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‫ं‪क़ब्रों के पास नमाज़ न पढ़ने के बीस प्रमाण एव‬‬

‫‪क़ब्रों पे मस्जिद एवं भवन ननमााण का हुक्म‬‬

‫‪लेखक‬‬

‫‪मास्िद बबन सल‬‬


‫‪ु ैमान अल-रसी‬‬

‫‪शाबान 4141 हहिरी‬‬

‫الرتمجة اهلندية لكتاب‪:‬‬

‫عشرون دليال يف النهي عن الصالة عند القبور‬

‫و بيان حكم بناء املساجد و الغرف عليها‬

‫لفضيلة الشيخ ماجد بن سليمان الرسي‬


पुजतक की व्याख्या

पुजतक का नाम: क़ब्रों के पास नमाज़ न पढ़ने के बीस प्रमाण


एवं क़ब्रों पे मस्जिद व भवन ननमााण का हुक्म

लेखक: मास्िद बबन सुलम


ै ान अल-रसी

प्रकाशन: 4111 हहिरी- 1214

ईमेल: binhifzurrahman@gmail.com

मोबाइल: 22544049511910

:‫الكتاب منشور في موقع صيد الفوائد و اسالم هاؤس‬

https://islamhous.com/hi//main
http://saaid.neook/list.php?cat=29

इस पज
ु तक के संपण
ू ा अधिकार लेखक के ललए सरु क्षित हैं।
ववषय सच
ू ी

ववषय सच
ू ी

प्रजतावना

मस्जिद का शास्ददक अर्ा

क़ब्रों को मस्जिद न बनाने के प्रमाण

क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने के ववषय में कुछ इजलामी ववद्िानों की रायें

क़ब्रों को मस्जिद बनाने के रूप

क़ब्रों को मस्जिद बनाना ह़राम है चाहे नमाज़ी के ललए क़ब्र की िगह


िहााँ भी हो।

क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने का हुक्म वैिता अर्वा अवैिता के दृस्टिकोण


से

क़ब्रों पर मस्जिद के ननमााण का मसला

क़ब्रों पर मस्जिद ननमााण की ननषेि के प्रमाण

मस्जदिों पर क़ब्रों का ननमााण करना।

क़ब्रों पर मस्जिद बनाने के संबंि में चारों िमाशाजर के पंर्ों की रायें

कुछ संदेह और उनका उत्तर


क़ब्रों पर भवन एवं गंब
ु द आहद बनाने का हुक्म

क़ब्रों पर भवन ननमााण ननषेद होने के प्रमाण

क़ब्र पर बने मसास्िद के ववरोि मुसलमानों के दानयत्व

क़ब्र को सिदागाह (सिदा करने का जर्ान) बनाने अर्वा क़ब्र पर


मस्जिद ननमााण करने से अनेक खराबीयााँ पैदा होती हैं। स्िन में कुछ
ननम्नललखखत है ।

क़ब्र की लमट्िी को उूं चा करना

क़ब्र पर हदया िलाने का हुक्म

क़ब्रों के सम्मान से संबंधित कुछ और बातें

क़ब्रों का अपमान

अंत से पहले कुछ बातें

अंनतम बातें

क़ब्रों पर भवन एवं गुंबद आहद बनाने के हुक्म

संदभा
प्रजतावना
‫ وعلى آله و صحبه وسلم‬،‫الحمد هلل وحده والصالة والسالم على من ال نبي بعده‬

ननिःसंदेह अल्लाह ने मनटु य व स्िन्नों को एक बडे उद्दे श्य के ललए पैदा


ककया है । िो यह है कक वे केवल उसी की प्रार्ाना करें और उसके सार्
ककसी को साझी न बनाएं। अल्लाह तआ़ला फरमाता है "और मैंने मनुटय
एवं स्िन्नों को अपनी इबादत के ललए पैदा ककया है " (सरू ह अल-
िाररयातिः65)
़ इबादत में अल्लाह की वप्रय व इच्छा की सारी बातें अर्ाात
छुपी हुई और जपटि बाते एवं काया सस्म्मललत हैं।

नमाज़,ज़कात,रोज़ा ह़ज्ि,सत्यता,अमानत अदा करना, माता-वपता से

उत्तम व्यवहार,संबंि ननभाना,वचन परू ा करना अच्छाई का उपदे श दे ना,

बुराई से रोकना,पडोसी,अनार्,ननिान राहगीर और दासों और मवेलशयों के

सार् अच्छा व्यवहार करना, दआ


ु ़ स्िक्र
़ नतलावत (सजवर पा)) आहद

चीज़ें इबादत में शालमल हैं। इसी प्रकार से अल्लाह और उसके रसूल

ु दबत,अल्लाह से डर,िमा को उसके ललए


सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम से मह

शुद्ि करना,उसके आदे श से सब्र करना,उसके उपकारों पर आभार व्यक्त

करना, उसके बनाये गये भाग्यों पर संतुटिी, उस पर ववश्वास,उसकी

कृपा की आशा,उसके दं ड का भय आहद चीिें भी इ़बादत हैं।

(‫) بتصرف يسير‬051-041/01( ‫)نقال من "مجموع الفتاوى"إلبن تيمية رحمه هللا‬


इ़बादत का ववलोम लशका है । इस प्रकार से कक मनटु य अल्लाह का साझी
बना ले और उसकी अल्लाह के िैसे इ़बादत करें और अल्लाह के प्रकार
उससे डरे और ककसी भी प्रकार की प्रार्ाना से उसकी ननकिता प्राप्त करे

स्िस प्रकार अल्लाह की ननकिता प्राप्त करता है िैसे नमाज़,ज़बह़,

मन्नत आहद।

बन्दों के सार् अल्लाह की करूणा यह भी है कक उसने लशका के राजतों


को बन्द कर हदया है यद्यवप वह काम अपने आप में लशका न हो ताकक
इन्सान ववनाश की अजर्ाव से सचेत और दरू रहे । उदाहरण जवरूप
इजलामी शरीअ़त में क़ब्रों के पास नमाज़ पर प्रनतबंि है चकूं क नबी
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने अनेक ह़दीसों में इस से मना ककया है इस
प्रनतबंि का कारण यह कक िब ननमाज़ पढ़ने वाला क़ब्र के पास नमाज़

ु े के ललए नमाज़,सिदा और ध्यान को


पढ़ता है तो शैतान उसके मद

सन्
ु दर बना दे ता है ववशेष रूप से कह)नाई की स्जर्नत में । और स्िसने
ऐसा ककया वह अल्लाह की प्रार्ाना में लशका में पड गया िो नरक में
सवैद रहने का कारण है ।

इस संक्षिप्त शोि में मैं ने अपनी बात रखनी चाही है ताकक मुझे और
मेरे भाइयों को लाभ हो।इस ववषय पर अहल-ए-सुन्नत की पुजतकों में
िो भी बबखरी हुई बातें र्ीं उन्हें एकबरत कर हदया है मैंने क़ब्रों के पास
नमाज़ पढ़ने के सम्बंि में शरीअ़त की प्रमाणों का उल्लेख ककया है ।
कफर चारों िमाशाजर के पंर्ों के िमागुरूओं की बातें भी प्रजतुत की हैं।
तत्पश्चात क़ब्रों के पास नमाज़ न पढ़ने के कारणों को ववजतार से
बताया है । इस शोि के सार् क़ब्रों पर भवन ननमााण का हुक्म भी
सस्म्मललत कर हदया है ।और यह बताया है कक चारों पंर्ों के िमागुरूओं
के ननकि यह ह़राम है । मैंने यह भी बताया कक सारे िमागरू
ु ओं का इस
पर एकमत है ।मैं अल्लाह से प्रार्ाना करता हूाँ कक इस शोि से लेखक
और पा)क को लाभ पहुंचाये। हम समजत मुसलमानों को लाभदायक
ज्ञान प्राप्त करने और अल्लाह और उसके रसूल सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम की शरीअ़त के अनस
ु ार नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की
सुन्नत पर चलने की तौफीक दे । इ़बादत में नवाचारों और मनगढ़त
बातों से बचाये ताकक हमारी इ़बादतें अल्लाह के ननकि जवीकृत और
प्रलय के हदन लाभप्रद हों।

‫وهللا اعلم و صلى هللا على نبينا محمد وعلى اله وصحبه وسلم تسليما كثيرا‬

लेखक

मस्िद बबन सुलैमान अल-रसी

मंगलवार 92-6-4141 हहिरी

फोन 222559626225954 सऊ़दी अ़रब


मस्जिद का शास्ददक अर्ा

मस्जिद शदद के दो उपयोग हैं:सामान्य एवं ववशेष, सामान्य अर्ा है :

िरती की हर जर्ान िहााँ नमाज़ सही हो समतल िरती हो अर्वा ऊाँची

नीची भवन हो अर्वा खाली जर्ान,इसी अर्ा में नबी सलल्लाहु अ़लैहह

वसल्लम का यह कर्न हैं "मरे ललये सारी भ िरती मस्जिद और पववर

बनाई गई है ।(बुखारी:4446
़ ,मुस्जलम 694,िाबबर रज़ीअल्लाहु अंहु से
वर्खणत)

यहााँ पववर का अर्ा यह है कक उस से पववरता प्राप्त करना )ीक हो


तयम्मम
ु द्वारा।

ववशेष अर्ा में मस्जिद उस भवन को बोलते हैं स्िसे सारे लोगा िानते
हैं इसी अर्ा में अल्लाह का यह फरमान है :

‫إنما يعمر مساجد هللا من آمن باهلل و اليوم اآلخر ولم يخش إال هللا‬

"नन:संदेह अल्लाह की मस्जिद वही लोग आबाद करते हैं िो अल्लाह


और प्रलय के हदन पर ईमान रखते हैं और कवेल अल्लाह से डरते है ।"
(सूरह तौबा:41)

क़ब्रों को मस्जिद बनाने का अर्ािः


मस्जिदों को क़ब्र बनाने का दो अर्र् है उनपर मस्जिद बनायी िाये
अर्वा बबना भवन के ही क़ब्रों के ननकि नमाज़ पढ़ी िाए।)

)1٢/442 "‫)قاله ابن تيميه رحمه هللا كما في "مجموع الفتاوى‬

क़ब्रों को मस्जिद बनाने वालों की स्जर्नतिः

िो लोग मस्जिदों को क़ब्र बनाते हैं उनकी दो स्जर्नतयां हैं।

प्रर्म:क़ब्र की पि
ू ा करना,नमाज़ एवं सिदा द्वारा,िैसा कक बत
ु ों की
पूिा करने वाले बुतों के सामने करते हैं और यह खुला कुफ्र है स्िसमें
कोई संदेह नहीं।

द्ववतीय:क़ब्र की ओर इस ववश्वास के सार् नमाज़ पढ़ना कक उसकी


ओर नमाज़ की उस नमाज़ से ज्यादा फिीलत
़ है िो ककसी क़ब्र की ओर
न हो।यही वह स्जर्नत है स्िसकी ह़दीस में मनाही आई हुई है ।

क़ब्रों के पास नमाज़ न पढ़ने के कारण:

छह कारणों के आिार पर इजलामी शरीअ़त क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने


से मना करती है चाहह क़ब्र ककसी मस्जिद के भवन के नीचे हो अर्वा
ककसी ननिान भूलम में ।

प्रर्म कारण:
क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने वालों में से अधिकांश का ववश्वास है कक क़ब्र
के पास अर्वा उसके अन्य भागों में नमाज़ जर्ावपत करने पर एक
ववशेष बरकत और फिीलत
़ है । इस ववश्वास की न तो अल्लह की
पज
ु तक में कोई वाजतववकता है और न ही रसल
ू ल्लाह सल्लल्लाहू अ़लैहह
वसल्लम की सुन्नत में क्योंकक शरीअ़त में (4) मस्जिद-ए-ह़राम,(9)

मस्जिद-ए-नववी,(4)मस्जिद-ए-अ़क़्सा(1)मदीना की मस्जिद कुवा वादी-ए-

अकीक़़ और(6)मदीने के मीकात िुलह


़ ु लैफा के अलावा ककसी दस
ु री जर्ान
में नमाज़ पढ़ने की फिीलत
़ नहीं है । इसी आिार पर क़ब्रों के पास
नमाज़ पढ़ना नवाचारों में से है और यह मालूम है कक ववदआत उनके
करने वाले मरदद
ू (अजवीकृत) हैं।वे अल्लाह तआ़ला के यहााँ अजवीकृत हैं
और वे एक बडे पाप की ओर ले िाती है ।

(4) िैसा कक इसका प्रमाण िबबर रज़ीअल्लाहु अंहु की ह़दीस है कक


उन्होंने कहा कक रसल
ू सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया मेरी
मस्जिद की एक नमाज़ काबा के अलावा दस
ू री मस्जिदों की एक हिार
नमाज़ से अधिक बेहतर है और मस्जिद-ए-ह़राम की एक नमाज़ उसके
स्अतररक्त की एक लाख नमािों से अधिक बेहतर है । (इसे इदने मािा

4125 ने वणान ककया है ,यहााँ उन्हीं के शदद हैं और अह़मद (44414) ने

ररवायत ककया है )।उसे अल्बानी और अल-मुजनद के शोिकतााओं ने सही ़


माना है )।
(9) इसका प्रमाण िाबबर रज़ीअल्लाहु अ़ंहु की वपछली ह़दीस है और इसी
प्रकार अबू हुरै रा रज़ीअल्लाहु अंहु की ह़दीस है कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम ने फरमाया कक मेरी इस मस्जिद की एक नमाज़ इसके अलावा
दस
ु री मस्जिद की हज़ार समािों से अधिक बेहतर है लसवाय मस्जिद-ए-
ह़राम के (इसे बुखारी़ (4422) और मुस्जलम (4426) ने ररवायत ककया
है )।

(4) इसकी प्रमाण अबुहुरै रा रज़ीअल्लाहु अंहु की ह़दीस है कक रसूल


सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया कक तीन ही मस्जिदों की ओर
यारा करना िाएज़ है :

मस्जिद-ए-ह़राम,रसल
ू सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की मस्जिद और

मस्जिद-ए-अ़क़्सा (इसे बुखारी़ (4412) और मुस्जलम (4429) ने ररवायत


ककया है )

(1) इसका प्रमाण यह है कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम प्रत्येक


शनीवार को मस्जिद-ए-कुबा सवार हो कर या पैदल चलकर आते र्े और
उस में दो रकअ़त नमाज़ पढ़ते र्े।बुखारी़ (4424) और मुस्जलम (4422)
ने इसे उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहु से ररवायत ककया है ।

और उसैद बबन ज़हीर अंसारी से ररवायत है कक उन्होंने नबी सलल्लाहु


अ़लैहह वसल्लम से ररवायत ककया है कक मस्जिद-ए-क़ुबा में नमाज़ पढ़ने
का पण्
ु य एक उ़मरा के समान है ।इसे नतरलमज़ी (491) और इदने मािा
(4144) ने ररवायत ककया और इसे अल्बानी ने सही ़ कहा है ।

(6) इसका प्रमाण नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम का फरमान है कक:


आि रात मेरे रब की ओर से एक आने वाला आया और उसने मुझसे
कहा कक इस पववर घािी में नमाज़ पढ़ो और कहा उ़मरा ह़ज्ि में प्रवेश
है ।इसे बख
ु ारी़ (4641) ने उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहु से ररवायत ककया है ।
सन्
ु नत यह है कक िब कोई मुसलमान बबना ककसी इरादा के अकीक़
घािी से गुिरे तो उसमें नमाज़ पढ़े ।यह ह़ज्ि अर्वा उ़मरा की यारा के
सार् ववशेष नहीं है बस्ल्क िब भी वह उस के पास से गुिरे तो उसके
ललए उसमें नमाज़ पढ़ना मज
ु तह़ब (वह काया स्िसके करने पर पुण्य और
न करने पर पाप न हो) है िैसा कक नवी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम
करते र्े।अददल्
ु लाह बबन उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहु से ररवायत है कक रसूल
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम शिरा के राजते से गुिरते हुए मोअरास के
राजते से मदीना आते और िब मक्का िाते तो शिरा की मजिद में
नमाज़ पढ़ते ककन्तु वापसी में िुलहुलै़ फा के नीचे जर्ान में नमाज़ पढ़ते
और सुबह तक वहीं रात गुिारते।इसे बुखारी़ (4644) ने ररवायत ककया

है और इदने रिब ने फतहुल बारी में माललक,शाफई़,अबू ह़नीफा और

अह़मद से उसमें नमाज़ पढ़ने के मुजतहब होने की बात बयान की


है ।दे खखए

(44146-145) ‫باب المساجد التي على طرق المدينة‬:‫)كتاب الصالة‬


और इदने ह़िर ने फतहुल़ बारी में उ़मर की वपछली ह़दीस की व्याख्या
में कहा कक ह़दीस में अकीक की महानता मदीना की फिीलत
़ के िैसा
है और उस में नमाज़ पढ़ना की फज़ीलत है ।

इरबाि बबन सररया की ह़दीस में है कक नबी सल्लल्लाहु अ़लैहह व


सल्लम ने फरमाया कक "िमा में नई चीिों से बचो इसललए की प्रत्येक
नई चीज़ बबदअ़त4नवाचार है और प्रत्येक नवाचार गम
ु राही है "(इसे अबू

दाऊद,(1529) नतलमािी ़ (9595),इदने मािा (19),अह़मद (144495-499),

इदने हहदबान
़ (49492 ),यह उन्हीं के शदद हैं और उनके अलावा ने

ररवायत ककया है और ह़दीस को अल्बानी रहहमदल्


ु लाह ने सही ़ कहा है ।)

और आइशा रज़ीअल्लाहु अंहा ने ररवायत है कक रसूलुल्लाह सलल्लाहु


अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया कक "स्िसने हमारे इस िमा में कोई ऐसी
नई चीज़ अववटकार की िो उस में नहीं है तो वह मरदरू है " इसे बख
ु ारी
(9529) और मुस्जलम (4941) ने ररवायत ककया और मुस्जलम की एक
ररवायत में है कक "स्िस ने काई ऐसा काम ककया स्िस पर हमारा
आदे श नहीं है तो वह रद्द है "।इसे मस्ु जलम (4941) ने ररवायत ककया
है । शैख मरई़ बबन युसुफ करमी ह़ंबली का कर्न है :िानलो कक शरीअ़त
में प्रत्येक जर्ान की फिीलत
़ नहीं है ।और न ही उस में कोई चीज़ है िो
उसके महत्व को अननवाया करे ककसी जर्ान की यारा करना या उसमें

नमाज़,दआ
ु ़ स्िक्र
़ अर्वा उसके अलावा के ललए इितेमा का इरादा करना

जपटि गुमराही और भारी गलती है ।क्योंकक यह िता में कानूनसाज़र है


और ककसी ऐसे जर्ान की फिीलत
़ नहीं दी है । बस्ल्क वह केवल मन की
इच्छा है स्िसे अल्लह में एक पूिा ककये िाने वाले पूज्य के िैसा करार
हदया है ।

िैसा कक अल्लाह तआ़ला का फरमान है कक 'भला दे खो तो उसे स्िसने

अपनी इच्छा को अपना पूज्य बना ललया है ।" (सूरह अल- िासीया-94)
इस में मश
ु ररकों को मश
ु ाबहत है स्िन्हों ने अपनी आत्मइच्छा की ललए
कुछ जर्ानों को महत्व दे रखी है वे वहााँ ककसी मूनता अर्वा उसके
अलावा के ललए िाते र्े उनका ववश्वास र्ा वह उन्हें अल्लाह तआ़ला के
ननकि कर दे ता है

(61-62) ‫شفاء الصدور في زيارة المشاهد والقبور‬

प्रकाशन:मकतबा नज्िाऱ मुजतफा अल-बाज़-मक्का

इसी प्रकार से यह कहना कक क़ब्रों पे नमाज़ पढ़ना अफज़ल है शरीअ़त


पर एक आरोप है और बबना ज्ञान के अल्लाह की बात करना है ।यह बडे
पापों में से एक है। अल्लाह तआ़ला का फरमान कक "कहदो मेरे रब ने
बेहयाई (अलशटिता) की बातों को ह़राम ककया है ।चाहह वे जपटि हों अर्वा
छुपे हों और प्रत्येक पाप को और नाहक ककसी पर अत्याचार करने को
और यह कक अल्लाह के सार् ककसी को शरीक )हराओ स्िसका उसने
कोई प्रमाण नहीं नास्ज़ल ककया और यह कक तुम अल्लाह पर वे बातें
कहो िो तम
ु नहीं िानते।" (सरू ह अल-आ़राफ-44)
दस
ु रा कारण:

क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने से रोकने का दस


ू रा कारण यह कक क़ब्र के
पास नमाज़ पढ़ने का कारण क़ब्र वाले की सम्मान करना है िबकक
अल्लाह तआ़ला का सम्मान होना चाहहए िो नमाज़ी की बुद्धि में
प्रभावी है ।

तीसरा कारण:

