म ।ँ ” is
“भावना को कोई नह समझता इस दुिनया म। कोई नह समझता, हम कलाकार क
कतनी मुसीबत है।” एक गहरी साँस लेकर िबस रया बोला, “ले कन खैर! अ छा तो
कपूर, या राय है तु हारी? म या नाम रखूँ इसका?”
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च दर ग भीरता से िसर झुकाये थोड़ी देर तक सोचता रहा। फर बोला, “तु हारी
किवता म ब त रस है। कै सा रहे अगर तुम इसका नाम 'गड़े रयाँ' रखो!”
“ या?” िबस रया ता ुब से बोला।
“हाँ-हाँ गड़े रयाँ, मेरा मतलब है ग े क गड़े रयाँ!” दरवाजे के पीछे िबनती से न रहा गया
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“तो मुँह फे रकर पढ़ा दीिजएगा।” च दर बोला। िबनती फर हँस पड़ी। िबस रया ने मुडक़र
बड़े गु से से देखा और पैर पटकते ए चला गया।
“बेचारे किव, कलाकार आज क दुिनया म यार भी नह कर पाते।” च दर ने कहा और
दोन क हँसी ब त देर तक गूँजती रही।
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सुधा को िलवाने के िलए शाहजहाँपुर गये थे। िबनती भी िजद करके उनके साथ गयी थी।
वहाँ से ये लोग द ली घूमने के िलए चले गये थे ले कन आज प ह रोज हो गये उन लोग
का कोई भी खत नह आया था। डॉ टर साहब ने यूरो को महज एक अज भेज दी थी।
च दर को डॉ टर साहब के जाने के पहले ही कॉलेज म जगह िमल गयी थी और उसने
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लास लेने शु कर दये थे। वह अब इसी बँगले म आ गया था। सुबह तो लास के पाठ
क तैयारी करने और नो स बनाने म कट जाती थी, दोपहर कॉलेज म कट जाती थी ले कन
शाम बड़ी उदास गुजरती थ और फर प ह दन से सुधा का कोई भी खत नह आया।
वह उदास बैठा सोच रहा था।
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ले कन यह उदासी थी, दुख नह था। और वह भी उदासी, एक देवता क उदासी जो दुख
भरी न होकर सु दर और सुकुमार अिधक होती है। एक बात ज र थी। जब कभी वह
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उदास होता था तो जाने य वह यह हमेशा सोचने लगता था क उसके जीवन म जो कु छ
हो गया है उस पर उसे गव करना चािहए जैसे वह अपनी उदासी को अपने गव से िमटाने
का यास करता था। ले कन इस व एक बात रह-रहकर उभर आती थी उसके मन म,
'सुधा ने खत य नह िलखा?'
En
पानी िब कु ल ब द हो गया था। पि म के दो-एक बादल खुल गये थे। और पके जामुन के
रं ग के एक ब त बड़े बादल के पीछे से डू बते सूरज क उदास करण झाँक रही थ । इधर
क ओर एक इ धनुष िखल गया था जो मोटर गैरेज क छत से उठकर दूर पर युि ल टस
क ल बी शाख म उलझ गया था।
इतने म छाता लगाये पो टमैन आया, उसने पो टको म अपने जूत म लगी क चड़ झाड़ी,
पैर पटके और करिमच के झोले से खत िनकाले और सीढ़ी पर फै ला दये। उनम से ढू ँढ़कर
s
िलफाफा प मी का था, मसूरी से आया। उसने झ लाकर िलफाफा फक दया। सुधा कतनी
लापरवाह है। वह जानती है क च दर को यहाँ कै सा लग रहा होगा। िबनती ने बता दया
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होगा फर भी वही लापरवाही! मारे गु से के ...
थोड़ी देर बाद उसने प मी का खत पढ़ा। छोटा-सा खत था। प मी अभी मसूरी म ही है,
अ टू बर तक आएगी। लगभग सभी या ी जा चुके ह ले कन उसे पहाड़ क बरसात ब त
Hi
अ छी लग रही है। बट इलाहाबाद चला गया है। उसके साथ वहाँ से एक पहाड़ी ईसाई
लड़क भी गयी है। बट कहता है क वह उसके साथ शादी करे गा। बट अब ब त व थ
है। च दर चाहे तो जाकर बट से िमल ले।
सुधा के खत के न आने से च दर के मन म ब त बेचैनी थी। उसे ठीक से मालूम भी नह हो
पा रहा था क ये लोग ह कहाँ? बट के आने क खबर िमलने पर उसे स तोष आ, चलो
एक दन बट से ही िमल आएँगे, अब देख कै से ह वह?
&
तीसरे या चौथे दन जब अक मात पानी ब द था तो वह कार लेकर बट के यहाँ गया।
बरसात म इलाहाबाद क िसिवल लाइ स का सौ दय और भी िनखर आता है। खे-सूखे
फु टपाथ और मैदान पर घास जम जाती है; बँगले क उजाड़ चहारदीवा रय तक हरी-
भरी हो जाती ह। ल बे और घने पेड़ और झािडय़ाँ िनखरकर, धुलकर हरे मखमली रं ग क
h
हो जाती ह और कोलतार क सडक़ पर थोड़ी-थोड़ी पानी क चादर-सी लहरा उठती है
िजसम पेड़ क हरी छायाएँ िबछ जाती ह। बँगले म पली ई ब ख के दल सड़क पर
चलती ई मोटर को रोक लेते ह और हर बँगले म से रे िडयो या ामोफोन के संगीत क
is
लहर मचलती ई वातावरण पर छा जाती ह।
कॉलेज से लौटकर, एक याला चाय पीकर, कार लेकर च दर बट के यहाँ चल दया। वह
ब त दन बाद बट को देखने जा रहा है। िजन ि य को उसने अपने जीवन म देखा था,
gl
बट शायद उन सभी से िनराला था, अ भुत था। ले कन कतना अभागा था। नह , अभागा
नह कमजोर था बट । और वही या कमजोर था यह सारी दुिनया कतनी कमजोर है।
बट का बँगला आ गया था। वह उतरकर अ दर गया। बाहर कोई नह था। बरामदे म एक
पंजरा टँगा आ था िजसम एक ब त छोटा तोते का ब ा टँगा था। च दर भीतर जाने म
En
ाण सूख गये। उसने मन-ही-मन सोचा, पहली बार तो वह कु ती म बट से जीत गया था,
ले कन अबक बार जीतना मुि कल है। कहाँ बेकार फँ सा आकर। उसने घबरायी ई
आवाज म कहा-
“यह म ँ िम टर बट , च दर कपूर, प मी का िम !”
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उसने च दर के क धे पकड़कर इतना जोर से झकझोर दया क च दर क पसिलयाँ
चरमरा उठ । “आओ!” उसने च दर के क धे दबाकर बरामदे क ही कोच पर िबठा दया
और सामने कु स पर बैठता आ बोला, “म तु ह अ दर ले चलता, ले कन अ दर जेनी है
Hi
और एक मेरा िम । दोन बात कर रहे ह। आज जेनी क सालिगरह है। तुम जेनी को जानते
हो न? वह तराई के क बे म रहती थी। मुझे िमल गयी। ब त खराब औरत है! म त दु त
हो गया ँ न!”
“ब त, मुझे ता ुब है क त दु ती के िलए तुमने या कया तीन महीने तक!”
“नफरत, िम टर कपूर! औरत से नफरत। उससे यादा अ छा टॉिनक त दु ती के िलए
कोई नह है।”
&
“ले कन तुम तो शादी करने जा रहे हो, लड़क ले आये हो वहाँ से।”
“अके ली लड़क नह , िम टर! म वहाँ से दो चीज लाया ।ँ एक तो यह तोते का ब ा और
एक जेनी, वही लड़क । तोते को म ब त यार करता ,ँ यह बड़ा हो जाएगा, बोलने
लगेगा तो इसे गोली मार दूग
ँ ा और लड़क से म ब त नफरत करता ,ँ इससे शादी कर
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लूँगा! य , है न ठीक? इसको िशकार का चाव कहते ह और अब म िशकारी ँ न!”
च दर हाँ कहे या न कहे। अभी बट का दमाग िब कु ल वैसा ही है, इसम कोई शक नह ।
वह या बात करे ? अ त म बोला- is
“यह ब दूक तो उतारकर रिखए। हमेशा बाँधे रहते ह!”
“हाँ, और या? िशकार का पहला िस ा त है क जहाँ खतरा हो, जंगली जानवर ह वहाँ
कभी िबना ब दूक के नह जाना चािहए?” और ब त धीमे से च दर के कान म बट बोला,
gl
“तुम जानते हो च दर, एक औरत है जो चौबीस घंटे घर म रहती है। म तो एक ण को
ब दूक अलग नह रखता।”
सहसा अ दर से कु छ िगरने क आवाज आयी, कोई चीखा और लगा जैसे कोई चीज
िपयानो पर िगरी और परद को तोड़ती ई नीचे आ गयी। फर कु छ झगड़ क आवाज
En
आयी।
च दर च क उठा, “ या बात है बट , देखो तो!”
बट ने हाथ पकडक़र च दर को ख च िलया-”बैठो, बैठो! अ दर मेरे िम और जेनी
सालिगरह मना रहे ह, अ दर मत जाना!”
“ले कन यह आवाज कै सी ह?” च दर ने िच ता से पूछा।
“शायद वे लोग ेम कर रहे ह गे!” बट बोला और िनि तता से बैठ गया।
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क चड़ म ढके ल दया और सैकड़ गाली देते ए बोली, “जा सीधे, वरना ह ी नह बचेगी
यहाँ।” वह फर उठा तो खुद भी नीचे कू द पड़ी और घसीटती ई दरवाजे के बाहर ढके ल
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आयी।
बट साँस रोके अपराधी-सा खड़ा था। वह लौटी और बट का कालर पकड़ िलया-”म
िनद ष !ँ म कु छ नह जानता!” सहसा जेनी ने च दर क ओर देखा-” ,ँ यह भी तु हारा
Hi
दो त है। अभी बताती !ँ ” और जो वह च दर क ओर बढ़ी तो च दर ने मन-ही-मन प मी
का मरण कया। कहाँ फँ साया उस क ब त ने खत िलखकर। य ही जेनी ने च दर का
कालर पकड़ा क बट बड़े कातर वर म बोला, “उसे छोड़ दो! वह मेरा नह प मी का
िम है!” जेनी क गयी। “तुम प मी के िम हो? अ छा बैठ जाओ, बैठ जाओ, तुम शरीफ
आदमी मालूम पड़ते हो। मगर आगे से तु हारा कोई िम आया तो म उसक ह या कर
डालूँगी। समझे क नह , बट ?”
&
बट ने िसर िहलाया, “हाँ, समझ गये!” जेनी अ दर चल दी, फर सहसा बाहर आयी और
बट को पकडक़र घसीटती ई बोली, “पानी बरस रहा है, इतनी सद बढ़ रही है और
तुमने वेटर नह पहना, चलो पहनो, मरने क ठानी है। म साफ बताये देती ँ चाहे दुिनया
इधर क उधर हो जाये, म िबना शादी कये मरने नह दूग ँ ी तु ह।” और वह बकरे क तरह
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बट का कान पकडक़र अ दर घसीट ले गयी।
च दर ने मन म कहा, यह कु छ इस रह यमय बँगले का असर है क हरे क का दमाग खराब
ही मालूम देता है। दो िमनट बाद जब बट लौटा तो उसके गले म गुलब द, ऊनी वेटर,
is
ऊनी मोजे थे। वह हाँफता आ आकर बैठ गया।
“िम टर कपूर! तु ह मानना होगा क यह लड़क , यह डाइन जेनी ब त ू र है।”
“मानता ,ँ बट ! सोलह आने मानता ।ँ ” च दर ने मुसकराहट रोककर कहा, “ले कन यह
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झगड़ा या है?”
“झगड़ा या होता है? औरत को समझना ब त मुि कल है।”
“इस औरत के फ दे म फँ से कै से तुम?” च दर ने पूछा।
“शी! शी!” होठ पर हाथ रखकर धीरे बोलने का इशारा करते ए बट ने कहा, “धीरे
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बोलो। बात ऐसी ई क जब म तराई म िशकार खेल रहा था तो एक बार अके ले छू ट गया!
यह एक पशनर फॉरे ट गाड क अन याही लड़क थी। िशकार म ब त होिशयार। म
भटकते ए प च ँ ा तो इसका बाप बीमार था। म क गया। तीसरे दन वह मर गया। उसे
जाने कौन-सा रोग था क उसका चेहरा ब त डरावना हो गया था और पेट फू ल गया था।
रात को इसे ब त डर लगा तो यह मेरे पास आकर लेट गयी। बीच म ब दूक रखकर हम
लोग सो गये। रात को इसने बीच से ब दूक हटा दी और अब वह कहती है क मुझसे याह
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च दर चुप बैठा सोच रहा था, कै सी िविच जंदगी है इस अभागे क ! मानो कृ ित ने सारे
आ य इसी क क मत के िलए छोड़ रखे थे। फर बोला-
“यह आज या झगड़ा था?”
“कु छ नह । आज इसक सालिगरह थी। यह बोली, “मुझे कु छ उपहार दो।" म ब त देर तक
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सोचता रहा। या दूँ इसे? कु छ समझ ही म नह आया। ब त देर सोचने के बाद मने सोचा-
म तो इसका पित होने जा रहा ।ँ इसे एक ेमी उपहार म दे दू।ँ मने एक िम से कहा क
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तुम मेरी भावी प ी से आज शाम को ेम कर सकते हो? वह राजी हो गया, म ले आया।”
च दर जोर से हँस पड़ा।
“हँसो मत, हँसो मत, िम टर कपूर!” बट ब त ग भीर बनकर बोला, “इसका मतलब यह
Hi
है क तुम औरत को समझते नह । देखो, एक औरत उसी चीज को यादा पस द करती है,
उसी के ित समपण करती है जो उसक जंदगी म नह होता। मसलन एक औरत है
िजसका याह हो गया है, या होने वाला है, उसे य द एक नया ेमी िमल जाये तो उसक
स ता का ठकाना नह रहता। वह अपने पित क ब त कम परवा करे गी अपने ेमी के
सामने। और अगर ाँरी लड़क है तो वह अपने ेमी क भावना क पूरी तौर से ह या
कर सकती है य द उसे एक पित िमल जाये तो! म तो समझता ँ क कोई भी पित अपनी
&
प ी को य द कोई अ छा उपहार दे सकता है तो वह है एक नया ेमी और कोई भी ेमी
अपनी रानी को य द कोई अ छा उपहार दे सकता है तो वह यह क उसे एक पित दान
कर दे। तु हारी अभी शादी तो नह ई?”
“न!”
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“तो तुम ेम तो ज र करते ह गे...न, िसर मत िहलाओ...म यक न नह कर सकता...। म
इतनी सलाह तु ह दे रहा ,ँ क अगर तुम कसी लड़क से यार करते हो तो ई र के
वा ते उससे शादी मत करना-तुम मेरा क सा सुन चुके हो। अगर दल से यार करना
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चाहते हो और चाहते हो क वह लड़क जीवन-भर तु हारी कृ त रहे तो तुम उसक शादी
करा देना...यह लड़ कय के से स जीवन का अि तम स य है...! हा! हा! हा!” बट हँस
पड़ा।
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च दर को लगा जैसे आग क लपट उसे तपा रही है। उसने भी तो यही कया है सुधा के
साथ िजसे बट कतने िविच वर म कह रहा है। उसे लगा जैसे इस ेत-लोक म सारा
जीवन िवकृ त दखाई देता है। वहाँ साधना क पिव ता भी क चड़ और पागलपन म
उलझकर गंदी हो जाती है। िछः, कहाँ बट क बात और कहाँ उसक सुधा...
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वह उठ खड़ा आ। ज दी से िवदा माँगकर इस तरह भागा जैसे उसके पैर के नीचे अंगारे
िछपे ह ।
फर उसे न द नह आयी। चैन नह आया। रात को सोया तो वह बार-बार च क-सा उठा।
उसने सपना देखा, एक ब त ब ा कपूर का पहाड़ है। ब त बड़ा। मुलायम कपूर क बड़ी-
बड़ी च ान और इतनी पिव खुशबू क आदमी क आ मा बेले का फू ल बन जाये। वह और
सुधा उन सौरभ क च ान के बीच चढ़ रहे ह। के वल वह है और सुधा...सुधा सफे द बादल
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क साड़ी पहने है और च दर करन क चादर लपेटे है। जहाँ-जहाँ च दर जाता है, कपूर
क च ान पर इ धनुष िखल जाते ह और सुधा अपने बादल के आँचल म इ धनुष के
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यह है। यह!” और उसने अपने हाथ क मशाल ऊँची कर दी। “यह कपूर का पहाड़, यह
बादल क साड़ी, यह करन का प रधान, यह इ धनुष के फू ल, यह सब झूठे ह। और यह
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मशाल, जो अपने एक पश म इस सबको िपघला देगी।”
और उसने अपनी मशाल एक ऊँचे िशखर से छु आ दी। वह िशखर धधक उठा। िपघलती ई
आग क एक धार बरसाती नदी क तरह उमडक़र बहने लगी।
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“भागो, सुधा!” च दर ने चीखकर कहा, “भागो!”
सुधा भागी, च दर भागा और वह िपघली ई आग क महानदी लहराते ए अजगर क
तरह उ ह अपनी गुंजिलका म लपेटने के िलए चल पड़ी। शैतान हँस पड़ा, “हा! हा! हा!”
च दर ने देखा, सुधा शैतान क गोद म थी।
च दर च ककर जाग गया। पानी बंद था ले कन घनघोर अँधेरा था। और िपशाचनी क
तरह पागल हवा पेड़ को झकझोर रही थी जैसे युग के जमे ए िव ास को उखाड़ फकना
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चाहती हो। च दर काँप रहा था, उसका माथा पसीने से तर था।
वह उठकर नीचे आया। उसके कदम ठीक नह पड़ रहे थे। बरामदे क ब ी जलायी।
महरािजन उठी-”का है भइया!” उसने पूछा।
“कु छ नह , अ दर सोऊँगा।” च दर ने कहा और सुधा के कमरे म जाकर ब ी जलायी।
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सुधा क चारपाई पर लेट गया। फर उठा, चार ओर के दरवाजे ब द कर दये क कह
कोई फर ऐसा सपना बाहर के भयंकर अँधेरे म से न चला आये।
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करने के बजाय उ ह सामने फक देता और एक िनरपे वै ािनक क तरह उनक चीर-
फाड़ करता, उनक शव-परी ा कया करता। अभी तक उसके िव ास का स बल था, अब
कसी ने उसे तक का अ -श दे दया था। जाने कस रा सी ेरणा से उसने अपनी
आ मा को चीरना शु कया। और इस तक-िवतक और अिव ास के भयंकर जल- लय क
h
एक लहर ने उसे एक दन नरक के कनारे ले जा पटका।
सुधा का खत आया था। द ली म पापा अपने कु छ काम से के थे और सुधा क तबीयत
खराब हो गयी थी। अब वह दो-तीन रोज म आ जाएगी।
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ले कन च दर के मन पर एक अजब-सा असर आ था इस खत का। सुधा का प नह आया
था, सुधा दूर थी तब वह खुश था, वह उ लिसत था। सुधा का प आते ही सहसा वह
उदास हो गया। उदास तो या उसे उबकाई-सी आने लगी। उसे यह सब सहसा, पता नह
gl
एक नाटक-सा लगने लगा था, एक ब त स ता, नीचे तर का नाटक। उसे लगता था-ये
सब चार ओर का याग, साधन, सौ दय, यह सब झूठ है। सुधा भी अ ततोग वा वही
साधारण लड़क है जो ाँरे जीवन म पित और िववािहत जीवन म ेमी क भूखी होती है।
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अपने कमरे क सफाई शु क ; कमरे क सारी कताब झाड़ , कपड़े ठीक कये, मेज साफ
क और उसके बाद कमरा धोने म लग गय । िबनती बा टी म पानी भर-भर लाने लगी
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और सुधा झाड़ू से फश धोने लगी। हाथ म चूड़े अब भी थे, पाँव म िबिछया और माँग म
िस दूर-चेहरा ब त पीला पड़ गया था सुधा का; चेहरे क हि ïयाँ िनकल आयी थ और
आँख क रोशनी भी मैली पड़ गयी थी। वह जाने य कमजोर भी हो गयी थी।
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झाड़ू लगाते-लगाते सुधा िबनती से बोली, “आज मालूम पड़ता है क म आदमी !ँ कल
तक तो हैवान थी। पापा को भी जाने या सूझा क इ ह भी साथ द ली ले गये। म तो
शरम से मरी जाती थी।”
थोड़ी देर बाद च दर आया। बाहर ही उसे मालूम हो गया था क सब लोग आ गये ह। उसे
जाने य ऐसा लग रहा था क वह उलटे लौट जाये, वह अगर इस घर म गया तो जाने
उससे या अनथ हो जाएगा, ले कन वह बढ़ता ही गया। टडी- म म डॉ टर साहब सो
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रहे थे। वह लौटा और अपने कपड़े उतारने के िलए ाइं ग- म क ओर चला। सुधा ने य
ही आहट पायी, वह फौरन झाड़ू फककर भागी, िसर खुला, धोती कमर म खुँसी ई, हाथ
ग दे, बाल िबखरे और बेतहाशा दौड़कर च दर से िलपट गयी और ब क भोली हँसी
हँसकर बोली, “च दर, च दर! हम आ गये, अब बताओ!” और च दर को इस तरह कस
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िलया क अब कभी छोड़ेगी नह ।
“िछः, दूर हटो, सुधा! यह या नाटक करती हो! आज तुम ब ी नह हो!” और सुधा को
बड़ी खाई से परे हटाकर अपने कोट पर से सुधा के हाथ से लगी ई िम ी झाड़ते ए
is
च दर चुपचाप अपने कमरे म चला गया।
सुधा पर जैसे िबजली िगर पड़ी हो। वह प थर क तरह खड़ी रही। फर जैसे लडख़ड़ाती
ई अपने कमरे म गयी और चारपाई पर लेटकर फू ट-फू टकर रोने लगी। च दर सुधा से
gl
नह ही बोला। डॉ टर साहब के जगते ही उनसे बात करने लगा, शाम को वह साइ कल
लेकर घूमने िनकल गया। लौटकर ऊपर छत पर चला गया और िबनती को पुकारकर कहा,
“अगर तकलीफ न हो तो जरा ऊपर खाना दे जाओ।” िबनती ने थाली लगायी और सुधा से
कहा, “लो दीदी! दे आओ!” सुधा ने िसर िहलाकर कहा, “तू ही दे आ! म अब कौन रह गयी
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नाराज हो, बताओ हमसे या पाप हो गया है? िपछले डेढ़ महीने हमने एक-एक ण िगन-
िगनकर काटे ह क कब तु हारे पास आएँ। हम या मालूम था क तुम ऐसे हो गये हो। मुझे
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ने हाथ से याह वाले चूड़े उतारकर छत पर फक दये, िबिछया उतारने लगी-और पागल
क तरह फटी आवाज म बोली, “जो तुमने कहा, मने कया, अब जो कहोगे वह क ँ गी।
यही चाहते हो न!” और अ त म उसने अपनी िबिछया उतारकर छत पर फक दी।
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च दर काँप गया। उसने इस दृ य क क पना भी नह क थी। “िबनती! िबनती!” उसने
घबराकर पुकारा और सुधा से बोला, “अरे , यह या कर रही हो! कोई देखेगा तो या
सोचेगा! पहनो ज दी से।”
“मुझे कसी क परवा नह । तु हारा तो जी ठं डा पड़ जाएगा!”
च दर उठा। उसने जबरद ती सुधा के हाथ पकड़ िलये। िबनती आ गयी थी।
“लो, इ ह चूड़े तो पहना दो!” िबनती ने चुपचाप चूड़े और िबिछया पहना दी। सुधा
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चुपचाप उठी और नीचे चली गयी।
च दर अपनी खाट पर िसर झुकाये लि त-सा बैठा था।
“लीिजए, खाना खा लीिजए।” िबनती बोली।
“म नह खाऊँगा।” च दर ने ँ धे गले से कहा।
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“खाइए, वरना अ छी बात नह होगी। आप दोन िमलकर मुझे मार डािलए बस क सा
ख म हो जाए। न आप सीधे मुँह से बोलते ह, न दीदी। पता नह आप लोग को या हो
गया है?” is
च दर कु छ नह बोला।
“खाइए, आपको हमारी कसम है। वरना दीदी खाना नह खाएँगी! आपको मालूम नह ,
दीदी क तबीयत इधर ब त खराब है। उ ह सुबह-शाम बुखार रहता है। द ली म तबीयत
gl
ब त खराब हो गयी थी। आप ऐसे कर रहे ह। बताइए, उनका या हाल होगा। आप
समझते ह गे यह ब त सुखी ह गी ले कन आपको या मालूम!...पहले आप दीदी के एक
आँसू पर पागल हो उठते थे, अब आपको या हो गया है?”
च दर ने िसर उठाया-और गहरी साँस लेकर बोला, “जाने या हो गया है, िबनती! म कभी
En
नह सोचता था क सुधा को म इतना दु:ख दे सकूँ गा। इतना अभागा ँ क म खुद भी इधर
घुलता रहा और सुधा को भी इतना दुखी कर दया। और सचमुच च दर क आँख म आँसू
भर आये। िबनती च दर के पीछे खड़ी थी। च दर का िसर अपनी छाती म लगाकर आँसू
प छती ई बोली, “िछः, अब और दु:खी होइएगा तो दीदी और भी रोएँगी। लीिजए,
खाइए!”
“जाओ, दीदी को बुला लो और उ ह भी िखला दो!” च दर ने कहा। िबनती गयी। फर
s
हो?”
सुबह के व च दर जब ना ता करने बैठा तो डॉ टर साहब के साथ ही बैठा। सुधा आयी
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और याला रखकर चली गयी। वह ब त उदास थी। च दर का मन भर आया। सुधा क
उदासी उसे कतना लि त कर रही थी, कतना दुखी कर रही थी। दन-भर कसी काम म
उसक तबीयत नह लगी। उसने लास छोड़ दये। लाइ ेरी म भी जाकर कताब उलट-
Hi
पलटकर चला आया। उसके बाद ेस गया जहाँ उसे अपनी थीिसस छपने को देनी थी,
उसके बाद ठाकु र साहब के यहाँ गया। ले कन कह भी वह टक नह पाया। जब तक वह
सुधा को हँसा न ले, सुधा के आँसू सुखा न दे; उसे चैन नह िमलेगा।
शाम को वह लौटा तो खाना तैयार था। िबनती से उसने पूछा, “कहाँ है सुधा?” “अपनी
छत पर।” िबनती ने कहा। च दर ऊपर गया। पानी परस से बंद था और बादल भी खुले
ए थे ले कन तेज पुरवैया चल रही थी। तीज का चाँद शरमीली दु हन-सा बादल म मुँह
&
िछपा रहा था। हवा के तेज झकोर पर बादल उड़ रहे थे और कचनार बादल म तीज का
धनुषाकार चाँद आँखिमचौली खेल रहा था। सुधा ने अपनी खाट बरसाती के बाहर ख च
ली थी। छत पर धुँधला अँधेरा था और रह-रहकर सुधा पर चाँदनी के फू ल बरस जाते थे।
सुधा चुपचाप लेटी ई बादल को देखती ई जाने या सोच रही थी।
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च दर गया। च दर को देखते ही सुधा उठ खड़ी ई और उसने िबजली जला दी और
चुपचाप बैठ गयी। च दर बैठ गया। वह कु छ भी नह बोली। बगल म िबछी ई िबनती क
खाट पर सुधा बैठ गयी। is
च दर को समझ नह आता था क वह या कहे। सुधा को इतना दु:ख दया उसने। सुधा
उससे कल शाम से बोली तक नह ।
“सुधा, तुम नाराज हो गयी! मुझे जाने या हो गया था। ले कन माफ नह करोगी?” च दर
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ने ब त काँपती ई आवाज म कहा। सुधा कु छ नह बोली-चुपचाप बादल क ओर देखती
रही।
“सुधा?” च दर ने सुधा के दो कबूतर जैसे उजले मासूम पैर को लेकर अपनी गोद म रख
िलया और भरे ए गले से बोला, “सुधा, मुझे जाने या हो जाता है कभी-कभी! लगता है
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वह पहले वाली ताकत टू ट गयी। म िबखर रहा ।ँ तुम आयी और तु हारे सामने मन का
जाने कौन-सा तूफान फू ट पड़ा! तुमने उसका इतना बुरा मान िलया। बताओ, अगर तुम ही
ऐसा करोगी तो मुझे सँभालने वाला फर कौन है, सुधा?” और च दर क आँख से एक बूँद
आँसू सुधा के पाँव पर चू पड़ा। सुधा ने च ककर अपने पाँव ख च िलये। और उठकर च दर
क खाट पर बैठ गयी और च दर के क धे पर िसर रखकर फू ट-फू टकर रो पड़ी। ब त
रोयी...ब त रोयी। उसके बाद उठी और सामने बैठ गयी।
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“च दर! तुमने गलत नह कया। म सचमुच कतनी अपरािधन ।ँ मने तु हारी जंदगी
चौपट कर दी है। ले कन म या क ँ ? कसी ने तो मुझे कोई रा ता नह बताया था। अब
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या हो गया था!”
“हाँ, समझ लो, च दर! तु ह हमारे सुहाग क लाज है, हम कतने दुखी ह, तुम समझ नह
सकते। एक तु ह को देखकर हम थोड़ा-सा दुख-दद भूल जाते ह, सो तुम भी इस तरह
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करने लगे! हम लोग कतने अभागे ह!” और वह फर चुपचाप लेटकर ऊपर देखती ई
जाने या सोचने लगी। च दर ने एक बार धुँधली रे शमी चाँदनी म मुरझाये ए सोनजुही
के फू ल-जैसे मुँह क ओर देखा और सुधा के नरम गुलाबी होठ पर ऊँगिलयाँ रख द । थोड़ी
देर वह आँसू म भीगे ए गुलाब क दुख-भरी पंख रय से उँ गिलयाँ उलझाये रहा और फर
बोला-
“ या सोच रही थ ?” च दर ने ब त दुलार से सुधा के माथे पर हाथ फे रकर कहा। सुधा
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एक फ क हँसी हँसकर बोली-
“जैसे आज लेटी ई बादल को देख रही ँ और पास तुम बैठे हो, उसी तरह एक दन
कॉलेज म दोपहर को म और गेसू लेटे ए बादल को देख रहे थे। उस दन उसने एक शेर
सुनाया था। 'कै फ बरदोश बादल को न देख, बेखबर तू कु चल न जाए कह ।' उसका कहना
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कतना सच िनकला! भा य ने कहाँ ले जा पटका मुझे!”
“ य , वहाँ तु ह कोई तकलीफ तो नह ?” च दर ने पूछा।
“हाँ, समझते तो सब यही ह, ले कन जो तकलीफ है वह म जानती ँ या िबनती जानती
is
है।” सुधा ने गहरी साँस लेकर कहा, “वहाँ आदमी भी बने रहने का अिधकार नह ।”
“ य ?” च दर ने पूछा।
“ या बताएँ तु ह च दर! कभी-कभी मन म आता है क डू ब म ँ । ऐसा भी जीवन होगा
gl
मेरा, यह कभी म नह सोचती थी।” सुधा ने कहा।
“ या बात है? बताओ न!” च दर ने पूछा।
“बता दूगँ ी, देवता! तुमसे भला या िछपाऊँगी ले कन आज नह , फर कभी!”
