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बी.ए.

ह द
िं ी – वैक्लऱपक
एडव िंस ह द
िं ी
पद्य स ह त्य

- डॉ. अभबषेक यौशन

1. कबीर :-

कफीय बक्तिकार के ननगगुणधाया के ऻानाश्रमी शाखा के कवि हैं। क्जन कविमों ने प्रेभ की
अऩेऺा ऻान ऩय अधधक फर दिमा है , उन्हें ऻानाश्रमी शाखा का कवि कहा जािा है । इनका
जन्भ 1397 ई. भें भाना जािा है । रोक भें प्रचभरि है कक कफीय विधिा ब्रह्भणी से ऩैिा हगए
थे, क्जन्हें फिनाभी के डय से काशी के रहयिाया िार के ऩास पेंक दिमा गमा था, क्जनकी
ऩयिरयश अरी मा नीरू नाभक जगराहा ने ककमा। कफीय के काव्म भें जानि-ऩाॊनि का वियोध है

“जो िू फाबन फबनी जामा, आन याह िै तमों नहीॊ आमा।


जो िू िगयक िगयकनी जामा, बीिय खिना तमों न कयामा।”
जादहय है , कफीय जानि-ऩाॊनि औय जन्भ के आधाय ऩय भनष्ग म को ियजीह न िे कय उसके गण
ग ों
औय कभों के आधाय को भहत्ि िे िे हैं –

“जानि न ऩूछो साधग की, ऩूछ रीक्जमे ऻान।


भोर कयो िरिाय की ऩडी यहन िो म्मान।।”
इस ियह कफीय के ननगगण
ु ‘याभ’ मा ‘ऩैगॊफय’ ककसी भॊदिय-भक्जजि भें नहीॊ हैं, फक्कक उनके
‘याभ’ औय ‘ऩैगॊफय’ कण-कण भें हैं अि: जो भॊदिय-भक्जजि जािे हैं औय जो नहीॊ जािे हैं/मा
क्जन्हें जाने नहीॊ दिमा जािा है , सबी के भरए सगरब हैं। िबी कफीय ऩत्थय (ऩाहन) की भूनिु
को अप्रसाॊधगक भानिे हैं औय कहिे हैं –

“ऩाहन ऩज
ू ै हयी भभरै, िो भैं ऩज
ू ॉ ू ऩहाय।
िािे िो चतकी बरी, ऩीभस खाम सॊसाय।”
इसी ियह िे भक्जजि ऩय बी सिार उठािे हैं –

“काॊकय ऩाथय जोरय कै, भक्जजि रई फनाम।


िा चढी भगकरी फाॊग िे , तमा फहया हगआ खगिाम।”
जादहय है कक कफीय साभाक्जक चेिना के कवि हैं। कफीय की िाणी का सॊग्रह ‘फीजक’ कहरािा
है । इसके िीन बाग हैं – 1. यभैनी 2. सफि औय 3. साखी। यभैनी औय सफि गेमऩि भें है िथा
साखी िोहों भें है । कफीय हय ियह के अॊधविश्िास को नकायिे हैं। ‘भगहय’ के फाये भें रोक भें
धायणा थी कक िहाॉ भयनेिारे ‘नयक’ जािे हैं िथा फनायस भें भयने िारों को जिगु भें जथान
भभरिा है । कफीय अऩनी क्जॊिगी के अॊनिभ ऩडाि भें फनायस छोडकय भगहय भें आ फसे थे
िथा िहीॊ इनकी भत्ृ मग हगई। इस ियह कफीय िाउम्र भनष्ग मों को सॊिेश िे िे यहे कक जथान,
जानि, धभु, व्मक्ति फडा मा छोटा नहीॊ होिा है , सफसे फडा भनगष्म-भनगष्म भें प्रेभ है ।

2. र ीम :-

यहीभ का ऩूया नाभ अब्ियग ु हीभ खानखाना है । इनका जन्भ 1553 ई. भें हगआ। यहीभ
सगगणधाया के कृष्णबति कवि हैं। यहीभ सम्राट अकफय के प्रभसद्ध सेनाऩनि फैयभ खाॉ के ऩत्र

