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Krishna
Krishna
Krishna
लोहया)
मनुंय क शार#Pरक सीमा उसका चमड़ा और नख है । यह शार#Pरक सीमा उसे अपना एक दोःत
, एक माँ , एक बाप , एक दश%न वगैरह दे ती रहती है । क0तु समय हमेशा इस सीमा से बाहर
उछलने क कोिशश करता रहता है , मन ह# के ;ारा उछल सकता है । कृ ंण उसी तFव और महान
ूेम का नाम है जो मन को ूदQ सीमाओं से उलाँघता-उलाँघता सब म िमला दे ता है , कसी से भी
अलग नह#ं रखता । ?यक कृ ंण तो घटनाबम वाली मनुंय लीला है , केवल िसSा0त और
तFव का /ववेचन नह#ं , इसिलए उसक सभी चीज अपनी और एक क सीमा म न रह कर दो और
िनरापनी हो गयी है । य दोन म ह# कृ ंण का तो िनरापना है , क0तु लीला के तौर पर अपनी माँ ,
बीवी और नगर# से परायी बढ़ गयी है । पराई को अपनी से बढ़ने दे ना भी तो एक मानी म अपनेपन
को खFम करना है । मथुरा का एकािधपFय खFम करती है ;ारका , लेकन उस बम म ;ारका
अपना ौे,Fव जैसा कायम कर लेती है ।
जब मेर# छे ड़ चलती रह# तो एक ने कहा क आ)खर सQू वाले राम से गोवध%न वािसय का नेह
कैसे चल सकता है । उनका दल तो माखन - िमसर# वाले कृ ंण से लगा है ।
माखन - िमसर# वाला कृ ंण , सQू वाला राम कुछ सह# है , पर उसक अपनी उँ गली अब तक
दख
ू रह# है ।
कृ ंण बहत
ु अिधक ह0दतान
ु के साथ जुड़ा हआ
ु है । ह0दःतान
ु के lयादातर दे व और अवतार
अपनी िमpट# के साथ सने हए
ु ह । िमpट# से अलग करने पर वे बहत
ु कुछ िनंूाण हो जाते ह ।
ऽेता का राम ह0दःतान
ु क उQर - द)Xण एकता का दे व है । ;ापर का कृ ंण दे श क पूव% - प)eम
धुर# पर घूमे । कभी - कभी तो ऐसा लगता है क दे श को उQर - द)Xण और पूव% - प)eम एक
करना ह# राम और कृ ंण का धम% था ।य सभी धमc क उFप/Q राजनीित से है , /बखरे हए
ु ःवजन
को इकpठा करना , कलह िमटाना , सुलह कराना और हो सके तो अपनी और सब क सीमा को
ढहाना । साथ - साथ जीवन को कुछ ऊँचा उठाना , सदाचार क D/E से और आFम - िच0तन क
भी ।
महाभारत ह0दःतान
ु के क पूव% - प)eम याऽा है , )जस तरह रामायण उQर - द)Xण याऽा है ।
पूव% - प)eम याऽा का नायक कृ ंण है , )जस तरह उQर - द)Xण याऽा का नायक राम है । मणीपुर
से ;ारका तक कृ ंण या उसके सहचर का पराबम हआ
ु हआ
ु है , जैसे जनकपुर से ौीलंका तक राम
या उसके सहचर का । राम का काम अपेXाकृ त सहज था । कम से कम उस काम म एकरसता
अिधक थी । राम का मुकाबला या दोःती हई
ु भील , करात , क0नर , राXस इFयाद से , जो
उसक अपनी सmयता से अलग थे । राम का काम था इनको अपने म शािमल करना और उनको
अपनी सmयता म ढाल दे ना , चाहे हराये /बना या हराने के बाद ।
पूव% - प)eम एकता क दो धुPरयाँ ःपE ह# कृ ंण - काल म थीं । एक पटना - गया क मगधपुर#
और दसर#
ू ह)ःतनापुर - इ0िूःथ क कु:-धुर# । मगध - धुर# का भी फैलाव ःवयं कृ ंण क मथुरा
तक था जहाँ मगध - नरे श जरासंध का दामाद कंस राlय करता था । बीच म िशशुपाल आद
मगध के आिौत - िमऽ थे । मगध - धुर# के )खलाफ़ कु: - धुर# का सशZ िनमा%ता कृ ंण था ।
