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इमाम मुहम्मद बिन

अब्दुल वह्हाि का
आह्वान तथा जीवन-वृत्त

लेखक : शैख अब्दु ल अज़ीज बिन अब्दु ल्लाह


बिन िाज
इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाि
का आह्वान तथा जीवन-वृत्त
लेखक : शैख अब्दु ल अज़ीज बिन अब्दु ल्लाह बिन िाज

समस्त प्रशंसा उस अल्लाह के ललए है जो समस्त जहानों का पालनहार


है , और अल्लाह तआला की असीम कृपा एवं शांतत तथा बरकत अवतररत
हो उसके बंदे, रसूल और समस्त सष्ृ टियों में सबसे उत्तम, हमारे स्वामी एवं
मार्गदशगक मह
ु म्मद बबन अब्दल्
ु लाह पर तथा उनके पररवारजनों, सहाबबयों
और उनके ददखाए हुए पथ के पथथकों पर।

तत्पश्चात : ऐ प्रततटठावान भाइयो तथा ऐ प्रप्रय बेिो! मैं आप सज्जनों


के सामने एक संक्षिप्त व्याख्यान प्रस्तुत करने जा रहा हूूँ, ष्जसका
उद्दे श्य, आपके प्रवचारों को प्रकाशमान करना, वास्तप्रवकताओं को प्रकि
करना, अल्लाह और उसके बंदों के ललए शुभथचंतन का दातयत्व तनभाना है ,
तथा ष्जसके बारे में ये अलभभाषण है , उसके प्रतत मेरे ऊपर जो हक़ बनता
है , उसके पूततग की चेटिा है । इस व्याख्यान अथवा अलभभाषण का
प्रवषयवस्तु है : शैख़ इमाम मुहम्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब का आह्वान और
जीवनवत्त
ृ ांत।

चूँकू क समाजसध
ु ारकों, आह्वानकतागओं और धमग का नवीनीकरण करने
वालों की बात करने, उनके हालात, शभ
ु आचरणों और उनके शानदार
कारनामों का बखान करने और उनके जीवनकथा, जो उनके समाज-सध
ु ार
और आह्वान के कायों में उनकी तनस्स्वाथगता एवं सच्चाई का प्रतीक है ,
को बयान करने और उनके सदाचरण, कारनामों और वत्त
ृ ांत को सुनने के

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प्रतत इनसान की आत्मा आकांक्षित रहती है , तथा इससे उसके ददल को
शांतत लमलती है , और धमगतनटठ, ख़ुद को सुधारने का इच्छुक और सत्य के
रास्ते की ओर बल
ु ाने वाला व्यष्तत,इन बातों के सुनने की रूथच एवं इच्छा
रखता है , इसललए मैंने सोचा कक आप सज्जनों के सामने उनमें से एक
महान व्यष्ततत्व, एक महान समाजसुधारक और एक अत्यंत स्वालभमानी
आह्वानकताग का जीवनवत्त
ृ ांत प्रस्तत
ु करूूँ।वह कोई और नह ं, बष्ल्क
बारहवीं शताब्द दहजर में अरब प्रायद्वीप के अंदर इस्लाम धमग की
पन
ु जागर्रण का बेडा उठाने वाले प्रकांड इस्लामी प्रवद्वान इमाम मह
ु म्मद
बबन अब्दल
ु वह्हाब बबन सुलैमान बबन अल तमीमी हं बल हैं।

अरब प्रायद्वीप और उससे बाहर के लोर्, प्रवशेष रूप से प्रवद्वान,


प्रततष्टठत एवं प्रमुख लोर् आपसे भल -भाूँतत पररथचत हैं। आपके जीवन
तथा उपलष्ब्धयों पर संक्षिप्त तथा प्रवस्तार रूप से बहुत कुछ ललखा र्या
है । बहुत से लोर्ों ने आपपर प्रवशेष ककताबें ललखी हैं। प्राच्य प्रवद्या
प्रवशारदों ने भी बहुत कुछ आप के प्रवषय में ललखा है । बहुत सारे लेखक ऐसे
भी हैं, ष्जन्होंने समाज-सध
ु ारकों पर ककताबें ललखीं और इततहास पर क़लम
उठाया, तो आपके बारे में भी ललखा। ऐसे न्यायप्रप्रय लोर् भी बहुत बडी
संख्या में मौजूद हैं, जो आपको एक महान सुधारक, इस्लामी पन
ु जागर्रण
के ध्वजावाहक तथा अपने पालनहार के मार्गदशगन पर चलने वाले और
उसके प्रकाश से आलोककत व्यष्ततत्व के माललक कहा है ।

ऐसे लोर्ों में एक बडा नाम महान लेखक अबू बक्र हुसैन बबन ग़न्नाम
अल-अहसाई का है । उन्होंने शैख़ मह
ु म्मद बबन अब्दल
ु बह्हाब के बारे में
बहुत उत्तम एवं लाभकार अंदाज़ में ललखा है , प्रवस्तार से उनके जीवन और
यद्
ु धों का ष्ज़क्र ककया है , उनके बहुत-से पत्र नक़ल ककए हैं और उनके
शवगशष्ततमान एवं महान अल्लाह की पस्
ु तक क़ुरआन को समझने और

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उससे मसायल तनकालने की पद्धतत का भी वणगन ककया है ।तथा ऐसे ह
महान लेखकों में से एक नाम शैख़ उसमान बबन बबश्र का है , ष्जन्होंने
अपनी पुस्तक "उनवानुल मज्द" में आपके आह्वान, जीवन, युद्धों तथा
ष्जहाद के बारे में ललखा है । अरब प्रायद्वीप के बाहर के लोर्ों में डॉतिर
अहमद अमीन का नाम भी शालमल है , इन्होंने अपनी ककताब "जुअमाउल
इस्लाह" में आपके बारे में ललखते समय परू ा न्याय ककया है। एक और
नाम महान प्रवद्वान मसऊद आलम नदवी का है , ष्जन्होंने आपके बारे में
बह
ु त ह अछा ललखा है और आपको मज़लम
ू समाजसध
ु ारक का नाम
ददया। इनके अततररतत भी कई अन्य लोर्ों ने क़लम उठाई, ष्जनमें महान
प्रवद्वान अमीर मह
ु म्मद बबन इसमाईल अस-सनआनी का नाम शालमल
है , जो शैख़ मुहम्मद बबन अब्दल
ु बह्हाब के समकाल न और उनके
आह्वान के अनुयायी भी थे। जब उनके पास शैख़ का आह्वान पहुूँचा था,
तो बहुत प्रसन्न हुए थे और इसपर अल्लाह की प्रशंसा की थी।

इसी तरह, "नैलुल अवतार" नामी पुस्तक के लेखक तथा महान


प्रवद्वान शैख़ मह
ु म्मद बबन अल अश-शौकानी ने भी आपके बारे में ललखा
है और आपके दे हांत पर एक ज़बरदस्त शोक कप्रवता भी ललखी है । इन
प्रवद्वानों के अलावा भी, बहुत सारे लेखकों और प्रवद्वानों ने आपके बारे में
बहुत कुछ ललखा है , ष्जससे ललखने-पढ़ने की रुथच रखने वाले लोर् अवर्त
हैं। लेककन चूँकू क अब भी बहुत सारे लोर्, आपके हालात, जीवन और
आह्वान से अच्छी तरह अवर्त नह ं हैं, इसललए मैंने सोचा कक मैं भी
आपके हालात, चररत्र, आह्वान और सच्चे प्रयासों को बयान करने में
अपनी भार्ीदार दजग करा दूँ ू और इस महान प्रवद्वान के बारे में अपनी
जानकार का कुछ अंश लोर्ों के सामने रख दूँ ,ू ताकक ष्जसके पास आपके
बारे में आधी-अधूर मालूमात हो, उसे वास्तप्रवकता का ज्ञान हो जाए और
ष्जसे आपके चररत्र तथा आह्वान के बारे में कोई संदेह हो, उसके संदेह का

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तनवारण हो जाए। इमाम साहब का जन्म 1115 दहजर में हुआ। उनकी
यह जन्म ततथथ मश्हूर है । एक मत यह भी है कक उनका जन्म 1111
दहजर में हुआ था, लेककन 1115 दहजर ह प्रलसद्ध है ।

उयैना नामी र्ाूँव में, जहाूँ उनका जन्म हुआ था, अपने प्रपता से लशिा
प्राप्त की। नज्द के यमामा प्रांत का यह र्ाूँव, ररयाज़ शहर से उत्तर-पष्श्चम
की ददशा में सत्तर ककलोमीिर की दरू पर ष्स्थत है । आप इसी र्ाूँव में पैदा
हुए और बेहतर अंदाज़ में परवररश पाई। छोि आयुुु ह में क़ुरआन
कंठस्थ कर ललया और किर अपने प्रपता के पास परू मेहनत से पढ़ने लर्े
और धमग का ज्ञान अष्जगत करने में जुि र्ए। उनके प्रपताजी बहुत बडे
धमगशास्त्री, क़द्दावर प्रवद्वान और उयैना नर्र के शरई अदालत के क़ाज़ी
थे। जब जवान हुए तो हज ककया, हरम शर फ़ के कुछे क उलेमा से ज्ञान
प्राप्त ककया और किर वहाूँ से मद ना की ओर प्रस्थान ककया। वहाूँ केुे
उलेमा से मुलाक़ात की, एक मुद्दत तक ठहरे भी और उस समय के मद ने
के दो बहुत प्रवख्यात और बडे उलेमा से ज्ञानाजगन ककया। उन दोनों में से
एक थे शैख़ अब्दल्
ु लाह बबन इबराह म बबन सैफ़ नज्द , जो मूल रूप से
अल-मजमआ के तनवासी और "अल-अ़ज़बुल फ़ाइज़ फ़ी इललमल फ़राइज़"
नामी ककताब के लेखक शैख़ इबराह म बबन अब्दल्
ु लाह के प्रपता थे। इमाम
साहब ने मद ने में महान प्रवद्वान शैख़ मुहम्मद ह़यात लसंधी से भी
ज्ञानाजगन ककया था। यह दोनों प्रवद्वान इस बाबत अथधक मश्हूर हैं कक
उनसे इमाम साहब ने मद ने में ज्ञानाजगन ककया, लेककन इस बात की पूर
संभावना है कक उन्होंने और भी प्रवद्वानों, ष्जनको हम नह ं जानते हैं, से
लशिा प्राप्त की होर्ी।