सुधा ने कहा, “तुम परे शान मत हो। कहाँ तुम, कहाँ दुिनया! काश क कभी तु हारी गोद से
En
अलग न होती म!” और सुधा ने अपना मुँह च दर क गोद म िछपा िलया। चाँदनी क
पंख रयाँ बरस पड़ ।
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उ लास और रोशनी का मलय पवन फर लौट आया था, फर एक बार च दर, सुधा और
िबनती के ाण को िवभोर कर गया था क सुधा को महीने-भर बाद ही जाना है और सुधा
भूल गयी थी क शाहजहाँपुर से भी उसका कोई नाता है। िबनती का इ तहान हो गया था
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और अकसर च दर और सुधा िबनती के याह के िलए गहने और कपड़े खरीदने जाते।
जंदगी फर खुशी के िह कोर पर झूलने लगी थी। िबनती का याह उतरते अगहन म होने
वाला था। अब दो-ढाई महीने रह गये थे। सुधा और च दर जाकर कपड़े खरीदते और
लौटकर िबनती को जबरद ती पहनाते और गुिडय़ा क तरह उसे सजाकर खूब हँसते। दोन
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के बड़े-बड़े हौसले थे िबनती के िलए। सुधा िबनती को सलवार और चु ी का एक सेट और
गरारा और कु रते का एक सेट देना चाहती थी। च दर िबनती को एक हीरे क अँगूठी देना
चाहता था। च दर िबनती को ब त ेह करने लगा था। वह िबनती के याह म भी जाना
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चाहता था ले कन गाँव का मामला, का यकु ज क बारात। शहर म सुधा, िबनती और
च दर को िजतनी आजादी थी उतनी वहाँ भला य कर हो सकती थी! फर कहने वाल
क जबान, कोई या कह बैठे! यही सब सोचकर सुधा ने च दर को मना कर दया था।
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इसीिलए च दर यह िबनती को िजतने उपहार और आशीवाद देना चाहता था, दे रहा था।
सुधा का बचपन लौट आया था और दन-भर उसक शरारत और कलका रय से घर
िहलता था। सुधा ने च दर को इतनी ममता म डु बो िलया था क एक ण वह च दर को
अपने से अलग नह रहने देती थी। िजतनी देर च दर घर म रहता, सुधा उसे अपने दुलार
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होते? तुम सचमुच इस दुिनया के यो य नह हो! ऐसे ही बने रहना, च दर मेरे! तु हारी
पिव ता ही मुझे िज दा रख सके गी वना म तो िजस नरक म जा रही .ँ ..”
“तुम उसे नरक य कहती हो! मेरी समझ म नह आता!”
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“तुम नह समझ सकते। तुम अभी ब त दूर हो इन सब बात से, ले कन...” सुधा बड़ी देर
तक चुप रही। फर खत सब एक ओर िखसका दये और बोली, “च दर, उनम सबकु छ है।
वे ब त अ छे ह, ब त खुले िवचार के ह, मुझे ब त चाहते ह, मुझ पर कह से कोई ब धन
नह , ले कन इस सारे वग का मोल जो देकर चुकाना पड़ता है उससे मेरी आ मा का कण-
कण िव ोह कर उठता है।” और सहसा घुटन म मुँह िछपाकर रो पड़ी।
च दर उठा और सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोला, “िछः, रोओ मत सुधा! अब तो जैसा
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है, जो कु छ भी है, बदा त करना पड़ेगा।”
“कै से क ँ , च दर! वह इतने अ छे ह और इसके अलावा इतना अ छा वहार करते ह क
म उनसे या क ?ँ कै से क ?ँ ” सुधा बोली।
“जाने दो सुधी, जैसी जंदगी हो वैसा िनबाह करना चािहए, इसी म सु दरता है। और जहाँ
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तक मेरा खयाल है वैवािहक जीवन के थम चरण म ही यह नशा रहता है, फर कसको
यह सूझता है। आओ, चलो चाय पीएँ! उठो, पागलपन नह करते। परस चली जाओगी,
लाकर नह जाना होता। उठो!” च दर ने अपने मन क जुगु सा पीकर ऊपर से ब त ेह
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से कहा।
सुधा उठी और चाय ले आयी। च दर ने अपने हाथ से एक कप म चाय बनायी और सुधा को
िपलाकर उसी म पीने लगा। चाय पीते-पीते सुधा बोली-
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“च दर, तुम याह मत करना! तुम इसके िलए नह बने हो।”
च दर सुधा को हँसाना चाहता था-”चल वाथ कह क ! य न क ँ याह? ज र
क ँ गा! और जनाब, दो-दो क ँ गा! अपने आप तो कर िलया और मुझे उपदेश दे रही ह!”
सुधा हँस पड़ी। च दर ने कहा-
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“बस ऐसे ही हँसती रहना हमेशा, हमारी याद करके और अगर रोयी तो समझ लो हम
उसी तरह फर अशा त हो उठगे जैसे अभी तक थे!...” फर याला सुधा के होठ से
लगाकर बोला, “अ छा सुधी, कभी तुम सुनो क म उतना पिव नह रहा िजतना क ँ
तो तुम या करोगी? कभी मेरा ि व अगर िबगड़ गया, तब या होगा?”
“होगा या? म रोकने वाली कौन होती !ँ म खुद ही या रोक पायी अपने को! ले कन
च दर, तुम ऐसे ही रहना। तु ह मेरे ाण क सौग ध है, तुम अपने को िबगाडऩा मत।”
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च दर हँसा, “नह सुधा, तु हारा यार मेरी ताकत है। म कभी िगर नह सकता जब तक
तुम मेरी आ मा म गुँथी ई हो।”
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तीसरे दन शंकर बाबू आये और सुधा च दर के पैर क धूल माथे पर लगाकर चली
गयी...इस बार वह रोयी नह , शा त थी जैसे वध थल पर जाता आ बेबस अपराधी।
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जाते ही वह फर सबकु छ खो बैठा। उसके मन म कोई थािय व नह रहा। लगता था जैसे
वह एक जलागार है जो ब त गहरा है, ले कन िजसम हर चाँद, सूरज, िसतारे और बादल
क छाँह पड़ती है और उनके चले जाने के बाद फर वह उनका ितिब ब धो डालता है
और बदलकर फर वैसा ही हो जाता है। कोई भी चीज पानी को रँ ग नह पाती, उसे छू
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नह पाती, हाँ, लहर म उनक छाया का प िवकृ त हो जाता है।
च दर को चार ओर क दुिनया सहज गुजरते ए बादल का िन सार तमाशा-सी लग रही
थी। कॉलेज क चहल-पहल, ढलती ई बरसात का पानी, थीिसस और िड ी, बट का
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पागलपन और प मी के खत-ये सभी उसके सामने आते और सपन क तरह गुजर जाते।
कोई चीज उसके दय को छू न पाती। ऐसा लगता था क च दर एक खोखला ि है
िजसम िसफ एक सापे अ त:करण मा है, कोई िनरपे आ मा नह और दय भी जैसे
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समा हो गया था। एक जलहीन ह के बादल क तरह वह हवा के हर झ के पर तैर रहा
था। ले कन टकता कभी भी नह था। उसक भावनाएँ, उसका मन, उसक आ मा, उसके
ाण, उसका सबकु छ सो गया था और वह जैसे न द म चल- फर रहा था, न द म सबकु छ
कर रहा था। जाने के आठ-नौ रोज बाद सुधा का खत आया-
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“मेरे भा य!
म इस बार तु ह िजस तरह छोड़ आयी ँ उससे मुझे पल-भर को चैन नह िमलता। अपने
को तो बेच चुक , अपने मन के मोती को क चड़ म फक चुक , तु हारी रोशनी को ही
देखकर कु छ स तोष है। मेरे दीपक, तुम बुझना मत। तु ह मेरे ेह क लाज है।
मेरी जंदगी का नरक फर मेरे अंग म िभदना शु हो गया है। तुम कहते हो क जैसे हो
िनबाह करना चािहए। तुम कहते हो क अगर मने उनसे िनबाह नह कया तो यह तु हारे
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यार का अपमान होगा। ठीक है, म अपने िलए नह , तु हारे िलए िनबाह क ँ गी, ले कन
म कै से सँभालूँ अपने को? दल और दमाग बेबस हो रहे ह, नफरत से मेरा खून उबला जा
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रहा है। कभी-कभी जब तु हारी सूरत सामने होती है तो जैसे अपना सुख-दुख भूल जाती
,ँ ले कन अब तो जंदगी का तूफान जाने कतना तेज होता जा रहा है क लगता है तु ह
भी मुझसे ख चकर अलग कर देगा।
ले कन तु ह अपने देव व क कसम है, तुम मुझे अब अपने दय से दूर न करना। तुम नह
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जानते क तु हारी याद के ही सहारे म यह नरक झेलने म समथ ।ँ तुम मुझे कह िछपा
लो-म या क ँ , मेरा अंग-अंग मुझ पर ं य कर रहा है, आँख क न द ख म है। पाँव म
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इतना तीखा दद है क कु छ कह नह सकती। उठते-बैठते च र आने लगा है। कभी-कभी
बदन काँपने लगता है। आज वह बरे ली गये ह तो लगता है म आदमी ।ँ तभी तु ह िलख
भी रही ।ँ तुम दुखी मत होना। चाहती थी क तु ह न िलखूँ ले कन िबना िलखे मन नह
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मानता। मेरे अपने! तुमने तो यही सोचकर यहाँ भेजा था क इससे अ छा लड़का नह
िमलेगा। ले कन कौन जानता था क फू ल म क ड़े भी ह गे।
अ छा, अब माँजी नीचे बुला रही ह...चलती .ँ ..देखो अपने कसी खत म इन सब बात
का िज मत करना! और इसे फाड़कर फक देना।
तु हारी अभािगन-सुधी।”
च दर को खत िमला तो एक बार जैसे उसक मू छा टू ट गयी। उसने खत िलया और
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िबनती को बुलाया। िबनती हाथ म साग और डिलया िलये आयी और पास बैठ गयी।
च दर ने वह खत िबनती को दे दया। िबनती ने पढ़ा और च दर को वापस दे दया और
चुपचाप तरकारी काटने लगी।
वह उठा और चुपचाप अपने कमरे म चला गया। थोड़ी देर बाद िबनती चाय लेकर आयी
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और चाय रखकर बोली, “आप दीदी को कब खत िलख रहे ह?”
“म नह िलखूँगा!” च दर बोला।
“ य ?” is
“ या िलखूँ िबनती, कु छ समझ म नह आता!” कु छ झ लाकर च दर ने कहा। िबनती
चुपचाप बैठ गयी। थोड़ी देर बाद च दर बड़े मुलायम वर म बोला, “िबनती, एक दन
तुमने कहा था क म देवता ,ँ तु ह मुझ पर गव है। आज भी तु ह मुझ पर गव है?”
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“पहले से यादा!” िबनती बोली।
“अ छा, ता ुब है!” च दर बोला, “अगर तुम जानती क आजकल कभी-कभी म या
सोचता ँ तो तु ह ता ुब होता! तुम जानती तो, सुधा के इस खत से मुझे जरा-सा भी दुख
नह आ, िसफ झ लाहट ही ई है। म सोच रहा था क य सुधा इतना वाँग भरती है
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नफरत होती जाती है। अभी तक म से स और यार को दो चीज समझता था, यार पर
िव ास करता था, से स से नफरत, अब मुझे दोन ही एक चीज लगती ह और जाने कै से
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मन नह िबगाड़त । बि क मने तो देखा है सभी शादी के बाद मोटी होकर आती ह। और
दीदी अब छोटी-सी नह क ऐसी उनक तबीयत खराब हो जाय। यह सब मन म घुटने का
नतीजा है। जब यह होना ही है तो य दीदी दु:खी होती ह? उ ह तो और मोटी होना
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चािहए।” िबनती बोली।
इस सम या का इतना सरल समाधान सुनकर च दर को हँसी आ गयी।
“अब तुम ससुराल जा रही हो। मोटी होकर आना!”
“धत्, आप तो मजाक करने लगे!”
“ले कन िबनती, तुम इस मामले म बड़ी िव ान मालूम देती हो। अभी तक यह िव ा
कहाँ िछपा रखी थी?”
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“नह , आप मजाक न बनाइए तो म सच बताऊँ क देहाती लड़ कयाँ शहर क लड़ कय से
यादा होिशयार होती ह इन सब मामल म।”
“सच?” च दर ने पूछा। वह गाँव क जंदगी को बेहद िनरीह समझता था।
“हाँ और या? वहाँ इतना दुराव, इतना गोपन नह है। सभी कु छ उनके जीवन का उ मु
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है। और याह के पहले ही वहाँ लड़ कयाँ सबकु छ...”
“अरे नह !” च दर ने बेहद ता ुब से कहा।
“लो यक न नह होता आपको? मुझे कै से मालूम आ इतना। म आपसे कु छ नह िछपाती,
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वहाँ तो सब लोग इसे इतना वाभािवक समझते ह िजतना खाना-पीना, हँसना-बोलना।
बस लड़ कयाँ इस बात म सचेत रहती ह क कसी मुसीबत म न फँ स!”
च दर चुपचाप बैठ चाय पीता रहा। आज तक वह जंदगी को कतना पिव मानता रहा
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था ले कन जंदगी कु छ और ही है। जंदगी अब भी वह है जो सृि के आर भ म थी...और
दुिनया कतनी चालाक है! कतनी भुलावा देती है! अ दर से मन म जहर िछपाकर भी
होठ पर कै सी अमृतमयी मुसकान झलकाती रहती है! यह िबनती जो इतनी शा त, संयत
और भोली लगती थी, इसम भी सभी गुन भरे ह। इस दुिनया म? च दर ने जंदगी को
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परखने म कतना बड़ा धोखा खाया है।... जंदगी यह है-मांसलता और यास और उसके
साथ-साथ अपने को िछपाने क कला।
वह बैठा-बैठा सोचता रहा। सहसा उसने पूछा-
“िबनती, तुम भी देहात म रही हो और सुधा भी। तुम लोग क जंदगी म वह सब कभी
आया?”
िबनती ण-भर चुप रही, फर बोली, “ य , या नफरत करोगे सुनकर!”
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देखा। वह शा त थी, िन वकार थी और िबना कसी िहचक के कहती जा रही थी।
च दर चुप था। िबनती ने अपने पाँव से च दर के पाँव क उँ गिलयाँ दबाते ए पूछा,
“ या सोच रहे ह आप? सुन रहे ह आप?”
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“जाने दो, म नह सुनूँगा। ले कन तुम मुझ पर इतना िव ास य करती हो?” च दर ने
पूछा।
“जाने य ? यहाँ आकर मने दीदी के साथ आपका वहार देखा। फर प मी वाली घटना
ई। मेरे तन-मन म एक िविच -सी ा आपके िलए छा गयी। जाने कै सी अ िच मेरे मन
म दुिनया के िलए थी, आपको देखकर म फर व थ हो गयी।”
“ता ुब है! तु हारे मन क अ िच दूर हो गयी दुिनया के ित और मेरे मन क अ िच बढ़
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गयी। कै से अ त वरोध होते ह मन क ित या म! एक बात पूछूँ, िबनती! तुम मेरे
इतने समीप रही हो। सैकड़ बार ऐसा आ होगा जो मेरे िवषय म तु हारे मन म शंका
पैदा कर देता, तुम सैकड़ बार मेरे िसर को अपने व पर रखकर मुझे सा वना दे चुक
हो। तुम मुझे ब त यारी हो, ले कन तुम जानती हो म तु ह यार नह करता ,ँ फर यह
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सब या है, य है?”
िबनती चुप रही-”पता नह य है? मुझे इसम कभी कोई पाप नह दखा और कभी दखा
भी तो मन ने कहा क आप इतने पिव ह, आपका च र इतना ऊँचा है क मेरा पाप भी
is
आपको छू कर पिव हो जाएगा।”
“ले कन िबनती...”
“बस?” िबनती ने च दर को टोककर कहा, “इससे अिधक आप कु छ मत पूिछए, म हाथ
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जोड़ती !ँ ”
च दर चुप हो गया।
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च दर िजतना सुलझाने का यास कर रहा था, चीज उतनी ही उलझती जा रही थ । सुधा
ने जंदगी का एक प च दर के सामने रखा था। िबनती उसे दूसरी दुिनया म ख च लायी।
कौन सच है, कौन झूठ? वह कसका ितर कार करे , कसको वीकार करे । अगर सुधा
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गलती पर है तो च दर का िज मा है, च दर ने सुधा क ह या क है...ले कन कतनी िभ
ह दोन बहन! िबनती कतनी ावहा रक, कतनी यथाथ, संयत और सुधा कतनी
आदश, कतनी क पनामयी, कतनी सू म, कतनी ऊँची, कतनी सुकुमार और पिव ।
जीवन क सम या के अ त वरोध म जब आदमी दोन प को समझ लेता है तब
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उसके मन म एक ठहराव आ जाता है। वह भावना से ऊपर उठकर व छ बौि क धरातल
पर जंदगी को समझने क कोिशश करने लगता है। च दर अब भावना से हटकर जंदगी
को समझने क कोिशश करने लगा था। वह अब भावना से डरता था। भावना के तूफान म
is
इतनी ठोकर खाकर अब उसने बुि क शरण ली थी और एक पलायनवादी क तरह
भावना से भाग कर बुि क एकांिगता म िछप गया था। कभी भावुकता से नफरत करता
था, अब वह भावना से ही नफरत करने लगा था। इस नफरत का भोग सुधा और िबनती
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दोन को ही भुगतना पड़ा। सुधा को उसने एक भी खत नह िलखा और िबनती से एक दन
भी ठीक से बात नह क ।
जब भावना और सौ दय के उपासक को बुि और वा तिवकता क ठे स लगती है तब वह
सहसा कटु ता और ं य से उबल उठता है। इस व च दर का मन भी कु छ ऐसा ही हो
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गया था। जाने कतने जहरीले काँटे उसक वाणी म उग आये थे, िज ह वह कभी भी कसी
को चुभाने से बाज नह आता था। एक िनमम िनरपे ता से वह अपने जीवन क सीमा म
आने वाले हर ि को कटु ता के जहर से अिभिष करता चलता था। सुधा को वह कु छ
िलख नह सकता था। प मी यहाँ थी नह , ले-देकर बची अके ली िबनती िजसे इन जहरीले
वाण का िशकार होना पड़ रहा था। िसत बर बीत रहा था और अब वह गाँव जाने क
तैयारी कर रही थी। डॉ टर साहब ने दस बर तक क छु ी ली थी और वे भी गाँव जाने
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पकड़कर ब त अनुनय से कहा-”आपको यह या होता जा रहा है? अगर आप ऐसे ही करगे
तो हम दीदी को िलख दगे!”
च दर बड़ी भयावनी हँसी हँसा-”दीदी को या िलखोगी? मुझे अब उसक परवा नह । वह
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दन गये, िबनती! ब त बन िलये हम।”
“हाँ, च दर बाबू, आप लड़क होते तो समझते!”
“सब समझता ँ म, कै सा दोहरा नाटक खेलती ह लड़ कयाँ! इधर अपराध करना, उधर
मुखिबरी करना।”
िबनती चुप हो गयी। एक दन जब च दर कॉलेज से आया तो उसके िसर म दद हो रहा था।
वह आकर चुपचाप लेट गया। िबनती ने आकर पूछा तो बोला, “ य , य म बतलाऊँ क
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या है, तुम िमटा दोगी?”
िबनती ने च दर के िसर पर हाथ रखकर कहा, “च दर, तु ह या होता जा रहा है? देखो
कै सी हि याँ िनकल आयी ह इधर। इस तरह अपने को िमटाने से या फायदा?”
“िमटाने से?” च दर उठकर बैठ गया-”म िमटाऊँगा अपने को लड़ कय के िलए? िछः, तुम
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लोग अपने को या समझती हो? या है तुम लोग म िसवा एक नशीली मांसलता के ?
इसके िलए म अपने को िमटाऊँगा?”
िबनती ने च दर को फर िलटा दया।
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“इस तरह अपने को धोखा देने से या फायदा, च दर बाबू? म जानती ँ दीदी के न होने
से आपक जंदगी म कतना बड़ा अभाव है। ले कन...”
“दीदी के न होने पर? या मतलब है तु हारा?”
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“मेरा मतलब आप खूब समझते ह। म जानती ,ँ दीदी होत तो आप इस तरह न िमटाते
अपने को। म जानती ँ दीदी के िलए आपके मन म या था?” िबनती ने िसर म तेल डालते
ए कहा।
“दीदी के िलए या था?” च दर हँसा, बड़ी िविच हँसी-”दीदी के िलए मेरे मन म एक
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िबनती!”
“म आपको पागल नह होने दूग ँ ी। म आपको छोडक़र नह जाऊँगी।”
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“ य ? तु हारे रहने से या होगा? तुम सुधा नह हो। तुम सुधा नह हो सकती! जो सुधा है
मेरी जंदगी म, वह कोई नह हो सकता। समझ ? और मुझ पर एहसान मत जताओ! म
मर जाऊँ, म पागल हो जाऊँ, कसी का साझा! य तुम मुझ पर इतना अिधकार समझने
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लग -अपनी सेवा के बल पर? म इसक र ी-भर परवा नह करता। जाओ, यहाँ से!” और
उसने िबनती को धके ल दया, तेल क शीशी उठाकर बाहर फक दी।
िबनती रोती ई चली गयी। च दर उठा और कपड़े पहनकर बाहर चल दया, “ ,ँ ये
लड़ कयाँ समझती ह अहसान कर रही ह मुझ पर!”
िबनती के जाने क तैयारी हो गयी थी और िलया- दया जाने वाला सारा सामान पैक हो
रहा था। डॉ टर साहब भी महीने-भर क छु लेकर साथ जा रहे थे। उस दन क घटना के
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बाद फर िबनती च दर से िब कु ल ही नह बोली थी। च दर भी कभी नह बोला।
ये लोग कार पर जाने वाले थे। सारा सामान पीछे-आगे लादा जाने वाला था। डॉ टर
साहब कार लेकर बाजार गये थे। च दर उनका हो डॉल सँभाल रहा था। िबनती आयी और
बोली, “म आपसे बात कर सकती ?ँ ”
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“हाँ, हाँ! तुम उस दन क बात का बुरा मान गय ! अमूमन लड़ कयाँ स ी बात का बुरा
मान जाती ह! बोलो, या बात है?” च दर ने इस तरह कहा जैसे कु छ आ ही न हो।
िबनती क आँख म आँसू थे, “च दर, आज म जा रही !ँ ”
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“हाँ, यह तो मालूम है, उसी का इ तजाम कर रहा !ँ ”
“पता नह मने या अपराध कया च दर क तु हारा ेह खो बैठी। ऐसा ही था च दर तो
आते ही आते इतना ेह तुमने दया ही य था?...म तुमसे कभी भी दीदी का थान नह
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माँग रही थी...तुमने मुझे गलत य समझा?”
“नह , िबनती! म अब ेह इ या द पस द नह करता ।ँ पूण प रप मनु य ँ और ये सब
भावनाएँ अब अ छी नह लगत मुझे। ेह वगैरह क दुिनया अब मुझे बड़ी उथली लगती
है!”
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“तभी च दर! इतने दन मने रोते-रोते िबताये। तुमने एक बार पूछा भी नह । जंदगी म
िसवा दीदी और तु हारे , कौन था? तुमने मेरे आँसु क परवा नह क । तु ह कसूर नह
देती; कसूर मेरा ही होगा, च दर!”
“नह , कसूर क बात नह िबनती! औरत के रोने क कहाँ तक परवा क जाए, वे कु े,
िब ली तक के िलए उतने ही दु:ख से रोती ह।”
“खैर, च दर! ई र करे तुम जीवन-भर इतने मजबूत रहो। मने अगर कभी तु हारे िलए
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न क ँ गी। ले कन या चलते व आशीवाद भी न दोगे? कु छ आगे का रा ता न
बताओगे?”
िबनती ने झुककर च दर के पैर पकड़ िलये और िससक-िससककर रोने लगी। च दर ने
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िबनती को उठाया और पास क कु स पर िबठा दया और िसर पर हाथ रखकर बोला,
“आशीवाद देवता से माँगा जाता है। म अब ेत हो चुका ,ँ िबनती!”
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नह था। वह हार भी जाये ले कन हार वीकार करना उसे नह आता था। उसके मन म
अब स ाटा था, अपने मन के पूजागृह म थािपत सुधा क पावन, ांजल देवमू त को
उसने कठोरता से उठाकर बाहर फक दया था। मि दर क मू तमयी पिव ता, िबनती को
अपमािनत कर दया था और मि दर के पूजा-उपकरण को, अपने जीवन के आदश और
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मानदंड को उसने चूर-चूर कर डाला था, और बुतिशकन िवजेता क तरह ू रता से हँसते
ए मि दर के भ ावशेष पर कदम रखकर चल रहा था। उसका मन टू टा आ खँडहर था
िजसके उजाड़, बेछत कमर म चमगादड़ बसेरा करते ह और िजसके वंसावशेष पर
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िगरिगट पहरा देते ह। काश क कोई उन खँडहर क ट उलटकर देखता तो हर प थर के
नीचे पूजा-म िससकते ए िमलते, हर धूल क पत म घं टय क बेहोश विनयाँ
िमलत , हर कदम पर मुरझाये ए पूजा के फू ल िमलते और हर शाम-सवेरे भ देवमू त
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का क ण दन दीवार पर िसर पटकता आ िमलता...ले कन च दर ऐसा-वैसा दु मन
नह था। उसने मि दर को चूर-चूर कर उस पर अपने गव का पहरा लगा दया था क कभी
भी कोई उस पर खँडहर के अवशेष कु रे दकर पुराने िव ास, पुरानी अनुभूितयाँ, पुरानी
पूजाएँ फर से न जगा दे। बुतिशकन तो मि दर तोडऩे के बाद सारा शहर जला देता है,
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तोड़ रहा हो और बालू के टील क अधमरी छायाएँ लहरदार बालू पर धीरे -धीरे रग रही
ह।
िबनती के याह को प ह दन रह गये थे क सुधा का एक प आया...
“मेरे देवता, मेरे नयन, मेरे पंथ, मेरे काश!
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आज कतने दन बाद तु ह खत िलखने का मौका िमल रहा है। सोचा था, िबनती के याह
के महीने-भर पहले गाँव आ जाऊँगी तो एक दन के िलए तु ह आकर देख जाऊँगी। ले कन
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इरादे इरादे ह और जंदगी जंदगी। अब सुधा अपने जेठ और सास के लड़के क गुलाम है।
याह के दूसरे दन ही चला जाना होगा। तु ह यहाँ बुला लेती, ले कन यहाँ ब धन और
परदा तो ससुराल से भी बदतर है।
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मने िबनती से तु हारे बारे म ब त पूछा। वह कु छ नह बतायी। पापा से इतना मालूम आ
क तु हारी थीिसस छपने गयी है। क वोके शन नजदीक है। तु ह याद है, वायदा था क
तु हारा गाउन पहनकर म फोटो खंचवाऊँगी। वह दन याद करती ँ तो जाने कै सा होने
लगता है! एक क वोके शन क फोटो खंचवाकर ज र भेजना।
या तुमने िबनती को कोई दु:ख दया था? िबनती हरदम तु हारी बात पर आँसू भर लाती
है। मने तु हारे भरोसे िबनती को वहाँ छोड़ा था। म उससे दूर, माँ का सुख उसे िमला नह ,
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िपता मर गये। या तुम उसे इतना भी यार नह दे सकते? मने तु ह बार-बार सहेज दया
था। मेरी त दु ती अब कु छ-कु छ ठीक है, ले कन जाने कै सी है। कभी-कभी िसर म दद होने
लगता है। जी िमचलाने लगता है। आजकल वह ब त यान रखते ह। ले कन वे मुझको
समझ नह पाये। सारे सुख और आजादी के बीच म कतनी अस तु ।ँ म कतनी परे शान
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।ँ लगता है हजार तूफान हमेशा नस म घहराया करते ह।
च दर, एक बात क ँ अगर बुरा न मानो तो। आज शादी के छह महीने बाद भी म यही
क ग ँ ी च दर क तुमने अ छा नह कया। मेरी आ मा िसफ तु हारे िलए बनी थी, उसके
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रे शे म वे त व ह जो तु हारी ही पूजा के िलए थे। तुमने मुझे दूर फक दया, ले कन इस दूरी
के अँधेरे म भी ज म-ज मा तर तक भटकती ई िसफ तु ह को ढू ँढूँगी, इतना याद रखना
और इस बार अगर तुम िमल गये तो जंदगी क कोई ताकत, कोई आदश, कोई िस ा त,
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कोई वंचना मुझे तुमसे अलग नह कर सके गी। ले कन मालूम नह पुनज म सच है या
झूठ! अगर झूठ है तो सोचो च दर क इस अना दकाल के वाह म िसफ एक बार...िसफ
एक बार मने अपनी आ मा का स य ढू ँढ़ पाया था और अब अन तकाल के िलए उसे खो
दया। अगर पुनज म नह है तो बताओ मेरे देवता, या होगा? करोड़ सृि याँ ह गी,
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चलाता है य - य च घूमने लगता है; घं टयाँ बजने लगती ह। नीलू ब त खुश होता है
ले कन चूहा थककर बेदम होकर नीचे िगर पड़ता है। कु छ ऐसे ही च म फँ स गयी ,ँ
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“ि य सुधा,
तु हारी प ब त दन के बाद िमला। तु हारी भाषा वहाँ जाकर ब त िनखर गयी है। म
तो समझता ँ क अगर खत कह छु पा दया जाये तो लोग इसे कसी रोमां टक उप यास
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का अंश समझ, य क उप यास के ही पा ऐसे खत िलखते ह, वा तिवक जीवन के नह ।
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िवनती करता ँ य क आ ा देने का अब साहस भी नह , अिधकार भी नह , ि व भी
नह । खत तु हारा तु ह भेज रहा ।ँ
कभी जंदगी म कोई ज रत आ पड़े तो ज र याद करना-बस, इसके अलावा कु छ नह ।
अपने म स तु -च कु मार कपूर।”
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उसके बाद फर वही सुनसान जंदगी का ढरा। खँडहर के स ाटे म भूलकर आयी ई
बाँसुरी क आवाज क तरह सुधा का प , सुधा का यान आया और चला गया। खँडहर का
स ाटा, स ाटे के उ लू, िगरिगट और प थर काँपे और फर मु तैदी से अपनी जगह पर
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जम गये और उसके बाद फर वही उदास स ाटा, टू टता आ-सा अके लापन और मू छत
दोपहरी के फू ल-सा च दर...
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उठी थी। च दर अपना पुराना क थई वेटर और पीले रं ग के प मीने का ल बा कोट पहने
लॉन पर टहल रहा था। छोटे-छोटे िप ले दूब पर कलोल कर रहे थे। सहसा एक कार
आकर क और प मी उसम से कू द पड़ी और ाँरी िहरणी क तरह दौडक़र च दर के पास
प चँ गयी-”हलो माई वॉय, म आ गयी!”
