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Unit II
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Unit II
- लता कुमारी
भारत संसार की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है । चीन, शमस्र, मेसोपोटाशमया और भारत में मानवता के इततहास
ने अपना आरं शभक रूप शलया। भारत में मनष्ु य द्वारा सभ्यता-तनमााण का इततहास जितना परु ाना है , शिक्षा का
इततहास भी उतना ही परु ाना है । सभ्यता का अर्ा है मनष्ु य द्वारा पिच
ु ारी कबीलाई जथर्तत से तनकल कर थर्ाई रूप
से ग्रामों का तनमााण और फिर खेती और तकनीक के ववकास के बाद नगरों का तनमााण। अब हमारे पास मोहनिोदडो
और हडप्पा की खद
ु ाई के बाद हररयाणा के राखीगढी से लेकर गि
ु रात के लोर्ल तक हिारों साल पहले की सभ्यता के
परु ाविेष मौिद
ू हैं। इसके अलावा वेद से लेकर उपतनषद और िातक तक प्राचीन संथकृत भाषा और पाली-प्राकृत में
ऐसा साहहत्य मौिूद है , जिसके आधार पर भारत के ववगत 4-5 हिार साल की सभ्यता में शिक्षा के तंत्र ने क्या क्या
थवरूप ग्रहण फकया, इसकी रूपरे खा बन सकती है ।
मोटे तौर पर हम प्राचीन भारत में शिक्षा को तनम्न चरणों में बांट सकते हैं -
2. पव
ू ा मध्यकालीन भारत में शिक्षा
वेदकालीन भारत में शिक्षा के अंतगात 4-5 हिार साल भारत में शिक्षा का क्या रूप र्ा, इसका अनम
ु ान वेद में वर्णात
शिक्षा संबध
ं ी वववरणों से लगाया िा सकता है । पव
ू ा मध्यकालीन भारत में वैहदक काल के बाद की वह लंबी 1 से 2
हिार साल की कालावधध आएगी, िब उपतनषद, रामायण, महाभारत आहद महाकाव्यों की रचना हुई। इसके ठीक
बाद बौद्ध-काल में बौद्ध ग्रंर्ों की रचना और शिक्षण संथर्ाओं का ब्योरा शमलता है । इस यग
ु के समापन के बाद
अर्ाात भारत में गप्ु त काल के अवसान के बाद से लेकर इथलामी िासकों की राज्य सत्ता थर्ावपत होने के पहले तक
का काल आएगा। इस यग
ु की शिक्षा के वववरण तत्कालीन गं्रं र्ों, ववदे िी यात्रत्रयों के यात्रा वववरणों, शिलालेखों,
आहद में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। मध्य मध्यकाल का तात्पया है हदल्ली में सल्तनत-काल के आरं भ से लेकर 1526 में
मग
ु ल सत्ता के आरं भ तक का काल। यह वह काल है , िब इथलामी हमलों से भारत अव्यवजथर्त होता रहा। शिक्षा का
ढांचा भी इससे प्रभाववत हुआ। मग
ु ल-काल में रािसत्ता को थर्ातयत्व शमला सार् ही ईरानी, अिगानी तर्ा
मध्यएशियाई संथकृतत का प्रभाव भारत पर पडा। भारत की शिक्षा-व्यवथर्ा इससे प्रभाववत हुई। इस काल में िारसी
भाषा की शिक्षा को इसी कारण महत्व शमला। उत्तर मध्यकाल औरं गिेब की मत्ृ यु के बाद 1707 से 19 वीं सदी के
आरं भ तक का वह समय है , िब भारत में केंद्रीय रािसत्ता का संपण
ू ा ढांचा टूट िाने से अर्ा-व्यवथर्ा से लेकर शिक्षा
व्यवथर्ा तक पर प्रततकूल प्रभाव पडा। 19 वीं सदी के आरं भ में अंग्रेिी शिक्षा के सार् भारत में आधुतनक शिक्षा
व्यवथर्ा की नींव पडी। परू ी 19 वीं सदी भारत में शिक्षा की दृजष्ट से अत्यंत महत्वपण
ू ा र्ी। िहां एक ओर लार्ा मैकाले
के दृजष्टकोण से थर्ावपत शिक्षा-व्यवथर्ा मिबत
ू हुई, जिसका लक्ष्य त्रिहटि प्रिासन के ववववध थतरों के शलए
उपयोगी शिक्षक्षत वगा को तैयार करना र्ा, वहीं दस
ू री ओर भारत में राष्रवाद के ववकास ने ऐसे वातावरण का तनमााण
फकया जिसमें राष्रीय भावना से प्रेररत अनेक शिक्षण संथर्ाओं का आरं भ हुआ। यही वही समय र्ा िब ज्योततबा िुले
और साववत्री बाई ने दशलतों की शिक्षा और थत्री शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपण
ू ा काया फकया। 19 वीं, 20वीं सदी में भारत की
शिक्षा व्यवथर्ा में क्ांततकारी बदलाव आए. इसका लंबा और िहटल इततहास है ।
बौद्ध-यग
ु तर्ा मध्य-यग
ु में भारत की शिक्षा-व्यवथर्ा के प्रचुर प्रमाण शमलते हैं। बौद्ध-य्
ु ुग की शिक्षा की मख्
ु य
धुरी िहां एक ओर बौद्ध दिान और नैततक शिक्षा र्ी, वहीं दस
ू री ओर ववज्ञान और कला भी उसका मख्
ु य लक्ष्य र्ा।
मध्य-यग
ु की आरं शभक सहदयों में यानी 12वीं सदी में भारत में इथलामी सत्ताओं की थर्ापना के पव
ू ा शिक्षा का मख्
ु य
ढांचा िाह्मण-धमा द्वारा संचाशलत र्ा। इथलामी सत्ता की थर्ापना के बाद इथलाम-आधाररत शिक्षा-प्रणाली का
आरं भ हुआ। इस प्रकार मध्यकाल में हहंद ू शिक्षा संथर्ाएं और इथलामी शिक्षा संथर्ाएं र्ीं। हहंद ू शिक्षा संथर्ाओं का
संचालन मख्
ु यतः िाह्मणों द्वारा फकया िाता र्ा और इथलामी संथर्ाओं का संचालन मौलववयों द्वारा। हहंद ू शिक्षा
संथर्ाओं में शिक्षा का माध्यम संथकृत भाषा र्ी। प्राचीन गरु
