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Murdarakshas
Murdarakshas
पा तरकार
रांगेय राघव
ISBN : 9788170287704
सं करण : 2017 © राजपाल ए ड स ज़
MUDRARAKSHASA (Sanskrit Play) by Vishakhadutta
राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोन : 011-23869812, 23865483, फै स : 011-23867791
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मु ारा स
(सं कृत के सु स नाटक ‘मु ारा स’
का ह द पा तर)
वशाखद
भू मका
और भी—
धंस जाए न धरती, इस शंका से
धरते पग अपने जो संभाल,
र ा दगंत क करते जो
संकु चत कए नज भुज- वशाल
हो जाए न भुवन भ म, खोलते
नह इस लए ग तृतीय,
पुरा र जट का अ वतं
ता डव कराल वह अ तीय
सबका क याण करे युग-युग
है यही कामना बार-बार,
डम - ननाद प रव तत हो
चर सुख म धरती पर उदार।
[कंचुक का वेश]
कंचुक : अरी तृ णे! जन इ य क सहायता से तूने इतनी
त ा पाई थी, अब वे ही असमथ हो गई ह। तेरे
आ ाकारी अंग अब श थल हो गए ह। जब बुढ़ापे ने तेरे
सर पर भी पांव धर दया, तब तू य थ मतवाली हो
रही है! (घूमकर, आकाश दे खकर) अरे सुगांग ासाद म
नयु पु षो! वनामध य दे व च गु त क आ ा है क
वे कुसुमपुर को कौमुद -महो सव के समय रमणीयतर
दे खना चाहते ह। इस लए उनके दशन के यो य सुगांग
ासाद का ऊपर का भाग सजाया जाए। अरे, दे र य
कर रहे हो? (आकाश क ओर दे ख-सुनकर) या कहा?
आय! या दे व च गु त कौमुद -महो सव को रोक दया
जाना नह जानते? अरे अभागो! तु ह इस सबसे या?
य अपनी जान भारी कए हो? पूणच क करण
जैसे चंवर , माला से सजे त भ और धूपगं धत
आवास से सब कुछ सु दर बना दो। ब त दन से
सहांसन का बोझ ढोने से थक ई धरती को सुगं धत
फूल और च दन के जल से स चो! (आकाश क ओर
दे खकर) या कहा, म शी ता कर रहा ? ं अरे भ ो!
ज द करो। दे व च गु त आने ही वाले ह। वषम पथ म
भी अ वचल रहते ए, अनेक म य के साथ दे व न द ने
जस महान् पृ वी का भार धारण कया था, उसी को नई
अव था म धारण करके दे व च गु त खेद का अनुभव तो
करते ह, पर तु ःखी नह होते।
[नेप य से-‘इधर दे व! इस ओर!’]
[राजा और तहारी का वेश]
राजा : ( वगत) जा क र ा म लगे राजा के लए तो यह रा य
असल म अस तोष का थान है। वह सदा सर के काम
लगा रहता है, उसको कोई वत ता नह रहती। और जो
सर का काम नह करता, वह असल म राजा ही नह
है। और अपने से यादा जो और क च ता करता है,
वह राजा वत कहां है, परत मनु य भी या सुख
का अनुभव कर सकता है? थर च रहने वाल के
लए भी रा यल मी क आराधना क ठन है। न यह
अ य त कठोर- दय राजा के पास रहती है, न अपमान के
डर से कमजोर राजा के पास ही। यह मूख से े ष
करती है और अ य त प डत राजा से भी इसे नेह
नह है। शूरवीर से अ धक डरती है और कमज़ोर क
हंसी उड़ाती है। मौका पाकर बदलने वाली वे या क
भां त इस रा य ी का सेवन अ य त क ठनाई से होता है।
और अब आय चाण य का उपदे श है क बनावट लड़ाई
करके म कुछ दन उनसे वत वहार क ं । मने तो
इसे पाप समझकर वीकार कया है। म तो नर तर आय
क आ ा से प व बु रहता ं, भले ही परत सही।
अ छे काम करने वाले श य को गु नह रोकते। पर
जब वह म ती म रा ते से गुजर रहे होते ह तो गु अंकुश
बनकर उसे राह पर लाते ह। हम वनयशील ह तभी
वत ह। यही कारण है क हम वैसी वत ता नह
चाहते । ( कट) आय वैहीनरे! सुगांग ासाद का माग
दखाओ।
कंचुक : महाराज, इधर से आएँ।
[राजा घूमता है।]
कंचुक : (घूमकर) यह सुगांग ासाद है आय! धीरे-धीरे आराम-
आराम से इसम चढ़ चल।
राजा : (चढ़ते ए दशाएं दे खकर) आह! शरत्काल म दशाएं
कैसी सु दर हो गई ह। रेतीली भू म जैसे ेत मेघ से
दशाएं कतनी व छ, और शा त लगती ह। सारस क
कार से गूंजती रात म तार से भरी दस दशाएं आकाश
म नद जैसी बही जा रही ह। अब उ छृ ं खल जल- वाह
वाभा वक हो गए ह। धान लद गए ह और उ वष क
भां त शरद् ऋतु मोर का गव मटाती जगत् को मानो
वनय का पाठ पढ़ा रही है। जैसे र त-कथा म चतुर ती
य के अपराध से कु पत एवं च ता से बल ना यका
को माग बताकर यतम के पास पहंचा दे ती है, वैसे ही
अ य त वषा से म लन और अब ीण हो गई-सी गंगा को
यह शरद् ऋतु स धु के पास ले जा रही है। (चार ओर
दे खकर) अरे! या कौमुद -महो सव आर भ नह आ?
कंचुक : हां दे व! दे व क आ ा से घोषणा तो कर द गई थी।
राजा : आय! तो या मेरी आ ा का नाग रक ने पालन नह
कया?
कंचुक : (कान पर हाथ रखकर) दे व! पाप शा त हो! पाप शा त
हो! पृ वी पर आपका अखंड शासन है। नगर- नवासी
या उ लंघन करगे!
राजा : आय वैहीनरे! तो कुसुमपुर म कौमुद -महो सव य नह
हो रहा है, बात म कुशल धूत से अनुगत वे याएं सघन
जंघा के भार से म द-म द चलती ई माग क शोभा
कहां बढ़ा रही ह? और अपने-अपने वैभव क त पधा
करने वाले धनी लोग अपनी यतमा के साथ कौमुद -
महो सव य नह मना रहे ह?
कंचुक : नह कर रहे दे व!
राजा : पर य ?
कंचुक : दे व बात यह है…
राजा : प कहो आय!
कंचुक : दे व, कौमुद -महो सव का नषेष कया गया है।
राजा : ( ोध से) कसने कया?
कंचुक : दे व, इससे अ धक कहने क मुझम साम य नह है।
राजा : तो या कह आचाय चाण य ही ने जा के दे खने यो य
इस मनोहर उ सव को तो नह रोक दया।
कंचुक : दे व के शासन का उ लंघन और कौन जी वत रहने क
इ छा करने वाला कर सकता है?
राजा : शोणो रे! म बैठना चाहता ँ।
तहार : दे व! यह आसन है। बैठ दे व!
राजा : (बैठकर) आय वैहीनरे! म आय चाण य को दे खना
चाहता ।ं
कंचुक : जैसी आय क आ ा। ( थान)
[अपने घर म आसन पर बैठे ए ोध म और चता म
चाण य का वेश।]
चाण य : ( वगत) अरे रा मा रा स! मुझसे य पधा करता है?
जैसे अपमा नत चाण य ने कुसुमपुर से ु सप क
भां त बाहर रहकर ही न द का वनाश करके मौय को
नृप त बना दया, वैसे ही रा स भी अपने बारे म सोच
रहा है क वह बाहर रहकर ही च गु त क रा य ी को
छ न लेगा। (आकाश म य क भां त दे खकर) रा स!
रा स! इस कर काय म हाथ लगाने से क जाओ।
राजा न द तो बुरे म य के ारा राजकाज संभाले जाने
के कारण अहंकारी हो गया था। च गु त वैसा कहां है?
और न तू ही चाण य है। मेरी बराबरी करना ही तु हारी
सबसे बड़ी श ुता है। (सोचकर) मुझे इस बारे म अ धक
खेद नह करना चा हए। मेरे गु तचर पवते र के पु
मलयकेतु को बस म कर ही लगे। स ाथक आ द भी
काम म लगे ह। इस समय कसी बहाने से च गु त से
कलह करके भेद-नी त के कौशल से रा स को श ु
मलयकेतु से अलग कर ं ।
कंचुक : ( वेश कर) सेवा का ही नाम क है। पहले तो राजा से
डरो, फर म ी से, फर राजा के य म से और तब
राजा के ासाद म साद- ा त वट से। उदरपू त के
लए जहां द नता से मुंह ऊपर उठाकर गड़ गड़ाकर
बोलना पड़ता है, ऐसी तु छ बना दे ने वाली सेवा को
व ान ने ठ क ही ‘कु े क जी वका’ कहा है। (घूमकर,
दे खकर) आय चाण य का ही तो घर है। म वेश क ं ।
( वेश करके दे खकर) अहा! राजा धराज के म ी के घर
का कैसा वैभव है! एक ओर क ड को फोड़ने के लए
प थर का टु कड़ा पड़ा है और इधर यह चा रय से
लाई ई कुशा का ढे र है। सूखती स मधा से दबे ए
छ जे वाला, टू ट -फूट द वार से सुशो भत कैसा घर है!
