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Unit 1
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इकाई क� �परेखा
1.0 उद्देश्य
1.1 प्रस्तावना
1.2 सयू र् िसद्धान्त में कालगणना
1.2.1 काल भेद
1.2.2 चन्द्र एवं सौरमास िन�पण
1.2.3 देव-असरु ों का िदन-राित्र मान
1.2.4 महायगु कालगणना प्रमाण
1.2.5 सिन्ध सिहत मनु काल प्रमाण
1.2.6 कल्प गणना प्रमाण
1.2.7 ब्र� िदवस गणना प्रमाण
1.2.8 ब्र� आयु गणना प्रमाण
1.2.9 वतर्मान काल मान
1.2.10 सृि�कालप्रमाण
1.3 सारांश
1.4 शब्दावली
1.5 कुछ उपयोगी पस्ु तकें
1.6 बोध / अभ्यास प्र�ो�र
1.0 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के प�ात आप :
• काल गणना के िवषय में �ान होगा ।
• स�ू म से लेकर स्थूल तक काल क� सभी इकाइयों का �ान होगा ।
• काल के िविभन्न �पों को समझ सकें गे ।
• काल के िवषय में बता सकें गे ।
• समझा सकें गे क� काल गणना का िवस्तृत स्व�प क्या है ।
1.1 प्रस्तावना
प्रस्ततु प्रथम इकाई “सयू र्िसद्धान्त में कालगणना” है। सयू र्िसद्धान्त में विणर्त काल के स�ू म एवं
स्थूल िजनको अमतू र् एवं मतू र् भी कहा गया है ऐसे काल मान क� िवस्तृत चचार् क� गई है। काल
भेद, चन्द्र एवं सौरमास िन�पण, देव-असरु ों का िदन-राित्र मान, महायगु कालगणना प्रमाण,
सिन्ध सिहत मनु काल प्रमाण, कल्प गणना प्रमाण, ब्रा� िदवस गणना प्रमाण, ब्र� आयु
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ऐितहािसक गणना प्रमाण, िजनमें त्रिु ट प्राणािद से लेकर ब्र�ा क� परम आयु महाकल्प तक क� िवस्तृत
कालगणना के गणना क� गई है। काल ही सृि� के संचालन का मल ू कारण है। ज्योितष को काल िवधान
प्राचीन एवं शा� भी कहा गया है जो िक महिषर् लगध ने भी कहा है “तस्मात् इदं काल िवधानशा�ं यो
अवार्चीन िसद्धांत ज्योितषं वेद स वेद य�म”् । इस प्रकार हम यहाँ सयू र्िसद्धान्त में विणर्त कालगणना के िवषय
में जानेंगे।
1.2 सयू र्िसद्धान्त में कालगणना
भारतीय काल- गणना क� व्यवस्था (System) को िजस सभ्यता ने िजस मात्रा और �प में
ग्रहण िकया उन्होंने उसी के अनसु ार ज्योितष और न�त्र िवद्या में प्रगित क� । आइये अब
आपको प्राचीन भारतीय काल- गणना व्यवस्था के कुछ प्रमख ु िबंदु से अवगत कराते हैं ।
भारतीय काल गणना िक िवशेषता ही ये है िक ये अचक ू एवं अत्यंत स�ू म है। िजसमें 'त्रटु ी' से
लेकर प्रलय तक क� काल गणना क� जा सकती है । ऐसी स�ू म काल गणना िव� के िकसी
और सभ्यता या सस्ं कृ ित में नहीं िमलती चाहे आप िकतना भी गहन अन्वेषण कर लीिजये ।
सयू र्िसद्धान्त के प्रथम अध्याय के प्रारम्भ में �ोक- 1 से लेकर �ोक 10 तक आख्यान शैली
में काल के आधार भतू सयू र् का मह�व बताते ह�ए सयू र् को प्रत्य� देवता कहा गया है यानी जो
हमें िदखाई देते हैं। मय क� तपस्या से प्रसन्न होकर सयू र्दवे ने उसे काल गणना का िवद्वान होने
का वरदान िदया था। मय ने सयू र् क� आराधना क�। मय उनसे कोई शि� प्रा� नहीं करना
चाहता था, वो िसफर् उनसे कालगणना और ज्योितष के रहस्यों का जानना चाहता था। उसक�
तपस्या से प्रसन्न होकर सयू र् ने उसक� इच्छा परू ी क�, लेिकन सयू र् कहीं ठहर नहीं सकते थे, सो
उन्होंने अपने शरीर से एक और प�ु ष क� उत्पि� क� और उसे आदेश िदया िक वो मय दानव
को कालगणना और ज्योितष के सारे रहस्यों को समझाए। सूयर् के प्रित�प से िमली िश�ा के
बाद मय दानव ने स्वयं भी ज्योितष और वास्तु के कई िसद्धांत िदए जो आज भी प्रामािणक हैं।
