नमाज़ की महानता एवं महत्व

You might also like

Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 68

‫‪नमाज़ की महानता एवं महत्व‬‬

‫‪लेखक:‬‬

‫‪माजिद बिन सोलेमान अर्र सी‬‬

‫‪अनुवाद:‬‬

‫‪फैिर्ु र्ह़मान हहफिर्ु र्ह़मान तैमी‬‬

‫الرتمجة اهلندية لكتاب‪ :‬الصالة الصالة!‬

‫لفضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي‪ /‬حفظه اهلل‬


‫مسباہللارلنمحارلمیح‬

ِّ ‫ربِِّّيسرِّوأعن‬

‫ِّسيدناِّحممدِّوعلىِّآلهِّوأصحابه‬،‫ِّوالصالةِّوالسالمِّعلىِّأشرفِّاألنبياءِّواملرسلنی‬،‫احلمدِّهللِّربِّالعاملنی‬

‫ِّأماِّبعد‬،‫أمجعنی‬

नमाज़ की महानता के दस प्रमाण:

1−शहादतैन के िाद नमाज़ ही वह प्रथम प्राथरना है जिसे अल्लाह तआ़ला


ने वाजिि ककया है ,वह इस्लाम का द्ववतीय स्तंभ है , अ़ब्दल्
ु लाह बिन म़मर्
र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है मन्हों ने फर्मायांमने ने र्सललुल्लाह सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम को फर्माते हुए सुना: "इस्लाम पााँच चीज़ों पर् आधारर्त
है :इस िात की गवाही दे ना कक अल्लाह के अरतरर्‍त को सत्य पर्मेश्वर्
नहीं और् यह कक मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहह वसल्लम अल्लाह के र्सल

हने और् नमाज़ पढ़ना,ज़कात दे ना, ह़ि कर्ना और् र्मज़ान के र्ोज़े र्खना"|1

1 इसे िोखार्ी(8)और् मजु स्लम(16)ने रर्वायत ककया है और् मपर्ो‍त शब्द मजु स्लम
के हने|
2
शहादतैन के िाद नमाज़ को यह स्थान दे ना इस िात का प्रमाण है कक
(िंदा का)आस्था सही है ,और् मसके हृदय में शहादतैन का अथर िम चुका
है जिसे वह(नमाज़ के द्वार्ा)सत्य ससद्ध कर् र्हा है |

2−पैगंिर् सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के हहिर्त से पहले म‍का में तीन


िेसते निवी को नमाज़ मस समय फज़र हु िि इसर्ा व मेर्ाि के अवसर्
पर् आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को आकाश पर् ले िाया गया,अतं
सातवें आकाश पे मपर् अल्लाह ने अपने निी मोह़म्मद पर् बिना ककसी
दे वदत
ल के माध्यम के प्रत्यक्ष ूपप में नमाज़ फज़र ककया, ििकक अन्य
प्राथरनाएं अप्रत्यक्ष ूपप में फज़र की गं|

3−इस से पता चलता है कक नमाज़ हर् वयस्क और् स्वस्थ िुद्धध वाले
मुसलमान पर् फज़र है ,चाहे पुूपष हो या महहला|

4−इस्लाम में नमाज़ की िा स्थान प्रा‍त है वह ककसी अन्य प्राथरना को


नहीं,अत:नमाज़ इस्लाम धमर का स्तंभ है जिस के बिना(मसका भवन खडा
नहीं हो सकता),मोआ़ज़ बिन ििल र्ज़अल्लाहु अंहु से वर्णरत ह़दीस में
आया है ,वह फर्माते हने : र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने मोआ़ज़ से
फर्माया: "‍या मने तुम्हें धमर मलल,मसका स्तंभ और् मसकी चो ी न ितादं "ल ?
मोआ़ज़ ने कहा:‍यों नहीं?अल्लाह के र्सल
ल (अवश्य िताइय)आप सलल्लाहु

3
अलैहह वसल्लम ने फर्माया:धमर का मल
ल इस्लाम है और् मसका स्तंभ
नमाज़ है और् मसकी चो ी जिहाद है "|2

5−नमाज़ िंदा और् मसके र्ि की िीच कानाफलसी का एक माध्यम है , ‍यों


कक इस में अल्लाह तआ़ला से प्राथरना, मसकी प्रशंसा, कुर्ान का सस्वर्
पाठ,तस्िीह़ व तह़मीद, त‍िीर् और् शर्ीर् के अंगों का ववनरताता एवं
ववनयशीलता भी शासमल है , िैसे ूपकल व सिदा कर्ना और् अल्लाह के
समक्ष ववनरताता एवं ववनयशीलता, ववनरताता एवं नज़र् को झक
ु ाके खडा
होना,शैख अ़ब्दर्ु र ह़मान बिन सादी र्हहमहुल्लाहु ने अल्लाह के इस कथन की
व्याख्या में फर्माया:]54:‫{إِنَّ الصَّالَةَ تَنْهَى عَنِ الْفَحْشَاء وَالْمُنكَرِ وَلَذِكْرُ اللَّهِ أَكْبَرُ}[العنكبوت‬

अथारत:वास्तव में नमाज़ र्ोकती है रनलरज्िा तथा दर्ु ाचार् से और् अल्लाह
का स्मर्ण ही सवर महान है |

नमाज़ में इस से भी िढ़ कर् एक और् महान एवं महत्वपलणर मद्दे श्य रपपा
हुआ है , वह यह है कक नमाज़ हृदय, िीभ और् पर्ल े शर्ीर् से अल्लाह का
जिक्र
़ कर्ने का नाम है , ‍यों कक अल्लाह तआ़ला ने िंदों को अपनी पि
ल ा
के सलये पैदा ककया, और् सवरश्रेष्ठ प्राथरना नमाज़ ही है ,इसके अंदर् शार्ीरर्क
अंगों की एतनी पाथरनाएं शासमल हने िो अन्य प्राथरनांं में नहीं, इसी सलये
अल्लाह ने फर्माया: (रनसंदेह अल्लाह का जिक्र िहुत िडी चीज़ है )समा‍त

2 इस ह़दीस को रतर्समज़ी(2616) ने वर्णरत ककया है और् कहा है कक: यह ह़दीस


ह़सन सह़ी है |
4
6−नमाज़ के अंदर् अनेक ऐसी ववशेषताएं पा िाती हने िो अन्य प्राथनांं
में नहीं पा िातीं,मन में से महत्वपलणर ववशेषताएं ये हने:

 इसके सलए आवाि लगा िाती है जिसे अज़ान कहा िाता है |


 इसे अदा कर्ने के सलए रतहार्त(पववत्रता)अरनवायर है |

7−यात्रा में एवं घर् में ,भय में व शांरत में और् स्वास्थ एवं र्ोग हर् जस्थरत
में नमाज़ पढ़ना अरनवायर है ,केवल यह कक ऐसा र्ोग हो जिस के कार्ण
िुद्धध िाती र्हे |

8−नमाज़ की महानता एवं महत्व ही है कक आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम


ने मर्णसेि पर् भी यह पर्ामशर ककया कक नमाज़ का ववशेष ध्यान र्खा
िाए,अत:मम्मे सल्मा र्ज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णरत है कक जिस र्ोग में आप
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की मत्ृ यु हु ,मस समय आप फर्माया कर्त
थे: "नमाज़(की र्क्ष ा कर्ो)और् (मन दासी,दासों की)िो तुम्हार्े अधीन आते
हने"आप ने इन शब्दों को िार् िार् दोहर्ाया यहां तक कक आपकी ज़िान
रुक ग |3

अह़मद की एक रर्वायत में आया है :यहां तक कक अल्लाह के निी सलल्लाहु


अलैहह वसल्लम इन शब्दों को अपने हृदय में दोहर्ाते र्हे और् आप की
ज़िान से साफ साफ शब्द नहीं रनकल र्हे थे|

3 इस ह़दीस को इब्ने मािा(1625)और् अह़मद(6/290)ने रर्वायत ककया है और्


अल्िानी ने "‫("اإلرواء‬7/238)सह़ी कहा है |
5
आपके फर्मान: (िो तम्
ु हार्े अधीन हने)का अथर है :दासी एवं दास,जिन के
साथ सुन्दर् व्यवहार् र्खने की आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने पर्ामशर
फर्मा |

ह़दीस में (‫ )م اااِّي ياِّل اااِّلس ا ا ا ا ا ا ااان ااه‬के शब्द आए हने(अथर:आपकी ज़िान रुक

ग )अथर:मस वसीयत के अरतरर्‍त आपकी ज़िान पर् को और् िात नहीं

आ र्ही थी|िैसे कक हम कहते हने:‫ اافتسضىلعأۃنسلاانلسذکاوذکا‬अथर:लोगों की

ज़िान पे यह और् यह िात प्रचसलत हो ग , अन्य रर्वायत में (‫)يِّ يص‬के

शब्द आए हने,अथारत:आप साफ साफ नहीं िोल सकते थे, ‫ إافۃص‬का अथर

होता है स्पष् कर्ना,इस प्रकार् दोनों शब्द के अथर एक ही है , वह यह कक

पैगंिर् सलल्लाहु अलैहह वसल्लम नमाज़ की र्क्ष ा और् मसको पढ़ने की


वसीयत फर्मा र्हे हने यहां तक कक र्ोग के िढ़ने के कार्ण आप स्पष्
ूपप से िोल नही सक पा र्हे थे|

9−यह नमाज़ की महानता एवं महत्ता ही है कक ‍़यातम के हदन सिसे


पहले िंदा से जिस प्राथरना के प्ररत हहसाि सलया िाएगा वह नमाज़
होगी,अत:अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सल
ल सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "‍़यामत के हदन लोगों से जिस अ़मल के
प्ररत सिसे पहले हहसाि सलया िाएगा वह नमाज़ है , फर्माया:हमार्ा
स्वरश्रेष्ठ अल्लाह दे वदत
ल ों से फर्माएगा ििकक वह (पलवर से ही)सि िानने
वाला है :मेर्े िन्दे की नमाज़ दे खो!‍या मसने मसको पर्ल ा ककया है या मसमे

6
को कमी है ?अत:वह यहद पर्ल ी हु तो पर्ल ी की पर्ल ी सलख दी िाएगी और्
यहद मसमें को कमी हु तो फर्माएगा कक दे खो!‍या मेर्े िन्दे के कुप
नवाकफल भी है ?यहद नवाकफल हुए तो वह फर्माएगा कक मेर्े िन्दे के फज़
को मसके नकफलों से पर्ल ा कर् दो|कफर् इसी प्रकार् अन्य आ़माल सलए
िाएंगे"|4

10−इसकी महानता एवं महत्ता का एक प्रमाण यह भी है कक अंत काल


में इस्लाम धमर का िो भाग सिसे अंरतम में (लोगों के अंदर् से समा‍त
हो िाएगा)वह नमाज़ होगी,यहद नमाज़ नष् हो ग तो पलर्ा धमर िाता
र्हे गा और् धमर का को भाग(मसके अंदर्)िाकी नहीं र्हे गा,इसका प्रमाण
आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की यह ह़दीस है :इस्लाम के सार् िंधन
एक एक कर्के ल िाएंगे, िि भी को िंधन ल े गा, लोग मसके िाद
लावे िंधन से धचम िाएंगे,सिसे प्रथम ल ने वाला िंधन शासन है और्
सिसे अंरतम में ल ने वाला िंधन नमाज़ है |5

4 इस ह़दीस को अिल दामलद(864)और् अह़मद(2/425)ने रर्वायत ककया है और्


मपर्ो‍त शब्द अिद ल ामलद के हने,और् अल्िानी र्हहमहुल्लाहु और् "‫ "ادنسمل‬के शोधकतारंं
ने इसे सह़ी कहा है |
5इसे अह़मद(5/251)और् इब्ने हहब्
़ िान(6716)ने अिल अमाम िाहहली र्ज़ीअल्लाहु
अंहु से वणरन ककया है और् "‫ "ادنسمل‬के शोधकतारंं ने इसकी सनद को जिययद कहा
है |

7
ह़दीस में (‫)عرىِّاإلسالم‬के शब्द आए हने,इसका अथर है इस्लाम के फर्ाएज़ व

अह़काम व कानलन,अथारत लोग इन फर्ाएज़ व अह़काम पर् अ़मल कर्ना

पोड दें गे,जिस के फलस्वूपप धमर की अिनबियत और् िढ़ िाएगी यहां

तक कक लोग नमाज़ से भी दर्ल हो िाएंगे, और् सिसे अंरतम में नमाज़

ही पोडेंगे, िो कक अंरतम काल में होगा|

अध्याय नमाज़ की अरनवायरता का मल्लेख

 अल्लाह का कथन है :}‫{ إِنَّ الصَّالَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِنيَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا‬ 6

अथारत:रन:संदेह नमाज़ मान वालों पर् रनधाररर्त समय पर् अरनवायर की


ग है |

आपका कथन: (सिसे पहले ल ने वाला िंधन शासन है )अथारत:सिसे पहले िो िंधन

ल े गा वह यह कक शासन शैली एवं शासकों में बिगाड आिाएगी,मेर्ा कहना है :हमार्े


यग
ु में हहंसा एवं बिगाड स्पष् है , अत:मजु स्लम दे शों में िो शासन प्रणाली प्रचसलत
है वह मानव रनसमरत हने, िहुत कम ही दे श हने िहााँ इस्लामी शासन प्रणाली लागल है |

6 ]301:‫ [ااسنلء‬, इस आयत में :}‫ {مَّوْقُوتًا‬का मतलि है :िो यहां पर् फज़र और् अरनवायर

के अर््थ में है ,इस से अल्लाह तआ़ला का यह कथन भी है : ُ‫{يَاَأُّيهَا الَّ ِذينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْ ُكم‬:

ُ ‫ ال‬इस आयत की व्याख्या में यह इब्ने अ़ब्िास


}‫ص ِِِِّّّّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّ ِذينَ مِن قَبْلِ ُكمْ لَعَلَّ ُكمْ تََّتقُون‬
र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा का कथन है िैसा कक इब्ने िर्ीर् अत़्िर्ी ने मनसे वणरन ककया
है |
8
 अ़ब्दल्
ु लाह बिन म़मर् र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है , मन्हों ने
फर्माया : मने ने सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को फर्माते हुए
सुना: "इस्लाम पााँच चीज़ों पर् आधारर्त है :इस िात की गवाही दे ना
कक अल्लाह के अरतरर्‍त को सत्य पर्मेश्वर् नहीं और् यह कक
ह़ज़र्त मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहह वसल्लम अल्लाह के र्सल
ल हने और्
नमाज़ पढ़ना,ज़कात दे ना, ह़ि कर्ना और् र्मज़ान के र्ोज़े र्खना"|7

 अनस बिन मासलक र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , मन्हों ने कहा:र्सल



सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "िो व्यज‍त हमार्े िैसी नमाज़
पढ़े और् हमार्े ज‍िले
़ की ंर् माँह कर्े और् हमार्ा ज़िीहा(हमार्े
हाथ का ज़िह ककया हुआ िानवर्)खाए तो वह मुसलमान है जिसे
8
अल्लाह और् मसके र्सलल का जिम्
़ मा प्रा‍त है , अत:तुम अल्लाह
के जिम्
़ म्ोो में ख्यानत(वादे का हनन)न कर्ो"|9
 मोआ़ज़ र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , वह फर्माते हने:मुझे र्सलल
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने दस िातों की वसीयत की, मन में से
आप ने यह भी कहा: िान िझ
ल कर् को फज़र नमाज़ न पोडा

7 इसे िोखार्ी(8)और् मजु स्लम(16)ने रर्वायत ककया है और् मपर्ो‍त शब्द मजु स्लम
के हने, िैसा कक मलपर् गुिर् चक
ु ा है |
8 जिम्
़ मा का अथर र्क्ष ा का वादा है , दे खें:"‫"امجعملاولسیط‬
9 इसे िोखार्ी(391)ने वर्णरत ककया है |
9
कर्ो,‍यों कक िो व्यज‍त िान िझ
ल कर् को फज़र नमाज़ पोडता है
वह अल्लाह के जिम्
़ म्ोो(र्क्ष ा)से रनकल िाता है |10

