Download as pdf or txt
Download as pdf or txt
You are on page 1of 2

श्री गुर्वाष्टकम नृवसहं आरर्ी

संसवर-दवर्वनल-लीढ-लोक नमस्र्े नृवसंहवय


त्रवणवय कवरुण्य-घनवघनत्र्म।् प्रह्लवदह्लवद दववयने।
प्रवप्तस्य कल्यवण-गुणवणार्स्य वहरण्यकवशपोर्ाक्षोः
र्न्दे गुरोोःश्रीचरणवरवर्न्दम॥् 1॥ वशलवटंक नखवलये॥1॥
महवप्रभोोः कीर्ान-नृत्यगीर् इर्ो नृवसहं ोः परर्ो नृवसहं ो
र्ववदत्रमवद्यन-मनसो-रसे
् न। यर्ो यर्ो यववम र्र्ो नृवसंहोः।
रोमवञ्च-कम्पवश्रु-र्रंग-भवजो बवहनावृ संहो हृदये नृवसंहो
र्न्दे गुरोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 2॥ नवृ संहमववद शरणं प्रपद्ये॥2॥
र्र् कर-कमल-र्रे नखम् अद्भर्ु -श्रङ ृं ् गम्
श्रीवर्ग्रहवरवधन-वनत्य-नवनव।
दवलर्-वहरण्यकवशपु-र्नु-भृंङ्गम्
श्रृंगवर-र्न-मवन्दर-मवजा
् नवदौ।
युक्तस्य भक्तवंश्च वनयुञ्जर्ोऽवप के शर् धृर्-नरहरररूप जय जगदीश हरे॥3॥
र्न्दे गरु ोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 3॥
चर्ुवर्ाधव-श्री भगर्र्-प्रसवद-
् र्ुलसी आरर्ी
स्र्वद्वन्न-र्ृप्तवन् हरर-भक्त-संङ्घवन।्
र्ृन्दवयै र्ुलसी देर्यै वप्रयवयै के शर्स्य च।
कृत्र्ैर् र्ृवप्तं भजर्ोः सदैर्
वर्ष्णु भवक्त प्रदे देर्ी सत्यर्त्यै नमो नमोः॥
र्न्दे गुरोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 4॥
नमो नमोः र्ुलसी कृष्णप्रेयसी नमो नमोः।
श्रीरववधकव-मवधर्योरअपवर- ्
मवधुया-लीलव-गुण-रूप-नवम्नवम।् रवधव-कृष्ण-सेर्व पवब एइ अवभलवषी॥1॥
प्रवर्क्षणवऽऽस्र्वदन-लोलुपस्य ये र्ोमवर शरण लय, र्वर र्वञ्छव पूणा हय।
र्न्दे गुरोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 5॥ कृपव करर कर’र्वरे र्ृन्दवर्नर्वसी॥2॥
वनकुञ्ज-युनो रवर्-के वल-वसद्धयै मोर एइ अवभलवष, वर्लवसकुंजे वदओ र्वस।
यव यववलवभर् युवक्तर् अपेक्षणीयव। नयने हेररबो सदव युगल-रूप-रववश॥3॥
र्त्रववर्-दक्ष्यवद् अवर्र्ल्लभस्य एइ वनर्ेदन धर, सखीर अनगु र् कर।
र्न्दे गुरोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 6॥ सेर्व-अवधकवर वदये कर वनज दवसी॥4॥
सवक्षवद्-धररत्र्ेन समस्र् शवस्त्ैोः दीन कृष्णदवसे कय, एइ येन मोर हय।
उक्तस्र्थव भवर्यर् एर् सवभोः। श्रीरवधव-गोवर्न्द-प्रेमे सदव येन भववस॥5॥
वकन्र्ु प्रभोयाोः वप्रय एर् र्स्य यववन कववन च पवपववन ब्रह्महत्यववदकववन च।
र्न्दे गरु ोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 7॥ र्ववन-र्ववन प्रणश्यवन्र् प्रदवक्षणोः पदे-पदे॥
यस्यप्रसवदवद् भगर्दप्रसवदो ➢ कृपया यह पत्रक प्रातःकालीन
यस्यवऽप्रसवदन्न् न गवर् कुर्ोऽवप। काययक्रम इच
ं ार्य को लौटा दें
ध्यवयस्ं र्र्ु स्ं र्स्य यशवस्त्-सन्ध्यं ISKCON Amravati
र्न्दे गुरोोः श्रीचरणवरवर्न्दम॥् 8॥ Mob: 9689427076