ठ क है। तभी तो यह दे व च गु त को वृषल कहते ह।
स यवाद भी जब द न बनकर नर तर गुणहीन राजा क
तु त करते ह, तब वे तृ णा के ही मारे ए होते ह। पर जो
नरीह- नः पृह ह, उ ह तो वामी भी तनके जैसा दखाई
पड़ता है। (दे खकर, भय से) आय चाण य बैठे ह। इ ह ने
म य को तर कृत कर दया। एक ही समय न द का
अ त और च गु त का उदय कर दया। ये तो अपने तेज
से उस सह र म सूय को भी परा जत कर रहे ह, जो
लोकालोक पवत को तपाकर म से शीत और उ णता
दान करता है।1 (घुटन के बल भू म पर बैठकर णाम
करके) आय क जय!
चाण य : (दे खकर) वैहीनरे! कैसे आए?
कंचुक : आय! शी तर णाम करते ए राजा क मुकुट-म ण
क भा से पीले सुनहले-से चरण वाले वनाध य, दे व
च गु त सर झुकाकर नवेदन करते ह क य द
आव यक काय म कसी कार क बाधा न हो तो आय
को दे खना चाहता ं।
चाण य : वृषल मुझे दे खना चाहता है? वैहीनरे! कह मने जो
कौमुद -महो सव का नषेध कया है, वह वृषल ने सुन तो
नह लया?
कंचुक : हां आय! सुन लया है।
चाण य : ( ोध से) कसने कहा?
कंचुक : (डरकर) आय! स ह ! वयं सुगांग ासाद के शखर
पर गए दे व ने ही दे खा क कुसुमपुर म कोई उ सव नह
हो रहा था।
चाण य : अब म समझा। तु ह लोग ने मेरी अनुप था त म वृषल
को भड़काकर ु कर दया है।
[कंचुक भयभीत-सा सर झुकाए खड़ा रहता है।]
चाण य : ओह! राजा के प रजन को चाण य से इतना े ष है? हां,
अब वृषल कहां है?
कंचुक : (भय से) आय! सुगांग ासाद म आए ए दे व ने ही मुझे
आय के चरण म भेजा है।
चाण य : (उठकर) कंचुक ! चलो, ासाद चलो।
कंचुक : च लए आय।
[घूमते ह।]
कंचुक : ली जए सुगांग ासाद आ गया। आय ऊपर चढ़-आराम
से।
चाण य : (चढ़कर, स ता से दे खकर, वगत) ओह! सहासन पर
वृषल बैठा है। ध य! ध य! जनका वैभव कुबेर को भी
अपमा नत करता था, उन न द से मु यह सहासन
राजराज वृषल जैसे यो य राजा से सुशो भत है। यह सब
मुझे अ य त सुख दे रहा है। (पास जाकर) वृषल क
जय!
राजा : ( सहासन से उठकर चाण य के पांव पकड़कर) आय!
च गु त णाम करता है।
चाण य : (हाथ पकड़कर) उठो व स! उठो। जा वी क धारा से
शीतल हमालय से लेकर रंग- बरगी र न भा से शो भत
द ण समु तक के राजा, भयभीत और नत शर-से
तु हारे चरण के नख को अपने र नज टत मुकुट क
म ण- भात से सदै व सु दर बनाते रह।
राजा : आय के साद के ताप से इसका अनुभव ा त करता
ं। बैठ आय।]
[दोन यथायो य आसन पर बैठते ह।]
चाण य : वृषल! हम य बुलाया गया है?
राजा : आय के दशन से अपने को अनुगृहीत करने।
चाण य : (मु कराकर) इस न ता को रहने दो वृषल! अ धकारी
कायक ा को वामी थ ही नह बुलाते, योजन
बताओ।
राजा : आय! आपने कौमुद -महो सव रोकने म या फल दे खा
है?
चाण य : (मु कराकर) तो वृषल ने हम ताना मारने को बुलाया है?
राजा : नही आय! उपाल भ को नह ।
चाण य : तो फर?
राजा : नवेदन करने।
चाण य : वृषल! य द यही बात है तो श य गु क आ ा का
पालन करे।
राजा : इसम या स दे ह है आय! पर तु कभी आय कोई बात
बना कोई कारण नह करते, यही पूछता ं।
चाण य : वृषल! ठ क समझ गए। व म भी चाण य कोई बात
थ नह करता।
राजा : तो आय! वह योजन मुझे बताएं। इ छा पूछने क ेरणा
दे ती है।
चाण य : वृषल! सुनो। अथशा कार ने तीन कार क स य
का वणन कया है—राजा के अधीन रहने वाली, म ी के
अधीन रहने वाली और दोन के अधीन रहने वाली। यह
म ी के अधीन रहने वाली स है, इससे तु ह या
लाभ होगा? हमारा काम है, हम नयु ह, हम ही जानते
ह।
[राजा ोध से मुंह फेर लेता है। उस समय नेप य से दो
वैता लक क वता सुनाते ह।]
एक वैता लक :
कौमुद -सी ेत मु ड क गले म माल पहने,
कांस कुसुम -से गगन को भ म-सी उ वल बनाती,
चं मा क र मय से मेघ-से नीले गहनतम,
गज-अ जन को रंग रही-सी, जगमगाती,
अ हास- नरत सदा शव-सी शरद् ऋतु यह सुहानी,
राजहंस से सुशो भत, अब करे पीड़ा अजानी।
र कर दे लेश ये सारे तु हारे पशा ल न!
नमला क याण भर दे , सुख नरत भर दे सुहा स न!
और
जो फन पर शीश धर कर सो रहे थे,
वह सु व तृत शेषश या यागने को,
खोलते त काल अपने य नयन ह,
व णु अपनी न द से उठ जागने को,
अलस अंगड़ाई सजल जसको गई कर
र नम णय क भा ने च धया द जो न मत कर
वह ह र क करे र ा तु हारी
है यही शुभ कामना मन म हमारी।
सरा वैता लक :
वयं वधाता ने ही जग म
कसी महत् अ नवचनीय रे-
कारण से नमाण कया है,
हे नरे ! जय ाघनीय रे
तुम मद गज यूथ को करते,
वश म, सतत परा जत करते,
सावभौम शासक महान् हो
वीर म नर-पुंगव लगते!
अतुल परा म फैल रहा है
सबपर छाया आ ांत रे,
कौन सह क दाड़ उखाड़े
कौन हो उठे भला ांत रे!
तुम न सहोगे नज आ ा का
उ लंघन हे श ु वनाशी!
सदा रहे यह जयमय वैभव,
ग रमा रहे सदा बन दासी!
और
जाने कतने ही शरीर पर
अलंकार धारण करते ह,
पर या आभूषण-धारण से
हर कोई वामी बनता है?
तुम जैसे म हमाव त वीर ही
अपनी ग रमा से रहते ह—
जनका श द न टले एक भी
उनको जग वामी कहता है।
चाण य : (सुनकर वगत) ारंभ म तो दे वता- वशेष क तु त
करके शरद् ऋतु का वणन करते ए एक आशीवाद था।
पर तु सरे ने या कहा, समझ म ठ क नह बैठता।
(सोचकर) ओह! समझा! यह रा स का ही योग है। अरे
रा मा रा स! म तुझे दे ख रहा ।ं कौ ट य जाग क है।
राजा : आय वैहीनरे! इन वैता लक को एक लाख सुवण1
दलवा दो।
कंचुक : जैसी दे व क आ ा।
[उठकर चलता है।]
चाण य : ( ोध से) वैहीनरे! ठहर! क जा! वृषल, इस अनु चत
थान म इतना धन य य कर रहे हो?
राजा : ऐसे जो हर तरह आप मेरी इ छा म कावट डालगे तो
यह मेरे लए रा य या है, ब धन है!
चाण य : वृषल! जो राजा वतं नह होते उनम ये दोष होते ह।
य द तुम सहन नह करते तो वयं अपना रा य चलाओ।
राजा : म वयं अपना काम कर लूंगा।
चाण य : ब त अ छा है हमारे लए! हम भी अपने काम म लगगे।
राजा : यही बात है तो मुझे कौमुद -महो सव रोकने का कारण
बता दया जाए।
चाण य : और म भी यह सुनना चाहता ं वृषल! क उसे मनाने से
या लाभ था?
