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Chanakya in You
Chanakya in You
com
आप म
चाण य
एक आधुिनक िकंगमेकर क साहसपण
ू पहल क दा तान
Chanakya in You
राधाकृ णन िप लई
© राधाकृ णन िप लई
CHANAKYA IN YOU
आप म चाण य
ISBN 978-81-8495-968-0
1. दादाजी क सलाह
2. भारत का इितहास
3. राज-िनमाता
4. अथ-शा
5. शतरं ज यानी C-H-E-S-S
6. मेरे अंदर नेत ृ व-कौशल का िवकास
7. पु तक ेम
8. चाण य पर िट पणी
9. गु - सबसे बड़ा
10. दादाजी से िपताजी तक
11. एक िश क, एक छा
12. छ: माह के िलए िवदाई
13. अंतया ा
14. मेरे अथशा गु
15. िनयम
16. िव ा-आरं भ
17. आ म म वेश
18. अलग तरह के लेखाकार
19. भ यवसायी
20. अ ययन प ित
21. िविभ न मत – आपका मत
22. िचंतन – मानव समाज को एक उपहार
23. िचंतन के साथ कम भी
24. स मेलन
25. अंितम िदन
26. घर–आगमन
27. योितष-शा ने राह िदखायी
28. सं कृत के ोफेसर
बा सजारुनाईसेदेवापस हो रहे मेरे चचेरे भाई—बहन के उ ेजना से भरे शोर—गुल मुझे दूर से ही
ने लगा। वे सभी दादाजी के पास दौडे —दौड़े पु तकालय म आए। वहां पर उनके
आने के दो मकसद थे। एक तो वे यह जताना चाहते थे िक वे दादाजी से और भी कहािनयाँ
सुनना चाहते ह। दूसरा वे मुझे यह बताकर सताना चाहते थे िक बाजार न जाकर म बहत कुछ से
वंिचत रह गया। लेिकन वे नह जानते थे िक बाजार न जाकर दादाजी के साथ घर पर रहने से
मुझे लाभ ही लाभ िमला है। उ ह या मालम ू िक मने दादाजी के साथ िबताए उन खास ल ह को
अपने जीवनभर क पँज ू ी बना लँग ू ा।
एक बार िफर हमलोग दादाजी के पास अगली कहानी सुनने के िलए बैठ गए। मेरे चचेरे भाई
—बहन के िलए यह एक नई कहानी थी मगर मुझे यह समझना था िक कौिट य के अथशा
म या है।
असली बात बताने से पहले कहानी का ताना—बाना बुनने का दादाजी का ढं ग बहत ही
िदलच प था। वे इस अंदाज़ म य का बखान करते थे जैसे वे हमारी आँख के सामने घिटत हो
रहे ह और हम उसी समय म जी रहे ह । हमारी क पनाशीलता को उवरा बनाने क उनम अ ुत
मता थी।
उ ह ने कहना शु िकया, ‘‘भारत का इितहास अनठ ू ा है। यह बहत ही संप न एवं िव ततृ है।
भारत के इितहास म जहां एक ओर िकले, महल एवं मंिदर जैसे मारक का वणन है, वह दूसरी
ओर इसम राजे—महाराजे, साधु—संत सिहत िव ान से लेकर कला तक के िविभ न िवषय से
संबंिधत सािह य का उ लेख है। मगर इसका सबसे अहम प है अ या म।’’
ू ा, ‘‘दादाजी, यह अ या म या होता है?’’
मेरे एक चचेरे भाई ने पछ
‘‘तुमने अ छा िकया। अ या म ई र क खोज है, यह जीवन का अथ समझने का एक
यास है। यह सामा य से िविश बनने क या ा है, अपने अंदर क िवशाल संभावनाओं को
तलाशने का मा यम है। यह असंभव को संभव कर िदखाने क मता है। साथ ही अपने अहंकार
को न करने का नाम आ याि मकता है।’’
“उ
ह तीन नाम से जाना जाता था।’’ इनम से येक नाम के पीछे एक—एक कहानी है।
दादाजी ने इन कहािनय के बारे म िव तार से अ ययन िकया है।
‘‘िव णुगु , कौिट य और चाण य।’’
‘‘सबसे पहले उ ह िव णुगु नाम से जाना जाता था। यह उनका आिधका रक रे काड म
उि लिखत नाम था, जैसा िक हमारे ज म माण—प म अंिकत होता है। उनके दो त उ ह
िव णु नाम से पुकारते थे।
बाद म उ ह कौिट य नाम से जाना गया। यह उनका सबसे अनठ ू ा नाम था। इितहास के ंथ
म एवं िव तसमाज म कौिट य नाम काफ िव यात है।’’
उस समय मने महसस ू िकया िक अथशा के साथ कौिट य नाम का उ लेख िकया जाता है
न िक िव णुगु अथवा चाण य। मगर वा तव म अथशा है या? मुझे यक न था िक इस
का समाधान आगे चलकर िमल जाएगा। उस समय म कौिट य नाम का अथ जानने का यास
कर रहा था।
‘‘इस संबंध म बहत—सी कहािनयां और संदभ उपल ध ह िक उ ह कौिट य नाम कैसे िदया
गया। भारत म गो था है। गो परं परा — ऋिष परं परा के आधार पर नाम रखे जाते ह। िव ान
लोग बताते ह िक उनका ज म कौिट य गो म हआ था। इसिलए उनका नाम कौिट य पड़ा।
एक दूसरी मा यता है िक उनके पवू ज कुिटला गाँव से आए थे। एक िवचार यह भी है िक भारत
म लोग के मल ू गाँव के नाम पर लोग के नाम रखे जाते ह। उनके मल ू गाँव का नाम कुिटला
रहने के कारण उनका नाम कौिट य रखा गया।’’
उसके बाद दादाजी ने तीसरा ि कोण रखा जो िक अिधक सश था।
‘‘सबसे िस मत यह है िक उ ह ने अपने श ुओ ं को छल से परा त करने के िलए कूटनीित
का योग िकया, इसिलए उनका नाम कौिट य पड़ा।
तीसरा नाम चाण य जनसामा य के बीच अिधक लोकि य हआ। उनके िपता का नाम चणक
दा दाजी ने कहा िक, ‘‘नेत ृ व कौशल बहत ही आकषक अवधारणा है। इसके बहत—से
आयाम ह। यह लोग को अ चतर ल य ा करने के िलए नेत ृ व करने; किठन
प रि थितय म सही िनणय लेने; असंभव को संभव कर िदखाने; समहू को े रत करने तथा
वाता को काय प देने क मता है। यह केवल खेल के िनयम को समझने तक नह है बि क
खेल म िवजय ा करना भी है। कुल िमलाकर, यह उस चीज को देखने क मता है िजसे दूसरे
देख नह पाते ह।’’
नेत ृ व के बारे म यही पहला िवचार था जो मेरे मन—मि त क म घर कर गया। मने
उ सुकतावश िकया, ‘‘कोई नेत ृ वकता कैसे बनता है?’’
मेरे उ साह से दादाजी म जोश जग गया। उ ह ने कहा : ‘‘बहत अ छा ! नेत ृ व मता
िवकिसत करने के िलए अनेक उपाय ह — नेत ृ व कौशल पर पु तक का अ ययन करके, दूसरे
नेत ृ वकताओं का साि न य ा करके, दूसरे नेत ृ वकताओं क जीवनी को पढ़कर तथा
नेत ृ वकताओं के बारे म िवचारकर। सं ेप म, नेत ृ वकता बनने के िलए नेत ृ वकता के समान
सोचना और काय करना पड़ता है।’’
उस ानी मानव ने आगे कहा, ‘‘नेत ृ व कौशल केवल पद— ित ा ा करने तक सीिमत
नह है बि क यह नैितक प से सही होना भी है।’’
‘‘नैितक प से सही का या मतलब है?’’