ु कुल अब समाप्त हो चुके र्े। उनकी िगह पाठिालाएं ले
चुकी र्ीं। इन पाठिालाओं में शलवप, वतानी, भाषा और गर्णत की सामान्य शिक्षा दी िाती र्ी। हहंदओ
ु ं में बालकों को
उपनयन के बाद शिक्षा के शलए भेिा िाता र्ा। उपनयन की आयु िाह्मण, क्षत्रत्रय तर्ा वैश्य वगों में अलग-अलग
र्ी। दशलतों और जथत्रयों के शलए शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं र्ा। ये पाठिालाएं नगरों व ग्रामों दोनों में होती र्ीं। इनके
शलए वविेष भवन नहीं र्े। ये खल
ु े मैदानों, पेडों या फकन्हीं घरों के बारामदों में लगती र्ीं। यह शिक्षा िल्
ु क-आधाररत न
र्ी। हां, शिक्षकों को उपहार तर्ा कृवष-उपि आहद अशभभावकों द्वारा दी िाती र्ी, जिससे वे अपना िीवनयापन
करते र्े। पाठिाला में रहने वाले छात्र गरु
ु ओं की सेवा भी करते र्े। इन िालाओं में दी िाने वाली शिक्षा एक तरह से
उस यग
ु के समाि के शलए आवश्यक व्यावहाररक गण
ु ों पर आधाररत होती र्ी। मसलन माप-तौल, पहाडा, धगनती,
वणामाला, सल
ु ेख आहद शसखाए िाते र्े। ये पाठिालाएं उत्तर भारत से लेकर दक्षक्षण, पव
ू ा पजश्चम भारत में थर्ानीय
वविेषताओं और आवश्यकताओं के तहत संगहठत र्ीं। मध्यकाल में उच्च शिक्षा के केंद्र सीशमत र्े। वाराणसी,
नवद्वीप तर्ा दक्षक्षण भारत में ऐसे केंद्र र्े। इन्हें आि के ववश्वववद्यालय के मध्यकालीन रूप के तौर पर समझा िा
सकता है । पर वाथतव में ऐसे कोई ववश्वववद्यालय र्े नहीं, बजल्क परू ा नगर ही तरह के िैक्षक्षक समह
ू ों में बंटा होता
र्ा। मंहदरों से लेकर ज्ञानी ववद्वानों के तनिी तनवासों तक में गर्णत, भाषा, दिान, ववज्ञान, कला आहद के उच्चतर
शसद्धांत व प्रायोधगकी शसखाई िाती र्ी।
मध्य काल में इथलामी शिक्षा कुरान पर आधाररत र्ी। कुरान में शिक्षा को ‘इल्म’ कहा गया है । यह इल्म पैगब
ं र
मोहम्मद की शिक्षाओं पर आधाररत है । इसका थवरूप लौफकक िीवन से गहराई से िड
ु ा है । ईमान और िीवन-संघषा
इसके केंद्र में है । इथलामी शिक्षा में कुरान के बाद ‘हदीस’ आती है । हदीस में पैगब
ं र मोहम्मद के वे ववचार संकशलत
हैं, िो िीवन की भौततक समथयाओं से सीधे संबधं धत हैं। इथलामी शिक्षा का लक्ष्य सदगण
ु , अल्लाह की उपासना तर्ा
बरु ाईयों से मजु क्त है । अरब से तनकल कर इथलाम सारी दतु नया में िैला। मध्य एशिया में इथलाम के प्रचार के बाद
इथलामी शिक्षा को नए दािातनक आयाम प्राप्त हुए। दिान, गर्णत और कला ने इथलामी शिक्षा को समद्
ृ ध फकया।
वविेष रूप से इथलामी वाथतक
ु ला का ववकास मध्यएशिया में हुआ। ईरान और इराक की प्राचीन सभ्यताओं से संधचत
ज्ञान का इथलामी थवरूप इसी मध्यकाल में बना।
उस यग
ु के इथलामी शिक्षािाथत्री अल गिाली ने प्रार्शमक शिक्षा को पररभावषत करते हुए कहा - िब बालक बोलने
लगे तो उसे कलम शसखाया िाए और उसके बाद उसे कुरान कंठथर् कराई िाए। इसके बाद सात साल की उम्र में उसे
मदरसे में नमाि पढना और कुरान की आयत शलखना शसखाया िाए। इब्न शसना, अल िाहहि, इब्न सहनन
ू , इब्न
अल हि िैसे अनेक मध्यकालीन इथलामी शिक्षािाथत्री हुए हैं, जिन्होंने प्रार्शमक से लेकर उच्च शिक्षा तक के बारे में
ववथतार से प्रततपादन फकया है ।
1. उत्तम थवाथ्य
2. बौद्धधक ववकास
3. श्रेष्ठ थमतृ त
4. समझदारी
5. संप्रेषण क्षमता
8. सहस और तनभायता
इथलामी शिक्षा को िब संगहठत रूप हदया गया तो मदरसों की थर्ापना की गई। ये मदरसे मजथिद से संबद्ध होते र्े।
यहां छात्रों के आवास और भोिन की व्यवथर्ा भी रहती र्ी। िहां भी इथलामी शिक्षा के केंद्र र्े, वहां पथ
ु तकालयों की
भी थर्ापना की गई। आि हम इस बात को कम िानते हैं फक मध्यकालीन भारत में इथलामी शिक्षा के तहत अनव
ु ाद
को बहुत महत्व प्राप्त र्ा। इसी कारण अकबर के काल से लेकर औरं गिेब के पव
ू ा दारा शिकोह तक ने ढे रों संथकृत
ग्रंर्ों के िारसी भाषा में अनव
ु ाद करवाए। ये अनव
ु ादक भारत की इथलामी शिक्षा प्रणाली से ही ववववध भाषाओं में
पारं गत हो कर अनव
ु ाद काया के योग्य बन सके र्े। वेद, उपतनषद, महाभारत तर्ा संथकृत में मौिूद अनेक श्रेष्ठ
ज्ञानात्मक रचनाओं का अनव
ु ाद िारसी भाषा में हुआ। वहां से ये अरब होते हुए यरू ोप पहुंचीं। इस प्रकार ववचारों ने पव
ू ा
से पजश्चम की एक लंबी यात्रा की। ववचारों की इस यात्रा ने भारतीय, ईरानी, अरबी, मध्यएशियाई, ग्रीक प्राचीन
ववचारों के संश्लेषण से यरू ोप में नए ज्ञान को िन्म हदया। इस दृजष्टकोण से अगर हम भारत में इथलामी शिक्षा को
दे खें तो उसका योगदान बहुत महत्वपण
ू ा है ।
