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406 Notes
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स्त्री मुक्ति आंदोलन का प्रारं भ पश्चिमी से माना जाता है । सदियों से पूरे विश्व
में स्त्रियों पर जो शोषण होता रहा है उसी के खिलाफ़ यह आंदोलन अलग-अलग
जगहों पर अपनी-अपनी समस्याओं को लेकर होता आया है । उसका इतिहास भी
उतना ही परु ाना है । स्त्री के अधिकारों के प्रति जागति
ृ और चेतना का भाव
सर्वप्रथम पश्चिम में दिखाई दे ता है । इस बिंद ु के अंतर्गत हम स्त्री मक्ति
ु
आंदोलन को दो भागों में दे खेंगे।। पहला पश्चिमी दे शों में हुए स्त्रियों द्वारा
आंदोलन और संघर्ष और दस
ू रा भारत में ऐतिहासिक रूप में स्त्री मुक्ति के लिए
हुए संघर्ष और आंदोलन।
न्यय
ू ार्क की सड़कों पर 8 मार्च सन ् 1857 में कपड़ा मिलों में काम करने वाली
स्त्रियों ने अधिक वेतन और काम करने के घंटे को कम करने के लिए मांग की
और प्रदर्शन भी किया जिसे उस दौर के ट्रे ड यनि
ू यनों के व्यक्तियों ने पसंद
नहीं किया । यह आंदोलन पुलिस द्वारा कुचल दिया गया परिणामस्वरूप
प्रदर्शन और मांग असफल रहा किंतु यह इतिहास में दर्ज हो गया और आज भी
8 मार्च का दिन अंतरराष्ट्रीय महिला संघर्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है ।
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात पश्चिमी दे शों में आंदोलनों ने बहुत ज़ोर पकड़ा।
सन ् 1945 में पेरिस में विमिन इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक फ़ेडरे शन की स्थापना की
गई थी। सभी दे शों की इस स्त्रियों द्वारा आंदोलन को विश्वस्तर पर संगठित
रूप में चलाने का निश्चय किया गया। सन ् 1946 से 1966 तक बीस वर्षों के
मध्य महिला अधिकारों की लड़ाई के साथ निर स्त्रीकरण और शांति के पक्ष में
जोरदार आवाज उठाई जाने लगी। इस लड़ाई को बल दे ने के लिए अनेक महिला
संगठन सामने आए। इसी दौर में कुछ स्त्रीवादी महिलाएं, परिवार, विवाह, एक
तरफा प्रेम, आदि को स्त्री उत्पीड़न की मूल जड़ मानकर उनका विरोध करने
लगी।
स्त्री मक्ति
ु आंदोलन के दौर में ऐलेन सोबोलटा जैसी स्त्रीवादी लेखिका ने अपनी
किताब “ए लिटरे चर ऑफ दे अर ऑन” (A Literature of their Own) में यह भी
स्पष्ट किया कि स्त्री दमन के मुख्य कारण पितस
ृ त्ता नहीं बल्कि पँज
ू ीवाद है ।
इसके बाद स्त्री मुक्ति के लिए पज
ूं ी को आवश्यक माना गया और यह भी
विचार किया गया कि आर्थिक रूप आत्मनिर्भर स्त्री ही परु
ु ष की बराबरी कर
सकती है । इसके बाद अनेक संगठनों का गठन हुआ। स्त्री को पुरुष के समान
दर्जा दिए जाने की मांग की जाने लगी। इसके परिणाम स्वरूप स्त्री मुक्ति
आंदोलन के उद्देश्य सामने आये । जैसे:
*स्त्रियों ने जागति
ृ लाना
*सभी क्षेत्रों में पुरुषों के जैसा समान अधिकार की मांग
*गर्भपात से संबधि
ं त अनक
ु ू ल कानन
ू
*बच्चों के लिए झूलाघर आदि योजना जहाँ बच्चों को रखा जा सके और माताएं
काम पर जा सकें
*स्त्रियों को दे खने का दृष्टिकोण सामाजिक रूप से बदला जाए
पंडिता रमाबाई ने भारत की स्त्रियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने हे तु प्रयास
किए हैं। रमाबाई ने पहले महिला आर्य समाज का गठन महाराष्ट्र में 1882 में
किया था। स्वामी विवेकानंद जी की एक शिष्या थी सिस्टर निवेदिता। सिस्टर
निवेदिता 1895 में लंदन में स्वामी जी से मुलाकात के बाद 1898 में कलकत्ता
चली गई थी। उन्होंने रामकृष्ण परमहं स और विवेकानंद के साथ मिलकर नव
स्थापित रामकृष्णा मिशन में अपना सहयोग दिया। उन्होंने विधवाओं तथा
