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॥ सर्व पाप नाशक नारायण स्तोत्र ॥ Date : 20-09-2021.

ु ॥
॥ पाप प्रशमन स्तोत्र, अग्नि पराण * Learn
ु नमः। ॐ नमो नारायणाय।
ॐ गणेशाय नमः। ॐ श्री गरुर्े
( Sarva Papa Nashaka Narayana Stotra, Agni Puran).

॥ श्री पष्करोर्ाच ॥
ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े ग्ननत्यं, ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े नमः।
नमाग्नम ग्नर्ष्ण ं ु ग्नचत्तस्थम्‌-अहङ्कार-गतिं हग्नरम्‌।१।
ग्नचत्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराग्नििंम्‌।
*= ग्नचत्तस्थम्‌-ईशम्‌-अव्यक्तम-अनन्तम
्‌ ्‌-अपराग्नििंम्‌।
ग्नर्ष्णमु ीडयमशेषण
े * अनाग्नि-ग्ननधनं ग्नर्भमु ्‌।२। *=ग्नर्ष्णमु ्‌-ईडयम्‌-अशेषण
े .
ु -ग्न
ग्नर्ष्णश ्‌ चत्त-गिंो यन्मे ग्नर्ष्ण-ु र्ग्नवु ि-गिंश्‌-च यिं्‌।
यच्चाहंकारगो ग्नर्ष्णयु ग्नव िष्णमु ग्नव य संग्नस्थिंः ।३।
* = यच्‌-च-अहंकारगो ग्नर्ष्ण-ु यवि्‌-ग्नर्ष्ण-ु मवग्नय संग्नस्थिंः।३।
करोग्निं कमव-भूिंोऽसौ स्थार्रस्य चरस्य च ।
िंिं्‌ पापं नाशमायािं ु िंग्निन्नेर्* ग्नह ग्नचग्नन्तिंे ।४। *= िंग्निन्‌-न-एर्
ध्यािंो हरग्निं यिं्‌ पापं स्वप्ने दृष्टस्त ु भार्नािं्‌।
े महं* ग्नर्ष्ण ं ु प्रणिंार्तिं-हरं हग्नरम्‌।५।
िंमपु न्द्र *=िंम्‌-उपेन्द्रम्‌-अहं
िगत्यग्निग्नन्नराधारे मज्जमान े िंमस्यधः ।
*= िगत्य्‌-अग्निन्‌-ग्ननराधारे मि्‌-िमान े िंमस्य-धः ।
हस्तार्लम्बनं* ग्नर्ष्ण ं ु प्रणमाग्नम परात्परम्‌।६। *= हस्तार्-लम्बनं
सर्ेश्वरेश्वर ग्नर्भो परमात्मन्‌-नधोक्षि ।
हृषीके श हृषीके श, हृषीके श नमोऽस्त ु िंे ।७।
नृतसहानन्त* गोतर्ि भूिं-भार्न के शर् । *अर्व=नृतसह-अनन्त
दुरुक्तं दुष्कृ िंं ध्यािंं शमयाघं* नमोऽस्त ु िंे ।८। *= शमय-अघं,
यन्मया ग्नचग्नन्तिंं दुष्टं स्वग्नचत्त-र्श-र्र्तिंना ।
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अकायँ महित्यग्रु ं िंच्छमं नय के शर् ।९।


* = अकायँ महि्‌-अत्यग्रु ं (िंच-छमं
्‌ = िंिं्‌-शमं) नय के शर् ।९।
ब्रह्मण्य-िेर् गोतर्ि परमार्व-परायण ।
िगन्नार् िगिािंः पापं प्रशमयाच्यिंु * ।१०। *=प्रशमय-अच्यिंु
यर्ापराह्ने सायाह्ने मध्याह्ने च िंर्ा ग्ननग्नश । *= यर्ा-अपराह्ने
*= यर्ा-अपराह्‌-न े सायाह्‌-न े मध्याह्‌-न े च िंर्ा ग्ननग्नश ।
कायेन मनसा र्ाचा कृ िंं पापमिानिंा*।११। *= पापम्‌-अिानिंा
िानिंा च ु
हृषीके श पण्डरीकाक्ष माधर् ।
नामत्रयोच्चारणिंः* पापं यािं ु मम क्षयम्‌।१२।
* नाम-त्रयोच्‌-चारण-िंः = नाम-त्रय-उच्चारण-िंः,

