IX मेरा छोटा सा निजी पुस्तकालय

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र्ािव रचिा इंटरिेशिल स्कूल,र्ेकिल्टड गाडमि, सैक्टर-51,गरु

ु ग्रार्
सत्र :2023-24
िार्: र्ेरा छोटा-सा निजी पस्
ु तकालय

कक्षा: IX नतथििः

मेरा छोटा-सा निजी पस्


ु तकालय
लेखक पररचय

लेखक – धर्मवीर भारती


जन्र् – 1926

मेरा छोटा-सा निजी पस्


ु तकालय पाठ प्रवेश

“र्ेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय” पाठ र्ें लेखक अपिे बारे र्ें बताता हुआ कहता है कक उसिे
ककस तरह से पुस्तकालय की पहली पुस्तक से ले कर एक बडा पुस्तकालय तैयार ककया। उसे
कैसे पुस्तकों को पढ़िे का शौक जाएगा और किर ककस तरह उि ककताबों को इक्कठा करिे का
शौक जगा? अपिी पहली पुस्तक लेखक िे ककस पररस्स्िनत र्ें खरीदी? लेखक िे अपिे ऑपरे शि
के बाद अपिे पुस्तकालय र्ें ही रहिे का निश्चय क्यों ककया? इि सभी के बारे र्ें लेखक िे इस
पाठ र्ें बताया है ।

मेरा छोटा-सा निजी पस्


ु तकालय पाठ सार

लेखक इस पाठ र्ें अपिे बारे र्ें बात कर रहा है । लेखक साल 1989 जुलाई की बात करता हुआ
कहता है कक उस सर्य लेखक को तीि-तीि जबरदस्त हाटम -अटै क आए िे और वो भी एक के
बाद एक। उिर्ें से एक तो इतिा खतरिाक िा कक उस सर्य लेखक की िब्ज बंद, सााँस बंद
और यहााँ तक कक धडकि भी बंद पड गई िी। उस सर्य डॉक्टरों िे यह घोषित कर ददया िा
कक अब लेखक के प्राण िहीं रहे । लेखक कहता है कक उि सभी डॉक्टरों र्ें से एक डॉक्टर बोजेस
िे स्जन्होंिे किर भी दहम्र्त िहीं हारी िी। उन्होंिे लेखक को िौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks)
ददए। लेखक के प्राण तो लौटे , पर इस प्रयोग र्ें लेखक का साठ प्रनतशत हाटम सदा के ललए िष्ट
हो गया। अब लेखक का केवल चालीस प्रनतशत हाटम ही बचा िा जो कार् कर रहा िा। लेखक
कहता है कक उस चालीस प्रनतशत कार् करिे वाले हाटम र्ें भी तीि रुकावटें िी। स्जस कारण
लेखक का ओपेि हाटम ऑपरे शि तो करिा ही होगा पर सजमि दहचक रहे हैं।सजमि को डर िा कक
अगर ऑपरे शि कर भी ददया तो हो सकता है कक ऑपरे शि के बाद ि हाटम ररवाइव ही ि हो।
सभी िे तय ककया कक हाटम के बारे र्ें अच्छी जािकारी रखिे वाले अन्य षवशेिज्ञों की राय ले ली
जाए, उिकी राय लेिे के बाद ही ऑपरे शि की सोचें गे। तब तक लेखक को घर जाकर बबिा दहले-
डुले आरार् करिे की सलाह दी गई। लेखक िे स्जद की कक उसे बेडरूर् र्ें िहीं बस्ल्टक उसके
ककताबों वाले कर्रे र्ें ही रखा जाए। लेखक की स्जद र्ािते हुए लेखक को वहीं लेटा ददया गया।
लेखक को लगता िा कक लेखक के प्राण ककताबों के उस कर्रे की हजारों ककताबों र्ें बसे हैं जो
षपछले चालीस-पचास साल र्ें धीरे -धीरे लेखक के पास जर्ा होती गई िी। ये इतिी सारी ककताबें
लेखक के पास कैसे जर्ा हुईं, उि ककताबों को इकठ्ठा करिे की शरु ु आत कैसे हुई, इि सब की
किा लेखक हर्ें बाद र्ें सि
ु ािा चाहता है । पहले तो लेखक हर्ें यह बतािा जरूरी सर्झता है कक
लेखक को ककताबें पढ़िे और उन्हें सम्भाल कर रखिे का शौक कैसे जागा। लेखक बताता है कक
यह सब लेखक के बचपि से शुरू हुआ िा। लेखक अपिे बचपि के बारे र्ें बताता हुआ कहता है
कक उसके षपता की अच्छी-खासी सरकारी िौकरी िी। जब बर्ाम रोड बि रही िी तब लेखक के
षपता िे बहुत सारा धि कर्ाया िा। लेककि लेखक के जन्र् के पहले ही गांधी जी के द्वारा
बुलाए जािे पर लेखक के षपता िे सरकारी िौकरी छोड दी िी। सरकारी िौकरी छोड दे िे के
कारण वे लोग रूपए-पैसे संबडे बंधी कष्टों से गुजर रहे िे, इसके बावजूद भी लेखक के घर र्ें
पहले की ही तरह हर-रोज पत्र-पबत्रकाएाँ आती रहती िीं। इि पत्र-पबत्रकाओं र्ें ‘आयमलर्त्र
साप्तादहक’, ‘वेदोदर्’, ‘सरस्वती’, ‘गदृ हणी’ िी और दो बाल पबत्रकाएाँ खास तौर पर लेखक के ललए
आती िी। स्जिका िार् िा-‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’। लेखक के घर र्ें बहुत सी पुस्तकें भी िीं।
लेखक की षप्रय पुस्तक िी स्वार्ी दयािंद की एक जीविी, जो बहुत ही र्िोरं जक शैली र्ें ललखी
हुई िी, अिेक थचत्रों से सज्जी हुई। लेखक की र्ााँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करिे पर जोर ददया
करती िी। लेखक की र्ााँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करिे पर जोर इसललए दे ती िी क्योंकक लेखक
की र्ााँ को यह थचंनतत लगी रहतीं िी कक उिका लडका हर्ेशा पत्र-पबत्रकाओं को पढ़ता रहता है ,
कक्षा की ककताबें कभी िहीं पढ़ता। कक्षा की ककताबें िहीं पढ़े गा तो कक्षा र्ें पास कैसे होगा!
लेखक स्वार्ी दयािन्द की जीविी पढ़ा करता िा स्जस कारण लेखक की र्ााँ को यह भी डर िा
कक लेखक कहीं खद
ु साधु बिकर घर से भाग ि जाए। लेखक कहता है कक स्जस ददि लेखक को
स्कूल र्ें भरती ककया गया उस ददि शार् को लेखक के षपता लेखक की उाँ गली पकडकर लेखक
को घुर्ािे ले गए। लोकिाि की एक दक
ु ाि पर लेखक को ताजा अिार का शरबत लर््टी के
बतमि र्ें षपलाया और लेखक के लसर पर हाि रखकर बोले कक लेखक उिसे वायदा करे कक
लेखक अपिे पाठ्यक्रर् की ककताबें भी इतिे ही ध्याि से पढ़े गा स्जतिे ध्याि से लेखक पबत्रकाओं
को पढ़ता है और लेखक अपिी र्ााँ की थचंता को भी लर्टाएगा। लेखक कहता है कक यह उसके
षपता का आशीवामद िा या लेखक की कदठि र्ेहित कक तीसरी और चौिी कक्षा र्ें लेखक के
अच्छे िंबर आए और पााँचवीं कक्षा र्ें तो लेखक प्रिर् आया। लेखक की र्ेहित को दे खकर
लेखक की र्ााँ िे आाँसू भरकर लेखक को गले लगा ललया िा, परन्तु लेखक के षपता केवल
र्ुसकुराते रहे , कुछ बोले िहीं। क्योंकक लेखक को अंग्रेजी र्ें सबसे ज्यादा िंबर लर्ले िे, अतिः
इसललए लेखक को स्कूल से इिार् र्ें दो अंग्रेजी ककताबें लर्ली िीं। उिर्ें से एक ककताब र्ें दो
छोटे बच्चे घोंसलों की खोज र्ें बागों और घिे पेडों के बीच र्ें भटकते हैं और इस बहािे उि
बच्चों को पक्षक्षयों की जानतयों, उिकी बोललयों, उिकी आदतों की जािकारी लर्लती है । दस
ू री
ककताब िी ‘ट्रस्टी द रग’ स्जसर्ें पािी के जहाजों की किाएाँ िीं। उसर्ें बताया गया िा कक
जहाज ककतिे प्रकार के होते हैं, कौि-कौि-सा र्ाल लादकर लाते हैं, कहााँ से लाते हैं, कहााँ ले जाते
हैं, वाले जहाजों पर रहिे िाषवकों की स्जंदगी कैसी होती है , उन्हें कैसे-कैसे द्वीप लर्लते हैं, सर्द्र
ु र्ें
कहााँ ह्वेल र्छली होती है और कहााँ शाकम होती है।लेखक कहता है कक स्कूल से इिार् र्ें लर्ली
उि अंग्रेजी की दो ककताबों िे लेखक के ललए एक ियी दनु िया का द्वार ललए खोल ददया िा।
लेखक के पास अब उस दनु िया र्ें पक्षक्षयों से भरा आकाश िा और रहस्यों से भरा सर्ुद्र िा।
लेखक कहता है कक लेखक के षपता िे उिकी अलर्ारी के एक खािे से अपिी चीजें हटाकर
जगह बिाई िी और लेखक की वे दोिों ककताबें उस खािे र्ें रखकर उन्होंिे लेखक से कहा िा
कक आज से यह खािा तुम्हारी अपिी ककताबों का है । अब यह तुम्हारी अपिी लाइब्रेरी है । लेखक
कहता है कक यहीं से लेखक की लाइब्रेरी शुरू हुई िी जो आज बढ़ते-बढ़ते एक बहुत बडे कर्रे र्ें
बदल गई िी। लेखक बच्चे से ककशोर अवस्िा र्ें आया, स्कूल से काॅलेज, काॅलेज से यनु िवलसमटी
गया, डाॅक्टरे ट हालसल की, यूनिवलसमटी र्ें बच्चों को पढ़ािे का कार् ककया, पढ़ािा छोडकर
इलाहाबाद से बंबई आया, लेखों को अच्छी तरह से पूरा करिे का कार् ककया। और उसी अिुपात
र्ें अिामत दो-दो करके अपिी लाइब्रेरी का षवस्तार करता गया। अपिी लाइब्रेरी को बढ़ाता चला
गया। लेखक अपिी बचपि की बातों को बताता हुआ कहता है कक हर् लोग लेखक से यह पूछ
सकते हैं कक लेखक को ककताबें पढ़िे का शौक तो िा यह र्ाि लेते हैं पर ककताबें इक्ठी करिे
का पागलपि क्यों सवार हुआ? इसका कारण भी लेखक अपिे बचपि के एक अिुभव को बताता
है । लेखक बताता है कक इलाहाबाद भारत के प्रलसद्ध लशक्षा-केंद्रों र्ें एक रहा है । इलाहाबाद र्ें
ईस्ट इंडडया द्वारा स्िाषपत की गई पस्ब्लक लाइब्रेरी से लेकर र्हार्िा र्दिर्ोहि र्ालवीय द्वारा
स्िाषपत भारती भवि तक है । इलाहाबाद र्ें षवश्वषवद्यालय की लाइब्रेरी तिा अिेक काॅलेजों की
लाइब्रेररयााँ तो हैं ही, इसके साि ही इलाहाबाद के लगभग हर र्ुहल्टले र्ें एक अलग लाइब्रेरी है ।
इलाहाबाद र्ें हाईकोटम है , अतिः वकीलों की अपिी अलग से लाइब्रेररयााँ हैं, अध्यापकों की अपिी
अलग से लाइब्रेररयााँ हैं। उि सभी लाइब्रेररयों को दे ख कर लेखक भी सोचा करता िा कक क्या
उसकी भी कभी वैसी लाइब्रेरी होगी?, यह सब लेखक सपिे र्ें भी िहीं सोच सकता िा, पर लेखक
के र्ुहल्टले र्ें एक लाइब्रेरी िी स्जस्र् िार् ‘हरर भवि’ िा। लेखक की जैसे ही स्कूल से छुटी
होती िी कक लेखक लाइब्रेरी र्ें चला जाता िा। र्ुहल्टले के उस छोटे -से ‘हरर भवि’ र्ें खब
ू सारे
उपन्यास िे। जैसे ही लाइब्रेरी खलु ती िी लेखक लाइब्रेरी पहुाँच जाता िा और जब शुक्ल जी जो
उस लाइब्रेरी के लाइब्रेररयि िे वे लेखक से कहते कक बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करिा है ,
तब लेखक बबिा इच्छा के ही वहां से उठता िा। लेखक के षपता की र्त्ृ यु के बाद तो लेखक के
पररवार पर रुपये-पैसे से संबंथधत इतिा अथधक संकट बढ़ गया िा कक लेखक को िीस जुटािा
तक र्स्ु श्कल हो गया िा। अपिे शौक की ककताबें खरीदिा तो लेखक के ललए उस सर्य संभव
ही िहीं िा। एक ट्रस्ट की ओर से बेसहारा छात्रों को पाठ्यपस्
ु तकें खरीदिे के ललए सत्र के आरं भ
र्ें कुछ रुपये लर्लते िे। लेखक उि से केवल ‘सेकंड-हैंड’ प्रर्ख
ु पाठ्यपस्
ु तकें खरीदता िा, बाकी
अपिे सहपादठयों से लेकर पढ़ता और िोदटस बिा लेता िा। लेखक कहता है कक रुपये-पैसे की
इतिी तंगी होिे के बाद भी लेखक िे अपिे जीवि की पहली सादहस्त्यक पस्
ु तक अपिे पैसों से
कैसे खरीदी, यह आज तक लेखक को याद है । लेखक अपिी याद को हर्ें बताता हुआ कहता है
कक उस साल लेखक िे अपिी र्ाध्यलर्क की परीक्षा को पास ककया िा। लेखक पुरािी
पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें लेिे एक सेकंड-हैंड बुकशाॅप पर गया। इस बार ि
जािे कैसे सारी पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रुपये बच गए िे। लेखक िे दे खा की सार्िे के
लसिेर्ाघर र्ें ‘दे वदास’ लगा िा। न्यू थिएटसम वाला। उि ददिों उसकी बहुत चचाम िी। लेककि
लेखक की र्ााँ को लसिेर्ा दे खिा बबलकुल पसंद िहीं िा। लेखक की र्ााँ को लगता िा कक
लसिेर्ा दे खिे से ही बच्चे बबगडते हैं। लेखक िे र्ााँ को बताया कक ककताबें बेचकर दो रुपये
लेखक के पास बचे हैं। वे दो रुपये लेकर र्ााँ की सहर्नत से लेखक क़िल्टर् दे खिे गया। लेखक
बताता है कक पहला शो छूटिे र्ें अभी दे र िी, पास र्ें लेखक की पररथचत ककताब की दक
ु ाि िी।
लेखक वहीं उस दक
ु ाि के आस-पास चक्कर लगािे लगा। अचािक लेखक िे दे खा कक काउं टर पर
एक पुस्तक रखी है -‘दे वदास’। स्जसके लेखक शरत्चंद्र च्टोपाध्याय हैं। उस ककताब का र्ूल्टय
केवल एक रुपया िा। लेखक िे पुस्तक उठाकर उलटी-पलटी। तो पुस्तक-षवक्रेता को पहचािते हुए
बोला कक लेखक तो एक षवद्यािी है । लेखक उसी दक
ु ाि पर अपिी पुरािी ककताबें बेचता है ।
लेखक उसका पुरािा ग्राहक है । वह दक
ु ािदार लेखक से बोले कक वह लेखक से कोई कर्ीशि िहीं
लेगा। वह केवल दस आिे र्ें वह ककताब लेखक को दे दे गा। यह सुिकर लेखक का र्ि भी
पलट गया। लेखक िे सोचा कक कौि डेढ़ रुपये र्ें षपक्चर दे ख कर डेढ़ रुपये खराब करे गा? लेखक
िे दस आिे र्ें ‘दे वदास’ ककताब खरीदी और जल्टदी-जल्टदी घर लौट आया, और जब लेखक िे वह
ककताब अपिी र्ााँ को ददखाई तो लेखक की र्ााँ के आाँखों र्ें आाँसू आ गए। लेखक िहीं जािता
कक वह आाँसू खश
ु ी के िे या दख
ु के िे। लेखक यहााँ बताता है कक वह लेखक के अपिे पैसों से
खरीदी लेखक की अपिी निजी लाइब्रेरी की पहली ककताब िी। लेखक कहता है कक जब लेखक का
ऑपरे शि सिल हो गया िा तब र्राठी के एक बडे कषव षवंदा करं दीकर लेखक से उस ददि
लर्लिे आये िे। उन्होंिे लेखक से कहा िा कक भारती, ये सैकडों र्हापुरुि जो पुस्तक-रूप र्ें
तुम्हारे चारों ओर उपस्स्ित हैं, इन्हीं के आशीवामद से तुर् बचे हो। इन्होंिे तुम्हें दोबारा जीवि
ददया है । लेखक िे र्ि-ही-र्ि सभी को प्रणार् ककया-षवंदा को भी, इि र्हापुरुिों को भी। यहााँ
लेखक भी र्ािता िा कक उसके द्वारा इकठ्ठी की गई पुस्तकों र्ें उसकी जाि बसती है जैसे
तोते र्ें राजा के प्राण बसते िे।

मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय पाठ व्याख्या

पाठ – जल
ु ाई 1989 । बचिे की कोई उम्र्ीद िहीं िी। तीि-तीि जबरदस्त हाटम -अटै क, एक के
बाद एक। एक तो ऐसा कक िब्ज बंद, सााँस बंद, धडकि बंद। डॉक्टरों िे घोषित कर ददया कक
अब प्राण िहीं रहे । पर डॉक्टर बोजेस िे किर भी दहम्र्त िहीं हारी िी। उन्होंिे िौ सौ वॉल्ट्स
के शॉक्स (shocks) ददए। भयािक प्रयोग। लेककि वे बोले कक यदद यह र्त
ृ शरीर र्ात्र है तो
ददम र्हसस
ू ही िहीं होगा, पर यदद कहीं भी जरा भी एक कण प्राण शेि होंगे तो हाटम ररवाइव
(revive) कर सकता है । प्राण तो लौटे , पर इस प्रयोग र्ें साठ प्रनतशत हाटम सदा के ललए िष्ट
हो गया। केवल चालीस प्रनतशत बचा। उसर्ें भी तीि अवरोध ् (blockage) हैं। ओपेि हाटम
ऑपरे शि तो करिा ही होगा पर सजमि दहचक रहे हैं। केवल चालीस प्रनतशत हाटम है । ऑपरे शि
के बाद ि ररवाइव हुआ तो? तय हुआ कक अन्य षवशेिज्ञों की राय ले ली जाए, तब कुछ ददि
बाद ऑपरे शि की सोचें गे। तब तक घर जाकर बबिा दहले-डुले षवश्रार् करें ।

शब्दार्थ
अवरोध ् – रुकावट
ववशेषज्ञ – ककसी षविय को अच्छी तरह सर्झिे वाला
ववश्राम – आरार्

व्याख्या – लेखक यहााँ अपिे बारे र्ें बात कर रहा है । लेखक साल 1989 जुलाई की बात करता
हुआ कहता है कक उस सर्य लेखक के बचिे की कोई उम्र्ीद िहीं िी। क्योंकक लेखक को तीि-
तीि ज़बरदस्त हाटम -अटै क आए िे और वो भी एक के बाद एक। उिर्ें से एक तो इतिा
खतरिाक िा कक उस सर्य लेखक की िब्ज बंद, सााँस बंद और यहााँ तक कक धडकि भी बंद
पड गई िी। उस सर्य डॉक्टरों िे यह घोषित कर ददया िा कक अब लेखक के प्राण िहीं रहे ।
लेखक कहता है कक उि सभी डॉक्टरों र्ें से एक डॉक्टर बोजेस िे स्जन्होंिे किर भी दहम्र्त िहीं
हारी िी। उन्होंिे लेखक को िौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks) ददए। लेखक कहता है कक यह
एक बहुत ही भयािक प्रयोग िा। लेककि डॉक्टर बोजेस बोले कक यदद यह केवल लेखक का र्त ृ
शरीर ही है तो उन्हें कोई ददम र्हसस
ू ही िहीं होगा, पर यदद लेखक के शरीर र्ें कहीं पर भी
जरा सा एक कण प्राण शेि हो तो हाटम ररवाइव (revive) कर सकता है । उिके कहिे का तात्पयम
यह िा कक यदद लेखक के शरीर र्ें िोडे से भी प्राण बाकी होंगे तो इस िौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स
से लेखक के प्राण बच जाएाँगे। लेखक कहता है कक उिका प्रयोग सिल रहा। लेखक के प्राण तो
लौटे , पर इस प्रयोग र्ें लेखक का साठ प्रनतशत हाटम सदा के ललए िष्ट हो गया। अब लेखक का
केवल चालीस प्रनतशत हाटम ही बचा िा जो कार् कर रहा िा। लेखक कहता है कक उस चालीस
प्रनतशत कार् करिे वाले हाटम र्ें भी तीि रुकावटें िी। स्जस कारण लेखक का ओपेि हाटम
ऑपरे शि तो करिा ही होगा पर सजमि दहचक रहे हैं। क्योंकक लेखक का केवल चालीस प्रनतशत
हाटम ही कार् कर रहा िा। सजमि को डर िा कक अगर ऑपरे शि कर भी ददया तो हो सकता है
कक ऑपरे शि के बाद ि हाटम ररवाइव ही ि हो। सभी िे तय ककया कक हाटम के बारे र्ें अच्छी
जािकारी रखिे वाले अन्य षवशेिज्ञों की राय ले ली जाए, उिकी राय लेिे के बाद ही ऑपरे शि
की सोचें गे। तब तक लेखक को घर जाकर बबिा दहले-डुले आरार् करिे की सलाह दी गई।

पाठ – बरहाल, ऐसी अधमर्त्ृ यु की हालत र्ें वाषपस घर लाया जाता हूाँ। र्ेरी स्जद है कक बेडरूर्
र्ें िहीं, र्ुझे अपिे ककताबों वाले कर्रे र्ें ही रखा जाए। वहीं लेटा ददया गया है र्ुझ।े चलिा,
बोलिा, पढ़िा र्िा। ददि भर पडे-पडे दो ही चीजें दे खता रहता हूाँ, बाईं ओर की खखडकी के
सार्िे रह-रहकर हवा र्ें झूलते सुपारी के पेड के झालरदार पत्ते और अंदर कर्रे र्ें चारों ओर
िशम से लेकर छत तक ऊाँची, ककताबों से ठसाठस भरी अलर्ाररयााँ। बचपि र्ें परी किाओं
(fairy tales) र्ें जैसे पढ़ते िे कक राजा के प्राण उसके शरीर र्ें िहीं, तोते र्ें रहते हैं, वैसे ही
लगता िा कक र्ेरे प्राण इस शरीर से तो निकल चक
ु े हैं, वे प्राण इि हजारों ककताबों र्ें बसे हैं
जो षपछले चालीस-पचास बरस र्ें धीरे -धीरे र्ेरे पास जर्ा होती गई हैं।
कैसे जर्ा हुईं, संकलि की शरु
ु आत कैसे हुई, यह किा बाद र्ें सि
ु ाऊाँगा। पहले तो यह बतािा
जरूरी है कक ककताबें पढ़िे और सहे जिे का शौक कैसे जागा। बचपि की बात है । उस सर्य
आयम सर्ाज का सध
ु ारवादी आंदोलि अपिे परू े जोर पर िा। र्ेरे षपता आयम सर्ाज रािीर्ंडी के
प्रधाि िे और र्ााँ िे स्त्री-लशक्षा के ललए आदशम कन्या पाठशाला की स्िापिा की िी।