धीरे -धीरे मध्यकालीन संसार में इथलामी शिक्षा की प्रगतत अवरुद्ध होती गई और वह औरं गिेब के काल में इथलाम
के प्रचार, इथलाम के अनय
ु ातययों के ववथतार, मजु थलम सांथकृततक नैततकता के प्रचार-प्रसार और इथलामी धाशमाकता
के महहमामंर्न तक सीशमत होती चली गई।
यही वह यग
ु र्ा, िब समच
ू े यरू ोप में शिक्षा के क्षेत्र में नए ववचार और नई संथर्ाएं िन्मीं। यरू ोप अंधकार के यग
ु से
तनकलने लगा। प्रबोधन और ज्ञानोदय ने यरू ोप की सभ्यता को आमल
ू बदल हदया। मध्ययग
ु का अंत होते होते शिक्षा
के क्षेत्र में यरू ोपीय ववचार ने अपना वह थवरूप ग्रहण कर शलया, जिस पर आधतु नक यग
ु की शिक्षा और आधतु नक
सभ्यता आधाररत है । फ्ांसीसी ववचारक रूसो को इस ववचारयात्रा का चरमोत्कषा माना गया। उसकी ववख्यात रचना
‘एमील’ ने यरू ोप को बच्चों के संबध
ं में सोचने की हदिा दी। प्रख्यात बद्
ु धधिीवी राबटा आर रथक ने शलखा -
‘‘आधुतनक शिक्षा में रूसो का वही थर्ान है िो प्लेटो का प्राचीन शिक्षा में ।’’ ववशलयम बायर् ने ‘एमील’ को
शिक्षा पर शलखी गई सवोत्तम पथ
ु तक कहा। रूसो के शिक्षा संबध
ं ी ववचारों की मख्
ु य वविेषताओं को िानना िरूरी है ,
जिससे यह पता चल सकेगा फक आधुतनक शिक्षा फकन शसद्धांतों पर आधाररत है -
संदभा पथ
ु तकें
भारत वर्ष प्राचीन काल से ही संस्कृ ल्त तथा ल्शिा का कें द्र रहा है। ल्िस समय ल्वश्व के अन्य देशों में मानव सभ्यता
ने वस्त्र पहनना भी नहीं सीखा था उस समय हमारे देश में वैल्दक ज्ञान प्रदीप हो रहे थे। यहां की संस्कृ ल्त तथा ज्ञान-ल्वज्ञान के
कारण ही हमारा देश ल्वश्व गरुु के रूप में समपणू ष ल्वश्व में प्रल्सद्ध था। भारतीय ज्ञान ल्वज्ञान के मल
ू यहां के वेद, उपल्नर्द, परु ाण,
आचारशास्त्र अथषशास्त्र, ज्योल्तर् शास्त्र, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवत गीता आल्द हैं। भारत के प्राचीन ल्शिा प्रणाली में
उपयषि ु सभी ग्रंथ पाठ्यक्रम में सल्ममल्लत हुआ करते थे।
संस्कृ त में 'ज्ञा' का अथष िानना तथा 'ल्शि'् का अथष भी िानना अथवा सीखना होता है। इस प्रकार ज्ञान तथा ल्शिा
समानाथी हैं। प्राचीन भारतीय परमपरा में ल्शिा को पररभाल्र्त करते हुए कहा गया है - "सा ल्वद्या या ल्वमि ु ये।" अथाषत ल्वद्या
वह है िो मनष्ु य को मल्ु ि प्रदान करे । हमारा वैल्दक दृल्िकोण आध्याल्त्मक तथा भौल्तक दोनों तरह के ज्ञान का पिधर है। भौल्तक
ज्ञान के द्वारा हम धन का अिषन, कृ ल्र् कायष, िीवन-यापन आल्द करते हैं तथा आध्याल्त्मक ज्ञान के द्वारा अमरता के प्राल्प्त की
िा सकती है।
प्राचीन काल से ही भारत में ज्ञान के इस अमकू य ल्नल्ध को आगामी पीढी को हस्तांतररत करने के ल्लए तथा प्रदान
करने के ल्लए गरुु कुल होता था पाठशालाओ ं का ल्नमाषण ल्कया गया था। ये गरुु कुल तथा पाठशाला ही ल्शिा के कें द्र हुआ करते
थे।
गरुु कुल
यहां गरुु कुल नाम से ही स्पि हो रहा है - गरुु का कुल। अथाषत् गरुु का पररवार। यह गरुु का पररवार ल्शिा का कें द्र
हुआ करता था। यहां ज्ञान-ल्वज्ञान के प्रकाण्ि ल्वद्वान् आचायष गण छात्रों को अपने प्राचीन ज्ञान से लाभाल्न्वत ल्कया करते थे।
भारत में प्राचीन काल से ही ल्शिा को मानव िीवन का सबसे महत्वपणू ष पहलू समझा गया है। इसके प्रमाण के तौर पर ल्वश्व का
सबसे परु ाना ल्वश्वल्वद्यालय नालंदा ल्वश्वल्वद्यालय भारत में ही ल्स्थत है। यल्द हम महाभारत एवं रामायण िैसे प्राचीन ल्हन्दू ग्रंथों
का अवलोकन करते है, तो पाते हैं की प्राचीन समय में भारत में बच्चों को ल्शिा ग्रहण करने के ल्लए गरुु कुल (घर से दरू
आवासीय संस्थान) भेिा िाता था। प्राचीन समय में गरुु कुल ही ल्शिा का एकमात्र साधन थे, िहां छात्र अपनी ल्शिा अवल्ध
के दौरान ल्शिा ग्रहण करते थे।
गरुु कुल वििा के उद्देश्य - ल्शिा का मख्ु य उद्देश्य मनष्ु य में ऐसी िमता और योग्यता का सृिन करना था, ल्िसके
माध्यम से वह सत्य का ज्ञान प्राप्त कर मोि को प्राप्त कर सके । अत: गरुु कुल ल्शिा के उद्देश्य तथा आदशष ल्नमनल्लल्खत थे-
1. व्यवित्ि का समवन्ित विकास- गरुु कुल ल्शिा प्रणाली के अनुसार मानव का मख्ु य उद्देश्य आत्म-ज्ञान अथवा ब्रह्म-ज्ञान
की प्राल्प्त होना चाल्हये। इसके ल्लये धाल्मषक भावना का ल्वकास ल्कया िाना आवश्यक है। छात्र के शारीररक, मानल्सक एवं
आध्याल्त्मक ल्वकास पर बल ल्दया िाता था, ल्िससे उसके व्यल्ित्व का समल्न्वत ल्वकास हो सके । आध्याल्त्मक दृल्िकोण पर
अल्धक बल ल्दया िाता था।
2. स्िस्ि चररत्र का वनमााण- वैल्दक कालीन ल्शिा का उद्देश्य ल्वद्याल्थषयों में राष्रीय आदशों के अनुरूप चररत्र का ल्नमाषण