थे। यहीभ जिमॊ मोद्धा थे। साथ ही इनका रृिम बक्ति भें रीन यहिा था औय जग भें मह
करूणा, उिायिा औय िानशीरिा के भरए प्रभसद्ध थे। जादहय है कक यहीभ धन-सॊऩिा के
फननजफि व्मक्ति को भहत्ि थे –

“कदह यहीभ सॊऩक्त्ि सगे, फनि फहगि फहग यीि।


बफऩनि कसौटी जे कसे, िेई साॊचे भीि।।”
इन्होंने बक्ति के साथ-साथ जीिन भें काभ आनेिारी नीनिऩयक िोहे की बी यचना की है । मे
िोहे बायि के दहॊिी इराकों भें ऩढे -भरखे रोगों से रेकय अनऩढ रोगों की जगबान से बी सगने जा
सकिे हैं –

“यदहभन ऩानी याखखए, बफनग ऩानी सफ सून।


ऩानी गए न ऊफयैं , भोिी भानष
ग चन
ू ।।”
यहीभ अयफी, पायसी, सॊजकृि, दहॊिी आदि कई बाषाओॊ के जानकाय थे। इन्होने यहीभ
िोहािरी मा सिसई, श्रॊग
ृ ाय सोयठा, भिनाष्टक, यासऩॊचाध्मामी आदि यचनाएॉ भरखीॊ। इसके
अरािा इनकी यचना ‘फयिै नानमका बेि’ बी कापी प्रभसद्ध है । इसभें इन्होंने नानमकाओॊ के
बेि-िणुन ककमा है िथा इनकी विशेषिाएॉ फिामा है । इन्होंने खेर कौिगकभ ् नाभक ज्मोनिष
ऩय बी ग्रॊथ भरखा है । िगरसीिास इनके खास भभत्र थे। कहिे हैं जफ इन ऩय विऩिा ऩडी िो
िगरसीिास ने इनकी सहामिा की। अच्छी भभत्रिा, दहि-अनदहि की ऩहचान के भरए यहीभ
जीिन के भरए विऩिा को जरूयी भानिे हैं –

“यदहभन विऩिा हू बरी, जो थोये दिन होम।


दहि अनदहि भा जगि भें , जानन ऩयि सफ कोम।।”
कहिे हैं कक अऩनी उम्र के अॊनिभ दिनों भें यहीभ का ‘ियफारयमों’ से नहीॊ ऩटी औय िे ियफाय से
अरग हो गमे। यहीभ जिाथु के भरए याजनीनि कयनेिारे सत्िाधारयमों, अिैध रूऩ से सॊऩक्त्ि
अक्जुि कयनेिारों से सािधान यहने की सीख िे िे हगए कहिे हैं कक –
“यदहभन ओछे नयन सो, फैय बरी ना प्रीि।
काटे चाटे जिान के, िोउ बाॉनि विऩयीि।”
यहीभ के काव्म हभें जीिन जीने के सीख िे िे हैं। इनके िोहे सयर बाषा भें भागु दिखािे हैं।

3. बब री : -
बफहायी का जन्भ 1606 ई. के रगबग भाना जािा है । बफहायी यीनिकार के यीनिभसद्ध कवि हैं।
बफहायी के िोहे सिुसाधायण भें प्रचभरि हैं। बफहायी उन चॊि कविमों भें हैं, क्जन्होंने कभ
भरखकय सिाुधधक मश प्राप्ि ककमा है । इनकी एकभात्र यचना ‘बफहायी सिसई’ है , क्जसभें
रगबग 719 िोहे हैं। इनभें अधधकाॊश िोहे भाभभुक औय प्रबािी हैं। बफहायी सिसई के फाये भें
कहा जािा है कक –