शरीरं में हृषीके श पण्डरीकाक्ष माधर् ।
पापं प्रशमयाद्य त्वं र्ाक्कृिंं मम माधर् ।१३।
*= पापं (प्रशमयाि्‌-य = प्रशमय-आद्य) त्वं र्ाक्‌-कृ िंं मम माधर् ।१३।
ं ु न यिं्‌ स्वपंस्‌-ग्निंष्ठन्‌ गच्छन्‌ िाग्रि यिा-ग्नस्थिंः।
यि्‌भि
कृ िंर्ान्‌ पापमद्याहं* कायेन मनसा ग्नगरा ।१४। *= पापम्‌-अद्याहं
यिं्‌ स्वल्पमग्नप, यिं्‌ स्थूलं , कुयोग्नननरकार्हम्‌ ।
*= यिं्‌ स्वल्पम्‌-अग्नप, यिं्‌ स्थूलं, कु-योग्नन-नरक-आर्हम्‌।
ु नािं्‌* ।१५।
िंि्‌ यािं ु प्रशमं सर्ं र्ासिेु र्ानकीिंव

** र्ासिेु र्ान-कीिंव ु नािं्‌
नािं्‌= र्ासिेु र्-अनकीिंव
परं ब्रह्म, परं धाम, पग्नर्त्रं परमं च यिं्‌।
िंग्निन्‌ प्रकीर्तिंिंे ग्नर्ष्णौ, यिं्‌ पापं िंिं्‌ प्रणश्यिं ु ।१६।
यिं्‌प्राप्य, न ग्नन-र्िंवन्त े गन्धस्पशावग्निर्र्तििंम्‌*।*=गन्ध-स्पशव-आग्नि-र्र्तििंम्‌
सूरयस्तिं्‌ पिं ग्नर्ष्णोस्तिं्‌ सर्ं शमयत्वधम्‌।१७।
* = सूरयस-िंिं
्‌ ्‌ पिं ग्नर्ष्णोस्‌-िंिं्‌ सर्ं शमयत्व्‌-अधम्‌।१७।
॥ माहात्म्यं ॥
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॥ माहात्म्यं - फलश्रग्नु िं भाग ॥


पाप-प्रणाशनं स्त्रोत्रं यः पठे च्छृणयु ािग्नप* ।
* पठे च्‌-छृणयु ािग्नप = पठे िं्‌-शृणयु ाि-अग्न
्‌ प
ु िंे ।१।
शारीरै-मावनस ै-र्ावगि ैः कृ िंैः पाप ैः प्रमच्य
सर्वपाप-ग्रहाग्निभ्यो* याग्निं ग्नर्ष्णोः परं पिम्‌। *=ग्रह-आग्निभ्यो
िंिािं्‌ पापे कृ िंे िप्यं स्तोत्रं सर्ावघ*-मिवनम्‌।२। *= सर्व-अघ
प्रायग्नित्तमघौघानां स्तोत्रं व्रिंकृ िंे र्रम्‌।
*= प्रायग्नित्तम्‌-अघौघानां स्तोत्रं व्रिं-कृ िंे र्रम्‌।
प्रायग्नित्त ैः स्तोत्र-िप ै-व्रविं-ै न वश्यग्निं पािंकम्‌।३।
ॐ नमो नारायणाय ।

ु : १७२.१९-२१ ) or ? अग्नि पराण


(** अग्नि पराण ु ( १७२.१७-२९ )

*** few words ***


अधौध = सम्पूण व पाप,

पण्डरीकाक्ष ु
= पण्डरीक-अक्ष = कमल-नयन = ग्नर्ष्ण ु िी.

पण्डरीक = कमल, अग्नक्ष= आँख , नयन,

पण्डरीक = र्ाघ, चार्ल का प्रकार, मार्े पर ग्नचन्ह, सफे ि रंग,
Type of Leprosy , सप व का एक िािंी , एक प्रकार का िर्ा,

*हस्तार्लम्बनं = हस्तार्-लम्बनं = हस्त-अर्लम्बनं,


अर्लम्बनं = आग्नश्रिं, Support.
शमयाघं = शमय-अघं, ु
* अघं= दुःख, ििव, पाप, र्रा

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ु नमः। ॐ नमो नारायणाय।


ॐ गणेशाय नमः। ॐ श्री गरुर्े *Print
॥ सर्व पापनाशक नारायण स्तोत्र ॥
ु ॥
॥ पाप प्रशमन स्तोत्र, अग्नि पराण