करना था। अतः सरल िीवन, सदाचार, सत्याचरण एवं अल्हसं ात्मक व्यवहार और ब्रह्मचयष उनके दैल्नक िीवन के अंग थे। इसके
ल्लये वणाषश्रम धमष का पालन करना समाि के प्रत्येक सदस्य के ल्लये आवश्यक था।
3. सभ्यता एिां सांस्कृवत का सरां िण एिां रसार- वैल्दक काल में ल्वद्याल्थषयों को ऐसी ल्शिा प्रदान की िाती थी, ल्िससे वे
अपनी सभ्यता, सस्ं कृ ल्त एवं परमपराओ ं का सरं िण करें तथा उनका प्रसार करने हेतु एक पीढी से दसू री पीढी को हस्तान्तररत
कर सकें । यह कायष ल्शिा द्वारा ही समभव है। वैल्दक काल में व्यल्ि के व्यवसाय एवं कायों का आधार वगष व्यवस्था थी। ल्पता
िो व्यवसाय करता था, उसकी ल्शिा पत्रु को देता था। पत्रु भी पाररवाररक सस्ं कृ ल्त तथा परमपराओ ं को ध्यान में रखते हुए कायष
करने में ल्वश्वास करते थे।
4. व्यािसावयक कुिलता का विकास- वैल्दक कालीन िीवन संघर्षमय था । इस संघर्षमय ल्स्थल्त में यह आवश्यक था ल्क
ल्शिा की ऐसी व्यवस्था हो ल्िससे व्यल्ि अपनी रुल्च के अनुरूप व्यवसाय का चयन कर सके तथा व्यावसाल्यक कुशलता में
वृल्द्ध कर स्वयं को आल्थषक रूप से सदृु ढ बना सके । इसल्लये ल्वल्भन्न व्यवसायों, उद्योगों तथा िील्वकोपािषन से समबल्न्धत ल्शिा
प्रदान की िाती थी। अतः ल्शिा का उद्देश्य के वल आध्याल्त्मक लक्ष्यों की प्राल्प्त करना ही नहीं रहा वरन् भौल्तक लक्ष्यों की
प्राल्प्त करना भी हो गया था।
5. दावयत्िों के वनिााि की िमता का विकास- गरुु कुल ल्शिा व्यल्ि को उसके स्वयं के प्रल्त कत्तषव्यों का बोध तो कराती
ही थी, साथ ही साथ सामाल्िक दाल्यत्वों का भी बोध कराती थी। एक नागररक होने के कारण उसके अपने प्रल्त अथाषत् व्यल्ित्व
का ल्वकास, ईश्वर भल्ि, चररत्र-ल्नमाषण तथा धमष में ल्वश्वास आल्द कायों का बोध होना चाल्हये।
6. ज्ञान एिां अनुभि पर बल- गरुु कुलों में ल्वद्याल्थषयों को ज्ञान एवं अनुभव प्राप्त करने पर बल ल्दया िाता था। उस समय
उपाल्ध ल्वतरण िैसी प्रथा न थी। छात्र अल्िषत योग्यता का प्रश्न ल्वद्वानों की सभा में शास्त्राथष द्वारा ल्कया करते थे। “ल्शिा का
उद्देश्य पढना नहीं था, अल्पतु ज्ञान और अनभु व को आत्मसात् करना था।”
7. वचत्तिृवत्तयों का वनरोध- मानव अपनी ल्चत्त की वृल्त्तयों का दास है। इल्न्द्रयों से वशीभतू होकर वह ल्वपरीत मागष पर चल
पडता है। इन्हीं ल्चत्तवृल्त्तयों का मागाषन्तीकरण करना, मन को भौल्तक ज्ञान से हटाकर आध्याल्त्मक िगत् में लगाना तथा आसरु ी
वृल्त्तयों पर ल्नयन्त्रण करना ही ल्शिा का उद्देश्य था। उस समय शरीर की अपेिा आत्मा को बहुत अल्धक महत्त्व ल्दया िाता था
क्योंल्क शरीर नश्वर है, िबल्क आत्मा अनश्वर है, अमर है। अत: आल्त्मक उत्थान के ल्लये िप, तप एवं योग पर ल्वशेर् बल
ल्दया िाता था।
8. ईश्वर भवि एिां धावमाकता- प्राचीन भारत में ल्शिा का उद्देश्य छात्रों में ईश्वर भल्ि और धाल्मषकता की भावना का समावेश
करना था। छात्रों में इस भावना को व्रत, यज्ञ, उपासना तथा धाल्मषक उत्सवों आल्द के द्वारा ल्वकल्सत ल्कया िाता था।
गुरुकुल की वििेर्षताएां - गरुु कुल आश्रम हुआ करता था िहां पर छात्र ल्नवास करते हुए अध्ययन ल्कया करते थे। गरुु कुल
ल्शिण प्रणाली की मख्ु य ल्वशेर्ताएं ल्नमनवत् हैं-
ू ा वििा - गरुु कुल आश्रम में औपचाररक ल्शिा के स्थान पर समपणू ष ल्शिा का ज्ञान कराया िाता था। ल्शिा का उद्देश्य
1 सम्प्पण
सामान्य ज्ञान मात्र न होकर िीवन की समस्याओ ं से िझू ने की प्रेरणा तथा उनसे ल्नपटने का ज्ञान कराना था। ज्ञान की ल्वल्भन्न
शाखाओ ं में प्रल्शिण देना इसका आदशष था। गरुु कुल में ल्शिा के द्वार उन सभी के ल्लय खल ु े
थे, िो उसे पाने योग्य थे। उपनयन संस्कार द्वारा धाल्मषक तथा साल्हल्त्यक ल्शिा का शभु ारमभ ल्कया िाता था। गरीब ल्वद्याथी भी
ल्शिा प्राप्त कर सकते थे। ल्वद्याथी िीवन में सभी समान माने िाते थे। कृ ष्ण और सदु ामा एक ही गरुु कुल के ल्वद्याथी थे।
2. ब्रह्मचया एिां कठोर अनुिासन - इस व्यवस्था के अन्तगषत ल्वद्याथी को ब्रह्मचयष का पालन करना पडता था। इसका प्रमख ु
कारण यह था ल्क इसके कठोर अनुशासन में वह अल्धक आदशष प्राप्त कर सकता था। ल्वद्याथी के ल्लये ल्ववाह असंगत माना
िाता था। गरुु कुल के छात्रों की आदतों को काफी महत्व ल्दव िाता था। छात्रों को प्रातः िकदी उठने के ल्लये प्रेररत ल्कया िाता
था। प्राचीन छात्रों का आदशष 'सादा िीवन उच्च ल्वचार' था।
ल्वद्याथी िीवन में इन गरुु कुलों में कठोर अनशु ासन में रहना पडता था। यहाुँ ल्भिा माुँगना प्रत्येक ल्वद्याथी का कतषव्य था। अभीर-
