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नमाज़ की महानता एवं महत्व
नमाज़ की महानता एवं महत्व
नमाज़ की महानता एवं महत्व
लेखक:
अनुवाद:
ِّ ربِِّّيسرِّوأعن
ِّسيدناِّحممدِّوعلىِّآلهِّوأصحابه،ِّوالصالةِّوالسالمِّعلىِّأشرفِّاألنبياءِّواملرسلنی،احلمدِّهللِّربِّالعاملنی
ِّأماِّبعد،أمجعنی
1 इसे िोखार्ी(8)और् मजु स्लम(16)ने रर्वायत ककया है और् मपर्ोत शब्द मजु स्लम
के हने|
2
शहादतैन के िाद नमाज़ को यह स्थान दे ना इस िात का प्रमाण है कक
(िंदा का)आस्था सही है ,और् मसके हृदय में शहादतैन का अथर िम चुका
है जिसे वह(नमाज़ के द्वार्ा)सत्य ससद्ध कर् र्हा है |
3−इस से पता चलता है कक नमाज़ हर् वयस्क और् स्वस्थ िुद्धध वाले
मुसलमान पर् फज़र है ,चाहे पुूपष हो या महहला|
3
अलैहह वसल्लम ने फर्माया:धमर का मल
ल इस्लाम है और् मसका स्तंभ
नमाज़ है और् मसकी चो ी जिहाद है "|2
अथारत:वास्तव में नमाज़ र्ोकती है रनलरज्िा तथा दर्ु ाचार् से और् अल्लाह
का स्मर्ण ही सवर महान है |
नमाज़ में इस से भी िढ़ कर् एक और् महान एवं महत्वपलणर मद्दे श्य रपपा
हुआ है , वह यह है कक नमाज़ हृदय, िीभ और् पर्ल े शर्ीर् से अल्लाह का
जिक्र
़ कर्ने का नाम है , यों कक अल्लाह तआ़ला ने िंदों को अपनी पि
ल ा
के सलये पैदा ककया, और् सवरश्रेष्ठ प्राथरना नमाज़ ही है ,इसके अंदर् शार्ीरर्क
अंगों की एतनी पाथरनाएं शासमल हने िो अन्य प्राथरनांं में नहीं, इसी सलये
अल्लाह ने फर्माया: (रनसंदेह अल्लाह का जिक्र िहुत िडी चीज़ है )समात
7−यात्रा में एवं घर् में ,भय में व शांरत में और् स्वास्थ एवं र्ोग हर् जस्थरत
में नमाज़ पढ़ना अरनवायर है ,केवल यह कक ऐसा र्ोग हो जिस के कार्ण
िुद्धध िाती र्हे |
ह़दीस में ( )م اااِّي ياِّل اااِّلس ا ا ا ا ا ا ااان ااهके शब्द आए हने(अथर:आपकी ज़िान रुक
शब्द आए हने,अथारत:आप साफ साफ नहीं िोल सकते थे, إافۃصका अथर
6
को कमी है ?अत:वह यहद पर्ल ी हु तो पर्ल ी की पर्ल ी सलख दी िाएगी और्
यहद मसमें को कमी हु तो फर्माएगा कक दे खो!या मेर्े िन्दे के कुप
नवाकफल भी है ?यहद नवाकफल हुए तो वह फर्माएगा कक मेर्े िन्दे के फज़
को मसके नकफलों से पर्ल ा कर् दो|कफर् इसी प्रकार् अन्य आ़माल सलए
िाएंगे"|4
7
ह़दीस में ()عرىِّاإلسالمके शब्द आए हने,इसका अथर है इस्लाम के फर्ाएज़ व
पोड दें गे,जिस के फलस्वूपप धमर की अिनबियत और् िढ़ िाएगी यहां
अल्लाह का कथन है :}{ إِنَّ الصَّالَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِنيَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا 6
आपका कथन: (सिसे पहले ल ने वाला िंधन शासन है )अथारत:सिसे पहले िो िंधन
6 ]301: [ااسنلء, इस आयत में :} {مَّوْقُوتًاका मतलि है :िो यहां पर् फज़र और् अरनवायर
के अर््थ में है ,इस से अल्लाह तआ़ला का यह कथन भी है : ُ{يَاَأُّيهَا الَّ ِذينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْ ُكم:
7 इसे िोखार्ी(8)और् मजु स्लम(16)ने रर्वायत ककया है और् मपर्ोत शब्द मजु स्लम
के हने, िैसा कक मलपर् गुिर् चक
ु ा है |
8 जिम्
़ मा का अथर र्क्ष ा का वादा है , दे खें:""امجعملاولسیط
9 इसे िोखार्ी(391)ने वर्णरत ककया है |
9
कर्ो,यों कक िो व्यजत िान िझ
ल कर् को फज़र नमाज़ पोडता है
वह अल्लाह के जिम्
़ म्ोो(र्क्ष ा)से रनकल िाता है |10
अ़ब्दल्