“सिसइमा के िोहये , ज्मों नािक के िीय


िे खि भें छोटन रगैं, घाि कयैं गॊबीय।”
इनके िोहों भें ित्कारीन साभॊिी जीिन का धचत्रण है । इसभें याजा-भहायाजाओॊ, सेठ-
साहूकायों के िैबि-विरासी जीिन के साथ-साथ आभ गहृ जथ जीिन का बी सगॊिय धचत्रण है ।
इसभें बाबी, िे िय, सारी, जेठ, ननि, सास, ऩडोसन आदि के हास-ऩरयहास, नोंक-झोंक के
विविध भनोहय धचत्र खीॊचे गमे हैं –
“कहि-नटि, रयझि-खखझि, भभरि-खखरि रजीमाि
बौये बिन भें कयि हैं, नैनन ही सों फाि।”
बफहायी ने अधधकाॊश श्रॊग
ृ ाय बाि की व्मॊजना की है । उन्होंने श्रॊग
ृ ाय के सॊमोग औय विमोग िोनों
ही ऩऺों का िणुन ककमा है । सॊमोग भें बफहायी ने हािबाि औय अनगबािों का सक्ष्
ू भ औय
भाभभुक धचत्रण ककमा है –

“फियस रारच रार की भगयरी धयी रगकाम।


सोह कये , बौंहनग हॊ से िै न कहे , नदट जाम।।”
बफहायी याजा-भहायाजा के विरासी जीिन ऩय दटप्ऩणी कयने भें बी नहीॊ चगकिे थे। प्रचभरि है
कक नई-निेरी कभ उम्र की यानी के प्रेभ भें याज-ऩाठ बर
ू कय डूफे सिाई याजा जमभसॊह को
उन्होंने चेिामा –

“नदहॊ ऩयाग नदहॊ भधगय भधग, नदहॊ विकास मदह कार।


अरी करी ही सौं फॊध्मो, आगे कौन हिार।।”

श्रॊग
ृ ाय के साथ-साथ बफहायी के काव्म भें प्रकृनि धचत्रण, कभोफेश बक्ति-बािना, ज्मोनिष,
गखणि, िैध, विऻान आदि का बी जगह-जगह िणुन है । इनकी बाषा सादहक्त्मक ब्रजबाषा
है , जो उस सभम उत्िय बायि के सादहत्म की भगख्म बाषा औय फोरचार की बाषा होने के
साथ-साथ कहीॊ-कहीीँ अन्म जगहों भें फोरी-सभझी जािी थी।

4. म खनऱ ऱ चतुवेदी :-

भाखनरार चिगिेिी का जन्भ 1888 औय भत्ृ मग 1968 भें हगई थी। याष्र के प्रनि इनके प्रेभ के
कायण इन्हें ‘एक बायिीम आत्भा’ बी कहा जािा है । चिगिेिी जी कवि, रेखक, ऩत्रकाय औय
सकिम याष्रीम कामुकिाु िीनों एक एक साथ थे। इनकी कवििाएॉ याष्रीम बािनाएॉ , त्माग से
ओि प्रोि हैं। इनकी ‘ऩगष्ऩ की अभबराषा’ नाभक कवििा कापी प्रभसद्ध है –

“भगझे िोड रेना, िनभारी!


उस ऩथ भें िे ना िगभ, पेंक।
भािब
ृ ूभभ ऩय शीश चढाने
क्जस ऩथ ऩय जािें िीय अनेक।”
कवििा के साथ-साथ इन्होंने ऩत्र-ऩबत्रकाओॊ के सम्ऩािन के भाध्मभ से बी याष्रीम जागयण
का अरख जगामा। प्रबा, प्रिाऩ औय कभुिीय ऐसी ही ऩबत्रकाएॉ थीॊ, क्जसके द्िाया चिगिेिी जी
ने याष्र की सभजमाओॊ औय िे शबक्ति के शॊख पॊू के थें । याष्रीमिा के अरािा इनकी
कवििाओॊ भें प्रणम-ननिेिन औय यहजम के बाि बी भभरिे हैं। दहभककयीदटनी, दहभियॊ धगनी,
िेणग रो गॉज
ग े धया, भािा, मग
ग चयण, भयण ज्िाय, फीजर
ग ी काजर आॉज यही औय धम्र
ू िरम
इनके काव्म सॊग्रह हैं। जीिन के आखखयी िौय भें , जियाज्म प्राक्प्ि के फाि, सत्िाधारयमों की
ऩिरोरगऩिा की होड भें िे श की िि
ग ु शा िे खकय उन्हें अत्मॊि ऺोब हगआ। इसकी अभबव्मक्ति
उनके आखखयी काव्म-सॊग्रह ‘धम्र
ू िरम’ भें हगई है –