गरीब प्रत्येक के ल्लये कठोर अनश ु ासन था। पाठ्य ल्वर्य में दिता प्राप्त करने के ल्लये लमबी, ल्नरन्तर तथा कल्ठन तैयारी की
आवश्यकता थी।
3. अध्ययन का उवचत समय बाकयावस्था में स्मरण शल्ि तेि होती है, बुल्द्ध िपशील होती है। इसल्लये 5 से 8 वर्ष का
समय ल्शिा के आरंभ के ल्लए उपयि ु माना गया। छात्रों के ल्लए संपणू ष ल्शिा की अवल्ध 12 वर्ष ल्नधाषररत होती थी।
4. छात्र िीवन का िीवन यापन एवं वेशभर्ू ा- इस व्यवस्था के अन्तगषत छात्र िीवन व्यतीत करने के कुछ ल्नयम थे। खान-
पान, वेश-भर्ू ा, आचार-व्यवहार आल्द में भी ल्नयम थे, ल्िनका कठोरता से पालन ल्कया िाता था।
(i) खान-पान- मनु के अनुसार, ल्वद्याल्थषयों को ल्दन में के वल दो प्रातः एवं सायं बार भोिन करनी होता था। प्रातःकाल तथा
सांयकाल माुँस, मधपु ान तथा बासी भोिन छात्र के ल्लए ल्नर्ेध था।
(ii) िेर्षभूर्षा- शरीर के ल्नमन भाग को ढकने के ल्लये ब्राह्मण, िल्त्रय तथा वैश्य छात्र क्रमशः सतू , रे शम तथा ऊन के वस्त्रों
का प्रयोग करते थे। ऊपरी भाग के ल्लये क्रमशः काले मृग, ल्चत्तीदार मृग आल्द की खालों का प्रयोग होता था। छात्रों को प्रत्येक
प्रकार के बाहरी ल्दखावे से दरू रहने का आदेश ल्दया िाता था। सगु ल्न्धत तेल, कागि, छाते तथा ितू ों का प्रयोग वल्िषत माना
िाता था। छात्र के श सज्िा नहीं कर सकता था।
(iii) आचार व्यििार- छात्रों को अनेक मयाषदाओ ं का पालन करना पडता था। वे आत्मसंयम, आत्मल्नयन्त्रण तथा पल्वत्रता
का िीवन व्यतीत करते थे। उनसे आशा की िाती थी ल्क वे असत्य भार्ण, दमभ, गाली-गलौच तथा चगु लखोरी से यथा समभव
स्वयं को दरू रखेंगे। वे धन तथा प्रत्येक प्रकार की समपल्त्त से अपने को दरू रखते थे तथा सगं ीत, नृत्य तथा िआ ु आल्द उनके
ल्लये पणू षतया ल्नल्र्द्ध था। ल्स्त्रयों से छात्र के वल काम की बात कर सकते थे। उनसे अल्धक ल्मलना-िल
ु ना वल्िषत था।
5. वििण पद्धवत- ल्शिण पद्धल्त का आधार मनोवैज्ञाल्नक था और मौल्खक तथा ल्चन्तन मनन ल्वल्धयों को प्रश्रय ल्दया गया
था। ल्शिा काल में गरुु और ल्शष्य दोनों ही सल्क्रय रहते थे और ल्शष्य अपनी शंकाएं प्रस्ततु करते थे। गरुु उन शंकाओ ं का
समाधान कर छात्रों में अन्वेर्ण वृल्त्त उत्पन्न करता था।
6. वनिःिुल्क वििा- छात्रों से ल्कसी भी प्रकार का शकु क नहीं ल्लया िाता था। आश्रम में िीवन यापन करने के ल्लए छात्र
अपेिा टनष करते थे। ल्शिा समाल्प्त पर वे स्वेच्छा से अपने गरुु को दल्िणा प्रदान करते थे।
7. चररत्र का मित्ि - गरुु कुल ल्शिा में ल्वद्याल्थषयों के चररत्र पर ल्वशेर् बल ल्दया िाता था। ल्वद्याथी को कल्ठनाइयों से सामना
करने के योग्य बनाना तथा उसका चाररल्त्रक ल्वकास करना गरुु कुल की ल्शिा का प्रमख ु उद्देश्य था।
8. समापितान वििा- ल्शिा प्राप्त करने के बाद तथा छात्र के सामाल्िक िीवन में प्रवेश करने से पहले गरुु उन्हें अल्न्तम बार
सद्गणु ों से प्रेररत करने के ल्लये 'समापवतषन उपदेश देते थे।
9. दडि- गरुु कुलों का दण्ि ल्वधान कठोर था। यल्द रािपत्रु भी गरुु कुल के ल्नयमों को तोडते थे तो उनको भी ल्नयमानुसार
उल्चत दण्ि ल्दया िाता था। महल्र्ष याज्ञवकक्य एवं साधारण दण्ि के पि में थे, परन्तु गौतम ऋल्र् ने कठोर दण्ि का समथषन
ल्कया था।
अध्ययन विर्षय - गरुु कुल ल्शिा प्रणाली में अलौल्कक तथा भौल्तक दोनों करके ज्ञान प्रदान ल्कए िाते थे। वेद, उपल्नर्द,
ब्राह्मण, आरण्यक, साल्हत्य, अथषशास्त्र, ज्योल्तर्शास्त्र, व्यवहारशास्त्र, कमषकांि आल्द गरुु कुल के अध्ययन ल्वर्य हुआ करते थे।
उपयषि ु तथ्यों से यह स्पि होता है ल्क गरुु कुलों की ल्शिा वतषमान ल्शिा प्रणाली की अपेिा काफी सदृु ढृ तथा व्यावसाल्यक दृल्ि
से काफी महत्वपणू ष थी। आि की ल्शिा का मल ू आधार गरुु कुल ल्शिा व्यवस्था ही थी वस्तुतः गरुु कुलों में दी िाने वाली
ल्शिा पाररवाररक पररवेश में रखकर गरुु ओ ं द्वारा अपने ल्शष्यों को दी िाती थी। उपनयन संस्कार के उपरान्त छात्र को गरुु ओ ं को
सौंप ल्दया िाता था। नगर सीमाओ ं से दरू गरुु ओ ं के आश्रम में रहकर, गरुु के साल्न्नध्य में रहकर छात्र अपने ब्रह्मचयष का पालन
करते हुए ल्वद्याथी के ज्ञान प्राप्त करते थे।
पाठिाला
मनुष्य अपने िीवन में कुछ न कुछ सीखता है। कोई भी मनुष्य िन्म से ही ज्ञानी नहीं होता है बल्कक इस धरती पर
आकर ही ल्कसी भी ल्वर्य पर ज्ञान प्राप्त करता है। मानव िीवन की सभ्य बनाने में सबसे बडा योगदान पाठशाला का होता है।
