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कमर्चारी पर्ितकर अिधिनयम, 1923

(1923 का अिधिनयम संख्यांक 8) 1


[5 माचर्, 1923]
िनयोजन के कितपय वग ारा अपने 2 [कमर्चािरय ] को दुघटर् ना ारा हुई
क्षित के िनिम पर्ितकर का संदाय िकए जाने
का उपबंध करने के िलए
अिधिनयम
अतः यह समीचीन है िक िनयोजक के कितपय वग ारा अपने 3 [कमर्चािरय ] को दुघर्टना ारा हुई क्षित के िनिम पर्ितकर
का संदाय िकए जाने का उपबंध िकया जाए;
अतः एत्द ारा िनम्निलिखत रूप से यह अिधिनयिमत िकया जाता हैः—
अध्याय 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ—(1) यह अिधिनयम 4 [कमर्चारी] पर्ितकर अिधिनयम, 1923 कहा जा सके गा ।
5
[(2) इसका िवस्तार 6 *** सम्पूणर् भारत पर है ।]
(3) यह 1924 की जुलाई के पर्थम िदन को पर्वृ होगा ।
2. पिरभाषाएं—(1) इस अिधिनयम म, जब तक िक िवषय या संदभर् म कोई बात िवरु न हो,—
7
* * * *
(ख) “आयुक्त” से धारा 20 के अधीन िनयुक्त कमर्कार पर्ितकर आयुक्त अिभपर्ेत है;
(ग) “पर्ितकर” से इस अिधिनयम ारा यथा उपबंिधत पर्ितकर अिभपर्ेत है;
8 [(घ) “आिशर्त” से मृत कमर्कार के िनम्निलिखत नातेदार म से कोई अिभपर्ेत है, अथार्त्:—
(i) िवधवा, अपर्ाप्तवय 9 [धमर्ज या द क] पुतर्, और अिववािहता 9[धमर्ज या द क] पुतर्ी, या िवधवा
माता; तथा
(ii) पुतर् या पुतर्ी िजसने 18 वषर् की आयु पर्ाप्त कर ली है और जो िशिथलांग है, यिद वह कमर्कार की
मृत्यु के समय उसके उपाजर्न पर पूणर्तः आिशर्त था या थी;
(iii) (क) िवधुर;
(ख) माता-िपता िजसके अन्तगर्त िवधवा माता नह आती है;
(ग) अपर्ाप्तवय अधमर्ज पुतर्, अिववािहता अधमर्ज पुतर्ी, या यिद िववािहता है और अपर्ाप्तवय है या यिद
िवधवा है और अपर्ाप्तवय है तो पुतर्ी चाहे वह 10 [धमर्ज हो या अधमर्ज या द क;]
(घ) अपर्ाप्तवय भाई, या अिववािहता बहन, या िवधवा बहन यिद वह अपर्ाप्तवय है;

1
इस अिधिनयम का गोवा, दमण और दीव पर 1962 के िविनयम सं० 12 की धारा 3 और अनुसूची ारा; दादरा और नागर हवेली पर 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा
2 और अनुसूची 1 ारा तथा पांिडचेरी म 1963 के िविनयम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 1 ारा तथा लक्कादीव, िमिनकोय और अमीनदीवी ीप पर 1965 के
िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा, िवस्तार िकया गया है ।
िशक्षु अिधिनयम, 1961 (1961 का 52) के अधीन िशक्षु को लागू होने के संबंध म इस अिधिनयम को उस अिधिनयम की धारा 16 और अनुसूची ारा
उपान्तिरत िकया गया है ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 2 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा उपधारा (2) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1970 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-9-1971 से) “जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय” शब्द का लोप िकया गया ।
7
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा (1-6-1959 से) खंड (क) का लोप िकया गया ।
8
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा (1-6-1959 से) पूवर्वत खंड के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 ारा (15-9-1995 से) “धमर्ज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 ारा (15-9-1995 से) “धमर्ज या अधमर्ज” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2

(ङ) िवधवा पुतर्-वधु;


(च) पूवम
र् ृत पुतर् की अपर्ाप्तवय संतान;
(छ) पूवम
र् ृत पुतर्ी की अपर्ाप्तवय संतान, यिद उस संतान के माता-िपता म से कोई भी जीिवत नह है;
(ज) जहां 1 [कमर्चारी] के माता-िपता म से कोई भी जीिवत नह है वहां िपतामह और िपतामही;
यिद वह 1[कमर्चारी] की मृत्यु के समय उसके उपाजर्न पर पूणर्तः या भागतः आिशर्त था या थी;]
[स्पष्टीकरण—उपखंड (ii) और उपखंड (iii) की मद (च) और मद (छ) के पर्योजन के िलए, पुतर्, पुतर्ी या संतान के पर्ित
2

िनदश के अंतगर्त कर्मशः द क पुतर्, पुतर्ी या संतान है ;]


3 [(घघ) “कमर्चारी” से ऐसा कोई िक्त अिभपर्ेत है, जो—
(i) रे ल अिधिनयम, 1989 (1989 का 24) की धारा 2 के खंड (34) म यथापिरभािषत ऐसा रे ल कमर्चारी
है, जो िकसी रे ल के िकसी पर्शासिनक िजला या उपखंड कायार्लय म स्थायी रूप से िनयोिजत नह है और िकसी
ऐसी हैिसयत म िनयोिजत नह है, जो अनुसूची 2 म िविनिदष्ट है; अथवा
(ii) (क) िकसी पोत का मास्टर, नािवक या कम दल का अन्य सदस्य है;
(ख) िकसी वायुयान का के प्टन या कम दल का अन्य सदस्य है;
(ग) िकसी मोटर यान के संबंध म डर्ाईवर, हेल्पर, मैकिनक, क्लीनर के रूप म या िकसी अन्य हैिसयत म
भत िकया गया िक्त है;
(घ) ऐसा कोई िक्त है जो िकसी कं पनी ारा िवदेश म काम करने के िलए भत िकया जाता है,
और जो भारत के बाहर िकसी ऐसी हैिसयत म जो अनुसच ू ी 2 म िविनिदष्ट है िनयोिजत है, और, यथािस्थित, ऐसा पोत,
वायुयान या मोटर यान अथवा कं पनी भारत म रिजस्टर्ीकृ त है, अथवा
(iii) िकसी ऐसी हैिसयत म िनयोिजत है, जो अनुसूची 2 म िविनिदष्ट है, चाहे िनयोजन की संिवदा इस
अिधिनयम के पािरत िकए जाने से पहले या उसके पश्चात् की गई थी और चाहे ऐसी संिवदा अिभ क्त या
िवविक्षत हो, मौिखक या िलिखत म हो; िकतु इसम ऐसा कोई िक्त सिम्मिलत नह है, जो संघ के सशस्तर् बल के
सदस्य की हैिसयत म कायर् कर रहा है और िकसी कमर्चारी के पर्ित िनदश म, जो आहत हो गया हो, जहां कमर्चारी
की मृत्यु हो गई है, उसके आिशर्त या उनम से िकसी के पर्ित िनदश सिम्मिलत है;]
(ङ) “िनयोजक” के अन्तगर्त कोई िक्त-िनकाय, चाहे वह िनगिमत हो या नह , और िनयोजक का कोई
पर्बंध अिभकतार् और मृत िनयोजक का िविधक पर्ितिनिध आता है, और जब िक कमर्कार की सेवाएं उस िक्त
ारा, िजसके साथ 1[कमर्चारी] ने सेवा या िशक्षुता की कोई संिवदा की है, अन्य व्यिक्त को अस्थायी तौर पर उधार
दे दी गई ह या भाड़े पर दी गई ह वहां “िनयोजक” से जब तक वह 1[कमर्चारी] उसके िलए काम करता रहता है,
वह अन्य िक्त अिभपर्ेत है;
(च) “पर्बंध अिभकतार्” से कोई ऐसा िक्त अिभपर्ेत है जो िकसी अन्य िक्त का वसाय या कारबार
चलाने के पर्योजन के िलए ऐसे अन्य िक्त के पर्ितिनिध के रूप म िनयुक्त है या कायर् कर रहा है, िकन्तु इसके
अन्तगर्त िनयोजक 4 के अधीनस्थ िष्टक पर्बंधक नह आता;
5
[(चच) “अपर्ाप्तवय” से वह िक्त अिभपर्ेत है िजसने अ ारह वषर् की आयु पर्ाप्त नह की है;]
(छ) “आंिशक िनःशक्तता” से जहां वह, िनःशक्तता अस्थायी पर्कार की है वहां ऐसी िनःशक्तता अिभपर्ेत
है िजससे कमर्कार की उस िनयोजन म उपाजर्न सामथ्यर् कम हो जाती है, िजसम वह उस दुघर्टना के समय िजसके
पिरणामस्वरूप िनःशक्तता हुई, लगा हुआ था, और जहां िक िनःशक्तता स्थायी पर्कार की है वहां ऐसी िनःशक्तता
अिभपर्ेत है, िजससे हर ऐसे िनयोजन म उसकी उपाजर्न-सामथ्यर् कम हो जाती है िजसे गर्हण करने के िलए वह उस
समय समथर् थाः परन्तु 6 [अनुसूची 1 भाग 2 म] िविनिदष्ट हर क्षित के बारे म यह समझा जाएगा िक उसके
पिरणामस्वरूप स्थायी आंिशक िनःशक्तता होती है;
(ज) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 5 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा (1-6-1959 से) अंतःस्थािपत ।
5
इस अिधिनयम का बंगाल को लागू होने के िलए कमर्कार पर्ितकर (बंगाल संशोधन) अिधिनयम, 1942 (1942 का 6) की धारा 3 ारा नया खंड (चच) अंतःस्थािपत ।
6
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 2 ारा (1-2-1963 से) “अनुसूची 1 म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3

(झ) “अिहत िचिकत्सा वसायी” से अिभपर्ेत है िकसी 1 [ऐसे के न्दर्ीय अिधिनयम, पर्ान्तीय अिधिनयम या
िकसी के िवधान-मंडल के अिधिनयम] के अधीन, जो िचिकत्सा- वसाियय का रिजस्टर रखे जाने के िलए
2 [राज्य]

उपबंध करता है, 3 *** रिजस्टर्ीकृ त कोई िक्त, या िकसी ऐसे क्षेतर् म, जहां ऐसा अिन्तम विणत कोई भी
अिधिनयम पर्वृ नह है, कोई ऐसा िक्त, िजसके बारे म राज्य सरकार ने शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा
घोिषत िकया है िक वह इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए अिहत िचिकत्सा वसायी है;
4
* * * *
(ट) “नािवक” से िकसी 5 *** 6 [पोत] के कम दल का कोई िक्त अिभपर्ेत है, िकन्तु इसके अन्तगर्त ***
5

6
[पोत] का मास्टर नह आता;
(ठ) “पूणर् िनःशक्तता” से ऐसी िनःशक्तता अिभपर्ेत है, चाहे वह अस्थायी पर्कार की हो या स्थायी पर्कार
की, जो िकसी कमर्कार को ऐसे सब काम के िलए असमथर् कर देती है, िजसे वह उस दुघर्टना के समय, िजसके
पिरणामस्वरूप ऐसी िनःशक्तता हुई थी, करने म समथर् थाः
[परन्तु अनुसच
7
ू ी 1 के भाग 1 म िविनिदष्ट हर क्षित के या उसके भाग 2 म िविनिदष्ट क्षितय के
समुच्चय के बारे म वहां जहां उपाजर्न-सामथ्यर् की हािन का संकिलत पर्ितशत, जैसा उक्त भाग 2 म उन क्षितय के
सामने िविनिदष्ट है, सौ या उसके अिधक होता है, यह समझा जाएगा, िक उसके पिरणामस्वरूप स्थायी पूणर्
िनःशक्तता हुई है;]
(ड) “मजदूरी” के अन्तगर्त, िकसी यातर्ा भ े से या िकसी यातर्ा सम्बन्धी के मूल्य से, या कमर्कार के
िनयोजक ारा िकसी पशन या भिवष्य-िनिध म िदए गए अिभदाय से, या कमर्कार के िनयोजन की पर्कृ ित के कारण
उस पर हुए िकन्ह िवशेष य को पूरा करने के िलए उसे दी गई िकसी रािश से िभन्न ऐसा िवशेषािधकार या
फायदा आता है, जो धन के रूप म पर्ाक्किलत िकया जा सकता है;
8* * * * *
(2) िकसी स्थानीय पर्ािधकारी की या 9 [सरकार की ओर से] कायर् करने वाले िकसी िवभाग की शिक्तय और कतर् के पर्योग
और पालन के बारे म, जब तक िक पर्ितकू ल आशय पर्तीत न होता हो, इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए यह समझा जाएगा िक वह
ऐसे पर्ािधकारी या िवभाग का वसाय या कारबार है ।
10
[(3) के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन मास की सूचना, राजपतर् म
अिधसूचना ारा, देने के पश्चात्, िकसी ऐसी उपजीिवका म िनयोिजत िक्तय के िकसी वगर् को, िजसके बारे म उसका समाधान हो
गया है िक वह पिरसंकटमय उपजीिवका है, वैसी ही अिधसूचना ारा, अनुसूची 2 म जोड़ सके गी और तदुपिर इस अिधिनयम के
उपबंध, के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूचना की दशा म, उन राज्यक्षेतर् के भीतर िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, या राज्य सरकार
ारा िकसी अिधसूचना की दशा म, िक्तय के ऐसे वग को राज्य के भीतर, लागू ह गेः
परन्तु ऐसे जोड़ते समय, यथािस्थित, के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार िनदेश दे सके गी िक इस अिधिनयम के उपबंध
िक्तय के ऐसे वग को के वल िविनिदष्ट क्षितय के बारे म ही लागू ह गे ।]
अध्याय 2
11
[कमर्चािरय ] के िलए पर्ितकर
3. पर्ितकर के िलए िनयोजक का दाियत्व—(1) यिद 12 [कमर्चारी] को अपने िनयोजन से और उनके अनुकर्म म उद्भूत दुघर्टना
ारा वैयिक्तक क्षित कािरत होती है तो उसका िनयोजक इस अध्याय के उपबन्ध के अनुसार पर्ितकर का देनदार होगाः
परन्तु िनयोजक—
(क) िकसी ऐसी क्षित के बारे म िजसके पिरणामस्वरूप कमर्कार को 13 [तीन] िदन से अिधक की कालाविध के िलए
पूणर् या आंिशक िनःशक्तता नह रहती;

1
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “के न्दर्ीय िवधान-मंडल के या भारत के िकसी पर्ान्त म िकसी िवधान-मंडल के अिधिनयम” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा “भाग क या भाग ख राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 2 ारा (1-6-1959 से) िचिकत्सा अिधिनयम, 1858 के अधीन या इसे संशोधन करने वाला कोई अिधिनयम, या” शब्द का लोप
िकया गया ।
4
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 2 ारा खंड (ञ) का लोप िकया गया ।
5
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 2 ारा “रिजस्टर्ीकृ त” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 2 ारा “िकसी ऐसे पोत” शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 2 ारा (1-2-1963 से) परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 6 ारा लोप िकया गया ।
9
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 2 ारा (15-9-1995 से) उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
12
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
13
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा (1-6-1959 से) “सात” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4

(ख) दुघटर् ना 1 [ ारा हुई िकसी क्षित के बारे म, िजसके पिरणामस्वरूप मृत्यु 2 [या स्थायी पूणर् िनःशक्तता] नह हुई
है], और जो पर्त्यक्षतः इस कारण से हुई मानी जा सकती है िक—
(i) उसके होने के समय 3 [कमर्चारी] पर मिदरा या औषिधय का असर था, अथवा
(ii) 3[कमर्चारी] का क्षेम सुिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए अिभ क्त रूप से िदए गए िकसी आदेश
या अिभ क्त रूप से बनाए गए िकसी िनयम की अवज्ञा 3[कमर्चारी] ारा जान-बूझकर की गई थी, अथवा
(iii) कोई ऐसा रक्षोपाय या अन्य युिक्त, िजसके बारे म वह जानता था िक वह 3[कमर्चारी] का क्षेम
सुिनिश्चत करने के पर्योजन के िलए उपबिन्धत की गई है, 3[कमर्चारी] ारा जानबूझकर हटाई गई थी या उसकी
अवहेलना की गई थी, 4 ***
5
* * * *
इस पर्कार देनदार नह होगा ।
[(2) यिद अनुसच
6
ू ी 3 के भाग क म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म िनयोिजत 3[कमर्चारी] को कोई ऐसा रोग लग जाता है जो
उस िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म उस भाग म िविनिदष्ट है, या िजस िनयोजक की सेवा म
3
[कमर्चारी] अनुसूची 3 के भाग ख म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म छह मास से अन्यून की िनरन्तर कालाविध के िलए (िजस कालाविध
म िकसी अन्य िनयोजक के अधीन उसी ढंग के िनयोजन म सेवा की कालाविध सिम्मिलत नह होगी) िनयोिजत रहा है उस िनयोजक की
सेवा म रहने के समय यिद उसे कोई ऐसा रोग लग जाता है जो उस िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म
उस भाग म िविनिदष्ट है, या अनुसूची 3 के भाग ग म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म 3[कमर्चारी] को एक या अिधक िनयोजन की सेवा
म ऐसी िनरन्तर कालाविध के िलए जैसी ऐसे हर एक िनयोजन के बारे म के न्दर्ीय सरकार िविनिदष्ट करे , रहने के समय यिद कोई ऐसा
रोग लग जाता है जो उस िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म उस भाग म िविनिदष्ट है तो उस रोग के
लगने के बारे म यह समझा जाएगा िक वह इस धारा के अथर् के अन्दर दुघटर् ना ारा हुई क्षित है और ज़ब तक िक तत्पर्ितकू ल सािबत
नह कर िदया जाता तब तक दुघटर् ना के बारे म यह समझा जाएगा िक वह उस िनयोजन से और उसके अनुकर्म म उद्भूत हुई हैः
7
[परन्तु यिद यह सािबत हो जाता है िक—
(क) िकसी 3[कमर्चारी] को अनुसच
ू ी 3 के भाग ग म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म एक या अिधक िनयोजक की
सेवा म रहने के समय कोई ऐसा रोग, जो उस िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म उस भाग म
िविनिदष्ट है, ऐसी िनरन्तर कालाविध के दौरान लग गया है जो उस िनयोजन के िलए इस उपधारा के अधीन िविनिदष्ट
कालाविध से कम है, तथा
(ख) वह रोग उस िनयोजन से और उसके अनुकर्म म उद्भूत हुआ है,
तो ऐसे रोग के लगने के बारे म यह समझा जाएगा िक वह इस धारा के अथर् के अन्दर दुघर्टना ारा हुई क्षित हैः
परन्तु यह भी िक यिद यह सािबत हो जाता है िक कोई 3[कमर्चारी], िजसने अनुसचू ी 3 के भाग ख म िविनिदष्ट िकसी
िनयोजन म िकसी िनयोजक के अधीन या उस अनुसूची के भाग ग म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म एक या अिधक िनयोजक के अधीन,
उस िनयोजन के िलए इस उपधारा के अधीन िविनिदष्ट िनरन्तर कालाविध के िलए सेवा की है और उसे ऐसी सेवा की समािप्त के
पश्चात् कोई ऐसा रोग लग गया है जो उस िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म, यथािस्थित, उक्त भाग ख
या उक्त भाग ग म िविनिदष्ट है और यह िक ऐसा रोग उस िनयोजन से उद्भूत हुआ था तो उस रोग के लगने के बारे म यह समझा
जाएगा िक वह इस धारा के अथर् के अन्दर दुघर्टना ारा हुई क्षित है ।]
[(2क) यिद अनुसूची 3 के भाग ग म िविनिदष्ट िकसी िनयोजन म िनयोिजत िकसी 3[कमर्चारी] को उस िनयोजन म
8

िविशष्टतः होने वाला कोई ऐसा उपजीिवकाजन्य रोग लग जाता है, िजसके लगने के बारे म यह समझा जाता है िक वह इस धारा के
अथर् के अन्दर दुघर्टना ारा हुई क्षित है और ऐसा िनयोजन एक से अिधक िनयोजक के अधीन था तो, ऐसे सब िनयोजक पर्ितकर का
ऐसे अनुपात म संदाय करने के दायी ह गे जैसा आयुक्त उन पिरिस्थितय म न्यायसंगत समझे ।]
(3) 9 [के न्दर्ीय सरकार या राज्य सरकार] िकसी भी वणर्न के िनयोजन को, ऐसा करने के अपने आशय की कम से कम तीन
मास की सूचना, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, देने के पश्चात् अनुसच ू ी 3 म िविनिदष्ट िनयोजन म वैसी ही अिधसूचना ारा,

