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ु ॥
॥ पाप प्रशमन स्तोत्र, अग्नि पराण * Learn
ु नमः। ॐ नमो नारायणाय।
ॐ गणेशाय नमः। ॐ श्री गरुर्े
( Sarva Papa Nashaka Narayana Stotra, Agni Puran).
ु
॥ श्री पष्करोर्ाच ॥
ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े ग्ननत्यं, ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े नमः।
नमाग्नम ग्नर्ष्ण ं ु ग्नचत्तस्थम्-अहङ्कार-गतिं हग्नरम्।१।
ग्नचत्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराग्नििंम्।
*= ग्नचत्तस्थम्-ईशम्-अव्यक्तम-अनन्तम
् ्-अपराग्नििंम्।
ग्नर्ष्णमु ीडयमशेषण
े * अनाग्नि-ग्ननधनं ग्नर्भमु ्।२। *=ग्नर्ष्णमु ्-ईडयम्-अशेषण
े .
ु -ग्न
ग्नर्ष्णश ् चत्त-गिंो यन्मे ग्नर्ष्ण-ु र्ग्नवु ि-गिंश्-च यिं्।
यच्चाहंकारगो ग्नर्ष्णयु ग्नव िष्णमु ग्नव य संग्नस्थिंः ।३।
* = यच्-च-अहंकारगो ग्नर्ष्ण-ु यवि्-ग्नर्ष्ण-ु मवग्नय संग्नस्थिंः।३।
करोग्निं कमव-भूिंोऽसौ स्थार्रस्य चरस्य च ।
िंिं् पापं नाशमायािं ु िंग्निन्नेर्* ग्नह ग्नचग्नन्तिंे ।४। *= िंग्निन्-न-एर्
ध्यािंो हरग्निं यिं् पापं स्वप्ने दृष्टस्त ु भार्नािं्।
े महं* ग्नर्ष्ण ं ु प्रणिंार्तिं-हरं हग्नरम्।५।
िंमपु न्द्र *=िंम्-उपेन्द्रम्-अहं
िगत्यग्निग्नन्नराधारे मज्जमान े िंमस्यधः ।
*= िगत्य्-अग्निन्-ग्ननराधारे मि्-िमान े िंमस्य-धः ।
हस्तार्लम्बनं* ग्नर्ष्ण ं ु प्रणमाग्नम परात्परम्।६। *= हस्तार्-लम्बनं
सर्ेश्वरेश्वर ग्नर्भो परमात्मन्-नधोक्षि ।
हृषीके श हृषीके श, हृषीके श नमोऽस्त ु िंे ।७।
नृतसहानन्त* गोतर्ि भूिं-भार्न के शर् । *अर्व=नृतसह-अनन्त
दुरुक्तं दुष्कृ िंं ध्यािंं शमयाघं* नमोऽस्त ु िंे ।८। *= शमय-अघं,
यन्मया ग्नचग्नन्तिंं दुष्टं स्वग्नचत्त-र्श-र्र्तिंना ।
Pap nashak (Narayan) Stotra e2Learn By VRakesh
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पष्ु कर जी बोिेेः "सवथव्यापी ग्वष्णु को सदा नमस्कार िै । श्री िरर ग्वष्णु को नमस्कार िै ।
मैं अपने ग्ित्त में ग्स्र्त सवथव्यापी, अिक ं ार शन्ू य श्रीिरर को नमस्कार करता िं ।
मैं अपने मानस में ग्वराजमान अव्यि, अनन्त और अपराग्जत परमेश्वर को नमस्कार करता
िं । सबके पजू नीय, जन्म और मरण से रग्ित, प्रभावशािी श्रीग्वष्णु को नमस्कार िै ।
ग्वष्णु मेरे ग्ित्त में ग्नवास करते िैं, ग्वष्णु मेरी बग्ु द्ध में ग्वराजमान िैं, ग्वष्णु मेरे अिक
ं ार में
प्रग्तग्ष्ठत िैं और ग्वष्णु मझु में भी ग्स्र्त िैं ।
वे श्री ग्वष्णु िी िरािर प्राग्णयों के कमों के रूप में ग्स्र्त िैं, उनके ग्ितं न से मेरे पाप का
ग्वनाश िो । जो ध्यान करने पर पापों का िरण करते िैं, और भावना करने से स्वप्न में दशथन
देते िैं, इन्र के अनजु , शरणागत जनों का देःु ख, दरू करने वािे उन पापापिारी श्रीग्वष्णु को
मैं नमस्कार करता िं ।
मैं इस ग्नराधार जगत में अज्ञानांधकार में डूबते िुए को िार् का सिारा देने वािे परात्पर
स्वरूप श्रीग्वष्णु के सम्मख
ु नत मस्तक िोता िं ।
सवेश्वरेश्वर प्रभो ! कमि-नयन परमात्मन् ! हृषीके श !