ु लाह बिन अ़रता र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा निी सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम से वणरन कर्ते हने कक आप ने एक हदन नमाज़ का मल्लेख
ककया तो फर्माया:िो व्यजत नमाज़ की र्क्ष ा कर्ता है मस के सलए
वर् क़्यामत के हदन नर्ल ,(आलोक)प्रमाण और् निात होगी,और् िो
व्यजत इसकी र्क्ष ा नहीं कर्ता मसके सलए न नलर् होगा,न
10 इसे अह़मद(5/238)ने वर्णरत ककया है और् इसके शवाहहद के आधार् पर् अल्िानी
ने इसे " "إرواءالغلیلमें इसे सह़ी कहा है |
10
िर्ु हान(प्रमाण)और् न निात, और् वह क़्यामत के हदन काूपन व
कफर्औ़न और् हाूपन और् ंिैय बिन ख़ल्फ के साथ होगा|11
12
इब्नल
ु कजययम र्हीमहुल्लाहु फर्माते हने:इन चार् व्यजतयों का मल्लेख
ववशेष ूपप से इस सलए ककया गया है कक ये सार्े काकफर्ों के सर्दार् थे ,
इस में एक िार्ीक बिंद ु भी है , वह यह कक िो व्यजत नमाज़ की र्क्ष ा
नहीं कर्ता वह या तो धन एवं संपवि में व्यस्त र्हता है ,या अपने शासन
में , या अपने र्ाज्य व सर्दार्ी में या अपनी व्यापार् में व्यस्त र्हता है ,
अत:जिस व्यजत को मसका धन नमाज़ से दर्ल एवं व्यस्त कर्दे वह काूपन
के साथ होगा, जिसे मसका शासन नमाज़ से व्यस्त कर्दे वह कफर्औ़न के
साथ होगा,जिसे मसका र्ाज्य व सर्दार्ी−िैसे मंत्रालय अथवा इस िैसा
ं़िादह पत्र
ु सासमत र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , वर् फर्माते हने:मने
ने र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को फर्माते हुए सुना: "पााँच नमाज़ें
हने िो अल्लाह तआ़ला ने िंदों पर् फज़र की हने,िो व्यजत मन्हें पढ़े ,
14
मनमें से ककसी को कम महत्वपण
ल र समझ कर् न पोडदे तो अल्लाह
तआ़ला के यहा मस के सलए वादा हो चक
ु ा है कक वह मसे स्वगर में
प्रवेश प्रदान कर्े गा|और् िो व्यत्जोोा मन को न पढ़े तो अल्लाह
तआ़ला के यहा मस के सलए को वादा नहीं, चाहे मसे यातना दे ,
चाहे स्वगर में प्रवेश कर्े "|15
अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "क़्यामत के हदन लोगों से जिस अ़मल का
सिसे पहले हहसाि सलया िाएगा वर् नमाज़ है , फर्माया:हमार्ा
स्वरश्रेष्ठ पर्वर्हदगार् दे वदत
ल ों से फर्माएगा ििकक वह(पव
ल र से ही)सि
िानने वाला है :मेर्े िंदे की नमाज़ दे खो!या मसने इसको पलर्ा ककया
है या इसमें को कमी है ?अत:वह यहद पलर्ी हु तो पलर्ी सलख दी
16 इस ह़दीस को अिद
ल ामलद(864)और् अह़मद(2/425)ने वर्णरत ककया है और् मपर्ोत
शब्द अिद
ल ामलद के हने,और् अल्िानी र्हहमह
़ ु ल्लाहु और् " "ادنسملके शोधकतारंं ने इसे
सह़ी माना है , िैसा कक गुिर् चक
ु ा है |
17 इस ह़दीस को इब्ने मािा(1625)और् अह़मद (6/290)ने वर्णरत ककया है और्
अल्िानी ने "( "اإلرواء7/238)में इसे सह़ी कहा है |
13
पर् जस्थर् र्हो और् तम
ु (पण
ल र ूपप से)जस्थर् नहीं र्ह सकोगे, और्
तुम्हें ाात होना चाहहए कक तुम्हार्ा स्वरश्रेष्ठ अ़मल नमाज़ है और्
वुज़ल की र्क्ष ा मोसमन ही कर्ता है "|18
ِ{إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّ هِ وَأَقَامُوا الصَّالَةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَالَنِيَةً يَرْجُونَتِجَارَةً لَّن تَبُورلِيُوَفِّيَهُ ْم أُجُورَهُمْ ويَ ِيََهُم مُن فَْْلِه
