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Hi Imam Mohmed Ibn Abdalwhab2 PDF
Hi Imam Mohmed Ibn Abdalwhab2 PDF
लेखक :
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़
समस्त �शंसा उस अल्लाह के िलए है जो समस्त जहान� का
पालनहार है , और अल्लाह तआला क� असीम कृ पा एवं शांित
तथा बरकत अवत�रत हो उसके बंदे, रसूल और समस्त सृ��य�
म� सबसे उ�म, हमारे स्वामी एवं मागर्दशर्क मुहम्मद �बन
अब्दल्
ु लाह पर तथा उनके प�रवारजन�, सहा�बय� और उनके
�दखाए हुए पथ के पिथक� पर।
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और सत्य के रास्ते क� ओर बुलाने वाला व्य��, सुनने क� रूिच
एवं इच्छा रखता है , इसिलए म�ने सोचा �क आप सज्जन� के
सामने उनम� से एक महान व्य��त्व, एक महान समाजसुधारक
और एक अत्यंत स्वािभमानी आ�ानकतार् का जीवनवृ�ांत
�स्तुत करूँ। म� आज �कसी और नह�ं, ब�ल्क बारहवीं शताब्द�
�हजर� म� अरब �ाय��प के अंदर इस्लाम धमर् क� पुनजार्गरण
का बीड़ा उठाने वाले �कांड इस्लामी �व�ान इमाम मुहम्मद �बन
अब्दल ु वह्हाब �बन सुलमै ान �बन अली तमीमी हं बली ह� ।
अरब �ाय��प और उससे बाहर के लोग, �वशेष रूप से �व�ान,
�ित��त एवं �मुख लोग आपसे भली-भाँित प�रिचत ह� । आपके
जीवन तथा उपल�ब्धय� पर सं�क्ष� तथा �वस्तार रूप से बहुत
कुछ िलखा गया है । बहुत से लोग� ने आपपर अलग से �कताब�
िलखी ह� । �ाच्य �व�ा �वशारद� ने भी बहुत सार� �कताब� िलखी
ह� । बहुत सारे लेखक ऐसे भी ह� , �जन्ह�ने समाज-सुधारक� पर
�कताब� िलखीं और इितहास पर क़लम उठाया, तो आपके बारे
म� िलखा। ऐसे न्याय��य लोग भी बहुत बड़� संख्या म� मौजूद
ह� , जो आपको एक महान धमर्सध ु ारक, इस्लामी पुनजार्गरण के
ध्वजावाहक तथा अपने पालनहार के मागर्दशर्न पर चलने वाले
और उसके �काश से आलो�कत व्य��त्व के मािलक कहा है ।
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बहुत-से प� नक़ल �कए ह� और उनके शवर्श��मान एवं महान
अल्लाह क� पुस्तक क़ुरआन को समझने और उससे मसायल
िनकालने क� प�ित का भी वणर्न �कया है । ऐसे ह� महान
लेखक� म� से एक नाम शैख़ उसमान �बन �ब� का है , �जन्ह�ने
अपनी पुस्तक "उनवानुल मज्द" म� आपके आ�ान, जीवन, यु��
तथा �जहाद के बारे म� िलखा है । अरब �ाय��प के बाहर के
लोग� म� डॉक्टर अहमद अमीन का नाम भी शािमल है । इन्ह�ने
अपनी �कताब "जुअमाउल इस्लाह" म� आपके बारे म� िलखते
समय पूरा न्याय �कया है ।एक और नाम महान �व�ान मसऊद
आलम नदवी का है , �जन्ह�ने आपके बारे म� �दल खोलकर िलखा
और आपको मज़लूम समाजसुधारक का नाम �दया। इनके
अित�र� भी कई अन्य लोग� ने क़लम उठाई, �जनम� महान
�व�ान अमीर मुहम्मद �बन इसमाईल अस-सनआनी का नाम
शािमल है , जो शैख़ मुहम्मद �बन अब्दल
ु बह्हाब के समकालीन
और उनके आ�ान के �चारक भी थे। जब उनके पास शैख़ का
आ�ान पहुँचा था, तो बहुत �सन्न हुए थे और अल्लाह क�
�शंसा क� थी।
इसी तरह, "नैललु अवतार" नामी पुस्तक के लेखक तथा महान
�व�ान शैख़ मुहम्मद �बन अली अश-शौकानी ने भी आपके बारे
म� िलखा है और आपके दे हांत पर एक ज़बरदस्त शोक क�वता
भी िलखी है । इन �व�ान� के अलावा भी, बहुत सारे लेखक� और
�व�ान� ने आपके बारे म� बहुत कुछ िलखा है , �जससे
िलखने-पढ़ने क� रुिच रखने वाले लोग अवगत ह� । ले�कन चूँ�क
अब भी बहुत सारे लोग, आपके हालात, जीवन और आ�ान से
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अच्छ� तरह अवगत नह�ं ह� , इसिलए म�ने सोचा �क म� भी
आपके हालात, च�र�, आ�ान और सच्चे �यास� को बयान करने
म� अपनी भागीदार� दजर् करा दँ ू और इस महान �व�ान के बारे
म� अपनी जानकार� का कुछ अंश लोग� के सामने रख दँ ,ू ता�क
�जसके पास आपके बारे म� आधी-अधूर� मालूमात हो, उसे
वास्त�वकता का ज्ञान हो जाए और �जसे आपके च�र� तथा
आ�ान के बारे म� कोई संदेह हो, उसके संदेह का िनवारण हो
जाए। इमाम साहब का जन्म 1115 �हजर� म� हुआ। उनक� यह�
जन्म ितिथ मश्हूर है । एक मत यह भी है �क उनका जन्म 1111
�हजर� म� हुआ था, ले�कन 1115 �हजर� ह� �िस� है ।
उयैना नामी गाँव म�, जहाँ उनका जन्म हुआ था, अपने �पता से
िशक्षा �ा� क�। नज्द के यमामा �ांत का यह गाँव, �रयाज़ शहर
से उ�र-प��म क� �दशा म� स�र �कलोमीटर क� दरू � पर �स्थत
है । आप इसी गाँव म� पैदा हुए और बेहतर अंदाज़ म� परव�रश
पाई। छोट� आयुु ह� म� क़ुरआन कंठस्थ कर िलया और �फर
अपने �पता के पास पूर� मेहनत से पढ़ने लगे और धमर् का ज्ञान
अ�जर्त करने म� जुट गए। उनके �पताजी बहुत बड़े धमर्शा�ी,
क़�ावर �व�ान और उयैना नगर के शरई अदालत के क़ाज़ी थे।
जब जवान हुए तो हज �कया, हरम शर�फ़ के कुछे क उलेमा से
ज्ञान �ा� �कया और �फर वहाँ से मद�ना �स्थान कर गए। वहाँ
बहुत सारे उलेमा से मुलाक़ात क�, एक मु�त तक ठहरे भी और
उस समय के मद�ने के दो बहुत �वख्यात और बड़े उलेमा से
ज्ञानाजर्न �कया।उन दोन� म� से एक थे शैख़ अब्दल् ु लाह �बन
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इबराह�म �बन सैफ़ नज्द�, जो मूल रूप से अल-मजमआ के
िनवासी और "अल-अ़ज़बुल फ़ाइज़ फ़� इलिमल फ़राइज़" नामी
�कताब के लेखक शैख़ इबराह�म �बन अब्दल् ु लाह के �पता थे।
इमाम साहब ने मद�ने म� महान �व�ान शैख़ मुहम्मद ह़यात
िसंधी से भी ज्ञानाजर्न �कया था। यह� दोन� �व�ान इस बाबत
अिधक मश्हूर ह� �क उनसे इमाम साहब ने मद�ने म� ज्ञानाजर्न
�कया, ले�कन इस बात क� पूर� संभावना है �क उन्ह�ने और भी
�व�ान�, �जनको हम नह�ं जानते ह� , से िशक्षा �ा� क�
होगी।इमाम साहब ने ज्ञान �ा� करने के उ�े श्य से इराक़ का
भी सफ़र �कया। सबसे पहले इराक के शहर बसरा गए, वहाँ के
�व�ान� से मुलाक़ात क� और उनसे, अल्लाह ने �जतना सुयोग
�दया, ज्ञानाजर्न �कया। वहाँ इमाम साहब ने अल्लाह के
एके�रवाद का खुलकर आ�ान �कया, लोग� से सुन्नत पर
अमल करने का अनुरोध �कया और लेग� के सामने अच्छ� तरह
स्प� कर �दया �क समस्त मुसलमान� पर वा�जब है �क वे
अपना धमर्, अल्लाह क� �कताब और अल्लाह के रसूल
-सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- क� सुन्नत से �ा� कर� । इस
िसलिसले म� उनह�ने बसरा के उलेमा से बड़ा वाद-�ववाद और
तकर्-�वतकर् भी �कया। वहाँ उनके गुरूओं म� सबसे अिधक
ख्याित शैख़ मुहम्मद अल-मजमूई नामी एक व्य�� को �ा� है ।
चुनांचे उनपर बसरा के कुछ द� ु उलेमा भड़क उठे और उनको
तथा उनके गुरू को कई तरह का क� झेलना पड़ा। फलस्वरूप,
वहाँ से िनकल आए। वे सी�रया जाना चाह रहे थे, परन्तु पयार्�
सफ़र-खचर् ना होने के कारण, वहाँ नह�ं जा सके। इसिलए, बसरा
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से ज़ुबरै आ गए। �फर ज़ुबरै से अहसा चले आए और वहाँ के
उलेमा से मुलाक़ात� क�ं और इस्लाम के बहुत-से मूल िस�ांत�
पर �वचार� का आदान-�दान �कया।�फर उन्ह�ने हुरैमला का रुख
�कया। वैसे तो अल्लाह ह� सबसे अिधक जानता है , ले�कन हम�
लगता है �क यह बारहवीं शताब्द� क� पाँचली दहाई का ज़माना
