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ऑनर किल ग

िं

• सगोत्र एवं प्रेम वववाहों के ववरुद्ध खाप पंचायतों द्वारा फरमान जारी कर प्रेमी यग
ु लों की हत्या
का कृत्य ऑनर ककललंग कहलाता है ।
• झूठी शान या मान रक्षा के नाम पर ये खाप पंचायतें सगोत्र वववाह एवं अंतरजातीय वववाह
का घोर ववरोध करती है ।
• खाप पंचायतें हहंद ू वववाह अधधननयम 1955 में संशोधन करवाकर सगोत्र वववाह को अवैध
घोवित करने की मांग कर रही हैं।
• उत्तरी भारत ववशेि रूप से हररयाणा एवं उत्तर प्रदे श के ग्रामीण क्षेत्रों में इन परं परागत
सामंती खाप पंचायतों का वचचस्व है
• समाजशास्त्री अध्ययनों में मान रक्षा हत्याओं के पीछे पुरुि सत्तात्मक सामाजजक संरचना एवं
सामंती रूह़िवादी परं पराओं की भूलमका के कारण इन्हें कस्टोडियल ककललंग कहा गया है ।
• ऑनर ककललंग से ननपटने के ललए कडे कानूनों के साथ-साथ रूहिवादी दककयानूसी मान्यताओं
में सकारात्मक बदलाव लाने की आवश्यकता है ।
• आधुननकीकरण एवं पररवतचन के दौर में हररयाणा की सत रोल खाप पंचायत एवं सांगवान
चालीसा खाप पंचायत ने अंतरजातीय वववाह को मान्यता दे दी है ।

हमारा समाज बहुलवादी है हमारी मजबूती एक ऐसे राष्ट्रीय राज्य के रूप में है , जजसका सामाजजक,
सांस्कृनतक िांचा उदार और प्रगनतशील है ।

हमारी सामाजजक संस्थाएं जैसे पररवार, वववाह, नातेदारी आहद भी समसामनयक दृजष्ट्टकोण से उन्नत
एवं प्रगनतशील हैं । इसी के फलस्वरूप हमारे व्यजततगत मामलों में (ववधायन ) अंतर जातीय और
अंतरधालमचक वववाहों को मान्यता प्रदान की गई है । हाल ही में ऑनर ककललंग की अनेक वीभत्स एवं
बबचर घटनाओं ने पूरे समाज और राष्ट्र को झकझोर हदया है । एक ही गोत्र में (सगोत्र) वववाह करने
या अलभभावकों और जातीय -पंचायतों (खाप पंचायत ) की मजी के खखलाफ प्रेम करने से पूरी
बबरादरी , जानत या समुदाय के भीतर सामाजजक - अनादर की भिकती है ।

फलस्वरूप इसके नतीजे अपने ही युवक-युवनतयों की ननमचम हत्या के रूप में सामने आए । ये घटनाएं
उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा हुई हैं , जहां परं परागत सामंती खाप पंचायतों का वचचस्व है ।

खाप पंचायतें अपनी झूठी इज्जत या शान या मान रक्षा की एवज में सगोत्र एवं प्रेम करने वाले
युवकों की ननमचम हत्याओं के जररए समाज में तया संदेश दे ना चाहते हैं , यह समझ से परे है ।

ऑनर ककललंग के लशकार हुए एवं अन्य सगोत्र एवं प्रेम वववाह करने वाले सैकडों युवक-युवनतयााँ या
तो जानत से बाहर कर हदए जाते हैं या खाप पंचायतों और बबरादरी के तानाशाहों तानाशहों के िर के
साए में जी रहे हैं । सामाजजक - सांस्कृनतक परं पराओं के संदभच में लोगों के िांवािोल हुए ववश्वास को

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ववधध एवं कानूनों के जररए कायम रखना जरूरी हो गया है ताकक सभ्य समाज में न्याय का बोध
बना रहे ।