श्री वशक्षवष्टकम् भगर्वन के नवम जप में होने र्वले दस
चेर्ोदपाणमवजानं भर्महवदवर्ववनन-वनर्वापणं अपरवध
श्रेयोः कै रर्चवन्िकववर्र्रणं वर्द्यवर्धूजीर्नम।् 1) भगर्वन्नवम के प्रचवर में सम्पूणा जीर्न समवपार् करने र्वले
आनन्दवम्बवु धर्धानं प्रवर्पदं पण ू वामर्ृ वस्र्वदनं महवभवगर्र्ों की वनन्दव करनव।
सर्वात्मस्नपनं परं वर्जयर्े श्रीकृष्ण संकीर्ानम॥् 1॥ (2) वशर्, ब्रह्मव आवद देर्ों के नवम को भगर्वन्नवम के समवन
नवम्नवमकवरर बहुधव वनजसर्ाशवक्त- अथर्व उससे स्र्र्न्त्र समझनव।
स्र्त्रववपार्व वनयवमर्ोः स्मरणे न कवलोः। (3) गुरु की अर्ज्ञव करनव अथर्व उन्हें सवधवरण मनुष्य
एर्वदृशी र्र् कृपव भगर्न्ममववप समझनव।
दुदैर्मीदृशवमहवजवन नवऽनुरवगोः॥2॥ (4) र्ैवदक शवस्त्ों अथर्व प्रमवणों कव खण्डन करनव।
र्ृणवदवप सुनीचेन
(5) हरे कृष्ण महवमन्त्र के जप की मवहमव को कवल्पवनक
र्रोरवप सवहष्णुनव
समझनव।
अमववननव मवनदेन
(6) पवर्त्र भगर्न्नवम में अथार्वद कव आरोप करनव।
कीर्ानीयोः सदव हररोः॥3॥
(7) नवम के बल पर पवप करनव।
न धनं न जनं न सुन्दरीं
कवर्र्वं र्व जगदीश कवमये। (8) हरे कृष्ण महवमन्त्र के जप को र्ेदों में र्वणार् एक शुभ
मम जन्मवन जन्मनीश्वरे सकवम कमा (कमाकवण्ड) के समवन समझनव।
भर्र्वद्भवक्तरहैर्ुकी त्र्वय॥4॥ (9) अश्रद्धवलु व्यवक्त को हररनवम की मवहमव कव उपदेश करनव।
अवय नन्दर्नुज वकङ्करं (10) भगर्न्नवम के जप में पूणा वर्श्ववस न होनव और इसकी
पवर्र्ं मवं वर्षमे भर्वम्बधु ौ। इर्नी अगवध मवहमव श्रर्ण करने पर भी भौवर्क आसवक्त बनवये
कृपयव र्र् पवदपंकज- रखनव।
वस्थर्धूलीसदृशं वर्वचन्र्य॥5॥ भगर्न्नवम कव जप करर्े समय पूणा रूप से सवर्धवन न रहनव भी
नयनं गलदश्रुधवरयव अपरवध है। प्रत्येक र्ैष्णर् भक्त को चववहए वक इन दस प्रकवर के
र्दनं गद्गद्-रुद्धयव वगरव। अपरवधों से सदव बच कर रहे, र्ववक श्रीकृष्ण के चरण कमलों
पुलकै वनावचर्ं र्पुोः कदव में प्रेम शीघ्रववर्शीघ्र प्रवप्त हो, जो मनुष्य जीर्न कव परम लक्ष्य
र्र् नवम-ग्रहणे भवर्ष्यवर्॥6॥ है कृष्ण प्रेम ।
युगववयर्ं वनमेषेण
चक्षषु व प्रवर्षृ ववयर्म।्
र्ैष्णर् प्रणवम
शून्यववयर्ं जगर्् सर्ा मैं भगर्वन के समस्र् र्ैष्णर् भक्तों को सवदर नमस्कवर करर्व
हूँ। र्े कल्पर्ृक्ष के समवन सबों की इच्छवएं पूणा करने में समथा
गोवर्न्द-वर्रहेण मे॥7॥
हैं, र्थव पवर्र् जीर्वत्मवओ ं के प्रवर् अत्यन्र् दयवलु हैं ।
आविष्य र्व पवदरर्वं वपनष्टु मव-
र्वछवं – कल्पर्रुभ्यश्च कृपव – वसन्धुभ्य एर् च
मदशानवन्माहर्वं करोर्ु र्व।
पवर्र्वनवं पवर्नेभ्यो र्ैष्णर्ेभ्यो नमो नमोः
यथव र्थव र्व वर्दधवर्ु लम्पटो
मत्प्रवणनवथस्र्ु स एर् नवपरोः॥8॥ ॥ हरे कृष्ण ॥

You might also like