क़ब्र वाले की क़ब्र के पास नमाज़ पढ़ कर सम्मान करना समय के सार्
और बढ़ िाता है यहााँ तक कक क़ब्र वाले ही की प्रार्ाना की िाने लगती

है उस का सिदा ककया िाता है , घुिने िे के िाते हैं, दआ


ु ़ की िाती है ,
पशु ज़बह़ ककया िाता है और तवाफ ककया िाता है ।अत: वह सम्मान
करने वाला मूनता पूिा में पड िाता है । अल्लाह बचाए। इमाम नौवी
रहहमह
़ ु ल्लाह ने कहा है कक ववद्िानों का कहना है कक "नबी सलल्लाह
अ़लैहह वसल्लम ने अपनी और अपने अलावा की क़ब्र को उसके सम्मान
में अनतशयोस्क्त करने और उसके प्रेम में हदवाना होने के डर से मस्जिद
बनाने से मना ककया है ।इस ललए कभी यह कुफ्र का कारण बनता है
िैसा कक बहुत सी पूवा की कौमों ने ककया और िलालुद्दीन सुयुती
शाफई़ रहहमह
़ ु ल्लाह ने अपनी पुजतक ‫ األمر باإلتباع و النهي عن اإلبتداع‬में
जपटि करते हुए कहा है :यही वह कारण है स्िसके ललए नबी सलल्लाह
अ़लैहह वसल्लम ने मना कर हदया है इसी ने अनेक उम्मतों को लशका-ए-
अकबर अर्वा असगर में डाला इसी ललए तो बहुत सी गम
ु राह उम्मतों
को सदाचार पूवि
ा ों की क़ब्रों के पास धगडधगडाते ववनम्रता एवं
ववनयशीलता करते और अपने हदल से उनकी प्रार्ाना करते हुए दे खते हो
व उन्हें अल्लाह के घर मस्जिद में नहीं करते हैं वे उनके पास नमाज़
पढ़ कर दआ
ु करके वे आशा रखते हैं िो उन मस्जिदों में नहीं रखते
स्िनकी ओर यारा करना मश्रू है ।यह वह बबगाड है स्िसके समाप्त का
नबी सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम ने इरादा ककया र्ा। यहााँ तक कक आपने
क़ब्र से नमाज़ पढ़ने से मना कर हदया यद्यवप नमाज़ी का उस जर्ान
या उस भवन की बरकत का इरादा न हो उस बबगाड के कारण को
रोकते हुए स्िस के कारण से मूनता पूिा हुई और इदने तैलमया
रहह़मदल्
ु लाह ने कहा है कक क़ब्रों को मसास्िद बनाना लशका के आिारों
में से है ।

उन्होंने अधिक यह कहा कक क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ना उन्हें मस्जिद


बनाना और उस पर मस्जिदों का ननमााण करना वहााँ बडी बबदअ़तों और
लशका के कारणों में से है ।

चौर्ा कारण:

क़ब्रों को मस्जिद बनाने से रोकने का चौर्ा कारण उन क़बों के सार्


ववशेष है िो मस्जिदों में है वह यह कक मस्जिरों में क़बों का ननमााण
उस वाजतववक नीनत के ववरूद्ि है स्िस के ललए अल्लाह ने मस्जिदों के
ननमााण को मशरू ककया है और वह मस्जिदों को केवल अल्लाह का घर
मानना है उनमें उसके अलावा ककसी को उसके सार् साझी ना ककया
िाए िबकक उनमें क़ब्रों का ननमााण स्िसमें अल्लाह और उसके िीव के
बीच में एक साझेदारी और मस्जिदों को अल्लाह और िीवों का घर
बनाना है ।

पांचवां कारण:

यह उन क़ब्रों के सार् ववशेष है िो मस्जिदों में है अल्लाह तआ़ला ने


मुसलमानों के ललए मस्जिदों के ननमााण को केवल अपनी और अपनी
नमाज़ के सम्मान के इरादे से मशरू ककया है मनू ता के सम्मान के इरादे

के ललए नहीं चाहह वे मुद्रे अंबबया,सदाचारी ववद्िान हों चाहे उनके

अलावा हों उनके पास नमाज़ पढ़ना मना है । इसललए कक नमािी ़ के मन


में केवल अल्लाह का आदर नहीं होती है ।बस्ल्क वह उसके अलावा को
उसके सार् साझी ककये हुआ है और वह क़ब्र वाला है ।

छ)ा कारण:

यह उन क़ब्रों के सार् ववशेष है िो मस्जिदों में है ।अल्लाह तआ़ला ने


मज
ु लमानों के ललए मस्जिदों में मुदों के दफन को पण
ू त
ा ा से मशरू नहीं
ककया है ।उसे पहली तीनों पसंदीदा शतास्दयों में न तो नबी सलल्लाह
अ़लैहह वसल्लम ने न उनके सहाबा
़ ने और न ही ताबई़ ने ककया है ।
इसललए मस्जिदों में क़ब्र बनाना अल्लाह के दीन में बबदअ़त हैं और हर
बबदअ़त गम
ु राही है ।िैसा कक इरबाज़ बबन सारीया (रज़ीअल्लाहु अन्हु) की
वपछली ह़दीस में आया है ।

क़बों को मस्जिद न बनाने के प्रमाण

अनेक ह़दीसों में क़ब्रों को मस्जिद बनाने के संबंि में नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम की मनाही आई है कफर आपके मत्ृ यु रोग में मनाही पर
बल हदया गया है ।रोग की तीव्रता एवं उसकी गहनता के बाविूद आपने
एक बार कफर उसकी मनाही पर बल हदया और आप निा की स्जर्नत में
र्े।यह मामले की गंभीरता और उसके महत्व को बताता है ।क्योंकक आप
की यह स्जर्नत क़ब्रों को मसास्िद बनाने से रोकने से गाकफल नहीं कर
पायी।इस अध्याय में नबी सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम से बीस से अधिक
ह़दीसें आई हैं।

(4) िंद
ु ब
ु बबन अ़ददल्
ु लाह बिली (रज़ीअल्लाह अन्हु) से वखणात है कक
उन्होंने फरमाया: मैंने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम को आप की मत्ृ यु
से पांच हदन पहले फरमाते हुए सुना: मैं अल्लाह के सामने इस बात से
बेज़ारी प्रकि करता हूाँ कक तुम में से कोई मेरा (खलील) लमर है क्योंकक
अल्लाह तआ़ला ने मुझे अपना लमर बनाया है ।स्िस प्रकार कक इब्राहीम

अ़लैहहजसलाम को अपने लमर बनाया र्ा, और यहद में अपनी उम्मत में

ककसी को अपना लमर बनाता तो अबूबकर (रज़ीअल्लाह अन्हु) को अपना

लमर बनाता,सन
ु ो तम
ु से पहले िो लोगा र्े वे अपने पैगंबरों और
सदाचाररयों की क़ब्रों को सिदागाह (मार्ा िे कने का जर्ान) बना ललया

करते र्े अतिः साविान! तुम क़ब्रों को सिदागाह न बनाना मैं तुम्हें
इससे रोकता हूाँ। (इसे मुस्जलम (699) ने ररवायत ककया)

"इसी ललए सह़ाबा ने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम को कबब्रजतान में


दफन करने के बिाय आ़यशा के कमरे में दफनाया ताकक आप की क़ब्र

को नमाज़ पढ़ने का जर्ान न बनाया िाए,इस कारण को आ़यशा ने

जपटि ककया िैसा की आगे आने वाला है ।"

(9) आ़यशा (रज़ीअल्लाहेु अन्हा) की ह़दीस है उन्होंने कहा:नबी सलल्लाहु


अ़लैहह वसल्लम ने अपने उस रोग में स्िससे आप )ीक नहीं हो पाए
फरमायािःअल्लाह त़आला यहूहदयों और इसाईयों पर धिक्कार करे कक
उन्होंने अपने नबबयों की क़ब्रों को मस्जिदें बना डाली।वह कहती हैं कक
याहद यही डर आप सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम के क़ब्र के सार् न होता
है तो आप की क़ब्र को खुला रखा िाता परं तु आप को भय र्ा कक कहीं
उसे मस्जिद न बना ललया िाए।(इसे बुखारी़ (4442) और मुस्जलम
(692) ने ररवायत ककया और यह उसके शदद हैं।इसे ननसाई (9216)
और अह़मद (54969) ने रवायत ककया और अल्बानी ने इसे सही ़ कहा
है ।)

आ़यशा (रज़ीअल्लाहु अन्हा) की बात साफ है कक यहद सहाबा


़ को यह
भय न होता कक लोग नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र को
मस्जिद बना लेंगे और उसके पास नमाज़ पढ़ी िाएगी तो वे आप की
क़ब्र को प्रत्यि रखते यानी आप कबब्रजतान में दफन ककये िाते आप की
क़ब्र अन्य क़ब्रों के िैसी लोगों के ललए खुली होती। लेककन इस डर से
कक लोग आप की क़ब्र को नमाज़ पढ़ने का जर्ान बना लें गें।िो उनकी
क़ब्र पर मस्जिद का ननमााण अर्वा उसके सामने नमाज़ पढ़ना चाहता
र्ा के राजते को रोकने के ललए सह़ाबा आप को आ़यशा रज़ीअल्लाहु अंहा
के घर ही में दफनाने पर एकमत हो गए।

(4) आ़यशा (रज़ीअल्लाहु अन्हा) की ह़दीस है कक नबी सलल्लाह अ़लैहह


वसल्लम ने फरमायािः अल्लाह उस समुदाय पर धिक्कार करे स्िसने
अपने नबबयों की क़ब्रों का मस्जिद बना डाला आप ने इसे अपनी उम्मत
पर ह़राम कर हदया है ।

(1) आ़यशा और इदने अदबास (रज़ीअल्लाहु अन्हुमा) की ह़दीस है दोनों


ने कहा:िब रसूलुल्लाह मत्ृ यु रोग में पड गए तो आप अपनी चादर को
बार बार अपने माँुह पर डालते िब दम घुिने लगाता तो उसे अपने माँह

से हिा लेते। आप ने इसी स्जर्नत में फरमाया कक: धिक्कार हो उन पर
स्िन्होंने अपने नबबयों की क़ब्रों को मस्जिद बना डाला आप उनके काम
से डरा रहे र्े। (इसे बुखारी़ (146-149) यहा उन्ही के शदद हैं और
मुस्जलम ( 694 ) ने ररवायत ककया।

यह ह़दीस प्रर्म ह़दीस के िैसी है । नबी सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम इस


में क़ब्रों को मस्जिद बनाने वालों पर धिक्कार के द्वारा िैसा कक अहल-
ए-ककताब (यहूद व ईसाई) ने ककया अपनी उम्मत को उनके िैसा करने
से सचेत कर रहे र्े।इदने ह़िर रहह़मह़ल्लाह ने कहा कक मानो नबी
सलल्लाह अलैहह वसल्लम को यह ज्ञान हो गया र्ा कक आप इसी रोग
से मरने वाले हैं इसललए आप भत
ू काल की िैसे अपनी क़ब्र के सम्मान
ककये िाने से डरे ।अत: आप ने यहूहदयों और ईसाइयों को धिक्कार उनके
कामों को करने वाले की ननंदा की और ववचार करना चाहहए कक नबी
सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम ने अपनी मौत से पांच हदन पहले लोगों में
पाये िाने वाले गल
ु ू (अनत सम्मान) से क)ोरता से मना ककया है िैसा
कक िुंदब
ु की ह़दीस में है । आप ने एक बार कफर से उस पर बल हदया
िैसा कक इस ह़दीस में है ।इस स्जर्नत में कक आप मरने को र्े। यह
मामले की महानता एवं गंभीरता को बतलाता है ।

और शैख अह़मद रूमी हनफी रहहमह


़ ु ल्लाह ने इस ह़दीस पर हिप्पणी
करते हुए कहा कक यह ह़दीस "लसहाहे़ मसाबीह़" में से है स्िसे उम्मुल
मोमेनीन (मोमीनों की माता) आ़यशा ने ररवायत की है यहूहदयों और
ईसाइयों पर धिक्कार करने का कारण यह है कक वे उन जर्ानों में
नमाज़ पढ़ते र्े िहााँ उनके नबी दफन र्े।इसी ललए आपने अपनी उम्मत
को उनके अनुसरण करने से बचाते हुए क़ब्रों पर नमाज़ पढ़ने से मना
कर हदया।

कुछ शोिकतााओं का कहना है कक सदाचारों की क़ब्रों से बरकत प्राप्त


करने वाले जर्ानों पर नमाज़ पढ़ना इस मनाही में दाखखल है । ववशेषकर
यहद इसका कारण उनका आदर करना हो।इसी ललए नह़
ू की कौम में
मूनता पूिा का चलन हुआ र्ा। उनके क़ब्रों पर )हरने के कारण बना र्ा
िैसा कक अल्लाह तआ़ला ने अपनी पुजतक में इसकी िानकारी दी है ।

(6) ओसामा बबन ज़ैद रज़ीअल्लाह अन्दम


ु ा की ह़दीस है कक नबी
सलल्लाह अ़लैहह बसल्लम ने अपने उस रोग में स्िसमें आप का ननिन
हो गया फरमाया: मेरे साधर्यो! मेरे पास आओ अत: हम उनके पास
गए।उस समय आप एक मआकफरी चादर से अपना चेहरा लपेिे हुए र्े।
आपने उसे हिाया और कहा यहूहदयों और ईसाइयों पर अल्लाह की
धिक्कार हो कक उन्होंने अपने नबबयों की क़ब्रों को मसस्िद बना ललया।
यह ह़दीस इस मामले में नबी सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम की रूधच को
इंधगत करती है क्योंकक आप अपने कुछ साधर्यों के सूनाने पर संतुटि
नहीं हुए बस्ल्क आप अपने साधर्यों की िनसािारण को समझाने पर
उत्सुक हुए िैसा कक आपने कहा कक मेरे साधर्यो मेरे पास आओ।

(5) अबू हुरै रा की ह़दीस है उन्होंने कहा कक अल्लाह के पैगंबर ने कहा


अल्लाह यहुहदयों को नटि करे स्िन्होंने अपने पैगंबर की क़ब्रों को
मसास्िद बना ललया।

(9) अ़ददल्
ु लाह बबन मसउूद़ से वखणात है कक उन्होंने ने फरमाया: मैंने
अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अ़लैहह व सल्लम को कहते हुए सुना कक
सबसे बुरे लोग ये हैं स्िन पर क़्यामत जर्ावपत होगी और स्िन्होंने क़ब्रों
को मसास्िद बना ललया।
(1) अबू ओ़बैदा आ़लमर बबन िरााह़ से वखणात है उन्होंने कहा कक नबी ने
अंनतम शदद िो कहा र्ा व वह यह र्ा कक तुम लोग यहूहदयों और
अहले नज़रान को अ़रब से दरू कर दो। ज्ञात रहे कक क़ब्रों को मस्जिद
बनाने वाले सब से बरु े लोग हैं।

(2) अबू हुरै रा की ह़दीस है उन्होंने कहा कक अल्लाह के पैगंबर ने कहा


कक ए अल्लाह मेरी क़ब्र को बत
ु न बनाना कक उसकी पि
ू ा की िाए
अल्लाह की धिक्कार हो उस कौम पर स्िस ने अपने पैगंबरों की क़ब्रों
को मस्जिद बना ललया।

शैख साद बबन हम्द बबन अ़ली बबन अतीक ने इस ह़दीस पर हिप्पणी
करते हुए कहा: कक िब आप ने अपनी दआ
ु ़: अल्लाह मेरी क़ब्र को ऐसा
बुत न बनाना स्िस की पूिा की िाए और क़ब्रों को मस्जिद बनाने
वालों पर अल्लाह के सख्त करोिी होने की सच
ू ना को एक सार्
लमलाया।यह इंधगत करता है कक दस
ु रा प्रर्म का कारण है ।

और इदने अ़ददल
ु बर मालकी रहह़महुल्लाह ने कहा:

"वसन" बत
ु है चाहह सोने चांदी की मनू ता हो अर्वा ककसी और चीज़ की
प्रनतमा अल्लाह के अलावा प्रत्येक वह चीज़ स्िसकी पि
ू ा की िाए वह
"वसन" है चाहह वह बुत हो अर्वा कोई और चीज़ अ़रब के लोग बुतों
की ओर माँह
ु करके नमाज़ पढ़ते और उनकी प्रार्ाना ककया करते र्े।
इसललए रसल
ू सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम को अपनी उम्मत के बारे में
यह डर हुआ कक यह भी पव
ू ा की उम्मतों के मागा पर न चल पडे िब
उनमें ककसी नबी का ननिन हो िाता तो वे उनकी क़ब्र के ईदा -धगदा
प्रार्ाना के ललए िमकर बै) िाते िैसा कक ककसी बुत के सार् ककया
िाता र्ा तो नबी सलल्लाह अ़लैहह वसल्लम ने दआ
ु की: "ऐ अल्लाह
मेरी क़ब्र को बुत न बनाना कक स्िसकी ओर माँह
ु करके नमाज़ पढ़ी िाए
सिदा ककया िाए और प्रार्ाना की िाए।उन लोगों पर अल्लाह का क)ोर
करोि अवतररत हुआ स्िन्होंने ऐसा ककया।रसूल सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम अपने साधर्यों और अपनी परू ी उम्मत को पव
ू ा की उम्मतों के
उस काम से डरा रहे र्े स्िन्होंने अपने नबबयों की क़ब्रों की ओर माँह

कर नमाज़ें पढ़ी और उनको ककबला व मस्जिद बना ललया िैसा कक
बुतपुिकों ने बुतों के सार् ककया।वह उन को सिदा करते और उनका
आदर करते र्े और यह लशका-ए-अकबर है । और नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम इस काम में मौिूद अल्लाह की नारािगी और करोि की
अपनी उम्मत को सूचना दे ते हैं और इस बात की भी कक आप उन
कामों को पसंद नहीं करते और आप अपनी उम्मत के बारे में धचंनतत
भी र्े कक यह भी यहूहदयों और ईसाइयों के अनस
ु गमन में उनके तरीकों
को न अपना लें।

और आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम अहल-ए-ककताब (यहूद एवं ईसाइ)


और सभी काकफरों के ववरोि को पसंद करते र्े और आप को अपनी
उम्मत पर उनके अनुगमन का डर भी र्ा। क्या तुम लोग आप
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम के उस फरमान को नहीं दे खते िो शमा
हदलाने और फिकार के रूप में है ।तुम अवश्य पूवा के लोगों के मागों पर
चलोगे िैसा कक िूता िूते के बराबर होता है ।यहााँ तक कक उनमें से कोई
गोह के बबल में प्रवेश हुआ तो तुम भी अवश्य उस में प्रवेश हो िाओगे।

इदने तैलमया ने कहा कक अल्लाह तआ़ला ने आप की दआ


ु ़ जवीकार
ककया अल्ह़म्दलु लल्लाह! आप की क़ब्र को "वसन" नहीं बनाया गया िैसा
कक आप के अलावा की क़ब्र को बनया गया बस्ल्क कमरे के ननमााण के
पश्चात कोई भी नहीं कर सकता है ।इस से पहले वे ककसी को दाखखल

ु ़ करने,नमाज़ पढ़ने और ना ही इस के अलावा


होकर उसके पास दआ

कोई ऐसा काम करने का मौका दे ते र्े िो आप के अलावा की क़ब्र के


पास ककया िाता हो।

यहद कोई िाहहल आपके कमरे में नमाज़ पढ़ता है अर्वा अपनी आवाि
को बुलंद करता है अर्वा ननषेि बात करता है तो ध्यान रहे कक यह
आप के कमरे के बाहर ककया िाता है ना कक उनकी क़ब्र के पास कोई
भी कभी उनकी क़ब्र में दाखखल हो कर ना नमाज़ पढ़ सका और न ही
दआ
ु ़ कर सका न ही उसके सार् लशका कर सका िैसा कक उनके अलावा
के सार् ककया गया।और क़ब्र को बुत बना हदया गया।

इसललए कक आ़यशा के िीवन में उनकी अनुमती के बबना कोई प्रवेश


नहीं कर सकता र्ा और उन्होंने आप को क़ब्र के पास ककसी को ऐसा
काम करने का अवसर नहीं हदया स्िसको आप ने ननषेि कर हदया है ।
उनके पश्चात वह कमरा बंद रहा यहााँ तक कक वह मस्जिद में दाखखल
कर हदया गया और अब उसका दरवािा बंद है और उस पर एक दस
ु री
दीवार बना दी गई है और केवल आपके घर की सुरिा के ललए की आप
के घर को आप के मत्ृ यु का जर्ान इस ललये बनाया गया कक आप की
क़ब्र को बत
ु न बना हदया िाए।यह ज्ञात हो कक मदीना के सभी लोग
मुस्जलम हैं।और वहााँ केवल मुसलमान ही िा सकता है ।और वह सब नबी
का आदर करते हैं उन्होंने इस सम्मान िनक क़ब्र को कम आंकने के
ललए नहीं ककया बस्ल्क यह इसललए ककया ताकक उसे बत
ु न बनया िाए
और आप के घर को मेला लगाने का जर्ान न बनाया िाए और उसके
सार् वह न ककया िाए िो अहल-ए-ककताब (यहूद व ईसाई) ने अपने
नबबयों की क़ब्रों के सार् ककया।