‘‘भारतीय ंथ के अनुसार नेत ृ वकता को सव थम धािमक होना चािहए। राजा के धािमक
होने के कारण ही आदश राजा को राजिष कहा जाता था यानी ऋिष के समान अथवा दाशिनक
राजा होते थे।’’
मने जानना चाहा िक, ‘‘नेत ृ वकता को धािमक य होना चािहए?’’
‘‘िकसी नेत ृ वकता के जीवन के सबसे बड़े संकट को धम संकट कहा जाता है। यह सही एवं
गलत के बीच फक को समझते हए िनणय लेना तथा उस िनणय पर अमल करना है।’’
ए कक बारपढ़ाईमेरकरनी
ी एक िशि का ने मुझसे कहा था, ‘‘िकसी िवषय को समझने के िलए तीन तरह
चािहए; इसे यं ू कहं िक उसे तीन बार पढ़ना चािहए लेिकन हर बार अलग—
अलग ि से।’’ उ ह ने आगे कहा, ‘‘पहली बार िकसी िकताब को तुम शोध प के िलए पढ़ते
हो। यह उससे होकर सीधे तौर पर, सरसरी िनगाह से गुजरने जैसा होना चािहए। पड़ताल करो
िक िकताब म तु हारी िदलच पी जग रही है अथवा नह । यिद तालमेल नह बैठ रहा है तो इसे
छोड़ दो।’’ समय बंधन क ि से यह एक अ छा िटप था य िक आज दुिनयाभर म लाख
िकताब कािशत हो रही ह।
‘‘यिद िकताब म आपक िदलच पी जग रही है तो इसे दूसरी बार पढ़। इस बार इसे
गंभीरतापवू क पढ़। कलम अथवा पिसल साथ म रख और िट पणी िलख। यिद कोई हो तो
उसका समाधान कर और उस पर िवशेष क राय ा कर।’’ उनक बात को सुनकर हैरानी
नह हई। िश ा के े म उनके योगदान के िलए उनका काफ स मान था।
‘‘तीसरे तरह के अ ययन को पुनरावलोकन अ ययन कहा जाता है। अपने सभी के
समाधान के बाद आप पु तक को पुन: पढ़ते ह। इस बार आप उस िवषय के िवशेष जैसे हो जाते
ह।’’ इस पर आगे उ ह ने कहा, ‘‘अब आप इस पु तक पर कह जाकर या यान भी दे सकते
ह।’’ मुझे यह िवचार अ छा लगा। िकसी पु तक के पाठक से आप उस पु तक पर िवशेष व ा
तक बन सकते ह।
एक िवचार, एक संभावना मेरे मन म घर करने लगी। चाण य के जीवन म िच तो
बा यकाल से थी। इसका ेय दादाजी को जाता है।
बा यकाल से लेकर तब तक मने चाण य पर बहत—सी पु तक जमा कर ली थ । मने इनम
से कुछ पु तक गली—मोह ले के िव े ताओं से खरीदी थ , कुछ बड़े पु तक—क से तथा
कुछ िविभ न नगर —शहर के मण के दौरान। मुझे यह जानकर काफ आ य हआ िक कई
पीिढ़य के अनेक लोग ने चाण य पर िलखा है।
चाण य के जीवन और िश ा पर भी िविभ न भाषाओं म बहत—सी पु तक उपल ध थ । कुछ
व
ह साधु एक ानी पु ष थे। उनका बहत कुछ मेरे दादा जी से िमलता था जो गहन िवचार
को सरल श द म य करते थे। अथवा ऐसा तो नह िक येक ानी यि और अ छी
तरह से कहानी कहने वाल म म अपने दादा जी को ही ढूँढ़ता था?
थोड़ा समझदार होने पर मुझे यह बात समझ म आयी िक कुछ लोग कभी भी नह मरते ह।
हालांिक भौितक शरीर खाक म िमल जाता है लेिकन यि के िवचार और आदश सदैव जीिवत
रहते ह।
समझदार .... इस श द पर म कुछ देर के िलए अटक गया मगर इस श द के मा यम से म
दादा जी के कालखंड म पहँच गया। उ ह ने मुझे इसका अथ समझाया था।
‘‘दादा जी, या म बड़े होने पर समझदार हो जाऊँगा?’’
‘‘जब यि समझदार होता है तभी वह बड़ा होता है।’’
यह सच है िक उ के िलहाज से म बड़ा हो गया मगर जहाँ तक समझदारी का सवाल है
उसके िलए अभी ल बा सफर तय करना है।
वतमान संग क ओर मेरा यान आकिषत करते हए साधु ने कहा, ‘‘भारतीय सं कृित एवं
परं परा को समझने के िलए दो बात क जानकारी आव यक है।’’
‘‘ थम, गु —िश य परं परा।’’ ऐसा लग रहा था िक इस बात को प करने के िलए वे एक
दूसरी दुिनया म खो गए थे। ‘‘गु महज एक िश क ही नह होते जैसा िक हम आज के कूल
—कॉलेज म पाते ह। गु िकसी िवषय को क ा म पढ़ाने वाले िश क ही नह होते ह। वे पेशेवर
यो यता रखकर या यान देने वाले िश क ही नह होते। िन संदेह, गु िवषय का भी ान देते
ह लेिकन वे अपने िश य को सद् मागदशन से ई र का भी सा ा कार करा देते ह।
गु िव ान, गिणत, लेखा अथवा भाषाओं का ान भी दे सकते ह मगर वे िवषय के मा यम
से िश य को जीवन का बोध कराते ह।
ऐसा नह है अपने छा का क ा म थम आने पर ही गु को स नता होती है बि क जब
िज जीवन
स प रवार म मेरा ज म हआ था वह बहत ही गितशील िचंतन का था। बचपन से ही म
के िविभ न े से जुड़े लोग को अपने घर आते हए देखता था।
हमारे घर म ल बी प रचचाओं का चलते रहना एक आम य था। राजनीित से लेकर िव ान
म अ तन गितिविध तक, कला—संगीत से लेकर यवसाय म चल रहे ड तक िविभ न कार
के िवषय पर चचाएं होती रहती थ ।
मेरे दोन — माता एवं िपता काफ पढ़े —िलखे थे और उ ह वैि क मामल क अ छी समझ
थी। मगर सबसे जो बड़ी बात थी, वह थी घर के कण—कण म वािहत होने वाली आ याि मक
सं कृित।
म यह नह कह रहा हँ िक मेरा प रवार धािमक प रवार था बि क सही मायने म यह एक
आ याि मक प रवार था।
िन संदेह, हमलोग सभी भारतीय पव— योहार मनाते थे। साथ ही घर म दैिनक पजू ा—पाठ
भी हआ करता था। इसके साथ ही, घर पर आ याि मक पु ष का भी आगमन होता रहता था
और वे लोग दाशिनक चचाएं िकया करते थे। ये लोग िकसी न िकसी आ याि मक संगठन से जुड़े
रहते थे अथवा िकसी अलग धम के अनुयायी होते थे या अपनी वतं मता से घर पर आया
करते थे। प रचचा िसफ रामायण और महाभारत तक ही सीिमत नह रहती थी बि क इसम
बाइबल, कुअरान, गु ंथ सािहब और आगम पर िवचार—िवमश िकया जाता था। एक खुला
सां कृितक माहौल था िजसम लोग नए दाशिनक आयाम को उजागर करने के िलए त पर रहते
थे।
दादा जी कहा करते थे िक, ‘‘प रचचा तक—िवतक जैसी नह होती है। तक—िवतक के
दौरान लोग खुद को सही सािबत करने म लगे रहते ह जबिक प रचचा म स य को जानने का
यास करते ह।’’
हम स य को जानने के िलए प रचचा एवं िवमश िकया करते थे। कई बार हम एक—दूसरे के
िवचार से सहमत नह होते थे लेिकन एक—दूसरे का स मान अव य करते थे। िजस तरह से
य
ह मेरे जीवन म एक अि तीय समय था अथवा इसे जीवन म एक बहत बड़ा मोड़ कह सकते
ह। मेरे कॉलेज परी ा म दो माह का समय ही बचा हआ था। यह कॉलेज म मेरा अंितम साल
था। इसके बाद म ेजुएट हो जाता।
भारत म ेजुएट होना एक बड़ी बात है अथवा कोई इसे एक सामा य बात भी कह सकता है।
इसे ऐसा मान िलया जाता है िक आपक औपचा रक िश ा परू ी हो गई और अब आपको नौकरी
क तलाश करनी है तथा पैसे कमाने ह।
मेरे कॉलेज म कुछ छा पाट टाइम जॉब भी करते थे और थोड़ा—बहत कमा भी लेते थे। कुछ
अपे ाकृत िनधन छा को अपने माता—िपता क ज रत को परू ा करने के िलए कुछ अिधक
पैसे क आव यकता रहती थी। कुछ छा संप न होने के बावजदू अ य कंपिनय म नौकरी
करने लगे थे अथवा प रवार के यवसाय म हाथ बँटाने लगे थे। ऐसा इसिलए था िक हर कोई
सोचता था िक िश ा ा करने के बाद उसे अंत म कमाना ही तो है।
हमारे समाज म एक अजीब सम या है। हम िजस िकसी से िमलते ह वह एक ही करता है,
‘‘आप या करते ह?’’ इसका मतलब साफ होता है िक आपक जीिवका का साधन या है?