]115:{وَأَقِمِ الصَّالَةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مُنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَُِّّيئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَىلِلذَّاكِرِين}[هود
र्ात िीतने पर्, वास्तव में सदाचार् दर्ु ाचार्ों को दर्ल कर् दे ते हने यह एक
सि के सलए है "|22
अल्लाह तआ़ला का कथन है :}{إِنَّ الصَّالَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِنيَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا
अथारत:ववनाश है मन नमाजियों
़ के सलये िो अपनी नमाज़ से अचेत हने|
सअ़द पत्र
ु अिी वकास़ र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हने: (यह वे लोग हने िो
नमाज़ को मसके रनधाररर्त समय से ववलम कर्ते हैु ), यही कथन मसूपक
बिन अलइिदा और् अिल अलज़ोह़ा का भी है |30
मसअ़ि पुत्र अिी साद पुत्र अिी व़कास फर्माते हने:मनेने अपने वपता
से कहा:ए वपता िी!अल्लाह तआ़ला के इस कथन के ववषय में आपकी
या र्ाय है ?: }س ِِِّّّاهُون
َ ْص ِِِّّّالَتِهِم َ ُ {فَوَيْلٌ لِّلْمहम में से कोन है
َ ص ِِِّّّلِّني الَّذِينَ هُمْ عَن
जिससे भल
ल चक
ल नहीं होती?हम में से कोन है जिसकी (नमाज़
30 दे खें:وسرۃااملوعن،ریسفتانبریثک
31 इस असर् को अिल याला(704)ने वर्णरत ककया है और् इसकी सनद को मन
ु जिर्ी
़
ने اببارتلھیبنمرتکاالصلۃدمعتما،اتکباالصلۃ،" "ارتلبیغوارتلھیبमें और् अल्िानी ने ""حیحصارتلبیغوارتلھیب
(576)में ह़सन कहा है |
21
इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु इस आयत की व्याख्या में सलखते
ل
32 दे खें:زنمۃلا خشووع،""دمارجااسلنیکل
33 इसे िोखार्ी(552)और् मजु स्लम(626)ने वर्णरत ककया है |
22
(मानो मसके सार्े संतान और् धन लु गए)अथारत:वे सि पीन सलए गए
और् वह परर्वार् व संतान एवं धन से वंधचत हो गया"|34
अिल
ल अलमलीह़ फर्माते हने:हम अिल आलद
ल हदन में ह़ज़र्त िर्ु ीदा
र्ज़ीअल्लाहु अंहु के साथ एक युद्ध में थे, मन्होंने फर्माया:अ़सर् की
नमाज़ िल्दी पढ़लो यों कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम का
फर्मान है : "जिसने अ़सर् की नमाज़ पोडदी, मसका अ़मल नष्
होगया"|35
23
सम
ु र्ा बिन िन
ु दि
ु र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है ,मन्हों ने कहा:र्सल
ल
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम िार् − िार् सह़ािा से फर्माया कर्ते
थे: "या तुम में से ककसी ने को सपना दे खा है ? "जिसने दे खा होता
वह अल्लाह की तौफीक से आपको िताता, आप सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम एक सि
ु ह फर्माया:आि र्ात मेर्े पास दो आने वाले आए,
मन्हों ने मुझे मठाया और् मुझसे कहा: (मेर्े साथ)चलो, मने मनके साथ
चल हदया,अत:हम एक व्यजत के पास आए िो ले ा हुआ था और्
दस
ल र्ा व्यजत मसके पास एक पत्थर् सलए खडा था, अचानक वह
मसके सर् पर् पत्थर् मार्ता तो मसका सर् तोड दे ता और् पत्थर्
लुढ़क कर् दर्ल चला िाता, वर् पत्थर् के पीपे िाता और् मसे मठा
लाता,मसके वापस आने से पहले पहले दस
ल र्े का सर् सही हो िाता
24
िैसा कक पहले था, खडा ़ हुआ व्यजत कफर् इसी प्रकार् मार्ता और्
ऐसा ही होता िैसे पहले हुआ|
36 अथारत वह इसके प्ररत लापर्वाह था, अत:न इसके अह़काम सीखता और् न इसके
अनस
ु ार् अ़मल कर्ता|
37 इस ह़दीस को िोखार्ी(7047)ने वर्णरत ककया है |
38 अथारत मसके सर् के वपपले भाग पर्,इसका मलति यह कक वह इतनी गहर्ी