पाठशाला में सभी िा, धमष और वगष के बच्चे पढने आते है। पाठशाला शासकीय और अशासकीय प्रकार के होते हैं। हमारा
पाठशाला एक मंल्दर के सामन है िहाुँ रोि पढने आते है। ताल्क अपने िीवन में उज्ज्वल भल्वष्य प्राप्त कर सके । पाठशाला में
सभी को एक समान हें ल्दया िाता है। प्रल्तल्दन पाठशाला िाना बहुत लोगों को अच्छा लगता है क्योंल्क पाठशाला एक ऐसा
स्थान है िहाुँ पर प्रल्तल्दन कुछ न कुछ नया सीखने को ल्मलता है। सही ल्शिा से ही ल्कसी भी बच्चे का भल्वश्य ल्नल्ित होता
है और सही ल्शखा की शरू ु आत से ही होती है।
पाठशाला सबु ह के समय संचाल्लत होता है। पाठशाला में सबसे पहले प्राथषना सामल्ू हक प्राथषना की िाल्त है। पाठशाला
में बहुत ही सख्ती से अनुशासन का पालन ल्कया िाता है। बच्चों को घरों से पाठशाला तक पहुचुँ ाने के ल्लए सल्ु वधा दी िाती
है। सभी बच्चों को अनुशासन में रखने के ल्लए एक समान वदी (यल्ू नफॉमष) ल्दया गया िाता है, ल्िसे पहनना अनवायष है।
पाठशाला में िरूरत की सभी सल्ु वधाएुँ उपलब्ध कराई िाती हैं। ल्वद्याल्थषयों के ल्लए कमप्यटू र लैब, दो ल्वज्ञान लैब,
एक पस्ु तकालय, खेलने का मैदान, कायषक्रम के ल्लए सदंु र स्तव आल्द की सल्ु वधाएुँ उपलब्ध होती है।
पाठिाला के वििक- पाठशाला के अध्यापक बहुत ही पररश्रमी ल्वद्वान् और छात्रों के ल्हत का ध्यान रखने वाले
अध्यापक होते हैं। पाठशाला के अध्यापक बहुत ही पररश्रम और लगन से ल्सलेबस के अनुसार पढाते है और साथ ही ल्लल्खत
कायष का भी अभ्यास कराते है। सभी अध्यापक ल्लल्खत कायष को बहुत ही सावधानीपवू षक देखते है और अशल्ु द्धयों की ओर
ध्यान ल्दलाते है। इससे शद्धु सीखने और उसका शद्ध ु प्रयोग करने में सहायता ल्मलती है। ये अध्यापक बहुत ही दयालु होते हैं
िो हमें अनुशासन का अनुसरण करना ल्सखाते है। ल्शिक हमेशा खेल ल्क्रयाओ,ं प्रश्न-उत्तर प्रल्तयोल्गता, मौल्खक - ल्लल्खत
परीिा, वाद-ल्ववाद समहू चचाष आल्द दसू री ल्क्रयाओ ं में भाग लेने के ल्लए भी प्रेररत करते हैं। पाठशाला के अध्यापक पाठशाला
में अनुशासन को बनाए रखने और पाठशाला पररसर को साफ और स्वच्छ रखने के ल्लए प्रेररत करते है।
इस प्रकार कहा िा सकता है ल्क पाठशाला एक सावषिल्नक सपं ल्त होती है। यह हमारी राल्ष्रय ल्नल्ध है, इसल्लए
ल्वद्याथी को इसकी रिा के ल्लए हमेशा िागरूक रहना चाल्हए। पाठशाला ल्सफष पस्ु तकीय ज्ञान का माध्यम नहीं है बल्कक ज्ञान
प्राल्प्त के हर अवसर वहाुँ पर उपलब्ध होते हैं। पाठशाला बालकों का खेल-कूद, सांस्कृ ल्तक कायषक्रम में भाग लेने का अवसर
देता है। ल्िससे बालकों का मानल्सक एवं शारीररक ल्वकास होती है। उन्हीं ल्वर्यों के मागष दशषन के ल्लए ल्शिक होते है इसल्लए
ल्वद्याथी को अपने स्कूलों से परू ा लाभ उठाना चाल्हए।
वििा रणाली में मकतब एिां मदरसा
मल्ु स्लम कालीन ल्शिक के न्द्र के रूप में मकतब तथा मदरसे प्रचल्लत थे। मध्यकाल में प्रारल्मभक ल्शिा की व्यवस्था
मकतब में होती थी तभी मदरसों में उच्च ल्शिा की व्यवस्था की गई थी।
मकबत-
मकबत अरबी भार्ा का शब्द है ल्िसका शाल्ब्दक अथष है उसने ल्लखा अथाषत् वह स्थान िहाुँ ल्लखने-पढने की ल्शिा
दी िाती है। मकतब प्रायः मल्स्िदों से िडु े होते हैं। मकतब में बालक का प्रवेश 4 वर्ष, 4 माह 4 ल्दन का हो िाने पर
'ल्बसल्मकलाह' रस्म के साथ होती थी। मौलवी के ल्नदेशन में कुरान की कुछ आयतों को बालक से कहलाया िाता था। इस रस्म
के साथ ही बालक की ल्शिा प्रारमभ हो िाती थी।
मकतब की वििा व्यिस्िा- मकतब में बालकों को वणषमाला के अिरों का ज्ञान कराया िाता था। ल्लल्प का ज्ञान
हो िाने के उपरान्त उसे कुरान की आयतें कण्ठस्थ कराई िाती थी। उच्चारण की शद्ध ु ता तथा सलु ख े पर ल्वशेर् ध्यान ल्दया
िाता था। अरबी, फारसी भार्ा के साथ-साथ व्याकरण का ज्ञान कराया िाता था। बालकों को अंकगल्णत, पत्र-लेखन,
अिीनवीसी तथा बात-चीत के तौर-तरीकों की ल्शिा दी िाती थी। नैल्तक ल्शिा के रूप में बालकों को सेख सादी की प्रल्सद्ध
प्रस्तकों गल्ु लस्ताुँ तथा बोस्ता की ल्कताबें पढाई िाती थी। पैगमबरों तथा मल्ु स्लम फकीरों की कहाल्नयाुँ सनु ाई िाती थी। सहिादों
तथा लडल्कयों की ल्शिा प्रायः घरों पर ही होती थी। मकबतों की ल्शिा प्रायः मौल्खक ही होती थी। रटने पर ल्वशेर् िोद ल्दया
िाता था। सवषप्रथम बालकों को कलमा और कुरान की आयतें कंठस्थ कराई िाती थी। ल्पछला पाठ कंठस्थ हो िाने के बाद
ही अगला पाठ पढाया िाता था। ल्गनती तथा पहाडों की िोर-िोर से बोलकर सामल्ू हक रूप से कंठस्थ कराया िाता था।