॥ श्री पष्करोर्ाच ॥
ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े ग्ननत्यं ग्नर्ष्णर्े ग्नर्ष्णर्े नमः।
नमाग्नम ग्नर्ष्ण ं ु ग्नचत्तस्थमहंकारगतिं हग्नरम्‌।१।
ग्नचत्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराग्नििंम्‌।
ग्नर्ष्णमु ीड्यमशेषण
े अनाग्निग्ननधनं ग्नर्भमु ्‌।२।
ग्नर्ष्णग्नु ित्तगिंो यन्मे ग्नर्ष्णर्ु ग्नवु िगिंि यिं।्‌
यच्चाहंकारगो ग्नर्ष्णयु ग्नव िष्णमु ग्नव य संग्नस्थिंः।३।
ू ोऽसौ स्थार्रस्य चरस्य च।
करोग्निं कमवभिं
िंिं्‌पापं नाशमायािं ु िंग्निन्नेर् ग्नह ग्नचग्नन्तिंे ।४।
ध्यािंो हरग्निं यिं्‌पापं स्वप्ने दृष्टस्त ु भार्नािं्‌।
े महं ग्नर्ष्ण ं ु प्रणिंार्तिंहरं हग्नरम्‌।५।
िंमपु न्द्र
िगत्यग्निग्नन्नराधारे मज्जमान े िंमस्यधः।
हस्तार्लम्बनं ग्नर्ष्ण ं ु प्रणमाग्नम परात्परम्‌।६।
सर्ेश्वरेश्वर ग्नर्भो परमात्मन्नधोक्षि।
हृषीके श हृषीके श हृषीके श नमोऽस्त ु िंे ।७।
नृतसहानन्त गोग्नर्न्द भूिंभार्न के शर्।
दुरुक्तं दुष्कृ िंं ध्यािंं शमयाघं नमोऽस्त ु िंे ।८।
यन्मया ग्नचग्नन्तिंं दुष्टं स्वग्नचत्तर्शर्र्तिंना ।
अकायं महित्यग्रु ं िंच्छमं नय के शर् ।९।
ब्रह्मण्य िेर् गोग्नर्न्द परमार्वपरायण ।
िगन्नार् िगिािंः पापं प्रशमयाच्यिंु ।१०।
यर्ापराह्ने सायाह्ने मध्याह्ने च िंर्ा ग्ननग्नश ।
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कायेन मनसा र्ाचा कृ िंं पापमिानिंा ।११।



िानिंा च हृषीके श पण्डरीकाक्ष माधर् ।
नामत्रयोच्चारणिंः पापं यािं ु मम क्षयम्‌।१२।

शरीरं मे हृषीके श पण्डरीकाक्ष माधर् ।
पापं प्रशमयाद्य त्वं र्ाक्कृिंं मम माधर् ।१३।
ं ु न्‌यिं्‌स्वपंग्नस्तष्ठन्‌गच्छन्‌िाग्रि यिाग्नस्थिंः।
यि्‌भि
कृ िंर्ान्‌पापमद्याहं कायेन मनसा ग्नगरा ।१४।
यिं्‌ स्वल्पमग्नप, यिं्‌ स्थूलं, कुयोग्नननरकार्हम्‌।
ु नािं्‌।१५।
िंि्‌ यािं ु प्रशमं सर्ं र्ासिेु र्ानकीिंव
परं ब्रह्म, परं धाम, पग्नर्त्रं परमं च यिं्‌।
िंग्निन्‌प्रकीर्तिंिंे ग्नर्ष्णौ यिं्‌पापं िंिं्‌प्रणश्यिं ु ।१६।
यिं्‌प्राप्य न ग्ननर्िंवन्त े गन्धस्पशावग्निर्र्तििंम्‌।
सूरयस्तिं्‌पिं ग्नर्ष्णोस्तिं्‌सर्ं शमयत्वघम्‌।१७।
माहात्म्यम्‌-
पापप्रणाशनं स्तोत्रं यः पठे च्छृणयु ािग्नप ।
ु िंे ।१।
शारीरैमावनस ैर्ावगि ैः कृ िंैः पाप ैः प्रमच्य
सर्वपापग्रहाग्निभ्यो याग्निं ग्नर्ष्णोः परं पिम्‌।
िंिािं्‌पापे कृ िंे िप्यं स्तोत्रं सर्ावघमिवनम्‌।२।
प्रायग्नित्तमघौघानां स्तोत्रं व्रिंकृ िंे र्रम्‌।
प्रायग्नित्त ैः स्तोत्रिप ैव्रविंनै वश्यग्निं पािंकम्‌।३।
॥ॐ॥
ु : १७२.१९-२१ ) or? अग्नि पराण
(** अग्नि पराण ु ( १७२.१७-२९ )