अबू मसाद ग़नवी का बयान है कक नबी ने कहा तुम लोग क़ब्रों की ओर


माँुह कर के नमाज़ न पढ़ो और ना हीं उन पर बै)ो (इसे मुस्जलम (299)
ने ररवायत ककया और एक ररवायत में है कक तम
ु लोग क़बों पर मत
बै)ो और ना ही उनकी ओर माँुह करके नमाज़ पढ़ो (इस मुस्जलम (299)
ने ररवायत ककया है ।क़ब्र पर नमाज़ पढ़ने का अर्ा उस की ओर माँुह
करना है ।

इमाम नौवी ने ह़दीस की व्याख्या करते हुए कहा है कक इस में क़ब्र की


ओर मंह
ु कर के नमाज़ न पढ़ने की जपटिता है ।
अ़ददल्
ु लाह बबन अ़दबास की ह़दीस है उन्होंने कहा:अल्लाह के नबी ने
कहा कक तुम लोग क़ब्र की ओर नमाज़ मत पढ़ो और न ही ककसी क़ब्र
पर बै)ो।

अबू सई़द खदरी


ु़ की ह़दीस है कक अल्लाह के रूसल ने क़बों पर मिाऱ
बनाने उन पर बै)ने और उनकी ओर माँुह करके नमाज़ पढ़ने से मना
ककया है ।

(42) अबू सई़द की ह़दीस है उन्होंने कहा कक अल्लाह के नबी ने कहा:


क़ब्र और प्रसािन के अलावा परू ी की परू ी िरती मस्जिद है ।यह ह़दीस
इस बात की प्रमाण है कक क़ब्र और प्रसािन में नमाज़ पढ़ना िायज़
नहीं और प्रसािन में नमाज़ क़ब्र पर नमाज़ से छोिा पाप है क्योंकक
क़बों को मस्जिद बनाने वालों पर धिक्कार और फिकार में बहुत सी
ह़दीसें आई हैं।

(44) अ़ददल
ु बबन उ़मर का ह़दीस है कक नबी ने कहा तुम अपने घरों में
नमाज़ पढ़ो और उन्हें कबब्रजतान मत बनाओ और एक ररवायत में है कक
तुम अपनी कुछ नमाज़ें अपने घरों में पढ़ो और उन्हें कबब्रजतान मत
बनाओ और एक ररवायत में है कक तुम अपने घरों में नमाज़ें पढ़ो और
उन्हों कबब्रजतान न बनाओ।

इदने ह़िर "फतहुल बारी" में ह़दीस की व्याख्या करते हुए कहते हैं ह़दीस
में आप का कर्न कक तम
ु लोग उन्हें कबब्रजतान मत बनाओ से लसद्ि
हुआ कक क़ब्र प्रार्ाना का जर्ान नहीं है उन में नमाज़ पढ़ना नापसंदी है ।
और इदनुल मुंस्िर ने "अलऔवसत" में कहा स्िस पर अधिकतर
ववद्वानों की सहमती है अबू सई़द की ह़दीस के कारण कबब्रजतान में
नमाज़ पढ़ना मकरूह (ऐसा काया स्िसका न करना करने से अच्छा हो)
है ।मेरा कहना है कक यहााँ कराहत का आशय कराहते तह़रीमी है ना कक
कराहते तनज़ीही।मुतकद्हदमीन (पूवा के पूवि
ा ों) के ननकि कराहत का
आशय कराहते तह़रीम होती है िैसा कक क़ुआान में है अल्लाह का

फरमान है उसने कुफ्र,कफजक और अवज्ञा को तुम पर ह़राम कर हदया है

(अलहूिरात:9) और मुतख्खरीन (पश्चात के पूवि


ा ों) के ननकि मकरूह
वह है स्िसके छोडने वाले को पुण्य हदया िाए और उसके करने वाले को
यातना भी ना दी िाए और इदनुल मुंस्िर का उद्दे श्य प्रर्म वाला है
इस ललए कक वह मत
ु कहदमीन (पव
ू ा के पव
ू ि
ा ों) में से हैं।और इदने उ़मर
की ह़दीस में नबी से लसद्ि है कक उन्होंने कहा तुम अपने घरों में कुछ
नमाज़ें पढ़ो और उन्हें कबब्रजतान न बनाओ सबसे जपटि बात है कक
कबब्रजतान में नमाज़ पढ़ना िायज़ नहीं है ।

(49) अबू हुरै रा की ह़दीस है उन्होंने कहा कक अल्लाह के रसूल


सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने कहा तम
ु लोग मेरी क़ब्र को ईदगाह न
बनाना और न ही अपने घरों को कबब्रजतान बनाना तुम िहां भी रहो
मुझ पर दरू
ु द भेिो इसललए कक तुम्हारा दरू
ु द मुझ तक पहुंचाया िाता
है ।इस ह़दीस में नबी ने स्िन घरों में नमाज़ नहीं पढ़ी िाती है उनको
कबब्रजतान से तशबीह दी है ।अत: यह लसद्ि करता है कक कबब्रजतान
बबल्कुल नमाज़ पढ़ने का जर्ान नहीं है ।

और इसी प्रकार क़बों पर नमाज़ न पढ़ने के प्रमाणों में से एक ह़दीस है


वह स्िसे सई़द बबन मंसूर ने अपनी "सुनन" में सोहै ल बबन अबू सोहे ल
से ररवायत ककया है कक ह़सन बबन अ़ली बबन अबू ताललब ने उन्हें रसूल
की क़ब्र के सामने दे खा तो उनसे कहा मैं आपको क़ब्र के पास दे ख रहा
हूाँ तो उन्होंने कहा मैं नबी पर सलाम भेि रहा हूाँ उन्होंने कहा तम

मस्जिद में प्रवेश करो तब सलाम भेिो कफर कहा कक रसूल सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम का फरमान है तुम लोग मेरी क़ब्र को ईदगाह न बनाना
और न ही अपने घरों को कबब्रजतान बनाओ।अल्लाह ने यहूहदयों को
धिककार है कक उन्होंने अपने नबबयों की क़बों को मसास्िद बना ललया
तुम मुझ पर दरू
ु द भेिो क्योंकक तुम्हारा दरू
ु द मुझ तक पहुंचाया िाता

है चाहे तुम िहां कही भी रहो,तुम लोग और अंदलुस में रहने वाले एक

समान हो।यह ह़दीस पव


ू ा ह़दीस के िैसी है ।स्िस में नबी ने उन घरों
की कबब्रजतान से तुलना की है स्िनमें नमाज़ नहीं पढ़ी िाती है ।यह इस
बात का प्रमाण है कक कबब्रजतान बबल्कुल नमाज़ का जर्ान नहीं है ।

इदने तैलमया ने कहा है कक आप का फरमान कक अपने घरों को


कबब्रजतान मत बनाओ।अर्ाात तुम उनमें नमाज़ पढ़ने दआ
ु ़ करने और
कुरान पढ़ने से न रूको तो वह क़ब्र की तरह हो िाएंगे इसीललए आपने
घरों में प्रार्ाना करने का आदे श हदया और क़बों के पास ऐसा करने से

मना कर हदया,उसके ववपररत िो ईसाई,मुधश्रक और दस


ु रे लोग करते हैं।

और अ़ली बबन हुसै़ न बबन अ़ली बबन अबू ताललब से ररवायत है कक


उन्होंने एक व्यस्क्त को दे खा िो नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र
की खखडकी से अंदर दाखखल होकर वहां दआ
ु ़ कर रहा है तो आपने उसे
बल
ु ा कर कहा क्या मैं तम
ु को वह ह़दीस न सुनाउाँ िो मैंने अपने वपता
से और उन्होंने अपने वपता से सुनी हैं कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम ने फरमाया: तुम लोग मेरी क़ब्र को ईदगाह न बनाना और न
ही अपने घरों की कबब्रजतान बनाना और मुझ पर दरू
ु द भेिो इस ललए
कक तम्
ु हारा दरू
ु द मझ
ु तक पहुंचाया िाता है चाहे तुम िहां कही भी
रहो।

और इजमाई़ल कािी ़ की ररवायत में है कक तम


ु लोग मझ
ु पर दरू
ु द व
सलाम भेिो चाहे तुम िहां कही भी रहो क्योंकक तुम्हारा दरू
ु द व सलाम
मुझ तक िरूर पहुंचाया िाएगा।यह ह़दीस पूवा ह़दीस के िैसी है स्िस
में नबी ने उन घरों की कबब्रजतान से तल
ु ना की है स्िन में नमाज़ नहीं
पढ़ी िाती है ।अत: यह इस बात का प्रमाण है कक क़ब्र पण
ू रू
ा प से नमाज़
पढ़ने का जर्ान नहीं है । ।

और क़ब्रों पर नमाज़ के ह़राम होने के प्रमाणों में से एक यह है कक


मस्जिद-ए-नबवी का जर्ान ननमााण से पूवा मुशररकीन की एक क़ब्र र्ी
नबी ने उन क़बों को तोड हदया हैं और मत
ृ को के अवशेष को मुंतककल
कर हदया कफर भलू म को समतल कर हदया उसके पश्चात मस्जिद का
ननमााण ककया उस जर्ान से क़बों को हिाने के बाद ही ककसी मस्जिद
का ननमााण हुआ है ।

कबब्रजतान में नमाज़ के ह़राम (अवैि) होने का एक प्रमाण यह है कक


सह़ाबा ने ऐसा करने वाले की ननन्दा ककया है और सहाबा
़ का इंकार
हुज्ित
़ (प्रमाण) होने के ललए प्रयाप्त है इस ललए कक वे क़्यामत के
जर्ापनत होने तक मस
ु लमानों के ललए उदाहरण हैं िैसा कक अनस
रज़ीअल्लाहु अंहु से ररवायत है कक उन्होंने कहा एक हदन मैं नमाज़
पढ़ने के ललए खडा हुआ इस अवजर्ा में कक मेरे समाने एक क़ब्र र्ी
स्िसका मझ
ु े ज्ञान नहीं र्ा उ़मर ने मझ
ु े आवाि दी क़ब्र! क़ब्र! मझ
ु े
लगा इसका मतलब क़ब्र है मुझे मेरे सामने के एक व्यस्क्त ने कहा कक
उनका मतलब क़ब्र है अत: मैं उस जर्ान से हि गया है ।

‫ باب هل تنبش قبور مشـركـى الـجـاهلية و يتخذ‬،‫)رواه البـخـاری تـعـلـيـقـا في كتاب الصالة‬
)05٥0(‫) اللفظ له و عبدالرزاق في مصنفه‬٢/4٣5( ‫مكانها مساجد و وصله البيهقي في الكبرى‬

साबबत ने कहा िैसा कक अ़ददल


ु रज्िाक़ की ररवायत में है कक अनस
िब नमाज़ पढ़ने का इरादा करते तो मेरे दोनों हार्ों को पकडते और
क़ब्रों से दरू हो िाते मैंने कहा कक यह इस बात का प्रमाण है कक सहाबा

के बीच यह तय र्ी कक क़ब्रों पर नमाज़ पढ़ना ह़राम है ।

क़ब्रों के पास नमाज़ के ह़राम होने की बात सह़ाबा व ताबेई़न की एक

ू से वाररद है िैसे अनस,अ़ददल्


समह ु लाह बबन उ़मर,ह़सन अरनी,मस
ु ैयब
बबन राफे,खैसमा बबन अ़ददरु ा ह़मान,इब्राहीम नखई़,इदने सीरीन और

मकहूल।

क़बों को मसास्िद न बनाने के प्रमाणों में से एक यह है कक नेक लोगों


की क़ब्रों पर पढ़ी हुई नमाज़ का पुण्य होना असंभव है क्योंकक इसे नबी
ने नहीं ककया है और ना ही उनके पश्चात के साधर्यों ने िस्दक नेक
काम करने के ललए वे सबसे उत्सक
ु एवं उसके सबसे अधिक िानकार
र्े।और वे क़्यामत के जर्ावपत होने तक मुसलमानों के ललए उदाहरण हैं
ववशेष कर नबी ने हमें पववर जर्ानों की िानकारी दी और अपनी
उम्मत को उनमें नमाज़ पढ़ने के ललए आग्रह ककया िैसे तीनों मसास्िद
और मस्जिदे कुबा ।

शैखुल इजलाम इदने तैलमया का कहना है कक उम्मत के पूवि


ा ों में से
ककसी ने न सह़ाबा के यग
ु में न ताबई़न के यग
ु में और न ही तबा
ताबई़न के युग में पैगंबरों और बुज़ग
ा ों की क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने एवं
दआ
ु ़ करना का इरादा ककया ना उन्होंने ने उन से मांगा और न ही उनसे
सहायता मांगी न उनकी उपस्जतधर् में और न ही उनकी क़ब्रों पर।

उन्होंने यह भी कहा कक लोग आ़यशा रज़ीअल्लाहु अंहु के िीवन में

ह़दीस सुनने,फतवा पूछने और उनके दशान करने के ललए उनके पास

िाते र्े वह क़ब्र के पास नहीं िाता।नमाज़ के ललए ना ही दआ


ु ़ के
ललए,और ना हीं इसके अलावा ककसी अन्य काया के ललए।कभी कभी कोई

उनसे क़ब्रें हदखाने की आग्रह करता तो वह उन्हें हदखा दे ती र्ीं।

उन्होंने यह भी कहा कक यह प्रलसद्ि है और िमा की ज्ञात बात है कक


नबी ने मस्जिदें ननमााण करने एवं उनमें नमाज़ पढ़ने का आदे श हदया
परं तु ककसी भवन के ननमााण का आदे श नहीं हदया न तो ककसी नबी की
क़ब्र पर ना हीं ककसी नबी के अलावा की क़ब्र पर और ना ही ककसी नबी
के )हरने के जर्ान पर और सहाबा
़ ताब़ईन और तबा ताबेई़न के युग में
इजलामी दे शों न हहिाज़ न सीररया न यमन न इराक न खुरासान न
लमस्र और न ही पस्श्चम में कहीं भी ककसी क़ब्र पर मस्जिद का ननमााण
नहीं हुआ और न ही ककसी भवन का स्िसके दशान के ललए यारा ककया
िाए।

(44) क़बों के पास नमाज़ पढ़ने के ह़राम होने का एक प्रमाण यह है


कक खलीफा-ए-रालशद उ़मर ने उस जर्ान पर नमाज़ पढ़ने से रोक हदया
र्ा स्िस जर्न पर नबी ने नमाज़ संयोगवश पढ़ी।कफर उस जर्ान पर
नमाज़ कैसे )ीक हो सकती है िहााँ रसल
ू ने नमाज़ पढ़ने से रोका हो

िैसे कब्रें ?

मारूर बबन सव
ु ैद का बयान है कक उन्होंने कहा हम उ़मर रज़ीअल्लाहु
अंहु के सार् ह़ज्ि यारा पर र्े तो उन्होंने हमें फिर में ‫ألم تر كيف فعل‬
‫ ربك بأصحاب الفيل‬और ‫ إليالف قريش‬पढ़ाई िब वह अपना ह़ज्ि पूरा कर
के वापस हुए तो दे खा लोग प्रार्ाना के ललए एक जर्ान की यारा कर रहें

हैं,उन्होंने प्रश्न ककया यह ककया है ?तो उत्तर लमला वह मस्जिद है स्िसमें

अल्लाह के रसूल ने नमाज़ पढ़ी र्ी।उन्होंने कहा इसी प्रकार अहले


ककताब (यहूद व ईसाई) बबााद हुए।उन्होंने अपने नबबयों की क़ब्रों को
धगरिाघर बना ललया।तुम में से स्िसको नमाज़ लमल िाए उसे मस्जिद
में पढ़ लेना चाहहए और स्िसको न लमले वह न पढ़े और एक ररवायत
में है कक उन्होंने कुछ लोगों को एक मस्जिद में उतर कर नमाज़ पढ़ते
हुए दे खा तो उन से इस ववषय में प्रश्न ककया तो उत्तर लमला यह वह
मस्जिद है स्िस में नबी ने नमाज़ पढ़ी र्ी।यह सुनकर उ़मर रज़ीअल्लाहु
अंहु ने कहा तुमसे पूवा वे लोग नटि कर हदये गए स्िन्होंने अपने नबबयों
के आसार (अवशेषों) को धगरिाघर बना ललया।स्िस ककसी का गुिर
ककसी मस्जिद के समाने से हो और नमाज़ का समय हो िाए तो उसे
नमाज़ पढ़ लेनी चाहहए अन्यर्ा उसे गुज़र िाना चाहहए।

शैखल
ु इजलाम इदने तैलमया ने उ़मर रज़ीअल्लाहु अंहु के कर्न की नीनत
की व्याख्या करते हुए कहा है कक इसका कारण यह है कक अल्लाह ने
मुसलमानों के ललए ववशेष रूप से मस्जिदों को छोड कर कोई ऐसी

जर्ान मश्रू नहीं ककया स्िस की वे प्रार्ाना के ललए नीयत करे ,िो

मस्जिद नहीं है प्रार्ाना के ललए उसकी ओर यारा करना )ीक नहीं है


चाहह वह ककसी नबी का भवन हो अर्वा ककसी नबी की क़ब्र हो।
क़बों के पास नमाज़ ह़राम (अवैि) होने के प्रमाणों में से एक यह है कक
यह काकफरों की नकल है ।िैसा कक वपछली तीनों ह़दीसें इस पर साक्ष्य
हैं।और नबी के कर्न के अनुसार काकफरों की नकल करने वालों के
ववरूि सख्त चेतावनी आई है स्िसने ककसी कौम की नकल की तो वह
उन्हीं में से है ।

और आप अहले ककताब (यहूद एवं ईसाई) और सभी काकफरों के ववरोि


को पसंद करते र्े और अपनी उम्मत को उनके पीछे चलने से डराते र्े।
क्या आप उन्हें चेतावनी के रूप में कहते हुए नहीं दे खते कक "तुम लोग
अवश्य अपने से पूवा लोगों की नकल करोगे यहााँ तक कक यहद ये लोग
ककसी गोह के बबल में प्रवेश ककये होंगे तो तम
ु भी उसमें प्रवेश करोगे।

हमने प्रश्न ककया ऐ अल्लाह के नवी!यहूहद और ईसाई?आपने कहा कफर

कौन हो सकते हैं?" (बख


ु ारी:4165,मस्जलमिः9552),और व्यवहाररक
समकालीन उदाहरणों में से एक यह है कक क़ब्रों को मस्जिद बनाना
काकफरों का िमा है स्िसका उल्लेख शेख मह
ु म्मद नालसरूद्दीन अलबानी
ने अपनी पुजतक "‫ "تحذير المساجد من اتخاذ القبور مساجد‬में ककया है ।उन्होंने

कहा कक मैंने वेहिकन एक प्राचीन पववर नगर शीषाक के अंतगात


अलमख्
ु तार के मई 4261 के अंक में एक लेख पढ़ा है उसमें उसके
लेखक रोनालड कालोलस पोिसा उस नगर में मौिूद चचा पीिसा का वणान
करते हुए कहते हैं कक सेंि पीिसा चचा ईसाई दनु नया में अपने प्रकार का
सबसे बडा चचा है िो सोलह से अधिक शतास्ददयों से ईसाई पूिा के
ललए समवपात एक मैदान पर है यह सेंि की क़ब्र पर खडा है ।एक मसीह़
के मछुआरे एक लमर की क़ब्र है ।उसके नीचे प्राचीन क़बों और प्राचीन
रोमन खंडहरों की एक बडी संख्या मौिूद है कफर उन्होंने उल्लेख ककया
कक बडे त्योहार के हदनों में पि
ू ा के ललए लगभग एक लाख लोग उसकी
यारा करते है ।

और क़ब्रों के पास नमाज़ ह़राम होने के जपटि प्रमाणों में से एक यह


कक इजलाम के इमामों की इस पर सहमती है और यह ज्ञात रहे कक
मुसलमानों का इज्मा (एकमत) एक िालमाक प्रमाण है िैसा कक नबी का
फरमान है कक अल्लाह तआ़ला मेरी उम्मत को गुमराही पर िमा नहीं

करे गा और िमाअ़त पर अल्लाह की हार् है । (नतरलमज़ी: 5459)

और इदने रिब ने ह़दीस "अल्लाह ने यहूहदयों और ईसाईयों को धिक्कार


है ।स्िन्होंने अपने नबबयों की क़ क़ब्रों को मस्जिद बना ललया" की
व्याख्या करते हुए कहा है कक क़ब्रों के पास नमाज़ के अवैि होने पर
इमामों की सहमती है ।उन्होंने कहा कक इजलाम के इमाम इस अर्ा पर
सहमत हैं अर्ाात क़ब्रों पर नमाज़ पढ़ना वस्िात है ।

