Krishna

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दो माँ , दो बाप , दो नगर , दो ूेिमकाएँ या य कहए अनेक ( ले.

लोहया)

कृ ंण क सभी चीज दो ह : दो माँ , दो बाप , दो नगर , दो ूेिमकाएँ या य कहए अनेक । जो चीज


संसार# अथ% म बाद क या ःवीकृ त या सामा)जक है , वह असली से भी ौे, और अिधक /ूय हो
गयी है । य कृ ंण दे वकन0दन भी ह , लेकन यशोदान0दन अिधक । ऐसे लोग भी िमल सकते ह
जो कृ ंण क असली माँ , पेट-माँ का नाम न जानते ह ,लेकन बाद वाली दध
ू वाली , यशोदा का
नाम न जानने वाला कोई िनराला ह# होगा । उसी तरह , वसुदेव कुछ हारे हए
ु से ह , और न0द को
असली बाप से कुछ बढ़ कर ह# :तबा िमल गया है । ;ारका और मथुरा क होड़ करना कुछ ठ>क
नह#ं ,?यक भूगोल और इितहास ने मथुरा का साथ दया है । क0तु यद कृ ंण क चले , तो
;ारका और ;ारकाधीश , मथुरा और मथुरापित से अिधक /ूय रहे । मथुरा से तो बाललीला और
यौवनबडा क D/E से , वृ0दावन और बरसाना वगैरह अिधक महFवपूण% ह । ूेिमकाओं का ूH
जरा उलझा हआ
ु है । कसक तुलना क जाय , :?मणी और सFयभामा क , राधा और :?मणी
क , या राधा और िौपद# क । ूेिमका शLद का अथ% संकुिचत न कर सखा-सखी भाव को ले के
चलना होगा । अब तो मीरा ने भी होड़ लगानी शु: क है । जो हो , अभी तो राधा ह# बडभािगनी है
क तीन लोक का ःवामी उसके चरण का दास है । समय का फेर और महाकाल शायद िौपद# या
मीरा को राधा क जगह तक पहँु चाये , लेकन इतना सOभव नह#ं लगता । हर हालत म , :?मणी
राधा से ट?कर कभी नह#ं ले सकेगी ।

मनुंय क शार#Pरक सीमा उसका चमड़ा और नख है । यह शार#Pरक सीमा उसे अपना एक दोःत
, एक माँ , एक बाप , एक दश%न वगैरह दे ती रहती है । क0तु समय हमेशा इस सीमा से बाहर
उछलने क कोिशश करता रहता है , मन ह# के ;ारा उछल सकता है । कृ ंण उसी तFव और महान
ूेम का नाम है जो मन को ूदQ सीमाओं से उलाँघता-उलाँघता सब म िमला दे ता है , कसी से भी
अलग नह#ं रखता । ?यक कृ ंण तो घटनाबम वाली मनुंय लीला है , केवल िसSा0त और
तFव का /ववेचन नह#ं , इसिलए उसक सभी चीज अपनी और एक क सीमा म न रह कर दो और
िनरापनी हो गयी है । य दोन म ह# कृ ंण का तो िनरापना है , क0तु लीला के तौर पर अपनी माँ ,
बीवी और नगर# से परायी बढ़ गयी है । पराई को अपनी से बढ़ने दे ना भी तो एक मानी म अपनेपन
को खFम करना है । मथुरा का एकािधपFय खFम करती है ;ारका , लेकन उस बम म ;ारका
अपना ौे,Fव जैसा कायम कर लेती है ।

भारतीय साहFय म माँ है यशोदा और लला ह कृ ंण । माँ-लला का इन से बढ़ कर मुझे तो कोई


सOब0ध मालूम नह#ं , क0तु ौे,Fव भर ह# तो कायम होता है । मथुरा हटती नह#ं और न :?मणी ,
जो मगध के जरास0ध से ले कर िशशुपाल होती हई
ु ह)ःतनापुर के िौपद# और पाँच पाTडव तक
एक-Uपता बनाये रखती है । परकया ःवकया से बढ़कर उसे खFम तो करता नह#ं , केवल अपने
और पराये क द#वार को ढहा दे ता है । लोभ , मोह, ईंया% , भय इFयाद क चहारद#वार# से अपना

या ःवकय छटकारा पा जाता है । सब अपना और , अपना सब हो जाता है । बड़# रसीली लीला है
कृ ंण क , इस राधा-कृ ंण या िौपद#-सखा और :?मणी-रमण क कह#ं चम% सीिमत शर#र म
,ूेमान0द और खून क गरमी और तेजी म , कमी नह#ं । लेकन यह सब रहते हए
ु भी कैसा
िनरापना ।

कृ ंण ह कौन ? िगरधार# , िगरधर गोपाल ! वैसे तो मुरलीधर और चबधर भी है , लेकन कृ ंण


गुWतम Uप तो िगरधर गोपाल म ह# िनखरता है । का0हा को गोवध%न पव%त अपनी कानी उँ गली
पर ?य उठाना पड़ा था ? इसिलए न क उसने इ0ि क पूजा ब0द करवा द# और इ0ि का भोग ,
खुद खा गया , और भी खाता रहा । इ0ि ने नाराज हो कर पानी , ओला , पFथर बरसाना शु:
कया,तभी तो कृ ंण को गोवध%न उठा कर अपने गो और गोपाल क रXा करनी पड़# । कृ ंण ने
इ0ि का भोग खुद ?य खाना चाहा ? यशोदा और कृ ंण का इस सOब0ध म गुW /ववाद है ।
माँ,इ0ि को भोग लगाना चाहती है , ?यक वह बड़ा दे वता है , िसफ% वास से ह# तृY हो जाता है ,और
उसक बड़# श/Z है ,ूस0न होने पर बहत
ु वर दे ता है और नाराज होने पर तकलीफ । बेटा कहता है
वह इ0ि से भी बड़ा दे वता है ,?यक वह तो वास से तृY नह#ं होता और बहत
ु खा सकता है और
उसके खाने क कोई सीमा नह#ं । यह# है कृ ंण-लीला का गुW-रहःय । वास लेने वाले दे वतओं से
खाने वाले दे वताओं तक क भारत - याऽा ह# कृ ंण-लीला है ।

कृ ंण के पहले , भारतीय दे व , आसमान के दे वता ह । िनःस0दे ह अवतार कृ ंण के पहले से शु:


हो गये । क0तु ऽेता का राम ऐसा मनुंय है जो िनर0तर दे व बनने क कोिशश करता रहा ।
इसिलए उसम आसमान के दे वता का अ0श कुछ अिधक है । ;ापर का कृ ंण ऐसा दे व है , जो
िनरनतर मनुंय बनने क कोिशश करता रहा । उसम उसे सOपूण% सफलता िमली । कृ ंण सOपूण%
और अबोध मनुंय है , खूब खाया -)खलाया, खूब \यार कया और \यार िसखाया ,जनगण क रXा
और उसका राःता बताया ,िनिल%Y भोग का महान Fयागी और योगी बना ।

इस ूसंग म यह ूH बेमतलब है क मनुंय के िलए, /वशेषकर राजकय मनुंय के िलए , राम


का राःता सुकर और उिचत है या कृ ंण का । मतलब क बात यह है क कृ ंण दे व होता हआ

िनर0तर मनुंय बनता रहा । दे व और िनःव और असीिमत होने के नाते कृ ंण म जो असOभव
मनुंयताएँ ह , जैसी झूठ ,धोखा और हFया , उनक नकल करने वाले लोग मूख% ह,उसम कृ ंण का
?या दोष । कृ ंण क सOभव और पूण% मनुंयताओं पर ^यान दे ना ह# उिचत है , और एकाम ^यान
।कृ ंण ने इ0ि को हराया ,वास लेने वाले दे व को भगाया , खाने वाले दे व को ूित/,त कया , हाड़
,खून, माँस वाले मनुंय को दे व बनाया , जन-गण म भावना जागृत क दे व को आसमान म मत
खोजो,खोजो यह#ं अपने बीच, पृ`वी पर । पृ`वी वाला दे व खाता है , \यार करता है ,िमल कर रXा
करता है ।

कृ ंण जो कुछ करता था , जम कर करता था ,खाता था जम कर ,\यार करता था कम कर , रXा


भी करता था जम कर करता था : पूण% भोग , पूण% \यार , पूण% रXा । कृ ंण क सभी बयाएँ उसक
श/Z के पूरे इःतेमाल से ओत-ूोत रहती थीं , श/Z का कोई अंश बचा कर नह#ं रखता था , कंजूस
/बलकुल नह#ं था , ऐसा दलफक ,ऐसा शर#र फक चाहे मनुंय से सOभव न हो , लेकन मनुंय ह#
हो सकता है , मनुंय का आदश% , चाहे )जसके पहँु चने तक हमेशा एक सीढ़# पहले :क जाना पड़ता
हो । कृ ंण ने खुद गीत गाया है )ःथतूa का ,ऐसे मनुंय का जो अपनी श/Z का पूरा और जमकर
ु क तरह यह मनुंय
इःतेमाल करता हो । ” कूमbगानीव ” ने बताया है ऐसे मनुंय को ।कछए
अपने अंग को बटोरता है , अपनी इ)0िय पर इतना सOपूण% ूभुFव है इसको क इ)0ियाथc से
उ0ह पूर# तरह हटा लेता है ।कुछ लोग कह गे क यह तो भोग का उलटा हआ
ु । ऐसी बात नह#ं ।जो
करना ,जमकर - भोग भी , Fयाग भी। जमा हआ
ु भोगी कृ ंण ,जमा हआ
ु योगी तो था ह# । शायद
दोन म /वशेष अ0तर नह#ं ।फर भी कृ ंण ने एकांगी पPरभाषा द# ,अचल )ःथतूa क ,
चल)ःथतूa क नह#ं । उसक पPरभाषा तो द# जो इ)0िय से इ)0िय को हटा कर पूण% ूभुता
िनखरता हो,उसक नह#ं जो इ)0िय को इ)0ियाथc म लपेट कर , घोल कर ।कृ ंण खुद तो दोन
था,पPरभाषा म एकांगी रह गया । जो काम कस समय कृ ंण करता था,उसम अपने समम अंग
का एकाम ूयोग करता था ,अपने िलए कुछ भी नह#ं बचाता था ,अपना तो था ह# नह#ं कुछ उसम।
” कूमbगानीव ” के साथ-साथ ” समम-अंग-एकामी ” भी पPरभाषा म शािमल होना चाहए था । जो
काम कर, कम कर करो,अपना पूरा मन और शर#र उसम फक कर ।दे वता बनने क कोिशश म
मनुंय कुछ कृ पण हो गया है ,पूण% आFमसमप%ण वह कुछ भूल सा गया है । जUर# नह#ं है क वह
अपने-आप को कसी दसरे
ू के समप%ण करे ।अपने ह# काम म पूरा आFमसमप%ण करे । झाड़ू
लगाये तो जमकर ,या अपनी इ)0िय का पूरा ूयोग कर युS म रथ चलाये तो जम कर ,ँयामा
मािलन बन कर राधा को फूल बेचने जाए तो जम कर ,जीवन का दश%न ढँू ढे और गाए तो जम कर
।कृ ंण ललकारता है मनुंय को अकृ पण बनने के िलए ,अपनी श/Z को पूर# तरह और एकाम
उछालने के िलए। मनुंय करता कुछ है ,^यान कुछ दसर#
ू तरफ रहता है ।झाड़ू दे ता है फर भी कूड़ा
कोन म पड़ा रहता है । एकाम ^यान न हो तो सब इ)0िय का अकृ पण ूयोग कैसे हो । ”
कूमbगानीव ” और ” समम-अंग-एकामी ” मनुंय को बनना है । यह# तो दे वता क मनुंय बनने
क कोिशश है । दे खो, माँ ,इ0ि खाली वास लेता है , म तो खाता हँू ।

