Fish 1

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जादु ई मछली की कहानी

एक गाँ व में एक मछुआरा रहता अपनी पत्नि के साथ रहता था. वह मुँ ह अं धेरे घर से नदी को ओर
निकल जाता और वहाँ जाल डालकर दिन भर मछली पकड़ता था. शाम तक जितनी मछली पकड़
पाता, उसे बे चकर प्राप्त पै सों से अपना घर चलाता था.
आमदनी अधिक नहीं थी. क्योंकि कभी ढे र सारी मछलियाँ फंसती, तो कभी बहुत ही कम. जै से-तै से
उसके दिन गु जर रहे थे . इस पर भी वह सं तुष्ट था और सु ख-चै न से अपना जीवन बसर करने की
कोशिश करता था.
ले किन उसकी पत्नि लालची किस्म थी. चाहे वह कितने ही पै से घर ले कर आये , वह कभी ख़ु श नहीं
होती और उसे उलाहना दिया करती थी. मछुआरा ज्यादा मे हनत कर अधिक से अधिक पै से कमा कर
उसे ख़ु श करने की हर सं भव कोशिश किया करता था. ले किन कभी उसे ख़ु श नहीं कर पाता था.
एक सु बह जब मछुआरा उठा, तो उसका शरीर बु खार से तप रहा था. ले किन पत्नि के डर से वह जाल
ले कर नदी चला गया. कुछ दे र वह नदी में जाल डाले बै ठा रहा, ले किन एक भी मछली जाल में नहीं
फंसी. वह खाली हाथ घर लौट आया.
उसे खाली हाथ लौटा दे ख उसकी पत्नि चिल्लाने लगी. उसने उसे समझाने की कोशिश की कि आज
उसकी तबियत ठीक नहीं है . ले किन वह नहीं मानी और मजबूरन मछुआरे को फिर से मछली पकड़ने
जाना पड़ा.
बु खार से तपता हुआ वह नदी में जाल डालकर बै ठ गया. बहुत दे र तक जाल डाले रहने के बाद भी
एक भी मछली जाल में नहीं फंसी. वह निराश होकर लौटने का मन बनाने लगा कि तभी उसे जाल
कुछ भारी सा प्रतीत हुआ.
वह ख़ु श हो गया कि शायद कोई बड़ी मछली फंस गई है . उसने जल्दी-जल्दी जाल खींचा. जाल में
एक सु नहरी मछली फंसी हुई थी. मछुआरे ने इतनी सुं दर मछली पहली बार दे खी थी. वह उसे हाथ में
ले कर निहारने लगा.
तभी वह मछली बोल पड़ी, “मछुआरे भाई! मैं इस नदी की रानी हँ .ू मु झ पर दया करो. मु झे छोड़ दो.
तु म मु झे छोड़ दोगे , तो मैं तु म्हारी हर इच्छा पूरी करूंगी.”
मछुआरे को मछली पर दया आ गई. उसने वापस नदी के पानी में छोड़ दिया और घर वापस आ गया.
घर में पत्नि ने उसे फिर खाली हाथ लौटा दे ख उत्पात मचा दिया.
मछुआरे ने उसे किसी तरह शांत कर सु नहरी जादुई मछली की बात बताई. सारी बात जानकर उसकी
पत्नि भड़क गई कि जब जादुई मछली हर इच्छा पूरी करने तै यार थी, तो तु मने कुछ मां गा क्यों नहीं?
उसने जबरदस्ती मछुआरे को नदी पर भे जा और जादुई मछली से खाने -पीने का सामान मां गकर लाने
को कहा.
मछुआरा नदी पर पहुँचा और किनारे खड़े होकर ज़ोर से चिल्लाया, “मछली रानी! मछली रानी! बाहर
तो आओ. मे री एक विनती सु न लो.”
कुछ ही दे र में नदी के पानी में हलचल हुई और सु नहरी जादुई मछली पानी के ऊपर आ गई.
“क्या बात है मछुआरे भाई? मु झे क्यों बु लाया?” मछली बोली.