1
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 3 ारा “से होने वाली िकसी कमर्कार को क्षित” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 3 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा “अथवा” शब्द का लोप िकया गया ।
5
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 2 ारा खंड (ग) का लोप िकया गया ।
6
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा (1-6-1959 से) उपधारा (2) और (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 3 ारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थािपत ।
8
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 3 ारा (1-2-1963 से) उपधारा (2क) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 3 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5

जोड़ सके गी और इस पर्कार जोड़े गए िनयोजन के बारे म उन रोग को िविनिदष्ट करे गी, िजनके बारे म इस धारा के पर्योजन के िलए
समझा जाएगा िक वे कर्मशः उन िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग ह और तदुपिर उपधारा (2) के उपबन्ध,
1 [के न्दर्ीय सरकार ारा अिधसूचना की दशा म, उन राज्यक्षेतर् के भीतर िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है, या राज्य सरकार ारा

अिधसूचना की दशा म, राज्य के भीतर] 2 *** ऐसे लागू ह गे मानो इस अिधिनयम ारा यह घोिषत िकया गया था िक वे रोग उन
िनयोजन म िविशष्टतः होने वाले उपजीिवकाजन्य रोग ह ।]
(4) उपधारा 3 [(2), (2क)] और (3) ारा यथा उपबिन्धत के िसवाय िकसी रोग के िलए कोई भी पर्ितकर 4 [कमर्चारी] को
तब तक संदय े न होगा जब तक िक रोग उसके िनयोजन से और उसके अनुकर्म म उद्भूत दुघर्टना ारा हुई िकसी िविनिदष्ट क्षित के
कारण से 5 *** पर्त्यक्षतः हुआ नह माना जा सकता ।
(5) यिद 4[कमर्चारी] ने िनयोजक या िकसी अन्य िक्त के िवरु िकसी िसिवल न्यायालय म िकसी क्षित के िलए नुकसानी
का कोई वाद संिस्थत कर िदया है तो इसम की िकसी भी बात के बारे म यह न समझा जाएगा िक वह 4[कमर्चारी] को उस क्षित के िलए
पर्ितकर पाने का कोई अिधकार पर्दान करती है, और िकसी क्षित के िलए 4[कमर्चारी] ारा िकसी िविध-न्यायालय म नुकसानी के िलए
कोई भी वाद न चल सके गा,—
(क) यिद उसने उस क्षित के बारे म पर्ितकर का कोई दावा आयुक्त के समक्ष संिस्थत कर िदया है, अथवा
(ख) यिद उस क्षित के िलए पर्ितकर के संदाय का उपबन्ध करने वाला कोई करार 4[कमर्चारी] और उसके िनयोजन
के बीच इस अिधिनयम के उपबन्ध के अनुसार हो चुका है ।
6
[4. पर्ितकर की रकम—(1) इस अिधिनयम के उपबंध के अध्यधीन यह है िक पर्ितकर की रकम िनम्निलिखत होगी,
अथार्त्:—

(क) जहां िक क्षित के पिरणामस्वरूप मृत्यु हो मृत 4[कमर्चारी] की मािसक मजदूरी को सुसंगत गुणक से गुणा
जाती है करके पर्ाप्त रकम से 7 [पचास पर्ितशत] के बराबर रकम; या
8
[एक लाख बीस हजार] की रकम, इनम से जो भी अिधक हो;
(ख) जहां िक क्षित के पिरणामस्वरूप स्थायी मतृ 4[कमर्चारी] की मािसक मजदूरी को सुसंगत गुणक से गुणा
पूणर् िनःशक्तता हो जाती है । करके पर्ाप्त रकम के 9 [साठ पर्ितशत] के बराबर रकम; या
[एक लाख चालीस हजार रुपए] की रकम, इनम से जो भी
8

अिधक हो :
[परं तु के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना
10
ारा, समय-समय पर, खंड (क) और खंड (ख) म उिल्लिखत
पर्ितकर की रकम म वृि कर सके गी ।]
स्पष्टीकरण 1—खंड (क) और खंड (ख) के पर्योजन के िलए, िकसी 4[कमर्चारी] के संबंध म, “सुसंगत गुणक” से
अनुसच ू ी 4 के पहले स्तंभ म की पर्िवष्ट के सामने उस अनुसूची के दूसरे स्तंभ म िविनिदष्ट गुणक अिभपर्ेत है, जो वष की उस
संख्या को िविनिदष्ट करता है, जो 4[कमर्चारी] के , पर्ितकर देय होने की तारीख के ठीक पूवर्वत , अंितम जन्म िदवस को पूणर्
हुए वष की संख्या के बराबर है ।
11
* * * * *
(ग) जहां िक क्षित के पिरणामस्वरूप स्थायी (i) ऐसी क्षित की दशा म, जो अनुसूची 1 के भाग 2 म िविनिदष्ट
आंिशक िनःशक्तता हो जाती है है, उस पर्ितकर का, जो स्थायी पूणर् िनःशक्तता की दशा म संदय

होता, ऐसा पर्ितशत, जो उस क्षित ारा कािरत उपाजर्न-सामथ्यर्
की हािन के पर्ितशत के रूप म उस भाग म िविनिदष्ट है, तथा
(ii) ऐसी क्षित की दशा म, जो अनुसच
ू ी 1 म िविनिदष्ट नह है,

1
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 3 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
2
1970 के अिधिनयम सं० 51 की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-9-1971 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
3
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 3 ारा (1-6-1959 से) “उपधारा (2)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 3 ारा “पूणर्तः और” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 3 ारा (1-7-1984 से) धारा 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 4 ारा (15-9-1995 से) “चालीस पर्ितशत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत
8
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा पर्ितस्थािपत ।
9
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 4 ारा (15-9-1995 से) “पचास पर्ितशत” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
11
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा लोप िकया गया ।
6

उस पर्ितकर का, जो स्थायी पूणर् िनःशक्तता की दशा म संदय



होता, ऐसा पर्ितशत, जो उस क्षित ारा स्थायी रूप से कािरत
उपाजर्न-सामथ्यर् की (जैसे अिहत िचिकत्सा वसायी ारा
िनधार्िरत िकया जाए) हािन का आनुपाितक हो ।
स्पष्टीकरण 1—जहां िक एक ही दुघर्टना से हक से अिधक क्षितयां होती ह, वहां इस शीषर्क के अधीन संदय
े पर्ितकर
की रकम संकिलत कर ली जाएगी िकन्तु िकसी भी दशा म ऐसी नह होगी िक वह उस रकम से बढ़ जाए, जो उन क्षितय के
पिरणामस्वरूप स्थायी पूणर् िनःशक्तता होने की दशा म संदय
े होती ।
स्पष्टीकरण 2—उपखंड (ii) के पर्योजन के िलए उपाजर्न-सामथ्यर् का िनधार्रण करने म, अिहत िचिकत्सा
वसायी, अनुसच ू ी 1 िविनिदष्ट िविभन्न क्षितय के संबंध म उपाजर्न-सामथ्यर् की हािन के पर्ितशत का सम्यक् ध्यान रखेगा;

(घ) जहां िक क्षित के पिरणामस्वरूप, चाहे 1 [कमर्चारी]


की मािसक मजदूरी के पच्चीस पर्ितशत के समतुल्य
पूणर् चाहे आंिशक, अस्थायी िनःशक्तता हो जाती है । रकम का अधर्-मािसक संदाय उपधारा (2) के उपबन्ध के अनुसार
िकया जाएगा ।
[(1क) उपधारा (1) म िकसी बात के होते हुए भी, आयुक्त, भारत के बाहर हुई िकसी दुघर्टना के संबंध म िकसी 1[कमर्चारी]
2

को संदय े पर्ितकर की रकम िनयत करते समय उस देश की िविध के अनुसार, िजसम दुघर्टना हुई थी, ऐसे 1[कमर्चारी] को अिधिनण त
की गई पर्ितकर की रकम को, यिद कोई हो, ध्यान म रखेगा और अपने ारा िनयत की गई रकम म से उस देश की िविध के अनुसार
1
[कमर्चारी] को अिधिनण त की गई पर्ितकर की रकम को घटा देगा;]
[(1ख) के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, उपधारा (1) के पर्योजन के िलए िकसी कमर्चारी के संबंध म ऐसी
3

मािसक मजदूरी िविनिदष्ट कर सके गी, जो वह आवश्यक समझे ।]


(2) उपधारा (1) के खंड (घ) म िनिदष्ट अधर्-मािसक संदाय, जो उस दशा म,—
(i) िजसम िक ऐसी िनःशक्तता अ ाईस िदन या उससे अिधक रहती है, िनःशक्तता की तारीख से; अथवा
(ii) िजसम िक ऐसी िनःशक्तता अ ाईस िदन से कम रहती है, िनःशक्तता की तारीख से तीन िदन की पर्तीक्षा
कालाविध के अवसान के पश्चात् सौलहव िदन को और तत्पश्चात् िनःशक्तता के दौरान या पांच वषर् की कालाविध के दौरान
इनसे से जो भी कालाविध लघुतर हो, आधे-आधे मास पर संदय
े होगाः
परन्तु—
(क) िकसी ऐसी एकमुश्त रकम या अधर्-मािसक संदाय म से, िजनका 1[कमर्चारी] हकदार है, िकसी संदाय या भ े
की वह रकम काट ली जाएगी, जो 1[कमर्चारी] ने, यथािस्थित, ऐसी एकमुश्त रकम की या पर्थम अधर्-मािसक संदाय की
पर्ािप्त से पूवर्, िनःशक्तता की कालाविध के दौरान पर्ितकर के रूप म िनयोजक से पर्ाप्त की है; तथा
(ख) कोई भी अधर्-मािसक संदाय िकसी भी दशा म इतनी रकम से, यिद कोई हो, अिधक नह होगा, िजतनी से
दुघर्टना के पहले 1[कमर्चारी] की मािसक मजदूरी की आधी रकम उस मजदूरी की आधी रकम से अिधक है, िजसे वह दुघर्टना
के पश्चात् उपािजत कर रहा है ।
स्पष्टीकरण—ऐसा कोई संदाय या भ ा, जो 1[कमर्चारी] ने िचिकत्सा लेखे िनयोजक से पर्ाप्त िकया है, परन्तुक के खंड (क) के
अथर् के अन्दर पर्ितकर के रूप म उसके ारा पर्ाप्त संदाय या भ ा नह समझा जाएगा ।
[(2क) कमर्चारी को िनयोजन के दौरान कािरत क्षितय के उपचार के िलए उसके
3
ारा उपगत वास्तिवक िचिकत्सा य की
पर्ितपूित की जाएगी ।]
(3) उस तारीख से पहले, िजसको कोई अधर्-मािसक संदाय शोध्य होता है, िनःशक्तता के दूर हो जाने पर, उस अधर्-मास के
िलए ऐसी रािश संदय
े होगी जो उस अधर्-मास म िनःशक्तता की अिस्तत्वाविध की आनुपाितक हो ।
[(4) यिद 1[कमर्चारी] को हुई क्षित के पिरणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है, तो िनयोजक, उपधारा (1) के अधीन पर्ितकर
2

के अितिरक्त, आयुक्त के पास ऐसे 1[कमर्चारी] की अंत्येिष्ट के य के िलए 1[कमर्चारी] के सबसे बड़े उ रजीवी आिशर्त को, अथवा
जहां 1[कमर्चारी] का कोई आिशर्त नह है या वह अपनी मृत्यु के समय अपने आिशर्त के साथ नह रह रहा था वहां उस िक्त को,
िजसने वास्तव म ऐसा य उपगत िकया है, संदाय के िलए 4 [पांच हजार रुपए से अन्यून] की रािश जमा करे गा ।]
5
[परन्तु के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, समय-समय पर इस उपधारा म िविनिदष्ट रकम म वृि कर सके गी ।]

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 4 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
7

[4क. शोध्य हो जाने पर पर्ितकर का िदया जाना और


1
ितकर्म के िलए शािस्त—(1) धारा 4 के अधीन पर्ितकर शोध्य होते
ही दे िदया जाएगा ।
(2) िजन दशा म िनयोजक पर्ितकर के िलए दाियत्व दावाकृ त िवस्तार तक पर्ितगृहीत नह करता उनम िजस पर्कार िवस्तार
तक का दाियत्व वह पर्ितगृहीत करता है उस पर आधृत अनिन्तम संदाय करने के िलए वह आब होगा और ऐसा संदाय, कोई अितिरक्त
दावा करने के सम्बन्ध म 2 [कमर्चारी] के अिधकार पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना, यथािस्थित, आयुक्त के पास िनिक्षप्त कर िदया
जाएगा या 3[कमर्चारी] को दे िदया जाएगा ।]
[(3) जहां कोई िनयोजक इस अिधिनयम के अधीन शोध्य पर्ितकर को उसके शोध्य हो जाने की तारीख से एक मास के भीतर
3

देने म ितकर्म करता है, वहां आयुक्त—


(क) यह िनदेश देगा िक िनयोजक, बकाया रकम के अितिरक्त, उस पर बारह पर्ितशत पर्ितवषर् की दर से या िकसी
अनुसूिचत बक की उधार देने की अिधकतम दर से अनिधक ऐसी उच्चतर दर से, जो के न्दर्ीय सरकार ारा, राजपतर् म
अिधसूचना ारा, ऐसी शोध्य रकम पर िविनिदष्ट की जाए, साधारण ब्याज का संदाय करे गा;
(ख) यिद उसकी यह राय है िक िवलम्ब के िलए कोई न्यायोिचत्य नह है तो, यह िनदेश देगा िक िनयोजक, बकाया
रकम और उस पर ब्याज के अितिरक्त ऐसी रकम के पचास पर्ितशत से अनिधक अितिरक्त रािश का शािस्त के रूप म संदाय
करे गाः
परन्तु शािस्त के संदाय के िलए कोई आदेश, खंड (ख) के अधीन िनयोजक को यह हेतुक दिशत करने का युिक्तयुक्त अवसर
िदए िबना पािरत नह िकया जाएगा िक उसे क्य न पािरत िकया जाए ।
स्पष्टीकरण—इस उपधारा के पर्योजन के िलए, “अनुसूिचत बक” से ऐसा बक अिभपर्ेत है जो तत्समय भारतीय िरजवर् बक
अिधिनयम, 1934 (1934 का 2) की ि तीय अनुसच
ू ी म सिम्मिलत ह ।
4
[(3क) उपधारा (3) के अधीन संदय
े ब्याज और शािस्त, यथािस्थित, 3[कमर्चारी] या उसके आिशर्त को संद की जाएगी ।]
[5. मजदूरी का िहसाब करने की प ित— 5 *** 6 [“मािसक मजदूरी” पद से इस अिधिनयम म और इसके पर्योजन के िलए
एक मास की सेवा के िलए संदय े समझी जाने वाली मजदूरी की रकम (चाहे वह मजदूरी मास के िहसाब से या िकसी भी अन्य कालाविध
के िहसाब से या मातर्ानुपाती दर से संदय
े हो) अिभपर्ेत है, और िजसका िहसाब िनम्निलिखत रूप म िकया जाएगा], अथार्त्—
(क) जहां िक 3[कमर्चारी] उस िनयोजक की, जो पर्ितकर का देनदार है, सेवा म दुघर्टना से ठीक पहले के बाहर मास
से अन्यून की िनरन्तर कालाविध के दौरान रहा है, वहां 3[कमर्चारी] की मािसक मजदूरी उस कु ल मजदूरी का बारहवां भाग
होगी, जो उस कालाविध के अिन्तम बारह मास म िनयोजक ारा उसे संदाय के िलए शोध्य हो गई है;
[(ख) जहां िक दुघर्टना से ठीक पहले की उस सेवा की सम्पूणर् िनरन्तर कालाविध, िजसके दौरान 3[कमर्चारी] उस
7

िनयोजक की सेवा म था, जो पर्ितकर का देनदार है, एक मास से कम थी वहां, 3[कमर्चारी] की मािसक मजदूरी वह औसत
मािसक रकम 8 *** होगी िजसे उसी िनयोजक ारा उसी काम म िनयोिजत कोई 3[कमर्चारी], या यिद कोई 3[कमर्चारी] इस
पर्कार िनयोिजत नह था, तो उसी पिरक्षेतर् म िकसी वैसे ही काम म िनयोिजत कोई 3[कमर्चारी] दुघर्टना से ठीक पहले के
बारह मास के दौरान उपािजत कर रहा था;]
[(ग)] 10 [अन्य दशा म (िजनके अन्तगर्त वे दशाएं आती ह, िजनम िक आवश्यक जानकारी के अभाव म खण्ड
9

(ख) के अधीन मािसक मजदूरी का िहसाब करना सम्भव नह है)] मािसक मजदूरी उस िनयोजक से, जो पर्ितकर का देनदार
है, दुघर्टना से ठीक पहले की सेवा की अिन्तम िनरन्तर कालाविध के िलए उपािजत कु ल मजदूरी को ऐसी कालाविध म
समािवष्ट िदन की संख्या से िवभािजत करने पर पर्ाप्त भजनफल की तीस गुनी होगी ।
11
* * * *
स्पष्टीकरण—सेवा की ऐसी कालाविध, िजसम काम पर से चौदह िदन से अिधक की अनुपिस्थित-कालाविध के िलए िवच्छेद
नह हुआ है, 12 [इस 1 [धारा]] के पर्योजन के िलए िनरन्तर कालाविध समझी जाएगी ।

1
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 5 ारा (1-6-1959 से) अंतःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 5 ारा (15-9-1995 से) “उपधारा (3)” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2000 के अिधिनयम सं० 46 की धारा 4 ारा (8-12-2000 से) पर्ितस्थािपत ।
5
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा मूल धारा 5 को उसकी उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया और 1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 4 ारा
“(1)” कोष्ठक और अंक का लोप िकया गया ।
6
1939 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 2 ारा (30-6-1934 से) “इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए कमर्कार की मािसक मजदूरी की गणना की जाएगी” के स्थान पर
पर्ितस्थािपत । मोटे अक्षर म शब्द 1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 5 ारा “धारा 4” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 5 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1939 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 2 ारा (30-6-1934 से) “समझी जाएगी” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 5 ारा मूल खण्ड (ख) को (ग) के रूप म पुनः अक्षरांिकत िकया गया ।
10
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 6 ारा (1-6-1959 से) “अन्य दशा म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 5 ारा परन्तुक का लोप िकया गया ।
12
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा “इस धारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8

2
* * * *
6. पुनिवलोकन—(1) पक्षकार की बीच हुए िकसी करार के अधीन के या आयुक्त के आदेश के अधीन के ऐसे अधर्मािसक
संदाय का पुनिवलोकन, जो इस अिधिनयम के अधीन संदय े है, आयुक्त ारा, या तो िनयोजक के या 3 [कमर्चारी] के आवेदन पर, िजसके
साथ अिहत िचिकत्सा- वसायी का यह पर्माणपतर् होगा िक 4[कमर्चारी] की दशा म तब्दीली हो गई है, या इस अिधिनयम के अधीन
बनाए गए िनयम के अध्यधीन रहते हुए, ऐसे पर्माणपतर् के िबना िकए गए आवेदन पर िकया जा सके गा ।
(2) कोई भी अधर्मािसक संदाय इस धारा के अधीन पुनिवलोकन पर, इस अिधिनयम के उपबन्ध के अध्यधीन रहते हुए, चालू
रखा जा सके गा, बढ़ाया जा सके गा, घटाया जा सके गा या समाप्त िकया जा सके गा, या यिद यह पाया जाए िक दुघर्टना के
पिरणामस्वरूप स्थायी िनःशक्तता हो गई है तो, उसे ऐसी एकमुश्त रािश म संपिरवितत िकया जा सके गा । िजसका 4[कमर्चारी]
हकदार है, िकन्तु उस रािश म से ऐसी रकम कम कर दी जाएगी जो उसे अधर्मािसक संदाय के रूप म पहले ही पर्ाप्त हो चुकी है ।
7. अधर्मािसक संदाय का संराशीकरण—अधर्मािसक संदाय पर्ाप्त करने के िकसी अिधकार का मोचन, पक्षकार के बीच के
करार ारा, या यिद पक्षकार म करार नह हो पाता और संदाय कम से कम छह मास तक िकए जाते रहे ह तो दोन पक्षकार म से
िकसी के ारा आयुक्त को िकए गए आवेदन पर, ऐसी एकमुश्त रकम के संदाय ारा िकया जा सके गा, जो, यथािस्थित, पक्षकार ारा
करार पाई जाए या आयुक्त ारा अवधािरत की जाए ।
8. पर्ितकर का िवतरण— 4 [(1) िकसी ऐसे 4[कमर्चारी] के बारे म, िजसकी मृत्यु क्षित के पिरणामस्वरूप हो गई है, पर्ितकर का
कोई भी संदाय और िकसी स्तर्ी को या िविधक िनय ग्यता के अधीन िक्त को पर्ितकर के रूप म एकमुश्त रािश का कोई भी संदाय
आयुक्त के पास िनक्षेप करने से अन्यथा नह िकया जाएगा, और सीधे िनयोजक ारा कर िदए गए िकसी ऐसे संदाय के बारे म यह न
समझा जाएगा िक वह पर्ितकर का संदाय हैः
[परन्तु मृत 4[कमर्चारी] की दशा म िनयोजक िकसी भी आिशर्त को 6 [ऐसे 4[कमर्चारी] की तीन मास की मजदूरी के बराबर
5