इमाम साहब ने ज्ञान प्राप्त करने के उद्दे श्य से इराक़ का भी सफ़र


ककया। सबसे पहले इराक के शहर बसरा र्ए, वहाूँ के प्रवद्वानों से

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मुलाक़ात की और उनसे, अल्लाह ने ष्जतना चाहा, ज्ञानाजगन ककया। वहाूँ
इमाम साहब ने अल्लाह के एकेश्वरवाद का खल
ु कर आह्वान ककया, लोर्ों
से सुन्नत पर अमल करने का अनुरोध ककया और लेर्ों के सामने अच्छी
तरह स्पटि कर ददया कक समस्त मस
ु लमानों पर वाष्जब है कक वे अपना
धमग, अल्लाह की ककताब और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैदह व
सल्लम- की सन्
ु नत से प्राप्त करें । इस लसललसले में उनहोंने बसरा के
उलेमा से बडा वाद-प्रववाद और तकग-प्रवतकग भी ककया। वहाूँ उनके र्ुरूओं में
सबसे अथधक ख्यातत शैख़ मह
ु म्मद अल-मजमई
ू नामी एक व्यष्तत को
प्राप्त है । चुनांचे उनपर बसरा के कुछ दटु ि उलेमा भडक उठे और उनको
तथा उनके र्रू
ु को कई तरह का कटि झेलना पडा। िलस्वरूप, वहाूँ से
तनकल आए। वे सीररया जाना चाह रहे थे, परन्तु पयागप्त सफ़र-खचग ना
होने के कारण, वहाूँ नह ं जा सके। इसललए, बसरा से ज़ुबैर आ र्ए। किर
ज़ुबैर से अहसा चले आए और वहाूँ के उलेमा से मुलाक़ातें कीं और इस्लाम
के बहुत-से मल
ू लसद्धांतों पर प्रवचारों का आदान-प्रदान ककया। किर
उन्होंने हुरैमला का रुख ककया। वैसे तो अल्लाह ह सबसे अथधक जानता
है , लेककन हमें लर्ता है कक यह बारहवीं शताब्द की पाूँचल दहाई का
ज़माना रहा होर्ा। तयोंकक इमाम साहब के प्रपता उयैना के क़ाज़ी थे।
उनका वहाूँ के अमीर से कुछ प्रववाद हो र्या, तो वे 1139 दहजर में
हुरैमला आ र्ए और हमारे शैख़ मुहम्मद, अपने प्रपता से, उनके 1139
दहजर में हुरैमला आने के बाद, वह ं आकर लमले। इस दहसाब से, इमाम
साहब का हुरैमला में आर्मन 1140 दहजर या उसके बाद हुआ होर्ा।
उसके बाद शैख़, अपने प्रपता के 1153 दहजर में दे हांत तक, हुरैमला ह में
ठहरे रहे और पढ़ने-पढ़ाने तथा आह्वान के कायग में व्यस्त रहे । किर उन्हें
हुरैमला के कुछ लोर्ों की तरफ़ से प्रताडना का सामना करना पडा, बष्ल्क
कुछ तच्
ु छ लोर्ों ने उनकी हत्या करने की साष्ज़श भी रची। कहा जाता है

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कक कुछ लोर्ों ने उन्हें मारने के ललए उनके घर की द वार िाूँदकर अंदर
आने का प्रयास ककया, लेककन इप्रत्तफ़ाक़ से कुछ लोर्ों को इसकी भनक
लर् र्ई, तो भार् खडे हुए। उसके बाद शैख़ (उनपर अल्लाह की रहमत
और कृपा हो!), उयैना चले र्ए।

उन तुच्छ लोर्ों के शैख़ पर क्रोथधत होने का कारण यह था कक शैख़


नेकी का आदे श दे ते, बरु ाई से रोकते और शासकों से उन अपराथधयों को
सज़ा दे ने की माूँर् करते थे जो लि
ू मार, हत्या और इस तरह के अन्य
तर कों से लोर्ों को परे शान रखा करते थे। इस तरह के लोर्ों को वहाूँ "दास
वर्ग" कहा जाता था। जब उनको मालूम हुआ कक शैख़ उनके प्रवरोधी हैं,
उनके कुकमों से संतटु ि नह ं हैं और शासकों को उन्हें दं डडत करने तथा
उनकी बुराई पर रोक लर्ाने पर उभारते हैं, तो शैख़ पर उनके क्रोध का
ज्वालामुखी िि पडा और उन्होंने आपकी हत्या की योजना तक बना ल ।
परन्तु, अल्लाह ने शैख़ की सुरिा की और उनके षड्यंत्र से आपको
बचाया। किर आप उयैना चले आए। उस समय उसमान बबन नालसर बबन
मामर, उयैना के अमीर थे। शैख़ उनके पास पहुूँचे, तो उन्होंने शैख़ का
भरपूर स्वार्त करते हुए कहा कक आप अल्लाह की तरि लोर्ों को बुलाने
का शभ
ु कायग करते रहें , हम आपके साथ हैं और आपकी सहायता के ललए
तत्पर रहें र्े। अमीर उसमान ने शैख़ से भलाई और प्रेम एवं स्नेह का
इज़हार ककया और उनके लमशन से सहमतत जताई।

वहाूँ शैख़ लशिादान, मार्गदशगन, लोर्ों को अल्लाह की तरि बुलाने,


भलाई की ओर उनकी रहनम
ु ाई करने और उन्हें केवल अल्लाह के वास्ते
एक-दस
ू रे से प्रेम रखने की प्रेरणा दे ने के लमशन में ल न हो र्ए। दे खते ह
दे खते उनके लमशन की ख्यातत उयैना की चारों ददशाओं में िैल र्ई, हर
ओर उनकी शोहरत हो र्ई और आसपास की बष्स्तयों से लोर् उनके पास

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आने लर्े। किर, एक ददन उन्होंने अमीर उसमान से कहा कक हमें ज़ैद बबन
ख़त्ताब -अल्लाह उनसे राज़ी हो- की क़ब्र पर बने र्ुंबद को ध्वस्त कर
डालने की अनम
ु तत प्रदान कीष्जए,तयोंकक, उसकी बुतनयाद पथभ्रटिता पर
रखी र्ई है , अल्लाह इस कायग को पसंद नह ं करता है और अल्लाह के
रसूल -सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम- ने भी क़ब्रों पर भवन के तनमागण और
मष्स्जदें बनाने से मना ककया है । दस
ू र बात यह है कक इस र्ंब
ु द ने लोर्ों
को कितने में डाल रखा है , लोर्ों के अक़ीदे में बबर्ाड का कारण बना हुआ
है और इससे लशकग पनप रहा है , इसललए इसे तोडना अतनवायग हो जाता है ।
यह सुन अमीर ने कहा : इसमें मेर ओर से कोई बाधा नह ं है । इसपर शैख़
ने अपनी थचंता व्यतत करते हुए कहा कक मझ
ु े इस बात का डर है कक कह ं
जुबैला के लोर् भडक न उठें । जब
ु ैला, ज़ैद बबन ख़त्ताब -अल्लाह उनसे राज़ी
हो- की क़ब्र के कर ब ष्स्थत एक र्ाूँव का नाम था। यह सुन, स्वयं अमीर
उसमान 600 योद्धाओं को साथ लेकर उस र्ब
ुं द को ढहाने के ललए तनकल
पडे। शैख़ भी उनके साथ थे। जब यह लोर् र्ुंबद के कर ब पहुूँचे और
जुबैला के तनवालसयों को इसकी सूचना लमल , तो वे र्ुंबद की रिा के ललए
तनकल आए। लेककन जब उसमान और उनके साथथयों को दे खा, तो आर्े
बढ़ने के बजाय उलिे पाूँव वापस हो र्ए। उसके बाद शैख़ स्वयं आर्े बढ़े ,
र्ुंबद को ढहाया और इस तरह अल्लाह ने आपके हाथ से इस कफ़तने का
अंत कर ददया। अब हम, शैख़ के मैदान में आने से पहले नज्द की ष्स्थतत,
उनके मैदान में आने के कारणों तथा उनके आह्वान के संबध
ं में थोडी-सी
बात करना चाहें र्े।

शैख़ के आह्वान से पहले, नज्द वाले ऐसी अवस्था में पहुूँच चुके थे
ष्जसे कोई मोलमन पसंद नह ं कर सकता था। लशकग-ए-अकबर (सबसे बडा
लशकग) पूर तरह अपनी जडें जमा चक
ु ा था। क़ब्रों, पेडों एवं पत्थरों तथा
र्ि
ु ाओं की पज
ू ा हो रह थी। हर उस व्यष्तत की पज
ू ा हो रह थी जो वल

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होने का दावेदार था, चाहे वह बावला ह तयों न हो। अल्लाह के अलावा,
ऐसे लोर्ों की पज
ू ा हो रह थी, जो वल होने के दावेदार थे, चाहे वे पार्ल
और द वाने ह तयों न हों। नज्द में जादर्
ू रों और भप्रवटयवाणी करने वाले
ओझाओं की चाूँद हो रह थी। उनसे भप्रवटय के बारे में पछ
ू ा जाता था और
उनकी बातों को सच माना जाता था और आम तौर पर उन्हें कोई रोकने-
िोकने वाला भी नह ं था। लोर् दतु नया और दतु नया के नशे में मदमस्त थे।
अल्लाह के ललए खडे होने वालों और अल्लाह के धमग के मददर्ारों की
संख्या ना के बराबर थी। यह हालत मतके और मद ने की भी थी। यमन
में भी लशकग का बाज़ार र्मग था। वहाूँ भी क़ब्रों पर समाथधयाूँ बनाने और
औललया को मस
ु ीबत के समय पक
ु ारने और उनसे फ़ररयाद करने का चलन
आम हो चुका था, मतलब यह कक यमन में भी लशकग प्रवलभन्न रूपों में
प्रचललत था। रह बात नज्द के िेत्रों की, तो वहाूँ की हर क़ब्र, हर र्ुिा, हर
पेड, हर पार्ल और हर द वाने को अल्लाह के साथ पज
ू ा जा रहा था और
उनसे फ़ररयाद की जा रह थी। इतना ह नह ं, बष्ल्क वहाूँ तो ष्जन्नात से
भी दआ
ु एं की जाती थीं, उनसे फ़ररयाद की जाती थी, उनके ललए बलल
चढ़ाई जाती थी और उनकी मदद हालसल करने और उनकी बुराई के डर से
बलल के इन जानवरों को घरों के कोनों में रखा जाता थे। जब इमाम साहब
ने लशकग और लोर्ों में उसके इस आम प्रचलन को दे खा और दे खा कक
उसपर कोई रोक-िोक करने वाला भी नह ं है , तो वे कमर बाूँधकर उठ खडे
हुए, आह्वान की राह में आने वाल हर मुसीबत पर सब्र ककया और समझ
र्ए कक इसके खखलाि ष्जहाद करना तथा इस राह में सब्र करना और कटि
बदागश्त करना आवश्यक हो र्या है । सबसे पहले वे उयैना में लोर्ों को
लशिा दे न,े उनकी रहनम
ु ाई और मार्गदशगन करने में जि
ु र्ए।और मन में
यह आशा लेकर उलेमा से थचट्ठी-पत्री की एवं उनसे वातागलाप ककया कक वे
उनके साथ अल्लाह के धमग की मदद के ललए उठ खडे होंर्े और लशकग तथा

