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मु ारा स

पा तरकार
रांगेय राघव

ISBN : 9788170287704
सं करण : 2017 © राजपाल ए ड स ज़
MUDRARAKSHASA (Sanskrit Play) by Vishakhadutta

राजपाल ए ड स ज़
1590, मदरसा रोड, क मीरी गेट- द ली-110006
फोन : 011-23869812, 23865483, फै स : 011-23867791
website : www.rajpalpublishing.com
e-mail : sales@rajpalpublishing.com
www.facebook.com/rajpalandsons
मु ारा स
(सं कृत के सु स नाटक ‘मु ारा स’
का ह द पा तर)

वशाखद
भू मका

सामंत वशाखद र चत ‘मु ारा स’ नामक नाटक का सं कृत सा ह य म काफ


मह वपूण थान है। इस नाटक क वशेषताएं यह ह क इनम—
एक—शु से अंत तक सब पु ष-पा ह। केवल एक ी-पा है, जसका कथानक से
मूल प म कोई संबंध नह है। केवल क ण रस पैदा करने के लए उसे थान दया गया है।
स दय बाद इ लड म शे स पयर ने भी ऐसा ही एक नाटक ‘जू लयस सीज़र’ लखा था,
जसम मु य प से सभी पु ष-पा ह और य का ब त ही गौण थान है।
दो—इसका मु य कारण है क दोन ही नाटक मु य प से राजनी त के षड् यं ,
कुच और दांव-पेच को कट करते ह। ‘मु ारा स’ म मौयकालीन भारतीय राजनै तक
प र थ त का च ण है।
तीन—तीसरी बात यह है क वशाखद के इस नाटक म कह भी तबीयत ऊबती नह ।
नरंतर नवीनता मलती चलती है। कथानक इसी लए अपनी रोचकता का अंत तक नवाह
करता रहता है।
मु य प म यही बात इसके मूल म ह।
‘मु ारा स’ का अथ है रा स क अंगूठ । रा स क अंगूठ म उसक मु ा अथात् मुहर
भी है। सं कृत म मु ा श द मुहर और अंगूठ दोन के लए आता है। यह अंगूठ ब त
मह वपूण है। इसी अंगूठ के कारण चाण य को पता चलता है क े चंदनदास के यहां
रा स का प रवार छपा आ है। बस इतना पता चलते ही चाण य अपना खेल शु कर
दे ता है। इसी मु ा के सहारे से स ाथक शकटदास से प लखवाकर मुहर लगाकर
राजनी तक दांव-पच खेलता है। इसी के कारण मलयकेतु का रा स से झगड़ा होता है और
च गु त मौय का रा ता साफ हो जाता है। य क मु ा नाटक क घटना म इतना मह व
रखती है, इस नाटक का नाम क व ने उ चत ही ‘मु ारा स’ रखा है।
वशाखद सामंत बटे रद का पौ और महाराज पद वाले पृथु का पु था। वह वयं
बड़ा नी त रहा होगा, जसने इतनी राजनी त, यो तष आ द के पां ड य का प रचय दया
है। उसका नाट् यशा का अ ययन भी काफ था, य क उसने बुरे नाटककार और अ छे
क व के ऊपर भी काश डाला है। क व शंकर और व णु दोन को ही भगवान मानता था।
का म गौड़ी री त के आ ध य के कारण लोग का अनुमान है क वह गौड़ दे श का रहने
वाला था, उसने ‘ पणक’ (बौ साधु) दशन को, जैसा क उस समय व ास था, अ छा
नह माना, परंतु अहत क शंसा क है। उसने बु के च र क महानता को भी वीकार
कया है। हम इस वषय म कुछ नह कह सकते क वह कौन था और कहाँ का था। भारते
का मत है क पृथु वा तव म राजा पृ वीराज था। वे तक दे ते ह क बटे रद जैसे लंबे नाम
को ज द म सोमे र भी कहा जा सकता है। बटे र म सोमे र से एक मा ा कम ही है अतः
यह बात कुछ भी नह जमती। संभवतः सामंत का पु महाराज कैसे आ होगा, यही उनके
सामने सम या थी। परंतु पुराने समय म महाराज एक पद था। तभी—‘महाराजपदभाक्’ भी
कहा गया है। महाराज बड़े जागीरदार क म के राजकुल से संबं धत होते थे। इससे
केवल यही कट होता है क वशाखद एक ब त कुलीन प रवार का था। उसक
च केवल राजनी त म ही दखाई दे ती है। जभाषा म अनेक अवध के क वय ने क वता
क ह, इस लए का -शैली से क व का थान ढूं ढ़ना उ चत नह है। क व अपने वणन म
कुसुमपुर का उ लेख करता है। पाट लपु का ही सरा नाम कुसुमपुर था। गु त के समय म
कुसुमपुर का बड़ा मह व था। संभवतः क व उसी समय का था। धनंजय के दश पक म
थम काश क 68व का रका के अंत म मु ारा स का नाम है। ‘सर वतीकंठाभरण’ के
तीसरे प र छे द म उ लेख है। चैत ाटक म भी नाम है। इससे प होता है क ई वी दसव
शती म यह ब त स नाटक था। कुछ व ान् ले छ श द का योग यहां होने से इसे
सातव सद का मानते ह। कतु सबसे बड़ी इसम तीन बात ह।
एक तो इसम जस पृथु के रा य क क पना है, वह हमालय से समु तक का है, जो
सातव सद तक ास ाय हो चला था। मौय से वधन तक ही इसका ज़ोर रहा था, जब क
सामंतीय व था वदे शय से जा क र ा करने म ग त का आधार थी।
सरे, इसम जो अ त का भरतवा य है, वह च गु त के शासन को द घजीवी होने का
आशीवाद है। उसम प ही त कालीन राजा क स ता क बात है, अ यथा ायः
भरतवा य लोक-क याण के अ य प का वणन करते ह। च गु त तीय गु त म शका र
व मा द य कहलाता था। उसने ुव वा मनी क र ा क थी। इस लए उसक मृ त म
उसक तुलना दांत पर पृ वी उठाने वाले वाराह व णु अवतार से क जाती थी। उसके समय
म वाराह भगवान् क पूजा का काफ चार था। वाराह का भी भरतवा य म उ लेख है। इन
बात को दे खकर लगता है क यह नाटक ई वी चौथ -पांचव सद का होना चा हए। ले छ
श द धमशा और पुराण म आता है। उसका तुक मुसलमान से ही संबंध जोड़ना चा हए;
ब क तुक मुसलमान को यवन ही मु य प से कहा जाता था, य प यवन श द पुराने
ीक लोग के लए च लत आ था। नाटक म खस, ले छ, शक और ण का भी उ लेख
है। ण के लए यह नह समझना चा हए क कंदगु त से पहले वे अ ात थे। उनक
शाखाएं भारत के उ र म तब भी थ । पारसीक आ द भी ाचीन ही थे।
तीसरी बात यह है क जब यह नाटक लखा गया होगा तब मूल च गु त मौय क कथा
काफ पुरानी पड़ चुक थी य क इसम कुछ गड़ब ड़यां भी ह। य प इस नाटक ने
इ तहास पर बड़ा भाव डाला है, फर भी सब बात पूण प से ऐ तहा सक ही ह , ऐसा नह
है। इसम यह तो आता है क च गु त मौय का मु य पौ ष वदे शय को भगा दे ना था।
अ त म इसपर ज़ोर है। कथा म भी वदे शय क सम या दखाई पड़ती है, परंतु रा य
जीतने के दांव-पेच ब त दखते ह। इसम सक दर के आ मण का कोई उ लेख नह और
पारसीक राजा को भी प प से वदे शी नह माना गया है। गु से म रा स मलयकेतु को
भी ले छ कह जाता है। कथा चाण य क चतुरता पर अ धक बल दे ती है, च गु त क
वीरता पर नह । य द यह च गु त तीय के समय का नाटक होता तो या चाण य का
इतना थान होता? परंतु यहां हम याद रखना चा हए, एक च गु त के बहाने से सरे
च गु त क जीत पर ज़ोर दया गया है। गृह-कलह र करके शां त था पत क गई है।
पु ष से ी प धरकर छल से शकराज को च गु त तीय ने भी मारा था। उन दन क
राजनी त भी आज क तरह छल से भरी थी। पणक का ा ण चाण य का साथ दे ना,
भारतीय पर परा म इन दो सा दाय का वदे शी आ मण के समय मल जाना इं गत करता
है। नाटक मौयकालीन नह है, इसका प रचय यही है क यहां यह दशाया गया है क वा तव
म नंद का रा य ब त ठ क था। केवल चाण य के ोध के कारण उसे उखाड़ा गया। फर
जा को शांत करने के लए काफ चाला कयां करनी पड़ । इसम नंद का पु होकर भी
च गु त मौय दासी-पु है, तभी वृषल है, नीच है, जब क नंद को शू नह कहा गया है,
ब क उसे कुलीन भी कहा है।
इ ही बात से लगता है क नाटक च गु त तीय के समय का हो सकता है।
कथा का मुख पा मूल प से चाण य है। नाटककार ने चाण य को ब त ही धूत
और कु टल दखाया है। वह अपनी त ा पूण कर चुका है। उसका ोध भयानक था। वह
सब कुछ पहले से ऐसा सोच लेता है क उसक हर चाल ऐसी जाती है क कोई उसे काट ही
नह पाता। वह सब श ु को मार डालता है, कुछ को हराता है, और रा स को वह चतुर
और मह वपूण तथा भावशाली समझने के कारण जीत लेता है। उसके सामने व तुतः
रा स कोई ट कर का आदमी नह है और चाण य भी उसक इस त पधा को दे खकर
मन ही मन हंसा करता है। चाण य रा स क वा मभ से स है। वैसे चाण य यागी
है, टू टे-फूटे घर म रहता है और नडर होकर राजा को वृषल कहता है। सरी ओर रा स धन
क भी च ता करता है, नः पृह भी नह , बुरी तरह मात खाता है, और अंत म नंद- वरोधी ही
बन जाता है। रा स का अंत ब त ही बुरा है और वह अंत म ब त ही पदलोलुप-सा दखाई
दे ता है। चाण य ब त ही बु मान है। रा स उसक तुलना म कुछ भी नह है।
उसका नाम भी व च है। और वह नंद क ऐसी तु त गाता है जैसे उसके समय म बड़ा
भारी सुख था। बाद म च गु त क सेवा भी इसी लए वीकार करता है क च गु त नंद का
ही पु है। वैसे नाटककार ने यही दखाया है क रा स के अमा य बनने का कारण
चंदनदास के ाण क र ा करना है, कतु यहां रा स का लोभ छप नह पाता। य द वह
आन का प का होता तो ाण दे सकता था और तब च दनदास क सम या का भी अंत हो
जाता। रा स नतांत कायर नह था, इसी लए क व उससे तलवार भी उठवाता है, पर रा स
क तलवार भी चाण य क बु से र कर द जाती है। क व तो बं दश पूरी बांधता है, परंतु
रा स का पतन कसी से नह कता। क व यह दखाता है क है तो रा स वीर, चंड,
वा मभ और चतुर, परंतु चाण य के सामने वह है कुछ भी नह । सबसे बड़ी चाण य क
महानता तो यह है क वह अंत म ब त ही न है; जब क रा स म एक ख सयानापन है
और वह वा जब भी है। च र - च ण के कोण से इसम दो ही पा ह, चाण य और
रा स। बाक सब काम चलाने वाले लोग ह। वे तो म बजाने वाले लोग ह। परंतु नाटक य
से येक बड़ा सफल काय करता है। हर एक का काम उ दा होता है। फर भी हम यह
नह भूल पाते, और वयं पा भी हम याद दलाते रहते ह, क इन सब काम के पीछे तो
चाण य क बु है। चाण य का लोहा बरसता है। वह पांव उठाता है तो धरती कांपती है।
उधर रा स परेशान रहता है। नाटक म कह भी यह नह दखता क वह कभी चैन भी पा
सका हो। उसने कई चाल चल । चाण य क न द तो उसने बगाड़ी, पर हारा हर जगह।
कह -कह ही नाटककार पा क मनः थ त का सामा जक और गत प रचय दे ता है।
मलयकेतु को धोखा दे ते ए भागुरायण को ःख होता है। कंचुक को बुढ़ापे क तकलीफ
है। राजनी त के कुच म कृ त वणन नह मलते। अं तम य मृ छक टक से मलता-
जुलता है। चंदनदास बड़ा यागी है, फर भी उसके साथ चा द क -सी संवदे ना नह
जागती। वह राज ोही है और इसी लए हम च गु त को इसके लए अ याचारी ठहरा ही नह
पाते। हम जानते ह क चंदनदास मरेगा नह , य क चा डाल भी वा तव म चा डाल नह है
और रा स भी कायदे से फंसता चला आ रहा है। इसी लए म चंदनदास के च र को भी
मह वपूण नह मानता। क व बार-बार उसे शव जैसा यागी बताता है। शायद वै य को
स करना उसके मन म अव य था। उस समय ापार खूब होता था और सेठ का भु व
भी था। अंत म तो वह जगत्-सेठ बनाया जाता ही है। क व यह भी कहलवाता है क पर ी
से वै य ेम नह करते, वह बड़े शीलवाले होते ह। इसके अ त र इस नाटक म च र -
च ण क कोई वशेषता नह है। रस के कोण से इसम मु य रस वीर है। क ण थोड़ा-
सा है। रा स कई जगह क णा-भरी बात कहता है, परंतु वह सब नंद के त ह, और नंद से
हमारी सहानुभू त य नह होती क हम च गु त अ छा लगता है, हालां क च गु त केवल
अमा य चाण य के हाथ का खलौना ही है, परंतु है तो वजयी चाण य का ही य पा ।
नायक के प म वह धीरोदा है। यागी, कुलीन, कृती, पयौवनो साही, द , अनुर ,
शीलवान्, नेता आ द नायक क को ट म आते ह। च गु त मावान् गंभीर, महास व,
ढ़ ती है, अतः धीरोदा है। मलयकेतु तनायक है। यहां ना यका और व षक ह ही
नह । सं कृत के नाटक क पर परा म यह सुखांत नाटक है। सं कृत म ऐसा नाटक लभ ही
है। भावानुसार भाषा का योग है। अलंकार काफ यु ए ह। छोट -छोटे अंक ह।
शौरसेनी, महारा ी, मागधी आ द ाकृत भाषाएं इसम सं कृत के अ त र यु ई ह।
इ तहास क बात हम फर हराना चाहते ह। व णुगु त, चाण य, कौ ट य आ द एक ही
के नाम ह, यह मु ारा स ने ही कट कया; और फर इस वषय म कोई संदेह नह
रहा। इस नाटक ने भारतीय इ तहास के पूवम यकाल क राजनी तक व था का काफ
प रचय दया है।
भारते ह र ने ‘मु ारा स’ का अनुवाद कया है। कतु वह अनुवाद ग और प
दोन म है। सं कृत के ग का खड़ी बोली म अनुवाद है और ोक का अनुवाद जभाषा
प म कया गया है। मने इसी कारण मु ारा स का आधु नक शैली म अनुवाद करने क
चे ा क है, जसम प के थान पर ग का योग कया गया है।
भारते ह र ने बड़े मनोयोग म ‘मु ारा स’ नाटक क पूव कथा लखी है। उ ह ने
अपने समय तक के ऐ तहा सक अ ययन को तुत कया है। उस कोण म उन सब
बात का समावेश है जनको वशाखद ने भी वीकार कया है, य प भारते ने ब त-सी
बात अपने अ ययन के फल व प तुत क ह। उनका सं त मत यह है—
ाचीन काल म मगध से पु वंश को हटाकर नंदवंश ने 138 वष रा य कया। उ ह के
समय म अल े ( सक दर) ने भी आ मण कया था। महानंद तापी था। उसके दो मं ी
थे, शकटार शू और रा स ा ण। शकटार ोधी था। महानंद ने ु हो उसे एक न वड़
बंद गृह म डाल दया। दो सेर स ू मा उसके प रवार को दे ता। शकटार ःखी हो गया।
एक-एक कर भूखे ही उसके घर के सब लोग मर गए। शकटार रह गया। एक दन महानंद के
हंसने पर एक दासी वच णा हंस पड़ी। राजा ने कारण पूछा तो वह ाण-दं ड के भय से
शकटार से कारण पूछने आई और इस कार महानंद के स होने पर शकटार से कारण
पूछने आई और इस कार महानंद के स होने पर शकटार छू ट गया। उसे रा स के नीचे
मं ी बना दया गया। शकटार को बदले क आग जला रही थी। उसने काला ा ण ढूं ढ़ा जो
घास से पांव कटने पर म ा डाल-डालकर उसक जड़ जला रहा था। शकटार ने उससे नगर
म एक पाठशाला खुलवा द । एक दन राजा के यहां ा म शकटार चाण य को ले गया
और उसे आसन पर बठा दया। चाण य का रंग काला, आंख लाल और दांत काले थे। नंद
ने उसे अ नमं त जानकर बाल पकड़कर नकलवा दया। चाण य ने शखा खोलकर
नंदवंश के वनाश क त ा क । शकटार ने उसे घर बुलाकर वच णा को उसके काम म
मदद दे ने को लगाया। महानंद के 9 बेटे थे। 8 ववा हता रानी से, एक मुरा नामक नाइन से—
च गु त। इसीसे मुरा का पु मौय कहलाता था, वृषल भी। च गु त बड़ा व ान था। आठ
भाई उससे जलते थे। रोम के बादशाह ने एक पजरे म एक शेर भेजा था क बना खोले शेर
बाहर कर दो। वह मोम का था। च गु त ने उसे पघलाकर बाहर नकाल दया। महानंद भी
इससे कुढ़ता था। च गु त बड़ा था, सो अपने को रा य का भागी मानता था। चाण य और
शकटार ने च गु त को रा य का लोभ दया। चाण य ने अपनी कुट म जाकर वष मले
पकवान बनाए, वच णा ने वे पकवान महानंद को पु समेत खला दए। वे सब मर गए।
शकटार अपने पाप से संत त होकर वन म चला गया और वहां अनशन करके मर गया।
चाण य फर अपने अंतरंग म जीव स को पणक के वेश म रा स के पास छोड़कर
वदे श गया और उ र के नवासी पवते र नामक राजा को मगध का आधा रा य दे ने के
लोभ से ले आया। पवतक का भाई वैरोधक या वैराचक था, पु था मलयकेतु। उसके साथ
ले छ राजा थे। उधर रा स ने नंद के भाई सवाथ स को राजा बना दया। चाण य ने घेरा
डलवाया। 15 दन यु आ। जीव स ने सवाथ स को बहका कर तपोवन भेज दया।
रा स उसे मनाने को च दनदास नामक ापारी के घर अपना प रवार छोड़कर चला।
चाण य ने उसे पहले ही मरवा डाला। च गु त को राजा बना दया। रा स ने पवते र के
मं ी को बहकाया। मं ी ने पवते र को लखकर भेजा। इसके बाद रा स ने च गु त को
मारने को वषक या भेजी। जीव स ने बता दया तो चाण य ने वषक या को पवते र के
पास प ंचाकर उसे मरवा डाला, और नगर के त त नाग रक भागुरायण से कहकर
मलयकेतु को भी भगवा दया। चाण य ने साथ ही अपने व त भ भट आ द उसक सेना
म भेज दए। रा स अब मलयकेतु के साथ हो गया। चाण य ने यह उड़ा दया क रा स ने
ही वषक या को भेजकर च गु त के म पवतक को मरवा डाला और वयं आधा रा य
दे ने क बात को छपा गया।
तुत नाटक इससे आगे क कथा का वणन करता है।

च गु त मौय के वषय म इ तहास यह बताता है क वह मो रयवन के य म से था।


इस लए उसका नाम मौय पड़ा था। वह दासी पु नह था वरन् उन य म से था जो क
ा ण धम का भु व वीकार नह करते थे। गौतम बु के समय म य ने बु -प म
तथा दशन के े म ा ण से बड़ी ट कर ली थी। उस समय मगध का राजा बबसार था।
इसका पु अजातश ु आ जसने अपने पता क ह या क थी। बबसार का वंश
शैशुनागवंश कहलाता है। इस वंश के उपरांत हम नंदवंश का उ थान दे खते ह। नंदवंश को
शू वंश कहा गया है। नंद के वैभव का स का जमा आ था। कतु उस समय ा ण
अ स थे। चाण य त शला म पढ़ाता था। बाद म वह मगध प ंचा, जहां उसका अपमान
आ। च गु त उस समय राजा नंद के मयूर और उ ान का रखवाला था। उसक वीरता से
नंद स हो गया और उसने उसे सेनाप त बना दया। कुछ दन बाद वह उससे अ स हो
गया। यह दे खकर च गु त भाग गया और उसने पाट लपु म व लव करा दया, जसे राजा
नंद ने कुचल दया। च गु त भागकर उ र-प म भारत म आ गया, जहां वह सक दर से
मला, परंतु कसी बात पर उसका सक दर से झगड़ा हो गया और वह फर भाग नकला।
बड़ी मु कल से चाण य और च गु त ने व य दे श म डाकु को एक करके सेना खड़ी
क और पहले सीमा ांत के रा य को जीता तदन तर अंत म मगध पर शासन जमाया।
लगभग बीस वष बाद यवन स यूकस नकाटोर ने भारत पर आ मण कया, जसम यवन
को च गु त ने परा जत कया और बा ी आ द ांत को भी अपने सा ा य म मला
लया। कुछ लोग का मत है क चाण य अंत म तपोवन म चला गया। आज के इ तहास
ने ब त खोज-बीनकर इतने त य पाए ह। वशाखद क इस कथा से इतना ही सा य है क
चाण य का नंद ने अपमान कया था। च गु त को चाण य ने ग पर बठाया, अपना
बदला लया।
रा स के वषय म इ तहास कुछ नह बोलता। शकटदास के बारे म भी वशेष कुछ नह
आता। कुछ लोग का मत है क नंद का मं ी वर च था। कुछ कहते ह, का यायन था। जो
हो, कथाएं ब त बन जाती ह और पुरानी घटना को फटककर अलग कर लेना व तुतः
अस भव होता है। वशाखद के समय म पुरानी कथा काफ चम कार से लद गई थी। मौय
का मुरा दासी का पु हो जाना भी इ तहास क एक भूल ही कही जा सकती है, य क तब
तक वृषल का अथ भूला जा चुका था। दासीपु होने से उसे चाण य वृषल कहता था, ऐसी
वशाखद ने ा या क है, य क मतानुसार चाण य नः पृह ा ण था और उसे न
कसी क चता थी, न कसी का डर। कतु यह वशाखद के युग क ा या मा है।
च गु त का वृषल नाम पर परा म च लत रहा होगा और बाद म उसे समझने क इस
कार चे ा क गई होगी। य द तुत नाटक को चौथी-पांचव शती का भी माना जाए, तो
भी जस घटना का इसम वणन है, वह नाटककार से लगभग सात या साढ़े सात सौ बरस
पुरानी थी। जैसे आज कोई क व या नाटककार गुलामवंश के बलवन या र ज़या के बारे म
लखे तो उनके इ तहास का जतना अभाव है, उससे कह अ धक वशाखद के युग म था।
रा स ऐ तहा सक पा था या नह , यह भी संदेहा पद है। बृह कथा म वर च का उ लेख है
जसक एक रा स से म ता थी। रा स मनु य नह था। वह पाट लपु के पास घूमा करता
था। वह एक रात वर च से मला और बोला क इस नगर म कौन-सी ी सुंदरी है। वर च
ने कहा—जो जसको चे वही सुंदरी है—इस पर रा स ने उससे स होकर म ता कर
ली और उसके राजकाज म सहायता करने लगा। इस कथा से कुछ भी पता नह चलता।
यहां तो यह लगता है क य द कोई रा स नामक उस समय था भी तो वह यहां तक
आते-आते मनु य नह रहा था, नामसा य के कारण रा स हो गया था। वशाखद के
नाटक क ऐ तहा सकता इसी लए ामा णक नह है। परंतु ामा णक यह है क क व अपने
युग को घोर क लकाल मानता था; उसने कहा भी है क स ची म ता तब लभ थी। क व
य था, व णु और शंकर का उपासक था, परंतु वह वै य , ा ण और बौ तथा जैन
का भी वरोधी नह था। यह स ह णुता हम गु त के उ कष-काल म मलती है। हम
वशाखद को उसके ब प म न दे खकर नाटक य घात- तघात म ही सी मत करके
दे खना चा हए। जो भी कथा वशाखद ने ली है, वह ब त ही आकषक ढं ग से हमारे सामने
तुत क गई है।
एक बात मुझे इस नाटक के बारे म वशेष मह वपूण लगी। वह यह है क इसम
घटना के उ लेख का बा य है, और यह भी बातचीत म ही। अंक म घटनाएं ती ता से
नह चलत । कथा म ‘अब या होगा’ का कौतूहल अ धक है, वैसे कोई वशेषता नह ।
पहले अंक म चाण य का चतन, शकटदास ारा प लखवाने क सलाह, सेनाप तय
का भागना, शकटदास और स ाथक का भागना, चंदनदास का अ डग रहना आ द ह। परंतु
‘ए शन’ यानी कम ब त कम है।
सरे अंक म रा स और वराधगु त का ायः संवाद ही संवाद है जसम सारी कथाएं
हराई जाती ह।
तीसरे अंक म च गु त और चाण य क नकली लड़ाई हो जाती है।
चौथे अंक म मलयकेतु के मन म भागुरायण संदेह पैदा कर दे ता है।
पांचव अंक म काफ रोचक घटनाएं ह। नाटक य ढं ग भी यह अ धक दखाई दे ता है।
छठे अंक म कोई वशेषता नह । कुछ दया ज़ र पैदा होती है।
सातव अंक म भी ‘ए शन’ ब त कम ही है और सारे नाटक म यह कमी सबसे अ धक
इस लए खटकती है क नाटक का नायक च गु त पूरे नाटक म तीसरे और सातव अंक म
दखाई दे ता है। तीसरे अंक भर म वह ल जत होता है और सातव म उसक कोई वशेषता
नह ।
इसके वपरीत चाण य पहले, तीसरे और सातव अंक म दखाई पड़ता है। रा स सरे,
चौथे, पांचव, छठे अंक म है। हम तो यही ठ क समझते ह क इस नाटक का नायक, जो
शा ीय ववेचनानुसार च गु त माना जाता है, नाटक नह है। नायक तो चाण य है और
तनायक है रा स, जो अ त म परा जत हो जाता है। इस कोण से यह ब त ही सफल
नाटक है। इसे मानते ही हम च र - च ण का भी अभाव नह मलता। तब तो अपने-आप
हम नायक और तनायक क ट कर ही नह , एक- सरे को ही सीधे या घूरकर, हर तरीके
से सब पर छाया आ दे खते ह। ी-पा का अभाव, कृ त- च ण का अभाव, इ या द
कुछ भी नह अखरते। आज तक मु ारा स पुजा तो है, परंतु उन कारण को कसी ने नह
दे खा, जो इसक मूलश ह। यह एक बु - धान नाटक है। दय-प वाले अंश इसम
ब त थोड़े ह। परंतु बीच-बीच म उ ह रखकर मम का पश कया गया है। इसम जो संवेदना
क कचोट पैदा होती है, वह पा क अपनी वशेष बात को बार-बार हराने से, जैसे बार-
बार रा स और च दनदास वा मभ और म -व सलता क ही बात को कहे चले जाते
ह।
अंत म कह सकते ह क यह नाटक ब त अ छा नाटक है और इसम एक वशेषता है क
आप इसे इतना सुग ठत पाते ह क इसम से आप एक वा य भी इधर से उधर सरलता से
नह कर सकते। य द कह अतीत का भाव ंजक मरण ही है, तब भी वह वतमान क
तुलना म उप थत कया गया है इसी लए वह अ नवाय है, उसे छोड़ा नह जा सकता,
य क वह वाह को तोड़ दे ता है।
और सं कृत नाटक क भां त एक समय यह भी खेला ही गया था। उस समय पद का
योग होता था। ‘मु ारा स’ म यव नका—ज द गरने वाले पद—का भी उ लेख आ है,
कतु सारे सेट नह बनते थे। सामा जक अथात् दशक को काफ क पना से काम चलाना
पड़ता था। हम इतना ही कह सकते ह, क ब त थोड़े प रवतन से य- वभाजन करके इस
नाटक को बड़ी आसानी से खेला जा सकता है; जो इस वषय म दलच पी रखते ह, उ ह
अव य खेलना चा हए, य क सं कृत नाटक म नाटक यता काफ मा ा म ा त होती है।
‘मु ारा स’ एक सामंत का लखा आ नाटक है, कतु यह इस बात का माण है क
क व अपने वग म सी मत नह रहता। वह द लत और थत क वा त वक मनोभावना
को अपने च र क मनोनुकूलन अव था के मा यम से न प अ भ दे ता है। वह
राजा के उ रदा य व क वा त वकता भी दखाता है, और राजनी त त मानव क उलझन
भी। इस लए क यह नाटक अपनी अ भ य म सवतं ेण वतं है, कला क से
इसका मू य हमारी म काफ ऊंचा है।
‘मु ारा स’ ेम-कथा नह , सम या मक कथा को लेकर चलता है और उसका अंत तक
नवाह भी सफलता से करता है। संभवतः यही कारण है क भारते ह र ने हद के
नवयुग के उ मेष म इसका मह व तपादन करने के लए इसका अनुवाद कया था।
मने अपने अनुवाद को य न कर सहज बनाने क चे ा क है। य द म इसम सफल हो
सका ं, तो अव य ही अपने प र म को भी सफल मानूंगा।
—रांगेय राघव
पा

चाण य : न दवंश- वनाशी ा ण, च गु त का अमा य


शा रव : उसका श य
स ाथक : चा डाल का प भी धरता है, चाण य का चर है
च दनदास : े , रा स का म
जीण वष (सपेरा) : रा स का आदमी है
वराधगु त
रा स : नंद का पुराना अमा य, च गु त का श ु, फर अमा य
कंचुक जाज ल : मलयकेतु का कंचुक
यंवदक : पु ष अथात् सेवक, रा स का सेवक
शकटदास : रा स का काय थ मुंशी
कंचुक वैहीनरे : च गु त का कंचुक
राजा च गु त : स ाट् नंद का पु
करभक : रा स का गु तचर
मलयकेतु : पवते र का पु , च गु त का श ु
भागुरायण : च गु त का भृ य
जीव स : पणक
भासुरक : एक सै नक, मलयकेतु क सेना का भृ य
सु स ाथक : चा डाल का प भी धरता है, स ाथक का म
बालक : च दनदास का पु
कुटु बनी : च दनदास क प नी
चर, तहारी, अ य तहारी, नेप य म दो वैता लक, दौवा रक, सै नक, पु ष आ द।
पहला अंक
नांद
शंकर- शर- थर-गंगा वलोक
पूछा पावती ने : “हे यतम!
यह कौन पू य इतनी है जो
सर पर धारी है हे न पम!”
बोले : “श शकला,” सुना, बोली :
“ या यही नाम है सच कहना!”
शव बोले : “यह ही नाम ये,
या भूल ग इतना मलना?”
“म तो नारी के बारे म था पूछ रहा
न क इस श श के,”
“मानत नह य द, तो पूछो
‘ वजया’ से कह दे गी सब रे।’
यह कह जो पावती से गंगा
क बात छपाते ह शंकर
उनक यह सू म चतुरता ही
सबका क याण करे स वर!

