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Essay Chapter 10.5
Essay Chapter 10.5
Essay Chapter 10.5
नाम:- अतुल कृ
माला जाप :- 8
िवषय:- [ 5] समझाएं िक कृ ने जो कुछ अजुन को कहा है , उसे पर हम ीकृित ों करनी चािहए। अपनी
िति या म BG 10.12-14, छं दों और अिभ ायों का संदभ द।
ावना:- इस अ ाय म भगवान ी कृ अपने सखा अजुन को अपनी सृि यों एवं अपने िविभ ऐ य के िवषय
म बता रहे ह। अतः ाचीन शा ों म भ के ९ कार बताए गए ह िजसे नवधा भ कहते ह।
अतः इस कार वण (परीि त), कीतन (शुकदे व), रण ( ाद), पादसेवन (ल ी), अचन (पृथुराजा), वंदन
(अ ू र), दा (हनुमान), स (अजुन) और आ िनवेदन (बिल राजा) - इ नवधा भ कहते ह।
अजुन उवाच
आ ामृषयः सव दे विषनारद था ।
अपने श ों म िव ार भावाथ:- भगवान ीकृ के सामने बैठे ए अजुन ने कहा है िक हे ीकृ तुम तो यं
परम हो, परम धाम हो – िजस धाम के अं दर सारा ा थत है। िव म म भी सबसे पिव आप हो, आप
शा त हो, िद पु ष हो, सगु न और िनराकार आिददे व हो, अज ा, आप ही सव ापी, सव श मान िवभु हो।
वा व म अजुन कह रहे ह िक हे कृ आप ही सम परमा ा हो।
धम ंथों म, सारे ऋिषयों, महा ऋिषयों ने, दे वऋिष नारद, महान अिसत और उनके पु धवल, महा ऋिष ास भी
आपको ही परम मानते ह. (महाभारत के वन पव १२/५०, और भी पव म ६८/५ म इसका वणन है)।
अजुन भगवान ीकृ को यह समझाने का य करा रहे ह िक हे केशव आपने मुझसे जो कुछ भी कहा है उन
सारी बातों पर मुझे पूण िव ास है । दे वतागण और असुरगण भी आपके इस प को नहीं जानते है।
उपसंहार:- अतः भगवान ी कृ ने जो कुछ अजुन से कहा है उसे हम इसिलए ीकार करना चािहए ोंिक
जो कोई परमे र की भ करता है वही उसे समझ सकता है अ था की थित म कोई उसे नहीं समझ
सकता। इन ोकों म अजुन ारा कहे गए श वैिदक आदे श ही है।
हरे कृ