“मछली रानी! आज घर पर खाने का कुछ सामान नहीं है . मैं और मे री पत्नि दोनों भूखे हैं . क्या तु म
मु झे खाने का कुछ सामान दे सकती हो?” मछुआरा हाथ जोड़कर बोला.
“क्यों नहीं?” मछली बोली, “तु म अपने घर पहुँचो. वहाँ खाने का सामान पहुँच जाये गा.”
मछुआरे ने वापस घर की राह पकड़ ली. जब वह घर पहुँचा, तो दे खा दरवाज़े पर खाने -पीने की ढे र
सारी चीज़ें रखी हुई है . उसने आवाज़ लगाकर अपनी पत्नि को बु लाया और वे सारी चीज़ें दिखाई.
उसकी पत्नि ख़ु श हो गई. सारी चीज़ें घर के अं दर रखने के बाद मछुआरा बै ठा ही था कि पत्नि बोली,
“तु म भी क्या बस खाने -पीने की चीज़ें ही मां गकर लाये . सुं दर वस्त्र और कीमती आभूषण भी तो
मां गने चाहिए थे . अभी जाओ और जादुई मछली से जाकर वस्त्र और आभूषण  मां गों.”
मछुआरे को बार-बार जाकर मछली से चीज़ें मां गना ठीक नहीं लगा. वह बोला, “अभी तो इतना सारा
खाने का सामन मां गकर लाया हँ .ू हमारी खाने की ज़रूरतें तो पूरी हो गई. कपड़े और आभूषण फिर
कभी मां ग लूंगा.”
ये सु नना था कि पत्नि ने आसमान सिर पर उठा लिया. मछुआरा मन  मानकर फिर नदी की ओर चल
पड़ा. वहाँ उसने फिर से मछली को पु कारा, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा बाहर तो आओ.”
मछली पानी के ऊपर आ गई.
मछुआरा हिचकते हुए बोले , “क्या बताऊँ मछली रानी. पत्नि सुं दर कपड़े और आभूषण मां ग रही है .
क्या तु म उसकी इस मां ग को पूरा कर सकती हो.”
“उसकी इच्छा पूरी होगी. जाओ घर लौट लाओ.” इतना कहकर मछली पानी में चली गई.
मछुआरा जब घर पहुँचा, तो दे खा कि उसकी पत्नि नए कपड़े और आभूषण पहनकर बै ठी हुई है .
मछुआरे को दे खते ही वह ख़ु शी से झम ू उठी.
अपने नए कपड़े और आभूषण दिखाते हुए वह बोली, “सु नो जी! मैं इन कपड़ों और आभूषणों में किसी
रानी से कम नहीं लग रही हँ .ू ऐसे में इस झोपड़ी में रहना कहाँ शोभा दे ता है ? तु म ऐसा करना कि कल
सु बह जादुई मछली से एक महल मां ग ले ना.”
मछुआरा क्या कहता? कलह के डर से वह चु प रहा. अगली सु बह पत्नि ने उसे उठाया और जादुई
मछली के पास भे ज दिया.
नदी के किनारे खड़े होकर मछुआरे ने फिर से मछली को बु लाया, “मछली रानी! मछली रानी! ज़रा
बाहर तो आओ.”
जादुई मछली पानी के ऊपर आई, तो मछुआरा बोला, “मछली रानी! मे री पत्नि ने पूरा जीवन गरीबी
में व्यतीत किया है . वर्षों से झोपड़ी में रहते -रहते उसने बहुत दुःख झे ले हैं . क्या तु म उसके रहने के
लिए एक महल बना सकती हो?”
“उसकी ये इच्छा भी पूरी होगी.” कहकर मछली पानी में चली गई.
जब मछुआरा घर पहुँचा, तो दे खा कि उसकी झोपड़ी के स्थान पर आलीशान महल खड़ा हुआ है . अं दर
जाने पर उसने दे खा कि उसकी पत्नि सज-सं वरकर बै ठी हुई है .
वह बहुत ख़ु श थी. जब मछुआरा उसके पास गया, तो बोली, “महल तो रानी जै सा मिल गया है . ले किन
बिना से वक-से विकाओं और सु ख-सु विधा के सारे सामान के रानी होने का क्या लाभ? कल तु म मछली
से से वक-से विकायें और सु ख-सु विधा का सारा सामान मां ग ले ना.”