रहा होगा। क्य��क इमाम साहब के �पता उयैना के क़ाज़ी थे।
उनका वहाँ के गवनर्र से कुछ �ववाद हो गया, तो वे 1139 �हजर�
म� हुरैमला आ गए और हमारे शैख़ मुहम्मद, अपने �पता से,
उनके 1139 �हजर� म� हुरैमला आने के बाद, वह�ं आकर िमले।
इस �हसाब से, इमाम साहब का हुरैमला म� आगमन 1140
�हजर� या उसके बाद हुआ होगा। उसके बाद शैख़, अपने �पता
के 1153 �हजर� म� दे हांत तक, हुरैमला ह� म� ठहरे रहे और
पढ़ने-पढ़ाने तथा आ�ान के कायर् म� व्यस्त रहे । �फर उन्ह�
हुरैमला के कुछ लोग� क� तरफ़ से �ताड़ना का सामना करना
पड़ा, ब�ल्क कुछ तुच्छ लोग� ने उनक� हत्या करने क� सा�ज़श
भी रची। कहा जाता है �क कुछ लोग� ने उन्ह� मारने के िलए
उनके घर क� द�वार फाँदकर अंदर आने का �यास �कया, ले�कन
इ��फ़ाक़ से कुछ लोग� को इसक� भनक लग गई, तो भाग खड़े
हुए। उसके बाद शैख़ (उनपर अल्लाह क� रहमत और कृ पा हो!),
उयैना चले गए।
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और इस तरह के अन्य तर�क� से लोग� को परे शान रखा करते
थे। इस तरह के लोग� को वहाँ "दास वगर्" कहा जाता था। जब
उनको मालूम हुआ �क शैख़ उनके �वरोधी ह� , उनके कुकम� से
संत�ु नह�ं ह� और शासक� को उन्ह� दं �डत करने पर उभारते ह� ,
तो शैख़ पर उनके �ोध का ज्वालामुखी फट पड़ा और उन्ह�ने
आपक� हत्या क� योजना तक बना ली। परन्तु, अल्लाह ने शैख़
क� सुरक्षा क� और उनके षड्यं� से आपको बचाया। �फर आप
उयैना चले आए। उस समय उसमान �बन नािसर �बन मामर,
उयैना के अमीर थे। शैख़ उनके पास पहुँचे, तो उन्ह�ने शैख़ का
भरपूर स्वागत करते हुए कहा �क आप अल्लाह क� तरफ लोग�
को बुलाने का शुभ कायर् करते रह� , हम आपके साथ ह� और
आपक� सहायता के िलए तत्पर रह� गे। अमीर उसमान ने शैख़
से भलाई और �ेम एवं स्नेह का इज़हार �कया और उनके िमशन
से सहमित जताई।
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बुिनयाद पथ��ता पर रखी गई है , अल्लाह इससे लोग� के
जुड़ाव को पसंद नह�ं करता और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु
अलै�ह व सल्लम- ने भी क़�� पर भवन के िनमार्ण और म�स्जद�
बनाने से मना �कया है । दस ू र� बात यह है �क इस गुंबद ने
लोग� को �फतने म� डाल रखा है , लोग� के अक़�दे म� �बगाड़ का
कारण बना हुआ है और इससे िशकर् पनप रहा है , इसिलए इसे
तोड़ना अिनवायर् हो जाता है । यह सुन अमीर ने कहा : इसम�
मेर� ओर से कोई बाधा नह�ं है ।इसपर शैख़ ने अपनी िचंता व्य�
करते हुए कहा �क मुझे इस बात का डर है �क कह�ं जुबल ै ा के
लोग भड़क न उठ� । जुबैला, ज़ैद �बन ख़�ाब -अल्लाह उनसे
राज़ी हो- क� क़� के कर�ब �स्थत एक गाँव का नाम था। यह
सुन, स्वयं अमीर उसमान 600 यो�ाओं को साथ लेकर उस
गुंबद को ढहाने के िलए िनकल पड़े । शैख़ भी उनके साथ थे।
जब यह लोग गुंबद के कर�ब पहुँचे और जुबल ै ा के िनवािसय�
को इसक� सूचना िमली, तो वे गुंबद क� रक्षा के िलए िनकल
आए। ले�कन जब उसमान और उनके सािथय� को दे खा, तो
आगे बढ़ने के बजाय उलटे पाँव वापस हो गए। उसके बाद शैख़
स्वयं आगे बढ़े , गुंबद को ढहाया और इस तरह अल्लाह आपके
हाथ से इस �फ़तने का अंत कर �दया। अब हम, शैख़ के मैदान
म� आने से पहले नज्द क� �स्थित, उनके मैदान म� आने के
कारण� तथा उनके आ�ान के संबंध म� थोड़�-सी बात करना
चाह� गे।शैख़ के आ�ान से पहले, नज्द वाले ऐसी अवस्था म�
पहुँच चुके थे �जसे कोई मोिमन पसंद नह�ं कर सकता था।
िशकर्-ए-अकबर (सबसे बड़ा िशकर्) पूर� तरह अपनी जड़� जमा
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चुका था। क़��, पेड़� और पत्थर� क� पूजा हो रह� थी। गुफाओं
क� पूजा हो रह� थी। हर उस व्य�� क� पूजा हो रह� थी जो
वली होने का दावेदार था, चाहे वह बावला ह� क्य� न हो।
अल्लाह के अलावा, ऐसे लोग� क� पूजा हो रह� थी, जो वली
होने के दावेदार थे, चाहे वे पागल और द�वाने ह� क्य� न ह�।
नज्द म� जादग ू र� और भ�वष्यवाणी करने वाले ओझाओं क�
चाँद� हो रह� थी। उनसे भ�वष्य के बारे म� पूछा जाता था और
उनक� बात� को सच माना जाता था और आम तौर पर उन्ह�
कोई रोकने-टोकने वाला भी नह�ं था। लोग दिु नया और दिु नया
के नशे म� मदमस्त थे। अल्लाह के िलए खड़े होने वाल� और
अल्लाह के धमर् के मददगार� क� संख्या ना के बराबर थी। यह�
हालत मक्का और मद�ने क� भी थी। यमन म� भी िशकर् का
बाज़ार गमर् था। वहाँ भी क़�� पर समािधयाँ बनाने और औिलया
को मुसीबत के समय पुकारने और उनसे फ़�रयाद करने का
चलन आम हो चुका था, मतलब यह �क यमन म� भी िशकर्
�विभन्न रूप� म� �चिलत था। रह� बात नज्द के �ांत� क�, तो
वहाँ क� हर क़�, हर गुफा, हर पेड़, हर पागल और हर द�वाने
को अल्लाह के साथ पूजा जा रहा था और उनसे फ़�रयाद क�
जा रह� थी। इतना ह� नह�ं, ब�ल्क वहाँ तो �जन्नात से भी दआ
ु एं
क� जाती थीं, उनसे फ़�रयाद क� जाती थी, उनके िलए बिल
चढ़ाई जाती थी और उनक� मदद हािसल करने और उनक� बुराई
के डर से घर� के अंदर �वशेष पूजास्थल बना िलए गए थे।जब
इमाम साहब ने िशकर् और लोग� म� उसके इस आम �चलन को
दे खा और दे खा �क उसपर कोई रोक-टोक करने वाला भी नह�ं
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है , तो वे कमर बाँधकर उठ खड़े हुए, आ�ान क� राह म� आने
वाली हर मुसीबत पर स� �कया और समझ गए �क इसके
�खलाफ �जहाद करना, स� और क� बदार्श्त करना आवश्यक
हो गया है । सबसे पहले वे उयैना म� लोग� को िशक्षा दे ने, उनक�
रहनुमाई और मागर्दशर्न करने म� जुट गए। इस मामले म�
उन्ह�ने उलेमा से िचट्ठ�-प�ी क� और मन म� यह आशा लेकर
उनसे वातार्लाप �कया �क वे उनके साथ अल्लाह के धमर् क�
मदद के िलए उठ खड़े ह�गे और िशकर् तथा अन्य कुधारणाओं
के �खलाफ जंग म� उनका साथ द� गे। इसका प�रणाम यह
िनकला �क नज्द, मक्का, मद�ना और यमन आ�द के बहुत सारे
उलेमा ने उनका साथ दे ने का वचन �दया और इस िमशन से
अपनी सहमित िलख भेजी, जब�क दस ू रे बहुत सारे उलेमा ने
उनका �वरोध �कया, उनके आ�ान पर दोषारोपण �कया, उनको
बुरा-भला कहा और उनसे दरू � बना ली। दरअसल इस तरह का
व्यवहार करने वाले दो �कार के लोग थे : एक, जा�हल और
ख़ुराफाती थे, जो अल्लाह के धमर् और उसके एकत्व को जानते
ह� नह�ं थे। और जानते भी थे, तो केवल उसी धमर् को जानते
थे, जो उनके बाप-दादाओं क� अज्ञानता, गुमराह�, िशकर्, �बदअत
और ख़ुराफ़ात पर आधा�रत था, जैसा �क अल्लाह तआला ने
इस �कार के लोग� के बारे म� स्प� रूप से कह �दया है :"(यह
लोग कहते ह� �क) बेशक हमने अपने पूवज र् � को एक र�ित पर
पाया है और हम उन्ह�ं के पदिच�� पर चल रहे ह� ।"सूरा
अज़-ज़ुख़रुफ़, आयत संख्या : 23जब�क दस ू रे �कार के लोग�
म� वह उलेमा शामिल थे, �जन्ह�ने केवल दश्ु मनी और ईष्यार् के
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कारण उनका �वरोध �कया, ता�क जन-समुदाय यह न कह सके
�क आ�ख़र तुमने हम� इन चीज़� पर क्य� नह�ं टोका?क्य� ऐसा