रकम का अिभदाय पर्ितकर म े कर सके गा और उतनी रकम], िजतनी उस आिशर्त को संदय े पर्ितकर से अिधक न हो, ऐसे पर्ितकर म से
आयुक्त ारा काट ली जाएगी और िनयोजक को पर्ितसंद कर दी जाएगी ।]
(2) दस रुपए से अन्यून कोई अन्य ऐसी रािश, जो पर्ितकर के रूप म संदय
े है, उस िक्त के िनिम , जो उसका हकदार है,
आयुक्त के पास िनिक्षप्त की जा सके गी ।
(3) आयुक्त के पास िनिक्षप्त िकसी पर्ितकर के सम्बन्ध म आयुक्त की रसीद पयार्प्त उन्मोचन होगी ।
(4) आयुक्त 7 [िकसी मृत 4[कमर्चारी] के बारे म पर्ितकर के रूप म] उपधारा (1) के अधीन िकसी धन के िनक्षेप पर, 8 *** यिद
वह आवश्यक समझे तो आिशर्त को ऐसी तारीख को, िजसे वह पर्ितकर का िवतरण अवधािरत करने के िलए िनयत करे , अपने समक्ष
उपसंजात होने के िलए अपेिक्षत करने वाली सूचना का पर्काशन या हर एक आिशर्त पर उसकी तामील ऐसी रीित से कराएगा जैसी वह
उिचत समझे । यिद आयुक्त का समाधान िकसी ऐसी जांच के पश्चात्, िजसे वह आवश्यक समझे हो जाता है िक कोई भी आिशर्त
िव मान नह है तो वह उस धन का अितशेष उस िनयोजक को, िजसके ारा वह संद िकया गया था, पर्ितसंद कर देगा । आयुक्त
िकए गए सभी संिवतरण को िवस्तारपू्वर्क दिशत करते हुए एक िववरण िनयोजक के आवेदन पर देगा ।
[(5) िकसी मृत 4[कमर्चारी] के बारे म िनिक्षप्त पर्ितकर, उपधारा (4) के अधीन की गई िकसी कटौती के अध्यधीन रहते हुए,
9

मृत 4[कमर्चारी] के आिशर्त म या उनम से िकन्ह म ऐसे अनुपात म, िजसे आयुक्त ठीक समझे, पर्भािजत कर िदया जाएगा या आयुक्त
के स्विववेकानुसार िकसी एक आिशर्त को आबंिटत िकया जा सके गा ।
(6) जहां िक आयुक्त के पास िनिक्षप्त िकया गया कोई पर्ितकर िकसी िक्त संदय े है वहां आयुक्त वह धन उसके हकदार
िक्त को उस दशा म िजसम िक वह िक्त िजससे पर्ितकर संदय े है स्तर्ी या िविधक िनय ग्यता के अधीन िक्त नह है, देगा और
अन्य दशा म दे सके गा ।
(7) जहां िक आयुक्त के पास िनिक्षप्त कोई एकमुश्त रािश िकसी स्तर्ी या िविधक िनय ग्यता के अधीन िक्त को संदये है
वहां, ऐसी रािश उस स्तर्ी के या ऐसे िक्त की िनय ग्यता के दौरान उस िक्त के फायदे के िलए ऐसी रीित से, जैसी आयुक्त ारा
िनिदष्ट की जाए, िविनिहत की जा सके गी, उपयोिजत की जा सके गी या अन्यथा बरती जा सके गी, और जहां िक िविधक िनय ग्यता के
अधीन िक्त को कोई अधर्मािसक संदाय संदय े है वहां, आयुक्त स्वपर्ेरणा से या इस िनिम अपने को िकए गए िकसी आवेदन पर, यह

1
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 4 ारा “उपधारा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 3 ारा जोड़ी गई उपधारा (2) का 1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 5 ारा लोप िकया गया ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
4
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा मूल उपधारा (1) से (3) तक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 6 ारा परन्तुक के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 6 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 6 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द का लोप िकया गया ।
9
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा मूल उपधारा (5) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9

आदेश दे सके गा िक संदाय उस िनय ग्यता के दौरान 1 [कमर्चारी] के िकसी आिशर्त को या िकसी अन्य ऐसे िक्त को, िजसे आयुक्त
1
[कमर्चारी] के कल्याणाथर् उपबन्ध करने के िलए सबसे अिधक उपयुक्त समझे, िकया जाए ।]
[(8)] जहां िक इस िनिम अपने को िकए गए िकसी आवेदन पर या अन्यथा आयुक्त का समाधान हो जाता है िक पर्ितकर के
2

रूप म दी गई िकसी रािश के िवतरण के सम्बन्ध म, या उस रीित के सम्बन्ध म, िजसम ऐसे िकसी आिशर्त को संदय े कोई रािश
िविनिहत की जानी, उपयोिजत की जानी या अन्यथा बरती जानी है, आयुक्त के आदेश म फे रफार, िकसी ऐसे िक्त ारा, जो माता
या िपता है संतान की उपेक्षा के कारण, या िकसी आिशर्त की पिरिस्थितय म फे रफार के कारण, या िकसी अन्य पयार्प्त हेतुक से िकया
जाना चािहए वहां, आयुक्त पूवर्वत आदेश म फे रफार के िलए ऐसे आदेश कर सके गा, जैसे वह मामले की पिरिस्थितय म न्यायसंगत
समझे :
परन्तु िकसी िक्त पर पर्ितकू ल पर्भाव डालने वाला ऐसा कोई भी आदेश तब तक न िकया जाएगा जब तक िक उस िक्त
को इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए अवसर न दे िदया गया हो िक ऐसा आदेश क्य न िकया जाए, और न वह िकसी ऐसी दशा म
िकया जाएगा, िजसम िक उस आदेश म आिशर्त ारा िकसी ऐसी रािश का पर्ितसंदाय अन्तवर्िलत होता हो जो उस आिशर्त को पहले ही
संद की जा चुकी ह ।
[(9) जहां िक आयुक्त िकसी आदेश म उपधारा (8) के अधीन इस तथ्य के कारण फे रफार करता है िक िक्त को पर्ितकर का
3

संदाय कपट, पर्ितरूपण या अन्य अनुिचत साधन ारा अिभपर्ाप्त िकया गया है, वहां ऐसे िक्त को या उसके िनिम इस पर्कार दी
गई कोई रकम आगे धारा 31 म उपबिन्धत रीित से वसूल की जा सके गी ।]
9. पर्ितकर का समनुिदष्ट, कु कर् या भािरत न िकया जाना—इस अिधिनयम के अधीन संदय े कोई भी एकमुश्त रािश या
अधर्मािसक संदाय, इस अिधिनयम ारा तथा उपबिन्धत के िसवाय, िकसी भी पर्कार समनुिदष्ट या भािरत िकए जाने के योग्य या कु क
के दाियत्व के अधीन नह होगा, और न 1[कमर्चारी] से िभन्न िकसी िक्त को िविध की िकर्या ारा संकर्ान्त होगा और न कोई दावा
उसके िवरु मुजरा िकया जाएगा ।
10. सूचना और दावा—(1) 4 [पर्ितकर के िलए कोई भी दावा तब तक आयुक्त ारा गर्हण नह िकया जाएगा जब तक िक
दुघर्टना की सूचना उसके घिटत होने के पश्चात् यथासाध्य शीघर् उस रीित से, जो इसम पश्चात् उपबिन्धत की गई है, न दे दी गई हो
और जब तक िक दावा दुघर्टना होने के 5 [दो वषर्] के भीतर, या मृत्यु हो जाने की दशा म, मृत्यु की तारीख से 5[दो वषर्] के भीतर, उसके
समक्ष कर न िदया गया होः]
परन्तु जहां िक दुघर्टना ऐसे रोग का लगना है, िजसके सम्बन्ध म धारा 3 की उपधारा (2) के उपबन्ध लागू होते ह वहां,
दुघर्टना के बारे म यह समझा जाएगा िक वह उन िदन म से पहले िदन को हुई थी, िजनके दौरान 1[कमर्चारी] उस रोग ारा कािरत
िनःशक्तता के पिरणामस्वरूप काम पर से िनरन्तर अनुपिस्थत रहा थाः
यह भी िक ऐसा कोई रोग लगने के कारण हुई ऐसी आंिशक िनःशक्तता की दशा म, जो 1[कमर्चारी] को काम से
6 [परन्तु

अनुपिस्थत रहने के िलए मजबूर नह करती, दो वषर् की कालाविध की गणना उस िदन से की जाएगी िजसको 1[कमर्चारी] िनःशक्तता
की सूचना अपने िनयोजक को देता हैः
परन्तु यह भी िक यिद कोई 1[कमर्चारी], जो िकसी िनयोजन म, धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन उस िनयोजन के सम्बन्ध
म िविनिदष्ट िनरन्तर कालाविध के िलए िनयोिजत िकए जा चुकने पर, इस पर्कार िनयोिजत नह रह जाता और उस िनयोजन म
िविशष्टतः होने वाले िकसी उपजीिवकाजन्य रोग के लक्षण िनयोजन की समािप्त के दो वषर् के भीतर उसम िवकिसत हो जाते ह,
दुघर्टना उस िदन हुई समझी जाएगी िजस िदन उन लक्षण का पता पहले पहल चला थाः]
7
[परन्तु यह भी िक—
(क) यिद दावा 1[कमर्चारी] की ऐसी दुघर्टना के पिरणामस्वरूप हुई मृत्यु के बारे म 8 [िकया] गया है जो िनयोजन के
पिरसर म या िकसी ऐसे स्थान म हुई थी, जहां 1[कमर्चारी] दुघर्टना के समय िनयोजक या उसके ारा िनयोिजत िकसी िक्त
के िनयंतर्ण के अधीन काम कर रहा था और 1[कमर्चारी] ऐसे पिरसर म, या ऐसे स्थान म, या िनयोजक के िकसी पिरसर म
मरा था, या उस पिरसर या स्थान का, जहां दुघर्टना हुई थी, सामीप्य छोड़े िबना मरा था, अथवा

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा उपधारा (6) को उपधारा (8) के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
3
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 4 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा मूल शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 8 ारा (1-6-1959 से) “एक वषर्” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 5 ारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थािपत ।
7
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 7 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा पर्ितस्थािपत ।
10

(ख) यिद िनयोजक को 1 [या कई िनयोजक म से िकसी एक को, वसाय या कारबार की िकसी ऐसी शाखा के
पर्बन्ध के िलए िजसम क्षत 2 [कमर्चारी] िनयोिजत था, िनयोजक के पर्ित उ रदायी िकसी िक्त को] दुघर्टना का ज्ञान िकसी
अन्य ोत से, उस समय या उस समय के आसपास हो गया था, जब वह दुघर्टना हुई थी,
तो सूचना का अभाव या उसम कोई तर्ुिट या अिनयिमतता 3 [दावे के गर्हण] िकए जाने के िलए वजर्न न होगीः]
परन्तु यह भी िक इस बात के होते हुए भी िक इस उपधारा म यथाउपबिन्धत सम्यक् समय के भीतर सूचना नह दी गई है या
दावा नह 4 [िकया] गया है, आयुक्त िकसी भी मामले म पर्ितकर के िकसी भी दावे को उस दशा म 5 [गर्हण] और िविनिश्चत कर सके गा,
िजसम उसका समाधान हो जाए िक, यथािस्थित, वैसे सूचना देने या दावा 6 [करने] म असफलता पयार्प्त हेतुक से हुई थी ।
(2) ऐसी हर सूचना म क्षत िक्त का नाम और पता िदया होगा और सरल भाषा म क्षित का कारण और वह तारीख िजसको
दुघर्टना हुई, किथत होगी और उसकी तामील िनयोजक पर या कई िनयोजक म से 7 [िकसी एक] पर, या वसाय या कारबार की
िकसी ऐसी शाखा के , िजसम क्षत 2[कमर्चारी] िनयोिजत था, पर्बन्ध के िलए िनयोजक के पर्ित 8 *** उ रदायी िकसी िक्त पर की
जाएगी ।
9 [(3)राज्य सरकार यह अपेक्षा कर सके गी िक िविहत वगर् के िनयोजक अपने पिरसर म, िजसम 2[कमर्चारी] िनयोिजत ह,
िविहत पर्रूप म एक सूचना-पुस्तक रखगे िजस तक पिरसर म िनयोिजत िकसी भी क्षत 2[कमर्चारी] की या स ावपूवर्क उसकी ओर से
कायर् करने वाले िकसी भी िक्त की सभी युिक्तयुक्त समय पर आसानी से पहुंच हो सके गी ।
(4) इस धारा के अधीन सूचना की तामील, उस िक्त के , िजस पर उसकी तामील की जानी है, िनवास-स्थान या िकसी
कायार्लय या कारबार के स्थान म पिरद करके या उस पते पर रिजस्टर्ीकृ त डाक से भेजकर, या जहां िक सूचना-पुस्तक रखी जाती है
वहां सूचना-पुस्तक म पर्िविष्ट करके , की जा सके गी ।]
[10क. पर्ाणान्तक दुघटर् ना के सम्बन्ध म िववरण की िनयोजक से अपेक्षा करने की शिक्त—(1) जहां िक आयुक्त को
10

िकसी ोत से यह इि ला पर्ाप्त होती है िक कोई 2[कमर्चारी] अपने िनयोजन से और उसके अनुकर्म म उद्भूत दुघर्टना के
पिरणामस्वरूप मर गया है वहां वह उस 2[कमर्चारी] के िनयोजक को उससे यह अपेक्षा करने वाली सूचना रिजस्टर्ीकृ त डाक ारा भेज
सके गा िक वह िविहत पर्रूप म ऐसा िववरण, िजसम वे पिरिस्थितयां िजनम 2[कमर्चारी] की मृत्यु हुई बताई गई हो और यह उपदिशत
िकया गया हो िक िनयोजक की राय म वह उस मृत्यु के कारण पर्ितकर िनिक्षप्त करने का दायी है या नह , उस सूचना की तामील से
तीस िदन के भीतर िनवेिदत करे ।
(2) यिद िनयोजक की राय हो िक वह पर्ितकर िनिक्षप्त करने का दायी है तो वह सूचना की तामील से तीस िदन के भीतर
ऐसा िनक्षेप करे गा ।
(3) यिद िनयोजक की राय हो िक वह पर्ितकर िनिक्षप्त करने का दायी नह है, तो वह अपने िववरण म उन आधार को
उपदिशत करे गा िजन पर वह दाियत्व से इन्कार करता है ।
(4) जहां िक िनयोजक ने दाियत्व से इस पर्कार इन्कार िकया है, वहां आयुक्त ऐसी जांच के पश्चात् जैसी वह ठीक समझे मृत
[कमर्चारी] के आिशर्त म से िकसी को भी, इि ला दे सके गा िक आिशर्त पर्ितकर का दावा करने के िलए स्वतंतर् है और उन्ह ऐसी अन्य
2

अितिरक्त इि ला, जैसी वह ठीक समझे, दे सके गा ।


10ख. पर्ाणान्तक दुघटर् ना और गम्भीर शारीिरक क्षितय की िरपोट—(1) जहां िक िकसी तत्समय पर्वृ िविध ारा यह
अपेिक्षत है िक िनयोजक के पिरसर म घिटत िकसी ऐसी दुघर्टना की, िजसके पिरणामस्वरूप मृत्यु 11 [या गम्भीर शारीिरक क्षित] हो गई
हो, सूचना िकसी पर्ािधकारी को िनयोजक ारा या उसकी ओर से दी जाए, वहां, वह िक्त, जो सूचना देने के िलए अपेिक्षत है, मृत्यु
11
[या गम्भीर शारीिरक क्षित] के सात िदन के भीतर आयुक्त को एक िरपोटर् भेजेगा िजसम वे पिरिस्थितयां बताई जाएंगी िजनम मृत्यु
11
[या गम्भीर शारीिरक क्षित] हुई है :
परन्तु जहां िक राज्य सरकार ने ऐसा िविहत िकया हो वहां सूचना देने के िलए अपेिक्षत िक्त ऐसी िरपोटर् आयुक्त को भेजने
के बजाय उस पर्ािधकारी को भेज सके गा िजसे सूचना देने के िलए वह िक्त अपेिक्षत है ।
[स्पष्टीकरण—“गंभीर शारीिरक क्षित” से ऐसी क्षित अिभपर्ेत है िजसम िकसी अंग के उपयोग की स्थायी हािन या िकसी
11

अंग की स्थायी क्षित अथवा दृिष्ट या शर्वण शिक्त की स्थायी हािन या उसे स्थायी क्षित अथवा िकसी अंग म अिस्थभंग अथवा क्षत

1
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा अंतःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा “कायर्वािहय का िकया जाना” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा “संिस्थत िकया” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा “स्वीकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा “संिस्थत करने” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1924 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा और अनुसूची 1 ारा “िकसी एक या” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 5 ारा “पर्त्यक्षतः” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 7 ारा उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 8 ारा अंतःस्थािपत ।
11
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 9 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
11

िक्त की अपने काम से बीस िदन से अिधक की कालाविध के िलए मजबूरी के कारण अनुपिस्थित अन्तवर्िलत है या अन्तवर्िलत होना
पूणर्तः अिधसंभा है ।]
(2) राज्य सरकार, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, उपधारा (1) के उपबन्ध का िवस्तार, उस उपधारा की पिरिध म
आने वाले पिरसर से िभन्न पिरसर के िकसी वगर् पर कर सके गी, और ऐसी अिधसूचना ारा उन िक्तय को िविनिदष्ट कर सके गी
जो आयुक्त को िरपोटर् भेजगे ।
[(3) इस धारा म की कोई भी बात उन कारखान को लागू न होगी िजनको 2 [कमर्चारी] राज्य बीमा अिधिनयम, 1948
1

(1948 का 34) लागू होता है ।]