और भी—
धंस जाए न धरती, इस शंका से
धरते पग अपने जो संभाल,
र ा दगंत क करते जो
संकु चत कए नज भुज- वशाल
हो जाए न भुवन भ म, खोलते
नह इस लए ग तृतीय,
पुरा र जट का अ वतं
ता डव कराल वह अ तीय
सबका क याण करे युग-युग
है यही कामना बार-बार,
डम - ननाद प रव तत हो
चर सुख म धरती पर उदार।

सू धार : बस! बस! इतना ही काफ है। मुझे प रषद् ने आ ा द है


क सामंत बटे रद के पौ ‘महाराज’ पद यु पृथु के
पु क व वशाखद क कृ त मु ारा स नामक नाटक
खेल।ूं सचाई तो यह है क नाटक के गुण-दोष जानने
वाली इस सभा म नाटक खेलते ए मुझे भी मन म बड़ा
संतोष हो रहा है। अ छे खेत म कसानी से अनजान
कसान का डाला आ बीज भी बढ़ता है। उगने के लए
बीज बोने वाले क चता नह करता। इस लए म घरवाली
और घर के लोग को बुलाकर गाने-बजाने का काम शु
करता ं।
(घूमकर दे खकर) घर आ गया, चलू।ं
( वेश कर दे खकर) अरे! आज घर म कोई उ सव है?
सव अपने-अपने काम से लगे ह। कोई ी जल ला रही
है, कोई सुगं धत व तु को पीस रही है, कोई माला गूंथ
रही है तो कसी क ंकार मूसल क आवाज़ म मली जा
रही ह। घरवाली को बुलाकर पूछूं। (नेप य क ओर
दे खकर) अरी सुघर घरवाली! नयादारी क बु नयाद तू
ही तो है। धम-अथ-काम को तू ही तो स करती है! मेरे
घर क नी त का व प बनी डोलती है। मेरी ये! ज़रा
ज द बाहर तो आ!
नट : ( वेश कर) आयपु ! म आ गई। आ ा द, कृताथ होऊं।
सू धार : रहने दे आ ा! यह बता क या तूने ही पू य ा ण को
नमं ण दे कर घरवाल को उबार लया है? या ये अपने-
आप आए ह यहां? खाना तो ज़ोर से बन रहा है, उ ह के
लए न?
नट : आय! मने ही नमं त कया है।
सू धार : भला य ?
नट : आज च हण है न?
सू धार : कसने कहा?
नट : सारे नगरवासी कह रहे ह!
सू धार : आय! मने च सठ अंग वाले यो तष-शा को बड़ी
मेहनत से और गहराई से पढ़ा है। खैर, ा ण के लए
भोजन तो बनाओ। पर च हण कहकर कोई तु ह
बहका गया है। दे खो—यह भयानक रा अपूण च को
बलपूवक सना चाहता है…
[नेप य म : अरे मेरे जी वत रहते कौन च गु त का
ज़बद ती अपमान करना चाहता है?]
सू धार : (बात पूरी करता आ) ले कन बुध ह का योग से जाते
ए च मा क र ा करता है।
नट : वह तो आय! आकाश म रहने वाले च मा क रा से
र ा करना चाहता है।
सू धार : आय! म नह जानता, जाने कौन है? ठहर! आवाज़ से
पहचानने क चे ा करता ं। (जोर से) अरे दे खो, दे खो,
भयावह रा बलपूवक अधूरे च को स लेना चाहता
है!
[नेप य म : अरे-अरे! मेरे रहते ए च गु त का कौन
बलपूवक अपमान करना चाहता है?]
सू धार : (सुनकर) लो समझ गया! कौ ट य ह!
[यह सुनते ही नट डर जाती है।]
सू धार : यह वही कु टलबु कौ ट य है जसने अपने ोध क
अ न से सारे नंदवंश को ही जबरन भ म कर दया।
च हण श द को सुनकर उसे यह संदेह हो गया है क
कोई श ु च गु त पर आ मण न कर दे । नाम एक-से
ह, इसी से। इस लए अब यहां से चलना ही ठ क है।
[दोन का थान]
[ तावना समा त]
[खुली ई चु टया को छू ते ए चाण य का वेश]
चाण य : कौन है जो मेरे जीते-जी बल योग करके च गु त का
अपमान करना चाहता है? कौन है जो ज हाई लेते मुंह
फुलाए सह के मुख म से हा थय का ल पी-पीकर
सं या के चं क कला क -सी लाल-लाल दाढ़ को
बलपूवक उखाड़ने का साहस रखता है? न दकुल के लए
ना गन बनी ई, ोधा न क चंचल धूम रेखा क -सी मेरी
इस शखा को आज भी बंधने से रोक रहा है? मने नंदवंश
को समूल न कया है। मेरा द त ताप दावानल क
तरह धधक रहा है। कौन है जो उसका तर कार करके
अपने-पराए का ान खोकर, इस चंड अ न म पतंगे
क तरह भ म हो जाना चाहता है? शा रव! शा रव!!
शय : ( वेश कर) गु दे व! आ ा द!
चाण य : व स! बैठना चाहता ं।
शय : गु दे व! इस ार के पास वाले को म बत का आसन
है, आप वह बै ठए न?
चाण य : व स! इतना काम है क बार-बार तु ह क दे ना पड़ता है।
मत समझना क तुम पर कठोरता करता ं। (बैठकर
वगत) नगरवा सय म यह बात कैसे फैल गई क नंदवंश
के वनाश से व ु ध आ रा स अब पता क मृ यु से
ु और सारे ही नंदरा य को पाने क ती इ छा के
उ साह से भरे ए पवते र के पु मलयकेतु से मलकर
इस चे ा म है क मलयकेतु के ारा उपगृहीत महान
ले छराज को भी साथ लेकर च गु त पर आ मण कर
दे ! (सोचकर) मने सारी जा के सामने त ा क और
नंदवंश- वनाश क त ा पी नद को तैरकर पार कर
लया, तो या वही म इस वाद को शांत नह कर
सकूंगा? मेरी ोधा न ऐसी भयानक है क वह शोक का
धुआं फैलाकर, श -ु रम णय क -सी दशा के
मुखच को लान बना चुक है। मं ी पी वृ पर
अपने नी त पी पवन से अ ववेक क भ म फैलाकर, वह
नाग रक और ा ण को छोड़कर, नंदकुल के सारे
अंकुर को भी भ म कर चुक है। अब जलाने को कुछ
नह रहा। या इसी लए मेरी ोधा न दावानल क तरह
शांत हो रही है? ज ह ने एक दन नंद के भय से सर
झुकाकर, उसको मन ही मन ध कारते ए शोक से
भरकर, मुझ जैसे े ा ण को आसन से उठाए जाने
का अपमान दे खा था, आज वे वैसे ही पवत पर से सह
ारा गराए हाथी क तरह सारे कुटु ब के साथ नंद को
सहासन से उतरा आ दे ख रहे ह! म त ा के भार से
मु हो चुका ं कतु च गु त के आ ह पर अब भी
श धारण कर रहा ं। पृ वी पर रोग क तरह फैले
नवनंद को मने उखाड़कर फक दया। जैसे सरोवर म
कमलनाल होता है, वैसे ही मने च गु त क रा यल मी
को ब त दन के लए थर कर दया। मने उ त मन से
ोध और नेह के गूढ़ त व को श ु और म म
बांटकर फैला दया है। ले कन रा स को पकड़े बना या
बगाड़ा है मने नंदवंश का? उसके रहते मने च गु त क
रा य ी या सचमुच थर कर द है? रा स को अब भी
नंदवंश के त अ यंत नेह है। एक भी नंदवंशीय आदमी
के जीते-जी उसे चं गु त का मं ी बनाना बड़ा क ठन है।
म नंदवंशीय को तो राजा नह बना सकता, हां,
रा स को पकड़ सकता ।ं यही सोचकर मने तपोवन म
तप या म लगे नंदवंश के आ खरी नशान सवाथ स
को भी मरवा डाला है। फर भी रा स अब मलयकेतु क
मदद लेकर हम उखाड़ दे ने म लगा आ है। (आकाश म
दे खकर जैसे य दे ख रहा हो) अमा य े रा स! तुम
ध य हो! मं य म बृह प त क भां त बु मान! तुम
ध य हो! संसारी लोग तो धन के लोभ से वामी क सेवा
करते ह। वे तो उसक वप म भी साथ दे ते ह तो
उसक उ त म अपना लाभ दे खकर। कतु जो वामी के
मारे जाने के बाद भी पुराने उपकार को याद करके ा
से उसके काम को चलाता है, ऐसा तुम जैसा आदमी तो
नया म मलना भी क ठन है। इसी लए तो तु ह साथ
रखने के लए मेरा यह य न हो रहा है। अब तु ह कैसे
च गु त का मं ीपद हण कराऊं, जससे मेरा य न
कृताथ हो। य क उस वा मभ सेवक से या लाभ
जो मूख और नबल हो। और उस बली और बु मान
सेवक से भी या लाभ, जसम वामी के त कोई भ
नह होती! बल, बु और वा मभ जसम तीन ह ,
जो वामी के सुख- ःख म साथ रहे, वही असली सेवक
है, वरना फर उसक तो य क भां त उलटे र ा ही
करनी पड़ती है और म इस बारे म सो नह रहा ं। उसे
पकड़ने के लए अपनी पूरी साम य लगा रहा ं।
“च गु त और पवते र—इन दो म से कसी एक के
मरने से चाण य का नुकसान होता है, इसी लए तो रा स
ने मेरे परम म पवते र को वषक या1 के ारा मरवा
डाला है।” मने यह समाचार जनता म फैला दया है।
जनता को व ास दलाया है क मलयकेतु के पता को
रा स ने मारा है। एकांत म भय दखाकर भागुरायण के
साथ मलयकेतु को भगा दया है। रा स क नी त पर
टककर यु -त पर मलयकेतु को म अपनी बु से
पकड़ सकता ।ं पर उसके पकड़ने से पवते र के वध
का कलंक तो नह मट सकता। मने अपने प और
वप के होने वाले लोग के बारे म जानकारी ा त करने
को अनेक आचार- वचार और भाषा जानने वाले चर को
नयु कर दया है। मेरे गु तचर कुसुमपुर नवासी नंद के
मं य के म क हर एक चाल को यान से दे ख रहे ह।
च गु त का साथ दे ने वाले भ भट आ द धान पु ष
को खूब धन दे -दे कर तरह-तरह से अपनी ओर कर लया
है। श ु कह वष न दे द, इस लए अ छ जांच वाले,
हो शयार आदमी मने राजा के पास रख दए ह। मेरा
सहा यायी2 व णु शमा तो शु नी त और च सठ अंग
वाले यो तषशा का पं डत है। न दवध क त ा
करके मने ही उसे भ ुवेश म ले जाकर सब मं य से
कुसुमपुर म उसक म ता करा द थी। रा स को तो
उसम वशेष व ास है। इससे बड़ा काम नकलेगा। बात
तो कोई न छू टे गी। च गु त तो केवल धान पु ष है।
सब राजकाय हम पर ही छोड़कर उदासीन है या करने
लायक काम म त परता छोड़कर अब राज के सुख
भोगने म लग गया है! सच है। वभाव से बली राजा और
हाथी दोन ही अपने कमाए रा य या भोजन को पाने पर,
थक जाने से बस उसे भोगते ए थकान का ही अनुभव
कया करते ह।
[यमपट लए चर का वेश]
चर : यम भगवान् के चरण क वंदना करो! सरे दे वता क
पूजा से लाभ भी या? यह यमराज तो सरे दे वता के
तड़पते भ को य ही मार डालते ह। इन वषम यमराज
क भ से ही जीवन मलता है। वे सबके संहारक ह
और हम भी उ ह क दया से जी वत ह। अब म इस
यमपट को दखाकर गाऊं! (घूमता है)
शय : (दे खकर) भ ! भीतर मत घुसो।
चर : अरे ा ण! यह कसका घर है?
शय : यह हमारे उपा याय आय चाण य का मकान है।
चर : (हंसकर) अरे ा ण! तब तो यह अपने भाई का ही घर
है। मुझे भीतर जाने दो ता क तु हारे उपा याय को
धम पदे श दे सकूं।
शय : ( ोध से) मूख! तू मेरे गु से भी धम को अ धक जानता
है?
चर : अरे ा ण! ु य होते हो? सब लोग सारी बात नह
जानते। अगर कुछ तु हारे गु जानते ह, तो कुछ हम भी
जानते ह।
शय : ( ोध से) तो या तू मूख! हमारे उपा याय के ‘सब कुछ
जानने वाले’ नाम को मटाने आया है?
चर : ा ण! य द तु हारे आचाय सब कुछ जानते ह तो या वे
यह भी जानते ह क च मा कसे अ छा नह लगता?
शय : इसे जानने से उ ह मतलब?
चर : ा ण! यह तो वे ही जानगे क इससे या लाभ है! तुम
तो सरल बु हो और यही जान सकते हो क कमल को
च अ छा नह लगता। होते ह कमल ब त सु दर, परंतु
काम उनका होता है उलटा। पूण च को दे खकर वे
मुरझा जाते ह।
चाण य : (सुनकर वगत) अरे! इसने कहा क म च गु त का
वरोध करने वाल को जानता ं?
शय : मूख! या बेकार क बात बक रहा है।
चर : ा ण! जो मेरी बात बलकुल ठ क ही हो तो?
शय : कैसे?
चर : य द म सुनने और समझने वाले मनु य को पा सकूं।
चाण य : (दे खकर) भ ! सुख से वेश करो। यहां सुनने और
जानने वाला मलेगा।
चर : अभी आता ं। ( वेश करके पास जा कर) आय क
जय!
चाण य : (दे खकर वगत) इतने अ धक काम के कारण यह भी
याद नह आ रहा है क मने इसे य भेजा था। (सोचकर)
हां, याद आया। इसे तो जनता क मनोवृ का पता
लगाने भेजा गया था। ( कट) भ ! वागत है, बैठो।
चर : जैसी आय क आ ा। (भू म पर बैठता है।)
चाण य : भ ! अब बताओ, जस लए भेजे गए थे, उसके बारे म
या संवाद लाए हो! या वृषल1 म जनता अनुर है?
चर : हां आय! आपने जनता क वर के सारे कारण मटा
दए ह, इस लए उसे तो च गु त से ब त नेह है, परंतु
नगर म रा स से ब त नेह करने वाले तीन ह, जो
च -वैभव को नह सह पाते।
चाण य : ( ोध से) य कहो क वे अपने ाण का शरीर म रहना
नह सह पाते। भ ! उनके नाम का पता है?
चर : या बना नाम जाने आपसे कह सकता ं?
चाण य : तो कहो।
चर : आय! पहले तो वही भ ु है जो आपके वप म है।
चाण य : ( स ता से वगत) पणक हमारे व है? ( कट)
या नाम है उसका?
चर : जीव स ।
चाण य : तुमने यह कैसे जाना क वह हमारे व है?
चर : इस लए क उसने रा स- यु वषक या पवते र के
पास भेज द ।
चाण य : ( वगत) जीव स तो हमारा गु तचर है। ( कट) भ !
सरा कौन है?
चर : सरा अमा य रा स का परम म शकटदास काय थ है।
चाण य : ( वगत, हंसकर) काय थ तो बल व तु है। परंतु श ु
कैसा भी छोटा हो, उसे कम नह समझना चा हए। उसके
लए तो मने म बनाकर स ाथक को लगा दया है।
( कट) भ ! तीसरा कौन है?
चर : आय! तीसरा तो मानो वयं सरा रा स ही है। म णय
का ापारी च दनदास। उसी के घर अपनी ी और
ब च को रा स धरोहर के प म रखकर भाग गया है।
चाण य : ( वगत) अव य ही गहरी म ता म ही ऐसा हो सकता है।
वरना या प रवार को वहां रखता? ( कट) भ ! यह
तुमने कैसे जाना?
चर : आय! यह अंगूठ (मु ा) आपको बता दे गी।
[मु ा दे ता है।]
चाण य : (मु ा दे खकर, रा स का नाम पढ़कर, बड़ी स ता से
वगत) बस, अब रा स मेरे पंजे म आ गया। ( कट)
भ ! यह मु ा कैसे मली, पूरी बात कहो।
चर : आय! सु नए! जब आपने मुझे नाग रक क मनोवृ
जानने को भेजा, तो सर के घर जाने से कसी को
कसी तरह का संदेह न हो, इस लए म इस यमपट को
लेकर घूमता आ म णकार े च दनदास के घर म
घुसा और वहां यमपट फैलाकर मने गाना शु कर दया।
चाण य : फर?
चर : तब लगभग पांच वष का एक ब त सुंदर बालक
उ सुकता से, ब चा ही तो था, पद के पीछे से बाहर
नकलने लगा। तब, ‘अरे बालक नकल गया’, ‘बालक
नकल गया’, पद के पीछे यह घोर कोलाहल मच उठा।
तब एक ी ने थोड़ा-सा मुंह नकालकर अपनी कोमल
बा से बालक को झड़ककर पकड़ लया। उस घबराहट
म उस ी के हाथ से यह अंगूठ सरककर दे हली के पास
गर गई, य क यह तो पु ष के नाम क ठहरी। ी को
बना पता चले ही यह अंगूठ लुढ़ककर मेरे पास ऐसे क
गई जैसे नई हन णाम करके थर हो गई हो। इस पर
अमा य रा स का नाम था, सो म इसे आय के चरण म
ले आया। यही है इसके मलने क कथा।
चाण य : भ ! सुन लया। अब तुम जाओ। इस प र म का फल
तु ह अव य मलेगा।
चर : जैसी आय क आ ा। ( थान)
चाण य : शा रव!
शय : ( वेश करके) आ ा द उपा याय!
चाण य : व स! दवात और लखने को प 1 लाओ।
शय : जैसी गु दे व क आ ा। ( थान करके फर वेश)
गु दे व! यह रहे दवात और प ।
चाण य : (लेकर वगत) या लखू!ं इसी प से तो रा स को
जीतना है।
तहारी : ( वेश कर) आय क जय!
चाण य : (सहष, वगत) जय श द ले लू।ं ( कट) शोणो रे! य
आई हो?
तहारी : आय! अपने कर-कमल से णाम करते ए दे व च गु त
आपसे नवेदन करते ह क म आपक आ ा से दे व
पवते र का ा आ द करना तथा उनके पहने ए
आभूषण को गुणवान् ा ण को दे ना चाहता ं।
चाण य : ( स होकर वगत) साधु वृषल! मेरे ही मन से जैसे
सलाह करके तुमने यह संदेश भेजा है। ( कट) शोणो रे!
मेरी ओर से वृषल से कहना क—व स, तुम ध य हो!
लोक- वहार म तुम ब त कुशल हो। जो तुमने न य
कया है उसे अव य करो। परंतु पवते र के पहने
आभूषण केवल गुणवान् ा ण को ही दे ने चा हए। ऐसे
ा ण को भेजता ं जनके गुण क परी ा हो चुक
है।
तहारी : जैसी आय क आ ा। ( थान)
चाण य : शा रव! श रव! मेरी ओर से व ावसु आ द तीन
भाइय से कहो क वे च गु त से आभूषण लेकर मुझसे
मल।
शय : जैसी गु -आ ा। ( थान)
चाण य : ( वगत) यह जय तो बाद के ह से म जंचेगी। पहले या
लखूं? (सोचकर) समझा। गु तचर ने मुझे बताया है क
ले छराज क सेना के पांच धान राजा बड़ी ा से
रा स का साथ दे रहे ह। वे ह, कुलूत दे श का वामी
च वमा, मलयराज नर े सधुराज सधुषेण और
पारसीक नृप त मेघा , जसके पास बड़ी घुड़सवार सेना
है। म इनके नाम लखता ं। अब यह ुव स य है क
केवल यमराज के धान लेखक च गु त ही अपनी सूची
से इनका नाम काट द।1 (सोचकर) नह , अभी नह
लखूंगा। इस बात को छपा ही रहना चा हए। ( कट)
शा रव! श रव!
शय : ( वेश कर) उपा याय! आ ा द।
चाण य : वेद पढ़ने वाले प डत चाहे कतनी भी सावधानी से य
न लख, उनके लखे अ र साफ नह होते। इस लए मेरी
ओर से स ाथक से कहना (कान म कहता है), ‘ कसी
ने कसी को कुछ लखा’ बस, लखने वाले का कोई नाम
न लखवाना। शकटदास काय थ से लखवा दे ना और मेरे
पास ले आना। यह कसी से न कहना क इसे चाण य ने
लखवाया है।
शय : अ छ बात है। ( थान)
चाण य : ( वगत) यह लो। मलयकेतु को जीत लया।
स ाथक : (लेख हाथ म लए वेश) आय क जय हो! आय!
ली जए! यह शकटदास के हाथ से लखा लेख है।
चाण य : (लेकर दे खकर) अरे! कतने सु दर अ र लखता है।
(पढ़कर) भ ! इस पर मुहर लगाकर बंद कर दे ।
स ाथक : जैसी आय क आ ा। (मु त करके) आय! कर दया।
अब आ ा द। या सेवा क ं ?
चाण य : भ ! कोई ऐसा काम तु ह दे ना चाहता ं जो वयं मेरे
हाथ के यो य है।
स ाथक : (सहष) आय! कृ यकृ य आ। आ ा द, सेवक तुत
है।
चाण य : भ ! सबसे पहले सूली दे ने क जगह जाकर वहां के
ज लाद को दा हनी आंख का इशारा करना। फर संकेत
समझकर भय के बहाने से जब वे भाग जाएं तब वहां से
शकटदास को रा स के पास ले जाना। उसके म के
ाण बचाने के लए उससे काफ इनाम लेकर कुछ दन
वह रहना और अंत म श ु के पास रहते ए यह काम
कर डालना, (कान म कहता है) समझे?
स ाथक : जैसी आ ा, आय!
चाण य : शा रव! शा रव!
शय : ( वेश कर) उपा याय! आ ा द।
चाण य : मेरी आ ा से कालपा शक और द डपा शक1 से कहो क
वृषल क आ ा है क इस जीव स पणक ने रा स
क भेजी वषक या ारा पवते र को मार डाला है।
इस लए इसे यही दोष लगाकर अपमानपूवक नगर से
बाहर नकाल दो।
शय : अ छा गु दे व! (घूमता है)
चाण य : ठहर! व स! ठहर इस रा स के म शकटदास को भी
इसी दोष से सूली दे द जाए, वह न य हमारा वरोध
करता है। इसके घर के लोग को बंद गृह म डाल दया
जाए।
शय : जैसी आ ा गु दे व! ( थान)
चाण य : ( चता से वगत) या रा मा रा स अब पकड़ म आ
जाएगा?
स ाथक : आय, पकड़ लया।
चाण य : (सहष वगत) रा स को पकड़ लया! ( कट) भ !
कसे पकड़ लया!
स ाथक : मने आय के संदेश के त व को पकड़ लया। अब
काय स के लए जाता ।ं
चाण य : (मुहर-लगा लेख दे कर) भ ! स ाथक! जाओ! तु हारा
काय सफल हो!
स ाथक : जैसी आय क आ ा। ( णाम करके थान)
शय : ( वेश कर) उपा याय! कालपा शक और द डपा शक ने
खबर द है क हम महाराज च गु त क आ ा का
पालन अभी करते ह।
चाण य : सु दर! व स! अब म म णकार च दनदास को दे खना
चाहता ं।
शय : जैसी गु क आ ा।
[ थान। फर च दनदास के साथ वेश]
इधर आइए े 1 इधर!
चंदनदास : ( वगत) नरपराध भी इस क णाहीन चाण य के
बुलाने पर डरता है, फर म तो अपराधी ही ठहरा। मने तो
तभी धनसेन आ द तोन ापा रय से कह दया है क
य द कभी चाण य मेरे घर क तलाशी लेने लगे तो
वामी अमा य रा स के कुटु ब को बु पूवक कह
छपा दे ना। मेरा जो हो वह होता रहेगा।
शय : इधर े ! इधर!
चंदनदास : आ रहा ं।
[दोन घूमते ह :]
शय : उपा याय! ये े चंदनदास आ गए ह।
चंदनदास : (पास आकर) आय क जय!
शय : (अचानक दे खकर) े , वागत! इस आसन पर
वराज।
चंदनदास : ( णाम कर) या आप नह जानते आय, क अनु चत
आदर अपमान से भी अ धक ःख दे ने वाला होता है। म
तो अपने लए उ चत इस धरती पर ही बैठ जाता ं।
चाण य : नह े ! ऐसा नह ! आपके साथ हमारा ऐसा ही
वहार उ चत है। आसन पर ही बैठ।
चंदनदास : ( वगत) लगता है क इसने मेरे बारे म कुछ जान लया
है। ( कट) जो आ ा। (बैठता है।)
चाण य : े ! या कभी च गु त के दोष जा को पहले
राजा क याद दलाते ह?
चंदनदास : (कान पर हाथ रखकर) पाप शांत हो। शरद् ऋतु क
पू णमा के च के समान च गु त क ी से सभी
अ यंत संतु ह।
चाण य : चंदनदास! य द इतनी ी त है तो राजा भी अपनी जा से
कुछ य चाहते ह।
चंदनदास : आ ा द आय! हमसे कतना धन चाहते ह?
चाण य : े ! यह च गु त का रा य है, नंदरा य नह है, य क
नंद क तो धनलाभ से ही तृ त हो जाती थी, परंतु
च गु त तभी स होते ह, जब आप लोग सुखी रहते
ह।
चंदनदास : (सहष) अनुगृहीत ं आय!
चाण य : े ! आपने मुझसे यह नह पूछा क वह लेश कैसे र
हो सकता है!
चंदनदास : आय ही आ ा द।
चाण य : सं ेप म यही है क जा को राजा के त वरोधपूण
वहार नह करना चा हए।
चंदनदास : आय! आप ऐसा कस अभागे के बारे म कह रहे ह?
चाण य : सबसे पहले आपसे ही।
चंदनदास : (कान पर हाथ रखकर) पाप शांत हो, पाप शांत हो!
तनके, और आग का वरोध कर?
चाण य : ऐसा वरोध क आज भी तुम राज ोही अमा य रा स के
कुटु ब को अपने घर म छपाए ए हो।
चंदनदास : यह बलकुल अस य है आय! कसी अनाय1 ने आपसे
ऐसा कहा है।
चाण य : े ! डरो मत! डरे ए पुराने राजपु ष अपने प रवार
को अपने पुराने नगरवासी म के घर छोड़ जाया करते
ह, भले ही वे नगरवासी इसे न चाहते ह । ले कन जानते
हो, उ ह छपाकर रखने से अंत म हा न होती है!
चंदनदास : बात यह है क पहले तो मेरे घर म अमा य रा स का
प रवार था।
चाण य : पहले तो तुमने मेरी बात को झूठ कहा और अब कहते हो,
पहले था। या ये दोन बात पर पर वरोधी नह ह?
चंदनदास : वह तो मेरी वाणी का दोष है।
चाण य : े ! च गु त के रा य म छल के लए थान नह है।
रा स के प रवार को हमारे हवाले करो और नद ष हो
जाओ।
चंदनदास : आय! म कहता तो ं क पहले अमा य रा स का कुटु ब
मेरे घर पर था।
चाण य : तो अब कहां है?
चंदनदास : यह तो पता नह क कहां चला गया।
चाण य : (मु कराकर) पता य नह है? े ! सांप सर पर है,
उससे बचने का उपाय ब त र है और जैसे नंद को
व णुगु त ने… (इतना कहकर कुछ संकोच से ल जत-
सा चुप रह जाता है।)
चंदनदास : ( वगत) यह या मुसीबत है! ऊपर मेघ का भीषण
गजन हो रहा है। या र है। द औष धयां तो
हमालय पर ह और यहां पर सप सर पर डोल रहा है।
चाण य : अमा य रा स च गु त को जड़ से उखाड़ दे गा, यह मत
समझो। दे खो! जस चंचला रा यल मी को नंद के
जी वत रहने पर नी त म े अमा य- े व नास भी
थर नह कर सके, उसी उ वला, लोकहषदा यनी और
न ला रा यल मी को इस च गु त जैसे च मा से
चांदनी क तरह कौन अलग कर सकता है! कसम साहस
है क सह के मुख म लगा मांस च च डालकर बाहर ख च
ले!
चंदनदास : ( वगत) तुमने जो कहा सो कया, तभी यह आ म शंसा
भी अ छ लगती है।
[नेप य म कोलाहल]
चाण य : शा रव! पता लगाओ क या बात है।
शय : जैसी आचाय क आ ा। ( थान, फर वेश करके)
आचाय महाराज च गु त क आ ा से राज वरोधी
जीव स पणक को अपमान करके नगर से नकाला
जा रहा है।
चाण य : पणक! ह-ह-ह! राज ोह का फल कौन नह पाएगा?
े चंदनदास! राजा वरो धय के त ब त कठोर है।
इसी लए मेरी अ छ बात को मानकर रा स के प रवार
को सम पत करके ब त दन तक महल के वैभव और
सुख को भोगो।
चंदनदास : मेरे घर रा स का प रवार नह है।
[नेप य म फर कोलाहल]
चाण य : शा रव! फर पता लगाओ क या बात है।
शय : जैसी उपा याय क आ ा। (घूमकर लौटता है) उपा याय!
यह राजा का वरोधी शकटदास काय थ है, जसे राजा ा
से सूली पर चढ़ाने को ले जाया जा रहा है।
चाण य : अपने कम का फल भोगे। े चंदनदास! यह राजा
वरो धय को ब त कड़ा दं ड दे ता है। वह आपके इस
अपराध को मा नह करेगा क आपने रा स के प रवार
को छपाया। सरे के ी-पु दे कर अपनी और अपने
घरवाल क जान बचाओ।
चंदनदास : आय! या आप मुझे डराते ह? य द रा स का प रवार
मेरे घर म होता तब भी म नह स प सकता था। फर जब
वह है ही नह तो ं कहां से?
चाण य : चंदनदास! या यही तु हारा न य है?
चंदनदास : न य! यही मेरा थर न य है।
चाण य : ( वगत) साधु चंदनदास! साधु! राजा श व को छोड़कर,
तु हारे बना ऐसा कौन है जो अपने वाथ के सहज
ही स हो सकने पर भी पराए को स पने म इतनी ढ़ता
से नकार सकता हो। ( कट) चंदनदास! यही तु हारा
न य है?
चंदनदास : जी हां।
चाण य : ( ोध से) रा मा, व णक्! तो राजा के ोध को
भोगो!
चंदनदास : (हाथ फैलाकर) त पर ं। आय अपने अ धकार के
अनुसार काय कर।
चाण य : ( ोध से) शा रव! मेरी आ ा से कालपा शक और
द डपा शक से कहो क वे इस रा मा े को शी ही
पकड़ ल। नह । ठहरो। गपाल और वजयपाल को
आ ा दो क वे इसके धन पर अ धकार कर ल। जब तक
म वृषल से नह कहता तब तक इसके ी-पु को
पकड़कर बंद गृह म रख। राजा ही इसको ाणदं ड दे गा।
शय : जैसी उपा याय क आ ा। े ! इधर आइए! इधर!
चंदनदास : (उठकर) आय! आता ं। ( वगत) सौभा य से म के
काय से मेरा वनाश हो रहा है, अपने कसी अ य दोष के
कारण नह ।
[घूमकर श य के साथ थान]
चाण य : (सहष) अहा! अब रा स पकड़ा गया। जैसे यह उसक
मुसीबत म अपने जीवन का मोह कए बना यागे दे रहा
है, वैसे ही इसक वप म रा स को भी अपने ाण
क ममता नह होगी।
[नेप य म कोलाहल]
चाण य : शा रव!
श य : ( वेश कर) आ ा द उपा याय!
चाण य : यह कैसा शोर है?
श य : ( थान कर, फर घबराया-सा वेश करके) उपा याय!
व य थान म बंधे ए शकटदास को लेकर स ाथक
भाग गया।
चाण य : ( वगत) ध य स ाथक! तुमने अपना काम खूब कया!
( कट) या कहा? ज़बरद ती उसे ले भागा! ( ोध से)
व स! भागुरायण से कहो क वह उसे शी पकड़े!
शय : ( फर बाहर जाकर स वेद लौटकर) उपा याय! ःख है
क भागुरायण भी भाग गया।
चाण य : ( वगत) काय स के लए जाए। ( कट, स ोध) व स!
ःख मत करो! मेरी आ ा से भ भट, पु षद , हगुरात,
बलगु त, राजसेन, रो हता , वजय वमा आ द से कहो
क वे शी ही रा मा भागुरायण को पकड़।
शय : जैसी उपा याय क आ ा। (बाहर जाकर फर ःख से
भरा वेश करके) उपा याय! ब त बुरी खबर है। सारी
जा ाकुल है। भ भट आ द भी आज ातः काल ही
भाग गए।
चाण य : ( वगत) सबका माग मंगलमय हो। ( कट) व स! ःख न
करो। दे खो! जो मन म कुछ सोचकर चले गए ह, वे तो
गए ही। जो यहां ह वे भी बेशक चले जाएं, ले कन सब
काम को साधने म अनेक सेना से भी अ धक श
रखने वाली और अपनी म हमा से नंद का वनाश करने
वाली मेरी बु मुझे न छोड़े। (उठकर आकाश म य
क भां त दे खकर) अब इन रा मा भ भट आ द को
पकड़ता ं। ( वगत) रा मा रा स? अब कहां बचेगा?
म ब त शी ही तुझे घेर लूंगा। म त और अकेले घूमने
वाले, अ यंत दानशील और ब त बड़ी सेना लेकर हमारा
नाश करने क इ छा रखने वाले ऐ रा स! दे ख लेना।
जैसे झुंड से अलग अकेले भटकते ए तालाब को मथ
दे ने वाले मदम त हाथी को बांध दया जाता है, वैसे ही
अपनी बु क र सी से बांधकर म तुझे च गु त के
लए अपने वश म क ं गा।
[ थान]
[पहला अंक समा त]