शब्दार्थ
बरहाल – किलहाल
अधथमत्ृ यु – अधर्रा
संकलि – इकठ्ठा करिा

व्याख्या – लेखक कहता है कक किलहाल उसे वैसी ही अधमर्त्ृ यु की अधर्री सी हालत र्ें वाषपस
घर लाया गया िा। घर आिे पर लेखक िे स्जद की कक उसे बेडरूर् र्ें िहीं बस्ल्टक उसके
ककताबों वाले कर्रे र्ें ही रखा जाए। लेखक की स्जद र्ािते हुए लेखक को वहीं लेटा ददया गया।
लेखक का कहीं भी चलिा, ककसी से भी बात करिा और यहााँ तक की पढ़िा भी बंद िा। सब
कुछ र्िा होिे पर लेखक ददि भर उस कर्रे र्ें पडे-पडे दो ही चीजें दे खता रहता िा, बाईं ओर
की खखडकी के सार्िे रुक-रुककर हवा र्ें झूलते सुपारी के पेड के झालरदार पत्ते और अंदर कर्रे
र्ें चारों ओर िशम से लेकर छत तक ऊाँची, ककताबों से ठसाठस भरी अलर्ाररयााँ। इि सब को
दे खकर लेखक को उसके बचपि र्ें पढ़ी हुई परी किाओं की याद आ जाती िी। उि किाओं र्ें
जैसे लेखक पढ़ता िा कक राजा के प्राण उसके शरीर र्ें िहीं, तोते र्ें रहते हैं, वैसे ही लेखक को
लगता िा कक लेखक के प्राण लेखक के शरीर से तो निकल चक
ु े हैं, परन्तु वे प्राण लेखक के
ककताबों के उस कर्रे की हजारों ककताबों र्ें बसे हैं जो षपछले चालीस-पचास साल र्ें धीरे -धीरे
लेखक के पास जर्ा होती गई िी। ये इतिी सारी ककताबें लेखक के पास कैसे जर्ा हुईं, उि
ककताबों को इकठ्ठा करिे की शरु
ु आत कैसे हुई, इि सब की किा लेखक हर्ें बाद र्ें सिु ािा
चाहता है । पहले तो लेखक हर्ें यह बतािा जरूरी सर्झता है कक लेखक को ककताबें पढ़िे और
उन्हें सम्भाल कर रखिे का शौक कैसे जागा। लेखक बताता है कक यह सब लेखक के बचपि से
शुरू हुआ िा। उस सर्य आयम सर्ाज का सुधरवादी आंदोलि अपिे पूरे जोर पर िा। लेखक के
षपता आयम सर्ाज रािीर्ंडी के प्रधाि िे और र्ााँ िे स्त्री-लशक्षा के ललए आदशम कन्या पाठशाला
की स्िापिा की िी।

पाठ – षपता की अच्छी-खासी सरकारी िौकरी िी। बर्ाम रोड जब बि रही िी तब बहुत कर्ाया
िा उन्होंिे। लेककि र्ेरे जन्र् के पहले ही गांधी जी के आह्िाि पर उन्होंिे सरकारी िौकरी छोड
दी िी। हर् लोग बडे आथिमक कष्टों से गुजर रहे िे, किर भी घर र्ें नियलर्त पत्र-पबत्रकाएाँ आती
िीं-‘आयमलर्त्र साप्तादहक’, ‘वेदोदर्’, ‘सरस्वती’, ‘गदृ हणी’ और दो बाल पबत्रकाएाँ खास र्ेरे ललए-
‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’। उिर्ें होती िी पररयों, राजकुर्ारों, दािवों और संद
ु री राजकन्याओं की
कहानियााँ और रे खा-थचत्र। र्झ
ु े पढ़िे की चाट लग गई। हर सर्य पढ़ता रहता। खािा खाते
सर्य िाली के पास पबत्रकाएाँ रखकर पढ़ता। अपिी दोिों पबत्रकाओं के अलावा भी ‘सरस्वती’
और ‘आयमलर्त्र’ पढ़िे की कोलशश करता। घर र्ें पस्
ु तकें भी िीं। उपनििदें और उिके दहंदी
अिव
ु ाद, ‘सत्यािम प्रकाश’। ‘सत्यािम प्रकाश’ के खंडि-र्ंडि वाले अध्याय परू ी तरह सर्झ तो िहीं
पाता िा, पर पढ़िे र्ें र्जा आता िा। र्ेरी षप्रय पस्
ु तक िी स्वार्ी दयािंद की एक जीविी,
रोचक शैली र्ें ललखी हुई, अिेक थचत्रों से सुसस्ज्जत। वे तत्कालीि पाखंडों के षवरुद्ध अदम्य
साहस ददखािे वाले अद्भुत व्यस्क्तत्व िे। ककतिी ही रोर्ांचक घटिाएाँ िीं उिके जीवि की जो
र्ुझे बहुत प्रभाषवत करती िीं। चह
ू े को भगवाि का भोग खाते दे खकर र्ाि लेिा कक प्रनतर्ाएाँ
भगवाि िहीं होतीं, घर छोडकर भाग जािा, तर्ार् तीिों, जंगलों, गुिाओं, दहर्लशखरों पर
साधओ
ु ं के बीच घूर्िा और हर जगह इसकी तलाश करिा कक भगवाि क्या है ? सत्य क्या है ?
जो भी सर्ाज-षवरोधी, र्िुष्य-षवरोधी र्ूल्टय हैं, रूदढ़यााँ हैं, उिका खंडि करिा और अंत र्ें अपिे
से हारे को क्षर्ा कर उसे सहारा दे िा। यह सब र्ेरे बालर्ि को बहुत रोर्ांथचत करता। जब इस
सबसे िक जाता तब किर ‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’ की पहले पढ़ी हुई किाएाँ दब ु ारा पढ़ता।

शब्दार्थ
आह्िाि – पुकार, बुलावा
आर्र्थक – रूपए पैसे संबंधी
नियममत – हर-रोज
चाट – आदत
रोचक – र्िोरं जक
सुसज्जजत – सज्जी हुई
तत्कालीि – उस सर्य का
पाखंड – ढोंग
अदम्य – स्जसे दबाया ि जा सके
रोमांचक – अद्भुत
प्रनतमाएँ – र्ूनतमयााँ
रूढ़ियाँ – प्रिाएाँ

व्याख्या – लेखक अपिे बचपि के बारे र्ें बताता हुआ कहता है कक उसके षपता की अच्छी-खासी
सरकारी िौकरी िी। जब बर्ाम रोड बि रही िी तब लेखक के षपता िे बहुत सारा धि कर्ाया
िा। लेककि लेखक के जन्र् के पहले ही गांधी जी के द्वारा बुलाए जािे पर लेखक के षपता िे
सरकारी िौकरी छोड दी िी। लेखक बताता है कक जब लेखक के षपता िे सरकारी िौकरी छोड
दी तो वे लोग रूपए-पैसे संबडे बंधी कष्टों से गुजर रहे िे, इसके बावजूद भी लेखक के घर र्ें
पहले की ही तरह हर-रोज पत्र-पबत्रकाएाँ आती रहती िीं। इि पत्र-पबत्रकाओं र्ें ‘आयमलर्त्र
साप्तादहक’, ‘वेदोदर्’, ‘सरस्वती’, ‘गदृ हणी’ िी और दो बाल पबत्रकाएाँ खास तौर पर लेखक के
ललए आती िी। स्जिका िार् िा-‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’। उि दो पबत्रकाओं र्ें पररयों,
राजकुर्ारों, दािवों और सुंदरी राजकन्याओं की कहानियााँ और रे खाथचत्र होते िे। लेखक को उि
दो पबत्रकाओं को पढ़िे की आदत लग गई िी। लेखक उि पबत्रकाओं को हर सर्य पढ़ता रहता
िा। यहााँ तक की जब लेखक खािा खाता िा तब भी िाली के पास पबत्रकाएाँ रखकर पढ़ता रहता
िा। अपिी दोिों पबत्रकाओं के अलावा लेखक दस
ू री पबत्रकाओं को भी पढ़ता िा। लेखक
‘सरस्वती’ और ‘आयमलर्त्र’ िार्क पबत्रकाओं को पढ़िे की कोलशश करता िा। लेखक के घर र्ें
बहुत सी पुस्तकें भी िीं। उपनििदें और उिके दहंदी अिुवाद, ‘सत्यािम प्रकाश’ िर्क दहंदी लेखक
की भी बहुत सी पस् ु तकें लेखक के घर पर िी। ‘सत्यािम प्रकाश’ के खंडि-र्ंडि वाले अध्याय
लेखक को पूरी तरह सर्झ तो िहीं आते िे, पर उन्हें पढ़िे र्ें लेखक को र्जा आता िा। लेखक
की षप्रय पुस्तक िी स्वार्ी दयािंद की एक जीविी, जो बहुत ही र्िोरं जक शैली र्ें ललखी हुई
िी, अिेक थचत्रों से सज्जी हुई। वे उस सर्य के ददखावों और ढोंगों के षवरुद्ध ऐसा अद्भत

साहस ददखािे वाले अद्भुत व्यस्क्तत्व िे स्जन्हें दबाया ि जा सकता िा। ककतिी ही अद्भुत
घटिाएाँ िीं उिके जीवि की जो लेखक को बहुत प्रभाषवत करती िीं। उि घटिाओं र्ें र्ुख्य िी
-चह
ू े को भगवाि का भोग खाते दे खकर यह र्ाि लेिा कक र्ूनतमयां भगवाि िहीं होतीं, घर
छोडकर भाग जािा, सभी तीिों, जंगलों, गि
ु ाओं, दहर्लशखरों पर साधओ
ु ं के बीच घर्
ू िा और हर
जगह इसकी तलाश करिा कक भगवाि क्या है ? सत्य क्या है ? जो भी सर्ाज-षवरोधी, र्िष्ु य-
षवरोधी र्ल्ट
ू य हैं, प्रिाएाँ हैं , उिका खंडि करिा और अंत र्ें अपिे से हारे हुए सभी को र्ा़ि कर
उसे सहारा दे िा। यह सब घटिाएाँ लेखक के बालर्ि को बहुत रोर्ांथचत करती िी। जब लेखक
यह अब पढ़ कर िक जाता िा तब किर से वह अपिी पबत्रकाओं ‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’ की
पहले से पढ़ी हुई किाएाँ दोबारा पढ़ता िा।

पाठ – र्ााँ स्कूली पढ़ाई पर जोर दे तीं। थचंनतत रहती कक लडका कक्षा की ककताबें िहीं पढ़ता।
पास कैसे होगा! कहीं खद
ु साधु बिकर घर से भाग गया तो? षपता कहते-जीवि र्ें यही पढ़ाई
कार् आएगी, पढ़िे दो। र्ैं स्कूल िहीं भेजा गया िा, शुरू की पढ़ाई के ललए घर पर र्ास्टर रखे
गए िे। षपता िहीं चाहते िे कक िासर्झ उम्र र्ें र्ैं गलत संगनत र्ें पडकर गाली-गलौज सीख,ूाँ
बुरे संस्कार ग्रहण करूाँ अतिः र्ेरा िार् ललखाया गया, जब र्ैं कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर कर
चक
ु ा िा। तीसरे दजे र्ें र्ैं भरती हुआ। उस ददि शार् को षपता उाँ गली पकडकर र्ुझे घुर्ािे ले
गए। लोकिाि की एक दक ु ाि ताजा अिार का शरबत लर््टी के कुल्टहड र्ें षपलाया और लसर पर
हाि रखकर बोले-“वायदा करो कक पाठ्यक्रर् की ककताबें भी इतिे ही ध्याि से पढ़ोगे, र्ााँ की
थचंता लर्टाओगे।” उिका आशीवामद िा या र्ेरा जी-तोड पररश्रर् कक तीसरे , चैिे र्ें र्ेरे अच्छे
िंबर आए और पााँचवें र्ें तो र्ैं िस्टम आया। र्ााँ िे आाँसू भरकर गले लगा ललया, षपता
र्स
ु कुराते रहे , कुछ बोले िहीं। चाँ कू क अंग्रेजी र्ें र्ेरे िंबर सबसे ज्यादा िे, अतिः स्कूल से इिार्
र्ें दो अंग्रेजी ककताबें लर्ली िीं। एक र्ें दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज र्ें बागों और कंु जों र्ें
भटकते हैं और इस बहािे पक्षक्षयों की जानतयों, उिकी बोललयों, उिकी आदतों की जािकारी उन्हें
लर्लती है । दस
ू री ककताब िी ‘ट्रस्टी द रग’ स्जसर्ें पािी के जहाजों की किाएाँ िीं-ककतिे प्रकार
के होते हैं, कौि-कौि-सा र्ाल लादकर लाते हैं, कहााँ से लाते हैं, कहााँ ले जाते हैं, िाषवकों की
स्जंदगी कैसी होती है , कैसे-कैसे द्वीप लर्लते हैं, कहााँ ह्वेल होती है , कहााँ शाकम होती है ।