हुआ �क अब्दल ु वह्हाब का बेटा आया और सत्य का �चार
करने लगा, जब�क आिलम तो तुम भी थे, आ�ख़र तुमने हम�
असत्य से क्य� नह�ं रोका?यह� वह बात थी, �जसक� वजह से
उन्ह�ने इमाम साहब से ईष्यार् क�, जन-समुदाय से लाज खाई
और यहू�दय� के दिु नया को आ�ख़रत पर तरजीह दे ने क�
मनो�स्थित का अनुसरण करते हुए, शी� समा� हो जाने वाले
लाभ को द�घर्कालीन लाभ पर तरजीह द�।
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अमीर� और उलेमा को िच�ट्ठयाँ िलखकर अपने िमशन क�
जानकार� द� और तय कर िलया �क हालात जो भी ह� अपने
िमशन पर आगे बढ़ते ह� जाना है ।
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थी, ले�कन उनक� मान्यता के मुता�बक, वह उन्ह�ं क� क़� थी।
बहरहाल, उसमान ने, जैसा �क पहले बताया जा चुका है , शैख़
क� बात पर सहमित जताई और अल्लाह क� कृ पा से उस गुंबद
को ढहा �दया गया और अल्लाह का शु� है �क आज उसका
नाम व िनशान तक बाक़� नह�ं है । दे �खए, सच्ची नीयत, सच्चे
इरादे और हक़ क� मदद करने का िन�य लेकर उसे ढहाया गया
तो अल्लाह ने उसे हमेशा के िलए िमटा �दया। उस समय वहाँ
और भी कई क़�� थीं, �जनम� से एक के बारे म� कहा जाता था
�क वह �ज़रार �बन अज़वर क� क़� है । उसके ऊपर भी गुंबद
बना �दया गया था और उसको भी ढहा �दया गया। वहाँ कई
और �ज़यारतगाह� भी थीं, �जनको अल्लाह ने िमटा �दया। हद
तो यह थी �क वहाँ अल्लाह के अलावा गुफाओं और पेड़� तक
क� पूजा होती थी। उन सबको िमटा �दया गया, ख़त्म कर �दया
गया और लोग� को उनसे सावधान कर �दया गया।
तात्पयर् यह है �क शैख़ ने ज़ुबानी और व्यावहा�रक, दोन� तरह
से अपना िमशन जार� रखा, जैसा �क पहले भी बताया गया है ।
�फर एक �दन ऐसा हुआ �क एक औरत शैख़ के पास आई और
उनके सामने कई बार �ज़ना का इक़रार �कया। शैख़ ने पता
�कया �क कह�ं उसक� अक़्ल म� तो कोई दोष नह�ं है , तो पता
चला �क वह समझदार और सूझबूझ वाली है और उसे कोई
�दमागी बीमार� भी नह�ं है । जब उसने पुख़्ता इक़रार कर िलया,
अपने इक़रार पर जमी रह�, इस मामले म� कोई संदेह बाक़� न
रहा और यह भी स्प� हो गया वह ऐसा �कसी दबाव म� आकर
नह�ं कह रह� है , तो चूँ�क वह �ववा�हता थी, इसिलए शैख़ ने
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उसे संगसार कर �दए जाने का आदे श जार� कर �दया और वह
संगसार कर द� गई। उस समय शैख़, उयैना के क़ाज़ी थे। इस
घटना के बाद, शैख़ के �ारा गुंबद को ढहाए जाने, औरत को
संगसार �कए जाने, अल्लाह क� ओर लोग� को बुलाने और उयैना
क� ओर लोग� के �हजरत करके आने क� बात� चचार् का क�� बन
ग�।
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�ख़राज (लगान) बाक़� था, इसिलए उन्ह�ने उसके आदे श को
गंभीरता से िलया। उन्ह� इस बात का भय महसूस हुआ �क अगर
उसक� बात न मानी, तो कह�ं वह लगान न रोक ले या यु� पर
उतर न आए।
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यु� करने क� �स्थित म� ह� और ना ह� उसका �वरोध करने क�
हमारे अंदर क्षमता है ।
यह सुनकर शैख़ उसी व� उयैना से िनकलकर �दरइय्या क�
ओर चल पड़े । कहा जाता है �क आपने पूरा रास्ता पैदल तय
�कया था। उसमान ने आपके िलए सवार� तक का �बंध नह�ं
�कया था। सुबह पैदल िनकले और शाम को �दरइय्या पहुँचे।
�दरइय्या म� आप उस शहर के सबसे अच्छे इं सान� म� से एक
मुहम्मद �बन सुवैिलम उरै नी के यहाँ रुके। कहा जाता है �क वह
आदमी अपने घर म� आपके आने से बुर� तरह से भय�स्त हो
गया और उसके पाँव तले से ज़मीन �खसकने लगी। दरअसल
वह �दरइय्या के अमीर मुहम्मद �बन सऊद से डर रहा था।
ले�कन शैख़ ने उसक� ढारस बंधाई और उससे कहा:
तुम्ह� शुभ सूचना मुबारक हो। म� �जस चीज़ क� तरफ़ लोग� को
बुलाता हूँ, वह अल्लाह का धमर् है और अल्लाह उसे शी� ह�
ग़ािलब कर दे गा।
इसी बीच, मुहम्मद �बन सऊद को, मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब
के आगमन क� सूचना िमल गई। कहा जाता है �क यह सूचना
उनको उनक� प�ी ने ह� द� थी। हुआ यह �क उनक� प�ी के
पास अल्लाह का कोई नेक बंदा पहुँचा और मशवरा �दया �क
आप अपने पित को मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब के बारे म�
बताएँ, उनके आ�ान को मानने क� �ेरणा द� तथा उनके सहयोग
पर उभार� । मुहम्मद �बन सऊद क� प�ी, बहुत नेक और
सदाचार� म�हला थीं। जब उनके पास उनके पित यानी �दरइय्या
और उसके अधीनस्थ क्षे�� के अमीर मुहम्मद �बन सऊद आए,
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तो उन्ह�ने उनसे कहा �क इस महत्वपूणर् अवसर को हाथ से
जाने न द� !
यह बहुत बड़� नेमत है , जो अल्लाह ने आपके �ार तक पहुँचा
द� है । एक बड़ा आ�ानकतार् आपक� �तीक्षा म� है , जो अल्लाह
के धमर् क� ओर बुलाता है , अल्लाह क� �कताब क� ओर बुलाता
है और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- क�
सुन्नत क� ओर बुलाता है । क्या ह� �े� वरदान है यह!
उसे �हण करने म� जल्द� �दखाएँ और उसक� मदद करने म� दे र
न कर� । अमीर ने उनका सुझाव क़बूल कर िलया। अब उनके
मन म� केवल इतनी द�ु वधा थी �क वह शैख़ से ख़ुद जाकर िमल�
या उन्ह� अपने पास बुला ल�।
ले�कन उन्ह� मशवरा �दया गया, जब�क कुछ लोग� के अनुसार
उनक� प�ी ह� ने कुछ सदाचार� व्य��य� के साथ िमलकर
मशवरा �दया था �क उन्ह� बुला भेजना उिचत नह�ं होगा। अच्छा
यह होगा �क आप स्वयं उनके पास जाएँ और ज्ञान, ज्ञानवान
और भलाई क� ओर बुलाने वाले के �ित सम्मान का प�रचय
द� । चूँ�क अल्लाह ने मुहम्मद �बन सऊद के िलए सौभाग्य और
भलाई िलख द� थी, इसिलए उन्ह�ने लोग� के परामशर् को �हण
कर िलया। वह शैख़ से िमलने स्वयं मुहम्मद �बन सुलम ै के घर
क� ओर चल पड़े , वहाँ जाकर शैख़ को सलाम �कया, उनसे
बात-चीत क� और कहा : शैख़ महम्मद! मेर� तरफ से मदद,
शांित और सहायता का शुभ संदेश क़बूल कर� । इसपर शैख़ ने
उससे कहा :
और आप भी मदद, आिधपत्य और अच्छे प�रणाम का शुभ
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संदेश �हण कर ल�। यह अल्लाह का धमर् है । जो भी इसक�
मदद करे गा, अल्लाह उसक� मदद करे गा। जो भी इसको समथर्न
दे गा, अल्लाह उसको अपना समथर्न दे गा और आप इसके
लक्षण� का शी� ह� अनुभव कर ल�गे।
मुहम्मद �बन सऊद ने कहा : हे शैख़! म� आपके हाथ पर
अल्लाह और उसके रसूल के धमर् और अल्लाह के रास्ते म�
�जहाद करने क� बैअत करना चाहता हूँ, मगर मुझे डर है �क
हम आपका समथर्न और आपक� मदद कर� और जब अल्लाह
आपको इस्लाम के दश्ु मन� पर �वजय �दान करे , तो कह�ं आप
हमारे राज्य के अलावा, कोई दस ू रा राज्य तलाश कर वहाँ न
चले जाएँ।
शैख़ ने कहा : ऐसा नह�ं हो सकता। म� आपसे इस बात पर
बैअत नह�ं करूँगा। म� आपसे इस बात पर बैअत करूँगा �क ख़ून
के बदले म� ख़ून और �वध्वंस के बदले म� �वध्वंस है । म� आपका
राज्य छोड़कर कह�ं भी और कभी भी नह�ं जाऊँगा। �फर शैख़
ने उनसे एक दस ू रे क� मदद करने, राज्य छोड़कर कह�ं न जाने,
