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अशोक वृक्ष के फायदे
अशोक वृक्ष को हिन्दू धर्म में काफ़ी पवित्र, लाभकारी और विभिन्न मनोरथों को पूर्ण करने वाला माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ होता है- "किसी
भी प्रकार का शोक न होना"। यह पवित्र वृक्ष जिस स्थान पर होता है, वहाँ पर किसी प्रकार का शोक व अशान्ति नहीं रहती। मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों
में अशोक के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। इस वृक्ष पर प्राकृ तिक शक्तियों का विशेष प्रभाव माना गया है, जिस कारण यह वृक्ष जिस जगह पर भी
उगता है, वहाँ पर सभी कार्य पूर्णतः निर्बाध रूप से सम्पन्न होते चले जाते हैं। इसी कारण अशोक का वृक्ष भारतीय समाज में काफ़ी प्रासंगिक है। भगवान
श्रीराम ने भी स्वयं ही इसे शोक दूर करने वाले पेड़ की उपमा दी थी। कामदेव के पंच पुष्प बाणों में एक अशोक भी है। ऐसा कहा जाता है कि जिस
पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे 'अशोक' कहते हैं, अर्थात जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है।
वानस्पतिक परिचय
अशोक का वृक्ष हरित वृक्ष आम के समान 25 से 30 फु ट तक ऊँ चा, बहुत-सी शाखाओं से युक्त घना व छायादार हाता है। देखने में यह मौलश्री के
पेड़ जैसा लगता है, परन्तु ऊँ चाई में उससे छोटा ही होता है। इसका तना कु छ लालिमा लिए हुए भूरे रंग का होता है। यह वृक्ष सारे भारत में पाया जाता
है। इसके पल्लव 9 इंच लंबे, गोल व नोंकदार होते हैं। ये साधारण डण्ठल के व दोनों ओर 5-6 जोड़ों में लगते हैं। कोमल अवस्था में इनका वर्ण
श्वेताभलाल फिर गहरा हरा हो जाता है। पत्ते सूखने पर लाल हो जाते हैं। फल वसंत ऋतु में आते हैं। पहले कु छ नारंगी, फिर क्रमशः लाल हो जाते हैं।
ये वर्षाकाल तक ही रहते हैं।

अशोक वृक्ष की फलियाँ आठ से दस इंच लंबी चपटी, एक से दो इंच चौड़ी दोनों सिरों पर कु छ टेढ़ी होती है। ये ज्येष्ठ माह में लगती हैं। प्रत्येक में चार
से दस की संख्या में बीज होते हैं। फलियाँ पहले जामुनी व पकने पर काले वर्ण की हो जाती हैं। बीज के ऊपर की पपड़ी रक्ताभ वर्ण की, चमड़े के
सदृश मोटी होती है। औषधीय प्रयोजन में छाल, पुष्प व बीज प्रयुक्त होते हैं। असली अशोक व सीता अशोक, पेण्डु लर ड्र पिंग अशोक जैसी मात्र बगीचों में
शोभा देने वाली जातियों में औषधि की दृष्टि से भारी अंतर होता है। छाल इस दृष्टि से सही प्रयुक्त हो, यह अनिवार्य है। असली अशोक की छाल बाहर से
शुभ्र धूसर, स्पर्श करने से खुरदरी अंदर से रक्त वर्ण की होती है। स्वाद में कड़वी होती है। मिलावट के बतौर कहीं-कहीं आम के पत्तों वाले अशोक का
भी प्रयोग होता है, पर यह वास्तविक अशोक नहीं है।

अशोक का वृक्ष अपने विशेष गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके कु छ गुण निम्नलिखित हैं-
अशोक का वृक्ष शीतल, कड़वा, ग्राही, वर्ण को उत्तम करने वाला, कसैला और वात-पित्त आदि दोष, अपच, तृषा, दाह, कृ मि, शोथ, विष तथा
रक्त विकार नष्ट करने वाला है। यह रसायन और उत्तेजक है।
इस वृक्ष का क्वाथ गर्भाशय के रोगों का नाश करता है, विशेषकर रजोविकार को नष्ट करता है। इसकी छाल रक्त प्रदर रोग को नष्ट करने में उपयोगी होती
है।
माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है।
अशोक के फल एवं छाल को उबालकर पीने से स्त्रियों को कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह सौंदर्य में भी वृद्धि करता है।
इसकी छाल को उबालकर पीने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है।
यदि व्यक्ति किसी महत्त्वपूर्ण कार्य से जा रहा है तो अशोक वृक्ष का एक पत्ता अपने सिर पर धारण करके जाए, इससे कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी।
अशोक के वृक्ष की जड़ शुभ मुहूर्त में लाकर विधिपूर्वक पूजन कर धारण करें या पूजा स्थल में रखें, तो धन की कमी नहीं होती।
इस वृक्ष को लगाने और उसको सींचने से धन में वृद्धि होती है।
यदि अशोक वृक्ष की जड़ को तांबे के ताबीज में भरकर विधिपूर्वक धारण किया जाए, तो हर असंभव कार्य पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाएगी।
इस वृक्ष को प्रतिदिन जल देने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
इस वृक्ष के बीज, पत्ते एवं छाल को पीसकर लेप लगाने से सौंदर्य वृद्धि होती है।
इसके बीज या फू ल को शहद के साथ मिलाकर खाया जाए, तो कई व्याधियाँ दूर होती हैं।

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