कतना बड़ा फैलाव कया कृ ंण ने इस धुर# का । पूव% म म)णपुर से ले कर प)eम म ;ारका तक
इस कु: - धुर# म समावेश कया । दे श क दोन सीमाओं , पूव% क पहाड़# सीमा और प)eम क
समुि# सीमा को फाँसा और बाँधा , इस धुर# को कायम और श/Zशाली करने के िलए कतनी
मेहनत और कतने पराबम करने पड़े , और कतनी लOबी सूझ सोचनी पड़# ।उसने पहला ह# वार
अपने ह# घर मथुरा म मगधराज के दामाद पर कया । उस समय सारे ह0दःतान
ु म यह वार गूँजा
होगा । कृ ंण क यह पहली ललकार थी , वाणी ;ारा नह#ं । उसने कम% ;ारा रण-भेर# बजायी ।
कौन अनसुनी कर सकता था । सबको िनम0ऽण हो गया यह सोचने के िलए क मगध राजा को
अथवा )जसे कृ ंण कहे उसे सॆाट के Uप म चुनो । अ)0तम चुनाव भी कृ ंण ने बड़े छली Uप म
ु
रखा । कु: - वंश म ह# 0याय-अ0याय के आधार पर दो टकड़े हए ु
ु और उनम अ0यायी टकड़# के
साथ मगध - धुर# को जुड़वा दया। संसार ने सोचा होगा क वह तो कु:वंश का अ0द:नी और
आपसी झगड़ा है । कृ ंण जानता था क वह तो इ0िूःथ ह)ःतनापुर क कु: - धुर# और राजिगPर
क मगध-धुर# का झगड़ा है ।
राजिगPर राlय कंस - वध पर ितलिमला उठा होगा । कृ ंण ने पहले ह# वार म मगध क प)eमी
को खतम-सा कर दया । लेकन अभी तो ताकत बहत
ु lयादा बटोरनी और बढ़ानी थी । यह तो
िसफ% आरOभ था । आरOभ अtछा हआ
ु । सारे संसार को मालूम हो गया । लेकन कृ ंण कोई बुSू
थोड़े ह# था जो आरOभ क लड़ाई को अ0त बना दे ता । उसके पास अभी इतनी ताकत तो थी नह#ं
जो कंस के ससुर और उसक पूरे ह0दःतान
ु क श/Z से जूझ बैठता । वार करके , संसार को डं का
सुना के कृ ंण भाग गया । भागा भी बड़# दरू ;ारका म । तभी से उसका नाम रणछोड़दास पड़ा ।
गुजरात म आज भी हजार लोग शायद एक लाख से भी अिधक लोग हगे )जनका नाम
रणछोड़दास है । पहले म इस नाम पर हँ सा करता था , मुसकाना तो कभी न छोड़ू ँ गा । य ,
ह0दःतान
ु म और भी दे वता ह )ज0हने अपना पराबम भाग कर दखाया जैसे aानवापी के िशव
ने । यह पुराना दे श है । लड़ते - लड़ते थक ह)uडय को भागने का अवसर िमलना चाहए । लेकन
कृ ंण थक /पTडिलय के कारण नह#ं भागा । वह भागा जवानी क बढ़ती ह)uडय के कारण । अभी
ह)uडय को बढ़ाने और फैलाने का मौका चाहए था । कृ ंण क पहली लड़ाई तो आजकल क
छापामार लड़ाई क तरह थी , वार करो और भागो । अफ़सोस यह# है क कुछ भZ लोग भगाने ह#
म मजा लेते ह ।
;ारका मथुरा से सीधे फासले पर कर#ब ७०० मील है । वत%मान सड़क क यद दर#
ू नापी जाए
तो कर#ब १०५० मील होती है । /बचली दर#
ू इस तरह ८५० मील होती है । कृ ंण अपने शऽु से बड़#
दरू तो िनकल ह# गया , साथ ह# साथ दे श क पूव% - प)eम एकता हािसल करने के िलए उसने
प)eम के आखर# नाके को बाँध िलया । बाद म , पाँच पाTडव के बनवासयुग म अजुन
% क
िचऽांगदा और भीम क हडOबा के जPरये उसने पूव% के आ)खर# नाके को भी बाँधा । इन फासल
को नाँपने के िलए मथुरा से अयो^या , अयो^या से राजमहल और राजमहल से इOफाल क दर#
ू
जाननी जUर# है ।यह# रहे हगे उस समय के /वशाल राजमाग% । मथुरा से अयो^या क /बचली दर#
ू