अध्याय नमाज़ को पढ़ने,इसकी पािंदी कर्ने और् इसमें सस्


ु ती
कर्ने से डर्ने का मल्लेख

 अल्लाह तआ़ला का कथन है :}‫{حَافِظُواْ عَلَى الصَّلَوَاتِ والصَّالَةِ الْوُسْطَى‬

अथारत:नमाज़ों का, ववशेष ूपप से माध्यसमक नमाज़ का ध्यान र्खो|

‫( االصلۃاولىطس‬िीच वाली नमाज़),का अथर अ़सर् की नमाज़ है |

 अ़ब्दल्
ु लाह बिन अ़रता र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा निी सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम से वणरन कर्ते हने कक आप ने एक हदन नमाज़ का मल्लेख
ककया तो फर्माया:िो व्यज‍त नमाज़ की र्क्ष ा कर्ता है मस के सलए
वर् क़्यामत के हदन नर्ल ,(आलोक)प्रमाण और् निात होगी,और् िो
व्यज‍त इसकी र्क्ष ा नहीं कर्ता मसके सलए न नलर् होगा,न

10 इसे अह़मद(5/238)ने वर्णरत ककया है और् इसके शवाहहद के आधार् पर् अल्िानी
ने इसे "‫ "إرواءالغلیل‬में इसे सह़ी कहा है |
10
िर्ु हान(प्रमाण)और् न निात, और् वह क़्यामत के हदन काूपन व
कफर्औ़न और् हाूपन और् ंिैय बिन ख़ल्फ के साथ होगा|11

12
इब्नल
ु कजययम र्हीमहुल्लाहु फर्माते हने:इन चार् व्यज‍तयों का मल्लेख
ववशेष ूपप से इस सलए ककया गया है कक ये सार्े काकफर्ों के सर्दार् थे ,
इस में एक िार्ीक बिंद ु भी है , वह यह कक िो व्यज‍त नमाज़ की र्क्ष ा
नहीं कर्ता वह या तो धन एवं संपवि में व्यस्त र्हता है ,या अपने शासन
में , या अपने र्ाज्य व सर्दार्ी में या अपनी व्यापार् में व्यस्त र्हता है ,
अत:जिस व्यज‍त को मसका धन नमाज़ से दर्ल एवं व्यस्त कर्दे वह काूपन
के साथ होगा, जिसे मसका शासन नमाज़ से व्यस्त कर्दे वह कफर्औ़न के
साथ होगा,जिसे मसका र्ाज्य व सर्दार्ी−िैसे मंत्रालय अथवा इस िैसा

11 इसे अह़मद(2/169)आहद ने रर्वायत ककया है और् "‫ "ادنسمل‬के शोधकतारंं ने


इसकी सनद को ह़सन कहा है |
12 आप का नाम हैः महु म्मद पत्रु अबू बक्र पत्रु साद अल-ज़रई अल-ददमश्की, आप इब्ने कदयिम अल-जौज़़ीयिा के नाम से प्रदसद्ध हैं,
आप आठवीं शताब्द़ी के उलेमा में से हैं। आप अपने गरू ु इब्ने तम़ीयिा के सादनध्ि में रहे िहााँ तक दक सन 728 दहजऱी में उनका देहाांत
हो गिा, आप उनके अदत दवदशष्ट दशष्ि रहे हैं, और उनके देहाांत के बाद आपने दावत एवां इल्म़ी दजहाद का ब़ीडा उठािा िहााँ तक दक
सन 751 दहजऱी में आपकी मृत्िु हो गई, आप प्रकाांड दवद्वान तथा अकाट्ि दल़ील पेश करने वाले एवां प्रमाणों से सक्ष्ू मसेसक्ष्ू मतम मसला
समझने की क्षमता रखने वाले व्िदित्व के धऩी एवां बहुतेरे पस्ु तकों के लेखक हैं, आपकी पस्ु तकों को लोगों ने हाथों हाथ दलिा, और
आपकी पस्ु तकों को ऐस़ी स्व़ीकाियता प्राप्त हुई दक आपके बाद आने वाले लोग मानो आपकी ह़ी पस्ु तकों पर आदित हैं, उन्होंने इस्लाम़ी
अकीदा को बडे ज़ोरदार ढांग से लोगों के समक्ष रखा व उसे फलािा, और दबदअदतिों (नवाचाररिों) पर गद्य एवां पद्य दोनों रूप में प्रहार
दकिा, दवशेष रूप से दाशयदनकों (फलसदफिों), कब्र पजू कों, ताव़ील (शरई नसु सू व श्लोकों की मनमाऩी व्िाख्िा) करने वालों एवां सदू ़ििों
पर कुठराघात दकिा, अल्लाह तआला की आप पर अस़ीम कृ पा हो, आपने तथा आपके गरू ु ने अल्लाह के द़ीन को पनू जीदवत करने
का कािय दकिा, सक्षां ेप में कहा जाए तो आप इस्लाम़ी समदु ाि में एक बडे बदलाव का घोतक थे। आपकी ज़ीवऩी के बारे में अदधक
जानकाऱी के दलए देखें: इब्न अल-इमाद की “शज़रात अल-ज़हब” तथा इब्ने रजब की “ज़ल त़बकात अल-ह़नादबलह”, और आप की
सबसे व्िापक एवां दवस्तृत ज़ीवऩी दलख़ी ह शख़ बक्र दबन अब्दल्ु लाह अबू ज़द रदह़महुल्लाह ने एवां उनकी पस्ु तक का नाम ह “इब्ने
कदयिम अल-जौज़़ीयिा ह़िातहु ू व आसारूहू”।
11
को अन्य पद−नमाज़ से दर्ल कर् दे वर् हामान के साथ होगा और् जिसे
मसका व्यापार् नमाज़ से फेर् दे वह ंिैय पुत्र खल्फ के साथ होगा|13

 ं़िादह पत्र
ु सासमत र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , वर् फर्माते हने:मने
ने र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को फर्माते हुए सुना: "पााँच नमाज़ें
हने िो अल्लाह तआ़ला ने िंदों पर् फज़र की हने,िो व्यज‍त मन्हें पढ़े ,
14
मनमें से ककसी को कम महत्वपण
ल र समझ कर् न पोडदे तो अल्लाह
तआ़ला के यहा मस के सलए वादा हो चक
ु ा है कक वह मसे स्वगर में
प्रवेश प्रदान कर्े गा|और् िो व्य‍त्जोोा मन को न पढ़े तो अल्लाह
तआ़ला के यहा मस के सलए को वादा नहीं, चाहे मसे यातना दे ,
चाहे स्वगर में प्रवेश कर्े "|15
 अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "क़्यामत के हदन लोगों से जिस अ़मल का
सिसे पहले हहसाि सलया िाएगा वर् नमाज़ है , फर्माया:हमार्ा
स्वरश्रेष्ठ पर्वर्हदगार् दे वदत
ल ों से फर्माएगा ििकक वह(पव
ल र से ही)सि
िानने वाला है :मेर्े िंदे की नमाज़ दे खो!‍या मसने इसको पलर्ा ककया
है या इसमें को कमी है ?अत:वह यहद पलर्ी हु तो पलर्ी सलख दी

13 "‫ "اتکباالصلۃومکحاتراھک‬पष्ृ ठ संख्या:70, नमाज़ पोडने वाले को काकफर् मानने वालों के


प्रमाण के संदभर में इस कथन का मल्लेख है |
14 अथारत मन नमािों ़ में से ककसी को पण
ल र ूपप से न पोडे|
15 इस ह़दीस को अिल दामलद(1420)और् अह़मद(5/315)ने रर्वायत ककया है और्
अल्िानी और् "‫ "ادنسمل‬के शोधकतारंं ने इसे सह़ी माना है |
12
िाएगी और् यहद इसमें को कमी हु तो फर्माएगा कक दे खो!‍या
मेर्े िंदे के कुप नवाकफल भी हने?यहद नवाकफल हुए तो वर् फर्माएगा
कक मेर्े िंदे के फज़ को मसके नफलों से पलर्ा कर्दो|कफर् इसी प्रकार्
से अन्य आ़माल सलए िाएंगे"|16
 नमाज़ के महत्व को दे खते हुए ही निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम
ने मौत के र्ोग में भी इसकी वसीयत की, अत:मम्म्ोो सल्मा
र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है कक जिस र्ोग में आप सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम का रनधन हुआ, मसमें आप फर्माया कर्ते
थे: "नमाज़(की र्क्ष ा कर्ो)और् मन(दासी,दासों की)िो तुम्हार्े अधीन
हने"|आप ने यह शब्द िार् िार् फर्माए यह तक कक आप की ज़िान
रुक ग |17

अध्याय नमाज़ काएम कर्ने के महत्व का मल्लेख

 नमाज़ स्वरश्रेष्ठ अ़मल है , अत:सौिान


़ र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है ,
अल्लाह के र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "सीधे मागर

16 इस ह़दीस को अिद
ल ामलद(864)और् अह़मद(2/425)ने वर्णरत ककया है और् मपर्ो‍त
शब्द अिद
ल ामलद के हने,और् अल्िानी र्हहमह
़ ु ल्लाहु और् "‫ "ادنسمل‬के शोधकतारंं ने इसे
सह़ी माना है , िैसा कक गुिर् चक
ु ा है |
17 इस ह़दीस को इब्ने मािा(1625)और् अह़मद (6/290)ने वर्णरत ककया है और्
अल्िानी ने "‫( "اإلرواء‬7/238)में इसे सह़ी कहा है |
13
पर् जस्थर् र्हो और् तम
ु (पण
ल र ूपप से)जस्थर् नहीं र्ह सकोगे, और्
तुम्हें ाात होना चाहहए कक तुम्हार्ा स्वरश्रेष्ठ अ़मल नमाज़ है और्
वुज़ल की र्क्ष ा मोसमन ही कर्ता है "|18

 नमाज़ स्वगर में प्रवेश होने का एक महान कार्ण है ,कुर्ान पाक


की अनेक आयतों में अल्लाह ने यह स्पष् कर् हदया है कक स्वगरवासी
अपने जिन महत्वपलणर अ़मलों के कार्ण स्वगर के पात्र होंगे, मन में
नमाज़ पढ़ना और् ज़कात दे ना भी मल्लेखनीय हने,मदाहर्ण स्वूपप
अल्लाह तआ़ला का यह कथन दे खें:

ِ‫{إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّ هِ وَأَقَامُوا الصَّالَةَ وَأَنفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَالَنِيَةً يَرْجُونَتِجَارَةً لَّن تَبُورلِيُوَفِّيَهُ ْم أُجُورَهُمْ ويَ ِيََهُم مُن فَْْلِه‬

]03-92 :‫إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُور}[فاطر‬

अथारत:वास्तव में िो पढ़ते हने अल्लाह की पुस्तक(कुआरन),तथा मन्होंने


स्थापना की नमाज़ की, एवं दान ककया मस में से िो हम ने मन्हें प्रदान
ककया है खल
ु े तथा पुपे तो वही आशा र्खते हने ऐसे व्यापार् की िो कदावप
हारनकर् नहीं होगा | ताकक अल्लाह प्रदान कर्े मन्हें भर्पर्ल मन का
प्ररतफल,तथा मन्हें अधधक दे अपने अनुग्रह से, वास्तव में वह अरत क्ष मी
आदर् कर्ने वाला है |

18 इस ह़दीस को इब्ने मािा(277)और् अह़मर्(5/277)ने वर्णरत ककया है और्


अल्िानी ने "‫ "اإلرواء‬में ह़दीस संख्या(412)के अंतगरत सही ़ कहा है , इसी प्रकार् "‫"ادنسمل‬
के शोधकतारंं ने भी
इसे सह़ी कहा है |
14
 िकर् पत्र
ु अिी मस
ल ा अपने वपता से वणरन कर्ते हने कक र्सल
ल सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम ने फर्माया: " जिसने दो ठं डे समय की नमाज़ों
को(रनयसमत ूपप से)अदा ककया,वह स्वगर में प्रवेश कर्े गा"|19

ठं डे समय का मतलि फिर् और् अ़सर् की नमाज़ है ,ऐसा नाम दे ने का


कार्ण यह है कक इन दो नमाज़ों के समय ऋतु(सामान्य ूपप से)ठं डा होता
है |

 नमाज़ की पािंदी एवं र्क्ष ा कर्ना नर्क में प्रवेश से र्ोकने

वाले काय में से है :अत:ज़ोहै र् पुत्र अ़म्मार्ा अपने वपता र्ज़ीअल्लाहु


अंहु से वर्णरत कर्ते हने, मन्हों ने कहा:मने ने र्सलल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम को फर्माते हुए सुना: "वह व्यज‍त कभी भी अजनन में प्रवेश
नहीं होगा िो सलयर रनकलने और् मसके अस्त होने से पहले नमाज़
पढ़ता है "|20अथारत फिर् और् अ़सर् की नमाज़ें|

 नमाज़ पापों के क्ष मा का माध्यम है ,


21
अत : इब्ने मसमलद

र्ज़ीअल्लाहु अन्हु से वर्णरत है कक एक व्य‍त्जोोा ने ककसी अिनिी

19इसे िोखार्ी(574)और् मजु स्लम(635)ने वर्णरत ककया है |


20 सह़ी मजु स्लम(634)
21 अथारत ऐसे पाप जिनका संिंध िंदा और् मसके र्ि से है ,िैसे शर्ाि पीना अथवा
अवैध गाना ििाना आहद, ककन्तु वे पाप जिन का संिंध िंदों के अधधकार् से है तो
मसके क्ष मा के सलए यह अरनवायर है कक मससे क्ष मा मांगी िाए,चाहे वह अधधकार्
धन से संिंधधत हो अथवा मान व सम्मान से अथवा र्‍त से|
15
महहला का चंि
ु न लेसलया, मसके िाद वह र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम के सेवा में मपजस्थत हुआ और् अपना पाप िताया तो मस
समय यह आयत मतर्ी:

]115:‫{وَأَقِمِ الصَّالَةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مُنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَُِّّيئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَىلِلذَّاكِرِين}[هود‬

अथारत:तथा आप नमाज़ की स्थापना कर्ें ,हदन के सीर्ों पर् और् कुप

र्ात िीतने पर्, वास्तव में सदाचार् दर्ु ाचार्ों को दर्ल कर् दे ते हने यह एक

सशक्ष ा है सशक्ष ा ग्रहण कर्ने वालों के सलये |

मस व्यज‍त ने आप से पलपा : ‍या ये केवल मेर्े सलये है ?आप ने

फर्माया:नहीं, िजल्क मेर्ी मम्मत में से िो भी इस पर् अ़मल कर्े यह

सि के सलए है "|22

(पापों को दर्ल कर्ती हने):अथारत:मन्हें सम ा दे ती हने|

 अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हने कक र्सल


ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया :" पााँचों नमाज़ें और्
( हर् ) शुक्रवार् ( दस
ल र्े ) शुक्रवार् तक िीच के काल के पापों का

22 इसे िोखार्ी(4687)और् मजु स्लम(2763)ने रर्वायत ककया है और् मपर्ो‍त शब्द


िोखार्ी के हने|
16
कफ्फार्ा(मनको सम ाने वाले)हने,िि तक किीर्ा(िडे)पापों को न
ककया िाए"|23

लाभ:ववद्वानों ने इस ह़दीस से ाान ाात ककया है कक पााँच समय की


नमाज़ें और् अन्य पुण्य के कायर किीर्ा पापों को नहीं सम ाते,िजल्क किीर्ा
पापों की माफी तौिा के बिना नहीं हो सकती|

 अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से मर्वी है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह


वसल्लम ने फर्माया: "तुम ‍या समझते हो यहद तुम में से ककसी
के घर् के सामने नहर् हो जिससे वह हर् हदन पााँच िार् नहाता
हो, ‍या मस (के शर्ीर्)का को को मैल कुचेल िाकी र्हे गा,आप
ने फर्माया यही पााँच नमाज़ों का मदाहर्ण है , अल्लाह तआ़ला
मनके माध्यम से पापों को साफ कर् दे ता है "|24

 फिर् और् अ़सर् की नमाज़ें रनयसमत रुप से पढ़ने का


सवाि यह है कक आर्खर्त में अल्लाह के दशरन का सौभानय
होगा िो कक सोवगरवाससयों के सलये सिसे िडा मपकार्
होगा,इसका प्रमाण िर्ीर् बिन अ़ब्दल्ु लाह बििली र्ज़ीअल्लाहु अंहु
की यह ह़दीस है ,फर्माते हने:हम एक र्ात निी र्सलल सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम के साथ िैठे हुए थे|आपने चौध्वीं र्ात के चााँद

23 सही ़ मजु स्लम(233)


24 सह़ी मजु स्लम(667)
17
की ंर् दे खा तो फर्माया: "रनसंदेह तम
ु अपने र्ि को दे खोगे
जिस प्रकार् तुम इस चााँद को दे ख र्हे हो,मसे दे खने में तुम्हें को
कहठना नहीं हे ागी,इस सलये यहद तुम्हार्े सलए संभंव हो तो सलयर
मगने और् सय
ल र अस्त होने से पहले नमाज़ न पोडो"कफर्
़ आप ने
यह आयत पढ़ी:

]93:‫{وَسَبُحْ بِحَمَِْ رَبُكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّ ْمسِ وَقَبْلَ الْغُرُوب}[ق‬

अथारत: तथा पववत्रता का वणरन कर्ें अपने पालनहार् की प्रशंसा के साथ


सलयर के रनकलने से पहले तथा डलिने से पहले|25

ह़दीस मे )‫ (ال َت ُّامون‬का शब्द आया है जिस का अथर है :अल्लाह को दे खते


समय आपस में तुम्हार्े िीच मुठभेड नहीं होगी|

)‫ ات (ال ُت ُامون‬के पेश और् ‫ میم‬के सक


ु ल न के साथ भी आया है ,इसका अथर
है :अल्लाह को दे खते समय तुम्हार्े मलपर् अन्याय नहीं होगा कक तुम में से
को दे खे और् को न दे खे|26

यह अथर भी हो सकता है कक अल्लाह को दे खते हुए अल्लाह के नलर् के

कार्ण तुम्हार्ी आंखें नहीं चोंध्याएगी,‍यों कक मनुष्य अल्लाह के नलर् को

25 इसे िोखार्ी(4851)और् मजु स्लम(633)ने वर्णरत ककया है और् मपर्ो‍त शब्द


िोखार्ी के हने|
‫ضم‬
26 दे खें:‫ م‬:‫امدۃ‬،‫ااہنلۃی‬
18
झेल नहीं सकता,ककन्तु आर्खर्त में मोसमनों को इतनी शज‍त प्रदान की

िाएगी कक वर् मस नलर् को झेल सके,मसके िाद अल्लाह तआ़ला के दशरन

का सौभानय प्रदान होगा|

और् सार्े अथर सही हने|

अध्याय रनधाररर्त समय पर् नमाज़ अदा र्कने की


अरनवायरता का ियान

 अल्लाह तआ़ला का कथन है :}‫{إِنَّ الصَّالَةَ كَانَتْ عَلَى الْمُؤْمِنِنيَ كِتَابًا مَّوْقُوتًا‬

अथारत:रन:संदेह नमाज़ मान वालों पर् रनधाररर्त समय पर् अरनवायर की


ग है |

इब्ने मस्मलद र्ज़ीअल्लाहु अंहु का कथन है :नमाज़ का रनधाररर्त समय है


जिस प्रकार् ह़ि का रनधाररर्त समय है |27

 अिु अलमलीह़ फर्माते हने:हम अिु आलद


ल हदन में ह़ज़र्त िर्ु ीदा
र्ज़ीअल्लाह़ अंहु के साथ एक युद्ध में थे, मन्हों ने फर्माया:अ़सर्
की नमाज़ िल्दी पढ़ लो ‍यों कक निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम

27 इस कथन को इब्ने ह़िर् अत़्िर्ी ने मपर्ो‍त आयत की व्याख्या में वर्णरत


ककया है |
19
का कथन है : "जिस व्यज‍त ने अ़सर् की नमाज़ पोड दी, मसका
अ़मल नष् हो गया"|28

अध्याय रनधाररर्त समय पर् नमाज़ पढ़ने के महत्व का मल्लेख

 रनधाररर्त समय पर् नमाज़ पढ़ना स्वरश्रेष्ठ कायेाेां में से है ,


अत: अ़ब्दल्
ु लाह पुत्र मस्मलद़ र्ज़ीअल्लाहु अन्हु फर्माते हने:मनेने निी
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम से पलपा:अल्लाह तआ़ला को कोनसा अ़मल
सिसे अधधक पसंद है ? आपने फर्माया : " नमाज़ को समय पर्
पढ़ना",मन्हों ने पप
ल ा:कफर् कोनसा?आपने फर्माया: "माता−वपता के
साथ सुन्दर् व्यवहार् कर्ना " ,मन्होंने पलपा : कफर् कोनसा ? आपने
फर्माया: "अल्लाह के मागर में जिहाद कर्ना", ह़ज़र्त अ़ब्दल्
ु लाह बिन
मस्म़द
ल र्ज़ीअल्लाहु अंहु कहते हने:र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने
मझ
ु से इसी प्रकार् मल्ल्ोोख ककया,यहद मने और् पप
ल ता तो आप और्
कहते|29

अध्याय नमाज़ को मसके रनधाररर्त समय से ववलम कर्ने के


कठोर् रनवार्ण का मल्लेख

28 इस ह़दीस को िोखार्ी(553)ने रर्वायत ककया है |


29 इस ह़दीस को िोखार्ी(5970)और् मजु स्लम(85)ने वर्णरत ककया है और् मपर्ो‍त
शब्द िोखार्ी के है |
20
 अल्लाह का कथन है :

}‫{فَوَيْلٌ لِّلْمُصَلِّينالَّذِينَ هُمْ عَن صَالَتِهِمْ سَاهُون‬

अथारत:ववनाश है मन नमाजियों
़ के सलये िो अपनी नमाज़ से अचेत हने|

सअ़द पत्र
ु अिी व‍कास़ र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हने: (यह वे लोग हने िो
नमाज़ को मसके रनधाररर्त समय से ववलम कर्ते हैु ), यही कथन मसूपक
बिन अलइिदा और् अिल अलज़ोह़ा का भी है |30

 मसअ़ि पुत्र अिी साद पुत्र अिी व‍़कास फर्माते हने:मनेने अपने वपता
से कहा:ए वपता िी!अल्लाह तआ़ला के इस कथन के ववषय में आपकी
‍या र्ाय है ?: }‫س ِِِّّّاهُون‬
َ ْ‫ص ِِِّّّالَتِهِم‬ َ ُ‫ {فَوَيْلٌ لِّلْم‬हम में से कोन है
َ ‫ص ِِِّّّلِّني الَّذِينَ هُمْ عَن‬

जिससे भल
ल चक
ल नहीं होती?हम में से कोन है जिसकी (नमाज़

में )ववचार् नहीं आते?मन्होंने फर्माया:इसका मतलि यह नहीं है ,

िज‍ल इसका अथर है नमाज़ के रनधाररर्त समय को खर्ाि कर्ना वह


इस प्रकार् कक खेल कलद में मगन र्हे यहां तक कक नमाज़ का समय
रनकल िाए|31

30 दे खें:‫وسرۃااملوعن‬،‫ریسفتانبریثک‬
31 इस असर् को अिल याला(704)ने वर्णरत ककया है और् इसकी सनद को मन
ु जिर्ी

ने ‫اببارتلھیبنمرتکاالصلۃدمعتما‬،‫اتکباالصلۃ‬،"‫ "ارتلبیغوارتلھیب‬में और् अल्िानी ने "‫"حیحصارتلبیغوارتلھیب‬
(576)में ह़सन कहा है |
21
 इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु इस आयत की व्याख्या में सलखते

हने:आयत में ‫ وہس‬का अथर नमाज़ पोडना है , यहद यह अथर न होता तो

मन्हें नमाज़ी नहीं कहा िाता, िसलक इसका अथर नमाज़ की

अरनवायरता से लापर्वाही कर्ना है , या तो इसके रनधाररर्त समय

से,िैसा कक इब्ने मस्म़द


ल आहद का कथन है , या ववनरताता व

ववनयशीलता से लापर्वाही कर्ना है |

सही यह है कक इससे दोनों प्रकार् की लापर्वाही है , ‍यों कक अल्लाह


तआ़ला ने ऐसे लोगों के सलए नमाज़ पढ़ने का जिक्र
़ तो ककया है , साथ ही
मनकी यह ववशेषता िता है कक वे इसमे लापर्वाही कर्ते हने,जिसका अथर
इसके अरनवायर रनधाररर्त समय से लापर्वाही कर्ना,अथवा अरनवायर
सत्यरनष्ठा और् अरनवायर ववनयशीलता से लापर्वाही कर्ना है |32

 इब्ने म़मर् र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है कक र्सल


ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया:जिस व्यज‍त की अ़सर् की नमाज़ पल ग ,
मानो मसके सार्े संतान और् धन लु गए"|33

‫ل‬
32 दे खें:‫زنمۃلا خشووع‬،"‫"دمارجااسلنیکل‬
33 इसे िोखार्ी(552)और् मजु स्लम(626)ने वर्णरत ककया है |
22
(मानो मसके सार्े संतान और् धन लु गए)अथारत:वे सि पीन सलए गए
और् वह परर्वार् व संतान एवं धन से वंधचत हो गया"|34

 अिल
ल अलमलीह़ फर्माते हने:हम अिल आलद
ल हदन में ह़ज़र्त िर्ु ीदा
र्ज़ीअल्लाहु अंहु के साथ एक युद्ध में थे, मन्होंने फर्माया:अ़सर् की
नमाज़ िल्दी पढ़लो ‍यों कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम का
फर्मान है : "जिसने अ़सर् की नमाज़ पोडदी, मसका अ़मल नष्
होगया"|35

34 एक व्यज‍त ने ियान ककया कक वह एक िार् अ़सर् की नमाज़ के समय सो


गया, तो सपने में दे खा कक वह यात्रा में है और् मसके पास एक न कार् है जिस
में मसके परर्वार् भी सवार् हने,अत:वह ककसी काम से कार् से मतर्ा और् मसी समय
एक चोर् ने वह कार् परर्वार् समेत चोर्ी कर्ली, मनका कहना है :कफर् मेर्ी आाँख खल

ग तो मने ने मस सपने को इसी ह़दीस से व्याख्या ककया|
 35 इस ह़दीस को िोखार्ी ने वर्णरत ककया है |
लाभ: यह ाात है कक पण
ल त
र ा से आ़माल को नष् कर्ने वाला कायर केवल कुफ्र
अकिर्(िडा कुफ्र)है िो मनष्ु य को इस्लाम से िाहर् कर्दे ता है , इसी आधार्
पर् ववद्वानों के एक समह
ल ने कहा है कक:िो व्यज‍त िान िझ
ल कर् नमाज़ को
मसके रनधाररर्त समय से ववलंि कर्े वह कुफ्र का कायर कर्ता है ,अल्लाह का
शर्ण,इनका प्रमाण िर्ु ीदा की मपर्ो‍त ह़दीस है , तथा यह ह़दीस भी मनका
प्रमाण है कक: (हमार्े िीच और् मन(काकफर्ों)के िीच िो अनि
ु ंध है , वह नमाज़
है , जिसने इसे पोड हदया मसने कुफ्र ककया), इस ह़दीस में (हमार्े िीच और्
मनके िीच)का अथर:मस
ु लमानों और् काकफर्ों के िीच है , स्वोत्तम कथन के
अनस
ु ार् वह काकफर् हो या नहीं,यह तो तय है कक मसके आ़माल नष् हो िाते

23
 सम
ु र्ा बिन िन
ु दि
ु र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है ,मन्हों ने कहा:र्सल

सलल्लाहु अलैहह वसल्लम िार् − िार् सह़ािा से फर्माया कर्ते
थे: "‍या तुम में से ककसी ने को सपना दे खा है ? "जिसने दे खा होता
वह अल्लाह की तौफीक से आपको िताता, आप सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम एक सि
ु ह फर्माया:आि र्ात मेर्े पास दो आने वाले आए,
मन्हों ने मुझे मठाया और् मुझसे कहा: (मेर्े साथ)चलो, मने मनके साथ
चल हदया,अत:हम एक व्यज‍त के पास आए िो ले ा हुआ था और्
दस
ल र्ा व्यज‍त मसके पास एक पत्थर् सलए खडा था, अचानक वह
मसके सर् पर् पत्थर् मार्ता तो मसका सर् तोड दे ता और् पत्थर्
लुढ़क कर् दर्ल चला िाता, वर् पत्थर् के पीपे िाता और् मसे मठा
लाता,मसके वापस आने से पहले पहले दस
ल र्े का सर् सही हो िाता

हने,चाहे वह अपने मान पर् जस्थर् ही ‍यों न र्हे ,िो कक मामल


ल ी िात नहीं
है ,इस सलए मन लोगों को अल्लाह से डर्ना चाहहए िो काम काि में व्यस्त
र्हते हने और् फिर् की नमाज़ के सलए नहीं िगते, अधधकतर् लोगों की आदत
िन चक
ु ी है कक वह ड्यल ी ाइम के अनस
ु ार् अलामर लगाते हने,िो कक सामान्य
ूपप से फिर् की नमाज़ और् सय
ल र मगने के िाद का समय होता है ,और् िि
नीन्द से मठते हने तो फिर् को कज़ा कर्ते हने, ििकक मसकी कज़ा सही होगी
या नहीं यह ववद्वानों के िीच वववाद का ववषय है ,‫واہللالمسیغاان۔‬

24
िैसा कक पहले था, खडा ़ हुआ व्यज‍त कफर् इसी प्रकार् मार्ता और्
ऐसा ही होता िैसे पहले हुआ|

आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने फर्माया:मनेने दोनों से कहा:!‫‍ احبسناہلل‬या


िात है ?यह दोनों व्यज‍त कोन हने?

मन्हों ने कहा आगे चलो, आगे चलो|

ह़दीस के अंत में है कक मन दोनों दे वदत


ल ों ने र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम से मस व्यज‍त के िार्े में और् मसके पाप के िार्े में िताया और्
फर्माया:वह प्रथम व्यज‍त जिसके पास आप गए थे और् पत्थर् से मसका
सर् कुचला िा र्हा था,यह वह व्यज‍त है िो कुर्ान सीखता कफर् मसे

पोडदे ता36 और् फज़र नमाज़ पढ़े बिना सो िाता था|37

 अिल होर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह

वसल्लम ने फर्माया: "िि मनष्ु य र्ात(र्ात के समय)सो िाता है


तो शैतान मसके मगि38पर् तीन धगर्हें लगादे ता है , प्रत्येक धगर्ह
पर् यह फलंक दे ता है कक अभी तो िहुत र्ात िाकी है सोिां, कफर्

36 अथारत वह इसके प्ररत लापर्वाह था, अत:न इसके अह़काम सीखता और् न इसके
अनस
ु ार् अ़मल कर्ता|
37 इस ह़दीस को िोखार्ी(7047)ने वर्णरत ककया है |
38 अथारत मसके सर् के वपपले भाग पर्,इसका मलति यह कक वह इतनी गहर्ी
और् लंिी नींद में चला िाता िाता है , मानो मसके सर् पे तीन धगर्ह लगा दी ग
हों,दे खें:‫ااہنلۃی‬
25
यहद मनष्ु य िाग गया हो और् अल्लाह का स्मर्ण ककया तो एक
धगर्ह खुल िाती है , यहद मसने वज़ल कर् सलया तो दस
ल र्ी धगर्ह भी
खुल िाती है ,मसके िाद अगर् मसने नमाज़ नमाज़ पढ़ी तो तीसर्ी
धगर्ह भी खल
ु िाती है ,कफर् सि
ु ह को वह प्रसन्न लगता है ,अन्यथा
सि
ु ह के समय मदास और् थका हुआ िागता है "|39
 अ़ब्दल्
ु लाह बिन मस्म़द र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , मन्हों ने कहा
कक पैगंिर् र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के पास एक ऐसे व्यज‍त
के ववषय में िात की ग िो र्ात से ले कर् सि
ु ह तक सोया र्हा,
आप ने फर्माया: "यह ऐसा व्यज‍त है जिस के दोनों या एक कान
में शैतान ने पैशाि कर् हदया है "|40
 म़मर् पुत्र अ़ब्दल
ु अ़ज़ीज़ ने अपने वासलयों(अथारत अनेक नगर्ों के
र्ाज्यपालों)को सलख भेिा कक नमाज़ के समय व्यस्त र्हने से
िचो,‍यों कक िो व्यज‍त नमाज़ को नष् कर्दे , वह इस्लाम के अन्य
अह़काम को अधधक नष् कर् दे ता है |41

