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तैलंग स्वामी
तैलंग स्वामी
त्रैलंग स्वामी (जिन्हें तैलंग स्वामी या तेलंग स्वामी भी कहा जाता है) वाराणसी में रहने वाले एक महान हिंदू योगी थे। वह अपनी दैवीय शक्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी
आध्यात्मिक और योगिक शक्तियों के बारे में कई कहानियां हैं। उन्होंने लगभग 300 वर्षों का लंबा जीवन व्यतीत किया और लगभग 150 वर्षों तक वाराणसी में निवास
किया। ऐसा माना जाता है कि त्रैलंग स्वामी भगवान शिव के अवतार थे और उन्हें "वाराणसी के चलते-फिरते भगवान शिव" के रूप में जाना जाता है।
उनका जन्म आंध्र प्रदेश राज्य के विजयनगरम में होलिया में हुआ था और बनारस में उनके आगमन के बाद उनका नाम त्रैलंग स्वामी रखा गया। उनके माता-पिता
(नरसिंह राव और विद्यावती देवी) भगवान शिव के परम भक्त थे। उनके जीवनीकारों और विश्वासियों के अनुसार, उनकी जन्म तिथि और दीर्घायु की सटीक अवधि
हमेशा बहस का कें द्र रहती है। कु छ शिष्यों के अनुसार, उनकी जन्मतिथि 1529 थी, लेकिन कु छ कहते हैं कि यह 1607 थी। लोग उन्हें आम तौर पर उनके पूर्ववर्ती
नाम शिवराम से बुलाते थे। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन (40 वर्ष की आयु के बाद) एक झोपड़ी में एक वैरागी के रूप में व्यतीत किया।
उन्होंने बीस वर्षों तक कठिन साधना की और फिर 1679 में अपने गुरु भागीरथानन्द की दीक्षा लेकर उन्होंने सन्यास प्राप्त किया। सन्यास प्राप्त करने के बाद वे तीर्थ
यात्रा पर गए और 1733 में प्रयाग पहुँचे और अंत में वे 1737 में वाराणसी में बस गए।
1887 में अपनी मृत्यु तक वे वाराणसी में अस्सी घाट, हनुमान घाट पर वेदव्यास आश्रम, दशाश्वमेध घाट जैसे कु छ विशेष स्थानों पर रहे। वे हमेशा एक बच्चे की तरह
लापरवाह थे और अक्सर सड़कों या गंगा घाटों पर नग्न घूमते पाए जाते थे। वह दूसरों से बहुत कम या कभी-कभी बिल्कु ल भी बात नहीं करते थे। अपनी समस्याओं से
छु टकारा पाने के लिए लोगों की भीड़ अक्सर उनकी योगिक सर्वोच्चता के बारे में सुनने के लिए उनकी ओर आकर्षित होती थी। रामकृ ष्ण ने स्वयं त्रैलंग स्वामी को भगवान
शिव का अवतार बताया था। ऐसा माना जाता था कि त्रैलंग स्वामी में उनके शरीर की कोई धारणा नहीं है; वह घाट की जलती/तपती हुई रेत पर बड़े आराम से लेट
सकते हैं जो आम आदमी के लिए प्रायः असंभव है। रामकृ ष्ण के अनुसार वह एक वास्तविक परमहंस थे।
तेलंग स्वामी की आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में कई कहानियाँ हैं। रॉबर्ट अर्नेट के लेखन में, तेलंग स्वामी के चमत्कार अच्छी तरह से प्रलेखित और संग्रहीत हैं। उन्होंने
लगभग 300 वर्षों तक महान जीवन व्यतीत किया और अपनी चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन किया। यहां तक कि वह कभी कभार ही खाते थे, तब भी उनका वजन
140 किलो से अधिक था। यह उल्लेखनीय है कि वह लोगों के मन को एक किताब की तरह पढ़ने में पूरी तरह से सक्षम थे।
कई बार उन्हें जहर पीते देखा जा सकता था जिसका उनपर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा था। एक बार की बात है कि कु छ नास्तिकों ने उन्हें एक घपलेबाज़ घोषित करना
चाहा। इस क्रम में एक बार एक नास्तिक ने एक बाल्टी चूना घोलकर स्वामी जी के सामने रख दिया और उसे गाढ़ा दही बताया। स्वामी जी ने तो उसे पी लिया किन्तु कु छ
ही देर बाद नास्तिक व्यक्ति पीड़ा ने छटपटाने लगा और स्वामी जी से अपने प्राणो की रक्षा की भीख मांगने लगा। फिर उन्होंने उस नास्तिक को कर्म के नियम, उसके
कारण और प्रभाव को स्पष्ट करने के लिए अपनी स्वाभाविक चुप्पी तोड़ी। वाराणसी के तीर्थयात्रियों ने उन्हें कई दिनों तक गंगा नदी के जल की सतह पर बैठे देखा। यह
भी माना जाता है कि वह पानी की लहरों के नीचे लंबे समय तक गायब रहा करते थे, और फिर से प्रकट हो जया करते थे।
भारत के इस महानतम योगी के कार्यों के पीछे जो रहस्य-कुं जी है, वह 'योग' ही है। अपने एक प्रिय शिष्य उमाचरण के लिए योग की परिभाषा देते हुए तैलंग स्वामी ने
कठोपनिषद से यम का कथन उठाया-
यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह।
बुद्धिश्च न विचेष्टते तामाहुः परमां गतिम्॥ (2/3/10)
(''जब पाँचों इन्द्रियाँ शान्त होकर स्थिर हो जाती हैं तथा मन भी उनके साथ स्थिर हो जाता है, और 'बुद्धि' की प्रक्रियाएँ भी शान्त हो जाती हैं तो वह उच्चतम अवस्था
(परमा गति) होती है, ऐसा मनीषीगण कहते है।)
तैलंग स्वामी के बारे में प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत में भी पढ़ा जा सकता है।