और् लंिी नींद में चला िाता िाता है , मानो मसके सर् पे तीन धगर्ह लगा दी ग
हों,दे खें:ااہنلۃی
25
यहद मनष्ु य िाग गया हो और् अल्लाह का स्मर्ण ककया तो एक
धगर्ह खुल िाती है , यहद मसने वज़ल कर् सलया तो दस
ल र्ी धगर्ह भी
खुल िाती है ,मसके िाद अगर् मसने नमाज़ नमाज़ पढ़ी तो तीसर्ी
धगर्ह भी खल
ु िाती है ,कफर् सि
ु ह को वह प्रसन्न लगता है ,अन्यथा
सि
ु ह के समय मदास और् थका हुआ िागता है "|39
अ़ब्दल्
ु लाह बिन मस्म़द र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , मन्हों ने कहा
कक पैगंिर् र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के पास एक ऐसे व्यजत
के ववषय में िात की ग िो र्ात से ले कर् सि
ु ह तक सोया र्हा,
आप ने फर्माया: "यह ऐसा व्यजत है जिस के दोनों या एक कान
में शैतान ने पैशाि कर् हदया है "|40
म़मर् पुत्र अ़ब्दल
ु अ़ज़ीज़ ने अपने वासलयों(अथारत अनेक नगर्ों के
र्ाज्यपालों)को सलख भेिा कक नमाज़ के समय व्यस्त र्हने से
िचो,यों कक िो व्यजत नमाज़ को नष् कर्दे , वह इस्लाम के अन्य
अह़काम को अधधक नष् कर् दे ता है |41
अपने अ़शर के साये के नीचे स्थान प्रदान कर्े गा,मस हदन मसके साये के अरतरर्त
और् को साया नहीं होगा...ادحلثی, इस रर्वायत को पस्
ु तक के शोधकतार अ़ब्दल्
ु लाह
अलह़ाशदी ने सह़ी कहा है |
दोनों ह़दीसों के िीच को ववर्ोधाभास नहीं है , यों कक मपर्ोत साये को अशर की
ंेर् भी मान्य है और् अल्लाह की ंर् भी मान्य है ,स्वासमत्व और् सम्मान के अथर
में |
{وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ الصَّالَةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مُنْهُم مَّعَكَ} اآلية
अल्लाह तआ़ला का कथन है :}{وَأَقِيمُواْ الصَّالَةَ وَآتُواْ الَِّكَاةَ وَارْكَعُواْ مَعَ الرَّاكِعِني
47 दे खें: ""ااہنلۃی,इसी प्रकार् दे खें: इब्ने ह़िर् की " "حتفاابلریमें मपर्ोत ह़दीस की
व्याख्या|
30
अथारत:तथा नमाज़ की स्थापना कर्ो,और् ज़कात दो तथा झुकने वालों के
सह़ी मजु स्लम की रर्वायत में है :कफर् मने कुप लोगों को साथ लेकर्,जिन के
पास लकडडयों
़ के गट्ठे हों, मन लोगों की ंर् िामलं िो नमाज़ में मपजस्थत
अध्याय शक्र
ु वार् की नमाज़ पोडने के रनवार्ण का मल्लेख
िम
ु ा की नमाज़ के सलये िल्दी िाने और् प्रथम पंजत में
िैठने के महत्व की व्याख्या
अिलहोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "पूप
ु षों की स्वोत्तम पंजत प्रथम और् िदतर्
पंजत अंरतम पंजत है "|53
अथारत अपने अपार् कृपा,दया एवं मच स्थान से पीपे कर्दे गा|
57 इसे रनसा (816)और् इब्ने मािा(996)ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने इसे
सही कहा है |
58 सह़ी मजु स्लम(438)
35
आयशा र्ज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णरत है कक आप सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "िो लोग प्रथम पंजत से पीपे र्हते(और् इसे
अपनी आदत िना लेत)े हने अल्लाह मन्हें भी पीपे कर्दे गा"|59
60
इब्राहीम पत्र
ु यज़ीद नख् ़ फर्माते हने:जिस व्यजत को तम
ु दे खो कक
वह तकिीर्े मलला(प्रथम तकिीर्) को पकडने में सस्
ु ती कर्ता है ,मससे
अपने हाथ धोलो|61
59 इस ह़दीस को अिद
ल ामलद (679)ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने
इसे सह़ी कहा है ,चेतावनी:ह़दीस का अनप
ु र्ल क इस प्रकार् है ं"अल्लाह मन्हें नर्क में भी
पीपे कर्दे गा",ककन्तु शैख अल्िानी ने इस अनप ु र्ल क को ज़ ़फ माना है ,इस सलये मनेने
इसका मल्लेख नहीं ककया,दे खें:"( "السلسلۃاالضعیفۃا6442)
60आप इमाम हाकफज़
़ और् फकीहुल इ़र्ाक हने,ह़दीस के वणरनकतारंं में से हने,आप का
रनधन सन 96 हहिर्ी में हुआ,आपकी िीवनी के सलये दे खें: (االبنلء" أالعم "ریس4/520)
61 इस कथन को ह़ाकफज़ अिल न ़म अलअसिहानी ने "( "ۃیلحاألوایلء5489)में रर्वायत
ककया है ,शोध:मस् ु काहदर्,प्रकाशक:دارابتکلالغلمیۃا−िैूपत
ु ़फा अ़ब्दल
36
गया और् मसी प्रकार् नमाज़ पढ़ी जिसे मसने(पहले)पढ़ी थी,कफर्
मसने आकर् निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को सलाम
ककया,आपने(सलाम का मत्तर् दे ने के िाद)फर्माया: "वापस िां
और् नमाज़ पढ़ो तम
ु ने नमाज़ नहीं पढ़ी",कफर् इसी प्रकार् तीनों िार्
हुआ अंत: मसने कहा:शपथ है मस अल्लाह की जिसने आपको सत्य
के साथ भेिा है !मने इससे अपी नमाज़ नहीं पढ़ सकता,अत:आप
मुझे िता दीजिये|आपने फर्माया: "अपा िि तुम नमाज़ के सलये
खडे हो तो अल्लाहु अकिर् कहो,कफर् कुर्ान से िो तम्
ु हें याद हो
पढ़ो,मसके िाद आर्ाम से रुकल कर्ो,कफर् सर् मठां और् सीधे खडे
होिां,इसी प्रकार् अपनी पलर्ी नमाज़ पलर्ी कर्ो"|62
لم
यह ह़दीस ववद्वानों के िीच دحثیا سیءالصہتके नाम से प्रससद्ध है ,इस ह़दीस
से ाात होता है कक ़याम और् रुकल व सुिलद िैसे नमाज़ के समस्त अंगों
को पलर्ा कर्ने में स़तुजष् एक स्तंभ का स्थान र्खता है |
नाम) से प्रवेश ककया और् नमाज़ पढ़ने लग,ककन्तु नमाज़ में रुकल व
इस ववषय में मस
ु लमानों के िीच को तमभेद नहीं है कक िान िझ
ल कर्
मान लाये और् सदाचार् ककये तो वही स्वगर में प्रवेश पायेंगे और् मन
पर् तरनक अत्याचार् नहीं ककया िाएगा|
अल्लाह का कथन है ं
}{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا الَ تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَالَ أَوْالَدُكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُون
इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु इस आयत की व्याख्या में सलखते हनेंतकर यह
है कक इस आयत में पलणत
र या हारन का आदे श मस व्यजत पर् लगाया िो
अपने धन एवं संतान में व्यस्त होने के कार्ण नमाज़ से लापर्वा हो गया
41
और् पण
ल त
र या हारन केवल काकफर्ों के सलये होता है ,और् यहद मस
ु लमान
को अपने पाप एवं नाफर्मानी के कार्ण हारन हो िाए तो मसे आर्खर्त
में लाभ समल िाएगा|68
अथारतंतो यहद वह (सशकर से)तौिा कर् लें और् नमाज़ की स्थापना कर्ें ,और्
नमाज़ पोडने वाले के काकफर् होने का प्रमाण ह़दीसों में िहुत आ है ,जिनमें
से कुप ये हनें
ककया|72
िहां तक सह़ािा के फत्वों की िात है तो िुमहलर्(अधधकांश)सह़ािा
नमाज़ पोडने वाले को काकफर् मानते हने,िजल्क क ववद्वानों ने
कहांनहीं,िंदा और् कुफ्र के िीच दर्ल ी खत्म कर्ने वाली चीि नमाज़
का पोडना है |76
आपसे अधधक पलपा गयांर्सलललल्लाह सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के
यग
ु में आप(सह़ािा)के निदीक कौनसा अ़मल कुफ्र और् मान के
िीच अंतर् कर्ता था?तो आपने फर्मायांनमाज़|77
इब्ने मस्म़द
ल र्ज़ीअल्लाहु अंहु नमाज़ के ववषय में फर्माते हनेंहमार्ी
र्ाय है कक नमाज़ न पोडी िाए योंकक नमाज़ पोडना कुफ्र है |78