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च दर कु छ नह बोला, “आओ, ाइं ग म म बैठो!” उसने उसी मुदा-सी आवाज म कहा।
उसे प मी के आने क कोई स ता नह थी। प मी उसके उदास चेहरे को देखती रही,
फर उसके क धे पर हाथ रखकर बोली, “ य कपूर, कु छ बीमार हो या?”
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“नह तो, आजकल मुझे िमलना-जुलना अ छा नह लगता। अके ला घर भी है!” उसने उसी
फ क आवाज म कहा।
“ य , िमस सुधा कहाँ है? और डॉ टर शु ला!”
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“वे लोग िमस िबनती क शादी म गये ह।”
“अ छा, उसक शादी भी हो गयी, डैम इट। जैसे ये लोग पागल हो गये ह, बट , सुधा,
िबनती!... य , िमलते-जुलते य नह तुम?”
“य ही, मन नह होता।”
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गयी और पादरी से बोली, 'अभी शादी करा दो।' उसने शादी करा दी। लौटकर जेनी ने बट
का िशकारी सूट फाड़ डाला और अ छा-सा सूट पहना दया। बड़े िविच ह दोन । एक
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दन सद के व बट वेटर उतारकर जेनी के कमरे म गया तो मारे गु से के जेनी ने िसवा
पतलून के सारे कपड़े उतारकर बट को कमरे से बाहर िनकाल दया। म तो जब से आयी
,ँ रोज नाटक देखती ।ँ हाँ, देखो यह तो म भूल ही गयी थी...” और उसने अपनी जेब से
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पीतल क एक छोटी-सी मू त िनकालकर मेज पर रखी-”एक भो टया औरत इसे बेच रही
थी। मने इसे माँगा तो वह बोली-यह िसफ मद के िलए है।' मने पूछा, ' य ?' तो बोली-
'इसे अगर मद पहन ले तो उस पर कसी औरत का जादू नह चलता। वह औरत या तो मर
जाती है या भाग जाती है या उसका याह कसी दूसरे से हो जाता है।' तो मने सोचा,
तु हारे िलए लेती चलूँ।”
च दर ने देखा वह अवलो कते र क महायानी मू त थी। उसने हँसकर उसे ले िलया फर
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बोला, “और या लायी अपने िलए?”
“अपने िलए एक नया रह य लायी ।ँ ”
“ या?”
“इधर देखो, मेरी ओर, म सु दर लगती ?ँ ”
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च दर ने देखा। प मी अठारह साल क लड़क -सी लगने लगी है। चेहरे के कोने भी जैसे
गोल हो गये थे और मुँह पर ब त ही भोलापन आ गया था, आँख म ाँरापन आ गया था,
चेहरे पर सोना और के सर, च पा, हर संगार घुल-िमल गये थे।
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“सचमुच प मी, लगता है जैसे कौमाय लौट आया है तुम पर तो! प रय के कुं ज से अपना
बचपन फर चुरा लायी या?”
“नह कपूर, यही तो रह य लायी ,ँ हमेशा सु दर बने रहने का और प रय के कुं ज से
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नह , गुनाह के कुं ज से। मने िहमालय क छाँह म एक नया संगीत सुना कपूर, मांसलता
का संगीत। मसूरी के समाज म घुल-िमल गयी और मादक अनुभूितयाँ बटोरती रही-िबना
कसी प ा ाप के और मने देखा क दन - दन िनखरती जा रही ।ँ कपूर, से स इतना
बुरा नह िजतना म समझती थी। तु हारी या राय है?”
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“हाँ, म देख रहा ,ँ से स लोग को उतना बुरा नह लगता, िजतना म समझता था।”
“नह च दर, िसफ इतना ही नह , अ छा मान लो जैसे तुम आजकल उदास हो और
तु हारा िसर इस तरह अपनी गोद म रख लूँ तो कु छ स तोष नह होगा तु ह?” और प मी
ने च दर का िसर सचमुच अपने ासा दोिलत व से िचपका िलया। च दर झ लाकर
अलग हट गया। कै सी अजब लड़क है! थोड़ी देर चुप बैठा रहा, फर बोला-
“ य प मी, तुम एक लड़क हो, म तु ह से पूछता -ँ या लड़ कय के ेम म से स
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अिनवाय है?”
“हाँ।” प मी ने प वर म जोर देकर कहा।
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“ले कन दूसरी बात तो सुनो, उसी क एक सखी है। वह जानती है क म उसक सखी को
यार करता ,ँ उसे नह कर सकता। कह से स क तृि का सवाल नह फर भी वह मुझे
यार करती है। इसे तुम या कहोगी?” च दर ने पूछा।
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“यह और दूसरे ढंग क प रि थित है। देखो कपूर, तुमने िह ो ट म के बारे म नह पढ़ा।
ऐसा होता है क अगर कोई िह ो ट ट एक लड़क को िह ोटाइज कर रहा है और बगल म
एक दूसरी लड़क बैठी है जो चुपचाप यह देख रही है तो वातावरण के भाव से अकसर
ऐसा देखा जाता है क वह भी िह ोटाइज हो जाती है, ले कन वह एक िणक मानिसक
मू छा होती है जो टू ट जाती है।” प मी ने कहा।
च दर को लगा जैसे ब त कु छ सुलझ गया। एक ण म उसके मन का ब त-सा भार उतर
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गया।
“प मी, मुझे तु ह एक लड़क िमली जो साफ बात करती हो और एक शु तक और बुि
के धरातल से। बस, म आजकल बुि का उपासक ,ँ भगवान से िचढ़ है।”
“बुि और शरीर बस यही दो आदमी के मूल त व ह। दय तो दोन के अ त:संघष क
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उलझन का नाम है।” प मी ने कहा और सहसा घड़ी देखते ए बोली, “नौ बज रहे ह, चलो
साढ़े नौ से मै टनी है। आओ, देख आएँ!”
“मुझे कॉलेज जाना है, म जाऊँगा नह कह !”
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“आज इतवार है, ोफे सर कपूर?” प मी च दर को उठाकर बोली, “म तु ह उदास नह
होने दूग
ँ ी, मेरे मीठे सपने! तुमने भी मुझे इस उदासी के इ जाल से छु ड़ाया था, याद है
न?” और च दर के माथे पर अपने गरम मुलायम होठ रख दये।
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माथे पर प मी के होठ क गुलाबी आग च दर क नस को गुदगुदा गयी। वह ण-भर के
िलए अपने को भूल गया...प मी के रे शमी ॉक के गुदगुदाते ए पश, उसके व क
अल य गरमाई और उसके पश के जादू म खो गया। उसके अंग-अंग म सुबह क शबनम
ढलकने लगी। प मी उसके बाल को अँगुिलय से सुलझाती रही। फर कपूर के गाल
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थपथपाकर बोली, “चलो!” कपूर जाकर बैठ गया। “तुम ाइव करो।” प मी बोली। च दर
ाइव करने लगा और प मी कभी उसके कॉलर, कभी उसके बाल, कभी उसके होठ से
खेलती रही।
सात चाँद क रानी ने आिखर अपनी िनगाह के जादू से स ाटे के ेत को जीत िलया।
पश के सुकुमार रे शमी तार ने नगर क आग को शबनम से स च दया। ऊबड़-खाबड़
खंडहर को अंग के गुलाब क पाँखु रय से ढँक दया और पीड़ा के अँिधयारे को सीिपया
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एक मासूम फू ल क तरह बहा ले गया...जहाँ पूजा-दीप बुझ गया था, वहाँ त णाई क
साँस क इ धनुषी समाँ िझलिमला उठी थी, जहाँ फू ल मुरझाकर धूल म िमल गये थे वहाँ
पुखराजी पश के सुकुमार हर संगार झर पड़े....आकाश के चाँद के िलए जंदगी के आँगन
म मचलता आ क हैया, थाली के ितिब ब म ही भूल गया...
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गये, प मी के िबना एक शाम नह बीत पाती, ले कन अब भी च दर ने अपने को इतना दूर
रखा था क कभी प मी के होठ के गुलाब ने च दर के होठ के मूँगे से बात भी नह क
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म िसफ नशा और नीरसता थी, वह दय के एक कोने म िसफ एक सुकुमार भावना शेष
रह गयी थी, वह थी डॉ टर शु ला के ित। वह भावना कृ त ता क भावना नह थी,
डॉ टर शु ला इतने दूर नह थे क अब वह उनके ित कृ त हो, इतने बड़े हो जाने पर भी
वह जब कभी डॉ टर को देखता था तो लगता था जैसे कोई न हा ब ा अपने अिभभावक
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क गोद म आकर िनि त हो जाता हो।
उसने पास आकर देखा, डॉ टर साहब बरामदे म टहल रहे थे। च दर दौडक़र उनके पाँव
पर िगर पड़ा। डॉ टर साहब ने उसे उठाकर गले से लगा िलया और बड़े यार से उसक
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पीठ पर हाथ फे रते ए बोले-”क वोके शन हो गया? िड ी जीत लाये?”
“जी हाँ!” बड़ी िवन ता से च दर ने कहा।
“ब त ठीक, अब डी. िलट् . क तैयारी करो। तु ह ज दी ही स ल गवनमट म जाना है।”
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डॉ टर साहब बोले, “म तो पं ह जनवरी को द ली जा रहा ।ँ कम-से-कम साल भर के
िलए?”
“इतनी ज दी; ऑफर कब आया?” च दर ने अचरज से पूछा।
“म उन दन द ली गया था न, तभी एजुकेशन िमिन टर से बात ई थी!” डॉ टर साहब
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लौट आयी?”
“िबनती गयी ही कहाँ?” डॉ टर साहब ने ब त चुपचाप िसर झुका कर कहा और ब त
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णाम कया, िसर को आँचल से ढँककर चुपचाप दाल पीसने लगी, कु छ बोली नह । च दर
ने णाम कया और जाकर बुआ के पैर छू िलये।
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“अरे च दर है, आओ बेटवा, हम तो लुट गये!” और बुआ वह देहरी पर िसर थामकर बैठ
गय ।
“ या आ, बुआजी?”
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“होता का भइया! जौन बदा रहा भाग म ओ ही भवा।” और बुआ अपनी धोती से आँसू
प छकर बोल , “ हमरी छाती पर मूँग दरै के िलए बदी रही तौन जमी है। भगवान कौन
को ऐसी कलं कनी िब टया न दे। तीन भाँवरी के बाद बारात उठ गयी, भइया! हमारा तो
कु ल डू ब गया।” और बुआजी ने उ वर म दन शु कया। िबनती ने चुपचाप हाथ धोये
और उठकर छत पर चली गयी।
“चुप रहो हो। अब रोय-रोय के काहे िजउ ह कान करत हउ। गुनव ती िब टया बाय,
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ह ारन आय के िब टया के िलए गोड़े िग रह। अपना एका त होई के बैठो!” महरािजन ने
पूड़ी उतारते ए कहा।
“आिखर बात या ई, महरािजन?” च दर ने पूछा।
महरािजन ने जो बताया उससे पता लगा क लड़के वाले ब त ही संक णमना और वाथ
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थे। पहले मालूम आ क लड़काउ ह ने ेजुएट बताया था। वह था इं टर फे ल। फर दरवाजे
पर झगड़ा कया उ ह ने। डॉ टर साहब ब त िबगड़ गये, अ त म मड़वे म लोग ने देखा
क लड़के के बाय हाथ क अँगुिलयाँ गायब ह। डॉ टर साहब इस बात पर िबगड़े और
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उ ह ने मड़वे से िबनती को उठवा दया। फर ब त लड़ाई ई। लाठी तक चलने क नौबत
आ गयी। जैसे-तैसे झगड़ा िनपटा। तीन भाँवर के बाद याह टू ट गया।
“अब बताओ, भइया!” सहसा बुआ आँसू प छकर गरज उठ -”ई इ ह का इ गवा रहा,
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इनक मित मारी गयी। गु से म आय के िबनती को उठवाय िलिहन। अब हम ए ी बड़ी
िब टया लै के कहाँ जा ? अब हमरी िबरादरी म कौन पूछी एका? ए ा पढ़-िलख के इ ह
का सूझा? अरे लड़क वाले हमेशा दब के चलै चाह ।”
“अरे तो या आँख ब द कर लेते? लँगड़े-लूले लड़के से कै से याह कर देते, बुआ! तुम भी
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भगवान का भजन करो। समझी क नह !”
च दर ने ता ुब से िबनती क ओर देखा। वह वही िबनती है जो माँजी क जरा-जरा-सी
बात से िलपटकर रोया करती थी। िबनती का चेहरा तमतमाया आ था और गु से से बदन
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काँप रहा था। बुआ उछलकर खड़ी हो गय और दुगुनी चीखकर बोल , “अब ब त जबान
चलै लगी है। कौन है तोर जे के बल पर ई चमक दखावत है? हम काट के धर देबै, तोके
बताय देइत हई। मुँहझ सी! ऐसी न होती तो काहे ई दन देखै पड़त। उ ह तो खाय गयी,
हम ँ का खाय लेव!” अपना मुँह पीटकर बुआ बोल ।
“तुम इतनी मीठी नह हो माँजी क तु ह खा लूँ!” िबनती ने और तड़पकर जवाब दया।
च दर त ध हो गया। यह िबनती पागल हो गयी है। अपनी माँ को या कह रही है!
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“िछः, िबनती! पागल हो गयी हो या? चलो उधर!” च दर ने डाँटकर कहा।
“चुप रहो, च दर! हम भी आदमी ह, हमने िजतना बदा त कया है, हम जानते ह। हम
य बदा त कर! और तुमसे या मतलब? तुम कौन होते हो हमारे बीच म बोलने वाले?”
“ या है यह सब? तुम लोग सब पागल हो गये हो या? िबनती, यह या हो रहा है?”
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सहसा डॉ टर साहब ने आकर कहा।
िबनती दौडक़र डॉ टर साहब से िलपट गयी और रोकर बोली, “मामाजी, मुझे दीदी के
पास भेज दीिजए! म यहाँ नह र ग ँ ी।”
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“अ छा बेटी! अ छा! जाओ च दर!” डॉ टर साहब ने कहा। िबनती चली गयी तो बुआ जी
से बोले, “तु हारा दमाग खराब हो गया है। उस पर गु सा उतारने से या फायदा? हमारे
सामने ये सब बात करोगी तो ठीक नह होगा।”
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“अरे हम काहे बोलबै! हम तो मर जा तो अ छा है...” बुआजी पर जैसे देवी माँ आ गयी
ह इस तरह से झूम-झूमकर रो रही थ ...”हम तो वृ दावन जाय के डू ब मर ! अब हम तुम
लोगन क सकल न देखबै। हम मर जा तो चाहे िबनती को पढ़ायो चाहे नचायो-गवायो।
हम अपनी आँख से न देखबै।”
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दूसरे दन िबनती उठी और महरािजन के आने के पहले ही उसने चू हा जलाकर चाय चढ़ा
दी। थोड़ी देर म चाय बनाकर और टो ट भूनकर वह डॉ टर साहब के सामने रख आयी।
डॉ टर साहब कल क बात से ब त ही िथत थे। रात को भी उ ह ने खाना नह खाया
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था, इस व भी उ ह ने मना कर दया। िबनती च दर के कमरे म गयी, “च दर, मामाजी
ने कल रात को भी कु छ नह खाया, तुमने भी नह खाया, चलो चाय पी लो!”
च दर ने भी मना कया तो िबनती बोली, “तुम पी लोगे तो मामाजी भी शायद पी ल।”
च दर चुपचाप गया। िबनती थोड़ी देर म गयी तो देखा दोन चाय पी रहे ह। वह आकर
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मेवा िनकालने लगी।
चाय पीते-पीते डॉ टर साहब ने कहा, “च दर, यह पास-बुक लो। पाँच सौ िनकाल लो और
दो हजार का िहसाब अलग करवा दो।...अ छा देखो, म तो चला जाऊँगा द ली, िबनती
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को शाहजहाँपुर भेजना ठीक नह है। वहाँ चार र तेदार ह, बीस तरह क बात ह गी।
ले कन म चाहता ँ अब आगे जब तक यह चाहे, पढ़े! अगर कहो तो यहाँ छोड़ जाऊँ, तुम
पढ़ाते रहना!”
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िबनती आ गयी और त तरी म भुना मेवा रखकर उसम नमक िमला रही थी। च दर ने एक
लाइस उठायी और उस पर नमक लगाते ए बोला, “वैसे आप यहाँ छोड़ जाएँ तो कोई
बात नह है, ले कन अके ले घर म अ छा नह लगता। दो-एक रोज क बात दूसरी होती है।
एकदम से साल-भर के िलए...आप समझ ल।”
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“हाँ बेटा, कहते तो तुम ठीक हो! अ छा, कॉलेज के हो टल म अगर रख दया जाए!”
डॉ टर साहब ने पूछा।
“म लड़ कय को हो टल म रखना ठीक नह समझता ।ँ ” च दर बोला, “घर के वातावरण
और वहाँ के वातावरण म ब त अ तर होता है।”
“हाँ, यह भी ठीक है। अ छा तो इस साल म इसे द ली िलये जा रहा हॅ।ँ अगले साल देखा
जाएगा...च दर, इस महीने-भर म मेरा सारा िव ास िहल गया। सुधा का िववाह कतनी
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अ छी जगह कया गया, मगर सुधा पीली पड़ गयी है। कतना दु:ख आ देखकर! और
िबनती के साथ यह आ! सचमुच यह जाित, िववाह सभी पर पराएँ ब त ही बुरी ह। बुरी
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तरह सड़ गयी ह। उ ह तो काट फकना चािहए। मेरा तो वैसे इस अनुभव के बाद सारा
आदश ही बदल गया।”
च दर ब त अचरज से डॉ टर साहब क ओर देखने लगा। यही जगह थी, इसी तरह
बैठकर डॉ टर साहब ने जाित-िबरादरी, िववाह आ द सामािजक पर परा क कतनी
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सामािजक सं थाएँ वग ह, यह तो जब उनम धँसो तब उनक गंदगी मालूम होती है।
च दर, तुम कोई गैर जात का अ छा-सा लड़काढू ँढ़ो। म िबनती क शादी दूसरी िबरादरी म
कर दूगँ ा।”
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िबनती, जो और चाय ला रही थी, फौरन बड़े दृढ़ वर म बोली, “मामाजी, आप जहर दे
दीिजए ले कन म शादी नह क ँ गी। या आपको मेरी दृढ़ता पर िव ास नह ?”
“ य नह , बेटी! अ छा, जब तक तेरी इ छा हो, पढ़!”
दूसरे दन डॉ टर साहब ने बुआजी को बुलाया और पये दे दये।
“लो, यह पाँच सौ पहले खच के ह और दो हजार म से तु ह धीरे -धीरे िमलता रहेगा।”
दो-तीन दन के अ दर बुआ ने जाने क सारी तैयारी कर ली, ले कन तीन दन तक बराबर
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रोती रह । उनके आँसू थमे नह । िबनती चुप थी। वह भी कु छ नह बोली, चौथे दन जब
वह सामान मोटर पर रखवा चुक तो उ ह ने च दर से िबनती को बुलवाया। िबनती आयी
तो उ ह ने उसे गले से लगा िलया-और बेहद रोय । ले कन डॉ टर साहब को देखते ही फर
बोल उठ -”हमरी लड़क का दमाग तुम ही िबगाड़े हो। दुिनया म भाइयौ अपना नै होत।
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अपनी लड़क को िबया दयौ! हमरी लड़क ...” फर िबनती को िचपटाकर रोने लग ।
च दर चुपचाप खड़ा सोच रहा था, अभी तक िबनती खराब थी। अब डॉ टर साहब खराब
हो गये। बुआ ने पये सँभालकर रख िलये और मोटर पर बैठ गय । सम त लांछन के
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बावजूद डॉ टर साहब उ ह प च ँ ाने टेशन तक गये।
िबनती ब त ही चुप-सी हो गयी थी। वह कसी से कु छ नह बोलती और चुपचाप काम
कया करती थी। जब काम से फु रसत पा लेती तो सुधा के कमरे म जाकर लेट जाती और
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जाने या सोचा करती। च दर को बड़ा ता ुब होता था िबनती को देखकर। जब िबनती
खुश थी, बोलती-चालती थी तो च दर िबनती से िचढ़ गया था, ले कन िबनती के जीवन
का यह नया प देखकर पहले क सभी बात भूल गया। और उससे फर बात करने क
कोिशश करने लगा। ले कन िबनती यादा बोलती ही नह ।
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मनु य का एक वभाव होता है। जब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है क
याचक पूरी तरह िवन होकर उसे वीकार करे । अगर याचक दान लेने म कह भी
वािभमान दखलाता है तो आदमी अपनी दानवृि और दयाभाव भूलकर नृशंसता से
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उसके वािभमान को कु चलने म त हो जाता है। आज ह त के बाद च दर के मन म
िबनती के िलए कु छ ेह, कु छ दया जागी थी, िबनती को उदास मौन देखकर; ले कन
िबनती के इस वािभमान-भरे उ र ने फर उसके मन का सोया आ साँप जगा दया था।
वह इस वािभमान को तोड़कर रहेगा, उसने सोचा।
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प मी के यहाँ प चँ ा तो अभी धूप थी। जेनी कह गयी थी, बट अपने तोते को कु छ िखला
रहा था। कपूर को देखते ही हँसकर अिभवादन कया और बोला, “प मी अ दर है!” वह
सीधा अ दर चला गया। प मी अपने शयन-क म बैठी ई थी। कमरे म ल बी-ल बी
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िखड़ कयाँ थ िजनम लकड़ी के चौखट म रं ग-िबरं गे शीशे लगे ए थे। िखड़ कयाँ ब द थ
और सूरज क करण इन शीश पर पड़ रही थ और प मी पर सात रं ग क छायाएँ खेल
रही थ । वह झुक ई सोफे पर अधलेटी कोई कताब पढ़ रही थी। च दर ने पीछे से जाकर
उसक आँख ब द कर ल और बगल म बैठ गया।
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“कपूर!” अपनी सुकुमार अँगुिलय से च दर के हाथ को आँख पर से हटाते ए प मी
बोली और पलक म बेहद नशा भरकर सोनजुही क मु कान िबखेरकर च दर को देखने
लगी। च दर ने देखा, वह ाउ नंग क किवता पढ़ रही थी। वह पास बैठ गया।
is
प मी ने उसे अपने व पर ख च िलया और उसके बाल से खेलने लगी। च दर थोड़ी देर
चुप लेटा रहा, फर प मी के गुलाबी होठ पर अँगुिलयाँ रखकर बोला, “प मी, तु हारे व
पर िसर रखकर म जाने य सबकु छ भूल जाता ?ँ प मी, दुिनया वासना से इतना
gl
घबराती य है? म ईमानदारी से कहता ँ क अगर कसी को वासनाहीन यार करके ,
कसी के िलए याग करके मुझे िजतनी शाि त िमलती है, पता नह य मांसलता म भी
उतनी ही शाि त िमलती है। ऐसा लगता है क शरीर के िवकार अगर आ याि मक ेम म
जाकर शा त हो जाते ह तो लगता है आ याि मक ेम म यासे रह जाने वाले अभाव फर
En
कसी के मांसल-ब धन म ही आकर बुझ पाते ह। कतना सुख है तु हारी ममता म!”
“शी!” च दर के होठ को अपनी अँगुिलय से दबाती ई प मी बोली, “चरम शाि त के
ण को अनुभव कया करो। बोलते य हो?”
च दर चुप हो गया। चुपचाप लेट रहा।
प मी क के सर ास उसके माथे को रह-रहकर चूम रही थ और च दर के गाल को प मी
के व म धड़कता आ संगीत गुदगुदा रहा था। च दर का एक हाथ प मी के गले म पड़ी
s
इमीटेशन हीरे क माला से खेलने लगा। सारस के पंख से भी यादा मुलायम सुकुमार
गरदन से छू टने पर अँगुिलयाँ लाजव ती क पि य क तरह सकु चा जाती थ । माला खोल
el
ली और उसे उतारकर अपने हाथ म ले िलया। प मी ने माला लेने के िलए हाथ बढ़ाया ही
था क गले के बटन टच-से टू ट गये...बफानी चाँदनी उफनकर छलक पड़ी। च दर को लगा
उसके गाल के नीचे िबजिलय के फू ल िसहर उठे ह और एक मदमाता नशा टू टते ए
िसतार क तरह उसके शरीर को चीरता आ िनकल गया। वह काँप उठा, सचमुच काँप
ov
उठा। नशे म चूर वह उठकर बैठ गया और उसने प मी को अपनी गोद म डाल िलया।
प मी अनंग के धनुष क यंचा क तरह दोहरी होकर उसक गोद म पड़ रही। त णाई
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का चाँद टू टकर दो टु कड़े हो गया था और वासना के तूफान ने झीने बादल भी हटा दये थे।
जहरीली चाँदनी ने नािगन बनकर च दर को लपेट िलया। च दर ने पागल होकर प मी को
अपनी बाँह म कस िलया, इतनी यास से लगा क प मी का दीपिशखा-सा तन च दर के
Hi
तन म समा जाएगा। प मी िन े आँख ब द कये थी ले कन उसके गाल पर जाने या
िखल उठा था! च दर के गले म उसने मृणाल-सी बाँह डाल दी थ । च दर ने प मी के होठ
को जैसे अपने ह ठ म समेट लेना चाहा...इतनी आग...इतनी आग...नशा...
“ठाँय!” सहसा बाहर ब दूक क आवाज ई। च दर च क उठा। उसने अपने बा पाश ढीले
कर दये। ले कन प मी उसके गले म बाँह डाले बेहोश पड़ी थी। च दर ने ण-भर प मी के
भरपूर प यौवन को आँख से पी लेना चाहा। प मी ने अपनी बाँह हटा ल और नशे म
&
मखमूर-सी च दर क गोद से एक ओर लुढ़क गयी। उसे अपने तन-बदन का होश नह था।
च दर ने उसके व ठीक कये और फर झुककर उसक नशे म चूर पलक चूम ल ।
“ठाँय!” ब दूक क दूसरी आवाज ई। च दर घबराकर उठा।
“यह या है, प मी?”
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“होगा कु छ, जाओ मत।” अलसायी ई नशीली आवाज म प मी ने कहा और उसे फर
ख चकर िबठा िलया। और फर बाँह म उसे समेटकर उसका माथा चूम िलया।
“ठाँय!” फर तीसरी आवाज ई। is
च दर उठ खड़ा आ और ज दी से बाहर दौड़ गया। देखा बट क ब दूक बरामदे म पड़ी
है, और वह पंजड़े के पास मरे ए तोते का पंख पकडक़र उठाये ए है। उसके घाव से बट
के पतलून पर खून चू रहा था। च दर को देखते ही बट हँस पड़ा, “देखा! तीन गोली म इसे
gl
िब कु ल मार डाला, वह तो कहो िसफ एक ही लगी वरना...” और पंख पकड़कर तोते क
लाश को झुलाने लगा।
“िछः! फको उसे; ह यारे कह के ! मार य डाला उसे?” च दर ने कहा।
“तुमसे मतलब! तुम कौन होते हो पूछने वाले? म यार करता था उसे, मने मार डाला!”
En
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चािहए था, इसिलए इसे मार डाला। तुम पूछोगे, 'इसे य मर जाना चािहए?' तो म
क ग ँ ा, 'जब कोई जीवन क पूणता पर प च
ँ ा जाता है तो उसे मर जाना चािहए। अगर वह
अपनी जंदगी का ल य पूरा कर चुका है और नह मरता तो यह उसका अ याय है। वह
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अपनी जंदगी का ल य पूरा कर चुका था, फर भी नह मरता था। म इसे यार करता था
ले कन यह अ याय नह सह सकता था, अत: मने इसे मार डाला!”
“अ छा, तो तु हारे तोते क भी जंदगी का कोई ल य था?”
“हरे क क िजदगी का ल य होता है। और वह ल य होता है स य को, चरम स य को जान
जाना। वह स य जान लेने के बाद आदमी अगर िज दा रहता है, तो उसक यह असीम
बेहयाई है। मने इसे वह स य िसखा दया। फर भी यह नह मरा तो मने मार डाला। फर
&
तुम पूछोगे क वह चरम स य या है? वह स य है क मौत आदमी के शरीर क ह या
करती है। और आदमी क ह या गला घ ट देती है। मसलन तुम अगर कसी औरत के पास
जा रहे हो या कसी औरत के पास से आ रहे हो। और स भव है उसने तु हारी आ मा क
ह या कर डाली हो...”
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“ऊँह! अब तुम ज दी ही पूरे पागल हो जाओगे?” च दर ने कहा और फर वह प मी के
पास लौट गया। प मी उसी तरह मदहोश लेटी थी। उसने जाते ही फर बाँह फै लाकर
च दर को समेट िलया और च दर उसके व क रे शमी गरमाई म डू ब गया।
is
जब वह लौटा तो बट हाथ म खुरपा िलये एक ग ï ब द कर रहा था। “सुनो, कपूर! यहाँ
मैने उसे गाड़ दया। यह उसक समािध है। और देखो, आते-आते यहाँ िसर झुका देना। वह
बेचारा जीवन का स य जान चुका है। समझ लो वह सट पैरट (स त शुकदेव) हो गया है!”
gl
“अ छा, अ छा!” च दर िसर झुकाकर हँसते ए आगे बढ़ा।
“सुनो, को कपूर!” फर बट ने पुकारा और पास आकर च दर के क धे पर हाथ रखकर
बोला, “कपूर, तुम मानते हो क नह क पहले म एक असाधारण आदमी था।”
“अब भी हो।” च दर हँसते ए बोला।
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वह घर प च ँ ा तो उसके पाँव जमीन पर नह पड़ रहे थे। उसने उफनी ई चाँदनी चूमी थी,
उसने त णाई के चाँद को पश से िसहरा दया था, उसने नीली िबजिलयाँ चूमी थ ।
ाण क िसहरन और गुदगुदी से खेलकर वह आ रहा था, वह प मी के होठ के गुलाब को
&
चूम-चूमकर गुलाब के देश म प च ँ गया था और उसक नस म बहते ए रस म गुलाब
झूम उठे थे। वह िसर से पैर तक एक मदहोश यास बना आ था। घर प च ँ ा तो जैसा
उ लास से उसका अंग-अंग नाच रहा हो। िबनती के ित दोपहर को जो आ ोश उसके मन
म उभर आया था, वह भी शा त हो गया था।
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िबनती ने आकर खाना रखा। च दर ने ब त हँसते ए, बड़े मीठे वर म कहा, “िबनती,
आज तुम भी खाओ।”
“नह , म नीचे खाऊँगी।”
is
“अरे चल बैठ, िगलहरी!” च दर ने ब त दन पहले के ेह के वर म कहा और िबनती के
पीठ म एक घूँसा मारकर उसे पास िबठा िलया-”आज तु ह नाराज नह रहने दगे। ले खा,
पगली!”
gl
नफरत से नफरत बढ़ती है, यार से यार जागता है। िबनती के मन का सारा ेह सूख-सा
गया था। वह िचड़िचड़ी, वािभमानी, ग भीर और खी हो गयी थी ले कन औरत ब त
कमजोर होती है। ई र न करे , कोई उसके दय क ममता को छू ले। वह सबकु छ बदा त
कर लेती है ले कन अगर कोई कसी तरह उसके मन के रस को जगा दे, तो वह फर अपना
En
सब अिभमान भूल जाती है। च दर ने, जब वह यहाँ आयी थी, तभी से उसके दय क
ममता जीत ली थी। इसिलए च दर के सामने सदा झुकती आयी ले कन िपछली बार से
च दर ने ठोकर मारकर सारा ेह िबखेर दया था। उसके बाद उसके ि व का रस
सूखता ही गया। ोध जैसे उसक भ ह पर रखा रहता था।
आज च दर ने उसको इतने दुलार से बुलाया तो लगा वह जाने कतने दन का भूला वर
सुन रही है। चाहे च दर के ित उसके मन म कु छ भी आ ोश य न हो, ले कन वह इस
s
म चुटक काट कर कहा-”अब दमाग ठीक हो गया पगली का! इतने दन से अकड़ी
फरती थी!”