पाठ्यक्रम- मदरसों के धाल्मषक तथा लौल्कक दोनों प्रकार की ल्शिा दी िाती थी। धाल्मषक पाठ्यक्रम के अन्तगषत कुरान, महु ममद
साहब की परमपरा, इस्लामी इल्तहास, इस्लामी कानू तथा सफ ू ी मत के ल्सद्धांत पढाये िाते थे। लौल्कक ल्शिा के अन्तगषत
अरबी, फारसी साल्हत्य, व्याकरण, दशषन, तकष शास्त्र प्रमख ु नील्तशास्त्र, अथषशास्त्र, कानून, इल्तहास, भगू ोल, गल्णत, ल्चल्कत्सा
शास्त्र, कृ ल्र् और ज्योल्तर् इत्याल्द ल्वर्यों का ज्ञान कराया िाता था। इसके अल्तररि मदरसों में वास्तु कला, ल्चत्रकला तथा
सगं ीत की उच्च कोल्ट की ल्शिा दी िाती थी।
वििण विवध- मकतबों की भाुँल्त मदरसों की ल्शिण ल्वल्धा भी मौल्खक ही होती थी। यहाुँ प्रायः व्याख्यान प्रणाली का प्रयोग
ल्कया िाता था। धमष दशषन, तकष शास्त्र तथा गल्णत आल्द ल्वर्यों के पठन-पाठन में तकष ल्वल्ध का प्रयोग ल्कया िाता था हस्तकला,
संगीत को , प्रायोल्गक ल्वल्ध द्वारा पढाया िाता था। किा रािकीय प्रणाली का प्रयोग भी ल्कया िाता था।
वििा का माध्यम- ल्शिा माध्यम के रूप में अरबी, फारसी भार्ाएुँ प्रयोग में की िाती थी। सरकारी नौकरी पाने के ल्लए फरसी
का ज्ञान होना आवश्यक था। इसके अल्तररि ल्हन्दी तथा उदषू भार्ा को भी माध्यम के रूप में प्रयि
ु ल्कया िाता था। अकबर ने
ल्हन्दी भार्ा को तथा औरंगिेब ने उदषू भार्ा की प्रोत्साहन ल्दया था।
Rahul Kumar
Asst. Prof., Dept of Sanskrit
Marwari College, Ranchi
Unit- II (Chapter- 2)
Beginning of Modern Education: The British Government’s Educational Policies
भारत की परपरागत शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षण संस्थाओ को मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद जबरदस्त धक्का लगा और
दे ि में राजनीततक अस्स्थरता के कारण शिक्षा के माहौल में लगातार गगरावट आने लगी। अंग्रेजी शसखाने के शलए स्कूलों का
जाल बबछा दे ने का ववचार सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के एक शसववल सेवक चालसस ग्रांट (Charles Grant) के मन में
आया। उसने शिक्षा के प्रचार के शलए अंग्रेजी भाषा को ही सबसे उपयक्
ु त माध्यम बताया। वास्तव में , अंगेजी शिक्षा की
अगग्रम रूपरे खा का तनमासण चार्लसस ग्रांट ने ही ककया । इसीशलए उसे 'भारत में आधनु िक शिक्षा का जन्मदाता' कहा जाता है ।
सन ् 1781 में गवनसर जनरल वारे न हे स्स्टं ग्स द्वारा कलकत्ता में एक मदरसा स्थावपत ककया गया जो कम्पनी सरकार द्वारा
स्थावपत पहला ववद्यालय था। बिटटि रे स्जिेंट जोनाथन िकन के प्रयत्नों के फलसवरूप 1792 ईo में बनारस में एक संस्कृत
कॉलेज खोला गया, स्जसका उद्दे श्य टहन्दओ
ु के धमस, साटहत्य और कानून का अध्धयन और प्रसार करना था। 1784 ई. में
सर ववशलयम जोन्स ने कलकत्ता में 'रॉयल एशियाटिक सोसायिी ऑफ बंगाल' की स्थापना की। 1800 में लािस वेलेजली ने
कंपनी के असैतनक अगधकारीयों की शिक्षा के शलए फोिट विशलयम कॉलेज (Fort William College) की स्थापना की, परन्तु
यह कॉलेज सन ् 1802 में तनदे िकों के आदे ि से बंद कर टदया गया।
1833 ई. के चािट र एक्ि द्वारा भारतीयों की शिक्षा पर सरकार द्वारा व्यय की जाने वाली धनराशि दस लाख रुपए प्रततवषस
कर दी गई। लािस ववशलयम बैंटटंक ने भारतीय शिक्षा के माध्यम के प्रश्न को सुलझाने के शलए लािस मैकाले की सहायता प्राप्त
की। भारत में अंग्रेजी शिक्षा का सूत्रपात करने का श्रेय लािस मैकाले को ही प्राप्त है ।
िड्
ु स डिस्पैच, 1854 (Wood’s Dispatch, 1854):
सन ् 1854 में सरकार ने भारत के संबंध में अपनी नवीन शिक्षा नीतत की घोषणा की जो 'िुड्स का घोषणा पत्र' (Woods
Dispatch) के नाम से प्रशसद्ध है । इसे 'आधुतनक भारतीय शिक्षा का मैग्नाकाटास' कहा गया। इस घोषणा पत्र में लंदन
ववश्वववद्यालय की तजस पर कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास में ववश्वववद्यालय स्थावपत करने की बात कही गई तथा प्राथशमक
स्तर से ववश्वववद्यालय स्तर तक की शिक्षा का व्यवस्स्थत प्रारूप तनधासररत कर क्रमबद्ध पाठिालाओं (Graded Schools)
की स्थापना का प्रावधान ककया गया। प्रान्तों में लोक शिक्षा ववभागों की स्थापना, मटहला शिक्षा को प्रोत्साहन, उच्च शिक्षा
का माध्यम अंग्रेजी एवं स्कूली शिक्षा का माध्यम आधुतनक भारतीय भाषायें करना आटद वुड्स डिस्पेच के अन्य प्रमुख
प्रावधान थे। इन प्रावधानों के कक्रयान्वयन में 1857 में तीनों प्रेसीिेस्न्सयों कलकत्ता, बम्बई एवं मद्रास में ववश्वववद्यालयों की
एवं प्रान्तों में लोक शिक्षा ववभागों को स्थापना की गई।
