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नई शिक्षा नीति की दृष्टि से भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन की महत्ता - डॉ. रणजीत भारती
नई शिक्षा नीति की दृष्टि से भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन की महत्ता - डॉ. रणजीत भारती
पदचिन्ह
जर्वरी-जूर्, 2021 वर्न - 10 अंक - 1
सपं तदक
डॉ. अजय परमतर
B-30/239 नगव ां, लांक , व र णसी-221005
padchinhahindi@gmail.com
सह-संपतदक
डॉ. पंकज कुमतर चसंह
पचपोखरी, रोहत स (स स र म)
पपन- 802217 मो. 9823696685
gandhikhadi@gmail.com
© पदचिन्ह में व्यक् चवितर और सवतनचिकतर लेखकों के अपर्े हैं। प्रकतचित चवितरों से सपं तदक व सपं तदक-मंडल
की सहमचत अचर्वतयन र्हीं है। उक् सभी पद अवैतचर्क हैं। चकसी भी वतद-चववतद कत न्यतय क्षेत्र वतरतणसी होगत।
पदचिन्ह के चलए प्रकतिक अजय परमतर, बी.- 30/239, र्गवतं, लंकत वतरतणसी द्वतरत प्रकतचित और
सयू तन आफसेट, 30, चववेकतर्दं कतलोर्ी, मलदचहयत, वतरतणसी में मुचरत। सपं तदक : अजय परमतर
पदचिन्ह जर्वरी-जूर्, 2021 वर्न-10 अंक-1 2 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जर्नल
Multidisciplinary Peer Reviewed & Refereed Journal ISSN 2231-1351
साराि
ं (Abstract)-
इस शोध प्रपत्र का उद्देश्य ककसी पाठ को पढ़ने और पढ़ाने में भाषावैज्ञाकनक ज्ञान की आवश्यकता और महत्ता
को बाताते हुए इसके बारे में भ्ाांकतयों की चचाा कर उसका समाधान तथा भाषा के कनदेशात्मक (व्याकरकिक)
और विानात्मक अध्ययन के अतां र को स्पष्ट करना है। भाषाकवज्ञान भाषा का विानात्मक अध्ययन है। जो
पारम्पररक व्याकरकिक अध्ययन से कभन्न है। भाषावैज्ञाकनक अध्ययन के प्रकत अनेक भ्ाांकतयाां हैं। जैसे; इसे
के वल कहदां ी, अग्रां ेजी या ककसी अन्य भाषा के साथ जोड़कर देखना एवां भाषा कशक्षि के रूप मानना आकद।
जबकक इसका अध्ययन के क्षेत्र कवस्तृत है। आज भी भारत में (कुछ कें द्रीय एवां राज्य कवश्वकवद्यालयों को
छोड़कर) इस कवषय के बारे में सही ज्ञान के अभाव होने के कारि इसे कहदां ी, अग्रां ेजी आकद भाषा ां या क र
भाषाकशक्षि से जोड़कर देखा जाता है। यही कारि है कक भारत में आज भी इस कवषय का कवस्तार राज्य स्तरीय
कवश्वकवद्यालयों एवां कॉलेजों के स्तर पर अपेक्षाकृ त बहुत ही कम हुआ है। हालाांकक पकिमी देशों में इसे न कस ा
कॉलेज बककक मैकिक स्तर पर भी पढ़ाया जाता है। जैसे; अमेररका में वषा 1980 से ही भाषाकवज्ञान का
अध्ययन उच्च प्राथकमक स्तर से कराया जाता है। इस शोध आलेख में में भाषाकवज्ञान के तकनीकी कवस्तार में
न जाकर इसके सामान्य पररचय की बात की जाएगी, कजससे इसके सांबांध में व्याप्त भ्ाांकतयों को दरू ककया जा
सके । इसके अलावा भाकषक ज्ञान के दो रूपों भाषा के व्याकरकिक ज्ञान और उसके विानात्मक ज्ञान के अतां र
को स्पष्ट करने का प्रयास ककया गया है।