इसम इस जवाब क अपे ा होती है िक आपके आय का साधन या है : ‘‘म इस कंपनी म काम
करता हँ’’, ‘‘म एक डॉ टर हँ’’, ‘‘म यवसाय करता हँ’’।
बाद म मुझे अपने जीवन म मालम ू हआ िक यरू ोप जैसे िविभ न सं कृितय वाले थान म इस
के जवाब कुछ इस तरह से होते ह: ‘‘म फुटबॉल खेलता हँ’’, ‘‘म पटर हँ”, ‘‘म लेखक हँ’’।
उनके िलए इस तरह के पछ
ू ने का मतलब होता है िक जीवन म आपक अिभ िच या
है? आपक हॉबी या है? आपको अपने जीवन म िकस काम म आनंद आता है? आपका पेशा
आपक अिभ िच के अनु प बन जाता है। भारत म आपका पेशा पहले और िजस काम म आपका
मन लगता है वह बाद म — चाहे वह हॉबी हो अथवा स ाहांत गितिविध।
ऐसी ि थित उ प न होने के पीछे बहत से कारण ह। िवदेशी शासन से वतं ता िमलने के
बाद हमारे देश म धीरे —धीरे आिथक गित हो रही है। साथ ही यहां पर लोग को न िसफ अपना
ए
क कहावत है: अ ात का भय बना रहता है। म दपण के सामने खड़ा होकर वयं को
िनहारा करता था। म अपने भिव य से बेखबर था, यह मेरे िलए अ ात था। िफर भी म अंदर
से बहत खुश था। बहत ही उ सुकता थी।
दपण म जो श स था उसने मुझसे कहा, ‘‘तुम िकसी वा या ा पर नह िनकल रहे हो
बि क तुम अंतया ा पर जा रहे हो। यह अ ात से ात क ओर एक या ा है। यह अथशा
िसखने के िलए नह है बि क यह अथशा के अनु प जीने क या ा है।’’
और वही आवाज अिधक जोर देकर य होने लगी: ‘‘तुम चाण य के ान क खोज म नह
िनकल रहे हो बि क वयं म चाण य क खोज के िलए िनकल रहे हो।’’
म सपने से तब जगा जब मेरी माँ ने मुझसे कहा: ‘‘चलो तैयार हो जाओ। जाने का समय हो
गया। तुमने खाने का पैकेट रख िलया है ना? उसे मत भल ू ना।’’
पहली बार म इतने अिधक समय के िलए घर से बाहर िनकल रहा था। अनेक बार म दो त के
साथ िपकिनक और घम ू ने—िफरने के िलए कुछ िदन तक बाहर गया था मगर इस बार म
अकेले जा रहा था और वह भी सीधे छ: माह के िलए।
मेरे दो त यह नह समझ सके िक म जीवन म या करने जा रहा हँ। उ ह ने सोचा िक म
िकसी ऐसे—वैसे गाँव म िकसी िविच सं कृत ंथ का अ ययन करने जा रहा हँ। ऐसा लग रहा
था िक अपने जीवन म जो कुछ करने जा रहे ह उसके ित वे आ त ह। ह ह ह ...।
मने उ ह समझाने का यास िकया, ‘‘म गु —िश य परं परा के अनु प एक गु के
मागदशन म कौिट य के अथशा के अ ययन के िलए आ म म िनवास करने जा रहा हँ।
हालांिक उ ह ने मेरे सामने कुछ नह कहा लेिकन मुझे पता है िक वे इस संबंध म आपस म
बात करते ह गे िक यह पागल हो गया है। मने अपने एक दो त को यह कहते हए सुना:
‘‘सं कृत एवं ई र संबंधी ान को सेवािनविृ त के बाद भी ा िकया जा सकता है। हमलोग
अभी नौजवान ह। इस समय हम अपने कॅ रयर पर यान देना चािहए।’’ मने िनणय िलया िक इस
समय कुछ न कहा जाए। समय हर का जवाब दे देगा।
गु केमािलएक तैसलाह के अनु प म थोड़ी देर िव ाम करने के बाद अपने पहले िदन के अ ययन
यार होना चाहता था। म नह जानता था िक या ा के कारण मुझे इतनी थकान हो
गई होगी िक जब उठूंगा तब तक सय ू ा त हो चुका होगा। जब मने िखड़क से बाहर झांका तो
अंधेरा हो चुका था। मुझे अपराध—बोध होने लगा।
म वयं को कोसने लगा : ‘‘ या तुम इसीिलए यहाँ आए हो? सोने के िलए? पहले िदन क ा
शु करने का िकतना अ छा तरीका है। तु हारे गु तु हारी ती ा कर रहे ह और तुम न द
ख चे जा रहे हो जैसे कल सोना ही नह है।
जहाँ गु जी बैठे हए थे उघर म भागे—भागे गया। उनके आसपास कुछ लोग बैठे हए थे। जब म
उनक ओर तेजी से बढ़ रहा था तभी उ ह ने मेरी ओर देखते हए ईशारा िकया।
‘‘यही वह लड़का है िजसके बारे म म बात कर रहा था। यह शहर से यहाँ अथशा का
अ ययन करने आया है।’’ उ ह ने गौरवपण ू अंदाज़ म आगंतुक को बताया।
उन लोग के साथ बातचीत के दौरान पता चला िक वे एक संगो ी का आयोजन करने वाले
थे िजसम गु जी व ा होने वाले थे।
‘‘म िनि तपवू क आऊंगा। आप अपनी तैयारी जारी रख और मेरे नाम के साथ आमं ण प
छपवा ल।’’ गु जी बात को सुनकर आयोजकगध अ यंत स न हए और वे संतु िदख रहे थे।
वे जो चाहते थे उ ह वो िमल गए — गु जी के समय एवं वीकृित।
आगे उ ह ने कहा, ‘‘कम से कम अगले छ: माह तक यहाँ से बाहर कह नह जाऊंगा। यह
बालक इतना प र म करके शहर से आया है। मुझे इसके साथ अ छा—खासा समय िबताना है।
साथ ही, म अभी—अभी िव िव ालय से सेवािनवतृ हआ हँ। मुझे थोड़ा व त वयं पर भी देना है।
चँिू क आपका थानीय काय म है, इसिलए मुझे कह या ा नह करनी है। म वहाँ आऊंगा।’’
मेरी ओर गौरवपण ू ि से देखते हए उ ह ने लोग से कहा, ‘‘सामा य प रपाटी यह है िक
लोग पढ़ने के िलए गाँव से शहर क ओर जाते ह तथा शहर के लोग िवदेश जाते ह। लेिकन
िकतनी बार आपने देखा है िक लोग शहर से पढ़ने के िलए गाँव आते ह?’’ अब मुझे अपने उस
म नेपहलयहथी।सुिनिगु
त िकया िक अगले िदन सय ू दय से पवू जग जाऊं। घर म पहले से ही चहल—
जी और गु मा पहले ही जग चुके थे। मुझे रसोई घर से आने वाली आवाज
सुनाई दे रही थी। मने नान िकया और तैयार होकर हॉल म धीरे से झांका और उनक िदनचया
को देखकर दंग रह गया।
गु जी पहले से मेरी ती ा कर रहे थे। उ ह ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘आओ, पहले हमलोग
पजू ा कर।’’ वे मुझे एक छोटे—से कमरे म ले गए जहां पर एक छोटा—सा मंिदर बना हआ था।
वहां पर िविभ न देवी—देवताओं के िच थािपत थे। दीपक जल रहा था। भगवान गणेश क
ितमा म य म थािपत थी।