1. ज़हर दे ; दे कर बचपन से पाली गई लड़क , जसके शरीर म इतना वष हो जाता था क


उसके एक चुंबन से ही आदमी मर जाता था। ऐसी वषक याएं सुंदरी होती थ । राजा एक
सरे को मरवाने को ऐसी क याएं भेज दे ते थे, जसके चुंबन से श ु मर जाते थे।
2. साथ पढ़ा आ।
1. वृषल—घ टया माने जाने वाले य को वृषल कहते ह। च गु त अ छे ा णधम
य कुल का न था, वह उन य म था, जो ा णधम को मुखता नह दे ते थे।
कतु तुत नाटक म उसे दासी पु मानने के कारण ऐसा कहा है।
1. प —ताड़ का प ा : जसपर पुराने समय म लखा जाता था। पर ब त-से लोग इसे
कागज ही मानते ह। उन दन वैसा कागज़ था ही नह ।
1. यानी यह हमने मौत क सूची म नाम लख दया।
1. अफसर।
1. झूठा—जो े नह है।
सरा अंक

[एक सपेरे का वेश]


सपेरा : जो वष क औष ध का योग करना, मंडल बनाना और
मं र ा करना जानता है, वही राजा और सांप क सेवा
कर सकता है! (आकाश क ओर दे खकर) आय! या
पूछा? तुम कौन हो? आय! म जीण वष नाम का सपेरा
ं। ( फर ऊपर दे खकर) या कहा? म भी सांप से खेलना
चाहता ? ं आय! बताइए! आप या काम करते ह?
( फर ऊपर दे खकर) या कहा? राजवंश के सेवक ह?
तब तो सदा ही सांप म खेलते रहते ह गे! पूछते ह—
कैसे? अरे बना दवाई जानने वाला सपेरा, बना अंकुश
लए मदम त हाथी पर चढ़ने वाला सवार और अहंकारी
राजा का सेवक, इन तीन का तो अव य ही नाश हो
जाता है। अरे! चले भी गए! बस दे खकर ही? ( फर
आकाश क ओर दे खकर) आय? या पूछते ह आप
फर, क इन पटा रय म या है? आय, मेरी जी वका के
साधन सांप ह इनम। (ऊपर दे खकर) या कहते ह आप!
दे खगे? अ स न ह । आपका य दे खना उ चत तो नह ,
पर ऐसा ही कौतूहल है तो आइए। इस घर म दखा ं !
(आकाश क ओर दे खकर) या कहते ह क यह अमा य
रा स का घर है? यहां हम जैसे लोग नह घुस सकते? तो
फर आप जाइए! जी वका क कृपा से यहां मेरी प ंच है।
अरे! यह भी गया!
[चार ओर दे खकर (अब सं कृत1 म)]
( वगत) अरे! आ य है! चाण य क नी त के
सहारे खड़े च गु त को दे खते ए तो रा स क
सब चे ाएं बेकार-सी लगती ह और रा स क
बु के सहारे काम करने वाले मलयकेतु को
दे खकर ऐसा लगता है क च गु त रा य से हट
जाएगा, चाण य क बु क र सी म मौयकुल
क ल मी को बंधा आ दे खकर म उसे थर
मानता ं। पर यह भी दे ख रहा ं क रा स क
नी त के हाथ उसे ख च भी रहे ह। नंदवंश क
रा य- ी इन दोन नी तधुरंधर मं य के झगड़े के
कारण बड़ी सं द ध-सी अव था म पड़ी ई लगती
है। जैसे अ यंत भयानक वन म दो हा थय क
लड़ाई के समय बीच म पड़ी ह थनी अ यंत
भयभीत हो जाती है, वैसे ही इन दो मं य के
बीच म रा यल मी आकर ख हो रही है। म अब
अमा य रा स के दशन क ं । (इधर-उधर घूमकर
खड़ा होता है)।
[अंकावतार समा त]
[अपने घर म आसन पर स चव रा स बैठे ह। सामने
अनुचर है। रा स चता से भरा है।]
रा स : (आंसू-भरे नयन से ऊपर दे खकर) हाय, कतना क है!
नी त, व म आ द गुण के कारण जो समृ नंदवंश
श ु-र हत था, उसका नदय भा य के हाथ वृ ण यादव
क भां त सवनाश हो गया। कैसे फर सब लौट सकेगा,
यही रात- दन सोचते ए जागते ही बीतते ह, पर मेरी
नी त और य न ऐसे नराधार-से लग रहे ह जैसे
च फलक के बना कसी च कार क च कला। म जो
सरे का दास बना नी त का योग कर रहा ं, यह न तो
वामी के त भ को भुलाने को, न अपने अ ान के
लए। नह , यह मेरे ाण का भय भी नह , न मेरी यश
क ल सा ही है। म सब कुछ केवल इस लए करता ं क
वग य नंद क आ मा अपने श ु के वध से स हो
जाए। (आकाश को सा ु दे खकर) भगवती ल मी! तुम
गुण नह दे खत ! चंचले! आन द के कारण राजा नंद को
छोड़कर तू श ु मौयपु पर य अनुर हो गई? जैसे
म त हाथी के मरने पर उसके मद क धारा भी सूख जाती
है, तू भी राजा नंद के साथ ही वन य नह हो गई?
ओ नीचकुले! पा पनी! या े कुल वाले राजा पृ वी से
उठ गए जो तूने इस कुलहीन को चुन लया है? कांस के
रो -सी चंचल होती है य क बु , तभी वह पु ष
के गुण जानने से वमुख रहती है! अरी अ वनीते! म तेरे
इस आ य को न करके तेरे भी मनोरथ को असफल
कर ं गा। (सोचकर) नगर से भागते समय मने अ छा
कया क अपना प रवार अपने सु द् म े चंदनदास
के घर छोड़ दया। य क रा स उ ोगहीन नह है और
कुसुमपुर म रहने वाले राजा नंद के पुराने सेवक से संबंध
बना रहेगा तो हमारा उ साह भी श थल नह होगा।
च गु त को जला डालने को मने अनेक वषैले पदाथ
आ द शकटदास को दे कर उसे श ु- वनाश करने को
नयु कया है! हर ण क सूचना भेजने को
जीव स पणक इ या द को काम म लगाया है। य द
कह भा य ही हमारे व हो जाए और उसक र ा
करने लगे तो और बात है, अ यथा म च गु त के अंग
को अपनी बु के बाण से बध ं गा, जसको सह-
शावक क तरह पाल-पोसकर स तान- ेमी महाराज नंद
अपने वंश के साथ न हो गए।
[कंचुक का वेश]
कंचुक : अपनी नी त से जैसे च गु त मौय से नंद का दमन
करवाकर चाण य ने उसे अ धप त बना दया, वैसे ही
बुढ़ापे ने काम-वासना न करके मुझम धम को था पत
कया है। अब मलयकेतु आ द क सहायता से उठे ए
रा स क भां त लोभ उ तशील च गु त जैसे धम को
फर जीतना चाहता है। कतु अब वह जीत नह सकेगा।
(दे खकर) अरे यह तो अमा य रा स है। (एक च कर-सा
लगाकर पास जाकर) यह रहा अमा य रा स का घर।
वेश क ं । ( वेश करके दे खकर) अमा य! आपका
मंगल हो।
रा स : अ भवादन करता ं आय जाज ल! यंवदक! आपके
लए आसन लाओ!
पु ष : ली जए आसन। वराज आय!
कंचुक : (बैठकर) अमा य! कुमार मलयकेतु ने नवेदन कया है
क ब त दन से आपने अपने शरीर का शृंगार करना
छोड़ दया है, इससे मेरा दय ब त ःखी है। म मानता ं
क वामी के गुण भुलाए नह जा सकते, फर भी आप
मेरी ाथना वीकार कर। (आभूषण नकालकर
दखाकर) अमा य! ये आभूषण कुमार ने अपने शरीर से
उतारकर भेजे ह। आप इ ह पहन ल।
रा स : आय जाज ल! मेरी ओर से कुमार से कहना क मने
उनके महान् गुण के कारण वामी के गुण भुला दए ह।
और कहना क हे े राजा! जब तक श ु- वनाशक
आपका यह सुवण सहासन सुगांग ासाद तक नह
प ंचा ं गा, तब तक परा महीन, श ु से परा जत,
उनका तर कार सहने वाले अपने इन अंग को त नक भी
नह सजाऊंगा।
कंचुक : यह स य है अमा य, क आप जैसे नेता के रहते ए
कुमार वजयी ह गे। ले कन यह उनके ेम का पहला
वहार है, इसे अव य वीकार कर।
रा स : आय, आपक बात भी कुमार क ही भां त टाली नह जा
सकती। अ छ बात है, म उनक आ ा मानता ।ं
कंचुक : (आभूषण पहनता है) आपका मंगल हो। अब म चलूं।
रा स : आय! अ भवादन वीकार कर।
[कंचुक का थान]
रा स : यंवदक! मालूम करो क इस समय मुझसे मलने ार
पर कौन खड़ा है।
यंवदक : जैसी आय क आ ा। (घूमकर, सपेरे को दे खकर) आय,
आप कौन ह?
सपेरा : भ ! म जीण वष नामक सपेरा ।ं अमा य रा स को
सांप का खेल दखाना चाहता ं।
यंवदक : जरा ठहरो। म उनसे पूछता ं। (रा स के पास जाकर)
सपेरा आपको खेल दखाना चाहता है।
रा स : (बा आंख फड़कने का अ भनय करके, वगत) सबसे
पहले सांप ही का दशन! ( कट) यंवदक! अभी मुझे
सांप का खेल दे खने क इ छा नह है। इसे तुम कुछ दे कर
चलता करो।
यंवदक : जैसी आय क आ ा। (घूमकर सपेरे के पास आकर)
भ ! अमा य तु हारा खेल बना दे खे ही स हो गए ह,
अब वे उसे नह दे खना चाहते।
सपेरा : भ ! तो मेरी ओर से उनसे क हए क म केवल सपेरा ही
नह , एक ज मजात क व भी ं। और य द आप मुझे
दशन नह करने दे सकते तो मेरे इस प को पढ़कर ही
स ह । (प दे ता है)
यंवदक : (प लेकर रा स के पास जाकर) अमा य! वह सपेरा
कहता है क म सपेरा ही नह , क व भी ।ं आप मुझे न
बुलाएं, पर मेरी क वता पढ़कर स ह ।
रा स : (प लेकर पढ़ता है)—
नज कौशल से मर कुसुम से
मधु नकालता है पीकर,
उस मधु से अ य के होते
काय स इस धरती पर!
रा स : ( वगत) इसका अथ तो यह है क कुसुमपुर क खबर
लाने वाला आपका गु तचर ।ं काय इतना अ धक है,
गु तचर भी अनेक ह। भूल-भूल जाता ।ं अरे हां, याद
आया। यह सपेरा बना आ तो कुसुमपुर से वराधगु त
आया होगा। ( कट) यंवदक! यह तो सुक व है, इसे
भीतर ले आ। इससे सुभा षत सुनना चा हए।
यंवदक : जैसी आय क आ ा। (सपेरे के पास जाकर) आइए
आय!
सपेरा : (भीतर जाकर सं कृत म वगत) अरे ये अमा य रा स
ह! इ ह क नी त- नपुणता और उ ोग से रा यल मी
अभी तक घबरा रही है। उसने अपने बाय कर-कमल को
च गु त मौय के गले म डाल तो दया है, पर अभी मुख
मोड़ रही है और दाय हाथ के कंधे से फसल जाने के
कारण अभी तक भयभीत-सी उससे गाढ़ आ लगन नह
कर पा रही है ( कट) जय! अमा य क जय!
रा क : (दे खकर) अरे वराध! (इतना कहते ही याद आने पर)
यंवदक! म इनके सांप को दे खकर मन बहलाता ं।
तुम घर के लोग को व ाम कराओ और अपने थान पर
जाओ।
यंवदक : जैसी आय क आ ा। (प रवार स हत थान)
रा स : म वराधगु त! लो, इस आसन पर बैठो।
वराधगु त : जैसी अमा य क आ ा। (बैठता है)
रा स : ( ःख से दे खकर) दे वपाद-प क सेवा करने वाल का
यह हाल है? (रोने लगता है)
वराधगु त : अमा य! शोक न कर। आप ज द ही हम पुरानी अव था
पर फर प ंचा दगे।
रा स : सखे! वराधगु त! मुझे सुनाओ, कुसुमपुर क बात कहो।
वराधगु त : अमा य! वहां क तो लंबी कथा है। आप आ ा द, कहां
से शु क ं ?
रा स : म ! च गु त के नगर- वेश के समय से। यह जानना
चाहता ं क हमने जो वष आ द दे ने वाले मनु य नयु
कए थे उ ह ने या कया?
वराधगु त : सु नए। कुसुमपुर को चाण य के प पा तय तथा लय
के उ ाल समु क तरह शक, यवन, करात, का बोज,
पारसीक और वा क आ द के नवा सय ने घेर रखा है!
रा स : (घबराहट के साथ श ख चकर) कौन मेरे रहते ए
कुसुमपुर को घेर सकता है? वरक! धनुधर को ाचीर
पर हर ओर खड़ा करो, श ु के हा थय को कुचल दे ने
वाले अपने हा थय को ार पर खड़ा कर दो। मरने और
जीने क च ता छोड़कर श ु- वनाश करने के इ छु क
पु य क त चाहने वाले मेरे साथ बाहर नकल।
वराधगु त : आवेश को छो ड़ए अमा य। म केवल वणन कर रहा ं।
रा स : (सांस भरकर) हाय! केवल समाचार है। यही तो ःख है।
मने तो समझा था क बस वही समय है। (श रखकर
आंसू-भरे नयन से) हा राजा न द! ऐसे समय पर आपक
रा स के त जो ी त थी वह याद आती है। हे राजा
न द! ‘जहां नीले मेघ क तरह हा थय क सेना चलती है
वहां रा स जाए। इन अ य त चपल जल क -सी
ती गामी तुरंग क सेना को रा स रोके। मेरी आ ा से
रा स पैदल को न कर द’—ऐसी अनेक आ ाएं दे कर
अ यंत नेह के कारण आप मुझे हजार प म दे खते थे।
हां वराधगु त, फर?
वराधगु त : तब चार तरफ से कुसुमपुर के घर जाने पर और
नगरवा सय पर घोर अ याचार होता दे खकर, सुरंग के
रा ते म पुरवा सय क सहायता से महाराज सवाथ स
को तपोवन भेज दया गया। वामी के चले जाने से
सै नक न ोग हो गए। उ ह ने कुछ दन के लए
जयजयकार रोक दया। जा के मन को दे खकर जब
आप न दरा य लौटा लाने क इ छा से भाग आए, तब
च गु त का वध करने को भेजी गई वषक या से जब
पवते र मारे गए…
रा स : सखे! दे खो कैसा आ य है! जैसे राधा के पु कण ने
अजुन का वध करने को श छोड़ी थी, वैसे ही मने भी
च गु त को मारने को वषक या भेजी थी। ले कन व णु
क भां त व णुगु त चाण य का क याण करने के लए
जैसे भगवान के व य घटो कच का उस श से वध हो
गया था, वैसे ही मेरी भेजी ए वषक या से पवत र क
मृ यु हो गई।
वराधगु त : अमा य! यह तो दै व का वे छाचार है। और कया या
जाए?
रा स : अ छा, फर?
वराधगु त : तब पता के वध से उ प भय से कुमार मलयकेतु
कुसुमपुर से चले आए और पवतक के भाई वैरोचक को
व ास दलाया गया। न द-भवन म च गु त के वेश
क घोषणा कर द गई। उस समय रा मा चाण य ने
कुसुमपुर के बंधक को बुलाया और कहा क
यो त षय के अनुसार आज ही आधी रात को च गु त
न द-भवन म वेश करगे, अतः पहले ही ार से भवन
को सजाना शु कर द। उस समय सू धार ने कहा क
महाराज च दगु त भवन म वेश करगे, यह पहले ही से
समझकर श पकार दा वमा ने सोने के बंदनवार आ द
लगाकर राजभवन के ार को सजा दया है। अब भीतर
क सजावट बाक है। तब चाण य ने संतु होकर इसका
अ भनंदन कया क दा वमा ने बना कहे ही महल सजा
दया है और कहा क दा वमा! तुम अपनी कुशलता का
शी ही फल पाओगे।
रा स : (उ े ग से) सखे! चाण य को संतोष कैसे हो गया? म तो
समझता ं, दा वमा ने गलती क । उसक बु , मोह से
भर गई। इतना अ धक राज ेम हो गया क उसने आ ा
क भी ती ा नह क ? इससे तो चाण य के मन म पूरा
स दे ह हो गया होगा। हां, फर या आ?
वराधगु त : तब ह यारे चाण य ने सभी श पय और पुरवा सय को
यह अवगत करा दया क उ चत ल न के अनुसार आधी
रात को च गु त का न द-भवन म वेश होगा। फर उसी
समय पवते र के भाई वैरोचक को च गु त के साथ
सहासन पर बठाकर आधी पृ वी के आधे रा य का
अ धकारी बना दया।
रा स : तो या उसने त ा- नवाह कया?
वराधगु त : हां। बलकुल!
रा स : ( वगत) न य ही उस अ यंत धूत ा ण ने पवते रवध
का कलंक मटाने और जा का व ास ा त करने के
लए यह चाल चली है। ( कट) हां, फर?
वराधगु त : फर आधी रात को च गु त भवन म वेश करेगा, यह
सबम स करके, वैरोचक का रा या भषेक कर दे ने
पर, वैरोचक को सु दर मो तय क ल ड़य से गुंथे व
पहनाए गए, उसे र नज टत मुकुट धारण कराया गया,
भीनी-भीनी गंध वाली माला के कारण उसका
व थल ऐसा श त लगने लगा क प र चत लोग भी
वैरोचक को पहचानने म भूल कर बैठे। चाण य क आ ा
से उसे च गु त क च लेखा नामक ह थनी पर,
च गु त के सेवक के साथ तेजी से दे व नंद के भवन क
ओर वेश करने भेजा गया। सू धार दा वमा ने उसे ही
च गु त समझकर उसी पर गराने के लए ार पर लगे
व को ठ क कर लया। अनुयायी बाहर ही क गए।
उस समय च गु त के महावत बबरक ने, जसे आपने
वहां नयु कया था, सोने क जंजीर वाली सोने क
य को इस इ छा से पकड़ लया क वह छपी ई
तलवार को सोने क यान से बाहर ख च सके!
रा स : दोन ने ही गलत जगह पर काम कया। फर?
वराधगु त : ह थनी को जब जांघ म चोट लगी तो वह सरी तरफ
भागने को ई। एकदम जो जंजीर खची तो ार गर पड़ा
और बबरक का नशाना भी चूक गया। वह गरे ार से
टकराकर मर गया। उधर दा वमा ने ार गर जाने से
अपनी मौत न त समझकर, ज द से ऊपरी ह से पर
चढ़कर लोहे क क ल को यं म घुमाकर ार को पूरा
गरा दया जससे ह थनी पर बैठा आ वैराचक मर गया।
रा स : हाय! दोन अ न एकसाथ हो गए। च गु त मरा नह ,
ब क मर गए वैरोचक और बबरक। (आवेग से, वगत)
वे दो नह मरे, दै व ने हम मारा है। ( कट) सू धार
दा वमा अब कहां है?
वराधगु त : वैरोचक के अनुया यय ने उसे प थर मार-मारकर मार
डाला।
रा स : (आंख म आंसू भरकर) अ त दा ण! आज हम परम
म दा वमा से भी बछु ड़ गए। तब जो वै मने वहां
नयु कया था उस वै अभयद ने या कया?
वराधगु त : सब कुछ अमा य!
रा स : ( स ता से) मारा गया रा मा च गु त!
वराधगु त : नह अमा य! भा य से बच गया।
रा स : ( ःख से) फर इतने स तु -से या कहते हो क सब
कुछ कया।
वराधगु त : अमा य! उसने च गु त के लए एक चूण बनाया।
चाण य ने सोने के पा म रखकर उसक परी ा क ।
उसका रंग बदल गया तब उसने च गु त से कहा :
“वृषल! यह वषैली औष ध है, मत लेना।”
रा स : वह बड़ा ा ण है। अब वह वै कहां है?
वराधगु त : उसे वही दवा पला द और वह मार डाला गया।
रा स : ( ःख से) हाय! एक महान् वै ा नक उठ गया! भ !
च गु त के सोने के को म अ धकारी मोदक को
रखा था न? उसका या आ?
वराधगु त : वनाश।
रा स : (उ े ग से) वह कैसे?
वराधगु त : आपने उस मूख को जो धन दया था, वह उसने बुरी तरह
खच करना शु कर दया। चाण य ने पूछा क तु हारे
पास इतना धन कहां से आया? उ टे -सीधे जवाब दे गया,
और पकड़ा गया और तब उसे चाण य क आ ा से बड़ी
ही यातनाएं दे कर मार डाला गया।
रा स : (घबराकर) हाय! भा य से हम यहां भी मारे गए। अ छा,
वह जो राजा के महल म नीचे क सुरंग म सोते ए
च गु त पर हमला करने को बीभ सक आ द को नयु
कया था, उनका या आ?
वराधगु त : अमा य, उनका समाचार बड़ा डरावना है।
रा स : (आवेश से) या भयानक बात है। या चाण य को
उनका पता चल गया?
वराधगु त : जी हां।
रा स : कैसे?
वराधगु त : च गु त से पहले चाण य ने शयन-क म वेश करते
ही चार ओर दे खा। वहां द वार के छे द म से मुंह म भात
के टु कड़े लए च टयां नकल रही थ ? इसके नीचे पका
चावल है तो अव य आदमी ह गे, यह सोचकर चाण य ने
उस क को ही जलवा दया। तब धुआं भर गया और
पहले से ही दरवाजे आ द ब द कए बैठे बीभ सक आ द
मारे गए।
रा स : (आंसू-भरे नयन से) म ! दे खो। च गु त के भा य क
बलता से हमारे सब आदमी मारे गए। (सोचकर चता
से) म ! रा मा च गु त का भा य ऐसा बल है! जो
वषक या मने उसे मारने भेजी थी, वह दै वयोग से
पवते र क मृ यु का कारण हो गई, जो आधे रा य का
भागी थी। जनको वष आ द दे ने को नयु कया था, वे
उ ह यु य से मार दए गए। मेरी सारी चाल च गु त
का क याण करने वाली ही बन ग ।
वराधगु त : पर शु आ काम तो बीच म नह छोड़ना चा हए। नीच
तो काम का ारंभ ही नह करते, म यम ेणी के लोग
व न आने पर उसे छोड़ दे ते ह, पर आप जैसे उ म ेणी
के पु ष तो वरोध के बार-बार आने पर भी काम अधूरा
नह छोड़ते! या शेषनाग को पृ वी धारण करने म क
नह होता? फर भी वे पृ वी को सर से फक तो नह
दे त?
े या सूय को इतना च कर लगाने म थकान नह
आती? फर भी वे कब चुप बैठते ह? े जन वीकार