मुख्य िब्द : भाषाकवज्ञान, कनदेशात्मक अध्ययन, विानात्मक अध्ययन, भाषा अध्ययन की भ्ाकां तयाां
भाषाकवज्ञान एक ऐसा कवषय है कजसमें मानव द्वारा बोली जाने वाली सांसार की कवकभन्न भाषा ां की सांरचना
एवां उनसे जड़ु े कनयमों का विानात्मक अध्ययन ककया जाता है। भाषा ां के व्यापक अध्ययन से पता चलता है
कक अलग-अलग पररवार की भाषा ां के वैज्ञाकनक पहलू अलग-अलग होते हैं। भाषा ां का कवज्ञान कहने के
पीछे तका को इस प्रकार समझा जा सकता है। यकद हम कवज्ञान या पारांपररक कवज्ञानों में जीवकवज्ञान की बात करें
*
सहायक प्रोफे सर, भार्ाचवज्ञान चवभाग, के .एम.आई., डॉ. बी. आर. आबं ेडकर चव. चव., आगरा
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 18 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल
PADCHINHA ISSN 2231-1351
तो समान्यतः इसका अध्ययन ककसी जीव के सबां धां में होता है। जो ककसी कवकशष्ट जीव का अध्ययन या क र
इस सृकष्ट में मौजदू समस्त जीवों के सांबांध में हो सकता है। इसमें भी अध्ययन की कजस पद्धकत का प्रयोग करते हैं
वह वैज्ञाकनक अध्ययन की पद्धकत ही होती है। जब हम ककसी जीव का वस्तकु नष्ठ अध्ययन करने जाते है तो
सवाप्रथम वस्तु ककन-ककन चीजों से कमलकर बना है या उस वस्तु के सरां चक घटकों का अलग-अलग कवश्ले षि
करते हैं। यकद ककसी जीव का वस्तकु नष्ठ अध्ययन करना हो तो उसके सांरचना में सकम्मकलत न्यनू तम स्तर से
लेकर उपरी स्तर तक या उपरी स्तर से लेकर न्यनू तम स्तर तक का अध्ययन एवां कवश्ले षि करते हैं। जैसे- यकद
मानव शरीर को ही कलया जाए तो इसका अध्ययन कवकभन्न स्तरों (कोकशका उत्तक अगां या अवयव
शरीर) पर करके शरीर की वस्तकु नष्ठता का अध्ययन एवां कवश्ले षि ककया जाता है। कजसके आधार पर ही हम
एक जीव से दसू रे जीव की समानता और असमानता का पता चलता है। कजसके आधार पर हम उनकी अलग-
अलग श्रेिी बनाते हैं। लेककन हमें कुछ समान गिु हर जीव में कमलते हैं। इसी प्रकार भाषाकवज्ञान में भी भाषा के
कवकभन्न स्तरों (ध्वकन, रूप/शब्द, वाक्य, अथा) पर अध्ययन कर उसकी वस्तकु नष्ठता का अध्ययन और कवश्ले षि
ककया जाता है। कजसके अधार पर ककसी भाषा कवशेष में होने वाले कवकभन्न भाकषक व्यवहारों का कवश्लेषि और
उनसे सांबांकधत कनयमों का उद्घाटन ककया जाता है। या क र एक से अकधक भाषा ां के वैज्ञाकनकता का अध्ययन
और कवश्ले षि कर उनकी समानता और असमानता सबां धां ी कनयमों का उद्घाटन करके उनका अलग-अलग
समहू बनाते हैं।
अतः इसे भाषा ां का कवज्ञान कहना उकचत प्रतीत होता है। नई कशक्षा नीकत 2020 में कशक्षि को
मातृभाषा में कदए जाने पर जोर कदया गया है। लेककन ककसी कशक्षाथी अपनी मातृभाषा तो बोलने में सहज हैं
लेककन उसके भाषावैज्ञाकनक ज्ञान को बताने में असमथा होता है। जैसे; जो वाक्य बोल रहा है उसमें आए हुए
शब्दों के वगा कौन-कौन से हैं? वाक्य की सरां चना क्या है? उसके अथा की व्याख्या कै से होगी आकद प्रश्नों को
पछ