इसी प्रकार से इदने तैलमया ने भी इसकी सहमती व्यक्त की है ।िैसा की


उन्होंने कहा कक यहद कोई व्यस्क्त ककसी नबी अर्वा बज़
ु गा की क़ब्र पर
नमाज़ की यारा करे उस जर्ान पर नमाज़ पढने को बरकत का कारण
समझते हुए तो यह अल्लाह और उसके रसूल से क)ोर शरुता है उसके
िमा का उल्लंघन और दीन में नई चीज़ प्रचललत करना है स्िसकी
अनम
ु ती अल्लाह ने नहीं दी है ।क्योंकक मस
ु लमान उस बात पर सहमत हैं
नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम के िमा के संबंि में आवश्यक रूप से
िानते हैं कक ककसी प्रकार की क़ब्र पर नमाज़ पढ़ने की कोई फिीलत
एवं महत्व नहीं है और न ही उस जर्ान पर नमाज़ पढ़ने का कोई लाभ
है बस्ल्क उससे हानी है ।

उन्होंने यह भी कहा कक इसी ललए पव


ू ि
ा में से ककसी ने यह नहीं कहा

कक क़ब्र के पास नमाज़ पढ़ना मुजतह़ब है ,उसमें फिीलत है और न ही

वहााँ नमाज़ पढना और दआ


ु ़ करना उसके अलावा की जर्ान में नमाज़
पढ़ने और दआ
ु ़ करने से अधिक महत्वपूणा है बस्ल्क सामान्य सहमती है
कक मस्जिदों और घरों में नमाज़ पढ़ना नबबयों और बुज़ग
ा ों की क़ब्रों पर
नमाज़ पढ़ने से अधिक महत्वपूणा है ।

उन्होंने यह भी कहा कक इसलामी ववद्िानों की इस बात पर सहमती है


कक क़ब्रों के पास नमाज़ और दआ
ु ़ करना िायज़ नहीं है ।मुसलमानों के
इमामों में से ककसी इमाम से लसद्ि नहीं है कक ककसी क़ब्र के पास की
नमाज़ एवं दआ
ु ़ बबना क़ब्र वाली मस्जिदों की नमाज़ और दआ
ु ़ से
अधिक बेहतर है बस्ल्क मस
ु लमानों के ववद्िानों की सहमती है कक बबना
क़ब्र वाली मस्जिदों की नमाज़ और दआ
ु ़ क़ब्र वाली मस्जिदों की नमाज़
और दआ
ु ़ से अधिक बेहतर है बस्ल्क उनकी सहमती है कक क़ब्र वाली
मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने और दआ
ु ़ करने से रोका गया है ।
और बहुत से लोगों ने ऐसी नमाज़ को ननषेि कहा है बबल्क उसको व्यर्ा
माना है ।

उन्होंने यह भी कहा कक मस
ु लमानों के इमाम इस पर सहमत हैं कक
मशाई़र (िालमाक प्रतीक) में नमाज़ पढ़ने की आज्ञा नहीं है न ही यह
अननवाया है और न ही मस्जिद के अलावा क़ब्रों अर्वा ककसी भूलम पर
बने मज़ार में नमाज़ पढ़ने की कोई फिीलत
़ है ।िो यह ववश्वास रखता
है कक उन के पास नमाज़ कुछ मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से अधिक
बेहतर है तो मुस्जलम समुदाय से अलग हो गया और उसने िमा का
उल्लंघन ककयाड।बस्ल्क इमाम इस पर सहमत हैं कक उनमें नमाज़ पढ़ना
ननषेि है यही वह अर्ा है स्िनकी व्याख्या इजलाम िमा के इमामों िैसे

असह़ाबे माललक,शाफई़,अह़मद अहले इराक और उनके अलावा ने की

है ।बस्ल्क वह अनस से भी लसद्ि है ।

वपछली हदीसों से हमारे ललए यह जपटि हो गया कक क़ब्रों के पास

नमाज़ पढ़ने की मनाही के ललए ननस्श्चत प्रमाण हैं।कैसे नहीं?िबकक

पांच ऐसे प्रारूप आए हुए हैं स्िनमें ऐसा करने वाले के ललए कडी
फिकार है ।

प्रर्म:ऐसा करने वाले को धिक्कार गया है ।

द्वतीय:वह यहूहदयों और ईसाइयों की सुन्नतों और उनके तरीकों में से


है ।
तत
ृ ीय:इस काया से जपटि रूप से रोका गया है ।िैसे आप सलल्लाह
अ़लैहह वसल्लम का कर्न:तुम मेरी क़ब्र को ईदगाह मत बनाना।

चौर्ािःऐसा करने वाले को बबााद होने की बददआ


ु ़ (अलभशाप) दी

गई।अर्ाात अल्लाह उसको नटि करे ।

पांचवा:ऐसा करने वाले का गुण बयान की गई कक क़्यामत के हदन


अल्लाह के ननकि सबसे बुरे लोग होंगे।

क्या इन फिकार के पश्चात भी अल्लाह और अंनतम हदन पर ईमान


रखने वाला क़ब्रों के पास नमाज़ के ह़राम होने के बारे में वाद वववाद
करे गा।
क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने के ववषय में कुछ इजलामी
ववद्िानों की रायें

इमाम शाफई़ रहहमह


़ ु ल्लाह ने कहा है कक हमें इमाम माललक
रहहमह
़ ु ल्लाह ने सूचना दी कक रसूल सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने
फरमाया अल्लाह तआ़ला यहुहदयों और ईसाइयों को नटि करे उन्होंने
अपने नबबयों की क़ब्रों को मस्जिद बना ललया।अ़रब की िरती पर दो
िमा एक सार् नहीं रह सकते।

उन्होंने कहा यह काम सन्


ु नत और आसार के कारण अवप्रय है और
ककसी मुसलमान की क़ब्र को मस्जिद बना लेना मकरूह है ।यह कराहत
ह़राम के अर्ा में है ।वपछले लोगों के ननकि िैसा कक कुआान में कराहत
शदद का अर्ा ह़राम बतया गया है ।इस आयत में
)‫ (وكره إليكم الكفر و الفسوق و العصيان‬और पश्चात के लोगों (ववद्िानों) के
ननकि कराहत का अर्ा होता है :स्िस के छोडने वाले को पुण्य हदया िाए
और उसके करने वाले को यातना न हो।और इमाम शाफई़ के कहने का
मतलब भी प्रर्म अर्ा है ।

अबू बकर अल-असरम कहते हैं कक मैंने अह़मद बबन हम्बल को कहते
सन
ु ा िब उनसे क़बब्रजतान में नमाज़ पढ़ने के ववषय में पछ
ू ा गया तो
उन्होंने नापसंद ककया,तब उन से कहा गया मस्जिद क़ब्रों के बीच में
होती है तो उस में नमाज़ पढ़ना कैसा?है तो उन्हों ने भी इसे नापसंद
ककया।

अह़मद ही से कहा गया कक मस्जिद और क़ब्र के बीच कोई रूकावि हो

तब नमाज़ पढ़ना कैसा है ?अह़मद ने उत्तर हदया फज़ा नमाज़ मकरूह है

लेककन िनाज़े की नमाज़ पढ़ी िासकती है ।इमाम अह़मद ने अबू मरसद


ग़नवी की ह़दीस का स्िक्र
़ ककया िो उन्होंने नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम से ररवायत ककया है कक "क़ब्रों की आरे मुंह कर के नमाज़ न
पढ़ों" और कहा कक इस ह़दीस की सनद िैस्ययद है ।(फतहुल बारी4 इदने

रिब: 4/450)।

इदने अददल
ु बर अपनी पुजतक"अल तमहीद"में ललखते हैं:"इमाम अबू

ह़नीफा,औज़ाई़,इमाम शाफई़ और उनके लशटयों के नज़दीक क़बब्रजतान में

नमाज़ मकरूह है । (ककताब उक्तुजसलात,अध्याय नौम अ़ननजसलात)

इदने कुद़ ामा अपनी पुजतक "अल-मुग़नी" में कहते हैं कक हज़रत अ़ली,

इदने अ़दबास, इदने उ़मर,अ़ता,नखई़ और इदनुल मुंस्ज़र ने भी

क़बब्रजतान में नमाज़ मकरूह माना है ।

(अध्याय:अलसलात कफल निासा वगैरा िाललक:1/149


़ )

शैखुल इजलाम इदने तैलमया कहते हैं कक अधिकांश कफक्ही पंर्ों के िमा
गरु
ु ओं ने क़बब्रजतानों में मस्जिद बनाने के ननषेि होने को जपटि बयान
ककया है ।उदाहरण जवरूप इमाम माललक,शाफई़,और अह़मद के अनुयाई

एवं कुफा के ववद्िानों ने भी।अधिकांश ववद्िानों ने इसे ह़राम की श्रेणी


में रखा है और इस संबंि में कोई संदेह भी नहीं होना चाहहए क्योंकक
नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने बलपव
ू क
ा इससे रोका है और ऐसा

करने वालों पर अलभशाप भेिी है । (मिमुउ़ल फतावा:1٢/442)


क़ब्रों को मस्जिद बनाने रूप

क़ब्रों को मस्जिद बनाने के तीन रूप हैं:

(4) यह कक क़ब्र खुली हुई भूलम में हो।कबब्रजतान में हो या चहियल


मैदान में और व्यस्क्त िा कर उस के पास नमाज़ पढ़े ।

(9) यह कक क़ब्र मस्जिद के भवन के अंदर हो चाहह क़ब्र मस्जिद के


भवन से पहले बनी हो और उस के पश्चात मस्जिद बनाई गई हो।
अर्वा मस्जिद पहले बनाई गई हो बाद में उस में शव दफन ककया गया
हो।चाहे क़ब्र मस्जिद के ककबला की ओर हो अर्वा पीछे हो अर्वा दायें
हो अर्वा बायें।

(4) यह कक क़ब्र मस्जिद के आंगन में हो िैसा कक कुछ मस्जिदों की


स्जर्नत है ।िहााँ मस्जिद आंगन से नघरी हुई होती है पास में दीवार होती
है ।अर्वा चहारहदवारी होती है िो मस्जिद की भलू म को घेरे हुई होती है ।
ऐसी स्जर्नत में क़ब्र के पास नमाज़ पढ़ना क़ब्रों को मस्जिद बनाना
माना िाएगा।क्योंकक क़ब्र मस्जिद के ललए दान की भूलम के भीतर होती
है ।
क़ब्रों को मस्जिद बनाना ह़राम है चाहे नमाज़ी के ललए क़ब्र का
जर्ान िहााँ भी हो।

क़ब्रों के उूपर बनी हुई मस्जिदों में नमाज़ ह़राम है हर स्जर्नत में ।चाहे
क़ब्र मस्जिद में हो अर्वा क़बब्रजतान में अर्वा चहियल मैदान मैं।
अर्वा चाहे क़ब्र नमाज़ी के सामने हो अर्वा उसके पीछे अर्वा उसके
दायें अर्वा उसके बायें अर्वा अर्वा खल
ु ी हुई भलू म में हो अर्वा
मस्जिद में हो।या वह मस्जिद स्िस के अंदर क़ब्र हो वह पहले बनाई
गई बाद में मुदी दफन ककया गया हो या क़ब्र पहले से हो बाद में
मस्जिद बनाई गई हो अर्वा क़ब्र उसी मंस्ज़ल पर स्िस पर नमाज़ी
नमाज़ पढ़ता अर्वा ऊाँची मंस्ज़ल पर अर्वा नीचली मंस्िल पर अर्वा
क़ब्र मस्जिद के भवन के अंदर हो अर्वा उसके आंगन में हो क्योंकक
मस्जिद का आंगन मस्िजद के अंतगात होता है ।िब क़ब्र वाले का
सम्मान इन समजत स्जर्नतयों में एक िैसा हो तो ऐसी स्जर्नत में वहााँ
नमाज़ पढ़ना ह़राम है क्योंकक इजलामी शरीअ़त में यह बात सबको
मालूम है कक शरीअ़त का हुक्म अपने कारण के सार् उपस्जर्त अर्वा
अनुपस्जर्त होता है और यहााँ कारण नमाज़ के जर्ान पर क़ब्र की
उपस्जर्नत है ।पररणाम जवरूप नमाज़ में ध्यान अल्लाह के बिाए शवों की
ओर िाएगा।

तंबीह:इस की ह़ुरमत और क)ोर हो िाती है िब नमाज़ क़ब्र की ओर


हो दो कारणों से
(4) नमाज़ पढ़ने वाला िब क़ब्र को अपने सामने रखता है तो उस के
हदल में क़ब्र वाले का अनत अधिक सम्मान होता है ।

(9) यह काया मनू ता पि


ू कों के काया के िैसा है िो अपने पज्
ू यों को
अपने सामने रख कर पूिा करते हैं।यह जवयं में ननषेि है ।
क़ब्रों के पास नमाज़ पढ़ने का हुक्म वैिता अर्वा अवैिता के
दृस्टिकोण से

कोई पछ
ू ने वाला पछ
ू सकता है कक हमें मालम
ू हो गया कक क़ब्रों के पास
नमाज़ )ीक नहीं परं तु कोई पढ़ ले तो व्यर्ा हो िायगी और उसे लोिाना

पडेगा?या पाप होगा और नमाज़ सही होगी?

उत्तर:ऐसी नमाज़ के सही होने के ववषय में ववद्िानों के कई मत हैं


कुछ ऐसी नमाज़ व्यर्ा मानते हैं,यही कर्न इदने तैलमया और इदने

हिम का है ।

इदने तैलमया के लशटय इदने क़स्ययम कहते है । "इस प्रकार की मस्जिद


में नमाज़ )ी नहीं" )57٢\٣ ‫(زاد المعاد‬

सारांश यही है कक अधिकांश ववद्िानों के यहााँ क़ब्रों के पास नमाज़


दरू
ु जत नहीं।कुछ ववद्िान यह भी कहते है कक नमाज़ हो िायगी ककन्तु
उसे पाप होगा।इस ललये अच्छा यही है कक इस से बचा िाए।

अपवाद:क़ब्रों के पास वही नमाज़ मना है िो रूकू सिदे वाली हो।


िनाज़े की नमाज़ क़बब्रजतान में िायज़ है ।और इसका प्रमाण अबू हुरै रा
रज़ीअल्लाहु अंहु की यह ह़दीस है कक एक काला व्यस्क्त अर्वा काली

महहला िो मस्जिद में झाडू ़ लगाती र्ी।उसका ननिन हो गया,नबी

सलल्लाहु अ़लहै ह वसल्लम ने उसके ववषय में पूछा तो बताया गया कक


उसका ननिन हो गया।आप ने फरमाया मुझे क्यों नहीं बताया?उसकी

क़ब्र बताओ।कफर उसकी क़ब्र पर आपने नमाज़ पढ़ी।

)504:‫ و اللفظ له و مسلم‬109:‫(رواه البخاري‬

इदने हहदबान
़ ने अपनी पुजतक )‫ (المجروحين‬के अन्दर बकर बबन ज़्याद

बाहली,अ‫ذ‬ददल्
ु लाह बबन मुबारक,सईद बबन अबी उरूबा,ज़रारा बबन औफा
और अबू हुरै रा रज़ीअल्लाहहु अ़न्हुम से ररवायत है कक नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम ने कहा (मेराि की रात मुझे बैतुल मकहदस की यारा

कराई गई,स्िबरील ने मेरे वपता के क़ब्र से मेरा गुज़र करवाया और कहा

ऐ मह़
ु म्मद यह आपके वपता इबराहीम की क़ब्र है ।

कफर मेरा गज़


ु र बैते लहम के पास से हुआ और कहा यहााँ )हरो और दो
रकअ़त नमाज़ पढ़ो नन:संदेह यहााँ मेरे भाई के लडके ईसा हैं।कफर मझ
ु े
घािी में लाया गया और कहा यह आकाश की उचाई है ।कुछ लोगों का
ख़्याल है कक इस ह़दीस में क़ब्र के पास नमाज़ के िवाज़4वैि का प्रमाण
लमलता है ।तो उत्तर यह है कक यह ह़दीस मनगढ़त है ।इदने हहदबान
़ ने
इसको ररवायत ककया है ।कफर कहा मोह़म्मद बबन अह़मद बबन इबराहीम
ने इसको रमला से ररवायत ककया है ।कफर कहा अ़ददल्
ु लाह बबन सुलैमान
बबन उ़मैर अल-बलवी अल-मकदसी ने हमसे रवायत ककया।कफर कहा।
बकर बबन ज़्याद अलबाहली ने हमसे दयान ककया।
इदने हहदबान
़ ने बकर के बारे में कहा कक वह दज्िाल है और लसकह
(ववश्वसनीय) रावीयों पर ह़दीस को गढ़ता है पुजतकों में केवल उसकी
खराबबयों का ही स्िक्र
़ लमलता है ।

ज़हबी ने "मीज़ानुल ए़तद


े ाल" ‫ ميزان اإلعتدال‬में इदने हहदबान
़ की सत्यता
को जवीकार ककया है । "तरतीबल
ु मौिुआ़
़ त" में इसका स्ज़क्र ककया है ।
शौकानी ने भी इसको (एलफवाईद अल मिमुआ़ कफल अहादीस

अलमौज़ूआ) )‫ (الفوائد المجوعة في األحاديث الموضوعة‬में स्ज़क्र ककया है ।

इदने िौिी ़ ने इदने हहदबान


़ ही की िैसी पज
ु तक (अलमौज़ूआत
़ लमन
अहादीस
़ अलमरफुआ़त) )‫ (الموضوعات من أحاديث المرفوعات‬में ररवायत
ककया है ।
क़ब्रों पर मस्जिद के ननमााण का मसला

क़ब्र के पास केवल नमाज़ पर लोगों ने बस नहीं ककया है बस्ल्क उन्होंने


उस पर मस्जिदों का ननमााण ककया नमाज़ जर्ावपत करने के ललए और
ननयलमतता के सार् िमे रहे चाहे वह फज़ा नमाज़ हो अर्वा नफल।
उनका मानना है कक क़ब्र वाली मस्जिदों में नमाज़ जर्ावपत करने का
बहुत बडा पण्
ु य है और िो मस्जिदें क़ब्र के ननकि होती हैं वहााँ दआ
ु ़
अधिक जवीकार होती है उन मस्जिदों की तुलना में के िो क़ब्रों से दरु
होती है ।

बस्ल्क कुछ लोग मस्जिदों के ननमााण में बहुत िन खचा करते हैं कफर
यह वसीयत करते हैं कक उसे उसमें दफन ककया िाए।

और िब हम नबी की सुन्न्त की ओर लौिते हैं तो हमे पता चलता है


कक नबी ने ऐसों पर अलभशाप भेिा है और यह बताया है कक कल
क़्यामत के हदन अल्लाह के ननकि बहुत घहिया व्यस्क्त होगा।
क़ब्रों पर मस्जिद ननमााण के ननवारण के प्रमाण

(‫)بيان ادلة النهي عن بناء المساجد على القبور‬

इस लेख के पहले भाग में नौ सही ़ ह़दीसों का स्ज़क्र हो चुका है स्िनमें


क़ब्रों को मस्जिद बनाने की मनाही आई है ।हमने यह भी िाना कक क़ब्रों
को मस्जिद बनाने का सबसे प्रचण्ड रूप यह है कक उस पर मस्जिदें बना
दी िाएं।

दसवां प्रमाण:

िो क़ब्रों पर मस्जिद के ननमााण के मनाही में ववशेष एवं जपटि है ।और


वह आ़यशा रज़ीअल्लाहु अंहा से वखणात है कक उम्मे ह़बीबा और उम्मे
सलमा ने एक ऐसे धगरिाघर के ववषय में बताया स्िसे उन्होंने हदशा में
दे खा र्ा िहााँ ई़सा अ़लैहहजसलाम की धचर रखी हुई र्ी तो रसल

सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने कहा यह वही लोग हैं स्िन के सदाचार
व्यस्क्त का ननिन हो िाता है तो उनके क़ब्र पर मस्जिद बना दे ते हैं

और वहााँ इन की धचरों को रख दे ते हैं,क़्यामत के हदन ऐसे लोग अल्लाह

के ननकि सबसे बुरे होंगें । (बुखारी:11٢,मुस्जलम:019)

इदने अ़ददल
ु बर रहह़महुल्लाह ने कहा कक मुसलमानों पर यह ह़राम है कक

वह नबबयों,ववद्िानों एवं सदाचाररयों की क़ब्रों पर मस्जिद बनाएं।


इदने रिब रहह़महुल्लाह ने कहा है कक यह ह़दीस सदाचार लोगों की क़ब्रों
पर मस्जिद के बनाने की हुरमत
़ बवैिता को बताती है और उनके रूपों
की चररर बनाने पर भी िैसा के ईसाई लोग करते र्े और इसमें कोई
संदेह नहीं है कक इन दोनों में से प्रत्येक व्यस्क्त पर ह़राम है ।व्यस्क्तयों
की चीरों को बनाना ह़राम है ।ककसी की भी क़ब्र पर मस्जिद का बनाना
ह़राम है ।िैसा के दस
ु रा प्रमाण इस पर जपटि साक्ष्य है ।