कर#ब ३०० मील है ।अयो^या से राजमहल कर#ब ४७० मील है । राजमहल से इOफाल क /बचली
दर#
ू कर#ब सवा पाँच सौ , य वत%मान सड़क से फासला कर#ब ८५० मील और सीधा फासला कर#ब
३८० मील है । इस तरह मथुरा से इOफाल का फासला उस समय के राजमाग% से कर#ब १६०० मील
रहा होगा । कु: - धुर# के के0ि पर कLजा करने और उसे सशZ बनाने के पहले कृ ंण के0ि से ८००
मील दरू भागा और अपने सहचर और चेल को उसने १६०० मील दरू तक घुमाया । पूव-% प)eम क
पूर# भारत-याऽा हो गयी । उस समय क भारतीय राजनीित को समझने के िलए कुछ दPरयाँ
ू और
जानना जUर# है है । मथुरा से बनारस का फासला कर#ब ३७० मील और मथुरा से पटना कर#ब
५०० मील है । दjली से , जो तब इ0िूःथ थी , मथुरा का फासला कर#ब ९० मील है । पटने से
कलकQे का फासला कर#ब सवा तीन सौ मील है । कलकQे के फासले का कोई /वशेष ताFपय% नह#ं
,िसफ% इतना ह# क कलकQा भी कुछ समय तक ह0दःतान
ु क राजधानी रह# है , चाहे गुलाम
ह0दःतान
ु क ।मगध-धुर# का पुनज%0म एक अथ% म कलकQे म हआ
ु । )जस तरह कृ ंण - कालीन
मगध-धुर# के िलए राजिगPर के0ि , उसी तरह ऐितहािसक मगध-धुर# के िलए पटना या पाटिलपुऽ
के0ि है , और इन दोन का फासला कर#ब ४० मील है । पटना - राजिगPर के0ि का पुनज%0म
कलकQे म होता है , इसका इितहास के /वाथo अ^ययन कर , चाहे अ^ययन करते समय
स0तापपूण% /ववेचन कर क यह काम /वदे शी तFवाधान म ?य हआ
ु ।
कृ ंण ने मगध धुर# का नाश करके कु: - धुर# क ूित,ा ?य करनी चाह# ? इसका एक उQर तो
साफ है , भारतीय जागरण का बाहjय
ु उस समय उQर और प)eम म था जो राजिगPर और पटना
से बहत
ु दरू पड़ जाता था । उसके अलावा मगध - धुर# कुछ पुरानी पड़ चुक थी ,श/Zशाली थी ,
क0तु उसका फैलाव संकुिचत था । कु: - धुर# नयी थी और कृ ंण इसक श/Z और इसके फैलाव
का सव%श/ZसOप0न िनमा%ता था , मगध - धुर# को )जस तरह चाहता शायद न मोड़ सकता ,कु: -
धुर# को अपनी इtछा के अनुसार मोड़ और फैला सकता था । सारे दे श को बाँधना जो था उसे ।
कृ ंण /ऽकालदशo था । उसने दे ख िलया होगा क उQर - प)eम म आगे चल कर यूनािनय , हण
ू
,पठान , मुगल आद के आबमण हगे इसिलए भारतीय एकता क धुर# का के0ि कह#ं वह#ं रचना
चाहए , जो इन आबमण का सशZ मुकाबला कर कर सके । लेकन /ऽकालदशo ?य न दे ख
पाया क इन /वदे शी आबमण के पहले ह# दे शी मगध - धुर# बदला चुकाएगी और सकड़
वष% तक भारत पर अपना ूभुFव कायम करे गी और आबमण के समय तक कृ ंण क भूिम के
नजद#क यािन क0नौज और उlजैन तक )खसक चुक होगी , क0तु अशZ अवःथा म ।
/ऽकालदशo ने दे खा शायद यह सब कुछ हो , लेकन कुछ न कर सका हो । वह हमेशा के िलए अपने
दे शवािसय को कैसे aानी और साधु दोन बनाता । वह तो केवल राःता दखा सकता था । राःते
म भी शायद ऽृट थी । /ऽकालदशo को शायद यह भी दे खना चाहए था क उसके राःते पर aानी
ह# नह#ं , अनाड़# भी चलगे और वेकतना भार# नुकसान उठायगे ।राम के राःते पर चल कर अनाड़#
का भी अिधक नह#ं /बगड़ता , चाहे बनना भी कम होता हो । अनाड़# ने कु: - पांचाल संिध का ?या
कया ?