राजा : सबसे पहले तो मेरी आ ा का पालन था।
चाण य : उसीका उ लंघन करना तो मेरा सबसे पहला योजन था
वृषल! सुनना चाहते हो य ? तमाल क नई क पल के-
से काले कनारे वाले और अ य त भयानक मगरम छ से
उठाई ई तरंग से भरे, चार समु के पार से आए ए
राजागण माला क तरह तु हारी आ ा को जो सर पर
धारण कया करते ह, वह आ ा भी मेरे ही कारण तु हारे
इस वा म व को थत कए ए है।
राजा : और सरा या है?
चाण य : वह भी कहता ।ं
राजा : क हए।
चाण य : शोणो रे! शोणो रे! मेरी आ ा से अचलद काय थ से
कहो क उन भ भट आ द का लखा प दे , जो च गु त
से नेह न रखकर मलयकेतु-आ त हो गए ह।
तहारी : जैसी आय क आ ा। ( थान, फर वेश कर) आय!
यह रहा प ।
चाण य : (लेकर) वृषल! सुनो।
राजा : मेरा यान लगा है।
चाण य : (पढ़ता है) “क याण हो! वनामध य दे व च गु त के
साथ उ थान करने वाले वे लोग जो नगर से भागकर अब
मलयकेतु के आ त हो गए ह, यह उ ह धान पु ष
का माणप है। इसम गजा य भ भट, अ ा य
पु षद , धान ारपाल च भानु का भांजा हगुरात,
दे व का वजन बलगु त, दे व क बा याव था का सेवक
राजसेन, सेनानायक सहबल का अनुज भागुरायण,
मालवराज का पु लो हता और यगण म मु यतम
वजयवमा ह। ( वगत) हम दे व का काय ही कर रहे है।”
( कट) यही प है।
राजा : आय! इन सबको मुझसे अनुराग य नह रहा, यही
जानना चाहता ं।
चाण य : सुनो वृषल! ये जो गजा य भ भट और अ ा य
पु षद थे, ये दोन ी, म और मृगया म लगे रहने के
कारण हाथी और घोड़ क ठ क से दे खभाल नह करते
थे, तभी मने इ ह पद युत कर दया। जी वका न रहने पर
ये लोग भाग गए और मलयकेतु के यहां जाकर इ ह
काम म लग गए। ये जो हगुरात और बलगु त ह, अ य त
लोभी ह और हमारे दए धन को कम समझकर और यह
सोचकर क वहां यादा मलेगा, मलयकेतु से जा मले।
और तु हारा बचपन का सेवक राजसेन तो इस लए भाग
गया क उसे यह शंका हो गई क तु हारे अनु ह से जो
उसे आव यकता से अ धक हाथी, घोड़े, कोष मले थे, वे
कह छ न न लए जाएं। सेनाप त सहबल का अनुज
भागुरायण पवतक का म था। उसी ने मलयकेतु को
एकांत म डराया था क चाण य ने ही उसके पता
पवते र को मारा। उसी के कारण मलयकेतु भाग गया।
जब तु हारे वरोधी च दनदास आ द पकड़े गए तब उसे
डर हो गया क कह उसका दोष कट न हो जाए। वह
भी मलयकेतु के आ य म चला गया। मलयकेतु ने उसे
अपना जीवन-र क समझकर, कृत ता दखाकर, अपना
म ी बना लया। लो हता और वजय वमा अ य त
अहंकारी थे। जो धन तुमने उनके स ब धय को दया
उसे वे न सहकर उधर चले गए। यही है न इन सबके
वैरा य का कारण?
राजा : क तु आय, जब आप सबक उदासीनता का कारण
जानते थे तब आपने उसका नराकरण करने का य न
य नह कया?
चाण य : य क इसक आव यकता नह थी। यह उ चत नह था।
राजा : या असाम य के कारण? या कोई और बात थी?
चाण य : असाम य कैसी? सबका कारण था।
राजा : पूछ सकता ं?
चाण य : वृषल! सुनो और समझो।
राजा : दोन काम कर रहा ं, आय! क हए।
चाण य : वृषल! जब जा म अनुराग नह रहता तो उसको साधने
के दो तरीके होते ह-अनु ह या न ह। या दया का अथ
था क म भ भट और पु षद को फर उनके पद पर
नयु कर दे ता और वे सनी अ धकार पाकर सारे
रा य के हाथी-घोड़ को न कर डालते? सारा रा य
पाकर भी जो संतु नह होते ऐसे लोभी हगुरात और
बलगु त पर म दया करता? धन-जीवन के नाश-भय से
चंचल राजसेन और भागुरायण पर दया कैसे क जाती,
उ ह ने अवसर ही कब दया? और जो अपने स ब धय
के धन को न सह सके उन अंहकारी लो हता और
वजय वमा से अनु ह कैसे कया जाता? इस लए मने
न ह अपनाया। पर अभी-अभी नंद का वैभव ा त
करने वाले हम लोग य द धान सहायक पु ष को कठोर
द ड से पी ड़त करते तो नंद वंश म अभी तक नेह रखने
वाली जा हमारा वरोध करती। इस लए मने न ह भी
छोड़ दया। इस समय हमारे सेवक को आ य दे ने वाला,
पता क मृ यु से ु मलयकेतु, रा स क नी त से
े रत होकर, वशाल ले छ सेना के साथ हम पर
आ मण करने को आने वाला है। यह पु षाथ का समय
है या उ सव मनाने का? जब ग क तैयारी आव यक हो,
तब कौमुद महो सव से या लाभ होगा? इसी लए मने
इसका नषेध कया।
राजा : आय! इस बारे म तो अभी ब त कुछ पूछने यो य है।
चाण य : वृषल! व त होकर पूछो। मुझे भी इस बारे म ब त
कुछ कहना है।
राजा : तो कह! म पूछता ं।
चाण य : अ छा, म भी कहता ं।
राजा : जो हमारी हा न क जड़ है, उस मलयकेतु को भागते
समय य उपे ा करके छोड़ दया गया?
चाण य : वृषल! य द उपे ा न क जाती तो दो ही तरीके थे। या तो
उसे पकड़ा जाता, या उस पर दया क जाती। दया करने
से तो पहले से त ा कया आ आधा रा य दे ना
पड़ता। और द ड म हम यह कलंक भी वीकार करना
ही पड़ता क हम ने पवतक को कृत नतापूवक मरवा
डाला। और त ा कया आ आधा रा य दे कर भी तो
यही होता क पवतक क ह या केवल कृत नता-मा ही
फ लत होती। इसी लए मने भागते ए मलयकेतु क
उपे ा कर द ।
राजा : यह है उ र आपका? ले कन इसी नगर म रहते रा स क
उपे ा य क ? इसके लए आपके पास या उ र है?
चाण य : रा स आपने वामी का ब त ही भ था। वह ब त
दन से अमा य था। न द क शीलपरायण जा को
उसपर व ास था। वह बु , उ साह, सहायक और
कोषबल से इसी नगर म रहता आ एक भयानक
आंत रक व ोह फैला दे ता। र रहने पर वह बाहर से
ोध उ प अव य करेगा, पर उसका तकार असा य
नह होगा, यही सोचकर मने उसे भी भागते दे खकर
उपे ा कर द ।
राजा : जब वह यह था तभी य न उपाय से उसे वश म कर
लया गया?
चाण य : यह कैसे स भव था! उपाय से ही तो हमने उस छाती म
गड़े शूल को र कर दया। और र करने का कारण भी
बता दया।
राजा : आय, या उसे बलपूवक नह पकड़ा जा सकता था?
चाण य : वृषल! य द तुम उसे बलपूवक पकड़ते तो वह वयं मर
जाता या तु हारी सेना को मार दे ता। दोन ही थ तयां
अनु चत थ । आ मण के समय य द वह मारा जाता तो
वैसा अलौ कक फर न मलता, वृषल! हम सदा
के लए उससे वं चत रह जाते। य द वह तु हारी सेना को
न कर दे ता तो या कम ःख क बात थी, वह तो
जंगली हाथी के समान ही तरह-तरह के कौशल से पकड़ा
जाए, यही उ चत है।
राजा : आपको बु से हम नह जीत सकते। अमा य रा स ही
सवथा शंसनीय है।
चाण य : ( ोध से) क य गए? वा य पूरा करो क ‘आप नह
ह।’ क तु वृषल, यह भी मत समझो! उसने कया ही
या है?
राजा : य द आप नह जानते तो सु नए। वह महा मा हमारे जीते
नगर म ही, हमारे कंठ पर पांव रखकर अपनी इ छा से
रहता रहा। जब सेना का जय-जयकार आ द आ तब
उसने काम म बाधा डाली। हमको अपनी नी त क
चतुरता से उसने ऐसा मो हत कर दया क हम अब अपने
ही व सनीय जन म व ास नह होता।
चाण य : (हंसकर) वृषल! यह सब रा स ने कया?