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अन्य कुधारणाओं के खखलाि जंर् में उनका साथ दें र्े। इसका पररणाम
यह तनकला कक नज्द, मतका, मद ना और यमन आदद के बहुत सारे
उलेमा ने उनका साथ दे ने का वचन ददया और इस लमशन से अपनी
सहमतत ललख भेजी, जबकक दस
ू रे बहुत सारे उलेमा ने उनका प्रवरोध ककया,
उनके आह्वान पर दोषारोपण ककया, उनको बुरा-भला कहा और उनसे दरू
बना ल । दरअसल इस तरह का व्यवहार करने वाले दो प्रकार के लोर् थे :
एक, जादहल और ख़ुरािाती थे, जो अल्लाह के धमग और उसके एकत्व को
जानते ह नह ं थे। वे, तो केवल उसी धमग को जानते थे, जो उनके बाप-
दादाओं की अज्ञानता, र्ुमराह , लशकग, बबदअत और ख़ुराफ़ात पर
आधाररत था, जैसा कक अल्लाह तआला ने इस प्रकार के लोर्ों के बारे में
स्पटि रूप से कह ददया है : "(यह लोर् कहते हैं कक) बेशक हमने अपने
पूवज
ग ों को एक र तत पर पाया है और हम उन्ह ं के पदथचह्नों पर चल रहे
हैं।" सूरा अज़-ज़ख़
ु रुफ़, आयत संख्या : 23 जबकक दस
ू रे प्रकार के लोर्ों में
वह उलेमा शामलल थे, ष्जन्होंने केवल दश्ु मनी और ईटयाग के कारण उनका
प्रवरोध ककया, ताकक जन-समद
ु ाय यह न कह सके कक आखख़र तुमने हमें
इन चीज़ों पर तयों नह ं िोका? तयों ऐसा हुआ कक अब्दल
ु वह्हाब का बेिा
आया और सत्य का प्रचार करने लर्ा, जबकक आललम तो तुम भी थे,
आखख़र तुमने हमें असत्य से तयों नह ं रोका? यह वह बात थी, ष्जसकी
वजह से उन्होंने इमाम साहब से ईटयाग की, जन-समुदाय से लाज खाई और
यहूददयों के दतु नया को आखख़रत पर तरजीह दे ने की मनोष्स्थतत का
अनस
ु रण करते हुए, शीघ्र समाप्त हो जाने वाले लाभ को द घगकाल न लाभ
पर तरजीह द ।हम अल्लाह से आकियत और सलामती की माूँर् करते हैं।

रह बात शैख़ की, तो उन्होंने आह्वान के लमशन में, सब्र और संयम से


काम ललया। इस मामले में अरब प्रायद्वीप और उससे बाहर के कुछ उलेमा
और प्रमख
ु लोर्ों ने उनको प्रोत्सादहत ककया। चन
ु ांचे आप अपने लमशन में

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डि र्ए और इसकी सिलता के ललए अपने सवगशष्ततमान रब से सहायता
की भीख माूँर्ी। इस महान कायग से पहले आपने अल्लाह की ककताब का
र्हन अध्ययन ककया था और अल्लाह की ककताब की व्याख्या करने और
उससे धमग-प्रवधान समझने में महारत प्राप्त कर ल थी। उसी तरह,
अल्लाह के रसल
ू -सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम- और सहाबार्ण के जीवन
का ठोस अध्ययन ककया था और उसमें भी अनहद प्रर्ाढ़ता प्राप्त कर ल
थी। इन सार बातों ने हक़ और सच की राह पर अडडर् रहने में उनकी बडी
सहायता की।किर कमर कस ललया। तथा अपने आह्वान को लोर्ों के
दरलमयान प्रवस्तार दे ने और इस लसललसले में अमीरों और उलेमा को
थचट्दठयाूँ ललखकने के ललए पतका मन बना ललया और तय कर ललया कक
हालात जो भी हों अपने लमशन पर आर्े बढ़ते ह जाना है ।

चुनांचे अल्लाह तआला ने उनकी पप्रवत्र आशाओं को पूरा ककया। उनके


द्वारा आह्वान को प्रवस्तार ददया और हक एवं सत्य को समथगन ददया।
अल्लाह ने उनके ढे रों सहायक और मददर्ार तैयार कर ददए, ष्जनकी
सहायता से अल्लाह का धमग प्रवजयी और उसका शब्द बल
ु न्द हुआ। शैख़ ने
उयैना में पहले तो लशिा और मार्गदशगन की सूरत में अपने आह्वान का
लमशन जार रखा, किर मेदान में उतरने के ललए कमर कस ललया और
लशकग की तनशातनयों को लमिाने के व्यावहाररक प्रयास शुरू कर ददए। जब
उन्होंने दे खा कक ज़ब
ु ानी आह्वान प्रभावकार नह ं हो रहा है , तो उन्होंने
अपने आह्वान को व्यावहाररक रूप दे ददया, ताकक जहाूँ तक संभव हो
सके, ख़रु ािात और लशकग के थचह्नों को लमिाया जा सके। इसी क्रम में शैख़
ने अमीर उसमान से कहा था कक ज़ैद की क़ब्र पर बनी समाथध को तोड
डालना आवश्यक हो र्या है । यह ज़ैद बबन ख़त्ताब, अमीरुल मोलमनीन
उमर बबन ख़त्ताब के भाई थे। अल्लाह तआला उन सभों से राज़ी और ख़ुश
हो! ज़ैद बबन ख़त्ताब -रष्ज़यल्लाहु अनहु- उन शह दों में से एक थे, जो 12

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दहजर में मुसैललमा कज्ज़ाब और उसके लश्कर से जंर् करते हुए शह द
हुए थे। ज़ैद जहाूँ शह द हुए थे, लोर्ों की मान्यता के अनुसार, वह ं पर
उनको दफ़न करने के बाद उनकी क़ब्र के ऊपर र्ुंबद बना द र्ई थी।
हालांकक वह क़ब्र ककसी और की भी हो सकती थी, लेककन उनकी मान्यता
के मुताबबक, वह उन्ह ं की क़ब्र थी। बहरहाल, उसमान ने, जैसा कक पहले
बताया जा चक
ु ा है , शैख़ की बात पर सहमतत जताई और अल्लाह की कृपा
से उस र्ुंबद को ढहा ददया र्या और अल्लाह का शक्र
ु है कक आज उसका
नाम व तनशान तक बाक़ी नह ं है । दे खखए, सच्ची नीयत, सच्चे इरादे और
हक़ की मदद करने का तनश्चय लेकर उसे ढहाया र्या तो अल्लाह ने उसे
हमेशा के ललए लमिा ददया। उस समय वहाूँ और भी कई क़ब्रें थीं, ष्जनमें से
एक के बारे में कहा जाता था कक वह ष्ज़रार बबन अज़वर की क़ब्र है । उसके
ऊपर भी र्ुंबद बना ददया र्या था और उसको भी ढहा ददया र्या। वहाूँ कई
और ष्ज़यारतर्ाहें भी थीं, ष्जनको अल्लाह ने लमिा ददया। हद तो यह थी
कक वहाूँ अल्लाह के अलावा र्ुिाओं और पेडों तक की पूजा होती थी। उन
सबको लमिा ददया र्या, ख़त्म कर ददया र्या और लोर्ों को उनसे
सावधान कर ददया र्या।

तात्पयग यह है कक शैख़ ने ज़ब


ु ानी और व्यावहाररक, दोनों तरह से
अपना लमशन जार रखा, जैसा कक पहले भी बताया र्या है । किर एक ददन
ऐसा हुआ कक एक औरत शैख़ के पास आई और उनके सामने कई बार
ष्ज़ना का इक़रार ककया। शैख़ ने पता ककया कक कह ं उसकी अक़्ल में तो
कोई दोष नह ं है , तो पता चला कक वह समझदार और सझ
ू बझ
ू वाल है
और उसे कोई ददमार्ी बीमार भी नह ं है । जब उसने पुख़्ता इक़रार कर
ललया, अपने इक़रार पर जमी रह , इस मामले में कोई संदेह बाक़ी न रहा
और यह भी स्पटि हो र्या वह ऐसा ककसी दबाव में आकर नह ं कह रह है ,
तो चूँकू क वह प्रववादहता थी, इसललए शैख़ ने उसे संर्सार कर ददए जाने का

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आदे श जार कर ददया और वह संर्सार कर द र्ई। उस समय शैख़,
उयैना के क़ाज़ी थे। इस घिना के बाद, शैख़ के द्वारा र्ुंबद को ढहाए जाने,
औरत को संर्सार ककए जाने, अल्लाह की ओर लोर्ों को बुलाने और
उयैना की ओर लोर्ों के दहजरत करके आने की वजह से शैख चचाग का केंद्र
बन र्ए।

इसी बीच जब अहसा और उसके अधीनस्थ िेत्रों के अमीर सल


ु ैमान
बबन उरै इर खाललद को शैख़ के लमशन और उनकी र्ततप्रवथधयों की खबर
हुई और उसे यह पता चला कक वह लोर्ों को अल्लाह की तरि बल
ु ाते, क़ब्रों
पर बने र्ुंबदों को ढहाते और इस्लामी दं ड-संदहता को लार्ू करते हैं, तो उस
बदवी को बहुत बरु ा लर्ा। तयोंकक, आम तौर पर बदप्रवयों के व्यवहार में
अत्याचार, रततपात, लूिमार और प्रततबंधों का उल्लंघन जैसी चीज़ें
शालमल होती हैं, लसवाय उनके ष्जन्हें अल्लाह दहदायत दे दे ता है । अतः,
उसे यह भय सताने लर्ा कक कह ं इस शेख का महत्तव और न बढ़े जाए
और उसके राज का अंत न कर दें । यह कारण है कक उसने उस्मान को
धमकी भरा पत्र ललखकर आदे श ददया कक वह अपने पास उयैना में मौजूद
इस मोलवी और धमग शास्त्री को क़त्ल कर दे । उसने पत्र में ललखा कक हमें
पता चला है कक तुमने ष्जस मोलवी को आश्रय दे रखा है वह कुछ इस इस
तरह की बात करता है । इसललए या तो उसका वध कर दो, नह ं तो हमारे
छे त्र से तम
ु को जो आमदनी होती है , हम उसे रोक दें र्े। अमीर उस्मान को
उसके इलाके से सोना की आमदनी होती थी, इसललए उन्होंने उसके आदे श
को र्ंभीरता से ललया। उन्हें इस बात का भय महसस
ू हुआ कक अर्र उसकी
बात न मानी, तो कह ं वह उनकी आमदनी न रोक ले या युद्ध पर उतर न
आए। ललहाज़ा उन्होंने शैख़ से कहा : अमक
ु अमीर ने मझ
ु े पत्र भेजा है और
पत्र में कुछ इस तरह की बातें ललखी हैं। हम आपका वध कर दें , यह उथचत
नह ं होर्ा, लेककन यह भी सच्चाई है कक हम उससे डरते हैं और उससे