दे श क पूव% - प)eम एकता का दे व : कृ ंण (२) : डॉ . लोहया


आसमान के दे वताओं को जो भाhय उसे बड़े पराबम और तकलीफ़ के िलए तैयार रहना चाहए ,
तभी कृ ंण को पूरा गोवध%न पव%त अपनी छोट# उँ गली पर उठाना पड़ा । इ0ि को वह नाराज कर
दे ता और अपनी गउओं क रXा न करता , तो ऐसा कृ ंण कस काम का ।फर कृ ंण के रXा-युग
का आरOभ होने वाला था । एक तरह से बाल और युवा-लीला का शेष ह# िगPरधर लीला है ।
कािलया दहन और कंस वध उसके आसपास के ह । गोवध%न उठाने म कृ ंण क उं गली दखी
ु होगी ,
अपने गोप और सखाओं को कुछ झुँझला कर सहारा दे ने को कहा होगा । माँ को कुछ इतरा कर
उँ गली दखने
ू क िशकायत क होगी । गो/पय से आँख लड़ाते हए
ु अपनी मुसकान ;ारा कहा होगा ।
उसके पराबम पर अचरज करने के िलए राधा और कृ ंण क तो आपस म गOभीर और ूफु)jलत
मुिा रह# होगी ।कहना कठन है क कसक ओर कृ ंण ने अिधक िनहारा होगा , माँ क ओर इतरा
कर , या राधा क ओर ूफु)jलत हो कर । उँ गली बेचारे क दख
ू रह# थी । अब तक दख
ु रह# है ,
गोवध%न म तो यह# लगता है । वह#ं पर मानस गंगा है । जब कृ ंण ने गऊ वंश Uपी दानव को मारा
था , राधा /बगड़ पड़# और इस पाप से बचने के िलए उसने उसी ःथल पर कृ ंण से गंगा माँगी ।
बेचारे कृ ंण को कौन कौन से असंभव काम करने पड़े ह । हर समय वह कुछ न कुछ करता रहा है
दसर
ू को सुखी बनाने के िलए । उसक उँ गली दख
ू रह# है । चलो , उसको सहारा द । गोवध%न म
सड़क चलते कुछ लोग ने , )जनम पंडे होते ह# ह , ूH कया क म कहाँ का हँू ।

मने छे ड़ते हुए उQर दया , राम क अयो^या का ।

पंड ने जवाब दया , सब माया एक है ।

जब मेर# छे ड़ चलती रह# तो एक ने कहा क आ)खर सQू वाले राम से गोवध%न वािसय का नेह
कैसे चल सकता है । उनका दल तो माखन - िमसर# वाले कृ ंण से लगा है ।

माखन - िमसर# वाला कृ ंण , सQू वाला राम कुछ सह# है , पर उसक अपनी उँ गली अब तक
दख
ू रह# है ।

एक बार मथुरा म सड़क चलते एक पंडे से मेर# बातचीत हई


ु । पंड क साधारण कसौट# से उस
बातचीत का कोई नतीजा न िनकला , न िनकलने वाला था । लेकन ?या मीठ> मुसकान से उस
पंडे ने कहा के जीवन म दो मीठ> बात करनी सीख गया है , आसमान वाले दे वताओं को भगा गया
है , माखन - िमसर# वाले दे व क ूित,ा कर गया है । लेकन उसका अपना कौन - कौन सा अंग
अब तक दख
ू रहा है ।
कृ ंण क तरह एक और दे वता हो गया है , )जसने मनुंय बनने क कोिशश क । उसका राlय
संसार म अिधक फैला । शायद इसिलए क वह गर#ब बढ़ई का बेटा था और उसक अपनी )ज0दगी
म वैभव और ऐश न था। शायद इसिलए क जन - रXा का उसका अ)0तम काम ऐसा था क
उसक उँ गली िसफ़% न दखी ू कर वह मरा ।
ू , उसके शर#र का रोम - रोम िसहरा और अंग - अंग टट
अब तक उसका ^यान करके अपने सीमा बाँधने वाले चमड़े के बाहर उछलते ह । हो सकता क
इसूमसीह दिनया
ु म केवल इसिलए फैल गया है क उसका /वरोध उन रोिमय से था जो आज क
मािलक सmयता के पुरखे ह । ईसू रोिमय पर चढ़ा । रोमी आज के यूरो/पय पर चढ़े । शायद एक
कारण यह भी हो क कृ ंण - लीला का मजा ॄज और भारत भूिम के कण-कण से इतना िलपटा है
क कृ ंण क िनयित कठन है । जो भी हो , कृ ंण और बःटोस दोन ने आसमान के दे वताओं को
भगाया । दोन के नाम और कहानी म भी कह#ं - कह#ं साDँय है । कभी दो महाजन क तुलना नह#ं
करनी चाहए । दोन अपने Xेऽ म ौे, ह ।फर भी बःटोस ूेम के आFमोFसगo अंग के िलए
बेजोड़ है और कृ ंण सOपूण% मनुंय - लीला के िलए । कभी कृ ंण के वंशज भारतीय श/Zशाली
बनगे , तो सOभव है उसक लीला दिनया
ु भर म रस फैलाये ।

कृ ंण बहत
ु अिधक ह0दतान
ु के साथ जुड़ा हआ
ु है । ह0दःतान
ु के lयादातर दे व और अवतार
अपनी िमpट# के साथ सने हए
ु ह । िमpट# से अलग करने पर वे बहत
ु कुछ िनंूाण हो जाते ह ।
ऽेता का राम ह0दःतान
ु क उQर - द)Xण एकता का दे व है । ;ापर का कृ ंण दे श क पूव% - प)eम
धुर# पर घूमे । कभी - कभी तो ऐसा लगता है क दे श को उQर - द)Xण और पूव% - प)eम एक
करना ह# राम और कृ ंण का धम% था ।य सभी धमc क उFप/Q राजनीित से है , /बखरे हए
ु ःवजन
को इकpठा करना , कलह िमटाना , सुलह कराना और हो सके तो अपनी और सब क सीमा को
ढहाना । साथ - साथ जीवन को कुछ ऊँचा उठाना , सदाचार क D/E से और आFम - िच0तन क
भी ।

दे श क एकता और समाज के शु/S सOब0धी कारण और आवँयकताओं से संसार के सभी


महान धमc क उFप/Q हई
ु है । अलबQा , धम% इन आवँयकताओं से ऊपर उठ कर , मनुंय को
पूण% करने क भी चेEा करता है । क0तु भारतीय धम% इन आवँयकताओं से )जतना ओत-ूोत है ,
उतना और कोई धम% नह#ं । कभी - कभी तो ऐसा लगता है क राम और कृ ंण के कःसे तो
मनगढ0त गाथाय ह , )जनम एक अ;तीय उqे ँय हािसल करना था , इतने बड़े दे श के उQर -
द)Xण और पूव% - प)eम को एक Uप म बाँधना था । इस /वलXण उqे ँय के अनुUप ह# ये
/वलXण कःसे बने । मेरा मतलब यह नह#ं क सबके सब कःसे झूठे ह । गोवध%न पव%त का
कःसा )जस Uप म ूचिलत है उस Uप म झूठा तो है ह# , साथ - साथ न जाने कतने और कःसे ,
जो कतने और आदिमय के रहे ह एक कृ ंण अथवा राम के साथ जुड़ गये ह । जोड़ने वाल को
कमाल हािसल हआ
ु । यह भी हो सकता है क कोई न कोई चमFकाPरक पु:ष राम और कृ ंण नाम
के हए
ु ह । चमFकार भी उनका संसार के इितहास म अनहोना रहा हो । लेकन उन गाथाकार का
यह कम अनहोना चमFकार नह#ं है , )ज0हने राम और कृ ंण के जीवन क घटनाओं को इस इस
िसलिसले और तफ़सील म बाँधा है क इितहास भी उसके सामने लजा गया है ? आज के
ह0दःतानी
ु राम और कृ ंण क गाथाओं क एक - एक तफ़सील को चाव से और सूमाण जानते ह
, जब क ऐितहािसक बुS और अशोक उनके िलए धुँधली ःमृित माऽ रह गये ह ।

