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12 प्राकृतिक तितकत्सा एवंइसकाइतिहास
12 प्राकृतिक तितकत्सा एवंइसकाइतिहास
Sangyaharan एवInternational
Shodh: ं इसका इतिहासPeer Reviwed: Feb. 2022, Vol. 25, No.1/ ISSN 2278-8166, IJIFACTOR: 4.6883 83
पी.एि.िी. (योग एवं जीवन बवज्ञान) स्कॉलर, अबसस्टेंट प्रोिे सर, संज्ञाहरर् बवभाग, आयवु ेद संकाय बिबकत्सा बवज्ञान संस्थान, काशी
बहदं ू बवश्वबवद्यालय, वारार्सी, उत्तर प्रदेश, भारत, 221005
84 Sangyaharan Shodh: International Peer Reviwed: Feb. 2022, Vol. 25, No.1/ ISSN 2278-8166, IJIFACTOR: 4.68
प्राकृतिक तितकत्सा-
प्राकृ बतक बिबकत्सा बवज्ञान अथवा प्राकृ बतक बिबकत्सा प्रर्ाली उतनी ही परु ानी है बजतनी की प्रकृ बत स्वयं।⁵
प्राकृ बतक बिबकत्सा एक ऐसी प्रािीन बिबकत्सा पद्धबत जो दवाओ ं का सहारा नहीं लेती बबल्क व्यायाम,आराम, स्वच्छता,
उपवास, खानपान, हवा, आकाश, पानी, बमट्टी, योग आबद के उपयोग पर बल देती है और जो स्वस्थ एवं दीर्ण जीवन का
मागण बदखाती है। प्रािीन काल की रोमन सभ्यता में यह ररवाज था बक बच्िा जब पैदा होता था तो उसे खल ु े वातावरर् में
रख देते थे सबु ह तक यबद बच्िा जीबवत रहता तो उसे जीबवत रहने के योनय माना जाता था बिलहाल यह परंपरा अमानवीय
थी बकंतु रोमवासी अपने इस तरीके से बच्िों में प्राकृ बतक प्रबतरक्षर् शबि यानी रोग प्रबतरोधक क्षमता का बवकास करना
िाहते थे। व्यवबस्थत प्राकृ बतक बिबकत्सा का प्रारंभ भले ही नया हो बकंतु यह सदा से हमारे जीवन की एक पद्धबत बनी रही
है। रामिररतमानस के कमणकांि में पंिमहाभतू ओ ं की मबहमा का वर्णन बकया गया है जो अग्रबलबखत है-
तिति जल पावक गगन समीरा।
पंि ित्व का रिा शरीर ।। ⁶ रा.ि.मा.4/10/2
अथाणत यह शरीर पिं तत्व यानी आकाश, वाय,ु जल, अबनन व पृथ्वी से बनी है।
प्राकृ बतक बिबकत्सा में समस्त बीमाररयों का मल ू कारर् प्रकृ बत के बनयमों का उल्लंर्न करना ही माना जाता है
यह उल्लंर्न वैिाररक, खानपान, कायण तथा बवश्राम, सांस लेने और छोड़ने, सोने-जागने सबं धं ी बकसी भी असतं ल ु न के
कारर् हो सकती है। बलंिल्हार के मतानसु ार बीमार होना बितं ा की बात नहीं है यह तो प्रकृ बत द्वारा रोग से लड़ने के सबतू है
बिंता की बात तो बीमारी का ठीक ना होना है। तमाम बीमाररयों जैसे िोड़े-िंु सी, सदी-जख ु ाम, बख
ु ार और मवाद बनकलने
के मामले इस बात का पक्का सबतू है बक शरीर को हाबन पहिं ाने वाली बवषैले पदाथों को बकसी न बकसी रूप में बाहर