कु: - धुर# क आधार - िशला थी कु: - पांचाल संिध । आसपास के इन इलाक का वळ समान एका
कायम करना था सो कृ ंण ने उन लीलाओं के ;ारा कया , )जनसे पांचाली का /ववाह पाँच पाTडव
से हो गया । यह पांचाली भी अत
ु नार# थी । िौपद# से बढ़ कर भारत क कोई ूखर - मुखी और
aानी नार# नह#ं । कैसे कु: पX के सभी को उQर दे ने के िलए ललकारती है क जो आदमी अपने
को हार चुका है ?या दसरे
ू को दाँव पर रखने क उसम ःवतंऽ सQा है ?
अजुन
% समेत पाँच पाTडव उसके सामने फके थे । यह कृ ंणा तो कृ ंण के ह# लायक थी ।
महाभारत का नायक कृ ंण , नाियका कृ ंणा । कृ ंणा और कृ ंण का सOब0ध भी /व - साहFय
म बेिमसाल है । दोन सखा - सखी ह# ?य रहे । कभी कुछ और दोन म से कसीने होना चाहा ?
?या सखा - सखी का सOब0ध पूव% Uप से मन क दे न थी या उसम कु: - धुर# के िनमा%ण और
फैलाव का अंश था ? जो हो , कृ ंण और कृ ंणा का यह सOब0ध राधा और कृ ंण के सOब0ध से
कम नह#ं , लेकन साहFयकार और भZ क नजर इस ओर कम पड़# है । हो सकता है क भारत
क पूव% - प)eम एकता के इस िनमा%ता को अपनी ह# सीख के अनुसार केवल कम% , न क कम%फल
का अिधकार# होना पड़ा , शायद इसिलए क यद वह वःय कम%फल-हे तु बन जाता , तो इतना
अनहोना िनमा%ता हो ह# नह#ं सकता था । उसने कभी लालच न क क अपनी मथुरा को ह# धुर# -
के0ि बनाये , उसके िलए दसर
ू का ह)ःतनापुर ह# अtछा रहा । उसी तरह कृ ंणा को भी सखी Uप
म रखा , )जसे संसार अपनी कहता है , वैसी न बनाया । कौन जाने कृ ंण के िलए यह सहज था या
इसम भी उसका दल दखा
ू था ।
कृ ंणा अपने नाम के अनुUप साँवली थी , महान सु0दर# रह# होगी । उसक बु/S का तेज ,
उसक चकत हPरणी आँख म चमकता रहा होगा । गोर# क अपेXा साँवली, नखिशख और अंग म
अिधक सुडौल होती है ।राधा गोर# रह# होगी। बालक और युवक कृ ंण राधा म एकरस रहा । ूौढ़
कृ ंण के मन पर कृ ंणा छायी रह# होगी,राधा और कृ ंण तो एक थे ह#।कृ ंण क संतान कब तक
उसक भूल दोहराती रह गी- बेखबर जवानी म गोर# से उलझना और अधेड़ अवःथा म ँयामा को
िनहारना । कृ ंण - कृ ंणा सOब0ध म और कुछ न हो , भारतीय मदc को ँयामा क तुलना म गोर#
के ूित अपने पXपात पर मनन करना चाहए ।
रामायण क नाियका गोर# है । महाभारत क नाियका कृ ंणा है ।गोर# क अपेXा साँवला अिधक
सजीव है । जो भी हो , इसी कृ ंण - कृ ंणा सOब0ध का अनाड़# हाथ फर पुनज%0म हआ।
ु न रहा
उसम कम%फल और कम%फल हे तु Fयाग । कृ ंणा पांचाल यानी कनौज के इलाके क थी , संयुZा भी
। धुर# - के0ि इ0िूःथ का अनाड़# राजा पृ`वीराज अपने पुरखे कृ ंण के राःते न चल सका ।)जस
पांचाली िौपद# के जPरये कु: - धुर# क आधार - िशला रखी गयी , उसी पांचाली संयुZा के जPरये
दjली - कनौज क होड़ जो /वदे िशय के सफल आबमण का कारण बना । कभी - कभी लगता है