महाभारत ह0दःतान
ु के क पूव% - प)eम याऽा है , )जस तरह रामायण उQर - द)Xण याऽा है ।
पूव% - प)eम याऽा का नायक कृ ंण है , )जस तरह उQर - द)Xण याऽा का नायक राम है । मणीपुर
से ;ारका तक कृ ंण या उसके सहचर का पराबम हआ
ु हआ
ु है , जैसे जनकपुर से ौीलंका तक राम
या उसके सहचर का । राम का काम अपेXाकृ त सहज था । कम से कम उस काम म एकरसता
अिधक थी । राम का मुकाबला या दोःती हई
ु भील , करात , क0नर , राXस इFयाद से , जो
उसक अपनी सmयता से अलग थे । राम का काम था इनको अपने म शािमल करना और उनको
अपनी सmयता म ढाल दे ना , चाहे हराये /बना या हराने के बाद ।

कृ ंण को वाःता पड़ा अपने ह# लोग से । एक ह# सmयता के दो अंग म से एक को लेकर भारत


क पूव% - प)eम एकता कृ ंण को ःथा/पत करनी पड़# । इस काम म पच lयादा थे । तरह - तरह
क स)0ध और /वमह का बम चला । न जाने कतनी चालाकयाँ और धूतत
% ाय भी हr
ु । राजनीित
ु । अनेक ऊँचाइयाँ भी छू गयी ।
का िनचोड़ भी सामने आया - ऐसा छन कर जैसा फर और न हआ
दलचःप कःसे भी खूब हए
ु । जैसी पूव% - प)eम राजनीित जटल थी , वैसे ह# मनुंय क आपसी
सOब0ध भी, खास कर मद% -औरत के । अजुन
% क मणीपुर वाली िचऽांगदा , भीम क हडOबा ,
और पांचाली का तो कहना ह# ?या । कृ ंण क बुआ कु0ती का एक बेटा था , अजु%न , दसरा
ू कण% ,
दोन अलग - अलग बाप से और कृ ंण ने अजुन
% को कण% का छल-वध करने के िलए उकसाया ।
फर भी , ?य जीवन का िनचोड़ छन कर आया । ?यक कृ ंण जैसा िनःव मनुंय न कभी हआ

और उससे बढ़ कर कभी होना ह# असOभव है । राम उQर - द)Xण एकता का न िसफ% नायक बना ,
राजा भी हआ
ु । कृ ंण तो पनी मुरली बजाता रहा । महाभारत क नाियका िौपद# से महाभारत के
नायक कृ ंण ने कभी कुछ िलया नह#ं , दया ह# ।

पूव% - प)eम एकता क दो धुPरयाँ ःपE ह# कृ ंण - काल म थीं । एक पटना - गया क मगधपुर#
और दसर#
ू ह)ःतनापुर - इ0िूःथ क कु:-धुर# । मगध - धुर# का भी फैलाव ःवयं कृ ंण क मथुरा
तक था जहाँ मगध - नरे श जरासंध का दामाद कंस राlय करता था । बीच म िशशुपाल आद
मगध के आिौत - िमऽ थे । मगध - धुर# के )खलाफ़ कु: - धुर# का सशZ िनमा%ता कृ ंण था ।
कतना बड़ा फैलाव कया कृ ंण ने इस धुर# का । पूव% म म)णपुर से ले कर प)eम म ;ारका तक
इस कु: - धुर# म समावेश कया । दे श क दोन सीमाओं , पूव% क पहाड़# सीमा और प)eम क
समुि# सीमा को फाँसा और बाँधा , इस धुर# को कायम और श/Zशाली करने के िलए कतनी
मेहनत और कतने पराबम करने पड़े , और कतनी लOबी सूझ सोचनी पड़# ।उसने पहला ह# वार
अपने ह# घर मथुरा म मगधराज के दामाद पर कया । उस समय सारे ह0दःतान
ु म यह वार गूँजा
होगा । कृ ंण क यह पहली ललकार थी , वाणी ;ारा नह#ं । उसने कम% ;ारा रण-भेर# बजायी ।
कौन अनसुनी कर सकता था । सबको िनम0ऽण हो गया यह सोचने के िलए क मगध राजा को
अथवा )जसे कृ ंण कहे उसे सॆाट के Uप म चुनो । अ)0तम चुनाव भी कृ ंण ने बड़े छली Uप म

रखा । कु: - वंश म ह# 0याय-अ0याय के आधार पर दो टकड़े हए ु
ु और उनम अ0यायी टकड़# के
साथ मगध - धुर# को जुड़वा दया। संसार ने सोचा होगा क वह तो कु:वंश का अ0द:नी और
आपसी झगड़ा है । कृ ंण जानता था क वह तो इ0िूःथ ह)ःतनापुर क कु: - धुर# और राजिगPर
क मगध-धुर# का झगड़ा है ।

राजिगPर राlय कंस - वध पर ितलिमला उठा होगा । कृ ंण ने पहले ह# वार म मगध क प)eमी
को खतम-सा कर दया । लेकन अभी तो ताकत बहत
ु lयादा बटोरनी और बढ़ानी थी । यह तो
िसफ% आरOभ था । आरOभ अtछा हआ
ु । सारे संसार को मालूम हो गया । लेकन कृ ंण कोई बुSू
थोड़े ह# था जो आरOभ क लड़ाई को अ0त बना दे ता । उसके पास अभी इतनी ताकत तो थी नह#ं
जो कंस के ससुर और उसक पूरे ह0दःतान
ु क श/Z से जूझ बैठता । वार करके , संसार को डं का
सुना के कृ ंण भाग गया । भागा भी बड़# दरू ;ारका म । तभी से उसका नाम रणछोड़दास पड़ा ।
गुजरात म आज भी हजार लोग शायद एक लाख से भी अिधक लोग हगे )जनका नाम
रणछोड़दास है । पहले म इस नाम पर हँ सा करता था , मुसकाना तो कभी न छोड़ू ँ गा । य ,
ह0दःतान
ु म और भी दे वता ह )ज0हने अपना पराबम भाग कर दखाया जैसे aानवापी के िशव
ने । यह पुराना दे श है । लड़ते - लड़ते थक ह)uडय को भागने का अवसर िमलना चाहए । लेकन
कृ ंण थक /पTडिलय के कारण नह#ं भागा । वह भागा जवानी क बढ़ती ह)uडय के कारण । अभी
ह)uडय को बढ़ाने और फैलाने का मौका चाहए था । कृ ंण क पहली लड़ाई तो आजकल क
छापामार लड़ाई क तरह थी , वार करो और भागो । अफ़सोस यह# है क कुछ भZ लोग भगाने ह#
म मजा लेते ह ।