बनकाला जा रहा है। प्राकृ बतक बिबकत्सक का उद्देश्य इस लड़ाई में शरीर की मदद करना है। प्राकृ बतक बिबकत्सा के बसद्धांतों
में सवणप्रथम यह माना जाता है बक बीमारी के पनपने के बलए कीटार्-ु रोगार्ु उतने बजम्मेदार नहीं बजतना बक शरीर में ऐसी
पररबस्थबतयों का उत्पन्न होना बजनमें बीमारी पनपती है। प्राकृ बतक बिबकत्सा से शरीर में जमा हाबनकारक पदाथण (बवजातीतत्व)
बनकल जाते हैं और बजस से प्रभाबवत अगं ों को सामान्य होने में मदद बमलती है। इस पद्धबत में दैबनक सिाई, व्यायाम, आराम,
बनद्रा, खानपान, पानी, हवा, सयू ण के रोशनी का बवबभन्न तरीकों से प्रयोग, बमट्टी का उपयोग,उपवास (आकाश तत्व का
संतुलन) , योग आबद का प्रयोग बकया जाता हैं।
प्राकृतिक तितकत्सा का इतिहास-
प्राकृ बतक बिबकत्सा का इबतहास अबत प्रािीन है, बजसका उल्लेख हमारे वेदों (ऋनवेद, यजवु ेद, सामवेद व
अथवणवेद) में बमलता है। वेदों के बाद परु ार्काल, बौद्ध धमण, जैन धमण आबद में भी प्राकृ बतक बिबकत्सा के प्रमार् बमलते हैं।
हड़प्पा सभ्यता जोबक लगभग 5000 साल परु ानी सभ्यता है वहां पर भी बड़े-बड़े स्नानागार बमले हैं बजससे जल बिबकत्सा
के प्रमार् बमलते हैं।
प्राकृ बतक बिबकत्सा के इबतहास को जानने के बलए हमें बनम्न बबदं ओ
ु ं को देखना होगा जो अग्रबलबखत है-
प्राकृतिक तितकत्सा एवं इसका इतिहास 85
हे जल! मेरे शरीर के बलए रोग नष्ट करने वाली ओषबधयां पर्ू ण करो. बजससे मैं बहत समय तक सयू ण के दशणन कर सकंू और
स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकंू ।
द्रतवणोदा वीरविीतमषं नो द्रतवणोदा रासिे दीर्ममायुः।। (ऋग्वेद 1/96/8)
धन देने वाली अबनन हमें वीर परुु षों से यि
ु एवं दीर्ाणयु प्रदान करें ।
आप्रा द्यावापृतथवी अन्िररिं सयू म आत्मा जगि्थुषश्च।। (ऋग्वेद 1/115/1)
सयू ण परू े संसार की आत्मा है। संसार का संपर्ू ण भौबतक बवकास सयू ण की सत्ता पर बनभणर है।
आ वाि वातह भेषजं तव वाि वातह यद्रप:।
त्वं तह तवश्वभेषजो देवानां दूि ईयसे।। (ऋग्वेद 10/137/3)
इधर आने वाली वायु आप औषबधयां लाओ और उधर जाने वाली वायु तुम पापों (शारीररक व मानबसक इत्याबद
रोग) को ले जाओ। वायु सभी औषबधयों के समान है एवं यह देवों का दतू बनकर िलती है।
आपः सवम्य भेषजी्िा्िे कृण्वन्िु भेषजम।् । (ऋग्वेद 10/137/6)
जल ही भेषजं के समान रोगों को नष्ट करने वाले एवं सब प्राबर्यों के रोगो का नाश करने वाली हैं और जल हमारे
बलए औषबध का कायण करें ।
वाि आ वािु भेषजं शम्भु मयोभु नोl
हृदे. प्र ण आयूूँतष िाररषि।् । (ऋग्वेद 10/186/1)