ग्यारहवां प्रमाण:

इदने अ़दबास रज़ीअल्लाहु अंहुमा से ररवायत है कक नबी ने क़ब्रों के दशान

करने वाललयों पर अलभशाप भेिी है ।और उस पर मस्जिद बनाने वालों,

धचराग चलाने वालों पर अलभशाप भेिा है ।

बारहवां प्रमाण:

क़ब्रों पर मस्जिद के बनाने की मनाही में क़ुआान से प्रमाण:

इदने रिब रहह़महुल्लाह ने कहा: क़ुआान की आयत वही बताती है िो


यह ह़दीस बताती है । अल्लाह का यह फरमान:

)٢0 :‫(قال الذين غلبـوا على أمرهم لنتخذون عليهم مسجدا) (الكهف‬

अर्ाात:उन्होंने कहा िो अपना प्रभुत्व रखते र्े,हम अवश्य उन (की गुफा

के जर्ान) पर एक मस्जिद बनायेंगे।

मस्जिदों पर क़ब्रों का ननमााण करना।


तेरहवां प्रमाण:

सहाबा
़ ताबई़न का एकमत है कक पहली तीन शतास्ददयों में लोगों पर
फिीलत
़ एवं महत्व प्राप्त है वे मस्जिद में दफन करने के पि में नहीं
हैं और इसी प्रकार से क़ब्रों पर मस्जिदों के ननमााण में भी चाहे स्िनकों
दफन ककया गया वह अपने युग के सवोत्तम पुरूष हो और सबसे
अफज़ल उम्मत हो ।

क़ब्रों पर मस्जिदों के ननमााण में सहाबा


़ की नापसंदीदगी का उल्लेख
आया है ।स्िसको इदने अबी शैबा ने अपनी पज
ु तक )‫ (مصنف‬में अनस से
ररवायत ककया है कक वह क़ब्रों के बीच मस्जिदों के ननमााण को नापसंद
करते र्े।ताबई़न ने भी क़ब्रों पर मस्जिद बनाने को नापसंद ककया है ।
स्िसको इदने अबी शैबा ने इबराहीम नखई से ररवायत ककया है कक वह
क़ब्रों पर मस्जिद के बनाए िाने को पसंद नहीं करते र्े।

अलबानी रहह़महुल्लाह ने कहा:“इबराहीम यह इदने यिीद़ अल नखई हैं


और ताबई़ सगीऱ (छोिे ) हैं।स्िनकी मत्ृ यु 25 हहिरी में हुई।यह हुकम
यकीनन कुछ सहाबा
़ अर्वा उनके िानने वालों से प्राप्त ककया। इसमें
जपटि प्रमाण है कक वे लोग इस हुक्म को बाकी और नबी के पश्चात
बाकी रहने को दे खते है ।"

इदने तैलमया रहह़महुल्लाह ने कहा:क़ब्रों पर बनाई गई मस्जिदों को


"मशहहद" का नाम हदया िाता है िो इजलाम में नई बात अर्वा चीज़
का अववटकार करना है िो इजलाम में बबदअ़त है ।कुरूने सलासह (प्रर्म
तीन शताददी) में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं बनाई गई।िबकक इदने तैलमया
ने माना कक क़ब्रों पर मस्जिदों का बनाना तीसरी शताददी के अंत में
पाया िाता है ।क़ब्रों पर मस्जिदों का ननमााण एवं उनका िगह िगह फैल
िाना यह उस समय हुआ िब बनु अ़दबास का शासन एवं सरदारी
कमिोर पड गई और उम्मत कई भागों में बंि गई।मुसलमानों के वजरों
में उस समय अधिकांश काकफर र्े और उसके अंदर बबदअ़त का बोल
बाला र्ा और यह तीसरी शताददी के अंत में मक
ु तहदर के शासन काल
में हुआ।कफर पस्श्चम की िरती पर करामत4चमतकार प्रकि हुआ कफर
वह लोग लमस्र आए और उससे बनु बुवैह का अस्जतत्व हुआ और उनमें
से अधिकांश काकफर और बबदअ़ती र्े।

मज़ाहहबे अ़रबा (चारों कफक्ही पंर्ी) में क़ब्रों पर मस्जिद का ननमााण


ह़राम है ।

क़ब्रों पर मस्जिद ननमााण करने के संबि


ं में चारों कफक्ही
पंर्ों की रायें
ह़दीस में आए हुरमत
़ (अवैिता) के आिार पर चारों इमाम ने क़ब्रों पर
मस्जिद बनाने को ह़राम कहा है ।नीचे उनके कर्न आ रहे हैं।

अह़नाफ का मतिः इमाम मुहम्मद रहहमह


़ ु ल्लाह ने कहा िो इमाम अबू

ह़नीफा के ववद्यार्ी हैं:

हम मकरूह िानते हैं क़ब्रों को पलाजिर करने अर्वा उसके पास मस्जिद
बनाए िाने को।अह़नाफ के नज़दीक मकरूह का इतलाक हुरमत
़ पर होता
है ।िैसा के यह उनके यहााँ प्रलसद्ि है ।

शमशुद्दीन अलअफगानी
़ ने अपनी पुजतक में अध्याय बााँिा है और
इसमें अह़नाफ ववद्िानों के प्रयासों का उल्लेख ककया है कुबुरीया (क़ब्र
पि
ू क) के आजर्ाओं को व्यर्ा करने में ।कफर कुछ संदेहों का उल्लेख
ककया है िो इस पर उ)ते हैं और उसका उत्तर हदया है ।

माललककया का मज़हब:कुरतुबी ने )‫ (الجامع ألحمام القلرآن‬में कहा है


क़ब्रों पर मस्जिद बनाना,उसपर नमाज़ पढ़ना और इसके अलावा िो भी

इस के अंतगात आता है मना है और िाएज़ नहीं है ।

हमारे ववद्िानों ने कहा:ववद्िानों एवं नबबयों की क़ब्रों को मस्जिद


बनाना ह़राम है ।अबू मरसद गनवी
ु़ से ररवायत है उन्हों ने कहा मैंने नबी
को कहते हुए सन
ु ा (क़ब्रों पर नमाज़ मत पढ़ो और न हीं उसके पास
बै)ो) अर्ाात क़ब्रों को नमाज़ पढ़ने के ललए ककबला
़ मत बनाओ िैसे कक
यहूद और ईसाई करते हैं।क्योंकक वह क़ब्रों में पडे व्यस्क्त की इ़बादत की
ओर ले िाता है ।िैसा कक वह प्रनतमा एवं मूनता की इ़बादत का कारण
र्ा।

मोह़म्मद अमीन बबन मोह़म्मद अलमुख्तार शंकीती


़ ने कहा िो मालकी
पंर् के हैं क़ब्रों पर मस्जिद बनाने और क़ब्रों के पास नमाज़ के ह़राम
होने में उनके यहां एक ववजतार ववषय है स्िनको उन्होंने अपनी पज
ु तक
)‫(أضواء البيان‬में )‫ (ولقد كذب أصحاب الحجر المرسلين‬की व्यखा में उल्लेख
ककया है ।

शाफई़ का मज़हब: ईमाम शाफई रहह़महुल्लाह ने अपनी पुजतक )‫(األم‬


के अन्दर कहा:मैं नापसंद करता हूाँ कक क़ब्रों को मस्जिद बनाया िाए।

इमाम नौवी ने कहा: शाफई़ और उनके मानने वालों के नुसूस


(प्रमाण) क़ब्र पर मस्जिद के बनाने की कराहत (स्िस के छोडने वाले को
पुण्य हदया िाए और उसके करने वाले को यातना न हो) पर आिाररत
हैं।

िलालुद्दीन सुयूती रहह़महुल्लाह ने अपनी पुजतक ‫(األمر باإلتباع و النهي‬


)‫ عن اإلبتداع‬में कहा:उसके अलावा िो भी बबदअ़तें हैं िैसे क़ब्रों के पास
नमाज़ पढ़ना,उसको मस्जिद बनाना अर्वा उस पर मस्जिद बनाना,तो

नबी की मुतवानतर (ननरं तर) ह़दीसों से इन चीिों की मनाही का बोि


होता है और उसके करने वाले पर अलभशाप है ।िहााँ तक रही क़ब्र पर
मस्जिद बनाने और उसके पास दीपक,मोमबत्ती और लैम्प िलाने की,

तो ऐसा करने वाले पर अलभशाप है िैसा कक नबी की ह़दीस इस ववषय


में आई है ।

ह़नाबला का मज़हब: इदने कुद़ ामा रहह़महुल्लाह ने कहा: क़ब्रों पर


मस्जिद बनाना िायज़ नहीं है ।इसललए कक नबी ने फरमाया: (यहूद पर
अल्लाह की अलभशाप हो उन लोगों ने अपने नबबयों की क़ब्रों को
मस्जिद बना ललया और नबी ने ऐसा करने से डराया है ।इसललए कक
क़ब्रों के पास नमाज़ को ववशेष करना बुतों के आदर के सामान है उस
के ललए सिदा और ननकिता के द्वारा और यह बताया िाता है कक
बत
ु ों के पि
ू ा का आरं भ और प्रारं भ मुदों के सम्मान से हुआ है उनकी
तजवीर बना कर उसे चूम कर और उसके पास नमाज़ पढ़कर।इदने
तैलमया रहह़महुल्लाह से पूछा गया:क्या ऐसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ना
सही ़ है स्िसमें क़ब्र हो और लोग उस में िमाअ़त और िम
ु ा की नमाज़

पढ़ने के ललए िमा होते हों?

तो इदने तैलमया ने िवाब हदया:समजत प्रशंसाएं उल्लाह के ललए हैं।


उम्मत की सहमनत है कक क़ब्र पर मस्जिद नहीं बनाई िा सकती है ।
इसललए कक नबी ने फरमाया (तुमसे पूवा के लोग क़ब्रों की मस्जिद बना

लेते र्े अत: तुम लोग क़ब्रों को मस्जिद मत बनाओ,नन:संदेह मैं तुम्हें

ऐसा करने से मना करता हूाँ इसललए मद


ु ों को मस्जिद में दफन करना
िाएज़ नहीं है ।यद्यवप मस्जिद को दफन से पहले बदल हदया हो क़ब्रों
को बराबर करके अर्वा कफर खोद करके अगर वह नई हो।और अगर
मस्जिद क़ब्र के बाद बनी हो तो कफर मस्जिद को धगरा दें अर्वा क़ब्र

को खत्म कर हदया िाए,क़ब्र पर बनाई गई मस्जिद में न फज़ा और न

नकफल नमाज़ पढ़ी िाएगी।क्योंकक ऐसा करना मना है ।

इदने तैलमया ने यह भी कहा:क़ब्रों को मस्जिद बनाने की मनाही में ,क़ब्रों

पर मस्जिद बनाने की मनाही भी शालमल है और इसी प्रकार से उसके


ननकि नमाज़ के इरादा से भी।यह दोनों ववद्िानों की सहमनत से मना
है । उन्होंने क़ब्रों पर मस्जिद बनाने से मना ककया है और इसकी हुरमत

को जपटि कर हदया है ,िैसा कक इसका प्रमाण है ।

इदने कैववम ने उस लाभ का उल्लेख ककया है िो ज़रार मस्जिद की


कहानी से प्राप्त होता है ।स्िसको मन
ु ाकफक़ों (द्वविावाहदयों) ने बनाया
र्ा।उसमें से एक लाभ यह है कक बेगैर भलाई और ननकिता के दान
सही नहीं है िैसा कक यह मस्जिद सही नहीं है ।क़ब्र पर मस्जिद बनाई
गई हो तो मस्जिद को तोड हदया िाएगा िैसा कक मद
ु ाा को खोद कर
ननकाला िाता है ।िब मस्जिद में दफन कर हदया िाए।इमाम अह़मद
और उसके अलावा ने इसको जपटि ककया है कक इजलाम िमा में मस्जिद
और क़ब्र एक सार् इकट्)ा नहीं हो सकते।
कफर यहद दोनों को सार् रखा गया तो वह िायज़ नहीं है न ही उस
मस्जिद में नमाज़ सही होगी।नबी ने इस से मना ककया और क़ब्र को
मस्जिद बनाने को अलभशापका कारण और उस पर हदया िलाना सही
नहीं है ।यही वह इजलाम िमा है स्िसे अल्लाह ने नबबयों और रसूलों को
दे कर भेिा।

)‫ (زاد المعاد‬में भी गज़वा-ए-ताएफ


़ के लाभों का उल्लेख करते हुए कहा:
उन में से एक यह है कक लशका और तागत
ू के जर्ानों को उसके तोडने
और खत्म करने की शस्क्त रखने के बाविूद बाकी रखना िायज़ नहीं
है ।नन:संदेह यह कुफ्र और लशका का तारीका है ।और यह बहुत बडा पाप
है ।शस्क्त रखने के बाविद
ू उसको बाकी रखना िायज़ नहीं है ।इसी प्रकार
से उन मिारों़ का हुकुम है िो क़ब्रों पर बनाए गए हैं।स्िन में मूनता और

तागूत़ को बनाया गया है ,गैरूल्लाह (अल्लाह के अनतररक्त) की प्रार्ाना

के ललए और वह पत्र्र स्िससे आदर,तबरुा क और नज़र का इरादा करते

हैं,इनमें से ककसी को भी उसके खत्म करने की शस्क्त रखने के बाविूद

इस िरती पर बाकी रखना सही नहीं है ।उनमें से अधिकांश लात,उ़ज्िा ़

और मनात का जर्ान ले लेंगे,यह बहुत बडा लशका है ।

इस चचाा के पश्चात उ़मर रज़ीअल्लाहु अ़न्हु के शिरे ररिवान कािने के


ववषय में कहा कक नबी ने मस्जिद-ए-स्िरार
़ को ध्वजत करवा हदया।तो
इस बात का प्रमाण लमलता है कक स्िससे फसाद पैदा होता है उस को
तोड दे ना है ।िैसे क़ब्रों पर मस्जिद बनाना और इजलाम में उसका हुक्म
यह है कक इन सभी को तोड हदया िाए यहााँ तक के िमीन के बराबर
हो िाए और यह मस्जिद-ए-ज़रार के वविवंस करने से अधिक बेहतर है ।

अ़ल्लामा शौकानी ने कहा है कैसे कहा िा सकता है कक मुसलमानों ने


ऐसा करने वालों को मना नहीं ककया हालााँके वह लोग इससे मना करते
रहे हैं और ऐसा करने वालों पर अलभशापभेिा है ।हर यग
ु के ववद्िान
इससे सवैद मना करते रहे और इसे रोकने में अनतशयोस्क्त करते रहे
हैं।इदने क़ैस्ययम ने बयान ककया है कक सामान्य मुसलमान ने क़ब्रों पर
मस्जिद बनाने की मनाही को जपटि ककया हैं कफर

कहा:अह़मद,माललक,शाफई़ ने भी इसकी हुरमत


़ (अवैिता) को जपटि

ककया है ।एक दल ने कराहत माना है ककन्तु उधचत है कक इसको तह़रीम


(अवैि) की कराहत मानी िाए।
कुछ संदेह और उनके उत्तर

प्रर्म संदेहिः

मस्जिदे नबवी में नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र होने के कारण
बहुत से लोगों ने क़ब्रों पर मस्जिदों के ननमााण की अनम
ु नत दी है ।यहद
यह ह़राम (ननषेि) की होता तो आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम उसमें
दफनाये नही िाते।

इस संदेह का उत्तरिः

नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम मस्जिद में नहीं दफनाये गए।बस्ल्क आप


अपने घर आ़यशा रज़ीअल्लाहु अन्हा के कमरें में दफनाये गए।िैसा कक
उूपर उल्लेख ककया गया है ।यह एक प्रलसद्ि मामला है स्िसमें कोई
वववाद नहीं मस्जिद उस समय नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम के घर
से उस दीवार से अलग र्ी स्िससे नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम
ननकलते र्े और प्रवेश करते र्े।नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम और

सभी सह़ाबा के ननिन के पश्चात अठ्)ासी (11) हहिरी में मुसलमानों

को मस्जिद का ववजतार करने की अवश्यकता पडी और वह वलीद बबन


अददल
ु मललक के उत्तरधिकार में र्ा।उन्होंने रसूलु सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम की पस्त्नयों के कमरों को रसूलु सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की
मस्जिद में दाखखल करने का आदे श दे हदया।इस ललए आ़यशा के घर को
परू ी तरह से मस्जिद में सस्म्मललत ककया गया।अत: नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम का कमरा मस्जिद में हो गया।स्िस में आप की क़ब्र भी
शालमल है ।उनके पश्चात के कुछ लोगों का ख्याल हुआ कक रसूलु
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र मस्जिद में शुरू ही से है ।ककन्तु
ध्यान हदया िाना चाहहए कक मस्जिदे नबवी का ववजतार कई बार ककया
गया है िब मस
ु लमानों की संख्या बढ़ी उ़मर और उसमान के यग
ु में

भी,परं तु उन्होंने कमरों की ओर से ववजतार नहीं ककया बस्ल्क दस


ू री ओर
से ककया।

इसी ललए िब उ़मर बबन खत्ताब रज़ीअल्लाहु अ़न्हु ने मस्जिदे नबवी का


ववजतार ककया तो उन्होंने नबी के कमरा को नहीं छे डा िो मस्जिद से

िुडा है ,बस्ल्क उन्होंने कहा कक उस के ललए कोई राजता नहीं है ।

अलबानी रहह़माहुल्लाह ने कहा:इसी ललए हम वलीद बबन अददल


ु मललक
की गलती पर मानते हैं।यहद वह मस्जिद का ववजतार करने के ललए
वववश हो गए र्े तो वह नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम के कमरा को
छे ड छाड ककए बबना अन्य हदशाओं से उसका ववजतार करने में सिम
र्े।

अल्लामा हाकफज़
़ मोह़म्मद बबन अ़ददल
ु हादी रहह़महुल्लाह ने ‫(الصارم‬
)‫ المنكي‬में कहा: हुिरा-ए-नबवी को मस्जिद के अंदर वलीद बबन अ़ददल

मललक के शासन काल में प्रवेश ककया गया उस समय मदीना के सभी
सहाबा
़ का ननिन हो चुका र्ा।मदीना में ननिन होने वाले अंनतम सहाबी

िाबबर बबन अ़ददल्
ु लाह हैं उनका ननिन वलीद की शासन काल में हुआ।
क्योंकक उनकी मत्ृ यु 91 हहिरी में हो गई र्ी।और वलीद ने 11 हहिरी
में पद संभाला और 25 हहिरी में उनका ननिन हो गया।इसललए
मस्जिदे नबवी का न्या ननमााण और हुिरा-ए-नबवी को उस के अंदर
प्रवेश करने की घिना इसके बीच का है ।और उन्हों ने यह भी कहािः
"सहाबा
़ के युग में हुिरा मस्जिद से बाहर र्ा और उस से िुडा हुआ

र्ा,और उसे उसमें अ़ददल् ु लाह बबन अ़दबास,


ु लाह बबन उ़मर अ़ददल्
अ़ददल्
ु लाह बबन िब
ु ेर और अ़ददल्
ु लाह बबन अ़मर के ननिन के पश्चात
बस्ल्क मदीना में रहने वाले सभी सहाबा
़ के ननिन के पश्चात अ़ददल

मललक बबन मरवान के शायन काल में प्रवेश ककया गया।"

इसी ललए इदने कसीर रहह़महुल्लाह ने )‫ (البداية والنهاية‬में बयान ककया है


कक सई़द बबन मुसैनयब िो एक बडे ताबई़ हैं ने इस बात की ननंदा की है
कक वलीद बबन अ़ददल
ु मललक ने आ़यशा रज़ीअल्लाहु अ़न्हा के कमरे को
स्िस में रसूल सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र है को मस्जिद में
सस्म्मललत ककया है और इसी ललए अल्बानी ने हिप्पणी करते हुए कहा:
वलीद के बारे में सई़द की ननंदा असम्भव नहीं है ।क्योंकक वह एक ताबई़
हैं और वह अबह
ू ु रै रा की ह़दीस के राववयों में से एक हैं कक नबी
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने कहा:अल्लाह यहूहदयों को नटि करे उन्होंने
अपने नबबयों की क़ब्रों को मस्जिद बना ललया।वलीद (अल्लाह उन्हें िमा
करे ) ने यह काम लोगों से सलाह ललए बबना ककया और उसका काम
दलील नहीं है ।