शब्दार्थ
िासमझ – स्जसे सर्झ ि हो
दजे – कक्षा
कुल्हड़ – पात्र, बतमि
जी-तोड़ – कदठि र्ेहित
कंु ज – घिे पेडों वाला स्िाि

व्याख्या – लेखक अपिे बचपि की बातें बताता हुआ कहता है कक लेखक की र्ााँ लेखक को
स्कूली पढ़ाई करिे पर जोर ददया करती िी। लेखक की र्ााँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करिे पर
जोर इसललए दे ती िी क्योंकक लेखक की र्ााँ को यह थचंनतत लगी रहती िी कक उिका लडका
हर्ेशा पत्र-पबत्रकाओं को पढ़ता रहता है , कक्षा की ककताबें कभी िहीं पढ़ता। कक्षा की ककताबें
िहीं पढ़े गा तो कक्षा र्ें पास कैसे होगा! लेखक स्वार्ी दयािन्द की जीविी पढ़ा करता िा स्जस
कारण लेखक की र्ााँ को यह भी डर िा कक लेखक कहीं खद
ु साधु बिकर घर से भाग ि जाए।
लेखक की र्ााँ को इतिी थचंता करता दे ख लेखक के षपता उिसे कहते िे कक जीवि र्ें यही
पढ़ाई कार् आएगी, इसललए लेखक को पढ़िे दो। लेखक कहता है कक लेखक को स्कूल िहीं
भेजा गया िा, लेखक की शुरू की पढ़ाई के ललए लेखक के घर पर र्ास्टर रखे गए िे। लेखक
की षपता िहीं चाहते िे कक छोटी सी उम्र र्ें जब ककसी चीज की सर्झ िहीं होती उस उम्र र्ें
लेखक ककसी गलत संगनत र्ें पडकर गाली-गलौज ि सीख ले, बुरे संस्कार ि ग्रहण कर ले। यही
कारण िा कक जब लेखक कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर ही पूरी कर चक
ु ा िा तब जाके स्कूल
र्ें लेखक का िार् ललखाया गया। और लेखक तीसरी कक्षा र्ें स्कूल र्ें भरती हुआ। लेखक
कहता है कक स्जस ददि लेखक को स्कूल र्ें भरती ककया गया उस ददि शार् को लेखक के षपता
लेखक की उाँ गली पकडकर लेखक को घुर्ािे ले गए। लोकिाि की एक दक
ु ाि पर लेखक को
ताजा अिार का शरबत लर््टी के बतमि र्ें षपलाया और लेखक के लसर पर हाि रखकर बोले कक
लेखक उिसे वायदा करे कक लेखक अपिे पाठ्यक्रर् की ककताबें भी इतिे ही ध्याि से पढ़े गा
स्जतिे ध्याि से लेखक पबत्रकाओं को पढ़ता है और लेखक अपिी र्ााँ की थचंता को भी लर्टाएगा।
लेखक कहता है कक यह उसके षपता का आशीवामद िा या लेखक की कदठि र्ेहित कक तीसरी
और चौिी कक्षा र्ें लेखक के अच्छे िंबर आए और पााँचवीं कक्षा र्ें तो लेखक प्रिर् आया।
लेखक की र्ेहित को दे खकर लेखक की र्ााँ िे आाँसू भरकर लेखक को गले लगा ललया िा,
परन्तु लेखक के षपता केवल र्ुसकुराते रहे , कुछ बोले िहीं। क्योंकक लेखक को अंग्रेजी र्ें सबसे
ज्यादा िंबर लर्ले िे, अतिः इसललए लेखक को स्कूल से इिार् र्ें दो अंग्रेजी ककताबें लर्ली िीं।
उिर्ें से एक ककताब र्ें दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज र्ें बागों और घिे पेडो के बीच र्ें
भटकते हैं और इस बहािे उि बच्चों को पक्षक्षयों की जानतयों, उिकी बोललयों, उिकी आदतों की
जािकारी लर्लती है । दस
ू री ककताब िी ‘ट्रस्टी द रग’ स्जसर्ें पािी के जहाज़ों की किाएाँ िीं।
उसर्ें बताया गया िा कक जहाज़ ककतिे प्रकार के होते हैं, कौि-कौि-सा र्ाल लादकर लाते हैं,
कहााँ से लाते हैं, कहााँ ले जाते हैं, वाले जहाज़ों पर रहिे िाषवकों की स्जंदगी कैसी होती है , उन्हें
कैसे-कैसे द्वीप लर्लते हैं, सर्ुद्र र्ें कहााँ ह्वेल र्छली होती है और कहााँ शाकम होती है ।

पाठ – इि दो ककताबों िे एक ियी दनु िया का द्वार र्ेरे ललए खोल ददया। पक्षक्षयों से भरा
आकाश और रहस्यों से भरा सर्ुद्र। षपता िे अलर्ारी के एक खािे से अपिी चीजें हटाकर जगह
बिाई और र्ेरी दोिों ककताबें उस खािे र्ें रखकर कहा-“आज से यह खािा तुम्हारी अपिी
ककताबों का। यह तुम्हारी अपिी लाइब्रेरी है ।”
यहााँ से आरं भ हुई उस बच्चे की लाइब्रेरी। बच्चा ककशोर हुआ, स्कूल से काॅलेज, काॅलेज से
यूनिवलसमटी गया, डाॅक्टरे ट हालसल की, यूनिवलसमटी र्ें अध्यापि ककया, अध्यापि छोडकर
इलाहाबाद से बंबई आया, संपादि ककया। उसी अिुपात र्ें अपिी लाइब्रेरी का षवस्तार करता
गया।

शब्दार्थ
आरं भ – शरू

अध्यापि – पढ़ािा
संपादि – अच्छी तरह से पूरा करिा, प्रस्तुत करिा

व्याख्या – लेखक कहता है कक स्कूल से इिार् र्ें लर्ली उि अंग्रेजी की दो ककताबों िे लेखक के
ललए एक ियी दनु िया का द्वार ललए खोल ददया िा। लेखक के पास अब उस दनु िया र्ें पक्षक्षयों
से भरा आकाश िा और रहस्यों से भरा सर्ुद्र िा। लेखक कहता है कक लेखक के षपता िे उिकी
अलर्ारी के एक खािे से अपिी चीजें हटाकर जगह बिाई िी और लेखक की वे दोिों ककताबें
उस खािे र्ें रखकर उन्होंिे लेखक से कहा िा कक आज से यह खािा तुम्हारी अपिी ककताबों
का है । अब यह तम्
ु हारी अपिी लाइब्रेरी है । लेखक कहता है कक यहीं से लेखक की लाइब्रेरी शरू

हुई िी जो आज बढ़ते-बढ़ते एक बहुत बडे कर्रे र्ें बदल गई िी। लेखक बच्चे से ककशोर
अवस्िा र्ें आया, स्कूल से काॅलेज, काॅलेज से यनू िवलसमटी गया, डाॅक्टरे ट हालसल की,
यनू िवलसमटी र्ें बच्चों को पढ़ािे का कार् ककया, पढ़िा छोडकर इलाहाबाद से बंबई आया, लेखों
को अच्छी तरह से परू ा करिे का कार् ककया। और उसी अिप
ु ात र्ें अिामत दो-दो करके अपिी
लाइब्रेरी का षवस्तार करता गया। अपिी लाइब्रेरी को बढ़ाता चला गया।

पाठ – पर आप पूछ सकते हैं कक ककताबें पढ़िे का शौक तो ठीक, ककताबें इक्ठी करिे की
सिक क्यों सवार हुई? उसका कारण भी बचपि का एक अिुभव है । इलाहाबाद भारत के प्रख्यात
लशक्षा-केंद्रों र्ें एक रहा है । ईस्ट इंडडया द्वारा स्िाषपत पस्ब्लक लाइब्रेरी से लेकर र्हार्िा
र्दिर्ोहि र्ालवीय द्वारा स्िाषपत भारती भवि तक। षवश्वषवद्यालय की लाइब्रेरी तिा अिेक
काॅलेजों की लाइब्रेररयााँ तो हैं ही, लगभग हर र्ुहल्टले र्ें एक अलग लाइब्रेरी। वहााँ हाईकोटम है ,
अतिः वकीलों की निजी लाइब्रेररयााँ, अध्यापकों की निजी लाइब्रेररयााँ। अपिी लाइब्रेरी वैसी कभी
होगी, यह तो स्वपि र्ें भी िहीं सोच सकता िा, पर अपिे र्ुहल्टले र्ें एक लाइब्रेरी िी-‘हरर
भवि’। स्कूल से छुटी लर्ली कक र्ैं उसर्ें जाकर जर् जाता िा। षपता ददवंगत हो चक
ु े िे,
लाइब्रेरी का चंदा चुकािे का पैसा िहीं िा, अतिः वहीं बैठकर ककताबें निकलवाकर पढ़ता रहता
िा। उि ददिों दहंदी र्ें षवश्व सादहत्य षवशेि कर उपन्यासों के खब
ू अिुवाद हो रहे िे। र्ुझे उि
अिदू दत उपन्यासों को पढ़कर बडा सख
ु लर्लता िा। अपिे छोटे -से ‘हरर भवि’ र्ें खब
ू उपन्यास
िे। वहीं पररचय हुआ बंककर्चंद्र चटोपाध्याय की ‘दगु ेशिंददिी’, ‘कपाल कुण्डला’ और ‘आिंदर्ठ’
से टालस्टाय की ‘अन्िा करे नििा’, षवक्टर ह्यग
ू ो का ‘पेररस का कुबडा’ (हं चबैक ऑि िात्रोदार्),
गोकी की ‘र्दर’, अलेक्जंडर कुषप्रि का ‘गाडीवालों का कटरा’ (यार्ा द षपट) और सबसे
र्िोरं जक सवाम-रीज़ का ‘षवथचत्र वीर’ (यािी डाॅि स्क्वक्ज़ोट)। दहंदी के ही र्ाध्यर् से सारी
दनु िया के किा-पात्रों से र्ल
ु ाकात करिा ककतिा आकिमक िा! लाइब्रेरी खल
ु ते ही पहुाँच जाता और
जब शुक्ल जी लाइब्रेररयि कहते कक बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करिा है , तब बडी
अनिच्छा से उठता। स्जस ददि कोई उपन्यास अधूरा छूट जाता, उस ददि र्ि र्ें कसक होती कक
काश, इतिे पैसे होते कक सदस्य बिकर ककताब इश्यू करा लाता, या काश, इस ककताब को
खरीद पाता तो घर र्ें रखता, एक बार पढ़ता, दो बार पढ़ता, बार-बार पढ़ता पर जािता िा कक
यह सपिा ही रहे गा, भला कैसे पूरा हो पाएगा!