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॥ पाप प्रशमन स्तोत्र, अग्नन परु ाण - ग्िन्दी में अर्थ ॥


भगवान वेदव्यास द्वारा रग्ित अठारि परु ाणों में से एक 'अग्नन परु ाण' में अग्ननदेव द्वारा मिग्षथ
वग्शष्ठ को ग्दए गए ग्वग्भन्न उपदेश िैं । इसी के अतं गथत इस पापनाशक स्तोत्र के बारे में
मिात्मा पष्ु कर किते िैं ग्क मनष्ु य ग्ित्त की मग्िनता वश िोरी, ित्या, परस्त्री-गमन आग्द
ग्वग्भन्न पाप करता िै, पर जब ग्ित्त कुछ शद्ध ु िोता िै तब उसे इन पापों से मग्ु ि की इच्छा
िोती िै । उस समय भगवान नारायण की ग्दव्य स्तग्ु त करने से समस्त पापों का प्रायग्ित पणू थ
िोता िै । इसीग्िए इस ग्दव्य स्तोत्र का नाम 'समस्त पापनाशक स्तोत्र' िै ।

पष्ु कर जी बोिेेः "सवथव्यापी ग्वष्णु को सदा नमस्कार िै । श्री िरर ग्वष्णु को नमस्कार िै ।
मैं अपने ग्ित्त में ग्स्र्त सवथव्यापी, अिक ं ार शन्ू य श्रीिरर को नमस्कार करता िं ।
मैं अपने मानस में ग्वराजमान अव्यि, अनन्त और अपराग्जत परमेश्वर को नमस्कार करता
िं । सबके पजू नीय, जन्म और मरण से रग्ित, प्रभावशािी श्रीग्वष्णु को नमस्कार िै ।
ग्वष्णु मेरे ग्ित्त में ग्नवास करते िैं, ग्वष्णु मेरी बग्ु द्ध में ग्वराजमान िैं, ग्वष्णु मेरे अिक
ं ार में
प्रग्तग्ष्ठत िैं और ग्वष्णु मझु में भी ग्स्र्त िैं ।

वे श्री ग्वष्णु िी िरािर प्राग्णयों के कमों के रूप में ग्स्र्त िैं, उनके ग्ितं न से मेरे पाप का
ग्वनाश िो । जो ध्यान करने पर पापों का िरण करते िैं, और भावना करने से स्वप्न में दशथन
देते िैं, इन्र के अनजु , शरणागत जनों का देःु ख, दरू करने वािे उन पापापिारी श्रीग्वष्णु को
मैं नमस्कार करता िं ।

मैं इस ग्नराधार जगत में अज्ञानांधकार में डूबते िुए को िार् का सिारा देने वािे परात्पर
स्वरूप श्रीग्वष्णु के सम्मख
ु नत मस्तक िोता िं ।
सवेश्वरेश्वर प्रभो ! कमि-नयन परमात्मन् ! हृषीके श !
आपको नमस्कार िै । इग्न्रयों के स्वामी श्रीग्वष्णो ! आपको नमस्कार िै ।
नृग्संि ! अनन्त स्वरूप गोग्वन्द ! समस्त भतू -प्राग्णयों की सृग्ि करने वािे के शव !

मेरे द्वारा जो दवु थिन किा गया िो अर्वा पापपणू थ ग्िंतन ग्कया गया िो,
मेरे उस पाप का प्रशमन कीग्जए, आपको नमस्कार िै ।
के शव ! अपने मन के वश में िोकर मैंने जो न करने योनय अत्यतं उग्र पापपणू थ
ग्िंतन ग्कया िै, उसे शातं कीग्जए । परमार्थ परायण, ब्राह्मण ग्प्रय गोग्वन्द !

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अपनी मयाथदा से कभी च्यतु न िोने वािे जगन्नार् !


जगत का भरण-पोषण करने वािे देवश्वे र ! मेरे पाप का ग्वनाश कीग्जए ।
मैंने मध्याह्न, अपराह्न, सायक ं ाि एवं राग्त्र के समय जानते िुए अर्वा अनजाने,
शरीर, मन एवं वाणी के द्वारा जो पाप ग्कया िो, 'पण्ु डरीकाक्ष', 'हृषीके श', 'माधव' –
आपके इन तीन नामों के उच्िारण से मेरे वे सब पाप क्षीण िो जाएं । कमि-नयन !
िक्ष्मीपते ! इग्न्रयों के स्वामी माधव !

