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Suirdas Ka Pad
Suirdas Ka Pad
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उनके ेम और ेह से वंिचत हो। तुम कमल के उस प े के समान हो जो रहता तो जल म है पर ु जल म डूबने से बचा रहता
है। िजस कार तेल की गगरी को जल म िभगोने पर भी उसपर पानी की एक भी बूँ द नही ं ठहर पाती,ठीक उसी कार तुम ी
कृ पी ेम की नदी के साथ रहते ए भी उसम ान करने की बात तो दू र तु म पर तो ीकृ े म की एक छी ंट भी नही ं
पड़ी। तुमने कभी ीित पी नदी म पैर नही डु बोए। तु म ब त िव वान हो इसिलए कृ के े म म नही रं गे पर ु हम भोली-
भाली गोिपकाएँ ह इसिलए हम उनके ित ठीक उस तरह आकिषत ह जैसे चीिटयाँ गुड़ के ित आकिषत होती ह। हम उनके
ेम म लीन ह।
इन पं यों म गोिपयाँ कहती ह िक कृ उनके िलए हा रल की लकड़ी ह। िजस तरह हा रल प ी लकड़ी के टु कड़े को
अपने जीवन का सहारा मानता है उसी कार ी कृ भी गोिपयों के जीने का आधार ह। उ ोंने मन कम और वचन से न
बाबा के पु कृ को अपना माना है। गोिपयाँ कहती ह िक जागते ए, सोते ए िदन म, रात म, म हमारा रोम-रोम कृ
नाम जपता रहा है। उ उ व का स े श कड़वी ककड़ी के समान लगता है। हम कृ के ेम का रोग लग चुका है अब हम
आपके कहने पर योग का रोग नही ं लगा सकती ं ोंिक हमने तो इसके बारे म न कभी सुना, न दे खा और न कभी इसको भोगा
ही है। आप जो यह योग स े श लाय ह वो उ जाकर सौप िजनका मन चं चल हो चूँ िक हमारा मन पहले ही कही ं और लग
चुका है।
गोिपयाँ कहती ं ह िक ी कृ ने राजनीित पढ़ ली है। गोिपयाँ बात करती ई ं पूवक कहती ह िक वे तो पहले से ही ब त
चालाक थे पर अब उ ोंने बड़े -बड़े पढ़ िलए ह िजससे उनकी बु बढ़ गई है तभी तो हमारे बारे म सब कुछ जानते ए
भी उ ोंने हमारे पास उ व से योग का स े श भेजा है । उ व जी का इसमे कोई दोष नही ं है, ये भले लोग ह जो दू सरों के
क ाण करने म आन का अनु भव करते ह। गोिपयाँ उ व से कहती ह की आप जाकर किहएगा िक यहाँ से मथुरा जाते
व ीकृ हमारा मन भी अपने साथ ले गए थे, उसे वे वापस कर द। वे अ ाचा रयों को दं ड दे ने का काम करने मथुरा गए ह
पर ु वे यं अ ाचार करते ह। आप उनसे किहएगा िक एक राजा को हमेशा चािहए की वो जा की िहत का ाल रखे ।
उ िकसी कार का क नही ं प ँ चने दे , यही राजधम है।