राजा : और या? यह अमा य रा स का ही काम है।
चाण य : वृषल, मुझे तो ऐसा लगा, जैसे उसने नंद क ही तरह तु ह
उखाड़कर मलयकेतु को सहासन पर बैठा दया हो!
राजा : ताना न मा रए, आय! सब कुछ भा य ने कया। इसम
आपका या है?
चाण य : अरे ई यालु! भंयकर ोध से टे ढ़ उंगली से शखा
खोलकर, सबके सामने ही समूल सव प रवार समेत श ु-
वनाश करने क ब त बड़ी त ा करके मेरे अ त र
और कौन है, जसने न यानवे करोड़ के वामी उन
अंहकारी न द को रा स के दे खते-दे खते ही पशु क
तरह मार डाला है? आकाश म पंख को थर करके घेरा
डालने वाले ग के-से काले धुएं से जो दशा को
मेघा छा दत करके सूय का भी तेज ढके दे रही ह और
ज ह ने मशान के ा णय को न द के शव से आनं दत
कया है, वे चंड अ नयां उनके अंग से वही चब पी-
पीकर अभी भी शा त नह ई ह। उ ह दे खते हो?
राजा : यह कसी और ने ही कया है।
चाण य : कसने?
राजा : न द कुल के े षी दै व ने!
चाण य : अ ानी ही दै व को माण मानते ह।
राजा : व ान कभी वयं अपनी शंसा नह करते।
चाण य : ( ोध से) वृषल! वृषल!! तुम मुझपर सेवक क भां त ही
शासन चलाना चाहते हो! मेरा हाथ फर बंधी ई शखा
को खोलने को तैयार हो रहा है…(पृ वी पर पैर पटककर)
और एक बार फर मेरा पांव त ा करने को आगे उठना
चाहता है। नंद का नाश करके जो मेरी ोधा न शा त हो
रही है, उसे तू फर काल से े रत होकर व लत कर
रहा है।
राजा : (घबराकर, वगत) अरे! या आय सचमुच ु हो गए?
ोध से इनक पलक से नकले जल के ीण हो जाने
पर भी आंख लाल-लाल द ख रही ह। टे ढ़ भृकु ट ोध
का धुआं बन गई है। चाण य के चरण- हार को ता डव
नृ य के समय का यान करती थर-थर कांपती धरती
ने न जाने कैसे सहन कया है!
चाण य : (नकली ोध छोड़कर) वृषल! वृषल!! बस, अब सवाल-
जवाब रहने दो। य द रा स को अ छा समझते हो तो यह
श उसे ही दे दे ना। (श छोड़कर, उठकर आकाश को
एकटक दे खकर, वगत) रा स! रा स!! कौ ट य क
बु को जीतने वाली तु हारी बु क यही उ त
है?…‘म चाण य के त ा न रखने वाले च गु त पर
चैन से वजय ा त कर लूंगा’—इस वचार से जो तूने
षड् यं रचा है…अरे नीच, आ उसी म फंस! यही तेरा
अ हत करे। ( थान)
राजा : आय वैहीनरे! आज से चाण य को अना त करके
च गु त वयं रा य करेगा-सबम यही सू चत करा दो।
कंचुक : ( वगत) या बना कसी आदरसूचक श द के ही
चाण य नाम कह दया? आय चाण य नह कहा? हाय,
सचमुच ही अ धकार ले लया गया! क तु इसम दे व का
भी या दोष! यह दोष भी म ी का ही है क राजा कुछ
अनु चत कर बैठे। महावत के माद से ही तो हाथी
क सं ा पाता है।
राजा : आय, या सोच रहे ह?
कंचुक : दे व, कुछ, नह । क तु नवेदन है क सौभा य से दे व
वा तव म आज ही दे व ए ह।
राजा : ( वगत) जब हम लोग ऐसा सचमुच ही समझ रहे ह, तब
अपने काय क स चाहने वाले आप अव य सफल
ह ! ( कट) शोणो रे! इस शु क कलह से मेरे सर म
पीड़ा हो रही है। चल, शयन-गृह का माग दखा।
तहारी : इधर, महाराज, इधर से!
राजा : (आसन से उठकर, वगत) आय क आ ा से गौरव का
उ लंघन करने पर मेरी बु पृ वी म समा जाना चाहती
है। फर जो लोग सचमुच ही बड़ का आदर नह करते,
ल जा से उनके दय य नह फट जाते?
[सबका थान]
[तीसरा अंक समा त]
[प थक-वेश म एक पु ष का वेश]
पु ष : आ य, परम आ य! वामी क आ ा के उ लंघन का
भय न हो तो कौन इस तरह सैकड़ योजन तक ऐसे
मारा-मारा फरे? रा स अमा य के घर ही चलूं। (थका-
सा घूमकर) अरे, कोई दौवा रक म से है यहां? वामी
अमा य रा स से नवेदन करो क करभक करभक1 क
तरह ही काय स करके पाट लपु से आया है।
दौवा रक : ( वेश कर) भ ! धीरे बोलो। वामी अमा य रा स को
काय- च ता से जागते रहने के कारण सर म दद है। वे
अभी तक शैया पर ही ह। जरा को। म अवसर पाकर
अभी तु हारे बारे म नवेदन करता ं।
पु ष : अ छ बात है।
[शैया पर लेटे रा स और आसन पर बैठे शकटदास का
च ता त प म वेश]
रा स : ( वगत) काय के ार भ करने पर भा य क तकूलता
के वषय म वचार करने से और चाण य क सहज
कु टल बु के बारे म सोचने से तथा मेरी हर चाल कटते
रहने से, यह कैसे होगा, यह स कैसे मलेगी—यही
सोचते ए मेरी रात जागते ही जागते बीत रही ह! ज़रा-
सी बात को लेकर चलते ए, ार भ करके, फर व तार
करके, गु त बात को गूढ़ री त से धीरे-धीरे कट करके,
कत कत को जानते ए, उस तमाम फैलाव को फर
समेटने के इस लेश को या तो नाटककार अनुभव करता
है या हमारे जैसा आदमी!1 इतने पर भी रा मा
चाण य…
दौवा रक : (पास जाकर) जय! जय!
रा स : ( वगत) परा जत कया जा सकता है…
दौवा रक : अमा य!
रा स : (बा आंख फड़फड़ाना सू चत करके, वगत) रा मा
चाण य क जय! और परा जत कया जा सकता है
अमा य! यह या सर वती बोल रही है बा आंख
फड़काकर? फर भी उ म नह छोड़ना चा हए। ( कट)
भ , या कहते हो?
दौवा रक : अमा य! करभक पाट लपु से आया है और आपसे
मलना चाहता है।
रा स : उसे बना रोक-टोक के अ दर वेश कराओ।
दौवा रक : जैसी अमा य क आ ा ( नकलकर, पु ष के पास
जाकर) भ ! अमा य रा स ये रहे। उनके पास चले
जाओ। ( थान)
करभक : (रा स के पास प ंचकर) अमा य क जय!
