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16th HINDI 6.0
16th HINDI 6.0
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त ात् योगी भवाजुन
ष म सं रण
वसुदेवसुतं(न्) दे वं(ङ् ), कंसचाणूरमदनम्।
दे वकीपरमान ं (ङ् ), कृ ं(व्ँ) व े जगद् गु म्॥
षो
ॐ ीपरमा ने नम:
' ी' को 'श+र
् ' पढ़ (' ी' नह )ं
ीम गव ीता
' ीम गव ीता' म दोन थान पर ' ' आधा एवं 'ग' पूरा पढ़
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अथ षोडशोऽ ाय:
'षोडशो( ) याय:' म 'शो' का उ ारण द घ कर ['ऽ' (अव ह) का उ ारण 'अ' नह कर]
ीभगवानुवाच
' वौ' पढ़ ['दौ' नह ]ं, ' तसग ' म 'त' पूरा पढ़, 'आ र' म 'र' पूरा पढ़
वृि ं(ञ्) च िनवृि ं(ञ्) च, जना न िवदरासु
ु राः ।
न शौचं(न्) नािप चाचारो, न स ं(न्) तेषु िव ते 7
'जना न' म 'न' को व पढ़ [द घ 'ना' नह ]ं,
' व( ) ते' म ' = +य' पढ़ ['द' या 'ध' नह ]ं
अस म ित ं(न्) ते, जगदा रनी रम्।
अपर रस ूतं(ङ् ), िकम ामहै तुकम् 8
'जगदा रनी( ) वरम् ' म ' ' व पढ़ [द घ 'ह'ू नह ]ं,
'अपर( ) पर' म 'र' पूरा पढ़, ' कम ( ) य ( ) कामहै तुक म् ' पढ़
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एतां(न्) ि मव ,न ा ानोऽ बु यः ।
त
ात् योगी भवाजुन
भव ु कमाणः , याय जगतोऽिहताः 9
' ( ) मव( ) ( ) य' पढ़,
'न( ) ा( ) मानो' म 'मा' द घ पढ़ [ व नह ]ं, ' भवन्+ यु ( ) कमाणः' म ' यु ' व पढ़
काममाि दु ूरं(न्), द मानमदा ताः ।
मोहाद् गृही ास ाहान्, वत ेऽशुिच ताः 10
'काम+मा( ) ( ) य' म ' य' पढ़ ['त' नह ]ं, 'द( ) भमानम' म 'न' एवं 'म' पूरा पढ़ [आधा नह ]ं,
'मोहा( ) +ग् ऋह ( ) वा+स + ाहान्' म 'ह ' द घ पढ़ [ व नह ]ं
िच ामप रमेयां(ञ्) च, लया ामुपाि ताः ।
कामोपभोगपरमा, एताविदित िनि ताः 11
' च( ) तामप रमेय ाञ् ' म 'म' पूरा पढ़, ' लया( ) ता' म 'ल' पूरा पढ़, 'कामोपभोगपरमा' म 'प' एवं 'र' पूरा पढ़
आशापाशशतैब ाः (ख्), काम ोधपरायणाः ।
ईह े कामभोगाथम्, अ ायेनाथस यान् 12
'शतैर+ब
् ( ) ा(ख् )' पढ़, 'ईह ते' म 'ई' द घ पढ़
इदम मया ल म्, इमं(म्) ा े मनोरथम्।
इदम ीदमिप मे, भिव ित पुनधनम् 13
' ाप् + ये' पढ़ [' ा से' नह ]ं, 'इदम( ) ती+दम प' म 'ती' द घ पढ़
Śrīmadbhagavadgītā - 16th Chapter - Daivāsurasampadvibhāgayoga geetapariwar.org ीम गव ीता - षोडश अ ाय - दै वासुरस ि भागयोग
असौ मया हतः (श्) श ु:(र् ), हिन े चापरानिप।
ई रोऽहमहं (म्) भोगी, िस ोऽहं (म्) बलवा ुखी 14
'ह न( ) ये' पढ़, 'ई ( ) रो+हमहम् ' पढ़
अनेकिच िव ा ा, मोहजालसमावृताः ।
स ाः (ख्) कामभोगेषु, पत नरकेऽशुचौ 16
'अनेक ' म 'क' पूरा पढ़, ' च+ ' पढ़, 'भोगेषु' म 'षु ' व पढ़, 'पति त' म ' त' व पढ़
त
ात् योगी भवाजुन
अह ारं (म्) बलं(न्) दप(ङ् ), कामं(ङ् ) ोधं(ञ्) च संि ताः ।
मामा परदे हेषु, ि ष ोऽ सूयकाः 18
'श' से पूव अ वार आने से 'सं ताः' म अ वार का उ ार
सा ना सक 'व् ' जस
ै ा होगा अतः 'स(व्ँ) ताः' पढ़, ' ( ) + वष( ) तो( ) य+सूय काः' म 'तो' द घ पढ़
आसुरी(य्
ं ँ) योिनमाप ा, मूढा ज िन ज िन।
माम ा ैव कौ ेय, ततो या धमां(ङ् ) गितम् 20
दोन थान पर 'ज( ) म न' म ' न' व पढ़ [द घ 'नी' नह ]ं
'यान्+ य+धमा +ग तम् ' पढ़ ['या ते' नह ]ं
'एतैर+
् व ( ) (ख् )' पढ़, 'तमो( ) ारस्+ भनरह' पढ़, 'आचर( ) या( ) मनश'् पढ़
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Learngeeta.com यः (श्) शा िविधमु ृ , वतते कामकारतः ।
न स िस मवा ोित , न सुखं(न्) न परां(ङ् ) गितम् 23
'शा व ध+ त्+स्ऋ( ) य' पढ़, 'न स स( ) म' म 'स' व पढ़ [द घ 'सा' नह ]ं
'वा( ) ो त' म ' त' व पढ़ [द घ 'ती' नह ]ं
● िवसग के उ ार जहाँ (ख्) अथवा (फ्) िलखे गय ह, वह ख् अथवा फ् नही ं होते, उनका उ ारण 'ख्' या 'फ्' के जैसा िकया जाता है ।
● संयु वण (दो ंजन वण के संयोग) से पहले वाले अ र पर आघात (ह ा सा जोर) दे कर पढ़ना चािहये। '॥' का िच आघात को दशाने
हे तु ेक आव क वण के ऊपर िकया गया है । ोक के नीचे उ ारण संकेत हे तु बगनी रं ग से आघात के वण िलखे गये ह, इसका
अथ यह नही ं िक इन वण को दो बार पढ़, ब इ े जोड़कर वहाँ ज़ोर दे कर इन वण का उ ारण कर, यह ता य है ।
● यिद िकसी ंजन का र के साथ संयोग हो तो वह संयु वण नही होता इसिलये वहां आघात भी नही ं होगा। संयु वण से पूव र पर ही
आघात िदया जाता है िकसी ंजन या अनु ार पर नही।ं उदाहरण - 'वासुदेवं(व्ँ) जि यम्' म ' ' संयु होने पर भी पूव म अनु ार होने
से आघात नही ं आयेगा।
● कुछ थानो ं पर र के प ात् संयु वण होने पर भी अपवाद िनयम के कारण आघात नही ं िदये गये ह जैसे एक ही वण के दो बार आने से,
तीन ंजनो ं के संयु होने से, रफार (उपर र् ) या हकार आने पर आिद। िजन थानो ं पर आघात का िच नही ं वहाँ िबना आघात के ही
अ ास कर।