‘‘भगवान गणेश ान के देवता ह। महाभारत के लेखक एवं वेद के संकलनकता वेद यास
के ंथ के आशुलेखन (तेजी से िलखने का काम) का काम इ ह ने ही िकया था।’’ गु जी ने
मुझे भगवान गणेश से संबंिधत दाशिनक प क जानकारी दी। ‘‘यिद हमारे पास ीगणेश का
यह अिभलेख नह होता तो हम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ान को पहंचाने म स म नह
होते।’’
उ ह ने मुझे एक आसन पर बैठाया और मं पढ़ते हए मेरे माथे पर ितलक लगाया। उसके बाद
उ ह ने वयं तुित क । उ ह ने अपने साथ मुझे भी ाथना करने के िलए कहा। उसके बाद
उ ह ने अथशा क मेरी ित लेकर भगवान के सामने रख दी। इस पर पु प अिपत करते हए
उ ह ने कहा, ‘‘अब भगवान गणेश के साथ—साथ ाम देवता, अ य देव , अपने पवू ज , अपने
माता—िपता और अ य शुभिचंतक का भी यान करो।’’
जैसे ही मने उनम से येक को यान करने के िलए अपनी आँख बंद क , वैसे ही गु जी ने
कहा, ‘‘अपने अ ययन को पण ू एका ता और िन ा से परू ा करने के िलए इन सबका आशीवाद
लो।’’
उसके बाद उ ह ने अपनी दराज से ा क माला िनकाली और उसे भगवान िशव क
ितमा के सामने रख िदया। उ ह ने कुछ मं का उ चारण िकया। उसके बाद ा माला को
य
ह आ म गु जी के घर से २० िमनट क दूरी पर ि थत था।
‘‘आज हम आ म तक पैदल जाना चािहए। तुम रा ते से प रिचत हो सकोगे। वहां जाने
के िलए बस सुिवधा भी उपल ध है िजससे तुम तेजी से आवागमन कर सकोगे। केवल बस
के आने—जाने का समय पता कर लो।’’, उ ह ने कहा।
जैसे ही हम पैदल जा रहे थे बहत से लोग क— ककर हम देख रहे थे। वे लोग गु जी को
नम कार कर रहे थे। मने गु जी के वचन को मरण िकया : ‘‘गाँव के सभी लोग एक—दूसरे
से प रिचत होते ह।’’ उनके बीच बातचीत से मुझे पता चला िक गु जी के साि न य म आकर
मेरे अ ययन करने क बात हर िकसी को मालम ू थी। िन संदेह मुझे लग रहा था िक म अपने घर
म सुरि त हँ।
आ म के अंदर वेश करते ही सुर ाकम ने गु जी को नम ते िकया। कुछ अ य कमचारी
भी वहां आकर गु जी को नम कार िकया। आ म कई एकड़ जमीन म फै ला हआ था। सबसे
पहले वे मुझे एक छोटे—से मंिदर के अंदर ले गए। ‘‘यह मंिदर यहां पर अनेक युग से है। हमलोग
बचपन म इसके िक से सुने थे। ऐसा कहा जाता है िक िज ह यहां पर आशीवाद िमल जाता है वह
अपने ान का सार संपण ू िव म करता है। अनेक वष तक यह मंिदर उपेि त रहा लेिकन
एक िदन इसक देवी एक धनी यवसायी के सपने म आयी। देवी ने उसे मंिदर के पुनिनमाण का
आदेश िदया।
इस कहानी म अब िदलच पी बढ़ गई। ‘‘जब वह यवसायी यहां आए तो उ ह ने न िसफ मंिदर
का िनमाण िकया बि क इस थल को अंतरा ीय तर के ान क के प म िवकिसत करने
का िनणय भी िलया। उसके बाद अनेक लोग उनके इस काय म सहयोग देने के िलए आगे आए।
आज यह भारतिव ा अ ययन का िव िस क बन गया है।’’
उसके बाद गु जी मुझे आ म के शासिनक कायालय म ले गए। उस धनी एवं स जन
यवसायी का फोटो िदखाते हए, ‘‘इनका बेटा अभी इस आ म के ट ी ह और यहां पर होने वाले
शोध काय के िलए रािश क यव था सतत करते रहते ह। हालांिक वे बहत ही य त यवसायी
र
सोई घर म लोग काफ य त थे। वे दोपहर का खाना परोसने क तैयारी कर रहे थे। यहाँ पर
येक िदन लगभग एक सौ लोग भोजन करते ह।
रसोई भारी के साथ मेरा प रचय करवाया गया। ‘‘ये यहाँ पर छ: माह तक रहगे। ये
अथशा के अ येता ह और ये उसी शहर से ह िजसका उ लेख हमने आपसे िकया था।’’
उसके बाद उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘ये रसोई बनाने वाले लोग आ म के आसपास के गाँव के
रहने वाले ह। उ ह यहाँ से रोजगार िमलता है और वे इस आ म के ित समिपत रहते ह। वे सभी
अब एक प रवार के सद य जैसे हो गए ह।’’ इन सभी म आ म का काय करने से एक गौरव का
भाव रहता है।
हम दोन टेबल पर आमने—सामने चाय लेने लगे। मने थोड़ा नकारा मक वर म पछ ू ा,
‘‘अपने इस यासी के बारे कुछ बताइए।’’ मुझे लगता है िक मेरे उस आ म के गाइड ने मेरे भाव
को थोड़ा—बहत परख िलया होगा।
इस पर मने उसका ि कोण जानना चाहा, ‘‘यह ज री नह िक येक धनी आदमी धत ू ही
हो।’’ इस पर उ ह ने कहा, ‘‘म भी पहले तु हारी तरह ही सोचता था। बाद म यहाँ आने वाले बहत
—से लोग से िमलने पर मने महसस ू िकया िक यिद धनी यि े प रयोजनाओं म योगदान
देते ह तो वे वत: े हो जाते ह।’’
मने पछू ा, ‘‘कोई धनी यवसायी िकसी े काम म योगदान य दगे? वे चाहते ह िक उस
थान पर हर जगह उसका नाम िलखा रहे । आप िविभ न मंिदर , िग रजाघर , मसिजद और
अ य धािमक थान एवं संगठन को देिखए उनम दान देने वाल को िवशेष मह व िदया जाता है
और उनके नाम मोटे अ र म िलखे होते ह। इसी वजह से वे दान देते ह।’’
मु कुराते हए उ ह ने इस िवषय पर अपना मत य िकया, ‘‘जी हां, कुछ हद तक इस बात
म दम है लेिकन धनी लोग ारा दान देने का यही एक मा कारण है, ऐसा कहना उिचत नह
है। म िपछले बीस साल से इस आ म म लेखापाल के प म काम कर रहा हँ। म आ म क आय
के ोत से वािकफ हँ, कौन दान देते ह और िकतनी रािश देते ह। आपको यह जानकर आ य
ह
मलोग वापस उस कमरे म गए िजसम गु जी और वे यासी बैठे हए थे।
‘‘सर, हमने इ ह यह जगह िदखा दी है, जैसा िक कहा गया था।’’ लेखापाल ने यासी
से कहा। यह िविच है, मगर अब म इ ह एक यासी कहके संबोिधत नह करना चाहता
था। इसके बदले मुझे ‘भ यवसायी’ कहना चाहता था। यिद यह पद स च था तो कभी म वयं
ऐसा होना चाहता था।
या? मने ऐसा सोचा। या अब म भी एक यवसायी बनना चाहता हँ?