सयू र् के प्रितप�ु ष और मयासरु के बीच क� बातचीत को ही सयू र्िसद्धान्त का नाम िदया गया।
भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम ग्रंथों में से एक 'सयू र्िसद्धान्त' में, भारतीय व्यवस्था के अनुसार
काल के दो �प बताये गए हैं-:
1.2.1 काल भेद
लोकानामन्तकृत् कालः कालोऽन्यः कलनात्मकः ।
स िद्वधा स्थूलसू�मत्वान्मूतर्�ामूतर् उच्यते ॥ 1/10 ॥
काल दो प्रकार का बताया गया है । िजनमें से एक प्रािणयों क� सृि� का सहं ार करने वाला
काल माना गया है और दसू रा गणना करने वाला काल माना गया है, इनमें से जो दसू रा गणना
करने वाला काल कहा गया है वह भी दो प्रकार का माना गया है- 1. पहला स्थल ू होने से मतू र्
सं�क माना गया है जो व्यवहार में िलया जाता है, 2. वहीं दसू रा स�ू म होने के कारण अमतू र्
अथार्त् व्यवहा�रक माना गया है।
प्राणािदः किथतो मूतर् �ुट्याद्यौमूतर्सं�कः ।
षड्िभः प्राणैिवर्नाडीस्या�त्ष�्या नािडका स्मृता ॥ 1/11 ॥
नाडीष�्या तु ना�त्रमहोरात्रं प्रक�ितर्तम् ।
तत् ित्रश
ं ता भवेन्मासः सावनोऽदयैस्तथा ॥ 1/12 ॥
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मतू र् और अमतू र् काल के िवषय में कहा गया है िक प्राण आिद काल मतू र् स�ं क तथा त्रिु ट आिद सयू र्िसद्धान्त में
काल अमतू र् सं�क कहे गए हैं। इन दोनों �ोकों का अथर् इस प्रकार है- कालगणना
िदव्यवषर् सौरवषर्
4800 – 800 = 4000 × 360 = कृ त यगु 1440000
3600 – 600 = 3000 × 360 = त्रेतायगु 1080000
2400 – 400 = 2000 × 360 = द्वापर यगु 720000
1.2.5 सिन्ध सिहत मनु काल प्रमाण
युगानां स�ितः सैका मन्वन्तरिमहोच्यते ।
कृताब्दसङ्ख्यस्तस्यान्ते सिन्धः प्रो�ो जलप्लवः ॥ 1/18 ॥
71 महायगु ों अथार्त चतयु र्गु ों का एक मन्वतं र कहा गया है। यह काल का मतू र् और व्यावहा�रक
स्व�प है। एक मन्वतं र क� समाि� पर एक सतयगु (4800 िदव्यवषर्) के तल्ु य मनु क� संिध
होती है। यगु ों के मध्य होने वाली सिं धकाल को जलप्लव कहा जाता है। अथार्त जब एक मनु
के समा� हो जाने तथा दसू रे मनु के आरंभ होने से पवू र्, इन दोनों के मध्य 4800 िदव्य वष� का
समय होता है, इस मध्य इस पृथ्वी पर जल-प्लावन रहता है।
1.2.6 कल्प गणना प्रमाण
ससन्धयस्ते मनवः कल्पे �ेया�तदु र्श ।
कृतप्रमाण कल्पादौ सिन्धः प�चदशः स्मृत :।।1/19।।
संिध सिहत 14 मन्वतं र का एक कल्प होता है। कल्प के आिद में सतयगु के तल्ु य संिध होती
है। इस प्रकार से एक कल्प में सतयगु के समान 15 सिन्धयां होती हैं।
1 मनु = 71 महायुग
14 1 कल्प = 14 मनु + 15 ( कृ तयगु ) सिन्ध
1 महायगु = 12000 िदव्यवषर् = 4320000 सौरवषर् सयू र्िसद्धान्त में
1 मनु में 71 महायगु = 71 × 12000 = 852000 िदव्य वषर् = 306720000 सौरवषर् कालगणना
1 कल्प = 14 मनु + 15 ( कृ तयगु ) सिन्ध
= (14 × 852000) + (15 × 4800)
= (11928000) + (72000) = 12000000 िदव्यवषर्
= 4320000000 सौरवषर्
1.2.7 ब्रा� िदवस गणना प्रमाण
इत्थं युगसहस्रेण भूतसहं ारकारकः ।
कल्पो ब्रा�महः प्रो�ं शवर्री तस्य तावती ।।1/20।।
ब्र�ा के िदन-राित्र के िवषय में बताया गया है िक एक हजार महायगु का सृि� संहारक 1 कल्प
होता है, िजसे ब्र�ा का एक िदन कहा जाता है। इसी प्रकार जो ब्र�ा क� राित्र होती है वह भी 1
कल्प के समान ही मानी गई है। इस प्रकार से ब्र�ा का एक अहोरात्र अथार्त िदन और रात 2
कल्प के तुल्य होता है। सृि� का प्रलय होना ही ब्र�ा के 1 िदन का अंत होना माना जाता है।
