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प्रेसीडेंसी बैकों का संक्षिप्त विवरण

भारतीय स्टे ट बैंक का प्रादर्भा


ु व 2 जन
ू 1806 को बैंक ऑफ कलकत्ता की स्थापना के साथ हुआ।
तीन साल बाद बैंक को अपना चार्टर प्राप्त हुआ और इसे 2 जनवरी 1809 को बैंक ऑफ बंगाल के
रूप में पन
ु गर्ठित किया गया। यह एक अनस
ु चि
ू त बैंक (scheduled Bank ) था जिसे बंगाल सरकार
द्वारा प्रायोजित किया गया था। बैंक ऑफ बंगाल के बाद बैंक ऑफ बॉम्बे की स्थापना 15 अप्रैल
1840 को तथा बैंक ऑफ मद्रास की स्थापना 1 जल
ु ाई 1843 को की गई। इन तीनो बैंको को
प्रेसीडेंसी बैंक कहा जाता था । इनका विलय करके 27 जनवरी 1921 को इंपीरियल बैंक ऑफ
इंडिया का गठन किया गया ।पुनः 1 जल
ु ाई 1955 को इसे भारतीय स्टे ट बैंक के रूप मे
पुनर्गठित किया गया ।

बैंक ऑफ बंगाल की स्थापना के साथ ही भारत में सीमित दायित्व व संयुक्त-पूंजी बैंकिंग का
आगमन हुआ। बैंकिंग क्षेत्र में भी इसी प्रकार का नया प्रयोग किया गया। बैंक ऑफ बंगाल को
मद्र
ु ा जारी करने की अनम
ु ति दे ने का निर्णय किया गया। ये नोट कुछ सीमित भौगोलिक क्षेत्र में
सार्वजनिक राजस्व के भग
ु तान के लिए स्वीकार किए जाते थे। नोट जारी करने का यह अधिकार
न केवल बैंक ऑफ बंगाल के लिए महत्त्वपर्ण
ू था अपितु उसके सहयोगी बैंक, बैंक ऑफ बाम्बे
तथा मद्रास के लिए भी अत्यंत महत्त्वपर्ण
ू था अर्थात इससे बैंकों की पंज
ू ी बढ़ी। तीनों बैंक रायल
चार्टर के दायरे में कार्य करते थे, जिन्हें समय समय पर संशोधित किया जाता था। प्रत्येक चार्टर
में शेयर-पंज
ू ी का प्रावधान था । प्रत्येक बैंक के कामकाज की दे ख-रे ख करने वाले बोर्ड के सदस्य,
ज्यादातर स्वत्वधारी-निदे शक हुआ करते थे जो भारत में स्थित बड़ी यूरोपीय प्रबंध एजेंसी गह
ृ ों
का प्रतिनिधित्व करते थे। शेष सदस्य सरकार द्वारा नामित प्राय: सरकारी कर्मचारी होते थे
जिनमें से एक का बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में चयन किया जाता था।

प्रारं भ में बैंकों का व्यवसाय बट्टे पर विनिमय बिल अथवा अन्य परक्राम्य निजी प्रतिभूतियों को
भुनाना, रोकड़ खातों का रख-रखाव तथा जमाराशियाँ प्राप्त करना व नकदी नोट जारी व
परिचालित करना था। कुछ बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों को प्रतिभति
ू के आधार पर ऋण दिये जाती
थे।

बैंक ऑफ बंगाल, बॉम्बे तथा मद्रास के परिचालन की शर्तों में 1860 के बाद महत्त्वपूर्ण परिवर्तन
हुए। 1861 के पेपर करें सी एक्ट के पारित हो जाने से प्रेसिडेंसी बैंकों का मुद्रा जारी करने का
अधिकार समाप्त कर दिया गया तथा 1 मार्च 1862 से ब्रिटे न शासित भारत में कागज़ी मद्र ु ा जारी
करने का मूल अधिकार भारत सरकार को प्राप्त हो गया। नई कागजी मुद्रा के प्रबंधन एवं
परिचालन का दायित्व प्रेसिडेंसी बैंको को दिया गया तथा भारत सरकार ने राजकोष में
जमाराशियों का अंतरण बैंकों को उन स्थानों पर करने का दायित्व लिया जहाँ बैंक अपनी शाखाएँ
खोलने वाले हों। जैसे ही तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों को राजकोष में जमाराशियों का बिना रोक-टोक
उपयोग करने का आश्वासन मिला तो उनके द्वारा तेजी से उन स्थानों पर बैंक की शाखाएँ
खोलना प्रारं भ कर दिया गया। सन ् 1876 तक तीनों प्रेसिडेंसी बैंकों की शाखाएँ, अभिकरण व उप-
अभिकरणों ने दे श के प्रमख
ु क्षेत्रों तथा भारत के भीतरी भागों में स्थित व्यापार केंद्रो में अपना
विस्तार कर लिया। बैंक ऑफ बंगाल की 18 शाखाएँ थीं जिसमें उसका मख्
ु यालय, अस्थायी
शाखाएँ, तथा उप-अभिकरण शामिल हैं जबकि बैंक ऑफ बॉम्बे एवं मद्रास प्रत्येक की 15 शाखाएँ
थीं।

इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया

बंगाल, बंबई एवं मद्रास के प्रेसिडेंसी बैंकों को उनकी 70 शाखाओं के साथ वर्ष 1921 में विलयन
कर इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। इन तीनों बैंकों को एक संयुक्त संस्था के
रूप में रुपांतरित किया गया तथा भारतीय वाणिज्यिक बैंकों के बीच एक विशाल बैंक का प्रादर्भा
ु व
हुआ। इस नए बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों, बैंकरों के बैंक एवं सरकार के बैंक की तिहरी भमि
ू काएँ
निभाना स्वीकार किया।

परं तु इस गठन के पीछे भारतीय स्टे ट बैंक की आवश्यकता पर वर्षों पहले किया गया विचार-
विमर्श शामिल था। अंत में एक मिली-जल
ु ी संस्था उभर कर सामने आई जो वाणिज्यिक बैंक एवं
अर्ध-केंद्रीय बैंक के कार्य निष्पादित करती थी।

वर्ष 1935 में भारत के केंद्रीय बैंक के रूप में भारतीय रिज़र्व बैंक के गठन के साथ इंपीरियल बैंक
की अर्ध-केंद्रीय बैंक की भमि
ू का समाप्त हो गई। इंपीरियल बैंक भारत सरकार का बैंक न रहकर
ऐसे केंद्रों में जहाँ केंद्रीय बैंक नहीं है , सरकारी व्यवसाय के निष्पादन के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक
का एजेंट बन गया।

परं तु वह करें सी चेस्ट एवं छोटे सिक्कों के डिपो का तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित
शर्तों पर अन्य बैंकों एवं जनता के लिए विप्रेषण सुविधा योजना परिचालित करने का कार्य
निरं तर करता रहा। वह बैंकरों का अतिरिक्त नकद अपने पास रखकर तथा प्राधिकृत प्रतिभूति पर
उन्हें ऋण दे कर उनके बैंक के रूप में भी कार्य करने लगा। ऐसे कई स्थानों पर बैंक समाशोधन
गह
ृ ों का प्रबंधन भी करता रहा जहाँ पर भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यालय नहीं थे। यह बैंक
सरकार की तरफ से रिज़र्व बैंक द्वारा आयोजित राजकोषीय बिल नीलामियों में सबसे बड़ा
निविदाकर्ता भी रहा।
रिज़र्व बैंक की स्थापना के बाद इंपीरियल बैंक को एक वाणिज्यिक बैंक के रूप में परिवर्तित
करने के लिए उसके संविधान में महत्त्वपर्ण
ू संशोधन किए गए। उसके व्यवसाय पर पर्व
ू में
लगाए गए प्रतिबंधों को हटाया गया तथा पहली बार बैंक को विदे शी मद्र
ु ा व्यवसाय करने तथा
निष्पादक एवं न्यासी व्यवसाय करने की अनम
ु ति दी गई।

इंपीरियल बैंक ने अपने अस्तित्व के बाद से साढ़े तीन दशकों के दौरान कार्यालयों, आरक्षित
निधियों, जमाराशियों, निवेशों एवं अग्रिमों के रूप में बहुत ही प्रभावशाली वद्धि
ृ दर्ज की। कुछ
मामलों में यह वद्धि
ृ छह गुना से भी अधिक रही।

पूर्ववर्तियों से विरासत में प्राप्त वित्तीय स्थिति और सुरक्षा व्यवस्था ने असंदिग्ध रूप से बैंक को
ू प्लेटफार्म प्रदान किया। इंपीरियल बैंक ने बैंकिंग की जिस गौरवपूर्ण परं परा
एक ठोस और मजबत
का नियमित रूप से पालन किया तथा अपने परिचालनों में जिस प्रकार की उच्च स्तरीय
सत्यनिष्ठा का प्रदर्शन किया उससे जमाकर्ताओं में , जिस तरह का आत्मविश्वास था उसकी बराबरी
उस समय के किसी भी भारतीय बैंक के लिए संभव नहीं थी। इन सबके कारण इंपीरियल बैंक ने
भारतीय बैंकिंग उद्योग में अति विशिष्ट स्थिति प्राप्त की तथा दे श के आर्थिक जीवन में
महत्त्वपूर्ण स्थान भी प्राप्त किया।