अमीर के साथ रहकर हमेशा उनक� मदद करने और उनके साथ
िमलकर अल्लाह के रास्ते म� �जहाद करने, यहाँ तक �क
अल्लाह के धमर् का अिधपत्य िस� हो जाए, क� बैअत क�।
इन्ह�ं �बंदओ
ु ं पर बैअत समा� हुई और उसके बाद लोग उयैना,
इरक़ा, मनफूहा, �रयाज़ और इनके अलावा आसपास के अन्य
क्षे�� से िगरोह� और टोिलय� म� �दरइय्या आने लगे। कहना
चा�हए �क �दरइय्या, �वास-स्थल बन गया जहाँ लोग हर जगह
से �हजरत करके आते जा रहे थे। लोग� ने एक-दस ू रे क� ज़बानी
19
शैख़ के हालात, �दरइय्या म� उनके �ारा �स्तुत �कए गए
धािमर्क पाठ�, आ�ान� और मागर्दशर्न के बारे म� सुना, तो लोग
िगरोह� म� भी और अकेले भी चलकर आपके पास पहुँच गए।
इस तरह शैख़, �दरइय्या म� सम्मािनत, समिथर्त, ��य और
�वजयी बनकर रहने लगे। वह�ं उन्ह�ने लोग� को आस्था, प�व�
क़ुरआन और उसक� व्याख्या,�फ़क़्ह (इस्लामी धमर्शा�), हद�स,
उसूल-ए-हद�स, अरबी भाषा एवं सा�हत्य, इितहास और इनके
अलावा कई दस ू रे लाभदायक ज्ञान� से संबंिधत पाठ �स्तुत
�कए।
20
िमशन से अवगत कराया। इसी �कार, अरब से बाहर के दे श�
जैसे िम�, सी�रया, इराक, भारत और यमन आ�द के उलेमा को
प� िलखे और अपने आ�ान क� जानकार� द�। आप लगातार,
लोग� को प� िलखते और तकर् स्था�पत करते रहे तथा उन्ह� याद
�दलाते रहे �क �कस तरह से अिधकांश लोग िशकर् और �बदअत
के च�व्यूह म� फँसकर रह गए ह� । ले�कन इसका मतलब यह
नह�ं है �क उस समय धमर् के मददगार बाक़� नह�ं रह गए थे।
िन��त रूप से धमर् क� सहायता म� खड़े होने वाले लोग मौजूद
थे। क्य��क अल्लाह ने इस धमर् के बारे म� यह गारं ट� ली है �क
क़यामत तक हमेशा उसके मददगार मौजूद रह� गे और जैसा �क
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- ने फ़रमाया है
�क इस उम्मत का एक िगरोह हमेशा सत्य पर जमा रहे गा और
उसे अल्लाह क� सहायता �ा� रहे गी, ले�कन यहाँ बात नज्द क�
हो रह� है । नज्द के अंदर उस समय इस क़दर बुराई, फ़साद,
िशकर् और अंध�व�ास फैल गया था �क उसका �हसाब अल्लाह
के िसवा �कसी के पास नह�ं है । हालाँ�क वहाँ कुछ अच्छे उलेमा
भी मौजूद थे, ले�कन उनके भागय म� यह नह�ं िलखा था �क
आ�ान क� बीड़ा उठाते और उसक� �ज़म्मवार� अपने कंध� पर
लेते।
यमन और उसके अित�र� दस ू रे दे श� म� भी, सत्य क� ओर
बुलाने वाले और उसके मददगार मौजूद थे, जो उस िशकर् और
उन अंध�व�ास� को अच्छ� तरह पहचानते थे, ले�कन अल्लाह
तआला ने उनके आ�ान के भाग्य म� वह सफलता नह�ं िलखी
थी, जो शैख़ मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब के आ�ान के िलए
21
कुछ कारण� से मुक़�र कर द� थी। उनम� से एक कारण यह था
�क शैख़ के अलावा, दस ू रे आ�ानकतार्ओं को सहायक एवं
मददगार उपलब्ध नह�ं हो सके। दस ू रा कारण यह था �क दसू रे
आ�ानकतार्, धैयर् नह�ं रख सके और अल्लाह के रास्ते म� क�
सहन नह�ं कर सके।
22
�फर इस अंितम ज़माने म�, शैख़ क� पुस्तक� एवं पु�स्तकाएं,
उनके बेट�, पोत�, सहयोिगय� और अरब तथा अरब से बाहर के
उनके समथर्क मु�स्लम उलेमा क� �कताब� �कािशत हो ग�। इसी
�कार, शैख़ के आ�ान, जीवन और उनके समथर्क� के
जीवनच�र� पर िलखी गई �कताब� भी �कािशत हो ग�, �जससे
अिधकांश �ांत� और मुल्क� म� उनके आ�ान क� ख्याित फैल
गई। ले�कन जैसा �क अल्लाह तआला ने फ़रमाया है , दिु नया म�
हर नेमत (अनु�ह) से जलन रखने वाले और हर आ�ानकतार्
के श�ु हुआ करते ह� :
"और (हे नबी)! इसी �कार हमने मनुष्य� और �जन्न� म� से
शैतान� को �त्येक नबी का श�ु बनाया, जो िचकनी-चुपड़� बात
एक-दस ू रे के मन म� डालकर धोखा दे ते थे। य�द आपका रब
चाहता तो वे ऐसा न कर सकते थे। तो आप उन्ह� और उनके
िमथ्यारोपण को छोड़ द� ।"
सूरा अल-अनआम, आयत संख्या : 112
इसिलए, जब शैख़ ने अपने आ�ान के मामले म� ख्याित �ा�
कर ली, बहुत सार� तकर्यु� पुस्तक� और पु�स्तकाएं िलखकर
लोग� म� फैला द�ं और उलेमा ने भी प�ाचार के माध्यम से उनसे
अपने �वचार� का आदान-�दान �कया, तो उनसे ईष्यार् करने
वाल� और �वरोिधय� के बहुत सारे िगरोह और दस ू रे �कार के
भी बहुत सारे दश्ु मन पैदा हो गए।
उनके दश्ु मन दो �कार के थे : एक �कार के दश्ु मन, वह लोग
थे �जन्ह�ने ज्ञान और धमर् के नाम पर उनसे दश्ु मनी क� और
दसू रे �कार के श�ु वह लोग थे, �जन्ह�ने राजनीित के नाम पर
23
उनसे दश्ु मनी क�, ले�कन उन्ह�ने भी ज्ञान और धमर् क� आड़
ले रखी थी। इन लोग� ने ऐसे उलेमा क� दश्ु मनी का लाभ
उठाया, जो खुलकर शैख़ से अपनी दश्ु मनी का इज़हार करते,
उन्ह� गुमराह मानते और उनके आ�ान पर सौ तरह के आरोप
मढ़ते थे। इन सब के बावजूद, शैख़ अपने आ�ान का िमशन
जार� रखे हुए थे, िनरं तर शंकाओं का िनवारण करते जाते थे,
स्प� तकर् �दए जा रहे थे और अल्लाह क� �कताब तथा उसके
रसूल -सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- क� सुन्नत क� रोशनी म�
लोग� का हक�कत� क� तरफ मागर्दशर्न �क जा रहे थे। शैख़ के
�वरोधी उनके बारे म� कभी कहते थे �क वे ख़ा�रजी ह� , कभी
कहते थे �क वे इजमा का हनन करते ह� और मुजत�हद-ए-
मुतलक़ होने का दावा करते ह� तथा पूवव र् त� उलेमा और फ़क़�ह�
(इस्लाम के धमर्शा��य�) क� मयार्दा क� ज़रा भी परवाह नह�ं
करते और कभी इनके अलावा भी कई अन्य लांछन लगाया
करते थे। दरअसल यह सब उनम� से एक ऐसा िगरोह कर रहा
था, �जसके पास ज्ञान का अभाव था।
24
इस तरह दे खा जाए, तो दरअसल आपके �वरोधी तीन �कार के
थे : ऐसे भटके हुए उलेमा, जो सत्य को असत्य और असत्य
को सत्य समझते थे और �जनका यह मानना था �क क़�� पर
भवन िनमार्ण करना, उनपर म�स्जद� बनाना, अल्लाह को
छोड़कर क़�� से दआ ु माँगना, उनसे फ़�रयाद करना और इन
जैसी दस ू र� चीज़�, पूणत
र् या धमर् और �हदायत ह� । इनका �व�ास
था �क इन बात� का �वरोध करने वाला सदाचार� पूवज र् � एवं
औिलया (अल्लाह के ��य बंद�) से घृणा करता है । इसिलए, वह
हमारा दश्ु मन है और उससे �जहाद करना अिनवायर् है ।
दसू रे �कार के �वरोिधय� म� ऐसे �व�ान लोग शािमल थे, जो
इस आदमी (शैख़ मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब) क� हक�कत को
पहचान नह�ं सके और उस हक को भी नह�ं पहचान सके
�जसक� तरफ, वे लोग� को बुला रहे थे। इन लोग� ने दस ू र� का
अंधा अनुसरण �कया और झूठे आरोप लगाने वाल� एवं गुमराह
करने वाल� क� तरफ से शैख़ के बारे म� जो कुछ कहा गया था,
उसपर आँख बंद करके यक़�न कर िलया। ये समझते थे �क शैख़
के संबंध म� औिलया और न�बय� से घृणा तथा दश्ु मनी और
उनक� करामात (क�रश्म�) का इनकार करने जैसे बात�, जो वे
कर रहे ह� , सह� ह� । इसिलए, इन्ह�ने शैख़ क� िनंदा क�, उनके
आ�ान पर दोषारोपण �कया और लोग� को उनसे दरू करने का
पूरा �यास �कया।
25
से भयभीत होकर इन्ह�ने शैख़ से दश्ु मनी क�, ता�क इस्लामी
आ�ान के मददगार� के हाथ उनक� गदर् न� तक न पहुँच सक�,
उनके क��� का सफाया न हो जाए और वे उनके नगर� पर
आिधपत्य ना जमा ल�। याद रहे �क शैख़ और उनके �वरोिधय�
के बीच वाक्य-यु� भी जार� रहा। शैख़ उन्ह� प� िलखकर अपनी
बात रखते और वे शैख़ को प� िलखकर आपपर आ�मण करते।
�फर आप उनका खंडन करते और वे आपका खंडन करते। यह
िसलिसला आपके बेट�, पोत� और समथर्क� तथा आ�ान के
�वरोिधय� के बीच भी जार� रहा, �जसके कारण प�� तथा खंडन
पर आधा�रत पु�स्तकाओं का बहुत बड़ा ज़ख़ीरा एक� हो
गया।बाद म� उन प��, फ़तव� और खंडन पर आधा�रत
पु�स्तकाओं को संकिलत �कया गया, तो कई खंड तैयार हो गए,
�जनम� से अिधकांश, अल-हम्द ु िलल्लाह, छप गए ह� । शैख़ ने
आ�ान और �जहाद जार� रखा और �दरइय्या के अमीर एवं
सऊद वंश (आल-ए-सऊद) के संस्थापक मुहम्मद �बन सऊद ने
इसम� शैख़ क� भरपूर मदद क�। �जहाद का झंडा सन 1158
ईस्वी से बुलन्द �कया गया। �जहाद तलवार के �ारा भी �कया
जा रहा था और वाक्य और �माण के �ारा भी। �जहाद के
साथ-साथ आ�ान का कायर् भी जार� रहा। यह बात सबको
मालूम है �क अल्लाह क� तरफ बुलाने वाले इनसान के पास
अगर ऐसी कोई ताकत ना हो, जो हक क� मदद करे और उसको
लागू कर सके, तो उसके आ�ान का िचराग शी� ह� बुझ जाता
है , उसक� ख्याित बहुत जल्द धूिमल हो जाती है और उसके
मदद के िलए भी बहुत कम लोग खड़े हो पाते ह� । दस ू र� तरफ़,
26
यह बात भी सबको मालूम है �क आ�ान के �चार-�सार म�,
�वरोिधय� को जड़ से उखाड़ फ�कने म�, सत्य क� सहायता करने
और असत्य का �क़ला ढहाने म�, श�� क� बड़� महत्वपूणर्
भूिमका रहती है । अल्लाह तआला ने सच ह� कहा है और वह
अपने हर कथन म� सच्चा है भी :"िनःसंदेह, हमने अपने रसूल�
को खुले �माण� के साथ भेजा है , तथा उनके साथ पुस्तक तथा
तराज़ू (न्याियक सं�वधान) उतारा है , ता�क लोग न्याय पर
�स्थत रह� , तथा हमने लोहा उतारा �जसम� बड़ा बल है , तथा
लोग� के िलए बहुत-से लाभ ह� । और ता�क अल्लाह जान ले �क
�बना दे खे कौन उसक� तथा उसके रसूल� क� सहायता करता है ।
वस्तुतः, अल्लाह अित श��शाली, �भावशाली है ।"सूरा
अल-हद�द, आयत संख्या : 25इस आयत म� अल्लाह तआला ने
स्प� कर �दया है �क उसने रसूल� को स्प� एवं ज्योितमर्य
दलील� और तक� के साथ भेजा, �जनके �ारा अल्लाह ने हक
को �कट �कया और असत्य का �वनाश �कया। उसने रसूल� के
साथ ऐसी �कताब� भेजीं, �जनम� हर चीज़ का स्प� �ववरण,
मागर्दशर्न और स्प�ीकरण है । उनके साथ अल्लाह तआला ने
तराज़ू, अथार्त वह न्याियक सं�वधान भेजा �जसके �ारा पी�ड़त
को अत्याचार� से न्याय �दलाया जाए, हक स्था�पत �कया जाए,
�हदायत का �वस्तार हो और लोग� को उसी के आलोक म� उनका
हक और इं साफ़ �दलाया जा सके। अल्लाह तआला ने उसी के
साथ लोहा भी उतारा, �जसम� बड़� ताकत और क्षमता है ,
चेतावनी और सावधान करने का सामान है , उसके िलए जो हक
और सत्य का �वरोध करे । इसिलए, �जसपर तकर् स्था�पत करने
27
का लाभ न हो और �जसपर दलील �भावी न हो, उसको लोहा
ह� कूट कर सीधा कर सकता है ।
28
रसूल के कथन� क� व्याख्या का काम चलता रहा, अल्लाह के
धमर् क� ओर बुलाने का कायर् �गित पर रहा और अल्लाह के
रसूल -सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- के �ारा स्था�पत �कए गए
�वधान� का मागर्दशर्न बराबर जार� रहा, यहाँ तक �क लोग� ने
पूणर् अनुसरण क� �ितब�ता को स्वीकारा, अल्लाह के धमर् म�
��व� हो गए, उनके आस-पास जो क़�� पर बने गुंबद थे उनको
तोड़ �दया, उनक� जो म�स्जद� क़�� पर बनी हुई थीं उनको ढहा
�दया, धमर् को िनणार्यक मान िलया और उसका पालन करने
लगे, अपने पूवज र् � क� व्यथर् मान्यताओं और �वधान� को
िनणार्यक मानना छोड़ �दया और हक क� ओर पलट आए।
इसका प�रणाम यह सामने आया �क म�स्जद� नमाज़� और
ज्ञान-मंडिलय� से आबाद हो ग�, ज़कात अदा क� जाने लगी,
लोग� ने रमज़ान के रोज़े उसी प�ित से रखने शुरू कर �दए,
जो उन्ह� अल्लाह ने बताई है , पुण्यकमर् करने का आदे श �दया
जाने लगा, कुकम� से रोका जाने लगा और बाज़ार�, ब�स्तय�,
रास्त� एवं दे हात� म� शांित ह� शांित स्था�पत हो गई। बदवी लोग
भी अपनी औक़ात म� आ गए। उन्ह�ने अल्लाह के धमर् म� ��व�
होकर, हक को क़बूल कर िलया। शैख़ ने उनम� अपने आ�ान
को खूब फैलाया और जंगली एवं दे हाती क्षे�� म� अपने
आ�ानकतार्ओं और मागर्दशर्न कराने वाल� को भेजा। उसी �कार,
शहर� और गाँव� म� भी िशक्षा दे ने वाले, मागर्दशर्न कराने वाले
और क़ाज़ी भेजे गए, �जससे सम्पूणर् नज्द म� इस महान भलाई
और रौशन �हदायत क� �करण� फैल ग�, हक छा गया और
अल्लाह का धमर् गािलब आ गया।
29
शैख़ -उनपर अल्लाह क� रहमत हो- के दे हांत के बाद उनके
बेट�, पोत�, िशष्य� और सहायक� ने उनके आ�ान और �जहाद
का िमशन जार� रखा। इस सूची म� उनके बेट� म�, अब्दल् ु लाह
�बन मुहम्मद, हुसन ै �बन मुहम्मद, अली �बन मुहम्मद और
इबराह�म �बन मुहम्मद का नाम, और उनके पोत� म�
अब्दरु र् हमान �बन हसन, अली �बन हुसन ै और सुलम ै ान �बन
अब्दल्ु लाह �बन मुहम्मद का नाम सबसे ऊपर है और �फर दस ू रे
लोग� का नाम आता है । अल्लाह तआला, उन सभ� पर अपनी
दया और कृ पा क� वषार् करे !उनके िशष्य� म� से शैख हम्द �बन
नािसर �बन मामर ने और �दरइय्या के उलेमा के एक बड़े समूह
आ�द ने भी शैख़ के आ�ान, �जहाद, अल्लाह के धमर् को �वस्तार
दे ने और प�ाचार जार� रखने एवं पुस्तक� िलखने तथा धमर् के
दश्ु मन� के साथ �जहाद करने का िमशन जार� रखा। इन
आ�ानकतार्ओं और उनके �वरोिधय� के बीच �ववाद केवल इतना
ह� था �क इन्ह�ने, लोग� को अल्लाह के एक होने, अल्लाह के
िलए अपनी तमाम इबादत� को खास कर दे ने और उसी पर डटे
रहने, क़�� पर बनी म�स्जद� और गुंबद� को तोड़ डालने,
अल्लाह क� �दान क� हुई शर�यत को िनणार्यक मानने और उसी
पर डटे रहने, पुण्यकमर् करने और बुराइय� से दरू रहने और
धािमर्क दं ड-सं�हता को लागू करने क� ओर बुलाया। उनके और
लोग� के बीच मतभेद के यह� कुछ िगने-चुने कारण थे।सारांश
यह है �क उन्ह�ने एके�रवाद क� तरफ़ लोग� का मागर्दशर्न
�कया, उनको इसी का आदे श �दया, अल्लाह के साथ िशकर् करने
और िशकर् क� ओर ले जाने वाले साधन� से सावधान �कया और
30
इस्लामी शर�यत का पाबंद बनाया। �फर भी �जन्ह�ने इनकार
�कया और आ�ान, स्प�ीकरण और तकर् िस� कर दे ने के
बावजूद, िशकर् करने पर अड़े रहे , उनसे केवल अल्लाह के िलए
�जहाद �कया, ता�क जो �माण और दलील से मान जाए उसे
�माण और दलील से अल्लाह का आज्ञाकार� बना िलया जाए
और जो उससे न माने उसे ताक़त के बल पर अल्लाह के सामने
झुकाया जाए। इसी तरह उन्ह�ने लोग� को �बदअत और
अंध�व�ास� से डराया, �जनपर अल्लाह ने कोई दलील नह�ं
उतार� है , जैसे क़�� पर भवन और गुंबद बनाना, अल्लाह के
अलावा अन्य श��य� को िनणर्यकार� मानना, जादग ू र� और
भ�वष्यवाणी से अपने भ�वष्य के बारे म� पूछना और उनको सच
मानना आ�द। अल्लाह ताला ने शैख़ और उनके सहयोिगय� के
हाथ� से इन सब बुराइय� को िमटा �दया। अल्लाह तआला उन
सभ� पर अपनी दया और कृ पा क� बा�रश करे !म�स्जद� महान
�कताब क़ुरआन, प�व� सुन्नत, इस्लामी इितहास और
लाभदायक अरबी उलूम के पठन-पाठन से आबाद हो ग�। लोग