“ !ँ ” िबनती ने ब त दन के भूले ए ेह के वर म कहा, “खुद ही तो अपना दमाग
िबगाड़े रहते ह और हम इ जाम लगाते ह। तरकारी ठ डी तो नह है?”
ov
दोन म सुलह हो गयी...जाड़ा अब काफ बढ़ गया था। खाना खा चुकने के बाद िबनती
शाल ओढ़े च दर के पास आयी और बोली, “लो, इलायची खाओगे?” च दर ने ले ली।
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छीलकर आधे दाने खुद खा िलये, आधे िबनती के मुँह म दे दये। िबनती ने धीरे से च दर
क अँगुली दाँत से दबा दी। च दर ने हाथ ख च िलया। िबनती उसी के पलँग पर पास ही
बैठ गयी और बोली, “याद है तु ह? इसी पलँग पर तु हारा िसर दबा रही थी तो तुमने
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शीशी फक दी थी।”
“हाँ, याद है! अब कहो तु ह उठाकर फक दू।ँ ” च दर आज ब त खुश था।
“मुझे या फकोगे!” िबनती ने शरारत से मुँह बनाकर कहा, “म तुमसे उठूँ गी ही नह !”
जब अंग का तूफान एक बार उठना सीख लेता है तो दूसरी बार उठते ए उसे देर नह
लगती। अभी वह अपने तूफान म प मी को पीसकर आया था। िसरहाने बैठी ई िबनती,
ह का बादामी शाल ओढ़े, रह-रहकर मु कराती और गाल पर फू ल के कटोरे िखल जाते,
&
आँख म एक नयी चमक। च दर थोड़ी देर देखता रहा, उसके बाद उसने िबनती को
ख चकर कु छ िहचकते ए िबनती के माथे पर अपने होठ रख दये। िबनती कु छ नह
बोली। चुपचाप अपने को छु ड़ाकर िसर झुकाये बैठी रही और च दर के हाथ को अपने हाथ
म लेकर उसक अँगुिलयाँ िचटकाती रही। सहसा बोली, “अरे , तु हारे कफ का बटन टू ट
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गया है, लाओ िसल दू।ँ ”
च दर को पहले कु छ आ य आ, फर कु छ लािन। िबनती कतना समपण करती है,
उसके सामने वह...ले कन उसने अ छा नह कया। प मी क बात दूसरी है, िबनती क
is
बात दूसरी। िबनती के साथ एक पिव अ तर ही ठीक रहता-
िबनती आयी और उसके कफ म बटन सीने लगी...सीते-सीते बचे ए डोरे को दाँत से
तोड़ती ई बोली, “च दर, एक बात कह मानोगे?”
gl
“ या?”
“प मी के यहाँ मत जाया करो।”
“ य ?”
“प मी अ छी औरत नह है। वह तु ह यार नह करती, तु ह िबगाड़ती है।”
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“यह बात गलत है, िबनती! तुम इसीिलए कह रही हो न क उसम वासना ब त तीखी
है!”
“नह , यह नह । उसने तु हारी जंदगी म िसफ एक नशा, एक वासना दी, कोई ऊँचाई,
कोई पिव ता नह । कहाँ दीदी, कहाँ प मी? कस वग से उतरकर तुम कस नरक म फँ स
गये!”
“पहले म भी यही सोचता था िबनती, ले कन बाद म मने सोचा क माना कसी लड़क के
s
क पना नह माँग सकते, हरे क से वासना नह पा सकते। बादल है, उस पर करण पड़ेगी,
इ धनुष ही िखलेगा, फू ल है, उस पर करण पड़ेगी, तब सुम ही आएगा। बादल से हम
माँगने लग तब सुम और फू ल से माँगने लग इ धनुष, तो यह तो हमारी एक किव वमयी
भूल होगी। माना एक लड़क के जीवन म यार आया, उसने अपने देवता के चरण पर
ov
अपनी क पना चढ़ा दी। दूसरी के जीवन म यार आया, उसने चु बन, आ लंगन और
गुदगुदी क िबजिलयाँ द । एक बोली, 'देवता मेरे! मेरा शरीर चाहे िजसका हो, मेरी पूजा-
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भावना, मेरी आ मा तु हारी है और वह ज म-ज मा तर तक तु हारी रहेगी...' और दूसरी
दीपिशखा-सी लहराकर बोली, 'दुिनया कु छ कहे अब तो मेरा तन-मन तु हारा है। म तो
बेकाबू !ँ म क ँ या? मेरे तो अंग-अंग जैसे अलसा कर चूर हो गये है तु हारी गोद म िगर
Hi
पडऩे के िलए, मेरी त णाई पुलक उठी है तु हारे आ लंगन म िपस जाने के िलए। मेरे लाज
के ब धन जैसे िशिथल ए जाते ह? म क ँ तो या क ँ ? कै सा नशा िपला दया है तुमने,
म सब कु छ भूल गयी ।ँ तुम चाहे िजसे अपनी क पना दो, अपनी आ मा दो, ले कन एक
बार अपने जलते ए होठ म मेरे नरम गुलाबी होठ समेट लो न!' बताओ िबनती, य
पहली क भावना ठीक है और दूसरी क यास गलत?”
िबनती कु छ देर तक चुप रही, फर बोली, “च दर, तुम ब त गहराई से सोचते हो। ले कन
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म तो एक मोटी-सी बात जानती ँ क िजसके जीवन म वह यास जग जाती है वह फर
कसी भी सीमा तक िगर सकता है। ले कन िजसने याग कया, िजसक क पना जागी, वह
कसी भी सीमा तक उठ सकता है। मने तो तु ह उठते ए देखा है।”
“गलत है, िबनती! तुमने िगरते ए देखा है मुझे! तुम मानोगी क सुधा से मुझे क पना ही
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िमली थी, याग ही िमला था, पिव ता ही िमली थी। पर वह कतनी दन टक ! और तुम
यह कै से कह सकती हो क वासना आदमी को नीचे ही िगराती है। तुम आज ही क घटना
लो। तुम यह तो मानोगी क अभी तक मने तु ह अपमान और ितर कार ही दया था।”
is
“खैर, उसक बात जाने दो!” िबनती बोली।
“नह , बात आ गयी तो म साफ कहता ँ क आज मने तु हारा ितदान देने क सोची,
आज तु हारे िलए मन म बड़ा ेह उमड़ आया। य ? जानती हो? प मी ने आज अपने
gl
बा पाश म कसकर जैसे मेरे मन क सारी कटु ता, सारा िवष ख च िलया। मुझे लगा ब त
दन बाद म फर िपशाच नह , आदमी ।ँ यह वासना का ही दान है। तुम कै से कहोगी क
वासना आदमी को नीचे ही ले जाती है!”
िबनती कु छ नह बोली, च दर भी थोड़ी देर चुप रहा। फर बोला, “ले कन एक बात पूछूँ,
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िबनती?”
“ या?”
“ब त अजब-सी बात है। सोच रहा ँ पूछूँ या न पूछूँ!”
“पूछो न!”
“अभी मने तु हारे माथे पर होठ रख दये, तुम कु छ भी नह बोल , और म जानता ँ यह
कु छ अनुिचत-सा था। तुम प मी नह हो! फर भी तुमने कु छ भी िवरोध नह कया...?”
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िबनती थोड़ी देर तक चुपचाप अपने पाँव क ओर देखती रही। फर शाल के छोर से एक
डोरा ख चते ए बोली, “च दर, म अपने को कु छ समझ नह पाती। िसफ इतना जानती ँ
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क मेरे मन म तुम जाने या हो; इतने महान हो, इतने महान हो क म तु ह यार नह कर
पाती, ले कन तु हारे िलए कु छ भी करने से अपने को रोक नह सकती। लगता है तु हारा
ि व, उसक शि और उसक दुबलताएँ, उसक यास और उसका स तोष, इतना
महान है, इतना गहरा है क उसके सामने मेरा ि व कु छ भी नह है। मेरी पिव ता,
ov
मेरी अपिव ता, इन सबसे यादा महान तु हारी यास है।...ले कन अगर तु हारे मन म
मेरे िलए जरा भी ेह है तो तुम प मी से स ब ध तोड़ लो। दीदी से अगर म बताऊँगी तो
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जाने या हो जाएगा! और तुम जानते नह , दीदी अब कै सी हो गयी ह? तुम देखो तो
आँसू...”
“बस! बस!” च दर ने अपने हाथ से िबनती का मुँह ब द करते ए कहा, “सुधा क बात
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मत करो, तु ह कसम है। जंदगी के िजस पहलू को हम भूल चुके ह, उसे कु रे दने से या
फायदा?”
“अ छा, अ छा!” च दर का हाथ हटाकर िबनती बोली, “ले कन प मी को अपनी जंदगी
से हटा दो।”
“यह नह हो सकता, िबनती?” च दर बोला, “और जो कहो, वह म कर दूग ँ ा। हाँ, तु हारे
ित आज तक जो दु वहार आ है, उसके िलए म तुमसे मा माँगता ।ँ ”
&
“िछः, च दर! मुझे श म दा मत करो।” काफ रात हो गयी थी। च दर लेट गया। िबनती ने
उसे रजाई उढ़ा दी और टेबल पर िबजली का टड रखकर बोली, “अब चुपचाप सो
जाओ।”
िबनती चली गयी। च दर पड़ा-पड़ा सोचने लगा, दुिनया गलत कहती है क वासना पाप
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है। वासना से भी पिव ता और माशीलता आती है। प मी से उसे जो कु छ िमला, वह
अगर पाप है तो आज च दर ने जो िबनती को दया, उसम इतनी मा, इतनी उदारता
और इतनी शाि त य थी? is
उसके बाद िबनती को वह ब त दुलार और पिव ता से रखने लगा। कभी-कभी जब वह
घूमने जाता तो िबनती को भी ले जाता था। यू ईयस डे के दन प मी ने दोन क दावत
क । िबनती प मी के पीछे चाहे च दर से प मी का िवरोध कर ले पर प मी के सामने ब त
gl
िश ता और ेह का बरताव करती थी।
डॉ टर साहब क द ली जाने क तैयारी हो गयी। िबनती ने काय म म कु छ प रवतन
करा िलया था। अब वह पहले डॉ टर साहब के साथ शाहजहाँपुर जाएगी और तब द ली।
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गरमी का मौसम आ गया था। च दर सुबह कॉलेज जाता, दोपहर को सोता और शाम को
वह िनयिमत प से प मी को लेकर घूमने जाता। डॉ टर साहब कार छोड़ गये थे। कार
प मी और च दर को लेकर दूर-दूर का च र लगाया करती थी। इस बार उसने अपनी
&
छु याँ द ली म ही िबताने क सोची थ । प मी ने भी तय कया था क मसूरी से लौटते
समय जुलाई म वह एक ह ते आकर डॉ टर शु ला क मेहमानी करे गी और द ली के
पूवप रिचत से भी िमल लेगी।
यह नह कहा जा सकता क च दर के दन अ छी तरह नह बीत रहे थे। उसने अपना
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अतीत भुला दया था और वतमान को वह प मी क नशीली िनगाह म डु बो चुका था।
भिव य क उसे कोई खास िच ता नह थी। उसे लगता था क यह प मी क िनगाह के
बादल और पश के फू ल क जादू भरी दुिनया अमर है, शा त है। इस जादू ने हमेशा के
is
िलए उसक आ मा को अिभभूत कर िलया है, ये होठ कभी अलग न ह गे, यह बा पाश
इसी तरह उसे घेरे रहेगा और प मी क गरम त ण साँस सदा इसी कार उसके कपोल
को िसहराती रहगी। आदमी का िव ास हमेशा सीमाएँ और अ त भूल जाने का आदी
gl
होता है। च दर भी सबकु छ भूल चुका था।
अ ैल क एक शाम। दन-भर लू चलकर अब थक गयी थी। ले कन दन-भर क लू क
वजह से आसमान म इतनी धूल भर गयी थी क धूप भी ह क पड़ गयी थी। माली बाहर
िछड़काव कर रहा था। च दर सोकर उठा था और सु ती िमटा रहा था। थोड़ी देर बाद वह
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शरणा थय के िलए च दा माँगने वाली कोई लड़क हो। मगर अ दर तो कोई है ही नह !
उसने चाहा क रोक दे फर उसने नह रोका। सोचा, खुद ही अ दर खाली देखकर लौट
आएगी।
Hi
माली बफ लेकर आया और अ दर चला गया। वह लड़क लौटी। उसके चेहरे पर कु छ
आ य और कु छ िच ता क रे खाएँ थ । अब च दर ने उसे देखा। एक साँवली लड़क थी,
कु छ उदास, कु छ बीमार-सी लगती थी। आँख बड़ी-बड़ी लगती थ जो रोना भूल चुक ह
और हँसने म भी अश ह। चेहरे पर एक पीली छाँह थी। ऐसा लगता था, देखने ही से क
लड़क़ दु:खी है पर अपने को सँभालना जानती है।
वह आयी और बड़ी फ क मु कान के साथ, बड़ी िश ता के वर म बोली, “च दर भाई,
&
सलाम! सुधा या ससुराल म है?”
च दर का आ य और भी बढ़ गया। यह तो च दर को जानती भी है!
“जी हाँ, वह ससुराल म है। आप...”
“और िबनती कहाँ है?” लड़क ने बात काटकर पूछा।
h
“िबनती द ली म है।”
“ या उसक भी शादी हो गयी?”
“जी नह , डॉ टर साहब आजकल द ली म ह। वह उ ह के पास पढ़ रही है। बैठ तो
is
जाइए!” च दर ने कु स िखसकाकर कहा।
“अ छा, तो आप यह रहते ह अब? नौकर हो गये ह गे?”
“जी हाँ!” च दर ने अचरज म डू बकर कहा, “ले कन आप इतनी जानकारी और प रचय क
gl
बात कर रही ह, मने आपको पहचाना नह , मा क िजएगा...”
वह लड़क हँसी, जैसे अपनी क मत, जंदगी, अपने इितहास पर हँस रही हो।
“आप मुझको कै से पहचान सकते ह? म ज र आपको देख चुक थी। मेरे-आपके बीच म
दरअसल एक रोशनदान था, मेरा मतलब सुधा से है!”
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“जी, पंजाब के िसख वगैरह। कु छ झगड़ा हो गया तो हम लोग चले आये। अब हम लोग
यह ह।”
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“अ तर िमयाँ कहाँ ह?”
“िमरजापुर म पीतल का रोजगार कर रहे ह!”
“और उनक बीवी देहरादून म थी। यह सजा य दी आपने उ ह?”
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“सजा क कोई बात नह ।” गेसू का वर घुटता आ-सा मालूम दे रहा था। “उनक बीवी
उनके साथ है।”
“ या मतलब? आप तो अजब-सी बात कर रही ह। अगर म भूल नह करता तो आपक
शादी...”
“जी हाँ!” बड़ी ही उदास हँसी हँसकर गेसू बोली, “आपसे च दर भाई, म या िछपाऊँगी,
जैसे सुधा वैसे आप! मेरी शादी उनसे नह ई!”
&
“अरे ! गु ताखी माफ क िजएगा, सुधा तो मुझसे कह रही थी क अ तर...”
“मुझसे मुह बत करते ह!” गेसू बात काटकर बोली और बड़ी ग भीर हो गयी और अपनी
चु ी के छोर म टँके ए िसतारे को तोड़ती ई बोली, “म सचमुच नह समझ पायी क
उनके मन म या था। उनके घरवाल ने मेरे बजाय फू ल को यादा पस द कया। उ ह ने
h
फू ल से ही शादी कर ली। अब अ छी तरह िनभ रही है दोन क । फू ल तो इतने अरसे म
एक बार भी हम लोग से िमलने नह आयी!”
“अ छा...” च दर चुप होकर सोचने लगा। कतनी बड़ी वंचना ई इस लड़क क
is
जंदगी म! और कतने दबे श द म यह कहकर चुप हो गयी! एक भी आँसू नह , एक भी
िससक नह । संयत वर और फ क मु कान, बस। च दर चुपचाप उठकर अ दर गया।
महरािजन आ गयी थी। कु छ ना ता और शरबत भेजने के िलए कहकर च दर बाहर आया।
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गेसू चुपचाप लॉन क ओर देख रही थी, शू य िनगाह से। च दर आकर बैठ गया और
बोला-”ब त धोखा दया आपको!”
“िछः! ऐसी बात नह कहते, च दर भाई! कौन जानता है क यह अ तर क मजबूरी रही
हो! िजसको मने अपना सरताज माना उसके िलए ऐसा खयाल भी दल म लाना गुनाह है।
En
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“कभी नह ! मने क द कर िलया है क म शादी ताउ नह क ँ गी। देहरादून के मैट नटी
सटर म काम सीख रही थी। कोस पूरा हो गया। अब कसी अ पताल म काम क ँ गी।”
“आप...!”
Hi
“ य , आपको ता ुब य आ? मने अ मीजान को इस बात के िलए राजी कर िलया है।
म अपने पैर पर खड़ी होना चाहती ।ँ ”
च दर ने शरबत से बफ िनकालकर फकते ए कहा-
“म आपक जगह होता तो दूसरी शादी करता और अ तर से भरसक बदला लेता!”
“बदला!” गेसू मु कराकर बोली, “िछः, च दर भाई! बदला, गुरेज, नफरत इससे आदमी न
कभी सुधरा है न सुधरे गा। बदला और नफरत तो अपने मन क कमजोरी को जािहर करते
&
ह। और फर बदला म लूँ कससे? उससे, दल क तनहाइय म म िजसके सजदे पड़ती ।ँ
यह कै से हो सकता है?”
गेसू के माथे पर िव ास का तेज दमक उठा, उसक बीमार आँख म धूप लहलहा उठी और
उसका कं चनलता-सा तन जगमगाने लगा। कु छ ऐसी दृढ़ता थी उसक आवाज म, ऐसी
h
गहराई थी उसक विन म क च दर देखता ही रह गया। वह जानता था क गेसू के दल
म अ तर के िलए कतना ेम था, वह यह भी जानता था क गेसू अ तर क शादी के िलए
कस तरह पागल थी। वह सारा सपना ताश के महल क तरह िगर गया। और
is
प रि थितय ने नह , खुद अ तर ने धोखा दया, ले कन गेसू है क माथे पर िशकन नह ,
भ ह म बल नह , होठ पर िशकायत नह । नारी के जीवन का यह कै सा अिमट िव ास
था! यानी िजसे गेसू ने अपने ेम का वणमि दर समझा था, वह वालामुखी बनकर फू ट
gl
गया और उसने दद क िपघली आग क धारा म गेसू को डु बो देने क कोिशश क ले कन
गेसू है क अटल च ान क तरह खड़ी है।
च दर के मन म कह कोई टीस उठी। उसके दल क धडक़न ने कह पर उससे पूछा।
'...और च दर, तुमने या कया? तुम पु ष थे। तु हारे सबल कं धे कसी के यार का बोझ
En
तो खामोश ही रहना होगा। बंद घर म जलते ए िचराग क तरह घुलना होगा। और अगर
मने उनको अपना माना है तो वह िमलकर ही रहगे। आज न सही कयामत के बाद सही।
मुह बत क दुिनया म जैसे एक दन उनके िबना कट जाता है वैसे एक जंदगी उनके िबना
कट जाएगी...ले कन उसके बाद वे मेरे होकर रहगे।”
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i
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सबकु छ जानती ।ँ सच पूिछए तो जब मने देखा क आप कतनी खामोशी से अपनी
दुिनया म आग लगते देख रहे ह, और फर भी हँस रहे ह, तो मने आपसे सबक िलया। हम
नह मालूम था क हम और आप, दोन भाई-बहन क क मत एक-सी है।”
Hi
च दर के मन म जाने कतने घाव कसक उठे । उसके मन म जाने कतना दद उमड़ने-सा
लगा। गेसू उसे या समझ रही है मन म और वह कहाँ प च ँ चुका है! िजसने च दर क
जंदगी से अपने मन का दीप जलाया, वह आज देवता के चरण तक प च ँ गया, ले कन
च दर के मन क दीपिशखा? उसने अपने यार क िचता जला डाली। च दर के मुँह पर
लािन क कािलमा छा गयी। गेसू चुपचाप बैठी थी। सहसा बोली, “च दर भाई, आपको
याद है, िपछले साल इ ह दन म सुधा से िमलने आयी थी और हसरत आपको मेरा
&
सलाम कहने गया था?”
“याद हैï!” च दर ने ब त भारी वर म कहा।
“इस एक साल म दुिनया कतनी बदल गयी!” गेसू ने एक गहरी साँस लेकर कहा, “एक
बार ये दन चले जाते ह, फर बेदद कभी नह लौटते! कभी-कभी सोचती ँ क सुधा होती
h
तो फर कॉलेज जाते, लास म शोर मचाते, भागकर घास म लेटते, बादल को देखते, शेर
कहते और वह च दर क और हम अ तर क बात करते...” गेसू का गला भर आया और
एक आँसू चू पड़ा... “सुधा और सुधा क याह-शादी का हाल बताइए। कै से ह उनके
is
शौहर?”
च दर के मन म आया क वह कह दे, गेसू, य लि त करती हो! म वह च दर नह ।ँ
मने अपने िव ास का मि दर कर दया...म ेत .ँ ..मने सुधा के यार का गला घ ट
gl
दया है...ले कन पु ष का गव! पु ष का छल! उसे यह भी नह मालूम होने दया क
उसका िव ास चूर-चूर हो चुका है और िपछले कतने ही महीन से उसने सुधा को खत
िलखना भी ब द कर दया है और यह भी नह मालूम करने का यास कया क सुधा
मरती है या जीती!
En
घंटा-भर तक दोन सुधा के बारे म बात करते रहे। इतने म र शावाला लौट आया। गेसू ने
उसे ठहरने का इशारा कया और बोली, “अ छा, जरा सुधा का पता िलख दीिजए।” च दर
ने एक कागज पर पता िलख दया। गेसू ने उठने का उप म कया तो च दर बोला, “बै ठए
अभी, आपसे बात करके आज जाने कतने दन क बात याद आ रही ह!”
गेसू हँसी और बैठ गयी। च दर बोला, “आप अभी तक किवताएँ िलखती ह?”
“किवताएँ...” गेसू फर हँसी और बोली, “ जंदगी कतनी हमगीर है, कतनी पुरशोर, और
s
शरारती है!”
“नह ।” च दर ने ब त उदास वर म कहा, “जाओ, कभी देख आओ न!”
“नह , जब तक कह जगह नह िमल जाती, तब तक तो इतनी आजादी नह िमलेगी। अभी
यह ।ँ उसी को बुलवाऊँगी और उसके पित देवता को िलखूँगी। कतना सूना लग रहा है
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“अरे , मेरा मतलब यह नह था!” गेसू हँसते ए बोली, “अ छा, अब मुझे तो अ मीजान
नह भेजगी, आज जाने कै से अके ले आने क इजाजत दे दी। आपको कसी दन बुलवाऊँ तो
आइएगा ज र!”
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“हाँ, आऊँगा गेसू, ज र आऊँगा!” च दर ने ब त ेह से कहा।
“अ छा भाईजान, सलाम!”
“नम ते!”
गेसू जाकर र शा पर बैठ गयी और परदा तन गया। र शा चल दया। च दर एक
अजीब-सी िनगाह से देखता रहा जैसे अपने अतीत क कोई खोयी ई चीज ढू ँढ़ रहा हो,
फर धीरे -धीरे लौट आया। सूरज डू ब गया था। वह गुसलखाना ब द कर नहाने बैठ गया।
&
जाने कहाँ-कहाँ मन भटक रहा था उसका। च दर मन का अि थर था, मन का बुरा नह
था। गेसू ने आज उसके सामने अचानक वह त वीर रख दी थी िजसम वह वग क
ऊँचाइय पर मँडराया करता था। और जाने कै सा दद-सा उसके मन म उठ गया था, गेसू ने
अपने अजाने म ही च दर के अिव ास, च दर क ित हंसा को ब त बड़ी हार दी थी।
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उसने िसर पर पानी डाला तो उसे लगा यह पानी नह है जंदगी क धारा है, िपघले ए
अंगार क धारा िजसम पडक़र के वल वही िज दा बच पाया है, िजसके अंग म यार का
अमृत है। और च दर के मन म या है? महज वासना का िवष...वह सड़ा आ, गला आ
is
शरीर मा जो के वल सि पात के जोर से चल रहा है। उसने अपने मन के अमृत को गली म
फक दया है...उसने या कया है?
वह नहाकर आया और शीशे के सामने खड़ा होकर बाल काढऩे लगा- फर शीशे क ओर
gl
एकटक देखकर बोला, “मुझे या देख रहे हो, च दर बाबू! मुझे तो तुमने बबाद कर डाला।
आज कई महीने हो गये और तुमने एक िच ी तक नह िलखी, िछः!” और उसने शीशा
उलटकर रख दया।
महरािजन खाना ले आयी। उसने खाना खाया और सु त-सा पड़ रहा। “भइया, आज घूमै न
En
जाबो?”
“नह !” च दर ने कहा और पड़ा-पड़ा सोचने लगा। प मी के यहाँ नह गया।
यह गेसू दूसरे कमरे म बैठी थी। इस कमरे म िबनती उसे कै लाश का िच दखा रही
थी।...िच उसके मन म घूमने लगे...च दर, या इस दुिनया म तु ह रह गये थे फोटो
दखाकर पस द कराने के िलए...च दर का हाथ उठा। तड़ से एक तमाचा...च दर, चोट तो
नह आयी...मान िलया क मेरे मन ने मुझसे न कहा हो, तुमसे तो मेरा मन कोई बात नह
s
िछपाता...तो च दर, तुम शादी कर य नह लेते? पापा लड़क देख आएँगे...हम भी देख
लगे...तो फर तुम बैठो तो हम पढ़गे, वरना हम शरम लगती है...च दर, तुम शादी मत
el
करना, तुम इस सबके िलए नह बने हो...नह सुधा, तु हारे व पर िसर रखकर कतना
स तोष िमलता है...
आसमान म एक-एक करके तारे टू टते जा रहे थे।
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“कहो कपूर, आये य नह ? म समझी, तुम बीमार हो गये!” प मी ने लॉन पर पड़ी एक
कु स पर बैठते ए कहा, “आओ, बैठो न!” उसने च दर क ओर कु स िखसकायी।
“नह , तुम बैठो, म टहलता र गँ ा!” च दर बोला और कहने लगा, “पता नह य प मी,
दो-तीन दन से तबीयत ब त उदास-सी है। तु हारे यहाँ आने को तबीयत नह ई!”
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“ य , या आ?” प मी ने पूछा और च दर का हाथ पकड़ िलया। च दर प मी क कु स
के पीछे खड़ा हो गया। प मी ने च दर के दोन हाथ पकडक़र अपने गले म डाल िलये और
अपना िसर च दर से टकाकर उसक ओर देखने लगी। च दर चुप था। न उसने प मी के
is
गाल थपथपाये, न हाथ दबाया, न अलक िबखेर और न िनगाह म नशा ही िबखेरा।
औरत अपने ित आने वाले यार और आकषण को समझने म चाहे एक बार भूल कर जाये,
ले कन वह अपने ित आने वाली उदासी और उपे ा को पहचानने म कभी भूल नह
gl
करती। वह होठ पर होठ के पश के गूढ़तम अथ समझ सकती है, वह आपके पश म
आपक नस से चलती ई भावना पहचान सकती है, वह आपके व से िसर टकाकर
आपके दल क धड़कन क भाषा समझ सकती है, य द उसे थोड़ा-सा भी अनुभव है और
आप उसके हाथ पर हाथ रखते ह तो पश क अनुभूित से ही जान जाएगी क आप उससे
En
कोई कर रहे ह, कोई याचना कर रहे ह, सा वना दे रहे ह या सा वना माँग रहे ह।
मा माँग रहे ह या मा दे रहे ह, यार का ार भ कर रहे ह या समा कर रहे ह।
वागत कर रहे ह या िवदा दे रहे ह। यह पुलक का पश है या उदासी का चाव और नशे का
पश है या िख ता और बेमनी का।
प मी च दर के हाथ को छू ते ही जान गयी क हाथ चाहे गरम ह , ले कन पश बड़ा
शीतल है, बड़ा नीरस। उसम वह िपघली ई आग क शराब नह है जो अभी तक च दर के
s
दया, “आजकल ब त मेहनत पड़ती है, य ? चलो, तुम हमारे यहाँ रहो!”
प मी म के वल शरीर क यास थी, यह कहना प मी के ित अ याय होगा। प मी म एक
ब त गहरी हमदद थी च दर के िलए। च दर अगर शरीर क यास को जीत भी लेता तो
उसक हमदद को वह नह ठु करा पाता था। उस हमदद का ितर कार होने से प मी दु:खी
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िशिथलता से नारी फौरन समझ जाती है क स ब ध म दूरी आती जा रही है। स ब ध
क घिन ता को नापने का नारी के पास एक ही मापदंड है, चु बन का तीखापन!
च दर के मन म ही नह वरन पश म भी इतनी िबखरती ई उदासी थी, इतनी उपे ा
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थी क प मी ममाहत हो गयी। उसके िलए यह पहली पराजय थी! आजकल प मी जान
जाती थी क च दर का रोम-रोम इस व प मी क साँस म डू बा आ है।
ले कन प मी ने देखा क च दर उसक बाँह म होते ए भी दूर, ब त दूर न जाने कन
िवचार म उलझा आ है। वह उससे दूर चला जा रहा है, ब त दूर। प मी क धड़कन
अ त- त हो गय । उसक समझ म नह , आया वह या करे ! च दर को या हो गया?
या प मी का जादू टू ट रहा है? प मी ने अपनी पराजय से कुं ठत होकर अपना हाथ हटा
&
िलया और चुपचाप मुँह फे रकर उधर देखने लगी। च दर चाहे िजतना उदास हो ले कन
प मी क उदासी वह नह सह सकता था। बुरी या भली, प मी इस व उसक सूनी
जंदगी का अके ला सहारा थी और प मी क हमदद का वह ब त कृ त था। वह समझ
गया, प मी य उदास है! उसने प मी का हाथ ख च िलया और अपने होठ उसक
h
हथेिलय पर रख दये और ख चकर प मी का िसर अपने कं धे पर रख िलया...
