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तीन मछलियों की कहानी

एक जलाशय में तीन मछलियाँ (Fishes) रहा करती थी : अनागतविधाता, प्रत्यु त्पन्नमति और
यभ्दविष्य. तीनों के स्वभाव एक-दस ू रे से भिन्न थे . अनागतविधाता सं कट आने के पूर्व ही उसके
समाधान में विश्वास रखती थी. प्रत्यु त्पन्नमति की सोच थी कि सं कट आने पर उसका कोई न कोई
समाधान निकल ही आता है . यभ्दविष्य किस्मत के भरोसे रहने वालों में से थी. उसका मानना था कि
जो किस्मत में लिखा है , वह तो होकर ही रहे गा. चाहे कितने ही प्रयत्न क्यों न कर लिए जायें , उसे
टाला नहीं जा सकता.
तीनों मछलियाँ जिस जलाशय में रहती थीं, वह मु ख्य नदी से जु ड़ा हुआ था. किंतु घनी झाड़ियों से
ढका होने के कारण सीधे दिखाई नहीं पड़ता था. यही कारण था कि वह अब तक मछुआरों की दृष्टि से
बचा हुआ था.
एक शाम मछुआरे नदी से मछलियाँ पकड़कर वापस लौट रहे थे . बहुत ही कम मछलियाँ हाथ आने के
कारण वे उदास थे . तभी उनकी दृष्टि मछलीखोर पक्षियों पर पड़ी, जो नदी से लगी झाड़ियों के पीछे
से उड़ते चले आ रहे थे . उन मछलीखोर पक्षियों की चोंच में मछलियाँ दबी हुई थी.
यह दे ख मछुआरों को समझते दे र न लगी कि झाड़ियों के पीछे नदी से लगा हुआ कोई जलाशय है . वे
झाड़ियों के पार जाकर जलाशय के पास पहुँच गए. वे बहुत ख़ु श थे . एक मछुआरा बोला, “लगता है
यह जलाशय मछलियों से भरा हुआ है . यहाँ से हम ढे र सारी मछलियाँ पकड़ पायें गे .”
“सही कह रहे हो भाई. ले किन आज तो शाम घिर आई है . कल सु बह-सु बह आकर यहाँ पर अपना जाल
बिछाते हैं .” दस ू रे मछुआरे ने कहा. दस
ू रे दिन आने की योजना बनाकर मछुआरे वहाँ से चले गए.
मछुआरों की बातें अनागतविधाता ने सु न ली. वह तु रंत प्रत्यु त्पन्नमति और यभ्दविष्य के पास
पहुँची और बोली, “कल मछुआरे जाल डालने इस जलाशय में आ रहे हैं . यहाँ रहना अब ख़तरे से
खाली नहीं रह गया है . हमें यथाशीघ्र यह स्थान छोड़ दे ना चाहिए. मैं तो तु रंत ही नहर से होती हुई
नदी में जा रही हँ .ू तु म लोग भी साथ चलो.”
अनागतविधाता की बात सु नकर प्रत्यु त्पन्नमति बोली, “अभी ख़तरा आया कहाँ है ? हो सकता है कि
वो आये ही नहीं. जब तक ख़तरा सामने नहीं आएगा, मैं जलाशय छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी. हो
सकता है कि मछुआरों को मछलियों से भरा कोई दस ू रा जलाशय मिल जाये और वे यहाँ आने का
इरादा छोड़ दें . यदि वे आ भी गए, तो ये भी सं भव है कि मैं उनके जाल फंसू ही ना.”
यभ्दविष्य बोली, “किस्मत के आगे क्या भला किसकी चली है ? मछुआरों को आना होगा तो आयें गे
और मु झे उनके जाल में फंसना होगा, तो मैं फंसूं गी ही. मे रे कुछ भी करने से किस्मत का लिखा थोड़ी
बदल जाएगा.”
अनागतविधाता ने अपनी योजना अनु सार वहाँ से प्रस्थान करना ही उचित समझा और वह तु रंत वहाँ
से चली गई. प्रत्यु त्पन्नमति और यभ्दविष्य जलाशय में ही रुकी रही.
अगले दिन सु बह मछुआरे जाल ले कर आये और जलाशय में जाल फेंक दिया. सं कट सामने दे ख बचाव
हे तु प्रत्यु त्पन्नमति अपना दिमाग दौड़ाने लगी. उसने इधर-उधर दे खा, किंतु उसे कोई खोखली जगह
नहीं मिली, जहाँ जाकर वह छुप सके. तभी उसे एक उदबिलाव की सड़ी हुई लाश पानी में तै रती हुई
दिखाई पड़ी. वह उस लाश में घु स गई और उसकी सड़ां ध अपने ऊपर लपे टकर बाहर आ गई.
थोड़ी दे र बाद वह एक मछुआरे के जाल में फंस गई. मछुआरे ने जब जाल बाहर निकाला और सारी
मछलियों को जाल से एक किनारे पर उलट दिया, तब प्रत्यु त्पन्नमति सड़ां ध लपे टे हुए मरी मछली
की तरह जमीन पर पड़ी रही. उसमें कोई हलचल न दे ख मछुआरे ने उसे उठाकर सूं घा. उसके ऊपर से
आ रही बदबू से उसने अनु मान लगाया कि ये अवश्य कई दिनों पहले मरी मछली है और उसने उसे
पानी में फेंक दिया. पानी में पहुँचते ही प्रत्यु त्पन्नमति तै रकर सु रक्षित स्थान पर चली गई. इस तरह
् का प्रयोग कर वह बच गई.
बु दधि
वहीं दस ू रे मछुआरे के जाल में फंसी यभ्दविष्य कुछ किये बिना किस्मत के भरोसे रही और अन्य
मछलियों के साथ दम तोड़ दिया.
सीख
किस्मत उसी का साथ दे ती है , जो खु द का साथ दे ते हैं . किस्मत के भरोसे रहकर हाथ पर हाथ धरे बै ठे
रहने वालों का विनाश निश्चित है .   

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