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Mehak - Dhir SHRAVAN2023
Mehak - Dhir SHRAVAN2023
SHRAVAN
The month of Shravan is not only for Shiv devotees but also has scientific
meanings in it. While it is good for your body and soul to fast, there are
reasons when we sometimes times can’t.
If you aren’t interested in fasting, then follow the general guidelines and if you
are then follow along till the end to know the ‘vrat vidhi’ and how to do Pooja.
When is Shravan beginning:
General Guidelines:
Non-vegetarian foods and alcohol can take a toll on your health. During
monsoon, non-vegetarian foods such as mutton and chicken tend to have
direct contact with water borne diseases that can affect your stomach.
You must also avoid eating spicy food because Rajasik and Tamasik foods have
a negative impact on one's mind. Switch red chilli with green chilli and black
pepper.
Avoid eating heavy foods. Eat meals that are easy to digest and it is better to
consume fresh food, fruits and light stuff.
Avoid or minimize onion and garlic in your daily consumption.
All leafy vegetables and brinjal should not be consumed.
Be very cautious about your actions and words. Such actions result into the
accumulation of negative Karma and the creation of a negative chain reaction.
Even if you have hurt someone inadvertently, it would be better to apologize
and seek forgiveness immediately.
Indulge in yoga in the morning or evening hours to make your body and mind
healthy.
Fasting Guidelines:
The devotees of Lord Shiva fast every Monday for the entire month to seek the
blessing of the lord. Unmarried girls observe this very important fast to get life
partner of their choice. The vrati or devotee has the option to either fast during the
somwars or Mondays of the Sawan month or extend the fasting period till 16
somwars or Mondays. Many married women fast for 16 Mondays for marital bliss.
One must swear to observe the fast honestly and adhere to all the rituals
diligently.
While you can consume food that are allowed and keep yourself hydrated. It
is best to have one meal in the evening and not have full three meals when
you are fasting.
Maintain celibacy when you fast.
Consumption of alcohol, non-veg, and tobacco is strictly prohibited.
Some people also avoid milk during these months while some consume it in
their tea.
Use of Turmeric, Ketki Flower and Tulsi leaves is prohibited during the Pooja.
You have to avoid vegetables,rice, wheat, sooji/rava, besan, red chilli,
You can include; fruits, nuts, dairy products and selected flours like Kuttu ka
aata, singhare ka aata and rajgirra ka atta. You can also have sabudana during
this time.
Replace your salt with rock salt or sendha namak.
For spices; cumin, cinnamon, green cardamom, cloves, black pepper, peanuts
(some people completely avoid red chillis and stick to only green chillis- make
that choice for yourself.)
Interestingly, moong is the only type of pulse that can be eaten during the
Shravan fast while others like Kabuli Chana, all the types of dals and rajma
should be avoided.
Potato, Sweet Potato, Yams and Bottle Gourd Or Lauki can be eaten when
fasting.
After making the commitment one must wake up early, take a bath, clean the
house and sprinkle Gangajal throughout before the sthapna of Lord Shiv idol
or a picture or shivling in the north east direction of the house.
Meditate, followed by Sankalp, align your thoughts with the auspicious
occasion.
Avoid wheat, rice and pulses, but those observing the fast from sunrise to
sunset may have a complete meal at night. Nonetheless, it would be best if
food grains are avoided.
Begin by lighting a lamp and incense sticks.
Perform Shiv Pooja and / or Rudra Abhishek at home or in a temple chant
Mantras to Lord Shiv (Om Namah Shivay)
Do Abhishek with Panchamrit a mixture of milk, curd, ghee, honey and
jaggery.
Then offer milk and water to Lord Shiva.
You can also offer the leaves, flowers, Supari fruits and coconut to Mahadev.
Read the Saavn Somwar Vrat Katha.