पु ष के जीवन म एक ण आता है जब वासना उसक कमजोरी, उसक यास, उसका
नशा, उसका आवेश नह रह जाती। जब वासना उसक हमदद का, उसक सा वना का
is
साधन बन जाती है। जब वह नारी को इसिलए बाँह म नह समेटता क उसक बाँह
यासी ह, वह इसिलए उसे बाँह म समेट लेता है क नारी अपना दुख भूल जाए। िजस
व वह नारी क सीिपया पलक के नशे म नह वरन उसक आँख के आँसू सुखाने के िलए
gl
उसक पलक पर होठ रख देता है, जीवन के उस ण म पु ष िजस नारी से सहानुभूित
रखता है, उसके मन क पराजय को भुलाने के िलए वह नारी को बा पाश के नशे म बहला
देना चाहता है! ले कन इन बा पाश म यास जरा भी नह होती, आग जरा भी नह
होती, िसफ नारी को बहलावा देने का यास मा होता है।
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क दूसरी तरं ग उसे वेग म उलझाकर जैसे फर उसे दूर ख च ले जाने के िलए ाकु ल हो
उठी। उसको लगा क प मी के िलए उसके मन म जो मादक नशा था, उस पर लािन का
कोहरा छाता जा रहा है और अभी तक उसने जो कु छ कया था, उसके िलए उसी के मन म
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कह -न-कह पर ह क -सी अ िच झलकने लगी थी। फर भी प मी का जादू बद तूर
कायम था। वह प मी के ित कृ त था और वह प मी को कह , कसी भी हालत म दुखी
नह करना चाहता था। भले वह गुनाह करके अपनी कृ त ता जािहर य न कर पाये,
ले कन जैसे िबनती के मन म च दर के ित जो ा थी, वह नैितकता-अनैितकता के
ब धन से ऊपर उठकर थी, वैसे ही च दर के मन म प मी के ित कृ त ता पु य और पाप के
ब धन से ऊपर उठकर थी। िबनती ने एक दन च दर से कहा था क य द वह च दर को
&
अस तु करती है, तो वह उसे इतना बड़ा गुनाह लगता है क उसके सामने उसे कसी भी
पाप-पु य क परवा नह है। उसी तरह च दर सोचता था क स भव है क उसका और
प मी का यह स ब ध पापमय हो, ले कन इस स ब ध को तोड़कर प मी को अस तु और
दु:खी करना इतना बड़ा पाप होगा जो अ य है।
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ले कन वह नशा टू ट चुका था, वह साँस धीमी पड़ गयी थी...अपनी हर कोिशश के बावजूद
वह प मी को उदास होने से बचा न पाता था।
एक दन सुबह जब वह कॉलेज जा रहा था क प मी क कार आयी। प मी ब त ही उदास
is
थी। च दर ने आते ही उसका वागत कया। उसके कान म एक नीले प थर का बु दा था,
िजसक ह क छाँह गाल पर पड़ रही थी। च दर ने झुककर वह नीली छाँह चूम ली।
प मी कु छ नह बोली। वह बैठ गयी और फर च दर से बोली, “म लखनऊ जा रही ,ँ
gl
कपूर!”
“कब? आजï?”
“हाँ, अभी कार से।”
“ य ?”
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“य ही, मन ऊब गया! पता नह , कौन-सी छाँह मुझ पर छा गयी है। म शायद लखनऊ से
मसूरी चली जाऊँ।”
“म तु ह जाने नह दूगँ ा, पहले तो तुमने बताया नह !”
“तु ह ने कहाँ पहले बताया था!”
“ या?”
“कु छ भी नह ! अ छा, चल रही ।ँ ”
s
“सुनो तो!”
“नह , अब रोक नह सकते तुम...ब त दूर जाना है च दर...” वह चल दी। फर वह लौटी
el
और जैसे युग -युग क यास बुझा रही हो, च दर के गले म झूल गयी और कस िलया
च दर को...पाँच िमनट बाद सहसा वह अलग हो गयी और फर िबना कु छ बोले अपनी
कार म बैठ गयी। “प मी...तु ह आ या यह?”
“कु छ नह , कपूर।” प मी कार टाट करते ए बोली, “म तुमसे िजतनी ही दूर र ँ उतना
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ही अ छा है, मेरे िलए भी, तु हारे िलए भी! तु हारे इन दन के वहार ने मुझे ब त कु छ
िसखा दया है?”
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च दर िसर से पैर तक लािन से कुं ठत हो उठा। सचमुच वह कतना अभागा है! वह कसी
को भी स तु नह रख पाया। उसके जीवन म सुधा भी आयी और प मी भी, एक को उसके
पु य ने उससे छीन िलया, दूसरी को उसका गुनाह उससे छीने िलये जा रहा है। जाने उसके
&
ह का मािलक कतना ू र िखलाड़ी है क हर कदम पर उसक राह उलट देता है। नह ,
वह प मी को नह खो सकता-उसने प मी का कॉलर पकड़ िलया, “प मी, तु ह हमारी
कसम है-बुरा मत मानो! म तु ह जाने नह दूग
ँ ा।”
प मी हँसी-बड़ी ही क ण ले कन सश हँसी। अपने कॉलर को धीमे-से छु ड़ाकर च दर क
h
अँगुिलय को कपोल से दबा दया और फर व के पास से एक िलफाफा िनकालकर
च दर के हाथ म दे दया और कार टाट कर दी...पीछे मुडक़र नह देखा...नह देखा।
कार कड़वे धुएँ का बादल च दर क ओर उड़ाकर आगे चल दी।
is
जब कार ओझल हो गयी, तब च दर को होश आया क उसके हाथ म एक िलफाफा भी है।
उसने सोचा, फौरन कार लेकर जाये और प मी को रोक ले। फर सोचा, पहले पढ़ तो ले,
यह है या चीज? उसने िलफाफा खोला और पढऩे लगा-
gl
“कपूर, एक दन तु हारी आवाज और बट क चीख सुनकर अपूण वेश म ही अपने शृंगार-
गृह से भाग आयी थी और तु ह फू ल के बीच म पाया था, आज तु हारी आवाज मेरे िलए
मूक हो गयी है और अस तोष और उदासी के काँट के बीच म तु ह छोडक़र जा रही ।ँ
जा रही ँ इसिलए क अब तु ह मेरी ज रत नह रही। झूठ य बोलूँ, अब या, कभी भी
En
तु ह मेरी ज रत नह रही थी, ले कन मने हमेशा तु हारा दु पयोग कया। झूठ य बोल,
तुम मेरे पित से भी अिधक समीप रहे हो। तुमसे कु छ िछपाऊँगी नह । म तुमसे िमली थी,
जब म एकाक थी, उदास थी, लगता था क उस समय तुम मेरी सुनसान दुिनया म रोशनी
के देवदूत क तरह आये थे। तुम उस समय ब त भोले, ब त सुकुमार, ब त ही पिव थे।
मेरे मन म उस दन तु हारे िलए जाने कतना यार उमड़ आया! म पागल हो उठी। मने
तु ह उस दन सेलामी क कहानी सुनायी थी, िसनेमा घर म, उसी अभािगन सेलामी क
s
फर मने उस छोकरी को देखा, उस िनता त ितभाहीन दुबलमना छोकरी िमस सुधा को।
वह कु छ भी नह थी, ले कन म देखते ही जान गयी थी क तु हारे भा य का न है, जाने
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य उसे देखते ही म अपना आ मिव ास खो-सा बैठी। उसके ि व म कु छ न होते ए
भी कम-से-कम अजब-सा जादू था, यह म भी वीकार करती ,ँ ले कन थी वह छोकरी
ही!
Hi
तु ह न पाने क िनराशा और तु ह न पाने क असीम यास, दोन के पीस डालने वाले
संघष से भागकर, म िहमालय म चली आयी। िजतना तीखा आकषण होता है कपूर कभी-
कभी नारी उतनी ही दूर भागती है। अगर कोई याला मुँह से न लगाकर दूर फक दे, तो
समझ लो क वह बेहद यासा है, इतना यासा क तृि क क पना से भी घबराता है।
दन-रात उस पहाड़ी क धवल चो टय म तु हारी िनगाह मु कराती थ , पर म लौटने का
साहस न कर पाती थी।
&
लौटी तो देखा क तुम अके ले हो, िनराश हो। और थोड़ा-थोड़ा उलझे ए भी हो। पहले मने
तुम पर पिव ता क आड़ म िवजय पानी चाही थी, अब तुम पर वासना का सहारा लेकर
छा गयी। तुम मुझे बुरा समझ सकते हो, ले कन काश क तुम मेरी यास को समझ पाते,
कपूर! तुमने मुझे वीकार कया। वैसे नह जैसे कोई फू ल शबनम को वीकार करे । तुमने
h
मुझे उस तरह वीकार कया जैसे कोई बीमार आदमी मा फया (अफ म) के इ जे शन को
वीकार करे । तु हारी यासी और बीमार वृि याँ बदली नह , िसफ बेहोश होकर सो
गय । is
ले कन कपूर, पता नह कसके पश से वे एकाएक िबखर गय । म जानती ,ँ इधर तुमम
या प रवतन आ गया है। म तु ह उसके िलए अपराधी नह ठहराती, कपूर ! म जानती ँ
तुम मेरे ित अब भी कतने कृ त हो, कतने ेहशील हो ले कन अब तुमम वह यास
gl
नह , वह नशा नह । तु हारे मन क वासना अब मेरे िलए एक तरस म बदलती जा रही है।
मुझे वह दन याद है, अ छी तरह याद है च दर, जब तु हारे जलते ए होठ ने इतनी
गहरी वासना से मेरे होठ को समेट िलया था क मेरे िलए अपना ि व ही एक सपना
En
बन गया था। लगता था, सभी िसतार का तेज भी इसक एक िचनगारी के सामने फ का
है। ले कन आज होठ होठ ह, आग के फू ल नह रहे-पहले मेरी एक झलक से तु हारे रोम-
रोम म सैकड़ इ छा क आँिधयाँ गरज उठती थ ...आज तु हारी नस का खून ठं डा है।
तु हारी िनगाह पथरायी ई ह और तुम इस तरह वासना मेरी ओर फक देते हो, जैसे तुम
कसी पालतू िब ली को पावरोटी का टु कड़ा दे रहे हो।
म जानती ँ क हम दोन के स ब ध क उ णता ख म हो गयी है। अब तु हारे मन म
s
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सकते हो (कर रहे हो। यार क ित या भी यार क ही प रचायक है कपूर), मेरे िलए
आँसु क लहर म डू ब जाना स भव नह । या तो यार आदमी को बादल क ऊँचाई तक
उठा ले जाता है, या वग से पाताल म फक देता है। ले कन कु छ ाणी ह, जो न वग के ह
Hi
न नरक के , वे दोन लोक के बीच म अ धकार क परत म भटकते रहते ह। वे कसी को
यार नह करते, छाया को पकड़ने का यास करते ह, या शायद यार करते ह या
िनर तर नयी अनुभूितय के पीछे दीवाने रहते ह और यार िब कु ल करते ही नह । उनको
न दु:ख होता है न सुख, उनक दुिनया म के वल संशय, अि थरता और यास होती
है...कपूर, म उसी अभागे लोक क एक यासी आ मा थी। अपने एका त से घबराकर तु ह
अपने बा पाश म बाँधकर तु हारे िव ास को वग से ख च लायी थी। तुम वग-
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देवता, भूलकर मेरे अिभश लोक म आ गये थे।
आज मालूम होता है क फर तु हारे िव ास ने तु ह पुकारा है। म अपनी यास म खुद
धधक उठूँ , ले कन तु ह मने अपना िम माना था। तुम पर म आँच नह आने देना चाहती।
तुम मेरे यो य नह , तुम अपने िव ास के लोक म लौट जाओ।
h
म जानती ँ तुम मेरे िलए िचि तत हो। ले कन मने अपना रा ता िनि त कर िलया है। ी
िबना पु ष के आ य के नह रह सकती। उस अभागी को जैसे कृ ित ने कोई अिभशाप दे
दया है।...म थक गयी ँ इस ेमलोक क भटकन से।...म अपने पित के पास जा रही ।ँ वे
is
मा कर दगे, मुझे िव ास है।
उ ह के पास य जा रही ?ँ इसिलए मेरे िम , क म अब सोच रही ँ क ी वाधीन
नह रह सकती। उसके पास प ी व के िसवा कोई चारा नह । जहाँ जरा वाधीन ई क
gl
बस उसी अ धकू प म जा पड़ती है जहाँ म थी। वह अपना शरीर भी खोकर तृि नह
पाती। फर यार से तो मेरा िव ास जैसे उठा जा रहा है, यार थायी नह होता। म
ईसाई ,ँ पर सभी अनुभव के बाद मुझे पता लगता है क िह दु के यहाँ ेम नह वरन
धम और सामािजक प रि थितय के आधार पर िववाह क रीित ब त वै ािनक और नारी
En
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िववाह म भावना या आकषण अकसर जहर िबखेर देता है। याह करने के बाद एक-आध
महीने के िलए अपनी प ी सिहत मेरे पास ज र आना, कपूर। म उसे देखकर वह स तोष
पा लूँगी, जो हमारी स यता ने हम अभाग से छीन िलया है।
Hi
अभी म साल भर तक तुमसे नह िमलूँगी। मुझे तुमसे अब भी डर लगता है ले कन इस बीच
म तुम बट का खयाल रखना। कभी-कभी उसे देख लेना। पये क कमी तो उसे न होगी।
बीवी भी उसे ऐसी िमल गयी है, िजसने उसे ठीक कर दया है...उस अभागे भाई से अलग
होते ए मुझे कै सा लग रहा है, यह तुम जानते, अगर तुम बहन होते।
अगला प तु ह तभी िलखूँगी जब मेरे पित से मेरा समझौता हो जाएगा...नाराज तो नह
हो?
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- िमला िड ू ज।”
च दर प मी को लौटाने नह गया। कॉलेज भी नह गया। एक ल बा-सा खत िबनती को
िलखता रहा और इसक ितिलिप कर दोन न थी कर भेज दये और उसके बाद थककर
सो गया...िबना खाना खाये!
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तृतीय ख ड
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ग मय क छु याँ हो गयी थ और च दर छु याँ िबताने द ली गया था। सुधा भी आयी
ई थी। ले कन च दर और सुधा म बोलचाल नह थी। एक दन शाम के व डॉ टर
साहब ने च दर से कहा, “च दर, सुधा इधर ब त अनमनी रहती है, जाओ इसे कह घुमा
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लाओ।” च दर बड़ी मुि कल से राजी आ। दोन पहले कनॉट लेस प च ँ े। सुधा ने ब त
फ क और टू टती ई आवाज म कहा, “यहाँ ब त भीड़ है, मेरी तबीयत घबराती है।”
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च दर ने कार घुमा दी शहर से बाहर रोहतक क सड़क पर, द ली से प ह मील दूर।
च दर ने एक ब त हरी-भरी जगह म कार रोक दी। कसी ब त पुराने पीर का टू टा-फू टा
मजार था और क के चबूतरे को फोडक़र एक नीम का पेड़ उग आया था। चबूतरे के दो-
तीन प थर िगर गये थे। चार-पाँच नीम के पेड़ लगे थे और क के प थर के पास एक
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िचराग बुझा आ पड़ा था और कई एक सूखी ई फू ल-मालाएँ हवा से उड़कर नीचे िगर
गयी थ । क के आस-पास ढेर नीम के ितनके और सूखे ए नीम के फू ल जमा थे।
सुधा जाकर चबूतरे पर बैठ गयी। दूर-दूर तक स ाटा था। न आदमी न आदमजाद। िसफ
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“ फर?”
“ फर या, उस समय मेरे मन म यार का मतलब था याग, क पना, आदश। आज म
समझ चुका ँ क यह सब झूठी बात ह, खोखले सपने ह!”
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“तब?”
“तब! आज म िव ास करता ँ क यार के माने िसफ एक है; शरीर का स ब ध! कम-से-
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कम औरत के िलए। औरत बड़ी बात करे गी, आ मा, पुनज म, परलोक का िमलन, ले कन
उसक िसि िसफ शरीर म है और वह अपने यार क मंिजल पार कर पु ष को अ त म
एक ही चीज देती है-अपना शरीर। म तो अब यह िव ास करता ँ सुधा क वही औरत
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मुझे यार करती है जो मुझे शरीर दे सकती है। बस, इसके अलावा यार का कोई प अब
मेरे भा य म नह ।” च दर क आँख म कु छ धधक रहा था...सुधा उठी, और च दर के पास
खड़ी हो गयी-”च दर, तुम भी एक दन ऐसे हो जाओगे, इसक मुझे कभी उ मीद नह थी।
काश क तुम समझ पाते क...” सुधा ने ब त दद भरे वर म कहा।
“ ेह है!” च दर ठठाकर हँस पड़ा-और उसने सुधा क ओर मुडक़र कहा, “और अगर म उस
ेह का माण माँगूँ तो? सुधा!” दाँत पीसकर च दर बोला, “अगर तुमसे तु हारा शरीर
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माँगूँ तो?”
“च दर!” सुधा चीखकर पीछे हट गयी। च दर उठा और पागल क तरह उसने सुधा को
पकड़ िलया, “यहाँ कोई नह है-िसवा इस क के । तुम या कर सकती हो? ब त दन से
मन म एक आग सुलग रही है। आज तु ह बबाद कर दूँ तो मन क नारक य वेदना बुझ
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जाए....बोलो!” उसने अपनी आँख क िपघली ई आग सुधा क आँख म भरकर कहा।
सुधा ण-भर सहमी-पथरायी दृि से च दर क ओर देखती रही फर सहसा िशिथल पड़
गयी और बोली, “च दर, म कसी क प ी ।ँ यह ज म उनका है। यह माँग का िस दूर
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उनका है। इस शरीर का शृंगार उनका है। मुझ गला घ टकर मार डालो। मने तु ह ब त
तकलीफ दी है। ले कन...”
“ले कन...” च दर हँसा और सुधा को छोड़ दया, “म तु ह ेह करती ,ँ ले कन यह ज म
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उनका है। यह शरीर उनका है-ह:! ह:! या अ दाज ह वंचना के । जाओ सुधा...म तुमसे
मजाक कर रहा था। तु हारे इस जूठे तन म रखा या है?”
सुधा अलग हटकर खड़ी हो गयी। उसक आँख से िचनगा रयाँ झरने लग , “च दर, तुम
जानवर हो गये; म आज कतनी श म दा ।ँ इसम मेरा कसूर है, च दर! म अपने को दंड
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दूग
ँ ी, च दर! म मर जाऊँगी! ले कन तु ह इं सान बनना पड़ेगा, च दर!” और सुधा ने अपना
िसर एक टू टे ए ख भे पर पटक दया।
च दर क आँख खुल गयी, वह थोड़ी देर तक सपने पर सोचता रहा। फर उठा। ब त
अजब-सा मन था उसका। ब त परािजत, ब त खोया आ-सा, बेहद िखिसयाहट से भरा
आ था। उसके मन म एकाएक खयाल आया क वह कसी मनोरं जन म जाकर अपने को
डु बो दे-ब त दन से उसने िसनेमा नह देखा था। उन दन बनाड शॉ का 'सीजर ड
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थी, और व हो रहा था। कपड़े पहनकर वह शीशे के सामने आकर बाल सँवारने लगा।
उसे लगा, शीशे म पड़ती ई उसक छाया उससे कु छ िभ है, उसने और गौर से देखा-
छाया रह यमय ढंग से मु करा रही थी; वह सहसा बोली-
“ या देख रहा है?” 'मुखड़ा या देखे दरपन म।' एक लड़क से परािजत और दूसरी से
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सपने म ित हंसा लेने का कलंक नह दख पड़ता तुझे? अपनी छिव िनरख रहा है? पापी!
पितत!”
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कमरे क दीवार ने दोहराया-”पापी! पितत!”
च दर तड़प उठा, पागल-सा हो उठा। कं घा फककर बोला, “कौन है पापी? म ँ पापी? म ँ
पितत? मुझे तुम नह समझते। म िचर-पिव ।ँ मुझे कोई नह जानता।”
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“कोई नह जानता! हा, हा!” ितिब ब हँसा, “म तु हारी नस-नस जानता ।ँ तुम वही हो
न िजसने आज से डेढ़ साल पहले सपना देखा सुधा के हाथ से लेकर अमृत बाँटने का,
दुिनया को नया स देश देकर पैग बर बनने का। नया स देश! खूब नया स देश दया
मसीहा! प मी...िबनती...सुधा...कु छ और छोक रयाँ बटोर ले। च र हीन!”
“मने कसी को नह बटोरा! जो मेरी जंदगी म आया, अपने-आप आया, जो चला गया,
उसे मने रोका नह । मेरे मन म कह भी अहम क यास नह थी, कभी भी वाथ नह था।
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या म चाहता तो सुधा को अपने एक इशारे से अपनी बाँह म नह बाँध सकता था!”
“शाबाश! और नह बाँध पाये तो सुधा से भी जी भरकर बदला िनकाल रहा है। वह मर
रही है और तू उस पर नमक िछड़कने से बाज नह आया। और आज तो उसे एका त म
करने का सपना देख अपनी पलक को देवमि दर क तरह पिव बना िलया तूने! कतनी
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उ ित क है तेरी आ मा ने! इधर आ, तेरा हाथ चूम लूँ।”
“चुप रहो! पराजय क इस वेला म कोई भी ं य करने से बाज नह आता। म पागल हो
जाऊँगा।” is
“और अभी या पागल से कम है तू? अहंकारी पशु! तू बट से भी गया-गुजरा है। बट
पागल था, ले कन पागल कु क तरह काटना नह जानता था। तू काटना भी जानता है
और अपने भयानक पागलपन को साधना और याग भी सािबत करता रहता है। द भी!”
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“बस करो, अब तुम सीमा लाँघ रहे हो।” च दर ने मु याँ कसकर जवाब दया।
“ य , गु सा हो गये, मेरे दो त! अहंवादी इतने बड़े हो और अपनी त वीर देखकर नाराज
होते हो! आओ, तु ह आिह ते से समझाऊँ, अभागे! तू कहता है तूने वाथ नह कया।
िवकलांग देवता! वही वाथ है जो अपने से ऊपर नह उठ पाता! तेरे िलए अपनी एक
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साँस भी दूसरे के मन के तूफान से भी यादा मह वपूण रही है। तूने अपने मन क उपे ा के
पीछे सुधा को भ ी म झ क दया। प मी के अ व थ मन को पहचानकर भी उसके प का
उपभोग करने म नह िहचका, िबनती को यार न करते ए भी िबनती को तूने वीकार
कया, फर सब का ितर कार करता गया...और कहता है तू वाथ नह । बट पागल हो
ले कन वाथ नह है।”
“ठहरो, गािलयाँ मत दो, मुझे समझाओ न क मेरे जीवन-दशन म कहाँ पर गलती रही है!
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हो, ले कन तुम अ तमुखी रहे, घोर ि वादी रहे, अहंकार त रहे। अपने मन क
िवकृ ितय को भी तुमने अपनी ताकत समझने क कोिशश क । कोई भी जीवन-दशन सफल
नह होता अगर उसम बा यथाथ और ापक स य धूप-छाँह क तरह न िमला हो। म
मानता ँ क तूने सुधा के साथ ऊँचाई िनभायी, ले कन अगर तेरे ि व को, तेरे मन को,
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साधना समझता है? तू याद कर; कहाँ था तू एक वष पहले और अब कहाँ है?”
च दर ने बड़ी कातरता से ितिब ब क ओर देखा और बोला, “म जानता ,ँ म गुमराह ँ
ले कन बेईमान नह ! तुम मुझे य िध ार रहे हो! तुम कोई रा ता बता दो न! एक बार
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उसे भी आजमा लूँ।”
“रा ता बताऊँ! जो रा ता तुमने एक बार बनाया था, उसी पर तुम मजबूत रह पाये? फर
या एक के बाद दूसरे रा ते पर चहलदमी करना चाहते हो? देखो कपूर, यान से सुनो।
तुमसे शायद कसी ने कभी कहा था, शायद बट ने कहा था क आदमी तभी तक बड़ा
रहता है जब तक वह िनषेध करता चलता है। पता नह कस मानिसक आवेश म एक के
बाद दूसरे त व का िव वंस और िवनाश करता चलता है। हर च ान को उखाड़क फकता
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रहता है और तुमने यही जीवन-दशन अपना िलया था, भूल से या अपने अनजाने म ही।
तु हारी आ मा म एक शि थी, एक तूफान था। ले कन यह ल य था। तु हारी जंदगी
म लहर उठने लग ले कन गहराई नह । और याद रखो च दर, स य उसे िमलता है िजसक
आ मा शा त और गहरी होती है समु क गहराई क तरह। समु क ऊपरी सतह क
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तरह जो िव ु ध और तूफानी होता है, उसके अंत म चाहे कतनी गरज हो ले कन स य
क शा त अमृतमयी आवाज नह होती।”
“ले कन वह गहराई मुझे िमली नह ?”
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“बताता -ँ घबराते य हो! देखो, तुमम ब त बड़ा अधैय रहा है। शि रही, पर धैय और
दृढ़ता िब कु ल नह । तुम ग भीर समु तल न बनकर एक सश ले कन अशा त लहर बन
गये जो हर कनारे से टकराकर उसे तोड़ने के िलए हो उठी। तुमम ठहराव नह था।
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साधना नह थी! जानते हो य ? तु ह जहाँ से जरा भी तकलीफ िमली, अवरोध िमला
वह से तुमने अपना हाथ ख च िलया! वह तुम भाग खड़े ए। तुमने हमेशा उसका िनषेध
कया-पहले तुमने समाज का िनषेध कया, ि को साधना का के बनाया; फर ि
का भी िनषेध कया। अपने िवचार म, अ तमुखी भावना म डू ब गये, कम का िनषेध
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अंशत: ही उसे वीकार कर कु छ काम करता, माना क सुधा के यार से तुझे तकलीफ ई
पर उसक मह ा के ही आधार पर तू कु छ िनमाण कर ले जाता। ले कन तू तो जरा-से
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अवरोध के बहाने स पूण का िनषेध करता गया। तेरा जीवन िनषेध क िनि यता क
मानिसक ित या क शृंखला रहा है। अभागे, तूने हमेशा जंदगी का िनषेध कया है।
दुिनया को वीकार करता, यथाथ को वीकार करता, जंदगी को वीकार करता और
उसके आधार पर अपने मन को, अपने मन के यार को, अपने जीवन को स तुिलत करता,
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िजसम स य और सफलता का मोती बन सकता था, वह मर गयी और के ए पानी म
िवकृ ित और वासना के क ड़े कु लबुलाने लगे। शाबाश! या अमृत पाया है तूने! ध य है,
अमृत-पु !”
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“बस करो! यह ं य म नह सह सकता! म या करता!”
“कै सी लाचारी का वर है! िछः, असफल पैग बर! साधना यथाथ को वीकार करके
चलती है, उसका िनषेध करके नह । हमारे यहाँ ई र को कहा गया है नेित नेित, इसका
मतलब यह नह क ई र परम िनषेध व प है। गलत, नेित म 'न' तो के वल एक वण है।
'इित' दो वण ह। एक िनषेध तो कम-से-कम दो वीकृ ितयाँ। इसी अनुपात म क पना और
यथाथ का सम वय य नह कया तूने?”
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“म नह समझ पाता-यह दशन मेरी समझ म नह आता!”
“देखो, इसको ऐसे समझो। घबराओ मत! कै लाश ने अगर नारी के ि व को नह
समझा, सुधा क पिव ता को ितर कृ त कया, ले कन उसने समाज के िलए कु छ तो कया।
गेसू ने अपने िववाह का िनषेध कया, ले कन अ तर के ित अपने यार का िनषेध तो नह
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कया। अपने ि व का िनमाण कया। अपने च र का िनमाण कया। यानी गेसू, एक
लड़क से तुम हार गये, िछः!”
“ले कन म कतना थक गया था, यह तो सोचो। मन को कतनी ऊँची-नीची घा टय से,
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मौत से भी भयानक रा त से गुजरने म और कोई होता तो मर गया होगा। म जंदा तो
!ँ ”
“वाह, या जंदगी है!”
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“तो या क ँ , यह रा ता छोड़ दू?ँ यह ि व तोड़ डालूँ?”
“ फर वही िनषेध और िव वंस क बात। िछः देखो, चलने को तो गाड़ी का बैल भी रा ते
पर चलता है! ले कन सैकड़ मील चलने के बाद भी वह गाड़ी का बैल ही बना रहता है।
या तुम गाड़ी के बैल बनना चाहते हो? नह कपूर! आदमी जंदगी का सफर तय करता
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वहाँ एक ऐसा स ाटा था जो न कसी को आने के िलए आमि त कर सकता था, न कसी
को जाने से रोक सकता था। वह एक ऐसा मैदान था िजस पर क सारी पगडंिडयाँ तक िमट
गयी ह ; एक ऐसी डाल थी िजस पर के सारे फू ल झर गये ह , सारे घ सले उजड़ गये ह ।
मन म उसके असीम कुं ठा और वेदना थी, ऐसा था क कोई उसके घाव छू ले तो वह आँसु
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म िबखर पड़े। वह चाहता था, वह सबसे मा माँग ले, िबनती से, प मी से, सुधा से और
फर हमेशा के िलए उनक दुिनया से चला जाए। कतना दुख दया था उसने सबको!
इसी मन:ि थित म एक दन गेसू ने उसे बुलाया। वह गया। गेसू क अ मीजान तो सामने
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आय पर गेसू ने परदे म से ही बात क । गेसू ने बताया क सुधा का खत आया है क वह
ज दी ही आएगी, गेसू से िमलने। गेसू को ब त ता ुब आ क च दर के पास कोई खबर
य नह आयी!