“जीिें मा हाये , सूरी अऩना ऩथ था


भैं प्राण चढकय िगझे िाय िे िा था
वऩजिौर उठािा औय भाय िे िा था
अफ िगभ ऩिरोरऩ
ग िे शबति अनिे खे”

5. न ग र्ुन : -
नागाजगुन का घये रू नाभ िैद्मनाथ भभश्र है । फौद्ध धभु भें िीऺा रेकय िैद्मनाथ भभश्र
नागाजगुन फन गए। इन्होंने ‘मात्री’ उऩनाभ से भैधथरी भें बी कवििाएॉ भरखी हैं। मात्री उऩनाभ
इनके जिबाि के अनगरूऩ थे। मे घगभतकड प्रिक्ृ त्ि के थे। इन्होंने भहाविद्मारमों,
विश्िविद्मारमों भें कोई औऩचारयक भशऺा अक्जुि नहीॊ की, ऩयॊ िग घभ
ू -घभ
ू कय इन्होंने
जीिन-जगि को सभझा औय सॊजकृि, ऩारी, अऩभ्रॊश, निब्फिी, भयाठी, गगजयािी, फॊगारी,
भसॊधी आदि बाषाओॊ का ऻान प्राप्ि ककमा। नागाजगन
ु प्रगनिशीर चेिना के कवि हैं औय
भातसुिािी िशुन से प्रबाविि हैं। इन्होंने याजनीनि भें सीधे बागीिायी की। इसभरए इनकी
फहगि सायी कवििाएॉ याजनीनिक घटनाओॊ औय कृत्मों ऩय आधारयि हैं। इन कवििाओॊ भें
जिि: व्मॊग्म विधान हो जािा है –

“फाऩू के बी िाऊ ननकरे िीनों फन्िय फाऩू के!


सकर सूत्र उरझाऊ ननकरे िीनों फन्िय फाऩू के!”
(िीनों फॊिय फाऩू के)
साथ ही इनकी कवििा भें साभाक्जक सयोकाय खगर कय साभने आिे हैं। इनका झगकाि गाॉि
की ओय ज्मािा है । मे अऩने चायों ओय पैरी गयीफी, अऩभान, िै न्म, विषभिा से िडऩिे हगए
ककसानों, भजियू ों को िे खकय िख
ग ी हो जािे हैं –

“कई दिनों िक चूकहा योमा, चतकी यही उिास


कई दिनों िक कानी कगनिमा, सोई उनके ऩास
कई दिनों िक रगी नछऩकभरमों भें बी गजि
कई दिनों िक चह
ू ों की बी हारि यही भशकजि।”
(अकार औय उसके फाि)
नागाजगुन न केिर िख
ग ी होिे हैं, फक्कक इसके भरए क्जम्भेिाय व्मक्तिमों, सॊजथाओॊ,
अधधकारयमों औय सयकायों ऩय बी जभकय हकरा फोरिे हैं। जादहय है कक नागाजगुन ऩऺधय
कवि हैं। इनकी ऩऺधयिा कभजोयों के प्रनि है ।

मगगधाया, सियॊ गे ऩॊखों िारी, प्मासी ऩथयाई आॉखें, िाराफ की भछभरमाॉ, िगभने कहा था,
खखचडी विप्रि िे खा हभने औय हजाय-हजाय फाॉहों िारी इनके काव्म-सॊग्रह हैं।