अध्याय िमाअ़त के साथ नमाज़ के महत्व का मल्ल्ोोख

39 इस ह़दीस को िोखार्ी(1142)और् मजु स्लम(776)ने वर्णरत ककया है


40 इस ह़दीस को िोखार्ी(3270)और् मजु स्लम(774)ने रर्वायत ककया है |
41 इस कथन को अिल न ़म ने "‫( " ۃیلحاألوایلء‬7351)में रर्वायत ककया है , प्रकाशक:‫دار‬
‫ ابتکلالغلمیۃا‬, िैूपत
26
 अिह
ल ोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है , मन्होंने कहा: र्सल
ल सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "मनुष्य का मिाअ़त के साथ(सामलहहक
ूपप में )नमाज़ पढ़ना मसके अपने घर् और् अपने िाज़ार् में नमाज़
पढ़ने से पचीस गण
ु ा अधधक पण्
ल य का कार्ण है और् यह इस प्रकार्
कक िि वह मत्तम ूपप से वज़ल कर्के मजस्िद की ंर् िाए और्
केवल नमाज़ के सलये चले तो िो पैर् भी मठाएगा मसके िदले मसका
एक स्थान म‍च होगा और् एक पाप भी ख्तम होगा, कफर् िि वह
नमाज़ अदा कर्लेगा तो िि तक अपने नमाज़ के स्थान पे
होगा,दे वदत
ल मसके सलये दआ
ु ़ कर्ते र्हें गे कक हे अल्लाह! तल इस प्र
कपा व दया फर्मा, और् िि तक तुम में से को नमाज़ का प्ररतक्ष ा
कर्ता है तो वह मानो नमाज़ ही के अवस्था में होता है "|42
 अ़ब्दल्
ु लाह पत्र
ु मस्म़लद र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हने:िो यह चाहे कक
कल(‍़यामत के हदन)अल्लाह तआ़ला से मुसलमान के ूपप में समले
तो वह िहां से मन(नमाज़ों)के सलये िोलाया िाए,मन नमाज़ों को
पर्ल ी कर्े (वहां मजस्िद में िा कर् सही ढं ग से मन्हें अदा कर्े )‍योंकक
अल्लाह तआ़ला ने मम्
ु हार्े पैगंिर् सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के सलये
हहदायत के माग को रनश्चय कर् हदया है और् यह (मजस्िदों में
सामलहहक नमाज़ें)भी मन्हीं तर्ीकों में से हने|‍योंकक यहद तुम नमाज़ें
अपने घर्ों में पढ़ोंगे तो तम
ु , िैसे यह समह
ल से पीपे र्हने वाला,

42 इस ह़दीस को िोखार्ी(647)और् मजु स्लम(649)ने इसका एक ु कडा वर्णरत ककया


है |
27
अपने घर् में पढ़ता है तो तम
ु अपने निी के मागर को पोड दोगे और्
यहद तुम अपने निी के मागर को पोड दोगे तो गुमर्ाह हो िांगे|को
व्यज‍त िो पववत्रता प्रा‍त कर्ता है (वज़ल कर्ता है )और् अ‍पे से वज़ल
कर्ता है , कफर् इन मजस्िदों में से ककसी एक में िाता है तो अल्लाह
तआ़ला मसके प्रत्येक पग के िदले,िो वह मठाता है ,एक नेकी
सलखता है ,और् मसके कार्ण मसका एक स्थान म‍च कर् दे ता है और्
मसका एक पाप सम ा दे ता है , और् मनेने दे खा कक हम में से
को (भी)नमाज़ सामहु हक ूपप से पढ़ने से पीपे न र्हता था, ससवाए
ऐसे मोनाकफक ( पाखंडी ) के जिसका रनफाक ( पाखंड ) सिको माललम
होता(िजल्क कभी कभी ऐसा होता कक)एक व्यज‍त को इस प्रकार्
लाया िाता कक(दि
ु ल
र ता और् रनिरलता के कार्ण)मसे दो व्यज‍तयों
के िीच सहार्ा हदया गया होता,कफर् मसे सफ में खडा ककया िाता|43
 मजस्िद में नमाज़ पढ़ने वाले व्यज‍त को ‍़यामत के हदन अल्लाह
तआ़ला अपने साये के नीचे स्थान दे गा, जिस हदन सलयर मनुष्य से
एक मील की दर्ल ी पर् हागा,अत:अिह
ल ोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत
है वह पैगंिर् सलल्लाहु अलैहह वसल्लम से ियान कर्ते हने कक आपने
फर्माया:सात लोग ऐसे हने जिन्हें अल्लाह तआ़ला ‍़यामत के हदन
अपने साये के नीचे स्थान प्रदान कर्े गा,मस हदन मसके साये44 के

43 इस ह़दीस को मजु स्लम(654)ने रर्वायत ककया है |


44 इस ह़दीस को िैहकी ने अपनी पस् ु तक (793)में अिह ल ोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से इन
शब्दों में रर्वायत ककया है ंसात लोग ऐसे हने जिन्हें अल्लाह तआ़ला ‍़यामत के हदन
28
अरतरर्‍त और् को साया नहीं होगा,रनष्पक्ष शासक,वह यव
ल ा िो
अल्लाह की पलिा कर्ते हुए लपा िढ़ा हो, जिसने अकेले में अल्लाह

को याद ककया और् मसकी आंखों से आंसल िह पडे,वह व्यज‍त

जिसका हृदय मजस्िद में लगा र्हता है ...‫ادحلثی‬


 मुजस्लम की एक वणरन में आया है :वह व्यज‍त िि मजस्िद से
रनकलता है तो मसी के साथ मोअ़ल्क(ल का हुआ)र्हता है यहां तक
कक मसमें लौ आए...‫ ادحلثی‬,45
 अिह
ल ोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु पैगंिर् सलल्लाहु अलैहह वसल्लम से
रर्वायत कर्ते हने कक आपने फर्माया: "िो व्यज‍त हदन के पहले भाग
में या हदन के दस
ल र्े भाग में मजस्िद की ंर् गया अल्लाह तआ़ला(हर्
ُّ सत्कार् का प्रिंध फर्माता
िार् आने पर्)मसके सलये स्वगर में )‫(الزل‬
है , िि भी वह(आए)सि
ु ह को आये अथवा शाम को आए"|46

अपने अ़शर के साये के नीचे स्थान प्रदान कर्े गा,मस हदन मसके साये के अरतरर्‍त
और् को साया नहीं होगा...‫ادحلثی‬, इस रर्वायत को पस्
ु तक के शोधकतार अ़ब्दल्
ु लाह
अलह़ाशदी ने सह़ी कहा है |
दोनों ह़दीसों के िीच को ववर्ोधाभास नहीं है , ‍यों कक मपर्ो‍त साये को अशर की
ंेर् भी मान्य है और् अल्लाह की ंर् भी मान्य है ,स्वासमत्व और् सम्मान के अथर
में |

45 इस ह़दीस को मजु स्लम(6806)और् मजु स्लम(1031)ने रर्वायत ककया है |


46 इसे िोखार्ी(662)और् मजु स्लम(669)ने वर्णरत ककया है और् मपर्ो‍त शब्द
मजु स्लम के हने|
29
ُّ (सत्कार्) का अथर वह स्थान है िो अरतधथ के सलये तैयार् ककया िाता
‫الزل‬
है |47

अध्याय प्रथम िमाअ़त जिस के सलये अज़ान दी िाती और्


इकामत कही िाती है ,मसमें नमाज़ पढ़ने की अरनवायरता और्
मससे पीपे र्हने के रनन्दा का व्याख्या

 प्रथम िमाअ़त के साथ नमाज़ पढ़ने की अरनवायरता का एक प्रमाण


यह है कक अल्लाह तआ़ला ने युद्ध के अवस्था में भी सामहल हक
नमाज़ को अरनवायर कर् हदया है िो कक सिसे कहठन समय होता

है , यह नमाज़ ‫( الصۃاوخلف‬भय वाली नमाज़)से िानी िाती है , अल्लाह


तआ़ला का कथन है :

‫{وَإِذَا كُنتَ فِيهِمْ فَأَقَمْتَ لَهُمُ الصَّالَةَ فَلْتَقُمْ طَآئِفَةٌ مُنْهُم مَّعَكَ} اآلية‬

अथारत:तथा(हे निी)िि आप (पणक्ष ेत्र में )मपजस्थत हों,और् मन के सलये

नमाज़ की स्थापना कर्ें तो मन का एक धगर्ोह आप के साथ खडा हो


िाये|

 अल्लाह तआ़ला का कथन है :}‫{وَأَقِيمُواْ الصَّالَةَ وَآتُواْ الَِّكَاةَ وَارْكَعُواْ مَعَ الرَّاكِعِني‬

47 दे खें: "‫"ااہنلۃی‬,इसी प्रकार् दे खें: इब्ने ह़िर् की "‫ "حتفاابلری‬में मपर्ो‍त ह़दीस की
व्याख्या|
30
अथारत:तथा नमाज़ की स्थापना कर्ो,और् ज़कात दो तथा झुकने वालों के

साथ झुको(रुकल कर्ो)

इस आयत में रुकल कर्ने वालों का अथर मजस्िद की िमाअ़त है |

 अिहल ोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक सलल्लाहु अलैहह वसल्लम


ने फर्माया: "मस हस्ती का शपथ जिस के हाथ में मेर्ा प्राण है !मेर्ा
इर्ादा हुआ कक मने ंधन इकट्ठा कर्नेका आदे श दं ,ल कफर् मने मन लोगों
के पास िामलं (िो समलह में शर्ीक नहीं होते)और् मन्हें मनके घर्ों
समेत िलादं ,ल शपथ है मस हस्ती की जिस के हाथ में मेर्ा प्राण
है !तुम में से ककसी को यहद आशा हो कक वहां मजस्िद में से मो ी
हड्डी अथवा अ‍पे पाए समलेंगे तो वह अवश्य इशा में भी मपजस्थत
हो"|

सह़ी मजु स्लम की रर्वायत में है :कफर् मने कुप लोगों को साथ लेकर्,जिन के

पास लकडडयों
़ के गट्ठे हों, मन लोगों की ंर् िामलं िो नमाज़ में मपजस्थत

नहीं होते,कफर् मन्हें मनके घर्ों समेत िलादं |ल 48

 इब्ने अ़ब्िास र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है कक निी सलल्लाहु


अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "िो व्यज‍त अज़ान सुन कर्(नमाज़ के

48 इस ह़दीस को िोखार्ी(7224)और् मजु स्लम(651)ने वर्णरत ककया है |


31
सलये मजस्िम में )नहीं आता,मसकी को नमाज़ नहीं,ससवाए ककसी
असुववधा की जस्थरत में ."49
 अिलहोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है ,वह फर्माते हने: निी सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम के सेवा में एक अंधा आया और् पप
ल ा:ऐ अल्लाह के
र्सल
ल !मेर्े पास को लाने वाला नहीं िो(हाथ से पकड कर्)मझ
ु े
मजस्िद में ले आए,मसने निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम से अनुर्ोध
ककया कक मसे अनुमरत दी िाए कक वह अपने घर् में नमाज़
पढ़ले,आपने मसे अनम
ु रत दे दी, िि वह वापस हुआ तो आप सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम ने मसे िलाया और् फर्माया: "‍या तुम नमाज़ का
िोलावा(अज़ान)सुनते हो? "मसने कहा:िी हां,आपने फर्माया: "तो मस
पर् लब्िेक कहो|"50
 रनष्कषर यह कक समहल में मजस्िद में नमाज़ अदा कर्ना अरनवायर
है ,हां कक को खेद हो िैसे भय,वषार,अथवा भीषण आंधी,समलह का
अथर प्रथरम िमाअ़त,जिस के सलये अज़ान दी िाती और् इकामत
कही िाती है ,कुप लोग प्रथम िमाअ़त से पीपे र्ह िाते हने,अल्लाह
मन्हें हहदायत दे ,जिसके कार्ण हम दे खते हने कक नमाज़ी क समह
ल ों

49 इस ह़दीस को इब्ने मािा(793)आहद ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने "‫"اإلرواء‬


(2/337)में इसे सह़ी कहा है |
50 सही मजु स्लम(653)
32
में ि िाते हने और् को एक िमाअ़त नहीं र्ह पाती,अल्लाह ही
हहदायत दे ने वाला है |51

अध्याय शक्र
ु वार् की नमाज़ पोडने के रनवार्ण का मल्लेख

 इब्ने म़मर् और् अिलहोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णरत है कक र्सलल


सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने समंिर् की सीहढयों
़ पर् खडे हो कर्
फर्माया: "लोग िुमा की नमाज़ पोडने से रुक िाएं वर्ना अल्लाह
तआ़ला मनके हृदयों पर् मोहर् लगा दे गा और् वह रनश्चय ूपप से
गाकफलों में से हो िाएंगे"|52

िम
ु ा की नमाज़ के सलये िल्दी िाने और् प्रथम पंज‍त में
िैठने के महत्व की व्याख्या
 अिलहोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "पूप
ु षों की स्वोत्तम पंज‍त प्रथम और् िदतर्
पंज‍त अंरतम पंज‍त है "|53

51 इस ववषय पर् अधधक ाान के सलये दे खें:"‫ "أھمیۃااالصلۃیفوضءاوصنلصوریسااصلنیحل‬लेखक:फज़ल


इलाही ज़हीर्, प्रकाशक:‫– ؤمسسۃاارجلیسی‬रर्याज़
52 सह़ी मजु स्लम(865)
53 सह़ी मजु स्लम(440)
33
 अिह
ल ोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "यहद तुम िानलो,अथवा लोग िानलें कक प्रथम
पंज‍त का ‍या (महत्व) है तो इसके सलये शलाका हो"|54
 अिह
ल ोर्ै र्ह र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक सलल्लाहु अलैहह वसल्लम
ने फर्माया: "अगर् लोगों को मालम
ल हो िाए कक अज़ान और् प्रथम
पंज‍त में ककया पुण्य है ,कफर् वह अपने सलये मतदान कर्ने के
अरतरर्‍त को मपाय न पाएं तो अवश्य मतदान कर्ें |और् लोगों को
ाात हो िाए कक ज़ोहर् की नमाज़ के सलये िलदी आने का ककतना
पुण्य है तो अवश्य स्पथार कर्ें गे|और् अगर् वह िान लें कक इशा और्
फिर् की नमाज़ समलह में पढ़ने में ककतना पुण्य है तो इन दोनों(की
िमाअ़त)में अवश्य आएंगे यद्यवप मन्हें चलतडों के सहार्े चल कर्
आना पडे"|55
 िर्ा बिन आ़जिि
़ र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हने कक सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम फर्माया कर्ते थे: "अल्लाह तआ़ला प्रथम पंज‍तयों में आने
वालों पर् कृपा नाजिल
़ कर्ता है और् दे वदत
ल मनके सलये दआ
ु ़ऐं कर्ते
हने"|56

54 सहीं मजु स्लम(439)


55 सह़ी िोखार्ी(615)और् सही ़ मजु स्लम(437)
56 इस ह़दीस को अिद
ल ामलद (664)ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने इसे सही कहा
है |
34
इब्ने हहब्
़ िान ने अपनी सह़ी में इन शब्दों के साथ यह ह़दीस रर्वायत
ककया है : अल्लाह तआ़ला प्रथम पंज‍त ( में आने वालों ) पर्
र्ह़मत(कृपा)मतार्ता है और् दे वदत
ल मनके सलए दआ
ु ़एं कर्ते हने|

 अ़र्िाज़ पुत्र सारर्या र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक सलल्लाहु


अलैहह वसल्लम अगली पंज‍त वालों के सलये तीन िार् क्ष मा की दआ
ु ़
फर्माते थे और् दस
ल र्ी पंज‍त के सलये एक िार्|57

रनसा में यह शब्द आए हने:प्रथम पंज‍त वालों के सलये तीन िार् दआ


ु ़
फर्माते थे और् दस
ल र्ी पंज‍त के सलये एक िार्|

 अिलस ़द खुदर्ी र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक आप सलल्लाहु


अलैहह वसल्लम ने अपने (कुप)सह़ािा में यह िात दे खी कक वे पीपे
र्हते हने,आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने फर्माया: "िो लोग पीपे
र्हने को आदत िना लेते हने मन का अंताम यह होगा कक अल्लाह
तआ़ला मन्हें पीपे कर्दे गा"|58

अथारत अपने अपार् कृपा,दया एवं म‍च स्थान से पीपे कर्दे गा|

57 इसे रनसा (816)और् इब्ने मािा(996)ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने इसे
सही कहा है |
58 सह़ी मजु स्लम(438)
35
 आयशा र्ज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णरत है कक आप सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम ने फर्माया: "िो लोग प्रथम पंज‍त से पीपे र्हते(और् इसे
अपनी आदत िना लेत)े हने अल्लाह मन्हें भी पीपे कर्दे गा"|59
60
 इब्राहीम पत्र
ु यज़ीद नख् ़ फर्माते हने:जिस व्यज‍त को तम
ु दे खो कक
वह तकिीर्े मलला(प्रथम तकिीर्) को पकडने में सस्
ु ती कर्ता है ,मससे
अपने हाथ धोलो|61