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च दर जब घर प च ँ ा तो कै लाश का एक खत िमला-
“ि य च दर,
ब त दन से तु हारा कोई खत नह आया, न मेरे पास न इनके पास। या नाराज हो हम
दोन से? अ छा तो लो, तु ह एक खुशखबरी सुना दू।ँ म सां कृ ितक िमशन म शायद
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ऑ ेिलया जाऊँ। डॉ टर साहब ने कोिशश कर दी है। आधा पया मेरा, आधा सरकार
का।
तु ह भला या फु रसत िमलेगी यहाँ आने क ! म ही इ ह लेकर दो रोज के िलए आऊँगा।
इनक कोई मुसलमान सखी है वहाँ, उससे ये भी िमलना चाहती ह। हमारी खाितर का
इ तजाम रखना-म 11 मई को सुबह क गाड़ी से प च ँ ूँगा।
तु हारा-कै लाश।”
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उसने सारा बँगला साफ कराया। हालाँ क दो ही दन के िलए सुधा और कै लाश आ रहे थे,
ले कन उसने इस तरह बँगले क सफाई करायी जैसे कोई नया समारोह हो। सुधा का
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कमरा ब त सजा दया था और सुधा क छत पर दो पलँग डलवा दये थे। ले कन इन सब
इं तजाम के पीछे उतनी ही िनि य भावहीनता थी जैसे क वह एक होटल का मैनेजर हो
और दो आग तुक का इ तजाम कर रहा हो। बस।
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मानसून के दन म अगर कभी कसी ने गौर कया हो तो बा रश होने के पहले ही हवा म
एक नमी, पि य पर एक ह रयाली और मन म एक उमंग-सी छा जाती है। आसमान का
रं ग बतला देता है क बादल छानेवाले ह, बूँद रमिझमाने वाली ह। जब बादल ब त
नजदीक आ जाते ह, बूँद पड़ने के पहले ही दूर पर िगरती ई बूँद क आवाज वातावरण
पर छा जाती है, िजसे धुरवा कहते ह।
य - य सुधा के आने का दन नजदीक आ रहा था, च दर के मन म हवाएँ करवट बदलने
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लग गयी थ । मन म उदास सुनसान म धुरवा उमड़ने-घुमड़ने लगा था। मन उदास सुनसान
आकु ल ती ा म बेचैन हो उठा था। च दर अपने को समझ नह पा रहा था। नस म एक
अजीब-सी घबराहट मचलने लगी थी, िजसका वह िव ेषण नह करना चाहता था। उसका
ि व अब पता नह य कु छ भयभीत-सा था।
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इ तहान ख म हो रहे थे, और जब मन क बेचैनी ब त बढ़ जाती थी तो परी क क
आदत के मुतािबक वह कािपयाँ जाँचने बैठ जाता था। िजस समय परी क के घर म
पा रवा रक कलह हो, मन म अंत हो या दमाग म फतूर हो, उस समय उ ह कॉिपयाँ
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जाँचने से अ छा शरण थल नह िमलता। अपने जीवन क परी ा म फे ल हो जाने क
खीझ उतारने के िलए लडक़ को फे ल करने के अलावा कोई अ छा रा ता ही नह है।
च दर जब बेहद दु:खी होता तो वह कॉिपयाँ जाँचता।
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िजस दन सुबह सुधा आ रही थी, उस रात को तो च दर का मन िब कु ल बेकाबू-सा हो
गया। लगता था जैसे उसने सोचने-िवचाने से ही इनकार कर दया हो। उस दन च दर एक
ण को भी अके ला न रहकर भीड़-भाड़ म खो जाना चाहता था। सुबह वह गंगा नहाने
गया, कार लेकर। कॉलेज से लौटकर दोपहर को अपने एक िम के यहाँ चला गया।
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भुलाने क कोिशश करने लगा और अ त म उसने अपने को इतना थका डाला क तीन बजे
का अलाम लगाकर वह सो गया। सुधा क गाड़ी साढ़े चार बजे आती थी।
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यार का िसतारा है जो जाने कस अ ात पाताल म डू ब गया था और आज से वह फर उग
गया है। उसने एक अ धिव ासी भोले ब े क तरह उस िसतारे को हाथ जोडक़र कहा,
“मेरी कं चन जैसी सुधा रानी के यार, तुम कहाँ खो गये थे? तुम मेरे सामने नह रहे, म
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जाने कन तूफान म उलझ गया था। मेरी आ मा म सारी गु ता सुधा के यार क थी। उसे
मने खो दया। उसके बाद मेरी आ मा पीले प े क तरह तूफान म उड़कर जाने कस
क चड़ म फँ स गयी थी। तुम मेरी सुधा के यार हो न! मने तु ह सुधा क भोली आँख म
जगमगाते ए देखा था। वेदमं -जैसे इस पिव सुबह म आज फर मेरे पाप म िल तन
को अमृत से धोने आये हो। म िव ास दलाता ँ क आज सुधा के चरण पर अपने जीवन
के सारे गुनाह को चढ़ाकर हमेशा के िलए मा माँग लूँगा। ले कन मेरी साँस क साँस
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सुधा! मुझे मा कर दोगी न?” और िविच -से भावावेश और पुलक से उसक आँख म आँसू
आ गये। उसे याद आया क एक दन सुधा ने उसक हथेिलय को होठ से लगाकर कहा
था-जाओ, आज तुम सुधा के पश से पिव हो...काश क आज भी सुधा अपने िमसरी-जैसे
होठ से च दर क आ मा को चूमकर कहे-जाओ च दर, अभी तक जंदगी के तूफान ने
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तु हारी आ मा को बीमार, अपिव कर दया था...आज से तुम वही च दर हो। अपनी
सुधा के च दर। ह रणी-जैसी भोली-भाली सुधा के महान पिव च दर...
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तैयार होकर च दर जब टेशन प च ँ ा तो वह जैसे मोहािव -सा था। जैसे वह कसी जादू
या टोना पढ़ा- आ-सा घूम रहा था और वह जादू था सुधा के यार का पुनरावतन।
गाड़ी घंटा-भर लेट थी। च दर को एक पल काटना मुि कल हो रहा था। अ त म िसगनल
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डाउन आ। कु िलय म हलचल मची और च दर पटरी पर झुककर देखने लगा। सुबह हो
गयी थी और इं जन दूर पर एक काले दाग-सा दखाई पड़ रहा था, धीरे -धीरे वह दाग बड़ा
होने लगा और ल बी-सी हरी पूँछ क तरह लहराती ई ेन आती दखाई पड़ी। च दर के
मन म आया, वह पागल क तरह दौड़कर वहाँ प च ँ जाए। िजस दन एक घोर अिव ासी
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म िव ास जाग जाता है, उस दन वह पागल-सा हो उठता है। उसे लग रहा था जैसे इस
गाड़ी म सभी िड बे खाली ह। िसफ एक िड बे म अके ली सुधा होगी। जो आते ही च दर को
अपनी यार-भरी िनगाह म समेट लेगी।
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गाड़ी के लेटफाम पर आते ही हलचल बढ़ गयी। कु िलय क दौड़धूप, मुसा फर क
हड़बड़ी, सामान क उठा-धरी से लेटफॉम भर गया। च दर पागल -सा इस सब भीड़ को
चीरकर िड बे देखने लगा। एक दफे पूरी गाड़ी का च र लगा गया। कह भी सुधा नह
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दखाई दी। जैसे आँसू से उसका गला ँ धने लगा। या आये नह ये लोग! क मत कतना
ं य करती है उससे! आज जब वह कसी के चरण पर अपनी आ मा उ सग कर फर
पिव होना चाहता था तो सुधा ही नह आयी। उसने एक च र और लगाया और िनराश
होकर लौट पड़ा। सहसा सेकड लास के एक छोटे-से िड बे म से कै लाश ने झाँककर कहा,
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“कपूर!”
च दर मुड़ा, देखा क कै लाश झाँक रहा है। एक कु ली सामान उतारकर खड़ा है। सुधा नह
है।
जैसे कसी ने झ के से उसके मन का दीप बुझा दया। सामान ब त थोड़ा-सा था। वह िड बे
म चढक़र बोला, “सुधा नह आयी?”
“आयी ह, देखो न! कु छ तबीयत खराब हो गयी है। जी िमतला रहा है।” और उसने
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बाथ म क ओर इशारा कर दया। सुधा बाथ म म बगल म लोटा रखे िसर झुकाये बैठी
थी-”देखो! देखती हो?” कै लाश बोला, “देखो, कपूर आ गया।” सुधा ने देखा और मुि कल
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से हाथ जोड़ पायी होगी क उसे िमतली आ गयी...कै लाश दौड़ा और उसक पीठ पर हाथ
फे रने लगा और च दर से बोला-”पंखा लाओ!” च दर हत भ था। उसके मन ने सपना देखा
था...सुधा िसतार क तरह जगमगा रही होगी और अपनी रोशनी क बाँह म च दर के
ाण को सुला देगी। जादूगरनी क तरह अपने यार के पंख से च दर क आ मा के दाग
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“ या कर रहे हो, च दर!...पंखा उठाओ ज दी से।” कै लाश ने ता से कहा। च दर च क
उठा और जाकर पंखा झलने लगा। थोड़ी देर बाद मुँह धोकर सुधा उठी और कराहती ई-
सी जाकर सीट पर बैठ गयी। कै लाश ने एक त कया पीछे लगा दया और वह आँख ब द
Hi
करके लेट गयी।
च दर ने अब सुधा को देखा। सुधा उजड़ चुक थी। उसका रस मर चुका था। वह अपने
यौवन और प, चंचलता और िमठास क एक जद छाया मा रह गयी थी। चेहरा दुबला
पड़ गया था और हि याँ िनकल आयी थ । चेहरा दुबला होने से लगता था आँख फटी
पड़ती ह। वह चुपचाप आँख ब द कये पड़ी थी। च दर पंखा हाँक रहा था, कै लाश एक
सूटके स खोलकर दवा िनकाल रहा था। गाड़ी यह आकर क जाती है, इसिलए कोई ज दी
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नह थी। कै लाश ने दवा दी। सुधा ने दवा पी और फर उदास, ब त बारीक, ब त बीमार
वर म बोली, “च दर, अ छे तो हो! इतने दुबले कै से लगते हो? अब कौन तु हारे खाने-
पीने क परवा करता होगा!” सुधा ने एक गहरी साँस ली। कै लाश िब तर लपेट रहा था।
“तु ह या हो गया है, सुधा?”
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“मुझे सुख-रोग हो गया है!” सुधा ब त ीण हँसी हँसकर बोली, “ब त सुख म रहने से
ऐसा ही हो जाता है।”
च दर चुप हो गया। कै लाश ने िब तर कु ली को देते ए कहा, “इ ह ने तो बीमारी के मारे
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हम लोग को परे शान कर रखा है। जाने बीमा रय को या मुह बत है इनसे! चलो उठो।”
सुधा उठी।
कार पर सुधा के साथ पीछे सामान रख दया गया और आगे कै लाश और च दर बैठे।
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कै लाश बोला, “च दर, तुम ब त धीमे ाइव करना वरना इ ह च र आने लगेगा...” कार
चल दी। च दर कै लाश क िवदेश-या ा और कै लाश च दर के कॉलेज के बारे म बात करते
रहे। मुि कल से घर तक कार प च ँ ी होगी क कै लाश बोला, “यार च दर, तु ह तकलीफ
तो होगी ले कन एक दन के िलए कार तुम मुझे दे सकते हो?”
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“ य ?”
“मुझे जरा रीवाँ तक ब त ज री काम से जाना है, वहाँ कु छ लोग से िमलना है, कल
दोपहर तक म चला आऊँगा।”
“इसके मतलब मेरे पास नह रहोगे एक दन भी?”
“नह , इ ह छोड़ जाऊँगा। लौटकर दन-भर र ग ँ ा।”
“इ ह छोड़ जाओगे? नह भाई, तुम जानते हो क आजकल घर म कोई नह है।” च दर ने
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कु छ घबराकर कहा।
“तो या आ, तुम तो हो!” कै लाश बोला और च दर के चेहरे क घबराहट देखकर हँसकर
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बोला, “अरे यार, अब तुम पर इतना अिव ास नह है। अिव ास करना होता तो याह के
पहले ही कर लेते।”
च दर मु करा उठा, कै लाश ने च दर के क धे पर हाथ रखकर धीमे से कहा ता क सुधा न
सुन पाये-”वैसे चाहे मुझे कु छ भी अस तोष य न हो, ले कन इनका च र तो सोने का है,
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यह म खूब परख चुका ।ँ इनका ऐसा च र बनाने के िलए तो म तु ह बधाई दूग ँ ा, च दर!
और फर आज के युग म!”
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च दर ने कु छ जवाब नह दया।
कार पो टको म लगी। सुधा, कै लाश, च दर उतरे । माली और नौकर दौड़ आये, सुधा ने उन
सबसे उनका हाल पूछा। अ दर जाते ही महरािजन दौडक़र सुधा से िलपट गयी। सुधा को
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ब त दुलार कया।
कै लाश मुँह-हाथ धो चुका था, नहाने चला गया। महरािजन चाय बनाने लगी। सुधा भी
मुँह-हाथ धोने और नहाने चली गयी। कै लाश तौिलया लपेटे नहाकर आया और बैठ गया।
बोला, “आज और कल क छु ी ले लो, च दर! इनक तबीयत ठीक नह है और मुझे जाना
ज री है!”
“अ छा, ले कन आज तो जाकर हािजरी देना ज री होगा। फर लौट आऊँगा!” महरािजन
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चाय और ना ता ले आयी। कै लाश ने ना ता लौटा दया तो महरािजन बोली, “वाह,
दामाद इके अके ली चाय पीबो भइया, अबिहन डॉ टर साहब सुिनह तो का किहह।”
“नह माँजी, मेरा पेट ठीक नह है। दो दन के जागरण से आ रहा ।ँ फर लौटकर
खाऊँगा। लो च दर, चाय िपयो।”
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“सुधा को आने दो!” च दर बोला।
“वह पूजा-पाठ करके खाती ह।”
“पूजा-पाठ!” च दर दंग रह गया, “सुधा पूजा-पाठ करने लगी?”
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“हाँ भाई, तभी तो हमारी माताजी अपनी ब पर मरती ह। असल म वह पूजा-पाठ करती
थ । शु आत क इ ह ने पूजा के बरतन धोने से और अब तो उनसे भी यादा प पुजा रन
बन गयी ह।” कै लाश ने इधर-उधर देखा और बोला, “यार, यह मत समझना म सुधा क
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िशकायत कर रहा ,ँ ले कन तुम लोग ने मुझे ठीक नह चुना!”
“ य ?” च दर कै लाश के वहार पर मु ध था।
“इन जैसी लड़ कय के िलए तुम कोई किव या कलाकार या भावुक लड़काढू ँढ़ते तो ठीक
था। मेरे जैसा ावहा रक और नीरस राजनीितक इनके उपयु नह है। घर भर इनसे
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बेहद खुश है। जब से ये गयी ह, माँ और शंकर भइया दोन ने मुझे नालायक करार दे दया
है। इ ह से पूछकर सब करते ह, ले कन मने जो सोच रखा था, वह मुझे नह िमल पाया!”
“ य , या बात है?” च दर ने पूछा, “गलती बताओ तो हम इ ह समझाएँ।”
“नह , देखो गलत मत समझो। म यह नह कहता क इनक गलती है। यह तो गलत चुनाव
क बात है।” कै लाश बोला, “न इसम मेरा कसूर, न इनका! म चाहता था कोई लड़क जो
मेरे साथ राजनीित का काम करती, मेरी सबलता और दुबलता दोन क संिगनी होती।
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कै लाश चुप हो गया। सुधा क ओर देखकर बोला, “मेरी अटैची भी ठीक कर दो। म अभी
चला जाऊँ वरना दोपहर म तपना होगा।” सुधा चली गयी। सुधा के जाते ही कै लाश बोला,
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“भरसक म इ ह दु:खी नह होने देता, हाँ, अकसर ये दुखी हो जाती ह; ले कन म या क ँ ,
यह मेरी मजबूरी है, वैसे म इ ह भरसक सुखी रखने का यास करता .ँ ..और ये भी
जायज-नाजायज हर इ छा के सामने झुक जाती ह, ले कन इनके दल म मेरे िलए कोई
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जगह नह है, वह जो एक प ी के मन म होती है। ले कन खैर, जंदगी चलती जा रही है।
अब तो जैसे हो िनभाना ही है!”
इतने म सुधा आयी और बोली, “देिखए, अटैची सँवार दी है, आप भी देख लीिजए...”
कै लाश उठकर चला गया। च दर बैठा-बैठा सोचने लगा-कै लाश कतना अ छा है, कतना
साफ और व छ दल का है! ले कन सुधा ने अपने को कस तरह िमटा डाला...
इतने म सुधा आयी और च दर से बोली, “च दर! चलो, वो बुला रहे ह!”
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च दर चुपचाप उठा और अ दर गया। कै लाश ने तब तक या ा के कपड़े पहन िलये थे।
देखते ही बोला, “अ छा च दर, म चलता ।ँ कल शाम तक आ जाने क कोिशश क ँ गा।
हाँ देखो, यादा घुमाना मत। इनक सखी को यहाँ बुलवा लो तो अ छा।” फर बाहर
िनकलता आ बोला, “इनक िजद थी आने क , वरना इनक हालत आने लायक नह थी।
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माताजी से म कह आया ँ क लखनऊ मेिडकल कॉलेज ले जा रहा ।ँ ”
कै लाश कार पर बैठ गया। फर बोला, “देखो च दर, दवा इ ह दे देना याद से, वह रखी
है।” कार टाट हो गयी। is
च दर लौटा। बरामदे म सुधा खड़ी थी। चुपचाप बुझी ई-सी। च दर ने उसक ओर देखा,
उसने च दर क ओर देखा, फर दोन ने िनगाह झुका ल । सुधा वह खड़ी रही। च दर
ाइं ग- म म जाकर कताब वगैरह उठा लाया और कॉलेज जाने के िलए िनकला। सुधा
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अब भी बरामदे म खड़ी थी। गुमसुम...च दर कु छ कहना चाहता था...ले कन या? कु छ
था, जो न जाने कब से संिचत होता आ रहा था, जो वह करना चाहता था, ले कन
सुधा कै सी हो गयी है! यह वह सुधा तो नह िजसके सामने वह अपने को सदा कर
देता था। कभी संकोच नह करता था, ले कन यह सुधा कै सी है अपने म िसमटी-सकु ची,
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और ज दी नह लौट सकते?”
ज दी! सुधा अगर कहे तो च दर जाये भी न, चाहे उसे इ तीफा देना पड़े। या सुधा भूल
गयी क च दर के ि व पर अगर कसी का शासन है तो सुधा का! वह जो अपनी िजद
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से, उछलकर, लडक़र, ठकर च दर से हमेशा मनचाहा काम करवाती रही है...आज वह
इतनी दीनता से, इतनी िवनय से, इतने अ तर और इतनी दूरी से य कह रही है क
ज दी नह लौट सकते? य नह वह पहले क तरह दौडक़र च दर का कॉलर पकड़ लेती
और मचलकर कहती, 'ए, अगर ज दी नह लौटे तो...' ले कन अब तो सुधा बरामदे म खड़ी
होकर ग भीर-सी, डू बती ई-सी आवाज म पूछ रही है-ज दी नह लौट सकते! च दर का
मन टू ट गया। च दर क उमंग च ान से टकराकर िबखर गयी...उसने ब त भारी-सी
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आवाज म पूछा, “ य ?”
“ज दी लौट आते तो पूजा करके तु हारे साथ ना ता कर लेते! ले कन अगर यादा काम हो
तो रहने दो, मेरी वजह से हरज मत करना!” उसने उसे ठ डे, िश और भावहीन वर म
कहा।
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हाय सुधा! अगर तुम जानती होती क महीन उ ा त च दर का टू टा और यासा मन
तुमसे पुराने ेह क एक बूँद के िलए तरस उठा है तो भी या तुम इसी दूरी से बात करती!
काश, क तुम समझ पाती क च दर ने अगर तुमसे कु छ दूरी भी िनभायी है तो उससे खुद
is
च दर कतना िबखर गया है। च दर ने अपना देव व खो दया है, अपना सुख खो दया है,
अपने को बबाद कर दया है और फर भी च दर के बाहर से शा त और सुग ठत दखने
वाले दय के अ दर तु हारे यार क कतनी गहरी यास धधक रही है, उसके रोम-रोम म
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कतनी जहरीली तृ णा क िबजिलयाँ क ध रही ह, तुमसे अलग होने के बाद अतृि का
कतना बड़ा रा ता उसने आग क लपट म झुलसते ए िबताया है। अगर तुम इसे समझ
लेती तो तुम च दर को एक बार दुलारकर उसके जलते ए ाण पर अमृत क चाँदनी
िबखेरने के िलए हो उठती; ले कन सुधा, तुमने अपने बा िव ोह को ही समझा,
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इसका समाधान िसफ तु हारे यार म था, िसफ तु हारी आ मा म था, ले कन अगर तुमने
इनके च र का अ त निहत स य न देखकर बाहरी िव वंस से ही अपना आगे का वहार
िनि त कर िलया तो कौन इ ह इस च वात से ख च िनकालेगा! या ये अभागे इसी
च वात म फँ सकर चूर हो जाएँगे...सुधा...
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हालाँ क सुधा के वहार ने उसका मन जैसे तोड़-सा दया था, फर भी जाने य वह अब
आज सुधा को एक काशवृ बनकर लपेट लेना चाहता था।
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जब च दर लौट आया तो उसने देखा-सुधा तो उसी के कमरे म है। उसने उसके कमरे के एक
कोने म दरी हटा दी है, वहाँ पानी िछड़क दया और एक कु श के आसन पर सामने चौक
पर कोई पोथी धरे बैठी है। चौक पर एक ेत व िबछाकर धूपदानी रख दी है िजसम
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धूप सुलग रही है। लॉन से शायद कू छ फू ल तोड़ लायी थी जो धूपदानी के पास रखे ए थे।
बगल म एक ा क माला रखी थी। एक शु ेत रे शम क धोती और के वल एक
चोली पहने ए प ले से बाँह तक ढँके ए वह एका मनोयोग से थ का पारायण कर
रही थी। धूपदानी से धू -रे खाएँ मचलती , लहराती , उसके कपोल पर झूलती
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सूखी- खी अलक से उलझ रही थ । उसने नहाकर के श बाँधे नह थे...च दर ने जूते बाहर
ही उतार दये और चुपचाप पलँग पर बैठकर सुधा को देखने लगा। सुधा ने िसफ एक बार
ब त शा त, ब त गहरी आकाश-जैसी व छ िनगाह से च दर को देखा और फर पढऩे
is
लगी। सुधा के चार ओर एक िविच -सा वातावरण था, एक अपा थव व गक योित के
रे श से बुना आ झीना काश उस पर छाया आ था। गले म पड़ा आ आँचल, पीठ पर
िबखरे ए सुनहले बाल, अपना सबकु छ खोकर िवरि म िख सुहाग पर छाये ए वैध
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क तरह सुधा लग रही थी। माँग सूनी थी, माथे पर रोली का एक बड़ा-सा टीका था और
चेहरे पर वग के मुरझाये ए फू ल क घुलती ई उदासी, जैसे कसी ने चाँदनी पर
हर संगार के पीले फू ल छ टे दे दये ह ।
थोड़ी देर तक सुधा प वर म पढ़ती रही। उसके बाद उसने पोथी ब द कर रख दी।
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“ य ?”
“असल म पहले मने एक त कया, प ह दन तक के वल ात:काल खाने का, तब से कु छ
ऐसा हो गया क शाम को खाते ही मन िबगड़ जाता है। इधर और कई रोग हो गये ह।”
च दर का मन रो आया। सुधा, तुम चुपचाप इस तरह अपने को िमटाती रह ! मान िलया
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क च दर के मन म कतना दुख है!
च दर चाहता था क सुधा क गोद म अपने मन क सभी बात िबखेर दे...ले कन सुधा कहे,
कु छ िशकायत करे तो च दर अपनी सफाई दे...ले कन सुधा तो है क िशकायत ही नह
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करती, सफाई देने का मौका ही नह देती...यह देव व क मू त-सी पथरीली सुधा! यह
च दर क सुधा तो नह ! च दर का मन ब त भर आया। उसके ँ धे गले से पूछा, “सुधा,
तुम ब त बदल गयी हो। खैर और तो जो कु छ है उसके िलए अब म या क ,ँ ले कन अपनी
त दु ती िबगाड़कर य तुम मुझे दुख दे रही हो! अब य भी मेरी जंदगी म या रहा है!
ले कन एक ही स तोष था क तुम सुखी हो। ले कन तुमने मुझसे वह सहारा छीन
िलया...पूजा कसक करती हो?”
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“पूजा कहाँ, पाठ करती ,ँ च दर! गीता का और भागवत का, कभी-कभी सूर सागर का!
पूजा अब भला कसक क ँ गी? मुझ जैसी अभािगनी क पूजा भला वीकार कौन
करे गा?”
“तब यह एक व का भोजन य ?”
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“यह तो ायि है, च दर!” सुधा ने एक गहरी साँस लेकर कहा।
“ ायि त...?” च दर ने अचरज से कहा।
“हाँ, ायि ...” सुधा ने अपने पाँव के िबिछय को धोती के छोर से रगड़ते ए कहा,
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“िह दू गृह तो एक ऐसा जेल होता है जहाँ कै दी को उपवास करके ाण छोड़ने क भी
इजाजत नह रहती, अगर धम का बहाना न हो! धम के बहाने उपवास करके कु छ सुख
िमल जाता है।”
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एक ण आता है क आदमी यार से िव ोह कर चुका है, अपने जीवन क ेरणा-मू त क
गोद से ब त दन तक िनवािसत रह चुका है, उसका मन पागल हो उठता है फर से यार
करने को, बेहद यार करने को, अपने मन का दुलार फू ल क तरह िबखरा देने को। आज
िव ोह का तूफान उतर जाने के बाद अपनी उजड़ी ई जंदगी म बीमार सुधा को पाकर
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गयी!”
“ कस बात का ायि कर रही हो तुम, इस तरह अपने को िमटाकर!”
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सी दुबलता रही क तुम उसे हण नह कर पाये...म तुमसे कु छ नह कहती। मगर अपने
मन म कतनी कुं ठत ँ क कह नह सकती। पता नह दूसरा ज म होता है या नह ; ले कन
इस ज म म तु ह पाकर तु हारे चरण पर अपने को न चढ़ा पायी। तु ह अपने मन क पूजा
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म यक न न दला पायी, इससे बढ़कर और दुभा य या होगा? म अपने ि व को
कतना ग हत, कतना िछछला समझने लगी ,ँ च दर!”
च दर ने ना ता िखसका दया। अपनी आँख म झलकते ए आँसू को िछपाते ए चुपचाप
बैठ गया।
“ना ता कर लो, च दर! इस तरह तु ह अपने पास िबठाकर िखलाने का सुख अब कहाँ
नसीब होगा! लो।” और सुधा ने अपने हाथ से उसे एक नमक न सेव िखला दया। च दर के
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भरे आँसू सुधा के हाथ पर चू पड़े।
“िछः, यह या, च दर!”
“कु छ नह ...” च दर ने आँसू प छ डाले।
इतने म महरािजन आयी और सुधा से बोली, “िब टया रानी! लेव ई नानखटाई हम क है
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से बनाय के रख दया रहा क तोके िखलाइबे!”
“अ छा! हम भी महरािजन, इतने दन से तु हारे हाथ का खाने के िलए तरस गये, तुम
चलो हमारे साथ!” is
“िहयाँ च दर भइया के कौन देखी? अब िब टया इन ँ के याह कर देव, तो हम चली तोहरे
साथ!”
सुधा हँस पड़ी, च दर चुपचाप बैठा रहा। महरािजन िखचड़ी डालने चली गयी। सुधा ने
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चुपचाप नानखटाई क त तरी उठाकर एक ओर रख दी-च दर चुप, अब या बात करे !
पहले वह दोन घंट या बात करते थे! उसे बड़ा ता ुब आ। इस व कोई बात ही नह
सूझती है। पहले जाने कतना व गुजर जाता था, दोन क बात का खा मा ही नह
होता था। सुधा भी चुप थी। थोड़ी देर बाद च दर बोला, “सुधी, तुम सचमुच पूजा-पाठ म
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िव ास रखती हो...”
“ य , करती तो ,ँ च दर! हाँ, मू त ज र नह पूजती, पर कृ ण को ज र पूजती ।ँ अब
सभी सहारे टू ट गये, तुमने भी मुझे छोड़ दया, तब मुझे गीता और रामायण म ब त
स तोष िमला। पहले म खुद ता ुब करती थी क औरत इतना पूजा-पाठ य करती ह,
फर मने सोचा-िह दू नारी इतनी असहाय होती है, उसे पित से, पु से, सभी से इतना
लांछन, अपमान और ितर कार िमलता है क पूजा-पाठ न हो तो पशु बन जाये। पूजा-पाठ
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बात झूठी थ । एक जाने कै सी आग मुझे हरदम झुलसाती रहती थी! मेरा वभाव ब त
िबगड़ गया था। मुझे हरे क से नफरत हो गयी थी। हरे क पर झ ला उठती थी... कसी बात
म मुझे चैन नह िमलता था। धीरे -धीरे मने इन कताब को पढऩा शु कया। मुझे लगने
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लगा क शाि त धीरे -धीरे मेरी आ मा पर उतर रही है। मुझे लगा क यह सभी थ
पुकार-पुकारकर कह रहे ह-'संशया मा िवन यित!' धीरे -धीरे मने इन बात को अपने
जीवन पर घटाना शु कया, तो मने देखा क सारी भि क कताब और उनका दशन
बड़ा मनोहर पक है, च दर! कृ ण यार के देवता ह। वंशी क विन िव ास क पुकार
है। धीरे -धीरे तु हारे ित मेरे मन म जगा आ अिव ास िमट गया, मने कहा, तुम मुझसे
अलग ही कहाँ हो, म तो तु हारी आ मा का एक टु कड़ा ँ जो एक जनम के िलए अलग हो
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गयी। ले कन हमेशा तु हारे चार ओर च मा क तरह च र लगाती र ग ँ ी, िजस दन
मने पढ़ा-
सवधमान् प र य य मामेकं शरणं ज।
अहं वां सवपापे यो मो िय यािम मा शुच:॥
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तो मुझे लगा क तु हारा खोया आ यार मुझे पुकारकर कह रहा है-मेरी शरण म चले
आओ, और िसवा तु हारे यार के मेरा भगवान और है ही या...उसके बाद से च दर, मेरे
मन म िव ास और ेम झलक आया, अपने जीवन क प रिध म आने वाले हर ि के
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िलए। सभी मुझे ब त चाहने लगे...ले कन च दर, जब िबनती यहाँ से द ली जाते व मेरे
साथ गयी और उसने सब हाल बताया तो मुझे कतना दु:ख आ। कतनी लािन ई।
तु हारे ऊपर नह , अपने ऊपर।”
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बात भावना मक तर से उठकर बौि क तर पर आ चुक थ । च दर फौरन बोला, “सुधा,
लािन क तो कोई बात नह , कम-से-कम मने जो कु छ कया है उस पर मुझे जरा-सी भी
शम नह !” च दर के वर म फर एक बार गव और कड़वाहट-सी आ गयी थी-”मने जो
कु छ कया है उसे म पाप नह मानता। तु हारे भगवान ने तु ह जो कु छ रा ता दखलाया,
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वह तुमने कया। मेरे भगवान ने जो रा ता मुझे दखलाया, वह मने कया। तुम जानती ही
हो मेरी जंदगी क पिव ता तुम थी, तु हारी भोली िन पाप साँस मेरे सभी गुनाह, मेरी
सभी कमजो रयाँ सुलाती रही ह। िजस दन तुम मेरी जंदगी से चली गय , कु छ दन तक
मने अपने को सँभाला। इसके बाद मेरी आ मा का कण-कण ोह कर उठा। मने कहा, वग
के मािलक साफ-साफ सुनो। तुमने मेरी जंदगी क पिव ता को छीन िलया है, म तु हारे
वग म वासना क आग धधकाकर उसे नरक से बदतर बना दूग ँ ा। और मने होठ के कनारे
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ब त शाि त िमली। यहाँ तक क िबनती के िलए म अपने मन क सारी कटु ता भूल गया।
म कै से कह दूँ क यह सब गुनाह था। सुधा, अगर ठीक से देखो, ग भीरता से समझो तो जो
कु छ तु हारे िलए मेरे मन म था, उसी क ित या वह है जो मेरे मन म प मी के िलए है।
तु हारा दुलार और प मी क वासना दोन एक िस े के दो पहलू ह। अपने पहलू को सही
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और दूसरे पहलू को गलत य कहती हो? देवता क आरती म जलता आ दीपक पिव है
और उससे िनकला आ धुआँ अपिव ! दीप-िशखा नैितक है और धूम-रे खा अनैितक?
