IX रैदास के पद

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मानि रचना इंटरनेर्शनि जकूि,मेकिकड गाडान, सैक्टर-51,गरु

ु ग्राम
सि :2023-24
नाम: रै दास के पद

कक्षा: IX नतथर्ुः

कवि परिचय

कवि – रै दास
जन्म – 1388

िै दास के पद पाठ प्रिेश

यहााँ रै दास के दो पद लिए गए हैं। पहिे पद ‘प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी’ में कवि अपने आराध्य को याद
करते हुए उनसे अपनी ति
ु ना करता है । पहिे पद में कवि ने भगिान ् की तुिना चंदन, बादि, चााँद, मोती, दीपक
से और भक्त की तुिना पानी, मोर, चकोर, धागा, बाती से की है ।
उसका प्रभु बाहर कहीं ककसी मंददर या मस्जजद में नहीं विराजता अर्ाात कवि कहता है कक उनके आराध्य प्रभु
ककसी मंददर या मस्जजद में नहीं रहता बस्कक कवि का प्रभु अपने अंतस में सदा विद्यमान रहता है ।

यही नहीं, कवि का आराध्य प्रभु हर हाि में , हर काि में उससे श्रेष्ठ और सिागुण संपन्न है । इसीलिए तो कवि
को उन जैसा बनने की प्रेरणा लमिती है ।
दस
ू रे पद में भगिान की अपार उदारता, कृपा और उनके समदर्शी जिभाि का िणान है । रै दास कहते हैं कक
भगिान ने नामदे ि, कबीर, त्रििोचन, सधना और सैनु जैसे ननम्न कुि के भक्तों को भी सहज-भाि से अपनाया है
और उन्हें िोक में सम्माननीय जर्ान ददया है ।
कहने का तात्पया यह है कक भगिान ् ने कभी ककसी के सार् कोई भेद-भाि नहीं ककया। दस
ू रे पद में कवि ने
भगिान को गरीबों और दीन-दुःु खियों पर दया करने िािा कहा है । रै दास ने अपने जिामी को गुसईआ (गोसाई)
और गरीब ननिाजु (गरीबों का उद्धार करने िािा) पुकारा है ।

िै दास के पद पाठ साि

यहााँ पर रै दास के दो पद लिए गए हैं। पहिे पद में कवि ने भक्त की उस अिजर्ा का िणान ककया है जब
भक्त पर अपने आराध्य की भस्क्त का रं ग पूरी तरह से चढ़ जाता है कवि के कहने का अलभप्राय है कक एक
बार जब भगिान की भस्क्त का रं ग भक्त पर चढ़ जाता है तो भक्त को भगिान ् की भस्क्त से दरू करना
असंभि हो जाता है । कवि कहता है कक यदद प्रभु चंदन है तो भक्त पानी है ।

स्जस प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बाँद


ू -बाँूद में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भस्क्त भक्त के अंग-अंग में
समा जाती है । यदद प्रभु बादि है तो भक्त मोर के समान है जो बादि को दे िते ही नाचने िगता है । यदद प्रभु
चााँद है तो भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो त्रबना अपनी पिकों को झपकाए चााँद को दे िता रहता है ।
यदद प्रभु दीपक है तो भक्त उसकी बत्ती की तरह है जो ददन रात रोर्शनी दे ती रहती है । कवि भगिान ् से कहता
है कक हे प्रभु यदद तुम मोती हो तो तुम्हारा भक्त उस धागे के समान है स्जसमें मोनतयााँ वपरोई जाती हैं। उसका
असर ऐसा होता है । यदद प्रभु जिामी है तो कवि दास यानन नौकर है । दस
ू रे पद में कवि भगिान की मदहमा का
बिान कर रहे हैं।
कवि अपने आराध्य को ही अपना सबकुछ मानते हैं। कवि भगिान की मदहमा का बिान करते हुए कहते हैं कक
भगिान गरीबों और दीन-दुःु खियों पर दया करने िािे हैं, उनके मार्े पर सजा हुआ मुकुट उनकी र्शोभा को बडा
रहा है । कवि कहते हैं कक भगिान में इतनी र्शस्क्त है कक िे कुछ भी कर सकते हैं और उनके त्रबना कुछ भी
संभि नहीं है ।
भगिान के छूने से अछूत मनष्ु यों का भी ककयाण हो जाता है क्योंकक भगिान अपने प्रताप से ककसी नीच जानत
के मनष्ु य को भी ऊाँचा बना सकते हैं। कवि उदाहरण दे ते हुए कहते हैं कक स्जस भगिान ने नामदे ि, कबीर,
त्रििोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार ककया र्ा िही बाकी िोगों का भी उद्धार करें गे। कवि कहते हैं
कक हे सज्जन व्यस्क्तयों तम
ु सब सन
ु ो उस हरर के द्िारा इस संसार में सब कुछ संभि है ।