और मस
ु लमानों ने वलीद द्वारा ककए गए उल्लंघन को कुछ हद तक
कम करने की कोलशश की है ।इस ललए उन्होंने उस घर की दीवार को
उ)ा हदया िो ककबले की हदशा में स्जर्त है ताकक नमास्ियों
़ के ललए
प्रार्ाना के कयम में क़ब्र का ववचार न आए।इदने रिब ने कहा: कुऱ तब
ु ी
रहह़महुल्लाहु तआ़ला ने फरमायािः मस
ु लमानों ने नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम की क़ब्र में तबररूक को रोकने के ललए अनतशयोस्क्त ककया।उसे
आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र के सार् घेर हदया कफर उन्हें
आप की क़ब्र के जर्ान को ककबला बनाए िाने का डर हुआ िब वह
नमास्ियों
़ के सामने हो और प्रार्ाना के समय में उसकी ओर माँुह करके
नमाज़ पढने का कल्पना हो।इस ललए उन्होंने क़ब्र के दो उत्तरी कोनों से
दो हदवार बनाई और उन्हें खूब घुमाया यहााँ तक कक वे उत्तर की ओर
एक बरकोणीय कोने पर लमल गई ताकक कोई उनकी क़ब्र की ओर माँह
ु न
कर सके।इसी कारण आ़यशा ने कहा यहद मिाऱ बनाने का डर न होता
तो आपकी क़ब्र बाहर रखी िाती।

इस संदेह के उत्तर का सारांश तीन है ।

प्रर्म: नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम को मस्जिद में नही दफनाया


गया बस्ल्क आप को उनके कमरे में दफनाया गया।
द्वतीय: सहाबा़ ने हुिार-ए-नबवी को मस्जिद में प्रवेश ककये िाने का
अवलोकन नहीं ककया यहद वे होते तो ववजतार कमरों की ओर से नहीं
होता खुलफा-ए-रालशदीन के युग में मस्जिद का ववजतार कई बार हुआ है
लेककन ववजतार में हुिरात-ए-नबवी को शालमल नहीं ककया गया।

तत
ृ ीय: हुिरा-ए-नबवी को मस्जिद में सस्म्मललत करना वलीद बबन
अ़ददल
ु माकक (अल्लाह उन्हें िमा करे ) की गलती र्ी।

चेतावनी: यहद मस्जिद-ए-नबवी के मामलों के स्िम्मेदार अब मस्जिद-


ए-नबवी की सीमा को पहले की िगह वापस करते हैं तो यह बेहतर और
कफतना से दरू होगा और यह कमरा की पस्श्चमी दीवार को मस्जिद से
एक ऐसी दीवार से अलग करना है िो मस्जिद की दक्षिणी दीवार से
उत्तर की ओर की दीवार नमाज़ के ललए न मानी की िाए।कफर पव
ू ा की
ओर एक दीवार झक
ु ाई िाए िो मस्जिद की पव
ू ी दीवार से िा लमलती
हैं।स्िसका ननमााण आिुननक ववजतार में पूरा हुआ स्िसे शासक फहद
बबन अ़ददल
ु अिीज़़ रहह़माहुल्लाह ने अंिाम हदया।यहद वे ऐसा ककये होते
तो यह अच्छा होता और लोगों को नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की

क़ब्र के सामने होने से रोक हदया िाता।अल्लाह उन्हें इसकी तौफीक दे ,

आमीन।

दस
ू रा संदेहिः
उनमें से कुछ ने उस ररवायत के आिार पर क़ब्रों पर मस्जिदों के
ननमााण की अनुमनत दी है स्िसे तबरानी ने ररवायत ककया है उन्होंने
कहा:हम से अबदान बबन अह़मद ने बयान ककया कहा:हम से अबू
हम्माम अल-दलाल ने बयान ककया।कहा हम से इबराहीम बबन तहमान
ने मंसरू के माध्यम से बयान ककया वह मि
ु ाहहद से वह इदने उ़मर से
ररवायत करते हैं कक उन्हों ने कहा सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने
फरमाया मस्जिदे खेफ में सत्तर नबबयों की कब्रें हैं और इसे बज्िाऱ ने
अबू ह़म्माम से ररवायत ककया है ।

अ़ल्लामा अल्बानी रह़मतुल्लाह ने इस संदेह का यह उत्तर हदया है कक


वह ह़दीस सनद (वणानकतााओं की श्रंख
ृ ला) के अनस
ु ार ज़ई़फ (कमज़ोर)
है ।इस ललए कक इस सनद में ई़सा बबन शािान है स्िसके बारे में इदन
हहदबान
़ ने अजसेकात में कहा है कक उसकी ररवायात में ग़राबत
(कमज़ोर) मानी िाती है ।और इसकी सनद में इब्राहीम बबन तहमान है
और वह लसकहा (ववश्वसनीय) है इसकी ररवायत में भी ग़राबत पाई
िाती हैं िैसा कक हाकफज़
़ इदन ह़िर और अल्बरनी ने कहा मुझे संदेह है
कक ह़दीस में ककसी रावी की ओर से तह़रीफ (छे ड छाड) हो गई हो और
इसने सलात (नमाज़) के बदले क़ब्र कह हदया हो।क्योंकक ह़दीस का यह
दस
ू रा शदद प्रलसद्ि है तबरानी ने अल-कबीर में लसकह ररिाल की सनद
(वणानकतााओं की श्रंख
ृ ला) से सई़द बबन िुबेर इदन अ़दबास के संदभा से
ररवायत मरफूअ़न ररवायत ककया है कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम
ने फरमाया: “मस्जिद अल खेफ में सत्तर नबबयों ने नमाज़ पढ़ी है " और
अल मुनस्िरी
़ ने कहा:उसे तबरानी ने अल अवसत में ररवायत ककया है
और उसकी सनद ह़सन है और मेरे नज़दीक इसके ह़सन ह़दीस होने में
कोई संदेह नहीं।

सारांश यह कक मस्जिदे खेफ िो लमना में है उसमें सत्तर नबबयों ने


नमाज़ पढ़ी और उसमें सत्तर नबबयों को दफनाया नहीं गया और इससे
संदेह समाप्त हो िाएगा।

तीसरा संदेहिः

उनमें से कुछ लोगों ने उस ररवायत के आिार पर क़ब्रों पर मस्जदिों के


ननमााण की अनम
ु नत का प्रमाण ननकाला है स्िसे दारे कुत
़ नी ने इदन
अ़दबास रज़ीअल्लाहु अन्हुमा से ररवायत ककया है उन्होंने कहा स्िबरील
अलेहहजसलाम ने आदम अलैहहजसलाम की नमाज़-ए-िनािा ़ पढ़ाई तो
चार तकबीर कही स्िबरील ने उसी हदन फररशतों को नमाज़ पढ़ाई
आदम अलैहहजसलाम को मस्जिद खेफ में ककबला
़ की ओर दफन ककया
गया उनकी लह़द बनाई गई और उनकी क़ब्र को कुहान िैसा बनाया
गया।

इसका उत्तर पुजतक के शोिकताा ने हदया है :

"उसकी सनद बहुत ही ज़ई़फ (कमिोर) है ।मैंने कहा अ़ददरु रह़मान बबन
मगूल अबू दाद ने कहा वह ह़दीस बनाता र्ा और बुखारी़ ने कहा:उसकी
ह़दीस कुछ भी नहीं है और अ़ददल्
ु लाह बबन मस्ु जलम बबन हुरमज़
ु ज़ईफ
है िैसा कक अल-तकरीब में है ।

चौर्ा संदेहिः

कुछ लोगों ने उस ररवायात के आिार पर क़ब्रों पर मस्जिद के ननमााण


का प्रामाण ललया है स्िसे हाककम
़ ने अल-कुना )‫ (الكنى‬में क़ब्रों पर
ननमााण की गई मस्जिदों में नमाज़ की अनुमनत दे ते हुए आ़इशा से
मुरफुअ़न ररवायत की है इजमाई़ल की क़ब्र हहिर जर्ान में है ।

इस संदेह का उत्तर यह है कक इस ह़दीस को ववद्िानों िैसे सखवी ने


"अल-मकासेदल
ु ह़सना" में और अल-अिलूनी ने कशफुल खेफा में ज़ईफ
करार हदया है और उन्हों ने कहािःइसे दै लमी ने आ़यशा से ज़ई़फ सनद
के सार् मरफुअ़न ररवायत ककया है और इसी प्रकार अल्बानी ने
तहिीरूजसास्िद में इसे ज़ईफ करार हदया है ।

और अल्बानी रहह़महुल्लाह ने कहा:ककसी मरफू ह़दीस से लसद्ि नहीं कक


इजमाई़ल अर्वा ककसी भी अन्य नबबयों को मस्जिद-ए-ह़राम में दफन

ककया गया हो।ह़दीस की प्रमाखणत ककताबों िैसे लसहा-ए-लसत्ता,मुसनद

अह़मद मआस्िमें तबरानी इत्याहद प्रलसद्ि ह़दीस की पुजतक में से ककसी


में उसके संबंि में कोई ह़दीस नहीं आई है ।यह कुछ शोिकतााओं के
ननकि ककसी भी ह़दीस के ज़ईफ बस्ल्क मनघडत होने का एक बडा
प्रमाण है इस ववषय में िो भी आसार ररवायत की गई है स्िन्हें अरज़की
ने अखबारे मक्का में ररवायत ककया है वह सब मोकूफ और वाही सनदों
से मरवी हैं वपछली ह़दीस को ववद्िानों के समूह ने ज़ईफ करार हदया
है । ववजतार के ललए मोसाअतुल आह़ादीस वल आसार अल ज़ई़फा वल
मोिआ़
ु ़ को दे खें।

पााँचवा संदेहिः

उनमें से कुछ लोग उस चीज़ से प्रमाण पकडते हैं िो अबू िंदल


रज़ीअल्लाहु अ़न्हु की इस ररवायत में आई हुई है स्िसे इदने अ़ददल
ु बर
रहह़माहुल्लाह ने अल-इजतीआब में मूसा बबन उ़क़बा की ररवायत से
बयान ककया है कक िब अबू बुसैर रज़ीअल्लाहु अ़न्हु का ननिन हो गया
तो अबू िंदल ने उन्हें दफनाया ओर उनकी क़ब्र पर एक मस्जिद का
ननमााण ककया।

इस संदेह का उत्तर कई विहों से:

प्रर्म: इस घिने की सनद िईफ है घिने के रावी मूसा बबन उ़क़बा को


ककसी सहाबी से समाअ़त (सुनन) प्राप्त नहीं है ।न ही अबू बुसैर से और
न ही उनके अलावा से क्योंकक लसरे से ककसी सहाबी
़ को नहीं पाया है
इसललए घिने की सनद मिहूल (अज्ञात) है ।

द्वतीय: यह ररवायत उन ररवायतों के ववरूद्ि है िो इस से अधिक


सही है ।इमाम बुखारी़ ने अबू िंदल की कहानी को अबू बसीर के सार्
अददरु ा ज्िाक़़ के माध्यम से मामर से मौसल
ू न ररवायत ककया है उन्हों ने
कहा:िुबैर के बेिे ने लमजवर बबन मखरमा और मरवान के संदभा से मुझे
इसकी सूचना दी इस वद्
ृ धि के बबना अर्ाात और उसने उसकी क़ब्र पर
एक मस्जिद का ननमााण ककया।

और इसी प्रकार इदन इजहाक़़ ने अल सीरत में िोहरी


़ से मुरसलन
ररवायत ककया है और अह़मद ने इसे मामर के िैसे इदने इजहाक़़ के
संदभा से िोहरी
़ से उवाा से ररवायत ककया है और उसमें यह वद्
ृ धि नहीं
है ।

और इसी प्रकार से इदन िरीर अलतारीख में मामर और इदन इजहाक़़


आहद के माध्यम से िोहरी
़ से ररवायत ककया है इस वद्
ृ धि के बबना।

इससे मालूम होता है कक यह इिाफा मुनकर है इसकी सनद मनघडत है


और लसकात ने इसे ररवायत नहीं ककया है ।

छिा संदेह:

कुछ लोगों ने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम को आ़यशा रज़ीअल्लाहु


अन्हा के कमरे में दफन ककये िाने से क़ब्रों पर ननमाणा की अनुमनत दी
है ।

इसका उत्तर दो प्रकार से है :

प्रर्म:
संक्षिप्त उत्तर है कक अल्लाह की शरीअ़त में ववरोिाभास नहीं है यह
असंभव है कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने ककसी काया से रोका हो
कफर उनके ननिन के पश्चात उनके सहाबा
़ इस पर सवासम्मनत से
सहमत हो कर करते हैं।

द्वतीय:

ववजतर
ृ उत्तर यह कक सहाबा
़ ने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम को
उनका सम्मान करने के इरादे से आ़यशा के कमरे में नहीं दफनाया
बस्ल्क दो कारणों से:

प्रर्म: आपकी क़ब्र लोगों से दरू की गाई ताकक उनके सम्मान में
अनतशयस्ु क्त न हो और इसके प्रमाणों का दयान गि
ु र चक
ु ा है ।

द्वतीय: अल्लाह ने अपने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम और अपने


सभी नबबयों की मत्ृ यु वहीं की िहााँ दफन ककये िाते हैं और आपकी
मत्ृ यु का जर्ान आ़यशा रज़ीअल्लाहु अ़न्हा का कमरा है ।और इसका
प्रमाण आ़यशा रज़ीअल्लाहु अ़न्हा की ह़दीस है उन्होंने कहा: िब
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की आत्मा ननकाल ली गई तो आप की
तदफीन के ववषय में सह़ाबा ने मतभेद हुआ तो अबू बकर रज़ीअल्लाहु
अ़ंहु ने कहा मैं ने आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम से ऐसी बात सुनी है

स्िसे मैंने भुला नहीं,आप ने फरमायािः अल्लाह ने हर नबी को वहीं मौत


दी िहााँ दफन ककया िाना पसन्द ककया।आप को आप के बबजतर के
जर्ान पर दफन कर दो।

यहद कहा िाए तो क्या सभी लोगों को घरों में दफनाने की अनुमनत
दे ना िाईज़ है ?

उत्तर: इदन कोदामा


़ रह़मतल्
ु लाह ने कहा:अबू अ़ददल्
ु लाह (ईमाम

अह़मद) घरों में दफन ककये िाने से मुसलमानों के कबब्रजतान में दफन
ककये िाने को अधिक पसंद करते र्े।क्योंकक यह उस के िीववत अधश्रतों
के ललए कम हाननकारक है ।आखखरत के श्रेखणयों की वद्
ृ धि के ललए
अधिक दआ
ु ़ मुनालसब है करना और उस पर अल्लाह से कृपा की ववनती

़ ,ताबई़न और उनके पश्चात वाले सहरा में


करना िरूरी है ।और सहाबा

दफन हैं। िो लोग क़ब्रों पर भवनों का ननमााण करते हैं वे इसके क़ब्र
वाले का आदर चाहते हैं न कक उसके सम्मान से लोगों को दरू रखना
चाहते हैं दोनों का कारण ववलभन्न है और इस प्रकार से इस से संदेह
खत्म हो िाता है ।

सातवां संदेह:

कुछ ने क़ब्रों पर गुंबदों के ननमााण के िाईज़ होने की बात की है यह


प्रमाण दे ते हुए कक आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र पर अब भी

गुंबद है ?
इस संदेह का उत्तर सनआ़नी रहह़माहुल्लाह ने अपनी पज
ु तक ‫(تطهير‬
)‫ االعتقاد عن أدران الشرك واإللحاد‬में इस प्रकार से हदया है ।

"यह वाजतव में एक बडी अज्ञानता है क्योंकक गंब


ु द का ननमााण न तो

नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम,ने न सह़ाबा ने,न ताबई़न ने,न

तबताबेई़न ने,न उम्मत के ववद्िानों ने और न ही लमल्लत के ववद्िानों

ने ककया है कक बस्ल्क आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र पर


ननलमात गुंबद को एक हदवंगत रािा कलावुन अल-सालही िो मंसुर के
नाम से प्रलसद्ि है 591 हहिरी में बनाया है उन्हों ने इसका उल्लेख
)‫ (تحقيق النصرة بتخليص معالم دار الهجرة‬में ककया हैं यह सरकारी मामला
हैं न कक िालमाक।

मुकयइद (अल्लाह उन्हें िमा करे ) ने कहा सुडान के एक प्रश्रकतों ने


सऊदी अ़रब की फतवा सलमनत लशिात्मक शोि एवं इफता हे तु से पछ
ू ा:
"मेरे सूडान में कुछ सूफी लोग हैं िो नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की
क़ब्र पर ननलमात गुंबद के कारण क़ब्रों पर गुंबदों के ननमााण का प्रमाण
लेते हैं इस संबंि में इजलाम का ककया आदे श है ?तो फतवा सलमनत ने
यह उत्तर हदया।"नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र पर गुंबद का
ननमााण उन लोगों के ललए प्रमाण नहीं है िो इसके द्वारा वललयों और
बुिगों
ु ़ की क़ब्रों पर गुबंदों के ननमााण करने का बहाना बनाते है ।क्योंकक
यह आपकी वसीयत से है न आप के सह़ाबा रज़ीअल्लाहु अन्हुम के
व्यवहार,न ताबई़न के व्यवहार और न ही उन प्रर्म शतास्ददयों के

मागादशान के इमामों से ककसी का अ़मल है ।

स्िसकी अच्छाई की गवाही नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने दी है ।


बस्ल्क वह अहले बबदअ़त का अ़मल है और नबी सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम से लसद्ि है उन्होंने कहा:"स्िसने हमारे इस िमा में कोई
अववषकार ककया िो उसमें नहीं है वह मरदद
ू हैं" और अ़ली रज़ीअल्लाहु
अन्हु से ररवायत है कक उन्होंने अबू हययाज़ से कहा क्या मैं तुम को
इस काम के ललए न भेिूं स्िस पर मुझ को सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम
ने भेिा र्ा वह यह कक तुम कोई धचर न छोडो मगर उसे लमिा दो और
न कोई ऊाँची क़ब्र मगर उसको बराबर कर दो।इसे मुस्जलम ने ररवायत
ककया है ।

अत: िब आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम से आप की क़ब्र पर


गुंबद का ननमााण लसद्ि नहीं है और न ही यह उलमा-ए-खैर से
लसद्ि है बस्ल्क आप से वह चीज़ लसद्ि है िो इसे नापसंद
बनाते हैं।ककसी भी मस
ु लमान को उस चीज़ से संबंि नहीं रखना
है स्िसे बबदअ़नतयों ने अववटकार ककया हो िैसे नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम की क़ब्र पर गंब
ु द का ननमााण।

फतवा सलमनत लशिात्मक शोि एवं इफता हे तु


अध्यि उपाध्यि

अददल
ु अ़िीज़़ अ़ददरु ा रज़्ज़ाक

सदजय सदजय

अ़ददल्
ु लाह बबन ग़दयान अ़ददल्
ु लाह बबन
कुऊद
क़ब्रों पर भवन एवं गुंबद
ं आहद बनाने का हुक्म

कुछ मुलसलम दे शों में यह दे खने को लमलता है कक लोग क़ब्रों पर ईंि,

संगमरमर और सीमें ि आहद से पुख्ता भवन बनाते है ।क़ब्र को चूना


करते।भवन क़ब्र के बाहर से होती है अर्वा क़ब्र के उपर गुबंद अर्वा
कमरा बना होता हैं शरीअ़त में ऐसा करना ह़राम है ।

ननम्नांककत कारणों से:

प्रर्मिः मुदे को दफनाने के संबंि में यह नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम


की सुन्नत एवं तरीके के ववरूि है ।

द्वीतीय: क़ब्र पर भवन ननमााण मुदे के सम्मान और उसके प्रनत


अनतशयोस्क्त का कारण बन सकता है ।क्योंकक िब कोई क़ब्र पर भव्य
भवन दे खता है तो उसके मन को प्रभाववत करता है कफर उसका हदल
उस क़ब्र में लेिे मुदे से लग िाता है और वह उससे अपनी
आवश्यकताएं संबंधित कर लेता है िैसा कक कुछ मुस्जलम दे शो में होता
है ।

तत
ृ ीयिः क़ब्र पर भवन बनाने से ज़मीन दस
ू रे मुदों के ललए कम हो

िायगी और बाद में मरने वालो को दफन करने में परे शानी होगी।

चौर्ा: लोगों के प्रत्येक क़ब्र मुदों के भवन से भर िायगा।


पांचवां: क़ब्रों को पुख्ता करना और उसे सुन्दर एवं भव्य बनाना दनु नया
से संबंधित है िबबक मुदाा आखखरत की मंस्िल में होता है ।
क़ब्रों पर भवन ननमााण ननवषद्ि होने की प्रमाण।

नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम सहाबा


़ और ताबेई़न से ढ़े र सारी ह़दीसें
एवं आसार वखणात हैं स्िन से ज्ञात होता है कक क़ब्रों पर भवन ननमााण
ह़राम है ।

िाबबर रज़ीअल्लाहु अ़ंहु से ररवायत है कक रसूल सलल्लाहु अ़लैहह

ु ता करने,चन
वसल्लम ने क़ब्र को पख् ु ा करने उस पर बै)ने और उस पर
भवन ननमााण से मना फरमाया है (मुस्जलम:292)