पोडदे |
ज़ैद,अ़रता बिन दीनार्,इब्राहीम बिन नख् ़ और् अलकाससम बिन मुख़ीर्ा हने|
नख ,़ अह़मद,इस्ह़ाक,अिस
ल ौर् और् अिल ं़िैद अलकाससम बिन सलाम भी
इसी के पक्ष में हने| 82
82 "("رشحأوصلااقتعدألھاۃنسلواامجلۃع1502),और् दे खेंं(1539)
لن
83 इस कथन को मोह़म्मद बिन नसर् मर्वज़ी ने " "میظعتدقراالصلۃअध्याय ذرکا ھینعلتق
لم لنم
( ا صلین990)में और् इब्ने अ़ब्दल
ु िर् ने " "ا ھیدد,खंड الصۃاامجلۃع,अध्याय إاعدۃاالصلۃعماإلاممमें
रर्वायत ककया है ,तथा यह वद्
ृ धध भी ककया है ककंयहद मस कज़ा(िाद में अदा
कर्ने)कर्ने से इंकार् कर्े और् कहे ककंमने नमाज़ नहीं पढ़लंगा|
47
स ़द बिन िोिैर् फर्माते हनेंजिसने िानिझ
ल कर् नमाज़ पोडा मसने
कुफ्र ककया|84
ल ,अ़ब्दल्
मस्म़द ु लाह बिन अ़ब्िास,मोआ़ज़ बिन ििल,िाबिर् बिन
अ़ब्दल्
ु लाह और् अिल दर्दा र्ज़ीअल्लाहु अंहुम मल्लेखनीय हने|सह़ािा
र्हहमह
़ ु मुल्लाहु भी इसके पक्ष में हने|86
86 .اتخماببارتلھیبنمرتکاالصلۃدمعتما،اتکباالصلۃ،""ارتلبیغوارتلھیب
87 इब्ने ह़ज़म की "( "اىلحمل1/152-153) ( ہلئسم279)
88आप इमाम,शैखुलइस्लाम,ह़ाकफज़ और् शाकफ ़ फकीह हने,आपका रनधन सन 294
हहिर्ी में हुआ,आपकी िीवनी के सलये दे खेंं"( "ریسأالعماالبنلء4/33)
لن
89 اببذرکا ھینعلتقانیملسملوإابۃحلتقنمملیصل، "میظعتدقراالصلۃ,असर् संख्या(1002)के पश्चात
49
वह इसे कभी भी पोड नहीं सकता,योंकक मान मनुष्य को नमाज़
अध्याय नमाज़ पोडने वाले पर् लागल होने वाले दीनी एवं दन
ु यावी
आदे शों की व्यख्या
िीवन िसर् कर्ना मसके सलये मान्य नहीं, मससे संभोग कर्ना मसके
है ,अल्लाह का कथन है ं
} َّ{ فَإِنْ عَلِمْتُمُوهُنَّ مُؤْمِنَاتٍ فَالَ تَرْجِعُوهُنَّ إِلَى الْكُفَّارِ الَ هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَالَ هُمْ يَحِلُّونَ لَهُن
इसी प्रकार् यहद पुूपष नमाज़ पढ़ता हो और् पत्नी नमाज़ न पढ़ती
हो तो मसके सलये वैध नहीं कक मससे वववाह र्चाए और् न ही मसके
है ं
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}{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَالَ يَقْرَبُواْ الْمَسْجََِ الْحَرَامَ بَعََْ عَامِهِمْ هَِّذَا
}{وَالَ تُصَلِّ عَلَى أَحٍََ مُنْهُم مَّاتَ أَبًََا وَالَ تَقُمْ عَلَىَ قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُواْ وَهُمْ فَاسِقُون
मस के र्सलल के साथ कुफ्र ककया है ,और् अवााकार्ी र्हते हुए मर्े हने|
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नमाज़ पोडने वाले के साथ िो अह़काम ववशेष हने मनमें से यह भी
है कक मसका ज़िह़ ककया हुआ मवेशी91 ह़र्ाम है ,योंकक ज़िह़ कर्ने
की शत में से यह भी है कक ज़िह़ कर्ने वाला मुसलमान अथवा
ु लमान,काकफर् का
निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की ह़दीस है ं"मस
}{إِنَّ اللَّهَ لَعَنَ الْكَافِرِينَ وَأَعَََّ لَهُمْ سَعِريًا* خَالَِِينَ فِيهَا أَبًََا الَّ يَجَُِونَ وَلِيًّا وَالَ نَصِريًا
और् न को सहायक|
91 अथारत जिस िानवर् को वह अपने हाथ से ज़िह़ कर्े मसका खाना ह़र्ाम है ,चाहे
मसपर् अल्लाह का नाम ले अथवा न ले|
92 इस ह़दीस को िोखार्ी(6764)और् मजु स्लम(𝟏𝟔𝟏𝟒)ने ंसामा बिन ज़ैद र्ज़ीअल्लाहु
अंहुमा से वर्णरत ककया है ,मपर्ोत शब्द मजु स्लम के हने|