िै दास के पद पाठ व्याख्या

पद – 1
अब कैसे छूटै राम नाम रट िागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अाँग-अाँग बास समानी।
प्रभु जी, तम
ु घन बन हम मोरा, जैसे थचतित चंद चकोरा।
प्रभु जी, तम
ु दीपक हम बाती, जाकी जोनत बरै ददन राती।
प्रभु जी, तम
ु मोती हम धागा, जैसे सोनदहं लमित सह
ु ागा।
प्रभु जी, तम
ु जिामी हम दासा, ऐसी भस्क्त करै रै दासा॥

शब्दार्थ –
बास – गंध, िास
समानी – समाना (सुगंध का बस जाना), बसा हुआ (समादहत)
घन – बादि
मोिा – मोर, मयूर
चचतित – दे िना, ननरिना
चकोि – तीतर की जानत का एक पक्षी जो चंद्रमा का परम प्रेमी माना जाता है
बाती – बत्ती, रुई, स्जसे तेि में डािकर ददया जिाते हैं
जोतत – ज्योनत, दे िता के प्रीत्यर्ा जिाया जाने िािा दीपक
बिै – बढ़ाना, जिना
िाती – रात्रि
सह
ु ागा – सोने को र्शद्
ु ध करने के लिए प्रयोग में आने िािा क्षारद्रव्य
दासा – दास, सेिक
व्याख्या – इस पद में कवि ने भक्त की उस अिजर्ा का िणान ककया है जब भक्त पर अपने आराध्य की भस्क्त
का रं ग पूरी तरह से चढ़ जाता है कवि के कहने का अलभप्राय है कक एक बार जब भगिान की भस्क्त का रं ग
भक्त पर चढ़ जाता है तो भक्त को भगिान ् की भस्क्त से दरू करना असंभि हो जाता है ।
कवि भगिान ् से कहता है कक हे प्रभु! यदद तुम चंदन हो तो तुम्हारा भक्त पानी है । कवि कहता है कक स्जस
प्रकार चंदन की सुगंध पानी के बाँद
ू -बाँद
ू में समा जाती है उसी प्रकार प्रभु की भस्क्त भक्त के अंग-अंग में समा
जाती है । कवि भगिान ् से कहता है कक हे प्रभु!
यदद तम
ु बादि हो तो तम्
ु हारा भक्त ककसी मोर के समान है जो बादि को दे िते ही नाचने िगता है । कवि
भगिान ् से कहता है कक हे प्रभु यदद तम
ु चााँद हो तो तम्
ु हारा भक्त उस चकोर पक्षी की तरह है जो त्रबना अपनी
पिकों को झपकाए चााँद को दे िता रहता है ।
कवि भगिान ् से कहता है कक हे प्रभु यदद तम
ु दीपक हो तो तम्
ु हारा भक्त उसकी बत्ती की तरह है जो ददन रात
रोर्शनी दे ती रहती है । कवि भगिान ् से कहता है कक हे प्रभ!ु यदद तम
ु मोती हो तो तम्
ु हारा भक्त उस धागे के
समान है स्जसमें मोनतयााँ वपरोई जाती हैं।
उसका असर ऐसा होता है जैसे सोने में सुहागा डािा गया हो अर्ाात उसकी सुंदरता और भी ननिर जाती है ।
कवि रै दास अपने आराध्य के प्रनत अपनी भस्क्त को दर्शााते हुए कहते हैं कक हे मेरे प्रभु! यदद तुम जिामी हो तो
मैं आपका भक्त आपका दास यानन नौकर हूाँ।