उम्मे सलमा रज़ीअल्लाहु अंहा कहती हैं कक रसूल सलल्लाहु अ़लैहह


वसल्लम ने क़ब्र को चूना करने और उस पर भवन ननमााण से मना
फरमाया है ।

( 071\44 ‫ صحيح لغيره‬:‫ وقال محقق المسند‬،٦/٢11 ‫)رواه احمد‬

अबू सई़द खुदरी


़ रज़ीअल्लाहु अ़ंहु से ररवायत है कक रसूल सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम ने क़ब्र पर भवन बनाने,उस पर बै)ने ओर उसकी ओर

नमाज़ से मना फरमाया।

( ٢٢:‫) و وصحح االلبانی اسناده في تحذير الساجد ص‬01٢1( ‫)رواه ابو يعلى فی المسند‬

नोमान बबन अबी शैबा कहते हैं कक मेरे एक चाचा "िनद" में मर गये
मैं अपने वपता के सार् इदने ताऊस के पास गया।मेरे वपता ने पछ
ू ा ऐ
अबू अ़ददरु ा ह़मान क्या मैं अपने भाई की क़ब्र को पुख्ता करूाँ?तो वह हं स
पडे और कहा:ऐ अबू शैबा! बेहतर है कक तम
ु अपने भाई की क़ब्र न
पहचानो मगर यह कक तुम उसके ललए िमा की दआ
ु ़ करो।क्या तुम्हे
नहीं मालूम कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम सलल्लाहु अ़लैहह

वसल्लम ने क़ब्र पर भवन बनाने,उसे पुख्ता करने और उस पर कुछ

बोने से मना फरमाया है ।इसललए सबसे उत्तम क़ब्र वह है स्िसको ने


पहचान सको। (मुसन्नफ अ़ददरु रज्िाकिः5126)

िब अबू मूसा की मत्ृ यु का समय आया तो उन्हों ने फरमाया: िब तुम


लोग मेरे शव लेकर चलना तो तेज़ चलना मेरे शव के पीछे बतान में
आग नहीं ले िाना मेरी क़ब्र में कुछ ऐसा नही रखना िो मेरे और
लमट्िी के बीच रूकावि बने।मेरी क़ब्र पे भवन न बनाना।मैं तुम को

गवाह बनाता हूाँ कक मैं अपनी मत्ृ यु पर लसर मुंडाने वाली,वजर फाडने

वाली और धचल्लाने वाललयों से मुक्त हूाँ।लोगों ने पूछा क्या इस संबंि में

आप ने नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम से कुछ सुना है ?फरमाया हााँ मैं

ने रसल
ू सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम से सुना है ।

)‫ اسناده قوي‬10٢ ‫ و قال األلباني في تحذري الساجد‬0٣1711 ‫(رواه احمد‬

अबू सई़द खदरी


ु़ रज़ीअल्लाहु अ़ंहु से ररवायत है कक नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम ने क़ब्र पर भवन बनाने से मना फरमाया।

)‫ وصححه األلباني‬4241 ‫(رواه إبن ماجه‬


इमाम माललक कहते हैं: मदीना में लगभग दस हिार सह़ाबा का ननिन
हुआ।शेष सहाबा दनु नया भर में फैल गये लेककन मदीना में मरने वाले
सहाबबयों
़ में से अधिकांश की क़ब्र अज्ञात है ।
क़ब्र पर बने मस्जिदों के ववरुि मुसलमानों की दानयत्व

वपछली बातों से यह जपटि होगया कक क़ब्रों को सज्दागाह बनाना ह़राम


और बरू ी बात है ।और िो मन्
ु करात (ननषेिों) में से हो तो शस्क्त अनस
ु ार
लमिाना मुसलमानों पर अननवाया है चाहे शासक हो या प्रिा िैसा कक
नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम का फरमान है "तुम में से िो व्यस्क्त
कोई बरू ी बात अर्वा काया दे खे उसे चाहहए कक उसे हार् से रोके यहद
नहीं रोक सके तो िुबान से रोके यहद यह भी न हो सके तो हदल से
बुरा माने और यह सबसे कमतर दिे का ईमान है "(मुस्जलम:12)

यहद मस्जिद क़ब्र के पहले से हो तो क़ब्र खोद कर शव को ननकालना


और कबब्रजतान में दफन करना िरूरी है इस प्रकार से मस्जिद सुरक्षित
हो सकती है ।

अगर क़ब्र मस्जिद से पहले से हो कफर उस पर मस्जिद बनाई गई हो


तो मस्जिद को तोडना अननवाया है क्योंकक तक़वे की आिार पर ननमााण
नहीं कक गई है और न ही अल्लाह का सम्मान उद्दे श्य है बल्के उसका

उद्दे श्य शव का सम्मान है ,तो उसका तोडना अननवाया है इस ललए कक

हर वह मकान िो गैरुल्लाह के ललये बनाया गया हो उस का तोडना


िाईज़ है ।यही कारण है कक नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने मन ु ाकफको ़

(द्वविावाहदयों) की बनाई हुई मस्जिदे िेरार को तोडा क्योंकक वह तक़वे
के आिार पर नहीं बनाई र्ी।
अल्लाह तआ़ला ने क़ब्र के द्वारा मस्जिद बनाना िाएज़ नहीं ककया है

और न ही मस्जिद के द्वारा क़ब्र बनाना िाएज़ ककया है ,हर चीज़ को

इस की शरई़ कारण की ओर लोिाना वास्िब है ।


क़ब्र को सिदा करने का जर्ान बनाने अर्वा क़ब्र पर
मस्जिद ननमााण करने से अनेक खराबीयााँ पैदा होती हैं
स्िन में कुछ ननम्नांककत हैं।

(4) क़ब्र पर बनी हुई मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वाले के ललए शैतान शव
से दआ
ु ़ करने और उससे सहायता मांगने और उसके ललए नमाज़ पढ़ने
को सुन्दर बना करके प्रजतुत करता है ,यही तो सबसे बडा लशका है ।

(9) ऐसी मस्जिदें िहााँ मद


ु े दफन होते हैं।इबादत की फिीलत
़ के
ववश्वास को संवार के पेश करता है ।हालााँकक यह आजर्ा (ववश्वास) सही
नहीं है ।इसललए के पुण्य के अनुसार से समजत मस्जिदें एम समान

हैं,सेवाए मस्जिदे ह़राम,मस्जिद नबवी और मस्जिदे अक़सा के,तो िो

कोई इन जर्ानों के अलावा में नमाज़ पढ़ने के अधिक पण्


ु य का दावा
करता है तो वह झू)ा है ।और अल्लाह और उसके रसूल पर लांछन
लगाता है ।

(4) क़ब्रों को मस्जिद बनाने में उस नीनत की पररवतान करना है स्िस


कारण से मस्जिद के ननमााण को मशरू की गई है ।उदाहरण जवरूप
नमाज़ पढ़ने एवं इबादत करने को उसमें शव को दफन करने से बदल
हदया गया है ।
(1) क़ब्रों को सिदागाह (सिदा करने का जर्ान) बनाने का कारण शव

का आदर है न कक अल्लाह की सम्मान,इसमें भी वही अंतर है ,अल्लाह

के सम्मान को मुदे की सम्मान से बदल दे ना।

(6) क़ब्रों को मस्जिद बनाने से वहााँ पर नमाज़ पढ़ना व्यर्ा होने का


कारण है इस प्रकार से मनुटय का अ़मल व्यर्ा होिाता है ।

(5) क़ब्रों को मस्जिद बनाने में यहूदी एवं ईसाई से एकरूपता होती है
और यह जवयं में ह़राम है ।उनका ववरोि करना एवं अनुसरण न करना
वास्िब है ।इन्हीं खराबीयों के काणर शरीअ़त ने क़ब्रों को सिदगाह बनाने
को ह़राम ककया है ।कबररजतान और मस्जिद को अलग अलग बनाना
वास्िब है इस ललए कक अल्लाह ने मुदाा दफन करने के ललए मस्जिद
बनाना मशरू नहीं ककया है और न नमाज़ पढने के ललए कबररजतान को

मशरू ककया है ,बस्ल्क अल्लाह ने दफन करने के ललए कबब्रजतान मशरू

ककया है ।
क़ब्र की लमट्िी के बुलद
ं करना

क़ब्र की सतह को बल
ु ंद करना अधिक लमट्िी डाल कर मना है ।सेवाए
एक बाललश्त (हात) के ताकक समझ में आए के वह क़ब्र हैं और क़ब्र का
अपमान न हो उस पर बै) कर अर्वा चल कर।मनाही का कारण यह है
कक क़ब्र की सतह को उूं चा करने में क़ब्र वाले का सम्मान होती है ।क़ब्र
की ज़मीन को बराबर रखना सेवाए एक बाललश्त के वास्िब है ।क़ब्र की
लमट्िी को उूं ची करने की मनाही के ववषय में कुछ ह़दसें एवं आसार
आए हैं उन में से एक यह की िब अमीरूल मोमेनीन ह़ज़रत अ़ली
रज़ीअल्लाहु अंहु खलीफा हुए तो क़ब्र पर बने हुए भवन को तोडने के
ललए अबल
ु हययाि असदी पलु लस कमांडर को भेिा।अबुल हययाि असदी
से रवायत है कहते हैं कक उन से हज़रत अ़ली ने कहा कक"क्या मैं तुम्हे
उस काम के ललए न भेिूं स्िस पर अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम ने मझ
ु े भेिा र्ा कक तम
ु ककसी मनू ता को न छोडों मगर उसे
ध्वजत कर दो और न उूं ची क़ब्र को मगर उसे बराबर कर दो।"मस्ु जलम
(252)

गौर ककस्िए कक नबी ने मूनता को ध्वजत करने और उूं ची क़ब्र को बराबर


करने को यमान बताया है क्योंकक दोनों के द्वारा गैरुल्लाह की इबादत
उद्दे श्य होती है । ‫ال حول وال قوة إال باهلل العلي العظيم‬
और िाबबर रज़ीअल्लाहु अंहु से ररवायत है कक उन्होंने कहा कक नबी
सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने क़ब्र पर ननमााण ककए िाने अर्वा उस पर
वद्
ृ धि ककए िाने अर्वा पुखता ककए िाने से मना ककया।सुलैमान बबन
मस
ू ा ने वद्
ृ धि ककया है अर्वा उस पर ललखे िाने से (अबु दाऊद:4995
व ननसाई:9295 यह शदद उसी का है ।) और अलबानी ने उसे सही ़ करार
हदया है ।)

और सोमामा से ररवायत है कक उन्होंने फरमाया के हम लोग रूम में


"रौदस" (रौदस बहरे शाम के बीच में इसकन्दरया की ओर एक द्ववप है

ु लमानों 64 हहिरी में वविय ककया।(मोिमल


स्िसे मस ु बल
ु दान) में
फुिाला बबन ओ़बैद के सार् यह हमारे ककसी सार्ी का ननिन हो गया
फुिाला बबन ओ़बैद ने उस की क़ब्र को बराबर करने का हुक्म हदया।
कफर कहा मैंने अल्लाह के रसूल को क़ब्र बराबर करने का हुक्म दे ते हुए
सन
ु ा है ।(मस्ु जलम:251)

अ़ददल्
ु लाह बबन शरहबील बबन ह़सना से मरवी है कक ह़ज़रत उजमान
ननकले और क़ब्र को बराबर करने का हुकम हदया तो क़ब्र बराबर कर दी
गई सेवाए उजमान की बेिी उम्मे अमर की क़ब्र की तो कहा यह कैसी

क़ब्र है ?तो लोगों ने कहा उम्मे अमर की क़ब्र है तो उसके बारे में भी

हुक्म हदया वह भी बराबर कर दी गई।(इदने अबी शैबा"अल-मुसन्नफ"


(44926) व अलबानी "फी तहिीरू सास्िद":11)
और इदने अबी शैबा इदने अ़दबास के दास से ररवायत करते हैं कहा के
मुझ से इदने अ़दबास ने ररवायत कक िब लोगों को दे खो शव को दफन
करते हुए और वह चीज़ पैदा करते हुए िो मुसलमानों की क़ब्र में नहीं
होती है तो उसे भी मस
ु लमानों की क़ब्र के िैसा बराबर कर दो।(अल-
मन
ु सन्नफ:44925) और मोआ़ववया रज़ीअल्लाहु अ़ंहु कहते हैं: नन:संदेह
क़ब्र को बराबर रखना सुन्नत है ।यहूद व ईसाई ने क़ब्रों को उूं ची ककया
अत: तुम लोग उस की एकरूपता न अपनाओ।(अत्तबरानी फी अल-कबीर
(469442)

और शाफई रह़मतुल्लाह ने फरमाया पसंद करता हूाँ की क़ब्र पर उसकी


लमट्िी से अधिक न डाला िाए।हााँ िमीन से एक बाललश्त उूं ची की

िा सकती है । (‫)األم كتاب الجنائر باب مايكون بعد الدفن‬

िैसा के गुिरा क़ब्र पर कोहान िैसा बनाना क़ब्र को उूं ची करने की


मनाही से अलग है एक बाललश्त के बराबर कुहान िैसी उूं ची करना है
ताकक क़ब्र पहचानी िा सके।और उस पर न बै)ा िाए और न ही चला
िाए और ना दस
ु री बार खोदी िाए।

कुऱ तब
ु ी फरमाते हैं:क़ब्र में कुहान िैसा बनाना एक बाललश्त उूं ची करना
ऊाँि के कुहान से ललया गया है ।("अल-िामे ले अह़कालमल कुऱ आन"
क़ुरतब
ु ी की तफसीर सूरह कहफ आयत संख्या:94)
और कुहान िैसा क़ब्र पर बनाने के ववषय में सलफे सालेहीन से कुछ
आसार वखणात हैं।बुखारी़ रहह़महुल्लाह सुफयान तम्मार से ररवायत करते
हैं उन्होंने फरमाया कक मैं उस घर मैंने प्रवेश ककया स्िसमें नबी की क़ब्र

है तो मैंने नवी की क़ब्र,अबु बकर और उ़मर की क़ब्रों को कुहान िैसा

दे खा।(सहीह़ बोखारी:4422)

और इदने अबी शैबा शोअबी से ररवायत करते हैं कक मैंने उहुद के शहीदों
की कब्रें एक ही जर्ान पर कुहान िैसी दे खी है ।("मोसन्नफ अबी शैबा:
44946)

इदने अबो शैब अबु मैमूना से ररवायत करते हैं कक इ़मरान बबन हुसै़ न ने
वसीयत की र्ी कक लोग उनकी क़ब्र को उूं ची बनाएं और चार उं गली
अर्वा वैसा ही"(मोसन्नफ अबी शैबा:44915)

और शाफई़ रहहमह
़ ु ल्लाह फरमाते हैं कक"मैं नापसंद करता हूाँ की क़ब्र को
उूं ची ककया िाए उससे अधिक िेतना उूं ची करना प्रलसद्ि हैं ताकक क़ब्र
को रौंदा न िाए और न उस पर बै)ा िाए।"(सोनने नतरमीिी:45944)

इदने कोदामा
़ रहहमह
़ ु ल्लाह कहते हैं कक र्ोडी उूं ची करना ही मज
ु तहब है
अ़ली रज़ीअल्लाहु अ़ंहु से नबी के फरमान के कारण कक ककसी भी मनू ता
को बबना ध्वजत ककए न छोडो और उूं ची क़ब्र को बरारब ककए बबना मत
छोडो।(मुस्जलम)
कफर कहा:क़ब्र को कुहान िैसा बनाना अफज़ल है बराबर रखने से।इसी

के पि में हैं इमाम माललक,इमाम अबू हनीफा और इमाम सौरी (अल

मुग़नी ककताबुल िनाइज़:146-14944)

तो यहद कहा िाए कक क़ब्र के अन्दर क्या मशरू है ?तो उत्तर है कच्ची

ईंि की तखनतयों से मुदे को ढांपना कफर उस पर लमट्िी डालना कफर


र्ोडी ऊाँची करना ताकक पहचान में आए कक वह क़ब्र है ।(ववजतार के ललए
दे खें:केताबुल िनाईज़ शैख अलबानी)

रही बात लमट्िी से लीपने की िो लमट्िी से ढ़कना अर्वा दफन के


पश्चात उस पर िल नछडकना तो यह क़ब्र को उूं ची करने में दाखखल
नहीं है ।इदने अबी शैबा ने ह़सन बसरी की सनद से ररवायत ककया है कक
वह क़ब्र पर िल नछडकने में कोई हिा नहीं मानते हैं।(अल-मोसन्नफ:
49266)

और उन्हीं की सनद (वणानकतााओं की श्रंख


ृ ला) से अबू िाफर से ररवायत
करते हैं कक क़ब्र पर पानी नछडकने में कोई हिा नहीं हैं(अल-
मुसन्नफ:49265)

नतरलमिी ़ रहहमह
़ ु ल्लाह फरमाते हैं कुछ ववद्िानों ने क़ब्र को लीपने की
अनुमनत दी है स्िसमें से ह़सन बसरी हैं।और शाफई़ रहहमह
़ ु ल्लाह कहते
हैं कक क़ब्र को लीपने में कोई हिा नहीं है ।
क़ब्र पर हदया िलाने का हुक्म

क़ब्रों के सम्मान के रूपों में से एक हदया िलाना है ।और िो लोग क़ब्र


पर हदया िलाते हैं उससे मुदे का सम्मान उद्दे श्य होता है ।ताकक उन की
क़ब्र पर अंिेरा न हो और यह पाप है ।नबी और उनके सहाबा
़ मत्ृ यु पा
चुके हैं उन्में से ककसी ने वसीयत नहीं की कक उन की क़ब्र पर रौशनी
की िाए हालााँकी वह लोग इस के अधिक पार होते हैं।ननिःसंदेह क़ब्र पर
हदया िलाना बबना लाभ के िन खचा करना है और नबी ने िन बरबाद
करने से रोका है ।इदने कोदामा
़ रहह़महुल्लाह फरमाते हैं:क़ब्र पर हदया
िलाना िाईज़ नहीं क्योंकी उसमें कोई लाभ नहीं है।िन की बरबादी
है ।क़ब्र के सम्मान में वद्
ृ धि बत
ु ों के सम्मान के अधिक समान है (अल-
मुगनी (112-11444)

इदने ह़िर है समी ने क़ब्र पर हदया िलाने को बडे पापों में माना है ।
अपनी पुजतक )‫ (الزواجر عن اقتراف الكبائر‬के में कहा है कक:

" 494वााँ 499वााँ 494वााँ बडे पाप हैं:

क़ब्र पर मस्जिद बनाना,क़ब्र पर हदया िलाना और महहलाओं का वहााँ

िाना और महहलाओं का िनाज़े के पीछे चलना।"

लाभ:
प्रर्म चेतावनी गि
ु र चक
ु ी है कक अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अ़लैहह
वसल्लम ने क़ब्र की स्ियारत4दशान करने वाली औरतों और उस पर
मस्जिद बनाने वालों और हदया िलाने वालों पर अलभशाप भेिी है ।
(रवाहो अबु दाऊद (4945) व नतमीिी ़ (492) व नसाई (9219) व
अह़मद (99244) अन इदने अदबास रज़ीअल्लाहु अ़ंहुमा) ह़दीस सही ़
ललगैरेही है िैसा कक अ़ल्लामा अल्बानी ने "लसललसलतुल अहादीस

ज़ई़फा" में लसद्ि ककया है संख्या 696-996 में ।शदद "अल-सुरूि" के
ववषय में बयान ककया है कक यह वद्
ृ धि ज़ई़फ है और स्िन लोगों ने
"सुरूि" की वद्
ृ धि को ज़ई़फ कहा है उन में शैख मुकबबल बबन हादी भी
हैं।

ह़दीस )‫ (لعن المتخذين السراج علي القبور‬ज़ई़फ है इस ललए के उस की सनद


में अबु सालेह़ उम्मेहानी का दास है।उसका नाम बािाम या बािान है
और वह ज़ई़फ है ।

ककन्तु क़ब्र पर हदया िलाना बबदअ़त है ।इस ललए के रसूल सलल्लाहु


अ़लैहह वसल्लम के यग
ु में ऐसा नहीं र्ा।

यहद कहा िाए कक क्या हुक्म है िब रात में दफन के ललए राजता दे खने
के लस्ए तदफीन की िगह दे खने के ललए चराग या रौशनी का प्रबंि

करना कैसा है ?
तो उत्तर होगा कक ऐसी स्जर्नत में कोई हरि नहीं है ।इस प्रकार से कक
शव की तदफीन करने वाले अपने सार् चाराग ले िाएं।कफर अपने सार्
वापस लायें।दे खीए "अल-कौल़ ुल मुफीद अ़ला ककताब अल-तौहीद"

(19244,शैख मोह़म्मद बबन ओ़सैमीन,प्रकाशक:दारे इदने िौिी,दमाम)