शब्दार्थ
सिक – पागलपि
प्रख्यात – जािे-र्ािे, प्रलसद्ध
निजी – अपिी
ढदवंगत – स्वगीय
अिढू दत – अिव
ु ाद ककए हुए
अनिच्छा – बबिा इच्छा के
कसक – रुक-रुक कर होिे वाली पीडा

व्याख्या – लेखक अपिी बचपि की बातों को बताता हुआ कहता है कक हर् लोग लेखक से यह
पूछ सकते हैं कक लेखक को ककताबें पढ़िे का शौक तो िा यह र्ाि लेते हैं पर ककताबें इक्ठी
करिे का पागलपि क्यों सवार हुआ? इसका कारण भी लेखक अपिे बचपि के एक अिुभव को
बताता है । लेखक बताता है कक इलाहाबाद भारत के प्रलसद्ध लशक्षा-केंद्रों र्ें एक रहा है ।
इलाहाबाद र्ें ईस्ट इंडडया द्वारा स्िाषपत की गई पस्ब्लक लाइब्रेरी से लेकर र्हार्िा र्दिर्ोहि
र्ालवीय द्वारा स्िाषपत भारती भवि तक है । इलाहाबाद र्ें षवश्वषवद्यालय की लाइब्रेरी तिा
अिेक काॅलेजों की लाइब्रेररयााँ तो हैं ही, इसके साि ही इलाहाबाद के लगभग हर र्ुहल्टले र्ें एक
अलग लाइब्रेरी है । इलाहाबाद र्ें हाईकोटम है , अतिः वकीलों की अपिी अलग से लाइब्रेररयााँ हैं,
अध्यापकों की अपिी अलग से लाइब्रेररयााँ हैं। उि सभी लाइब्रेररयों को दे ख कर लेखक भी सोचा
करता िा कक क्या उसकी भी कभी वैसी लाइब्रेरी होगी?, यह सब लेखक सपिे र्ें भी िहीं सोच
सकता िा, पर लेखक के र्ुहल्टले र्ें एक लाइब्रेरी िी स्जस्र् िार् ‘हरर भवि’ िा। लेखक की
जैसे ही स्कूल से छुटी होती िी कक लेखक लाइब्रेरी र्ें चला जाता िा। लेखक कहता है कक इस
सर्य तक लेखक के षपता स्वगीय हो चक
ु े िे, इसललए लेखक के पास लाइब्रेरी का चंदा चक
ु ािे
के ललए भी पैसा िहीं िा, इसी कारण लेखक वहीं लाइब्रेरी र्ें बैठकर ककताबें निकलवाकर पढ़ता
रहता िा। उि ददिों दहंदी र्ें षवश्व सादहत्य षवशेिकर उपन्यासों के खब
ू अिव
ु ाद हो रहे िे।
लेखक को उि अिव
ु ाद ककए गए उपन्यासों को पढ़कर बडा सख
ु लर्लता िा। लेखक कहता है कक
उिके र्ह
ु ल्टले के उस छोटे -से ‘हरर भवि’ र्ें खब ू सारे उपन्यास िे। वहीं पर लेखक िे बहुत से
उपन्यास पढ़े स्जसर्ें र्ुख्य हैं-बंककर्चंद्र चटोपाध्याय की ‘दग
ु ेशिंददिी’, ‘कपाल कुण्डला’ और
‘आिंदर्ठ’ से टालस्टाय की ‘अन्िा करे नििा’, षवक्टर ह्यूगो का ‘पेररस का कुबडा’ (हं चबैक ऑि
िात्रोदार्), गोकी की ‘र्दर’, अलेक्जंडर कुषप्रि का ‘गाडीवालों का कटरा’ (यार्ा द षपट) और
सबसे र्िोरं जक सवाम-रीज़ का ‘षवथचत्र वीर’ (यािी डाॅि स्क्वक्ज़ोट)। लेखक कहता है कक उन्हें
दहंदी के ही र्ाध्यर् से सारी दनु िया के किा-पात्रों को जाििा बहुत अथधक आकिमक लगता िा।
जैसे ही लाइब्रेरी खल
ु ती िी लेखक लाइब्रेरी पहुाँच जाता िा और जब शुक्ल जी जो उस लाइब्रेरी
के लाइब्रेररयि िे वे लेखक से कहते कक बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करिा है , तब लेखक
बबिा इच्छा के ही वहां से उठता िा। जब कभी ककसी ददि लेखक से कोई उपन्यास अधरू ा छूट
जाता िा, तो उस ददि लेखक के र्ि र्ें एक तरह का रुक-रुक कर ददम होता िा और वह
सोचता िा कक काश, उसके पास इतिे पैसे होते कक वह लाइब्रेरी का सदस्य बिकर ककताब को
इश्यू करा लाता, या काश, वह इस ककताब को खरीद पाता तो घर र्ें रखता, एक बार पढ़ता, दो
बार पढ़ता, बार-बार पढ़ता। पर लेखक जािता िा कक यह सपिा ही रहे गा, भला यह कैसे पूरा
हो पाएगा। क्योंकक लेखक के पास इतिे पैसे िहीं िे और अभी उसके पास कोई साधि भी िहीं
िा स्जससे वह पैसे कर्ा सके।

पाठ – षपता के दे हावसाि के बाद तो आथिमक संकट इतिा बढ़ गया कक पूनछए र्त। िीस
जुटािा तक र्ुस्श्कल िा। अपिे शौक की ककताबें खरीदिा तो संभव ही िहीं िा। एक ट्रस्ट से
योग्य पर असहाय छात्रों को पाठ्यपुस्तकें खरीदिे के ललए कुछ रुपये सत्र के आरं भ र्ें लर्लते
िे। उिसे प्रर्ुख पाठ्यपुस्तकें ‘सेकंड-हैंड’ खरीदता िा, बाकी अपिे सहपादठयों से लेकर पढ़ता
और िो्स बिा लेता। उि ददिों परीक्षा के बाद छात्र अपिी पुरािी पाठ्यपुस्तकें आधे दार् र्ें
बेच दे ते और उसर्ें आिे वाले िए लेककि उसे षवपन्ि छात्र खरीद लेते। इसी तरह कार् चलता।

शब्दार्थ
दे हावसाि – दे हांत, र्त्ृ यु
आर्र्थक – रुपये-पैसे सम्बंथधत
असहाय – बेसहारा
ववपन्ि – गरीब

व्याख्या – लेखक कहता है कक लेखक के षपता की र्त्ृ यु के बाद तो लेखक के पररवार पर रुपये-
पैसे से सम्बंथधत इतिा अथधक संकट बढ़ गया िा कक लेखक को िीस जुटािा तक र्स्ु श्कल हो
गया िा। अपिे शौक की ककताबें खरीदिा तो लेखक के ललए उस सर्य संभव ही िहीं िा। एक
ट्रस्ट की ओर से बेसहारा छात्रों को पाठ्यपस्
ु तकें खरीदिे के ललए सत्र के आरं भ र्ें कुछ रुपये
लर्लते िे। लेखक उि से केवल ‘सेकंड-हैंड’ प्रर्ख
ु पाठ्यपस्
ु तकें खरीदता िा, बाकी अपिे
सहपादठयों से लेकर पढ़ता और िो्स बिा लेता िा। लेखक बताता है कक उि ददिों परीक्षा के
बाद छात्र अपिी पुरािी पाठ्यपुस्तकें आधे दार् र्ें बेच दे ते और उन्हीं र्ें से आिे वाले िए
गरीब छात्र अपिी जरुरत की पाठ्यपुस्तकों को खरीद लेते िे। लेखक कहता है कक उि ददिों
इसी तरह कार् चलता िा।

पाठ – लेककि किर भी र्ैंिे जीवि की पहली सादहस्त्यक पुस्तक अपिे पैसों से कैसे खरीदी, यह
आज तक याद है । उस साल इंटरर्ीडडएट पास ककया िा। पुरािी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की
पाठ्यपुस्तकें लेिे एक सेकंड-हैंड बुकशाॅप पर गया। उस बार जािे कैसे पाठ्यपुस्तकें खरीदकर
भी दो रुपये बच गए िे। सार्िे के लसिेर्ाघर र्ें ‘दे वदास’ लगा िा। न्यू थिएटसम वाला। बहुत
चचाम िी उसकी। लेककि र्ेरी र्ााँ को लसिेर्ा दे खिा बबलकुल िापसंद िा। उसी से बच्चे बबगडते
हैं। लेककि उसके गािे लसिेर्ागह
ृ के बाहर बजते िे। उसर्ें सहगल का एक गािा िा-‘दख
ु वेददि
अब बीतत िाहीं’। उसे अकसर गि
ु गि
ु ाता रहता िा। कभी-कभी गि
ु गि
ु ाते आाँखों र्ें आाँसू आ
जाते िे जािे क्यों! एक ददि र्ााँ िे सि
ु ा। र्ााँ का ददल तो आखखर र्ााँ का ददल! एक ददि बोली-
“दिःु ख के ददि बीत जाएाँगे बेटा, ददल इतिा छोटा क्यों करता है ? धीरज से कार् ले!” जब उन्हें
र्ालूर् हुआ कक यह तो किल्टर् ‘दे वदास’ का गािा है , तो लसिेर्ा की घोर षवरोधी र्ााँ िे कहा-
“अपिा र्ि क्यों र्ारता है , जाकर षपक्चर दे ख आ। पैसे र्ैं दे दाँ ग
ू ी।” र्ैंिे र्ााँ को बताया कक
“ककताबें बेचकर दो रुपये र्ेरे पास बचे हैं।” वे दो रुपये लेकर र्ााँ की सहर्नत से क़िल्टर् दे खिे
गया। पहला शो छूटिे र्ें दे र िी, पास र्ें अपिी पररथचत ककताब की दक
ु ाि िी। वहीं चक्कर
लगािे लगा। सहसा दे खा, काउं टर पर एक पुस्तक रखी है -‘दे वदास’। लेखक शरत्चंद्र
च्टोपाध्याय। दार् केवल एक रुपया। र्ैंिे पुस्तक उठाकर उलटी-पलटी। तो पुस्तक-षवक्रेता
बोला-“तुर् षवद्यािी हो। यहीं अपिी पुरािी ककताबें बेचते हो। हर्ारे पुरािे ग्राहक हो। तुर्से
अपिा कर्ीशि िहीं लाँ ग
ू ा। केवल दस आिे र्ें यह ककताब दे दाँ ग
ू ा”। र्ेरा र्ि पलट गया। कौि
दे खे डेढ़ रुपये र्ें षपक्चर? दस आिे र्ें ‘दे वदास’ खरीदी। जल्टदी-जल्टदी घर लौट आया, और दो
रुपये र्ें से बचे एक रुपया छिः आिा र्ााँ के हाि र्ें रख ददए।

शब्दार्थ
इंटरमीडडएट – र्ाध्यलर्क
िापसंद – पसंद ि होिा
सहसा – अचािक
दाम – र्ूल्टय

व्याख्या – लेखक कहता है कक रुपये-पैसे की इतिी तंगी होिे के बाद भी लेखक िे अपिे जीवि
की पहली सादहस्त्यक पस्
ु तक अपिे पैसों से कैसे खरीदी, यह आज तक लेखक को याद है ।
लेखक अपिी याद को हर्ें बताता हुआ कहता है कक उस साल लेखक िे अपिी र्ाध्यलर्क की
परीक्षा को पास ककया िा। लेखक पुरािी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें लेिे एक
सेकंड-हैंड बुकशाॅप पर गया। इस बार ि जािे कैसे सारी पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रुपये
बच गए िे। लेखक िे दे खा की सार्िे के लसिेर्ाघर र्ें ‘दे वदास’ लगा िा। न्यू थिएटसम वाला।
उि ददिों उसकी बहुत चचाम िी। लेककि लेखक की र्ााँ को लसिेर्ा दे खिा बबलकुल पसंद िहीं
िा। लेखक की र्ााँ को लगता िा कक लसिेर्ा दे खिे से ही बच्चे बबगडते हैं। लेककि उसके गािे
लसिेर्ागह
ृ के बाहर बजते िे। उसर्ें सहगल का एक गािा िा-‘दख
ु वेददि अब बीतत िाहीं’। इस
गािे को लेखक अकसर गुिगुिाता रहता िा। कभी-कभी गुिगुिाते-गुिगि
ु ाते लेखक की आाँखों र्ें
आाँसू आ जाते िे।ऐसा क्यों होता िा यह लेखक को भी सर्झ िहीं आता िा। एक ददि इस
गािे को जब लेखक गुिगुिा रहा िा और उसकी आंखों से आसाँू आ गए िे तो लेखक की र्ााँ िे
लेखक को दे ख ललया िा। लेखक कहता है कक र्ााँ का ददल तो आखखर र्ााँ का ददल होता है । एक
ददि वह लेखक से बोली कक दिःु ख के ददि बीत जाएाँगे बेटा, ददल इतिा छोटा क्यों करता है ?
धीरज से कार् ले। जब उन्हें र्ालूर् हुआ कक यह तो किल्टर् ‘दे वदास’ का गािा है , तो लेखक की
लसिेर्ा की घोर षवरोधी र्ााँ िे लेखक से कहा कक अपिा र्ि क्यों र्ारता है , जाकर षपक्चर दे ख
आ। पैसे र्ैं दे दाँ ग
ू ी। लेखक िे र्ााँ को बताया कक ककताबें बेचकर दो रुपये लेखक के पास बचे
हैं। वे दो रुपये लेकर र्ााँ की सहर्नत से लेखक क़िल्टर् दे खिे गया। लेखक बताता है कक पहला
शो छूटिे र्ें अभी दे र िी, पास र्ें लेखक की पररथचत ककताब की दक
ु ाि िी। लेखक वहीं उस
दक
ू ाि के आस-पास चक्कर लगािे लगा। अचािक लेखक िे दे खा कक काउं टर पर एक पुस्तक
रखी है -‘दे वदास’। स्जसके लेखक शरत्चंद्र च्टोपाध्याय हैं। उस ककताब का र्ूल्टय केवल एक
रुपया िा। लेखक िे पुस्तक उठाकर उलटी-पलटी। तो पुस्तक-षवक्रेता को पहचािते हुए बोला कक
लेखक तो एक षवद्यािी है । लेखक उसी दक
ू ाि पर अपिी पुरािी ककताबें बेचता है । लेखक उसका
पुरािा गाहक है । वह दक
ु ािदार लेखक से बोलै कक वह लेखक से कोई कर्ीशि िहीं लेगा। वह
केवल दस आिे र्ें वह ककताब लेखक को दे दे दा। यह सुिकर लेखक का र्ि भी पलट गया।
लेखक िे सोचा कक कौि डेढ़ रुपये र्ें षपक्चर दे ख कर डेढ़ रुपये खराब करे गा? लेखक िे दस
आिे र्ें ‘दे वदास’ ककताब खरीदी और जल्टदी-जल्टदी घर लौट आया, और दो रुपये र्ें से बचे एक
रुपया छिः आिा अपिी र्ााँ के हाि र्ें रख ददए।