14
युद्ध नह ं कर सकते। इसललए, अर्र आप हमारे यहाूँ से तनकल जाना
मुनालसब समझें, तो तनकल जाएं। शैख़ ने उत्तर ददया : मैं ष्जस धमग की
ओर बुलाता हूूँ, वह अल्लाह का धमग है । मैं इस्लाम के मूल शब्दों "अल्लाह
के लसवा कोई सत्य पज्
ू य नह "ं और "मह
ु म्मद अल्लाह के रसल
ू हैं" की
र्वाह को मूतग रूप दे ने का आह्वान करता हूूँ। जो भी इस धमग को मज़बत
ू ी
से थाम लेर्ा, और इस कायग में सच्चा लसद्ध होर्ा, अल्लाह उसकी मदद
करे र्ा, उसे अपना समथगन दे र्ा और उसे उसके दश्ु मनों के मुल्कों के
लसंहासनों पर बबठाएर्ा। मैं आपको आश्वासन दे ता हूूँ कक अर्र आपने धैयग
रखा, सुदृढ़ रहे और इस ख़ैर को ग्रहण कर ललया, तो शीघ्र ह अल्लाह
आपकी मदद करे र्ा, उस बदवी और उसके अलावा दस
ू रों से भी आपकी
सुरिा करे र्ा, बष्ल्क स्वयं उसके और उसके कबीले के छे त्र का आथधपत्य
भी आपको सौंप दे र्ा। लेककन अमीर उस्मान ने कहा : शैख़! इस समय ना
हम उससे युद्ध करने की ष्स्थतत में हैं और ना ह उसका प्रवरोध करने की
हमारे अंदर िमता है । यह सुनकर शैख़ उसी वतत उयैना से तनकलकर
ददरइय्या की ओर चल पडे। कहा जाता है कक आपने पूरा रास्ता पैदल तय
ककया था।सुबह उय्यना से पैदल तनकले थे और शाम को ददरइय्या पहुूँचे थे
उस्मान ने आपके ललए सवार तक का प्रबंध नह ं ककया था। आप उय्यना
के एक नेक आदमी के घर पहुंचे, ,जो शहर के ऊपर दहस्से में रहते थे, और
ष्जनका नाम मह
ु म्मद इब्न सऐ
ु ललम अल-उरै नी था, चुनांचे आप उनके
यहाूँ ठहरे ।। कहा जाता है कक वह अपने घर में आपके आने से बुर तरह से
भयग्रस्त हो र्ए और उनके पाूँव तले से ज़मीन खखसकने लर्ी। दरअसल
वह ददरइय्या के अमीर मुहम्मद बबन सऊद से डर रहे थे। लेककन शैख़ ने
उनकी ढारस बंधाई और उनसे कहा : तम्
ु हें शभ
ु सच
ू ना मब
ु ारक हो। मैं
ष्जस चीज़ की तरफ़ लोर्ों को बुलाता हूूँ, वह अल्लाह का धमग है और
अल्लाह उसे शीघ्र ह ग़ाललब कर दे र्ा। इसी बीच, मह
ु म्मद बबन सऊद को,

15
मुहम्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब के आर्मन की सूचना लमल र्ई। कहा जाता
है कक यह सूचना उनको उनकी पत्नी ने ह द थी। हुआ यह कक उनकी
पत्नी के पास अल्लाह का कोई नेक बंदा पहुूँचा और मशवरा ददया कक आप
अपने पतत को मह
ु म्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब के बारे में बताएूँ, उनके
आह्वान को मानने की प्रेरणा दें तथा उनके सहयोर् पर उभारें । मुहम्मद
बबन सऊद की पत्नी, बहुत नेक और सदाचार मदहला थीं। जब उनके पास
उनके पतत यानी ददरइय्या और उसके अधीनस्थ िेत्रों के अमीर मुहम्मद
बबन सऊद आए, तो उन्होंने उनसे कहा कक इस महत्वपण
ू ग अवसर को हाथ
से जाने न दें ! यह बहुत बडी नेमत है , जो अल्लाह ने आपके द्वार तक
पहुूँचा द है । एक बडा आह्वानकताग आपकी प्रतीिा में है , जो अल्लाह के
धमग की ओर बुलाता है , अल्लाह की ककताब की ओर बुलाता है और अल्लाह
के रसूल -सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम- की सन्
ु नत की ओर बुलाता है ।
तया ह श्रेटठ वरदान है यह! उसे ग्रहण करने में जल्द ददखाएूँ और उनकी
मदद करने में दे र न करें । अमीर ने उनका सझ
ु ाव क़बल
ू कर ललया। अब
उनके मन में केवल इतनी दप्रु वधा थी कक वह शैख़ से ख़ुद जाकर लमलें या
उन्हें अपने पास बुला लें। लेककन उन्हें मशवरा ददया र्या, जबकक कुछ
लोर्ों के अनस
ु ार उनकी पत्नी ह ने कुछ सदाचार व्यष्ततयों के साथ
लमलकर मशवरा ददया था कक उन्हें बुला भेजना उथचत नह ं होर्ा। अच्छा
यह होर्ा कक आप स्वयं उनके पास जाएूँ और ज्ञान, ज्ञानवान और भलाई
की ओर बुलाने वाले के प्रतत सम्मान का पररचय दें । चूँकू क अल्लाह ने
मह
ु म्मद बबन सऊद के ललए सौभाग्य और भलाई ललख द थी, इसललए
उन्होंने लोर्ों के परामशग को ग्रहण कर ललया। वह शैख़ से लमलने स्वयं
मह
ु म्मद बबन सऐ
ु ललम के घर की ओर चल पडे, वहाूँ जाकर शैख़ को
सलाम ककया, उनसे बात-चीत की और कहा : शैख़ महम्मद! मेर तरि से
मदद, शांतत और सहायता का शभ
ु संदेश क़बल
ू करें । इसपर शैख़ ने उससे

16
कहा : और आप भी मदद, आथधपत्य और अच्छे पररणाम का शुभ संदेश
ग्रहण कर लें। यह अल्लाह का धमग है । जो भी इसकी मदद करे र्ा, अल्लाह
उसकी मदद करे र्ा। जो भी इसको समथगन दे र्ा, अल्लाह उसको अपना
समथगन दे र्ा और आप इसके लिणों का शीघ्र ह अनभ
ु व कर लेंर्े।
मुहम्मद बबन सऊद ने कहा : हे शैख़! मैं आपके हाथ पर अल्लाह और
उसके रसल
ू के धमग और अल्लाह के रास्ते में ष्जहाद करने की बैअत करना
चाहता हूूँ, मर्र मुझे डर है कक हम आपका समथगन और आपकी मदद करें
और जब अल्लाह आपको इस्लाम के दश्ु मनों पर प्रवजय प्रदान करे , तो
कह ं आप हमारे राज्य के अलावा, कोई दस
ू रा राज्य तलाश कर वहाूँ न चले
जाएूँ। शैख़ ने कहा : ऐसा नह ं हो सकता। मैं आपसे इस बात पर बैअत
नह ं करूूँर्ा। मैं आपसे इस बात पर बैअत करूूँर्ा कक ख़ून के बदले में ख़ून
और प्रवध्वंस के बदले में प्रवध्वंस है । मैं आपका राज्य छोडकर कह ं भी और
कभी भी नह ं जाऊूँर्ा। किर शैख़ ने उनसे एक दस
ू रे की मदद करने, राज्य
छोडकर कह ं न जाने, अमीर के साथ रहकर हमेशा उनकी मदद करने और
उनके साथ लमलकर अल्लाह के रास्ते में ष्जहाद करने, यहाूँ तक कक
अल्लाह के धमग का अथधपत्य लसद्ध हो जाए, की बैअत की। इन्ह ं बबंदओ
ु ं
पर बैअत समाप्त हुई और उसके बाद लोर् उयैना, इरक़ा, मनिूहा, ररयाज़
और इनके अलावा आसपास के अन्य िेत्रों से थर्रोहों और िोललयों में
ददरइय्या आने लर्े। कहना चादहए कक ददरइय्या, प्रवास-स्थल बन र्या
जहाूँ लोर् हर जर्ह से दहजरत करके आते जा रहे थे। लोर्ों ने एक-दस
ू रे
की ज़बानी शैख़ के हालात, ददरइय्या में उनके द्वारा प्रस्तत
ु ककए र्ए
धालमगक पाठों, आह्वानों और मार्गदशगन के बारे में सुना, तो लोर् थर्रोहों में
भी और अकेले भी चलकर आपके पास पहुूँच र्ए। इस तरह शैख़,
ददरइय्या में सम्मातनत, समथथगत, प्रप्रय और प्रवजयी बनकर रहने लर्े।
वह ं उन्होंने लोर्ों को आस्था, पप्रवत्र क़ुरआन और उसकी व्याख्या,कफ़क़्ह,

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हद स, उसूल-ए-हद स, अरबी भाषा एवं सादहत्य, इततहास और इनके
अलावा कई दस
ू रे लाभदायक ज्ञानों से संबंथधत पाठ प्रस्तत
ु ककए।

लोर् उनके पास हर तरि और हर जर्ह से उमड पडे। ददरइय्या में


उनसे जवान और बढ़
ू े सभी ज्ञान प्राप्त करने लर्े। शैख़ ने साधारण और
प्रवशेष, हर दो प्रकार के लोर्ों के ललए प्रवशेष पाठ तैयार करके प्रस्तुत
ककए। ददरइय्या में ज्ञान का प्रचार-प्रसार ककया। आह्वान के लमशन में जि
ु े
रहे । किर उसके बाद ष्जहाद आरं भ ककया। लोर्ों से, इस िेत्र में काम करने
और अपने-अपने नर्र से लशकग का ख़ात्मा करने हे तु पत्राचार ककया।
पत्राचार की शुरूआत नज्द वालों से की और वहाूँ के अमीरों और उलेमा को
पत्र ललखे। ररयाज़ के उलेमा और वहाूँ के अमीर दह्हाम बबन दव्वास को
पत्र ललखा। ख़जग के उलेमा और अमीरों को पत्र ललखा। दक्षिणी छे त्रों तथाा
क़सीम, हाइल, वश्म और सुदैर आदद के उलेमा को ललखा और बराबर उन
छे त्रों के उलेमा और अमीरों को पत्र ललख-ललखकर अपने लमशन के बारे में
जानकार दे ते रहे । इसी तरह, अहसा, मतका और मद ना के उलेमा को
अपने लमशन से अवर्त कराया। इसी प्रकार,बाहर के दे शों जैसे लमस्र,
सीररया, इराक, भारत और यमन आदद के उलेमा को पत्र ललखे और अपने
आह्वान की जानकार द । आप लर्ातार, लोर्ों को पत्र ललखते और तकग
स्थाप्रपत करते रहे तथा उन्हें याद ददलाते रहे कक ककस तरह से अथधकांश
लोर् लशकग और बबदअत के चक्रव्यह
ू में िूँसकर रह र्ए हैं। लेककन इसका
मतलब यह नह ं है कक उस समय धमग के मददर्ार बाक़ी नह ं रह र्ए थे।
तनष्श्चत रूप से धमग की सहायता में खडे होने वाले लोर् मौजद
ू थे। तयोंकक
अल्लाह ने इस धमग के बारे में यह र्ारं ि ल है कक क़यामत तक हमेशा
उसके मददर्ार मौजद
ू रहें र्े और जैसा कक अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु
अलैदह व सल्लम- ने फ़रमाया है कक इस उम्मत का एक थर्रोह हमेशा
सत्य पर जमा रहे र्ा और उसे अल्लाह की सहायता प्राप्त रहे र्ी, लेककन

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यहाूँ बात नज्द की हो रह है । नज्द के अंदर उस समय इस क़दर बुराई,
फ़साद, लशकग और अंधप्रवश्वास िैल र्या था कक उसका दहसाब अल्लाह के
लसवा ककसी के पास नह ं है । हालाूँकक वहाूँ कुछ अच्छे उलेमा भी मौजद
ू थे,
लेककन उनके भार्य में यह नह ं ललखा था कक आह्वान का बीडा उठाते
और उसकी ष्ज़म्मवार अपने कंधों पर लेते।

यमन और उसके अततररतत दस


ू रे दे शों में भी, सत्य की ओर बल
ु ाने
वाले और उसके मददर्ार मौजद
ू थे, जो उस लशकग और उन अंधप्रवश्वासों
को अच्छी तरह पहचानते थे, लेककन अल्लाह तआला ने उनके आह्वान के
भाग्य में वह सिलता नह ं ललखी थी, जो शैख़ मुहम्मद बबन अब्दल