कए ए काय को छोड़ने म ल जा का अनुभव करते ह।
य क जो काम उठा लया, उसे पूरा करना ही स जन
का कुल-पर परागत कत है।
रा स : म ! यह तो खैर है ही। कौन छोड़ता है! हां, आगे या
आ?
वराधगु त : तब से चाण य ने च गु त क शरीर-र ा म अ य धक
सतक होकर आपके गु तचर को अनथ क जड़
समझकर कुसुमपुर म पकड़ लया।
रा स : (घबराकर) म ! कौन-कौन पकड़ा गया? बताओ। मुझे
बताओ।
वराधगु त : अमा य! सबसे पहले तो जीव स णपक को
अपमा नत करके नगर से नकाल दया गया।
रा स : ( वगत) खैर, यह तो स है। वह तो वरागी था, कह
कसी थान से नकाले जाने पर उसे पीड़ा नह होगी।
( कट) पर तु म ! उसका अपराध या बताया गया?
वराधगु त : दोष यह लगाया गया क इसी ने रा स क नयु
क ई वषक या से पवते र को मरवा दया।
रा स : ( वगत) ध य! कौ ट य! ध य! अपने पर से कलंक
हटाकर हम पर थोप दया! आधा रा य पाने के
अ धकारी को भी न कर दया। तुम ध य हो! तु हारी
नी त का एक ही बीज ऐसा फल दे ता है। ( कट) हां,
फर।
वराधगु त : फर शकटदास पर यह दोष लगाया गया क इसने
च गु त को मारने को दा वमा आ द को नयु कया
था। उसे इसी लए सूली दे द गई।
रा स : (रोकर) हाय! म शकटदास! तु हारी ऐसी मौत तो ब त
ही अनु चत ई। पर तुम वामी के लए मरे हो, फर या
शोक क ं ! शोचनीय तो हम ह, जो न दवंश के वन हो
जाने पर भी जी वत रहना चाहते ह!
वराधगु त : पर तु आप वामी का लाभ ही तो कर रहे ह!
रा स : म ! मुझ-सा कृत न कौन होगा जो परलोकवासी
महाराज का अनुगमन न कर सका। अब जीना तो नह
चाहता पर इस लए जी रहा ं क उनका काय पूरा हो।
वराधगु त : हा अमा य! य न कह। वामी का काय हो इसी लए जीते
ह।
रा स : म ! अब और म के बारे म कहो, सब सुनने को त पर
ं।
वराधगु त : जब यह समाचार मला तब च दनदास ने आपका प रवार
सरी जगह भेज दया।
रा स : यह तो च दनदास ने उस ू र चाण य के व काय कर
दया।
वराधगु त : य क म से ोह अनु चत होता है अमा य!
रा स : अ छा, तब?
वराधगु त : जब मांगने पर भी उसने आपका प रवार उसके हवाले न
कया तो उस ु चाण य ने…
रा स : (उ े ग से) उसे मार डाला?
वराधगु त : अमा य! मारा नह । उसक संप छ नकर ी-पु
स हत बंद गृह म डाल दया।
रा स : यह भी या ऐसे खुश होकर कहने क बात है क रा स
का प रवार सरी जगह भेज दया! अरे य कहो क
उसने तो रा स को बांध लया।
[पदा हटाकर एक पु ष का वेश]
पु ष : आय क जय! आय! शकटदास ार पर उप थत ह।
रा स : यंवदक! या यह सच है?
यंवदक : या म अमा य से झूठ कह सकता ं?
रा स : सखे! वराधगु त! यह या बात है?
वराधगु त : हो सकता है अमा य! दै व भा यशाली क र ा करता है।
रा स : यंवदक! यह बात है तो दे र य करता है? ज द से
उ ह ले आ।
यंवदक : जैसी अमा य क आ ा। ( थान)
[ स ाथक पीछे है, आगे शकटदास— वेश करते ह।]
शकटदास : (दे खकर, वगत) पृ वी म मौय के त त पद क तरह
गाड़ी ई थर सूली को दे खकर दय को वद ण करने
वाली च गु त क रा यल मी क भां त उस व यमाला
को पहनकर तथा वामी क मृ यु के कारण कान को
फाड़ने वाले नगाड़े क आवाज सुनकर भी न जाने य
अभी तक मेरा दय नह फट गया! (रा स को दे खकर
सहष) ये अमा य रा स बैठे ह। न द के ीण होने पर भी
इनक भ ीण नह ई। पृ वी के सारे वा मभ म
यही परम े ह। (पास जाकर) अमा य क जय!
रा स : (दे खकर सहष) सखे शकटदास! चाण य के हाथ पकड़े
जाने पर भी तुम बचकर आ गए हो, आओ, मेरे गले से
लग जाओ!
[गले मलते ह।]
रा स : (आ लगन कर) यहां बैठो।
शकटदास : जैसी अमा य क आ ा। (बैठता है।)
रा स : म शकटदास आ खर ऐसी हष क बात ई कैसे?
शकटदास : ( स ाथक को दखाकर) य म स ाथक ने सूली
दे ने वाले व धक को भगाकर मुझे बचाया और वे मुझे
यहां लाए ह।
रा स : ( स ता से) भ स ाथक! जो तुमने कया है उसके
सामने तो ये पदाथ कुछ भी नह , फर भी वीकार करो।
(अपने शरीर के आभूषण उतारकर दे ता है।)
स ाथक : (लेकर पांव छू कर, वगत) यही आय का उपदे श था। यही
क ं गा। ( कट) अमा य! म यहां नया-नया ही आया ं,
कसी को जानता नह क इसे उसके पास रखकर
न त हो जाऊं। इस लए आप इस अंगूठ से इस पर
मु ा लगाकर अपने ही भ डार म रख। जब आव यकता
होगी, ले लूंगा।
रा स : अ छ बात है। यही सही। यही करो शकटदास।
शकटदास : जैसी आपक आ ा! (मु ा दे खकर धीरे से) इस पर तो
आपका नाम लखा है।
रा स : (दे खकर ःख से सोचते ए, वगत) सचमुच! घर से
आते समय ा णी ने अपनी उ क ठा को सां वना दे ने
को मेरी उंगली से यह अंगूठ ले ली थी। पर यह इसके
पास कैसे आई? ( कट) भ स ाथक! यह अंगूठ तु ह
कहां मली?
स ाथक : अमा य! कुसुमपुर म च दनदास नाम का कोई म णकार
है, उसके ार पर मुझे पड़ी मली थी।
रा स : हो सकता है।
स ाथक : या हो सकता है अमा य?
रा स : यही क बना ध नक के घर भला ऐसी व तु और कहां
मल सकती है?
शकटदास : म स ाथक! यह मु ा अमा य के नाम क है। अमा य
तु ह काफ धन दगे। इस लए यह इ ह ही दे दो।
स ाथक : आय! यह तो मेरे लए बड़ी स ता क बात है क
अमा य ही इसे ले रहे ह। (मु ा दे ता है।)
रा स : म शकटदास! अब इसी मु ा से सब काम-काज चलाया
करो।
शकटदास : अमा य! म कुछ नवेदन करना चाहता ।ं
रा स : न त होकर कहो।
स ाथक : यह तो अमा य जानते ह क चाण य का अ य
करके अब पाट लपु म वेश करना मेरे लए स भव
नह रहा। इसी से अब म आपके चरण क सेवा करता
आ यह रहना चाहता ं।
रा स : भ ! यह तो बड़ी स ता क बात है। तु हारी बात
सुनकर तो मुझे कहने क भी ज रत नह रही। यह रहो।
स ाथक : (सहष) अनुगृहीत आ।
रा स : म शकटदास! स ाथक के आराम का बंध करो।
शकटदास : जैसी अमा य क आ ा।
[ स ाथक के साथ थान]
रा स : म वराधगु त! अब कुसुमपुर क बाक बात भी सुना
डालो। या कुसुमपुर क जा च गु त से हमारे संघष
को चाहती है?
वराधगु त : अमा य! य नह चाहती? वह तो अपने राजा और मं ी
के पीछे चलती है।
रा स : म , इसका कारण?
वराधगु त : अमा य! बात यह है क मलयकेतु के नकल जाने से
च गु त ने चाण य को चढ़ा दया है। चाण य भी अपने
को वजयी समझने के कारण उसक आ ा का
उ लंघन करके उसको खी कर रहा है। यह तो म जानता
ं।
रा स : ( स ता से) सखे वराधगु त! तो तुम फर सपेरे के वेश
म कुसुमपुर लौट जाओ। वहां मेरा म तनकलश रहता
है। उससे मेरी ओर से कहना क जब चाण य राजा ा
का उ लंघन कया करे तब तुम च गु त क उ ेजना-भरे
गीत से तु त कया करना। फर जो संदेश हो, करभक
के ारा प ंचाना मेरे पास।
वराधगु त : जैसी अमा य क आ ा। ( थान)
पु ष : ( वेश कर) अमा य! शकटदास नवेदन करते ह क तीन
आभूषण बकने को आए ह। आप उ ह दे ख ल!
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! बड़े क मती ह। ( कट) भ !
शकटदास से कहो क ापा रय को पूरे दाम चुकाकर
खरीद ल।
पु ष : जैसी अमा य क आ ा। ( थान)
रा स : ( वगत) तो म भी अब करभक को कुसुमपुर भेज ं ।
या रा मा चाण य और च गु त म फूट पड़ सकेगी?
य नह । सब काम ठ क होगा। च गु त अपने ताप से
राजा का शासक है और चाण य को इसी का गव है
क यह मेरी नी त और सहायता से महाराजा आ है।
दोन का काम तो हो चुका। एक को रा य मला; सरे
क त ा पूण ई। अब अपनी-अपनी अह म यता ही
दोन को अलग करके रहेगी।
[ थान]
( सरा अंक समा त)

1. मूल म पहले वह जनभाषा म बोलता है, अब सं कृत म शु करता है।


तीसरा अंक

[कंचुक का वेश]
कंचुक : अरी तृ णे! जन इ य क सहायता से तूने इतनी
त ा पाई थी, अब वे ही असमथ हो गई ह। तेरे
आ ाकारी अंग अब श थल हो गए ह। जब बुढ़ापे ने तेरे
सर पर भी पांव धर दया, तब तू य थ मतवाली हो
रही है! (घूमकर, आकाश दे खकर) अरे सुगांग ासाद म
नयु पु षो! वनामध य दे व च गु त क आ ा है क
वे कुसुमपुर को कौमुद -महो सव के समय रमणीयतर
दे खना चाहते ह। इस लए उनके दशन के यो य सुगांग
ासाद का ऊपर का भाग सजाया जाए। अरे, दे र य
कर रहे हो? (आकाश क ओर दे ख-सुनकर) या कहा?
आय! या दे व च गु त कौमुद -महो सव को रोक दया
जाना नह जानते? अरे अभागो! तु ह इस सबसे या?
य अपनी जान भारी कए हो? पूणच क करण
जैसे चंवर , माला से सजे त भ और धूपगं धत
आवास से सब कुछ सु दर बना दो। ब त दन से
सहांसन का बोझ ढोने से थक ई धरती को सुगं धत
फूल और च दन के जल से स चो! (आकाश क ओर
दे खकर) या कहा, म शी ता कर रहा ? ं अरे भ ो!
ज द करो। दे व च गु त आने ही वाले ह। वषम पथ म
भी अ वचल रहते ए, अनेक म य के साथ दे व न द ने
जस महान् पृ वी का भार धारण कया था, उसी को नई
अव था म धारण करके दे व च गु त खेद का अनुभव तो
करते ह, पर तु ःखी नह होते।
[नेप य से-‘इधर दे व! इस ओर!’]
[राजा और तहारी का वेश]
राजा : ( वगत) जा क र ा म लगे राजा के लए तो यह रा य
असल म अस तोष का थान है। वह सदा सर के काम
लगा रहता है, उसको कोई वत ता नह रहती। और जो
सर का काम नह करता, वह असल म राजा ही नह
है। और अपने से यादा जो और क च ता करता है,
वह राजा वत कहां है, परत मनु य भी या सुख
का अनुभव कर सकता है? थर च रहने वाल के
लए भी रा यल मी क आराधना क ठन है। न यह
अ य त कठोर- दय राजा के पास रहती है, न अपमान के
डर से कमजोर राजा के पास ही। यह मूख से े ष
करती है और अ य त प डत राजा से भी इसे नेह
नह है। शूरवीर से अ धक डरती है और कमज़ोर क
हंसी उड़ाती है। मौका पाकर बदलने वाली वे या क
भां त इस रा य ी का सेवन अ य त क ठनाई से होता है।
और अब आय चाण य का उपदे श है क बनावट लड़ाई
करके म कुछ दन उनसे वत वहार क ं । मने तो
इसे पाप समझकर वीकार कया है। म तो नर तर आय
क आ ा से प व बु रहता ं, भले ही परत सही।
अ छे काम करने वाले श य को गु नह रोकते। पर
जब वह म ती म रा ते से गुजर रहे होते ह तो गु अंकुश
बनकर उसे राह पर लाते ह। हम वनयशील ह तभी
वत ह। यही कारण है क हम वैसी वत ता नह
चाहते । ( कट) आय वैहीनरे! सुगांग ासाद का माग
दखाओ।
कंचुक : महाराज, इधर से आएँ।
[राजा घूमता है।]
कंचुक : (घूमकर) यह सुगांग ासाद है आय! धीरे-धीरे आराम-
आराम से इसम चढ़ चल।
राजा : (चढ़ते ए दशाएं दे खकर) आह! शरत्काल म दशाएं
कैसी सु दर हो गई ह। रेतीली भू म जैसे ेत मेघ से
दशाएं कतनी व छ, और शा त लगती ह। सारस क
कार से गूंजती रात म तार से भरी दस दशाएं आकाश
म नद जैसी बही जा रही ह। अब उ छृ ं खल जल- वाह
वाभा वक हो गए ह। धान लद गए ह और उ वष क
भां त शरद् ऋतु मोर का गव मटाती जगत् को मानो
वनय का पाठ पढ़ा रही है। जैसे र त-कथा म चतुर ती
य के अपराध से कु पत एवं च ता से बल ना यका
को माग बताकर यतम के पास पहंचा दे ती है, वैसे ही
अ य त वषा से म लन और अब ीण हो गई-सी गंगा को
यह शरद् ऋतु स धु के पास ले जा रही है। (चार ओर
दे खकर) अरे! या कौमुद -महो सव आर भ नह आ?
कंचुक : हां दे व! दे व क आ ा से घोषणा तो कर द गई थी।
राजा : आय! तो या मेरी आ ा का नाग रक ने पालन नह
कया?
कंचुक : (कान पर हाथ रखकर) दे व! पाप शा त हो! पाप शा त
हो! पृ वी पर आपका अखंड शासन है। नगर- नवासी
या उ लंघन करगे!
राजा : आय वैहीनरे! तो कुसुमपुर म कौमुद -महो सव य नह
हो रहा है, बात म कुशल धूत से अनुगत वे याएं सघन
जंघा के भार से म द-म द चलती ई माग क शोभा
कहां बढ़ा रही ह? और अपने-अपने वैभव क त पधा
करने वाले धनी लोग अपनी यतमा के साथ कौमुद -
महो सव य नह मना रहे ह?
कंचुक : नह कर रहे दे व!
राजा : पर य ?
कंचुक : दे व बात यह है…
राजा : प कहो आय!
कंचुक : दे व, कौमुद -महो सव का नषेष कया गया है।
राजा : ( ोध से) कसने कया?
कंचुक : दे व, इससे अ धक कहने क मुझम साम य नह है।
राजा : तो या कह आचाय चाण य ही ने जा के दे खने यो य
इस मनोहर उ सव को तो नह रोक दया।
कंचुक : दे व के शासन का उ लंघन और कौन जी वत रहने क
इ छा करने वाला कर सकता है?
राजा : शोणो रे! म बैठना चाहता ँ।
तहार : दे व! यह आसन है। बैठ दे व!
राजा : (बैठकर) आय वैहीनरे! म आय चाण य को दे खना
चाहता ।ं
कंचुक : जैसी आय क आ ा। ( थान)
[अपने घर म आसन पर बैठे ए ोध म और चता म
चाण य का वेश।]
चाण य : ( वगत) अरे रा मा रा स! मुझसे य पधा करता है?
जैसे अपमा नत चाण य ने कुसुमपुर से ु सप क
भां त बाहर रहकर ही न द का वनाश करके मौय को
नृप त बना दया, वैसे ही रा स भी अपने बारे म सोच
रहा है क वह बाहर रहकर ही च गु त क रा य ी को
छ न लेगा। (आकाश म य क भां त दे खकर) रा स!
रा स! इस कर काय म हाथ लगाने से क जाओ।
राजा न द तो बुरे म य के ारा राजकाज संभाले जाने
के कारण अहंकारी हो गया था। च गु त वैसा कहां है?
और न तू ही चाण य है। मेरी बराबरी करना ही तु हारी
सबसे बड़ी श ुता है। (सोचकर) मुझे इस बारे म अ धक
खेद नह करना चा हए। मेरे गु तचर पवते र के पु
मलयकेतु को बस म कर ही लगे। स ाथक आ द भी
काम म लगे ह। इस समय कसी बहाने से च गु त से
कलह करके भेद-नी त के कौशल से रा स को श ु
मलयकेतु से अलग कर ं ।
कंचुक : ( वेश कर) सेवा का ही नाम क है। पहले तो राजा से
डरो, फर म ी से, फर राजा के य म से और तब
राजा के ासाद म साद- ा त वट से। उदरपू त के
लए जहां द नता से मुंह ऊपर उठाकर गड़ गड़ाकर
बोलना पड़ता है, ऐसी तु छ बना दे ने वाली सेवा को
व ान ने ठ क ही ‘कु े क जी वका’ कहा है। (घूमकर,
दे खकर) आय चाण य का ही तो घर है। म वेश क ं ।
( वेश करके दे खकर) अहा! राजा धराज के म ी के घर
का कैसा वैभव है! एक ओर क ड को फोड़ने के लए
प थर का टु कड़ा पड़ा है और इधर यह चा रय से
लाई ई कुशा का ढे र है। सूखती स मधा से दबे ए
छ जे वाला, टू ट -फूट द वार से सुशो भत कैसा घर है!
ठ क है। तभी तो यह दे व च गु त को वृषल कहते ह।
स यवाद भी जब द न बनकर नर तर गुणहीन राजा क
तु त करते ह, तब वे तृ णा के ही मारे ए होते ह। पर जो
नरीह- नः पृह ह, उ ह तो वामी भी तनके जैसा दखाई
पड़ता है। (दे खकर, भय से) आय चाण य बैठे ह। इ ह ने
म य को तर कृत कर दया। एक ही समय न द का
अ त और च गु त का उदय कर दया। ये तो अपने तेज
से उस सह र म सूय को भी परा जत कर रहे ह, जो
लोकालोक पवत को तपाकर म से शीत और उ णता
दान करता है।1 (घुटन के बल भू म पर बैठकर णाम
करके) आय क जय!
चाण य : (दे खकर) वैहीनरे! कैसे आए?
कंचुक : आय! शी तर णाम करते ए राजा क मुकुट-म ण
क भा से पीले सुनहले-से चरण वाले वनाध य, दे व
च गु त सर झुकाकर नवेदन करते ह क य द
आव यक काय म कसी कार क बाधा न हो तो आय
को दे खना चाहता ं।
चाण य : वृषल मुझे दे खना चाहता है? वैहीनरे! कह मने जो
कौमुद -महो सव का नषेध कया है, वह वृषल ने सुन तो
नह लया?
कंचुक : हां आय! सुन लया है।
चाण य : ( ोध से) कसने कहा?
कंचुक : (डरकर) आय! स ह ! वयं सुगांग ासाद के शखर
पर गए दे व ने ही दे खा क कुसुमपुर म कोई उ सव नह
हो रहा था।
चाण य : अब म समझा। तु ह लोग ने मेरी अनुप था त म वृषल
को भड़काकर ु कर दया है।
[कंचुक भयभीत-सा सर झुकाए खड़ा रहता है।]
चाण य : ओह! राजा के प रजन को चाण य से इतना े ष है? हां,
अब वृषल कहां है?
कंचुक : (भय से) आय! सुगांग ासाद म आए ए दे व ने ही मुझे
आय के चरण म भेजा है।
चाण य : (उठकर) कंचुक ! चलो, ासाद चलो।
कंचुक : च लए आय।
[घूमते ह।]
कंचुक : ली जए सुगांग ासाद आ गया। आय ऊपर चढ़-आराम
से।
चाण य : (चढ़कर, स ता से दे खकर, वगत) ओह! सहासन पर
वृषल बैठा है। ध य! ध य! जनका वैभव कुबेर को भी
अपमा नत करता था, उन न द से मु यह सहासन
राजराज वृषल जैसे यो य राजा से सुशो भत है। यह सब
मुझे अ य त सुख दे रहा है। (पास जाकर) वृषल क
जय!
राजा : ( सहासन से उठकर चाण य के पांव पकड़कर) आय!
च गु त णाम करता है।
चाण य : (हाथ पकड़कर) उठो व स! उठो। जा वी क धारा से
शीतल हमालय से लेकर रंग- बरगी र न भा से शो भत
द ण समु तक के राजा, भयभीत और नत शर-से
तु हारे चरण के नख को अपने र नज टत मुकुट क
म ण- भात से सदै व सु दर बनाते रह।
राजा : आय के साद के ताप से इसका अनुभव ा त करता
ं। बैठ आय।]
[दोन यथायो य आसन पर बैठते ह।]
चाण य : वृषल! हम य बुलाया गया है?
राजा : आय के दशन से अपने को अनुगृहीत करने।
चाण य : (मु कराकर) इस न ता को रहने दो वृषल! अ धकारी
कायक ा को वामी थ ही नह बुलाते, योजन
बताओ।
राजा : आय! आपने कौमुद -महो सव रोकने म या फल दे खा
है?
चाण य : (मु कराकर) तो वृषल ने हम ताना मारने को बुलाया है?
राजा : नही आय! उपाल भ को नह ।
चाण य : तो फर?
राजा : नवेदन करने।
चाण य : वृषल! य द यही बात है तो श य गु क आ ा का
पालन करे।
राजा : इसम या स दे ह है आय! पर तु कभी आय कोई बात
बना कोई कारण नह करते, यही पूछता ं।
चाण य : वृषल! ठ क समझ गए। व म भी चाण य कोई बात
थ नह करता।
राजा : तो आय! वह योजन मुझे बताएं। इ छा पूछने क ेरणा
दे ती है।
चाण य : वृषल! सुनो। अथशा कार ने तीन कार क स य
का वणन कया है—राजा के अधीन रहने वाली, म ी के
अधीन रहने वाली और दोन के अधीन रहने वाली। यह
म ी के अधीन रहने वाली स है, इससे तु ह या
लाभ होगा? हमारा काम है, हम नयु ह, हम ही जानते
ह।
[राजा ोध से मुंह फेर लेता है। उस समय नेप य से दो
वैता लक क वता सुनाते ह।]

