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Kavi Parichaya - Dr. Abhishek Raushan
Kavi Parichaya - Dr. Abhishek Raushan
ह द
िं ी – वैक्लऱपक
एडव िंस ह द
िं ी
पद्य स ह त्य
1. कबीर :-
कफीय बक्तिकार के ननगगुणधाया के ऻानाश्रमी शाखा के कवि हैं। क्जन कविमों ने प्रेभ की
अऩेऺा ऻान ऩय अधधक फर दिमा है , उन्हें ऻानाश्रमी शाखा का कवि कहा जािा है । इनका
जन्भ 1397 ई. भें भाना जािा है । रोक भें प्रचभरि है कक कफीय विधिा ब्रह्भणी से ऩैिा हगए
थे, क्जन्हें फिनाभी के डय से काशी के रहयिाया िार के ऩास पेंक दिमा गमा था, क्जनकी
ऩयिरयश अरी मा नीरू नाभक जगराहा ने ककमा। कफीय के काव्म भें जानि-ऩाॊनि का वियोध है
–
“ऩाहन ऩज
ू ै हयी भभरै, िो भैं ऩज
ू ॉ ू ऩहाय।
िािे िो चतकी बरी, ऩीभस खाम सॊसाय।”
इसी ियह िे भक्जजि ऩय बी सिार उठािे हैं –
2. र ीम :-
यहीभ का ऩूया नाभ अब्ियग ु हीभ खानखाना है । इनका जन्भ 1553 ई. भें हगआ। यहीभ
सगगणधाया के कृष्णबति कवि हैं। यहीभ सम्राट अकफय के प्रभसद्ध सेनाऩनि फैयभ खाॉ के ऩत्र
ग
थे। यहीभ जिमॊ मोद्धा थे। साथ ही इनका रृिम बक्ति भें रीन यहिा था औय जग भें मह
करूणा, उिायिा औय िानशीरिा के भरए प्रभसद्ध थे। जादहय है कक यहीभ धन-सॊऩिा के
फननजफि व्मक्ति को भहत्ि थे –
3. बब री : -
बफहायी का जन्भ 1606 ई. के रगबग भाना जािा है । बफहायी यीनिकार के यीनिभसद्ध कवि हैं।
बफहायी के िोहे सिुसाधायण भें प्रचभरि हैं। बफहायी उन चॊि कविमों भें हैं, क्जन्होंने कभ
भरखकय सिाुधधक मश प्राप्ि ककमा है । इनकी एकभात्र यचना ‘बफहायी सिसई’ है , क्जसभें
रगबग 719 िोहे हैं। इनभें अधधकाॊश िोहे भाभभुक औय प्रबािी हैं। बफहायी सिसई के फाये भें
कहा जािा है कक –
श्रॊग
ृ ाय के साथ-साथ बफहायी के काव्म भें प्रकृनि धचत्रण, कभोफेश बक्ति-बािना, ज्मोनिष,
गखणि, िैध, विऻान आदि का बी जगह-जगह िणुन है । इनकी बाषा सादहक्त्मक ब्रजबाषा
है , जो उस सभम उत्िय बायि के सादहत्म की भगख्म बाषा औय फोरचार की बाषा होने के
साथ-साथ कहीॊ-कहीीँ अन्म जगहों भें फोरी-सभझी जािी थी।
4. म खनऱ ऱ चतुवेदी :-
भाखनरार चिगिेिी का जन्भ 1888 औय भत्ृ मग 1968 भें हगई थी। याष्र के प्रनि इनके प्रेभ के
कायण इन्हें ‘एक बायिीम आत्भा’ बी कहा जािा है । चिगिेिी जी कवि, रेखक, ऩत्रकाय औय
सकिम याष्रीम कामुकिाु िीनों एक एक साथ थे। इनकी कवििाएॉ याष्रीम बािनाएॉ , त्माग से
ओि प्रोि हैं। इनकी ‘ऩगष्ऩ की अभबराषा’ नाभक कवििा कापी प्रभसद्ध है –
5. न ग र्ुन : -
नागाजगुन का घये रू नाभ िैद्मनाथ भभश्र है । फौद्ध धभु भें िीऺा रेकय िैद्मनाथ भभश्र
नागाजगुन फन गए। इन्होंने ‘मात्री’ उऩनाभ से भैधथरी भें बी कवििाएॉ भरखी हैं। मात्री उऩनाभ
इनके जिबाि के अनगरूऩ थे। मे घगभतकड प्रिक्ृ त्ि के थे। इन्होंने भहाविद्मारमों,
विश्िविद्मारमों भें कोई औऩचारयक भशऺा अक्जुि नहीॊ की, ऩयॊ िग घभ
ू -घभ
ू कय इन्होंने
जीिन-जगि को सभझा औय सॊजकृि, ऩारी, अऩभ्रॊश, निब्फिी, भयाठी, गगजयािी, फॊगारी,
भसॊधी आदि बाषाओॊ का ऻान प्राप्ि ककमा। नागाजगन
ु प्रगनिशीर चेिना के कवि हैं औय
भातसुिािी िशुन से प्रबाविि हैं। इन्होंने याजनीनि भें सीधे बागीिायी की। इसभरए इनकी
फहगि सायी कवििाएॉ याजनीनिक घटनाओॊ औय कृत्मों ऩय आधारयि हैं। इन कवििाओॊ भें
