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Aarson baad mila hu rakib se

to chal utha h mehboob mera


Badi saadgi se krta h ijhaar-e-mohabbat
jab bhi krta h mehbob mera,
Ab jism ki talab ni jo rakhu rakib se wasta,
talab us dil ki hain jis se laga liya h sil,
Jism to tawieyaf hain dilon ki saudebazi mein,
wo jo adhuri si baat sun kr,
wo jo adhuri si baat mahsus kr khamosh h,
itna khamosh nhi ki dab jaye rakib ke shor se,
badi khamoshi se krta h guftgu jb bhi krta h mahboob mera,
badi sadgi se krta h ijhaar-e-mohabbat jab bhi krta hein mehboob mera

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तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको,

फिर चुपके -चुपके धाम बता दूँ तुमको;

तुम चौंक नहीं पड़ना, यदि धीमे-धीमे

मैं अपना कोई काम बता दूँ तुमको।

कु छ लोग भ्रांतिवश मुझे शांति कहते हैं,

नि:स्तब्ध बताते हैं, कु छ चुप रहते हैं;

मैं शांत नहीं नि:स्तब्ध नहीं, फिर क्या हूँ,

मैं मौन नहीं हूँ, मुझमें स्वर बहते हैं।

कभी-कभी कु छ मुझमें चल जाता है,

कभी-कभी कु छ मुझमें जल जाता है;

जो चलता है, वह शायद है मेंढक हो,

वह जुगनू है, जो तुमको छल जाता है।

मैं सन्नाटा हूँ, फिर भी बोल रहा हूँ,

मैं शांत बहुत हूँ, फिर भी डोल रहा हूँ;

यह ‘सर्-सर्’ यह ‘खड़-खड़’ सब मेरी है,

है यह रहस्य मैं इसको खोल रहा हूँ।

मैं सूने में रहता हूँ, ऐसा सूना,

जहाँ घास उगा रहता है ऊना;

और झाड़ कु छ इमली के , पीपल के ,

अंधकार जिनसे होता है दूना।

तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ खड़ा हूँ,

तुम देख रहे हो मुझको, जहाँ पड़ा हूँ;


मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ.

मैं ऐसी ही जगहों में पला, बढ़ा हूँ।

हाँ, यहाँ किले की दीवारों के ऊपर,

नीचे तलघर में या समतल पर भू पर

कु छ जन-श्रुतियों का पहरा यहाँ लगा है,

जो मुझे भयानक कर देती हैं छू कर।

तुम डरो नहीं, डर वैसे कहाँ नहीं है,

पर ख़ास बात डर की कु छ यहाँ नहीं है;

बस एक बात है, वह के वल ऐसी है,

कु छ लोग यहाँ थे, अब वे यहाँ नहीं हैं।

यहाँ बहुत दिन हुए एक थी रानी,

इतिहास बताता उसकी नहीं कहानी,

वह किसी एक पागल पर जान दिए थी,

थी उसकी के वल एक यही नादानी।

यह घाट नदी का, अब जो टूट गया है,

यह घाट नदी का, अब जो फू ट गया है—

वहाँ यहाँ बैठ कर रोज़-रोज़ गाता था,

अब यहाँ बैठना उसका छू ट गया है।

शाम हुए रानी खिड़की पर आती,

थी पागल के गीतों को वह दुहराती;

तब पागल आता और बजाता बंसी,

रानी उसकी बंसी पर छु प कर गाती।

किसी एक दिन राजा ने यह देखा,

खिंच गई हृदय पर उसके दुख की रेखा;

वह भरा क्रोध में आया और रानी से,

उसने माँगा इन सब साँझों का लेखा।

रानी बोली पागल को ज़रा बुला दो,

मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो;

मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा,

बंसी बजवा कर मुझे ज़रा सुलो दो।


वह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था,

ऐसे जवाब से उसका मेल नहीं था;