रा स : (दे खकर) वागत है! भ करभक, बैठो।
करभक : जैसी आ ा, अमा य! (भू म पर बैठता है।)
रा स : ( वगत) इस त को मने कस काय म लगाया था, वह
काम क बाढ़ म याद नह आ रहा। (सोचता है)
[हाथ म बत लए एक और पु ष का वेश]
पु ष : हटो आय ! हटो! हटो! हटो! या नह दे ख पाते? सुमे
पवत वासी और क याणमय नरेश का दशन पु यहीन
के लए लभ है। ( फर उनके पास रहना तो ब कुल ही
लभ है) (आकाश दे खकर) आय! या कहा क य
हटाया जा रहा है? आय, कुमार मलयकेतु यह सुनकर,
क अमा य रा स के सर म दद है, उ ह दे खने आ रहे है;
इस लए हटाया जा रहा है। ( थान)
[मलयकेतु के पीछे भागुरायण और कंचुक का वेश]
मलयकेतु : (द घ ास लेकर, वगत) आज पता को गए1 दस महीने
बीत गए। बेकार य न करते ए मने अभी तक उनके लए
जलांज ल भी नह द । यह मने पहले ही ण कया है क
जैसे मेरी माता का छाती पीटने से र न-कंकण टू ट गया,
प ा अपने थान से खसककर गर पड़ा, नर तर
हाहाकर करके क ण वलाप करते समय केश अ त-
त और खे हो गए, वैसे ही जब तक म श ु क
य को भी नह बना ं गा, तब तक पता का तपण
नह क ं गा। और थ य सोचूं? या तो वीर क भां त
पता के रा ते पर चलूंगा, या अपनी माता के आंख के
आंसु को श ु- य क आंख म प ंचा ं गा। ( कट)
आय जाज ल! मेरी आ ा से अनुयायी राजा से कहो
क म अचानक ही अकेला जाकर अमा य रा स के त
ेम कट क ं गा। अतः मेरे पीछे चलने का क छोड़ द।
कंचुक : जो आ ा, कुमार! (घूमकर, आकाश को दे खकर) हे
राजागण! कुमार क आ ा है क उनके पीछे कोई न
आ ए । (दे खकर स ता से) कुमार! कुमार! ली जए,
आ ा सुनते ही राजा लौट गए। दे खए, कुमार! कुछ
राजा ने कड़ी लगाम खीच द , जसके कारण चंचल,
टे ड़ी और ऊंची गदन वाले घोड़े क गए। वे खुर से धरती
खोदते आकाश को फाड़े दे रहे ह। क जाने से ऊंचे
हा थय के घ टे क गये। वे भी लौट चले। दे व! ये
भू मपाल समु क भां त ही आपक मयादा का उ लंघन
नह करते।
मलयकेतु : आय जाज ल! तुम भी प रजन के साथ लौट जाओ।
अकेले भागुरायण ही मेरे साथ चल।
कंचुक : जो आ ा कुमार! (प रजन के साथ थान)
मलयकेतु : म भागुरायण, यहां आए भ भट आ द ने मुझसे नवेदन
कया था क अमा य रा स के कारण आपका आ य
नह ले रहे, ब क म ी के बस म ए च गु त से
उदासीन होकर हम, आपके सेनाप त शखरसेन के
अवल ब से, केवल आपके गुण का आ य ले रहे ह। मने
ब त सोचा, पर समझ नह पाया क उनका मतलब या
था।
भागुरायण : कुमार! यह तो ब त क ठन नह है। वजय क ओर
उ मुख, अ छे गुणी का आ य लेना तो ठ क ही है।
मलयकेतु : म भागुरायण! अमा य रा स ही हमारे सबसे अ धक
य और सबसे अ धक भला चाहने वाले ह।
भागुरायण : कुमार! ठ क बात है। क तु अमा य रा स को चाण य
से वैर है, च गु त से नह । हो सकता है, कभी च गु त
अंहकारी चाण य को अस समझकर हटा दे । तब
अमा य रा स क जो न द कुल म ा है, वह च गु त
को भी उसी वंश का जानकर अपने म के ाण बचाने
क ओर े रत करे और वह च गु त से सं ध कर ले।
और च गु त भी कह यह सोचकर क आ खर तो मेरे
पता का पुराना सेवक है, सं ध को मान ले। ऐसे समय म
फर कुमार हमारा व ास नह करगे, यही शायद इन
लोग का मतलब हो सकता है।
मलयकेतु : हो सकता है। म भागुरायण! अमा य रा स के भवन
का माग दखाओ।
भागुरायण : इधर से कुमार! आइए। (दोन घूमते ह।) कुमार! यही
अमा य रा स का घर है। वेश कर।
मलयकेतु : चलो।
[दोन वेश करते ह।]
रा स : ( वगत) ओह! याद आ गया। ( कट) भ ! या तुम
कुसुमपुर म तनकलश नामक वैता लक से मले?
करभक : जी हां, अमा य!
मलयकेतु : म भागुरायण! कुसुमपुर क बात हो रही है। यह से
सुनना चा हए। य क मं ी लोग अपनी प और वतं
प से होने वाली बात के रह य खुल जाने के डर से
राजा के सामने उसे और ही ढं ग से कह दे ते ह।
भागुरायण : जो आ ा।
रा स : भ ! या वह काय स आ?
करभक : आपक कृपा से स आ।
मलयकेतु : म भागुरायण! कौन-सा काय?
भागुरायण : कुमार! अमा य का समाचार बड़ा ग भीर है, इससे या
पता चलेगा। अतः यान से सु नए।
रा स : भ ! पूरी बात कहो।
करभक : अमा य! सु नए, आपने मुझे आ ा द थी क करभक,
मेरी आ ा से तनकलश नामक वैता लक से कहना क
रा मा चाण य के आ ा भंग करने पर तुम च गु त को
उकसाना।
रा स : तब?
करभक : तब मने पाट लपु जाकर आपका आदे श तनकलश को
सुना दया।
रा स : अ छा! फर?
करभक : इसी बीच च गु त ने नंद कुल के नाश से ःखी नाग रक
को स तोष दे ने को कौमुद महो सव मनाने क आ ा दे
द । ब त दन के बाद मनाए जाते उ सव क बात
सुनकर जा ने उसका वैसे ही वागत कया जैसे कोई
अपने बंघुजन के आने पर करता है।
रा स : (आंख म आंसू भरकर) हा दे व! न द! संसार को आन द
दे ने वाले राजा के च मा! कुमुद को आन द दे ने वाले
च मा और नाग रक को सुख दे ने वाले च गु त के रहते
ए भी आपके बना या तो कौमुद और या उसका
महो सव! हां, भ ! फर…?
करभक : अमा य! तब च गु त के न चाहने पर भी नयन-रंजन
उ सव का रा मा चाण य ने नषेध कर दया। इसी
समय तनकलश ने च गु त को आवेश दलाने वाली
प ावली पढ़ ।
रा स : या क वता थी?
करभक : उसका भाव था क च गु त राजा धराज है, उसक
आ ा का उ लघंन करके कौन बचेगा! बात लग गई।
रा स : (सहष) ध य! तनकलश! ध य! तुमने ठ क समय पर
सू पात कया। इससे अव य ही फल नकलेगा। साधारण
भी अपने आ दो सव म बाधा नह सह पाता, फर
लोको र तेज वी नरे क तो बात ही या है!
मलयकेतु : यही बात है।
रा स : अ छा, तब?
करभक : तब आ ा के उ लंघन से च गु त हो गया और
आपके गुण क शंसा करके उसने रा मा चाण य को
उसके पद से हटा दया।
मलयकेतु : सखे भागुरायण! लगता है, रा स क शंसा कर
च गु त ने उसे अपना मान लया।
भागुरायण : कुमार! शंसा करके उतना नह माना जतना क
चाण य का अपमान करके।
रा स : भ ! केवल कौमुद महो सव ही दोन के मनमुटाव का
कारण है या कोई और भी है?
मलयकेतु : म भागुरायण! च गु त के और कसी ोध के कारण
को जानने म इसे या लाभ है?
भागुरायण : कुमार, लाभ यही है क अ य त बु मान चाण य
अकारण ही च गु त को य करेगा! और इतने-भर
से कृत च गु त भी गौरव का उ लघंन नही करेगा।
इस लए चाण य और च गु त का जो भेद होगा, उसके
पीछे कोई बड़ी बात अव य होगी।
करभक : अमा य! चाण य पर च गु त के ोध का कारण और
भी है।
रा स : या है? वह या है?
करभक : सबसे पहले तो यही क उसने आपक और कुमार
मलयकेतु क भागते समय य उपे ा कर द ।
रा स : (सहष) म शकटदास! अब च गु त मेरे हाथ म आ
जाएगा। अब च दनदास ब धन से छू टे गा। तु हारा पु
और ी से मलन होगा और जीव स आ द के लेश
भी र ह गे।
भागुरायण : ( वगत) सचमुच, जीव स का क र हो जाएगा,
मलयकेतु : म भागुरायण! ‘अब च गु त मेरे हाथ म आ जाएगा’
का या मतलब हो सकता है?
भागुरायण : और या होगा! यही क चाण य से पृथक् पड़ गए
च गु त का उ मूलन करने म यह कोई लाभ नह
दे खता।
रा स : भ ! अ धकार छनने पर चाण य कहां गया?
करभक : वह पाट लपु म ही रहता है।
रा स : (घबराकर) भ ! वह रहता है? तप या करने वन म नह
गया या उसने फर कोई त ा नह क ?
करभक : अमा य! सुना जाता है क वह तपोवन म जाएगा।
रा स : (घबराकर) शकटदास! यह कुछ समझ म नह आता।
जसने पृ वी के वामी न द के ारा भोजन के आसन से
उठाए जाने के अपमान को नह सहा, वह अ य त गव ला
चाण य वयं च गु त के ारा कया तर कार कैसे सह
गया!
मलयकेतु : म भागुरायण! चाण य तपोवन जाए या फर त ा
करे, इसम इसका या वाथ है?