एक वैता लक :
कौमुद -सी ेत मु ड क गले म माल पहने,
कांस कुसुम -से गगन को भ म-सी उ वल बनाती,
चं मा क र मय से मेघ-से नीले गहनतम,
गज-अ जन को रंग रही-सी, जगमगाती,
अ हास- नरत सदा शव-सी शरद् ऋतु यह सुहानी,
राजहंस से सुशो भत, अब करे पीड़ा अजानी।
र कर दे लेश ये सारे तु हारे पशा ल न!
नमला क याण भर दे , सुख नरत भर दे सुहा स न!
और
जो फन पर शीश धर कर सो रहे थे,
वह सु व तृत शेषश या यागने को,
खोलते त काल अपने य नयन ह,
व णु अपनी न द से उठ जागने को,
अलस अंगड़ाई सजल जसको गई कर
र नम णय क भा ने च धया द जो न मत कर
वह ह र क करे र ा तु हारी
है यही शुभ कामना मन म हमारी।

सरा वैता लक :
वयं वधाता ने ही जग म
कसी महत् अ नवचनीय रे-
कारण से नमाण कया है,
हे नरे ! जय ाघनीय रे
तुम मद गज यूथ को करते,
वश म, सतत परा जत करते,
सावभौम शासक महान् हो
वीर म नर-पुंगव लगते!
अतुल परा म फैल रहा है
सबपर छाया आ ांत रे,
कौन सह क दाड़ उखाड़े
कौन हो उठे भला ांत रे!
तुम न सहोगे नज आ ा का
उ लंघन हे श ु वनाशी!
सदा रहे यह जयमय वैभव,
ग रमा रहे सदा बन दासी!
और
जाने कतने ही शरीर पर
अलंकार धारण करते ह,
पर या आभूषण-धारण से
हर कोई वामी बनता है?
तुम जैसे म हमाव त वीर ही
अपनी ग रमा से रहते ह—
जनका श द न टले एक भी
उनको जग वामी कहता है।
चाण य : (सुनकर वगत) ारंभ म तो दे वता- वशेष क तु त
करके शरद् ऋतु का वणन करते ए एक आशीवाद था।
पर तु सरे ने या कहा, समझ म ठ क नह बैठता।
(सोचकर) ओह! समझा! यह रा स का ही योग है। अरे
रा मा रा स! म तुझे दे ख रहा ।ं कौ ट य जाग क है।
राजा : आय वैहीनरे! इन वैता लक को एक लाख सुवण1
दलवा दो।
कंचुक : जैसी दे व क आ ा।
[उठकर चलता है।]
चाण य : ( ोध से) वैहीनरे! ठहर! क जा! वृषल, इस अनु चत
थान म इतना धन य य कर रहे हो?
राजा : ऐसे जो हर तरह आप मेरी इ छा म कावट डालगे तो
यह मेरे लए रा य या है, ब धन है!
चाण य : वृषल! जो राजा वतं नह होते उनम ये दोष होते ह।
य द तुम सहन नह करते तो वयं अपना रा य चलाओ।
राजा : म वयं अपना काम कर लूंगा।
चाण य : ब त अ छा है हमारे लए! हम भी अपने काम म लगगे।
राजा : यही बात है तो मुझे कौमुद -महो सव रोकने का कारण
बता दया जाए।
चाण य : और म भी यह सुनना चाहता ं वृषल! क उसे मनाने से
या लाभ था?
राजा : सबसे पहले तो मेरी आ ा का पालन था।
चाण य : उसीका उ लंघन करना तो मेरा सबसे पहला योजन था
वृषल! सुनना चाहते हो य ? तमाल क नई क पल के-
से काले कनारे वाले और अ य त भयानक मगरम छ से
उठाई ई तरंग से भरे, चार समु के पार से आए ए
राजागण माला क तरह तु हारी आ ा को जो सर पर
धारण कया करते ह, वह आ ा भी मेरे ही कारण तु हारे
इस वा म व को थत कए ए है।
राजा : और सरा या है?
चाण य : वह भी कहता ।ं
राजा : क हए।
चाण य : शोणो रे! शोणो रे! मेरी आ ा से अचलद काय थ से
कहो क उन भ भट आ द का लखा प दे , जो च गु त
से नेह न रखकर मलयकेतु-आ त हो गए ह।
तहारी : जैसी आय क आ ा। ( थान, फर वेश कर) आय!
यह रहा प ।
चाण य : (लेकर) वृषल! सुनो।
राजा : मेरा यान लगा है।
चाण य : (पढ़ता है) “क याण हो! वनामध य दे व च गु त के
साथ उ थान करने वाले वे लोग जो नगर से भागकर अब
मलयकेतु के आ त हो गए ह, यह उ ह धान पु ष
का माणप है। इसम गजा य भ भट, अ ा य
पु षद , धान ारपाल च भानु का भांजा हगुरात,
दे व का वजन बलगु त, दे व क बा याव था का सेवक
राजसेन, सेनानायक सहबल का अनुज भागुरायण,
मालवराज का पु लो हता और यगण म मु यतम
वजयवमा ह। ( वगत) हम दे व का काय ही कर रहे है।”
( कट) यही प है।
राजा : आय! इन सबको मुझसे अनुराग य नह रहा, यही
जानना चाहता ं।
चाण य : सुनो वृषल! ये जो गजा य भ भट और अ ा य
पु षद थे, ये दोन ी, म और मृगया म लगे रहने के
कारण हाथी और घोड़ क ठ क से दे खभाल नह करते
थे, तभी मने इ ह पद युत कर दया। जी वका न रहने पर
ये लोग भाग गए और मलयकेतु के यहां जाकर इ ह
काम म लग गए। ये जो हगुरात और बलगु त ह, अ य त
लोभी ह और हमारे दए धन को कम समझकर और यह
सोचकर क वहां यादा मलेगा, मलयकेतु से जा मले।
और तु हारा बचपन का सेवक राजसेन तो इस लए भाग
गया क उसे यह शंका हो गई क तु हारे अनु ह से जो
उसे आव यकता से अ धक हाथी, घोड़े, कोष मले थे, वे
कह छ न न लए जाएं। सेनाप त सहबल का अनुज
भागुरायण पवतक का म था। उसी ने मलयकेतु को
एकांत म डराया था क चाण य ने ही उसके पता
पवते र को मारा। उसी के कारण मलयकेतु भाग गया।
जब तु हारे वरोधी च दनदास आ द पकड़े गए तब उसे
डर हो गया क कह उसका दोष कट न हो जाए। वह
भी मलयकेतु के आ य म चला गया। मलयकेतु ने उसे
अपना जीवन-र क समझकर, कृत ता दखाकर, अपना
म ी बना लया। लो हता और वजय वमा अ य त
अहंकारी थे। जो धन तुमने उनके स ब धय को दया
उसे वे न सहकर उधर चले गए। यही है न इन सबके
वैरा य का कारण?
राजा : क तु आय, जब आप सबक उदासीनता का कारण
जानते थे तब आपने उसका नराकरण करने का य न
य नह कया?
चाण य : य क इसक आव यकता नह थी। यह उ चत नह था।
राजा : या असाम य के कारण? या कोई और बात थी?
चाण य : असाम य कैसी? सबका कारण था।
राजा : पूछ सकता ं?
चाण य : वृषल! सुनो और समझो।
राजा : दोन काम कर रहा ं, आय! क हए।
चाण य : वृषल! जब जा म अनुराग नह रहता तो उसको साधने
के दो तरीके होते ह-अनु ह या न ह। या दया का अथ
था क म भ भट और पु षद को फर उनके पद पर
नयु कर दे ता और वे सनी अ धकार पाकर सारे
रा य के हाथी-घोड़ को न कर डालते? सारा रा य
पाकर भी जो संतु नह होते ऐसे लोभी हगुरात और
बलगु त पर म दया करता? धन-जीवन के नाश-भय से
चंचल राजसेन और भागुरायण पर दया कैसे क जाती,
उ ह ने अवसर ही कब दया? और जो अपने स ब धय
के धन को न सह सके उन अंहकारी लो हता और
वजय वमा से अनु ह कैसे कया जाता? इस लए मने
न ह अपनाया। पर अभी-अभी नंद का वैभव ा त
करने वाले हम लोग य द धान सहायक पु ष को कठोर
द ड से पी ड़त करते तो नंद वंश म अभी तक नेह रखने
वाली जा हमारा वरोध करती। इस लए मने न ह भी
छोड़ दया। इस समय हमारे सेवक को आ य दे ने वाला,
पता क मृ यु से ु मलयकेतु, रा स क नी त से
े रत होकर, वशाल ले छ सेना के साथ हम पर
आ मण करने को आने वाला है। यह पु षाथ का समय
है या उ सव मनाने का? जब ग क तैयारी आव यक हो,
तब कौमुद महो सव से या लाभ होगा? इसी लए मने
इसका नषेध कया।
राजा : आय! इस बारे म तो अभी ब त कुछ पूछने यो य है।
चाण य : वृषल! व त होकर पूछो। मुझे भी इस बारे म ब त
कुछ कहना है।
राजा : तो कह! म पूछता ं।
चाण य : अ छा, म भी कहता ं।
राजा : जो हमारी हा न क जड़ है, उस मलयकेतु को भागते
समय य उपे ा करके छोड़ दया गया?
चाण य : वृषल! य द उपे ा न क जाती तो दो ही तरीके थे। या तो
उसे पकड़ा जाता, या उस पर दया क जाती। दया करने
से तो पहले से त ा कया आ आधा रा य दे ना
पड़ता। और द ड म हम यह कलंक भी वीकार करना
ही पड़ता क हम ने पवतक को कृत नतापूवक मरवा
डाला। और त ा कया आ आधा रा य दे कर भी तो
यही होता क पवतक क ह या केवल कृत नता-मा ही
फ लत होती। इसी लए मने भागते ए मलयकेतु क
उपे ा कर द ।
राजा : यह है उ र आपका? ले कन इसी नगर म रहते रा स क
उपे ा य क ? इसके लए आपके पास या उ र है?
चाण य : रा स आपने वामी का ब त ही भ था। वह ब त
दन से अमा य था। न द क शीलपरायण जा को
उसपर व ास था। वह बु , उ साह, सहायक और
कोषबल से इसी नगर म रहता आ एक भयानक
आंत रक व ोह फैला दे ता। र रहने पर वह बाहर से
ोध उ प अव य करेगा, पर उसका तकार असा य
नह होगा, यही सोचकर मने उसे भी भागते दे खकर
उपे ा कर द ।
राजा : जब वह यह था तभी य न उपाय से उसे वश म कर
लया गया?
चाण य : यह कैसे स भव था! उपाय से ही तो हमने उस छाती म
गड़े शूल को र कर दया। और र करने का कारण भी
बता दया।
राजा : आय, या उसे बलपूवक नह पकड़ा जा सकता था?
चाण य : वृषल! य द तुम उसे बलपूवक पकड़ते तो वह वयं मर
जाता या तु हारी सेना को मार दे ता। दोन ही थ तयां
अनु चत थ । आ मण के समय य द वह मारा जाता तो
वैसा अलौ कक फर न मलता, वृषल! हम सदा
के लए उससे वं चत रह जाते। य द वह तु हारी सेना को
न कर दे ता तो या कम ःख क बात थी, वह तो
जंगली हाथी के समान ही तरह-तरह के कौशल से पकड़ा
जाए, यही उ चत है।
राजा : आपको बु से हम नह जीत सकते। अमा य रा स ही
सवथा शंसनीय है।
चाण य : ( ोध से) क य गए? वा य पूरा करो क ‘आप नह
ह।’ क तु वृषल, यह भी मत समझो! उसने कया ही
या है?
राजा : य द आप नह जानते तो सु नए। वह महा मा हमारे जीते
नगर म ही, हमारे कंठ पर पांव रखकर अपनी इ छा से
रहता रहा। जब सेना का जय-जयकार आ द आ तब
उसने काम म बाधा डाली। हमको अपनी नी त क
चतुरता से उसने ऐसा मो हत कर दया क हम अब अपने
ही व सनीय जन म व ास नह होता।
चाण य : (हंसकर) वृषल! यह सब रा स ने कया?
राजा : और या? यह अमा य रा स का ही काम है।
चाण य : वृषल, मुझे तो ऐसा लगा, जैसे उसने नंद क ही तरह तु ह
उखाड़कर मलयकेतु को सहासन पर बैठा दया हो!
राजा : ताना न मा रए, आय! सब कुछ भा य ने कया। इसम
आपका या है?
चाण य : अरे ई यालु! भंयकर ोध से टे ढ़ उंगली से शखा
खोलकर, सबके सामने ही समूल सव प रवार समेत श ु-
वनाश करने क ब त बड़ी त ा करके मेरे अ त र
और कौन है, जसने न यानवे करोड़ के वामी उन
अंहकारी न द को रा स के दे खते-दे खते ही पशु क
तरह मार डाला है? आकाश म पंख को थर करके घेरा
डालने वाले ग के-से काले धुएं से जो दशा को
मेघा छा दत करके सूय का भी तेज ढके दे रही ह और
ज ह ने मशान के ा णय को न द के शव से आनं दत
कया है, वे चंड अ नयां उनके अंग से वही चब पी-
पीकर अभी भी शा त नह ई ह। उ ह दे खते हो?
राजा : यह कसी और ने ही कया है।
चाण य : कसने?
राजा : न द कुल के े षी दै व ने!
चाण य : अ ानी ही दै व को माण मानते ह।
राजा : व ान कभी वयं अपनी शंसा नह करते।
चाण य : ( ोध से) वृषल! वृषल!! तुम मुझपर सेवक क भां त ही
शासन चलाना चाहते हो! मेरा हाथ फर बंधी ई शखा
को खोलने को तैयार हो रहा है…(पृ वी पर पैर पटककर)
और एक बार फर मेरा पांव त ा करने को आगे उठना
चाहता है। नंद का नाश करके जो मेरी ोधा न शा त हो
रही है, उसे तू फर काल से े रत होकर व लत कर
रहा है।
राजा : (घबराकर, वगत) अरे! या आय सचमुच ु हो गए?
ोध से इनक पलक से नकले जल के ीण हो जाने
पर भी आंख लाल-लाल द ख रही ह। टे ढ़ भृकु ट ोध
का धुआं बन गई है। चाण य के चरण- हार को ता डव
नृ य के समय का यान करती थर-थर कांपती धरती
ने न जाने कैसे सहन कया है!
चाण य : (नकली ोध छोड़कर) वृषल! वृषल!! बस, अब सवाल-
जवाब रहने दो। य द रा स को अ छा समझते हो तो यह
श उसे ही दे दे ना। (श छोड़कर, उठकर आकाश को
एकटक दे खकर, वगत) रा स! रा स!! कौ ट य क
बु को जीतने वाली तु हारी बु क यही उ त
है?…‘म चाण य के त ा न रखने वाले च गु त पर
चैन से वजय ा त कर लूंगा’—इस वचार से जो तूने
षड् यं रचा है…अरे नीच, आ उसी म फंस! यही तेरा
अ हत करे। ( थान)
राजा : आय वैहीनरे! आज से चाण य को अना त करके
च गु त वयं रा य करेगा-सबम यही सू चत करा दो।
कंचुक : ( वगत) या बना कसी आदरसूचक श द के ही
चाण य नाम कह दया? आय चाण य नह कहा? हाय,
सचमुच ही अ धकार ले लया गया! क तु इसम दे व का
भी या दोष! यह दोष भी म ी का ही है क राजा कुछ
अनु चत कर बैठे। महावत के माद से ही तो हाथी
क सं ा पाता है।
राजा : आय, या सोच रहे ह?
कंचुक : दे व, कुछ, नह । क तु नवेदन है क सौभा य से दे व
वा तव म आज ही दे व ए ह।
राजा : ( वगत) जब हम लोग ऐसा सचमुच ही समझ रहे ह, तब
अपने काय क स चाहने वाले आप अव य सफल
ह ! ( कट) शोणो रे! इस शु क कलह से मेरे सर म
पीड़ा हो रही है। चल, शयन-गृह का माग दखा।
तहारी : इधर, महाराज, इधर से!
राजा : (आसन से उठकर, वगत) आय क आ ा से गौरव का
उ लंघन करने पर मेरी बु पृ वी म समा जाना चाहती
है। फर जो लोग सचमुच ही बड़ का आदर नह करते,
ल जा से उनके दय य नह फट जाते?
[सबका थान]
[तीसरा अंक समा त]

1. पुराने भूगोल के अनुसार पृ वी एक पवत से घरी है। उसके एक ओर लोक (उजाला)


