दे खते ए क ल-काल म 'म ोपदे श' ही सुलभ है । ' व सार-त ' का वचन भी है क- 'महा-द ा तथा द ा उपदे श ततः परम् । युगे युगे तु कत ा, उपवेशः कलौ युगे ।।' स महा मा ारा क टत सरल 'म ोपदे श- व ध' इस कार है- जस दन 'द ा' का मु त हो, उस दन सव थम वेद ा ण से व त- पाठ करावे। उसके बाद द ाथ आचमन कर ाणायाम करे । तदन तर आचाय 'सुमुख ैक-द त ' आ द म से म ल पाठ करे । तब द ाथ हाथ म जल लेकर 'सङ् क प' करे 'सङ् क प' वा य के अ त म - 'धमाथ- काम-मो - आ द शङ् कर वै दक व ा सं ान रभाष: 90440166661 स यथ अनुक-गो ोऽमुक-शमाहं अमुक-दे वता-म ा यथ अमुक-गो ममुक शमाणं वां गु वेन वृणे - यह वा य जोड़कर 'सङ् क प' के ारा 'गु ' का वरण करे ! इसके बाद गु 'सवतोभ -म डल' पर स लल - पूण 'घट' ा पत करे । पुपा द से उसका यथा- व ध पूजन कर, दो व से उसे लपेट कर उसम - १ पनस, २ आ , ३ अ , ४ वट, ५ वकु ल आ द प चप लव और मु ा, मा ण या द नव-र न छोड़कर, न याचन- म से जस दे वता का म दे नाहो, उसका स व ध पूजन करे । तदनतर दे वता के मूल म से 'घट' को १०८ बार अ भम त करे । इसके बाद श य को पूजा- ान म पूव क ओर मुँह करके आसन पर बठाने और दे वता के मूल-म ारा ' ो णी-पा ' तथा 'कु ' के जल से १०८ बार आ द शङ् कर वै दक व ा सं ान रभाष: 90440166661 प लव से उसका अ भषेक करे । फर गु अपने और श य के शर पर कपड़ा डाल कर, उसके दा हने कान म दे वता के मूल म का तीन बार उपदे श करे । अ त म यह वा य कहे- 'अयं म ः स तः भवतु मम वावयोः' । यद यह सब स व न हो, तो के वल 'शङ् ख - पा ' क व ध - पूवक ापना करे। उसे दे वता के मूल- म से आठ बार अ भम त कर, उस जल से दे वता के मूल म ारा श य का माजन करे । इसके बाद श य के शर पर गु अपना हाथ रखकर पूव वत् 'म ' का उपदे श करे । वह य द साधक वीर भाव का हो तो 'वीर'-साधक के म ोपदे श म वशेष यह है क उसे पहले पा दया जाता है, तब 'म ' का उपदे श होता है । 'गु ' श य के हाथ म पा दे कर, यह म पढ़ता है- गु - इदं प व ममृतं, पीयतां भव भेषजम् | आ द शङ् कर वै दक व ा सं ान रभाष: 90440166661 पशु पाश समु े द - कारणं भैरवो दतम् ॥ श य न न म पढ़ कर अमृत का पान करता है- श य- धमाधम - ह वद तमा मा नौ मनसा लवा | सुषु ना व मना न यम वृ जुहो यहम् ||
यद यह सब भी स व न हो तो, 'च ' या 'सूय' -
हण म अथवा कसी तीथ या कसी स े म या शवालय म गु से म का उपदे श हण करे ।