वह्हाब के आह्वान के ललए कुछ कारणों से मक़
ु द्दर कर द थी। उनमें से
एक कारण यह था कक शैख़ के अलावा, दस
ू रे आह्वानकतागओं को सहायक
एवं मददर्ार उपलब्ध नह ं हो सके। दस
ू रा कारण यह था कक दस
ू रे
आह्वानकताग, धैयग नह ं रख सके और अल्लाह के रास्ते में कटि सहन नह ं
कर सके।

तीसरा कारण यह था कक कुछ आह्वानकतागओं में उतना ज्ञान नह ं था


कक वे लोर्ों का मुनालसब शैललयों, उथचत वणगनों, बुद्थध-प्रववेक और
मनोरम प्रवचनों के द्वारा मार्गदशगन कर पाते। इनके अलावा और भी कई
कारण थे, ष्जनकी वजह से उन्हें कामयाबी नह ं लमल सकी। दस
ू र तरि,
प्रचुर मात्रा में पत्राचार और ष्जहाद की वजह से शैख़ का लमशन मश्हूर होता
र्या और उनका आह्वान, सिलता के नए लशखरों को छूता चला र्या।
शैख़ के पत्र अरब और अरब से बाहर के बहुत-से उलेमा तक पहुूँचा, ष्जसके
पररणामस्वरूप भारत, इंडोनेलशया, अफ़र्ातनस्तान, अफ़र का, मोरतको,
लमस्र, सीररया और इराक आदद दे शों के बहुत सारे लोर्, उनके आह्वान से
प्रभाप्रवत हुए।इन दे शों में बहुत सारे ऐसे आह्वानकताग भी थे, जो पहले से

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ह हक को पहचानते थे और उसकी ओर दावत दे ने का र्ण
ु उनके अंदर
मौजद
ू था। इसललए, जब शैख़ के आह्वान की सूचना उन्हें लमल तो उनका
जोश बढ़ र्या, उनका मनोबल ऊूँचा हुआ और उनका आह्वान बडी तेज़ी
से िैलने लर्ा। इस प्रकार शैख़ का आह्वान, मष्ु स्लम दतु नया के साथ-
साथ अन्य दे शों में भी मश्हूर और पररवथधगत होता चला र्या। किर इस
अंततम ज़माने में, शैख़ की पस्
ु तकें एवं पष्ु स्तकाएं, उनके बेिों, पोतों,
सहयोथर्यों और अरब तथा अरब से बाहर के उनके समथगक मुष्स्लम
उलेमा की ककताबें प्रकालशत हो र्ईं। इसी प्रकार, शैख़ के आह्वान, जीवन
और उनके समथगकों के जीवनचररत्र पर ललखी र्ई ककताबें भी प्रकालशत हो
र्ईं, ष्जससे अथधकांश प्रांतों और मल्
ु कों में उनके आह्वान की ख्यातत िैल
र्ई। लेककन यह ज्ञात है कक दतु नया में हर नेमत (अनुग्रह) से जलन रखने
वाले और हर आह्वानकताग के शत्रु हुआ करते हैं,जैसा कक अल्लाह तआला
ने फ़रमाया है : "और (हे नबी)! इसी प्रकार हमने मनुटयों और ष्जन्नों में से
शैतानों को प्रत्येक नबी का शत्रु बनाया, जो थचकनी-चुपडी बात एक-दस
ू रे
के मन में डालकर धोखा दे ते थे। यदद आपका रब चाहता तो वे ऐसा न कर
सकते थे। तो आप उन्हें और उनके लमथ्यारोपण को छोड दें ।" सूरा अल-
अनआम, आयत संख्या : 112 इसललए, जब शैख़ ने अपने आह्वान के
मामले में ख्यातत प्राप्त कर ल , बहुत सार उच कोदि की पस्
ु तकें और
पुष्स्तकाएं ललखकर लोर्ों में िैला द ं और उलेमा ने भी पत्राचार के
माध्यम से उनसे अपने प्रवचारों का आदान-प्रदान ककया, तो उनसे ईटयाग
करने वालों और प्रवरोथधयों के बहुत सारे थर्रोह और दस
ू रे प्रकार के भी
बहुत सारे दश्ु मन पैदा हो र्ए।

उनके दश्ु मन दो प्रकार के थे : एक प्रकार के दश्ु मन, वह लोर् थे


ष्जन्होंने ज्ञान और धमग के नाम पर उनसे दश्ु मनी की और दस
ू रे प्रकार के
शत्रु वह लोर् थे, ष्जन्होंने राजनीतत के नाम पर उनसे दश्ु मनी की, लेककन

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उन्होंने भी ज्ञान और धमग की आड ले रखी थी। इन लोर्ों ने ऐसे उलेमा की
दश्ु मनी का लाभ उठाया, जो खुलकर शैख़ से अपनी दश्ु मनी का इज़हार
करते, उन्हें र्ुमराह मानते और उनके आह्वान पर सौ तरह के आरोप
मढ़ते थे। इन सब के बावजद
ू , शैख़ अपने आह्वान का लमशन जार रखे
हुए थे, तनरं तर शंकाओं का तनवारण करते जाते थे, स्पटि तकग ददए जा रहे
थे और अल्लाह की ककताब तथा उसके रसल
ू -सल्लल्लाहु अलैदह व
सल्लम- की सुन्नत की रोशनी में लोर्ों का हकीकतों की तरि मार्गदशगन
कक जा रहे थे। शैख़ के प्रवरोधी उनके बारे में कभी कहते थे कक वे ख़ाररजी
हैं, कभी कहते थे कक वे इजमा का हनन करते हैं और मुजतदहद-ए-
मत
ु लक़ होने का दावा करते हैं तथा पव
ू व
ग ती उलेमा और फ़क़ीहों (इस्लाम
के धमगशाष्स्त्रयों) की मयागदा की ज़रा भी परवाह नह ं करते और कभी इनके
अलावा भी कई अन्य लांछन लर्ाया करते थे। दरअसल यह सब उनमें से
एक ऐसा थर्रोह कर रहा था, ष्जसके पास ज्ञान का अभाव था। आपके
प्रवरोथधयों के एक थर्रोह ऐसा भी था, ष्जसने दस
ू रे लोर्ों का कोरा
अनुकरण ककया और उनपर प्रवश्वास कर ललया। जबकक कुछ लोर् ऐसे भी
थे, ष्जन्हें अपने केन्द्रों के खत्म हो जाने के भय सताने लर्ा था, इसललए
राजनीततक दश्ु मनी पाल ल । मर्र, इस्लाम और धमग की चादर ओढ़ ल
और बेबुतनयाद आरोप लर्ाने वालों तथा लोर्ों को र्ुमराह करने वालों के
कथनों का सहारा ले ललया।

इस तरह दे खा जाए, तो दरअसल आपके प्रवरोधी तीन प्रकार के थे :


ऐसे भिके हुए उलेमा, जो सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समझते
थे और ष्जनका यह मानना था कक क़ब्रों पर भवन तनमागण करना, उनपर
मष्स्जदें बनाना, अल्लाह को छोडकर क़ब्रों से दआ
ु माूँर्ना, उनसे फ़ररयाद
करना और इन जैसी दस
ू र चीज़ें, पूणत
ग या धमग और दहदायत हैं। इनका
प्रवश्वास था कक इन बातों का प्रवरोध करने वाला सदाचार पव
ू ज
ग ों एवं

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औललया (अल्लाह के प्रप्रय बंदों) से घण
ृ ा करता है । इसललए, वह हमारा
दश्ु मन है और उससे ष्जहाद करना अतनवायग है ।

दस
ू रे प्रकार के प्रवरोथधयों में ऐसे प्रवद्वान लोर् शालमल थे, जो इस
आदमी (शैख़ मह
ु म्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब) की हकीकत को पहचान नह ं
सके और उस हक को भी नह ं पहचान सके ष्जसकी तरि, वे लोर्ों को
बल
ु ा रहे थे। इन लोर्ों ने दस
ू रों का अंधा अनस
ु रण ककया और झठ
ू े आरोप
लर्ाने वालों एवं र्ुमराह करने वालों की तरि से शैख़ के बारे में जो कुछ
कहा र्या था, उसपर आूँख बंद करके यक़ीन कर ललया। ये समझते थे कक
शैख़ के संबंध में औललया और नबबयों से घण
ृ ा तथा दश्ु मनी और उनकी
करामात (कररश्मों) का इनकार करने जैसे बातें, जो वे कर रहे हैं, सह हैं।
इसललए, इन्होंने शैख़ की तनंदा की, उनके आह्वान पर दोषारोपण ककया
और लोर्ों को उनसे दरू करने का पूरा प्रयास ककया।

तीसरे प्रकार के प्रवरोथधयों में ऐसे लोर् आते थे, ष्जनको अपने पद और
प्रततटठा के तछन जाने का डर सता रहा था। इसी भय से भयभीत होकर
इन्होंने शैख़ से दश्ु मनी की, ताकक इस्लामी आह्वान के मददर्ारों के हाथ
उनकी र्दग नों तक न पहुूँच सकें, उनके केंद्रों का सिाया न हो जाए और वे
उनके नर्रों पर आथधपत्य ना जमा लें। याद रहे कक शैख़ और उनके
प्रवरोथधयों के बीच वातय-युद्ध भी जार रहा। शैख़ उन्हें पत्र ललखकर
अपनी बात रखते और वे शैख़ को पत्र ललखकर आपपर आक्रमण करते।
किर आप उनका खंडन करते और वे आपका खंडन करते। यह लसललसला
आपके बेिों, पोतों और समथगकों तथा आह्वान के प्रवरोथधयों के बीच भी
जार रहा, ष्जसके कारण पत्रों तथा खंडन पर आधाररत पुष्स्तकाओं का
बहुत बडा ज़ख़ीरा एकत्र हो र्या। बाद में उन पत्रों, फ़तवों और खंडन पर
आधाररत पुष्स्तकाओं को संकललत ककया र्या, तो कई खंड तैयार हो र्ए,