ू ने पर 90 प्रकतशत कशक्षाकथायों द्वारा कोई जवाब नहीं कमल पाता है। अथाात उनमें भाषावैज्ञाकनक ज्ञान की
कमी है। भाषावैज्ञाकनक ज्ञान ही हमें भाषा में नीकहत ज्ञान को समझने में मदद करता है। और भाषा न समझ आने
के कारि बहुत से कशक्षाथी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं।
एम. ए. के . हैकलडे के अनसु ार बच्चों में भाषा सीखने के सात अलग-अलग प्रकाया होते हैं तथा भाषा
अध्ययन के तीन प्रमख ु मॉडल होते हैं- भाषा के माध्यम से ज्ञान को कै से व्यवकस्थत ककया जाए? भाषा
कवद्याकथायों को सीखने में कै से मदद करती है? और कशक्षाथी को सीखाने के कलए कशक्षक को भाषा के बारे में
ककस प्रकार के जानकारी की आवश्यकता होती है? मैक्स मल ू र के शब्दों में ‘भाषा का कवज्ञान वतामान समय
का कवज्ञान है। कजसमें हम मानव भाषा का वैज्ञाकनक अध्ययन सांगिकीय ष्कष्टकोि से ककया जाता है।’ धनजी
प्रसाद के अनसु ार- इसमें मख्ु यतः तीन बातों को ध्यान में रखना होता है- पहला भाषाकवज्ञान तकनीकी से अपने
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 19 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल
R.N.I. UPHIN/2011/37086 PADCHINHA
आप को ककस प्रकार जोड़ता है? दसू रा भाषावैज्ञाकनक ज्ञान के तकनीकी क्षेत्र में अनप्रु योग की कवकध क्या है?
एवां तीसरा भाषावैज्ञाकनक ज्ञान के तकनीकी से सांबांकधत अनुप्रयोग क्षेत्र कौन से हैं? भारत में इन प्रश्नों की चचाा
कशक्षि की ष्कष्ट से कम देखने को कमलती है।
3.0 िोध प्रचवचध (Research Method)-
इस शोध प्रपत्र में प्रश्नावली कवकध का प्रयोग ककया गया है। जो उत्तर प्रदेश के 50 लोगों (25 पवू ी उत्तर
प्रदेश और 25 पकिमी उत्तर प्रदेश) के साथ हुए प्रश्नावली के आधार पर मौकखक वाताालाप पर आधाररत है।
इसमें शाकमल प्रकतभाकगयों का शैकक्षक स्तर इटां रमीकडएट से लेकर स्नातक तक है।
4.0 ििाष (Discussion)-
प्रश्नावली में पछ
ू े गए प्रश्नों जैसे; आप जो भाषा बोलते हैं, उसमें ककतने स्वर और व्यांजन हैं? आपकी
मातृभाषा में ककतनी ध्वकनयाां है? आपकी मातृभाषा में शब्दों की व्याकरकिक भेद ककतने हैं? आपको मातृभाषा
में पढ़ना अच्छा लगता है कक अग्रां ेजी में? भाषा सीखना और भाषाकवज्ञान को आप एक ही मानते हैं या अलग-
अलग? आकद प्रश्नों के उत्तर को आधार मानकर चचाा की गई है जो इस प्रकार हैं-
4.1 भ्ांचिया-ं भाषाकवज्ञान के अध्ययन सांबांधी भ्ाांकतयों के सांबांध में पहली प्रमख
ु बात यह है कक इसे ककसी
एक भाषा के अध्ययन के साथ जोड़कर देखा जाता है। जैसे- उत्तर प्रदेश के ज्यादातर कहदां ी अध्यापक यही
मानकर चलते हैं कक भाषाकवज्ञान कहदां ी का ही एक कहस्सा है, क्योंकक बी.ए. कहदां ी में एक प्रश्न-पत्र कहदां ी का
पढ़ाया जाता है। जबकक भाषाकवज्ञान का अध्ययन ककसी भाषा कवशेष के अध्ययन पर कें कद्रत नहीं होता जैसा
कक गैर भाषावैज्ञाकनक सोचते हैं। भाषावैज्ञाकनक के कलए कोई भी भाषा बड़ी या छोटी नहीं होती और न ही वह