पाठ – “अरे तू लौट कैसे आया? षपक्चर िहीं दे खी?” र्ााँ िे पूछा।
“िहीं र्ााँ! क़िल्टर् िहीं दे खी, यह ककताब ले आया दे खो।”
र्ााँ की आाँखों र्ें आाँसू आ गए। खश
ु ी के िे या दख
ु के, यह िहीं र्ालूर्। वह र्ेरे अपिे पैसों से
खरीदी, र्ेरी अपिी निजी लाइब्रेरी की पहली ककताब िी। आज जब अपिे पुस्तक संकलि पर
िज़र डालता हूाँ स्जसर्ें दहंदी-अंग्रेजी के उपन्यास, िाटक, किा-संकलि, जीवनियााँ, संस्र्रण,
इनतहास, कला, परु ातत्व, राजिीनत की हजारहा पस् ु तकें हैं, तब ककतिी लशद्दत से याद आती है
अपिी वह पहली पुस्तक की खरीदारी! रे िर र्ाररया ररल्टके, स्टीिेि स््वंग, र्ोपााँसा, चेखव,
टालस्टाय, दास्तोवस्की, र्ायकोवस्की, सोल्टजेनिस्स्टि, स्टीिेि स्पेण्डर, आडेि एज़रा पाउं ड,
यूजीि ओ िील, ज्यााँ पाल सात्र, ऑलबेयर कार्ू, आयोिेस्को के साि षपकासो, ब्रूगेल, रे म्ब्रााँ,
हे ब्बर, हुसेि तिा दहंदी र्ें कबीर, तुलसी, सूर, रसखाि, जायसी, प्रेर्चंद, पंत, निराला, र्हादे वी
और जािे ककतिे लेखकों, थचंतकों की इि कृनतयों के बीच अपिे को ककतिा भरा-भरा र्हसूस
करता हूाँ।

शब्दार्थ
संकलि – इक्ठे करिा
हजारहा – हजारों से अथधक
मशद्दत – कदठिाई

व्याख्या – लेखक को जल्टदी घर आता दे खकर लेखक की र्ााँ िे लेखक से पूछा कक अरे तू लौट
कैसे आया? षपक्चर िहीं दे खी? इसका उत्तर दे ते हुए लेखक िे अपिी र्ााँ से कहा कक िहीं र्ााँ!
क़िल्टर् िहीं दे खी, बस्ल्टक वह “दे वदास” िार्क ककताब ले आया है । ऐसा बोल कर लेखक िे वह
ककताब अपिी र्ााँ को ददखाई। लेखक कहता है कक उस ककताब को दे खकर लेखक की र्ााँ के
आाँखों र्ें आाँसू आ गए। लेखक िहीं जािता कक वह आाँसू खश
ु ी के िे या दख
ु के िे। लेखक यहााँ
बताता है कक वह लेखक के अपिे पैसों से खरीदी लेखक की अपिी निजी लाइब्रेरी की पहली
ककताब िी। लेखक कहता है कक आज जब वह अपिी इक्ठी की गई पुस्तकों पर िज़र डालता
है , स्जसर्ें दहंदी-अंग्रेजी के उपन्यास, िाटक, किा-संकलि, जीवनियााँ, संस्र्रण, इनतहास, कला,
पुरातत्त्व, राजिीनत की हजारों से अथधक पुस्तकें हैं, तब लेखक सोचता हुआ याद करता है कक
ककतिी कदठिाई से उसिे अपिी वह पहली पुस्तक की खरीदारी की िी। लेखक बताता है कक
रे िर र्ाररया ररल्टके, स्टीिेि स््वंग, र्ोपााँसा, चेखव, टालस्टाय, दास्तोवस्की, र्ायकोवस्की,
सोल्टजेनिस्स्टि, स्टीिेि स्पेण्डर, आडेि एज़रा पाउं ड, यूजीि ओ िील, ज्यााँ पाल सात्र, ऑलबेयर
कार्,ू आयोिेस्को के साि षपकासो, ब्रग
ू ेल, रे म्ब्रााँ, हे ब्बर, हुसेि तिा दहंदी र्ें कबीर, तल
ु सी, सरू ,
रसखाि, जायसी, प्रेर्चंद, पंत, निराला, र्हादे वी और जािे ककतिे लेखकों, थचंतकों की इि
कृनतयों के बीच अपिे को वह ककतिा भरा-भरा र्हसस
ू करता हूाँ। यहााँ लेखक कहिा चाहता है
कक वह अपिे द्वारा इक्ठी की गई इि सभी लेखकों की पस्
ु तकों के बीच अपिे आपको कभी
भी अकेला र्हसस
ू िहीं करता तभी लेखक िे अपिे अंनतर् सर्य र्ें भी लाइब्रेरी र्ें ही रहिे का
निश्चय ककया िा।

पाठ – र्राठी के वररष्ठ कषव षवंदा करं दीकर िे ककतिा सच कहा िा उस ददि! र्ेरा ऑपरे शि
सिल होिे के बाद वे दे खिे आये िे, बोले-“भारती, ये सैकडों र्हापुरुि जो पुस्तक-रूप र्ें तुम्हारे
चारों ओर षवराजर्ाि हैं, इन्हीं के आशीवामद से तुर् बचे हो। इन्होंिे तुम्हें पुिजीवि ददया है ।”
र्ैंिे र्ि-ही-र्ि प्रणार् ककया षवंदा को भी, इि र्हापुरुिों को भी।

शब्दार्थ
वररष्ठ – बडे
ववराजमाि – उपस्स्ित
पुिजीवि – र्र कर दब
ु ारा जीषवत होिा

व्याख्या – लेखक कहता है कक जब लेखक का ऑपरे शि सिल हो गया िा तब र्राठी के एक


बडे कषव षवंदा करं दीकर लेखक से उस ददि लर्लिे आये िे। उन्होंिे लेखक से कहा िा कक
भारती, ये सैकडों र्हापरु
ु ि जो पस्
ु तक-रूप र्ें तम्
ु हारे चारों ओर उपस्स्ित हैं, इन्हीं के आशीवामद
से तर्
ु बचे हो। इन्होंिे तम्
ु हें दोबारा जीवि ददया है । लेखक िे र्ि-ही-र्ि सभी को प्रणार्
ककया-षवंदा को भी, इि र्हापरु
ु िों को भी। यहााँ लेखक भी र्ािता िा कक उसके द्वारा इकठ्ठी
की गई पुस्तकों र्ें उसकी जाि बसती है जैसे तोते र्ें राजा के प्राण बसते िे।
प्रश्ि अभ्यास

निम्िमलखखत प्रश्िों के उत्तर दीज्जए –


प्रश्ि 1 – लेखक का ऑपरे शि करिे से सजथि क्यों ढहचक रहे र्े?

उत्तर – लेखक को तीि-तीि ज़बरदस्त हाटम -अटै क आए िे और वो भी एक के बाद एक। उिर्ें से


एक तो इतिा खतरिाक िा कक उस सर्य लेखक की िब्ज बंद, सााँस बंद और यहााँ तक कक
धडकि भी बंद पड गई िी। उस सर्य डॉक्टरों िे यह घोषित कर ददया िा कक अब लेखक के
प्राण िहीं रहे । उि सभी डॉक्टरों र्ें से एक डॉक्टर बोजेस िे स्जन्होंिे किर भी दहम्र्त िहीं हारी
िी। उन्होंिे लेखक को िौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स ददए। यह एक बहुत ही भयािक प्रयोग िा।
उिका प्रयोग सिल रहा। लेखक के प्राण तो लौटे , पर इस प्रयोग र्ें लेखक का साठ प्रनतशत
हाटम सदा के ललए िष्ट हो गया। अब लेखक का केवल चालीस प्रनतशत हाटम ही बचा िा जो
कार् कर रहा िा। उस चालीस प्रनतशत कार् करिे वाले हाटम र्ें भी तीि रुकावटें िी। स्जस
कारण लेखक का ओपेि हाटम ऑपरे शि तो करिा ही होगा पर सजमि दहचक रहे हैं। क्योंकक
लेखक का केवल चालीस प्रनतशत हाटम ही कार् कर रहा िा। सजमि को डर िा कक अगर
ऑपरे शि कर भी ददया तो हो सकता है कक ऑपरे शि के बाद ि हाटम ररवाइव ही ि हो।

प्रश्ि 2 – ‘ककताबों वाले कमरे ’ में रहिे के पीछे लेखक के मि में क्या भाविा र्ी?

उत्तर – लेखक िे बहुत-सी ककताबें जर्ा कर रखी िीं। ककताबें बचपि से लेखक की सुख-दख
ु की
सािी िीं। दखु के सर्य र्

प्रश्ि 3 – लेखक के घर कौि-कौि-सी पत्रिकाएँ आती र्ीं?

उत्तर – लेखक के घर र्ें हर-रोज पत्र-पबत्रकाएाँ आती रहती िीं। इि पत्र-पबत्रकाओं र्ें ‘आयमलर्त्र
साप्तादहक’, ‘वेदोदर्’, ‘सरस्वती’, ‘गदृ हणी’ िी और दो बाल पबत्रकाएाँ खास तौर पर लेखक के
ललए आती िी। स्जिका िार् िा-‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’।

प्रश्ि 4 – लेखक को ककताबें प़ििे और सहे जिे का शौक कैसे लगा?

उत्तर – लेखक के षपता नियलर्त रुप से पत्र-पबत्रकाएाँ र्ाँगाते िे। लेखक के ललए खासतौर पर दो
बाल पबत्रकाएाँ ‘बालसखा’ और ‘चर्चर्’ आती िीं। इिर्ें राजकुर्ारों, दािवों, पररयों आदद की
कहानियााँ और रे खा-थचत्र होते िे। इससे लेखक को पबत्रकाएाँ पढ़िे का शौक लग गया। जब वह
पााँचवीं कक्षा र्ें प्रिर् आया, तो उसे इिार् स्वरूप दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें प्राप्त हुईं। लेखक के
षपता िे उिकी अलर्ारी के एक खािे से अपिी चीजें हटाकर जगह बिाई िी और लेखक की वे
दोिों ककताबें उस खािे र्ें रखकर उन्होंिे लेखक से कहा िा कक आज से यह खािा तुम्हारी
अपिी ककताबों का है । अब यह तुम्हारी अपिी लाइब्रेरी है । लेखक कहता है कक यहीं से लेखक
की लाइब्रेरी शुरू हुई िी जो आज बढ़ते-बढ़ते एक बहुत बडे कर्रे र्ें बदल गई िी। षपताजी िे
उि ककताबों को सहे जकर रखिे की प्रेरणा दी। यहााँ से लेखक का निजी पुस्तकालय बििा आरं भ
हुआ।

प्रश्ि 5 – माँ लेखक की स्कूली प़िाई को लेकर क्यों र्चंनतत रहती र्ी?