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लाभंनमाज़ आाँख की ठं डक मस समय िनती है िि मस में प
ववशेषताएं इकट्ठा हों
इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने मल्लेख ककया है कक वह नमाज़ जिससे
प्रसन्न र्कने की चाहत,मसकी रनक ता व प्रेम की तलि और् मसके आदे शों
की ंर् ध्यान लगाने में झोंकदे ,नमाज़ में हृदय एवं िुद्धध को मपजस्थत
र्खे,आंतरर्क एवं िाह्य प्रत्येक प्रकार् से मत्तम एवं पलणर ूपप से नमाज़
पढ़े ,योंकक नमाज़ के कुप भाग आंतरर्क एवं कुप िाह्य हने,अतं दे खा
दे ने वाले आ़माल व गरतववधधयां और् सुने िाने वाले वचन आहद इसके
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आंतरर्क भाग हने,ििकक ववनरताता एवं ववनयशीलता,िुद्धध तत्पर्ता,अल्लाह
के समक्ष होती है तो अल्लाह मससे प्रसन्न होता और् मसे स्वीकार् कर्ता
तत
ृ ीय ववशेषतांआाापालन एवं अनुगमन,इसका मतलि यह है कक
नमाज़ी पर्ल ा प्रयास कर्े कक अपनी नमाज़ निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम
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के अनुगमन में पढ़े ,िैसे आप नमाज़ पढ़ते थे,मसी प्रकार् पढ़े ,लोगों ने
नमाज़ में अपनी ंर् से िो कमी िढ़ोतर्ी कर् र्खी है और् जिन काय
एवं गरतववधधयों का वद्
ृ धध कर् र्खा है िो कक न निी सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम से ससद्ध हने और् न ककसी सह़ािी से,मनसे िचता र्हे ,मन पल
केवल र्सल
ल ु मन और् आाापलन का आदे श हदया है ,मनके
के अनग
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में आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को न्यायाधीश ने मान लें ,आप के
रनणरय को मानें और् मसको स्वीकार् कर्ें ,आपके अरतरर्त ककसी और् का
रनणरय और् अनुगमन हमें लाभ नहीं दे सकता और् न हमें अल्लाह की
}{ مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِني (तुमने पैगंिर्ों को या मत्तर् हदया),अल्लाह तआ़ला हम
का फर्मान है ं
र्हा हो,िो अपने आदे शों के माध्यम से वातार कर्ता है ,मखललक के समस्त
भी होता और् गोस्सा भी होता है ,िो चाहे कर्ता है और् िो चाहे आदे श
58
वह आाँखों की र्खयानत को और् सीनों की पुपी िातों को भी खि
ल िानता
है |
है ,वसवसों और् ख्यालों समात होते हने,और् हृदय व िुद्धध और् सोच
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के सामने प्रशंसा कर्ते हुए फर्माया कर्ते थें
ِّ وه ِّتص ا ا ا ا ا ا ا ا ااد ا ا ان ا ا ااا ِّوه ِّص ا ا ا ا ا ا ا ا الا ا ايا ا ان ا ا ااا ِّ ِّ وهللا ِّل ا ا ااو ِّه ِّهللا ِّم ا ا ااا ِّا ا ا ا ا ا ا ااديا ا ا ان ا ا ااا
ِّ ِّ
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ِّ
अथारतंअल्लाह की कसमᣋ! यहद अल्लाह न होता तो हमें हहदायत न
समलती और् न हम दान कर्पाते और् न नमाज़ पढ़ सकते|
अल्लाह का कथन है ं
}{يَمُنُّونَ عَلَيْكَ أَنْ أَسْلَمُوا قُل الَّ تَمُنُّوا عَلَيَّ إِسْالَمَكُم بَلِ ا َّللهُ يَمُنُّ عَلَيْكُمْ أَنْ هَََاكُمْلِإلِميَانِ إِن كُنتُمْ صَادِقِني
सचे हो|
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इह़सान(कृपा)केवल और् केवल अल्लाह का है कक मसने अपने िंदह को
अल्लाह ने और् फर्मायां َ{وَلَكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ اإلِميَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُ ُس ِِِِِّّّّّوق