और सरी ओर अलोक (अंधेरा) है। इसको ‘लोकालोक’ कहते ह।
1. सोने के स के
चौथा अंक

[प थक-वेश म एक पु ष का वेश]
पु ष : आ य, परम आ य! वामी क आ ा के उ लंघन का
भय न हो तो कौन इस तरह सैकड़ योजन तक ऐसे
मारा-मारा फरे? रा स अमा य के घर ही चलूं। (थका-
सा घूमकर) अरे, कोई दौवा रक म से है यहां? वामी
अमा य रा स से नवेदन करो क करभक करभक1 क
तरह ही काय स करके पाट लपु से आया है।
दौवा रक : ( वेश कर) भ ! धीरे बोलो। वामी अमा य रा स को
काय- च ता से जागते रहने के कारण सर म दद है। वे
अभी तक शैया पर ही ह। जरा को। म अवसर पाकर
अभी तु हारे बारे म नवेदन करता ं।
पु ष : अ छ बात है।
[शैया पर लेटे रा स और आसन पर बैठे शकटदास का
च ता त प म वेश]
रा स : ( वगत) काय के ार भ करने पर भा य क तकूलता
के वषय म वचार करने से और चाण य क सहज
कु टल बु के बारे म सोचने से तथा मेरी हर चाल कटते
रहने से, यह कैसे होगा, यह स कैसे मलेगी—यही
सोचते ए मेरी रात जागते ही जागते बीत रही ह! ज़रा-
सी बात को लेकर चलते ए, ार भ करके, फर व तार
करके, गु त बात को गूढ़ री त से धीरे-धीरे कट करके,
कत कत को जानते ए, उस तमाम फैलाव को फर
समेटने के इस लेश को या तो नाटककार अनुभव करता
है या हमारे जैसा आदमी!1 इतने पर भी रा मा
चाण य…
दौवा रक : (पास जाकर) जय! जय!
रा स : ( वगत) परा जत कया जा सकता है…
दौवा रक : अमा य!
रा स : (बा आंख फड़फड़ाना सू चत करके, वगत) रा मा
चाण य क जय! और परा जत कया जा सकता है
अमा य! यह या सर वती बोल रही है बा आंख
फड़काकर? फर भी उ म नह छोड़ना चा हए। ( कट)
भ , या कहते हो?
दौवा रक : अमा य! करभक पाट लपु से आया है और आपसे
मलना चाहता है।
रा स : उसे बना रोक-टोक के अ दर वेश कराओ।
दौवा रक : जैसी अमा य क आ ा ( नकलकर, पु ष के पास
जाकर) भ ! अमा य रा स ये रहे। उनके पास चले
जाओ। ( थान)
करभक : (रा स के पास प ंचकर) अमा य क जय!
रा स : (दे खकर) वागत है! भ करभक, बैठो।
करभक : जैसी आ ा, अमा य! (भू म पर बैठता है।)
रा स : ( वगत) इस त को मने कस काय म लगाया था, वह
काम क बाढ़ म याद नह आ रहा। (सोचता है)
[हाथ म बत लए एक और पु ष का वेश]
पु ष : हटो आय ! हटो! हटो! हटो! या नह दे ख पाते? सुमे
पवत वासी और क याणमय नरेश का दशन पु यहीन
के लए लभ है। ( फर उनके पास रहना तो ब कुल ही
लभ है) (आकाश दे खकर) आय! या कहा क य
हटाया जा रहा है? आय, कुमार मलयकेतु यह सुनकर,
क अमा य रा स के सर म दद है, उ ह दे खने आ रहे है;
इस लए हटाया जा रहा है। ( थान)
[मलयकेतु के पीछे भागुरायण और कंचुक का वेश]
मलयकेतु : (द घ ास लेकर, वगत) आज पता को गए1 दस महीने
बीत गए। बेकार य न करते ए मने अभी तक उनके लए
जलांज ल भी नह द । यह मने पहले ही ण कया है क
जैसे मेरी माता का छाती पीटने से र न-कंकण टू ट गया,
प ा अपने थान से खसककर गर पड़ा, नर तर
हाहाकर करके क ण वलाप करते समय केश अ त-
त और खे हो गए, वैसे ही जब तक म श ु क
य को भी नह बना ं गा, तब तक पता का तपण
नह क ं गा। और थ य सोचूं? या तो वीर क भां त
पता के रा ते पर चलूंगा, या अपनी माता के आंख के
आंसु को श ु- य क आंख म प ंचा ं गा। ( कट)
आय जाज ल! मेरी आ ा से अनुयायी राजा से कहो
क म अचानक ही अकेला जाकर अमा य रा स के त
ेम कट क ं गा। अतः मेरे पीछे चलने का क छोड़ द।
कंचुक : जो आ ा, कुमार! (घूमकर, आकाश को दे खकर) हे
राजागण! कुमार क आ ा है क उनके पीछे कोई न
आ ए । (दे खकर स ता से) कुमार! कुमार! ली जए,
आ ा सुनते ही राजा लौट गए। दे खए, कुमार! कुछ
राजा ने कड़ी लगाम खीच द , जसके कारण चंचल,
टे ड़ी और ऊंची गदन वाले घोड़े क गए। वे खुर से धरती
खोदते आकाश को फाड़े दे रहे ह। क जाने से ऊंचे
हा थय के घ टे क गये। वे भी लौट चले। दे व! ये
भू मपाल समु क भां त ही आपक मयादा का उ लंघन
नह करते।
मलयकेतु : आय जाज ल! तुम भी प रजन के साथ लौट जाओ।
अकेले भागुरायण ही मेरे साथ चल।
कंचुक : जो आ ा कुमार! (प रजन के साथ थान)
मलयकेतु : म भागुरायण, यहां आए भ भट आ द ने मुझसे नवेदन
कया था क अमा य रा स के कारण आपका आ य
नह ले रहे, ब क म ी के बस म ए च गु त से
उदासीन होकर हम, आपके सेनाप त शखरसेन के
अवल ब से, केवल आपके गुण का आ य ले रहे ह। मने
ब त सोचा, पर समझ नह पाया क उनका मतलब या
था।
भागुरायण : कुमार! यह तो ब त क ठन नह है। वजय क ओर
उ मुख, अ छे गुणी का आ य लेना तो ठ क ही है।
मलयकेतु : म भागुरायण! अमा य रा स ही हमारे सबसे अ धक
य और सबसे अ धक भला चाहने वाले ह।
भागुरायण : कुमार! ठ क बात है। क तु अमा य रा स को चाण य
से वैर है, च गु त से नह । हो सकता है, कभी च गु त
अंहकारी चाण य को अस समझकर हटा दे । तब
अमा य रा स क जो न द कुल म ा है, वह च गु त
को भी उसी वंश का जानकर अपने म के ाण बचाने
क ओर े रत करे और वह च गु त से सं ध कर ले।
और च गु त भी कह यह सोचकर क आ खर तो मेरे
पता का पुराना सेवक है, सं ध को मान ले। ऐसे समय म
फर कुमार हमारा व ास नह करगे, यही शायद इन
लोग का मतलब हो सकता है।
मलयकेतु : हो सकता है। म भागुरायण! अमा य रा स के भवन
का माग दखाओ।
भागुरायण : इधर से कुमार! आइए। (दोन घूमते ह।) कुमार! यही
अमा य रा स का घर है। वेश कर।
मलयकेतु : चलो।
[दोन वेश करते ह।]
रा स : ( वगत) ओह! याद आ गया। ( कट) भ ! या तुम
कुसुमपुर म तनकलश नामक वैता लक से मले?
करभक : जी हां, अमा य!
मलयकेतु : म भागुरायण! कुसुमपुर क बात हो रही है। यह से
सुनना चा हए। य क मं ी लोग अपनी प और वतं
प से होने वाली बात के रह य खुल जाने के डर से
राजा के सामने उसे और ही ढं ग से कह दे ते ह।
भागुरायण : जो आ ा।
रा स : भ ! या वह काय स आ?
करभक : आपक कृपा से स आ।
मलयकेतु : म भागुरायण! कौन-सा काय?
भागुरायण : कुमार! अमा य का समाचार बड़ा ग भीर है, इससे या
पता चलेगा। अतः यान से सु नए।
रा स : भ ! पूरी बात कहो।
करभक : अमा य! सु नए, आपने मुझे आ ा द थी क करभक,
मेरी आ ा से तनकलश नामक वैता लक से कहना क
रा मा चाण य के आ ा भंग करने पर तुम च गु त को
उकसाना।
रा स : तब?
करभक : तब मने पाट लपु जाकर आपका आदे श तनकलश को
सुना दया।
रा स : अ छा! फर?
करभक : इसी बीच च गु त ने नंद कुल के नाश से ःखी नाग रक
को स तोष दे ने को कौमुद महो सव मनाने क आ ा दे
द । ब त दन के बाद मनाए जाते उ सव क बात
सुनकर जा ने उसका वैसे ही वागत कया जैसे कोई
अपने बंघुजन के आने पर करता है।
रा स : (आंख म आंसू भरकर) हा दे व! न द! संसार को आन द
दे ने वाले राजा के च मा! कुमुद को आन द दे ने वाले
च मा और नाग रक को सुख दे ने वाले च गु त के रहते
ए भी आपके बना या तो कौमुद और या उसका
महो सव! हां, भ ! फर…?
करभक : अमा य! तब च गु त के न चाहने पर भी नयन-रंजन
उ सव का रा मा चाण य ने नषेध कर दया। इसी
समय तनकलश ने च गु त को आवेश दलाने वाली
प ावली पढ़ ।
रा स : या क वता थी?
करभक : उसका भाव था क च गु त राजा धराज है, उसक
आ ा का उ लघंन करके कौन बचेगा! बात लग गई।
रा स : (सहष) ध य! तनकलश! ध य! तुमने ठ क समय पर
सू पात कया। इससे अव य ही फल नकलेगा। साधारण
भी अपने आ दो सव म बाधा नह सह पाता, फर
लोको र तेज वी नरे क तो बात ही या है!
मलयकेतु : यही बात है।
रा स : अ छा, तब?
करभक : तब आ ा के उ लंघन से च गु त हो गया और
आपके गुण क शंसा करके उसने रा मा चाण य को
उसके पद से हटा दया।
मलयकेतु : सखे भागुरायण! लगता है, रा स क शंसा कर
च गु त ने उसे अपना मान लया।
भागुरायण : कुमार! शंसा करके उतना नह माना जतना क
चाण य का अपमान करके।
रा स : भ ! केवल कौमुद महो सव ही दोन के मनमुटाव का
कारण है या कोई और भी है?
मलयकेतु : म भागुरायण! च गु त के और कसी ोध के कारण
को जानने म इसे या लाभ है?
भागुरायण : कुमार, लाभ यही है क अ य त बु मान चाण य
अकारण ही च गु त को य करेगा! और इतने-भर
से कृत च गु त भी गौरव का उ लघंन नही करेगा।
इस लए चाण य और च गु त का जो भेद होगा, उसके
पीछे कोई बड़ी बात अव य होगी।
करभक : अमा य! चाण य पर च गु त के ोध का कारण और
भी है।
रा स : या है? वह या है?
करभक : सबसे पहले तो यही क उसने आपक और कुमार
मलयकेतु क भागते समय य उपे ा कर द ।
रा स : (सहष) म शकटदास! अब च गु त मेरे हाथ म आ
जाएगा। अब च दनदास ब धन से छू टे गा। तु हारा पु
और ी से मलन होगा और जीव स आ द के लेश
भी र ह गे।
भागुरायण : ( वगत) सचमुच, जीव स का क र हो जाएगा,
मलयकेतु : म भागुरायण! ‘अब च गु त मेरे हाथ म आ जाएगा’
का या मतलब हो सकता है?
भागुरायण : और या होगा! यही क चाण य से पृथक् पड़ गए
च गु त का उ मूलन करने म यह कोई लाभ नह
दे खता।
रा स : भ ! अ धकार छनने पर चाण य कहां गया?
करभक : वह पाट लपु म ही रहता है।
रा स : (घबराकर) भ ! वह रहता है? तप या करने वन म नह
गया या उसने फर कोई त ा नह क ?
करभक : अमा य! सुना जाता है क वह तपोवन म जाएगा।
रा स : (घबराकर) शकटदास! यह कुछ समझ म नह आता।
जसने पृ वी के वामी न द के ारा भोजन के आसन से
उठाए जाने के अपमान को नह सहा, वह अ य त गव ला
चाण य वयं च गु त के ारा कया तर कार कैसे सह
गया!
मलयकेतु : म भागुरायण! चाण य तपोवन जाए या फर त ा
करे, इसम इसका या वाथ है?
भागुरायण : यह तो समझना क ठन नह कुमार! जैसे-जैसे रा मा
चाण य च गु त से र होगा, वैस-े वैसे इसका वाथ
सधेगा।
शकटदास : जस च गु त के चरण अब राजा के, चूड़ाम णय क
च ोपम का त से यु केश वाले, म तक पर पड़ते ह
वह अपने ही आद मय ारा अपनी आ ा का उ लंघन
सह सकता है! चाण य ने पहले दै ववश ही सफलता पाई
है, यह वह वयं भी जानता है और वयं अपने आचरण
से ःखी है। आगे प रणाम म कह असफलता न मले,
इसी भय से उसने बारा त ा नह क ।
रा स : म शकटदास! ठ क है। अब जाओ और करभक को
भी व ाम दो।
शकटदास : जो आ ा। (करभक के साथ थान)
रा स : म भी कुमार से मलना चाहता ं।
मलयकेतु : (पास जाकर) म वयं ही आपसे मलने आ गया ं।
रा स : (दे खकर) अरे! कुमार ही आ गए! (आसन से उठकर)
कुमार! इस आसन पर वराज।
मलयकेतु : म बैठता ं। आप भी बैठ।
[दोन उ चत आसन पर बैठते ह।]
आय! सर के दद का या हाल है?
रा स : जब तक कुमार के नाम से अ धराज श द न जुड़ जाएगा
तब तक सर का दद कैसे कम होगा!
मलयकेतु : यह तो आपने वयं अंगीकार कया है, अतः कुछ लभ
नह है। सेना भी इक हो चुक है, पर श ु पर
आप काल क ती ा करते-करते हम कब तक य ही
उदासीन बैठे रहगे?
रा स : कुमार! अब समय थ य बताया जाए? श ु पर
वजय पाने को चढ़ाई क रए।
मलयकेतु : श ु पर कोई आप आई है, या ऐसा समाचार आया
है?
रा स : जी हां, आया है।
मलयकेतु : या?
रा स : मं ी क खबर है, और या! च गु त चाण य से अलग
हो गया।
मलयकेतु : बस यही?
रा स : कुमार! सरे राजा का यह वरोध वैसा वरोध न भी हो
सकता, पर तु च गु त क यह बात नह ।
मलयकेतु : आय! या वशेषकर च गु त का ही?
रा स : या कारण है क…?
मलयकेतु : च गु त क जा केवल चाण य के दोष से ही वर
है? च गु त है? च गु त से जा को पहले भी नेह था
और अब चाण य के हटाए जाने पर भी है। ब क बढ़
गया होगा।
रा स : ऐसा नह है, कुमार! वहां दो तरह के लोग ह। एक वह
जा है जो च गु त के साथ उठ थी, सरी है वह जसे
न द कुल से ेम है। च गु त के साथ उठने वाली जा
को ही चाण य के दोष से वर है। न द कुल म
अनुर जा तो अपना आ य खोकर अमष से भरी ई
है। च गु त ने पतृकुल जैसे न द वंश का नाश कर
दया। पर अब जा करे भी या, यही सोचती ई
च गु त का साथ दे ती है। अपने बल से श ु को परा जत
करने म आप जैसे समथ राजा को पाकर शी ही वह
च गु त को छोड़कर आपका आ य हण करेगी। हम
कुमार के सामने इसके उदाहरण ह।
मलयकेतु : तो या यह मं ी- वरोध ही च गु त क हार का कारण है
या कोई और भी, अमा य?
रा स : कुमार! ब त का या करना है! यही धान कारण है।
मलयकेतु : अमा य! यही धान है? या च गु त राज-काज कसी
और मं ी या स ब धी पर छोड़कर इसका तकार नह
कर सकता?
रा स : वह असमथ है, कुमार!
मलयकेतु : य?
रा स : वाय स 1 और उभयाय स 2 राजा भले ही ऐसा
कर ल, पर च गु त के लए यह स भव नह । वह रा मा
न य ही रा य-काय म म ी के अधीन रहता है। अंधा
मनु य सांसा रक वहार से र रहकर या कर सकता
है! राजल मी म ी-श और नृप-श इन दोन पर ही
पांव रखकर ठहरती है। पर तु य द कोई भी भार सहने म
असमथ हो गया तो रा य ी ी-सुलभ वभाव के
कारण नबल को छोड़ दे ती है। मं ी के अधीन राजा
म ी से अलग होकर, सांसा रक वहार से अनजान
रहने के कारण, उस धमुंहे ब चे-सा हो जाता है जसके
मुंह से माता का तन हटा लया जाए। वह ण-भर भी
अपनी स ा नह जमा सकता।
मलयकेतु : ( वगत) भा य से म ऐसा म ी-पराधीन नह ँ। ( कट)
अमा य! यह तो ठ क है, पर अनेक अ भयोग के आधार
रहने पर, केवल म ी के बल पर टककर ही कौन श ु
को जीत सकता है!
रा स : आप तो, कुमार, केवल स क ही सोच। बलवान सेना
के साथ आप यु को त पर रहगे, कुसुमपुर म जा न द
म अनुर होगी, चाण य पद युत है ही और च गु त
नाम-मा का राजा रह गया और मुझ वाय के…
(इतना कहकर संकोच का अ भनय करते ए) मागदशन
एवं कत - नदशन म स रहने पर, अब हमारे सा य
आपक इ छा के अधीन पड़े ह।
मलयकेतु : अमा य, य द आप श ु पर आ मण ठ क समझते ह तो
वलंब ही य हो? यह भीमाकार गज खड़े ही ह, जनके
ग ड थल से मद-जल टपक रहा है, जसपर भ रे गूंज रहे
ह। अपने दांत से तट-भू म को फोड़ने वाले, स र से
लाल ए, मेरे ये सैकड़ काले-काले गजे तो ऐसे चंड
ह क पूरे वेग से उमड़कर बहने वाले, वृ से आ छा दत
तट वाले एवं क लो लत जल- वाह के कटाव से गरते-
पड़ते कनार वाले, महानद शोण को ही पीकर खाली
कर द। हा थय के ये झुंड ग भीर गजन करते ए
कुसुमपुर को घेरने म ऐसे ही समथ ह जैसे सजल मेघ
क माला व याचल को घेर लेती है। (भागुरायण स हत
मलयकेतु का थान)
रा स : अरे कौन है यहां?
मलयकेतु : ( वेश कर) आ ा द, अमा य!
रा स : यंवद! पता लगाओ… ार पर कोई यो तषी भी है?
पु ष : जो आ ा! (बाहर जाकर एक पणक को दे खकर, फर
वेश कर) अमा य, एक पणक…
रा स : (अपशकुन समझकर वगत) सबसे पहले पणक ही
द खा!…
यंवदक : जीव स है।
रा स : ( कट) उसका बीभ सदशन1 र करके वेश कराओ।
यंवदक : जो आ ा। ( थान)
[ पणक का वेश]
पणक : मोह जैसे रोग के लए अहत2 पी वै क बात मान ।
उनक बात पहले तो कड़वी लगती है, पर तु फर प य
बन जाती है। (पास जाकर) उपासक, धमलाभ हो!
रा स : भद त3! हमारे थान का मु त नका लए।
पणक : (सोचकर) उपासक, मु त न त कर लया! पहर से
सातव त थ का भाग बीतने पर पूण च मा वाली शुभ
वेला है। उ र से द ण को जाते समय न तु हारी दा
तरफ आ जाएगा।4 और सूय के अ ताचल जाने पर, च
के स पूण म डल के साथ उदय पर, बुध के शु ल न के
लगने पर, और केतु के उदय ल न से अ त ल न म चल
पड़ने पर या ा करना शुभ है।5
रा स : भद त! त थ ही ठ क नह बैठती।
पणक : उपासक! त थ एक गुना फल दे ती है, उससे चौगुना फल
न से, और उससे भी च सठ गुना फल ल न से मलता
है। यो तषशा ऐसा कहता है। रा श शुभ फल दे ने
वाली है। बुरे ह का संसग छोड़कर च मा के स पक म
जाकर तुम थायी लाभ ा त करोगे।6
रा स : भद त! अ य यो त षय से भी राय मला ली जए।
पणक : आप वचार करते रह, उपासक! म अपने घर जाता ।ँ
रा स : या भद त ु हो गए?
पणक : नह , म कु पत नह आ।
रा स : तो कौन आ?
पणक : भगवान यम, य क तुम जो मुझ जैसे अपने अनुकूल
को छोड़कर सर को माण मानते हो। ( थान)
रा स : यंवदक, या समय हो गया?
यंवदक : जो आ ा, दे खता ँ ( थान करके फर वेश कर) सूय
भगवान अ त होने वाले ह।
रा स : (आसन से उठकर सोचते ए दे खकर) अरे! सह -र म
भगवान सूय अ त होना चाहते ह। जब सूय बल होकर
उ दत आ था तब उपवन के सारे वृ छाया-समेत पास
आ गए थे। अब ताप के अ त होते समय ये सब र हो
गए, जैसे धनहीन वामी को वाथ सेवक छोड़ दे ते ह।
[सबका थान]
[चौथा अंक समा त]

1. हाथी का ब चा।
1. नाटककार तावना म छोटा वषय लेकर, प रकर को तमुख स ध म चाहता आ,
गभ स ध म ब ध अथ को गु त री त से दखाता है। वमश स ध म उसपर वचार
करता है तथा ववहण स ध म व तृत व तु का संकोच करता है।
1. मरे
1. अपने अधीन राज-काज चलाने वाला।
2. मलकर राज-काज चलाने वाले म ी और राजा।
1. बीभ सता, ग दगी, घनौनापन। स भवतः पणक ग दे रहते थे। अ यथा बना दे खे ही
रा स य समझता क वह घनौना-सा होगा।
2. तीथकर।
3. पू य।
4. यो तषशा के अनुसार व तुतः ऐसा ल न अमंगलकारी माना जाता है।
5. साथ ही यहाँ ‘सूय’ से रा स, ‘च ’ से च गु त, ‘बुध’ से चाण य और ‘केतु’ से
मलयकेतु अथ भी अभी है।
6. यहाँ च गु त का आ य हण करने क बात क ओर संकेत है।
पांचवां अंक