रानी ऐसे बोली थी, जैसे उसके

इस बड़े क़िले में कोई जेल नहीं था।

तुम जहाँ खड़े हो, यहीं कभी सूली थी,

रानी की कोमल देह यहीं झूली थी;

हाँ, पागल की भी यहीं, यहीं रानी की,

राजा हँस कर बोला, रानी भूली थी।

किं तु नहीं फिर राजा ने सुख जाना,

हर जगह गूँजता था पागल का गाना;

बीच-बीच में, राजा तुम भूल थे,

रानी का हँस कर सुन पड़ता था ताना।

तब और बरस बीते, राजा भी बीते,

रह गए क़िले के कमरे-कमरे रीते,

तब मैं आया, कु छ मेरे साथी आए,

अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते।

पर कभी-कभी जब पागल आ जाता है,

लाता है रानी को, या गा जाता है;

तब मेरे उल्लू, साँप और गिरगट पर

अनजान एक सकता-सा छा जाता है।

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Humesha der kr deta hu me
zaroori baat kheni ho
koi vaada nibhana ho
use awaaz deni jo
use wapis bulana ho
humesha der kr deta hu me
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nadi ke shant tat par bethkr mann
teri yadein visarjan kr rha hai

ghutan si hone lgi uske pass jate hue


main khud se ruth gya hu use manate hue

ishq kiya tha humne bhi...


hum bhi raaton ko jage the
tha koi... jiske piche hum nange per bhage the
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Ek khwab hain jo dekh rha hu
ek khwab h jo likh rha hu
ek raat kakhwab h us khwab ki raat likh rha hu
ek chand hain jo ghurta h mere har ek khwab ko
ek kashish hein ikrar ki jo beparda hoti si dikhai padhti hain
mere tammanaon ke gulistan mein
ek talabgaar bhi hain jo rubaro hain mere har ek khwab se
ek sitamgar bhi hain faroza sa jo bada bebas sa malum hota h
riwazon ki rangishon mein
ek khwab hain jo dekh rha hu ek khwab hain jo likh rha hu
ek raat ka khwab hain us raat ka khwab liokh rha hu
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Ab jo milne aao thode fursaT SE HI AANA
KUCH WAQT LETE AANA KUCGH JAZBAAT LEKTE AANA
KCUH ADHOORA RHE GYA THA JO USE POORA KRTE AANA
Ab jo milne aao thode fursaT SE HI AANA
DIL JO DIYA THA USE BEHLANE KE LOYE AANA
WO ADAYEIN LETE AANA KUCH SAWAL JO THE USEKE JAWAB LETE AANA
TOOT GYA THA JO WO VISHWAS LETE AANA
CHOOT GGY THA JO USE SAATH LETE AANA
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chal aa ek aesi nazm kahoo jo lafz kahoo wo ho jaye
bas chandan khu to ek tara teri bhoori aankh me dhal jaye
main pani par tri yad likhu teri yaadon ki ek lehar aaye
main husn likhu tri hawa chale
main rakh likhu to ho jaye
chal aa ek aesi nazm kahoo jo lafz kahoo wo ho jaye
bas sath likhu tra nausaya mera hath thamkar so jaye
main needon main tre khwab padhu tere khwabon se meri neend aaye
main waqt likhu tu aa bethe
min ishq likhu tujhe ho jaye
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जब घर जाता हूँ तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है,

मेहमान हूँ मैं ये पल पल मुझे बताता है

माँ कहती है सामान फ़ौरन बैग में डालो,

हर बार तुम्हारा कु छ ना कु छ छु ट जाता है…

घर पर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता है

उंगलियों पे लेकर जाता हूं गिनती के दिन फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है…..

अब कब होगा आना सबका पूछना,

ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है,

घर से दरवाजे से निकलने तक,

बैग में कु छ न कु छ भरते जाता हूँ..

जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी,

घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसता था मैं,

फै न,लाइट्स के स्विच भूल हाथ डगमगाता है…

पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ,बड़े बुजुर्ग बेटा कब आया पूछने चले आते हैं….
कब तक रहोगे पूछ अनजाने में वो

घाव एक और गहरा कर जाते हैं…

ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियां

डबडबाई आँखों में आकर डगमगाता है,

लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग,

सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है…..

तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता है..

मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है


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nadi ke shant tat par bethkar mann
teri yadein visarjan kr rha hain

Gali ko parnam samajhna padhta hain


madhushala ko dham samajhna padhta hain
aadhunik kehlane ki andhi zid main
ravan ko bhi ram samajhna padhta hain
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Kabhi Khamoshi Bhi Bahut Kuch Keh Jaati Hai
Tarapne Ke Liye Yaad Reh Jaati Hai,
Kya Fark Parta Hai Gold Leaf Ho Ya Gold Flake
Jalne Ke Baad Sirf Raakh Reh Jaati Hai
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She left me for a better writer
she left me a better writer
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acha hai ki rishton ka kabristan nhi hota
warna jhamin kam padh jati
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कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कै सा हूँ , तू मुझसे दूर कै सी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!

मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !


कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !


यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!

भ्रमर कोई कु मुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!


हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डू ब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
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Mera Sab bura bhi kehna,
Par aacha bhi sab batana.
Mai jau duniya se toh sabko
Meri dastaan sunana.
yeh bhi Batana Ki kaise
samandar jeetne se pehle,
Mai Na jaane kitni choti-choti
nadiyon se hazaaron bar haara tha.
Woh ghar Woh zameen deekhana,
Koi magrur bhi kahega toh tum
Usko shuruwat meri batana.
Batana safar ki dushwariya mere,
Taki koi jo Meri jaisi zameen se aaye
Uske liye nadi ki haar choti hi rahe.
Samsndar jeetne ka khawab
Uske dil aur dimag se na jaaye.
Par unse meri galatiya bhi mat chupana.
Koi poche toh bata dena ki
Mai kiss darje ka nakara tha.
Keh dena ki jhoota tha mai,
Batana ki kaise
zarurat par kaam na aa saka.
Wade kiye par nibha na saka.
Intqaam saare poore kiye
par ishq adhura rehne diya.
Bata dena sabko ki,
mai matlabi bada tha.
Har bade mukaam pe
tanha hi mai khada tha.
Mera Sab bura bhi kehna,
Par aacha bhi sab batana.
Mai jau duniya se toh sabko
Meri dastaan sunana.
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You are not your age, nor the size of clothes you wear,
You are not a weight, or the color of your hair.
You are not your name, or the dimples in your cheeks.
You are all the books you read, and all the words you speak.
You are your croaky morning voice, and the smiles you try to hide.
You’re the sweetness in your laughter, and every tear you’ve cried.
You’re the songs you sing so loudly when you know you’re all alone.
You’re the places that you’ve been to, and the one that you call home.
You’re the things that you believe in, and the people whom you love.
You’re the photos in your bedroom, and the future you dream of.
You’re made of so much beauty, but it seems that you forgot
When you decided that you were defined by all the things you’re not.
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डु बकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कु छ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
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tumhāre shahr kā mausam baḌā suhānā lage

maiñ ek shaam churā luuñ agar burā na lage

tumhāre bas meñ agar ho to bhuul jaao mujhe

tumheñ bhulāne meñ shāyad mujhe zamāna lage

jo Dūbnā hai to itne sukūn se Duubo

ki ās-pās kī lahroñ ko bhī patā na lage

vo phuul jo mire dāman se ho ga.e mansūb

ḳhudā kare unheñ bāzār kī havā na lage

na jaane kyā hai kisī kī udaas āñkhoñ meñ

vo muñh chhupā ke bhī jaa.e to bevafā na lage

tū is tarah se mire saath bevafā.ī kar

ki tere ba.ad mujhe koī bevafā na lage

tum aañkh muuñd ke pī jaao zindagī 'qaisar'

ki ek ghūñT meñ mumkin hai bad-maza na lage

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सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकु टी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अके ली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृ पाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,


देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कु ल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,


किं तु कालगति चुपके -चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,


राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,


व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,


कै द पेशवा था बिठु र में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,


उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कु टियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,


वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,


यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कु छ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,


नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकु र कुँ वरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कु रबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,


जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,


घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,


अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,


किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,


मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कु ल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृ तज्ञ भारतवासी,


यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

By: सुभद्रा कु मारी चौहान


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दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ु रबानी।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।।
रावल रत्न सिंह को छल से कै द किया खिलजी ने।
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने।।
खिलजी का चित्तौड़ दुर्ग में एक संदेशा आया।
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया।।
दस दिन के भीतर न पद्मिनी का डोला यदि आया।
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया।।
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे।
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे।।
दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में।
यह बिजली की तरक छितर से फै ल गया अम्बर में।।
महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था।
था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था।।
रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर।
जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर।।
अन्य अनेकों मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे।
रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे।।
पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला।
वन वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला।।
गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया।
मगर वीरता का अपमानित ज्वार नहीं मिट पाया।।
बोला मैं तो बोहोत तुक्ष हूँ राजनीती क्या जानू।
निर्वासित हूँ राज मुकु ट की हठ कै से पहचानू।।
बोली पद्मिनी समय नहीं है वीर क्रोध करने का।
अगर धरा की आन मिट गयी घाव नहीं भरने का।।
दिल्ली गयी पद्मिनी तो पीछे पछताओगे।
जीते जी राजपूती कु ल को दाग लगा जाओगे।।
राणा ने जो कहा किया वो माफ़ करो सेनानी।
यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी।।
यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला।
और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला।।
महारानी हो तुम सिसोदिया कु ल की जगदम्बा हो।
प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो।।
जब तक गोरा के कं धे पर दुर्जय शीश रहेगा।
महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीं कटेगा।।
तुम निश्चिन्त रहो महलों में देखो समर भवानी।
और खिलजी देखेगा के सरिया तलवारों का पानी।।
राणा के सकु शल आने तक गोरा नहीं मरेगा।
एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा।।
एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे।
महा प्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे।।
शब्द शब्द मेवाड़ी सेना पति का था तूफानी।
शंकर के डमरू में जैसे जाएगी वीर भवानी।।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ु रबानी।।
खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को।
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को।।
गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले।।
और बाँकु रे बादल से गोरा सेनापति बोले।
खबर भेज दो खिलजी पर पद्मिनी स्वयं आती है।
अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती है।।
स्वयं पद्मिनी ने बादल का कु मकु म तिलक किया था।
दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था।।
और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे।
हर सैनिक सेनापति था लाखों से लड़ सकते थे।।
एक एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में।
मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में।।
हर डोली में एक वीर था चार उठाने वाले।
पांचों ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले।।
बज कू च शंख सैनिकों ने जयकार लगाई।
हर हर महादेव की ध्वनि से दसों दिशा लहराई।।
गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा।
मातृ भूमि चित्तोड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा।।
कर प्रणाम चढ़े घोड़ों पर सुभग अभिमानी।
देश भक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी।।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ु रबानी।।
जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में।
उधर दूत भी जा पहुंचा खिलजी के रंग महल में।।
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है।
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है।।
एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो।
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो।।
खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था।
बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था।।
वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया।
गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया।।
बोले बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का।
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का।।
यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा।
के वल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा।।
यह बंधन काटेगा हम राणा को मुक्त करेंगे।
घुड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे।।
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ।
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो सकु शल पहुंचाएं।।
अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना।
और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना।।
राणा जीएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना।
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना।।
मेरे लाल लाडले बादल आन न जाने पाए।
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए।।
ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी।
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी।।
तो फिर आ बेटा बादल साइन से तुझे लगा लूँ।
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लूँ।।
यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया।
धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया।।
सावधान कह पुन्ह पथ पर बढे गोरा सैनानी।
पोंछ लिया झट से बढ़ कर के बूढी आँखों का पानी।।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ु रबानी।।
गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे।
छांट छांट कर शाही पहरेदारों के सर काटे।।
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए।
सेनापति की नमक खलाली देख नयन भर आये।।
पर खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था।
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था।।
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीं आयी है।
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है।।
पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा।
निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा।।
दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया।
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया।।
राणा चले तभी शाही सेना लहरा कर आयी।
खिलजी की लाखों नंगी तलवारें पड़ी दिखाई।
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना।।
रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना।
टू ट पड़ों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा।
हर हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा।।
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने।
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने।।
राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था।
पर उस पर तो गोरा हिमगिरि सा अड़ा खड़ा था।।
कहा ज़फर से एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे।
यदि आदेश न माना तो कु त्ते की मौत मरोगे।।
रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुम्हें मिलेगी।
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी।
यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा।
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा।।
खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे।
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे।।
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से।
फू ल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से।।
वो मेवाड़ी शेर अके ला लाखों से लड़ता था।
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था।।
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें।
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें।।
मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था।
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था।।
वहीं गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया।
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया।।
मगर वाह रे मेवाड़ी गोरा का धड़ भी दौड़ा।
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा।।
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था।
जफ़र मोहम्मद को के वल धड़ ने निर्जीव किया था।।
ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा।
काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा।।
अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल में रण करते हो।
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो।।
यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टूटा था।
मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छू टा था।।
ज्वालामुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी।
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी।।
अरि का भाला लगा पेट में आंते निकल पड़ी थीं।
जख्मी बादल पर लाखों तलवारें खिंची खड़ी थी।।
कसकर बाँध लिया आँतों को के शरिया पगड़ी से।
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से।।
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी।
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी।।
उधर वीरवर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था।
और इधर बादल लाशों से भूतल पाट रहा था।।
आगे पीछे दाएं बाएं जम कर लड़ी लड़ाई।
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई।।
मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था।
उनको तो कण कण अरियों के सोन तामे धोना था।।
अपने सीमा में बादल सकु शल पहुँच गए थे।
गोरा बादल तिल तिल कर रण में खेत गए थे।।
एक एक कर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही।
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी।।
गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी।
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी।।
धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी।
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी।।
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी।
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ु रबानी।।
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है लिये हथियार दुश्मन ताक मे बैठा उधर
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से


सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भडके गा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न


जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब


होश दुश्मन के उडा देंगे हमे रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल मे है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
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vatan kī sar-zamīñ se ishq o ulfat ham bhī rakhte haiñ

khaTaktī jo rahe dil meñ vo hasrat ham bhī rakhte haiñ

zarūrat ho to mar miTne kī himmat ham bhī rakhte haiñ

ye jur.at ye shujā.at ye basālat ham bhī rakhte haiñ

zamāne ko hilā dene ke daave bāñdhne vaalo

zamāne ko hilā dene kī tāqat ham bhī rakhte haiñ

balā se ho agar saarā jahāñ un kī himāyat par

ḳhuda-e-har-do-ālam kī himāyat ham bhī rakhte haiñ

bahār-e-gulshan-e-ummīd bhī sairāb ho jaa.e

karam kī aarzū ai abr-e-rahmat ham bhī rakhte haiñ

gila nā-mehrbānī kā to sab se sun liyā tum ne

tumhārī mehrbānī kī shikāyat ham bhī rakhte haiñ

bhalā.ī ye ki āzādī se ulfat tum bhī rakhte ho

burā.ī ye ki āzādī se ulfat ham bhī rakhte haiñ

hamārā naam bhī shāyad gunahgāroñ meñ shāmil ho

janāb-e-'josh' se sāhab salāmat ham bhī rakhte haiñ

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