ब्र�ा सपं णू र् सृि� को अपने में लय करके एक कल्प पय�त िनद्रा में िवलीन रहते हैं। िजसके
कारण कल्प के अतं में प्रलय होता है।
1.2.8 ब्र� आयु गणना-प्रमाण
परमायुः शतं तस्य तयाऽहोरात्रसङ्ख्यया ।
आयुषोऽधर्िमतं तस्य शेषकल्पोऽयमािदमः ॥ 1/21 ॥
काल गणना का वृहद �प हम ब्र�ा के परम आयु के �प में देख सकते हैं। जैसे कहा गया है
िक ब्र�ा के अहोरात्र में दो कल्पों का योग होता है। और ब्र�ा क� परम आयु 100 वषर् मानी
गई है। वतर्मान में ब्र�ा क� 50 वषर् क� आयु बीत चकु � है और जो शेष आयु अित�र� है उसमें
यह 51 वां वषर् चल रहा है उसमें भी यह प्रथम कल्प िदन है।
1.2.9 वतर्मान काल मान
कल्पादस्माच्च मनवः षड् व्यतीता ससंधय: ।
वैवस्वतस्य च मनोयर्ुगानां ित्रघनो गतः ॥1/22॥
अ�ािवंशाद्युगादस्माद्यातमेतम् कृतं युगम् ।
अतः कालं प्रसङ्ख्याय सङ्ख्यामेकत्र िपण्डयेत् ॥1/23॥
जो वतर्मान कल्प चल रहा है इस वतर्मान कल्प में सिन्धयों सिहत 6 मनु बीत चक ु े हैं। स�म जो
वैवस्वतः नामक मनु है उसके भी 27 महायगु बीत चक ु े हैं। वतर्मान अठ्ठाइसवें महायुग में
कृ तयुग अथार्त सत्ययगु भी बीत चक ु ा है। इसिलए कालमानों को एकत्र करके उनका योग कर
लेना चािहये अथार्त जोड़ देना है ।
कालगणनामान – 6 मनु +7 सिन्ध +27 महायगु + कृ तयुग = कल्पािद से सत्ययगु पयर्न्त
काल
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ऐितहािसक जैसे – 1 मनु 852000 िदव्य वषर् = 306720000 सौरवषर्
कालगणना के मनु 6 × 852000 = 5112000
प्राचीन एवं
अवार्चीन िसद्धांत सिन्ध 7 × 4800 = 33600
महायगु 27× 12000 = 324000
कृ त(सत)यगु 4800 = 4800
योग = 5474400
िदव्य वषर् कल्पािद से सत्ययुग पयर्न्त िदव्यवषर् ।
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1.4 शब्दावली सयू र्िसद्धान्त में
कालगणना
• सौर – सयू र् के एक अश
ं का चलन
• चान्द्र – एक ितथ्यात्मक िदन को चान्द्रिदन अथवा चान्द्रमान कहते हैं
• सावन – एक सयू �दय से दसू रे सयू �दय तक के काल को सावनिदन कहते हैं
• ब्रा� - एक सबसे बड़ा कालमापन का प्रमाण
• अहोरात्र – िदवस और राित्र के योग को अहोरात्र कहते हैं
• संवत्सर – वषर्
• सावन िदन – दो सयू �दय के मध्य का काल
• प्राण - दस ग�ु अ�रों के उच्चारण में िजतना समय लगता है उसे प्राण कहा जाता है।
• घटी - 60 पलों क� एक घटी
• पल - 6 प्राणों का एक पल
1.5 कुछ उपयोगी पस्ु तकें
• सयू र्िसद्धान्त श्री किपले�र शा�ी , चौखम्बा सस्ं कृ त भवन, 2015
• सयू र्िसद्धान्त प्रो० रामचन्द्र पाण्डेय, चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी, 1999
• सयू र्िसद्धान्त स्व. महावीर प्रसाद श्रीवास्तव, िव�ान भाष्य, डॉ. रत्नकुमारी स्वाध्याय
सस्ं थान, इलाहबाद, 1982
1.6 बोध / अभ्यास प्र�ो�र
1. महायुग िकसे कहते हैं ?
A. कृ तयुग एवं त्रेता, B. द्वापर एवं किलयुग, C. चतयु र्गु ों के मान को
2. एक मन्वन्तर में िकतने महायुग ( चतुयर्ुग ) होते हैं ?
A.12, B. 71, C. 60
3. एक चतुयर्ुग में िकतने िदव्यवषर् होते हैं ?
A.1200 िदव्यवषर्, B. 12000 िदव्यवषर्, C. 8000 िदव्यवषर्
4. एक नाड़ी में िकतने पल होते हैं ?
A. 60, B. 30, C. 15
5. एक मास में िकतने अहोरात्र होते हैं ?
A. 15, B. 30, C. 31
उ�र – 1. उ�र – C, 2. उ�र – B, 3. उ�र – B, 4. उ�र – A, 5. उ�र – B
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