;ारका मथुरा से सीधे फासले पर कर#ब ७०० मील है । वत%मान सड़क क यद दर#
ू नापी जाए
तो कर#ब १०५० मील होती है । /बचली दर#
ू इस तरह ८५० मील होती है । कृ ंण अपने शऽु से बड़#
दरू तो िनकल ह# गया , साथ ह# साथ दे श क पूव% - प)eम एकता हािसल करने के िलए उसने
प)eम के आखर# नाके को बाँध िलया । बाद म , पाँच पाTडव के बनवासयुग म अजुन
% क
िचऽांगदा और भीम क हडOबा के जPरये उसने पूव% के आ)खर# नाके को भी बाँधा । इन फासल
को नाँपने के िलए मथुरा से अयो^या , अयो^या से राजमहल और राजमहल से इOफाल क दर#

जाननी जUर# है ।यह# रहे हगे उस समय के /वशाल राजमाग% । मथुरा से अयो^या क /बचली दर#

कर#ब ३०० मील है ।अयो^या से राजमहल कर#ब ४७० मील है । राजमहल से इOफाल क /बचली
दर#
ू कर#ब सवा पाँच सौ , य वत%मान सड़क से फासला कर#ब ८५० मील और सीधा फासला कर#ब
३८० मील है । इस तरह मथुरा से इOफाल का फासला उस समय के राजमाग% से कर#ब १६०० मील
रहा होगा । कु: - धुर# के के0ि पर कLजा करने और उसे सशZ बनाने के पहले कृ ंण के0ि से ८००
मील दरू भागा और अपने सहचर और चेल को उसने १६०० मील दरू तक घुमाया । पूव-% प)eम क
पूर# भारत-याऽा हो गयी । उस समय क भारतीय राजनीित को समझने के िलए कुछ दPरयाँ
ू और
जानना जUर# है है । मथुरा से बनारस का फासला कर#ब ३७० मील और मथुरा से पटना कर#ब
५०० मील है । दjली से , जो तब इ0िूःथ थी , मथुरा का फासला कर#ब ९० मील है । पटने से
कलकQे का फासला कर#ब सवा तीन सौ मील है । कलकQे के फासले का कोई /वशेष ताFपय% नह#ं
,िसफ% इतना ह# क कलकQा भी कुछ समय तक ह0दःतान
ु क राजधानी रह# है , चाहे गुलाम
ह0दःतान
ु क ।मगध-धुर# का पुनज%0म एक अथ% म कलकQे म हआ
ु । )जस तरह कृ ंण - कालीन
मगध-धुर# के िलए राजिगPर के0ि , उसी तरह ऐितहािसक मगध-धुर# के िलए पटना या पाटिलपुऽ
के0ि है , और इन दोन का फासला कर#ब ४० मील है । पटना - राजिगPर के0ि का पुनज%0म
कलकQे म होता है , इसका इितहास के /वाथo अ^ययन कर , चाहे अ^ययन करते समय
स0तापपूण% /ववेचन कर क यह काम /वदे शी तFवाधान म ?य हआ
ु ।

कृ ंण ने मगध धुर# का नाश करके कु: - धुर# क ूित,ा ?य करनी चाह# ? इसका एक उQर तो
साफ है , भारतीय जागरण का बाहjय
ु उस समय उQर और प)eम म था जो राजिगPर और पटना
से बहत
ु दरू पड़ जाता था । उसके अलावा मगध - धुर# कुछ पुरानी पड़ चुक थी ,श/Zशाली थी ,
क0तु उसका फैलाव संकुिचत था । कु: - धुर# नयी थी और कृ ंण इसक श/Z और इसके फैलाव
का सव%श/ZसOप0न िनमा%ता था , मगध - धुर# को )जस तरह चाहता शायद न मोड़ सकता ,कु: -
धुर# को अपनी इtछा के अनुसार मोड़ और फैला सकता था । सारे दे श को बाँधना जो था उसे ।
कृ ंण /ऽकालदशo था । उसने दे ख िलया होगा क उQर - प)eम म आगे चल कर यूनािनय , हण

,पठान , मुगल आद के आबमण हगे इसिलए भारतीय एकता क धुर# का के0ि कह#ं वह#ं रचना
चाहए , जो इन आबमण का सशZ मुकाबला कर कर सके । लेकन /ऽकालदशo ?य न दे ख
पाया क इन /वदे शी आबमण के पहले ह# दे शी मगध - धुर# बदला चुकाएगी और सकड़
वष% तक भारत पर अपना ूभुFव कायम करे गी और आबमण के समय तक कृ ंण क भूिम के
नजद#क यािन क0नौज और उlजैन तक )खसक चुक होगी , क0तु अशZ अवःथा म ।
/ऽकालदशo ने दे खा शायद यह सब कुछ हो , लेकन कुछ न कर सका हो । वह हमेशा के िलए अपने
दे शवािसय को कैसे aानी और साधु दोन बनाता । वह तो केवल राःता दखा सकता था । राःते
म भी शायद ऽृट थी । /ऽकालदशo को शायद यह भी दे खना चाहए था क उसके राःते पर aानी
ह# नह#ं , अनाड़# भी चलगे और वेकतना भार# नुकसान उठायगे ।राम के राःते पर चल कर अनाड़#
का भी अिधक नह#ं /बगड़ता , चाहे बनना भी कम होता हो । अनाड़# ने कु: - पांचाल संिध का ?या
कया ?

कु: - धुर# क आधार - िशला थी कु: - पांचाल संिध । आसपास के इन इलाक का वळ समान एका
कायम करना था सो कृ ंण ने उन लीलाओं के ;ारा कया , )जनसे पांचाली का /ववाह पाँच पाTडव
से हो गया । यह पांचाली भी अत
ु नार# थी । िौपद# से बढ़ कर भारत क कोई ूखर - मुखी और
aानी नार# नह#ं । कैसे कु: पX के सभी को उQर दे ने के िलए ललकारती है क जो आदमी अपने
को हार चुका है ?या दसरे
ू को दाँव पर रखने क उसम ःवतंऽ सQा है ?