क़ब्रों के सम्मान से संबंधित कुछ और बातें

उदाहरण जवरूप क़ब्र के उपर पदाा लिकाना और उसके फशा को


संगमरमर और कालीन से सिाना और क़ब्र को ववशेष कपडे पहनाना
और उस पर सुगंि नछडकना और सेवक और ववशेष पहरे दार बै)ाना
अर्वा ऐसी खखडकी बनाना स्िससे लोग क़ब्र को दे खें यह समजत चीिें
अल्लाह तआ़ल के िमा में अववटकार बबदअ़त है स्िस पर न अल्लाह की
पुजतक में और न ही सुन्नते नबवी में इस पर उभारा गया है ।शैख अ़ली
बबन मोह़म्मद सई़द सुवैदी शाफई़ रहह़महुल्ला अपनी पुजतक ‫العقد (الثمين‬
)‫ في بيان مسائل الدين‬में उन लोगों की आलोचना करते हुए कहा है िो
क़ब्र पे खरु ाफात करते हैं: आप उन लोगों को दे खते हैं कक क़ब्र को ऊाँची
करते हैं और उस पर कुआ
़ न
ा ी आयतें ललखते हैं और उसके ललए चंदन
और खुशबुदार लकडी का ताबूत बनाते हैं और उस पर सुद्ि सोने और
चााँदी से मन
ु क्कश4परररूप रे शम के पदों को डालते हैं और इतना ही पर
प्रसन्न नहीं होते यहााँ तक कक उसके चारों ओर रौशनदान आहद बनाते हैं
और उस पर सोने के हदये लिकाते हैं और उस पर सोने अर्वा
मुनक्कश शीशे के गुंबद बनाते हैं और उनके दरवािे को सिाते हैं और
उसके ललए चााँदी आहद के ताले लगाते हैं।यह समजत चीज़ें रसल
ू के िमा
के ववरूि हैं और अल्लाह और उसके रसूल से प्रत्येि लडाई है ।यहद वह

ु ायी हैं,तो नबी को दे खें कक वह अपने सहाबा


वाजतव में नबी के अनय ़ के
सार् क्या करते र्े और आप की क़ब्र को दे खें के सहाबा
़ ने क्या ककया।
शैख हुसै़ न बबन मोह़म्मद अल-मगररबी रहह़महुल्लाह अपनी पज
ु तक ‫البدر‬
)‫ (التمام شرح بلوغ المرام‬में कहते हैं कक इन समजत स्जर्नतयों में अलभशाप
और मूनता पूिा से समानता रसूल सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम के इस
फरमान से जपटि है "कक तम
ु लोग मेरी क़ब्र को बत
ु मत बनाओ कक
अल्लाह को छोड कर इबादत ककया िाए" यह चीज़ क़ब्र पर भवन

बनाने,उसे सुन्दर बनाने,पक्का बनाने,अलंकृत संदक


ू में रखने,क़ब्र पर
चादर चढ़ाने और क़ब्र की दीवार को चूमने को ह़राम होने को दशााती है
और यह समजत चीज़ें नबवी यग
ु से दरू होने एवं अज्ञानता के कारण
उत्पन्न हुई हैं। (अल बदरुल तमाम: 949-94441 )
क़ब्रो का अपमान

इजलाम एक मुतहदल (मध्य) िमा है तो स्िस प्रकार उसने क़ब्र के


सम्मान से मना ककया है वैसे ही क़ब्र के अपमान से भी रोका है और
अल्लाह ने सत्य फरमाया है "इस प्रकार हमने तुम को मध्य उम्मत
बनाया है ताकक तुम लोगों पर गवाह बनों और नबी तुम पर गवाह
बने।" (सूरतुल बकरह:414)

क़ब्र के अपमान के पााँच रूप हैं।

(१) क़ब्र पर बै)ना अर्वा उस पर चलना

इस की मनाही का प्रमाण मुसद


ा ग़नवी की ह़दीस है ।आप सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया:"क़ब्र पर मत बै)ो और उस की ओर मुंह
करके नमाज़ मत पढ़ो" (मस्ू जलम:299) व अबू दाऊद:4992) व
नतरमीज़ी:4262) व नसाई:962)

और आपका फरमान "तुम में से कोई व्यस्क्त अंगारे पर बै)े िो उसके


कपडे को िला डाले कफर वह अंगारा उसके चमडे तक पहूाँच िाए इस से
बेहतर हैं वह क़ब्र पर बै)े।और एक ररवायत में वह क़ब्र पर चले।
(मुस्जलम:294) और एक ररवायत में है कक क़ब्र को रौंदे ।(अह़मद
(69149)
और िाबबर रज़ीअल्लाहु अ़ंहु फरमाते हैं:अल्लाह के रसल
ू ने क़ब्र को
पुख्ता बनाने उस पर बै)ने और उस पर भवन बनाने से रोका है ।(इस
की तखरीज़ (जरोत) गुिर चुकी है ।)

(२) क़ब्रों के बीच िूते पहन कर चलना

इसे की मनाही का प्रमाण बशीर की ह़दीस है कक रसूल सलल्लाहु अ़लैहह


वसल्लम ने एक आदमी को क़ब्रों के बीच िूते में चलते दे खा तो कहािः
ऐ िूते वाले!िूते ननकाल दे ।(अबु दाऊद:4942 व नसाई:9211 व इदने
मािा:4651 व अह़मद:1446 अन बशीर बबन अल-खसासीयह व हजसनहु
अलबानी फी सहीह़़ अबीदाऊद)

रही बात कबब्रजतान में क़ब्रों से दरू ऐसी िगह पर चलने की िहााँ पास
में क़ब्र न दे खी िाए या कफर ऐसे राजते से िो कबब्रजतान में चलेन के
ललए बनाया गया हो तो उसमें कोई हरि नहीं।क़ब्रों के बीच चलना ह़राम
है ।

(३) कबब्रजतान में शौच करना:

इस की मनही का प्रमाण उ़क़बा बबन आ़लमर की ह़दीस है ।कहते हैं कक


अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया कक मैं अंगारे
पर चलाँ ू अर्वा तलवार पर अर्वा अपने ित
ू े लसलाँ ू यह बेहतर है इससे
कक मैं ककसी मुसलमान की क़ब्र पर चलाँ ।ू (इदने मािा:4699) एवं इदने
अबी शैबा फी अल मस
ु न्नफ:44994) और शैख नालसर ने इरवाउल
ग़लील:54 में सह़ीह़ कहा है )

और इदने अबी शैबा मि


ु ाहहद से ररवायत करते हैं कक कबब्रजतान में शौच
एव पेशाब न करें । (मोसन्नफ इदने अबी शैबा:44992)

इदने तैलमया रहह़महुल्लाह फरमाते हैं ननिःसंदेह मुसलमानों की क़ब्र की


सम्मान सुन्नत से लसद्ि है ।इसललए कक वह मुस्जलम मुदे का घर
है ।ववद्िानों का एकमत है कक वहााँ गंदगी नहीं छोडी िाऐगी और न उस
पर चला िाएगा और न उस पर िे क लगाया िाएगा और ना ही उसके
आस पास कोई ऐसा काया ककया िाएगा स्िससे मुदे को पीडा पहुाँचती
हो।इस ललए कक लोगों कक बूरी आदतों और बूरी बातों से मुदे को
तकलीफ होती है । मुजतह़ब (वह काया स्िसके करने पर पुण्य और न
करने पर पाप न हो) है कक वहााँ क़ब्र वालों को सलाम ककया िाए और
उस के ललए दआ
ु ़ की िाए।मुदाा स्ितना नेक होगा उसका अधिकार
उतनाही अधिक होगा।(एकनतिा उस लसरातुल मुजतकीम:55649)

(४) क़ब्र खोदना:

इसके ह़राम होने का प्रमाण वह ररवायत है स्िसको माललक ने उ़मरह


बबन्ते अ़ददरु रह़मान से नकल ककया है ।रसूल सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम
ने क़ब्र खोदने वाले और क़ब्र खोदने वाललयों पर अलभशाप भेिी है ।
(रवाहो माललक फी ककताबबल िनाईज़4बैहकी कूबरा:99241)
(1) दस
ु री बात यह है कक क़ब्र के खोदने में मुदे की हड्डी के िूिने की
आशंका है और मुस्जलम मुदे के हड्डी को तोडना ह़राम है नबी सलल्लाहु
अ़लैहह वसल्लम के फरमान के कारण से कक: "नन:संदेह मोलमन मुदे की

हड्डी को तोडना वैसा ही है िैसे िीवन में उसकी हड्डी को तोडना।''

(अह़मद:6145 व अबु दाऊद:4929,आ़ईशा रज़ीअल्लाहु अ़ंहा से।और


अलबानी ने सही ़ अबुदाऊद में इस से सही ़ करार हदया है )

रही बात मुदे के पुराने हो िाने और लमट्िी बन िाने की।िैसा कक पुराने


कबब्रजतान में होता है तो उस क़ब्र को खोदना िाईज़ ()ीक) है और
उसमें दस
ू रे मुदाा को दफन करना िाईज़ है उसकी हड्डी को एक कोने में
करने के बाद।लेककन यह भी उस स्जर्नत है कक िब िगह न हो ।

ु े को गाली दे ना,बरु ा भला कहना


(५) मद

मुदे को बुरा भला कहने की मनाही के संबंि में कुछ ह़दीसें व आसार
मरवी हैं।स्िनमें से आ़ईशा रज़ीअल्लाहु अ़ंहा की ह़दीस है कहती हैं कक
आप सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम ने फरमाया मुदे को बुरा भला मत कहो।
क्यों वह अपने अमालों के पास बहुाँच चुके हैं। (बुखारी:4424)

इदने अबी शैबा आ़ईशा से नकल करते हैं कक उन्हों ने कहा अपने मद
ु े
का स्ज़क्र अच्छाई के सार् ककया करो। (अलमोसन्नफ:44212)
और अ़ददल
ु ाह बबन उ़मर से ररवायत करते हैं कक उन्हों ने कहा मद
ु े को
बुरा भला कहने वाला मानो बरबादी की ओर िाने वाला है।
(मुसन्नफ:44211)
क़ब्रों पर भवन एवं गुबद
ं आहद बनाने का हुक्म

कुछ मुलसलम दे शों में यह दे खने को लमलता है कक लोग क़ब्रों पर ईंि,

संगमरमर और सीमें ि आहद से पुख्ता भवन बनाते है ।क़ब्र को चूना


करते।भवन क़ब्र के बाहर से होती है अर्वा क़ब्र के उपर गुबंद अर्वा
कमरा बना होता है शरीअ़त में ऐसा करना ह़राम है ।

ननम्नाककत कारणों से:

प्रर्मिःमुदे को दफनाने के संबंि में यह नबी सलल्लाहु अ़लैहह वसल्लम


की सुन्न्त और तरीके के ववरूि है ।

द्ववतीयिःक़ब्र पर भवन के ननमााण मुदे के सम्मान और उसके प्रनत में

अनतश्योस्क्त का कारण बन सकता है ।क्योंकक िब कोई क़ब्र पर भव्य


भवन दे खता है तो उसके मन को प्रभाववत करता है कफर उसका हदल
उस क़ब्र में लेिे मुदे से लग िाता है और वह उससे अपनी
आवश्यकताएं संबंधित कर लेता है िैसा कक कुछ मुस्जलम दे शो में ऐसा
होता है ।

तत
ृ ीयिः क़ब्र पर भवन बनाने से भूलम दस
ू रे मुदों के ललए कम हो

िायगी और बाद में मरने वालो को दफन करने में परे शानी होगी।

चतुर्:ा शहर मुदों के भवन से भर िायगा।


पांचवां: क़ब्रों को पुख्ता करने और उसे सुन्दर एवं भव्य बनाना दनु नया

से संबंधित है िबबक मुदाा आखखरत की मंस्िल में होता है ।


अंत से पहले कुछ बातें

अल्लाह आप पर रह़म करे ।िान लें कक वे िगहें िहााँ नमाज़ पढ़ने के


ललए मना ककया गया है वे केवल कबब्रजतान अर्वा क़ब्र वाली मस्जिदों

के सार् ववशेष नहीं हैं बस्ल्क और भी कई जर्ान हैं,लेककन सबसे अधिक

ह़राम इन दो िगहों पर नमाज़ पढ़ना है ।स्िन िगहों पर नमाज़ पढ़ना


मना है उन की सूची लंबी है यहााँ संक्षिप्त में कुछ िगहों का वनाण
ककया िाता है ।

(4) ऐसी िती िहााँ अल्लाह की ओर से यातना उतरी हो।अर्वा िहााँ


भूलम िाँसाई गई हो वहााँ नमाज़ पढ़ना ह़राम है ।उसका प्रमाण यह है कक
अ़ली रज़ीअल्लाहु अंहु "बाबुल" की िाँसी हुई ज़मीन से गुिरे तो वहााँ
नमाज़ नहीं पढ़ी।

(9) अपववर िगहों पर नमाज़ पढ़ना ह़राम है िैसे शौचालय इस की


मनाही में अबु सई़द खदरी
ु ़ की ह़दीस आई है स्िस का स्ज़क्र पज
ु तक में
पहले गुज़र चुका है ।

(4) धग्रिा घरों में िहााँ बत


ु होते हैं नमाज़ पढ़न मना।उ़मर रज़ीअल्लाहु
अ़ंहु ने कहा है कक "हम तुम्हारे धग्रिा घरों में धचर होने के कारण से
प्रवेश नहीं कर सकते।"
धग्रिाघरों में नमाज़ पढ़ना इदने अ़दबास रज़ीअल्लाहु अ़ंहुमा मकरूह
समझते हैं।

(1) ऊाँि के बाडा में नमाज़ पढ़ना

मनाही का प्रमाण नबी का फरमान।िब ककसी व्यस्क्त ने पछ


ू ा के क्या

मैं ऊाँि के बै)ने की जर्ान पर नमाज़ पढ़ सकता हूाँ? आपने कहा नहीं।

(6) ऐसी िगहों पर िहााँ कुफ्फार के पि


ू ा पा) से समानता होती हो

िैसे मूनतायों के सामने नमाज़ पढ़ना,चचा में और आग के सामने आहद ।

मालूम होना चाहहए कक प्रार्ाना में कुफ्फार की समानता बहुत ही बुरी


समानता है ।
अंनतम बात

अंत में कहना यह है कक क़ब्र के पास नमाज़ पढ़ना और क़ब्र पर


मस्जिद बनाना ह़राम है ।इसकी हुरमत
़ कुरआन व ह़दीस से लसद्ि

है ।इसी प्रकार से क़ब्र पर ताबूत बनाना,कमरे बनाना ह़राम है ।इसललए कक

यह मुदे के संबंि में अनतश्योस्क्त (अनतसम्मान) और सम्मान का कारण

है इसी प्रकार से वहााँ प्रार्ाना करना,नमाज़ पढ़ना मना है ।

िरूरी है कक मस्जिद अलग हो और क़ब्रअलग हो।मस्जिदे क़ब्र के ललए


नहीं बनाई िाती और न क़ब्र मस्जिद हो सकती है

‫وهللا اعلم‬
‫الـحـمـد لـلـه اوال واخرا وصلى هللا على نبينا محمد وعلى اله وصحبه وسلم تسليما كثيرا‬
‫‪संदभा‬‬

‫‪-1‬مسند ابی دائود الطيالسي ‪ ،‬حتقيق ‪،‬د‪ .‬حممد بن عبداحملسن الرتكي‪ ،‬الناشر‪ :‬دار هجر – مصر‬

‫‪ -٢‬الكتاب املصنف يف األحاديث و اآلثار‪ ،‬عبدهللا بن ابی شيبـه تـحـقـيـق مـحـمـد عبدالسالم شاهني‪ ،‬الناشر مكتبة‬
‫دار الباز ‪ -‬مكة‪.‬‬

‫‪ -٣‬مـصـف عـبـدالـرزاق‪ ،‬تـحـقـيـق حـبـيـب الـرحـمـن األعظمي الناشر‪ :‬املكتب االسالمي‪ -‬بريوت‬

‫‪ -٤‬فتح البـاري‪،‬ا بـن رجـب الـحـنـبـلى الناشر‪ :‬مكتبه الغرباء األثريه ‪ -‬املدينة املنورة‪.‬‬

‫‪-٥‬األوسط يف السنن واالمجاع واالختالف ‪،‬حممد بن ابـراهيـم بـن الـمـنذر النيسابوری حتقيق مجاعة من احملققني‪،‬‬
‫الناشر‪ :‬دار الفالح ‪ -‬مصر‬

‫‪-٦‬فضل الصالة على النيب ﷺ ‪،‬امساعيل بن اسحاق القاضی‪ ،‬حتقيق حممد ناصر الدين االلباين‪ ،‬الناشر‪ :‬املكتب‬
‫االسالمی ‪ -‬بريوت‪.‬‬

‫‪ -٧‬االبـانة الصغرى‪ ،‬ابن بطة العكربي‪،‬حتقيق د‪ .‬رضا بن نعسان معطى‪ ،‬الناشر‪ :‬مكتبة العلوم واحلكم‪ ،‬املدينة‪.‬‬

‫‪-٨‬األمـر بـاالتباع والـنـهـي عـن االبتداع جالل الدين السيوطي‪ ،‬حتقيق مشهور حسن سلمان‪ ،‬الناشر‪ :‬دار ابن القيم‬
‫– الدمام‬

‫‪- ٩‬اقتـضـاء الـصـراط املستقيم‪ ،‬ابن تيمية ‪،‬حتقيق د‪ .‬ناصر العقل‪ ،‬ط ه الناشر‪ :‬مكتبة الرشد – الرياض‬

‫‪۰۱‬۔ االستغاثة يف الرد على البكري‪ ،‬ابن تيمية حتقيق عبدهللا السهلي‪ ،‬ط ‪ ، 1‬الناشر‪ :‬مدار الوطن‪-‬مصر‬

‫‪ -11‬اعـالم الـمـوقـعـيـن عـن رب الـعـالـمـيـن ابـن قـيـم الـجـوزية تـحـقـيـق‪ ،‬حممد املعتصم باهلل البغدادی‪ ،‬الناشر‪ :‬دار‬
‫الكتاب العريب ‪ -‬لبنان‪.‬‬
‫‪ .۰۱‬اغاثة الـلـهـفـان فـي مـصـايـد الشيطان‪ ،‬ابن قيم اجلوزية حتقيق حممد عزيز مشس‪ ،‬الناشر‪ :‬دار عامل الفرائد ‪-‬‬
‫مكة‪.‬‬

‫‪ .1٣‬الشرك ووسـائـلـه عـنـد أئمة الشافعية‪،‬د‪ .‬حممد بن عبـدالـرحـمـن الـخـميسي ‪ ،‬الناشر‪ :‬مدار الوطن الرياض‪.‬‬

‫‪-1٤‬شرح الـصـدور بتـحـرمي رفع القبور‪ ،‬حممد بن علی الشـركـانی‪ ،‬حتقيق حممد صبحي بن حالق‪ ،‬ط‪ ،1‬الناشر‪ :‬دارا‬
‫هلجرة‪-‬اليمن‪.‬‬

‫‪ -۰۱‬شفاء الصدور يف زيارة الشاهد والقبور‪ ،‬مرعي بن يوسف الكرمي احلنبلي‪ ،‬الناشر‪ :‬مكتبة نزار مصطقى الباز ‪-‬‬
‫مكة‬

‫‪-1٦‬دمعة على التوحيد‪ ،‬مقال‪ :‬حقيقة القبورية و اثرها يف واقع األمة‪ ،‬الناشر‪ :‬املنتدى االسالمي ‪-‬لندن‪1 .‬‬

‫‪ -1٧‬التمهيد ملا يف املوطأ من املعاين واألسانيد‪ ،‬ابن عبـدالـبـر املالكي حتقيق أسامة بن ابراهيم‪ ،‬الناشر الفاروق احلديثة‬
‫للطباعة والنشر ‪ -‬مصر‪:‬‬

‫‪ -1٨‬املغين‪ ،‬ابن قدامة الـمـقـدسی حتقيق د‪ .‬عبدهللا الرتكي‪ ،‬و د‪ .‬عبـدالـفـتـاح الـحـلـو‪ ،‬الناشر‪ :‬دار هجر ‪ -‬مصر‬

‫‪ -1٩‬زاد الـمـعـاد فـي هـدى خري العباد‪ ،‬ابن القيم ‪،‬حتقيق عبدالقادر األرناؤوط و شعيب األرناؤوط‪ ،‬الناشر‪ :‬مؤسسة‬
‫الرسالة – بريوت‬

‫‪- ٢٢‬الـجـنـائـز مـحـمـدنـاصر الدين األلباين‪ ،‬سنه الطبع ‪1٤1٢ :‬الناشر‪ :‬مكتبة املعارف‪-‬الرياض‬

‫‪-٢1‬وفاء الوفاء بأخبار دار املصطفى‪ ،‬نور الدين على بـن احـمـد السـمهـودي‪ ،‬الناشر‪ :‬دار احياء الرتاث العريب ‪-‬‬
‫بريوت‬

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