भारतीय स्टे ट बैंक

 वर्ष 1951 में जब प्रथम पंचवषीय योजना शरु


ु हुई तो दे श के ग्रामीण क्षेत्र के विकास को
इसमें सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। उस समय तक इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया सहित दे श
के वाणिज्यिक बैंकों का कार्य-क्षेत्र शहरी क्षेत्र तक ही सीमित था तथा वे ग्रामीण क्षेत्रों के
आर्थिक पुनर्निर्माण की भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं
थे। अत: सामान्यत: दे श की समग्र आर्थिक स्थिति और विशेषत: ग्रामीण क्षेत्र की
आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति ने
इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण कर उसमें सरकार की भागीदारी वाले और
सरकार द्वारा प्रायोजित एक बैंक की स्थापना करने की सिफारिश की जिसमें पूर्ववती
राज्यों के स्वामित्व वाले या राज्य के सहयोगी बैंकों का एकीकरण करने का भी प्रस्ताव
किया गया। तदनुसार मई 1955 में संसद में एक अधिनियम पारित किया गया तथा 1
जुलाई 1955 को भारतीय स्टे ट बैंक का गठन किया गया। इस प्रकार भारतीय बैंकिंग
प्रणाली का एक चौथाई से भी अधिक संसाधन सरकार के सीधे नियंत्रण में आ गया। बाद
में , 1959 में भारतीय स्टे ट बैंक (अनुषंगी बैंक) अधिनियम पारित किया गया जिसके
फलस्वरुप भारतीय स्टे ट बैंक ने पूर्ववती राज्यों के आठ सहयोगी बैंकों का अनुषग
ं ी के रूप
में अधिग्रहण किया (बाद में इन्हें सहयोगी बैंक का नाम दिया गया) :
 स्टे ट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपरु
 स्टे ट बैंक ऑफ़ है दराबाद
 स्टे ट बैंक ऑफ़ मैसरू
 स्टे ट बैंक ऑफ़ पटियाला
 स्टे ट बैंक ऑफ़ त्रावणकोर
 स्टे ट बैंक आफ़ इंदौर
 स्टे ट बैंक आफ़ सौराष्ट

इस प्रकार भारतीय स्टे ट बैंक का प्रादर्भा


ु व सामाजिक उद्देश्य के नए दायित्व के साथ हुआ। बैंक
के कुल 480 कार्यालय थे, जिनमें शाखाएं, उप कार्यालय तथा इंपीरियल बैंक से विरासत में प्राप्त
तीन स्थानीय प्रधान कार्यालय भी थे। जनता की बचत को जमा करना और ऋण के लिए सुपात्र
लोगों को ऋण दे ने की परं परागत बैंकिंग की जगह प्रयोजनपूर्ण बैंकिंग की नई अवधारणा
विकसित हो रही थी जिसके तहत योजनाबद्ध आर्थिक विकास की बढ़ती हुई और विविध आर्थिक
आवश्यकताओं को परू ा करना था। भारतीय स्टे ट बैंक को इस क्षेत्र में अग्रदत
ू होना था तथा उसे
भारतीय बैंकिंग उद्योग को राष्ट्रीय विकास के उच्चतम शिखर तक ले जाना था।

इस समय उपरोक्त सभी सहयोगी बैंको का भारतीय स्टे ट बैंक मे विलय हो चुका है जिसके
कारण यह बैंक दे श का सबसे बड़ा बैंक होने के साथ विश्व के 50 बड़े बैंको मे स्थान रखता है ।
इसकी दे श मे 24000 से अधिक शाखाएँ हैं तथा लगभग 59000 ए टी एम स्थापित हैं।कुल
कर्मचारियों की संख्या 2.5 लाख से अधिक है ।विदे शों मे 36 दे शों मे लगभग 200 कार्यालय हैं।

दे श के बैंकिंग सेक्टर के कुल व्यवसाय का लगभग 20-22 % भाग भारतीय स्टे ट बैंक के पास
है ।

भारत सरकार द्वारा लागू की गयी विभिन्न जमा योजनाए – प्रधान मंत्री जन धन योजना के
अंतर्गत सर्वाधिक खाते खोले गए।भारत सरकार की बीमा एवं पें शन योजनाए, मुद्रा लोन योजना,
सुकन्या समद्धि
ृ योजना आदि मे हमारे बैंक ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है ।ऋण वितरण के क्षेत्र मे
– किसान क्रेडिट कार्ड, होम लोन, पर्सनल लोन , ट्रांसपोर्टर को ऋण आदि अनेक क्षेत्रों मे हमारे
बैंक का अग्रणी स्थान बना हुआ है ।
बैंक के सहयोगी प्रतिष्ठानों – एस बी आई लाइफ, एस बी आई म्यूचल फंड, एस बी आई जनरल
इन्स्योरें स आदि के द्वारा विभिन्न गैर बैंकिंग सेवाएँ भी प्रदान की जा रही हैं।