अध्याय िो व्यज‍त पलणत


र ा से रुकल और् सिदा ने कर्े मसके प्ररत
धमकी का मल्ल्ोोख

 अिलहोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक एक िार् र्सलल सलल्लाहु


अलैहह वसल्लम मजस्िद में आए,एतने में एक व्यज‍त आया और्
मसने नमाज़ पढ़ी कफर् मसने आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को
सलाम ककया|आपने(सलाम का मत्तर् दे ने के िाद)फर्माया: "वापस
िां और् नमाज़ पढ़ो तुमने नमाज़ नहीं पढ़ी"|वह व्यज‍त वापस

59 इस ह़दीस को अिद
ल ामलद (679)ने रर्वायत ककया है और् अल्िानी र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने
इसे सह़ी कहा है ,चेतावनी:ह़दीस का अनप
ु र्ल क इस प्रकार् है ं"अल्लाह मन्हें नर्क में भी
पीपे कर्दे गा",ककन्तु शैख अल्िानी ने इस अनप ु र्ल क को ज़ ़फ माना है ,इस सलये मनेने
इसका मल्लेख नहीं ककया,दे खें:"‫( "السلسلۃاالضعیفۃا‬6442)
60आप इमाम हाकफज़
़ और् फकीहुल इ़र्ाक हने,ह़दीस के वणरनकतारंं में से हने,आप का
रनधन सन 96 हहिर्ी में हुआ,आपकी िीवनी के सलये दे खें: ‫(االبنلء" أالعم "ریس‬4/520)
61 इस कथन को ह़ाकफज़ अिल न ़म अलअसिहानी ने "‫( "ۃیلحاألوایلء‬5489)में रर्वायत
ककया है ,शोध:मस् ु काहदर्,प्रकाशक:‫دارابتکلالغلمیۃا‬−िैूपत
ु ़फा अ़ब्दल
36
गया और् मसी प्रकार् नमाज़ पढ़ी जिसे मसने(पहले)पढ़ी थी,कफर्
मसने आकर् निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को सलाम
ककया,आपने(सलाम का मत्तर् दे ने के िाद)फर्माया: "वापस िां
और् नमाज़ पढ़ो तम
ु ने नमाज़ नहीं पढ़ी",कफर् इसी प्रकार् तीनों िार्
हुआ अंत: मसने कहा:शपथ है मस अल्लाह की जिसने आपको सत्य
के साथ भेिा है !मने इससे अ‍पी नमाज़ नहीं पढ़ सकता,अत:आप
मुझे िता दीजिये|आपने फर्माया: "अ‍पा िि तुम नमाज़ के सलये
खडे हो तो अल्लाहु अकिर् कहो,कफर् कुर्ान से िो तम्
ु हें याद हो
पढ़ो,मसके िाद आर्ाम से रुकल कर्ो,कफर् सर् मठां और् सीधे खडे
होिां,इसी प्रकार् अपनी पलर्ी नमाज़ पलर्ी कर्ो"|62

‫لم‬
यह ह़दीस ववद्वानों के िीच ‫ دحثیا سیءالصہت‬के नाम से प्रससद्ध है ,इस ह़दीस
से ाात होता है कक ‍़याम और् रुकल व सुिलद िैसे नमाज़ के समस्त अंगों
को पलर्ा कर्ने में स़तुजष् एक स्तंभ का स्थान र्खता है |

 िैद बिन वहि से वर्णरत है ,वह फर्माते हने:हम होज़ैफा र्ज़ीअल्लाहु

अंहु के साथ मजस्िद में िैठे थे कक एक व्यज‍त ‫( اوباب ِکدہ‬द्वार् का

नाम) से प्रवेश ककया और् नमाज़ पढ़ने लग,ककन्तु नमाज़ में रुकल व

र ा से अदा नहीं ककये,िि वह नमाज़ पढ़ चुके तो होज़ै़ फा


सुिलद पलणत

र्ज़ीअल्लाहु अंहु ने पलपा:तुम ककतने वषर से इस प्रकार् नमाज़ पढ़

62सही िोखार्ी(757)और् सह़ी मजु स्लम(397)


37
र्हे हो?मसने मत्तर् हदया:चालीस वषों से,ह़ोज़ैफा र्ज़ीअल्लाहु अंहु ने

कहा:तुमने चालीस वष से नमाज़ नहीं पढ़ी,यहद इसी प्रकार् नमाज़

पढ़ते हुए तुम्हार्ा रनधन होगया तो तुम इस कफ़र्त(प्रकृरत ) के


अरतरर्‍त(ककसी और् कफ़र्त कफ़र्त पर्)मर्ोगे जिस पर् मोह़म्मद
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम का िन्म हुआ था|63
 अ़ब्दर्ु र्ह़मान पुत्र सशब्ल र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है कक र्सलल
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने तीन चीिों से मना फर्माया:कौव्वे के
िैसा ठोंगे मार्ने से,दरर्ंदे के िेसे िांह बिपाने से और् व्यज‍त नमाज़
के सलये एक ही स्थान रनजश्चत कर्ले,िैसे मलं (िैठने के सलये)एक
स्थान रनश्चत कर्लेता है |64
 (कैव्वे के िैसे ठोंगें मार्ने से र्ोका),इसमें हलका सिदा कर्ने और्
सिदे में असंतजु ष् से र्ोका है ,यही कार्ण है कक ववद्वानों ने धीर्ता
को नमाज़ के स्तंभों में से एक स्तंभ माना है ,जिसके बिना नमाज़
सही नहीं होती,और् पोड दे ने से नमाज़ खर्ाि होिाती है ,आप

63 इस घ ना का मोह़म्मद बिन नाससर् मर्वज़ी ने "‫"میظعتدقراالصلۃ‬, अध्याय ‫ذرکإافکراترک‬


‫ االصلۃ‬,संख्या(940)में वर्णरत ककया है |
64 इस ह़दीस को इमाम रनसा (1111)और् इब्ने मािा(1429)ने वर्णरत ककया है
और् अल्िानी र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने इसे ह़सन कहा है |
( दरर्ंदे के िैसे िांह फेलाने से मना ककया)इसका अथर है कक सिदा की जस्थरत में
अपने िांह भसल म पर् फैलादे ,ििकक सह़ी तर्ीका यह है कक केवल हथेसलयों को फैलाकर्
र्खे और् िाहों को भसल म से मठा र्क र्खे|
38
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम पर्ल ी तर्ह से रुकल और् सिदा ककया कर्ते
थे,अत:रुकल कर्ते तो पलर्ी धीर्ता के साथ रुकल में र्हते,सिदा कर्ते
तो पलर्ी धीर्ता से सिदा में र्हते और् मासलर् दआ
ु ़एं पढ़ते, इस सलये
आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम का अनग
ु मन अरनवायर है ,पैगंिर्
सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने यह भी िताया है कक व्यज‍त की लंिी
नमाज़ मसकी िौधध‍ता व अंतदृषरजष् का प्रमाण है |65
 इब्नुल कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु फर्माते हने:अल्लाह तआ़ला ने फर्माया:
}َ‫{وَأَقِيمُواْ الصَّالَة‬

अथारत:तथा नमाज़ की स्थापना कर्ो|

अत:अल्लाह ने हमें नमाज़ पढ़ने का आदे श हदया,जिस का मतलि है इसे


सह़ी और् पर्ल े ूपप में ‍़याम,रुकल व सिद
ल और् जिक और् दआ
ु ़ंं के साथ
अदा ककया िाए,अल्लाह तआ़ला ने सफलता को नमाज़ में नमाज़ी के
ववनरताता एवं ववनयशीलता पर् रनभरर् माना है ख,अत:जिस व्यज‍त की
नमाज़ में ववनरताता एवं ववनयशीलता ने हो वह सफल लोगों में से नहीं
है ,यह असंभव है कक िल्द िािी में ठोंगे मार्ते हुए िो नमाज़ पढ़ी
िाए,मस में ववनरताता एवं ववनयशीलता हो,िजल्क शांरत के बिना ववनरताता
एवं ववनयशीलता का संकल्प ही नहीं ककया िा सकता है ,नमाज़ जितना
शांरतपण
ल र होगी मतना ही मसमें ववनरताता एवं ववनयशीलता भी होगा,और्
ववनरताता एवं ववनयशीलता जितनी कम होगी मतना ही िल्दिािी

65 सही ़ मजु स्लम(869)


39
िढ़े गी,यहां तक कक मसके शर्ीर् की गरत मस िेकार् गरत के िैसा होिएगी
जिसमें न तो ववनरताता एवं ववनयशीलता होता है ,न िंदगी का भाव,और् न
िंदगी का ाान|66

अध्याय नमाज़ पोडने वाले का हुकुम

शहादतैन के िाद इस्लाम का सिसे िडा स्तंभ नमाज़ ही है ,जिस ने इसकी

अरनवायरता का इंकार् कर्ते ह़ए इसे पोड हदया तो वह आम सहमरत से

काकफर् है ,और् िो व्यज‍त सस्


ु ती में इसे पोडदे ,मसके प्ररत प्राचीन काल

एवं आधुरनक काल के ववद्वानों दो पक्ष हने, इब्नुल कजययम र्हहमह


67
़ ु ल्लाहु

अपनी पुस्तक "‫ "اتکباالصلۃومکحاتراھک‬के आर्ं भ में सलखते हनें

इस ववषय में मस
ु लमानों के िीच को तमभेद नहीं है कक िान िझ
ल कर्

फज़र नमाज़ को पोडना स्वरश्रेष्ठ पापों में से है ,जिसका पाप अल्लाह के

यहां हत्या,डाका डालना,िलातकार्,चोर्ी और् शर्ाि पीन से िढ़ कर् है ,और्

ु या एवं आर्खर्त में अल्लाह की यातना,मसकी नार्ािगी


ऐसा व्यज‍त दन

और् रुसवा का पात्र होता है |समा‍त

 सुस्ती में नमाज़ पोडने वाला काकफर् है ,इसका एक प्रमाण सलर्ह


मर्यम में अल्लाह तआ़ला का यह कथन है ं

66 ‫وقلاوطملنیلللصلاۃ‬:‫ "اتکباالصلۃومکحاتراھک"لصف‬पष्ृ संख्या339-340 थोडे हे र्े-फेर् के साथ


67 दे खेंं"‫اتکباإلامین‘ دقمۃمابب"ایبنإالطقامسارفکلىلعنمرتکاالصلۃ‬،‫رشحاونلویحیحصلملسم‬
40
َ‫ص ِّالِحًا فَأُوْلَئِك‬
َ َ‫س ِّوََْ يَلْقَوْنَ غَيًّا* إِالَّ مَن تَابَ وَآمَنَ وَعَمِل‬
َ َ‫ش ِّهَوَاتِ ف‬
َّ ‫ص ِّالَةَ وَاتَّبَعُوا ال‬
َّ ‫ض ِّاعُوا ال‬
َ َ‫{فَخَلَفَ مِن بَعَِْهِمْ خَلْفٌ أ‬

}‫يََْخُلُونَ الْجَنَّةَ وَالَ يُظْلَمُونَ شَيْئًا‬

अथारतंकफर् इन के पश्चात ऐसे कपलत पैदा हुये,जिन्हों ने गाँवा हदया


नमाज़ को तथा अनस
ु र्ण ककया मनोकांक्ष ावों का,तो वह शीघ्र ही

कुपथ(के परर्णाम)का सामना कर्ें गे|पर्न्तु जिन्होंने क्ष मा मााँग ली,तथा

मान लाये और् सदाचार् ककये तो वही स्वगर में प्रवेश पायेंगे और् मन
पर् तरनक अत्याचार् नहीं ककया िाएगा|

तकर यह है कक अल्लाह तआ़ला ने नमाज़ों को पोडने और् मन की


सुनने वालों के प्ररत फर्मायां(ससवाए मनके िो तौिा कर्ले और् मान

लेआएं),िो इस िात का प्रमाण है कक नमाज़ पोडने और् मन की िात

मानने की जस्थरत में वह मोसमन नहीं थे|

 अल्लाह का कथन है ं

}‫{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا الَ تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَالَ أَوْالَدُكُمْ عَن ذِكْرِ اللَّهِ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُوْلَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُون‬

अथारतंहे मान वालो!तम्


ु हें अचेत न कर्ें तम्
ु हार्े धन तथा तम्
ु हार्ी संतान
अल्लाह के स्मर्ण से और् िो ऐसा केर्ें गे वही क्ष रत ग्रस्त हने|

इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु इस आयत की व्याख्या में सलखते हनेंतकर यह
है कक इस आयत में पलणत
र या हारन का आदे श मस व्यज‍त पर् लगाया िो
अपने धन एवं संतान में व्यस्त होने के कार्ण नमाज़ से लापर्वा हो गया

41
और् पण
ल त
र या हारन केवल काकफर्ों के सलये होता है ,और् यहद मस
ु लमान
को अपने पाप एवं नाफर्मानी के कार्ण हारन हो िाए तो मसे आर्खर्त
में लाभ समल िाएगा|68

 अल्लाह तआ़ला ने सलर्ह अलतौिा में मुशरर्कों के ववषय में फर्मायां


}ِ‫{فَإِن تَابُواْ وَأَقَامُواْ الصَّالَةَ وَآتَوُاْ الَِّكَاةَ فَإِخْوَانُكُمْ فِي ال َُين‬

अथारतंतो यहद वह (सशकर से)तौिा कर् लें और् नमाज़ की स्थापना कर्ें ,और्

ज़कात दें तो तम्


ु हार्े धमर-िंधु हने|

इब्नुल कजययम र्हहमह


़ ु ल्लाहु फर्माते हनेंमोसमनों का भा चार्ा केवल नमाज़
को पढ़ने के आधार् पर् है ,िि वह नमाज़ न पढ़ें गे तो वह मोसमनों के भी
न होंगे,‍योंकक वह मोसमन नहीं,‍योंकक अल्लाह का आदे श है ‫ِّإمناِّاملؤمنونِّإخوة‬

समस्त मोसमन आपस में भी हने|69

नमाज़ पोडने वाले के काकफर् होने का प्रमाण ह़दीसों में िहुत आ है ,जिनमें
से कुप ये हनें

68 ‫ "اتکباالصلۃ‬पष्ृ ठ संख्या 60 नमाज़ पोडने वाले को काकफर् मानने वालों के प्रमाणों


के अध्याय में
69 मपर्ो‍त संदभर पष्ृ संख्या 59
42
 िर्ीदह िरन अलह़सीि र्ज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत है ,र्सल
ल सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम ने फर्मायां"हमार्े और् मन(काकफर्ों)के िीच अंतर्
नमाज़ से है ,जिसने इसे पोड हदया मसने कुफ्र ककया"|70
 िाबिर् बिन अ़ब्दल्ु लाह र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा ने फर्माया कक मने ने
र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को यह फर्माते हुए सन
ु ां"रनंसंदेह
मनुष्य और् सशकर व कुफ्र के मध्य(अंतर् सम ाने वाला कायर)नमाज़
का पोडना है "|71
 सौिान र्ज़ीअल्लहु अंहु से वर्णरत है कक मनेने र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम को फर्माते हुए सुनांिंदा व मान व कुफ्र के िीच(फैसला

70 इस ह़दीस को रतर्समज़ी ( 2621 ) ,रनसा ( 462 ) ,इब्नेमािा ( 1079 ) ,इब्ने


हहब्
़ िान(1454),अह़मद(5/346) और् लालका ने "‫( "رشح اوصل ااقتعد الھ اۃنسل‬1520) में
अध्याय ‫ االصلۃنماإلامین‬में रर्वायत ककया है ,अल्िानी ने इब्ने अिी शैिा की पस्
ु तक
"‫( "اإلامین‬46)ह ‍पणी में सलखा है कक इसकी सनद मजु स्लम की शतर पर् सह़ी है ,और्
इब्नल
ु कजययम ने भी "‫ "اتکباالصلۃ‬के अंदर् यही हुकुम सलखा है ,दे खेंंनमाज़ पोडंने वालों
को काकफर् मानने वालों के प्रमाण का संदभर,पष्ृ ठ संख्या 48,तथा इब्ने तैसमया ने भी
"‫( "ومجمعااتفلوی‬7/513)में इस ह़दीस को सह़ी कहा है |
71 इस ह़दीस को इमाम मजु स्लम(82)ने रर्वायत ककया है ,और् इनके अरतरर्‍त
मोह़द्दे सीन ने भी लगभग मपर्ो‍त शब्दों के साथ ही इस ह़दीस को रर्वायत ककया
है ,िैसे अिद
ल ामलद ( 4678 ) ,रतर्समज़ी ( 2618-2620 ) ,रनसा ( 463 ) ,इब्ने
मािा(1078),अह़मद(3/370)और् लालका ने "‫( "رشحأوصلااقتعدألھاۃنسل‬1513-1517)में
अध्याय ‫ االصلۃنماإلامین‬के अंतगरत रर्वायत ककया है ,दे खेंं"‫("حیحصارتلبیغوارتلھیب‬563)|
43
कर्ने वाली चीि)नमाज़ है ,जिसने नमाज़ पोड हदया मसने सशकर