वायु औषबध बनकर आए हमारे हृदय को रोगमि
ु करके सख
ु प्रदान करें और यह हमारी आयु को भी बढ़ायें।
यजुवेद में प्राकृतिक तितकत्सा ¹⁰
अन्िश्चरति रोिना्य प्राणादपानिी व्यख्यन् मतहषो तदवम।् । (यजुवेद 3/7)
अबनन का तेज प्रार्वायु और अपान वायु के रूप में सभी प्राबर्यों के भीतर िलाएं मान रहता है यह दोनों वायु
हमारे स्वास्थ्य में मख्ु य भबू मका बनभाते हैं।
यकासकौ शकुतन्िकाहलतगति वञ्िति।
आहतन्ि गधे पसो तनगलगलीति धारका।। (यजुवेद 23/22)
यह जल पक्षी की तरह प्रसन्नतादायी याबन हृदय को प्रिुबल्लत करने वाली बननाद (आवाज) करता है।यह जल तेजोमय हैं,
तेजस्वी जल कल-कल की बननाद करता है और यह जल शबिधारी है जो हमारे अनेक रोगों को कमजोर/ठीक करता है।
सामवेद में प्राकृतिक तितकत्सा ¹¹
वाि आ वािु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे. प्र ण आयूूँतष िाररषि।् । (सामवेद 2/7/10)
वायु हमारे पास शांबत और सख
ु दायी ओषबधयां पहिं ाए,ं ये औषबधयां हमारी आयु
88 Sangyaharan Shodh: International Peer Reviwed: Feb. 2022, Vol. 25, No.1/ ISSN 2278-8166, IJIFACTOR: 4.68
करने के बलए आग्रह बकया। भारत सरकार ने 29 बसतम्बर, 1984 को एक स्वतंत्र संस्था के रूप में भारत सरकार राष्रीय
प्राकृ बतक बिबकत्सा सस्ं थान बनाया।
तनष्कषम :
आधबु नक बवज्ञान ने बहत प्रगबत की है उसने हमें अनेकों अनदु ान बदए हैं। बिबकत्सा बवज्ञान के क्षेत्र में बनरोग बनाने
एवं आयु बढ़ाने सबं धं ी बजतने प्रयोग बपछले दो-तीन दशकों में सारे बवश्व में हए उतने सभं वतः गत 5 शताबब्दयों में भी नहीं
हए, बिर भी रोबगयों की सख्ं या में बढ़ोतरी होती जा रही है आबखर क्यों यह एक बितं ा का बवषय है।
प्राकृ बतक बिबकत्सा आज भारत ही नहीं परू े बवश्व मे कािी तेजी से प्रिबलत हो रहा है इसके प्रसार का मख्ु य कारर् लोगों का
इस बिबकत्सा के प्रबत बवश्वास ही है। अगर मनष्ु य तीव्र रोगों में प्राकृ बतक तरीके से बिबकत्सा अपनाने लगे तो जीर्ण रोग में
कािी हद तक कमी आ सकती है बजससे मनष्ु य के इनकम का एक बहत बड़ा बहस्सा जो बिबकत्सा के बलए खिण होता है
वह बि सकता है।
सदं भमग्रंथ सि
ू ी:
1- देसाई, बववेक बजतेंद्र, कुदरती उपिार गाधं ीजी, पनु मणद्रु र्- मई 2015(3000प्रबत), नवजीवन प्रकाशन मबं दर, अहमदाबाद-
380014, ISBN-978-81-7229-108-2,पृ.स.-5
2- मोदी, बवट्ठलदास,प्राकृ बतक जीवन की ओर (एिोल्ि जस्ट) 11वां प्रकाशन-2013, आरोनय मंबदर प्रकाशन, गोरखपरु - 273003