भागुरायण : यह तो समझना क ठन नह कुमार! जैसे-जैसे रा मा
चाण य च गु त से र होगा, वैस-े वैसे इसका वाथ
सधेगा।
शकटदास : जस च गु त के चरण अब राजा के, चूड़ाम णय क
च ोपम का त से यु केश वाले, म तक पर पड़ते ह
वह अपने ही आद मय ारा अपनी आ ा का उ लंघन
सह सकता है! चाण य ने पहले दै ववश ही सफलता पाई
है, यह वह वयं भी जानता है और वयं अपने आचरण
से ःखी है। आगे प रणाम म कह असफलता न मले,
इसी भय से उसने बारा त ा नह क ।
रा स : म शकटदास! ठ क है। अब जाओ और करभक को
भी व ाम दो।
शकटदास : जो आ ा। (करभक के साथ थान)
रा स : म भी कुमार से मलना चाहता ं।
मलयकेतु : (पास जाकर) म वयं ही आपसे मलने आ गया ं।
रा स : (दे खकर) अरे! कुमार ही आ गए! (आसन से उठकर)
कुमार! इस आसन पर वराज।
मलयकेतु : म बैठता ं। आप भी बैठ।
[दोन उ चत आसन पर बैठते ह।]
आय! सर के दद का या हाल है?
रा स : जब तक कुमार के नाम से अ धराज श द न जुड़ जाएगा
तब तक सर का दद कैसे कम होगा!
मलयकेतु : यह तो आपने वयं अंगीकार कया है, अतः कुछ लभ
नह है। सेना भी इक हो चुक है, पर श ु पर
आप काल क ती ा करते-करते हम कब तक य ही
उदासीन बैठे रहगे?
रा स : कुमार! अब समय थ य बताया जाए? श ु पर
वजय पाने को चढ़ाई क रए।
मलयकेतु : श ु पर कोई आप आई है, या ऐसा समाचार आया
है?
रा स : जी हां, आया है।
मलयकेतु : या?
रा स : मं ी क खबर है, और या! च गु त चाण य से अलग
हो गया।
मलयकेतु : बस यही?
रा स : कुमार! सरे राजा का यह वरोध वैसा वरोध न भी हो
सकता, पर तु च गु त क यह बात नह ।
मलयकेतु : आय! या वशेषकर च गु त का ही?
रा स : या कारण है क…?
मलयकेतु : च गु त क जा केवल चाण य के दोष से ही वर
है? च गु त है? च गु त से जा को पहले भी नेह था
और अब चाण य के हटाए जाने पर भी है। ब क बढ़
गया होगा।
रा स : ऐसा नह है, कुमार! वहां दो तरह के लोग ह। एक वह
जा है जो च गु त के साथ उठ थी, सरी है वह जसे
न द कुल से ेम है। च गु त के साथ उठने वाली जा
को ही चाण य के दोष से वर है। न द कुल म
अनुर जा तो अपना आ य खोकर अमष से भरी ई
है। च गु त ने पतृकुल जैसे न द वंश का नाश कर
दया। पर अब जा करे भी या, यही सोचती ई
च गु त का साथ दे ती है। अपने बल से श ु को परा जत
करने म आप जैसे समथ राजा को पाकर शी ही वह
च गु त को छोड़कर आपका आ य हण करेगी। हम
कुमार के सामने इसके उदाहरण ह।
मलयकेतु : तो या यह मं ी- वरोध ही च गु त क हार का कारण है
या कोई और भी, अमा य?
रा स : कुमार! ब त का या करना है! यही धान कारण है।
मलयकेतु : अमा य! यही धान है? या च गु त राज-काज कसी
और मं ी या स ब धी पर छोड़कर इसका तकार नह
कर सकता?
रा स : वह असमथ है, कुमार!
मलयकेतु : य?
रा स : वाय स 1 और उभयाय स 2 राजा भले ही ऐसा
कर ल, पर च गु त के लए यह स भव नह । वह रा मा
न य ही रा य-काय म म ी के अधीन रहता है। अंधा
मनु य सांसा रक वहार से र रहकर या कर सकता
है! राजल मी म ी-श और नृप-श इन दोन पर ही
पांव रखकर ठहरती है। पर तु य द कोई भी भार सहने म
असमथ हो गया तो रा य ी ी-सुलभ वभाव के
कारण नबल को छोड़ दे ती है। मं ी के अधीन राजा
म ी से अलग होकर, सांसा रक वहार से अनजान
रहने के कारण, उस धमुंहे ब चे-सा हो जाता है जसके
मुंह से माता का तन हटा लया जाए। वह ण-भर भी
अपनी स ा नह जमा सकता।
मलयकेतु : ( वगत) भा य से म ऐसा म ी-पराधीन नह ँ। ( कट)
अमा य! यह तो ठ क है, पर अनेक अ भयोग के आधार
रहने पर, केवल म ी के बल पर टककर ही कौन श ु
को जीत सकता है!
रा स : आप तो, कुमार, केवल स क ही सोच। बलवान सेना
के साथ आप यु को त पर रहगे, कुसुमपुर म जा न द
म अनुर होगी, चाण य पद युत है ही और च गु त
नाम-मा का राजा रह गया और मुझ वाय के…
(इतना कहकर संकोच का अ भनय करते ए) मागदशन
एवं कत - नदशन म स रहने पर, अब हमारे सा य
आपक इ छा के अधीन पड़े ह।
मलयकेतु : अमा य, य द आप श ु पर आ मण ठ क समझते ह तो
वलंब ही य हो? यह भीमाकार गज खड़े ही ह, जनके
ग ड थल से मद-जल टपक रहा है, जसपर भ रे गूंज रहे
ह। अपने दांत से तट-भू म को फोड़ने वाले, स र से
लाल ए, मेरे ये सैकड़ काले-काले गजे तो ऐसे चंड
ह क पूरे वेग से उमड़कर बहने वाले, वृ से आ छा दत
तट वाले एवं क लो लत जल- वाह के कटाव से गरते-
पड़ते कनार वाले, महानद शोण को ही पीकर खाली
कर द। हा थय के ये झुंड ग भीर गजन करते ए
कुसुमपुर को घेरने म ऐसे ही समथ ह जैसे सजल मेघ
क माला व याचल को घेर लेती है। (भागुरायण स हत
मलयकेतु का थान)
रा स : अरे कौन है यहां?
मलयकेतु : ( वेश कर) आ ा द, अमा य!
रा स : यंवद! पता लगाओ… ार पर कोई यो तषी भी है?
पु ष : जो आ ा! (बाहर जाकर एक पणक को दे खकर, फर
वेश कर) अमा य, एक पणक…
रा स : (अपशकुन समझकर वगत) सबसे पहले पणक ही
द खा!…
यंवदक : जीव स है।
रा स : ( कट) उसका बीभ सदशन1 र करके वेश कराओ।
यंवदक : जो आ ा। ( थान)
[ पणक का वेश]
पणक : मोह जैसे रोग के लए अहत2 पी वै क बात मान ।
उनक बात पहले तो कड़वी लगती है, पर तु फर प य
बन जाती है। (पास जाकर) उपासक, धमलाभ हो!
रा स : भद त3! हमारे थान का मु त नका लए।
पणक : (सोचकर) उपासक, मु त न त कर लया! पहर से
सातव त थ का भाग बीतने पर पूण च मा वाली शुभ
वेला है। उ र से द ण को जाते समय न तु हारी दा
तरफ आ जाएगा।4 और सूय के अ ताचल जाने पर, च
के स पूण म डल के साथ उदय पर, बुध के शु ल न के
लगने पर, और केतु के उदय ल न से अ त ल न म चल
पड़ने पर या ा करना शुभ है।5
रा स : भद त! त थ ही ठ क नह बैठती।
पणक : उपासक! त थ एक गुना फल दे ती है, उससे चौगुना फल
न से, और उससे भी च सठ गुना फल ल न से मलता
है। यो तषशा ऐसा कहता है। रा श शुभ फल दे ने
वाली है। बुरे ह का संसग छोड़कर च मा के स पक म
जाकर तुम थायी लाभ ा त करोगे।6
रा स : भद त! अ य यो त षय से भी राय मला ली जए।
पणक : आप वचार करते रह, उपासक! म अपने घर जाता ।ँ
रा स : या भद त ु हो गए?
पणक : नह , म कु पत नह आ।
रा स : तो कौन आ?
पणक : भगवान यम, य क तुम जो मुझ जैसे अपने अनुकूल
को छोड़कर सर को माण मानते हो। ( थान)
रा स : यंवदक, या समय हो गया?