यह कैसे हआ? अभी—अभी ेजुएट होने वाले लड़के क तरह है मने अपने भावी जीवन और
कॅ रयर के बारे म कुछ नह सोचा है। हमारी पीढ़ी के अिधकांश लड़क का यही हाल था। हम म
से िकसी को भी प प से यह मालम
ू नह था िक वह जीवन म या चाहता था। हमारे सामने
जो भी अवसर आता उसे हम उसे वीकार कर लेना चाहते थे।
मने वयं से कहा िक यिद कोई यवसायी भ यि हो सकता है और अथशा का
उपयोगी जीवन म कर सकता है तो य नह ? लेिकन म यह बात उस भ यवसायी से ही
िसखना चाहता था।
‘‘म आशा करता हँ िक यह थान तु ह अ छा लगा होगा।’’ उ ह ने मुझसे कहा। लेिकन
इसके साथ ही उनक बात से ऐसा लगा िक एक यासी के प म िकसी आगंतुक को आ म
िदखाकर वह खुश ह।
‘‘मुझे उ मीद है िक जो कमरा आपको यहाँ िनवास करने हे तु आबंिटत िकया गया है वह
आपको सुखद लगा होगा।’’ वे यह सुिनि त करना चाहते थे िक मेरी यहाँ पर अ छी तरह से
देखरे ख क जा रही है तािक म घर जैसा महसस ू कर सकँ ू ।
उ ह ने मुझे आ त करते हए कहा, ‘‘यिद कोई सम या हो तो उसके िनदान हे तु यहाँ पर
बहत—से लोग ह।’’
उसके बाद वे गु जी क ओर मुखाितव हए और िफर से अपनी बातचीत उसी िबंदु से शु क
म सअगले
य
िदन सवेरे जग गया लेिकन मुझे आ म क िदनचया के बारे म कुछ भी पता नह था।
ू दय से पहले भी परू ी गितिविध हो रही थी। मंिदर म घंटानाद हो रहा था। कुछ लोग वेद
मं का उ चारण कर रहे थे। दूसरी ओर पाकशाला म ना ता तैयार िकया जा रहा था।
म तैयार हो गया और मंिदर चला गया। जब म वहाँ पहँचा तो पुजारी आरती कर रहे थे। साद
लेने के बाद म आ म प रसर म अनुभव करने के िलए एक च कर लगाया जहाँ मुझे अगले छ:
माह तक रहना था।
यह मेरे िलए परू ी तरह से एक तरोताजा और नया अनुभव था। िचिड़या चहकने लगी थी। गाँव
के लोग अपने रोजमरा के काम पर िनकलने लगे थे। वहाँ पर मेरी माँ क तरह कोई भी मुझे
जगाने वाले नह थे जो मुझसे कहे िक उठो, ना ता तैयार है।
कुछ समय के बाद, पाकशाला म घंटी बजने लगी। यह संकेत था िक ना ता तैयार है। म
भोजनालय तक गया और वहाँ अ य लोग के साथ शािमल हो गया।
िजस िकसी के साथ मेरा प रचय होता उसे म अपना दो त बना लेता था य िक म जानता था
िक अगले छ: माह म मुझे उनके सहयोग एवं समथन क आव यकता होगी। कुल िमलाकर यही
लोग तो मेरे नए प रवार के सद य थे।
म अपने कमरे म गया और अथशा क पु तक एवं नोटबुक ले आया। उसके बाद म
पु तकालय म गया और जो कोना मुझे आबंिटत िकया गया था उसम अपनी पु तक रखकर
पढ़ने के िलए बैठ गया। पु तकालया य ने गमजोशी के साथ मु कुराते हए मुझसे कहा,
‘‘पु तकालय म जरा घम ू कर देख लीिजए। यहाँ पर आपको अथशा क अ य पु तक िमलगी।’’
मने उनक सलाह का पालन िकया और साफ—सुथरे ढं ग से रखी चयिनत पु तक का
मुआयना िकया। उसके बाद अथशा शीषक खंड क ओर गया।
इस खंड म दो सौ से अिधक पु तक थ । ये िविभ न िव ान ारा िलखी पु तक थ । इनम से
कुछ अनुवाद थे, कुछ िट पिणय के सं ह, कुछ या यानमालाओं को पु तकाकार प िदए गए
थे और कुछ संगोि य क कायवािहय के संकलन थे। कुछ पु तक पतली केवल ३० प ृ क
ज
ब म सुबह सोकर उठा तो बहत ही तरोताजा था। वह िदन कुछ अलग िदख रहा था। या
ऐसा बाहर के खबू सरू त नजारे के कारण था? या नए प रवेश म अनुकूल होने क िच ता
अब दूर हो चुक थी और अब आ म म अनुकूल हो चुका था?
जैसा िक गु जी ने परामश िदया था उस अनु प मने िदनभर मे अथशा का पहला अ याय
आ वीि क थापना का अ ययन िकया। इसम इस अ याय और आ वीि क श द के बारे म
थोड़ा वणन था। यह रह यमय होने के साथ—साथ बांधकर रखने वाला अ याय भी था। िफर भी
म इसको परू ी तरह से समझ नह पाया।
इस संबंध म अ य िव ान ारा दूसरी पु तक म विणत भा य को मने देखा। इसके बहत से
अनुवाद थे। आ वीि क का अथ दशनशा , िव ा, आ याि मक ान, तकयु िचंतन
आिद िदए हए थे।
मगर उस िदन म सोच म रहा िक इस पर गु जी या कहगे। अथशा का ान इस सू से
ारं भ होता है:
म आअपनीवीिहीकदुिनया
के िचंतन म इतना डूब गया था िक सच कहँ तो थोड़ा बेसुध हो गया था। मने
म खुद को इतना खोया हआ कभी भी महसस ू नह िकया था। व का
पिहया चलता रहा। म अपने िचंतन म एकांत का आनंद लेने लगा।
कहावत है िक यि को अकेलापन महसस ू नह करना चािहए िकंतु एकांत का आनंद लेना
चािहए। म एकांत था िकंतु वयं से जुड़ा हआ महससू कर रहा था। म िचंतन के बारे म िचंतन कर
रहा था।
अगले िदन अथशा के अ ययन के दौरान एक आकषक ोक से मेरा सामना हआ :
ती ण बुि ! मने महससू िकया िक चाण य यही चाहते थे। नेत ृ वकता अपनी बुि का
उपयोग यथासंभव सव म तरीके से करे । म इतना अिधक े रत हआ िक म एक साथ कई घंटे
तक अथशा पढ़ते रहा। म शु से अंत तक अनेक अ याय को पलटा। म। पहली बार इस त य
से प रिचत हआ िक इस पु तक म िचंतन के िविभ न पहलुओ ं का उ लेख िकया गया है।
जब म गु जी के पास शाम क क ा म गया तो मने उनसे पछ ू ा, ‘‘ या यह अथशा और
खासकर आ वीि क नह ह जो आपको िसखाते ह िक अपनी बुि का पण ू उपयोग िकस कार
िकया जाए?’’