क य/Z का तो नह#ं लेकन इितहास का पुनज%0म होता है , कभी फका कभी रँ गीला । कहाँ
िौपद# और कहाँ संयुZा , कहाँ कृ ंण और कहाँ पृ`वीराज , यह सह# है । फका और माराFमक
पुनज%0म , लेकन पुनज%0म तो है ह# ।
कृ ंण क कु: - धुर# के और भी रहःय रहे हगे । साफ़ है क राम आदश%वाद# एकUप एकFव का
िनमा%ता और ूतीक था । उसी तरह जरासंध भौितकवाद# एकFव का िनमा%ता था । आजकल कुछ
लोग कृ ंण और जरासंध युS को आदश%वाद - भौितकवाद का युS मानने लगे ह । वह सह# जँचता
ु था । बाद के मगधीय
है ,क0तु अधूरा /ववेचन । जरासंध भौितकवाद# एकUप एकFव का इtछक
मौय% और गुY राlय म कुछ हद तक इसी भौितकवाद# एकUप एकFव का ूादभा%
ु व हआ
ु और उसी
के अनुUप बौS धम% का ।कृ ंण आदश%वाद# बहUप
ु एकFव का का िनमा%ता था । जहाँ तक मुझे
मालूम है ,अभी तक भारत का िनमा%ण भौितकवाद# बहUप
ु एकFव के आधार पर कभी नह#ं हआ
ु ।
िचर चमFकार तो तब होगा जब आदश%वाद और भौितकवाद के िमलेजुले बहUप
ु एकFव के आधार
पर भारत का िनमा%ण होगा । अभी तक तो कृ ंण का ूयास ह# सवा%िधक माननीय मलूम होता है
, चाहे अनुकरणीय राम का एकUप एकFव ह# हो । कृ ंण क बहUपता
ु म वह /ऽकाल - जीवन है
जो और म नह#ं ।
कृ ंण यादव-िशरोम)ण था , केवल Xऽीय राजा ह# नह#ं , शायद Xऽीय उतना नह#ं था , )जतना
अह#र । तभी तो अह#Pरन राधा क जगह अडग है ,Xऽाणी िौपद# उसे हटा न पायी । /वराट /व
और /ऽकाल के उपयुZ कृ ंण बहUप
ु था । राम और जरासंध एकUप थे , चाहे आदश%वाद#
एकUपता म के0ि#यकरण और बूरता कम हो , लेकन कुछ न कुछ के0ि#यकरण तो दोन म होता
है । मौय% और गुY राlय म कतना के0ि#यकरण था , शायद बूरता भी ।
बेचारे कृ ंण ने इतनी िन:ःवाथ% मेहनत क , लेकन जन-मन म राम ह# आगे रहा है । िसफ%
बंगाल म ह# मुद - ” बोलो हPर , हPर बोल ” के उtचारण से - अपनी आख़र# याऽा पर िनकाले जाते
ह , नह#ं तो कुछ द)Xण को छोड़ कर सारे भारत म ह0द ू मुद - ” राम नाम सFय है ” के साथ ह# ले
जाये जाते ह । बंगाल के इतना तो नह#ं , फर भी उड़#सा और असम म कृ ंण का ःथान अtछा है ।
कहना मुशकल है क राम और कृ ंण म कौन उ0नीस , कौन बीस है । सबसे आeय% क बात है क
ःवयं ॄज के चार ओर क भूिम के लोग भी वहाँ एक - दसरे
ू को ‘ जैरामजी ” से नमःते करते ह ।
सड़क चलते अनजान लोग को भी यह ” जैरामजी ” बड़ा मीठा लगता है , शायद एक कारण यह
भी हो ।
राम ऽेता के मीठे , शा0त और सुसंःकृ त युग का दे व है । कृ ंण पके , जटल , तीखे और ूखर
बु/S युग का दे व है । राम गOय है । कृ ंण अगOय है । कृ ंण ने इतनी अिधक मेहनत क उसके
वंशज उसे अपना अंितम आदश% बनाने से घबड़ाते ह , यद बनाते भी ह तो उसके िमऽभेद और