नागाजगुन की कवििाओॊ भें सभाज की सभजमाओॊ के साथ-साथ ऩारयिारयक, यागात्भक


सॊफॊधों का बी सन्
ग िय धचत्रण है –

“सगनोगी िगभ िो उठे गी हूक


भैं यहूॉगा साभने (िजिीय) ऩय भक

साॊध्म नब भें ऩक्श्चभान्ि – सभान
राभरभा का जफ करूण आख्मान
सन
ग ा कयिा हूॉ, सगभखग ख उस कार
माि आिा है , िगम्हाया भसन्ियू निरककि बार।”
(भसन्ियू निरककि बार)
नागाजगुन कक कवििाओॊ भें प्रकृनि का धचत्रण जनऩिीम है । उनकी बाषा ऩय बी जनऩि का
गहया यॊ ग है । इनकी कवििाओॊ भें बफॊफ, प्रिीक आभ जीिन से भरमा गमा है । मानी कक सॊऩण
ू ु
कवििा का भशकऩ आभ फोरचार की बाषा के अनगरूऩ है । इसभरए इनकी कवििाओॊ को
सभझने भें खास ऩरयश्रभ की आिश्मकिा नहीॊ होिी है । याजनीनि ऩय आधारयि कवििाओॊ भें
व्मॊग्म विधान कवििा की भायक ऺभिा को फढा िे िा है ।

6. रघुवीर स य : -

यघगिीय सहाम का जन्भ 9 दिसॊफय 1929 औय भत्ृ मग 30 दिसॊफय 1990 को हगई। यघगिीय सहाम
कवि, कहानीकाय, सभीऺक, ऩत्रकाय, जिम्बकाय औय अनि
ग ािक थे। यघि
ग ीय सहाम को
‘खफयों का कवि’ कहा जािा है । कायण कक इनकी कवििा खफयों के ऩीछे की खफय फमान
कयिी है । उन्हें 1982 ई. भें उनकी ऩगजिक ‘रोग बूर गमे हैं’ के भरए सादहत्म अकािभी
ऩगयजकाय दिमा गमा।

इनके कवििा – सॊग्रह सीदढमों ऩय धूऩ भें , आत्भहत्मा के विरूद्ध, हॉ सों


हॉ सों जकिी हॉ सों, रोग बर
ू गए हैं, कगछ ऩत्िे, कगछ धचदिमाॉ, एक सभम था हैं।

यघगिीय सहाम का व्मक्तित्ि फहगऩऺीम है । इसभरए उन्होंने सभाज को उसके ऩूये करेिय भें
िे खा। िे कवि औय ऩत्रकाय एक साथ थे। इसभरए उनका साया सादहत्म औय ऩत्रकारयिा एक
प्रकाय का याजनीनिक रेखन है । इसभरए उनकी सॊऩूणु यचनाओॊ भें िटजथिा नहीॊ ऩऺधयिा
है । उनकी विषमिजिग याजनीनि औय सभाज के उस हरके से होिी है , जहाॉ भििािा दिनों-
दिन रोकिॊत्र भें भजाक फनिा जा यहा है । इसभरए इनकी यचनाओॊ भें सभकारीन आिभी की
ऩयू ी िनग नमा िे खी जा सकिी है । मानी कक इसभें व्मक्ति औय सभाज की क्जॊिगी की भक्ग श्करें
िजु हैं िो भानि भन की सहज प्रिक्ृ त्िमाॉ जैसे प्रेभ, हाजम, व्मॊग्म औय करुणा आदि की
अभबव्मक्ति बी है । भनगष्म की आदि औय अॊनिभ जथरी प्रकृनि को बी उन्होंने गहयी
ऐॊदिकिा के साथ धचबत्रि ककमा है । इस ियह िे ननयारा के फाि कवििा की िनग नमा भें नए-नए
विषमों की िराश कयनेिारे फडे कवि हैं। इस ियह यघगिीय सहाम की कवििा एकाॊि की जगह
ऩाठकों को गरी-भगहकरे, चौक-चौयाहे योड-नगतकड भें रे जािी है । सिारों से घेय िे िी हैं। मह
सकग ू न िे ने के फजाए फजाम फेचैन कय िे िी हैं। इनकी प्रभसद्ध कवििाओॊ भें एक – आऩकी हॉ सी