ISBN- 978-81-92568-1-1,पृ.स.-25
3- बमश्रा.िॉ. पी. िी. बमश्रािॉ. बीना, प्राकृ बतक बसद्धांत एवं व्यवहार ितथु ण संस्करर् - 2015 (500), उत्तर प्रदेश बहदं ी संस्थान,
लखनऊ, ISBN 978-93-82175-59-9,पृ.स.-17
4- मोदी, बवट्ठलदास, रोगों की सरल बिबकत्सा, 17वां प्रकाशन-2014, आरोनय मंबदर प्रकाशन, गोरखपरु , 2730 03, ISBN:978-
81-925689-2-8,पृ.स.-61
5- सक्सेना, िॉ ओम प्रकाश, वृहप्राकृ बतक बिबकत्सा, बद्वतीय सस्ं करर् 2014, बहदं ी सेवासदन हालनगजं , मथरु ा-281001,
ISBN:81-88521-54-x, पृ.स.-69
6- पोद्दार, हनमु ान प्रसाद, श्रीरामिररतमानस, पनु मणद्रु र्- 297, गीता प्रेस, गोरखपरु - 273005, Web: gitapress.org, पृ.स.-646
7- बमश्रा.िॉ. पी. िी. बमश्रािॉ. बीना, प्राकृ बतक बसद्धांत एवं व्यवहार ितथु ण संस्करर् - 2015 (500), उत्तर प्रदेश बहदं ी संस्थान,
लखनऊ, ISBN 978-93-82175-59-9,पृ.स.-19
8- सज्ञं ाहरर् शोध अगस्त-2020, मल्ू य (Valume) 23 नम्बर-1, ISSN: 2278-8166, िॉ पष्ु पा दीबक्षत, योग प्रबशबक्षका
"वैबदक सयू ण देवता द्वारा शारीररक बिबकत्सा", पृ.स.-110
9- शमाण, िॉक्टर गंगा सहाय, ऋनवेद, संस्करर् -2016, संस्कृ त साबहत्य प्रकाशन, नई बदल्ली,एम-12 कनॉट, सरकस,नई बदल्ली-
110001, ISBN: 978-93-5065-223-7,पृ.स.-186,318,319,352,1812,1813,1850
10- व्यास, िॉ रे खा, यजवु ेद, संस्करर् -2015, संस्कृ त साबहत्य प्रकाशन, नई बदल्ली,एम-12 कनॉट, सरकस,नई बदल्ली-110001,
ISBN: 81-7987-096-0,पृ.स.- 48,297
11- व्यास, िॉ रे खा, सामवेद, संस्करर् -2015, संस्कृ त साबहत्य प्रकाशन, नई बदल्ली,एम-12 कनॉट, सरकस,नई बदल्ली-110001,
ISBN: 81-87164-97-2,पृ.स.- 57,303,304
प्राकृतिक तितकत्सा एवं इसका इतिहास 91
12- शमाण, िॉक्टर गगं ा सहाय, अथवणवेद, सस्ं करर् -2015, सस्ं कृ त साबहत्य प्रकाशन, नई बदल्ली,एम-12 कनॉट, सरकस,नई बदल्ली-
110001, ISBN: 81-87164-97-25- िॉ. हेनरी, प्राकृ बतक बिबकत्सा दशणन एवं व्यवहार, बद्वतीय संस्करर्-2012 (1000),
कें द्रीय योग एवं प्राकृ बतक बिबकत्सा अनसु ंधान पररषद नई बदल्ली, ISBN: 978-81-925497-3-6,पृ.स.- 307,310
13- बसहं सनु ील कुमार लसु ेंट सामान्य ज्ञान ितथु ण सस्ं करर् 2008 लसु ेंट पबब्लके शन बेंगाली अखरा, पटना-800004,ISBN: 81-
901931-0-4,पृ.स.-11
14- गप्तु ा, श्रीमती राजकुमारी, सयू णरबश्म द्वारा बिबकत्सा तृतीय संस्करर्- 2013, नारायर् प्रकाशन, जी-1 एस.एस.टाबर, धामार्ीगली,
िौड़ा रास्ता, जयपरु , ISBN: 81-86098-89-5