पद – 2
ऐसी िाि तुझ त्रबनु कउनु करै ।
गरीब ननिाजु गुसईआ मेरा मार्ै छिु धरै ।।
जाकी छोनत जगत कउ िागै ता पर तुहीं ढ़रै ।
नीचहु ऊच करै मेरा गोत्रबंद ु काहू ते न डरै ॥
नामदे ि कबीरु नतिोचनु सधना सैनु तरै ।
कदह रविदासु सन
ु हु रे संतहु हररजीउ ते सभै सरै ॥

शब्दार्थ
लाल – जिामी
कउनु – कौन
गिीब तनिाजु – दीन-दखु ियों पर दया करने िािा
गुसईआ – जिामी, गुसाईं
मार्ै छत्रु धिै – मजतक पर मुकुट धारण करने िािा
छोतत – छुआछूत, अजपश्ृ यता
जगत कउ लागै – संसार के िोगों को िगती है
ता पि तुहीीं ढिै – उन पर द्रवित होता है
नीचहु ऊच किै – नीच को भी ऊाँची पदिी प्रदान करता है
नामदे ि – महाराष्र के एक प्रलसद्ध संत, इन्होंने मराठी और दहंदी दोनों भाषाओं में रचना की है
ततलोचनु (त्रत्रलोचन) – एक प्रलसद्ध िैष्णि आचाया, जो ज्ञानदे ि और नामदे ि के गरु
ु र्े
सधना – एक उच्च कोदट के संत जो नामदे ि के समकािीन माने जाते हैं
सैनु – ये भी एक प्रलसद्ध संत हैं, आदद ‘गुरुग्रंर् साहब’ में संगह
ृ ीत पद के आधार पर इन्हें रामानंद का
समकािीन माना जाता है
हरिजीउ – हरर जी से
सभै सिै – सब कुछ संभि हो जाता है

व्याख्या – इस पद में कवि भगिान की मदहमा का बिान कर रहे हैं। कवि कहते हैं कक हे ! मेरे जिामी तुझ त्रबन
मेरा कौन है अर्ाात कवि अपने आराध्य को ही अपना सबकुछ मानते हैं। कवि भगिान की मदहमा का बिान
करते हुए कहते हैं कक भगिान गरीबों और दीन-दुःु खियों पर दया करने िािे हैं, उनके मार्े पर सजा हुआ मुकुट
उनकी र्शोभा को बडा रहा है । कवि कहते हैं कक भगिान में इतनी र्शस्क्त है कक िे कुछ भी कर सकते हैं और
उनके त्रबना कुछ भी संभि नहीं है । कहने का तात्पया यह है कक भगिान ् की इच्छा के त्रबना दनु नया में कोई भी
काया संभि नहीं है । कवि कहते हैं कक भगिान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी ककयाण हो जाता है क्योंकक
भगिान अपने प्रताप से ककसी नीच जानत के मनुष्य को भी ऊाँचा बना सकते हैं अर्ाात भगिान ् मनष्ु यों के
द्िारा ककए गए कमों को दे िते हैं न कक ककसी मनुष्य की जानत को। कवि उदाहरण दे ते हुए कहते हैं कक स्जस
भगिान ने नामदे ि, कबीर, त्रििोचन, सधना और सैनु जैसे संतों का उद्धार ककया र्ा िही बाकी िोगों का भी
उद्धार करें गे। कवि कहते हैं कक हे !सज्जन व्यस्क्तयों तुम सब सुनो, उस हरर के द्िारा इस संसार में सब कुछ
संभि है ।

िै दास के पद प्रश्न अभ्यास

तनम्नललखित प्रश्नों के उत्ति दीजजए-


प्रश्न 1 – पहले पद में भगिान औि भक्त की जजन-जजन चीजों से तुलना की गई है , उनका उल्लेि कीजजए।
उत्तर – पहिे पद में भगिान ् की तुिना चंदन से और भक्त की तुिना पानी से, भगिान ् की तुिना बादि से
और भक्त की तुिना मोर से, भगिान ् की तुिना चााँद से और भक्त की तुिना चकोर से, भगिान ् की तुिना
मोती से और भक्त की तुिना धागा से, भगिान ् की तुिना दीपक से और भक्त की तुिना बाती से और
भगिान ् की तुिना सोने से और भक्त की तुिना सुहागे से की गई है ।