धमर्-संबंधी वातार्लाप, ज्ञान, �हदायत, आ�ान और मागर्दशर्न
तथा कृ �ष एवं दस्ताकर� आ�द दिु नया से संबंिधत काय� म� लीन
हो गए। अब हर तरफ़ ज्ञान, कमर्, आ�ान और मागर्दशर्न क�
चचार् थी। धमर् भी था और कमर् भी। आदमी सीखने और िसखाने
का काम भी कर रहा है और साथ ह� खेत-खिलयान भी संभाल
रहा है , दस्तकार� भी कर रहा है और व्यापार भी दे ख रहा है ।
धमर् तथा कमर् के बीच उ�म समन्वय बन गया है । वे अल्लाह
क� तरफ बुलाने वाले और उसके रास्ते का राह� भी ह� , ले�कन
31
साथ ह� अपने क्षे�� म� नाना �कार के लाभदायक काम� म�
व्यस्त रहकर इतना कमा ले रहे ह� , जो उन्ह� बाहर के �ांत� म�
जाने से िनस्पृह �कए दे ते ह� ।जब ये आ�ानकतार् और सऊद वंश,
नज्द म� अपने िमशन को सफलतापूवक र् संपन्न कर चुके, तो
उसका दायरा मक्का, मद�ना और अरब �ाय��प के द�क्षणी
�ांत� तक बढ़ा �दया। उन्ह�ने पहले भी मक्का और मद�ना के
उलेमा से प�ाचार �कया था और अब भी �कया, ले�कन जब
आ�ान को सफलता नह�ं िमली और मक्का और मद�ने के वासी,
क़�� पर बने गुंबद� का सम्मान करने, उन जगह� म� िशकर् करने
और क़� वाल� से अपनी मुराद� माँगने से बाज़ नह�ं आए, तो
इमाम सऊद �बन अब्दल ु अज़ीज़ �बन मुहम्मद ने, शैख़ के
दे हांत के ग्यारह साल बाद, �हजाज़ का रुख़ �कया। इस �म म�,
पहले ताइफ़ वाल� से संघषर् �कया और �फर मक्का वाल� क�
तरफ बढ़े । वैसे इमाम सऊद से पहले ह�, उसमान �बन
अब्दरु र् हमान मुज़ायफ़� ताइफ़ पहुँच चुके थे और नज्द एवं दस ू रे
�ांत� के लोग� पर आधा�रत उस बेहद श��शाली सैन्यबल के
साथ ताइफ़ वाल� का मुक़ाबला कर रहे थे, �जसे �दरइय्या के
अमीर इमाम सऊद �बन अब्दल ु अज़ीज़ �बन मुहम्मद ने उनक�
मदद के िलए भेजा था। मुज़ायफ़� ने ताइफ़ पर चढ़ाई करके
उसपर क़ब्ज़ा कर िलया और िम� के शर�फ़ क� ओर से िनयु�
अमीर� को वहाँ से िनकाल बाहर �कया। वहाँ उन्ह�ने लोग� को
अल्लाह क� तरफ़ बुलाने और हक क� तरफ मागर्दशर्न करने का
कायर् बहुत मेहनत से �कया और वहाँ के लोग� को िशकर् और
अब्दल् ु लाह �बन अब्बास आ�द, �जनको ताइफ़ के अज्ञान और
32
�ववेकह�न लोग पूजते थे, क� पूजा करने से मना �कया। उसके
बाद, अमीर सऊद ने अपने �पता अब्दल ु अज़ीज़ के आदे श पर,
�हजाज़ का रुख़ �कया और मक्का को चार� ओर घेर िलया।जब
मक्का के शर�फ को यक़�न हो चला �क अब आत्मसमपर्ण करने
या भाग जाने के अित�र� कोई दस ू रा रास्ता नह�ं बचा है , तो
�ज�ा क� ओर भाग गया और इमाम सऊद एवं उनके मु�स्लम
सािथय� ने �बना �कसी यु� के, िशिनवार 8 मुहरर् म 1218 �हजर�
को सुबह के समय मक्का पर क़ब्ज़ा कर िलया। �फर वहाँ
खुलकर अल्लाह क� तरफ बुलाने का कायर् शुरू कर �दया, उन
सभी गुंबद� को ध्वस्त कर �दया जो ख़द�जा -र�ज़यल्लाहु
अनहा- और उनके िसवा अन्य लोग� क� क़�� पर बने हुए थे,
एके�रवाद क� तरफ खुलकर बुलाना शुरू कर �दया, धमर् क�
िशक्षा दे ने के िलए बड़े -बड़े उलेमा, मागर्दशर्क और शर�यत के
अनुसार िनणर्य करने वाले क़ाज़ी िनयु� कर �दए। �फर, उसके
कुछ ह� �दन� बाद, मद�ने पर भी �वजय �ा� कर िलया।मद�ने
पर सऊद वंश का क़ब्ज़ा 1220 �हजर� म�, मक्का �वजय के कोई
दो साल बाद हुआ और इसके बाद दोन� हरम उनके के
अधीनस्थ हो गए। वहाँ उन्ह�ने सह� मागर्दशर्न करने वाले उलेमा
िनयु� �कए, पूरे मुल्क म� न्याय और इस्लामी शर�यत लागू क�,
वहाँ के आम िनवािसय� और �वशेष रुप से िनधर्न� तथा
ज़रूरतमंद� को धन �दान �कए, लोग� के साथ भलाई का
मामला �कया, उन्ह� अल्लाह क� �कतबा िसखाया, भलाई का
मागर् बताया, उलेमा को सम्मान �दया और उनको िशक्षा एवं
मागर्दशर्न पर �ोत्सा�हत �कया। इस तरह, 1226 �हजर� तक
33
दोन� हरम सऊद वंश क� हुकूमत के अधीन रहे ।�फर बहुत सारे
कारण� से, �जनम� से कुछे क का उल्लेख पहले हो चुका है , सऊद
वंश से जंग करने और उनको मक्का और मद�ने से िनकाल
बाहर करने के उ�े श्य से तुक� और िम� के सैन्यबल �हजाज़
का रुख करने लगे।दरअसल इस आ�मण के कारण यह थे �क
शैख़ और उनके अ�ान के दश्ु मन�, उनसे ईष्यार् रखने वाल�,
�ववेकह�न तथा अंध�व�ास से �स्त लोग� और कुछे क
राजनेताओं ने, जो इस बात से भयभीय थे �क कह�ं उनके क���
का सफाया न हो जाए और उनक� अिभलाषाओं क� दिु नया
�बखर न जाए, शैख़ और उनके अनुयाइय� और सहयोिगय� पर
झूठे आरोप लगाए और कहा �क वे अल्लाह के रसूल -स्ल्लल्लाहु
अलै�ह व सल्लम- और औिलया से घृणा करते ह� , उनक�
करामात (चमत्कार�) का इनकार करते ह� और उनके बारे म�
ऐसी-ऐसी बात� कहते ह� , �जनसे, उनके कथनानुसार रसूल� क�
मानहािन होती है । �फर, इनके झूठे आरोप� को कुछ अज्ञािनय�
और अवसरवाद� �क़स्म के लोग� ने सच मान िलया और इसे
सऊद वंश और शैख़ के अनुयाइय� को नुक़सान पहुँचाने, उनसे
�जहाद करने और तुक� और िमि�य� को उनसे जंग करने पर
आमादा करने का बहाना बना िलया। प�रणामस्वरूप, अनिगनत
�फ़तन� और लड़ाइय� ने सर उठाया और 1226 �हजर� से 1233
�हजर� के बीच, नज्द और �हजाज़ म�, सऊद वंश और तुकर्,
िम�ी तथा इनके समथर्क फौज� के बीच पूरे सात साल तक
िनरं तर यु� चलता रहा। इन सारे यु�� म� एक ओर हक और
सच क� फौज थी और दस ू र� ओर असत्य क� सेनाएँ।
34
म�स्जद� महान �कताब क़ुरआन, प�व� सुन्नत, इस्लामी इितहास
और लाभदायक अरबी उलूम के पठन-पाठन से आबाद हो ग�।
लोग धमर्-संबंधी वातार्लाप, ज्ञान, �हदायत, आ�ान और
मागर्दशर्न तथा कृ �ष एवं दस्ताकर� आ�द दिु नया से संबंिधत
काय� म� लीन हो गए। अब हर तरफ़ ज्ञान, कमर्, आ�ान और
मागर्दशर्न क� चचार् थी। धमर् भी था और कमर् भी। आदमी
सीखने और िसखाने का काम भी कर रहा है और साथ ह�
खेत-खिलयान भी संभाल रहा है , दस्तकार� भी कर रहा है और
व्यापार भी दे ख रहा है । धमर् तथा कमर् के बीच उ�म समन्वय
बन गया है । वे अल्लाह क� तरफ बुलाने वाले और उसके रास्ते
का राह� भी ह� , ले�कन साथ ह� अपने क्षे�� म� नाना �कार के
लाभदायक काम� म� व्यस्त रहकर इतना कमा ले रहे ह� , जो
उन्ह� बाहर के �ांत� म� जाने से िनस्पृह �कए दे ते ह� ।
35
और �फर मक्का वाल� क� तरफ बढ़े । वैसे इमाम सऊद से पहले
ह�, उसमान �बन अब्दरु र् हमान मुज़ायफ़� ताइफ़ पहुँच चुके थे
और नज्द एवं दस ू रे �ांत� के लोग� पर आधा�रत उस बेहद
श��शाली सैन्यबल के साथ ताइफ़ वाल� का मुक़ाबला कर रहे
थे, �जसे �दरइय्या के अमीर इमाम सऊद �बन अब्दल ु अज़ीज़
�बन मुहम्मद ने उनक� मदद के िलए भेजा था। मुज़ायफ़� ने
ताइफ़ पर चढ़ाई करके उसपर क़ब्ज़ा कर िलया और िम� के
शर�फ़ क� ओर से िनयु� अमीर� को वहाँ से िनकाल बाहर
�कया। वहाँ उन्ह�ने लोग� को अल्लाह क� तरफ़ बुलाने और हक
क� तरफ मागर्दशर्न करने का कायर् बहुत मेहनत से �कया और
वहाँ के लोग� को िशकर् और अब्दल् ु लाह �बन अब्बास आ�द,
�जनको ताइफ़ के अज्ञान और �ववेकह�न लोग पूजते थे, क�
पूजा करने से मना �कया। उसके बाद, अमीर सऊद ने अपने
�पता अब्दल ु अज़ीज़ के आदे श पर, �हजाज़ का रुख़ �कया और
मक्का को चार� ओर घेर िलया।
जब मक्का के शर�फ को यक़�न हो चला �क अब आत्मसमपर्ण