Offer your salutations and conclude the puja by performing the Shiv Aarti
श्रावण
श्रावण मास न केवल विव भक्तिं के वलए ै बल्कि इसके वैज्ञावनक अथथ भी ैं । ालााँ वक
उपवास करना आपके िरीर और आत्मा के वलए अच्छा ै , ले वकन कई बार ऐसे कारण भी
तते ैं जब म ऐसा न ीिं कर पाते ैं ।
यवद आप उपवास में रुवि न ीिं रखते ैं , तत सामान्य वदिावनदे ितिं का पालन करें और ‘व्रत
वववि’ और ‘पूजा कैसे करें ’ जानने के वलए अिंत तक पढे ।
सामान्य दिशादििे श:
मािं सा ारी भतजन और िराब आपके स्वास्थ्य पर प्रवतकूल प्रभाव डाल सकते ैं ।
मानसून के दौरान, मटन और विकन जै से मािं सा ारी खाद्य पदाथों का जल जवनत
बीमाररयतिं से सीिा सिंपकथ तता ै जत आपके पे ट कत प्रभाववत कर सकते ैं ।
आपकत मसाले दार भतजन खाने से भी बिना िाव ए क्तिंवक राजवसक और
तामवसक भतजन व्यल्कक् के वदमाग पर नकारात्मक प्रभाव डालते ैं । लाल वमिथ कत
री वमिथ और काली वमिथ के साथ बदलें ।
गररष्ठ भतजन खाने से बिें. ऐसा भतजन करें जत पिने में आसान त और ताजा
भतजन, फल और िी िीजें खाना बे तर ै ।
अपने दै वनक उपभतग में प्याज और ल सुन से बिें या कम करें ।
अपने कायों और िब्तिं कत ले कर बहुत सतकथ र ें । ऐसे कायों के पररणामस्वरूप
नकारात्मक कमथ का सिंिय तता ै और नकारात्मक श्ररिंखला प्रवतविया का वनमाथ ण
तता ै । अगर आपने अनजाने में वकसी कत ठे स पहुिं िाई ै तत भी बे तर तगा वक
आप तु रिंत माफी मािं ग लें।
अपने िरीर और वदमाग कत स्वस्थ रखने के वलए सुब या िाम के समय यतग
करें ।
सभी पत्तेदार सल्कियािं और बैंगन का सेवन न ीिं करना िाव ए।
व्रत दिशादििे श:
भगवान विव के भक् भगवान का आिीवाथ द पाने के वलए पूरे म ीने र सतमवार
का व्रत रखते ैं । इस बे द म त्वपूणथ व्रत कत कुिंवारी लड़वकयािं अपनी पसिंद का
जीवनसाथी पाने के वलए रखती ैं । व्रती या भक् के पास या तत सावन म ीने के
सतमवार के दौरान उपवास करने या उपवास की अववि कत 16 सतमवार तक
बढाने का ववकल्प तता ै । कई वववाव त मव लाएिं वैवाव क सुख के वलए 16
सतमवार का व्रत रखती ैं ।
व्रत कत ईमानदारी से करने और सभी अनुष्ठानतिं का वनष्ठापूवथक पालन करने की
िपथ लेनी िाव ए।
आप अनुमत भतजन का सेवन कर सकते ैं और खुद कत ाइडरेटेड रख सकते ैं ।
जब आप उपवास कर र े तिं तत िाम कत एक बार भतजन करना सबसे अच्छा ै
और पूरे तीन बार भतजन न ीिं करना िाव ए।
व्रत करते समय ब्रह्मियथ का पालन करें ।
िराब, मािं सा ार और तम्बाकू का सेवन सख्त ववजथ त ै ।
कुछ लतग इन म ीनतिं में दू ि से भी पर े ज करते ैं तत कुछ लतग िाय में इसका
सेवन करते ैं ।
पूजा के दौरान ल्दी, केतकी फूल और तुलसी के पत्ततिं का प्रयतग ववजथ त ै ।
आपकत सल्कियािं , िावल, गेहिं, सूजी/रवा, बेसन, लाल वमिथ, से पर े ज करना तगा।
आप ये खा सकते ैं - फल, मेवे, डे यरी उत्पाद और ियवनत आटा जै से कुट् टू का
आटा, वसिंघाड़े का आटा और राजवगराथ का आटा। इस दौरान आप साबूदाना का भी
सेवन कर सकते ैं .
अपने नमक के स्थान पर सेंिा नमक डालें ।
मसालतिं के वलए; जीरा, दालिीनी, री इलायिी, लौिंग, काली वमिथ, मूिंगफली (कुछ
लतग लाल वमिथ से पूरी तर पर े ज करते ैं और केवल री वमिथ ी खाते ैं - य
ववकल्प अपने वलए िुनें।)
वदलिस्प बात य ै वक मूिंग एकमात्र प्रकार की दाल ै वजसे श्रावण व्रत के
दौरान खाया जा सकता ै , जबवक काबुली िना जै सी सभी प्रकार की दालतिं और
राजमा से बिना िाव ए।
व्रत में आलू , िकरकिंद, रतालू और लौकी खाई जा सकती ै ।
सोमवार की पू जा दवदि:
एक साहकार था जत भगवान विव का अनन् य भक्त था। उसके पास िन-िान् य वकसी भी िीज
की कमी न ीिं थी। लेवकन उसकी कतई सिंतान न ीिं थी और व इसी कामना कत लेकर रतज
विवजी के मिंवदर जाकर दीपक जलाता था। उसके इस भल्कक्भाव कत दे खकर एक वदन माता
पावथ ती ने विवजी से क ा वक प्रभु य साहकार आपका अनन् य भक्त ै । इसकत वकसी बात का
कष् ट ै तत आपकत उसे अवि् य दू र करना िाव ए। विवजी बतले वक े पावथ ती इस साहकार के