11. िचिकत्सीय परीक्षा—(1) जहां िक 2[कमर्चारी] ने दुघर्टना की सूचना दी है वहां, यिद िनयोजक उस समय से, जब सूचना
की तामील हुई थी, तीन िदन का अवसान होने के पहले उससे यह पर्स्थापना करता है िक िकसी अिहत िचिकत्सा- वसायी ारा उसकी
परीक्षा मुफ्त कराई जाएगी, तो, वह अपने को ऐसी परीक्षा के िलए पर्स्तुत करे गा और कोई भी 2[कमर्चारी], जो इस अिधिनयम के
अधीन अधर्मािसक संदाय पाता है, यिद उससे ऐसी अपेक्षा की जाए, तो समय-समय पर अपने को ऐसी परीक्षा के िलए पर्स्तुत करे गाः
परन्तु 2[कमर्चारी] इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार से अन्यथा, या उन अन्तराल से, जो िविहत िकए
जाएं, लघुतर अन्तराल पर िचिकत्सा- वसायी ारा परीक्षा कराने के िलए अपने को पर्स्तुत करने के िलए अपेिक्षत नह
िकया जाएगा ।
(2) यिद 2[कमर्चारी] िनयोजक ारा उपधारा (1) के अधीन या आयुक्त ारा िकसी भी समय ऐसा करने के िलए अपेिक्षत
िकए जाने पर, अिहत िचिकत्सा- वसायी ारा अपनी परीक्षा कराने के िलए अपने को पर्स्तुत करने से इन्कार करता है या उसम िकसी
पर्कार से बाधा डालता है तो ऐसे इन्कार या ऐसी बाधा के बने रहने के दौरान उसका पर्ितकर का अिधकार उस दशा के िसवाय
िनलिम्बत रहेगा िजसम इन्कार की दशा म वह इस पर्कार अपने को पर्स्तुत करने से िकसी पयार्प्त कारण ारा िनवािरत हुआ था ।
(3) यिद 2[कमर्चारी] उस कालाविध के अवसान से पूवर्, िजसके भीतर वह िचिकत्सीय परीक्षा के िलए अपने को पर्स्तुत करने
के िलए अपेिक्षत िकए जाने के िलए उपधारा (1) के अधीन दाियत्वाधीन है, इस पर्कार परीिक्षत हुए िबना उस स्थान के , िजसम वह
िनयोिजत था, सामीप्य से स्वेच्छापूवर्क चला जाता है तो उसका पर्ितकर का अिधकार तब तक के िलए िनलिम्बत रहेगा जब तक वह
लौट नह आता और ऐसी परीक्षा कराने के िलए अपने को पेश नह कर देता ।
(4) जहां िक ऐसा 2[कमर्चारी], िजसका पर्ितकर का अिधकार उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन िनलिम्बत हो गया है,
िचिकत्सीय परीक्षा के िलए अपने को वैसे पर्स्तुत िकए िबना, जैसा उन उपधारा म से िकसी के ारा अपेिक्षत है, मर जाता है वहां,
यिद आयुक्त ठीक समझे तो वह मृत 2[कमर्चारी] के आिशर्त को पर्ितकर का संदाय िनिदष्ट कर सके गा ।
(5) जहां िक पर्ितकर का अिधकार उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन िनलिम्बत है वहां िनलम्बन की कालाविध के िलए
कोई भी पर्ितकर संदय े नह होगा और यिद िनलिम्बत की कालाविध धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) म िनिदष्ट पर्तीक्षा-
कालाविध के अवसान के पूवर् पर्ारम्भ होती है तो पर्तीक्षा-कालाविध म उतनी कालाविध बढ़ा दी जाएगी िजसके दौरान िनलम्बन बना
रहता है ।
(6) जहां िक क्षत 2[कमर्चारी] ने उस अिहत िचिकत्सा- वसायी ारा अपनी पिरचयार् कराने से इन्कार कर िदया है, िजसकी
मुफ्त सेवाएं उसे िनयोजक ारा पर्स्थािपत की गई ह, या ऐसी पर्स्थापना पर्ितगृहीत कर चुकने के पश्चात् ऐसे िचिकत्सा- वसायी के
अनुदश े की जानबूझकर अवहेलना की है वहां 3 [यिद यह सािबत कर िदया जाता है िक 2[कमर्चारी] की पिरचयार् िकसी अिहत
िचिकत्सा- वसायी ारा तत्पश्चात् िनयिमत रूप से नह हुई है या उसकी ऐसी पिरचयार् तो हुई है पर वह अिहत िचिकत्सा- वसायी
के अनुदश े का अनुसरण करने म जानबूझकर असफल रहा है और ऐसा इन्कार, अवहेलना या असफलता उस मामले की पिरिस्थितय म
अयुिक्तयुक्त थी] और उससे क्षित गुरूतर हो गई है तो क्षित और उसके पिरणामस्वरूप हुई िनःशक्तता के बारे म यह समझा जाएगा िक
वे उसी पर्कार की और उसी अिस्तत्वाविध की है, िजस पर्कार की और िजस अिस्तत्वाविध की उनके होने की पर्त्याशा उस दशा म
युिक्तयुक्त रूप म की जा सकती थी िजसम िक 2[कमर्चारी] की पिरचयार् िकसी अिहत िचिकत्सा- वसायी ारा िनयिमत रूप से की
गई होती 4 [और उसके अनुदश े का अनुसरण 2[कमर्चारी] ने िकया होता], और यिद कोई पर्ितकर संदय
े है तो वह तदनुसार संदय
े होगा ।
12. संिवदा करना—(1) जहां िक कोई िक्त (िजसे इसके पश्चात् इस धारा म मािलक कहा गया है), अपने वसाय या
कारबार के अनुकर्म म या उसके पर्योजन के िलए िकसी अन्य िक्त के साथ (िजसे इसके पश्चात् इस धारा म ठे केदार कहा गया है)
िकसी ऐसे पूरे काम या उसके िकसी भाग को, जो मािलक के वसाय या कारबार का मामूली तौर से भाग है, ठे केदार ारा या उसके
अधीन िनष्पादन करने के िलए संिवदा करता है वहां, उस काम के िनष्पादन म िनयोिजत 2[कमर्चारी] को मािलक ऐसे पर्ितकर का
देनदार होगा िजसका देनदार वह होता यिद वह 2[कमर्चारी] उसके ारा अ विहत रूप से िनयोिजत िकया गया होता; और जहां िक
मािलक से पर्ितकर के िलए दावा िकया जाता है वहां यह अिधिनयम, इसके िसवाय िक पर्ितकर की रकम का िहसाब 2[कमर्चारी] की उस

1
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 9 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 6 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 6 ारा अन्तःस्थािपत ।
12

िनयोजक के अधीन मजदूरी के पर्ित िनदश से िकया जाएगा िजसके ारा वह अ विहत रूप से िनयोिजत है, इस पर्कार लागू होगा
मानो िनयोजक के पर्ित िनदश के िलए मािलक के पर्ित िनदश पर्ितस्थािपत कर िदए गए ह ।
(2) जहां िक मािलक इस धारा के अधीन पर्ितकर का देनदार है वहां वह ठे केदार से 1 [या िकसी अन्य िक्त से, िजससे
2 [कमर्चारी]
पर्ितकर वसूल कर सकता था, अपनी क्षितपूित कराने का हकदार होगा, और जहां िक ठे केदार, जो स्वयं मािलक है, इस
धारा के अधीन पर्ितकर का या िकसी मािलक की क्षितपूित करने का दायी है वहां वह अपनी क्षितपूित अपने साथ ठे केदार का सम्बन्ध
रखने वाले िकसी ऐसे िक्त से िजससे 2[कमर्चारी] पर्ितकर वसूल कर सकता था, कराने का हकदार होगा] और िकसी ऐसी क्षितपूित के
अिधकार और रकम िवषयक सभी पर्श्न करार के अभाव म आयुक्त ारा तय िकए जाएंगे ।
(3) इस धारा की िकसी भी बात का यह अथर् नह लगाया जाएगा िक वह िकसी 2[कमर्चारी] को मािलक के बजाय ठे केदार से
पर्ितकर वसूल करने से िनवािरत करती है ।
(4) यह धारा िकसी ऐसी दशा म लागू नह होगी िजसम िक दुघटर् ना उस पिरसर पर, म या के आसपास न होकर अन्यतर् हुई
है, िजस पर मािलक ने, यथािस्थित, काम के िनष्पादन का उपकर्म िकया है या पर्ाियकतः करता है या जो अन्यथा उसके िनयंतर्ण या
पर्बंध के अधीन है ।
13. पर- िक्त के िवरु िनयोजक के उपचार—जहां िक 2[कमर्चारी] ने िकसी ऐसी क्षित के िलए पर्ितकर वसूल िकया है जो
ऐसी पिरिस्थितय म कािरत हुई थी िजनम उसके िलए नुकसानी के िलए संदाय करने का िकसी ऐसे िक्त पर िविधक दाियत्व सृष्ट
हुआ था जो उस िक्त से िभन्न है िजसने पर्ितकर िदया है वहां वह िक्त िजसने पर्ितकर िदया है और कोई ऐसा िक्त, िजससे धारा
12 के अधीन क्षितपूित करने की अपेक्षा की गई है उस िक्त से अपनी क्षितपूित कराने का हकदार होगा जो नुकसान के िलए संदाय
करने का यथापूव क्त रूप म दायी है ।
14. िनयोजक का िदवाला—(1) जहां िक िनयोजक ने िकसी 2[कमर्चारी] के पर्ित इस अिधिनयम के अधीन अपने िकसी
दाियत्व के बारे म िकन्ह बीमाकतार् से संिवदा की है, वहां िनयोजक के िदवािलया हो जाने की, या अपने लेनदार के साथ पर्शमन
करने की, या ठहराव करने की कोई स्कीम बनाने की दशा म, या यिद िनयोजक कोई कम्पनी है तो कम्पनी का पिरसमापन पर्ारम्भ होने
की दशा म, उस दाियत्व के बारे म बीमाकतार् के िवरु िनयोजक के अिधकार 2[कमर्चारी] को, िदवाले या कम्पिनय के पिरसमापन
से सम्ब िकसी तत्समय पर्वृ िविध म िकसी बात के होते हुए भी, अंतिरत और उसम िनिहत हो जाएंगे, और ऐसे िकसी अंतरण पर
बीमाकतार् के वे ही अिधकार और उपचार ह गे, और वे उन्ह दाियत्व के अध्यधीन ऐसे ह गे, मानो वे िनयोजक ह , िकन्तु ऐसे िक
बीमाकतार् 2[कमर्चारी] के पर्ित उस दाियत्व से अिधक दाियत्व के अधीन न ह गे िजसके अधीन वे िनयोजक के पर्ित होते ।
(2) यिद 2[कमर्चारी] के पर्ित बीमाकतार् का दाियत्व 2[कमर्चारी] के पर्ित िनयोजक के दाियत्व से कम है तो 2[कमर्चारी]
िदवाला सम्बन्धी कायर्वािहय म या समापन म अितशेष को सािबत कर सके गा ।
(3) जहां िक ऐसे िकसी मामले म, जो उपधारा (1) म िनिदष्ट है, बीमाकतार् के साथ िनयोजक की (पर्ीिमयम के संदाय के
िलए अनुबधं से िभन्न) संिवदा, उसके िकन्ह िनबन्धन या शत का अननुपालन िनयोजक ारा िकए जाने के कारण शून्य या
शून्यकरणीय है वहां, उस उपधारा के उपबंध इस पर्कार लागू ह गे मानो वह संिवदा शून्य या शून्यकरणीय न हो, और 2[कमर्चारी] को
दी गई रकम को बीमाकतार् िदवाले की कायर्वािहय म या समापन म सािबत करने के हकदार ह गेः
परन्तु इस उपधारा के उपबन्ध िकसी ऐसी दशा म लागू नह ह गे िजसम 2[कमर्चारी] दुघर्टना होने और उसके
पिरणामस्वरूप हुई िनःशक्ता की सूचना िदवाले या समापन की कायर्वािहय के संिस्थत िकए जाने की जानकारी पाने के पश्चात्
यथासाध्य शीघर् बीमाकतार् को देने म असफल रहता है ।
(4) यह समझा जाएगा िक उन ऋण के अन्तगर्त, जो िकसी िदवािलए की सम्पि के िवतरण म या पिरसमापनाधीन िकसी
कम्पनी की आिस्तय के िवतरण म पर्िसडसी नगर िदवाला अिधिनयम, 1909 (1909 से 3) की धारा 49 के अधीन या पर्ान्तीय िदवाला
अिधिनयम, 1920 (1920 का 5) की धारा 61 के अधीन या 3 [कं पनी अिधिनयम, 1956 की धारा 530] के अधीन अन्य सब ऋण पर
पूिवकता देकर िदए जाने ह, िकसी ऐसे पर्ितकर म े शोध्य रकम आती है िजसके िलए दाियत्व, यथािस्थित, िदवािलए के न्यायिनणर्यन
के आदेश की तारीख से पहले या पिरसमापन के पर्ारम्भ की तारीख से पहले पर्ोद्भूत हो गया था और वे अिधिनयम तदनुसार पर्भावी
ह गे ।
(5) जहां िक पर्ितकर अधर्मािसक संदाय है वहां उस म े शोध्य रकम इस धारा के पर्योजन के िलए उतनी एकमुश्त रािश की
रकम मानी जाएगी िजतनी के िलए अधर्मािसक संदाय का, यिद यह मोचनीय होता, उस दशा म मोचन िकया जा सकता िजसम िक
धारा 7 के अधीन उस पर्योजन के िलए कोई आवेदन िकया गया होता और ऐसी रकम के िवषय म आयुक्त का पर्माणपतर् उसका
िनश्चायक सबूत होगा ।

1
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 9 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 7 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13

(6) उपधारा (4) के उपबन्ध ऐसी रकम की दशा म लागू ह गे िजसे बीमाकतार् उपधारा (3) के अधीन सािबत करने का हकदार
है, िकन्तु अन्यथा वे उपबन्ध वहां लागू नह ह गे जहां िक िदवािलए ने या पिरसमापनाधीन कम्पनी ने बीमाकतार् के साथ उपधारा
(1) म यथािनिदष्ट संिवदा कर ली है ।
(7) यह धारा वहां लागू नह होगी जहां िक कम्पनी का पिरसमापन के वल पुनगर्ठन या िकसी दूसरी कम्पनी से समामेलन के
पर्योजन के िलए स्वेच्छया िकया जाता है ।
[14क. पर्ितकर िनयोजक ारा अन्तिरत आिस्तय पर पर्थम भार होगा—जहां िक िनयोजक अपनी आिस्तय का अन्तरण
1

िकसी ऐसे पर्ितकर म े शोध्य िकसी रकम के संदाय से पूवर् कर देता है िजसके िलए दाियत्व अन्तरण की तारीख से पूवर् पर्ोद्भूत हो गया
था वहां ऐसी रकम का इस पर्कार अन्तिरत आिस्तय के उस भाग पर, जो स्थावर सम्पि से िमलकर बना है, िकसी अन्य तत्समय पर्वृ
िविध म िकसी बात के होते हुए भी पर्थम भार होगी ।]
15. मास्टर और नािवक से सम्ब िवशेष उपबन्ध—यह अिधिनयम उन 2 [कमर्चािरय ] की दशा म, जो 3 *** पोत के
मास्टर या नािवक ह, िनम्निलिखत उपान्तर के अध्यधीन रहते हुए, लागू होगा, अथार्त्—
(1) दुघटर् ना की और पर्ितकर के दावे की सूचना की तामील वहां के िसवाय जहां िक क्षत िक्त पोत का मास्टर है,
पोत के मास्टर पर ऐसे की जाएगी, मानो वह िनयोजक हो, िकन्तु जहां िक पोत पर ही दुघर्टना हुई है और िनःशक्तता पर्ारम्भ
हुई है वहां िकसी नािवक के िलए यह आवश्यक नह होगा िक वह दुघर्टना की कोई सूचना दे ।
(2) मास्टर या नािवक की मृत्यु हो जाने की दशा म पर्ितकर के िलए दावा दावेदार को मृत्यु का समाचार िमलने के
पश्चात् 4 [एक वषर्] के भीतर, या जहां िक पोत सब जन के साथ नष्ट हो गया है या नष्ट हो गया समझा जाता है वहां उस
तारीख से, िजस तारीख को पोत ऐसे नष्ट हुआ या ऐसे नष्ट हुआ समझा जाता है, अ ारह मास के भीतर िकया जाएगाः
[परन्तु इस बात के होते हुए भी िक कोई दावा इस उपधारा म यथाउपबिन्धत सम्यक् समय के भीतर नह िकया
5

गया है आयुक्त िकसी भी मामले म पर्ितकर के िकसी दावे को उस दशा म गर्हण कर सके गा िजसम उसका समाधान हो जाए
िक दावा वैसे करने म असफलता पयार्प्त हेतुक से हुई थी ।]
(3) जहां िक क्षत मास्टर या नािवक 6 [भारत के िकसी भाग म या] 7 [िकसी िवदेश म] उन्मोिचत कर िदया जाता है
या पीछे छोड़ िदया जाता है वहां, उस भाग म के िकसी न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा या उस िवदेश म के िकसी कौन्सलीय
आिफ़सर ारा िलए गए और उस िक्त ारा, िजसके ारा वे िलए जाते ह, के न्दर्ीय सरकार या िकसी राज्य सरकार को
पारे िषत कोई भी अिभसा य, दावा पर्वितत कराने की िकन्ह भी कायर्वािहय म सा य म गर्ा ह गे—
(क) यिद अिभसा य उस न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या कौन्सलीय आिफसर के हस्ताक्षर ारा अिधपर्माणीकृ त
हो िजसके सामने वह िदया गया है;
(ख) यिद, यथािस्थित, पर्ितवादी या अिभयुक्त िक्त को स्वयं या अपने अिभकतार् ारा साक्षी की
पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमल गया था; तथा
(ग) यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही के दौरान िदया गया था तो यह सािबत होने पर िक
अिभसा य अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म िदया गया था,
और िकसी भी मामले म उस िक्त के हस्ताक्षर या पदीय हैिसयत को सािबत करना आवश्यक नह होगा िजसके ारा ऐसा
कोई अिभसा य हस्ताक्षिरत िकया गया पर्तीत होता है और ऐसे िक्त ारा यह पर्माणपतर् िक पर्ितवादी या अिभयुक्त
िक्त को साक्षी की पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमला था और यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही म िदया गया था तो
यह िक वह अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म िदया गया था, तब के िसवाय जब िक तत्पर्ितकू ल सािबत कर िदया जाता है,
इस बात का पयार्प्त सा य होगा िक उसे वह अवसर िमला था और अिभसा य इस पर्कार िदया गया था ।
8
* * * *
[(4)] उस कालाविध के िलए कोई 10 [अधर्मािसक संदाय] संदय
9
े नह होगा िजसके दौरान पोत का स्वामी, क्षत
मास्टर या नािवक के भरण-पोषण के य को वािणिज्यक पोत पिरवहन सम्बन्धी 11 *** िकसी तत्समय पर्वृ िविध के
अधीन चुकाने का दायी है ।

1
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 10 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 10 ारा “रिजस्टर्ीकृ त” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 11 ारा (1-6-1959 से) “छह मास” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 11 ारा (1-6-1959 से) जोड़ा गया ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा अंतःस्थािपत ।
7
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 4 ारा (1-7-1984 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 7 ारा खण्ड (4) का लोप िकया गया ।
9
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 7 ारा खण्ड (5) को खण्ड (4) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
10
1924 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “मािसक संदाय” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
11
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भाग क राज्य और भाग ग राज्य म” शब्द का लोप िकया गया ।
14

1
[(5) कोई भी पर्ितकर िकसी ऐसी क्षित के िलए इस अिधिनयम के अधीन संदय े न होगा, िजसके िलए उपदान, भ े
या पशन के संदाय के िलए उपबन्ध पशन्स (नेवी, आम , एयर फोसर् ऐण्ड मकन्टाइल मैरीन), ऐक्ट, 1939 (2 और 3, जाजर् 6,
अ० 83) के अधीन बनाई गई वार पशन्स ऐण्ड िडटेन्शन अलाउन्सेज़ (मकन्टाइल मैरीन, एट्सेटर्ा) स्कीम, 1939 या वार
पेन्शन्स ऐण्ड िडटशन अलाउन्सेज़ (इिण्डयन सीमेन, एट्सेटर्ा) स्कीम, 1941 के अधीन या के न्दर्ीय सरकार ारा बनाई गई यु
पशन और िनरोध भ े (भारतीय नािवक) स्कीम, 1942 के अधीन िकया गया है ।
(6) इस अिधिनयम ारा अपेिक्षत समय के भीतर सूचना देने या दावा करने या कायर्वाही पर्ारम्भ करने म
असफलता िकसी वैयिक्तक क्षित की बाबत इस अिधिनयम के अधीन कायर्वाही के चलने के िलए वजर्न न होगी, यिद—
(क) उस क्षित की बाबत संदाय करने के िलए कोई आवेदन पूवव
र् त खंड म िनिदष्ट स्कीम म से िकसी के
अधीन कर िदया गया है, तथा
(ख) राज्य सरकार पर्मािणत कर दे िक उक्त आवेदन इस युिक्तयुक्त िवश्वास म िकया गया था, िक क्षित
ऐसी थी िजसके िलए वह स्कीम, िजसके अधीन आवेदन िकया गया था, संदाय के िलए उपबन्ध करती है, और यह
िक इस आधार पर िक वह क्षित ऐसी क्षित नह थी वह आवेदन नामंजूर कर िदया गया था या उस आवेदन के
अनुसरण म िकए जाने वाले संदाय बन्द कर िदए गए थे, तथा
(ग) उस तारीख से िजस तारीख को राज्य सरकार का उक्त पर्माणपतर् कायर्वाही पर्ारम्भ करने वाले
िक्त को िदया गया था, एक मास के भीतर इस अिधिनयम के अधीन कायर्वाही पर्ारम्भ कर दी जाती ।]
[15क. वायुयान के कै प्टन और कम दल के अन्य सदस्य से संबिं धत िवशेष उपबंध—यह अिधिनयम उन 3 [कमर्चािरय ] की
2