यंवदक : जो आ ा, दे खता ँ ( थान करके फर वेश कर) सूय
भगवान अ त होने वाले ह।
रा स : (आसन से उठकर सोचते ए दे खकर) अरे! सह -र म
भगवान सूय अ त होना चाहते ह। जब सूय बल होकर
उ दत आ था तब उपवन के सारे वृ छाया-समेत पास
आ गए थे। अब ताप के अ त होते समय ये सब र हो
गए, जैसे धनहीन वामी को वाथ सेवक छोड़ दे ते ह।
[सबका थान]
[चौथा अंक समा त]
1. हाथी का ब चा।
1. नाटककार तावना म छोटा वषय लेकर, प रकर को तमुख स ध म चाहता आ,
गभ स ध म ब ध अथ को गु त री त से दखाता है। वमश स ध म उसपर वचार
करता है तथा ववहण स ध म व तृत व तु का संकोच करता है।
1. मरे
1. अपने अधीन राज-काज चलाने वाला।
2. मलकर राज-काज चलाने वाले म ी और राजा।
1. बीभ सता, ग दगी, घनौनापन। स भवतः पणक ग दे रहते थे। अ यथा बना दे खे ही
रा स य समझता क वह घनौना-सा होगा।
2. तीथकर।
3. पू य।
4. यो तषशा के अनुसार व तुतः ऐसा ल न अमंगलकारी माना जाता है।
5. साथ ही यहाँ ‘सूय’ से रा स, ‘च ’ से च गु त, ‘बुध’ से चाण य और ‘केतु’ से
मलयकेतु अथ भी अभी है।
6. यहाँ च गु त का आ य हण करने क बात क ओर संकेत है।
पांचवां अंक
[चांडाल का वेश]
चांडाल : हट जाओ, आय , हट जाओ! हटो, मा यो, हटो! य द
आप अपने जीवन, ाण वैभव, कुल, ी आ द क र ा
करना चाहते ह, तो य नपूवक रा य का अ हत करने
क भावना का याग क रए। अप य भोजन से मनु य को
रोग या मृ यु क ही ा त होती है, पर तु राज ोह जैसे
अप य से तो सारा वंश ही न हो जाता है। य द आपको
व ास नह होता तो बाल-ब च के साथ, व य थल पर
लाए गए इस राज ोही े च दनदास को दे खए।
(आकाश को दे खकर) आय! या कहा? या पूछा क
च दनदास के बचने का कोई रा ता है? कहाँ? इस अभागे
के बचने का रा ता ही या है? पर, नह । यह भी हो
सकता है! य द यह रा स के कुटु ब को दे दे । ( फर
आकाश दे खकर) या कहा? यह शरणागत-व सल अपने
ाण क र ा के लए ऐसा बुरा काम कदा प नह
करेगा? आय! य द यही बात है, तो इसक शुभग त क
सो चए। अब र ा का वचार करने से या लाभ?
[ सरे चा डाल के आगे ी-पु के साथ व यवेश म सूली
कंधे पर रखे ए च दनदास का वेश]
च दनदास : हा, धक्! न य च र -भंग के भय म रहने वाले मुझ जैसे
आदमी क भी चोर क -सी मृ यु हो रही है। भगवान
कृता त को नम कार है। ू र घातक को तो अपराधी
और नरपराधी म कोई भेद नह लगता। मृ यु क
आशंका से मांस को छोड़कर केवल तनक पर जीने
वाले भोले-भाले हरन को मारने म ही शकारी का वशेष
हठ य होता है! (चार ओर दे खकर) हाय, म
ज णुदास! मुझे जवाब नह दे त?े ऐसे आदमी ही लभ
ह जो इस समय दखाई द। (अ ु-भरे ने से) ये लोग जो
आंसू-भरी आँख से मुझे दे खते ए लौट रहे ह, ये मेरे
म ही ह। (घूमता है।)
दोन चांडाल : (घूमकर तथा दे खकर) आय च दनदास! तुम व य थल म
आ चुके हो। अब स ब धय को लौटा दो।
च दनदास : आय कुटु बनी; तुम पु के साथ लौट आओ। यह
व य थल है। इससे आगे जाना ठ क नह ।
कुटु बनी : (रोते ए) आय परदे श तो नह जा रहे, परलोक जा रहे
ह। अतः अब हम लौटकर या करगे?
चंदनदास : आय! ठ क है मेरा वध हो सकता है, पर म के काय के
कारण ही तो, फर ऐसे हष के अवसर पर भी रोती हो?
कुटु बनी : आय! यही बात है तो घरवाले य लौट जाएँ?
च दनदास : आय! तो तु हारा या न य है?
कुटु बनी : (रोकर) ी को तो प त के चरण का ही अनुगमन करना
चा हए।
चंदनदास : आय! यह रा ह है। यह अबोध ब चा है। इसपर तो दया
करो।
कुटु बनी : कुलदे वता स होकर इस बालक क र ा कर। व स,
आगे पता नह रहगे! इनके चरण को णाम करो।
पु : (पांव पर गरकर) पता! आप चले जाएंग? े अब म या
क ं?
चंदनदास : पु ! उस दे श म चले जाना, जहां चाण य नह हो।
चा डाल : आय चंदनदास, सूली गड़ चुक है। सावधान हो जाओ!
कुटु बनी : आय ! र ा करो, र ा करो!
चंदनदास : भ ! ण-भर ठहरो। ाण ये, य रोती हो? अब वे दे व
न द वग चले गए जो न य य पर दया कया करते
थे।
एक चांडाल : अरे, वेणुवे क! इस च दनदास को पकड़। घर के लोग
अपने-आप लौट जाएंग।े
सरा चांडाल : अरे, व लोमक! अभी पकड़ता ं।
चंदनदास : भ मुख! एक ण और ठहर जाओ। म त नक अपने पु
का आ लगन कर लूं। (पु से आ लगन कर, नेह से
उसका सर सूंघकर) पु ! मृ यु तो कभी न कभी वैसे भी
होगी ही, इस लए म म का काय पूरा करते ए इस
समय मर रहा ँ।
पु : तात, या यह हमारा कुल-पर परा से आया धम है? (पैर
पर गरता है।)
सरा चांडाल : अरे व लोमक, पकड़!
[दोन चा डाल सूली पर चढ़ाने के लए चंदनदास को
पकड़ते ह।]
कुटु बनी : (छाती पीटकर) आय ! बचाओ, बचाओ!
रा स : (पदा हटाकर वेश करते ए) डरो मत, डरो मत! अरे
सूली दे ने वालो, अब च दनदास को मत मार य क
जसने श ुकुल क भां त वामीकुल वन होते ए दे खा
है, जो म क आप म आनंदो सव मनाते क
भां त रहा और अपमा नत होकर भी जो मरने को तैयार
है, ऐसे मुझ रा स को पकड़ो। मुझ अभागे के गले म
यमलोक के माग जैसी इस व यमाला को डाल दो।
चंदनदास : (दे खकर, रोता आ) अमा य, यह आपने या कया?
रा स : तु हारे प व च र के केवल एक अंश का अनुकरण!
चंदनदास : अमा य! मेरे सारे उ ोग को ऐसे थ करके या आपने
उ चत कया है?
रा स : म चंदनदास! उपाल भ मत दो। स पूण संसार वाथ
है। भ ! तुम यह समाचार रा मा चाण य से कह दो।
एक चांडाल : या?
रा स : के लए अ य त य इस भयानक क लकाल म भी
जसने अपने ाण दे कर सरे के ाण क र ा करने का
य न कया है, और इस कार श व के यश को भी
तर कृत कर दया है; जस प व ा मा के वशाल च र
ने बु के च र को भी छोटा बना दया हैः ऐसे
वशु ा मा पूजनीय चंदनदास का वध जस के
लए तुम करने जा रहे थे, वह म उप थत ँ।
एक चांडाल : अरे! वेणुवे क तू इस े चंदनदास को पकड़कर इस
मरघट के पेड़ क छाया म बैठ। म आय चाण य क सेवा
म यह नवेदन करके आता ँ क अमा य रा स पकड़े
गए!
सरा चांडाल : अरे, व लोमक! ठ क है। यही कर!
एक चांडाल : (रा स के साथ घूमकर) अरे! कौन है यहां ारपाल म?
न द वंश क सेना को मारने के लए व जैसे तथा
मौय वंश म धम- थापना करने वाले आय चाण य से
नवेदन करो…
रा स : ( वगत) यह भी रा स को सुनना था!
एक चांडाल : आपक नी त से कु ठतबु रा स पकड़े गए ह।
[जव नका1 से शरीर ढं के और केवल मुख खोले चाण य
का वेश]
चाण य : (सहष) भ ! कहो, कहो, ऊँची लपट के कारण पीली
दखाई दे ने वाली अ न को कपड़े म कसने बांधा है?
कसने पवन क ग त को र सय से रोका है? कसने
मतवाले हा थय के मद-जल से सुर भत और भीगे ए
सह को पजरे म ब द कया है? कसने भयानक मकर-
न से भरे समु को हाथ से तैरकर पार कया है?