प्रश्न 2 – पहले पद की प्रत्येक पींजक्त के अींत में तक


ु ाींत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदयथ आ गया है , जैसे: पानी,
समानी, आदद। इस पद में अन्य तुकाींत शब्द छााँटकि ललखिए।
उत्तर – इस पद में अन्य तुकांत र्शब्द मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रै दासा हैं।

प्रश्न 3 – पहले पद में कुछ शब्द अर्थ की दृजटट से पिस्पि सींबद्ध हैं। ऐसे शब्दों को छााँटकि ललखिए: उदाहिण:
दीपक – बाती
उत्तर – पहिे पद में कुछ र्शब्द अर्ा की दृस्ष्ट से परजपर संबद्ध हैं जैसे – चंदन-पानी, घन-बनमोरा, चंद-चकोरा,
सोनदह-सह
ु ागा।
प्रश्न 4 – दस
ू िे पद में कवि ने ‘गिीब तनिाजु’ ककसे कहा है ? स्पटट कीजजए।
उत्तर – दस
ू रे पद में भगिान को ‘गरीब ननिाजु’ कहा गया है क्योंकक भगिान गरीबों और दीन-दुःु खियों पर दया
करने िािे हैं।

प्रश्न 5 – दस
ू िे पद की ‘जाकी छोती जगत कउ लागै ता पि तुहीीं ढ़िै ’ इस पींजक्त का आशय स्पटट कीजजए।
उत्तर – भगिान के छूने से अछूत मनुष्यों का भी ककयाण हो जाता है क्योंकक भगिान अपने प्रताप से ककसी
नीच जानत के मनुष्य को भी ऊाँचा बना सकते हैं अर्ाात भगिान ् मनुष्यों के द्िारा ककए गए कमों को दे िते हैं
न कक ककसी मनुष्य की जानत को। अछूत से अभी भी बहुत से िोग बच कर चिते हैं और अपना धमा भ्रष्ट हो
जाने से डरते हैं। अछूत की स्जर्नत समाज में दयनीय है । ऐसे िोगों का उद्धार भगिान ही करते हैं।

प्रश्न 6 – िै दास ने अपने स्िामी को ककन ककन नामों से पक


ु ािा है ?
उत्तर – रै दास ने अपने जिामी को गस
ु ईआ (गोसाई) और गरीब ननिाजु (गरीबों का उद्धार करने िािा) पक
ु ारा
है ।

प्रश्न 7 – तनम्नललखित शब्दों के प्रचललत रूप ललखिए – मोिा, चींद, बाती, जोतत, बिै , िाती, छत्र,ु छोतत, तुहीीं, गुसईआ।
उत्तर – मोरा – मोर
चंद – चााँद
बाती – बत्ती
जोनत – ज्योनत
बरै – जिना
राती – रात
छिु – छाता
छोनत – छूने
तह
ु ीं – तम्
ु हीं
गस
ु ईआ – गोसाई

नीचे ललिी पींजक्तयों का भाि स्पटट कीजजए-


प्रश्न 1 – जाकी अाँग-अाँग बास समानी।
उत्तर – भगिान उस चंदन के समान हैं स्जसकी सुगंध अंग-अंग में समा जाती है ।

प्रश्न 2 – जैसे चचतिन चींद चकोिा।


उत्तर – जैसे चकोर हमेर्शा चांद को दे िता रहता है िैसे कवि भी भगिान ् को दे िते रहना चाहता है ।

प्रश्न 3 – जाकी जोतत बिै ददन िाती।


उत्तर – भगिान यदद एक दीपक हैं तो भक्त उस बाती की तरह है जो प्रकार्श दे ने के लिए ददन रात जिती
रहती है ।
प्रश्न 4 – ऐसी लाल तुझ त्रबनु कउनु किै ।
उत्तर – भगिान इतने महान हैं कक िह कुछ भी कर सकते हैं। भगिान के त्रबना कोई भी व्यस्क्त कुछ भी नहीं
कर सकता।

प्रश्न 5 – नीचहु ऊच किै मेिा गोत्रबींद ु काहू ते न डिै ।


उत्तर – भगिान यदद चाहें तो ननचिी जानत में जन्म िेने िािे व्यस्क्त को भी ऊाँची श्रेणी दे सकते हैं। क्योंकक
भगिान ् कमों को दे िते हैं जानत को नहीं।

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