दशा म, जो वायुयान के कै प्टन या कम दल के अन्य सदस्य ह, िनम्निलिखत उपान्तरण के अधीन रहते हुए लागू होगा, अथार्त्:—
(1) दुघर्टना की और पर्ितकर के दावे की सूचना की तामील, यहां के िसवाय जहां क्षत िक्त वायुयान का कै प्टन है,
वायुयान के कै प्टन पर ऐसे की जाएगी, मानो वह िनयोजक हो, िकन्तु जहां वायुयान पर ही दुघर्टना हुई है और िनःशक्तता
पर्ारम्भ हुई है वहां कम दल के िकसी सदस्य के िलए यह आवश्यक नह होगा िक वह दुघर्टना की कोई सूचना दे ।
(2) कै प्टन या कम दल के अन्य सदस्य की मृत्यु हो जाने की दशा म, पर्ितकर के िलए दावा, दावेदार को मृत्यु का
समाचार िमलने के पश्चात् एक वषर् के भीतर, या जहां वायुयान समोजन के साथ नष्ट हो गया है या नष्ट हुआ समझा जाता
है । वहां उस तारीख से, िजस तारीख को वायुयान ऐसे नष्ट हुआ था या ऐसे नष्ट हुआ समझा जाता है, अठारह मास के भीतर
िकया जाएगाः
परन्तु इस बात के होते हुए भी िक कोई दावा इस उपधारा म उपबंिधत सम्यक् समय के भीतर नह िकया गया है,
आयुक्त िकसी भी मामले म पर्ितकर के िकसी दावे को उस दशा म गर्हण कर सके गा िजसम उसका यह समाधान हो जाता है
िक दावा इस पर्कार करने म असफलता पयार्प्त हेतकु से हुई थी ।
(3) जहां वायुयान का क्षत कै प्टन या कम दल का अन्य सदस्य भारत के िकसी भाग म अथवा िकसी अन्य देश म
िनमुर्क्त कर िदया जाता है या पीछे छोड़ िदया जाता है वहां उस भाग म के िकसी न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा अथवा उस
िवदेश म के िकसी कौन्सलीय आिफसर ारा िलए गए और उस िक्त ारा, िजसके ारा वे िलए जाते ह, के न्दर्ीय सरकार या
िकसी राज्य सरकार को पारे िषत कोई भी अिभसा य, दावा पर्वितत कराने की िकन्ह भी कायर्वािहय म सा य म उस दशा
म गर्ा ह गे िजसम,—
(क) अिभसा य उस न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या कौन्सलीय आिफसर के हस्ताक्षर ारा अिधपर्माणीकृ त
िकया जाता है िजसके समक्ष वह िदया गया है;
(ख) यथािस्थित, पर्ितवादी या अिभयुक्त िक्त को स्वयं अथवा अपने अिभकतार् ारा साक्षी की
पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमल गया था;
(ग) यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही के दौरान िदया गया था तो, यह सािबत हो जाने पर िक
अिभसा य अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म िदया गया था,
और िकसी भी मामले म उस िक्त के हस्ताक्षर या पदीय हैिसयत को सािबत करना आवश्यक नह होगा िजसके ारा ऐसा कोई
अिभसा य हस्ताक्षिरत िकया गया पर्तीत होता है और ऐसे िक्त ारा यह पर्माणपतर् िक पर्ितवादी या अिभयुक्त िक्त को साक्षी की
पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमला था, और यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही म िदया गया था तो यह िक वह अिभयुक्त व्यिक्त
की उपिस्थित म िदया गया था, तब के िसवाय जब िक तत्पर्ितकू ल सािबत कर िदया जाता है, इस बात का पयार्प्त सा य होगा िक उसे
वह अवसर िमला था और ऐसा अिभसा य इस पर्कार िदया गया था ।

1
1942 के अिधिनयम सं० 1 की धारा 2 ारा (3 िसतम्बर, 1939 से) पूवर्वत खण्ड के स्थान पर पर्ितस्थािपत । िजसे 1939 के अिधिनयम सं० 42 की धारा 2 ारा उसी
तारीख से अन्तःस्थािपत िकया गया था ।
2
1995 अिधिनयम सं० 30 की धारा 8 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
15

15ख. कं पिनय और मोटरयान के िवदेश म के 1 [कमर्चािरय ] से संबिं धत िवशेष उपबंध—यह अिधिनयम,—


(i) उन 1[कमर्चािरय ] की दशा म, जो ऐसे िक्त ह िजन्ह भारत म रिजस्टर्ीकृ त कं पिनय ारा भत िकया गया है
और उस रूप म, िवदेश म कायर् कर रहे ह, और
(ii) उन िक्तय की दशा म जो मोटरयान अिधिनयम, 1988 (1988 का 59) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त मोटरयान के
साथ डर्ाइवर, हेल्पर, मैकेिनक, क्लीनर या अन्य 1[कमर्चािरय ] के रूप म कायर् के िलए िवदेश भेजे गए ह; िनम्निलिखत
उपान्तरण के अधीन रहते हुए लागू होगा, अथार्त् :—
(1) दुघर्टना की और पर्ितकर के दावे की सूचना की तामील, दुघटर् ना के देश म, यथािस्थित, कम्पनी के
स्थानीय अिभकतार् या मोटरयान के स्वामी के स्थानीय अिभकतार् पर की जा सके गी ।
(2) उस 2 [कमर्चारी] की मृत्यु हो जाने की दशा म, िजसकी बाबत इस धारा के उपबंध लागू ह गे, पर्ितकर
के िलए दावा, दावेदार को मृत्यु का समाचार िमलने के पश्चात् एक वषर् के भीतर िकया जाएगाः
परन्तु इस बात के होते हुए भी िक कोई दावा इस उपधारा म उपबंिधत सम्यक् समय के भीतर नह
िकया गया है, आयुक्त िकसी भी मामले म पर्ितकर के िकसी दावे को उस दशा म गर्हण कर सके गा िजसम उसका
यह समाधान हो जाता है िक दावा इस पर्कार करने म असफलता पयार्प्त हेतुक से हुई थी ।
(3) जहां क्षत 2[कमर्चारी] भारत के िकसी भाग म अथवा िकसी अन्य देश म िनमुक्
र् त कर िदया जाता है
या पीछे छोड़ िदया जाता है वहां उस भाग म के िकसी न्यायाधीश या मिजस्टर्ेट ारा अथवा उस िवदेश म के िकसी
कौन्सलीय आिफसर ारा िलए गए और उस िक्त ारा, िजसके ारा वे िलए जाते ह के न्दर्ीय सरकार या िकसी
राज्य सरकार को पारे िषत कोई भी अिभसा य दावा पर्वितत कराने की िकन्ह भी कायर्वािहय म सा य म उस
दशा म गर्ा ह गे िजसम—
(क) अिभसा य उस न्यायाधीश, मिजस्टर्ेट या कौन्सलीय आिफसर के हस्ताक्षर ारा
अिधपर्माणीकृ त िकया जाता है िजसके समक्ष वह िदया गया है;
(ख) यिद, यथािस्थित, पर्ितवादी या अिभयुक्त िक्त को स्वयं अथवा अपने अिभकतार् ारा
साक्षी की पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमल गया था;
(ग) यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही के दौरान िदया गया था तो, यह सािबत हो जाने
पर िक अिभसा य अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म िदया गया था,
और िकसी भी मामले म उस िक्त के हस्ताक्षर या पदीय हैिसयत को सािबत करना आवश्यक नह होगा िजसके ारा ऐसा
कोई अिभसा य हस्ताक्षिरत िकया गया पर्तीत होता है और ऐसे िक्त ारा यह पर्माणपतर् िक पर्ितवादी या अिभयुक्त
िक्त को साक्षी की पर्ितपरीक्षा करने का अवसर िमला था और यिद अिभसा य िकसी दांिडक कायर्वाही म िदया गया था तो
यह िक वह अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म िदया गया था, तब के िसवाय जब िक तत्पर्ितकू ल सािबत कर िदया जाता है,
इस बात का पयार्प्त सा य होगा िक उसे वह अवसर िमला था और ऐसा अिभसा य इस पर्कार िदया गया था ।]
16. पर्ितकर के बारे म िववरिणयां— 3 [राज्य सरकार] शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनदेश दे सके गी िक
1
[कमर्चािरय ] को िनयोिजत करने वाला हर िक्त या ऐसे िक्तय का कोई िविनिदष्ट वगर् ऐसे समय और ऐसे पर्रूप म और ऐसे
पर्ािधकारी को, जैसे अिधसूचना म िविनिदष्ट िकए जाएं, एक शु िववरणी भेजेगा िजसम उन क्षितय की संख्या, िजनके िलए िनयोजक
ारा पूवर्तन वषर् के दौरान पर्ितकर दे िदया गया है, और ऐसे पर्ितकर की रकम और पर्ितकर के बारे म ऐसी अन्य िविशिष्टयां िविनिदष्ट
ह गी, जैसी 3[राज्य सरकार] िनिदष्ट करे ।
17. संिवदा ारा त्याग—इस अिधिनयम के पर्ारम्भ के चाहे पूवर्, चाहे पश्चात् की गई संिवदा या करार, िजसके ारा कोई
2
[कमर्चारी] िनयोजन से या उसके अनुकर्म म उद्भूत वैयिक्तक क्षित के िलए िनयोजक से पर्ितकर पाने के िकसी अिधकार का त्याग कर
देता है वहां तक बाितल और शून्य होगा जहां तक वह इस अिधिनयम के अधीन पर्ितकर देने के िकसी िक्त के दाियत्व को हटाने या
कम करने के िलए तात्पियत है ।
[17क. िनयोजक का कमर्चारी को उसके अिधकार की जानकारी देने का कतर् —पर्त्येक िनयोजक, िकसी कमर्चारी के
4

िनयोजन के समय तत्काल, कमर्चारी को इस अिधिनयम के अधीन पर्ितकर संबध ं ी उसके अिधकार की िलिखत म और इलैक्टर्ािनक
साधन के माध्यम से अंगर्ेजी या िहन्दी म या िनयोजन के क्षेतर् की राजभाषा म, जो कमर्चारी समझता हो, जानकारी देगा ।]
18. [आयु का सबूत]—कमर्कार पर्ितकर (संशोधन) अिधिनयम, 1959 (1959 का 8) की धारा 12 ारा (1-6-1959 से)
िनरिसत ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2017 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 2 ारा अंतःस्थािपत ।
16

1
[18क. शािस्तयां—(1) जो कोई—
(क) वह सूचना-पुस्तक रखने म असफल रहेगा िजसे रखने के िलए वह धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन अपेिक्षत
है, अथवा
(ख) आयुक्त को वह िववरण भेजने म असफल रहेगा िजसे भेजने के िलए वह धारा 10क की उपधारा (1) के अधीन
अपेिक्षत है, अथवा
(ग) वह िरपोटर् भेजने म असफल रहेगा िजसे भेजने के िलए वह धारा 10ख के अधीन अपेिक्षत है, अथवा
(घ) वह िववरणी देने म असफल रहेगा िजसे देने के िलए वह धारा 16 2 [के अधीन अपेिक्षत है, या;]
[(ङ) कमर्चारी को ऐसे पर्ितकर संबंधी उसके अिधकार की जानकारी देने असफल रहेगा जो धारा 17क के अधीन
3

अपेिक्षत है,]
वह जुमार्ने से, जो 2[जो पचास हजार रुपए से कम का नह होगा िकन्तु जो एक लाख रुपए तक का हो सके गा] दण्डनीय होगा ।
(2) इस धारा के अधीन कोई भी अिभयोजन, आयुक्त के ारा या उसकी पूवर् मंजूरी से संिस्थत िकए जाने के िसवाय, संिस्थत
नह िकया जाएगा, और कोई भी न्यायालय इस धारा के अधीन िकसी अपराध का संज्ञान तब तक नह करे गा जब तक िक अपराध के
िलए पिरवाद 4 [उस तारीख से छह मास के भीतर नह िकया जाता िजस तारीख को अिभकिथत अपराध का िकया जाना, आयुक्त को
ज्ञात हुआ था ।
अध्याय 3

आयुक्त
19. आयुक्त को िनदेश—(1) यिद पर्ितकर देने के िकसी िक्त के दाियत्व के िवषय म कोई पर्श्न के अन्तगर्त यह पर्श्न आता
है िक क्षत िक्त 5 [कमर्चारी] है या नह ), या पर्ितकर की रकम या अिस्तत्वाविध के िवषय म कोई पर्श्न (िजसके अन्तगर्त िनःशक्तता
के पर्कार या िवस्तार िवषयक पर्श्न आता है) इस अिधिनयम के अधीन की िकन्ह कायर्वािहय म उठता है तो वह पर्श्न करार के अभाव
म 6 [आयुक्त] ारा तय िकया जाएगा ।
(2) िकसी भी िसिवल न्यायालय को िकसी ऐसे पर्श्न िजसके िलए इस अिधिनयम के ारा या अधीन यह अपेिक्षत है िक वह
आयुक्त ारा तय िकया जाए या िविनिश्चत िकया जाए या उसके बारे म कारर् वाई आयुक्त ारा की जाए तय करने, िविनिश्चत करने
या उसके बारे म कारर् वाई करने की या इस अिधिनयम के अधीन उपगत िकसी दाियत्व को पर्वितत कराने की अिधकािरता न होगी ।
20. आयुक्त की िनयुिक्त—(1) राज्य सरकार िकसी भी िक्त को 7 [जो राज्य न्याियक सेवा का पांच वषर् से अन्यून की
अविध के िलए सदस्य है या रहा है या पांच वषर् से अन्यून की अविध के िलए अिधवक्ता या प्लीडर है या रहा है या पांच वषर् से अन्यून
अविध के िलए ऐसा राजपितर्त अिधकारी है या रहा है, जो कािमक पर्बंध, मानव संसाधन िवकास और औ ोिगक संबंध म शैिक्षक
अहर्ताएं और अनुभव रखता हो,] शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, ऐसे 8 *** क्षेतर् के िलए 5[कमर्चारी] पर्ितकर आयुक्त िनयुक्त
कर सके गी जो अिधसूचना म िविनिदष्ट िकया जाए ।
[(2) जहां िक िकसी 8*** क्षेतर् के िलए एक से अिधक आयुक्त िनयुक्त िकए गए ह वहां राज्य सरकार उनके बीच कारबार के
9

िवतरण का िविनयमन साधारण या िवशेष आदेश ारा कर सके गी ।]


10
[(3)] कोई भी आयुक्त इस अिधिनयम के अधीन िविनश्चय के िलए अपने को िनदिशत िकसी िवषय को िविनिश्चत करने के
पर्योजन के िलए ऐसे एक या अिधक व्यिक्तय को, जो जांचाधीन िवषय से सुसंगत िकसी िवषय का िवशेष ज्ञान रखते ह , जांच करने म
अपनी सहायता के िलए चुन सके गा ।
10
[(4)] हर आयुक्त भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) के अथर् के अन्दर लोक सेवक समझा जाएगा ।
21. कायर्वािहय का स्थान और अन्तरण— 11 [(1) जहां इस अिधिनयम के अधीन कोई बात आयुक्त ारा या उसके समक्ष की
जानी है वहां इस अिधिनयम के उपबंध और उसके अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम के अधीन रहते हुए, उस क्षेतर् के आयुक्त ारा या
उसके समक्ष की जाएगी िजसम—

1
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 11 ारा अन्तःस्थािपत ।
2
2017 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 3 ारा पर्ितस्थािपत ।
3
2017 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 3 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1962 अिधिनयम सं० 64 की धारा 6 ारा (1-2-1963 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
6
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 12 ारा “आयुक्त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 8 ारा अंतःस्थािपत ।
8
1962 अिधिनयम सं० 64 की धारा 7 ारा (1-2-1963 से) “स्थानीय” शब्द का लोप िकया गया ।
9
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 13 ारा अंतःस्थािपत ।
10
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 3 ारा उपधारा (2) और (3) उस धारा की उपधारा (3) और (4) के रूप म पुनःसंख्यांिकत ।
11
1995 अिधिनयम सं० 30 की धारा 10 ारा (15-9-1995 से) उपधारा (1) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
17

(क) वह दुघटर् ना हुई थी िजसके पिरणामस्वरूप क्षित हुई; या


(ख) 1 [कमर्चारी] या उसकी मृत्यु की दशा म पर्ितकर के िलए दावा करने वाला आिशर्त साधारणतया िनवास करता
है; या
(ग) िनयोजक का रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय हैः
परन्तु िकसी भी मामले म ऐसे िकसी आयुक्त के समक्ष या उसके ारा, जो उस क्षेतर् पर िजसम दुघर्टना हुई है, अिधकािरता
रखने वाले आयुक्त से िभन्न है, के न्दर्ीय सरकार ारा िविहत रीित से उसके ारा उस क्षेतर् पर अिधकािरता रखने वाले आयुक्त और
संबंिधत राज्य सरकार को सूचना िदए िबना, कायर्वाही नह की जाएगीः
परन्तु यह और िक जहां 1[कमर्चारी], िकसी पोत का मास्टर या नािवक है अथवा िकसी वायुयान का कै प्टन या कम दल का
कोई सदस्य है अथवा िकसी मोटर यान या कं पनी का 1[कमर्चारी] है, भारत से बाहर दुघर्टना का िशकार होता है वहां ऐसी कोई बात
उस क्षेतर् के आयुक्त ारा या उसके समक्ष की जा सके गी, िजसम, यथािस्थित, पोत, वायुयान या मोटर यान का स्वामी या अिभकतार्
िनवास करता है या कारबार चलाता है अथवा कं पनी का रिजस्टर्ीकृ त कायार्लय िस्थत है ।
(1क) यिद उस आयुक्त से िजसके पास धारा 8 के अधीन कोई धन जमा िकया गया है, िभन्न कोई आयुक्त, इस अिधिनयम के
अधीन िकसी मामले म कायर्वाही करता है तो पश्चात्वत आयुक्त ऐसे मामले के उिचत िनपटारे के िलए िकसी अिभलेख के या पूवर्वत
आयुक्त के पास शेष रहे धन के अंतरण की मांग कर सके गा और ऐसा अनुरोध पर्ाप्त होने पर वह आयुक्त उसका अनुपालन करे गा ।]
(2) यिद आयुक्त का 2 [समाधान हो जाता है िक उसके समक्ष लिम्बत िकन्ह कायर्वािहय से उद्भूत िकसी िवषय म] कारर् वाई
िकसी अन्य आयुक्त ारा चाहे वह उसी राज्य म हो या नह , अिधक सुिवधानुसार की जा सकती है, तो इस अिधिनयम के अधीन बनाए
गए िनयम के अध्यधीन रहते हुए वह यह आदेश दे सके गा िक ऐसा िवषय या तो िरपोटर् के िलए या िनपटाए जाने के िलए ऐसे अन्य
आयुक्त को अन्तिरत कर िदया जाए और यिद वह ऐसा करता है तो ऐसे िवषय के िविनश्चय के िलए सुसंगत सभी दस्तावेज ऐसे अन्य
आयुक्त को अन्तिरत कर िदए जाएं और यिद वह ऐसा करता है तो ऐसे िवषय के िविनश्चय के िलए सुसंगत सभी दस्तावेज ऐसे अन्य
आयुक्त को तत्क्षण पारे िषत करे गा, और जहां िक िवषय िनपटाए जाने के िलए अन्तिरत िकया जाता है वहां वह िकसी ऐसे धन को भी
िविहत रीित से पारे िषत करे गा जो उसके पास शेष रहा है या जो उसने कायर्वािहय म के िकसी पक्षकार के फायदे के िलए िविनिहत
िकया हैः
[परन्तु जहां िक कायर्वािहय म का कोई पक्षकार आयुक्त के समक्ष हािजर हुआ है वहां आयुक्त आिशर्त के बीच िकसी
3

एकमुश्त रािश के िवतरण से सम्ब अन्तरण का कोई आदेश, ऐसे पक्षकार को सुनवाई का अवसर िदए िबना, नह करे गाः]
4
* * * *
(3) वह आयुक्त, िजसे कोई िवषय इस पर्कार अन्तिरत िकया जाता है, इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम के
अध्यधीन रहते हुए उसकी जांच करे गा और यिद वह िवषय िरपोटर् के िलए अन्तिरत िकया गया था तो उस पर अपनी िरपोटर् देगा या
यिद वह िवषय िनपटाए जाने के िलए अन्तिरत िकया गया था तो कायर्वािहय को ऐसे चालू रखेगा मानो वे मूलतः उसके ही समक्ष
पर्ारम्भ हुई थ ।
(4) उस आयुक्त से िजसे कोई िवषय उपधारा (2) के अधीन िरपोटर् के िलए अन्तिरत िकया गया है िरपोटर् िमलने पर वह
आयुक्त, िजसके ारा वह िनदिशत िकया गया था, िनदिशत िवषय को ऐसी िरपोटर् के अनुरूप िविनश्चय करे गा ।
[(5) राज्य सरकार िकसी भी मामले को अपने ारा िनयुक्त िकसी आयुक्त से अपने ारा िनयुक्त िकसी अन्य आयुक्त को
5