आपको नमस्कार िै । इग्न्रयों के स्वामी श्रीग्वष्णो ! आपको नमस्कार िै ।
नृग्संि ! अनन्त स्वरूप गोग्वन्द ! समस्त भतू -प्राग्णयों की सृग्ि करने वािे के शव !
मेरे द्वारा जो दवु थिन किा गया िो अर्वा पापपणू थ ग्िंतन ग्कया गया िो,
मेरे उस पाप का प्रशमन कीग्जए, आपको नमस्कार िै ।
के शव ! अपने मन के वश में िोकर मैंने जो न करने योनय अत्यतं उग्र पापपणू थ
ग्िंतन ग्कया िै, उसे शातं कीग्जए । परमार्थ परायण, ब्राह्मण ग्प्रय गोग्वन्द !
आज आप मेरे शरीर एवं वाणी द्वारा ग्कए िुए पापों का िनन कीग्जए ।
आज मैंने खाते, सोते, खडे, ििते अर्वा जागते िुए मन, वाणी और शरीर से जो भी नीि
योग्न एवं नरक की प्राग्ि कराने वािे सक्ष्ू म अर्वा स्र्िू पाप ग्कये िों, भगवान वासदु वे के
नामोच्िारण से वे सब ग्वनि िो जाएं । जो परब्रह्म, परम धाम और परम पग्वत्र िैं,
उन श्रीग्वष्णु के संकीतथन से मेरे पाप ििु िो जाएं । ग्जसको प्राि िोकर ज्ञानीजन पनु ेः िौटकर
निीं आते, जो गंध, स्पशथ आग्द तन्मात्राओ ं से रग्ित िै, श्रीग्वष्णु का वि परम पद मेरे सम्पणू थ
पापों का शमन करें ।"
मािात्म्येः
जो मनष्ु य पापों का ग्वनाश करने वािे इस स्तोत्र का पठन अर्वा श्रवण करता िै, वि शरीर,
मन और वाणी जग्नत समस्त पापों से छूट जाता िै, एवं समस्त पापग्रिों से मि ु िोकर
श्रीग्वष्णु के परम पद को प्राि िोता िै । इसग्िए ग्कसी भी पाप के िो जाने पर इस स्तोत्र का
जप करें । यि स्तोत्र पाप समिू ों के प्रायग्ित के समान िै । कृ च्र आग्द व्रत करने वािे के
ग्िए भी यि श्रेष्ठ िै । स्तोत्र-जप और व्रतरूप प्रायग्ित से सम्पणू थ पाप नि िो जाते िैं ।
इसग्िए भोग और मोक्ष की ग्सग्द्ध के ग्िए इनका अनष्ठु ान करना िाग्िए ।
॥ ॐ॥
|| General Information ||
नोट-
कुछ कठिन शब्द * को ठिठहित करके , उसे "-" से सरल ठकया िै,
और मलू शब्द के साथ नजदीक िी रखा गया िै,
साधक लोग दोनो शब्दों को एक िी जगि पर देख कर तल ु नात्मक पाि कर सकें ।
ग्नचत्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराग्नििंम्।
*= ग्नचत्तस्थम्-ईशम्-अव्यक्तम्-अनन्तम्-अपराग्नििंम्।
ग्नर्ष्णयु ग्नव िष्णमु ग्नव य = ग्नर्ष्ण-ु यवि्-ग्नर्ष्ण-ु मवग्नय
कुछ िी शब्दों का सिी तरि से संठध-ठिच्छे द, करने का का प्रयास ठकया गया िै ।
र्ासिेु र्ानकीिंव ु नािं्= र्ासिेु र्ान-कीिंव ु ु नािं्
नािं् = र्ासिेु र्-अनकीिंव
*हस्तार्लम्बनं = हस्तार्-लम्बनं = हस्त-अर्लम्बनं,
अगर कुछ गलती/त्रठु ट िो तो, क्षमा प्राथी िूँ ।
Notes : Some word has been -
- Split using "-" to improve readability.
- Repeated using (*/- ) to make easy to Read and Compare at same place.
॥ एक आवश्यक सिू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य ग्सर्थ उनिोगों तक देवी-देवताओ ं के स्तोत्र,
कवि आग्द का ज्ञान सरि शब्दों में देना-पिुिुँ ाना िै, जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक िै ।
यि ग्सर्थ देखने-सनु ने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी िै ।
वेद - शास्त्र, ग्रंर्ों और अन्य पस्ु तकों मे ग्दया िुआ बिुमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-सुनने-समझने-
जानने और संजो कर सरु ग्क्षत रखने योनय िै । पर इस जानकारी का गित तरीके से उपयोग,
या प्रयोग आपका नक ु सान कर सकता िै । अतेः सावधान रिें । इससे िोने वािे
ग्कसी भी तरि की िाभ-िाग्न के ग्िये िम ग्जम्मेवार निी िोंगे । (धन्यवाद )