ककसी कवकशष्ट भाषा के अध्ययन के कलए बाध्य होता है। ये बात और है कक जो भाषावैज्ञाकनक कजस भाषा
पररवेश में रहता है, सवाप्रथम उसी भाषा का अध्ययन करता है। इससे यह नहीं कहा जा सकता कक भाषा का
कवज्ञान उसी भाषा तक सीकमत है। इसके अलावा एक भाषावैज्ञाकनक उस भाषा का भी अध्ययन करने में सक्षम
होता है, कजसे वह कबककुल नहीं जानता है। अतः इसे ककसी भाषा कवशेष से जोड़कर नहीं देखना चाकहए।
भाषाकवज्ञान के सबां धां में दूसरी सबसे बड़ी भ्ाकां त है इसे के वल भाषाकशक्षि से जोड़कर देखना।
ज्यदातर लोग कजन्हें भाषाकवज्ञान के ककसी कशक्षक से कमलते है तो पछ ू ते हैं कक आप कौन सी भाषा पढ़ाते है।
जबकक भाषाकशक्षि भाषाकवज्ञान का अनप्रु ायोकगक क्षेत्र है। भाषाकवज्ञान द्वारा ककसी एक भाषा के वैज्ञाकनकता
का दसू री भाषा की वैज्ञाकनकता के साथ तल ु ना कर भाषाकशक्षि हेतु उपयोगी कसद्धांतों का कनमााि ककया जाता
है। कजनका उपयोग कर भाषाकशक्षि में करके कशक्षि को और आसान बनाया जाता है।
भाषाकवज्ञान के सबां धां में िीसरी भ्ाकां त है कक इसे भाषा जानने से जोड़कर देखना। ज्यादातर लोग
भाषाकवज्ञान से कशक्षकों से पछ
ू ते हैं कक आप ककतनी भाषा जानते हैं। हालाांकक कई सारी भाषा ां के जानकार
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 20 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल
PADCHINHA ISSN 2231-1351
को पॉलीग्लाट कहा जाता है। भाषा जानना और भाषा के बारे में जानना दोनों अलग-अलग बाते हैं। इन सबके
अलावा हमारी सरकार भी भाषाकवज्ञान कवषय के बारे में ज्यादा जागरूक नहीं है। कजसका प्रमाि इस कवषय को
स्नातक स्तर पर न पढ़ाए जाने से कमलता। यकद इसे स्नातक स्तर पर शरू ु कर कदया जाए तो इससे सांबांकधत
भ्ाकां तयों को भी दरू ककया जा सकता है।
िौथी भ्ाांकत तब होती है जब वैज्ञाकनक अध्ययन का नाम लेते ही सामान्यतः लोगों के मन में
पारांपररक रूप से पढ़ाए जाने वाले कवषय भौकतकी, रसायन, जीवकवज्ञान आकद का कबम्ब आता है। प्रश्न यह
उठता है कक क्या भौकतक वस्तु ां का ही वस्तकु नष्ठ अध्ययन ककया जा सकता है? सही मायने में वैज्ञाकनक
अध्ययन के वल भौकतक कवज्ञानों के ही कलए नहीं बककक इसे एक प्रकवकध के रूप में ककसी भी कवषय के
अध्ययन के कलए प्रयक्त ु ककया जा सकता है। नई कशक्षा नीकत 2020 के अनसु ार वैज्ञाकनक अध्ययन का दायरा
व्यापक होने एवां इसे अन्य कवषयों के साथ जोड़कर अतां रानुशाकसत अध्ययन पर जोर कदया जा रहा है। कजसके
पररिामस्वरूप ककसी भी कवषय के अध्ययन की व्यापकता बढ़ी है। अथाात इसका क्षेत्र के वल भौकतक पदथों
तक सीकमत न होकर एक प्रकवकध के रूप में कवस्ताररत हुआ है। अतः हम कजस भी कवषय का वस्तकु नष्ठ अध्ययन
करें गे उसके साथ कवज्ञान का प्रयोग कर सकते हैं।
इन सभी भ्ाकां तयों के पीछे मल
ू कारि इसके प्रकत जाकरूकता का अभाव एवां भाषाकवज्ञान की
अतां रानश