अन्तिरत कर सके गी ।]
22. आवेदन का पर्रूप— 6 [(1) जहां कोई ऐसी दुघर्टना हो जाती है िजसकी बाबत इस अिधिनयम के अधीन पर्ितकर का संदाय
करने का दाियत्व उद्भूत होता है वहां ऐसे पर्ितकर के िलए कोई दावा इस अिधिनयम के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, आयुक्त के समक्ष
िकया जा सके गा ।
(1क) उपधारा (1) के उपबन्ध के अधीन रहते हुए, िकसी िवषय के आयुक्त ारा तय िकए जाने के िलए कोई भी आवेदन]
7 [जो आिशर्त या आिशर्त ारा पर्ितकर के िलए िकए गए आवेदन से िभन्न ह ] न िकया जाएगा यिद और जब तक उसके संबंध म
पक्षकार के बीच ऐसा कोई पर्श्न न उठा हो िजसे वे करार ारा तय करने म असमथर् रहे ह ।

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 9 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
4
1995 अिधिनयम सं० 30 की धारा 10 ारा (15-9-1995 से) दूसरे परन्तुक का लोप िकया गया ।
5
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 14 ारा अंतःस्थािपत ।
6
1995 अिधिनयम सं० 30 की धारा 11 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 15 ारा अंतःस्थािपत ।
18

(2) 1 [आयुक्त को आवेदन] ऐसे पर्रूप म, जैसा िविहत िकया जाए, िकया जा सके गा और उसके साथ ऐसी फीस होगी, यिद
कोई हो, जैसी िविहत की जाए, और उसम िकन्ह ऐसी िविशिष्टय के अितिरक्त, जैसी िविहत की जाएं, िनम्निलिखत िविशिष्टयां
अन्तिवष्ट ह गी, अथार्त्—
(क) उन पिरिस्थितय का संिक्षप्त कथन िजनम आवेदन िकया गया है और वह अनुतोष या आदेश, िजसका आवेदक
दावा करता है;
(ख) िनयोजक के िवरु पर्ितकर के िलए दावे की दशा म वह तारीख िजसकी दुघर्टना की सूचना की िनयोजक पर
तामील हुई थी, और, यिद ऐसी सूचना की तामील नह हुई या सम्यक् समय म नह हुई तो ऐसे लोप का कारण;
(ग) पक्षकार के नाम और पते; या
(घ) 2 [आिशर्त ारा पर्ितकर के िलए आवेदन की दशा के िसवाय] उन मामल का, िजनके बारे म करार हो चुका है
और उन मामल 3 [का] िजनके बारे म करार नह हुआ है, संिक्षप्त कथन ।
(3) यिद आवेदक िनरक्षर है या िकसी अन्य कारण से अपेिक्षत जानकारी िलिखत रूप म देने म असमथर् है तो, यिद आवेदक
ऐसा करना चाहे तो, आवेदन आयुक्त के िनदेशाधीन तैयार िकया जाएगा ।
[22क. पर्ाणान्तक दुघटर् ना की दशा म अितिरक्त िनक्षेप अपेिक्षत करने की आयुक्त की शिक्त—(1) जहां िक ऐसे
4

5 [कमर्चारी]
के बारे म, िजसकी मृत्यु क्षित के पिरणामस्वरूप हो गई है, संदय
े पर्ितकर के रूप म कोई रािश िनयोजक ारा िनिक्षप्त की
गई है और आयुक्त की राय म ऐसी रािश अपयार्प्त है वहां आयुक्त अपने कारण को किथत करते हुए िलिखत सूचना ारा िनयोजक को
इस बात का हेतुक दिशत करने के िलए अपेिक्षत कर सके गा िक वह इतने समय के भीतर, िजतना सूचना म किथत िकया जाए,
अितिरक्त िनक्षेप क्य न करे ।
(2) यिद िनयोजक आयुक्त को समाधानपर्द रूप म हेतुक दिशत करने म असफल रहता है तो आयुक्त कु ल संदय
े रकम को
अवधािरत करने वाला और िनयोजक से यह अपेक्षा करने वाला अिधिनणर्य दे सके गा िक वह उतनी रािश िनिक्षप्त कर दे िजतनी
कम है ।]
23. आयुक्त की शिक्तयां और पर्िकर्या—आयुक्त को, ऐसी शपथ पर (िजसे अिधरोिपत करने के िलए आयुक्त एतद् ारा
सशक्त िकया जाता है) सा य लेने और सािक्षय को हािजर कराने और दस्तावेज और भौितक पदाथ को पेश करने के िलए िववश
करने के पर्योजन के िलए िसिवल पर्िकर्या संिहता, 1908 (1908 का 5) के अधीन की िसिवल न्यायालय की सभी शिक्तयां पर्ाप्त ह गी
6 [और आयुक्त 7 [दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 के और अध्याय 26] के सभी पर्योजन के िलए िसिवल

न्यायालय समझा जाएगा ।]


[24. पक्षकार की हािजरी—िकसी पक्षकार की साक्षी के रूप म उसकी परीक्षा के पर्योजन के िलए अपेिक्षत हािजरी से िभन्न
8

कोई हािजरी, आवेदन या कायर् जो िकसी िक्त ारा आयुक्त के समक्ष या आयुक्त से िकए जाने के िलए अपेिक्षत है, ऐसे िक्त की
ओर से िकसी िविध वसायी ारा या बीमा कम्पनी या रिजस्टर्ीकृ त वसाय संघ के पदधारी ारा, या कारखाना अिधिनयम, 1948
(1948 का 63) की धारा 8 की उपधारा (1) के अधीन या खान अिधिनयम, 1952 (1952 का 35) की धारा 5 की उपधारा (1) के अधीन
िनयुक्त िनरीक्षक ारा, या राज्य सरकार ारा इस िनिम िविनिदष्ट िकसी अन्य आिफसर ारा जो ऐसे िक्त ारा िलिखत रूप म
पर्ािधकृ त हो, या आयुक्त की अनुज्ञा से, इस पर्कार पर्ािधकृ त िकसी अन्य िक्त ारा, िकया जा सके गा ।] 9
25. सा य अिभिलिखत करने का ढंग—जैस-े जैसे हर साक्षी की परीक्षा होती जाएगी वैसे-वैसे आयुक्त उस साक्षी के सा य के
सार का संिक्षप्त ज्ञापन बनाता जाएगा और ऐसा ज्ञापन आयुक्त ारा अपने हाथ से िलखा और हस्ताक्षिरत िकया जाएगा और अिभलेख
का भाग होगाः
परन्तु यिद आयुक्त ऐसा ज्ञापन बनाने से िनवािरत हो जाता है तो वह ऐसा करने की अपनी असमथर्ता का कारण
अिभिलिखत करे गा और स्वयं बोल कर ऐसा ज्ञापन िलिखत रूप म तैयार कराएगा और उसे हस्ताक्षिरत करे गा और ऐसा ज्ञापन
अिभलेख का भाग होगाः
परन्तु यह और िक िकसी िचिकत्सीय साक्षी का सा य यावत्शक्य शब्दशः िलखा जाएगा ।

1
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 15 ारा “जहां ऐसा कोई पर्श्न उत्पन्न हो वहां आवेदन” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
2
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 15 ारा अंतःस्थािपत ।
3
1925 के अिधिनयम सं० 37 की धारा 2 और अनुसूची ारा “पर” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 16 ारा अंतःस्थािपत ।
5
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
6
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 5 ारा अंतःस्थािपत ।
7
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 12 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 14 ारा (1-6-1959 से) धारा 24 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1942 के बंगाल अिधिनयम सं० 6 की धारा 4 ारा नई धारा 24क और 24ख को इस अिधिनयम को बंगाल म लागू करने के िलए अन्तःस्थािपत िकया गया ।
19

[25क. पर्ितकर से संबिं धत िवषय के िनपटान के िलए समय सीमा—आयुक्त, िनदश की तारीख से, तीन मास की अविध के
1

भीतर इस अिधिनयम के अधीन पर्ितकर से संबंिधत मामले का िनपटान करे गा और कमर्चारी को उक्त अविध के भीतर उसके संबंध म
िविनश्चय के बारे म सूिचत करे गा ।]
26. खच—आयुक्त के समक्ष की कायर्वािहय के आनुषंिगक सभी खच इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम के
अध्यधीन रहते हुए आयुक्त के िववेकाधीन ह गे ।
27. मामल को िनवेिदत करने की शिक्त—यिद आयुक्त उिचत समझे तो वह िविध का पर्श्न िविनश्चय के िलए उच्च
न्यायालय को िनवेिदत कर सके गा और यिद वह ऐसा करता है तो वह उस पर्श्न को ऐसे िविनश्चय के अनुरूप िविनिश्चत करे गा ।
28. करार का रिजस्टर्ीकरण—(1) जहां िक पर्ितकर के रूप म संदये कोई एकमुश्त रािश की रकम, करार ारा, चाहे
अधर्मािसक संदाय से मोचन के तौर पर या अन्यथा, तय हो गई है या जहां िक कोई पर्ितकर इसी पर्कार तय हो गई है िक वह 2 [िकसी
स्तर्ी को या िविधक िनय ग्यता के अधीन िकसी िक्त को] 3 *** संदये है, वहां उसका एक ज्ञापन िनयोजक ारा आयुक्त को भेजा
जाएगा, जो उसके असली होने के िवषय म अपना समाधान हो जाने पर ज्ञापन को रिजस्टर म िविहत रूप म अिभिलिखत करे गाः
परन्तु—
(क) ऐसा कोई ज्ञापन आयुक्त ारा संब पक्षकार को सूचना के संसूिचत िकए जाने के पश्चात् सात िदन से पहले
अिभिलिखत नह िकया जाएगा;
4* * * *
(ग) आयुक्त िकसी भी समय रिजस्टर को पिरशु कर सके गाः
(घ) जहां िक आयुक्त को पर्तीत हो िक िकसी एकमुश्त रािश के संदाय के बारे म कोई करार, वह चाहे अधर्मािसक
संदाय से मोचन के तौर पर हो या अन्यथा हो, या 2[िकसी स्तर्ी को या िविधक िनय ग्यता के अधीन िकसी िक्त को] 5 ***
संदये पर्ितकर की रकम के बारे म कोई करार, रािश या रकम की अपयार्प्तता के कारण या कपट या असम्यक् असर या अन्य
अनुिचत साधन ारा उस करार के अिभपर्ाप्त िकए जाने के कारण रिजस्टर्ीकृ त नह िकया जाना चािहए वहां वह करार के
ज्ञापन को अिभिलिखत करने से इन्कार कर सके गा 6 [और ऐसा आदेश िजसके अन्तगर्त करार के अधीन पहले दी गई िकसी
रािश के बारे म कोई आदेश आता है, कर सके गा] जैसा वह पिरिस्थितय म न्यायसंगत समझे ।
(2) पर्ितकर के संदाय के िलए जो करार उपधारा (1) के अधीन रिजस्टर्ीकृ त िकया जा चुका है, वह भारतीय संिवदा
अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) म या िकसी अन्य तत्समय पर्वृ िविध म िकसी बात के होते हुए भी, इस अिधिनयम के अधीन
पर्वतर्नीय होगा ।
29. करार को रिजस्टर्ीकृ त कराने म असफल रहने का पर्भाव—जहां िक ऐसे िकसी करार का ज्ञापन, िजसका रिजस्टर्ीकरण
धारा 28 ारा अपेिक्षत है, उस धारा की अपेक्षानुसार आयुक्त को नह भेजा गया है वहां, िनयोजक उस पर्ितकर की कु ल रकम देने का
दायी होगा िजसे वह इस अिधिनयम के उपबन्ध के अधीन देने का दायी है और, जब तक िक आयुक्त अन्यथा, िनिदष्ट न करे , वह िकसी
रकम की, जो पर्ितकर के तौर पर चाहे उसे करार के अधीन या अन्यथा, 7 [कमर्चारी] को दी गई है, आधी से अिधक रकम काट लेने के
िलए, धारा 4 की उपधारा (1) के परन्तुक म िकसी बात के होते हुए भी हकदार नह होगा ।
30. अपील—(1) आयुक्त के िनम्निलिखत आदेश से अपील उच्च न्यायालय म होगी, अथार्त्:—
(क) पर्ितकर के रूप म एकमुश्त रािश को चाहे अधर्मािसक संदाय से मोचन के तौर पर या अन्यथा, अिधिनण त
करने वाला या एकमुश्त रािश के दावे को पूणर्तः या भागतः अननुज्ञात करने वाला आदेश;
8 [(कक) धारा 4क के अधीन ब्याज या शािस्त अिधिनण त करने वाला आदेश;]
(ख) अधर्मािसक संदाय से मोचन अनुज्ञात करने से इन्कार करने वाला आदेश;
(ग) मृत 7[कमर्चारी] के आिशर्त के बीच पर्ितकर के िवतरण का उपबन्ध करने वाला आदेश या िकसी ऐसे िक्त के
दावे को जो यह अिभकथन करता हो िक वह ऐसा आिशर्त है, अनुज्ञात करने वाला आदेश;
(घ) धारा 12 की उपधारा (2) के उपबन्ध के अधीन क्षितपूित की रकम के िकसी दावे को अनुज्ञात या अननुज्ञात
करने वाला आदेश; अथवा

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 9 ारा अंतःस्थािपत ।
2
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 6 ारा कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1924 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “या आिशर्त को” शब्द का लोप िकया गया ।
4
1929 के अिधिनयम सं० 5 की धारा 6 ारा खण्ड (ख) का लोप िकया गया ।
5
1924 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा “या िकसी आिशर्त को” शब्द का लोप िकया गया ।
6
1924 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 और अनुसूची 1 ारा “या ऐसा आदेश कर सके गा” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
8
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 15 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
20

(ङ) करार के ज्ञापन को रिजस्टर्ीकृ त करने से इं कार करने वाला या उसे रिजस्टर्ीकृ त करने वाला या यह उपबन्ध
करने वाला िक उसका रिजस्टर्ीकरण शत के अधीन होगा, आदेशः
परन्तु जब तक िक अपील म सारवान् िविध-पर्श्न अन्तवर्िलत न हो, और खण्ड (ख) म यथािनिदष्ट आदेश से िभन्न आदेश की
दशा म जब तक िक अपील म िववादगर्स्त रकम 1 [दस हजार रुपए या ऐसी उच्चतर रकम जो के न्दर्ीय सरकार राजपतर् म अिधसूचना
ारा िविनिदष्ट करे ] से अन्यून न हो, आदेश के िवरु कोई भी अपील नह होगीः
परन्तु यह और िक िकसी ऐसे मामले म, िजसम पक्षकार ने आयुक्त के िविनश्चय का पालन करने के िलए कोई करार कर
िलया है या िजसम आयुक्त का आदेश पक्षकार म हुए करार को पर्भावशाली करता है, कोई भी अपील नह होगीः
[परन्तु यह और िक जब तक िक अपील के ज्ञापन के साथ आयुक्त ारा िदया गया इस भाव का पर्माणपतर् न हो िक
2

अपीलाथ ने उसके पास वह रकम िनिक्षप्त कर दी है जो उस आदेश के अधीन संदय


े है िजसके िवरु अपील की गई है, िनयोजक ारा
खण्ड (क) के अधीन कोई भी अपील नह होगी ।]
(2) इस धारा के अधीन अपील के िलए पिरसीमाकाल साठ िदन का होगा ।
(3) 3 [पिरसीमा अिधिनयम, 1963 (1963 का 36)] की धारा 5 के उपबन्ध इस धारा के अधीन की अपील को लागू ह गे ।
4
* * * *
31. वसूली—आयुक्त िकसी ऐसी रकम को, जो पर्ितकर के संदाय के िकसी करार के अधीन या अन्यथा िकसी िक्त ारा इस
अिधिनयम के अधीन संदय े हो, भू-राजस्व की बकाया के रूप म वसूल कर सके गा और आयुक्त राजस्व वसूली अिधिनयम, 1890
(1890 का 1) 5 की धारा 5 के अथर् के अन्दर लोक अिधकारी समझा जाएगा ।
अध्याय 4

िनयम
32. िनयम बनाने की राज्य सरकार की शिक्त—(1) 6 [राज्य सरकार] इस अिधिनयम के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के
िलए िनयम 7 बना सके गी ।
(2) िविशष्टतः और पूवर्गामी की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत सभी िवषय के िलए या
उनम से िकसी के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त्—
(क) उन अन्तराल और शत को िविहत करना िजन पर पुनिवलोकन के िलए आवेदन धारा 6 के अधीन िकया जा
सके गा, यिद उसके साथ िचिकत्सीय-पर्माणपतर् न हो;
(ख) उन अन्तराल और शत को िविहत करना, िजन पर कोई 8 [कमर्चारी] िचिकत्सीय परीक्षा कराने के िलए धारा
11 की उपधारा (1) के अधीन अपने को पर्स्तुत करने के िलए अपेिक्षत िकया जा सके गा;
(ग) वह पर्िकर्या िविहत करना िजसका अनुसरण इस अिधिनयम के अधीन मामल को िनपटाने म आयुक्त ारा
और ऐसे मामल म पक्षकार ारा िकया जाना है;
(घ) एक आयुक्त से दूसरे को िवषय और मामल के अन्तरण को और ऐसे मामल म धन के अन्तरण को
िविनयिमत करना;
(ङ) वह रीित िविहत करना, िजसम आयुक्त के पास के धन को िकसी मृत 7[कमर्चारी] के आिशर्त के फायदे के िलए
िविनिहत िकया जा सके गा, और इस पर्कार िविनिहत धन एक आयुक्त से िकसी अन्य आयुक्त को अन्तिरत करना;
(च) आयुक्त के समक्ष की कायर्वािहय म ऐसे पक्षकार का पर्ितिनिधत्व जो अपर्ाप्तवय है या हािजर होने म
असमथर् है; 9
(छ) वह पर्रूप और रीित िविहत करना िजसम करार के ज्ञापन उपिस्थत िकए जाएंगे और रिजस्टर्ीकृ त िकए
जाएंग;े

1
2017 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
2
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 17 ारा अंतःस्थािपत ।
3
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 13 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2017 के अिधिनयम सं० 11 की धारा 5 ारा लोप िकया गया ।
5
बंगाल टाउट्स ऐक्ट, 1942 (1942 के बंगाल अिधिनयम 5) की धारा 18 ारा नई धारा 31क को इस अिधिनयम को बंगाल म लागू करने के िलए अंतःस्थािपत िकया
गया ।
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
कमर्कार पर्ितकर िनयम, 1924 के िलए देिखए, भारत का राजपतर्, 1924, भाग 1, पृष्ठ 586 ।
8
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
9
1942 के अिधिनयम सं० 6 की धारा 5 ारा नए खण्ड (चच), (चच1) और (चच2) को इस अिधिनयम को बंगाल म लागू करने के िलए अंतःस्थािपत िकया गया ।
21

(ज) अधर्मािसक संदाय के पुनिवलोकन के आवेदन पर िविनश्चय होने तक उन संदाय का आयुक्त ारा पूणर्तः या
भागतः िवधािरत रखा जाना, 1 ***
1
* * * *
1
[(झ) इस अिधिनयम के अधीन की कायर्वािहय म जो खचर् अनुज्ञात िकए जा सकगे उनके मापमान िविनयिमत
करना;
(ञ) इस अिधिनयम के अधीन आयुक्त के समक्ष की कायर्वािहय के संबंध म देय फीस की रकम िविहत और
अवधािरत करना;
(ट) आयुक्त ारा अपने समक्ष की कायर्वािहय के रिजस्टर और अिभलेख का रखा जाना;
(ठ) उन िनयोजक के वगर् जो धारा 10 की उपधारा (3) के अधीन सूचना-पुस्तक रखगे और ऐसी सूचना-पुस्तक के
पर्रूप िविहत करना;
(ड) िनयोजक ारा धारा 10क के अधीन िनवेिदत िकए जाने वाले िववरण का पर्रूप िविहत करना; 2 ***
(ढ) उन मामल को िविहत करना, िजनम धारा 10ख म िनिदष्ट िरपोटर् आयुक्त से िभन्न पर्ािधकारी को भेजी जा
सके गी;]
[(ण) इस अिधिनयम की संिक्षिप्तयां िविहत करना और ऐसी संिक्षिप्तय को अन्तिवष्ट करने वाली सूचनाएं
3