अजुन
% समेत पाँच पाTडव उसके सामने फके थे । यह कृ ंणा तो कृ ंण के ह# लायक थी ।
महाभारत का नायक कृ ंण , नाियका कृ ंणा । कृ ंणा और कृ ंण का सOब0ध भी /व‚ - साहFय
म बेिमसाल है । दोन सखा - सखी ह# ?य रहे । कभी कुछ और दोन म से कसीने होना चाहा ?
?या सखा - सखी का सOब0ध पूव% Uप से मन क दे न थी या उसम कु: - धुर# के िनमा%ण और
फैलाव का अंश था ? जो हो , कृ ंण और कृ ंणा का यह सOब0ध राधा और कृ ंण के सOब0ध से
कम नह#ं , लेकन साहFयकार और भZ क नजर इस ओर कम पड़# है । हो सकता है क भारत
क पूव% - प)eम एकता के इस िनमा%ता को अपनी ह# सीख के अनुसार केवल कम% , न क कम%फल
का अिधकार# होना पड़ा , शायद इसिलए क यद वह वःय कम%फल-हे तु बन जाता , तो इतना
अनहोना िनमा%ता हो ह# नह#ं सकता था । उसने कभी लालच न क क अपनी मथुरा को ह# धुर# -
के0ि बनाये , उसके िलए दसर
ू का ह)ःतनापुर ह# अtछा रहा । उसी तरह कृ ंणा को भी सखी Uप
म रखा , )जसे संसार अपनी कहता है , वैसी न बनाया । कौन जाने कृ ंण के िलए यह सहज था या
इसम भी उसका दल दखा
ू था ।

कृ ंणा अपने नाम के अनुUप साँवली थी , महान सु0दर# रह# होगी । उसक बु/S का तेज ,
उसक चकत हPरणी आँख म चमकता रहा होगा । गोर# क अपेXा साँवली, नखिशख और अंग म
अिधक सुडौल होती है ।राधा गोर# रह# होगी। बालक और युवक कृ ंण राधा म एकरस रहा । ूौढ़
कृ ंण के मन पर कृ ंणा छायी रह# होगी,राधा और कृ ंण तो एक थे ह#।कृ ंण क संतान कब तक
उसक भूल दोहराती रह गी- बेखबर जवानी म गोर# से उलझना और अधेड़ अवःथा म ँयामा को
िनहारना । कृ ंण - कृ ंणा सOब0ध म और कुछ न हो , भारतीय मदc को ँयामा क तुलना म गोर#
के ूित अपने पXपात पर मनन करना चाहए ।
रामायण क नाियका गोर# है । महाभारत क नाियका कृ ंणा है ।गोर# क अपेXा साँवला अिधक
सजीव है । जो भी हो , इसी कृ ंण - कृ ंणा सOब0ध का अनाड़# हाथ फर पुनज%0म हआ।
ु न रहा
उसम कम%फल और कम%फल हे तु Fयाग । कृ ंणा पांचाल यानी कनौज के इलाके क थी , संयुZा भी
। धुर# - के0ि इ0िूःथ का अनाड़# राजा पृ`वीराज अपने पुरखे कृ ंण के राःते न चल सका ।)जस
पांचाली िौपद# के जPरये कु: - धुर# क आधार - िशला रखी गयी , उसी पांचाली संयुZा के जPरये
दjली - कनौज क होड़ जो /वदे िशय के सफल आबमण का कारण बना । कभी - कभी लगता है
क ƒय/Z का तो नह#ं लेकन इितहास का पुनज%0म होता है , कभी फका कभी रँ गीला । कहाँ
िौपद# और कहाँ संयुZा , कहाँ कृ ंण और कहाँ पृ`वीराज , यह सह# है । फका और माराFमक
पुनज%0म , लेकन पुनज%0म तो है ह# ।

कृ ंण क कु: - धुर# के और भी रहःय रहे हगे । साफ़ है क राम आदश%वाद# एकUप एकFव का
िनमा%ता और ूतीक था । उसी तरह जरासंध भौितकवाद# एकFव का िनमा%ता था । आजकल कुछ
लोग कृ ंण और जरासंध युS को आदश%वाद - भौितकवाद का युS मानने लगे ह । वह सह# जँचता
ु था । बाद के मगधीय
है ,क0तु अधूरा /ववेचन । जरासंध भौितकवाद# एकUप एकFव का इtछक
मौय% और गुY राlय म कुछ हद तक इसी भौितकवाद# एकUप एकFव का ूादभा%
ु व हआ
ु और उसी
के अनुUप बौS धम% का ।कृ ंण आदश%वाद# बहUप
ु एकFव का का िनमा%ता था । जहाँ तक मुझे
मालूम है ,अभी तक भारत का िनमा%ण भौितकवाद# बहUप
ु एकFव के आधार पर कभी नह#ं हआ
ु ।
िचर चमFकार तो तब होगा जब आदश%वाद और भौितकवाद के िमलेजुले बहUप
ु एकFव के आधार
पर भारत का िनमा%ण होगा । अभी तक तो कृ ंण का ूयास ह# सवा%िधक माननीय मलूम होता है
, चाहे अनुकरणीय राम का एकUप एकFव ह# हो । कृ ंण क बहUपता
ु म वह /ऽकाल - जीवन है
जो और म नह#ं ।

कृ ंण यादव-िशरोम)ण था , केवल Xऽीय राजा ह# नह#ं , शायद Xऽीय उतना नह#ं था , )जतना
अह#र । तभी तो अह#Pरन राधा क जगह अडग है ,Xऽाणी िौपद# उसे हटा न पायी । /वराट /व‚
और /ऽकाल के उपयुZ कृ ंण बहUप
ु था । राम और जरासंध एकUप थे , चाहे आदश%वाद#
एकUपता म के0ि#यकरण और बूरता कम हो , लेकन कुछ न कुछ के0ि#यकरण तो दोन म होता
है । मौय% और गुY राlय म कतना के0ि#यकरण था , शायद बूरता भी ।