ज़्यादा उम्र की महिलाओं के लिए नियमित पाठ्यक्रमों, नर्सिंग, सिलाई, सेवा,शिक्षा
इत्यादि की व्यवस्था भी की।
सन ् 1906 में मद्रास में तमिल महिला संगठन अस्तित्व में आए। सन ् 1908 में
गज
ु राती स्त्री मण्डल, 1909 में बंग महिला समाज, सन ् 1917 में स्त्रियों का
भारतीय संघ,1925 में महिलाओं का राष्ट्रीय परिषद और सन 1927 में सरला दे वी
चौधरानी, मुथुलक्ष्मी रे ड्डी, सुशीला नायर, अरुणा आसफ अली, विजय लक्ष्मी
पंडित, स्वर्णकुमारी घोषाल, महिला उपन्यासकार कादं गरी गांगुली, सरोजनी नायडू,
इत्यादि संगठनों एवं स्त्रियों ने अपना योगदान दे कर भारतीय समाज में
सांस्कृतिक जागरण लाने में अपनी महत्वपर्ण
ू भमि
ू का निभाई।
स्वाधीनता आंदोलन जिन दिनों तेजी पर था उन्हीं दिनों बाबा साहे ब आम्बेडकर
का स्त्री मुक्ति के संदर्भ में विशेष योगदान रहा। उन्होंने दलित और स्त्री वर्ग
के उद्धार के लिए ही नहीं बल्कि पूरे दे श के उत्थान और उन्नति के लिए सार्थक
कार्य किए। उन्होंने स्त्री मक्ति
ु के सन्दर्भ में अनेक भाषण दिए। 28 जल
ु ाई
1928 को मुंबई विधान परिषद में डॉक्टर अम्बेडकर ने मील, फैक्टरी, तथा अन्य
संस्थाओं में मजदरू महिलाओं को प्रसूति अवकाश की सुविधा उपलब्ध कराने के
लिये अधिनियम पास करवाने के प्रयास किए।
सन ् 1928 में डॉक्टर अंबेडकर ने माँग की कि 21 वर्ष के ऊपर के सभी भारतीय
स्त्री और पुरुष को मतदान का अधिकार मिलना चाहिए। उनके सामाजिक संघर्षों
और आंदोलनों से महिलाओं में भी जागति
ृ आती गई और वे जागत
ृ महिलाएं
विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भी रहीं हैं।
सन 1942 में डॉक्टर अंबेडकर को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में श्रम सदस्य
के रूप में नियुक्त किया गया था । उन्होंने उस पद का कार्य करते हुए पहली
बार महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश की व्यवस्था की। उन्होंने संविधान प्रारूप
समिति के अनुच्छे द चौदह में ऐसा प्रावधान रखा कि लिंक के आधार पर
महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा। आज़ादी के
बाद बनी केंद्रीय सरकार में डॉ आम्बेडकर जब कानून मंत्री के रूप में कार्य कर
रहे थे, तब उन्होंने “हिन्द ू कोड बिल” संसद में पेश किया लेकिन यह हिंद ू कोड
बिल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने पास नहीं किया। यह
हिंद ू कोड बिल अगर पास हो जाता तो समाज में शोषित-प्रताड़ित होने वाली
स्त्रियां कानन
ू के आधार पर अन्याय-अत्याचारों से पीछा छुड़ा सकती थी। पति
द्वारा होने वाले शोषण से मुक्ति पाकर किसी दस
ू रे व्यक्ति से विवाह भी कर
सकती थी।
बाबा साहे ब आम्बेडकर ने जनवरी 1928 में मुंबई में महिला मंडल की स्थापना
भी की थी। डॉक्टर आम्बेडकर की पत्नी रमाबाई आम्बेडकर उसकी अध्यक्षा थी।
सन ् 1920 में नागपुर में डिप्रेस्ड क्लासेस (depressed classes) सम्मेलन के समय
महिलाओं की ओर से उन्होंने एक अलग सम्मेलन भी कराया था जिसमें सैकड़ों
महिलाएं आई थीं।
उधर गाँधीजी ने सती प्रथा, बाल विवाह, दहे ज प्रथा, छुआछूत और हिंद ू विधवाओं
के उत्पीड़न का विरोध किया। वे सदै व महिला मुक्ति और महिला विकास के
कार्यों में अग्रसर रहें ।
भारतीय महिलाओं की राजनीतिक जागरूकता और सहभागिता का श्रेय गाँधी जी
द्वारा शुरू किए आंदोलनों को जाता है । सन ् 1920 में सविनय अवज्ञा आंदोलन
के बाद उभरे संघर्ष में महिलाओं के अनेक संगठनों का निर्माण हुआ था जिसमें
महत्वपूर्ण संगठन है -दे श सेविका संघ, महिला राष्ट्रीय संघ, स्वयं सेविका आदि।