संपर्दिशत करने की िनयोजक से अपेक्षा करना;


(त) वह रीित िविहत करना िजसम उपजीिवकाजन्य रोग के रूप म िविनिदष्ट िकए गए रोग का िनदान िकया जा
सके गा;
(थ) वह रीित िविहत करना िजसम रोग को इस अिधिनयम के पर्योजन म से िकसी के िलए पर्मािणत िकया जा
सके गा;
(द) वह रीित िविहत करना िजसम और वे मानक िजनके अनुसार असामथ्यर् का िनधार्रण िकया जा सके गा ।]
4
[(3) इस धारा के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, राज्य िवधान-मंडल के समक्ष रखा
जाएगा ।]
33. [स्थानीय सरकार की िनयम बनाने की शिक्त ।]—भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा
िनरिसत ।
34. िनयम का पर्काशन—(1) 5 [धारा 32] ारा पर्द िनयम बनाने की शिक्त इस शतर् के अध्यधीन होगी िक िनयम पूवर्
पर्काशन के पश्चात् बनाए जाएं ।
(2) साधारण खण्ड अिधिनयम, 1897 (1897 का 10) की धारा 23 के खण्ड (3) के अनुसार िविनिदष्ट की जाने वाली वह
तारीख, िजसके पश्चात् उन िनयम के पर्ारूप पर िवचार िकया जाएगा जो धारा 32 6 *** के अधीन बनाए जाने के िलए पर्स्थािपत ह ,
उस तारीख से तीन मास कम की न होगी िजसको पर्स्थािपत िविनयम का पर्ारूप सवर्साधारण की जानकारी के िलए पर्कािशत िकया
गया था ।
(3) इस पर्कार बनाए गए िनयम 7 *** 8 *** शासकीय राजपतर् म पर्कािशत िकए जाएंगे और ऐसे पर्काशन पर ऐसा पर्भाव
रखगे मानो वे इस अिधिनयम म अिधिनयिमत ह ।
[35. पर्ितकर के रूप म िदए गए धन के अन्तरण के िलए अन्य देश के साथ िकए गए ठहराव को िकर्यािन्वत करने के िलए
9

िनयम— [(1)] के न्दर्ीय सरकार इस अिधिनयम के अधीन आयुक्त के 11 [पास िनिक्षप्त] ऐसे धन को, 12 [जो ऐसे िक्त को अिधिनण त
10

1
िविध अनुकूलन आदेश, 1937 ारा खण्ड (ज) के अन्त म “और” शब्द तथा मूल खण्ड (झ) का लोप िकया गया तथा धारा 33 के खण्ड (क) से (च) तक को खण्ड (झ) से
(ढ) के रूप म पुनःअक्षरांिकत और अंतःस्थािपत िकया गया ।
2
1960 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 3 ारा “और” शब्द का लोप िकया गया ।
3
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 16 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
4
1986 के अिधिनयम सं० 4 की धारा 2 और अनुसूची ारा (15-5-1986 से) अन्तःस्थािपत ।
5
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “धारा 32 और धारा 33” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “या धारा 33” शब्द और अंक का िनरसन िकया गया ।
7
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “यथािस्थित” शब्द का िनरसन िकया गया ।
8
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “भारत का राजपतर् या” शब्द को िनरिसत िकया गया ।
9
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 20 ारा अंतःस्थािपत ।
10
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा धारा 35 को उस धारा की उपधारा (1) के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
11
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा “संद ” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
12
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा “के फायदे के िलए” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
22

हुआ हो या शोध्य हो] जो 1 *** 2 [िकसी िवदेश म] िनवास करता है या करने जा रहा है, 3 [ऐसे िवदेश म] अन्तिरत को िकर्यािन्वत करने
के िलए िनयम अंतिरत करने के िलए, और 4 [कमर्चािरय ] के पर्ितकर से सम्बिन्धत िविध के अधीन 5 *** 6 *** 7 *** 7[िनिक्षप्त] िकसी
ऐसे धन की, 8 [जो िकसी ऐसे िक्त को अिधिनण त हुआ हो, या शोध्य हो] जो 9 [िकसी राज्य] म िनवास करता है या करने जा रहा है,
9
[िकसी राज्य] म पर्ािप्त 10 [िवतरण] और पर्शासन के िलए िनयम, शासकीय राजपतर् म अिधसूचना ारा, बना सके गी]:]
[परन्तु पर्ाणान्तक दुघर्टना के सम्बन्ध म इस अिधिनयम के अधीन िनिक्षप्त कोई भी रािश, संपृक्त िनयोजक की सम्मित के
10

िबना, तब तक ऐसे अन्तिरत न की जाएगी जब तक रािश पर्ाप्त करने वाले आयुक्त ने धारा 8 की उपधारा (4) और (5) के उपबन्ध
के अधीन उसके िवतरण और पर्भाजन को अवधािरत करने वाला आदेश पािरत न कर िदया हो ।
(2) जहां िक आयुक्त के पास िनिक्षप्त धन, इस धारा के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार इस पर्कार अन्तिरत कर िदया
गया है वहां, आयुक्त के पास िनिक्षप्त पर्ितकर के स्वयं उसके ारा िवतरण के सम्बन्ध म इस अिधिनयम म अन्यतर् अंतिवष्ट उपबंध ऐसे
िकसी धन के िवषय म लागू रह जाएंगे ।
[36. के न्दर्ीय सरकार ारा बनाए गए िनयम का संसद् के समक्ष रखा जाना—इस अिधिनयम के अधीन के न्दर्ीय सरकार
11

ारा बनाया गया पर्त्येक िनयम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष, जब वह सतर् म हो, तीस िदन की
अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा 12 [दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो सके गी ।] यिद उस सतर् के या
पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न करने के िलए सहमत हो जाएं
तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत हो जाएं िक वह िनयम नह
बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा । िकन्तु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव होने से उसके अधीन पहले
की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।]
13
[अनुसूची 1
[धारा 2(1) और 4 देिखए]
14
[भाग 1

उन क्षितय की सूची िजनके बारे म समझा जाता है िक उनके पिरणामस्वरूप


स्थायी पूणर् आंिशक िनःशक्तता हुई ह]

कर्म संख्यांक क्षित का वणर्न उपाजर्न सामथ्यर् की


हािन का पर्ितशत
1. दोन हाथ की हािन या उच्चतर स्थान पर िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100
2. एक हाथ और एक पाद की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100
3. टांग या ऊरु से दोहरा िवच्छेदन, या एक ओर टांग या उरु से िवच्छेदन और दूसरे पाद
की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100

4. दृक् शिक्त की इस िवस्तार तक हािन िक दावेदार ऐसा कोई काम करने म असमथर् हो
जाता है िजसके िलए दृक् शिक्त आवश्यक है. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100

5. चेहरे की बहुत गम्भीर िवदर्ूपता. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100

6. पूणर् बिधरता. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 100

1
िविध अनुकूलन आदेश, 1948 ारा अंतःस्थािपत “िकसी भाग ख राज्य को या” शब्द और अक्षर का 1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा लोप
िकया गया ।
2
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 5 ारा (1-7-1984 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 5 ारा (1-7-1984 से) “ऐसे भाग या देश म” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “िकसी भाग ख राज्य म या” अंतःस्थािपत शब्द म से “िकसी भाग ख राज्य म” शब्द और अक्षर का 1951 के अिधिनयम सं० 3
की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा और “या” शब्द का 1957 के अिधिनयम 36 की धारा 3 और अनुसूची ारा लोप िकया गया ।
6
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 5 ारा (1-7-1984 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा “अिधिनण त” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
8
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा “जो िकसी ऐसे िक्त के फायदे के िलए उपयोज्य है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
9
1951 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 3 और अनुसूची ारा “भाग क राज्य या भाग ग राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
10
1937 के अिधिनयम सं० 7 की धारा 2 ारा अन्तःस्थािपत ।
11
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 8 ारा (1-2-1963 से) अंतःस्थािपत ।
12
1976 के अिधिनयम सं० 65 की धारा 3 ारा (21-5-1976 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
13
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 17 ारा (1-6-1959 से) पूवर्वत अनुसूची 1 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
14
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 9 ारा (1-2-1963 से) पूवर्वत शीषर् के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
23

कर्म संख्यांक क्षित का वणर्न उपाजर्न सामथ्यर् की


हािन का पर्ितशत
1
[भाग 2
उन क्षितय की सूची िजनके बारे म समझा जाता है िक उनके
पिरणामस्वरूप स्थायी पूणर् आंिशक िनःशक्तता हुई है]
िवच्छेदन के मामले—ऊध्वर् शाखा (कोई भी भुजा)
2
[1] स्कन्ध संिध से िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 90
2
[2] स्कन्ध से नीचे िवच्छेदन, जब िक स्थूणक अंसकू ट के िसरे के 3 [20.32 से०मी०] से कम
हो. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 80
2
[3] अंसकू ट के िसरे से 4 [20.32 से०मी०] से कू पर्र के िसरे के नीचे 4[11.43 से०मी०] से कम
तक िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 70
2
[4] एक हाथ की या एक हाथ के अंगूठे और चार अंगिु लय की हािन, या कू पर्र के िसरे से
4
[11.43 से०मी०] से नीचे िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 60
2
[5] अंगूठे की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 30
2
[6] अंगूठे की और उसकी करभ-अिस्थ की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 40
2
[7] एक हाथ की चार अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 50
2
[8] एक हाथ की तीन अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 30
2
[9] एक हाथ की दो अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 20
2
[10] अंगूठे की अिन्तम अंगुिल-अिस्थ की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 20
5
[10क] अिस्थ की हािन के िबना अंगूठे के िसरे का िगलोिटन िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . 10
िवच्छेदन के मामले—अधःशाखा
2
[11] दोन पाद का िवच्छेदन िजसके पिरणामस्वरूप अन्तांग मातर् रह जाए. . . . . . . . . . . . 90
2
[12] पर्पदानगुिल-अिस्थ संिध से दोन पाद की सब अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . 80
2
[13] पर्पंदागुिल-अिस्थ संिध से दोन पाद की सब अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . 40
2
[14] िनकटस्थ अन्तरांगुिल-अिस्थ संिध के िनकट दोन पाद की सब अंगुिलय की हािन. . . . 30
2
[15] िनकटस्थ अंतरांगुिल-अिस्थ संिध से दूर दोन पाद की सब अंगुिलय की हािन. . . . . . 20
2
[16] िनतम्ब पर िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 90
2
[17] िनतम्ब से नीचे िवच्छेदन, जब िक स्थूणक बृहत् उरु-अिस्थ के िसरे से नापे जाने पर
4
[12.70 से०मी०] से अिधक लम्बा न हो. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 80
2
[18] िनतम्ब से नीचे िवच्छेदन, जब िक स्थूणक वृह्त उरु-अिस्थ के िसरे से नापे जाने पर
4
[8.89 से०मी०] से अिधक लम्बा हो, िकन्तु मध्योरु से आगे न हो. . . . . . . . . . . . . . . 70
2
[19] मध्योरु के नीचे से घुटने के 4[8.89 से०मी०] नीचे तक िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . 60
2
[20] घुटने से नीचे िवच्छेदन, जब िक स्थूणक 4[8.89 से०मी०] से अिधक हो, िकन्तु 5” से 50
अिधक न हो. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .

1
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 9 ारा (1-2-1963 से) अन्तःस्थािपत ।
2
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 9 ारा (1-2-1963 से) पर्िवष्ट सं० 7 से 54 तक को कर्मशः 1 से 48 तक के रूप म पुनःस्थािपत िकया गया ।
3
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 14 ारा (15-9-1995 से) “8” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 14 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
5
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 14 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
24

कर्म संख्यांक क्षित का वणर्न उपाजर्न सामथ्यर् की


हािन का पर्ितशत
1 2
[21] घुटने से नीचे िवच्छेदन, जब िक स्थूणक 2 [12.70 से०मी०] से अिधक हो. . . . . . . . . . [50]
.
1 2
[22] एक पाद का िवच्छेदन िजसके पिरणामस्वरूप अन्तांग-मातर् रह जाए. . . . . . . . . . . . . [50]
1 2
[23] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध के िनकट से एक पाद का िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . [50]
1
[24] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से एक पद की सब अंगुिलय की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . 20

अन्य क्षितयां
1
[25] एक नेतर् की हािन, जब िक कोई अन्य उपदर्व न हो और दूसरा नेतर् पर्सामान्य हो. . . . . 40
1
[26] एक नेतर् की दृिष्ट की हािन, जब िक नेतर्गोलक म उपदर्व या िवदर्ूपता न हो और दूसरा
नेतर् पर्सामान्य हो. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 30
3
[26क.] एक नेतर् की आंिशक दृिष्ट की हािन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 10]
.
िनम्निलिखत की हािन—

क—दाएं या बाएं हाथ की अंगिु लयां तजर्नी


1
[27] सम्पूण.र् . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 14
1
[28] दो अंगुिल-अिस्थयां. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 11
1
[29] एक अंगुिल-अिस्थ. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 9
1
[30] अिस्थ की हािन के िबना िसरे का िगलोिटन िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 5

मध्यमा
1
[31] सम्पूण.र् . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 12
1
[32] दो अंगुली-अिस्थयां. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 9
1
[33] एक अंगुिल-अिस्थ. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 7
1
[34] अिस्थ की हािन के िबना िसरे का िगलोिटन िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 4

अनािमका या किनि का
1
[35] सम्पूण.र् . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 7
1
[36] दो अंगुली-अिस्थयां. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 6
1
[37] एक अंगुिल-अिस्थ. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 5
1
[38] अिस्थ की हािन के िबना िसरे का िगलोिटन िवच्छेदन. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 2
ख—दाएं या बाएं पाद की अंगिु लयां
अंगठ
ू ा
1
[39] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 14
1
[40] उसका भाग, कु छ अिस्थ की हािन सिहत. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 3

1
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 9 ारा (1-2-1963 से) पर्िवष्ट सं० 7 से 54 तक को कर्मशः 1 से 48 तक के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 14 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 14 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
25

कर्म संख्यांक क्षित का वणर्न उपाजर्न सामथ्यर् की


हािन का पर्ितशत
कोई अन्य अंगिु ल
1
[41] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 3
1
[42] उसका भाग, कु छ अिस्थ की हािन सिहत. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 1
अंगठ
ू े को छोड़कर एक पाद की दो अंगिु लयां
1
[43] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 5
1
[44] उसका भाग, कु छ अिस्थ की हािन सिहत. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 2
अंगठ
ू े को छोड़कर एक पाद की तीन अंगिु लयां
1
[45] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 6
1
[46] उसका भाग, कु छ अिस्थ की हािन सिहत. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 3
अंगठ
ू े को छोड़कर एक पाद की चार अंगिु लयां
1
[47] पर्पदांगुिल-अिस्थ संिध से. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 9
1
[48] उसका भाग, कु छ अिस्थ की हािन सिहत. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 3]

[िटप्पणी—इस अनुसच
2
ू ी म िनिदष्ट िकसी अंग या अवयव के उपयोग की पूणर् तथा स्थायी हािन या उस अंग या अवयव की
हािन के समतुल्य समझी जाएगी ।]

अनुसूची 2
[ 3 [धारा 2(1) (घघ)] दिे खए]

उन िक्तय की सूची, जो 4 [कमर्चारी] की पिरभाषा के अन्तगर्त 3[धारा 2(1) (घघ)] के उपबन्ध के अध्यधीन
रहते हुए आते ह
िनम्निलिखत िक्त, 3[धारा (2) (1) (घघ)] के अथर् के अन्दर और उस धारा के उपबन्ध के अध्यधीन रहते हुए 4[कमर्चारी]
ह, अथार्त् कोई िक्त जो—
[ [(i) 3[रे ल म िनयोिजत] िकसी िलफ्ट या वाष्प या अन्य यांितर्क शिक्त या िव ुत ारा नोिदत यान को चलाने
5 6

7 [उसकी मरम्मत करने] या उसके अनुरक्षण के संबंध म या ऐसे िकसी यान पर लदाई या उस पर से उतराई के संबंध म

िनयोिजत है; अथवा


(ii) उस पिरसर म िजसम या िजसकी पर्सीमा के अन्दर कारखाना अिधिनयम, 1948 (1948 का 63) की धारा 2
के खंड (ट) म यथापिरभािषत िविनमार्ण-पर्िकर्या चलाई जा रही है, या ऐसे िकसी भी पर्कार के ऐसे काम म, जो ऐसी िकसी
िविनमार्ण-पर्िकर्या या िनिमत वस्तु का आनुषंिगक या उससे संब है और िजसम वाष्प, जल या अन्य यांितर्क शिक्त या
िव ुत् शिक्त पर्युक्त होती है, 8 *** िनयोिजत है 9 [चाहे ऐसे िकसी काम म िनयोजन ऐसे पिरसर म या पर्सीमा के अन्दर
हो या न हो]; अथवा
(iii) वस्तु या िकसी वस्तु के भाग के िनमार्ण, पिरवतर्न, मरम्मत, अलंकरण, पिररूपण के पर्योजन के िलए, अथवा
उपयोग, पिरवहन या िवकर्य के िलए उसे अन्यथा अनुकूिलत करने के पर्योजन के िलए िकसी ऐसे पिरसर म िनयोिजत है
8
***; 10 ***
[स्पष्टीकरण—ऐसे पिरसर या पर्सीमा के बाहर, िकन्तु ऐसे िकसी कायर् म, जो िकसी वस्तु या िकसी वस्तु के
9

भाग के िनमार्ण, पिरवतर्न, मरम्मत, अलंकरण या पिररूपण से, अथवा उपयोग, पिरवहन या िवकर्य के िलए उसे अन्यथा

1
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 9 ारा (1-2-1963 से) पर्िवष्ट सं० 7 से 54 तक को कर्मशः 1 से 48 तक के रूप म पुनःसंख्यांिकत िकया गया ।
2
1960 के अिधिनयम सं० 58 की धारा 3 और अनुसूची 2 ारा अंतःस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा ारा पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
1933 के अिधिनयम सं० 15 की धारा 21 ारा खण्ड (i) से (xiii) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 18 ारा (1-6-1959 से) खण्ड (i) से (ix) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
7
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 15 ारा (15-9-1995 से) अन्तःस्थािपत ।
8
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा लोप िकया गया ।
9
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 10 ारा (1-3-1963 से) अन्तःस्थािपत ।
10
1962 के अिधिनयम सं० 64 की धारा 10 ारा (1-2-1963 से) “या” शब्द का लोप िकया गया ।
26