22
ष्जनमें से अथधकांश, अल-हम्द ु ललल्लाह, छप र्ए हैं। शैख़ ने आह्वान
और ष्जहाद जार रखा और ददरइय्या के अमीर एवं सऊद वंश (आल-ए-
सऊद) के संस्थापक मुहम्मद बबन सऊद ने इसमें शैख़ की भरपूर मदद
की। ष्जहाद का झंडा सन 1158 ईस्वी से बल
ु न्द ककया र्या। ष्जहाद
तलवार के द्वारा भी ककया जा रहा था और वातय और प्रमाण के द्वारा
भी। ष्जहाद के साथ-साथ आह्वान का कायग भी जार रहा। यह बात सबको
मालूम है कक अल्लाह की तरि बुलाने वाले इनसान के पास अर्र ऐसी
कोई ताकत ना हो, जो हक की मदद करे और उसको लार्ू कर सके, तो
उसके आह्वान का थचरार् शीघ्र ह बुझ जाता है , उसकी ख्यातत बहुत जल्द
धलू मल हो जाती है और उसके मदद के ललए भी बहुत कम लोर् खडे हो
पाते हैं। दस
ू र तरफ़, यह बात भी सबको मालम
ू है कक आह्वान के प्रचार-
प्रसार में, प्रवरोथधयों को जड से उखाड िेंकने में, सत्य की सहायता करने
और असत्य का कक़ला ढहाने में, शस्त्रों की बडी महत्वपूणग भूलमका रहती
है । अल्लाह तआला ने सच ह कहा है और वह अपने हर कथन में सच्चा है
भी : "तनःसंदेह, हमने अपने रसूलों को खुले प्रमाणों के साथ भेजा है , तथा
उनके साथ पुस्तक तथा तराज़ू (न्यातयक संप्रवधान) उतारा है , ताकक लोर्
न्याय पर ष्स्थत रहें , तथा हमने लोहा उतारा ष्जसमें बडा बल है , तथा
लोर्ों के ललए बहुत-से लाभ हैं। और ताकक अल्लाह जान ले कक बबना दे खे
कौन उसकी तथा उसके रसूलों की सहायता करता है । वस्तत
ु ः, अल्लाह
अतत शष्ततशाल , प्रभावशाल है ।" सूरा अल-हद द, आयत संख्या : 25
इस आयत में अल्लाह तआला ने स्पटि कर ददया है कक उसने रसल
ू ों को
स्पटि एवं ज्योततमगय दल लों और तकों के साथ भेजा, ष्जनके द्वारा
अल्लाह ने हक को प्रकि ककया और असत्य का प्रवनाश ककया। उसने
रसूलों के साथ ऐसी ककताबें भेजीं, ष्जनमें हर चीज़ का स्पटि प्रववरण,
मार्गदशगन और स्पटि करण है। उनके साथ अल्लाह तआला ने तराज़ू,

23
अथागत वह न्यातयक संप्रवधान भेजा ष्जसके द्वारा पीडडत को अत्याचार से
न्याय ददलाया जाए, हक स्थाप्रपत ककया जाए, दहदायत का प्रवस्तार हो
और लोर्ों को उसी के आलोक में उनका हक और इंसाफ़ ददलाया जा सके।
अल्लाह तआला ने उसी के साथ लोहा भी उतारा, ष्जसमें बडी ताकत और
िमता है , चेतावनी और सावधान करने का सामान है , उसके ललए जो हक
और सत्य का प्रवरोध करे । इसललए, ष्जसपर तकग स्थाप्रपत करने का लाभ
न हो और ष्जसपर दल ल प्रभावी न हो, उसको लोहा ह कूि कर सीधा कर
सकता है ।

इसी को ध्यान में रखते हुए, ककसी ने तया ह सुंदर छं द कहा है :

‫( وما هو إال الوحي أو حد مرهف ***تزيل ظباه أخدعي كل مائل‬वह तो बस


वह्य (प्रकाश्ना) है या किर तेज़ तलवार की धार है , ष्जसकी धार हर िे ढ़े
व्यष्तत की र्दगन उतार दे ती है ।)

‫( فهذا دواء الداء من كل جاهل ***وهذا دواء الداء من كل عادل‬सो यह हर


अज्ञानी की हर बीमार की दवा है और यह हर न्यायप्रप्रय के हर रोर् की
दवा है ।)

हर वह समझदार व्यष्तत जो मानवीय स्वभाव से सुसष्ज्जत होता है ,


वह दल ल से लाभाष्न्वत होता और हक और सत्य को तकग के साथ ग्रहण
करता है । रह बात अपनी आकांिाओं की क़ैद में रहने वाले अत्याचार की
तो उसे बस तलवार ह सीधा कर सकती है। बहरहाल, शैख़ -उनपर
अल्लाह की कृपो हो- पूर क़ूवत से आह्वान और ष्जहाद में व्यस्त रहे और
सऊद वंश (आल-ए-सऊद) -अल्लाह उनकी क़ब्रों को प्रकाशमान करे - ने
उनकी भरपूर सहायता की। ष्जहाद और आह्वान का यह लसललसला सन
1158 दहजर से सन 1206 दहजर में शैख़ के दे हांत तक, जार रहा।
लर्भर् यह पचास साल का कालखंड है । इस अवथध में ष्जहाद चलता रहा,

24
आह्वान जार रहा, कशमकश जार रह , हक के ललए लडाई जार रह ,
अल्लाह और उसके रसूल के कथनों की व्याख्या का काम चलता रहा,
अल्लाह के धमग की ओर बुलाने का कायग प्रर्तत पर रहा और अल्लाह के
रसल
ू -सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम- के द्वारा स्थाप्रपत ककए र्ए प्रवधानों
का मार्गदशगन बराबर जार रहा, यहाूँ तक कक लोर्ों ने पूणग अनुसरण की
प्रततबद्धता को स्वीकारा, अल्लाह के धमग में प्रप्रवटि हो र्ए, उनके आस-
पास जो क़ब्रों पर बने र्ुंबद थे उनको तोड ददया, उनकी जो मष्स्जदें क़ब्रों
पर बनी हुई थीं उनको ढहा ददया, धमग को तनणागयक मान ललया और
उसका पालन करने लर्े, अपने पूवज
ग ों की व्यथग मान्यताओं और प्रवधानों
को तनणागयक मानना छोड ददया और हक की ओर पलि आए। इसका
पररणाम यह सामने आया कक मष्स्जदें नमाज़ों और ज्ञान-मंडललयों से
आबाद हो र्ईं, ज़कात अदा की जाने लर्ी, लोर्ों ने रमज़ान के रोज़े उसी
पद्धतत से रखने शुरू कर ददए, जो उन्हें अल्लाह ने बताई है , पुण्यकमग
करने का आदे श ददया जाने लर्ा, कुकमों से रोका जाने लर्ा और बाज़ारों,
बष्स्तयों, रास्तों एवं दे हातों में शांतत ह शांतत स्थाप्रपत हो र्ई। बदवी लोर्
भी अपनी औक़ात में आ र्ए। उन्होंने अल्लाह के धमग में प्रप्रवटि होकर,
हक को क़बल
ू कर ललया। शैख़ ने उनमें अपने आह्वान को खूब िैलाया
और जंर्ल एवं दे हाती िेत्रों में अपने आह्वानकतागओं और मार्गदशगन
कराने वालों को भेजा। उसी प्रकार, शहरों और र्ाूँवों में भी लशिा दे ने वाले,
मार्गदशगन करने वाले और क़ाज़ी भेजे र्ए, ष्जससे सम्पण
ू ग नज्द में इस
महान भलाई और रौशन दहदायत की ककरणें िैल र्ईं, हक छा र्या और
अल्लाह का धमग र्ाललब आ र्या।

शैख़ -उनपर अल्लाह की रहमत हो- के दे हांत के बाद उनके बेिों, पोतों,
लशटयों और सहायकों ने उनके आह्वान और ष्जहाद का लमशन जार रखा।
इस सच
ू ी में उनके बेिों में, अब्दल्
ु लाह बबन मह
ु म्मद, हुसैन बबन मह
ु म्मद,

25
अल बबन मुहम्मद और इबराह म बबन मुहम्मद का नाम, और उनके
पोतों में अब्दरु गहमान बबन हसन, अल बबन हुसैन और सुलैमान बबन
अब्दल्
ु लाह बबन मुहम्मद का नाम सबसे ऊपर है और किर दस
ू रे लोर्ों का
नाम आता है | उनके लशटयों में से शैख हम्द बबन नालसर बबन मामर ने और
ददरइय्या के उलेमा के एक बडे समूह आदद ने भी शैख़ के आह्वान, ष्जहाद,
अल्लाह के धमग को प्रवस्तार दे ने और पत्राचार जार रखने एवं पस्
ु तकें
ललखने तथा धमग के दश्ु मनों के साथ ष्जहाद करने का लमशन जार रखा।
इन आह्वानकतागओं और उनके प्रवरोथधयों के बीच प्रववाद केवल इतना ह
था कक इन्होंने, लोर्ों को अल्लाह के एक होने, अल्लाह के ललए अपनी
तमाम इबादतों को खास कर दे ने और उसी पर डिे रहने, क़ब्रों पर बनी
मष्स्जदों और र्ुंबदों को तोड डालने, अल्लाह की प्रदान की हुई शर यत को
तनणागयक मानने और उसी पर डिे रहने, पुण्यकमग करने और बुराइयों से
दरू रहने तथा धालमगक दं ड-संदहता को लार्ू करने की ओर बल
ु ाया। उनके
और लोर्ों के बीच मतभेद के यह कुछ थर्ने-चन
ु े कारण थे। सारांश यह है
कक उन्होंने एकेश्वरवाद की तरफ़ लोर्ों का मार्गदशगन ककया, उनको इसी
का आदे श ददया, अल्लाह के साथ लशकग करने और लशकग की ओर ले जाने
वाले साधनों से सावधान ककया और इस्लामी शर यत का पाबंद बनाया।
किर भी ष्जन्होंने इनकार ककया और आह्वान, स्पटि करण और तकग
लसद्ध कर दे ने के बावजद
ू , लशकग करने पर अडे रहे , उनसे केवल अल्लाह के
ललए ष्जहाद ककया, ताकक जो प्रमाण और दल ल से मान जाए उसे प्रमाण
और दल ल से अल्लाह का आज्ञाकार बना ललया जाए और जो उससे न
माने उसे ताक़त के बल पर अल्लाह के सामने झुकाया जाए। इसी तरह
उन्होंने लोर्ों को बबदअत और अंधप्रवश्वासों से डराया, ष्जनपर अल्लाह ने
कोई दल ल नह ं उतार है , जैसे क़ब्रों पर भवन और र्ुंबद बनाना, अल्लाह
के अलावा अन्य शष्ततयों को तनणगयकार मानना, जादर्
ू रों और ओझाओं

26
से पूछना और उनको सच मानना आदद। अल्लाह ताला ने शैख़ और उनके
सहयोथर्यों के हाथों से इन सब बुराइयों को लमिा ददया। अल्लाह तआला
उन सभों पर अपनी दया और कृपा की बाररश करे !