[मु त लेख और आभूषण क पटारी लए स ाथक


का वेश]
स ाथक : आ य, परम आ य! चाण य क नी त-लता दे शकाल
के घड़ और बु -जल के नझर से स चे जाने पर बड़े
फल लाएगी। आय चाण य ने जैसा कहा था वैसे ही मने
शकटदास से लेख लखवाकर आमा य रा स क मु ा
लगा ली है। इस आभूषण क पटारी पर भी वही मु ा है।
अब पाट लपु चलना है। चलूँ? (घूमकर और दे खकर)
अरे, पणक आ रहा है! इसके दशन से जो अपशुकन
होगा उसे म सूय के दशन करके र करता ।ँ
[ पणक का वेश]
पणक : हम अहत को णाम करते ह, ज ह ने अपनी ग भीर
बु से लोको र तथा तु य माग से स ा त क है।
स ाथक : भद त, णाम करता ँ।
पणक : उपासक, धम-लाभ हो! म तु ह या ा को तैयार दे ख रहा
ँ।…?
स ाथक : भद त ने कैसे जाना?
पणक : इसम या जानना है, उपासक! तु हारे थान का शुभ
मु त तु हारे हाथ पर लखा आ दख रहा है।
स ाथक : भद त ने ठ क समझा। बताइए न, आज कैसा दन है?
पणक : (हंसकर) उपासक, अब सर मुंडा-मुंडू कर न पूछ रहे
हो?
स ाथक : भद त, अभी ऐसा या हो गया? अनुकूल होगा तो
जाऊँगा। आप बताइए। न होगा तो लौट जाऊँगा।
पणक : क तु, उपासक, इस समय मलयकेतु के श वर म
अनुकूल और तकूल या ा का ही कहां? तु हारे
पास माण-प हो, तभी जा सकते हो।
स ाथक : भद त, यह कब से लागू आ?
पणक : उपासक, सुनो…पहले तो मलयकेतु के श वर म लोग
बेरोक-टोक आते-जाते थे। पर अब हम कुसुमपुर के पास
आ गए ह। इसी लए बना मु ां कत माण-प के कोई
नह आ-जा सकता। इसी लए अगर तु हारे पास
भागुरायण का माण-प हो तो मजे से जाओ, वरना
लौटकर मन मारकर बैठे रहो। अ यथा गु म-नायक से
हाथ-पैर बंधवाकर तुम कारागार म जा पड़ोगे।
स ाथक : भद त, आप या नह जानते क म अमा य रा स का
मनोरंजन करने वाला और रह य जानने वाला उनका
पा वत स ाथक ँ। मेरे पास मु ा न भी हो, तो भी
मुझे रोक कौन सकता है?
पणक : उपासक, रा स का मनोरंजन करने वाले हो या पशाच
का, पर तुम बना मु ां कत माण-प के नह जा
सकते!
स ाथक : भद त, ु न ह । कह द क मेरा काय स हो।
पणक : उपासक, जाओ, तु हारा काय सफल हो। म भी
भागुरायण से पाट लपु जाने का माण-प लेने जा रहा
ँ। (दोन का थान)
[ वेशक का अ त]
[भागुरायण तथा उसके पीछे एक पु ष का वेश]
भागुरायण : ( वगत) अरे, आय चाण य क नी त भी कैसी व च है!
कभी तो ल य करने से समझ म आने लगती है, कभी
ब कुल समझ म ही नह आती। कभी तो सबपर छा
जाती है, कभी इसका पता भी नह चलता। कभी तो
न फल दखाई पड़ने लगती है और कभी व वध फल
को दे ने वाली मालूम पड़ती है। नी त क नी त तो
नय त क भां त ही बड़ी व च होती है। ( कट) भ
भासुरक, कुमार मलयकेतु मुझे र नह रखना चाहते,
इस लए इसी सभा-मंडप म आसन बछाओ!
पु ष : ली जए, बछा दया। अब आय बैठ।
भागुरायण : ( वगत) कतना ःख है क हमसे इतना ेम करने पर भी
इस मलयकेतु को वं चत कर दया जाएगा। कतना
क ठन है! क तु जो मनु य परतं है वह णभंगुर धन के
लए कसी धनी के हाथ अपना शरीर बेच दे ता है। वह
वंश, ल जा, यश, स मान कुछ भी नह रख पाता।
अ छे -बुरे के वचार से र वह तो केवल वामी क आ ा
को मानता है। वह या कभी सोच सकता है क वह ठ क
है या नह ?
[ तहारी के आगे-आगे मलयकेतु का वेश]
मलयकेतु : ( वगत) उफ! रा स के बारे म इतना सोचने पर भी मेरी
बु कुछ नणय कर पाती। कौ ट य से अपमा नत, यह
नंद कुल से इतना ेम करने वाला रा स या सचमुच
च गु त का म बन जाएगा? केवल इस लए क मौय
भी न द कुल म ज मा है? या यह मेरे ी त-भरे वहार
क ढ़ता को पूण करता आ अपनी त ा म स चा
उतरेगा? मेरा मन तो जैसे कु हार के च के पर रखा घूम
रहा है। कैसे म म पड़ गया ँ। ( कट) वजये,
भागुरायण कहाँ है?
तहारी : कुमार, वे श वर के बाहर जाने वाल को मु त प दे रहे
ह।
मलयकेतु : वजये, उसका मुंह इधर है! तू चलना ब द कर दे । मु त-
भर को। म पीछे से जाकर इसक आँख अपने हाथ से
ब द कर ँ ।
तहारी : जैसी कुमार क आ ा।
भासुरक : ( वेश कर) आय, एक पणक मु ा चाहता है। आपसे
मलना चाहता है।
भागुरायण : उसे ले आओ।
भासुरक : जो आ ा, आय!
पणक : ( वेश कर) उपासक क धमवृ हो!
भागुरायण : (दे खकर, वगत) अ छा, यह रा स का म जीव स
है ! ( कट) भद त, या रा स के ही कसी काम से जा
रहे हो?
पणक : (कान पर हाथ रखकर) पाप शा त हो, पाप शा त हो!
उपासक, म तो वहां जाना चाहता ँ। जहां रा स और
पशाच का नाम भी सुनाई न दे !
भागुरायण : भद त, अपने म पर बड़ा ी त-भरा ोध दखा रहे हो।
रा स ने तुमसे ऐसा या अपराध कर दया ह?
पणक : उपासक, रा स ने मेरा कोई अपराध नह कया। म
अभागा तो अपने ही काय पर ल जत ँ।
भागुरायण : मेरे कौतुहल को बढ़ा रहे हो, भद त!
मलयकेतु : ( वगत) मेरे को भी!
भागुरायण : या बात है, मुझे बताओ न?
मलयकेतु : ( वगत) म भी सुनूं।
पणक : उपासक, यह बात सुनने यो य नह है। सुनकर भी या
लाभ होगा?
भागुरायण : भद त, कोई गु त बात हो तो रहने दो।
पणक : गु त कुछ नह है।
भागुरायण : तो फर बता दो न?
पणक : नह , ब त ू र बात है…कैसे क ँ।
भागुरायण : भद त, म तु ह मु ा भी नह ं गा।
पणक : ( वगत) इस सुनने के इ छु क स पा से कहना ठ क है।
( कट) या क ं ? कहता ं, उपासक! सुनो। म पहले
पाट लपु म रहता था। तब मुझ अभागे क रा स से
म ता हो गई। तभी रा स ने गु त प से वषक या का
योग करके दे व पवते र को मरवा डाला।
मलयकेतु : (आंख म आंसू भर, वगत) या उ ह रा स ने मरवाया?
चाण य ने नह ?
भागुरायण : हां, भद त! फर?
पणक : तब मुझे रा स का म समझकर रा मा चाण य ने
अपमा नत करके नगर से नकाल दया। अब कुकृ य
करने म कुशल यह रा स कोई ऐसा षड् य कर रहा है
क म इस संसार से ही नकाल दया जाऊँ।
भागुरायण : पर, भद त, हमने तो सुना है क कहा आ आधा रा य न
दे ना पड़ जाए, इस लए चाण य ने ही उ ह मरवाया था,
रा स ने नह ।
पणक : (कान ब द करके) पाप शा त हो! चाण य तो वषक या
का नाम भी नह जानता। यह कृ य तो उसी नीचबु
रा स ने कया है।
भागुरायण : भद त, कैसी ःख क बात है! लो, यह मु ा लो। चलो,
कुमार के पास चल।
मलयकेतु : म , वह दय वदारक बात मने सुन ली, जो श ु रा स
के बारे म उसके म ने कही है। आज पता क मृ यु का
शोक भी गुने वेग से बढ़ रहा है!
पणक : ( वगत) अरे, अभागे मलयकेतु ने सुन लया! म कृताथ
हो गया। ( थान)
मलयकेतु : ( य -सा आकाश म दे खता आ) रा स! यह भी ठ क
है। तुझे म जानकर, पूरी तरह से तुझपर व ास करके,
सारा कायभार छोड़ने वाले पता को तूने उनके प रवार के
आंसु के साथ ही धरती पर गरा दया। तू सचमुच
रा स है!
भागुरायण : ( वगत) आय चाण य ने कहा है क रा स के ाण क
र ा करना। ( कट) कुमार! आवेश म मत आइए। आप
आसन पर बैठ। म कुछ नवेदन करना चाहता ँ।
मलयकेतु : (बैठकर) सखे! या कहना चाहते हो?
भागुरायण : कुमार! राजनी त म श ुता, म ता, उदासीनता, यह
सब योजनवश आ करती है, संसारी य क तरह
वे छावश नह । उस समय सवाथ स को राजा बनाने
क जो रा स क इ छा थी, उसम च गु त से भी अ धक
बलशाली और वरोधी वनामध य दे व पवते र ही तो थे।
ऐसी हालत म य द रा स ने ऐसा ू र काम कर दया तो
यह कोई बड़ा दोष नह है। कुमार! नी त म म श ु और
श ु म बन जाता है। जी वत को मृ यु के मुख म
डाल दे ते ह जैसे ज मा तर म प ंचा दया हो। इस बारे म
रा स पर या ताना मारना! जब तक नंद का रा य नह
मले, उसपर कृपा करनी चा हए। उसके बाद रख या
नकाल ‘-आप इसके लए वतं ह।’
मलयकेतु : अ छा, यही हो म ! तुम ठ क सोचते हो। अमा य रा स
के वध से जा म व ोभ हो जाएगा और फर जीत भी
संदेहा पद हो जाएगी।
पु ष : ( वेश कर) कुमार क जय! आपके श वर- ार का
अ धकारी द घच ु नवेदन करता है क हमने बना
मु ां कत प लए श वर से भागते ए एक पु ष को
पकड़ा है। उसके पास एक लेख है।
भागुरायण : भ , उसे ले आओ।
पु ष : जो आ ा, आय। ( थान)
[बंधे ए स ाथक का एक पु ष के साथ वेश]
स ाथक : ( वगत) गुण पर मो हत होने वाली और दोष से र रखने
वाली जननी जैसी वा मभ को हम णाम करते ह।
पु ष : (पास आकर) आय! यही वह पु ष है।
भागुरायण : (उसे दे खकर) भ ! यह कोई आग तुक है, या यह कसी
का आ त है?
स ाथक : आय! अमा य रा स का सेवक ँ।
भागुरायण : तो भ ! तुम बना मु ां कत माण-प लए श वर से
य नकल रहे थे?
स ाथक : आय, काम क ज द से।
भागुरायण : वह कैसी ज द है जसके कारण तुम राजा क आ ा का
उ लंघन कर रहे थे?
मलयकेतु : सखे भागुरायण, यह लेख ले लो इससे!
[ स ाथक भागुरायण को दे खता है।]
स ाथक : (लेख लेकर मु ा दे खकर) कुमार! यह तो रा स के नाम
क अं कत मु ा है इसपर!
मलयकेतु : मु ा बना तोड़े खोलकर दखाओ।
[भागुरायण ऐसे ही खोलता है। दे ता है।]
मलयकेतु : (लेकर पढ़ता है।) “ व त! कसी जगह से कोई कसी
वशेष से नवेदन करता है क हमारे श ु को
हटाकर जो आपने कहा था, उसे सच करके दखाया है।
अब आप अपने से मल जाने वाले हमारे म को स ध
के लए न त ई व तुएं दे कर उनसे ेम उ प कर। ये
आ य- वहीन उपकृत हो जाने पर आपक सेवा को
त पर रहगे। हम मालूम है क आप इसे भूले नह ह,
पर तु हम फर भी याद दलाते ह। इनम से कुछ तो श ु
के खजाने और हा थय को चाहते ह और कुछ लोग रा य
चाहते ह। आपके भेजे तीन अलंकार मले। हमने भी जो
लेख के उ र म भेजा है उसे आप वीकार कर और
मौ खक समाचार अ य त व त स ाथक से सुन।
म भागुरायण! इस लेख का या अथ नकला?
भागुरायण : भ स ाथक! यह कसका लेख है?
स ाथक : आय! म नह जानता।
भागुरायण : अरे धूत! वयं जसे ले जा रहा है, उसी को नह
जानता?…जाने दे सब बात! यह बता क मौ खक बात
तुझे कसको सुनानी ह?
स ाथक : (भयभीत-सा) आपको।
भागुरायण : हमको ही?
स ाथक : म पकड़ा गया ँ। नह समझता, या क ।ँ
भागुरायण : ( ोध से) अब समझ जायेगा! भ भासुरक, इसे बाहर ले
जाकर तब तक मार लगाओ जब तक यह सब कुछ कह
न डाले।
भासुरक : जो आ ा, आय!
[ स ाथक के साथ थान; फर वेश करके]
भासुरक : आय, पटते समय इसक बगल से मु ां कत आभूषण
क यह पटारी गरी है।
भागुरायण : (दे खकर) इस पर रा स क मु ा है।
मलयकेतु : यही वह छपी बात है। मु ा बचाकर खोलो।
[भागुरायण खोलकर दखाता है।]
मलयकेतु : (दे खकर) अरे! ये तो वही आभूषण ह जो मने रा स के
पहनने के लए अपने शरीर से उतारकर दए थे। तब तो
यह प च गु त के लए ही होगा। प हो गया।
भागुरायण : कुमार! अभी संदेह का नणय आ जाता है। भ , और
लगाओ मार!
पु ष : जो आ ा, आय! (जाकर, फर लौटकर) आय! वह
पटकर कहता है क म कुमार को वयं बता ं गा।
मलयकेतु : उसे ले आओ!
पु ष : जो कुमार क आ ा!
[जाकर फर स ाथक के साथ वेश]
स ाथक : (पांव पर गरकर) कुमार! मुझे अभय द। दया कर।
मलयकेतु : भ …भ ! पराधीन को अभय ही होता है। पर मुझे सारी
बात ठ क-ठ क बता दो।
स ाथक : कुमार, सु नए! म अमा य रा स का यह लेख च गु त
के पास ही ले जा रहा ।ँ
मलयकेतु : भ ! मुझे मौ खक संदेश बताओ।
स ाथक : कुमार! मुझे अमा य रा स ने यह संदेश दया है- सुन!
मेरे इन पांच राजा ने आपसे पहले ही सं ध कर ली है-
कौलूत च वमा, मलयया घप सहनाद, क मीर-नरेश
पु करा , सधुराज सधुसेन और पारसीकाधीश मेघा ।
कौलूत, मलया घप और क मीर-नरेश तो मलयकेतु के
रा य को बांट लेना चाहते ह। जैसे आपने चाण य को
हटाकर मुझसे ी त उ प क है, वैसे ही इन राजा का
भी काम त ानुसार पहले ही हो जाना चा हए।
मलयकेतु : ( वगत) अ छा! च वमा आ द भी भीतर ही भीतर
मुझसे े ष करते ह, तभी रा स के त उनक इतनी
भ है। ( कट) वजये! म अमा य रा स से मलना
चाहता ं।
तहारी : जो आ ा, कुगार! ( थान)
[अपने घर म आसन पर बैठे रा स का च तत अव था म
वेश। सामने सेवक पु ष खड़ा है।]
रा स : ( वगत) हमारी सेना च गु त क सेना से कह अ धक
बल है, क तु फर भी मेरे मन का स दे ह र नह होता।
जो सेना श ु वनाश म श शा लनी, साथ चलने यो य
अनुकूल और श ु- व हो, वही वजय क साधक बन
सकती है। पर जो धमक दे कर अपनी ओर कर ली गई है,
और जसम दोन ओर के लोग मल रहे ह , जो अपने ही
श ु से भरी हो, उसी पर व ास कर लेने से वामी
सदै व ही वाद क भां त हार जाता है। अथवा सं भवतः
श ु प से वर होकर आए सै नक हमारे भेद जानकर
भी हमारे अनुकूल ही बने रह, अतः स दे ह य क ं ?
( कट) यंवदक! मेरी आ ा से कुमार के अनुयायी
राजा से कहो क अब दन पर दन कुसुमपुर पास
आता जा रहा है। अतः वे कायदे से इस तरह चल: सेना
के अ भाग म मेरे पीछे खस और मगधगण के सै नक
याण कर, म य भाग म वराजमान गांधार सै नक
अपने-अपने यवन सेनाप तय के साथ स होकर चल:
चे दय और ण से सुर त शकराजगण सेना का
पछला भाग संभाल, और बाक जो कौलूत1 आ द,
राजवृ द ह, वे माग म कुमार के चार ओर रहकर चल।
यंवदक : जो आ ा, अमा य! ( थान)
तहारी : ( वेश कर) अमा य, क जय! अमा य, कुमार आपसे
मलना चाहते ह।
रा स : भ , त नक ठहर! अरे, कोई है?
पु ष : ( वेश कर) आ ा द, अमा य!
रा स : भ ! शकटदास से कहो क अमा य को जो कुमार ने
आभूषण पहनाए थे, वे नह रहे, तो अब उनके दशन
बना आभूषण के कैसे कए जा सकते ह? अतः जो तीन
आभूषण खरीदे थे, उनम से एक दे द।
पु ष : जो आ ा ( फर वेश कर) ली जए, अमा य!
रा स : (दे खकर, पहनकर उठते ए) भद! राजा के पास ले
चलो। माग दखाओ।
तहारी : अमा य, इधर से आइए।
रा स : ( वगत) अ धकार नद ष के लए भी कतने भय
का कारण है! पहले तो सेवक को वामी का ही भय होता
है, फर वामी के पास रहने वाले म ी से। ऊँचे पद पर
रहने वाले सेवक को दे खकर अस जन ई या करते ह
और ती बु के लोग उ ह गराना चाहते ह। ऐसी जगह
रहने वाल को यही लगा करता है क अब गया, अब
गया।
तहारी : (घूमकर) कुमार ये वराजमान ह, इनके पास जाइए।
रा स : (दे खकर) ओह! कुमार बैठे है। पांव के अंगूठे को ऐसे
या टकटक बांधे दे ख रहे ह। (पास जाकर) कुमार
वजयी ह ! वजयी ह !
मलयकेतु : णाम करता ं, आय! यहां आसन पर वराज।
मलयकेतु : अमा य! ब त दन से आपको न दे खकर च ता हो गई
थी।
रा स : कुमार! आ मण के ब ध म इतना त था क आज
आपका उपाल भ सुनना ही पड़ा।
मलयकेतु : तो अमा य, या ा क तैयारी कैसी क है, सुनना चाहता
ँ।
रा स : मने कुमार, आपके अनुयायी राजा को आदे श दया है
क आगे म र ं, मेरे पीछे रहेग खस और मगध के ससै य
राजा। यवनप तय के साथ गा धार सेनाएं रहगी। चे द
और ण के साथ शक राजा पीछे रहगे। कौलूत, क मीर,
पारसीक, स धु, मलय के अ धप आपके चार ओर
रहगे।
मलयकेतु : ( वगत) समझता ।ँ जो च गु त क सेवा म त पर ह, वे
ही मेरे चार ओर रहगे! ( कट) आय! या कोई इधर
कुसुमपुर भी आने-जाने वाला है?
रा स : कुमार! अब आना-जाना ब द हो गया। बस पांच-छः दन
म हम वह प ँच जायगे।
मलयकेतु : ( वगत) सब जानता ँ। ( कट) तो फर इस आदमी को
लेख दे कर कुसुमपुर को य भेजा है?
रा स : (दे खकर) अरे, स ाथक, या बात है?
स ाथक : (रोता आ, ल जत-सा) अमा य स ह । ब त पटने
के कारण मै आपके रह य को छपा नह सका।
रा स : भ ! कैसा रह य? म नह जानता।
स ाथक : यही तो कहता ं मुझे ब त मारने से…(डर से इतना ही
कहकर सर झुका लेता है।)
मलयकेतु : भागुरायण! वामी के सामने डर और ल जा से यह बोल
नह सकेगा। तुम ही आय से कहो।
भागुरायण : जो आ ा, कुमार! अमा य, यह कहता है क अमा य ने
मुझे लेख और मौ खक स दे श दे कर च गु त के पास
भेजा है।
रा स : भ स ाथक, यह स य है?
स ाथक : (ल जत-सा) ब त पटने पर मने ऐसा कहा।
रा स : कुमार, यह झूठ है! पटने वाला या न कह दे गा?
मलयकेतु : भागुरायण, यह लेख दखाओ और मौ खक संदेश यह
वयं कहेगा।
भागुरायण : (लेख पढकर सुनाता है।)
रा स : कुमार, यह श ु क चाल है!
मलयकेतु : ले कन जब लेख क बात को पूरी करने को यह आपने
आभूषण भेजा है, तब यह श ु क चाल कैसे हो सकती
है? (आभूषण दखाता है।)
रा स : (दे खकर) कुमार, इसे मने नह भेजा! यह आपने मुझे
दया था और मने इनाम म इसे स ाथक को दे दया था।
भागुरायण : अमा य! कुमार ने अपने शरीर से उतारकर जो आभूषण
भेजा था, वह आपने ऐसे ही दे डाला?
मलयकेतु : आपने लखा है क मौ खक स दे श भी व त
स ाथक से सुन ल।
रा स : कैसा स दे श! कैसा लेख! यह मेरा है ही नह ।
मलयकेतु : तो फर यह मु ा कसक है,
रा स : धूत लोग कपट मु ा भी तो बना लेते ह।
भागुरायण : कुमार, अमा य ठ क कहते ह। स ाथक, यह लेख
कसने लखा है?
[ स ाथक रा स क ओर दे खकर सर नीचा करके चुप
खड़ा हो जाता है।]
भागुरायण : अब बना पटे ए भी कह दे । बोल!
स ाथक : आय, शकटदास ने।
रा स : कुमार! य द शकटदास ने लखा है, तब तो मने ही लखा
है।
मलयकेतु : वजये! म शकटदास से मलना चाहता ँ।
तहारी : जो कुमार क आ ा।
भागुरायण : ( वगत) जो बात पहले से तय नह है, उसे आय चाण य
का चर कभी नह कह सकता। य द शकटदास आकर
कह दे यह लेख मने पहले ही लखा था, और सारी बात
साफ करे दे , तो मलयकेतु फर रा स का वरोध करना
बंद कर दे गा। ( कट) कुमार! शकटदास कभी भी
अमा य रा स के सामने यह वीकार नह करेगा क यह
उसका लेख है। अतः उसका लखा कोई और लेख
मंगाईए। दोन के अ र को मलाते ही पता चल जायेगा।
मलयकेतु : वजये! यही करो।
भागुरायण : कुमार। मु ा भी मंगाइए।
मलयकेतु : दोन ले आ।
तहारी : जो आ ा, कुमार! (बाहर जाती है। फर वेश करके)
कुमार! शकटदास के हाथ का लखा है, और मु ा, ये रहे
दोन ।
मलयकेतु : (दोन को दे खकर, मलाकर) आय, अ र तो मलते ह।
रा स : ( वगत) मलते ह। पर शकटदास मेरा म है, इस लए
कैसे मल सकते ह? या उसी ने लखा है? या न र
धन के लोभ से उसने ऐसा कया? या ी-पु से मलने
के लोभ से? चर थायी यश का उसने लोभ छोड़कर
वामीभ को भुला दया? पर मु ा उसके हाथ म रहती
है। स ाथक उसका म है। और प के अ र मल ही
रहे ह। न य ही भेदनी त म कुशल श ु ने उसे मला
लया और ी-पु ष से मलने के लए आतुर शकटदास
ने वामीभ को छोड़कर ही ऐसा काम कया है।
मलयकेतु : आय, आपने लखा है क जो तीन आभूषण भेजे गए थे
वे मल गए। या उ ह म से एक को पहने ए ह?
(दे खकर, वगत) अरे या ये पता का ही पहना आ
आभूषण नह है? ( कट) आय, यह आभूषण कहां से
लया?
रा स : ापा रय से मोल लया।
मलयकेतु : वजये! इस अंलकार को तुम पहचानती हो?
तहारी : (दे खकर आंसू भरे नयन से) य नह पहचानती,
कुमार? यह तो वनामध य दे व पवते र का पहना आ
है।
मलयकेतु : (रोते ए) हा तात! हा पता! आभूषण के ेमी, हे
कुलभूषण! यह वही अलंकार है जससे आप च कां त
से सुशो भत, न से भरी शरत्कालीन सं या क भां त
मनोहर लगते थे।
रा स : ( वगत) या कहा? यह पवते र का पहना आ
आभूषण है! ( कट) प है क यह भी चाण य के भेजे
ापा रय ने हम बेचा है।
मलयकेतु : आय! पता के पहने और वशेषकर च गु त के भेजे
अंलकार का ापा रय से खरीदना या ठ क लगता है?
आप जैसे ू र ने इन आभूषण के मू य के एवज
म हम अ य धक लाभ के इ छु क च गु त के हाथ स प
दया।
रा स : ( वगत) अब श ु क कूटनी त बड़ी प क हो गई। अगर
क ँ क यह लेख मेरा नह है तो यह कौन मानेगा! मु ा
तो मेरी है शकटदास ने म ता म व ासघात कर दया,
इसे भी कौन मानेगा…आभूषण क खरीद पर व ास ही
कौन कर सकता है! अब तो अपराध मान लेना ही अ छा
है। बेकार असंगत उ र दे कर भी या होगा!
मलयकेतु : म पूछता ँ…
रा स : (आँख म आँसू भरकर) कुमार, जो आय हो उससे पू छए
: हम तो अब अनाय हो गए!
मलयकेतु : च गु त आपके वामी का पु है, तो म भी तो आपक
सेवा म लगे म का पु ँ। वह आपको धन दे गा, पर तु
यहाँ आपक आ ा से मुझे धन मलता है। वहाँ म ी
होकर भी आप पराधीन ह गे, पर यहाँ आपका भु व है।
कौन-सी इ छा बच गई थी आपक क उसने आपको
अनाय बना दया?
रा स : कुमार, ऐसी अयु बात कहकर आपने तो मेरा नणय
भी कर दया! च गु त मेरे वामी का पु है, पर आप भी
मेरी सेवा म लगे म -पु ह। वह मुझे धन दे गा, पर तु
यहाँ मेरी आ ा से आपको धन मलता है। वहाँ म ी
होकर भी म पराधीन र ँगा, पर यहाँ मेरा भु व है। कौन-
सी इ छा बच गई थी मेरी क उसने मुझे अनाय बना
दया?
मलयकेतु : (लेख और आभूषण क पटारी दखाकर) यह या है?
रा स : (रोता आ) भा य क ड़ा! जन न द से नेह कर
हमने दे ह सम पत क थी, उ ह ने अपने पु क भाँ त
हमसे ेम कया था। उन गुण- ाहक राजा को ही जब
मार डाला गया, तब यह वधाता का ही दोष है, और
कसी का नह !
मलयकेतु : ( ोध से) या अब भी आप भा य पर दोष डालकर
अपना अपराध छपाते ह? अनाय! कृत न! पहले तो
वष-क या भेजकर मेरे व ासी पता को मार डाला और
अब मह वाकां ा से श ु का म ीपद और उसका ेम
पाने को हम लोग को मांस क भां त बेचने को तैयार कर
लया है?
रा स : ( वगत) यह एक घाव पर सरी चोट है। ( कट, कान
ब द कर) पाप शा त हो! पाप शा त हो! मने वषक या
का योग नह कया। पवते र के बारे म मेरा कोई पाप
नह ।
मलयकेतु : तो फर पता को कसने मारा?
रा स : यह वधाता से पू छए।
मलयकेतु : ( ोध से) वधाता से पूछ? जीव स पणक से नह ?
रा स : ( वगत) या जीव स भी चाण य का गु तचर था?
हाय, शोक! श ु ने तो मेरे दय पर भी अ धकार कर
लया!
मलयकेतु : ( ोध से) भासुरक! सेनाप त शखरसेन को मेरी आ ा
दो क इस रा स से म ता करके, हमसे ोह करके, जो
च गु त क सेवा करना चाहते ह, उनम कौलूत च वमा,
मलया धप सहनाद और क मीर-नरेश पु करा मेरा
रा य बाँट लेना चाहते ह, भू म चाहते ह! स धुराज
सुषेण और पारसीकाधीश मेघा हाथी चाहते ह। इस लए
पहले तीन को गहरे गड् ढ म डालकर रेत से पाट दो और
बाक दो को हाथी के पैर से कुचलवा दो!
पु ष : जो आ ा, कुमार! ( थान)
मलयकेतु : ( ोध से) रा स…रा स! म व ासघाती रा स नह ,
मलयकेतु ँ! चले जाओ…और सब तरह से च गु त क
सेवा करो! तु हारे साथ आए चाण य और च गु त को
म ठ क वैसे ही उखाड़ने म समथ ँ जैसे बुरी नी त धम,
अथ, काम, तीन का उ मूलन कर दे ती है।
भागुरायण : कुमार, समय न न क रए! शी ही कुसुमपुर को घेर लेने
क अपनी सेना को आ ा द जए। लो -कुसुम के
मकरंद से यु गौड़दे शीय य के गाल को धू मल
करती; उनके घुंघराले, मर के समान काले केश क
सु दरता को वकृत करती ई, हमारे घोड़ के खुर ारा
उड़ाई ई धू ल, हा थय के मद-जल से सन-सनकर,
श ु के सर पर गरे!
[सबके साथ मलयकेतु का थान]
रा स : (उ े ग से) हाय, ध कार है! कैसा क है! बचारे
च वमा आ द भी ऐसे मारे गए। तो या रा स म नाश
चाहता है, श ु वनाश नह ? म अभागा अब क ं भी
या? या तपोवन चला जाऊँ? पर तु श ुता-भरे मेरे मन
को या तप से श त मल सकेगी? तो या वामी नंद
के पथ पर चलू? ं पर तु यह तो य का-सा काम है।
या खड् ग लेकर श ु पर टू ट पडू ं? पर तु या यह
ठ क होगा? नह । च दनदास बंधन म है। उसे छु ड़ाने को
मेरा मन ाकुल हो रहा है। य द ाकुलता मुझ कृत न
को न रोके तो यु ही ठ क होगा। ( थान)
[पाँचवाँ अंक समा त]

1. कौलूत आ द से अ भ ाय कौलता धप के साथ-साथ क मीरा धप, पारसीका धप,


सधुराज तथा मलया धप से है।
छठा अंक

[अंलकार पहने ए स स ाथक का वेश]