पास पुत्र न ीिं ै । य इसी से दु :खी र ता ै ।
माता पावथ ती क ती ैं वक े ईश्वर करपा करके इसे पुत्र का वरदान दे दीवजए। तब भतलेनाथ ने
क ा वक े पावथ ती साहकार के भाग् य में पुत्र का यतग न ीिं ै । ऐसे में अगर इसे पुत्र प्राल्कप्त का
वरदान वमल भी गया तत व केवल 12 वषथ की आयु तक ी जीववत र े गा। य सुनने के बाद
भी माता पावथ ती ने क ा वक े प्रभु आपकत इस साहकार कत पुत्र का वर दे ना ी तगा अन्यथा
भक्त क्यतिं आपकी सेवा-पूजा करें गे? माता के बार-बार क ने से भतलेनाथ ने साहकार कत पुत्र
का वरदान वदया। लेवकन य भी क ा वक व केवल 12 वषथ तक ी जीववत र े गा।
इसके बाद साहकार का बेटा वववा की बेदी पर बैठा और जब वववा कायथ सिंपन् न त गए तत
जाने से प ले उसने राजकुमारी की िुिंदरी के पल् ले पर वलखा वक तेरा वववा तत मेरे साथ हुआ
लेवकन वजस राजकुमार के साथ भेजेंगे व तत एक आिं ख का काना ै । इसके बाद व अपने
मामा के साथ कािी के वलए िला गया। उिर जब राजकुमार ने अपनी िुनरी पर य वलखा
हुआ पाया तत उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर वदया। तत राजा ने भी अपनी पुत्री कत
बारात के साथ ववदा न ीिं वकया। बारात वापस लौट गई। उिर मामा और भािं जे कािीजी पहुिं ि
गये थे।
एक वदन जब मामा ने यज्ञ रिा रखा था और भािं जा बहुत दे र तक बा र न ीिं आया तत मामा ने
अिंदर जाकर दे खा तत भािं जे के प्राण वनकल िु के थे। व बहुत परे िान हुए लेवकन सतिा वक
अभी रतना-पीटना मिाया तत ब्राह्मण िले जाएिं गे और यज्ञ का कायथ अिूरा र जाएगा। जब यज्ञ
सिंपन्न हुआ तत मामा ने रतना-पीटना िुरू वकया। उसी समय विव-पावथ ती उिर से जा र े थे तत
माता पावथ ती ने विवजी से पूछा े प्रभु ये कौन रत र ा ै ? तभी उन् ें पता िलता ै वक य तत
भतलेनाथ के आिीवाद से जन्मा साहकार का पुत्र ै ।
तब माता पावथ ती क ती ैं वक े स्वामी इसे जीववत कर दें अन्यथा रतते-रतते इसके माता-वपता
के प्राण वनकल जाएिं गे। तब भतलेनाथ ने क ा वक े पावथ ती इसकी आयु इतनी ी थी सत व
भतग िु का। लेवकन मािं के बार-बार आग्र करने पर भतलेनाथ ने उसे जीववत कर वदया। लड़का
ओम नम: विवाय करते हुए जी उठा और मामा-भािं जे दतनतिं ने ईि्वर कत िन् यवाद वदया और
अपनी नगरी की ओर लौटे । रास्ते में व ी नगर पड़ा और राजकुमारी ने उन् ें प िान वलया
तब राजा ने राजकुमारी कत साहकार के बेटे के साथ बहुत सारे िन-िान्य के साथ ववदा वकया।
उिर साहकार और उसकी पत्नी छत पर बैठे थे। उन् तिंने य प्रण कर रखा था वक यवद
उनका पुत्र सकुिल न लौटा तत व छत से कूदकर अपने प्राण त्याग दें गे। तभी लड़के के
मामा ने आकर साहकार के बेटे और बह के आने का समािार सुनाया लेवकन वे न ीिं मानें तत
मामा ने िपथ पूवथक क ा तब तत दतनतिं कत ववि्वास त गया और दतनतिं ने अपने बेटे-बह का
स्वागत वकया। उसी रात साहकार कत स्वप्न ने विवजी ने दिथन वदया और क ा वक तुम् ारे
पूजन से मैं प्रसन्न हुआ। इसी प्रकार जत भी व् यल्कक् इस कथा कत पढे गा या सुनेगा उसके
समस्त दु :ख दू र त जाएिं गे और मनतवािं छव त सभी कामनाओिं की पूवतथ तगी।
दशव जी की आरती:
ओम जय विव ओिंकारा, स्वामी जय विव ओिंकारा। ब्रह्मा, ववष्णु, सदाविव, अर्द्ाां गी िारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
ब्रह्मा ववष्णु सदाविव जानत अवववे का। मिु-कैटभ दतउ मारे , सुर भय ीन करे ॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
लक्ष्मी, साववत्री पावथ ती सिं गा। पावथ ती अर्द्ाां गी, विवल री गिं गा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
पवथ त सत ैं पावथ ती, ििं कर कैलासा। भािं ग ितूर का भतजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
जटा में गिंग ब त ै , गल मुण्डन माला। िेष नाग वलपटावत, ओढत मरगछाला॥
ओम जय विव ओिंकारा॥
कािी में ववराजे ववश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मिारी। वनत उठ दिथन पावत, मव मा अवत भारी॥
ओम जय विव ओिंकारा॥