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लािन कस बात क , सुधा?” च दर ने ब त आवेश म कहा।
“िछः, च दर! तुम मुझे समझे नह ! म नैितक-अनैितक क बात ही नह करती। मेरे
भगवान ने, मेरे यार ने मुझे अब उस दुिनया म प च ँ ा दया है जो नैितक-अनैितक से
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उठकर है। तुमने अपने भगवान से िव ोह कया, ले कन उ ह ने तु हारी बात पर कोई
फै सला भी तो दया होता। वे इतने दयालु ह क कभी मानव के काय पर फै सला ही नह
देते। दंड तो दूर क बात, वे तो के वल आदमी को समझाकर, उसक कमजो रयाँ समझकर
उसे मा करने और उसे यार करने क बात कहते ह, च दर! वहाँ नैितकता-अनैितकता
का ही नह ।”
“तब? यह लािन कस बात क तु ह!” च दर ने पूछा।
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“ लािन तो मुझे अपने पर थी, च दर! रहा तु हारा प मी से स ब ध तो म िबनती क तरह
नह सोचती, इतना िव ास रखो। मेरी पाप और पु य क तराजू ही दूसरी है। फर कम-
से-कम अब इतना देख-सुनकर म यह नह मानती क शरीर क यास ही पाप है! नह
च दर, शरीर क यास भी उतनी ही पिव और वाभािवक है िजतनी आ मा क पूजा।
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आ मा क पूजा और शरीर क यास दोन अिभ ह। आ मा क अिभ ि शरीर से है,
शरीर का सं कार, शरीर का स तुलन आ मा से है। जो आ मा और शरीर को अलग कर
देता है, वही मन के भयंकर तूफान म उलझकर चूर-चूर हो जाता है। च दर, म तु हारी
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आ मा थी। तुम मेरे शरीर थे। पता नह कै से हम लोग अलग हो गये! तु हारे िबना म के वल
सू म आ मा रह गयी। शरीर क यास, शरीर क रं गीिनयाँ मेरे िलए अप रिचत हो गय ।
पित को शरीर देकर भी म स तोष न दे पायी...और मेरे िबना तुम के वल शरीर रह गये।
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शरीर म डू ब गये...पाप का िजतना िह सा तु हारा उतना ही मेरा...पाप क वैतरणी के इस
कनारे जब तक तुम तड़पोगे, तभी तक म भी तड़पूँगी...दोन म से कसी को भी चैन नह
और कभी चैन नह िमलेगा...”
“ले कन फर...”
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“हटाओ इन सब बात को, च दर! तुमने थ यह बात उठायी। म अब बात करना भूलती
जा रही ।ँ म तो आयी थी तु ह देखकर कु छ मन का ताप िमटाने। उठो, खाना खाएँ!” सुधा
बोली।
“नह , म चाहता ,ँ बात सुलझ जाएँ, सुधा!” च दर ने सुधा के हाथ पर अपना िसर
रखकर कहा, “मेरी तकलीफ अब बेहद बढ़ती जा रही है। म पागल न हो जाऊँ!”
“िछः, ऐसी बात नह सोचते। उठो!” च दर को उठाकर सुधा बोली। दोन ने खाना खाया।
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लगभग चार बजे वह जागा तो उसने देखा क उसके पाँव के पास िसर रखकर सुधा सो
रही है। पंखे क हवा वहाँ तक नह प च ँ ती। वह पसीने से तर-बतर हो रही है। च दर उठा,
उसे न द म ऐसा लगा क जैसे इधर कु छ आ ही नह है। सुधा वही सुधा है, च दर वही
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च दर है। उसने सुधा के प ले से सुधा के माथे और गले का पसीना प छ दया और हाथ
बढ़ाकर पंखा उसक ओर घुमा दया। सुधा ने आँख खोल , एक अजीब-सी िनगाह से च दर
क ओर देखा और च दर के पाँव को ख चकर व से लगा फर आँख ब द करके लेट गयी।
च दर ने अपना एक हाथ सुधा के माथे पर रख िलया और वह चुपचाप बैठा सोचने लगा,
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आज से लगभग साल-भर पहले क बात, जब उसने पहले-पहल सुधा को कै लाश का िच
दखाया था, और सुधा रो-धोकर उसके पाँव म इसी तरह मुँह िछपाकर सो गयी थी...और
आज...सुधा साल-भर म कहाँ से कहाँ जा प च ँ ी है! च दर कहाँ से कहाँ प च
ँ गया है! काश
is
क कोई उनक जंदगी क लेट से इस वष-भर म ख ची ए मानिसक रे खा को िमटा
सके तो कतने सुखी हो जाएँ दोन ! च दर ने सुधा को िहलाया और बोला-
“सुधा, सो रही हो?”
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“नह ।”
“उठो।”
“नह च दर, पड़ी रहने दो। तु हारे चरण म सबकु छ भूलकर एक ण के िलए भी सो
सकूँ गी, मुझे इसका िव ास नह था। सबकु छ छीन िलया है तुमने, एक ण क आ म-
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रह पाता, जानवर बन जाता ।ँ सुधा, अगर तुम आज से महीन पहले िमल जात तो जो
जहर मेरे मन म घुट रहा है, वह तुहारे सामने करके म िब कु ल िनि त हो जाता।
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अ छा सुधा, यहाँ आओ। चुपचाप लेट जाओ, म तुमसे सबकु छ कह डालूँ, फर सब भूल
जाऊँ। बोलो, सुनोगी?”
सुधा चुपचाप लेट गयी और बोली, “च दर! या तो मत बताओ या फर सभी प बता
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दो...”
“हाँ, िब कु ल प सुधी; तुमसे कु छ िछपा सकता ँ भला!” च दर ने ह क -सी चपत
मारकर कहा, “आज मन जैसे पागल हो रहा है तु हारे चरण पर िबखर जाने के
िलए...जादूगरनी कह क ! देखो सुधा-िपछली दफे तुमने मुझे ब त कु छ बताया था,
कै लाश के बारे म!”
“हाँ।”
&
“बस, उसके बाद से एक अजीब-सी अ िच मेरे मन म तु हारे िलए होने लगी थी; म तुमसे
कु छ िछपाऊँगा नह । तु हारे जाने के बाद बट आया। उसने मुझसे कहा क औरत के वल
नयी संवेदना, नया वाद चाहती है और कु छ नह , अिववािहत लड़ कयाँ िववाह, और
िववािहत लड़ कयाँ नये ेमी...बस यही उनका चरम ल य है। लड़ कयाँ शरीर क यास के
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अलावा और कु छ नह चाहत ...जैसे अराजकता के दन म कसी देश म कोई भी चालाक
नेता शि छीन लेता है, वैसे ही मानिसक शू यता के ण म बट जैसे मेरा दाशिनक गु
हो गया। उसके बाद आयी प मी। उससे मने कहा क या आव यक है क पु ष और नारी
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के स ब ध म से स हो ही? उसने कहा, 'हाँ, और य द नह है तो लेटािनक (आदशवादी)
यार क ित या से स क ही यास म होती है।' अब म तु ह अपने मन का चोर बतला
दू।ँ मने सोचा क तुम भी अपने वैवािहक जीवन म रम गयी हो। शरीर क यास ने तु ह
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अपने म डु बा दया है और जो अ िच तुम मेरे सामने करती हो वह के वल दखावा है।
इसिलए मन-ही-मन मुझे तुमसे िचढ़-सी हो गयी। पता नह य यह सं कार मुझम दृढ़-सा
हो गया और इसी के पीछे म तु ह को नह , प मी को छोड़कर सभी लड़ कय से नफरत-
सी करने लगा। िबनती को भी मने ब त दुख दया। याह म जाने के पहले ही ब त दुखी
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“मेरा मतलब जैसे मुझे गेसू क बात म उस दन ऐसा लगा, जैसे तुम बोल रही हो। और
दूसरी बात तु ह बताऊँ। तु हारे पीछे िबनती रही मेरे पास। सारे अँधेरे म वही एक रोशनी
थी, बड़ी ीण, टम टमाती ई, सारहीन-सी। बि क मुझे तो लगता था क वह रोशन ही
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इसिलए थी क उसम रोशनी तु हारी थी। मने कु छ दन िबनती को ब त यार कया। मुझे
ऐसा लगता था क अभी तक तुम मेरे सामने थ , अब तुम उसके मा यम से आती हो।
लगता था जैसे वह एक ि व नह है, तु हारे ि व का ही अंश है। उस लड़क म
िजस अंश तक तुम थ वह अंश बार-बार मेरे मन म रस उभार देता था। य सुधा! मन क
यह भी कै सी अजब-सी गित है!”
सुधा थोड़ी देर चुप रही, फर बोली, “भागवत म एक जगह एक टीका म हमने पढ़ा था
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च दर क िजसको भगवान ब त यार करते ह, उसम उनक अंशािभ ि होती है। ब त
बड़ा वै ािनक स य है यह! म िबनती को ब त यार करती ,ँ च दर!”
“समझ गया म।” च दर बोला, “अब म समझा, मेरे मन म इतने गुनाह कहाँ से आये। तुमने
मुझे ब त यार कया और वही तु हारे ि व के गुनाह मेरे ि व म उतर आये!”
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सुधा िखलिखलाकर हँस पड़ी। च दर के क धे पर हाथ रखकर बोली, “इसी तरह हँसते-
बोलते रहते तो य यह हाल होता? मनमौजी हो। जब चाहो खुश हो गये, जब चाहो
नाराज हो गये!” is
उसके बाद वह उठी और बाहर से एक त तरी म कु छ फल काटकर लायी। च दर ने देखा-
आम। “अरे आम! अभी कहाँ से आम ले आयीï? कौन लाया?”
“लखनऊ उतरी थी? वहाँ से तु हारे िलए लेती आयी।”
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च दर ने एक आम क फाँक उठाकर खायी और कसी पुरानी घटना क याद दलाने के
िलए आँचल से हाथ प छ दये। सुधा हँस पड़ी और बड़ी दुलार-भरी ताडऩा के वर म
बोली, “बोलो, अब तो दमाग नह िबगाड़ोगे अपना?”
“कभी नह सुधी, ले कन प मी का या होगा? प मी से म स ब ध नह तोड़ सकता।
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खूब गाता रहा और नहा चुकने के बाद उसे खयाल आया क उसने बिनयाइन उतारी ही
नह थी। नहाकर कपड़े बदलकर वह आया तब भी गुनगुना रहा था। कमरे म आया तब
देखा गेसू अके ली बैठी है।
“सुधा कहाँ गयी?” च दर ने नाचते ए वर म कहा।
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“आज बड़े खुश ह, च दर भाई! कोई खायी ई चीज िमल गयी है या? अरे , म बहन ँ
कु छ इनाम ही दे दीिजए।” गेसू ने चुटक ली।
“इनाम क बात या, कहो तो वह चीज ही तु ह दे दू!ँ ”
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“हाँ, कै लाश बाबू के दल से पूिछए।” गेसू बोली।
“उनके दल से तु ह बात कर सकती हो!”
गेसू ने झपकर मुँह फे र िलया।
सुधा हाथ म दो िगलास िलए आयी। “लो गेसू, िपयो।” एक िगलास गेसू को देकर बोली,
“च दर, लो।”
“तुम िपयो न!”
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“नह , म नह िपऊँगी। बफ मुझे नुकसान करे गी!” सुधा ने चुपचाप कहा। च दर को याद
आ गया। पहले सुधा िचढ़-िचढ़कर अपने आप चाय, शरबत पी जाती थी...और आज...
“ या ढू ँढ़ रहे हो, च दर?” सुधा बोली।
“ माल, कोई िमल ही नह रहा!”
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“साल-भर म माल खो दये ह गे! म तो तु हारी आदत जानती ।ँ आज कपड़ा ला दो,
कल सुबह माल सी दूँ तु हारे िलए।” और उठकर उसने कै लाश के ब स से एक माल
िनकालकर दे दया। is
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उसके बाद च दर बाजार गया और कै लाश के िलए तथा सुधा के िलए कु छ कपड़े खरीद
लाया। इसके साथ ही कु छ नमक न जो सुधा को पस द था, पेठा, एक तरबूज, एक बोतल
गुलाब का शरबत, एक सु दर-सा पेन और जाने या- या खरीद लाया। सुधा ने देखकर
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कहा, “पापा नह ह, फर भी लगता है म मायके आयी !ँ ” ले कन वह कु छ खा-पी नह
सक ।
च दर खाना खाकर लॉन म बैठ गया, वह उसने अपनी चारपाई डलवा ली। सुधा के
िब तर छत पर लगे थे। उसके पास महरािजन सोनेवाली थ । सुधा एक त तरी म तरबूज
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काटकर ले आयी और कु स डालकर च दर भी चारपाई के पास बैठ गया। च दर तरबूज
खाता रहा...थोड़ी देर बाद सुधा बोली-
“च दर, िबनती के बारे म तु हारी या राय है?”
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“राय? राय या होती? ब त अ छी लड़क है! तुमसे तो अ छी ही है!” च दर ने छेड़ा।
“अरे , मुझसे अ छी तो दुिनया है, ले कन एक बात पूछ? ब त ग भीर बात है!”
“ या?”
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“तुम िबनती से याह कर लो।”
“िबनती से? कु छ दमाग तो नह खराब हो गया है?”
“नह ! इस बारे म पहले-पहले 'ये' बोले क च दर से िबनती का याह य नह करती, तो
मने चुपचाप पापा से पूछा। पापा िब कु ल राजी ह, ले कन बोले मुझसे क तु ह कहो
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च दर एक उपे ा क हँसी हँसकर रह गया।
सुधा उठ खड़ी ई।
“ य , चल द ?”
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“हाँ, अब न द आ रही होगी तु ह, सोओ।”
च दर ने रोका नह । उसने सोचा था, सुधा बैठेगी। जाने कतनी बात करगे! वह सुधा से
उसका सब हाल पूछेगा, ले कन सुधा तो जाने कै सी तट थ, िनरपे और अपने म सीिमत-
सी हो गयी है क कु छ समझ म नह आता। उसने च दर से सबकु छ जान िलया ले कन
च दर के सामने उसने अपने मन को कह जािहर ही नह होने दया, सुधा उसके पास
होकर भी जाने कतनी दूर थी! सरोवर म डू बकर पंछी यासा था।
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करीब घंटा-भर बाद सुधा दूध का िगलास लेकर आयी। च दर को न द आ गयी थी। वह
च दर के िसरहाने बैठ गयी-”च दर, सो गये या?”
“ य ?” च दर घबराकर उठ बैठा।
“लो, दूध पी लो।” सुधा बोली।
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“दूध हम नह िपएँगे।”
“पी लो, देखो बफ और शरबत िमला दया है, पीकर तो देखो!”
“नह , हम नह िपएँगे। अब जाओ, हम न द लग रही है।” च दर गु सा था।
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“पी लो मेरे राजदुलारे , चमक रहे ह चाँद-िसतारे ...” सुधा ने लोरी गाते ए च दर को
अपनी गोद म ख चकर ब क तरह िगलास च दर के मुँह से लगा दया। च दर ने
चुपचाप दूध पी िलया। सुधा ने िगलास नीचे रखकर कहा, “वाह, ऐसे तो म नीलू को दूध
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िपलाती ।ँ ”
“नीलू कौन?”
“अरे मेरा भतीजा! शंकर बाबू का लड़का।”
“अ छा!”
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पर, उसके माथे पर, उसके होठ पर चाँदी क पाँखु रयाँ बरस रही थ । सुधा ने च दर का
कॉलर ठीक कया और बड़े ही मधुर वर म पूछा, “च दर, न द आ रही है?”
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“करना ब त है, च दर! अपने अ दर क बुराई से लड़ िलये, अब बाहर क बुराई से लड़ो।
मेरा तो सपना था च दर क तुम ब त बड़े आदमी बनोगे। अपने बारे म तो जो कु छ सोचा
था वह सब नसीब ने तोड़ दया। अब तु ह को देखकर कु छ स तोष िमलता है। तुम िजतने
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ऊँचे बनोगे, उतना ही चैन िमलेगा। वना म तो नरक म भुन रही ।ँ ”
“सुधा, तु हारी इसी बात से मेरी सारी िह मत, सारा बल टू ट जाता है। अगर तुम अपने
प रवार म सुखी होती तो मेरा भी साहस बँधा रहता। तु हारा यह हाल, तु हारा यह
वा य, यह असमय वैरा य और पूजा, यह घुटन देखकर लगता है या क ँ ? कसके िलए
क ँ ?”
“म भी या क ँ , च दर! म यह जानती ँ क अब ये भी मेरा ब त खयाल रखते ह, ले कन
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इस बात पर मुझे और भी दुख होता है। म इ ह स तुिलत नह कर पाती और उनक
खुलकर उपे ा भी नह कर पाती। यह अजब-सा नरक है मेरा जीवन भी, ले कन यह ज र
है च दर क तु ह ऊँचा देखकर म यह नरक भी भोग ले जाऊँगी। तुम दल मत छोटा करो।
एक ही जंदगी क तो बात है, उसके बाद...”
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“ले कन म तो पुनज म म िव ास ही नह करता।”
“तब तो और भी अ छा है, इसी ज म म जो सुख दे सकते हो, दे लो। िजतना ऊँचे उठ सकते
हो, उठ लो।” is
“तुम जो रा ता बताओ वह म अपनाने के िलए तैयार ।ँ म सोचता ,ँ अपने ि व से
ऊपर उठूँ ...ले कन मेरे साथ एक शत है। तु हारा यार मेरे साथ रहे!”
“तो वह अलग कब रहा, च दर! तु ह ने जब चाहा मुँह फे र िलया। ले कन अब नह । काश
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क तुम एक ण का भी अनुभव कर पाते क तुमसे दूर वहाँ, वासना के क चड़ म फँ सी ई
म कतनी ाकु ल, कतनी िथत ँ तो तुम ऐसा कभी न करते! मेरे जीवन म जो कु छ
अपूणता रह गयी है च दर, उसक पूणता, उसक िसि तु ह हो। तु ह मेरे ज म-
ज मा तर क शाि त क सौग ध है, तुम अब इस तरह न करना! बस याह कर लो और
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सुधा चुपचाप बैठी रही। च दर भी चुपचाप लेटा रहा। थोड़ी देर बाद च दर ने सुधा क
हथेली अपने हाथ पर रख ली और आँख ब द कर ल । जब वह सो गया तो सुधा ने धीरे -से
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हाथ उठाया, खड़ी हो गयी। थोड़ी देर अपलक उसे देखती रही और धीरे -धीरे चली आयी।
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चौक पर धूप सुलग रही थी और फू ल गमक रहे थे। ढेर-के -ढेर बेल और अग त के फू ल।
च दर को िबठाकर सुधा बैठी। उसने फर वही वेश धारण कर िलया था। रे शम क धोती
और रे शम का एक अ तवासक, गीले बाल पीठ पर लहरा रहे थे।
“ले कन म बैठा-बैठा या क ँ गा?” उसने पूछा।
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सुधा कु छ नह बोली। चुपचाप अपना काम करती गयी। थोड़ी देर बाद उसने भागवत
खोली और बड़े मधुर वर म गोिपका-गीत पढ़ती रही। च दर सं कृ त नह समझता था,
पूजा म िव ास नह करता था, ले कन वह ण जाने कै सा लग रहा था! च दर क साँस म
is
धूप क पावन सौरभ के डोरे गुँथ गये थे। उसके घुटन पर रह-रहकर स : ाता सुधा के
भीगे के श से गीले मोती चू पड़ते थे। कृ शकाय, उदास और पिव सुधा के पूजा के साद
जैसे मधुर वर म ीम ागवत के ोक उसक आ मा को अमृत से धो रहे थे। लगता था,
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जैसे इस पूजा क ाि वत बेला म उसके जीवन-भर क भूल, कमजो रयाँ, गुनाह सभी
धुलता जा रहा था।...जब सुधा ने भागवत ब द करके रख दया तो पता नह य च दर ने
णाम कर िलया-भागवत को या भागवत क पुजा रन को, यह नह मालूम।
थोड़ी देर बाद सुधा ने पूजा क थाली उठायी और उसने च दर के माथे पर रोली लगा दी।
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“अरे म!”
“हाँ तुम! और कौन...मेरे तो दूसरा न कोई!” सुधा बोली और ढेर-के -ढेर फू ल च दर के
चरण पर चढ़ाकर, झुककर च दर के चरण को णाम कर िलया। च दर ने घबराकर पाँव
ख च िलए, “म इस यो य नह ,ँ सुधा! य लि त कर रही हो?”
सुधा कु छ नह बोली...अपने आँचल से एक छलकता आ आँसू प छकर ना ता लाने चली
गयी।
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जब वह यूिनव सटी से लौटा तो देखा, सुधा मशीन रखे कु छ िसल रही है। च दर ने कपड़े
बदलकर पूछा, “कहो, या िसल रही हो?”
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घबरा कर उठी।
“ या आ, सुधा...”
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“ब त दद हो रहा है....” वह उठी और खाट पर बेहोश-सी पड़ रही। च दर दौडक़र पंखा
उठा लाया। और झलने लगा। “डॉ टर बुला लाऊँ?”
“नह , अभी ठीक हो जाऊँगी। उबकाई आ रही है!” सुधा उठी।
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“जाओ मत, म पीकदान उठा लाता ।ँ ” च दर ने पीकदान उठाकर रख दया और सुधा क
पीठ सहलाने लगा। फर सुधा हाँफती-सी लेट गयी। च दर दौड़कर इलायची और पानी ले
आया। सुधा ने इलायची खायी और फर पड़ रही। उसके माथे पर पसीना झलक आया।
“अब कै सी तबीयत है, सुधा?”
“ब त दद है अंग-अंग म...मशीन चलाना नुकसान कर गया।” सुधा ने ब त ीण वर म
कहा।
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“जाऊँ कसी डॉ टर को बुला लाऊँ?”
“बेकार है, च दर! म तो लखनऊ म दखा आयी। इस रोग का या इलाज है। यह तो
जंदगी-भर का अिभशाप है!”
“ या बीमारी बतायी तु ह?”
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“कु छ नह ।”
“बताओ न?”
“ या बताऊँ, च दर!” सुधा ने बड़ी कातर िनगाह से च दर क ओर देखा और फू ट-फू टकर
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रो पड़ी। बुरी तरह िससकने लगी। सुधा चुपचाप पड़ी कराहती रही। च दर ने अटैची म से
दवा िनकालकर दी। कॉलेज नह गया। दो घंटे बाद सुधा कु छ ठीक ई। उसने एक गहरी
साँस ली और त कये के सहारे उठकर बैठ गयी। च दर ने और कई त कये पीछे रख दये। दो
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ही घंटे म सुधा का चहेरा पीला पड़ा गया। च दर चुपचाप उदास बैठा रहा।
उस दन सुधा ने खाना नह खाया। िसफ फल िलये। दोपहर को दो बजे भयंकर लू म
कै लाश वापस आया और आते ही च दर से पूछा, “सुधा क तबीयत तो ठीक रही?” यह
जानकर क सुबह खराब हो गयी थी, वह कपड़े उतारने के पहले सुधा के कमरे म गया और
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अपने हाथ से दवा देकर फर कपड़े बदलकर सुधा के कमरे म जाकर सो गया। ब त थका
मालूम पड़ता था।
च दर आकर अपने कमरे म कॉिपयाँ जाँचता रहा। शाम को कािमनी, भा तथा कई
लड़ कयाँ, िज ह गेसू ने खबर दे दी थी, आय और सुधा और कै लाश को घेरे रह । च दर
उनक खाितर-तव ो म लगा रहा। रात को कै लाश ने उसे अपनी छत पर बुला िलया और
च दर के भिव य के काय म के बारे म बात करता रहा। जब कै लाश को न द आने लगी,
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को ले गया और अपने िम से, ोफे सर से उसका प रचय करा लाया। एक ोफे सर,
िजनक आदत थी क वे कां ेस सरकार से स बि धत हर ि को दावत ज र देते थे,
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उ ह ने कै लाश को भी दावत दी य क वह सां कृ ितक िमशन म जा रहा था।
वापस जाने के िलए रात क गाड़ी तय रही। ह ते-भर बाद ही कै लाश को जाना था अत:
वह यादा नह क सकता था। दोपहर का खाना दोन ने साथ खाया। सुधा महरािजन का
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िलहाज करती थी, अत: वह कै लाश के साथ खाने नह बैठी। िन य आ क अभी से
सामान बाँध िलया जाए ता क पाट के बाद सीधे टेशन जा सक।
जब सुधा ने च दर के लाये ए कपड़े कै लाश को दखाये तो उसे बड़ा ता ुब आ। ले कन
उसने कु छ नह कहा, कपड़े रख िलये और च दर से जाकर बोला, “अब जब तुमने लेने-देने
का वहार ही िनभाया है तो यह बता दो, तुम बड़े हो या छोटे?”
“ य ?” च दर ने पूछा।
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“इसिलए क बड़े हो तो पैर छू कर जाऊँ, और छोटे हो तो पया देकर जाऊँ!” कै लाश
बोला। च दर हँस पड़ा।
घर म दोपहर से ही उदासी छा गयी। न च दर दोपहर को सोया, न कै लाश और न सुधा।
शाम क पाट म सब लोग गये। वहाँ से लौटकर आये तो सुधा को लगा क उसका मन
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अभी डू ब जाएगा। उसे शादी म भी जाना इतना नह अखरा था िजतना आज अखर रहा
था। मोटर पर सामान रखा जा रहा था तो वह ख भे से टककर खड़ी रो रही थी।
महरािजन एक टोकरी म खाने का सामान बाँध रही थी।
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कै लाश ने देखा तो बोला, “रो य रही हो? छोड़ जाएँ तु ह यह ? च दर से सँभलेगा!”
सुधा ने आँसू प छकर आँख से डाँटा-”महरािजन सुन रही ह क नह ।” मोटर तक प च ँ ते-
प च ँ ते सुधा फू ट-फू टकर रो पड़ी और महरािजन उसे गले से लगाकर आँसू प छने लग ।
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फर बोल , “रोवौ न िब टया! अब छोटे बाबू का िबयाह कर देव तो दुई-तीन महीना
आयके रह जाव। तोहार सास छोि़डह क न?”
सुधा ने कु छ जवाब नह दया और पाँच पये का नोट महरािजन के हाथ म थमाकर आ
बैठी।
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“ या?”
“इ ह ने तुमसे िबनती के बारे म कु छ कहा?”
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“कहा था!”
“तो या सोचा तुमने?”
“म शादी-वादी नह क ँ गा।”
“यह सब आदशवाद मुझे अ छा नह लगा, और फर उससे शादी करके सच पूछो तो ब त
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“हाँ, ले कन इसके मतलब यह नह क म शादी कर लूँ। मुझे ब त कु छ करना है।”
“अरे जाओ यार, तुम िसवा बात के कु छ नह कर सकते।”
“हो सकता है।” च दर ने बात टाल दी। वह शादी तो नह ही करे गा।
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थोड़ी देर बाद च दर ने पूछा, “इ ह द ली कब भेजोगे?”
“अभी तो िजस दन म जाऊँगा, उस दन ये द ली मेरे साथ जाएँगी, ले कन दूसरे दन
शाहजहाँपुर लौट जाएँगी।”
“ य ?”
“अभी माँ ब त िबगड़ी ई ह। वह इ ह आने थोड़े ही देती थ । वह तो लखनऊ के बहाने म
इ ह ले आया। तुम शंकर भइया से कभी िज मत करना-अब द ली तो इसिलए चली
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जाएँ क म दो-तीन महीने बाद लौटूँगा... फर शायद िसत बर, अ टू बर म ये तीन-चार
महीने के िलए द ली जाएँगी। यू नो शी इज कै रीइङ् !”
“हाँ, अ छा!”
“हाँ, यही तो बात है, पहला मौका है।”
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दोन लौटकर क पाटमट म बैठ गये।
सुधा बोली, “तो िसत बर म आओगे न, च दर?”
“हाँ-हाँ!” is
“ज र से? फर व कोई बहाना न बना देगा।”
“ज र आऊँगा!”
कै लाश उतरकर कु छ लेने गया तो सुधा ने अपनी आँख से आँसू प छकर झुककर च दर के
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पाँव छू िलये और रोकर बोली, “च दर, अब ब त टू ट चुक .ँ ..अब हाथ न ख च लेना...”
उसका गला ँ ध गया।
च दर ने सुधा के हाथ को अपने हाथ म ले िलया और कु छ भी नह बोला। सुधा थोड़ी देर
चुप रही, फर बोली-
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सुधा का फहराता आ आँचल दखता रहा। धीरे -धीरे वह एक सफे द िब दु बनकर अदृ य
हो गया। गाड़ी एक िवशाल अजगर क तरह चाँदनी म रगती चली जा रही थी।
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जब मन म यार जाग जाता है तो यार क करन बादल म िछप जाती है। अजब थी
च दर क क मत! इस बार तो, सुधा गयी थी तो उसके तन-मन को एक गुलाबी नशे म
सराबोर कर गयी थी। च दर उदास नह था। वह बेहद खुश था। खूब घूमता था और गरमी
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के बावजूद खूब काम करता था। अपने पुराने नो स िनकाल िलये थे और एक नयी कताब
क परे खा सोच रहा था। उसे लगता था क उसका पौ ष, उसक शि , उसका ओज,
उसक दृढ़ता, सभी कु छ लौट आया है। उसे हरदम लगता क गुलाबी पाँखु रय क एक
छाया उसक आ मा को चूमती रहती है। वह जब कभी लेटता तो उसेलगता क सुधा फू ल
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के धनुष क तरह उसके पलँग के आर-पार पाटी पर हाथ टेके बैठी है। उसे लगता-कमरे म
अब भी धूप क सौरभ लहरा रही है और हवा म सुधा के मधुर कं ठ के ोक गूँज रहे ह।
दो ही दन म च दर को लग रहा था क उसक जंदगी म जहाँ जो कु छ टू ट-फू ट गया है,
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वह सब सँभल रहा है। वह सब अभाव धीरे -धीरे भर रहा है। उसके मन का पूजा-गृह
खँडहर हो चुका था, सहसा उस पर जैसे कसी ने आँसू िछड़ककर जीवन के वरदान से
अिभिष कर दया था। प थर के बीच दबकर िपसे ए पूजा-गीत फर से स वर हो उठे
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थे। मुरझाये ए पूजा-फू ल क पाँखु रय म फर रस छलक आया था और रं ग चमक उठे
थे। धीरे -धीरे मि दर का कँ गूरा फर िसतार से समझौता करने क तैयारी करने लगा था।
च दर क नस म वेद-म क पिव ता और ज क वंशी क मधुराई पलक म पलक
डालकर नाच उठी थी। सारा काम जैसे वह कसी अदृ य आ मा क आ मा क आ ा से
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करता था। वह आ मा िसवा सुधा के और भला कसक थी! वह सुधामय हो रहा था। उसके
कदम-कदम म, बात-बात म, साँस-साँस म सुधा का यार फर से लौट आया था।
तीसरे दन िबनती का एक प आया। िबनती ने उसे द ली बुलाया था और मामाजी
(डॉ टर शु ला) भी चाहते थे क च दर कु छ दन के िलए द ली चला आये तो अ छा है।
च दर के िलए कु छ कोिशश भी कर रहे थे। उसने िलख दया क वह मई के अ त म या जून
के ार भ म आएगा। और िबनती को ब त, ब त-सा ेह। उसने सुधा के आने क बात
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रे िडयो बजाता, शाम को घूमता और िसनेमा देखता, सोते व किवताएँ पढ़ता और सुधा
के यार के बादल म मुँह िछपाकर सो जाता। िजस दन कै लाश जाने वाला था, उसी दन
उसका एक प आया क वह और सुधा द ली आ गये ह। शंकर भइया और नीलू उसे
प च ँ ाने ब बई जाएँगे। च दर सुधा के इलाहाबाद जाने का िज कसी को भी न िलखे।
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राम-राम। तुमने मुझे जो साड़ी दी थी वह या अपनी भावी ीमती के नाप क थी? वह
मेरे घुटन तक आती है। बूढ़ी होकर िघस जाऊँगी तो उसे पहना क ँ गी-अ छा ेह। और
जो तुमसे कह आयी ँ उन बात का यान रहेगा न? मेरी त दु ती ठीक है। इधर मने
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गाँधीजी क आ मकथा पढ़नी शु क है।
तु हारी-सुधा।
“...और हाँ, लालाजी! िमठाई िखलाओ, द ली म ब त खबर है क शरणाथ िवभाग म
याग के एक ोफे सर आने वाले ह!”