अब तो हद यहां तक हो गई है कक खाप पंचायतें हहंद ू वववाह अधधननयम 1955 में संशोधन करवाकर
सगोत्र - वववाह को अवैध घोवित कराने की मांग कर रही हैं ।

गोत्र प्रणाली का उद्भव मल


ू रूप से आठ ऋवियों की परं परा के माध्यम से हुआ है । गोत्र एक कुल या
तलोन के समान है , जजसे एक हहंद ू जन्म से प्राप्त करता है । शाजददक रूप से गोत्र का अथच गायों
को इकट्ठे रखने वाले स्थान से है । एक ववशेि समूह जो गायों के झुंि पर अपना कदजा कायम
रखता था, उसे एक गोत्र या कुनबा नाम हदया जाता था । मध्यकालीन युग में गोत्र और समुदाय के
आधार पर 84 गांवों को एक इकाई के रूप में संगहठत ककया जाने लगा था , जजसका मूल उद्देश्य
भौगोललक एवं राजनीनतक असुरक्षा पर काबू पाना था । कालांतर में इस तरह की पंचायतें , खाप
पंचायतें कहलाई जाने लगीं। 84 गांवों के समान बबरादरी की लडके- लडककयां परस्पर भाई बहन
माने जाते थे । उनमें सगोत्रीय वववाह ननिेध था, जजसका आधार ववज्ञानेश्वर द्वारा ललखखत हहंद ू धमच
ग्रंथ लमताक्षरा को माना जाता था , जजसमें सगोत्र, सवपंि एवं समान प्रवर के व्यजततयों में परस्पर
वववाह ननिेध बताया गया है ।

हमारे दे श में खाप पंचायतों का अजस्तत्व काफी पुराना है । ऋग्वेद से लेकर महाभारत - रामायण
काल में भी इनके वजद
ू के प्रमाण लमलते हैं। प्राचीन एवं मध्यकाल में इन्हें न्याय एवं ग्रामीण
शासन की आदशच इकाई माना जाता था । शाजददक रूप से खाप का अथच है - आकाश की तरह
सवोपरर एवं पानी की तरह ननमचल। खाप- (आकाश) + आप (पानी) अथाचत ् अकाश की भांनत
सावचभौलमक एवं जल की भांनत स्वच्छ एवं न्याय कारी । भारत में जाट समद
ु ाय की करीब 3500
खाप -पंचायतें अजस्तत्व में हैं । लंदन मेरोपॉललटन यूननवलसचटी द्वारा आनर ककललंग पर आयोजजत
सेलमनार में यह तथ्य सामने आया कक

झूठी शान के नाम पर होने वाली हत्याएाँ हहंदस्


ु तान के अलावा एलशया के दस
ू रे दे शों में भी होती हैं।
इनमें पाककस्तान के अलावा मुजस्लम दे श शालमल हैं। दनु नया भर में हुए अध्ययनों से यह रुझान
सामने आया है कक अनप़ि गंवार ही नहीं प़िे ललखे लोग भी मान रक्षा के ललए हत्याओं में शालमल
हो रहे हैं ।

संयुतत राष्ट्र की एक ररपोटच के मुताबबक पूरी दनु नया में लगभग 5000 लोग ऑनर ककललंग के नाम
पर मर जाते हैं । शासकीय आंकडों में भारत में प्रनतविच करीब 1000 युवक-युवनतयााँ मानरक्षा के
नाम पर जान से हाथ होते हैं। समाज शाजस्त्रयों के अनुसार सामंती, धालमचक एवं पुरुि सत्तात्मक
समाज की प्रवजृ त्तयों के मत
ु ाबबक स्त्री सदै व ककसी न ककसी की अलभरक्षा में रहती है । जैसे ही वह
इस अलभरक्षा रूपी पुरुि वचचस्व को चुनौती दे ने की कोलशश करती है , दककयानूसी रूहिवादी संस्थाएं
समाज - पररवार की मान रक्षा के नाम पर उनकी हत्या तक करने में नहीं हहचकती हैं । यही
कारण है कक समाज ववज्ञानी अब आनर ककललंग को अलभरक्षा हत्या कहने लगे हैं ।