स्टे ट बैंक आफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन

इंपीरियल बैंक आफ इंडिया के तत


ृ ीय एवं चतर्थ
ु श्रेणी कर्मचारियों के हितों की सरु क्षा के लिए
पश्चिम बंगाल के कुछ कर्मठ कर्मचारियों द्वारा ‘इंपीरियल बैंक आफ इंडिया इंडियन स्टाफ
एसोसिएशन’ का गठन किया गया जिसे वर्ष 1920 मे बंगाल प्रांत के सोसाइटीस एक्ट के
अंतर्गत पंजीकृत किया गया क्योंकि उस समय दे श मे ट्रे ड यनि
ू यन एक्ट नहीं बना था ।बाद
मे वर्ष 1926 मे दे श मे ट्रे ड यूनियन एक्ट 1926 लागू किए जाने पर हमारे संगठन को
इसके अंतर्गत पुनः पंजीकृत किया गया।

स्टे ट बैंक आफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन दे श के पश्चिम बंगाल,सिक्किम,बिहार,उड़ीसा,


असम,मेघालय,त्रिपुरा,मिजोरम,मणिपुर,नागालैंड, अरुणाचल प्रदे श ,उत्तरप्रदे श,
राजस्थान,हरियाणा,पंजाब,हिमाचल प्रदे श,जम्मू कश्मीर,उत्तराखंड,झारखंड एवं दिल्ली प्रदे शों
तथा चंडीगढ़ और अंडमान निकोबार द्वीप समह
ू मे स्थित भारतीय स्टे ट बैंक की शाखाओं के
समस्त लिपिक एवं अधीनस्थ वर्ग के कर्मचारियों का एकमात्र प्रतिनिधि संगठन है ।

हमारा संगठन पूर्णतः अ-राजनैतिक है तथा अपने सदस्यों के द्वारा ही संचालित होता है ।
सेवानिवत्ति
ृ के पश्चात पद स्वतः रिक्त हो जाता है तथा उस पर किसी सेवारत सदस्य को
ही मनोनीत/ निर्वाचित किया जाता है ।

हमारे संगठन का पंजीकृत कार्यालय कोलकाता मे है तथा दे श के आठ केन्द्रों – चंडीगढ़,


दिल्ली, लखनऊ, जयपरु , पटना,कोलकाता, गव
ु ाहाटी तथा भब
ु नेश्वर मे मण्डल कार्यालय हैं।
बैंक की सभी शाखाओं मे इसके इकाई कार्यालय है ।

संगठन अपने सदस्यों के हितों की सुरक्षा , सेवा शर्तों मे सुधार एवं बैंक के व्यवसाय मे वद्धि

हे तु सभी वैधानिक उपायों के द्वारा निरं तर प्रयासरत रहता है ।संगठन का सदै व से यही
ध्येय रहा है कि संस्था अर्थात बैंक की लाभप्रदता मे वद्धि
ृ होने से ही सदस्यों अर्थात
कर्मचारियों को बेहतर वेतन भत्ते प्राप्त हो सकते हैं । इसी उद्देश्य की पर्ति
ू के लिए हमारे
सभी सदस्य उत्तम ग्राहक सेवा प्रदान करने मे संलग्न रहते हैं ।

बैंकिंग क्षेत्र के शीर्ष कर्मचारी संगठन ‘ आल इंडिया स्टे ट बैंक आफ इंडिया स्टाफ फेडरे शन ‘
से सम्बद्ध होने के साथ ही हमारा संगठन नेशनल कंफेडरे शन आफ बैंक इम्प्लाईज़ तथा
यूनाइटे ड फोरम आफ बैंक यूनियन्स का प्रमुख घटक है ।बैंक कर्मियों के सभी संगठनात्मक
आंदोलनों मे हमारी अग्रणी भमि
ू का रहती है ।

संगठन के संविधान के अनुसार सभी स्तरों – केंद्रीय, मण्डल और इकाई स्तर पर त्रैवार्षिक
अवधि हे तु पदाधिकारियों का चुनाव होता है । लखनऊ मण्डल के चुनाव त्रैवार्षिक अवधि
2018-2020 हे तु माह मार्च- अप्रैल 2018 मे सम्पन्न हो चुके हैं जिसमे लगातार तीसरी बार
निर्विरोध निर्वाचन सम्पन्न हुये हैं । दिनांक 28 अप्रैल 2018 को कानपुर नगर मे अधिवेशन
का आयोजन किया गया है ।

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