ु ाकसत (interdisciplinary) प्रकृ कत है। अथाात भाषा का अध्ययन बहुआयामी होता है। इसके
अध्ययन के कई पक्ष होते हैं। जैसे- सामाकजक, ऐकतहाकसक, राजनैकतक, मनोवैज्ञाकनक, कम््यटू र आकद।
दरअसल ककसी भी कवषय के अध्ययन के बहुत से तरीके होते हैं, कजसमें से एक भाषावैज्ञाकनक भी होता है।
अतः भाषा का कवकभन्न कवषयों के साथ क्या सांबांध है या भाषा से सांबांकधत उसमें क्या-क्या प्रकियाएँ होती है।
उनका वैज्ञाकनक अध्ययन और कवश्लेषि करना भाषाकवज्ञान की पररकध में आता है। जैसे - ‘कहदां ी भाषा का
इकतहास’ कहा जाए तो इसमें कहदां ी भाषा का ऐकतहाकसक कववरि की जानकारी कमलती है न कक कहदां ी भाषा का
वैज्ञाकनक कवश्ले षि, लेककन ज्यादातर कहदां ी के कवद्वान इसे भाषाकवज्ञान से जोड़कर देखते हैं। जबकक यह
भाषाकवज्ञान तब होगा जब ककसी भाषा को कें द्र में रखकर उसमें हो रहे ऐकतहाकसक पररवतानों का भाषावैज्ञाकनक
अध्ययन और कवश्लेषि कर उनके भाकषक कनयमों को प्रकतपाकदत ककया जाए। ताकक इन भाकषक कनयमों को न
के वल उसी भाषा बककक उससे जड़ु ी अन्य भाषा ां के अध्ययन के कलए भी उपयोग ककया जा सके । इस तरह
का अध्ययन ऐकतहाकसक भाषाकवज्ञान कहलाता है।
4.2 भार्ाचवज्ञान एवं भार्ावैज्ञाचनक ज्ञान- भाषाकवज्ञान के अतां गात ककसी भी भाषा के चार प्रमख ु स्तरों
(ध्वकन, रूप/शब्द, वाक्य, अथा) का अध्ययन और कवश्लेषि ध्वकनकवज्ञान, रूपकवज्ञान, वाक्यकवज्ञान और
अथाकवज्ञान के अतां गात ककया जाता है। इनके अध्ययन के पक्ष होते हैं- सैद्धाांकतक एवां अनुप्रयोकगक। सैद्धाांकतक
पक्ष में मानव एवां मानवेत्तर भाषा क्या है? उसकी सरां चना क्या है? इसका मकस्तष्क से क्या सबां धां है? एवां भाषा
से जड़ु े कवकभन्न पहलु ां आकद का सैद्धाांकतक कचांतन कर इससे सांबांकधत ज्ञान का कवस्तार ककया जाता है। ककसी
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 21 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल
R.N.I. UPHIN/2011/37086 PADCHINHA
भी ज्ञान की साथाकता उसके अनप्रु योग से कसद्ध होती है। कजस कवषय के कजतने अकधक अनप्रु योग क्षेत्र होते हैं
वह उतना ही व्यवहाररक और समाजोपयोगी होता है। भाषा के सैद्धाांकतक अध्ययन के प्रयोकगक पक्ष को दो
रूपों में देखा जा सकता है- व्यवहाररक अनप्रु योग एवां तकनीकी अनप्रु योग। भाषाकवज्ञान के व्यवहाररक
अनप्रु योग से तात्पया यह है कक भाषावैज्ञाकनक अपने दैकनक व्यवहाररक जीवन एवां जीकवकोपाजान आकद में
इसका प्रयोग कै से करें । जैसे- भाषा कशक्षक, भाषा एक्सपटा, अनवु ादक, कोशकनमाािकताा आकद। जब हम
भाषाकवज्ञान के व्यवहाररक अनप्रु यक्त
ु क्षेत्रों की बात करते हैं तो उसके अतां गात वे क्षेत्र ही आते हैं कजनमें भाषा
का नहीं बककक भाषावैज्ञाकनक ज्ञान का उपयोग ककया जाता है। भाषाकवज्ञान का व्यवहाररक अनप्रु योग
कनम्नकलकखत क्षेत्रों जैसे- भाषा कशक्षि, कोश-कनमााि, मानव अनवु ाद, भाषा कनयोजन, लीगल म्सा, वाग्दोष