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आज रूहियों में जकडे समाज को यह समझाने की आवश्यकता है कक हत्या जैसे कायों में सम्मान
या शान जैसी कोई बात नहीं है । वैश्वीकरण, सूचना एवं जन संपकच क्ांनत और स्वचाललतीकरण
वाले आधुननक युग में मानरक्षा के नाम पर की जाने वाली हत्याएाँ कलंक के समान हैं। आज जहां
सहजीवन (ललव इन ररलेशनलशप) , सहमनतपण
ू च , साहचयच, समलैंधगकता ( गे एवं लेजस्बयन),
रांसजेंिर की चारों ओर हवा बह रही है । वही हम उल्टे सामंतवादी दककयानूसी सोच की तरफ
उन्मुख हो रहे हैं । भारतीय न्यायपाललका द्वारा एक वयस्क के वववाह करने के अधधकार को प्राण
एवं दै हहक स्वतंत्रता के मूल अधधकार के साथ एक संवध
ै ाननक अधधकार के रूप में स्वीकार ककया गया
है ।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में हदए गये ऐनतहालसक ननणचय में (भगवान दास मामला )
खाप - पंचायतों को अवैध तथा उनके द्वारा की जा रही है ऑनर ककललंग के नाम पर पर पर
हत्याओं को सामंती एवं शमचनाक बताया गया है । जजस्टस माकंिेय काटजू एवं जजस्टस ज्ञान सध
ु ा
लमश्रा की खंिपीठ ने अपने फैसले में तल्ख हटप्पणी करते हुए कहा है कक `हररयाणा की खाप पंचायतें
एवं तलमलनािु की कट्टा पंचायतें लोगों की जजंदगी में दखल दे रही हैं। इन्हें तत्काल खत्म करके
इनकी स्वयंभू मुखखया के ववरुद्ध फौजदारी प्रकक्या अमल में लानी चाहहए । इसके ललए प्रशासन एवं
पुललस को जवाबदे ह बनाकर किे उपाय करने होंगे । आनर ककललंग की हत्याओं को दल
ु भ
च से दल
ु भ

तम श्रेणी में रख कर हत्यारों को मौत की सजा दी जानी चाहहए।

ऑनर ककललंग को व्यजततगत अपराध की बजाए एक सामाजजक खतरे के रूप में दे खना चाहहए । विच
1986 में दहे ज हत्या तथा सती प्रथा के रूप में सामाजजक संकट उभर कर सामने आए थे । दहे ज
हत्या को रोकने के ललए आई. पी. सी. में धारा 304 बी जोडकर ,मामलों को कडाई से ननपटाया जा
कर सामाजजक – अपराधधक बुराई पर अंकुश पाया गया । इसी प्रकार सती प्रथा उन्मूलन अधधननयम
1987 को पूरे दे श में लागू कर सती प्रथा को महहमा मंडित करने वाले और दष्ट्ु प्रेरकों को कडे दं ि का
प्रावधान ककया गया। यह कानून समय की कसौटी पर खरा उतरा तथा परं परागत सोच वाले समाज
के मानस में भी बदलाव लाने में सफल रहा। अतः अब समय आ गया है , जब ऑनर ककललंग को
रोकने के ललए सख्त से सख्त प्रावधान ककए जाएं।

प्राचीन समय में जहां पंच- परमेश्वर और पंचायतें न्याय के स्रोत और न्याय के मंहदर हुआ करते थे
, वही आज अपनी झठ
ू ी शान के नाम पर खाप - पंचायतें और बबरादरी पंचायतें न केवल प्रेम करने
वाले युवाओं की हत्याएाँ करवा रही है अवपतु उनके पररजनों एवं सहायकों को भी खुले आम बेइज्जती,
वपटाई, हुतका बंदी, जात बाहर करने की कलंकात्मक तुगलकी कायचवाही कर रहीं हैं ।