करने या भाग जाने के अित�र� कोई दस ू रा रास्ता नह�ं बचा है ,
तो �ज�ा क� ओर भाग गया और इमाम सऊद एवं उनके
मु�स्लम सािथय� ने �बना �कसी यु� के, िशिनवार 8 मुहरर् म
1218 �हजर� को सुबह के समय मक्का पर क़ब्ज़ा कर िलया।
�फर वहाँ खुलकर अल्लाह क� तरफ बुलाने का कायर् शुरू कर
�दया, उन सभी गुंबद� को ध्वस्त कर �दया जो ख़द�जा
-र�ज़यल्लाहु अनहा- और उनके िसवा अन्य लोग� क� क़�� पर
बने हुए थे, एके�रवाद क� तरफ खुलकर बुलाना शुरू कर �दया,
36
धमर् क� िशक्षा दे ने के िलए बड़े -बड़े उलेमा, मागर्दशर्क और
शर�यत के अनुसार िनणर्य करने वाले क़ाज़ी िनयु� कर �दए।
�फर, उसके कुछ ह� �दन� बाद, मद�ने पर भी �वजय �ा� कर
िलया।
37
उनके अनुयाइय� और सहयोिगय� पर झूठे आरोप लगाए और
कहा �क वे अल्लाह के रसूल -स्ल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम- और
औिलया से घृणा करते ह� , उनक� करामात (चमत्कार�) का
इनकार करते ह� और उनके बारे म� ऐसी-ऐसी बात� कहते ह� ,
�जनसे, उनके कथनानुसार रसूल� क� मानहािन होती है । �फर,
इनके झूठे आरोप� को कुछ अज्ञािनय� और अवसरवाद� �क़स्म
के लोग� ने सच मान िलया और इसे सऊद वंश और शैख़ के
अनुयाइय� को नुक़सान पहुँचाने, उनसे �जहाद करने और तुक�
और िमि�य� को उनसे जंग करने पर आमादा करने का बहाना
बना िलया। प�रणामस्वरूप, अनिगनत �फ़तन� और लड़ाइय� ने
सर उठाया और 1226 �हजर� से 1233 �हजर� के बीच, नज्द
और �हजाज़ म�, सऊद वंश और तुकर्, िम�ी तथा इनके समथर्क
फौज� के बीच पूरे सात साल तक िनरं तर यु� चलता रहा। इन
सारे यु�� म� एक ओर हक और सच क� फौज थी और दस ू र�
ओर असत्य क� सेनाएँ।
हालाँ�क शैख़ मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब -उनपर अल्लाह क�
कृ पा हो!- तो वह व्य�� थे, जो अल्लाह के धमर् को �वजयी
बनाने, लोग� का एके�रवाद क� ओर मागर्दशर्न करने, लोग� के
�ारा इस्लाम म� ��व� क� गई �बदअत� तथा िमथक� को
नकारने, उन्ह� सत्य के रास्ते पर लगाने और असत्य से दरू
करने तथा नेक कायर् करने का आदे श दे ने और बुराइय� से रोकने
के िलए खड़े हुए थे।
38
यह� है शैख़ -उनपर अल्लाह क� दया एवं कृ पा हो!- के आ�ान
का सारांश, जो आस्था के मामले म� नेक पूवज र् � के सुपथ पर
चलते थे। अल्लाह और उसके नाम� एवं स�ण ु � पर, उसके
फ़�रश्त� पर, उसके रसूल� पर, उसक� �कताब� पर, आ�ख़रत के
�दन पर और अच्छे बुरे भाग्य पर वैसा ह� ईमान रखते थे, जैसा
सदाचार� पूवज र् रखते थे। अल्लाह के एकत्व और उसी के िलए
सार� इबादत� को �वशु� कर लेने और अल्लाह के सभी नाम�
और स�ण ु � पर अल्लाह क� शान के अनुकूल, ईमान लाने म� भी
वे अपने सदाचार� पूवज र् � के सुपथ पर चलते थे। अल्लाह को
स�णु र�हत नह�ं मानते थे और ना ह� अल्लाह को �कसी सृ��
के समान कहते थे। मरने के बाद दोबारा जी�वत कर उठाए
जाने, �ितफल, �हसाब-�कताब और जन्नत-जहन्नम आ�द पर
ईमान लाने के मामले म� भी वे अपने नेक पूवज र् � के पदिच��
पर ह� अ�सर थे। ईमान के बारे म� भी उनका कहना वह� था,
जो नेक पूवज र् गण कहा करते थे �क ईमान कथन और कमर् का
सं�ह है , जो घटता और बढ़ता है , नेक कमर् करने पर बढ़ता है
और गुनाह करने से घटता है ।यह� कुछ शैख़ मुहम्मद �बन
अब्दलु वह्हाब -अल्लाह क� असीम दया और कृ पा हो उनपर!-
का अक़�दा था, जो कथन एवं कमर्, हर िलहाज से नेक पूवज र् �
के तर�के और आस्था के पूणत र् या अनुसरणकतार् थे। उनके तर�क़े
से ज़रा भी आगे-पीछे नह�ं थे और ना ह� �कसी खास पंथ और
खास प�ित के अनुकरणकतार् थे, ब�ल्क सहाबा और पूणर्
वफादार� के साथ उनक� पैरवी करने वाल� के तर�के पर चलने
वाले थे। अल्लाह, उन सभ� से राज़ी हो!
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यह� कुछ शैख़ मुहम्मद �बन अब्दल ु वह्हाब -अल्लाह क� असीम
दया और कृ पा हो उनपर!- का अक़�दा था, जो कथन एवं कमर्,
हर िलहाज से नेक पूवज र् � के तर�के और आस्था के पूणतर् या
अनुसरणकतार् थे। उनके तर�क़े से ज़रा भी आगे-पीछे नह�ं थे
और ना ह� �कसी खास पंथ और खास प�ित के अनुकरणकतार्
थे, ब�ल्क सहाबा और पूणर् वफादार� के साथ उनक� पैरवी करने
वाल� के तर�के पर चलने वाले थे। अल्लाह, उन सभ� से राज़ी
हो!
उन्ह�ने इसका इज़हार सबसे पहले नज्द और उसके आस-पास
के �ांत� म� �कया और उसक� तरफ दावत द�, �फर �जसने
उसका इनकार �कया और दश्ु मनी क�, उसके �खलाफ �जहाद
और यु� �कया, यहाँ तक �क अल्लाह का धमर् गािलब आ गया
और हक एवं सच को �वजय �ा� हुई। उन्ह�ने, अल्लाह क�
तरफ दावत दे ने, असत्य का इनकार करने, पुण्य का आदे श दे ने
और बुराइय� से रोकने म� आम मुसलमान� क� ह� प�ित को
अपनाया। हाँ, शैख़ और उनके सहयोिगय� ने इतना अवश्य
�कया �क लोग� को सत्य क� ओर बुलाने, असत्य से मना करने,
बुराइय� से रोकने म� सख्ती से चेताया और सावधान �कया,
ता�क लोग उन सब बुराइय� को छोड़ द� । उसी तरह, �बदअत
और अंध�व�ास� को नकारने म� भी सख़्ती से काम िलया, यहाँ
तक �क अल्लाह तआला ने उनके आ�ान के �भाव से, उन सब
बुराइय� को िमटा �दया। इसिलए कहा जा सकता है �क उनके
और लोग� के बीच, दश्ु मनी और �ववाद के कारण मुख्य रूप से
40
वह� तीन थे जो यह ह� :
पहला कारण : िशकर् से इनकार और �वशु� एके�रवाद क� तरफ
दावत दे ना था। दस ू रा कारण : अपधमर् और अंध�व�ास�, जैसे
क़�� पर गुंबद एवं समािधयाँ बनाना, उनको म�स्जद बना लेना
और सू�फ़य� के �ारा आ�वष्कृ त और �रवाज �दए हुए मीलाद�
और तर�क़� आ�द पर अमल करने से इनकार करना था। तीसरा
कारण : शैख़ लोग� को नेक� का हुक्म दे ते और उसे सख़्ती से
लागू करते थे। जो अल्लाह तआला के वा�जब �कए हुए भले
काम को अंजाम दे ने से इनकार करता, उसक� सख़्ती से पकड़
करते और उसे छोड़ दे ने पर दं ड �दया करते थे, लोगो को
बुराइय� से रोकते और उनसे सावधान करते थे, हद� (धािमर्क
दं ड) जार� करते थे, लोग� से हक और सत्य को ला�ज़म पकड़ने
का आ�ान करते और असत्य से डराते और सावधान करते थे।
इसी से सत्य गािलब हुआ और फैला और असत्य को मुँह क�
खाना पड़� और औंधे मुँह िगरना पड़ा। लोग� का आचरण सुधर
गया और वे बाज़ार�, म�स्जद� और अपनी सार� �दनचयार्ओं म�
सत्पंथ पर चलने लगे।
उनके बीच से �बदअत� का नाम व िनशान िमट गया, उनके
क्षे�� से िशकर् का उन्मूलन हो गया और बुराइयाँ िमट सी ग�।
ब�ल्क �जसने उनके क्षे��, उनक� �दनचयार् और हालात का कर�ब
से अवलोकन �कया, उसे नेक पूवज र् � और अल्लाह के नबी
-सल्लल्लाहु अलै�ह व सल्लम-, सहाबीगण और �े�तम
शता�ब्दय� म� जीने वाले उनके अनुयाइय� एवं िशष्य� क� धािमर्क
�स्थित का स्मरण हो आया। उसने जागती आँख� से दे खा �क
41
लोग, उनके आचरण म� ढल चुके ह� , उनके पंथ के पिथक हो
गए ह� , उन्ह�ं के रास्ते पर डट गए ह� , उसी को मज़बूत करने
के �यास म� लगे हुए ह� और उसी के िलए �जहाद कर रहे ह� ।
�फर शैख़ और उनके बेट� एवं सहयोिगय� के दे हान्त के बहुत
�दन� बाद, आ�ख़र� समय म� जब थोड़ा-सा प�रवतर्न आ गया,