कचककत्सा, ॉरें कसक कवज्ञान आकद में ककया जाता है। तकनीकी अनप्रु योग भाषाकवज्ञान के अनप्रु योग का
वतामान पक्ष है। इसके अतां गात मानव द्वारा भाषा की समझ एवां प्रजजन (generation) का वस्तकु नष्ठ अध्ययन
कर उससे सबां कां धत ॉमाल कसद्धातां प्रस्ततु ककए जाते हैं। ताकक मानव भाषा का ससां ाधन तकनीकी के प्रमुख
साधनों, जैसे- कां्यूटर, मोबाइल, रोबोट आकद में कराया जा सके ।
भार्ावैज्ञाचनक ज्ञान से तात्पया भाषा की सांरचना प्रकार, उसके सांरचक घटकों की पहचान, ककसी
शब्द के मल
ू एवां उससे जड़ु ी व्याकरकिक सचू ना ां का ज्ञान, ककसी भाषा में ककसी अन्य भाषा से अलग
कवशेषता को पहचानने और कवश्लेकषत करने आकद की जानकारी से होता है। जैसे; कहदां ी भाषी छात्रों कहदां ी की
सरचनात्मक कवशेषता पछ ू ने पर 80 प्रकतशत कवद्याथी शब्द-वगा को बताने में ही असमथा थे। कजससे उनकी
भाषा की समझ का अदां ाजा लगाया जा सकता है।
5.0 चनष्कर्ष (Conclusion)-
भाषा बोलना और उसके भाषावैज्ञाकनक ज्ञान को समझना दोनों अलग-अलग हैं। कशक्षाथी अपनी मातृभाषा
बोलने में तो सहज कदखे, लेककन उसके भाषावैज्ञाकनक ज्ञान को बताने में असमथा थे। जैसे; जो वाक्य बोल रहा
है उसमें आए हुए शब्दों के वगा कौनकौन से हैं-? वाक्य की सांरचना क्या है? उसके अथा की व्याख्या कै से होगी
आकद प्रश्नों को पछू ने पर प्रकतशत कशक्षाकथायों द 90्वारा कोई जवाब नहीं कमला। अथाात उनमें भाषावैज्ञाकनक
ज्ञान की कमी है। भाषावैज्ञाकनक ज्ञान ही हमें भाषा में नीकहत ज्ञान को समझने में मदद करता है। नई कशक्षा नीकत
2020 में मातृभाषा में कशक्षि पर जोर कदया गया है। जो एक अत्यांत ही सरहनीय कदम है लेककन इसे सही रूप
से सांचाकलत करने के कलए न के वल कवद्याथी बककक कशक्षकों को भी इसके कलए अपने आप को तैयार करना
होगा। हालाकां क कक इसमें ककया गया विान कवद्याथी कें कद्रत है। इसके कनदान के कलए कशक्षक एवां कवद्याथी दोनों
के कलए भाषा के वैज्ञाकनक अध्ययन और भाषा के कवकवध प्रकायों के अध्ययन के महत्व को समझना होगा।
भाकषक ज्ञान और सीखने की क्षमता कवद्याकथायों को नई चनु ौकतयों का सामना करने और सामान्य व्यवहार के
ज्ञान एवां शैकक्षक ज्ञान में अतां र को समझने में आवश्यक होता है। तभी हम भारतीय भाषा ां को कशक्षि की
भाषा के रूप में स्थाकपत कर सकते हैं।
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 22 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल
PADCHINHA ISSN 2231-1351
संदभष :-
वेबसाइटें :
https://www.aajtak.in/education/story/engineering-to-be-taught-in-hindi-in-madhya-
pradesh-447760-2017-05-19
https://www.education.gov.in/hi/language-education-4-hi
https://www.indiatv.in/education/pm-modi-says-engineering-courses-will-be-taught-in-
5-languages-on-nep-2020-first-anniversary-804939
पदचिन्ह जनवरी-जून, 2021 वर्ष-10 अंक-1 23 पीअर ररव्यूड एडं रेफेरीड जनषल