ऑनर ककललंग की घटनाएं कानून व्यवस्था की जस्थनत को बबगाडने के साथ- साथ न्याय पाललका और
पलु लस के ऊपर अनावश्यक दबाव बिा रही हैं। इस प्रकार की अप्रगनतशील एवं असामाजजक घटनाएं
लैंधगक अनप
ु ात में धगरावट के साथ - साथ कन्या भ्रण
ू हत्या, यव
ु ा - असंतोि, यव
ु ाओं के मध्य
कंु ठा, मादक -द्रव्य -व्यसन , अंतरपी़िीय तनाव, संघिच, नशा एवं लैंधगक अपराधों के ललए भी
उत्तरदाई है ।

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भारत सरकार के ववधध मंत्रालय ने हाल ही में आई.पी.सी. की धारा 300 में प्रस्ताववत संशोधन की
लसफाररश की है । इसमें खाप पंचायतों द्वारा की जाने वाली ऑनर ककललंग को हत्या के अपराध में
शालमल ककया गया है । इसी प्रकार साक्ष्य ववधध में संशोधन करके सबूत का भार अलभयुतत (हत्यारों)
पर िाला जाता है । ववशेि वववाह अधधननयम 1954 में भी वववाह पंजीकरण से पव
ू च 30 हदन के
नोहटस की बाध्यता को समाप्त करने की लसफाररश की है , जो कक सराहनीय प्रयास है । इस प्रकार
हमें सामाजजक, सांस्कृनतक, वैधाननक, राजनीनतक एवं मानवशास्त्रीय तरीके अपनाकर ऑनर
ककललंग जैसी असामाजजक, अपराधधक कुप्रथाओं को रोकने के समजन्वत प्रयास करने की आवश्यकता
है ।

झूठी शान के नाम पर हत्या

ऑनर ककललंग अथाचत ् सम्मान रक्षा के नाम पर हत्या की ब़िती घटनाओं के मद्देनजर केंद्र सरकार ने
एक ववधेयक लाने का ननणचय ककया है । ववधेयक जल्द ही संसद में पेश ककया जा सकता है ।
इसकी तैयारी में सरकार, उसकी संबंधधत एजेंलसयां और राष्ट्रीय ववधध आयोग की जुट गया है ।
वास्तव में हालात इतने भयावह हो गए हैं कक इससे हमारी राष्ट्रीय चेतना िगमगाने लगी है और पूरा
दे श धचंतन- मनन करने लगा है कक इससे ननपटने के ललए ककस तरह की रणनीनत अपनाई जाए ।
सामाजजक परं पराओं के संदभच में लोगों के िांवािोल हुए ववश्वास को भी कायम रखना जरूरी है ,
ताकक सभ्य समाज में न्याय का बोध बना रहे । कहना ना होगा , आनर ककललंग की वजह से
ववश्व समाज में एक सभ्य राष्ट्र या समाज के रूप में हमारे दावे के समक्ष बडी चुनौती खडी हो गई
है । हालांकक, इस तरह की हत्याएं भारतीय दं ि संहहता की धारा 302 के तहत आती है और इसे
आपराधधक मानव की श्रेणी में ही धगना जाता है । कफर भी , इसे अलग से आनर ककललंग के रूप में
दे खने की जरूरत है ।

यह माना जाता है कक हर एक आपराधधक कृत्य या अपराध के मूल में आपराधधक मानलसकता की


होती है । सामान्यतः अपराध के पीछे यही कारण भी होता है । इस बात के कई उदाहरण हैं कक
अपराधी स्वयं ही अपराध बोध से बाहर ननकलने के ललए अपने अपराध बसवा पाक स्वीकार कर लेता
है । यह भी समझा जाता है कक सजा का उद्देश्य अपराधी का सध
ु ार करना होता है , ताकक वह
समाज की मुख्यधारा में लौट सके ।

ऑनर ककललंग की घटनाओं के मूल में सामाजजक अनादर की भावनाओं का चरम पर होना है । इस
क्ूरतम अपराध के पीछे शत्रुता, प्रनतद्वंद्ववता या लोभ नहीं है , जो सामान्य तौर पर हत्या की
घटनाओं के ललए जजम्मेदार तत्व होते हैं