‘‘और यह भी िक अपनी बुि का उपयोग कहाँ नह िकया जाए।’’ गु जी ने प प से
म सिलएुबहचला
म वभािवक
गया। गु
प से जब उठता था उससे पहले जग गया और गु जी से िमलने के
जी को स मेलन थल तक ले जाने के िलए एक कार क यव था क
गई थी।
मुझे मरण हआ िक आयोजक से पहले िदन ही गु जी के घर पर भट हई थी। वे गु जी को
स मेलन म आमंि त करने के िलए योता देने के िलए आए थे।
इस दो िदवसीय रा ीय संगो ी म देश के िविभ न भाग से लोग पधारे हए थे। इस स मेलन
म ितभागी अथशा के िविभ न प पर अपने—अपने आलेख तुत करने वाले थे। इसम
ोफेसर, िश क, छा और रपोटर आिद भाग लेने वाले थे।
हमलोग समय से पहले स मेलन थल पर पहँच गए। स मेलन का उ ाटन करने के िलए
रा य के मु यमं ी आए। जैसे ही मु यमं ी का आगमन हआ उ ह चाय एवं अनौपचा रक
बातचीत जैसे वागत स कार हे तु वी.आई.पी. क म ले जाया गया। इस स मेलन म मेरे गु जी
का बीज व य होना था। वे अथशा के िव िव यात िवशेष थे। वह पर मुझे पता चला िक
गु जी के काय एवं अकादिमक उपलि ध के कारण मु यमं ी उ ह यि गत प से जानते थे।
उस वी.आई.पी. क म मु यमं ी और अ य आयोजक के साथ गु जी भी आमंि त िकए गए
थे। ‘‘मेरे पास आओ। मेरे से िव कुल िचपक कर रहो वरना तुम इस भीड़ म खो जाओगे।’’ उ ह ने
एक आिधका रक लहजे म कहा। म भी समझ गया था िक यिद म गु जी के साथ नह रहा तो
मुझे कोई भी वी.आई.पी. क के पास भी नह फटकने देगा।’’
‘‘पहली बार म िकसी राजनेता को इतने नजदीक से देख रहा था। मुझे लगा िक म िकसी
व न—लोक म हँ। आसपास जो लोग थे वे ताकतवर ह ती लग रहे थे और वे जो बातचीत कर
रहे थे उसके कुछ अंश मेरी समझ म नह आए। लेिकन चलते—चलते मु यमं ी ने मेरे गु जी
के िलए जो कहा था उसका मेरे ऊपर थायी असर पड़ा : ‘‘सर, आपने सुशासन पर चाण य के
िवचार के संबंध म जो आलेख िलखा वह पढ़ रहा था। मेरा अनुरोध है िक या आप मेरे मंि मंडल
के सािथय के िलए इसी िवषय पर एक स दगे?’’ गु जी तुरंत सहमत हो गए और मु यमं ी
म
हानगरीय जीवन म वापस जाने के िलए ेन पर बैठते समय मने जो िपछले िदन जीवन
जीया उस पर ग़ौर करने लगा। म अतीत पर िवचार करने लगा — मेरे दादा जी, बचपन म
िकताब म मेरी िच, अथशा के अ ययन करने क उ कंठा, िफर उसे गु कुल और गु
—िश य परं परा म अ ययन करना।
म पुन: वतमान ि थित म लौट गया — मेरा मन अ यंत फुि लत था। मने िपछले छ: माह
का संपणू प से आनंद िलया — भिव य क िचंता िकए िबना।
मेरा अंतस पण ू तया त ृ था। मने जो सबसे अहम बात महसस ू क वह थी, मने यह काय िबना
िकसी अपे ा रखे िकया था।
अंतत: म अपने भिव य के िवषय म सोचने लगा। एक बार घर पहंचते ही मेरा यह आनंदपण ू
मानस शहर के भागदौड़ वाली िज़ंदगी म फँसकर रह जाएगा।
लोग तो पछ ू गे ही, ‘‘अब आगे या करने क योजना है?’’ उस व त शायद ही मेरे पास इस
बात का जवाब था। लेिकन म चाहता था िक भिव य के िलए म अपना माग वयं तय क ं , न िक
दूसरे लोग मेरे िलए माग तय कर।
जब म घर पहंचा तो मने महसस ू िकया िक एक दशक गुजर गया है। बहत कुछ बदल गए थे
लेिकन बहत कुछ पहले जैसे ही थे।
पद बदल गए थे लेिकन फिनचर वही थे। हमारे सं ह म अनेक पु तक जुड़ गई थ लेिकन
िकताब क दराज उतनी ही िचरप रिचत थ ।
अपने बेटे को वापस घर म देखकर मेरी माँ फटाफट बोली, ‘‘सबसे पहले हमलोग भोजन
कर।’’ इस बात से मुझे गु मा क याद आयी। उ ह ने मुझसे यही बात कही थी जब म पहली बार
उनसे िमला था।
िफर पापा ने पछ ू ा, ‘‘कैसी रही या ा?’’ या यह गु जी मुझसे पछ
ू रहे थे? मेरे अचरज का
िठकाना नह रहा। इससे मुझे उस जगह से संपक बनाने म एक ण लगा िजस जगह को म छ:
ए
क बार िफर मने िपता जी से मदद मांगी।
‘‘पापा, म एक भ यवसायी बनना चाहता हँ। म िकसी के अधीन काम नह करना
चाहता हँ। म अपना बॉस खुद ही बनना चाहता हँ।’’ म बोलता रहा और िपता जी धैयपवू
सुनते रहे ।
‘‘यह बात बहत अ छी है मगर बेटे तुम कौन—सा यवसाय करना चाहते हो।’’ िपता जी
अिधक योजनाब ढं ग से िवचार करना चाहते थे लेिकन मने िबना सोचे—समझे जवाब िदया:
‘‘िजस यवसाय से म धनी बन सकँ ू , बहत धनी?’’
िपता जी ने इस तरह से हाव—भाव िदखाया जो िक मेरे पहले जवाब से अिधक ठोस था।
उ ह ने सीधे तौर पर पछ ू ा, ‘‘अ छा, िकतना धनी?’’
म अपनी राग अलापते रहा, ‘‘सच म धनी, वा तिवक प म धनी। मेरे कहने का मतलब है
िक म दुिनया का सबसे धनी आदमी बनना चाहता हँ।’’
परू ी तरह से चु पी। मेरे इन श द के बाद स नाटा छा गया।
मने महसस ू िकया िक मने बचकानी बात कर द । म अपने मन के अधीन होकर जो सो बकने
लगा और बेवकूफ कर बैठा।
िपता जी ने मेरा हौसला बढ़ाते हए कहा, ‘‘बहत खबू ! दुिनया का सबसे धनी आदमी बनने म
कुछ भी गलत नह है।’’ मुझे थोड़ा गु सा आ गया य िक मुझे महसस ू हआ िक िपता जी मेरा
मजाक उड़ा रहे ह।
‘‘सॉरी पापा!’’ मेरी आँख डबडबायी हई थ । ‘‘जब कोई मुझसे पछ ू ता है िक तुम जीवन म
या बनना चाहते हो तो म बहत हताश हो जाता हँ।’’
मेरी माँ ने मुझे अपनी बाँह म भरकर मुझे आिह ते से पुचकारने लगी। िपता जी ने मेरे
मनोबल को बढ़ाने का यास िकया, ‘‘पु , म इस मामले म गंभीर हँ। बड़े सपने देखने और
दुिनया का सबसे धनी यि बनने म कोई भी बुराई नह है। भावी पीिढ़य के िलए तुम एक
िकसी सं कृत के ोफेसर के साथ मेरी यह दूसरी मुलाकात थी, पहली मुलाकात मुझे गु जी
के साथ हई थी। हर कह िकताब ही िकताब, सं कृत िवभाग म मेरी क पना से परे सि यता थी।
जैसे ही हम ोफेसर साहब के कमरे म बैठे वैसे ही वे कहने लगे: ‘‘िवगत वष म सं कृत म
अ ययन करने वाल क सं या बढ़ती जा रही है। हमारे सभी कोस म सीट भरे हए ह। नए छा
के यहाँ पर अ ययन करने क ती ा सच ू ी काफ ल बी हो गई है।’’
मेरे िपता जी से उनक मुलाकात अनेक वष पवू सं कृत भाषा चार काय म म हई थी। तब
से उनक िम ता गाढ़ होती गई। वे एक—दूसरे को चाहते थे।
‘‘मने आपके पु के िलए एक योितष चाट यानी कुंडली तैयार क है।’’ उ ह ने िबना िकसी
िवल ब के काम क बात शु कर दी।
उनके सामने मेरी ज म कुंडली थी और उ ह ने इस पर कुछ िट पणी भी िलखकर तैयार क
थी। म उनक बात सुनने के िलए उ सुक था।
‘‘यह एक अि तीय कुंडली है। मने अपने जीवन म बहत—सी कुंडिलय का अ ययन िकया
है। लेिकन यह एक िवशेष कुंडली है। आपके लड़के म बहत ही मजबत ू इ छा शि है। यह वे साभी
काम कर सकते ह िजससे जीवन म सफलता सुिनि त कर सके।’’ म इस बात से खुश था िक
कोई मेरे िपता के सामने मेरी शंसा कर रहा है।
उ ह ने अपनी गणना के संदभ म कहा, ‘‘लेिकन इनक कुंडली सबसे अ छी बात है बहृ पित
क ि थित।’’
म अचानक उलझन म फँस गया। ‘‘सर, इस बहृ पित से या मतलब है?’’