उत्तर – लेखक की र्ााँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करिे पर जोर ददया करती िी। लेखक की र्ााँ
लेखक को स्कूली पढ़ाई करिे पर जोर इसललए दे ती िी क्योंकक लेखक की र्ााँ को यह थचंनतत
लगी रहतीं िी कक उिका लडका हर्ेशा पत्र-पबत्रकाओं को पढ़ता रहता है , कक्षा की ककताबें कभी
िहीं पढ़ता। कक्षा की ककताबें िहीं पढ़े गा तो कक्षा र्ें पास कैसे होगा! लेखक स्वार्ी दयािन्द की
जीविी पढ़ा करता िा स्जस कारण लेखक की र्ााँ को यह भी डर िा कक लेखक कहीं खद
ु साधु
बिकर घर से भाग ि जाए।

प्रश्ि 6 – स्कूल से इिाम में ममली अंग्रेजी की दोिों पुस्तकों िे ककस प्रकार लेखक के मलए ियी
दनु िया के द्वार खोल ढदए?

उत्तर – लेखक पााँचवीं कक्षा र्ें प्रिर् आया िा। उसे स्कूल से इिार् र्ें दो अंग्रेज़ी की ककताबें
लर्ली िीं। दोिों ज्ञािवधमक पुस्तकें िीं। उिर्ें से एक ककताब र्ें दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज
र्ें बागों और घिे पेडों के बीच र्ें भटकते हैं और इस बहािे उि बच्चों को पक्षक्षयों की जानतयों,
उिकी बोललयों, उिकी आदतों की जािकारी लर्लती है । दस
ू री ककताब िी ‘ट्रस्टी द रग’ स्जसर्ें
पािी के जहाजों की किाएाँ िीं। उसर्ें बताया गया िा कक जहाज ककतिे प्रकार के होते हैं, कौि-
कौि-सा र्ाल लादकर लाते हैं, कहााँ से लाते हैं, कहााँ ले जाते हैं, वाले जहाजों पर रहिे िाषवकों
की स्जंदगी कैसी होती है , उन्हें कैसे-कैसे द्वीप लर्लते हैं, सर्ुद्र र्ें कहााँ ह्वेल र्छली होती है
और कहााँ शाकम होती है । इि अंग्रेजी की दो ककताबों िे लेखक के ललए एक ियी दनु िया का द्वार
ललए खोल ददया िा। लेखक के पास अब उस दनु िया र्ें पक्षक्षयों से भरा आकाश िा और रहस्यों
से भरा सर्ुद्र िा।

प्रश्ि 7 -‘आज से यह खािा तुम्हारी अपिी ककताबों का। यह तुम्हारी लाइब्रेरी है ’ − वपता के इस
कर्ि से लेखक को क्या प्रेरणा ममली?
उत्तर – षपताजी के इस किि िे लेखक को पुस्तकें जर्ा करिे की प्रेरणा दी तिा ककताबों के
प्रनत उसका लगाव बढ़ाया। अभी तक लेखक र्िोरं जि के ललए ककताबें पढ़ता िा परन्तु षपताजी
के इस किि िे उसके ज्ञाि प्रास्प्त के र्ागम को बढ़ावा ददया। आगे चलकर उसिे अिथगित
पुस्तकें जर्ा करके अपिा स्वयं का पुस्तकालय बिा डाला। अब उसके पास ज्ञाि का अतुलिीय
भंडार िा।

प्रश्ि 8 – लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदिे की घटिा का वणथि अपिे शब्दों में कीज्जए।

उत्तर – लेखक आथिमक तंगी के कारण परु ािी ककताबें बेचकर िई ककताबें लेकर पडता िा।
इंटरर्ीडडएट पास करिे पर जब उसिे परु ािी ककताबें बेचकर बी.ए. की सैकंड-हैंड बक
ु शॉप से
ककताबें खरीदीं, तो उसके पास दो रुपये बच गए। उि ददिों दे वदास किल्टर् लगी हुई िी। उसे
दे खिे का लेखक का बहुत र्ि िा। र्ााँ को किल्टर्ें दे खिा पसंद िहीं िा। अतिः लेखक वह किल्टर्
दे खिे िहीं गया। लेखक इस किल्टर् के गािे को अकसर गि
ु गि
ु ाता रहता िा। एक ददि र्ााँ िे
लेखक को वह गािा गि
ु गि
ु ाते सि
ु ा। पत्र
ु की पीडा िे उन्हें व्याकुल कर ददया। र्ााँ बेटे की इच्छा
भााँप गई और उन्होंिे लेखक को ‘दे वदास’ किल्टर् दे खिे की अिर्
ु नत दे दी। र्ााँ की अिर्
ु नत
लर्लिे पर लेखक किल्टर् दे खिे चल पडा। पहला शो छूटिे र्ें अभी दे र िी, पास र्ें लेखक की
पररथचत ककताब की दक
ु ाि िी। लेखक वहीं उस दक
ु ाि के आस-पास चक्कर लगािे लगा।
अचािक लेखक िे दे खा कक काउं टर पर एक पुस्तक रखी है -‘दे वदास’। स्जसके लेखक शरत्चंद्र
च्टोपाध्याय हैं। उस ककताब का र्ूल्टय केवल एक रुपया िा। लेखक िे पुस्तक उठाकर उलटी-
पलटी। तो पुस्तक-षवक्रेता को पहचािते हुए बोला कक लेखक तो एक षवद्यािी है । लेखक उसी
दक
ु ाि पर अपिी पुरािी ककताबें बेचता है । लेखक उसका पुरािा ग्राहक है । वह दक
ु ािदार लेखक
से बोले कक वह लेखक से कोई कर्ीशि िहीं लेगा। वह केवल दस आिे र्ें वह ककताब लेखक
को दे दे दा। यह सुिकर लेखक का र्ि भी पलट गया। लेखक िे सोचा कक कौि डेढ़ रुपये र्ें
षपक्चर दे ख कर डेढ़ रुपये खराब करे गा? लेखक िे दस आिे र्ें ‘दे वदास’ ककताब खरीदी और
जल्टदी-जल्टदी घर लौट आया। वह लेखक के अपिे पैसों से खरीदी लेखक की अपिी निजी
लाइब्रेरी की पहली ककताब िी। इस प्रकार लेखक िे अपिी पहली पुस्तक खरीदी।

प्रश्ि 9 – ‘इि कृनतयों के बीच अपिे को ककतिा भरा-भरा महसूस करता हूँ’ − का आशय स्पष्ट
कीज्जए।

उत्तर – ककताबें लेखक के सुख-दख


ु की सािी िीं। कई बार दख
ु के क्षणों र्ें इि ककताबों िे लेखक
का साि ददया िा। वे लेखक की ऐसी लर्त्र िीं, स्जन्हें दे खकर लेखक को दहम्र्त लर्ला करती
िीं। ककताबों से लेखक का आत्र्ीय संबंध िा। बीर्ारी के ददिों र्ें जब डॉक्टर िे लेखक को
बबिा दहले-डुले बबस्तर पर लेटे रहिे की दहदायत दीं, तो लेखक िे इिके र्ध्य रहिे का निणमय
ककया। इिके र्ध्य वह स्वयं को अकेला र्हसूस िहीं करता िा। ऐसा लगता िा र्ािो उसके
हज़ारों प्राण इि पुस्तकों र्ें सर्ा गए हैं। ये सब उसे अकेलेपि का अहसास ही िहीं होिे दे ते िे।
उसे इिके र्ध्य असीर् संतुस्ष्ट लर्लती िी। भरा-भरा होिे से लेखक का तात्पयम पुस्तकें के साि
से है , जो उसे अकेला िहीं होिे दे ती िीं। लेखक को ऐसा र्हसूस होता िा जैसे उसके प्राण भी
इि पुस्तकों र्ें ऐसे बसे हैं जैसे राजा के प्राण तोते र्ें बसे िे।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्ि-अभ्यास

प्रश्ि 1.लेखक का ऑपरे शि करिे से सजमि क्यों दहचक रहे िे?


उत्तर-लेखक को तीि-तीि हाटम अटै क हुए िे। बबजली के झटकों से प्राण तो लौटे , र्गर ददल को
साठ प्रनतशत भाग िष्ट हो गया। बाकी बचे चालीस प्रनतशत र्ें भी रुकावटें िीं। सजमि इसललए
दहचक रहे िे कक चालीस प्रनतशत हृदय ऑपरे शि के बाद हरकत र्ें ि आया तो लेखक की जाि
भी जा सकती िी।

प्रश्ि 2.‘ककताबों वाले कर्रे र्ें रहिे के पीछे लेखक के र्ि र्ें क्या भाविा िी?
उत्तर-‘ककताबों वाले कर्रे र्ें रहिे के पीछे लेखक के र्ि र्ें यह भाविा िी कक स्जस प्रकार परी
किाओं के अिुसार राजा के प्राण उसके शरीर र्ें िहीं बस्ल्टक तोते र्ें रहते हैं, वैसे ही उसके
(लेखक) निकले प्राण अब इि हज़ारों ककताबों र्ें बसे हैं, स्जन्हें उसिे जर्ा ककया है ।

प्रश्ि 3.लेखक के घर कौि-कौि-सी पबत्रकाएाँ आती िीं?


उत्तर-लेखक के घर वेदोदर्, सरस्वती, गदृ हणी, बालसखा और चर्चर् आदद पबत्रकाएाँ आती िीं।

प्रश्ि 4.लेखक को ककताबें पढ़िे और सहे जिे का शौक कैसे लगा?


उत्तर-लेखक के घर र्ें पहले से ही बहुत-सी पस्ु तकें िीं। दयािंद की एक जीविी, बालसखा और
‘चर्चर्’ पस्
ु तकें पढ़ते-पढ़ते उसे पढ़िे का शौक लगा। पााँचवीं कक्षा र्ें प्रिर् आिे पर परु स्कार
स्वरूप लर्ली दो पस्
ु तकों को षपताजी की प्रेरणा से उसे सहे जिे का शौक लग गया।

प्रश्ि 5.र्ााँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों थचंनतत रहती िी?
उत्तर-र्ााँ लेखक की स्कूली पढाई को लेकर इसललए थचंनतत रहती िी, क्योंकक लेखक हर सर्य
कहानियों की पुस्तकें ही पढ़ता रहता िा। र्ााँ सोचती िी कक लेखक पाठ्यपुस्तकों को भी इसी
तरह रुथच लेकर पढे गा या िहीं।
प्रश्ि 6.स्कूल से ईिार् र्ें लर्ली अंग्रेजी की पुस्तकों िे ककस प्रकार लेखक के ललए िई दनु िया
के द्वार खोल ददए?
उत्तर-पााँचवी कक्षा र्ें िस्टम आिे पर लेखक को दो पुस्तकें पुरस्कारस्वरूप लर्ली। उिर्ें से एक र्ें
षवलभन्ि पक्षक्षयों की जानतयों, उिकी बोललयों, उिकी आदतों की जािकारी िी। दस
ू री ककताब
‘टस्टी दे रग’ र्ें पािी के जहाजों, िाषवकों की स्जंदगी, षवलभन्ि प्रकार के द्वीप, वेल और शाकम
के बारे र्ें िी। इस प्रकार इि पुस्तकों िे लेखक के ललए िई दनु िया का द्वार खोल ददया।

प्रश्ि 7.‘आज से यह खािा तुम्हारी अपिी ककताबों का। यह तुम्हारी अपिी लाइब्रेरी है ’-षपता के
इस किि से लेखक को क्या प्रेरणा लर्ली?
उत्तर-षपता के इस किि से लेखक के र्ि पर गहरा प्रभाव पडा। लेखक को पुस्तक सहे जकर
रखिे तिा पुस्तक संकलि करिे की प्रेरणा लर्ली।

प्रश्ि 8.लेखक द्वारा पहली पस्


ु तक खरीदिे की घटिा का वणमि अपिे शब्दों र्ें कीस्जए।
उत्तर-लेखक परु ािी पस्
ु तकें खरीदकर पढ़ता और उन्हें बेचकर अगली कक्षा की परु ािी पस्
ु तकें
खरीदता। ऐसे ही एक बार उसके पास दो रुपए बच गए। र्ााँ की आज्ञा से वह दे वदास क़िल्टर्
दे खिे गया। शो छूटिे र्ें दे र होिे के कारण वह पुस्तकों की दक
ु ाि पर चला गया। वहााँ दे वदास
पुस्तक दे खी। उसिे डेढ़ रुपए र्ें क़िल्टर् दे खिे के बजाए दस आिे र्ें पुस्तक खरीदकर बचे पैसे
र्ााँ को दे ददए। इस प्रकार लेखक िे पुस्तकालय हे तु पहली पुस्तक खरीदी।

प्रश्ि 9.‘इि कृनतयों के बीच अपिे को ककतिा भरा-भरा र्हसूस करता हूाँ’-को आशय स्पष्ट
कीस्जए।
उत्तर-लेखक के पुस्तकालय र्ें अिेक भािाओं के अिेक लेखकों, कषवयों की पुस्तकें हैं। इिर्ें
उपन्यास, िाटक, किा । संकलि, जीवनियााँ, संस्र्रण, इनतहास, कला, पस
ु तास्त्वक, राजिीनतक
आदद अिथगित पस्
ु तकें हैं। वह दे शी-षवदे शी लेखकों, थचंतकों की पस्
ु तकों के बीच स्वयं को
अकेला र्हसस
ू िहीं करता। वह स्वयं को भरा-भरा र्हसस
ू करता है ।

अन्य पाठे तर हल प्रश्ि

लघु उत्तरीय प्रश्िोत्तर

प्रश्ि 1.लेखक िे अधमर्त्ृ यु की हालत र्ें कहााँ रहिे की स्जद की और क्यों?