तो अल्लाह तआला के इस कथन के मुता�बक, तुक� और िम�ी
हुकूमत� के उनपर आ�मण क� सूरत म�, अल्लाह तआला क�
तरफ से उनक� आज़माइश और पर�क्षा ली गई :"बेशक, अल्लाह
तआला उन लोग� क� हालत को नह�ं सुधारता, जो अपने आपको
सुधारने क� चे�ा नह�ं करते ह� "।सूरा अर-रअद, आयत संख्या :
11हम दआ ु करते ह� �क अल्लाह तआला, इस्लाम के उन वीर
पुरुष� को अल्लाह के रास्ते म� �जतने भी क� पहुँचे, उन सबको
उनके गुनाह� का �ाय��त बना दे और उनम� से जो हताहत हुए
ह� , उनको बुलन्द� और शहादत का दजार् �दान करे , उनसे राज़ी
और ख़ुश हो जाए और उनपर कृ पा करे । अल्लाह क� असीम
कृ पा से, उनका आ�ान आज भी क़ायम है और फल-फूल रहा
है । सबको मालूम है �क िम�ी सैिनक� ने नज्द म� फसाद
मचाया, िनमर्म हत्याएं क�ं और ब�स्तय� क� ब�स्तयाँ उजाड़ द�ं,
ले�कन कुछ ह� साल� बाद ह� वह िमशन �फर से उठ खड़ा हुआ
और फैलने लगा। उस घटना के केवल पाँच साल बाद, इमाम
तुक� �बन अब्दल् ु लाह �बन मुहम्मद �बन सऊद, उस आ�ान का
झंडा लेकर खड़े हुए और नज्द और आसपास के �ांत� म� उसे
फैलाया। उलेमा, पूरे नज्द म� फैल गए और नज्द और उसके
गाँव� और शहर� म� �जतने भी तुकर् और िम�ी डे रा जमाए हुए
42
थे, सबको िनकाल बाहर �कया। इस �कार, 1240 �हजर� म�
नज्द म� वह� आ�ान दोबारा फैल गया।जब �दरइय्या का �वध्वंस
और सऊद वंश क� हुकूमत का ख़ात्मा 1233 �हजर� म� हो गया
तो नज्द-वासी, 1234 से 1239 �हजर� के कालखंड म�, यानी पूरे
पाँच साल तक अराजकता, �हं सा और कलह से �स्त रहे । �फर
1240 �हजर� म� इमाम तुक� �बन अब्दल् ु लाह �बन मुहम्मद �बन
सऊद के हाथ�, नज्द के मुसलमान एकता के सू� म� बंध गए
और हक के दोबारा गािलब आने का रास्ता साफ हुआ। उलेमा
ने �ामीण एवं शहर� क्षे�� म� प� िलखे, लोग� को �ोत्साहन
�दया और अल्लाह के धमर् क� ओर लौट आने का आ�ान �कया।
इससे िमि�य� के �ारा थोपी जाने वाली लंबी जंग� से उत्पन्न
होने वाले आपसी कलह� से उन्ह� छुटकारा िमल गया।इस तरह,
उन जंग� के प�रणामस्वरूप, घरे लू �हं सा और आपसी कलह� क�
जो आग उनके बीच भड़क उठ� थी, वह बुझ गई और अल्लाह
का धमर् एक बार �फर गािलब हो गया। लोग एक बार �फर से
िशक्षा, मागर्दशर्न और आ�ान के काम म� जुट गए, यहाँ तक
�क सब कुछ ठ�क हो गया, हालात सामान्य हो गए और लोग
�फर से उसी पटर� पर आ गए �जसपर वे शैख़, उनके िशष्य�,
उनके बेट� और उनके मददगार� के ज़माने म� चल रहे थे।
अल्लाह तआला उन सभ� से राज़ी हो और उनपर दया करे !
1240 �हजर� से आज तक, अल-हम्द ु िलल्लाह, उसी आ�ान का
िमशन जार� है । आज भी सऊद वंश के सदस्य एक-दस ू रे का
और शैख़ के वंशज तथा नज्द के उलेमा, एक-दस ू रे का
उ�रािधकार� बनते चले आ रहे ह� । एक तरफ, सऊद वंश के
43
सदस्य शासन, अल्लाह क� तरफ आ�ान और अल्लाह के रास्ते
म� �जहाद करने के मामले म� एक-दस
ू रे का उ�रािधकार� बन रहे
ह� ।
44
जब �दरइय्या का �वध्वंस और सऊद वंश क� हुकूमत का ख़ात्मा
1233 �हजर� म� हो गया तो नज्द-वासी, 1234 से 1239 �हजर�
के कालखंड म�, यानी पूरे पाँच साल तक अराजकता, �हं सा और
कलह से �स्त रहे । �फर 1240 �हजर� म� इमाम तुक� �बन
अब्दल्
ु लाह �बन मुहम्मद �बन सऊद के हाथ�, नज्द के
मुसलमान एकता के सू� म� बंध गए और हक के दोबारा गािलब
आने का रास्ता साफ हुआ। उलेमा ने �ामीण एवं शहर� क्षे�� म�
प� िलखे, लोग� को �ोत्साहन �दया और अल्लाह के धमर् क�
ओर लौट आने का आ�ान �कया। इससे िमि�य� के �ारा थोपी
जाने वाली लंबी जंग� से उत्पन्न होने वाले आपसी कलह� से
उन्ह� छुटकारा िमल गया।
इस तरह, उन जंग� के प�रणामस्वरूप, घरे लू �हं सा और आपसी
कलह� क� जो आग उनके बीच भड़क उठ� थी, वह बुझ गई और
अल्लाह का धमर् एक बार �फर गािलब हो गया। लोग एक बार
�फर से िशक्षा, मागर्दशर्न और आ�ान के काम म� जुट गए, यहाँ
तक �क सब कुछ ठ�क हो गया, हालात सामान्य हो गए और
लोग �फर से उसी पटर� पर आ गए �जसपर वे शैख़, उनके
िशष्य�, उनके बेट� और उनके मददगार� के ज़माने म� चल रहे
थे। अल्लाह तआला उन सभ� से राज़ी हो और उनपर दया करे !
1240 �हजर� से आज तक, अल-हम्द ु िलल्लाह, उसी आ�ान का
िमशन जार� है । आज भी सऊद वंश के सदस्य एक-दस ू रे का
और शैख़ के वंशज तथा नज्द के उलेमा, एक-दस ू रे का
उ�रािधकार� बनते चले आ रहे ह� । एक तरफ, सऊद वंश के
सदस्य शासन, अल्लाह क� तरफ आ�ान और अल्लाह के रास्ते
45
म� �जहाद करने के मामले म� एक-दस
ू रे का उ�रािधकार� बन रहे
ह� ।
46
ने वा�जब �कया है , हम� और उनको सीधा मागर् �दखाए, दोन�
हरम� और उनसे जुड़े सभी संस्थाओं को हमेशा आबाद रखे,
तमाम मुसलमान मुल्क� को �हदायत और सच्चे धमर् पर चलने,
अल्लाह क� �कताब और अपने नबी -सल्लल्लाहु अलै�ह व
सल्लम- क� सुन्नत का सम्मान करने का सुयोग दे , हम सभ�
को क़ुरआन और सुन्नत को सह� तरह से समझने, उनको
मज़बूती से थामे रहने, उनक� राह म� आने वाली हर मु�श्कल
का संयम और धैयर् से सामना करने और उन्ह�ं को अपने जीवन
के हर मामले म� िनणार्यक बनाने क� श�� और इच्छाश��
�दान करे , यहाँ तक �क सब अपने रब से जा िमल�, बेशक वह
हर चीज़ पर िनयं�ण रखने वाला और दआ ु क़बूल करने म�
सक्षम है ।शैख़ के जीवन, उनके आ�ान, उनके समथर्क� और
उनके �वरोिधय� पर जो व्याख्यान हम �स्तुत कर रहे थे और
उनका जो प�रचय हम दे रहे थे, यह�ं पर उसका अंत होता है ।
बेशक, केवल अल्लाह ह� मददगार है और उसीपर पूरा भरोसा
है । महान एवं बलशाली अल्लाह के िसवा न कोई भलाई �दान
करने क� ताक़त है न बुराई से रोकने क� श��। अल्लाह तआला,
अपने बंदे और रसूल, हमारे नबी और इमाम मुहम्मद �बन
अब्दल्ु लाह पर अनहद दरूद एवं शांित अवत�रत करे और उनके
प�रवारजन� पर, उनके सहा�बय� पर, हर उस व्य�� पर जो
उनके बताए हुए रास्ते पर चले और हर उस व्य�� पर जो उनके
�दखाए हुए मागर् पर अ�सर रहे , अपनी कृ पा एवं दया क� सदा
बा�रश करे ! और सार� �शंसाएं केवल उस अल्लाह के िलए ह�
ह� , जो तमाम जहान� का पालनहार है ।
47
शैख़ के जीवन, उनके आ�ान, उनके समथर्क� और उनके
�वरोिधय� पर जो व्याख्यान हम �स्तुत कर रहे थे और उनका
जो प�रचय हम दे रहे थे, यह�ं पर उसका अंत होता है । बेशक,
केवल अल्लाह ह� मददगार है और उसीपर पूरा भरोसा है । महान
एवं बलशाली अल्लाह के िसवा न कोई भलाई �दान करने क�
ताक़त है न बुराई से रोकने क� श��। अल्लाह तआला, अपने
बंदे और रसूल, हमारे नबी और इमाम मुहम्मद �बन अब्दल् ु लाह
पर अनहद दरूद एवं शांित अवत�रत करे और उनके प�रवारजन�
पर, उनके सहा�बय� पर, हर उस व्य�� पर जो उनके बताए हुए
रास्ते पर चले और हर उस व्य�� पर जो उनके �दखाए हुए
मागर् पर अ�सर रहे , अपनी कृ पा एवं दया क� सदा बा�रश करे !
और सार� �शंसाएं केवल उस अल्लाह के िलए ह� ह� , जो तमाम
जहान� का पालनहार है ।
48
इमाम मुहम्मद बिन अब्दुल
वह्हाब का आह्वान तथा जीवन
लेखक :
शैख अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल्लाह बिन बाज़