स ाथक : मेघ याम के शह ता व णु क जय! स जन को आन द
दे ने वाले च मा जैसे च गु त क जय! सेनाहीन
आ मण से श ु का नाश करने वाली आय चाण य
क नी त क जय! ब त दन से अपने ब त पुराने म
सु स ाथक से नह मल पाया। (घूमकर) म उससे मलने
चला ं और वह इधर ही आ रहा है। चलूं उसके पास।
[सु स ाथक का वेश]
सु स ाथक : जब म से वयोग हो जाता है तब मन के भीतर बसे
ए वैभव भी आपानक 1 और महो सव म पीड़ा दे कर
खेद उ प करते ह। मने सुना है क मलयकेतु के श वर
से य म स ाथक आया है। उसे ही ढूं ढूं। (घूमकर
पास जाकर) अरे, वह यह है,
स ाथक : (दे खकर) अरे यह या, य म सु स ाथक तो इधर ही
आ गए! (पास जाकर) म , अ छे तो हो?
[दोन आपस म ेम से आ लगन करते ह।]
सु स ाथक : अरे म , मुझे सुख कहां? इतने दन तक बाहर रहकर
तो आए, पर बना कोई समाचार कहे-सुने कह और ही
नकल पड़े।
स ाथक : य सखे! नाराज़ य होते हो? मुझे दे खते ही आय
चाण य ने आ ा दे द क स ाथक, जाओ, यदशन
दे व च गु त को यह य स दे ह सुनाओ! इस लए
महाराज को सुनाकर, स करके, तब तुमसे मलने
तु हारे ही घर जा रहा ँ।
सु स ाथक : म ! य द म सुन सकता ँ तो बताओ क तुमने
यदशन च गु त को या सुनाया?
स ाथक : म ! या कोई ऐसी बात भी है जो म तु ह न सुना सकूँ?
सुनो! आय चाण य क नी त से रा मा मलयकेतु ने
रा स को पद से हटाकर, च वमा आ द मुख राजा
को मार डाला। तब राजा ने मलयकेतु के बारे म यह
सोचकर क यह रा मा तो ववेकहीन है, अपने-अपने
रा य क र ा के लए, मलयकेतु के श वर ने अपने
बचे-खुचे साथी इक े कए और अपने रा य को लौट
गए। तब भ भ , पु षद , हगुरात, बलगु त, राजसेन,
भागुरायण, रो हता और वजयवमा आ द धान पु ष
ने मलयकेतु को गर तार कर लया।
सु स ाथक : म ! जा म तो चचा है क भ भ आ द दे व च गु त
के व होकर मलयकेतु के आ य म चले गए थे। तब
यह सब या हे जो क कसी अयो य क व के रचे ए
नाटक क भाँ त आर भ म कुछ और है और अ त म कुछ
और?
स ाथक : वधाता के समान अबो य काम करती है आय चाण य
क नी त। उसे सौ बार नम कार करो!
सु स ाथक : अ छा, फर?
स ाथक : तब आय चाण य ने वशाल सेना के साथ नकलकर
राजाहीन स पूण श ु-सेना पर अपना अ धकार कर
लया।
सु स ाथक : कहाँ? म !
स ाथक : वह , जहाँ मद-जल बरसाते गव ले मेघ -से यामल हाथी
चघाड़ रहे थे और कशाघात से डरे चपल तुरंग अपने
सवार को चंचल करते ए यु के लए तैयार खड़े थे।
सु स ाथक : चलो! आ। पर सबके सामने इस तरह म ी-पद
छोड़कर आय चाण य ने फर उसी पद को य वीकार
कर लया?
स ाथक : ब त भोले हो तुम, म ! जस आय चाण य क बु
को अमा य रा स भी नह समझ सका, उसे तुम य ही
जानना चाहते हो!
सु स ाथक : अब अमा य रा स कहाँ है?
स ाथक : म , जब लय का-सा कोलाहल बढ़ता चला गया, तब
अमा य रा स मलयकेतु के श वर से नकल पड़ा। उं र
नामक त पीछा करने लगा। अब रा स यह कुसुमपुर म
आ प ंचा है, यह वयं उं र ने आय चाण य से कहा है।
सु स ाथक : म ! न द-रा य को वापस लेने म य नशील रा स एक
बार कुसुमपुर छोड़ जाने पर अब बलकुल असफल
होकर यहाँ य लौट आया है?
स ाथक : म ! अनुमान है क च दनदास के नेह के कारण।
सु स ाथक : म ! या सचमुच ही च दनदास के नेह से? या
च दनदास छू ट सकेगा?
स ाथक : म ! उस अभागे का छु टकारा कहाँ? वह आय चाण य
क आ ा से शी ही हम दोन ारा व य थल पर ले
जाकर मारा जाएगा।
सु स ाथक : ( ोध से) म ! या आय चाण य के पास और कोई
घातक नह रहा क उ ह ने हम लोग को ऐसे नीच काय
म लगाया है?
स ाथक : म ! कौन ऐसा है क जो जी वत रहने क इ छा भी करे
और आय चाण य के भी व हो जाए? बस, चलो
चल! चा डाल का वेश धारण करके च दनदास को वध-
भू म म ले चल।
[दोन का थान]
[ वेशक समा त]
[हाथ म र सी लए एक पु ष का वेश]
पु ष : छः गुण 1 से गुंथी ई, वजय के उपाय से बंट ई, श ु
को बांधने म कुशल आय चाण य क नी त-र जु2 क
जय! (घूम- फरकर दे खकर) आय चाण य के उं र
नामक त ने यही जगह बताई थी, जहां अमा य रा स
के आ प ंचने क आशा है। (दे खकर) या ये अमा य
रा स ही मुख को कपड़े म छपाए इधर चले आ रहे ह?
तो म इस पुराने उ ान के वृ क आड़ म छपकर दे खूं
क वे कहां कते ह। (घूमकर बैठ जाता है।)
[मुंह ढके ए सश रा स का वेश]
रा स : (आंख म आंसू भरकर) हाय क ! दा ण क ! आ य
वन हो जाने पर कुलटा क तरह कातर होकर
रा यल मी परपु ष के पास चली गई। नेह- याग करने
पर अपने पूवव तय का अनुगमन करती जा भी उसी
ल मी के साथ हो ली। व सनीय पु ष ने भी
असफलता के कारण काय का भार उठाना छोड़ दया।
…करते भी या! वे वयं सरकटे हा थय क तरह हो
गए ह। न द जैसे भुवने र को छोड़कर राचा रणी
रा यल मी ढ ठ, च र हीना शू ा क भां त छल से वृषल
के पास जाकर थर हो गई है। हम ही या कर? भा य
भी तो श ु क तरह हमारे हरेक य न को असफल करने
म लगा आ है। चाण य के हाथ न मारे जाने यो य दे व
न द के वगवासी होने पर पवते र का आ य लेकर
य न कया, पर वह भी मर गया। उसके बाद उसके पु
क सहायता ली, क तु फर भी असफलता ही मली।
मुझे तो लगता है क भा य ही न द वंश का श ु है, वह
ा ण चाण य नह है। ले छ मलयकेतु भी कैसा
बु हीन है! सवंश न हो जाने वाले वामी क जो अभी
तक सेवा कर रहा है वह रा स जीते जी श ु से कैसे
स ध कर सकता है! उस मूख, अ छे -बुरे क पहचान न
करने वाले ले छ मलयकेतु ने यह भी नह सोचा! नह ।
अथवा भा य से त मनु य क बु पहले से ही उलट
हो जाती है। ले कन रा स अब भी श ु के हाथ पड़कर
मर जाएगा, पर तु उस च गु त से स ध कभी नही नह
करेगा। अपनी त ा को पूण न करने का कलंक फर
भी अ छा है, क तु श ु के छल-बल से अपमा नत होना
तो अस है। (चार ओर आंस-ू भरी आंख से दे खकर)
यह दे व न द के चरण से प व ई कुसुमपुर क
उपक ठ भू म1 है। यह यंचा ख चने से ढ ली पड़ी
लगाम को कसकर पकड़ते ए दे व न द ने घोड़े को खूब
तेज दौड़ाकर भागते ए कौशल से ल य को बाण
मारकर बेध दया था। यह उ ान क े णय म उ ह ने
राजा के साथ बैठकर वचार कया था। आज यही
भू मयां मेरे दय को अ य त लेश दे रही ह। म अभागा
कहां जाऊं! (दे खकर) इसी जीण उ ान म चलूं और
कसी तरह च दनदास का पता लगाऊं। (घूमकर, वगत)
अरे! पु ष के उतार-चढ़ाव का कोई पता नह लगा
सकता। जो कभी पहले नकलता था तो लोग उसे एक-
सरे को ऐसे उंग लयां उठाकर दखाते थे जैसे नया
च मा हो, और जो कभी हजार राजा से घरा आ
राजा क तरह ही कुसुमपुर से नकला करता था, वही म
आज असफल होकर चोर क तरह डरता-डरता चुपके-
चुपके इस पुराने उपवन म वेश कर रहा ।ं अरे, जसके
साद से यह सब होता था, अब वे ही नह रहे। ( वेश
करके) ओह! अब जीण ान क वह शोभा कहाँ चली
गई? अ य त प र म से न मत वह ासाद न द वंश क
भाँ त ही न हो गया। म के वयोग से सूखे ए दय
क भाँ त तालाब भी सूख गया। भा य से त वृ भी
नी त क भाँ त ही फलहीन हो गए और यहाँ क भू म भी
कुनी त के कारण मूख क बु क तरह घास-पात से
ढक गई! तीखे परशु से इन वृ के अंग काट दए
गए। ये कबूतर क पं याँ नह , ब क उसके घाव को
दे खकर ख से रोते ए वजन ह उसे खी जानकर
उसांस-सा लेते ए साँप डोल रहे ह। अपनी कंचुल या
छोड़ते ह, मानो घाव पर फाहा लगा रहे ह। अ दर से सूख
गए ह ये वृ ! क ड़ ने सब कुछ खा डाला है। रस
टपकता है क ये रो रहे ह, छायाहीन ये वृ तो ऐसे लगते
ह जैसे कोई मशान जाने को उ त हो!
इस टू ट शला पर बैठ जाऊँ। अभाग को यह तो
मल ही जाती है। (बैठकर और कान लगा सुनकर) अरे,
यह शंखपटह के वर से संयु यह ना द श द कहाँ हो
रहा है? कतना च ड श द है क ोता के कान फाड़े
दे रहा है! जब वह वहाँ समाया नह तो हवा पर चढ़कर
इधर आ रहा है। मानो दशा का व तार दे खने को यह
चंचल हो उठा हो। (सोचकर) हाँ, समझा! मलयकेतु को
गर तार कर लेने के कारण यह राजकुल ( ककर ई या
और ख से) मौय कुल का आन द कट कर रहा है।
(आँख म आँसू भरकर) हाय दा ण क ! हाय रे लेश!
दै ववश पहले तो श ु के वैभव क बात ही सुनी थी, फर
भा य ने यहाँ लाकर उसे दखा दया। अब मुझे लगता है
क व ध मुझे उसको सवा मभाव से वीकार कराने का
य न कर रही है।
पु ष : ये बैठ गए। अब मुझे भी आय चाण य क आ ा का
पालन करना चा हए।
[रा स क ओर न दे खकर अपने गले म र सी का फंदा
लगाने लगता है।]
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! यह कौन फाँसी लगा रहा है?
अव य यह कोई मेरे जैसा ही खी है। इससे पूछूँ। (पास
जाकर, कट) भ ! भ ! यह या कर रहे हो?
पु ष : (रोता आ) आय, जो य म के नाश से खी हमारे
जैसा अभागा कर सकता है!
रा स : ( वगत) मने पहले ही सोचा था क कोई मुझ जैसा ही
अभागा है! ( कट) भ ! जीवन क ख पी शाला के
सहपाठ ! य द कोई बड़ी और गु त बात न ह तो मुझे
बताओ। आ खर मरते य हो?
पु ष : (दे खकर) आय! न वह रह य है, न कोई बड़ी बात ही। पर
मेरा य म मरने को है, इसी ख से म मरता ँ। मुझे
मरने दो, समय न न कराओ।
रा स : (द घ ास लेकर, वगत) हाय! अपने म पर पड़ी
वप य म भी हम पराय क तरह उदासीन हो गए ह—
इसने हम यह भान करा दया है। ( कट) य द वह रह य
नह है, ज़रा-सी बात है, तो मुझे बताओ न! ख का
कारण या है?
पु ष : उफ, कतना आ ह है, आय, आपका! या क ं ?
सुनाता ।ं इस नगर म कोई ज णुदास े म णकार है।
रा स : ( वगत) ज णुदास च दनदास का परम म है। ( कट)
उसका या आ?
पु ष : वह मेरा य म है।
रा स : ( स ता से, वगत) अरे! य म है? तब तो ब त
पास का स ब ध है। अरे! अब च दनदास का समाचार
मल जाएगा। ( कट) तो या आ, भ ?
पु ष : (आँसू-भरी आँख से) इस समय गरीब को अपना धन
बाँटकर वह अ न- वेश करने नगर के बाहर चला गया
है। म भी, इस समाचार को सुनने से पहले ही क मेरा
य म मर गया, यहां गले म फंदा लगाकर मरने आया
ं।
रा स : भ ! तु हारा म अ न- वेश य कर रहा है? या वह
कसी असा य रोग से पी ड़त है?
पु ष : नह , आय, नह ।
रा स : तो या अ न और वष क भां त भयानक राजकोप से
पी ड़त है?
पु ष : नह , आय, नह ! च गु त के रा य म ऐसी नृशंसता नह
है।
रा स : तो या कसी ी से ेम हो गया था?
पु ष : (कान पर हाथ रखकर) आय, पाप शांत हो! पाप शा त
हो! अ य त वनयशील वै य के लए यह सोचा भी नह
जा सकता। और फर ज णुदास के लए?
रा स : तो वे भी तु हारी तरह य म के वनाश के कारण मर
रहे ह?
पु ष : हां, आय! यही बात है।
रा स : (घबराकर, वगत) च दनदास इसके म का य म है
और म के वनाश के कारण ही वह मर रहा है। सच तो
यह है क य म क च ता मुझे ाकुल कर उठ है।
( कट) भ ! मुझे अपने म के प व च र का पूरा
ववरण सुनाओ।
पु ष : आय! म अभागा अब मरने म और दे र नह कर सकता।
रा स : भ ! वह बात तो बताओ।
पु ष : या क ं ! अ छा कहता ं। सु नए।
रा स : सुन रहा ,ं भ ।
पु ष : आप जानते ह गे इस नगर म म णकार च दनदास े
रहता है?
रा स : (खेद से, वगत) मेरे वनाश का ार भा य ने खोल
दया है। ओ मेरे दय, थर रह! तुझे अभी और भी
वदा ण संवाद सुनना है। ( कट) भ ! कहते ह वह बड़ा
म -व सल है। उसको या आ?
पु ष : वह इस ज णुदास का परम म है।
रा स : ( वगत) अरे दय, व सहने को त पर हो जा! ( कट)
हां, फर?
पु ष : आज ज णुदास ने य के नेह से च गु त से उ चत ही
कहा।
रा स : या कहा? कैसे?
पु ष : कहाः दे व! मेरे पास घर-प रवार पालने को काफ धन है,
उसे लेकर उसके बदले म मेरे य म च दनदास को
छोड़ द जए।
रा स : ( वगत) ध य, ज णुदास, ध य! तुमने म - ेम नबाहा।
जस धन के लए पु पता को और पता पु को श ु
समझने लगता है; म मलना छोड़ दे ते ह; उसी धन को
तुम अपने म को मु कराने के लए उपयोग कर रहे
हो; उसे ःख क भां त छोड़ रहे हो। तुमने तो ापारी
वभाव ही उलटा कर दया! ( कट) भ ! तब मौय। ने
या कहा?
पु ष : आय! ऐसा कहने पर च गु त ने उससे कहा क हमने
धन के लए च दनदास को द ड नह दया, ज णुदास!
इसने अमा य रा स का कुटु ब कह छपा रखा है। हमने
कई बार उसे इससे मांगा, पर इसने नह दया। अब भी
य द उसे हमारे हाथ स प दे तो हम इसे छोड़ दगे, अ यथा
ाणद ड अव य मलेगा।… इसके बाद च दनदास को
व य- थान क ओर ले जाया जाने लगा। ज णुदास ने
कहा क इससे पहले क म म क मृ यु क बात सुनूं, म
ही मर जाऊं! वह अ न म जल मरने नगर के बाहर
नकल गया। म भी ज णुदास के मरने का समाचार सुनने
से पहले ही मर जाना चाहता ।ं इसी से यहां आया ं।
रा स : भ ! च दनदास अभी मारा तो नह गया?
पु ष : नह , आय! अभी नह । उससे बार-बार अमा य रा स का
कुटु ब माँगा जा रहा है, पर वह म - ेम के कारण साफ
मना कर रहा है। इसी लए उसके मरने म दे र हो रही है।
रा स : (सहष, वगत) ध य, च दनदास, ध य! म शरणागत
क र ा करके तुमने श व क भाँ त यश पा लया!
( कट) भ …भ ! तुम शी जाओ और ज णुदास को
जलने से रोको। म भी चंदनदास को मरने से रोकता ।ँ
पु ष : आय! आप च दनदास को मरने से कैसे रोक सकते ह?
रा स : (खड् ग ख चकर) और कसी से नह , इय खड् ग से!
पौ ष- य खड् ग से! दे खो, नमल आकाश-सा शु ,
रण- ेम के कारण पुल कत-सा, मेरे हाथ का साथी, बल
क अ धकता को सं ाम क कसौट पर ही दखाने वाला
मेरा यह खड् ग म - ेम के कारण ववश बने ए मुझको
अब पु षाथ दखाने को उकसा रहा है।
पु ष : आय, इसे मने सुन लया क च दनदास बच सकता है,
पर ऐसे समय म इस खड् ग के योग का प रणाम या
होगा, यह तो सो चए! (दे खकर, चरण पर गरकर) या
आप ही वनामा य अमा य रा स ह? स होइए।
कृपया मेरा स दे ह र क रए।
रा स : भ ! म वही वामी-कुल- वनाश से खी, म के वनाश
के कारण, वनामध य अनाय रा स ँ।
पु ष : ( स ता से फर पाँव पर गरकर) स ह , स ह !
आ य! दे खकर ही कृताथ हो गया।
रा स : भ , उठो! समय न न करो। उठो, ज णुदास से जाकर
कहो क रा स च दनदास को मृ यु से छु ड़ाता है। इस
खड् ग म मेरा पौ ष है। सं ाम म ही इसक कसौट है।
पु ष : ( फर पाँव पर गरकर) स ह ! अमा य स ह !
नगर म रा मा च गु त ने पहले शकटदास के वध क
आ ा द थी। उसे कसी ने व य थल से भगाकर कह
और प ँचा दया। च गु त ने पूछा क ऐसा माद य
आ? आय शकटदास का वध न होने के कारण उसने
अपनी ोधा न को व धक के मृ यु पी जल से
बुझाया। तब से व धक जब कसी श धारी को आगे या
पीछे कह दे खते ह तो रा ते म ही, अपनी र ा करने को,
व य थल म प ँचने से पहले ही, व य पु ष को मार
डालते ह। आप श लेकर जाएँगे तो यही च दनदास क
शी मृ यु का कारण बन जाएगा। ( थान)
रा स : ( वगत) उफ! चाण य क नी त का माग कौन समझ
सकता है! य द शकटदास श ु क स म त से मेरे पास
प ँचाया गया…तो श ु ने घातक को य मरवा दया?
और यह य द जाल है तो उसने वैसा प लखकर
न दवंश का अ हत य कया? तक के आधार पर मेरी
बु कसी न य पर नह प ँच रही। (सोच करके) नह ,
यह श ले जाने का समय नह है। इससे तो म का
नाश शी तर हो जाएगा। नी त का फल ब त समय के
प ात् कट होता है, अतः यहाँ उसका या योजन!
इतने गहरे म के त म उदासीन भी नह हो सकता।
अतः, यही सही। म अपने म क मु के लए अपने
शरीर को दे कर उसका मू य चुकाऊँगा।
[ थान]
[छठा अंक समा त]

1. पीने- पलाने क गो यां। म दरा पीने क गो यां पुराने समय म भारत म ब त च लत


थ।
1. गुण= अथात् छः र सयां बंटकर बनी एक र सी। गुण का सरा अथ तो प ही है। छः
गुण राजनी त म ह—साम, दाम द ड, भेद इ या द।
2. र जु=र सी। र सी क नी त से तुलना क गई है।
1. नगर के बाहर क जगह : Suburb : जसे गाँव म ज भाषा म ‘गौडे क धरती’ कहते
ह।
सातवां अंक

[चांडाल का वेश]
चांडाल : हट जाओ, आय , हट जाओ! हटो, मा यो, हटो! य द
आप अपने जीवन, ाण वैभव, कुल, ी आ द क र ा
करना चाहते ह, तो य नपूवक रा य का अ हत करने
क भावना का याग क रए। अप य भोजन से मनु य को
रोग या मृ यु क ही ा त होती है, पर तु राज ोह जैसे
अप य से तो सारा वंश ही न हो जाता है। य द आपको
व ास नह होता तो बाल-ब च के साथ, व य थल पर
लाए गए इस राज ोही े च दनदास को दे खए।
(आकाश को दे खकर) आय! या कहा? या पूछा क
च दनदास के बचने का कोई रा ता है? कहाँ? इस अभागे
के बचने का रा ता ही या है? पर, नह । यह भी हो
सकता है! य द यह रा स के कुटु ब को दे दे । ( फर
आकाश दे खकर) या कहा? यह शरणागत-व सल अपने
ाण क र ा के लए ऐसा बुरा काम कदा प नह
करेगा? आय! य द यही बात है, तो इसक शुभग त क
सो चए। अब र ा का वचार करने से या लाभ?
[ सरे चा डाल के आगे ी-पु के साथ व यवेश म सूली
कंधे पर रखे ए च दनदास का वेश]
च दनदास : हा, धक्! न य च र -भंग के भय म रहने वाले मुझ जैसे
आदमी क भी चोर क -सी मृ यु हो रही है। भगवान
कृता त को नम कार है। ू र घातक को तो अपराधी
और नरपराधी म कोई भेद नह लगता। मृ यु क
आशंका से मांस को छोड़कर केवल तनक पर जीने
वाले भोले-भाले हरन को मारने म ही शकारी का वशेष
हठ य होता है! (चार ओर दे खकर) हाय, म
ज णुदास! मुझे जवाब नह दे त?े ऐसे आदमी ही लभ
ह जो इस समय दखाई द। (अ ु-भरे ने से) ये लोग जो
आंसू-भरी आँख से मुझे दे खते ए लौट रहे ह, ये मेरे
म ही ह। (घूमता है।)
दोन चांडाल : (घूमकर तथा दे खकर) आय च दनदास! तुम व य थल म
आ चुके हो। अब स ब धय को लौटा दो।
च दनदास : आय कुटु बनी; तुम पु के साथ लौट आओ। यह
व य थल है। इससे आगे जाना ठ क नह ।
कुटु बनी : (रोते ए) आय परदे श तो नह जा रहे, परलोक जा रहे
ह। अतः अब हम लौटकर या करगे?
चंदनदास : आय! ठ क है मेरा वध हो सकता है, पर म के काय के
कारण ही तो, फर ऐसे हष के अवसर पर भी रोती हो?
कुटु बनी : आय! यही बात है तो घरवाले य लौट जाएँ?
च दनदास : आय! तो तु हारा या न य है?
कुटु बनी : (रोकर) ी को तो प त के चरण का ही अनुगमन करना
चा हए।
चंदनदास : आय! यह रा ह है। यह अबोध ब चा है। इसपर तो दया
करो।
कुटु बनी : कुलदे वता स होकर इस बालक क र ा कर। व स,
आगे पता नह रहगे! इनके चरण को णाम करो।
पु : (पांव पर गरकर) पता! आप चले जाएंग? े अब म या
क ं?
चंदनदास : पु ! उस दे श म चले जाना, जहां चाण य नह हो।
चा डाल : आय चंदनदास, सूली गड़ चुक है। सावधान हो जाओ!
कुटु बनी : आय ! र ा करो, र ा करो!
चंदनदास : भ ! ण-भर ठहरो। ाण ये, य रोती हो? अब वे दे व
न द वग चले गए जो न य य पर दया कया करते
थे।
एक चांडाल : अरे, वेणुवे क! इस च दनदास को पकड़। घर के लोग
अपने-आप लौट जाएंग।े
सरा चांडाल : अरे, व लोमक! अभी पकड़ता ं।
चंदनदास : भ मुख! एक ण और ठहर जाओ। म त नक अपने पु
का आ लगन कर लूं। (पु से आ लगन कर, नेह से
उसका सर सूंघकर) पु ! मृ यु तो कभी न कभी वैसे भी
होगी ही, इस लए म म का काय पूरा करते ए इस
समय मर रहा ँ।
पु : तात, या यह हमारा कुल-पर परा से आया धम है? (पैर
पर गरता है।)
सरा चांडाल : अरे व लोमक, पकड़!
[दोन चा डाल सूली पर चढ़ाने के लए चंदनदास को
पकड़ते ह।]
कुटु बनी : (छाती पीटकर) आय ! बचाओ, बचाओ!
रा स : (पदा हटाकर वेश करते ए) डरो मत, डरो मत! अरे
सूली दे ने वालो, अब च दनदास को मत मार य क
जसने श ुकुल क भां त वामीकुल वन होते ए दे खा
है, जो म क आप म आनंदो सव मनाते क
भां त रहा और अपमा नत होकर भी जो मरने को तैयार
है, ऐसे मुझ रा स को पकड़ो। मुझ अभागे के गले म
यमलोक के माग जैसी इस व यमाला को डाल दो।
चंदनदास : (दे खकर, रोता आ) अमा य, यह आपने या कया?
रा स : तु हारे प व च र के केवल एक अंश का अनुकरण!
चंदनदास : अमा य! मेरे सारे उ ोग को ऐसे थ करके या आपने
उ चत कया है?
रा स : म चंदनदास! उपाल भ मत दो। स पूण संसार वाथ
है। भ ! तुम यह समाचार रा मा चाण य से कह दो।
एक चांडाल : या?
रा स : के लए अ य त य इस भयानक क लकाल म भी
जसने अपने ाण दे कर सरे के ाण क र ा करने का
य न कया है, और इस कार श व के यश को भी
तर कृत कर दया है; जस प व ा मा के वशाल च र
ने बु के च र को भी छोटा बना दया हैः ऐसे
वशु ा मा पूजनीय चंदनदास का वध जस के
लए तुम करने जा रहे थे, वह म उप थत ँ।
एक चांडाल : अरे! वेणुवे क तू इस े चंदनदास को पकड़कर इस
मरघट के पेड़ क छाया म बैठ। म आय चाण य क सेवा
म यह नवेदन करके आता ँ क अमा य रा स पकड़े
गए!
सरा चांडाल : अरे, व लोमक! ठ क है। यही कर!
एक चांडाल : (रा स के साथ घूमकर) अरे! कौन है यहां ारपाल म?
न द वंश क सेना को मारने के लए व जैसे तथा
मौय वंश म धम- थापना करने वाले आय चाण य से
नवेदन करो…
रा स : ( वगत) यह भी रा स को सुनना था!
एक चांडाल : आपक नी त से कु ठतबु रा स पकड़े गए ह।
[जव नका1 से शरीर ढं के और केवल मुख खोले चाण य
का वेश]
चाण य : (सहष) भ ! कहो, कहो, ऊँची लपट के कारण पीली
दखाई दे ने वाली अ न को कपड़े म कसने बांधा है?
कसने पवन क ग त को र सय से रोका है? कसने
मतवाले हा थय के मद-जल से सुर भत और भीगे ए
सह को पजरे म ब द कया है? कसने भयानक मकर-
न से भरे समु को हाथ से तैरकर पार कया है?
एक चांडाल : नी त- नपुण आय ने ही।
चाण य : भ ! ऐसा नह है। यह कहो क नंद वंश के े षी दै व ने ही
ऐसा कया है।
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! वही रा मा या महा मा कौ ट य
है! यह र न के आकर समु क भां त शा का आगार
है। हम इसके गुण से ई या करते ह, ेम नह ।
चाण य : (दे खकर सहष) अरे! ये तो अमा य रा स ह। जस
महा मा के कारण दे र-दे र तक जागकर बड़े-बड़े उपाय
सोचते-करते मौय सेना और मेरी बु थक गई है! (पदा
हटाकर और पास आकर) अमा य रा स! आपको
व णुगु त नम कार करता है।
रा स : ( वगत) अब ‘अमा य’ वशेषण ल जा दे ने वाला-सा
लगता है। ( कट) अरे व णुगु त, म चा डाल के पश से
षत ँ मुझे मत छु एं।
चाण य : अमा य रा स! यह चा डाल नह ह। यह तो आपका
पूवप र चत रा य-कमचारी स ाथक है। वह सरा भी
रा यकमचारी सु स ाथक है। और शकटदास क इन
दोन से म ता करवाकर इससे मने ही छल के ारा वह
प लखवाया था। इस स ब ध म वह बेचारा तो कुछ
जानता ही नह था।
रा स : ( वगत) उफ! शकटदास के त मेरा संदेह तो र आ।
चाण य : ब त या क ं! सं ेप म यही है क आपके सेवक
भ भ आ द, कपट-भरा लेख, आपका व ासपा
स ाथक, तीन आभूषण, आपका म पणक,
जीण ान वाले ःखी पु ष, चंदनदास के क -इन
सबका आयोजन-संचालन मेरे ारा ही आ। (कहकर
ल जा से संकु चत होता है।) और वीरवर, यह सब मने
आपका चं गु त से मलन कराने के लए ही कया।
दे खए, यह वृषल आपसे मलने आ रहा है।
रा स : ( वगत) या क ं ? ( कट) दे खता ं।
[राजा का अनुचर -स हत वेश]
राजा : ( वगत) बना यु कए ही आय ने जय श ु को हरा
दया! म तो संकोच म पड़ गया ।ं फल रहते ए भी
काम न करने करने से ल जत होकर ही नीचे मुंह कए
तरकश म पड़े बाण का-सा जीवन मेरे लए संतोष का
वषय नह है। अथवा ऐसा सोचना ठ क नह है-मेरे
समान रा य-सुख क न द लेने वाले जस राजा के रा य-
संचालन म नर तर जाग क आचाय चाण य जैसे
संल न ह (चाण य के पास जाकर) …आय!
च गु त णाम करता है।
चाण य : वृषल! तु ह जो आशीष दए थे वे सब सफल ए।
इस लए आदरणीय अमा य रा स को णाम करो,
य क ये तु हारे पता के धानम ी ह।
रा स : ( वगत) इसने तो स ब ध करा दया!
राजा : (रा स के पास जाकर) आय! म, च गु त अ भवादन
करता ँ।
रा स : (दे खकर, वगत) अरे! यह च गु त है! इसके बचपन म
ही लोग कहते थे क यह बड़ा होकर कुछ होगा। जैसे
धीरे-धीरे हाथी अपने झुंड का अ धप त हो जाता है, वैसे
ही यह भी अब सहासन पर चढ़ गया। ( कट) राजन!
वजयी ह ।
राजा : आय! जरा सो चएः नी त के छह गुण म आपके एवं गु
चाण य के जाग क रहने पर संसार क वह कौन-सी
व तु है जो मेरी न हो जाए?
रा स : ( वगत) या कौ ट य- श य च गु त मुझे अपना भृ य
वीकार कर रहा है? या यह केवल इसक न ता है? पर
च गु त के त मेरी ई या उसे ठ क तरह समझने म
बाधक रही है। सब तरह से चाण य यश वी है। यो य
ओर पु षाथ राजा को पाकर तो मूख म ी भी क त
ा त कर लेता है, पर अयो य राजा के पास जाकर तो
अ य त नी त मं ी भी कगारे पर खड़े पेड़ क तरह
आ य- वहीन होकर गर जाता है।
चाण य : अमा य रा स, या आप च दनदास के ाण क र ा
चाहते ह?
रा स : व णुगु त, इसम या स दे ह है?
चाण य : अमा य, आप बना श उठाए ही च गु त पर अनु ह
कर रहे ह, यही स दे ह है। य द आप सचमुच चंदनदास
क र ा करना चाहते ह, तो यह श हण क जए।
रा स : नह , व णुगु त! यह ठ क नह है। म इसके लए अयो य
ं। और फर आपका उठाया श धारण क ं ?
चाण य : अमा य रा स! यह कैसे कहते ह क आप अयो य ह
और म यो य ं। आप तो दा त श ु का दमन करने
वाले ह। आपके भय से…इन घोड़ को दे खए…जो
नर तर मुंह म लगाम दबाए रहने से बल हो गए ह।
इनक र क सेना के यो ा को दे खए जो सदै व यु -
त पर रहने के कारण न खा सके ह, न पी सके ह, न
नहाते ह, न चैन पाते ह। यह दे खए इन यु के लए सजे
हा थय को! कैसे द न दखते ह! पर अब इस सबसे
या? य द आप श नह थामगे तो च दनदास भी नह
बचेगा।
रा स : ( वगत) दे व न द का नेह मेरे दय को छू रहा है, तो भी
म उनके श ु का भृ य बन गया ँ। अरे, जन वृ को
अपने हाथ से पानी दे -दे कर स चा, या उ ह अब वयं ही
काटना होगा? म क ाण-र ा के लए मुझे अमा य
पद का यह श आज धारण करना पड़ रहा है। भा य के
काय भी कतने व च होते ह! ( कट) व णुगु त, खड् ग
लाओ। सब कुछ जससे स है ऐसे म - नेह के आगे
म नतम तक ँ। या चारा है! म उ त ँ।
चाण य : ( स ता से अपने हाथ का खड् ग उसे सम पत कर दे ता
है ।) वृषल! वृषल! अमा य रा स ने श धारण करके
तु ह अनुगृहीत कर दया है। सौभा य से तु हारा उ कष
हो रहा है।
राजा : च गु त आपक कृपा को जानता है, आय!
पु ष : ( वेश कर) आय क जय हो! आय! भ भ , भागुरायण
आ द मलयकेतु को हाथ-पांव बांधकर राज ार पर लाए
ह। आ ा द जए।
चाण य : हां, सुन लया, भ ! यह अमा य रा स से नवेदन करो।
अब ये ही सब राज-काज क व था कया करगे।
रा स : ( वगत) या कौ ट य मुझे राजसेवक बनाकर मेरे ही मुंह
से कुछ कहलवाना चाहता है? क ं भी या! ( कट)
राजन् च गु त आप जानते ह, मने कुछ दन मलयकेतु
के यहां नवास कया है, अतः इनक ाण-र ा क जए।
[राजा चाण य के मुख क ओर दे खता है।]
चाण य : वृषल! यह अमा य रा स का सबसे पहला य है। इसे
मानना ही चा हए। (पु ष को दे खकर) भ ! मेरी ओर से
भ भट् ट आ द से कहो क अमा य रा स क ाथना पर
च गु त फर से मलयकेतु को उसके पता का रा य
लौटा रहे ह। इस लए आप लोग उसके साथ जाइए और
उसका रा या भषेक करके ही आइए।
पु ष : जो आ ा, आय!
चाण य : ठहर भ , ठहर! दे खो भ , ऐसे ही वजयपाल और
गपाल से कह दो क अमा य रा स ने अमा य पद-श
हण कर लया है, इस लए दे व च गु त उनके त ेम
के कारण आ ा दे ते ह क े च दनदास पृ वी के सारे
नगर म े पद पर माने जाएं।
पु ष : जो आ ा आय! ( थान)।
चाण य : राजन् च गु त! तु हारा और या य क ं ?
राजा : या अब भी कुछ य करना रह गया? रा स जैसा म
दया, रा य पर मुझे थर कर दया और न द का जड़ से
नाश कर दया। अब और करना ही या रहा?
चाण य : वजये! वजयपाल और गपाल से कहो क अमा य
रा स से ेम होने का कारण दे व च गु त आ ा दे ते ह
क केवल हाथी-घोड़े बंधे रहने दो, शेष सबको मु कर
दो। पर जब अमा य रा स ही नेता ह, तब उनसे भी या
काम! इस लए सभी हाथी-घोड़े छोड़ दो। अब त ा
पूण ई। म भी अपनी शखा बांधता ं।
तहारी : जैसी आय क आ ा! ( थान)
चाण य : अमा य! बताओ अब म आपका या य क ँ ?
रा स : या इससे अ धक कुछ ओर भी य हो सकता है? य द
इतने पर संतोष न हो तो फरः
भरतवा य
क प के आर भ म घन लय म डू बी धरा ने,
अतुल बलमय, चर दयामय व णु के अवतार जन
वीरवर वाराह के उस दं त का आ य लया था।
आज ले छ से ई जब पी ड़ता वह
व णु के से सु ढ़ घन भुजद ड वाले वीर न य,
च गु त महान के भुजद ड का आ य लया है।
वे कर र ा धरा क चर समय तक,
रहे वैभव सदा उनका भ -सेवक!
[सबका थान]
[सातवां अंक समा त]

1. जव नका—ज द गरने वाला पदा।

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