15- जस्ट एिोल्ि, प्राकृ बतक जीवन की ओर, 11वां संस्करर् - 2013, आरोनय मंबदर प्रकाशन, आरोनय मंबदर, गोरखपरु , ISBN:
978-81-925689-1-1
16- शेल्टनहबणटणएम., सरस्वती, िॉक्टर उपवास से जीवनरक्षा, 13वां संस्करर् (3000), सवण सेवा संर्-प्रकाशन, राजर्ाट, वारार्सी,
ISBN: 978-93-83982-70-7
17- पण्ि्या, िॉ. प्रर्न, योग के वैज्ञाबनक प्रयोग, पनु रावृबत्त सन् 2006, श्रीवेदमाता गायत्री रस्ट, गायत्री नगर, श्रीरामपरु म-शाबं तकंु ज
हररद्वार
18- मह्मविणस,यज्ञ बिबकत्सा, पनु रावृबत्त सन् 2016, श्रीवेदमातागयात्री रस्ट, गायत्री नगर श्रीरामपरु म-शांबतकंु ज, हररद्वार
19- बमश्रा, प्रो. जेपीएन, शेखावत, िॉ प्रदम्ु न बसंह बॅगारोत, िॉ. यवु राज बसंह, नवीन संस्करर्-2016, जैन बवश्वभारती लािनंू,
राजस्थान
20- सरस्वती स्वामी सत्यानदं , योगबनद्रा, पिं म सस्ं करर् 2013, योग पबब्लके शन रस्ट मगंु ेर, बबहार, भारत, ISBN: 987-81-
85787-53-4
21- योगदशणन, गीताप्रेसगोरखपरु 1/1
22- अग्रवाल, िॉक्टर जीसी, मानव शरीर बवज्ञान, सप्तम सोपान 2010, एक्युप्रेशर शोध प्रबशक्षर् एवं उपिार संस्थान, बमंटोरोि
इलाहाबाद
23- टंिन, प्रोिे सर िॉक्टर ओपी, मानव शरीर रिनाए व बक्रया बवज्ञान, तीसरा सस्ं करर्-2015, शबि बवहार, पीतमपरु ा, बदल्ली
24- गप्तु ा, प्रो. (िॉ.) अनन्त प्रकाश, मानव शरीर रिना एवं बक्रया बवज्ञान, नयारहवां संशोबधत संस्करर्-2013, सबु मत प्रकाशन,
4807/24, भरत राम रोि दररयागंज, नई बदल्ली-2
25- गोयल िॉक्टर बृजभषू र्, प्राकृ बतक स्वास्थ्य एवं योग, सिदरजंगएनक्लेव, नई बदल्ली
26- ब्रह्मविणस, आयवु ेद का दशणन बक्रया शरीर एवं स्वास्थ्यवृत्त, पनु रावृबत्त सन् 2016, श्रीवेदमाता गायत्री रस्ट, गायत्री नगर श्रीराम
परु म-शाबं तकंु ज हररद्वार
27- सरस्वती, िॉक्टर स्वामी कमाणनन्द, रोग और योग, पनु ः मद्रु र् 2013, योग पबब्लके शन रस्ट मंगु ेर, बबहार, भारत
28- सज्ञं ाहरर् शोध िरवरी-2021, मल्ू य (Valume) 24 नम्बर 1, ISSN: 2278-8166, रजनीश कुमार गप्तु ा, ररसिण स्कॉलर,
"उच्ि रििाप में आहार व यौबगक अभ्यास"
29- संज्ञाहरर् शोध अगस्त-2021, मल्ू य (Valume) 24 नम्बर 2, ISSN: 2278-8166, रजनीश कुमार गप्तु ा, ररसिण स्कॉलर,
"कोबवि-19 से ठीक हए व्यबियों के बवबभन्न समस्याओ ं में एक्यप्रू ेशर (मेररबियनोलॉजी) बिबकत्सा का महत्व"
30- सरावगी, धमणिन्द, मोटापा की प्राकृ बतक बिबकत्सा, 18वा-ं संस्करर्-2015, सवण सेवा संर् प्रकाशन, राजर्ाट, वारार्सी-
221001, ISBN: 978-93-83982-67-7