उत्तर-लेखक िे अधमर्त्ृ यु की हालत र्ें बेडरूर् र्ें रहिे के बजाए उस कर्रे र्ें रहिे की स्जद की
जहााँ उसकी बहुत सारी ककताबें हैं। उसे चलिा, बोलिा, पढ़िा र्िा िा, इसललए वह इि पुस्तकों
को दे खते रहिा चाहता िा। र्ेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय

प्रश्ि 2.लेखक को कौि-सी पुस्तक सर्झ र्ें िहीं आई और ककसे पुस्तक िे उसे रोर्ांथचत कर
ददया?
उत्तर-लेखक को ‘सत्यािम प्रकाश’ के खंडि-र्ंडि वाले अध्याय सर्झ र्ें िहीं आते िे। इसके
षवपरीत ‘स्वार्ी दयािंद की एक जीविी’ की अिेक घटिाएाँ-चह
ू े को भगवाि का भोग खाते दे ख
यह र्ाि लेिा कक प्रनतर्ाएाँ भगवाि िहीं होतीं, घर छोडकर भाग जािा, तीिों, जगलों, गुिाओं,
दहर् लशखरों पर साधओ
ु ं के साि घूर्िा, भगवाि क्या है , सत्य क्या है आदद िे उसे रोर्ांथचत
कर ददया।

प्रश्ि 3.लेखक िे बबंदा और पस्


ु तकों को क्यों प्रणार् ककया?
उत्तर-लेखक का ऑपरे शि सिल होिे के बाद जब र्राठी कषव बबंदा करं दीकर उसिे दे खिे आए
तो बोले ” भारती, ये सैकडों र्हापरु
ु ि, जो पस्
ु तक रूप र्ें तम्
ु हारे चारों ओर षवराजर्ाि हैं, इन्हीं
के आशीवामद से तर्
ु बचे हो। इन्होंिे तम्
ु हें पि
ु जीवि ददया है ।” यह सि
ु लेखक िे कषव बबंदा
और पुस्तकों को प्रणार् ककया।

प्रश्ि 4.बीर्ार लेखक को कहााँ ललटाया गया। वह लेटे-लेटे क्या दे खा करता िा?
उत्तर-बीर्ार लेखक िे स्ज़द की कक उसे उस कर्रे र्ें ललटाया जाए जहााँ उसकी हज़ारों पुस्तकें
रखीं हुई िीं। इस कर्रे र्ें
लेटे-लेटे वह बाईं ओर की खखडकी के सार्िे झुलते सुपारी के झालरदार पत्ते दे खा करता िा।
इिसे निगाह हटते ही वह
अपिे कर्रे र्ें ठसाठस भरी पस्
ु तकों को दे खा करता िा।

प्रश्ि 5.लेखक की र्ााँ ककस बात के ललए थचंनतत िीं? उिकी यह थचंता कैसे दरू हुई?
उत्तर-लेखक की र्ााँ चाहती िीं कक उिका पुत्र कक्षा की ककताबें िहीं पढ़े गा तो कैसे उत्तीणम होगा,
क्योंकक लेखक अन्य ककताबें रुथच से पढ़ता िा, पर कक्षा की ककताबें िहीं। लेखक को जब तीसरी
कक्षा र्ें षवद्यालय र्ें भरती कराया गया तो उसिे र्ि लगाकर पढ़िा शुरू ककया। तीसरी और
चौिी कक्षा र्ें उसे अच्छे अंक प्राप्त हुए और पााँचवी र्ें िस्टम आया। इस तरह उसिे र्ााँ की
थचंता को दरू ककया।
प्रश्ि 6.लेखक को पुरस्कार स्वरूप लर्ली दोिों पुस्तकों का कथ्य क्या िा? ‘र्ेरा छोटा-सा निजी
पुस्तकालय’ के आधार पर ललखखए।
उत्तर
लेखक को परु स्कार स्वरूप जो दो पुस्तकें लर्ली िीं, उिर्ें से एक का कथ्य िा दो छोटे बच्चों
का घोंसलों की खोज र्ें बागों और कंु जों र्ें भटकिा और इसी बहािे पक्षक्षयों की बोली, जानतयों
और आदतों को जाििा तिा दस
ू री पुस्तक का कथ्य िा-पािी के जहाज़ों से जुडी जािकारी एवं
िाषवकों की जािकारी व शाकम-ह्वेल के बारे र्ें ज्ञाि करािा।

प्रश्ि 7.लेखक को पुस्तकालय से अनिच्छापूवक


म क्यों उठिा पडता िा?
उत्तर-
लेखक के पास लाइब्रेरी का सदस्य बििे भर के ललए पैसे ि िे, इस कारण वह लाइब्रेरी से
पुस्तकें इश्यू कराकर घर िहीं ला सकता िा। लाइब्रेरी र्ें पढ़ते हुए कोई कहािी या पुस्तक पूरी
हो या ि हो, लाइब्रेरी बंद होिे के सर्य उसे उठिा ही पडता िा, जबकक उसका वह लाइब्रेरी से
जािा िहीं चाहता िा। ऐसे र्ें उसे अनिच्छापूवक
म उठिा पडता िा।

प्रश्ि 8.लेखक पढ़ाई की व्यवस्िा कैसे करता िा? ‘र्ेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ के
आधार पर ललखखए।
उत्तर-
लेखक के षपता की र्त्ृ यु हो जािे कारण उसे आथिमक कदठिाई का सार्िा करिा पड रहा िा।
उसे अपिी पढ़ाई के ललए एक संस्िा से कुछ पैसे लर्ल जाया करते िे। वह इि पैसों से सेकंड
हैंड की पुस्तकें खरीद ललया करता िा, जो उसे आधे दार् र्ें लर्ल जाया करती िी। इसके
अलावा वह सहपादठयों की पुस्तकें लेकर पढ़ता और िो्स बिा लेता िा। इस तरह वह अपिी
पढ़ाई की व्यवस्िा कर ललया करता िा।

दीघम उत्तरीय प्रश्िोत्तर

प्रश्ि 1.लेखक िे अपिे षपता से ककया हुआ वायदा ककस तरह निभाया? इससे आपको क्या सीख
लर्लती है ?
उत्तर-लेखक के षपता िे उसे अिार का शबमत षपलाकर कहा िा कक वायदा करो कक पाठ्यक्रर् की
पुस्तकें भी इतिे ध्याि से पढ़ोगे, र्ााँ की थचंता लर्टाओगे। लेखक िे जी-तोड पररश्रर् ककया
इससे तीसरी और चौिी कक्षा र्ें अच्छे अंक आए, परं तु पााँचवीं कक्षा र्ें वह िस्टम आ गया। यह
दे ख उसकी र्ााँ िे उसे गले लगा ललया। इस तरह लेखक िे अपिे षपता से ककया हुआ वायदा
निभाया। इससे हर्ें निम्िललखखत सीख लर्लती है -
 र्ि लगाकर पढ़ाई करिा चादहए।
 र्ाता-षपता का कहिा र्ाििा चादहए।
 हर्ें दस
ू रों से ककया हुआ वायदा निभािा चादहए।

प्रश्ि 2.‘र्ेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय’ पाठ से आज के षवद्याथिमयों को क्या प्रेरणा लेिी
चादहए?
उत्तर-कहा जाता है कक पुस्तकें र्िुष्य की सबसे अच्छी लर्त्र होती हैं। इिर्ें तरह-तरह का
बहुउपयोगी ज्ञाि भरा रहता है । पुस्तकें ज्ञाि को एक पीढ़ी से दस
ू री पीढ़ी तक ले जािे का
साधि हैं। ये हर्ारे सख
ु -दख
ु की सािी हैं। पाठ र्ें लेखक भी अंनतर् सर्य तक इिके बीच रहिा
चाहता है । ऐसे र्ें आज के षवद्याथिमयों को पाठ से निम्िललखखत प्रेरणाएाँ लेिी चादहए-

 पस्
ु तकों के प्रनत प्रेर् एवं लगाव बिाए रखिा चादहए।
 पस्
ु तकों को िष्ट होिे से बचािा चादहए।
 पस्
ु तकों को िाडिा या जलािा िहीं चादहए।
 पस्
ु तकों के पष्ृ ठों पर अश्लील बातें िहीं ललखिी चादहए।
 पुस्तकें पढ़िे की आदत षवकलसत करिी चादहए।
 उपहार र्ें पुस्तकों का लेि-दे ि करिा चादहए।

प्रश्ि 3.पढ़ाई के प्रनत अपिे र्ाता-षपता की थचंता दरू करिे के ललए आप क्या करते हैं?
उत्तर-पढ़ाई के प्रनत अपिे र्ाता-षपता की थचंता दरू करिे के ललए र्ैं-

 प्रनतददि सर्य से षवद्यालय जाता हूाँ।


 र्ि लगाकर अपिी पढ़ाई करता हूाँ।
 अच्छे ग्रेड लािे का प्रयास करता हूाँ।
 बुरी संगनत से बचिे का सदै व प्रयास करता हूाँ।
 अध्यापकों एवं र्ाता-षपता का कहिा र्ािकर उिके निदे शािुसार पढ़ाई करते हुए गह
ृ कायम
करता हूाँ।

प्रश्ि 4.बच्चों र्ें पस्


ु तकों के पठि की रुथच एवं उिसे लगाव उत्पन्ि करिे के ललए आप र्ाता-
षपता को क्या सझ
ु ाव दें गे?
उत्तर-बच्चों र्ें पुस्तकों के पठि की रुथच एवं उिसे लगाव उत्पन्ि करिे के ललए र्ैं र्ाता-षपता
को पुस्तकों की र्हत्ता बताऊाँगा। उन्हें पुस्तकों र्ें नछपे षवलभन्ि प्रकार की उपयोगी बातें एवं
ज्ञाि के बारे र्ें बताऊाँगा। पुस्तकें ज्ञाि का भंडार होती हैं, यह बात उन्हें बताऊाँगा ताकक वे
बच्चों को पुस्तकें दे िे-ददलािे र्ें आिाकािी ि करें । र्ैं उन्हें बताऊाँगा कक बच्चों की आयु, रुथच,
ज्ञाि आदद का अिुर्ाि कर पुस्तकें ददलािी चादहए। छोटे बच्चों को थचत्रों वाली रं गीि पुस्तकें
तिा र्ोटे अक्षरों र्ें छपी पुस्तकें ददलािे की बात कहूाँगा। बच्चों को थचत्र किाओं, रोचक
कहानियों वाली पुस्तकें दे िे का सुझाव दें गा ताकक बच्चों का र्ि उिर्ें लगा रहे । कहानियों की
पुस्तकें उन्हें स्जज्ञासु उन्हें कल्टपिाशील बिाती हैं, अतिः उन्हें पाठ्यक्रर् के अलावा ऐसी पुस्तकें
भी दे िे का सुझाव दें गा स्जससे बच्चों र्ें पठि के प्रनत रुझाि एवं स्वस्ि आदत का षवकास हो।

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