मष्स्जदें महान ककताब क़ुरआन, पप्रवत्र सन्


ु नत, इस्लामी इततहास और
लाभदायक अरबी उलम
ू के पठन-पाठन से आबाद हो र्ईं। लोर् का एक
थर्रोह धमग-संबध
ं ी वातागलाप, ज्ञान, दहदायत, आह्वान और मार्गदशगन
मेुेुं ल न हो र्या, तथा एक दस
ू रा थर्रोह कृप्रष एवं दस्ताकर आदद
दतु नया से संबंथधत कायों में व्यस्त हो र्या। अब हर तरफ़ ज्ञान, कमग,
आह्वान और मार्गदशगन की चचाग थी। धमग भी था और दतु नया भी। आदमी
सीखने और लसखाने का काम भी कर रहा है और साथ ह खेत-खललयान
भी संभाल रहा है , दस्तकार भी कर रहा है और व्यापार भी दे ख रहा है ।
धमग तथा दतु नया के बीच उत्तम समन्वय बन र्या है । वे अल्लाह की तरि
बुलाने वाले और उसके रास्ते का राह भी हैं, लेककन साथ ह अपने िेत्रों में
नाना प्रकार के लाभदायक कामों में व्यस्त रहकर इतना कमा ले रहे हैं, जो
उन्हें बाहर के प्रांतों में जाने से तनस्पह
ृ ककए दे ते हैं। जब ये आह्वानकताग
और सऊद वंश, नज्द में अपने लमशन को सिलतापूवक
ग संपन्न कर चुके,
तो उसका दायरा मतका, मद ना और अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी प्रांतों तक
बढ़ा ददया। उन्होंने पहले भी मतका और मद ना के उलेमा से पत्राचार
ककया था और अब भी ककया, लेककन जब आह्वान को सिलता नह ं लमल
और मतका और मद ने के वासी, क़ब्रों पर बने र्ुंबदों का सम्मान करने,
उन जर्हों में लशकग करने और क़ब्र वालों से अपनी मरु ादें माूँर्ने से बाज़
नह ं आए, तो इमाम सऊद बबन अब्दल
ु अज़ीज़ बबन मुहम्मद ने, शैख़ के
दे हांत के ग्यारह साल बाद, दहजाज़ का रुख़ ककया। इस क्रम में, पहले
ताइफ़ वालों से संघषग ककया और किर मतका वालों की तरि बढ़े । वैसे
इमाम सऊद से पहले ह , उसमान बबन अब्दरु गहमान मज़
ु ायफ़ी ताइफ़ पहुूँच

27
चुके थे और नज्द एवं दस
ू रे प्रांतों के लोर्ों पर आधाररत उस बेहद
शष्ततशाल सैन्यबल के साथ ताइफ़ वालों का मुक़ाबला कर रहे थे, ष्जसे
ददरइय्या के अमीर इमाम सऊद बबन अब्दल
ु अज़ीज़ बबन मह
ु म्मद ने
उनकी मदद के ललए भेजा था। मज़
ु ायफ़ी ने ताइफ़ पर चढ़ाई करके उसपर
क़ब्ज़ा कर ललया और शर फ़ की ओर से तनयुतत अमीरों को वहाूँ से
तनकाल बाहर ककया। वहाूँ उन्होंने लोर्ों को अल्लाह की तरफ़ बल
ु ाने और
हक की तरि मार्गदशगन करने का कायग बहुत मेहनत से ककया और वहाूँ के
लोर्ों को लशकग और अब्दल्
ु लाह बबन अब्बास आदद, ष्जनको ताइफ़ के
अज्ञान और प्रववेकह न लोर् पूजते थे, की पज
ू ा करने से मना ककया। उसके
बाद, अमीर सऊद ने अपने प्रपता अब्दल
ु अज़ीज़ के आदे श पर, दहजाज़ का
रुख़ ककया और मतका को चारों ओर घेर ललया।

जब मतका के शर ि को यक़ीन हो चला कक अब आत्मसमपगण करने


या भार् जाने के अततररतत कोई दस
ू रा रास्ता नह ं बचा है , तो ष्जद्दा की
ओर भार् र्या और इमाम सऊद एवं उनके मुष्स्लम साथथयों ने बबना
ककसी यद्
ु ध के, लशतनवार 8 मुहरगम 1218 दहजर को सुबह के समय
मतका पर क़ब्ज़ा कर ललया। किर वहाूँ खुलकर अल्लाह की तरि बुलाने
का कायग शुरू कर ददया, उन सभी र्ुंबदों को ध्वस्त कर ददया जो ख़द जा -
रष्ज़यल्लाहु अनहा- और उनके लसवा अन्य लोर्ों की क़ब्रों पर बने हुए थे,
एकेश्वरवाद की तरि खल
ु कर बल
ु ाना शरू
ु कर ददया, धमग की लशिा दे ने के
ललए बडे-बडे उलेमा, मार्गदशगक और शर यत के अनुसार तनणगय करने वाले
क़ाज़ी तनयत
ु त कर ददए। किर, उसके कुछ ह ददनों बाद, मद ने पर भी
प्रवजय प्राप्त कर ललया। मद ने पर सऊद वंश का क़ब्ज़ा 1220 दहजर में,
मतका प्रवजय के कोई दो साल बाद हुआ और इसके बाद दोनों हरम उनके
के अधीनस्थ हो र्ए। वहाूँ उन्होंने सह मार्गदशगन करने वाले उलेमा
तनयत
ु त ककए, परू े मल्
ु क में न्याय और इस्लामी शर यत लार्ू की, वहाूँ के

28
आम तनवालसयों और प्रवशेष रुप से तनधगनों तथा ज़रूरतमंदों को धन प्रदान
ककए, लोर्ों के साथ भलाई का मामला ककया, उन्हें अल्लाह की ककतबा
लसखाया, भलाई का मार्ग बताया, उलेमा को सम्मान ददया और उनको
लशिा एवं मार्गदशगन पर प्रोत्सादहत ककया। इस तरह, 1226 दहजर तक
दोनों हरम सऊद वंश की हुकूमत के अधीन रहे । किर बहुत सारे कारणों से,
ष्जनमें से कुछे क का उल्लेख पहले हो चक
ु ा है , सऊद वंश से जंर् करने और
उनको मतका और मद ने से तनकाल बाहर करने के उद्दे श्य से तुकी और
लमस्र के सैन्यबल दहजाज़ का रुख करने लर्े। दरअसल इस आक्रमण के
कारण यह थे कक शैख़ और उनके अह्वान के दश्ु मनों, उनसे ईटयाग रखने
वालों, प्रववेकह न तथा अंधप्रवश्वास से ग्रस्त लोर्ों और कुछे क राजनेताओं
ने, जो इस बात से भयभीय थे कक कह ं उनके केंद्रों का सिाया न हो जाए
और उनकी अलभलाषाओं की दतु नया बबखर न जाए, शैख़ और उनके
अनुयाइयों और सहयोथर्यों पर झूठे आरोप लर्ाए और कहा कक वे अल्लाह
के रसूल -स्ल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम- और औललया से घण
ृ ा करते हैं,
उनकी करामात (चमत्कारों) का इनकार करते हैं और उनके बारे में ऐसी-
ऐसी बातें कहते हैं, ष्जनसे, उनके कथनानुसार रसूलों की मानहातन होती
है । किर, इनके झूठे आरोपों को कुछ अज्ञातनयों और अवसरवाद कक़स्म के
लोर्ों ने सच मान ललया और इसे सऊद वंश और शैख़ के अनुयाइयों को
नुक़सान पहुूँचाने, उनसे ष्जहाद करने और तुकों और लमलस्रयों को उनसे
जंर् करने पर आमादा करने का बहाना बना ललया। पररणामस्वरूप,
अनथर्नत कफ़तनों और लडाइयों ने सर उठाया और 1226 दहजर से 1233
दहजर के बीच, नज्द और दहजाज़ में, सऊद वंश और तुकग, लमस्री तथा
इनके समथगक िौजों के बीच परू े सात साल तक तनरं तर यद्
ु ध चलता रहा।
इन सारे युद्धों में एक ओर हक और सच की िौज थी और दस
ू र ओर
असत्य की सेनाएूँ।

29
हालाूँकक शैख़ मह
ु म्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब -उनपर अल्लाह की कृपा
हो!- तो वह व्यष्तत थे, जो अल्लाह के धमग को प्रवजयी बनाने, लोर्ों का
एकेश्वरवाद की ओर मार्गदशगन करने, लोर्ों के द्वारा इस्लाम में प्रप्रवटि
की र्ई बबदअतों तथा लमथकों को नकारने, उन्हें सत्य के रास्ते पर लर्ाने
और असत्य से दरू करने तथा नेक कायग करने का आदे श दे ने और बुराइयों
से रोकने के ललए खडे हुए थे।

यह है शैख़ -उनपर अल्लाह की दया एवं कृपा हो!- के आह्वान का


सारांश, जो आस्था के मामले में नेक पव
ू ज
ग ों के सप
ु थ पर चलते थे।
अल्लाह और उसके नामों एवं सद्र्ुणों पर, उसके फ़ररश्तों पर, उसके
रसल
ू ों पर, उसकी ककताबों पर, आखख़रत के ददन पर और अच्छे बरु े भाग्य
पर वैसा ह ईमान रखते थे, जैसा सदाचार पव
ू ज
ग रखते थे। अल्लाह के
एकत्व और उसी के ललए सार इबादतों को प्रवशुद्ध कर लेने और अल्लाह
के सभी नामों और सद्र्ुणों पर अल्लाह की शान के अनक
ु ू ल, ईमान लाने
में भी वे अपने सदाचार पूवज
ग ों के सुपथ पर चलते थे। अल्लाह को
सद्र्ुणरदहत नह ं मानते थे और ना ह अल्लाह को ककसी सष्ृ टि के समान
कहते थे। मरने के बाद दोबारा जीप्रवत कर उठाए जाने, प्रततिल, दहसाब-
ककताब और जन्नत-जहन्नम आदद पर ईमान लाने के मामले में भी वे
अपने नेक पूवज
ग ों के पदथचह्नों पर ह अग्रसर थे। ईमान के बारे में भी
उनका कहना वह था, जो नेक पव
ू ज
ग र्ण कहा करते थे कक ईमान कथन
और कमग का संग्रह है , जो घिता और बढ़ता है , नेक कमग करने पर बढ़ता है
और र्न
ु ाह करने से घिता है । यह कुछ शैख़ मह
ु म्मद बबन अब्दल
ु वह्हाब
-अल्लाह की असीम दया और कृपा हो उनपर!- का अक़ीदा था, जो कथन
एवं कमग, हर ललहाज से नेक पव
ू ज
ग ों के तर के और आस्था के पण
ू त
ग या
अनुसरणकताग थे। उनके तर क़े से ज़रा भी आर्े-पीछे नह ं थे और ना ह
ककसी खास पंथ और खास पद्धतत के अनक
ु रणकताग थे, बष्ल्क सहाबा

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और पूणग रूप से उनकी पैरवी करने वालों के तर के पर चलने वाले थे।
अल्लाह, उन सभों से राज़ी हो!