इस गण
ु एवं ववशेषता का लाभ यह है कक वह हृदय के िीच और् अपने
अ़मल पर् स्वयं प्रशंसा का सशकार् होने के िीच र्ोकाव होती है ,योंकक
ने मसे तौफीक और् रनदे श हदया है ,यह गवाही मसे इस िात से मदासीन
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मत्थान मतपन्न कर्ती है ,अतं वह स्वयं प्रशंसा का सशकार् नहीं होता,मसकी
संिंधधत कर्ता है ,अतं स्वयं की प्रशंसा में लगा नहीं र्हता,िजल्क अल्लाह
स्थान पे वह मसी समय जस्थर् र्ह सकता है िि मसे असका ाान होता
मनुषय का हृदय यहद मससे वंधचत हो और् मसके सलये वहां तक पहुंचने
अथारतं(हे निी!)आप मन्हें पोड दें ,वह खाते,तथा आनन्द लेते र्हें ,और्
अपनी पर्ल ी शजत यों न झोंकदे ,वह स्वेद काहहल ही र्हे गा,अल्लाह
आााकार्ी और् िंदगी और् सेवा मससे कहीं िढ़ कर् ककया िाए,अल्लाह
यहद र्ािांं के सेवक एवं नौकर् मनकी सेवा कर्ते हुए आदर् व
सम्मान,श्रद्धा व प्ररतष्ठा,लज्िा,भय और् सद्भावना व ववनयशीलता का
समेत मनकी ंर् ध्यान लगाए र्खते हने,तो र्ािांं का र्ािा और् आकाश
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मसे अपनी काहहली का ाात होिाता है ,कफर् मसके पास इसके अरतरर्त
को और् मपाय नहीं र्हता कक वह इजस्तगफार् कर्े ,अपनी काहहली और्
कमी पर् और् इस िात पर् क्ष मा मांगे कक मसने अल्लाह का हक मस
प्रकार् से पर्ल ा नहीं ककया जिस प्रकार् से कर्ना चाहहये था,वह िंदा भजत
का हक पर्ल ा न कर्ने पर् क्ष मा का जितना दरर्द्र होता है ,वह आवश्यता
इससे कहीं िढ़ कर् होती है कक वह इस पर् पलण्य की मांग कर्े ,यहद वह
मसका पलर्ा हक अदा कर् भी दे तो भजत के ूपप में मसपर् यह अरनवायर
भी था,योंकक दास का अ़मल और् अपने स्वामी का सेवा मसके दास
अपने अ़मल और् सेवा के िदले वेतन मांगे तो लोग मसे मलखर और्
सास्तव में प्रत्येक ूपप से अल्लाह का दास है ,अतं मसका अ़मल और्
सेवा कर्ना मसके दास होने के कार्ण मसपर् अरनवायर है ,यहद अल्लाह
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पप
ल ांअल्लाह के र्सल
ल !आपको भी नहीं?आपने फर्मायांमझ
ु े भी नहीं मगर्
यह कक मुझे अल्लाह तआ़ला अपने कृपा के साये में लेले"|95
और् आंतरर्क एवं िाह्य कमी है ,मसका कार्ण इन चार् ससद्धांतों की कमी
रनष्कषर
आप र्हहमह
़ ु ल्लाहु अधधक फर्माते हनेंइसका भेद यह है कक नमाज़ अल्लाह
तआ़ला के साथ संिंध पैदा कर्ती है और् अल्लाह तआ़ला के साथ िंदे का
जितना अधधक संिंध होगा मतना ही मसपे भला के दर्वािे खुलते िाएंगे
और् कहठना के दर्वािें िंद होते िाएंगे और् मसके सलये र्ि की ंर् से
97 लेखक-अल्लाह मनको क्ष मा प्रदान कर्े -का कहना है ंयही कार्ण है ककंनिी सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम को िि को गम होता तो आि नमाज़ पढ़ने लगते,इस ह़दीस को
अिदल ामलद(1319)ने ह़ोज़ैफा बिन अलयमान नज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत ककया है और्
अल्िानी ने इसे ह़सन कहा है |
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तौफीक,शांरत और् स्वास्थ,धन,सुकलन व मपकार् व प्रसन्नता के कार्ण
मतपन्न होने लगते हने और् यह सार्े मपकार् मसके पैर् चलमने लगते हने|98
98 "( "زادااعملد4/332)
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