कजसन ने प्रारस्म्भक शिक्षा के क्षेत्र में कुछ उर्ललेखनीय सुधार ककया। उसने प्रारं शभक शिक्षा के ववकास के शलए दो लाख तीस
हजार हजार पौंि वावषसक धन-राशि स्थाई रूप से स्वीकृत की तथा अध्यापकों के वेतन वद्
ृ गध का आदे ि टदया। उसने कृवष
शिक्षा, औद्योगगक शिक्षा और सामान्य शिक्षा के ववकास के शलये भी प्रयत्न ककये।
1910 ई. में शिक्षा विभाग की स्थापिा की गई। 1911 ई. में गवसनर जनरल की कौंशसल में शिक्षा-सदस्य तनयुक्त कर टदया
गया और शिक्षा की उन्नतत के शलये दस लाख रुपया स्वीकृत ककया गया। 1913 ई. में एक सरकारी प्रस्ताव के द्वारा ढाका,
अलीगढ़ तथा बनारस में शिक्षा दे ने वाले ववश्वववद्यालयों को स्थावपत करने की व्यवस्था की गई। रं गून, पटना तथा नागपुर
में कालेजों को संयोस्जत करने वाले ववश्वववद्यालयों को स्थावपत करने का तनश्चय ककया गया। यद्यवप प्रथम ववश्व यद्
ु ध
आरम्भ जाने के कारण 1913 ई. का प्रस्ताव कायासस्न्वत न हो सका तथावप 1916 तथा 1917 ई. में बनारस तथा पटना
ववश्वववद्यालय आरम्भ कर टदये गये।
िधाट बनु ियादी शिक्षा योजिा, 1937 (Wardha Plan for Basic Education, 1937):
भारत सरकार अगधतनयम, 1935 के प्रावधानों के अनुसार प्रांतो को उसी वषस स्वायत्ता दे दी गई। इसके फलस्वरूप दो वषो
में ही लोकवप्रय मंबत्रमंिल अपने-अपने प्रांतो में कायस करने लगे। सन ् 1937 में महात्मा गाँधी ने अपने पत्र 'द हररजि' (The
Harijan)’ में लेखों की एक श्रंख
ृ ला के माध्यम से एक शिक्षा योजना का प्रस्ताव प्रस्तुत ककया स्जसे िधाट योजिा (Wardha
Plan) कहा गया। जाककर हुसैन सशमतत ने इस योजना का ब्लयौरा प्रस्तुत ककया। योजना का मूलभूत शसद्धांत ववलय योग्य
हस्त-तनशमसत वस्तुओ का उत्पादन करना था स्जससे शिक्षको के वेतन का भी प्रबंध हो सके। इसके अंतगसत ववद्याथी को
मातभ
ृ ाषा के माध्यम से सात वषस तक ववद्या प्रदान करना था।
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f'k{kk dk mís'; u dsoy Nk=ksa dks f'kf{kr djuk gS] cfYd muds lEiw.kZ O;fäRo dk fodkl
djuk gSA bl vFkZ esa f'k{kdksa dk nkf;Ro u dsoy Nk=ksa esa ckSf)drk fodflr djuk gS]
cfYd mudk uSfrd ,oa pkfjf=d fodkl djuk Hkh gSA mPp uSfrd vkn'kksZa ,oa mÙke pkfjf=d
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xq.kksa okys ;qok gh vkxs pydj ,d fodflr jk"Vª dk fuekZ.k djrs gSa vkSj bl ;ksX; mUgsa
f'k{kd cukrs gSaA vr%] f'k{kdksa ls visf{kr gksrk gS fd os lkekU; O;fä;ksa ls vf/kd mnkj]
lfg".kq] e;kZfnr ,oa pfj=oku gks]a rkfd os vius Nk=ksa esa Hkh bu xq.kksa dk vkjksi.k dj ik,aA
f'k{kd jk"Vª&fuekZrk gksrs gSa] vr% muds mÙkjnkf;Ro Hkh fo'ks"k gksrs gSaA f'k{k.k ,d
lkekftd lsok ,oa vk/;kfRed dk;Z gS] blfy, Hkkjrh; lekt esa f'k{kdksa dks iwtuh; LFkku
çkIr gSA f'k{kdksa dks f'k{k.k dk;Z esa rks n{k gksuk gh pkfg,] lkFk gh Lo;a esa mPp pkfjf=d
xq.kksa dks Hkh j[kuk pkfg,A f'k{k.k uhfr'kkL= ds vuqlkj] f'k{k.k ds lkFk&lkFk f'k{kdksa dk
nkf;Ro gS fd os viuk O;fäRo vkn'kZ] pfj= mÙke vkSj O;ogkj lE;d j[ks]a D;ksafd muds
bu xq.kksa dk çHkko f'k{k.k laLFkku ds leLr fØ;kdykiks]a Nk=ksa ds pkfjf=d fodkl vkSj
f'k{k.k dk viuk ,d vyx vkrafjd ewY; gSA okLro esa f'k{k.k Lo;a esa ,d mÙkjnkf;Ro
gS] dksbZ O;olk; ughaA rHkh rks vjLrq us dgk gS] Þf'k{k.k ckSf)drk ,oa çse dk loksZPp :i
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1- D;k Hkkjr esa f'k{kk ,d ekSfyd vf/kdkj gS\
6- Hkkjr esa çkFkfed Lrj dh f'k{kk dks c<+kok nsus ds fy, dkSu lk vfHk;ku lapkfyr
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12- D;k f'k{k.k gh f'k{kdksa dk ,dek= drZO; gS vFkok muds vkSj Hkh mÙkjnkf;Ro gSa \
11
14- D;k f'k{kk dk mís'; dsoy jkstxkj ikuk gS\ ;fn] ugha rks f'k{kk ds vkSj D;k mís';
gSa\
15- vki vius f'k{kdksa ds fdu xq.kksa dks vius LokHkko esa lfEefyr djuk pkgsx
a s\
1. Aristotle, The Nicomachean Ethics, W.D. Ross and Lesley Brown, Oxford
2- 'kkafrioZ] egkHkkjr-
jk"Vªh; lwpuk foKku dsæa ] bysDVª‚fuDl vkSj lwpuk çkS|ksfxdh ea=ky;] Hkkjr
ljdkj-
6. www.brainyquote.com/authors/aristotle.
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1- xqIrk] ,l-ih- ,oa cktisbZ ih-ds-] 2008] f'k{kk ds nk'kZfud ,oa lekftd vk/kkj]
http.//education.gov.in.
13