बेचारे कृ ंण ने इतनी िन:ःवाथ% मेहनत क , लेकन जन-मन म राम ह# आगे रहा है । िसफ%
बंगाल म ह# मुद„ - ” बोलो हPर , हPर बोल ” के उtचारण से - अपनी आख़र# याऽा पर िनकाले जाते
ह , नह#ं तो कुछ द)Xण को छोड़ कर सारे भारत म ह0द ू मुद„ - ” राम नाम सFय है ” के साथ ह# ले
जाये जाते ह । बंगाल के इतना तो नह#ं , फर भी उड़#सा और असम म कृ ंण का ःथान अtछा है ।
कहना मुशकल है क राम और कृ ंण म कौन उ0नीस , कौन बीस है । सबसे आeय% क बात है क
ःवयं ॄज के चार ओर क भूिम के लोग भी वहाँ एक - दसरे
ू को ‘ जैरामजी ” से नमःते करते ह ।
सड़क चलते अनजान लोग को भी यह ” जैरामजी ” बड़ा मीठा लगता है , शायद एक कारण यह
भी हो ।

राम ऽेता के मीठे , शा0त और सुसंःकृ त युग का दे व है । कृ ंण पके , जटल , तीखे और ूखर
बु/S युग का दे व है । राम गOय है । कृ ंण अगOय है । कृ ंण ने इतनी अिधक मेहनत क उसके
वंशज उसे अपना अंितम आदश% बनाने से घबड़ाते ह , यद बनाते भी ह तो उसके िमऽभेद और
कूटनीित क नकल करते ह , उसका अथक िनःव उनके िलए असा^य रहता है । इसीिलए कृ ंण
ह0दःतान
ु म कम% का दे व न बन सका । कृ ंण ने कम% राम से lयादा कये ह । कतने स)0ध और
/वमह और ूदे श के आपसी सOब0ध के धागे उसे पलटने पड़ते थे ।यह बड़# मेहनत और बड़ा
पराबम था। इसके यह मतलब नह#ं क ूदे श के आपसी सOब0ध म म कृ ंणनीित अब भी
चलायी जए । कृ ंण जो पूव% - प)eम क एकता दे गया ,उसी के साथ - साथ उस नीित का औिचFय
भी खतम हो गया । बच गया कृ ंण का मन और उसक वाणी । और बच गया राम का कम% । अभी
तक ह0दःतानी
ु इन दोन का सम0वय नह#ं कर पाये ह । कर , तो राम के कम% म भी पPरवत%न
आये । राम रोऊ है , इतना क मया%दा भंग होती है । कृ ंण कभी रोता नह#ं । आँख जUर डबडबाती
ह उसक , कुछ मौक पर , जैसे जब कसी सखी या नार# को दE
ु लोग नंगा करने क कोिशश करते
ह।

कैसे मन और वाणी थे उस कृ ंण के । अब भी तब क गो/पयाँ और जो चाह वे ,उसक वाणी और


मुरली क तान सुन कर रस /वभोर हो सकते ह और अपने चमड़े के बाहर उछल सकते ह । साथ ह#
कम%-संग के Fयाग , सुख-दख
ु ,शीत-उंण,जय-पराजय के समFव के योग और सब भूत म एक
अƒयव भाव का सुर#ला दश%न ,उसक वाणी म सुन सकते ह ।संसार म एक कृ ंण ह# हआ
ु )जसने
दश%न को गीत बनाया ।

वाणी क दे वी िौपद# से कृ ंण का सOब0ध कैसा था । ?या सखा - सखी का सOब0ध ःवयं एक


अ)0तम सीढ़# और असीम मैदान है , )जसके बाद और कसी सीढ़# और मैदान क जUरत नह#ं ?
कृ ंण छिलया जUर था , लेकन कृ ंणा से उसने कभी छल न कया । शायद वचन - बS था ,
इसिलए । जब कभी कृ ंणा ने उसे याद कया , वह आया । †ी - पु:ष क कसलय - िमऽता को ,
आजकल के वैaािनक , अव:S रिसकता के नाम से पुकारते ह । यह अवरोध सामा)जक या मन के
आ0तPरक कारण से हो सकता है । पाँच पाTडव कृ ंण के भाई थे और िौपद# कु: - पांचाल संिध
क आधार- िशला थी ।अवरोध के सभी कारण मौजूद थे । फर भी , हो सकता है क कृ ंण को
अपनी िचQूवृ/Qय का कभी /वरोध न करना पड़ा हो । यह उसके िलए सहज और अ)0तम
सOब0ध था अगर यह सह# है , तो कृ ंण - कृ ंणा के सखा - सखी सOब0ध के Lयोरे पर दिनया
ु म
/व‚ास होना चाहए और तफ़सील से , )जससे से †ी - पु:ष सOब0ध का एक नया कमरा खुल
सके । अगर राधा क छटा िनराली है , तो कृ ंण क घटा भी । छटा म तु/Eूदान रस है , घटा म
उFकंठा-ूधान कQ%ƒय ।

राधा - रस तो िनराला है ह# । राधा - कृ ंण एक ह , राधा - कृ ंण का †ी Uप और कृ ंण राधा का


पु:ष Uप । भारतीय साहFय म राधा का )जब बहत
ु पुराना नह#ं है , ?यक सबसे पहली बार
पुराण म आता है ” अनुराधा ” के नाम से । नाम ह# बताता है ूेम और भ/Z का वह ःवUप , जो
आFम /वभोर है , )जससे सीमा बाँधने वाली चमड़# रह नह#ं जाती । आधुिनक समय म मीरा ने भी
उस आFम/वभोरता को पाने क कोिशश क । बहत
ु दरू तक गयी मीरा , शायद उतनी दरू गयी
)जतना कसी सजीव दे ह को कसी याद के िलए जाना संभव हो । फर भी , मीरा क
आFम/वभोरता म कुछ गमo थी । कृ ंण को तो कौन जला सकता है , सुलझा भी नह#ं सकता ,
लेकन मीरा के पास बैठने म उसे जUर कुछ पसीना आये , कम से कम गमo तो लगे । राधा न
गरम है , न ठं ड# , राधा पूण% है । मीरा क कहानी एक और अथ% म बेजोड़ है । पि‡नी मीरा क
पुर)खन थी । दोन िचQौड़ क नाियकाएँ ह । कर#ब ढाई सौ वष% का अ0तर है । कौन बड़# है , वह
पि‡नी जो जौहर करती है या वह मीरा )जसे कृ ंण के िलए नाचने से कोई मना न कर सका । पुराने
दे श क यह# ूितभा है । बड़ा जमाना दे खा है इस ह0दःतान
ु ने । ?या पि‡नी थकती - थकती
सकड़ बरस म मीरा बन जाती है ? या मीरा ह# पि‡नी का ौे, ःवUप है ? अथवा जब ूताप आता
है , तब मीरा फर पि‡नी बनती है । हे /ऽकालदशo कृ ंण ! ?या तुम एक ह# म मीरा और पि‡नी
नह#ं बन सकते ?