एक चांडाल : नी त- नपुण आय ने ही।
चाण य : भ ! ऐसा नह है। यह कहो क नंद वंश के े षी दै व ने ही
ऐसा कया है।
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! वही रा मा या महा मा कौ ट य
है! यह र न के आकर समु क भां त शा का आगार
है। हम इसके गुण से ई या करते ह, ेम नह ।
चाण य : (दे खकर सहष) अरे! ये तो अमा य रा स ह। जस
महा मा के कारण दे र-दे र तक जागकर बड़े-बड़े उपाय
सोचते-करते मौय सेना और मेरी बु थक गई है! (पदा
हटाकर और पास आकर) अमा य रा स! आपको
व णुगु त नम कार करता है।
रा स : ( वगत) अब ‘अमा य’ वशेषण ल जा दे ने वाला-सा
लगता है। ( कट) अरे व णुगु त, म चा डाल के पश से
षत ँ मुझे मत छु एं।
चाण य : अमा य रा स! यह चा डाल नह ह। यह तो आपका
पूवप र चत रा य-कमचारी स ाथक है। वह सरा भी
रा यकमचारी सु स ाथक है। और शकटदास क इन
दोन से म ता करवाकर इससे मने ही छल के ारा वह
प लखवाया था। इस स ब ध म वह बेचारा तो कुछ
जानता ही नह था।
रा स : ( वगत) उफ! शकटदास के त मेरा संदेह तो र आ।
चाण य : ब त या क ं! सं ेप म यही है क आपके सेवक
भ भ आ द, कपट-भरा लेख, आपका व ासपा
स ाथक, तीन आभूषण, आपका म पणक,
जीण ान वाले ःखी पु ष, चंदनदास के क -इन
सबका आयोजन-संचालन मेरे ारा ही आ। (कहकर
ल जा से संकु चत होता है।) और वीरवर, यह सब मने
आपका चं गु त से मलन कराने के लए ही कया।
दे खए, यह वृषल आपसे मलने आ रहा है।
रा स : ( वगत) या क ं ? ( कट) दे खता ं।
[राजा का अनुचर -स हत वेश]
राजा : ( वगत) बना यु कए ही आय ने जय श ु को हरा
दया! म तो संकोच म पड़ गया ।ं फल रहते ए भी
काम न करने करने से ल जत होकर ही नीचे मुंह कए
तरकश म पड़े बाण का-सा जीवन मेरे लए संतोष का
वषय नह है। अथवा ऐसा सोचना ठ क नह है-मेरे
समान रा य-सुख क न द लेने वाले जस राजा के रा य-
संचालन म नर तर जाग क आचाय चाण य जैसे
संल न ह (चाण य के पास जाकर) …आय!
च गु त णाम करता है।
चाण य : वृषल! तु ह जो आशीष दए थे वे सब सफल ए।
इस लए आदरणीय अमा य रा स को णाम करो,
य क ये तु हारे पता के धानम ी ह।
रा स : ( वगत) इसने तो स ब ध करा दया!
राजा : (रा स के पास जाकर) आय! म, च गु त अ भवादन
करता ँ।
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! यह च गु त है! इसके बचपन म
ही लोग कहते थे क यह बड़ा होकर कुछ होगा। जैसे
धीरे-धीरे हाथी अपने झुंड का अ धप त हो जाता है, वैसे
ही यह भी अब सहासन पर चढ़ गया। ( कट) राजन!
वजयी ह ।
राजा : आय! जरा सो चएः नी त के छह गुण म आपके एवं गु
चाण य के जाग क रहने पर संसार क वह कौन-सी
व तु है जो मेरी न हो जाए?
रा स : ( वगत) या कौ ट य- श य च गु त मुझे अपना भृ य
वीकार कर रहा है? या यह केवल इसक न ता है? पर
च गु त के त मेरी ई या उसे ठ क तरह समझने म
बाधक रही है। सब तरह से चाण य यश वी है। यो य
ओर पु षाथ राजा को पाकर तो मूख म ी भी क त
ा त कर लेता है, पर अयो य राजा के पास जाकर तो
अ य त नी त मं ी भी कगारे पर खड़े पेड़ क तरह
आ य- वहीन होकर गर जाता है।
चाण य : अमा य रा स, या आप च दनदास के ाण क र ा
चाहते ह?
रा स : व णुगु त, इसम या स दे ह है?
चाण य : अमा य, आप बना श उठाए ही च गु त पर अनु ह
कर रहे ह, यही स दे ह है। य द आप सचमुच चंदनदास
क र ा करना चाहते ह, तो यह श हण क जए।
रा स : नह , व णुगु त! यह ठ क नह है। म इसके लए अयो य
ं। और फर आपका उठाया श धारण क ं ?
चाण य : अमा य रा स! यह कैसे कहते ह क आप अयो य ह
और म यो य ं। आप तो दा त श ु का दमन करने
वाले ह। आपके भय से…इन घोड़ को दे खए…जो
नर तर मुंह म लगाम दबाए रहने से बल हो गए ह।
इनक र क सेना के यो ा को दे खए जो सदै व यु -
त पर रहने के कारण न खा सके ह, न पी सके ह, न
नहाते ह, न चैन पाते ह। यह दे खए इन यु के लए सजे
हा थय को! कैसे द न दखते ह! पर अब इस सबसे
या? य द आप श नह थामगे तो च दनदास भी नह
बचेगा।
रा स : ( वगत) दे व न द का नेह मेरे दय को छू रहा है, तो भी
म उनके श ु का भृ य बन गया ँ। अरे, जन वृ को
अपने हाथ से पानी दे -दे कर स चा, या उ ह अब वयं ही
काटना होगा? म क ाण-र ा के लए मुझे अमा य
पद का यह श आज धारण करना पड़ रहा है। भा य के
काय भी कतने व च होते ह! ( कट) व णुगु त, खड् ग
लाओ। सब कुछ जससे स है ऐसे म - नेह के आगे
म नतम तक ँ। या चारा है! म उ त ँ।
चाण य : ( स ता से अपने हाथ का खड् ग उसे सम पत कर दे ता
है ।) वृषल! वृषल! अमा य रा स ने श धारण करके
तु ह अनुगृहीत कर दया है। सौभा य से तु हारा उ कष
हो रहा है।
राजा : च गु त आपक कृपा को जानता है, आय!
पु ष : ( वेश कर) आय क जय हो! आय! भ भ , भागुरायण
आ द मलयकेतु को हाथ-पांव बांधकर राज ार पर लाए
ह। आ ा द जए।
चाण य : हां, सुन लया, भ ! यह अमा य रा स से नवेदन करो।
अब ये ही सब राज-काज क व था कया करगे।
रा स : ( वगत) या कौ ट य मुझे राजसेवक बनाकर मेरे ही मुंह
से कुछ कहलवाना चाहता है? क ं भी या! ( कट)
राजन् च गु त आप जानते ह, मने कुछ दन मलयकेतु
के यहां नवास कया है, अतः इनक ाण-र ा क जए।
[राजा चाण य के मुख क ओर दे खता है।]
चाण य : वृषल! यह अमा य रा स का सबसे पहला य है। इसे
मानना ही चा हए। (पु ष को दे खकर) भ ! मेरी ओर से
भ भट् ट आ द से कहो क अमा य रा स क ाथना पर
च गु त फर से मलयकेतु को उसके पता का रा य
लौटा रहे ह। इस लए आप लोग उसके साथ जाइए और
उसका रा या भषेक करके ही आइए।
पु ष : जो आ ा, आय!
चाण य : ठहर भ , ठहर! दे खो भ , ऐसे ही वजयपाल और
गपाल से कह दो क अमा य रा स ने अमा य पद-श
हण कर लया है, इस लए दे व च गु त उनके त ेम
के कारण आ ा दे ते ह क े च दनदास पृ वी के सारे
नगर म े पद पर माने जाएं।
पु ष : जो आ ा आय! ( थान)।
चाण य : राजन् च गु त! तु हारा और या य क ं ?
राजा : या अब भी कुछ य करना रह गया? रा स जैसा म
दया, रा य पर मुझे थर कर दया और न द का जड़ से
नाश कर दया। अब और करना ही या रहा?
चाण य : वजये! वजयपाल और गपाल से कहो क अमा य
रा स से ेम होने का कारण दे व च गु त आ ा दे ते ह
क केवल हाथी-घोड़े बंधे रहने दो, शेष सबको मु कर
दो। पर जब अमा य रा स ही नेता ह, तब उनसे भी या
काम! इस लए सभी हाथी-घोड़े छोड़ दो। अब त ा
पूण ई। म भी अपनी शखा बांधता ं।
तहारी : जैसी आय क आ ा! ( थान)
चाण य : अमा य! बताओ अब म आपका या य क ँ ?
रा स : या इससे अ धक कुछ ओर भी य हो सकता है? य द
इतने पर संतोष न हो तो फरः
भरतवा य
क प के आर भ म घन लय म डू बी धरा ने,
अतुल बलमय, चर दयामय व णु के अवतार जन
वीरवर वाराह के उस दं त का आ य लया था।
आज ले छ से ई जब पी ड़ता वह
व णु के से सु ढ़ घन भुजद ड वाले वीर न य,
च गु त महान के भुजद ड का आ य लया है।
वे कर र ा धरा क चर समय तक,
रहे वैभव सदा उनका भ -सेवक!
[सबका थान]
[सातवां अंक समा त]