आज आप मेरे शरीर एवं वाणी द्वारा ग्कए िुए पापों का िनन कीग्जए ।
आज मैंने खाते, सोते, खडे, ििते अर्वा जागते िुए मन, वाणी और शरीर से जो भी नीि
योग्न एवं नरक की प्राग्ि कराने वािे सक्ष्ू म अर्वा स्र्िू पाप ग्कये िों, भगवान वासदु वे के
नामोच्िारण से वे सब ग्वनि िो जाएं । जो परब्रह्म, परम धाम और परम पग्वत्र िैं,
उन श्रीग्वष्णु के संकीतथन से मेरे पाप ििु िो जाएं । ग्जसको प्राि िोकर ज्ञानीजन पनु ेः िौटकर
निीं आते, जो गंध, स्पशथ आग्द तन्मात्राओ ं से रग्ित िै, श्रीग्वष्णु का वि परम पद मेरे सम्पणू थ
पापों का शमन करें ।"

मािात्म्येः
जो मनष्ु य पापों का ग्वनाश करने वािे इस स्तोत्र का पठन अर्वा श्रवण करता िै, वि शरीर,
मन और वाणी जग्नत समस्त पापों से छूट जाता िै, एवं समस्त पापग्रिों से मि ु िोकर
श्रीग्वष्णु के परम पद को प्राि िोता िै । इसग्िए ग्कसी भी पाप के िो जाने पर इस स्तोत्र का
जप करें । यि स्तोत्र पाप समिू ों के प्रायग्ित के समान िै । कृ च्र आग्द व्रत करने वािे के
ग्िए भी यि श्रेष्ठ िै । स्तोत्र-जप और व्रतरूप प्रायग्ित से सम्पणू थ पाप नि िो जाते िैं ।
इसग्िए भोग और मोक्ष की ग्सग्द्ध के ग्िए इनका अनष्ठु ान करना िाग्िए ।
॥ ॐ॥

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|| General Information ||
नोट-
कुछ कठिन शब्द * को ठिठहित करके , उसे "-" से सरल ठकया िै,
और मलू शब्द के साथ नजदीक िी रखा गया िै,
साधक लोग दोनो शब्दों को एक िी जगि पर देख कर तल ु नात्मक पाि कर सकें ।
ग्नचत्तस्थमीशमव्यक्तमनन्तमपराग्नििंम्‌।
*= ग्नचत्तस्थम्‌-ईशम्‌-अव्यक्तम्‌-अनन्तम्‌-अपराग्नििंम्‌।
ग्नर्ष्णयु ग्नव िष्णमु ग्नव य = ग्नर्ष्ण-ु यवि्‌-ग्नर्ष्ण-ु मवग्नय
कुछ िी शब्दों का सिी तरि से संठध-ठिच्छे द, करने का का प्रयास ठकया गया िै ।
र्ासिेु र्ानकीिंव ु नािं्‌= र्ासिेु र्ान-कीिंव ु ु नािं्‌
नािं्‌ = र्ासिेु र्-अनकीिंव
*हस्तार्लम्बनं = हस्तार्-लम्बनं = हस्त-अर्लम्बनं,
अगर कुछ गलती/त्रठु ट िो तो, क्षमा प्राथी िूँ ।
Notes : Some word has been -
- Split using "-" to improve readability.
- Repeated using (*/- ) to make easy to Read and Compare at same place.

॥ एक आवश्यक सिू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य ग्सर्थ उनिोगों तक देवी-देवताओ ं के स्तोत्र,
कवि आग्द का ज्ञान सरि शब्दों में देना-पिुिुँ ाना िै, जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक िै ।
यि ग्सर्थ देखने-सनु ने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी िै ।
वेद - शास्त्र, ग्रंर्ों और अन्य पस्ु तकों मे ग्दया िुआ बिुमल्ू य ज्ञान देखने-पढ़ने-सुनने-समझने-
जानने और संजो कर सरु ग्क्षत रखने योनय िै । पर इस जानकारी का गित तरीके से उपयोग,
या प्रयोग आपका नक ु सान कर सकता िै । अतेः सावधान रिें । इससे िोने वािे
ग्कसी भी तरि की िाभ-िाग्न के ग्िये िम ग्जम्मेवार निी िोंगे । (धन्यवाद )

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