ननधुन जनिा का शोषण है


कह कय आऩ हॉ से
रोकिॊ त्र का अॊनिभ ऺण है
कह कय आऩ हॉ से
सफ के सफ हैं भ्रष्टाचायी
कह कय आऩ हॉ से
चायों ओय फडी राचायी
कह कय आऩ हॉ से
ककिने आऩ सयग क्षऺि होंगे भैं सोचने रगा
सहसा भगझे अकेरा ऩा कय कपय से आऩ हॉ से
मह रोकिॊत्र के ऩहये िाय भििािा का कैसा भजाक है । हत्माये ककिने आजाि हैं कक सफके
साभने सडक ऩय ककसी को चाकू भायकय रहयािे जा सकिे हैं। याभिास बफहाय, िेराॊगाना,
कश्भीय, गगजयाि, दिकरी कहीॊ बी हो सकिा है । जनिा फेचाया है । िह उसे ही फगराने भें रगे हैं,
क्जन्हें इन सफकी ऩहरे से जानकायी थी। मानी व्मिजथा को। इसी रोकिॊ त्र को उनकी
कवििा ‘अधधनामक’ मूॉ व्मति कयिा है –

याष्रगीि भें बरा कौन िह


बायि बाग्म विधािा है
पटा सगथन्ना ऩहने क्जसका
गन
ग हयचयना गािा है ।
भखभर टभटभ फकरभ िगयही
ऩगडी छत्र चॉ िय के साथ
िोऩ छगडा कय ढोर फजा कय
जम जम कौन कयािा है ।
हरयचयन भििािा है । रोकिॊत्र के झॊड-े िभाशे उसके नाभ ऩय उसके भरए होिे हैं, क्जसभें िह
जिमॊ नहीॊ होिा। याष्र औय रोकिॊत्र एक ऐसा इॊिजार फन गमा है , क्जसे याभिास औय
हरयचयन ढोने के भरए श्रावऩि हैं। यघगिीय सहाम की कवििाएॉ बायिीम औयिों की क्जॊिगी के
बी नजिीक रे जािी हैं। इनकी औयि ‘गीिा’ औय ‘सीिा’ की रक्ष्भण ये खा को िोडना चाहिी
है –

ऩदढए गीिा
फननमे सीिा
कपय इन सफभें रगा ऩरीिा
ककसी भख
ू ु की हो ऩरयणीिा
ननज घय-फाय फसाइमे। (ऩदढए गीिा)
िह फडी होगी
डयी औय िफ
ग री यहे गी
औय भैं न होउॉ गा
िे ककिाफें औय उम्भीिें न होंगी
(फडी हो यही है रडकी)
सभकारीन ऩरयप्रेक्ष्म भें जफ याजनीनि भनगष्म द्िाया अक्जुि की गई बाषा का
भनभना प्रमोग कय यही है । उस सभम यघगिीय सहाम जनबाषा की गरयभा को कामभ यखने के
भरए सॊघषु कयिे हैं। यघि
ग ीय सहाम की बाषा विषम के अनरू
ग ऩ होिी है । मानी कक िह जहाॉ से
विषमिजिग का चमन कयिे हैं, उसकी बाषा का बी चमन िहीॊ से कयिे हैं। इसभरए कगछ रोगों
को उनकी बाषा ‘खफय की बाषा’ रगिी है , जफकक मह फिरिे सभम की िाजिविकिाओॊ को
सभग्रिा से फमान कयनेिारी बाषा है । इनकी याजनीनिक चेिना से मत
ग ि कवििाओॊ का
भशकऩ रोक के विरूद्ध अभबजात्मऩन की धायणा को िोडिा है । इनकी कवििाओॊ के प्रिीक,
बफॊफ, भभथक जथानीम ऩरयिेश से आिे हैं। मे ऩाठक के चायों ियप के जगि को भूिु कय िे िा
है । साथ ही मह सयरिा से साधायणीकृि हो जािा है , ऩयन्िग इसकी सयरिा सिही नहीॊ है ।
इसकी सयरिा भें सॊक्श्रष्टिा है । इनकी कवििाओॊ भें ककजसागोई औय सॊिािधभभुिा एक
प्रकाय से भशकऩ के रूऩ भें इजिेभार हगई हैं। मे ऩाठकों भें उत्सगकिा फनामे यखिी है औय फाॉधे
यखिी है । यघगिीय सहाम व्मॊग्मधभी भशकऩ से सभकारीन सत्िा-शोषक सॊफॊधों को उसकी
ऩयू ी ऐनिहाभसकिा भें व्मति कय िे िे हैं।

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