इस प्रकार आनर ककललंग के अपराध को पररभावित करने की जरूरत है । इस जघन्य अपराध में उन
सभी लोगों को शालमल ककया जाना चाहहए, जो इस कृत्य में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदार बनते
हैं ।

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इसके अलावा उन लोगों को भी दं डित करने की जरूरत है , जजन्होंने ऐसी घटनाओं को अंजाम दे ने
की कोलशश की हो या उसकी छूट दी हो। प्रस्ताववत ववधेयक में यह भी हो कक सबूत का दानयत्व
अलभयुतत पर सौंपा जाए, ताकक वह यहद ननदोि है , तो साबबत करे । इस तरह के गंभीर अपराधों
की सुनवाई ववशेि अदालत में होनी चाहहए । इसके अलावा यह भी प्रावधान होना चाहहए कक जो
कृत्य प्रस्ताववत ववधेयक में अपराध के तहत नहीं आता हो, उसे रोकने के ललए जजलाधधकाररयों को
अधधकृत ककया जाए कक वे इसे रोकने के ललए ववशेि उपाय अपना सकें । ऑनर ककललंग के ललए
बदनाम इलाकों में जजलाधधकाररयों के व्यवस्था को बनाए रखने संबंधी आदे शों के उल्लंघन को अपराध
करार हदया जाए ।

ऐसे इलाकों में समझाइश की व्यवस्था पर भी ववचार ककया जाए , ताकक तनाव को घटाया जा सके
लेककन समझाइश और उसके बाद किाई से कानून को लागू करने के बीच की रे खा भी स्पष्ट्ट होनी
चाहहए । यह तय होना चाहहए कक समझाइश का दायरा कहां तक हो और सख्त कायचवाही की
शुरुआत कहां हो ? प्रस्ताववत कानून में समझाइश, ननरोध और दं ि तीनों की व्यवस्था होना जरूरी
है तभी ऑनर ककललंग को रोकने में सफलता लमलेगी ।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने ननणचय में खाप पंचायतों को अवैध एवं बबचर बताया है और
उनके द्वारा जारी ककए जाने वाले फतवे और झूठी इज्जत इज्जत संबंधी ननणचयों को सांमती एवं
शमचनाक बताया है । न्यायालय के अनुसार हररयाणा की खाप पंचायतें और तलमलनािु की कट्टा
पंचायतें लोगों की ननजी जजंदगी में दखल दे रही हैं, उन्हें तत्काल बंद कर इनके स्वयंभू मुखखयाओं
के ववरुद्ध फौजदारी करवाई अमल में लाई जानी चाहहए । प्रशासन और पुललस को ऐसे मामलों में
सख्ती से ननपटने हुए किे उपाय करने चाहहए ।

खाप पिंचायतों द्वारा अिंतर जातीय वववाह िो मिंजूरी

हररयाणा की सतरोल खाप पंचायत ने अब बदलती पररजस्थनतयों में अंतरजातीय वववाह को मान्यता
दे ने का फैसला ककया है । सत रोल खाब के दायरे में 42 गांव आते हैं । इसी प्रकार लभवानी जजले
की सांगवान पंचायत ने अंतर जातीय वववाह के साथ- साथ अंतरधालमचक वववाह को भी मंजूरी दे दी
है । इन खाप पंचायतों में यह बदलाव सेवाननवत्ृ त फौजजयों के प्रयासों की बदौलत संभव हुआ है ।
यद्यवप चौटाला गांव की खाप में अंतर जातीय एवं गांव गवांि के अंदर होने वाले वववाहों को पहले
से ही स्वीकृनत प्रदान कर दी गई थी । आधुननकीकरण की प्रकक्या के दौर में परं परागत संस्थाओं में
ऐसे सुधारवादी ननणचय ननजश्चत ही नागररक समाज की स्थापना की हदशा में अहम है ।

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