जिि: व्मॊग्म विधान हो जािा है –
मगगधाया, सियॊ गे ऩॊखों िारी, प्मासी ऩथयाई आॉखें, िाराफ की भछभरमाॉ, िगभने कहा था,
खखचडी विप्रि िे खा हभने औय हजाय-हजाय फाॉहों िारी इनके काव्म-सॊग्रह हैं।
6. रघुवीर स य : -
यघगिीय सहाम का जन्भ 9 दिसॊफय 1929 औय भत्ृ मग 30 दिसॊफय 1990 को हगई। यघगिीय सहाम
कवि, कहानीकाय, सभीऺक, ऩत्रकाय, जिम्बकाय औय अनि
ग ािक थे। यघि
ग ीय सहाम को
‘खफयों का कवि’ कहा जािा है । कायण कक इनकी कवििा खफयों के ऩीछे की खफय फमान
कयिी है । उन्हें 1982 ई. भें उनकी ऩगजिक ‘रोग बूर गमे हैं’ के भरए सादहत्म अकािभी
ऩगयजकाय दिमा गमा।
यघगिीय सहाम का व्मक्तित्ि फहगऩऺीम है । इसभरए उन्होंने सभाज को उसके ऩूये करेिय भें
िे खा। िे कवि औय ऩत्रकाय एक साथ थे। इसभरए उनका साया सादहत्म औय ऩत्रकारयिा एक
प्रकाय का याजनीनिक रेखन है । इसभरए उनकी सॊऩूणु यचनाओॊ भें िटजथिा नहीॊ ऩऺधयिा
है । उनकी विषमिजिग याजनीनि औय सभाज के उस हरके से होिी है , जहाॉ भििािा दिनों-
दिन रोकिॊत्र भें भजाक फनिा जा यहा है । इसभरए इनकी यचनाओॊ भें सभकारीन आिभी की
ऩयू ी िनग नमा िे खी जा सकिी है । मानी कक इसभें व्मक्ति औय सभाज की क्जॊिगी की भक्ग श्करें
िजु हैं िो भानि भन की सहज प्रिक्ृ त्िमाॉ जैसे प्रेभ, हाजम, व्मॊग्म औय करुणा आदि की
अभबव्मक्ति बी है । भनगष्म की आदि औय अॊनिभ जथरी प्रकृनि को बी उन्होंने गहयी
ऐॊदिकिा के साथ धचबत्रि ककमा है । इस ियह िे ननयारा के फाि कवििा की िनग नमा भें नए-नए
विषमों की िराश कयनेिारे फडे कवि हैं। इस ियह यघगिीय सहाम की कवििा एकाॊि की जगह
ऩाठकों को गरी-भगहकरे, चौक-चौयाहे योड-नगतकड भें रे जािी है । सिारों से घेय िे िी हैं। मह
सकग ू न िे ने के फजाए फजाम फेचैन कय िे िी हैं। इनकी प्रभसद्ध कवििाओॊ भें एक – आऩकी हॉ सी
–
ऩदढए गीिा
फननमे सीिा
कपय इन सफभें रगा ऩरीिा
ककसी भख
ू ु की हो ऩरयणीिा
ननज घय-फाय फसाइमे। (ऩदढए गीिा)
िह फडी होगी
डयी औय िफ
ग री यहे गी
औय भैं न होउॉ गा
िे ककिाफें औय उम्भीिें न होंगी
(फडी हो यही है रडकी)
सभकारीन ऩरयप्रेक्ष्म भें जफ याजनीनि भनगष्म द्िाया अक्जुि की गई बाषा का
भनभना प्रमोग कय यही है । उस सभम यघगिीय सहाम जनबाषा की गरयभा को कामभ यखने के
भरए सॊघषु कयिे हैं। यघि
ग ीय सहाम की बाषा विषम के अनरू
ग ऩ होिी है । मानी कक िह जहाॉ से
विषमिजिग का चमन कयिे हैं, उसकी बाषा का बी चमन िहीॊ से कयिे हैं। इसभरए कगछ रोगों
को उनकी बाषा ‘खफय की बाषा’ रगिी है , जफकक मह फिरिे सभम की िाजिविकिाओॊ को
सभग्रिा से फमान कयनेिारी बाषा है । इनकी याजनीनिक चेिना से मत
ग ि कवििाओॊ का
भशकऩ रोक के विरूद्ध अभबजात्मऩन की धायणा को िोडिा है । इनकी कवििाओॊ के प्रिीक,
बफॊफ, भभथक जथानीम ऩरयिेश से आिे हैं। मे ऩाठक के चायों ियप के जगि को भूिु कय िे िा
है । साथ ही मह सयरिा से साधायणीकृि हो जािा है , ऩयन्िग इसकी सयरिा सिही नहीॊ है ।
इसकी सयरिा भें सॊक्श्रष्टिा है । इनकी कवििाओॊ भें ककजसागोई औय सॊिािधभभुिा एक
प्रकाय से भशकऩ के रूऩ भें इजिेभार हगई हैं। मे ऩाठकों भें उत्सगकिा फनामे यखिी है औय फाॉधे
यखिी है । यघगिीय सहाम व्मॊग्मधभी भशकऩ से सभकारीन सत्िा-शोषक सॊफॊधों को उसकी
ऩयू ी ऐनिहाभसकिा भें व्मति कय िे िे हैं।