अनुकूिलत करने से संबंिधत िकसी कायर् का आनुषंिगक या उससे संबंिधत है, िनयोिजत ित इस खंड के पर्योजन के िलए ऐसे
पिरसर या पर्सीमा के अंदर िनयोिजत समझे जाएंगे; अथवा]
(iv) िनयोजक के वसाय या कारबार के संबंध म िवस्फोटक के िविनमार्ण या हथालने म िनयोिजत ह; अथवा
(v) खान अिधिनयम, 1952 (1952 का 35) की धारा 2 के खंड (ञ) म यथापिरभािषत िकसी खान म िकसी खनन
संिकर्या म अथवा िकसी खनन संिकर्या के या अिभपर्ाप्त खिनज के आनुषंिगक या उससे संसक्त िकसी पर्कार के काम म, 1 ***
या भूिम के नीचे िकसी भी पर्कार के काम म िनयोिजत है; अथवा
(vi) (क) पूणत
र् ः या भागतः वाष्प ारा या अन्य यांितर्क शिक्त या िव ुत ारा नोिदत पोत के , या ऐसे पोत के , जो
इस पर्कार नोिदत पोत ारा अनुकिषत िकया जाता है, या िजसका ऐसे अनुकिषत िकया जाना आशियत है, अथवा
1
* * * *
(ग) उपखंड (क) *** के अन्तगर्त न आने वाले िकसी ऐसे समुदर्गामी पोत के , िजसके िलए के वल पाल
1
ारा
नौचालन के िलए पयार्प्त क्षेतर् उपबिन्धत है,
मास्टर या नािवक के रूप म िनयोिजत है; अथवा
(vii) (क) िकसी ऐसे पोत पर, िजसका वह मास्टर या कम दल का सदस्य नह है, लदाई, उससे उतराई, उसम
ईंधन डालने, उसका सिन्नमार्ण करने, उसकी मरम्मत करने, उसे तोड़ डालने, साफ करने या उसका रं ग-रोगन करने के
पर्योजन के िलए, या जो माल िकसी जलयान से उतारा गया है, या िकसी जलयान म लादा जाना है, उस माल को, 2 प न
अिधिनयम, 1908 (1908 का 15) या महाप न न्यास अिधिनयम, 1963 (1963 का 36) के अध्यधीन रहते हुए, िकसी प न
की सीमा के अन्दर हथालने या उसका पिरवहन करने के पर्योजन के िलए, अथवा
(ख) पोत को जलबन्ध से होकर ख चने के पर्योजन के िलए, अथवा
(ग) बन्दरगाह िभि बथ पर या पर्स्तंभ म पोत के लंगर डालने या उठाने के पर्योजन के िलए, अथवा
(घ) जब जलयान सूखे डॉक म पर्वेश करे या उसे छोड़े तब सूखे डॉक के के सून को हटाने या पुनः रखने के पर्योजन
के िलए, अथवा
(ङ) िकसी जलयान को आपात की दशा म डॉक म लाने या वहां से ले जाने के पर्योजन के िलए, अथवा
(च) कयर की पलास रिसयां और रोक-तार तैयार करने, जलबन्ध पर गहराई िचह्न रं गने, जब कभी आवश्यक हो
तब चपलान को हटाने या पुनः रखने, सीिढ़यां लगाने, मानक पयर्न्त रक्षाबोय या तद्रूप िकसी अन्य अनुरक्षण-संकमर् को
बनाए रखने के पर्योजन के िलए, अथवा
(छ) पोत की रस्सी को घाट तक लाने के िलए ड िगय पर िकसी काम के पर्योजन के िलए िनयोिजत है;
(viii) (क) िकसी ऐसे भवन के , जो भूिम के ऊपर ऊंचाई म एक मंिजल से अिधक या भूिम तल से लेकर छत के
िशखागर् तक बारह फु ट या उससे अिधक होने के िलए पिरकिल्पत है या रहा है, अथवा
(ख) िकसी ऐसे बांध या तटबन्ध के , जो अपने िनम्नतम िबन्दु से लेकर उच्चतम िबन्दु तक ऊंचाई म बारह फु ट या
उससे अिधक है, अथवा
(ग) िकसी सड़क, पुल, सुरंग या नहर के , अथवा
(घ) िकसी घाट, पोतघाट, समुदर्-िभि या अन्य समुदर्ी संकमर् के , िजसके अन्तगर्त पोत के लंगर डालने का स्थान
आता है, सिन्नमार्ण, अनुरक्षण, मरम्मत या तोड़ने म िनयोिजत है; अथवा
(ix) िकसी टेलीगर्ाफ टेिलफोन लाइन या उसके खम्बे या िकसी िशरोपिर िव ुत लाइन या के िबल या खम्बे या दण्ड
या उनके िलए िफिटग और िफक्सचर को स्थािपत करने, अनुरिक्षत रखने, उनकी मरम्मत करने, या उतार लेने म िनयोिजत
है; अथवा
(x) िकसी आकाशी रज्जु-मागर्, नहर, पाइप लाइन या मलनाली के सिन्नमार्ण, उसको िकर्याशील रखने, उसकी
मरम्मत करने, या उसे तोड़ने म, 1*** िनयोिजत है; अथवा
(xi) िकसी अिग्न-शामक दल की सेवा म िनयोिजत है; अथवा
(xii) 2[रे ल अिधिनयम, 1989 (1989 का 24) की धारा 2 के खंड (31) और धारा 197 की उपधारा (1)] म
यथापिरभािषत रे ल म ऐसे िक्त ारा, जो रे ल पर्शासन के साथ िकसी संिवदा की पूित कर रहा है, सीधे या िकसी उप
ठे केदार के माध्यम से िनयोिजत है; अथवा

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा लोप िकया गया ।
2
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 15 ारा (15-9-1995 से) कितपय शब्द के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
27

(xiii) िनरीक्षक, डाक-रक्षक, डाक छांटने वाले या वैन िपयन के रूप म रे ल डाक-सेवा म 1 [या तार संकेतक के रूप
म या डाक या रे ल के िसर-नेलर के रूप म] िनयोिजत है, या भारतीय डाक और तार िवभाग म िकसी ऐसी उपजीिवका म,
िजसम मामूली तौर पर बाहर का काम अन्तवर्िलत हो, िनयोिजत है;] अथवा

(xiv) पर्ाकृ ितक पैटर्ोिलयम या पर्ाकृ ितक गैस िनकालने की िकर्या के सम्बन्ध म, 2 *** िनयोिजत है; अथवा

(xv) ऐसी िकसी उपजीिवका म, िजसम िवस्फोटक संिकर्याएं अन्तवर्िलत ह , िनयोिजत है; अथवा

(xvi) ऐसे उत्खन्न करने म िनयोिजत है, 2*** या िवस्फोटक पर्युक्त िकए गए ह या िजसकी गहराई उसके उच्चतम
िबन्दु से लेकर िनम्नतर िबन्दु तक 3 [बारह] फु ट से अिधक ह; अथवा

(xvii) दस िक्तय से अिधक को वहन करने योग्य पार नौका चलाने म िनयोिजत है; या

[(xviii) िकसी भू-संपदा म िनयोिजत, िजसका अनुरक्षण इलायची, िसनकोना, कॉफी, रबड़ या चाय उगाने के
4

पर्योजन के िलए िकया जाता है; या]

[(xix) िव ुत ऊजार् के उत्पादन, रूपान्तरण, पारे षण या िवतरण म अथवा गैस के उत्पादन या पर्दाय म 2***
5

िनयोिजत है; अथवा]

(xx) भारतीय दीपस्तंभ अिधिनयम, 1927 (1927 का 17) की धारा 2 के खण्ड (ध) म यथापिरभािषत दीपस्तंभ म
िनयोिजत है; अथवा

(xxi) लोक-पर्दशर्न के िलए आशियत चलिचतर् के िनमार्ण म, या ऐसे िचतर् को पर्दिशत करने म िनयोिजत है;
अथवा

(xxii) हािथय या जंगली जीव-जन्तु के पर्िशक्षण, पालने या उनसे काम लेने म, िनयोिजत है; अथवा

[(xxiii) ताड़ के पेड से रस िनकालने या वृक्ष को िगराने या उनसे ल े बनाने म या अन्तदशीय जल ारा काष्ठ
6

के पिरवहन म, या दावानल के िनयंतर्ण या बुझाने म िनयोिजत ह; अथवा

(xxiv) हािथय या अन्य जंगली जीव-जन्तु को पकड़ने या उनका िशकार करने की संिकर्या म िनयोिजत है;
अथवा]
7
[(xxv)] गोताखोर के रूप से िनयोिजत है; 5[अथवा

(xxvi) (क) िकसी ऐसे भाण्डागार या अन्य स्थान की, िजसम माल भंडािरत िकया जाता है; 2*** अथवा

(ख) िकसी ऐसे बाजार की, 2*** पर्सीमा म, या के अन्दर माल हथालने या उसका पिरवहन करने म िनयोिजत
है; अथवा

(xxvii) िकसी ऐसी उपजीिवका म, िजसम रे िडयम या एक्स-रे सािधतर् को हथालाना या उसका अिभचालन या
रे िडय ऐिक्टव पदाथ का संस्पशर् अन्तवर्िलत है, िनयोिजत है;] 1[अथवा]

(xxviii) भारतीय वायुयान अिधिनयम, 1934 (1934 का 22) की धारा 2 म यथापिरभािषत वायुयान के
1

सिन्नमार्ण, बनाने, खोल डालने, चालन या अनुरक्षण म या उसके संबंध म िनयोिजत है; अथवा

(xxix) टर्ेक्टर या अन्य यंतर् ारा, जो वाष्प या अन्य यांितर्क शिक्त ारा या िव त
ु ारा चलते ह, 5[उ ान-कृ िष
संिकर्या , बनो ोग, मधुमक्खी पालन या खेती करने म िनयोिजत है;] अथवा

(xxx) नलकू प के िनमार्ण, चालन, मरम्मत या अनुरक्षण म, 2*** िनयोिजत है; अथवा

(xxxi) िकसी भवन म िव ुत िफिटग के अनुरक्षण, मरम्मत या नवीकरण म िनयोिजत है; अथवा

(xxxii) सरकस म िनयोिजत है ।]

1
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 18 ारा (1-6-1959 से) अन्तःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 का लोप िकया गया ।
3
1959 के अिधिनयम सं० 8 की धारा 18 ारा (1-6-1959 से) “बीस” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
4
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा पर्ितस्थािपत ।
5
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 15 ारा (15-9-1995 से) मद (xix) और “खेती करने म िनयोिजत है” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
6
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 11 ारा अन्तःस्थािपत ।
7
1938 के अिधिनयम सं० 9 की धारा 11 ारा मूल खण्ड (xxiii) को (xxv) के रूप म पुनः संख्यांिकत िकया गया ।
28

1
[(xxxiii) िकसी कारखाने या स्थापन म चौकीदार के रूप म िनयोिजत है; अथवा
(xxxiv) समुदर् म मछली पकड़ने की िकसी संिकर्या म िनयोिजत है; अथवा
(xxxv) िकसी ऐसे रोजगार म िनयोिजत है िजसम िवष िनकालने के पर्योजन के िलए या सांप की देखभाल करने
के पर्योजन के िलए सांप को हथालने अथवा िकसी िवषैले जीव-जन्तु या कीट को हथालने की अपेक्षा की जाती है; अथवा
(xxxvi) घोड़ , खच्चर और सांड जैसे जीव-जन्तु के हथालने संबंधी काम म िनयोिजत है; अथवा
(xxxvii) िकसी यंतर्नोिदत यान म लदाई या उससे उतराई के पर्योजन के िलए अथवा ऐसे माल की, िजसकी ऐसे
यान म लादाई की गई है, उठाई-धराई करने म या उसका पिरवहन करने म िनयोिजत है; अथवा
(xxxviii) िकसी स्थानीय पर्ािधकारी की सीमा के भीतर मल नािलय या सेिप्टक टक की सफाई म िनयोिजत
है; अथवा
(xxxix) सवक्षण और अन्वेषण, खोज अथवा निदय के मापन या िनस्सारण पर्ेक्षण म िनयोिजत है, िजसके अंतगर्त
संवधर्न संिकर्याएं, जल िवज्ञानीय पर्ेक्षण तथा बाढ़ पूवार्नुमान िकर्याकलाप भूगभर्-जल सवक्षण और खोज ह;
(xl) ऐसे जंगल के साफ करने म अथवा भूिम या तालाब के ठीक करने म िनयोिजत है; 2 ***
(xli) ऐसी भूिम पर खेती करने म या पशु धन के पालन-पोषण तथा अनुरक्षण या वन संिकर्या या मछली पकड़ने
म िनयोिजत है; 2***
(xlii) कू प , नलकू प , तालाब , झील , जल धारा तथा वैसे ही ोत से जल उत्थापन के िलए पर्योग म लाए
जाने वाले पंिपग उपस्कर के संस्थापन, अनुरक्षण या मरम्मत म िनयोिजत ह;
(xliii) िकसी खुले कू प या खोदे गए कू प, बोर कू प, बोर तथा खोदे गए बूथ िफल्टर पाइं ट और वैसे ही बोिरग
संिन्नमार्ण, या उन्ह गहरा करने म िनयोिजत ह;
(xliv) कृ िष संिकर्या या बागान म कीटनाशी या नाशक जीव मार के फु हारन करने और उसके धूल झाड़न म
िनयोिजत ह;
(xlv) यांितर्क फसल कटाई और गहाई संिकर्या म िनयोिजत ह;
(xlvi) बुलडोजर , टर्ेक्टर , पावर िटलर तथा वैसी ही मशीन के चालन या मरम्मत या अनुरक्षण म िनयोिजत ह;
(xlvii) भूिम तल से 3.66 मीटर या उससे अिधक ऊंचाई पर िवज्ञापन बोड पर िचतर् बनाने के िलए कलाकार के
रूप म िनयोिजत ह;
(xlviii) शर्मजीवी पतर्कार और अन्य समाचारपतर् कमर्चारी (सेवा की शत) और पर्कीणर् उपबन्ध अिधिनयम, 1955
(1955 का 45) म पिरभािषत िकसी समाचारपतर् स्थापन म िनयोिजत ह और बा कायर् म लगे ह;]
3
[(xlix) पानी के भीतर कायर् के िलए गोताखोर के रूप म िनयोिजत ।]
2
* * * *
4
[अनुसूची 3
(धारा 3 देिखए)

उपजीिवकाजन्य रोग की सूची

कर्.सं. उपजीिवकाजन्य रोग िनयोजन


(1) (2) (3)
भाग क
1. संकर्ामक और परजीवी रोग, जो उस उपजीिवका से (क) सभी कायर् जो स्वास्थ्य या पर्योगशाला कायर् के िलए
हुआ हो जहां संदष
ू ण की िविशष्ट जोिखम हो । उच्छन्न करते ह ;

1
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 15 ारा (15-9-1995 से) अन्तःस्थािपत ।
2
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 10 ारा लोप िकया गया ।
3
सा.का.िन. 381, तारीख 3-11-1997 ारा जोड़ा गया ।
4
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 6 ारा (1-7-1984 से) अनुसूची 3 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
29

कर्.सं. उपजीिवकाजन्य रोग िनयोजन


(1) (2) (3)
(ख) सभी कायर् जो पशु-िचिकत्सा कायर् के िलए उच्छन्न करते
ह ।
(ग) जीव-जन्तु , जीव-जन्तु शव , ऐसे शव के भाग या
ापािरक माल के ; जो जीव-जन्तु या जीव-जन्तु शव
ारा संदिू षत हो गया हो, हथालने से संबंिधत कायर् ;
(घ) अन्य कायर् िजसम संदष
ू ण की िविशष्ट जोिखम हो ।
2. संपीिड़त वायु म कायर् ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
3. सीसा या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
4. नाइटर्स धूम ारा िवषाक्तता । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
5. काबर्िनक फास्फोरस सिम्मशर्ण ारा िवषाक्तता । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
भाग ख
1. फास्फोरस या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
2. पारद या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
3. बनजीन या उसके िवषैले समजात ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
4. नाइटर्ो और बनजीन के एिमडो िवषैले ुत्प या सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
उसके समजात ारा कािरत रोग ।
5. कर्ोिमयम या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
6. संिखया या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
7. रे िडयो एिक्टव पदाथ और आयनकारी िविकरण ारा सभी कायर् जो रोिडयोएिक्टव पदाथ या आयतकारी
कािरत रोग । िविकरण के िलए उच्छन्न करते ह ।
8. तारकोल, डामर, िबटूमन े , खिनज तेल, एन्थर्सीन या इन सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
पदाथ के सिम्मशर्ण ; उत्पाद या अवशेष ारा कािरत
त्वचा का पर्ाथिमक उपकला-बुंदयुक्त कसर ।
9. (ऐिलफै िटक एनडेरोमेिटक आविलय के ) हाइडर्ोकाबर्न सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
के िवषैले हैलोजेन ुत्प ारा कािरत रोग ।
10. काबर्न डाइसल्फाइड ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
11. अवरक्त िविकरण से उत्पन्न उपजीिवका जन्य सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
मोितयािबन्द ।
12. मगनीज या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
13. शारीिरक, रासायिनक या जैिवक कारक ारा, जो सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
अन्य मद म सिम्मिलत नह ह; कािरत त्वचा रोग ।
14. शोर ारा कािरत शर्वण हािन । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
15. पर्ितस्थापी डाइनाटर्ोफीनॉल या ऐसे पदाथ के लवण सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
ारा िवषाक्तता ।
16. बेिरिलयम या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
17. कै िडिमयम या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
30

कर्.सं. उपजीिवकाजन्य रोग िनयोजन


(1) (2) (3)
18. कायर् पर्िकर्या म अन्तिवष्ट मान्यतापर्ाप्त सुगर्ाही कारक सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
ारा कािरत उजीिवका-जन्य दमा ।
19. फ्लुओरी या उसके िवषैले सिम्मशर्ण ारा कािरत सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
रोग ।
20. नाइटर्ोिग्लसरीन या अन्य नाइटर्ोएिसड ऐस्टर ारा सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
कािरत रोग ।
21. एलकोहॉल और कीटोन ारा कािरत रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
22. श्वासरोध, काबर्नमोनोक्साइड और उसके िवषैले सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
ुत्प , हाईडर्ोजन सल्फाइड ारा कािरत रोग ।
23. एस्बैस्टॉस ारा कािरत फे फड़ा कसर और सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
मीिजथीिलओमा ।
24. मू्तर्ाशय या वृक्क या मूतर्वािहनी की एिपिथिलअल सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
लाइिनग का पर्ाथिमक अबुर्द ।
1
[25. बरफ से िघरे क्षेतर् म िहमांधता । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
26. अत्यंत गरम जलवायु म गम के पर्भाव से उत्पन्न रोग । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
27. अत्यंत ठं डी जलवायु म ठं ड के पर्भाव से उत्पन्न सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।]
रोग ।
भाग ग
1. स्क्लेरोजेिनक खिनज धूल (िसिलकोिसस सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
एन्थर्ािसिलकोिसस एस्बेस्टौिसस) ारा कािरत फु फ्फु स-
धूिलमयता और िसकता यक्षमा परन्तु यह िक
िसकतामयता पिरणामी िनय ग्यता या मृत्यु कािरत
करने म आवश्यक घटक हो ।
2. इक्षुधूिलमयता । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
3. रूई, फ्लैक्स हैम्प और सीसल धूिल (िबिसनोिसस) ारा सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
कािरत श्वासनी फु फ्फु स रोग ।
4. काबर्िनक धूल के अिभश्वसन ारा कािरत बिहरस्थ सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
एलज एिल्बयोलाइटीज
5. कठोर धातु ारा कािरत श्वसनी-फु फ्फु स । सभी कायर् जो संबंिधत जोिखम के िलए उच्छन्न करते ह ।
2
[अनुसूची 4
(धारा 4 देिखए)
स्थायी िनःशक्तता और मृत्यु की दशा म पर्ितकर को रकम के एक मूक्ता समतुल्य रकम िनकालने के िलए
गुणक
3
[कमर्चारी] को पर्ितकर देय होने की तारीख के ठीक पूवर्वत
गुणक
उसके अिन्तम जन्म िदवस को पूणर् हुए वष की संख्या
(1) (2)
16 से अिधक नह . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 228.54

1
1995 के अिधिनयम सं० 30 की धारा 16 ारा (15-9-1995 से) अंतःस्थािपत ।
2
1984 के अिधिनयम सं० 22 की धारा 7 ारा (1-7-1984 से) अनुसूची 4 के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
31

1
[कमर्चारी] को पर्ितकर देय होने की तारीख के ठीक पूवर्वत
गुणक
उसके अिन्तम जन्म िदवस को पूणर् हुए वष की संख्या
(1) (2)
17. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 227.49
18. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 226.38
19. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 225.22
20. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 224.00
21. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 222.71
22. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 221.37
23. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 219.95
24. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 218.47
25. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 216.91
26. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 215.28
27. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 213.57
इससे अिधक नह 28. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 211.79
29. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 209.92
30. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 207.98
31. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 205.95
32. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 203.85
33. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 201.66
34. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 199.40
35. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 197.06
36. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 194.64
37. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 192.14
38. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 189.56
39. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 186.90
40. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 184.17
41. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 181.37
42. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 178.49
43. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .   175.54
44. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 172.52
45. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 169.44
46. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 166.29
47. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 163.07
48. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 159.80
49. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 156.47
50. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 153.09
51. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 149.67
52. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 146.20

1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।
32

1
[कमर्चारी] को पर्ितकर देय होने की तारीख के ठीक पूवर्वत
गुणक
उसके अिन्तम जन्म िदवस को पूणर् हुए वष की संख्या
(1) (2)
53. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 142.68
54. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 139.13
55. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 135.56
56. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 131.95
57. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 128.33
58. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 124.70
59. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 121.05
60. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 117.41
61. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 113.77
62. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 110.14
63. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 106.52
64. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 102.93
65 या अिधक. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 99.37]

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1
2009 के अिधिनयम सं० 45 की धारा 4 ारा पर्ितस्थािपत ।

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