‘‘सं कृत म बहृ पित को गु कहा गया है, वैिदक योितषशा के अनुसार। यह भा य और
वैभव के वामी ह। गु का भाव धम, दशन, आ याि मकता, धन एवं संतान पर पड़ता है। गु
“अ
थशा पर तु हारे अ ययन के साथ—साथ मने तु हारे बारे म सा ा कार लेने वाले
क िट पणी भी देखा।’’ उ ह ने मेरी सी.वी. िदखाते हए उस अंिकत ह तिलिखत
िट पणी िदखायी।
उस पर िलखा हआ था : इ ह वेतन क अपे ा नह है यह पहले कंपनी के यवसाय को
बढ़ाना चाहता है।
चेयरमैन ने मुझसे कहा, ‘‘इस बात से म अ यंत भािवत हआ।’’
‘‘जॉब के िलए आवेदन देने वाले अिधकांश लोग इस मन:ि थित म नह होते ह। वे यहाँ मोटी
तन वाह और हमारे कंपनी क सोहरत से जुड़ने क चाहत म आते ह। आप िजस उ म ह उसम
ऐसी विृ का होना बहत ही अ छा है।’’
म आपसे कुछ पछ ू ना चाहता था इसिलए आपको यहाँ पर बुलाया।’’ वे ण भर के िलए ठहर से
गए जैसी िकसी गहन िचंतन म ह ।
‘‘ या आप सीधे मेरे अंदर यानी चेयरमैन के ऑिफस म काम करना चाहगे?’’
मुझे अपनी िक मत पर यक न नह आया। मेरे सामने जो ताव था वह एक सपना जैसा था।
‘‘यक नन सर!’’ मने उस अवसर को लपक िलया।
‘‘मगर’’, उ ह ने मुझे सावधान करते हए कहा, ‘‘इसम एक बंिदश है। आपको कुछ भी
तन वाह नह दी जाएगी। पहले जो नौकरी का ताव आपको िदया गया था उसम जॉब के साथ
ठीक—ठाक वेतन भी िदया जाता। लेिकन जब आप मेरे अंदर काम करगे तो आपको वेतन नह
िदया जाएगा।’’
यह एक और इ तहान था। वे मुझे परखना चाहते थे िक सचमुच म िबना आमदनी के काम
करने म िव ास करता था अथवा कंपनी को महज भािवत करने के िलए ऐसा कहा था।
वो कहते गए, ‘‘याद रहे , आपके िलए पहला ताव अभी भी य का य है — आपका जॉब,
तन वाह, िश ण और ज रत पड़े तो या ा भ े भी िदए जाएं गे यिद आप िबजनेस डे वलपमट
‘भ
यवसायी’ क अवधारणा मेरे मन म अब प हो गई थी। पहले आ म के यासी
और बाद म हमारे चेयरमैन — दोन समाज क सेवा करना चाहते थे।
चेयरमैन का केवल एक ही िनदश था : ‘‘अब से तुम मेरे से कोई भी सवाल नह
करोगे। तुम जो भी जानना चाहते हो वह तुम देखकर समझ सकते हो।’’
मुझे इस िनदश से थोड़ा आ य हआ। अब मुझे चुपचाप वही काम करना था जो मुझसे कहा
जाता, उससे अिधक कुछ भी नह ।
चेयरमैन ने इस बात को इस प म प िकया, ‘‘जब तु हारा िदमाग से भर जाता है
तो यह बंद हो जाता है। िसखने के िलए धैय चािहए। जब एक बार धैय धारण करना सीख जाओगे
तो तु ह सारे के उ र िमल जाएं गे।’’
उ ह ने मेरे मन क उलझन को भाँप िलया। उ ह ने कहा, ‘‘िचंता मन करो। बाद म तु ह
सवाल करने क आजादी िमलेगी। लेिकन म तुमसे कहंगा िक ये कब पछू ने ह। तब तक
कंपनी के हर काम, हर गितिविध से कुछ—न—कुछ सीखो।”
इसके बाद अगली बैठक का समय हो गया और उ ह ने मुझे साथ चलने के िलए कहा।
कई िदन तक म उनके साथ छाया क तरह उनका अनुसरण करते रहा। म उनके िनदश का
पालन करते रहा तथा मक ू पयवे क क भिू मका म बना रहा। वे मुझे बैठक और सामािजक
काय म , अपने घर और िजस लब के सद य थे वहाँ, और यहाँ तक िक उस आ याि मक
संगठन म ले गए जहाँ पर वे स ाह म एक बार भगवदगीता िसखने जाते थे — सब जगह ले
गए।
मने उनक कंपनी म काम करने के िलए वाइन िकया था। लेिकन उ ह ने अपनी परू ी
दुिनया — सावजिनक एवं िनजी। मेरे मन म अनेक सवाल खड़े हए लेिकन मने खुद पर
िनयं ण रखा।
बाद म िकसी दूसरे यि के साथ बातचीत म वे य अथवा अ य प से मेरे सवाल
म सतत सीख रहा था। म हर ण का आनंद ले रहा था। म िकसी इ तहान क तैयारी नह
कर रहा था बि क जीवन क चुनौितय से सामना करने के िलए तैयारी कर हा था।
एक िदन चेयरमैन ने मुझसे अचानक कहा, ‘‘अब तु हारे मन म जो हो उसे पछ
ू सकते
हो।’’
यह बात मुझे हैरत म डालने वाली थी। उस समय तक मेरा मन सीख चुका था िक से
मन म चलने वाली आकुलता से कैसे बचा जाए। लेिकन पहला ू ने के िलए मँुह खोलने म
पछ
थोड़ा समय लग गया।
‘‘ यि धन का सज ृ न कैसे करता है?’’ इस का उ र म उसी समय जानना चाहता था
िजस समय म पहली बार यहाँ आया था।
उ ह ने कहना ारं भ िकया, ‘‘धन का वाह चार चरण म होता है। पहला है धन क पहचान,
दूसरा धन का सज ृ न, तीसरा धन का बंधन और िफर धन का िवतरण।’’ उ ह ने मेरे िलए राह
तैयार कर दी।
‘‘यिद कोई धनी बनना चाहता है तो उसे पहले अवसर क पहचान करनी होगी। सामा य तौर
ख
िनज एवं धातु भाग के सी.ई.ओ. एक अनुभवी यि थे। उ ोग जगत म उ ह काय को
गित देने वाला यि माना जाता था। वे एक उ च िश ा ा यि थे और उ ह
दुिनयाभर क या ा का अनुभव था। उनक िकसी िट पणी का असर शेयर बाजार के
उतार-चढ़ाव पर पड़ता था।
चेयरमैन ने सी.ई.ओ. से कहा, ‘‘जैसा िक कल बोड मीिटंग म मने आपसे कहा था, वह कल
से आपक टीम का िह सा बन जाएगा।’’
‘‘सर, उसके काम के बारे म आपके ऑिफस से मुझे सकारा मक रपोट िमली है। यहाँ से आगे
का काम म देख लँग ू ा।’’ मेरे ित यह सी.ई.ओ. का थम उदगार था।
िकस काम क वे बात कर रहे थे? म तो एक मक ू ा था। मगर उस समय मुझे पछ
ू ने
क इज़ाजत नह थी। इसिलए म अपने और सी.ई.ओ. क िट पणी दोन को नजरअंदाज़ कर
िदया।
‘‘तुम माह म एक बार मुझसे िमलोगे। हालांिक तुम सी.ई.ओ. को रपोट करोगे लेिकन म
तु हारी गित पर नजर रखँग ू ा।’’ बहत खबू , चेयरमैन के पास हर िकसी पर नजर रखने का
अपना तं होगा। ऐसा मने महसस ू िकया।
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘कल से आपको वेतन िमलेगा। ये अपको िव तार से बताएं गे।’’
उ ह ने सी.ई.ओ. क ओर संकेत करते हए कहा।
‘‘सबसे बड़ी िदलच प बात यह है िक हमारे सी.ई.ओ. से आप कोई भी पछू सकते ह।
इसक कोई सीमा नह है।’’ हम तीन हँसने लगे।
जैसे ही मुझे चेयरमैन के ऑिफस से हटाकर सी.ई.ओ. के ऑिफस म काम क िज मेदारी दी
गई, वैसे ही मने महसस ू िकया िक मेरे िदमाग को न पछ ू ने के िलए तैयार कर िदया गया है।
सच कहँ तो इससे मेरे ऊपर कुछ भी फक नह पड़ा।
जब म वापस घर आया तो मने महसस ू िकया िक अगले माह से वेतन िमलने क खबर से मुझे
अ
पने दो त से िफर से मुलाकात हई। इस बार हमने उस कॉलेज म िमलने का िनणय िलया
िजसम हमलोग पढ़ते थे, न िक छा ावास म। मुझे इन सबसे िमले हए बहत समय हो गया
था, हालांिक ये सब आपस म िनयिमत प से िमलते रहते थे।
दो त ने पछ ू ा, ‘‘तुम कहाँ लापता हो गए थे?’’
