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यदि आप भद्रकाली मं दिर, इटखोरी के पु रातत्विक अध्ययन के लिए विषयों की खोज कर रहे हैं , तो यहां कुछ

मु ख्य विषयों की सूची है :

1. मं दिर का वास्तु कला और स्थापत्य: मं दिर की वास्तु कला और सं रचना की विशे षताओं का अध्ययन।
मं दिर के भित्ति, गोपु रम्, ग्रीष्म-कालीन और शिविर-कालीन योजना, मण्डपों की व्याख्या।
2. मूर्ति-सं बंधी रचनाएं : मं दिर में स्थापित मूर्तियों के विश्ले षण। मूर्तियों के अभिकल्प, आकार, शै ली,
मणिमय अं गों का अध्ययन।
3. पु रातत्विक स्मारकों का अध्ययन: मं दिर के पास या निकट स्थित पु रातत्विक स्मारकों का अध्ययन, जै से
प्राचीन खं डहर, स्तूप, ले ख, या अन्य अवशे ष।
4. सां स्कृतिक सं बंध: मं दिर के पु रातात्विक अध्ययन से मं दिर के सां स्कृतिक सं बंध की अध्ययन करें । इसमें
स्थानीय लोक कथाओं, परं पराओं, और व्रत-त्योहारों का अध्ययन शामिल हो सकता है ।
5. इतिहासिक परिवे श: मं दिर के इतिहासिक परिवे श की अध्ययन करें । इसमें स्थल के ऐतिहासिक, धार्मिक,
और सां स्कृतिक सं पर्क के प्रतीक या स्मारकों का अध्ययन शामिल हो सकता है ।
6. आर्कि टे क्चरल डिजाइन और निर्माण प्रक्रिया: मं दिर के निर्माण प्रक्रिया, स्थापत्य तकनीक, और
आर्कि टे क्चरल डिजाइन की अध्ययन करें । इसमें उपयोग हुए धातु , पत्थर, और अन्य सामग्री का
अध्ययन शामिल हो सकता है ।

ये विषय आपको भद्रकाली मं दिर, इटखोरी के पु रातत्विक अध्ययन के लिए आरं भिक बिं दु तय करने में मदद कर
सकते हैं । आप इन विषयों के आधार पर अपने अध्ययन का कार्यक् रम बना सकते हैं और अधिक गहराई से उन्हें
अध्ययन कर सकते हैं ।

1. मं दिर के वास्तु कला और स्थापत्य: इस विषय में मं दिर की वास्तु कला, ग्रंथिकारी, मूर्तियां , और
सं रचनात्मक विशे षताएं शामिल होती हैं ।
2. मं दिर की पु रातत्विक उपलब्धियाँ : इस विषय में मं दिर के आस-पास के क्षे तर् में पाए जाने वाले
पु रातत्विक अवशे ष, खदाने , स्मारक आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है ।
3. भद्रकाली मं दिर का ऐतिहासिक परिवे श: इस विषय में मं दिर के इतिहास से सं बंधित तारीखों, प्राचीन
साहित्य, और स्थानीय परं पराओं का अध्ययन किया जाता है ।
4. प्राचीन मं दिर सं रचनाओं का तु लनात्मक अध्ययन: इस विषय में इटखोरी भद्रकाली मं दिर को अन्य
प्राचीन मं दिर सं रचनाओं के साथ तु लना करके उनकी सामान्यता और विशे षता का अध्ययन किया
जाता है ।
5. सां स्कृतिक और धार्मिक महत्व: इस विषय में मं दिर के सां स्कृतिक और धार्मिक महत्व को समझने के
लिए विभिन्न स्रोतों, पौराणिक कथाओं, और लोक परं पराओं का अध्ययन किया जाता है ।
झारखंड का गठन 15.11.2000 को भारत के 28 वें राज्य के रूप में
हुआ था। यह अनाकार प्रदर्शित करता है
आकार और 21° 58' उत्तर और 830 22' पूर्व तक फैला हुआ है । यह
भूमि विविध प्राचीन संस्कृतियों से समद्ध
ृ है और
परु ातात्त्विक अवशेष. इटखोरी, एक साधारण लेकिन शानदार
पुरातात्विक अवशेषों से भरपूर गांव,
इस प्रस्तुति का फोकस उत्तरी छोटानागपुर पठार के चतरा जिले पर
है । इसके बाद से
जिला गया जिले से सटा हुआ जिला है , जहां बौद्धों में सबसे पवित्र
बोधगया है
गंतव्यों, बौद्ध धर्म ने स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र में काफी प्रभाव डाला
है

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