ककया|72
 िहां तक सह़ािा के फत्वों की िात है तो िुमहलर्(अधधकांश)सह़ािा
नमाज़ पोडने वाले को काकफर् मानते हने,िजल्क क ववद्वानों ने

नमाज़ पोडने वाले के काकफर् होने पर् सहािा


़ की आम सहमती

ितला है िैसा कक आर्हा है ,मदाहर्ण स्वूपप म़मर् पत्र


ु खत्ताि
र्ज़ीअल्लाहु अंहु ने मौत के र्ोग में फर्मायांनमाज़ पोडने वाले का
इस्लाम में को भाग नहीं है |73
 शोर्ै क ने अ़ब्दल
ु मसलक बिन ं़मैर् से और् मन्होंने अिलल मलीह़ से
वर्णरत ककया है ,वह फर्माते हनेंमनेने म़मर् र्ज़ीअल्लाहु अंहु को फर्माते
हुए सन
ु ांनमाज़ पोडने वाले का को इस्लाम नहीं,शोर्ै क से पप
ल ा
गयां‍या समंिर् पर् मन्होंने ऐसा कहा?मन्होंने कहांिी हां|74

72 इस ह़दीस को लालकानी ने "‫ "رشحأوصلااقتعدألھاۃنسل‬में रर्वायत ककया है और् फर्माया


ककंइसकी सनद मजु स्लम की शतर पर् सह़ी है ,और् अल्िानी ने "‫"حیحصارتلبیغوارتلھیب‬
(566)में इसका मल्लेख ककया है |
73 इसे मासलक ने "‫ "اوملطا‬के अंदर् ‫ ابب المعل نمیف ہیلع ادلم نم رجح أو راعف‬، ‫اتکب الطھاارۃ‬
में ,लालका (1528-1528)ने और् मर्वज़ी ने "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬के अंदर् (390)में रर्वायत
ककया है |
74 मर्वज़ी ने इसे "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬में ‫( اببإافکراترکاالصلۃ‬930)के अंतगरत रर्वायत ककया
है |
44
 अ़ली बिन अिी ़ासलि र्ज़ीअल्लाहु अंहु से िेनमाज़ी महहला के ववषय
में पलपा गया तो मन्होंने फर्मायांिो व्यज‍त नमाज़ न पढ़े वह
काकफर् है |
 आपने और् फर्मायांजिस व्य‍त्जोोा ने िानिझ
ल कर् एक समय की
नमाज़ पोड दी,वह अल्लाह से िर्ी(म‍
ु त)है और् अल्लाह मससे म‍
ु त
है |75
 िाबिर् बिन अ़ब्दल्ु लाह र्ज़ीअल्लाहु अंहुमा से पलपा गयां‍या
आप(सह़ािा)अपने िीच पाप कर्ने को कुफ्र मानते हने?तो मन्होंने

कहांनहीं,िंदा और् कुफ्र के िीच दर्ल ी खत्म कर्ने वाली चीि नमाज़

का पोडना है |76
 आपसे अधधक पलपा गयांर्सलललल्लाह सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के
यग
ु में आप(सह़ािा)के निदीक कौनसा अ़मल कुफ्र और् मान के
िीच अंतर् कर्ता था?तो आपने फर्मायांनमाज़|77
 इब्ने मस्म़द
ल र्ज़ीअल्लाहु अंहु नमाज़ के ववषय में फर्माते हनेंहमार्ी
र्ाय है कक नमाज़ न पोडी िाए ‍योंकक नमाज़ पोडना कुफ्र है |78

75 इस कथन को और् इससे पव


ल र के कथन को मर्वज़ी ने "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬में ‫اببذرکإافکر‬
‫( اترکاالصلۃ‬933,934)के अंतग
र त रर्वायत ककया है |
76 इसे लालका (1537)और् मर्वज़ी ने में के अंतगरत वर्णरत ककया है |
77 इसे लालका (1537)और् मर्वज़ी ने में के अंतगरत वर्णरत ककया है |
78 इसे लालका (1532) ने रर्वायत ककया है |
45
 आपने अधधक फर्मायांिो व्यज‍त नमाज़ नहीं पढ़ता मसका दीन से
को संिंध नहीं|79
 अिल दर्दा र्ज़ीअल्लाहु अंहु फर्माते हनेंिो व्यज‍त नमाज़ नहीं पढ़ता
मसके अंदर् मान नहीं और् जिसका वज़
ु ल न हो मसकी नमाज़ नहीं|80
 अ़ब्दल्ु लाह बिन शकीक िो कक महान ताि ़ हने,वह फर्माते
हनेंमोह़म्मद सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के सह़ािा ककसी भी अ़मल के
पोडने को कुफ्र नहीं मानते थे ससवाए नमाज़ के|81
 िहां तक नमाज़ पोडने वाले के काकफर् होने के ववषय में ताि ़न
के फत्वों की िात है तो माम लालका र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने ‫"رشحأوصل‬

"‫ ااقتعدألھاۃنسلواامجلۃع‬में सलखा है ं

(ह़सन से वर्णरत है ककंमुझे पहुंचा है कक र्सललुल्लह सलल्लाहु अलैहह


वसल्लम के सह़ािा कहा कर्ते थेंिंदा और् सशकर के िीच ऐसा अंतर् जिसके

79 मर्वज़ी ने इसे "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬में ‫( اببإافکراترکاالصلۃ‬936)के अंतगरत रर्वायत ककया है


और् इब्ने अिी शैिा ने "‫( اتکب"اإلامین‬48)में रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने ‫"حیحص‬
"‫( ارتلبیغوارتلھیب‬574)में इसकी सनद को ह़सन कहा है |
80 इसे लालका (1536)और् इब्ने नसर् मर्वज़ी ने "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬में अध्याय ‫ذرکإافکر‬
‫( اترکاالصلۃ‬945)के अंतगरत रर्वायत ककया है ककंतु मनके वणरन में अंरतम वा‍य नहीं
है और् अल्िानी ने "‫( "حیحصارتلبیغوارتلھیب‬575)में इसकी सनद को सह़ी कहा है |
81 इसे इमाम रतर्समज़ी(2622)और् मर्वज़ी ने "‫ "میظعت دقر االصلۃ‬में ‫ابب ذرک إافکر اترک االصلۃ‬
(948) के अंतगरत रर्वायत ककया है और् अल्िानी ने "‫ "حیحصااجلعم‬में इसे सह़ी कहा
है ,अधधक दे खेंंमनकी ह ‍पणीं "‫("حیحصارتلبیغوارتلھیب‬565)
46
कार्ण िंदा काकफर् होिाता है ,यह है कक बिना ककसी वैध िहाने के नमाज़

पोडदे |

ताि ़न में ऐसी र्ाय र्खने वालेंमोिाहहद,स ़द बिन िोिैर्,िाबिर् बिन

ज़ैद,अ़रता बिन दीनार्,इब्राहीम बिन नख् ़ और् अलकाससम बिन मुख़ीर्ा हने|

ििकक फोकीहों में सेंमासलक,औज़ा ़,शाफ ़,शोर्ै क बिन अ़ब्दल्


ु लाह

नख ,़ अह़मद,इस्ह़ाक,अिस
ल ौर् और् अिल ं़िैद अलकाससम बिन सलाम भी
इसी के पक्ष में हने| 82

 इस्ह़ाक बिन र्ाहवैह का कथन है ंर्सललुल्लाह सलल्लाहु अलैहह


वसल्लम से ससद्ध है कक नमाज़ पोडने वाला काकफर् है ,यही र्ाय

आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के युग से लेकर् आि तक के


ववद्वानों की भी है कक िो व्यज‍त िानिलझ कर् बिना ककसी वैध
िहाने के नमाज़ पोडता है यहां तक कक मसका समय रनकल िाता

है ,तो वह काकफर् है |83

82 "‫("رشحأوصلااقتعدألھاۃنسلواامجلۃع‬1502),और् दे खेंं(1539)

‫لن‬
83 इस कथन को मोह़म्मद बिन नसर् मर्वज़ी ने "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬अध्याय ‫ذرکا ھینعلتق‬
‫لم‬ ‫لنم‬
‫( ا صلین‬990)में और् इब्ने अ़ब्दल
ु िर् ने "‫ "ا ھیدد‬,खंड ‫الصۃاامجلۃع‬,अध्याय ‫ إاعدۃاالصلۃعماإلامم‬में
रर्वायत ककया है ,तथा यह वद्
ृ धध भी ककया है ककंयहद मस कज़ा(िाद में अदा
कर्ने)कर्ने से इंकार् कर्े और् कहे ककंमने नमाज़ नहीं पढ़लंगा|
47
 स ़द बिन िोिैर् फर्माते हनेंजिसने िानिझ
ल कर् नमाज़ पोडा मसने
कुफ्र ककया|84

ल अलसख्तयानी ने फर्मायांनमाज़ को पोडना कुफ्र है ,इसमें


 अययि
को मतभेद नहीं|
 अ़ब्दल्ु लाह बिन मोिार्क फर्माते हनेंजिसने िानिलझ कर् बिना ककसी
वैध िहाने के नमाज़ को ववलंि ककया यहां तक कक मसका समय
रनकल गया तो मसने कुफ्र ककया|85
 ह़ाकफज़ अ़ब्दल
ु अ़ज़ीम मन
ु ज़र्ी ने फर्मायांसह़ािा के एक समह
ल और्
मनके पश्चात के एक समलह भी इस पक्ष में हने कक िो व्यज‍त
िानिलझ कर् नमाज़ पोडदे यहां तक कक मसका पलर्ा समय रनकल

िाए तो वह काकफर् है ,मनमें म़मर् बिन खत्ताि,अ़ब्दल्


ु लाह बिन

ल ,अ़ब्दल्
मस्म़द ु लाह बिन अ़ब्िास,मोआ़ज़ बिन ििल,िाबिर् बिन
अ़ब्दल्
ु लाह और् अिल दर्दा र्ज़ीअल्लाहु अंहुम मल्लेखनीय हने|सह़ािा

के अरतरर्‍त अह़मद बिन ह़ंिल,इस्ह़ाक बिन र्ाहवैह,अ़ब्दल्


ु लाह बिन

मोिार्क,नख ़,ह़कम बिन ं़तैिा,अययलि अलसजख्तयानी,अिलदामलद

84 इसे मर्वज़ी ने "‫ "میظعتدقراالصلۃ‬,अध्याय ‫( ذرکإافکراترکاالصلۃ‬919)में वर्णरत ककया है


‫لن‬
85 इस वणरन को और् इससे पव ल र के वणरन को मर्वज़ी ने "‫"میظعتدقراالصلۃ‬, अध्याय ‫ا ھی‬
‫لم‬
‫(نعلتقا صلین‬978-979)में वर्णरत ककया है |
48
अल्तयालसी,अिलिकर् बिन अिी शैिा और् ज़ोहै र् बिन ह़िर आहद

र्हहमह
़ ु मुल्लाहु भी इसके पक्ष में हने|86

़ ु ल्लाहु फर्माते हनेंम़मर्,मोआ़ज़,अ़ब्दर्ु र्ह़मान बिन


 इब्ने ह़ज़म र्हहमह
औ़फ और् अिह
ल ोर्ै र्ह आहद र्ज़ीअल्लाह़ अंहुम से वर्णरत है कक िो
व्यज‍त िानिलझ कर् को फज़र नमाज़ पोडदे यहां तक कक मसका
समय रनकल िाए तो वह काकफर् और् मुतद
र (धमर त्यागी) है |87
 मोह़म्मद बिन नसर् मर्वज़ी88 फर्माते हनेंयह िमहलर्(िहुसंख्यक
ववद्वानों) अहले ह़दीस का कथन है |89
 इब्नुल कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु फर्माते हनेंिो व्य‍त्जोोा अल्लाह के
आदे श को मानता है तो वह नमाज़ पोडने पर् ‍यों जिद कर्ता

है ,ििकक मसे ाान है कक अल्लाह तआ़ला ने नमाज़ पढ़ने का आदे श

हदया है और् यह िात स्वभाववक ूपप से एवं आदतन असंभव है कक


एव व्य‍त्जोोा हदन और् र्ात की पााँच नमाज़ों को इलाही फज़र भी
मानता हो और् कफर् मन्हें पोड भी दे और् कफर् मसे पोडे हुए नमाज़
की यातना का भी पर्ल ा पर्ल ा ाान हो और् कफर् वह नमाज़ को

पोडदे ,यह िहुत ही कहठन है ,िो व्यज‍त नमाज़ को फज़र िानाता है

86 .‫اتخماببارتلھیبنمرتکاالصلۃدمعتما‬،‫اتکباالصلۃ‬،"‫"ارتلبیغوارتلھیب‬
87 इब्ने ह़ज़म की "‫( "اىلحمل‬1/152-153) ‫( ہلئسم‬279)
88आप इमाम,शैखुलइस्लाम,ह़ाकफज़ और् शाकफ ़ फकीह हने,आपका रनधन सन 294
हहिर्ी में हुआ,आपकी िीवनी के सलये दे खेंं"‫( "ریسأالعماالبنلء‬4/33)
‫لن‬
89 ‫اببذرکا ھینعلتقانیملسملوإابۃحلتقنمملیصل‬،‫ "میظعتدقراالصلۃ‬,असर् संख्या(1002)के पश्चात
49
वह इसे कभी भी पोड नहीं सकता,‍योंकक मान मनुष्य को नमाज़

स्थावपत कर्ने का आदे श दे ता है और् यहद मसका हृदय नमाज़ पर्


प्रोत्साहहत नहीं कर्ता तो वह बिल्कुल मान से वंधचत है |90
 मस
ु लमानों के इमाम पर् अरनवायर है कक नमाज़ पोडने से तौिा

कर्ाए,यहद वह तौिा कर्ले तो पोडदे ,अन्यथा मसके कुफर का पक्ष

मानने वालों के अनुसार् मसे मुतद


र (धमर त्यागी)होने के कार्ण मसकी

हत्या कर्दी िाए,अथवा मसके कफस्क(दर्ु ाचार् एवं अनैरतकता)का

पक्ष मानने वालों के अनस


ु ार् मसे तण्ड के ूपप में मसकी हत्या कर्ा

दी िाए,‍योंकक अिलिकर् र्ज़ीअल्लाहु अंहु ने ज़कात न दे ने वालों से

ु ध ककया,िो लोग मसकी अरनवायरता के इंकार् कर् र्हे थे मनसे


यद्

भी और् िो मसकी अरनवायरता को मानने के िाविद


ल अदा कर्ने से

इंकार् कर् र्हे थे,मनसे भी,नमाज़ पोडने वाले की हत्या का कथन

शाफे ़ और् ववद्वानों के एक समलह का है |

अध्याय नमाज़ पोडने वाले पर् लागल होने वाले दीनी एवं दन
ु यावी
आदे शों की व्यख्या

90 "‫ "اتکباالصلۃومکحاتراھک‬पष्ृ ठ संख्या 63,नमाज़ पोडने वाले को काकफर् मानने वालों की


दसवें प्रमाण के पश्चात
50
 नमाज़ पोडने वाले के काकफर् होने के कार्ण यह लागल होता है कक
िो व्यज‍त नमाज़ पोडता हो वह ककसी नमाज़ी मुसलमान महहला

से वववाह न र्चाए,यहद वववाह कर् सलया हो तो मसके साथ वैवाहहक

िीवन िसर् कर्ना मसके सलये मान्य नहीं, मससे संभोग कर्ना मसके

सलये अवैध है ,‍योंकक वह महहला मुसलमान है और् पूप


ु ष काकफर्

है ,अल्लाह का कथन है ं

} َّ‫{ فَإِنْ عَلِمْتُمُوهُنَّ مُؤْمِنَاتٍ فَالَ تَرْجِعُوهُنَّ إِلَى الْكُفَّارِ الَ هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَالَ هُمْ يَحِلُّونَ لَهُن‬