उन्होंने इसका इज़हार सबसे पहले नज्द और उसके आस-पास के छे त्रों


में ककया और उसकी तरि दावत द , किर ष्जसने उसका इनकार ककया
और दश्ु मनी की, उसके खखलाि ष्जहाद और युद्ध ककया, यहाूँ तक कक
अल्लाह का धमग र्ाललब आ र्या और हक एवं सच को प्रवजय प्राप्त हुई।
उन्होंने, अल्लाह की तरि दावत दे न,े असत्य का इनकार करने, पुण्य का
आदे श दे ने और बरु ाइयों से रोकने में आम मस
ु लमानों की ह पद्धतत को
अपनाया। हाूँ, शैख़ और उनके सहयोथर्यों ने इतना अवश्य ककया कक लोर्ों
को सत्य की ओर बल
ु ाने, असत्य से मना करने, बरु ाइयों से रोकने में
सख्ती से चेताया और सावधान ककया, ताकक लोर् उन सब बुराइयों को
छोड दें । उसी तरह, बबदअत और अंधप्रवश्वासों को नकारने में भी सख़्ती से
काम ललया, यहाूँ तक कक अल्लाह तआला ने उनके आह्वान के प्रभाव से,
उन सब बुराइयों को लमिा ददया। इसललए कहा जा सकता है कक उनके और
लोर्ों के बीच, दश्ु मनी और प्रववाद के कारण मुख्य रूप से वह तीन थे, जो
यह हैं :

पहला कारण : लशकग से इनकार और प्रवशुद्ध एकेश्वरवाद की तरि


दावत दे ना था। दस
ू रा कारण : बबदअतों और अंधप्रवश्वासों, जैसे क़ब्रों पर
र्ुंबद एवं समाथधयाूँ बनाना, उनको मष्स्जद बना लेना और सूकफ़यों के
द्वारा आप्रवटकृत और ररवाज ददए हुए मीलादों और तर क़ों आदद पर
अमल करने से इनकार करना था। तीसरा कारण : शैख़ लोर्ों को नेकी का
हुतम दे ते और उसे सख़्ती से लार्ू करते थे, किर जो अल्लाह तआला के
वाष्जब ककए हुए भले काम को अंजाम दे ने से इनकार करता, उसकी सख़्ती
से पकड करते और उसे छोड दे ने पर उसको दं ड ददया करते थे, लोर्ो को

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बुराइयों से रोकते और उनसे सावधान करते थे, हदें (धालमगक दं ड) जार
करते थे, लोर्ों से हक और सत्य को लाष्ज़म पकडने का आह्वान करते
और असत्य से डराते और सावधान करते थे। इसी से सत्य र्ाललब हुआ
और िैला और असत्य को मूँह
ु की खाना पडी और औंधे मूँह
ु थर्रना पडा।
लोर्ों का आचरण सुधर र्या और वे बाज़ारों, मष्स्जदों और अपनी सार
ददनचयागओं में सत्पंथ पर चलने लर्े।

उनके बीच से बबदअतों का नाम व तनशान लमि र्या, उनके िेत्रों से


लशकग का उन्मल
ू न हो र्या और बरु ाइयाूँ लमि सी र्ईं। बष्ल्क ष्जसने उनके
िेत्रों, उनकी ददनचयाग और हालात का कर ब से अवलोकन ककया, उसे नेक
पव
ू ज
ग ों और अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैदह व सल्लम-, सहाबार्ण
और श्रेटठतम शताष्ब्दयों में जीने वाले उनके अनुयाइयों एवं लशटयों की
धालमगक ष्स्थतत का स्मरण हो आया। उसने जार्ती आूँखों से दे खा कक
लोर्, उनके आचरण में ढल चक
ु े हैं, उनके पंथ के पथथक हो र्ए हैं, उन्ह ं
के रास्ते पर डि र्ए हैं, उसी को मज़बूत करने के प्रयास में लर्े हुए हैं और
उसी के ललए ष्जहाद कर रहे हैं। किर शैख़ और उनके बेिों एवं सहयोथर्यों
के दे हान्त के बहुत ददनों बाद, आखख़र समय में जब थोडा-सा पररवतगन आ
र्या, तो अल्लाह तआला के इस कथन के मत
ु ाबबक, तक
ु ी और लमस्री
हुकूमतों के उनपर आक्रमण की सूरत में, अल्लाह तआला की तरि से
उनकी आज़माइश और पर िा ल र्ई : "बेशक, अल्लाह तआला ककसी
क़ौम की हालत को नह ं सध
ु ारता,जब तक वे अपने आपको सुधारने की
चेटिा नह ं करते हैं"। [सरू ा अर-रअद, आयत संख्या : 11] हम दआ
ु करते हैं
कक अल्लाह तआला, इस्लाम के उन वीर पुरुषों को अल्लाह के रास्ते में
ष्जतने भी कटि पहुूँचे, उन सबको उनके र्न
ु ाहों का प्रायष्श्चत बना दे और
उनमें से जो हताहत हुए हैं, उनको बुलन्द और शहादत का दजाग प्रदान
करे , उनसे राज़ी और ख़श
ु हो जाए और उनपर कृपा करे । अल्लाह की

32
असीम कृपा से, उनका आह्वान आज भी क़ायम है और िल-िूल रहा है ।
सबको मालम
ू है कक लमस्री सैतनकों ने नज्द में िसाद मचाया, तनमगम
हत्याएं कीं और बष्स्तयों की बष्स्तयाूँ उजाड द ं, लेककन कुछ ह सालों बाद
ह वह लमशन किर से उठ खडा हुआ और िैलने लर्ा। उस घिना के केवल
पाूँच साल बाद, इमाम तुकी बबन अब्दल्
ु लाह बबन मुहम्मद बबन सऊद, उस
आह्वान का झंडा लेकर खडे हुए और नज्द और आसपास के छे त्रों में उसे
िैलाया। उलेमा, पूरे नज्द में िैल र्ए और नज्द और उसके र्ाूँवों और
शहरों में ष्जतने भी तक
ु ग और लमस्री डेरा जमाए हुए थे, सबको तनकाल
बाहर ककया। इस प्रकार, 1240 दहजर में नज्द में वह आह्वान दोबारा
िैल र्या।

जब ददरइय्या का प्रवध्वंस और सऊद वंश की हुकूमत का ख़ात्मा 1233


दहजर में हो र्या तो नज्द-वासी, 1234 से 1239 दहजर के कालखंड में,
यानी पूरे पाूँच साल तक अराजकता, दहंसा और कलह से त्रस्त रहे । किर
1240 दहजर में इमाम तुकी बबन अब्दल्
ु लाह बबन मुहम्मद बबन सऊद के
हाथों, नज्द के मुसलमान एकता के सूत्र में बंध र्ए और हक के दोबारा
र्ाललब आने का रास्ता साि हुआ। उलेमा ने ग्रामीण एवं शहर िेत्रों में पत्र
ललखे, लोर्ों को प्रोत्साहन ददया और अल्लाह के धमग की ओर लौि आने
का आह्वान ककया। इससे लमलस्रयों और उनके सहयोथर्यों के द्वारा थोपी
जाने वाल लंबी जंर्ों से उत्पन्न होने वाले आपसी कलहों से उन्हें छुिकारा
लमल र्या। इस तरह, उन जंर्ों के पररणामस्वरूप, घरे लू दहंसा और
आपसी कलहों की जो आर् उनके बीच भडक उठी थी, वह बझ
ु र्ई और
अल्लाह का धमग एक बार किर र्ाललब हो र्या। लोर् एक बार किर से
लशिा, मार्गदशगन और आह्वान के काम में जि
ु र्ए, यहाूँ तक कक सब कुछ
ठीक हो र्या, हालात सामान्य हो र्ए और लोर् किर से उसी पिर पर आ
र्ए ष्जसपर वे शैख़, उनके लशटयों, उनके बेिों और उनके मददर्ारों के

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ज़माने में चल रहे थे। अल्लाह तआला उन सभों से राज़ी हो और उनपर
दया करे ! 1240 दहजर से आज तक, अल-हम्द ु ललल्लाह, उसी आह्वान
का लमशन जार है । आज भी सऊद वंश के सदस्य एक-दस
ू रे का और शैख़
के वंशज तथा नज्द के उलेमा, एक-दस
ू रे का उत्तराथधकार बनते चले आ
रहे हैं। एक तरि, सऊद वंश के सदस्य शासन, अल्लाह की तरि आह्वान
और अल्लाह के रास्ते में ष्जहाद करने के मामले में एक-दस
ू रे का
उत्तराथधकार बन रहे हैं।

तो दस
ू र तरि उलेमा, अल्लाह की तरि आह्वान, उसकी ओर
मार्गदशगन और हक की तरि रहनुमाई के मामले में एक-दस
ू रे का
उत्तराथधकार बनकर काम कर रहे हैं। याद रहे कक इसके बाद भी दोनों
हरम, बहुत लंबी मुद्दत तक सऊद हुकूमत के आथधपत्य से अलर् रहे ।
किर 1343 दहजर में दोनों का सऊद हुकूमत में प्रवलय हो र्या। दोनों
हरमों (मतका और मद ना) पर इमाम अब्दल
ु अज़ीज़ बबन अब्दरगहमान
बबन िैसल बबन तुकी बबन अब्दल्
ु लाह बबन मुहम्मद बबन सऊद -उन सभों
पर अल्लाह की कृपा बनी रहे !- ने प्रवजय पताका िहरा ददया। उसके बाद
से अब तक दोनों हरम, अल्लाह की असीम कृपा से, सऊद हुकूमत के ह
अधीनस्थ चले आ रहे हैं।

समस्त प्रशंसा अल्लाह ह के ललए है और हम अल्लाह से प्राथगना करते


हैं कक वह सऊद वंश और शैख़ वंश की पीदढ़यों को सच्चे मार्ग पर क़ायम
रखे और इस मुल्क और दस
ू रे मुल्कों के तमाम मुष्स्लम उलेमा को भी
सच्चे मार्ग पर सदृ
ु ढ़ रखे, उन सभी को हर उस काम का सय
ु ोर् प्रदान करे
ष्जससे वह ख़ुश होता है , मुसलमान उलेमा चाहे जहाूँ भी हों, उनको सच्चे
रास्ते पर कायम रखे, उनके ज़ररए हक की सहायता करे , असत्य का सर
नीचा करे , दहदायत के आह्वानकताग चाहे जहाूँ के भी हों, उनको हर उस

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चीज़ को अदा करने का सुयोर् दे ष्जसे अल्लाह ने वाष्जब ककया है , हमें
और उनको सीधा मार्ग ददखाए, दोनों हरमों और उनसे जुडे सभी संस्थाओं
को हमेशा आबाद रखे, तमाम मुसलमान मुल्कों को दहदायत और सच्चे
धमग पर चलने, अल्लाह की ककताब और अपने नबी -सल्लल्लाहु अलैदह व
सल्लम- की सुन्नत का सम्मान करने का सुयोर् दे , हम सभों को क़ुरआन
और सुन्नत को सह तरह से समझने, उनको मज़बत
ू ी से थामे रहने,
उनकी राह में आने वाल हर मुष्श्कल का संयम और धैयग से सामना करने
और उन्ह ं को अपने जीवन के हर मामले में तनणागयक बनाने की शष्तत
और इच्छाशष्तत प्रदान करे , यहाूँ तक कक सब अपने रब से जा लमलें,
बेशक वह हर चीज़ पर तनयंत्रण रखने वाला और दआ
ु क़बल
ू करने में
सिम है । शैख़ के जीवन, उनके आह्वान, उनके समथगकों और उनके
प्रवरोथधयों पर जो व्याख्यान हम प्रस्तुत कर रहे थे और उनका जो पररचय
हम दे रहे थे, यह ं पर उसका अंत होता है । बेशक, केवल अल्लाह ह
मददर्ार है और उसीपर पूरा भरोसा है ।नेकी करने की शष्तत और बुराई से
बचने की ताक़त महान एवं सवगशष्ततमान अल्लाह की सहयाता के बबना
संभव नह ं है ।। अल्लाह तआला, अपने बंदे और रसूल, हमारे नबी और
इमाम मुहम्मद बबन अब्दल्
ु लाह पर अनहद दरूद एवं शांतत अवतररत करे
और उनके पररवारजनों पर, उनके सहाबबयों पर, हर उस व्यष्तत पर जो
उनके बताए हुए रास्ते पर चले और हर उस व्यष्तत पर जो उनके ददखाए
हुए मार्ग पर अग्रसर रहे , अपनी कृपा एवं दया की सदा बाररश करे ! और
सार प्रशंसाएं केवल उस अल्लाह के ललए ह हैं, जो तमाम जहानों का
पालनहार है ।

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