कूटनीित क नकल करते ह , उसका अथक िनःव उनके िलए असा^य रहता है । इसीिलए कृ ंण
ह0दःतान
ु म कम% का दे व न बन सका । कृ ंण ने कम% राम से lयादा कये ह । कतने स)0ध और
/वमह और ूदे श के आपसी सOब0ध के धागे उसे पलटने पड़ते थे ।यह बड़# मेहनत और बड़ा
पराबम था। इसके यह मतलब नह#ं क ूदे श के आपसी सOब0ध म म कृ ंणनीित अब भी
चलायी जए । कृ ंण जो पूव% - प)eम क एकता दे गया ,उसी के साथ - साथ उस नीित का औिचFय
भी खतम हो गया । बच गया कृ ंण का मन और उसक वाणी । और बच गया राम का कम% । अभी
तक ह0दःतानी
ु इन दोन का सम0वय नह#ं कर पाये ह । कर , तो राम के कम% म भी पPरवत%न
आये । राम रोऊ है , इतना क मया%दा भंग होती है । कृ ंण कभी रोता नह#ं । आँख जUर डबडबाती
ह उसक , कुछ मौक पर , जैसे जब कसी सखी या नार# को दE
ु लोग नंगा करने क कोिशश करते
ह।
कृ ंण बड़ा छिलया था । कभी ँयामा मािलन बन कर , राधा को फूल बेचने आता था । कभी वै
बन कर आता था , ूमाण दे ने क राधा अभी ससुराल जाने लायक नह#ं है । कभी राधा \यार# को
गोदाने का 0योता दे ने के िलए गोदनहाPरन बन कर आता था । कभी वृ0दा क साड़# पहन कर
आता था और जब राधा उससे एक बार िचपट कर अलग होती थी , शायद झुँझला कर , शायद
इतरा कर , तब ौी कृ ंण मुरार# को ह# छpठ> का दध
ू याद आता था , बैठ कर समझाओ राधारानी
को क वृ0दा से आँख नह#ं लड़ायी ।
सरयू और यमुना कQ%य क नदयाँ ह । कQ%य कभी - कभी कठोर हो कर अ0यायी हो जाता है
और नुकसान कर बैठता है । जमुना और चOबल , केन तथा दसर#
ू जमुना - मुखी नदयाँ रस क
नदयाँ ह । रस म िमलन है , कलह िमटाता है । लेकन लाःय भी है , जो िगरावट म मनुंय को
िनकOमा बना दे ता है । इसी रसभर# इतराती जमुना के कनारे कृ ंण ने अपनी लीला क , लेकन
कु: धुर# का के0ि उसने गंगा के कनारे ह# बसाया । बाद म , ह0दःतान
ु के कुछ राlय जमुना के
कनारे बने और एक अब भी चल रहा है । जमुना ?या तुम कभी बदलोगी , आ)खर गंगा म ह# तो
िगरती हो । ?या कभी इस भूिम पर रसमय कQ%य का उदय होगा । कृ ंण ! कौन जाने तुम थे या
नह#ं । कैसे तुमने राधा - लीला को कु: लला से िनभाया । लोग कहते ह क युवा कृ ंण का ूौढ़
कृ ंण से कोई सOब0ध नह#ं । बताते ह क महाभारत म राधा का नाम तक नह#ं । बात इतनी सच
नह#ं , ?यक िशशुपाल ने बोध म कृ ंण क पुरानी बात साधारण तौर पर /बना नामकरण के
बतायी ह । सmय लोग ऐसे )जब असमय नह#ं कया करते , जो समझते ह वे , और जो नह#ं
समझते ह वे भी । महाभारत म राधा का )जब हो कैसे सकता है । राधा का वTन% तो वह# होगा जहाँ
तीन लोक का ःवामी उसका दास है । रास का कृ ंण और गीता का कृ ंण एक ह । न जाने हजार
वष% से अभी तक पलड़ा इधर या उधर ?य भार# हो जाता है ? बताओ कृ ंण !
( ” जन ” , १९५८ जुलाई से )