अथारतंरयद तुम्हें यह ाान हो िाये कक वह मान वासलया हने तो मन्हें


वावपस न कर्ो काकफर्ों की ंर् न वे और्तें हलाल(वैध)हने मन के सलये
और् न वे काकफर् हलाल(वैध)हने मन और्तों के सलये|

 इसी प्रकार् यहद पुूपष नमाज़ पढ़ता हो और् पत्नी नमाज़ न पढ़ती
हो तो मसके सलये वैध नहीं कक मससे वववाह र्चाए और् न ही मसके

साथ वैवाहहक िीवन बिताए,‍योंकक मुसलमान के सलये यह वैध नहीं

कक ककसी मुसलमान अथवा ककतािी महहला ( यहलदी व सा ) के

अरतरर्‍त ककसी और् से वववाह र्चाए,ककंतु धमर त्यागी महहला से

वववाह कर्ना मसके सलये मान्य नहीं, ‫واہللالمسیغاان‬

 नमाज़ पोडने वाले कक सलये वैध नहीं कक म‍का के ह़ुददल े


ह़र्म(रनजश्चत पववत्र स्थान)में प्रवेश कर्े ,िैसा कक अल्लाह का वणरन

है ं
51
}‫{يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَالَ يَقْرَبُواْ الْمَسْجََِ الْحَرَامَ بَعََْ عَامِهِمْ هَِّذَا‬

अथारतंहे मान वालो ! मुशरर्क ( समश्रणवादी ) मलीन है ,अतं इस वषर के

पश्चात वह सम्मारनत मजस्िद(क िा)के समीप भी न आयें|

 नमाज़ पोडने वाले का यहद रनधन होिाए तो न मसको स्नान कर्ाया


िाए,न मसे कफन पहनाया िाए और् न मुसलमानों के किरर्स्तान
में मसे दफन ककया िाए और् न मसके सलये क्ष मा की दआ
ु ़ की
िाए,‍योंकक स्नान दे ना,कफन पहनाना और् मस
ु लमानों के
किरर्स्तान में दफन कर्ना ऐसे आदे श हने िो मुसलमानों के साथ
खास हने,अतं जिस व्यज‍त का को निदीकी संिंधध एवं परर्िन हो
जिसके िार् में वह िानता हो कक वह नमाज़ नहीं पढ़ता तो मसके
सलये यह मान्य नहीं कक दोखे में डाल कर् लोगों को मसकी िनाज़े
की नमाज़ पढ़ने पर् मििलर् कर्दे ,अल्लाह का कथन है ं

}‫{وَالَ تُصَلِّ عَلَى أَحٍََ مُنْهُم مَّاتَ أَبًََا وَالَ تَقُمْ عَلَىَ قَبْرِهِ إِنَّهُمْ كَفَرُواْ بِاللّهِ وَرَسُولِهِ وَمَاتُواْ وَهُمْ فَاسِقُون‬

अथारतं(हे निी!)आप मन में से को मर् िाये तो मस के नमाज़ कभी न

पढ़ें ,और् न मस की समाधध(कब्र)पर् खडे हों,‍योंकक मन्हों ने अल्लाह और्

मस के र्सलल के साथ कुफ्र ककया है ,और् अवााकार्ी र्हते हुए मर्े हने|

52
 नमाज़ पोडने वाले के साथ िो अह़काम ववशेष हने मनमें से यह भी
है कक मसका ज़िह़ ककया हुआ मवेशी91 ह़र्ाम है ,‍योंकक ज़िह़ कर्ने
की शत में से यह भी है कक ज़िह़ कर्ने वाला मुसलमान अथवा

ककतािी(यहलदी व सा )हो,ककंतु धमर त्यागी और् मिलसी आहद का

ज़िह़ ककया हुआ िानवर् ह़लाल नहीं है |

 नमाज़ पोडने वाला अपने परर्िनों का वारर्स नहीं हो सकता,‍योंकक

ु लमान,काकफर् का
निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की ह़दीस है ं"मस

वारर्स नहीं हो सकता और् न काकफर्,मुसलमान का"|92

 र्ही िात नमाज़ पोडने वाले की आर्खर्त के िीवन की तो यह ाात


है कक काकफर् की मौत िि कुफर की जस्थरत में हो तो वह हमेशा

नर्क में र्हे गा,िैसा कक अल्लाह ने फर्मायां

}‫{إِنَّ اللَّهَ لَعَنَ الْكَافِرِينَ وَأَعَََّ لَهُمْ سَعِريًا* خَالَِِينَ فِيهَا أَبًََا الَّ يَجَُِونَ وَلِيًّا وَالَ نَصِريًا‬

अथारतंअल्लाह ने धध‍कार् हदया है काकफर्ों को और् तययार् कर् र्खी है

मन के सलये दहकती अधगन|वे सदावासी होंगे मसमें ,नहीं पाएंगे को र्क्ष क

और् न को सहायक|

91 अथारत जिस िानवर् को वह अपने हाथ से ज़िह़ कर्े मसका खाना ह़र्ाम है ,चाहे
मसपर् अल्लाह का नाम ले अथवा न ले|
92 इस ह़दीस को िोखार्ी(6764)और् मजु स्लम(𝟏𝟔𝟏𝟒)ने ंसामा बिन ज़ैद र्ज़ीअल्लाहु
अंहुमा से वर्णरत ककया है ,मपर्ो‍त शब्द मजु स्लम के हने|
53
लाभंनमाज़ आाँख की ठं डक मस समय िनती है िि मस में प
ववशेषताएं इकट्ठा हों

इब्नल
ु कजययम र्हहमह
़ ु ल्लाहु ने मल्लेख ककया है कक वह नमाज़ जिससे

आाँख को ठं डक और् हृदय को शांरत समलती है ,मसका अथर ऐसी नमाज़ है

जिसमें प ववशेषताएं इकट्ठा होंं

प्रथम ववशेषतांरनष्ठा,इसका अथर यह है कक नमाज़ के सलये प्रोत्साहहत


कर्ने वाली चीि यह हो कक िंदा के अंदर् अल्लाह के चाह,मसका प्रेम,मसको

प्रसन्न र्कने की चाहत,मसकी रनक ता व प्रेम की तलि और् मसके आदे शों

का पालन पाया िाए,वह इस प्रकार् से कक नमाज़ के सलये प्रोत्साहहत

ु यावी मद्दे श्य कदावप शासमल न हो,िजल्क


कर्ने में ककसी प्रकार् का को दन

मसका मद्दे श्य केवल स्वोत्तम श्वर् की प्रसन्नता की प्राज‍त,मसके

प्रेम,मसकी यातना का भय और् मसके क्ष मा एवं पण्


ु य की आशा हो|

द्ववतीय ववशेषतांसत्यता एवं सद्भावना,इसका अथर यह है कक अपने

हृदय को पण र ा से अल्लाह के सलये खाली कर्दे ,पर्ल ी श‍त्जोोा अल्लाह


ल त

की ंर् ध्यान लगाने में झोंकदे ,नमाज़ में हृदय एवं िुद्धध को मपजस्थत

र्खे,आंतरर्क एवं िाह्य प्रत्येक प्रकार् से मत्तम एवं पलणर ूपप से नमाज़

पढ़े ,‍योंकक नमाज़ के कुप भाग आंतरर्क एवं कुप िाह्य हने,अतं दे खा

दे ने वाले आ़माल व गरतववधधयां और् सुने िाने वाले वचन आहद इसके
54
आंतरर्क भाग हने,ििकक ववनरताता एवं ववनयशीलता,िुद्धध तत्पर्ता,अल्लाह

की ंर् हृदय को लगाए र्खना और् पलर्े मन के साथ अल्लाह की ंर्

ध्यान लगाना,इस प्रकार् कक मसका हृदय ककसी और् ंर् न िाए,यह

नमाज़ की आत्मा के समान है ,और् गरतववधधयां मसके शर्ीर् के समान

हने,यहद नमाज़ आत्मा से खाली होग तो मस शर्ीर् के िैसे होिएगी जिस

में आत्मा न हो|

‍या िंदा को शमर नहीं आती कक इस प्रकार् की आत्मा मु‍त नमाज़ के


साथ अपने मासलक का सामना कर्े ?

यही कार्ण है कक ऐसी नमाज़ को पुर्ाने कपडे के िैसे लपे कर् मस

नमाज़ी के चेहर्े पे मार् हदया िाएगा,और् वह नमाज़ कहे गींअल्लाह तझ


ु े
नाश कर्े जिस प्रकार् तन
ल े मझ
ु े नष् कर् हदया|

वह नमाज़ जिसका आंतरर्क एवं िाह्य मत्तम हो वह सशखर् की ंर्

चढ़ती है और् मसमें सलयर के िैसे प्रकाश होता है ,यहां तक कक वह अल्लाह

के समक्ष होती है तो अल्लाह मससे प्रसन्न होता और् मसे स्वीकार् कर्ता

है ,वह नमाज़ कहती है ंअल्लाह तेर्ी र्क्ष ा कर्े जिस प्रकार् तन


ल े मेर्ी र्क्ष ा
की|

तत
ृ ीय ववशेषतांआाापालन एवं अनुगमन,इसका मतलि यह है कक

नमाज़ी पर्ल ा प्रयास कर्े कक अपनी नमाज़ निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम

55
के अनुगमन में पढ़े ,िैसे आप नमाज़ पढ़ते थे,मसी प्रकार् पढ़े ,लोगों ने

नमाज़ में अपनी ंर् से िो कमी िढ़ोतर्ी कर् र्खी है और् जिन काय
एवं गरतववधधयों का वद्
ृ धध कर् र्खा है िो कक न निी सलल्लाहु अलैहह
वसल्लम से ससद्ध हने और् न ककसी सह़ािी से,मनसे िचता र्हे ,मन पल

चाहने वाले लोगों के कथनों पर् अंमल न कर्े िो वोिलि(अरनवायरता)के


रनम्नतम चर्ण पर् िस कर्ते हने ििकक अन्य लोग मनका ववर्ोध कर्ते
हने और् मनके रनर्स्त अह़काम को वाजिि(अरनवायर)मानते हने और् निी

सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की सह़ी ह़दीसें भी मनको िल पहुंचाती हने,कफर्

भी पल चाहने वाले लोग मन सुन्नतों की पर्वाह नहीं कर्ते और् यह कहते


हने ककं(हम अमुक मज़हि के मोकजल्लद(अनुयायी)हने)|इससे वह अल्लाह
के समक्ष मजु ‍त प्रा‍त नहीं कर् सकते और् न सन्
ु नत को िानने के िाद

मससे मुंह मोडने का को अनुधचत िहाना है ,‍योंकक अल्लाह तआ़ला ने

केवल र्सल
ल ु मन और् आाापलन का आदे श हदया है ,मनके
के अनग

ु ालन का आदे श नहीं हदया,िजल्क दस


अरतरर्‍त ककसी और् के अनप ल र्े का
अनप
ु ालन मसी समय ककया िाए िि मसका आदे श र्सल
ल के आदे श के
अनुसार् हो,र्सलल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के अरतरर्‍त हर् ककसी का

कथन स्वीकार् भी ककया िा सकता है और् पोडा भी िा सकता है |

अल्लाह तआ़ला ने अपनी हस्ती की शपथ खाकर् फर्माया है कक हम मस


समय तक मोसमन नहीं हो सकते िि तक कक समस्त आपस के वववादों

56
में आप सलल्लाहु अलैहह वसल्लम को न्यायाधीश ने मान लें ,आप के

रनणरय को मानें और् मसको स्वीकार् कर्ें ,आपके अरतरर्‍त ककसी और् का

रनणरय और् अनुगमन हमें लाभ नहीं दे सकता और् न हमें अल्लाह की

यातना से िचा सकता है ,और् हमार्ा यह मत्तर्93मस समय को काम नहीं

आएगा िि हम ‍़यामत के हदन अल्लाह तआ़ला की यह पलकार् सुनेंगें

}‫{ مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِني‬ (तुमने पैगंिर्ों को ‍या मत्तर् हदया),अल्लाह तआ़ला हम

से इस ववषय में अवश्य प्रश्न कर्े गा और् हम से मत्तर् मांगेगा,अल्लाह

का फर्मान है ं

}‫{فَلَنَسْأَلَنَّ الَّذِينَ أُرْسِلَ إِلَيْهِمْ وَلَنَسْأَلَنَّ الْمُرْسَلِني‬

अथारतंतो हम मन से अवश्य प्रश्न कर्ें गे जिन के पास र्सललों को भेिा


गया तथा र्सललों से भी अवश्य प्रश्न कर्ें गे|

निी सलल्लाहु अलैहह वसल्लम ने फर्मायां(मुझे वह़्य की ग है कक


तुम्हें मेर्े माध्यम से आिमाया िाएगा और् मेर्े िार्े में प्रश्न ककया
िाएगा)अथारत कब्र में प्रश्न ककया िाएगा|94

93 अथारत यह मत्तर् ककं(हम अमक


ु मज़हि के अनय
ु ायी हने)
94 इस ह़दीस को खत्तािी ने में आयशा र्ज़ीअल्लाहु अंहा से वर्णरत ककया है ,इसका
अनप
ु ूप
ल ण इस प्रकार् है ं(यहद वह नेक व्यज‍त होगा तो मसे कब्र में िैठाया िाएगा
और् मसे डर् नहीं लगेगा)
57
अतं जिस व्यज‍त को र्सल
ल सलल्लाहु अलैहह वसल्लम की सन्
ु नत का
ाान हो और् ककसी मनुष्य के वणरन के कार्ण मसे पोडदे तो(मसे याद
र्खना चाहहये कक)‍़यामत के हदन वह हहसाि की परर्जस्थरत से गुिर्े गा
और् अपनी गलती से अवगत होिाएगा|

चौथी ववशेषतांइह़सार् की ववशेषता,अथारत अवलोकन की ववशेषता,जिसका


मतलि यह है कक वह इस प्रकार् अल्लाह की पि
ल ा कर्े मानो वह अल्लाह

को दे ख र्हा हो,यह ववशेषता मस समय मतपन्न होती है िि अल्लाह पर्

और् मसके अस्मा व ससफात(नामों एवं गण


ु ों)पर् इस प्रकार् पलणर मान हो

कक वह मानो अल्लाह को आकाशों के मलपर्,फशर पर् मुस्तवी(जस्थर्) दे ख

र्हा हो,िो अपने आदे शों के माध्यम से वातार कर्ता है ,मखललक के समस्त

मामलों की र्णनीरत कर्ता है ,आदे श मसी के पास से मतर्ता है और् मसी

तक पहुंचता है ,िंदों के आ़माल और् मनके रनधन के समय मनकी आत्माएं

अल्लाह के पास प्रस्तुत की िाती हने,वह इन समस्त दृषश्यों को अपने हृदय

से दे ख,अल्लाह के अस्मा व ससफात को दे खे,िीववत और् सिको थामने

वाले ( पर्वर्हदगार् ) ,सन


ु ने और् दे खने वाले ( र्ि ) ,प्रभत्ु व व नीरत

वाले(पालनहार्)को दे खे,िो प्रेम भी कर्ता और् नफर्त भी कर्ता है ,र्ािी

भी होता और् गोस्सा भी होता है ,िो चाहे कर्ता है और् िो चाहे आदे श

दे ता है , वह अपने अ़शर पर् मस्


ु तवी है ,िंदों का न को अ़मल मससे पुपा

हुआ है ,न को िात और् न मनके आंतरर्क जस्थरत मससे पुपा है ,िजल्क

58
वह आाँखों की र्खयानत को और् सीनों की पुपी िातों को भी खि
ल िानता
है |

इह़सान एक ऐसी ववशेषता है जिस पर् समस्त हृदयी आ़माल रनधाररर्त

है ,इससे ह़या,मान-सम्मान,भय व प्रेम,तौिा व रनक ता,तव‍कुल और्

अल्लाह तआ़ला के समक्ष ववनरताता अपनाने का भाव मतपन्न होता

है ,वसवसों और् ख्यालों समा‍त होते हने,और् हृदय व िुद्धध और् सोच

ववचार् अल्लाह से िुडते हने|

िंदा को अल्लाह की रनक ता मतना ही प्रा‍त होता है जितना वह इह़सान

को अपनाता है ,मसे के अनुसार् नमाज़ के श्रेणी रनजश्चय होते हने,यहां तक

ृ वी का अंतर् होता है ,ििकक


कक दो लोगों की नमाज़ के िीच आकाश व पथ्

दोनों के ‍़याम व रुकल व सि


ु द
ल एक िैसे होते हने|

पांचवी ववशेषतांआभार्ी होने की ववशेषता,अथारत वह गवाही दे कक समस्त


कृपा एवं मपकार् अल्लाह तआ़ला की ंर् से हने,अल्लाह ने ही मसे इस

स्थान पर् लाखडा ककया है ,मसे इस योनय िनाया,मसे यह तौफीक दी कक

ल ा में लग सके,यहद अल्लाह


मसका हृदय और् मसका शर्ीर् अल्लाह की पि

तआ़ला न होता तो यह सि संभव न था,िैसा कक सह़ािा निी

सलल्लाहु अलैहह वसल्लम के सामने प्रशंसा कर्ते हुए फर्माया कर्ते थें

ِّ ‫وه ِّتص ا ا ا ا ا ا ا ا ااد ا ا ان ا ا ااا ِّوه ِّص ا ا ا ا ا ا ا ا الا ا ايا ا ان ا ا ااا‬ ِّ ِّ ‫وهللا ِّل ا ا ااو ِّه ِّهللا ِّم ا ا ااا ِّا ا ا ا ا ا ا ااديا ا ا ان ا ا ااا‬
ِّ ِّ
59
ِّ
अथारतंअल्लाह की कसमᣋ! यहद अल्लाह न होता तो हमें हहदायत न
समलती और् न हम दान कर्पाते और् न नमाज़ पढ़ सकते|