कै लाश तो अब ब बई चल दया होगा। ब बई के पते से उसने बधाई का एक तार भेज
दया और सुधा को एयर मेल से उसने एक खत भेजा िजसम उसने ब त-सी िमठाइय का
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िच बना दया था।
ले कन वह पसोपेश म पड़ गया। द ली जाए या न जाए। वह अपने अ तमन से सरकारी
नौकरी का िवरोधी था। उसे त कालीन भारतीय सरकार और ि टश सरकार म यादा
अ तर नह लगता था। फर हर दृि कोण से वह समाजवा दय के अिधक समीप था। और
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अब वह सुधा से वायदा कर चुका था क वह काम करे गा। ऊँचा बनेगा। िस होगा,
ले कन पद वीकार कर ऊँचा बनना उसके च र के िव था। क तु डॉ टर शु ला
कोिशश कर कर रहे थे। च दर के ीय सरकार के कसी ऊँचे पद पर आए, यह उनका
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सपना था। च दर को कॉलेज क व छ द और ढीली नौकरी पस द थी। अ त म उसने यह
सोचा क पहले नौकरी वीकार कर लेगा। बाद म फर कॉलेज चला आएगा-एक दन रात
को जब वह िबजली बुझाकर, कताब ब द कर सीने पर रखकर िसतार को देख रहा था
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और सोच रहा था क अब सुधा द ली लौट गयी होगी, अगर द ली रह गया तो बँगले म
कसे टकाया जाएगा...इतने म कसी ि ने फाटक खोलकर बँगले म वेश कया। उसे
ता ुब आ क इतनी रात को कौन आ सकता है, और वह भी साइ कल लेकर! उसने
िबजली जला दी। तार वाला था।
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साइ कल खड़ी कर, तार वाला लॉन पर चला गया और तार दे दया। द तखत करके उसने
िलफाफा फाड़ा। तार डॉ टर साहब का था। िलखा था क “अगली ेन से फौरन चले
आओ। टेशन पर सरकारी कार होगी सलेटी रं ग क ।” उसके मन ने फौरन कहा, च दर, हो
गये तुम के म!
उसक आँख से न द गायब हो गयी। वह उठा, अगली ेन सुबह तीन बजे जाती थी।
यारह बजे थे। अभी चार घंटे थे। उसने एक अटैची म कु छ अ छे-से-अ छे सूट रखे, कताब
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क दालमोठ से उदर-पू त कर रहे थे। हाथरस टेशन पर एक मजेदार घटना घटी। हाथरस
म छोटी और बड़ी लाइन ॉस करती ह। छोटी लाइन ऊपर पुल पर खड़ी होती है। टेशन
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के पास जब ेन धीमी ई तो सेठजी सो रहे थे। सेठानी ने बाहर झाँककर देखा और
िन संकोच उनके पृथुल उदर पर कर- हार करके कहा, “हो! देखो रे लगाड़ी के िसर पर
रे लगाड़ी!” सेठ एकदम च ककर जागे और उछलकर बोले, “बाप रे बाप! उलट गयी
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रे लगाड़ी। ज दी सामान उतार। लुट गये राम! ये तो जंगल है। कहते थे जेवर न ले चल।”
च दर िखलिखलाकर हँस पड़ा। सेठजी ने प रि थित समझी और चुपचाप बैठ गये। च दर
करवट बदलकर फर पढ़ने लगा।
इतने म ऊपर क गाड़ी से उतर कर कोई औरत हाथ म एक गठरी िलये आयी और अ दर
य ही घुसी क मारवाड़ी बोला, “बु ी, यह सेकड लास है।”
“होई! सेके ड-थड तो सब गोिव द क माया है, ब ा!”
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च दर का मुँह दूसरी ओर था, ले कन उसने सोचा गोिव दजी क माया का वणन और
िव ेषण करते ए रे ल के ड ब के वग करण को भी मायाजाल बताना शायद भागवतकार
क द दृि से स भव होगा। ले कन यह भी मारवाड़ी कोई सुधा तो था नह क वै णव
सािह य और गोिव दजी क माया का भ होता। जब उसने कहा-गाड साहब को बुलाऊँ?
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तो बु ढ़या गरज उठी-”बस-बस, चल आँ से, गाड का तोर दमाद लगत है जौन बुलाइहै।
मोटका क दू!”
च दर हँस पड़ा, कम-से-कम गाली क नवीनता पर। दूसरी बात; गाड़ी उस समय ज े
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म थी, वहाँ यह अवधी का सफल व ा कौन है! उसने घूमकर देखा। एक बु ढ़या थी, िसर
मुड़ाये। उसने कह देखा है इसे!
“कहाँ जाओगी, माई?”
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“कानपुर जाबै।”
“ले कन यह गाड़ी तो द ली जाएगी?”
“तु ँ बो यो टु प से! हम ऐसे धमकावे म नै आइत। ई कानपुर जइहै!” उसने हाथ नचाकर
च दर से कहा। और फर जाने य क गयी और च दर क ओर देखने लगी। फर बोली,
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“मरे गी य ?”
“भइया! सुकुल तो हमार कु ल डु बोय दिहन। ले कन जैसे ऊ हमरी िब टया के मड़वा तरे से
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अपकार और मजा तो यह है क एक ही वा य के पूवा म मायामोह से िवरि क
घोषणा और उ रा म दुवासा का शाप...िह दु तान के िसवा ऐसे नमूने कह भी िमलने
मुि कल ह। इतने म च दर क गाड़ी ने सीटी दी। वह भागा। बुआजी ने च दर का खयाल
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छोड़कर अपने बगल के मुसा फर से लड़ना शु कर दया।
वह द ली प च ँ ा। दो-तीन साल पहले भी वह द ली आया था ले कन अब द ली टेशन
क चहल-पहल ही दूसरी थी। गाड़ी घंटा-भर लेट थी। नौ बज चुके थे। अगर मोटर न िमली
तो भी इतनी मश र सड़क पर डॉ टर साहब का बँगला था क च दर को िवशेष द त न
होती। ले कन य ही वह लेटफॉम से बाहर िनकला तो उसने देखा क जहाँ मरकरी क
बड़ी सचलाइट लगी है, ठीक उसी के नीचे सलेटी रं ग क शानदार कार खड़ी थी िजसके
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आगे-पीछे ाउन लगा था और सामने ितरं गा, आगे लाल वद पहने एक खानसामा बैठा
है। और पीछे एक िसख ाइवर खड़ा है। च दर का सूट चाहे िजतना अ छा हो ले कन इस
शान के लायक तो नह ही था। फर भी वह बड़े रोब से गया और ाइवर से बोला, “यह
कसक मोटर है?”
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“सकारी ग ी है ी।” िसख ने अपनी ितभा का प रचय दया।
“ या यह डॉ टर शु ला ने भेजी है?”
“जी हाँ, जूर!” एकदम उसका वर बदल गया-”आप ही उनके लड़के ह-च दर बहादुर
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साहब?” उसने उतरकर सलाम कया। दरवाजा खोला, च दर बैठ गया। कु ली को एक
अटैची के िलए एक अठ ी दी। मोटर उड़ चली।
च दर ब त उदार िवचार का था ले कन आज तक वह डॉ टर साहब क उ ीसव सदी
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वाली पुरानी कार पर ही चढ़ा था। इस राजमुकुट और रा ीय वज से सुशोिभत मोटर पर
खानसामे के साथ चढऩे का उसका पहला ही मौका था। उसे लगा जैसे इस समय ितरं गे का
गौरव और महान ि टश सा ा य के इस ाउन का शासनद भ उसके मन को उड़ाये िलये
जा रहा है। च दर तनकर बैठा ले कन थोड़ी देर बाद वयं उसे अपने मन पर हँसी आ गयी।
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उतरकर दरवाजा खोला। च दर उतर पड़ा। ाइवर ने हॉन दया। दरवाजा खुला और
िबनती िनकली। उसका मुँह सूखा आ था, बाल अ त- त थे और आँख जैसे रो-रोकर
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“तब या आ? तुम इतनी दु:खी य हो?” च दर ने िबनती के िसर पर हाथ रखकर
पूछा...उसे लगा जैसे इस सम त वातावरण पर कसी बड़े भयानक मृ यु-दूत के पंख क
काली छाया है...” या बात है? बताती य नह ?”
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िबनती बड़ी मुि कल से बोली, “दीदी...सुधा दीदी...”
च दर को लगा जैसे उस पर िबजली टू ट पड़ी-” या आ सुधा को?” िबनती कु छ नह
बोली, उसे ऊपर ले गयी और कमरे के पास जाकर बोली, “उसी म ह दीदी!”
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च दर के भीतर पाँव रखते ही नस ने आँख के इशारे से कहा, “बाहर जाइए।” च दर
ठठककर खड़ा हो गया, डॉ टर साहब ने देखा और वे भी उठकर चले आये।
“ या आ सुधा को?” च दर ने ब त ाकु ल, ब त कातर वर म पूछा। डॉ टर साहब
कु छ नह बोले। चुपचाप च दर के क धे पर हाथ रखे ए अपने कमरे म आये और ब त
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भारी वर म बोले, “हमारी िब टया गयी, च दर!” और आँसू छलक आये।
“ या आ उसे?” च दर ने फर उतने ही दु:खी वर म पूछा।
डॉ टर साहब ण-भर पथराई आँख से च दर क ओर देखते रहे, फर िसर झुकाकर
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बोले, “एबॉशन!” थोड़ी देर बाद िसर उठाकर ाकु ल क तरह च दन का क धा पकडक़र
बोले, “च दर, कसी तरह बचाओ सुधा को, या कर कु छ समझ म नह आता...अब बचेगी
नह ...परस से होश नह आया। जाओ कपड़े बदलो, खाना खा लो, रात-भर जागरण
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होगा...”
ले कन च दर उठा नह , कु स पर िसर झुकाये बैठा रहा।
सहसा नस आकर बोली, “ ली डंग फर शु हो गयी और नाड़ी डू ब रही है। डॉ टर को
बुलाइए...फौरन!” और वह लौट गयी।
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डॉ टर साहब उठ खड़े ए। उनक आँख म बड़ी िनराशा थी। बड़ी उदासी से बोले, “जा
रहा ,ँ च दर! अभी आता !ँ ” च दर ने देखा, कार बड़ी तेजी से जा रही है। िबनती आकर
बोली, “खाना खा लो, च दर!” च दर ने सुना ही नह ।
“यह या आ, िबनती!” उसने घबराई आवाज म पूछा।
“कु छ समझ म नह आता, उस दन सुबह जीजाजी गये। दोपहर म पापा ऑ फस गये थे। म
सो रही थी, सहसा जीजी चीखी। म जागी तो देखा दीदी बेहोश पड़ी ह। मने ज दी से फोन
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तक खून जाएगा। न ज के िलए और होश के िलए एक इं जे शन देते ह-अभी।”
इं जे शन देने के बाद डॉ टर चले गये। पापा वह जाकर बैठ गये। िबनती और च दर
चुपचाप बैठे रहे। करीब पाँच िमनट के बाद सुधा ने भयंकर वर म कराहना शु कया।
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उन कराह म जैसे उनका कलेजा उलटा आता हो। डॉ टर साहब उठकर यहाँ चले आये
और च दर से बोले, “वेहीमट ली डंग...” और कु स पर िसर झुकाकर बैठ गये। बगल के
कमरे से सुधा क ददनाक कराह उठती थ और स ाटे म छटपटाने लगती थ । अगर आपने
कसी िज दा मुग के पंख और पूँछ नोचे जाते ए देखा हो तभी आप उसका अनुमान कर
सकते ह; उस भयानकता का, जो उन कराह म थी। थोड़ी देर बाद कराह ब द हो गय ,
फर सहसा इस बुरी तरह से सुधा चीखी जैसे गाय डकार रही हो। पापा उठकर भागे-वह
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भयंकर चीख उठी और स ाटे म मँडराने लगी-िबनती रो रही थी-च दर का चेहरा पीला
पड़ गया था और पसीने से तर हो गया था वह।
पापा लौटकर आये, “हम लोग देख सकते ह?” च दर ने पूछा।
“अभी नह -अब ली डंग ख म है।...नस अभी कपड़े बदल दे तो चलगे।”
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थोड़ी देर म तीन गये और जाकर खड़े हो गये। अब च दर ने सुधा को देखा। उसका चेहरा
सफे द पड़ गया था। जैसे जाड़े के दन म थोड़ी देर पानी म रहने के बाद उँ गिलय का रं ग
र हीन ेत हो जाता है। गाल क हि ïयाँ िनकल आयी थ और होठ काले पड़ गये थे।
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पलक के चार ओर कालापन गहरा गया था और आँख जैसे बाहर िनकली पड़ती थ । खून
इतना अिधक गया था क लगता था बदन पर चमड़े क एक ह क िझ ली मढ़ दी गयी
हो। यहाँ तक क भीतर क ह ी के उतार-चढ़ाव तक प दख रहे थे। च दर ने डरते-डरते
माथे पर हाथ रखा। सुधा के होठ म कु छ हरकत ई, उसने मुँह खोल दया और आँख ब द
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कये ए ही उसने करवट बदली, फर कराही और िसर से पैर तक उसका बदन काँप उठा।
नस ने नाड़ी देखी और कहा, अब ठीक है। कमजोरी ब त है। थोड़ी देर बाद पसीना
िनकलना शु आ। पसीना प छते-प छते एक बज गया। िबनती बोली डॉ टर साहब
is
से-”मामाजी, अब आप सो जाइए। च दर देख लगे आज। नस है ही।”
डॉ टर साहब क आँख लाल हो रही थ । सबके कहने पर वह अपनी सीट पर लेट रहे। नस
बोली, “म बाहर आराम कु स पर थोड़ा बैठ लूँ। कोई ज रत हो तो बुला लेना।” च दर
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जाकर सुधा के िसरहाने बैठ गया। िबनती बोली, “तुम थके ए आये हो। चलो तुम भी सो
रहो। म देख रही !ँ ”
च दर ने कु छ जवाब नह दया। चुपचाप बैठा रहा। िबनती ने सभी िखड़ कयाँ खोल द
और च दर के पास ही बैठ गयी। सुधा सो रही थी चुपचाप। थोड़ी देर बाद िबनती उठी,
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घड़ी देखी, मुँह खोलकर दवा दी। सहसा डॉ टर साहब घबराये ए-से आये-” या बात है,
सुधा य चीखी!”
“कु छ नह , सुधा तो सो रही है चुपचाप!” िबनती बोली।
“अ छा, मुझे न द म लगा क वह चीखी है।” फर वह खड़े-खड़े सुधा का माथा सहलाते
रहे और फर लौट गये। नस अ दर थी। िबनती च दर को बाहर ले आयी और बोली,
“देखो, तुम कल जीजाजी को एक तार दे देना!”
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“ले कन अब वह ह गे कहाँ?”
“िवजगाप म या कोल बो म जहाजी क पनी के पते से दलवा देना तार।”
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दोन फर जाकर सुधा के पास बैठ गये। नस बाहर सो रही थी। साढ़े तीन बज गये थे। ठं डी
हवा चल रही थी। िबनती च दर के क धे पर िसर रखकर सो गयी। सहसा सुधा के होठ
िहले और उसने कु छ अ फु ट वर म कहा। च दर ने सुधा के माथे पर हाथ रखा। माथा
सहसा जलने लगा था; च दर घबरा उठा। उसने नस को जगाया। नस ने बगल म
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आएगा।” ले कन थोड़ी देर म हालत और िबगड़ गयी। और फर उसी तरह ददनाक कराह
सुबह क हवा म िसर पटकने लग । नस ने इन लोग को बाहर भेज दया और बदन
अँगोछने लगी।
Hi
थोड़ी देर म सुधा ने चीखकर पुकारा-”पापा...” इतनी भयानक आवाज थी क जैसे सुधा
को नरक के दूत पकड़े ले जा रहे ह । पापा गये। सुधा का चेहरा लाल था और वह हाथ
पटक रही थी।...पापा को देखते ही बोली, “पापा...च दर को इलाहाबाद से बुलवा दो।”
“च दर आ गया बेटा, अभी बुलाते ह।” य ही पापा ने माथे पर हाथ रखा क सुधा चीख
उठी-”तुम पापा नह हो...कौन हो तुम?...दूर हटो, छु ओ मत...अरे िबनती...”
डॉ टर शु ला ने नस क ओर देखा। नस बोली-
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सुधा ने फर करवट बदली और नस को देखकर बोली, “कौन गेसू...आओ बैठो। च दर नहा
रहा है। अभी बुलाती ।ँ अरे च दर...” और फर हाँफने लगी, आँख ब द कर ल और रोकर
बोली, “पापा, तुम कहाँ चले गये?”
नस ने च दर और िबनती को बुलाया। िबनती पास जाकर खड़ी हो गयी-आँसू प छकर
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बोली, “दीदी, हम आ गये।” और सुधा क बाँह पर हाथ रख दया। सुधा ने आँख नह
खोल , िबनती के हाथ पर हाथ रखकर बोली, “िबनती, पापा कहाँ गये ह?”
“खड़े तो ह मामाजी!” is
“झूठ मत बोल क ब त...अ छा ले, शरबत तैयार है, जा च दर टडी म म पढ़ रहा है
बुला ला, जा!”
िबनती फफककर रो पड़ी।
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“रोती य है?” सुधा ने कराहकर कहा, “म जाऊँगी तो च दर को तेरे पास छोड़ जाऊँगी।
जा च दर को बुला ला, नह बफ घुल जाएगी-शरबत छान िलया है?”
च दर आगे आया। ँ धे गले से आँसू पीते ए बोला, “सुधा, आँख खोलो। हम आ गये,
सुधी!”
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लगी। फर नस से बोली-
“गेसू, तुम ब त बहादुर हो! तुमने अपने को बेचा नह ; अपने पैर पर खड़ी हो। कसी के
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डॉ टर साहब उठकर आ गये-”बेटा!” बड़े दुलार से सुधा के माथे पर हाथ रखकर बोले।
सुधा रो पड़ी-”कहाँ थे पापा, अभी तक तुम? हमने इतना पुकारा, न तुम बोले न च दर
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बोला...हम तो डर लग रहा था, इतना सूना था...जाओ महरािजन ने रोटी सक ली है-खा
लो। हाँ, ऐसे बैठ जाओ। लो पापा, हमने नानखटाई बनायी...”
डॉ टर शु ला रोते ए चले गये-िबनती ने च दर को बुलाया। देखा च दर कु स पर हथेली
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म मुँह िछपाये बैठा था। िबनती गयी और च दर के क धे पर हाथ रखा। च दर ने देखा और
िसर झुका िलया, “चलो च दर, दीदी फर बेहोश हो गय ।”
इतने म नस बोली। “वह फर होश म आयी ह; आप लोग वह चिलए।”
सुधा ने आँख खोल दी थ -च दर को देखते ही बोली, “च दर आओ, कोई मा टर ठीक कया
तुमने? जो कु छ पढ़ा था वह भूल रही ।ँ अब इ तहान म पास नह होऊँगी।”
“डेली रयम अब भी है।” नस बोली। सहसा सुधा ने च दर का हाथ छोड़ दया और झट से
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हथेिलयाँ आँख पर रख ल और बोली, “ये कौन आ गया? यह च दर नह है। च दर नह
है। च दर होता तो मुझे डाँटता- य बीमार पड़ ? अब बताओ म च दर को या जवाब
दूगँ ी...च दर को बुला दो, गेसू! जंदगी म दु मनी िनभायी, अब मौत म तो न िनभाए।”
“उफ! मरीज के पास इतने आदमी? तभी डेली रयम होता है।” सहसा डॉ टर ने वेश
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कया। कोई दूसरा डॉ टर था, अँ ेज था। िबनती और च दर बाहर चले आये। िबनती
बोली, “ये िसिवल सजन ह।” उसने खून मँगवाया, देखा, फर डॉ टर शु ला को भी हटा
दया। िसफ नस रह गयी। थोड़ी देर बाद वह िनकला तो उसका चेहरा याह था। “ या
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यह ै े सी पहली मतबा थी?”
“जी हाँ?”
डॉ टर ने िसर िहलाया और कहा, “अब मामला हाथ से बाहर है। इं जे शन लगगे।
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अ पताल ले चिलए।”
“डॉ टर शु ला, मवाद आ रहा है, कल तक सारे बदन म फै ल जाएगा, कस बेवकू फ
डॉ टर ने देखा था...”
च दर ने फोन कया। ऐ बुले स कार आ गयी। सुधा को उठाया गया...
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ए...िबनती और च दर िबना कु छ खाये-पीये चुपचाप बैठे थे-रह-रहकर िबनती िससक
उठती थी, ले कन च दर ने मन पर प थर रख िलया था। वह एकटक एक ओर देख रहा
था...कमरे म वातावरण शा त था-रह-रहकर िबनती क िसस कयाँ, पापा क िन: ास
तथा घड़ी क िनर तर टक- टक सुनाई पड़ रही थी।
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च दर का हाथ िबनती क गोद म था। एक मूक संवेदना ने िबनती को सँभाल रखा था।
च दर कभी िबनती क ओर देखता, कभी घड़ी क ओर। सुधा क ओर नह देख पाता था।
दुख अपनी पूरी चोट करने के व अकसर आदमी क आ मा और मन को लोरोफाम सुँघा
is
देता है। च दर कु छ भी सोच नह पा रहा था। सं ा-हत, नीरव, िन े ...
घड़ी क सुई अिवराम गित से चल रही थी। सजन कई दफे आये। नस ने आकर टे परे चर
िलया। रात को यारह बजे टे परे चर उतरने लगा। डॉ टर शु ला क आँख चमक उठ ।
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ठीक बाहर बजकर पाँच िमनट पर सुधा ने आँख खोल द । च दर ने िबनती का हाथ मारे
खुशी से दबा दया।
“िबनती कहाँ है?” बड़े ीण वर म पूछा।
सुधा ने आँख घुमाकर देखा। पापा को देखते ही मु करा पड़ी।
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जाना, यह बैठो।”
“िछः पगली! डॉ टर कह रहा है अब खतरा नह है।” च दर ने ब त यार से कहा, “अभी
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तो तुम हमारे िलए िज दा रहोगी न!”
“कोिशश तो कर रही ँ च दर, मौत से लड़ रही !ँ च दर, उ ह तार दे दो! पता नह देख
पाऊँगी या नह ।”
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“दे दया, सुधा!” च दर ने कहा और िसर झुकाकर सोचने लगा।
“ या सोच रहे हो, च दर! उ ह इसीिलए देखना चाहती ँ क मरने के पहले उ ह मा
कर दू,ँ उनसे मा माँग लूँ!...च दर, तुम तकलीफ का अ दाजा नह कर सकते।”
डॉ टर शु ला आये। सुधा ने कहा, “पापा, आज तु हारी गोद म लेट ल।” उ ह ने सुधा का
िसर गोद म रख िलया। “पापा, च दर को समझा दो, ये अब अपना याह तो कर ले।...हाँ
पापा, हमारी भागवत मँगवा दो...”
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“शाम को मँगवा दगे बेटी, अब एक बज रहा है...”
“देखा...” सुधा ने कहा, “िबनती, यहाँ आओ!”
िबनती आयी। सुधा ने उसका माथा चूमकर कहा, “रानी, जो कु छ तुझे आज तक समझाया
वैसा ही करना, अ छा! पापा तेरे िज मे ह।”
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िबनती रोकर बोली, “दीदी, ऐसी बात य करती हो...”
सुधा कु छ न बोली, गोद से हटाकर िसर त कये पर रख िलया।
“जाओ पापा, अब सो रहो तुम।” is
“सो लूँगा, बेटी...”
“जाओ। नह फर हम अ छे नह ह गे! जाओ...”
सजन का आदेश था क मरीज के मन के िव कु छ नह होना चािहए-डॉ टर शु ला
gl
चुपचाप उठे और बाहर िबछे पलँग पर लेट रहे।
सुधा ने च दर को बुलाया, बोली, “म झुक नह सकती-िबनती यहाँ आ-हाँ, च दर के पैर
छू ...अरे अपने माथे म नह पगली मेरे माथे से लगा दे। मुझसे झुका नह जाता।” िबनती ने
रोते ए सुधा के माथे म चरण-धूल लगा दी, “रोती य है, पगली! म मर जाऊँ तो च दर
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तो है ही। अब च दर तुझे कभी नह लाएँगे...चाहे पूछ लो! इधर आओ, च दर! बैठ जाओ,
अपना हाथ मेरे होठ पर रख दो...ऐसे...अगर म मर जाऊँ तो रोना मत, च दर! तुम ऊँचे
बनोगे तो मुझे ब त चैन िमलेगा। म जो कु छ नह पा सक , वह शायद तु हारे ही मा यम
से िमलेगा मुझे। और देखो, पापा को अके ले द ली म न छोडऩा...ले कन म म ँ गी नह ,
च दर...यह नरक भोगकर भी तु ह यार क ँ गी...म मरना नह चाहती, जाने फर कभी
तुम िमलो या न िमलो, च दर...उफ कतनी तकलीफ है, च दर! हम लोग ने कभी ऐसा
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था... “अरे च दर, तु ह पकड़ रहा है। च दर, तुम मेरे पास आओ।” सुधा ने च दर का हाथ
पकड़ िलया-िबनती भागकर डॉ टर साहब को बुलाने गयी। नस भी भागकर आयी। सुधा
चीख रही थी-”तुम हो कौन? च दर को नह ले जा सकते। म चल तो रही ।ँ च दर, म
जाती ँ इसके साथ, घबराना मत। म अभी आती ।ँ तुम तब तक चाय पी लो-नह , म
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और सुधा का िसर च दर क बाँह पर लुढ़क गया-िबनती को नस ने सँभाला और डॉ टर
शु ला पागल क तरह सजन के बँगले क ओर दौड़े...घड़ी ने टन-टन दो बजाये...
जब ए बुले स कार पर सुधा का शव बँगले प च
ँ ा तो शंकर बाबू आ गये थे-ब को िवदा
Hi
कराने...
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उपसंहार
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जंदगी का य णा-च एक वृ पूरा कर चुका था। िसतारे एक ि ितज से उठकर,
आसमान पार कर दूसरे ि ितज तक प च ँ चुके थे। साल-डेढ़ साल पहले सहसा जंदगी क
लहर म उथल-पुथल मच गयी थी और िव ु ध महासागर क तरह भूखी लहर क बाँह
पसारकर वह कसी को दबोच लेने के िलए क ं ार उठी थी। अपनी भयानक लहर के
िशकं जे म सभी को झकझोरकर, सभी के िव ास और भावना को चकनाचूर कर अ त
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म सबसे यारे , सबसे मासूम और सबसे सुकुमार ि व को िनगलकर अब धरातल शा त
हो गया-तूफान थम गया था, बादल खुल गये थे और िसतारे फर आसमान के घ सल से
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भयभीत िवहंग-शावक क तरह झाँक रहे थे।
डॉ टर शु ला छु ी लेकर याग चले आये थे। उ ह ने पूजा-पाठ छोड़ दया था। उ ह कभी
कसी ने गाते ए नह सुना था। अब वह सुबह उठकर लॉन पर टहलते और एक भजन
गाते थे। िबनती, जो इतनी सु दर थी, अब के वल खामोश पीड़ा और अवशेष मृित क
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छाया मा थी। च दर शा त था, प थर हो गया था, ले कन उसके माथे का तेज बुझ गया
था और वह बूढ़ा-सा लगने लगा था और यह सब के वल प ह दन म।
जेठ दशहरे के दन डॉ टर साहब बोले, “च दर, आज जाओ, उसके फू ल छोड़ आओ, ले कन
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देखो, शाम को जाना जब वहाँ भीड़-भाड़ न हो, अ छा!” और चुपचाप टहलकर गुनगुनाने
लगे।
शाम को च दर चला तो िबनती भी चुपचाप साथ हो ली; न िबनती ने आ ह कया न
च दर ने वीकृ ित दी। दोन खामोश चल दये। कार पर च दर ने िबनती क गोद म गठरी
रख दी। ि वेणी पर कार क गयी। ह क चाँदनी मैले कफन क तरह लहर क लाश पर
पड़ी ई थी। दन-भर कमाकर म लाह थककर सो रहे थे। एक बूढ़ा बैठा िचलम पी रहा
था। चुपचाप उसक नाव पर च दर बैठ गया। िबनती उसक बगल म बैठ गयी। दोन
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खामोश थे, िसफ पतवार क छप-छप सुन पड़ती थी। म लाह ने त त के पास नाव बाँध
दी और बोला, “नहा ल बाबू!” वह समझता था बाबू िसफ घूमने आये ह।
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“जाओ!”
वह दूर त त क कतार के उस छोर पर जाकर खो गया। फर दूर-दूर तक फै ला
संगम...और स ाटा...च दर िसर झुकाये बैठा रहा...िबनती िसर झुकाये बैठी रही। थोड़ी
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देर बाद िबनती िससक पड़ी। च दर ने िसर उठाया और फौलादी हाथ से िबनती का कं धा
झकझोरकर बोला, “िबनती, य द रोयी तो यही फक दगे उठाकर क ब त, अभागी!”
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िबनती चुप हो गयी।
च दर चुपचाप बैठा त त के नीचे से गुजरती ई लहर को देखता रहा। थोड़ी देर बाद
उसने गठरी खोली... फर क गया, शायद फकने का साहस नह हो रहा था...िबनती ने
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पीछे से आकर एक मु ी राख उठा ली और अपने आँचल म बाँधने लगी। च दर ने चुपचाप
उसक ओर देखा, फर झपटकर उसने िबनती का आँचल पकडक़र राख छीन ली और
गुराता आ बोला, “बदतमीज कह क !...राख ले जाएगी-अभागी!” और झट से कपड़े
सिहत राख फक दी और आ ेय दृि से िबनती क ओर देखकर फर िसर झुका िलया।
लहर म राख एक जहरीले पिनयाले साँप क तरह लहराती ई चली जा रही थी।
िबनती चुपचाप िससक रही थी।
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“नह चुप होगी!” च दर ने पागल क तरह िबनती को ढके ल दया, िबनती ने बाँस पकड़
िलया और चीख पड़ी।
चीख से च दर जैसे होश म आ गया। थोड़ी देर चुपचाप रहा फर झुककर अंजिल म पानी
लेकर मुँह धोया और िबनती के आँचल से प छकर ब त मधुर वर म बोला, “िबनती,
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रोओ मत! मेरी समझ म नह आता कु छ भी! रोओ मत!” च दर का गला भर आया और
आँख म आँसू छलक आये-”चुप हो जाओ, रानी! म अब इस तरह कभी नह क ँ गा-उठो!
अब हम दोन को िनभाना है, िबनती!” च दर ने त त पर छीना-झपटी म िबखरी ई राख
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चुटक म उठायी और िबनती क माँग म भरकर माँग चूम ली। उसके होठ राख म सन गये।
।।समा ।।
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