राधा - रस का पूरा मजा तो ॄज - रज म िमलता है । म सरयू और अयो^या का बेटा हँू । ॄज -


रज म शायद कभी न लौट सकूँगा । लेकन मन से तो लौट चुका हँू । ौी राधा क नगर# बरसाने के
पास एक रात रह कर मने राधारानी के गीत सुने ह ।

कृ ंण बड़ा छिलया था । कभी ँयामा मािलन बन कर , राधा को फूल बेचने आता था । कभी वै
बन कर आता था , ूमाण दे ने क राधा अभी ससुराल जाने लायक नह#ं है । कभी राधा \यार# को
गोदाने का 0योता दे ने के िलए गोदनहाPरन बन कर आता था । कभी वृ0दा क साड़# पहन कर
आता था और जब राधा उससे एक बार िचपट कर अलग होती थी , शायद झुँझला कर , शायद
इतरा कर , तब ौी कृ ंण मुरार# को ह# छpठ> का दध
ू याद आता था , बैठ कर समझाओ राधारानी
को क वृ0दा से आँख नह#ं लड़ायी ।

म समझता हँू क नार# अगर कह#ं नर के बराबर हइ


ु है , तो िसफ% ॄज म और का0हा के पास ।
शायद इसीिलए आज भी ह0दःतान
ु क औरत वृ0दावन म जमुना के कनारे एक पेड़ म :माल
)जतनी चुनड़# बाँधने का अिभनय करती ह । कौन औरत नह#ं चाहे गी क0है या से अपनी चुनड़#
हरवाना , ?यक कौन औरत नह#ं जानती क दE
ु जन ;ारा चीर हरण के समय कृ ंण ह# उनक
चुनड़# अन0त करे गा । शायद जो औरत पेड़ म चीर बाँधती ह , उ0ह यह सब बताने पर वह
लजाएँगी , लेकन उनके पुऽ पुTय आद क कामना के पीछे भी कौन - सी सुषुY याद है ।

ॄज क मुरली लोग को इतना /वˆल कैसे बना दे ती है क वे कु:Xेऽ के कृ ंण को भूल जाँए और


फर मुझे तो लगता है क अयो^या का राम मनीपुर से ;ारका के कृ ंण को कभी भुलाने न दे गा ।
जहाँ मने चीर बाँधने का अिभनय दे खा उसी के नीचे वृ0दावन के ग0दे पानी का नाला बहते दे खा ,
जो जमुना से िमलता है और राधा रानी के बरसाने क रँ गीली गली म पैर बचा - बचा कर रखना
पड़ता है क कह#ं कसी ग0दगी म न सन जाँए । यह वह# रँ गीली गली है , जहाँ से बरसाने क
औरत हर होली पर लाठ> ले कर िनकलती ह और )जनके नु?कड़ पर न0द गाँव म मद% मोटे साफे
बाँध और बड़# ढाल से अपनी रXा करते ह । राधा रानी अगर कह#ं आ जाए , तो वह इन नाल और
ग0दिगय को तो खतम करे ह# , बरसाने क औरत के हाथ म इऽ , गुलाल और हjके , भीनी महक
वाले , रं ग क /पचकाली थमाये और न0द गाँव के मरद को होली खेलने के िलए 0योता दे । ॄज म
महक और नह#ं है , कुंज नह#ं है , केवल करोल रह गये ह । शीतलता खतम है ।बरसाने म मने
ु ढँू ढ़ा । पाँच - दस घर हगे । वहाँ बिनयाइन और ॄा‰)णय का
राधारानी क अह#Pरन को बहत
जमाव हो गया है , जब कसी जात म कोई बड़ा आदमी या बड़# औरत हई
ु , तीथ% - ःथान बना और
म)0दर और दकान
ु दे खते - दे खते आयीं , तब इन ;ज नाPरय के चेहरे भी Oलान थे , गर#ब , कृ श
% ावश ;ज - शऽु समझने लगे ह । म तो ;ज - िमऽ हँू , इसिलए
और रोगी , कुछ लोग मुझे मूखत
दे ख रहा हँू क राधारानी क गो/पयाँ , मjलाहन और चमाइन को हटा कर ;जनाPरय ने भी
अपनी कांित खो द# है । िमलाओ ॄज क रज म पुंप क महक , दो ह0दःतान
ु को कृ ंण क
बहUपी
ु एकता , हटाओ राम का एक Uपी ;ज - शूि धम% , लेकन चलो राम के मया%दा वाले राःते
पर , सच और िनयम पालन कर ।

सरयू और यमुना कQ%ƒय क नदयाँ ह । कQ%ƒय कभी - कभी कठोर हो कर अ0यायी हो जाता है
और नुकसान कर बैठता है । जमुना और चOबल , केन तथा दसर#
ू जमुना - मुखी नदयाँ रस क
नदयाँ ह । रस म िमलन है , कलह िमटाता है । लेकन लाःय भी है , जो िगरावट म मनुंय को
िनकOमा बना दे ता है । इसी रसभर# इतराती जमुना के कनारे कृ ंण ने अपनी लीला क , लेकन
कु: धुर# का के0ि उसने गंगा के कनारे ह# बसाया । बाद म , ह0दःतान
ु के कुछ राlय जमुना के
कनारे बने और एक अब भी चल रहा है । जमुना ?या तुम कभी बदलोगी , आ)खर गंगा म ह# तो
िगरती हो । ?या कभी इस भूिम पर रसमय कQ%ƒय का उदय होगा । कृ ंण ! कौन जाने तुम थे या
नह#ं । कैसे तुमने राधा - लीला को कु: लला से िनभाया । लोग कहते ह क युवा कृ ंण का ूौढ़
कृ ंण से कोई सOब0ध नह#ं । बताते ह क महाभारत म राधा का नाम तक नह#ं । बात इतनी सच
नह#ं , ?यक िशशुपाल ने बोध म कृ ंण क पुरानी बात साधारण तौर पर /बना नामकरण के
बतायी ह । सmय लोग ऐसे )जब असमय नह#ं कया करते , जो समझते ह वे , और जो नह#ं
समझते ह वे भी । महाभारत म राधा का )जब हो कैसे सकता है । राधा का वTन% तो वह# होगा जहाँ
तीन लोक का ःवामी उसका दास है । रास का कृ ंण और गीता का कृ ंण एक ह । न जाने हजार
वष% से अभी तक पलड़ा इधर या उधर ?य भार# हो जाता है ? बताओ कृ ंण !

( ” जन ” , १९५८ जुलाई से )

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