मछुआरा ने पत्नि को समझाने की कोशिश की. ले किन पत्नि नहीं मानी. अगले दिन मछुआरे ने जादुई
मछली से नौकर-चाकर और सु ख-सु विधा के सारे सामान मां ग लिए. घर लौटने पर उसे अपनी पत्नि
सोने के पलं ग पर आराम करती हुई दिखी. से वक-से विकाएं उसकी से वा में लगे हुए थे .
उसकी पत्नि बहुत ख़ु श थी. कुछ दिन उसने बड़े मज़े से काटे . ले किन फिर उसके मन में नई इच्छा ने
जन्म ले लिया. एक दिन वह मछुआरे से कहने लगी, “मैं इस महल रानी तो बन गई. ले किन अब मैं इस
पूरी पृ थ्वी की रानी बनना चाहती हँ .ू जाओ जादुई मछली से कहो कि मु झे इस पृ थ्वी की रानी बना दे .”
मछुआरा अपनी पत्नि की रोज़-रोज़ की इच्छाओं से तं ग आ चु का था और इस बार तो अति हो चु की
थी. उसने मछली के पास जाने से मना कर दिया. इस पर उसकी पत्नि लड़ने -झगड़ने लगी. इस पर भी
जब मछुआरा तै यार नहीं हुआ, तो उसने उसे महल से निकाल दिया.
दु:खी मछुआरा फिर से नदी पर गया और जादुई मछली को पु कारने लगा, “मछली रानी! मछली रानी!
ज़रा बाहर तो आओ.”
जादुई मछली तै रकर पानी के ऊपर आ गई और बोली, “क्या बात है ? अब तु म्हारी पत्नि की क्या
इच्छा है ?”
मछुआरा बोला, “अब तक मैं हर बार अपनी पत्नि की इच्छा ले कर तु म्हारे पास आया करता था. आज
अपनी इच्छा ले कर आया हँ .ू ”
“कहो. क्या चाहते हो?” मछली बोली.
“मैं चाहता हँ ू कि तु मने अब तक हमें जो भी दिया है , वह सब वापस ले लो. एक बात मु झे समझ आ
गई है कि इच्छाओं का कोई अं त नहीं है . तु म जितना दे ती रहोगी, मे री पत्नि उतना मां गती रहे गी. वह
कभी सं तुष्ट नहीं होगी और बिना सं तुष्ट हुए वह कभी ख़ु श नहीं रह पाये गी.”
मछली बोली, “तु म्हारी यह इच्छा पूरी हो.” और वह पानी में चली गई.
मछुआरा जब अपने घर पहुँचा, तो महल गायब हो चु का था. उसके स्थान पर उसकी झोपड़ी आ गई
थी. अं दर जाने पर उसे फटे -पु राने कपड़ों में अपनी पत्नि दिखी.
मछुआरे को दे ख वह रोना-पीटना मचाने लगी कि महल, धन-दौलत, से वा-से विकाएं , आभूषण कुछ भी
न रहा.
मछुआरे ने उससे कहा कि अपनी आँ खों पर पड़ा लोभ का पर्दा हटाओ, तो तु म्हें इस गरीबी में भी सु ख
नज़र आएगा. जितना लालच करोगी, उतना और लालच बढ़े गा. इसलिए जीवन में जो है , उसमें
सं तुष्ट रहना सीखो. मैं अपनी मे हनत से जो भी रुखी-सूखी लाऊं, उसमें ख़ु श रहने को तै यार हो, तो
मे रे साथ रहो. नहीं तो मैं जाल ले कर जा रहा हँ .ू
पत्नि अकेले कैसे रहती? उसे अहसास हुआ कि वह लालच में अं धी हो गई थी. उसने अपने पति को
बहुत दुःख दिए हैं . वह मछुआरे से क्षमा मां गने लगी. उसके बाद वह जीवन में जो मिला, उसमें अपने
पति के साथ सं तुष्ट रही.
सीख
लालच का कोई अं त नहीं है . जो लालच में अं धा हो जाता है , वह जीवन में कभी सु खी नहीं रहा
सकता.

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