अल्लाह का कथन है ं

}‫{يَمُنُّونَ عَلَيْكَ أَنْ أَسْلَمُوا قُل الَّ تَمُنُّوا عَلَيَّ إِسْالَمَكُم بَلِ ا َّللهُ يَمُنُّ عَلَيْكُمْ أَنْ هَََاكُمْلِإلِميَانِ إِن كُنتُمْ صَادِقِني‬

अथारतंवे मपकार् िता र्हे हने आप के मलपर् कक वह इस्लाम लाये हने|आप


कह दें कक मपकार् न िातां मझ
ु पर् अपने इस्लाम का|िजल्क अल्लाह

का मपकार् है तुम पर् कक मस ने र्ाह हदखायी है तुम्हें मान की,यहद तुम

स‍चे हो|

अल्लाह पाक ने ही मुसलमान को मुसलमान और् नमाज़ी को नमाज़ी


िनाया,िैसा कक ख़लील अलैहहस्सलाम ने फर्मायां

} َ‫{رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُ ُريَّتِنَا أُمَّةً ُّمسْلِمَةً لَّك‬

अथारतंहे हमार्े पालनहार्!हम दोनों को अपना आााकार्ी िना!तथा हमार्ी


संतान से एक ऐसा समद
ु ाय िनादे िो तेर्ा आााकार्ी हो|

अधधक फर्मायां } ‫{رَبُ اجْعَلْنِي مُقِيمَ الصَّالَةِ وَمِن ذُرُيَّتِي‬

ु े नमाज़ की स्थापना कर्ने वाला िना दे ,तथा


अथारतंहमार्े पालनहार्!मझ

मर्ी संतान को|

60
इह़सान(कृपा)केवल और् केवल अल्लाह का है कक मसने अपने िंदह को

प्राथरना की तौफीक प्रदान की,िजल्क यह मसके महानतम मपकार्ों में से

है ,अल्लाह तआ़ला का फर्मान है ं } ِ‫{وَمَا بِكُم مُن نِّعْمَةٍ فَمِنَ اللّه‬

अथारतंतुम्हें िो भी सुख-सुववध प्रा‍त है वह अल्लाह ही की ंर् से है |

अल्लाह ने और् फर्मायां َ‫{وَلَكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ اإلِميَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُ ُس ِِِِِّّّّّوق‬

}‫وَالْعِصْيَانَ أُوْلَئِكَ هُمُ الرَّاشَُِون‬

अथारतंपर्न्तु अल्लाह ने वप्रय िना हदया है तम्


ु हार्े सलये मान को तथा
सुशोसभत कर् हदया है मसे तुम्हार्े हदलों में और् अवप्रय िना हदया है तुम्हार्े
सलये कुफ्र तथा मल्लंघन और् अवैा को,और् यही लोग संमागर पर् हने|

यह एक महानतम गुण है िो कक िंदा के सलये अरत लाभदायक है ,िंदा


जितना तौह़ीद(एकेश्वर्वाद)पर् जस्थर् र्हता है मतना ही मसके अंदर् यह
गुण भी मतपन्न होता है |

इस गण
ु एवं ववशेषता का लाभ यह है कक वह हृदय के िीच और् अपने
अ़मल पर् स्वयं प्रशंसा का सशकार् होने के िीच र्ोकाव होती है ,‍योंकक

िंदा िि गवाही दे ता है कक अल्लाह तआ़ला ही मसका पर्ोपकार्क है ,मसी

ने मसे तौफीक और् रनदे श हदया है ,यह गवाही मसे इस िात से मदासीन

कर्दे गी कक वह अ़मल को दे ख कर् स्वयं प्रशंसा का सशकार् हो अथवा

मसके माध्यम से लोगों पर् प्रभुत्व िताए,अतं यह गण


ु मसके हृदय में

61
मत्थान मतपन्न कर्ती है ,अतं वह स्वयं प्रशंसा का सशकार् नहीं होता,मसकी

ििान को सही मागर हदखाती है ,अतंवह न मपकार् िताता और् न मस

पर् गवर कर्ता है ,स्वीकृत एवं म‍च अ़मल का यही धचन्ह है |

इसका लाभ यह भी है कक वह प्रशंसा को मसके पात्र(पालनहार्)की ंर्

संिंधधत कर्ता है ,अतं स्वयं की प्रशंसा में लगा नहीं र्हता,िजल्क अल्लाह

की प्रशंसा कर्ता है ,इसी प्रकार् समस्त मपकार्ों एवं आशीवारदों को अल्लाह

का कृपा मानता है ,समस्त मपकार् एवं दया को अल्लाह की ंर् संिंधधत

कर्ता है और् यह स्वीकार् कर्ता है कक समस्त अ‍पा व भला अल्लाह

ही के हाथ में है ,यह तौह़ीद(एकेश्वर्वाद)की पलणत


र ा का प्रमाण है ,तौह़ीद के

स्थान पे वह मसी समय जस्थर् र्ह सकता है िि मसे असका ाान होता

और् वह मसकी गवाही दे ता है ,िि वह इस से अवगत होता है और् इस

स्थान पर् िम िाता है तो यह मसकी ववशेषता िन िाती है ,और् िि यह

मसके हृदय की ववशेषता िन िाती है तो मसके अंदर् अल्लाह का प्रेम व

स्नेह,मससे समलने का आकांक्ष ा,मसके जिक्र


़ और् मसकी आाा का ऐसा

भाव मतपन्न होता है कक मसका तुलना दन


ु या के ककसी भी महानतम
मपकार् से नहीं ककया िा सकता|

मनुषय का हृदय यहद मससे वंधचत हो और् मसके सलये वहां तक पहुंचने

का मागर िंद हो तो मसके िीवन में को भला नहीं है ,िजल्क मसकी

जस्थरत ऐसी है िैसा कक अल्लाह तआ़ला ने फर्मायां


62
}‫{ذَرْهُمْ يَأْكُلُواْ ويَتَمَتَّعُواْ وَيُلْهِهِمُ األَمَلُ فَسَوََْ يَعْلَمُون‬

अथारतं(हे निी!)आप मन्हें पोड दें ,वह खाते,तथा आनन्द लेते र्हें ,और्

मन्हें आशा रनश्चेत ककये र्हे ,कफर् शीघ्र ही वह िान लेंगे|

पठी ववशेषतांस्वयं को काहहल स्वीकार्ने की ववशेषता,िंदा अल्लाह के


आदे श को पलर्ा कर्ने के सलये चाहे कठोर् परर्श्रम ‍यों न कर्ले और्

अपनी पर्ल ी शज‍त ‍यों न झोंकदे ,वह स्वेद काहहल ही र्हे गा,अल्लाह

तआ़ला का अधधकार् मससे अधधक महान है ,जिसका तकािा है कक मसकी

आााकार्ी और् िंदगी और् सेवा मससे कहीं िढ़ कर् ककया िाए,अल्लाह

तआ़ला की महानता व महहमा का तकािा है कक मपयु‍त एवं शोभनीय


ूपप में मसकी प्राथरना की िाए|

यहद र्ािांं के सेवक एवं नौकर् मनकी सेवा कर्ते हुए आदर् व
सम्मान,श्रद्धा व प्ररतष्ठा,लज्िा,भय और् सद्भावना व ववनयशीलता का

पालन कर्ते हने,वह इस प्रकार् से कक अपने हृदय और् शार्ीरर्क अंगों

समेत मनकी ंर् ध्यान लगाए र्खते हने,तो र्ािांं का र्ािा और् आकाश

व धर्ती का मासलक इस िात का अधधक पात्र है कक मसके साथ इस


प्रकार् से िजल्क इससे कहीं िढ़ कर् आदर् व सम्मान ककया िाए|

िंदा िि अपने अंदर् यह दे खता है कक मसने पर्ल ी तर्ह अपने पर्वर्हदगार्


की िंदगी का हक िजल्क मसके हक का थोडा सा भी अदा नहीं ककया,तो

63
मसे अपनी काहहली का ाात होिाता है ,कफर् मसके पास इसके अरतरर्‍त
को और् मपाय नहीं र्हता कक वह इजस्तगफार् कर्े ,अपनी काहहली और्
कमी पर् और् इस िात पर् क्ष मा मांगे कक मसने अल्लाह का हक मस
प्रकार् से पर्ल ा नहीं ककया जिस प्रकार् से कर्ना चाहहये था,वह िंदा भज‍त
का हक पर्ल ा न कर्ने पर् क्ष मा का जितना दरर्द्र होता है ,वह आवश्य‍ता
इससे कहीं िढ़ कर् होती है कक वह इस पर् पलण्य की मांग कर्े ,यहद वह
मसका पलर्ा हक अदा कर् भी दे तो भज‍त के ूपप में मसपर् यह अरनवायर
भी था,‍योंकक दास का अ़मल और् अपने स्वामी का सेवा मसके दास

और् सेवक होने के कार्ण मस पर् अरनवायर है ,यहद वह अपने स्वामी से

अपने अ़मल और् सेवा के िदले वेतन मांगे तो लोग मसे मलखर और्

िेवकलफ कहें गे,ििकक वह मसका वास्तववक दास है भी नहीं,िजल्क वह

सास्तव में प्रत्येक ूपप से अल्लाह का दास है ,अतं मसका अ़मल और्

सेवा कर्ना मसके दास होने के कार्ण मसपर् अरनवायर है ,यहद अल्लाह

ल य दे ता है तो यह केवल मसकी कृपा है ,न कक


तआ़ला मसे मस पर् पण्

िंदे का अधधकार्,इसको सामने र्खें तो हमार्े सलये निी सलल्लाहु अलैहह

वसल्लम की इस ह़दीस को समझना आसान हो िाता है ं"तुम में से


ककसी व्यज‍त को मसका अ़मल मुज‍त नहीं हदला सकेगा|"सह़ािा ने

64
पप
ल ांअल्लाह के र्सल
ल !आपको भी नहीं?आपने फर्मायांमझ
ु े भी नहीं मगर्
यह कक मुझे अल्लाह तआ़ला अपने कृपा के साये में लेले"|95

इस ववशेषता के चार् ससद्धांत हने:सही नीयत,म‍च साहस,साथ ही इ‍पा

एवं आकांक्ष ा और् डर् व भय|

ये चार् चीिें इस ववशेषता के ससद्धांत हने,िंदा के मान व परर्जस्थरतयां

और् आंतरर्क एवं िाह्य कमी है ,मसका कार्ण इन चार् ससद्धांतों की कमी

अथवा इनमें से कुप की कमी होती है |

ु धधमान व्य‍त्जोोा को इन चार्ों चीिों पर् ववचार् कर्ना चाहहए,मन्हें


िद्

अपना िीवन शैली में परर्वतरण लाना चाहहए,मनपर् ही अपने ाान,आ़माल

एवं कथनों और् परर्जस्थरतयों को आधारर्त कर्ना चाहहए,िो लोग भी

सालेहहययत(धासमरकता)के म‍च स्थान पर् पहुंचे,वह इनके आधार् पर् ही

पहुंचे,और् िो इससे पीपे र्ह गए वह इन चीिों के लु‍त होने के कार्ण

पीपे र्ह गए|

95 इस ह़दीस को िोखार्ी(6463)और् मजु स्लम(2816)ने अिह


ल ोर्ै र्ा र्ज़ीअल्लाहु अंहु से
मपर्ो‍त शब्दों ही के िैसा रर्वायत ककया है |
65
ِّ‫ِّو واملس ا ا ا ا ااقواِّبسنِّيوإخناِّوس ا ا ا ا ااا رِّإخوانناِّمنِّأ ل‬،‫ِّوإليهِّالرغبة‬،‫ِّوهللاِّاملس عانِّوعليهِّال كالن‬،‫وهللاِّأعلم‬
96
‫ِّو وِّحسبناِّونعمِّالوكيل‬،‫ِّإنهِّويلِّذلكِّواملانِّبه‬،‫السنةِّل حخيخهاِّعلماِّوعمال‬

रनष्कषर

नमाज़ रर्ज़्क लाने वाली,स्वास्थ की र्क्ष क,कहठनाइयों को दर्ल कर्ने वाली


और् हृदय को सश‍त कर्ने वाली है ,तथा चेहर्े को आलोककत कर्ती और्
आत्मा को आनंहदत कर्ती है ,आलस को दर्ल कर्के सार्े अंगों में हलचल
मतपन्न कर्ती है ,शज‍त को िढ़ाती है और् हृदय को खोलती है ,तथा आत्मा
के सलए खुर्ाक है ,हृदय को आलोककत कर्ती है ,आशीवारदों की र्क्ष क,यातना
को दर्ल कर्ने वाली,िर्कत की प्राज‍त का माध्यम,शैतान से दर्ल कर्ने वाली
और् र्ह़मान से रनक कर्ने वाली है |

96 "‫ "راسۃلانبامیقلإىلأدحإوخاہن‬पष्ृ ठ संख्यां34-46, थोडे हे र्-फेर् के साथ,प्रा‍कथनंशैख िकर्


अिज़
ल ैद र्हहमह
़ ु ल्लाहु,शोधंअ़ब्दल्
ु लाह बिन मोह़म्मद अलमोदीफर्
66
संक्ष ेप में यह कक शार्ीर् और् हृदय के स्वास्थ और् दोनों की शज‍त की
र्क्ष ा में और् मनसे िुर्ा तत्व को दर्ल कर्ने में नमाज़ का िडा प्रभाव है ,दो
व्यज‍त िि ककसी संक व आपदा,अथवा आिमाइश का सशकार् होते हने,तो
मनमें से िो नमाज़ी होता है मसका संक व आपदा दस
ल र्े की तल
ु ना में
कम और् मसका परर्णाम अधधक सर्ु क्षक्ष त होता है |

दरु नयावी कहठनाइयों को दर्ल कर्ने में नमाज़ का एक अद्भुत प्रभाव


हे ,ववशेष ूपप से मस समय िि कक मसके समस्त आंतरर्क एवं िाह्य हकों

को पर्ल ा ककया िाए,दरु नया व आर्खर्त की कहठनाइयों को दर्ल कर्ने और्

दोनों संसार् की अ‍पा व भला प्रा‍त कर्ने का को ववधध नमाज़ के


िैसा कार्गर् नहीं है |97

आप र्हहमह
़ ु ल्लाहु अधधक फर्माते हनेंइसका भेद यह है कक नमाज़ अल्लाह
तआ़ला के साथ संिंध पैदा कर्ती है और् अल्लाह तआ़ला के साथ िंदे का
जितना अधधक संिंध होगा मतना ही मसपे भला के दर्वािे खुलते िाएंगे
और् कहठना के दर्वािें िंद होते िाएंगे और् मसके सलये र्ि की ंर् से

97 लेखक-अल्लाह मनको क्ष मा प्रदान कर्े -का कहना है ंयही कार्ण है ककंनिी सलल्लाहु
अलैहह वसल्लम को िि को गम होता तो आि नमाज़ पढ़ने लगते,इस ह़दीस को
अिदल ामलद(1319)ने ह़ोज़ैफा बिन अलयमान नज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णरत ककया है और्
अल्िानी ने इसे ह़सन कहा है |
67
तौफीक,शांरत और् स्वास्थ,धन,सुकलन व मपकार् व प्रसन्नता के कार्ण

मतपन्न होने लगते हने और् यह सार्े मपकार् मसके पैर् चलमने लगते हने|98

98 "‫( "زادااعملد‬4/332)
68

You might also like