मने उ ह बताया िक िकस कार ऑिफस काम संभालने और अ ययन करने म म काफ
य त हो गया था और उ ह यह भी बताया िक एक बड़ी कंपनी म काम करना िकतना िश ा द
अनुभव होता है।
अब तक मेरे अंदर दो सहायक भी हो चुके थे। अपने बॉस को रपोट करने के साथ—साथ म
खुद भी बॉस बन गया था और दूसरे क रपोट लेता था।
मेरे सभी दो त कुछ न कुछ कर रहे थे। अब उ ह इस तरह के से जझ
ू ना नह पड़ता था
िक ‘‘जीवन म आगे या करने क योजना है?’’ इनम से कुछ नौकरी करने लगे थे; कुछ अपने
प रवार के यवसाय म शािमल हो गए थे। एक ने अकादिमक दुिनया म अपने कॅ रयर बनाने का
िनणय ले ली और पी—एच.डी. कर रही थी।
मने उसके साथ थोड़े और समय तक यह जानने के िलए रहा िक पी—एच.डी. म या होता
है। मने िकसी के पास अपनी यह इ छा य नह क िक म खुद िजस एम.ए. म वेश पाना
चाहता था उसे परू ा करने के बाद पी—एच.डी. करना चाहता था।
‘‘हमारे कॉलेज म एक संगो ी होने जा रही है। या तुम उसम भाग लेकर अपना आलेख
तुत करोगे?’’ इन श द से मुझे अथशा पर आयोिजत स मेलन क याद आ गई िजसम मने
आ म के आने के बाद व ा के प म भाग िलया था।
‘‘म परू ी तरह से कह नह सकता िक म संगो ी म भाषण दे सकता हँ। मुझे िवगत कुछ वष
से शोध का अ यास छूट गया है। म अपने काय म बहत य त रहा हँ। म नह जानता िक वा तव
म म कुछ योगदान दे सकं ू गा।’’ मने अपने िझझक के बारे म उसे बता िदया।
अ
गले िदन सुबह म म चार बजे ही जग गया। म इतने सवेरे जागता नह था। मुझे देर रात
तक काम करने क आदत पड़ गई थी। अल सुबह उठने पर म तरोताजा महसस ू नह
करता था।
वह िदन कुछ अलग तरह का था। मने धड़ी देखी तो अचरज करने लगा िक मुझे इतने सवेरे
जगने क या ज रत थी। म िफर से िब तर पर लेट गया। हालांिक मने ज द ही महसस ू िकया
िक मुझे अब सोने क ज रत नह है।
म उठ गया और यायाम िकया। मेरे अंदर सय ू नम कार करने क ऊजा संिचत थी। नान
करने के बाद मने अपनी दैिनक पज ू ा क । उसके बाद िदनभर काम करने के िलए तैयार हो गया।
मुझे लगा िक मेरे पास काफ समय है।
म पहली बार यान म बैठ गया। मने वयं को अंत थ पाया। जब मेरी आँख खुल तो मने
उगते हए सरू ज को देखा। उगते हए सय ू को देखना शहरी लड़क क सं कृित म नह है। उगते
हए सरू ज को िनहारना एक िद य अनुभव था।
सरू ज के उगते और रोशनी के फै लते ही मने महसस ू िकया िक मेरे अंदर का बालक एक
प रप व यि बन गया है।
माँ मेरे कमरे म आकर बोली, ‘‘ऐसा या हो गया?’’ उ ह आ य हो रहा था। उ ह ने पछ ू ा,
‘‘ या तु ह कह जाना है? तुम इतने सवेरे य जग गए?’’
म मी मेरे अिनयिमत या ाओं क अ य त हो चुक थी — सुबह सवेरे हवाई जहाज पकड़ना,
दूसरे शहर म जाने के िलए दरवाजे पर कार का खड़े होना, देर रात घर लौटना। केवल एक ही
बात वह पछ ू ती थी िक मेरे िलए खाना बनाकर रखना है अथवा नह ।
म यह सब जानता था और मने कहा, ‘‘िच ता मत करो। हमलोग उिचत समय पर ना ता
करगे।’’
मने अपने घर पर िकसी को यह दुखद समाचार नह िदया िक मने नौकरी छोड़ने का िनणय
कु छिकयासंकथा।ोच कमे इससाथबातमनेसेउसआकंपनीत नहके चेथायरमैिकन वहके साथ िमलने के िलए गया जहाँ मने काम
अपने उस कमचारी को अपना आशीवाद
दगे िजसको उ ह ने एक उ कृ अवसर िदया था।
उ ह ने कहा, ‘‘आइए, म आ य कर रहा था िक आप कहाँ गुम हो गए थे।’’ उनके वचन बहत
ही उ साहव क थे।
चेयरमैन से एक बार पुन: िमलना सौभा य क बात थी। मने उ ह अपने िवचार एवं यवसाय
योजना से अवगत कराया। उ ह ने मेरी बात म िदलच पी ली। ‘‘पयटन एक अ छा यवसाय है।
मुझे सदा इस काम को करने क इ छा थी लेिकन कभी भी इस काम पर गंभीरतापवू क िवचार
करने के िलए समय ही नह िमल पाया।’’
जब चेयरमैन ने मेरे से ये सब बात कह तो मुझे खुशी िमली िक ऐसे सफल यवसायी ने मेरी
योजना पर मुहर लगा दी है। उ ह ने इसके बात जो बात कही वह और भी अ छी थी, ‘‘हो सकता
है म आप ही के मा यम से अपने इस सपने को साकार क ं गा।’’
इस कार मुझे ऐसा लगा िक मुझे अपने यवसाय के िलए एक िनवेश िमल गया है लेिकन
पैसे हे तु ताव रखने का यह उिचत समय नह था। सबसे पहले म खुद को सािबत करना
चाहता था। म िचंतन यापक तर पर करना चाह रहा था िकंतु शु आत छोटे तर पर करना
चाहता था।
इस िदशा म मने जो पहला काम िकया वह था अपने गहृ नगर के िस मंिदर को एक
िदवसीय आ याि मक मण का आयोजन िकया। म चाहता था िक इस मंिदर या ा म थोड़े —से
लोग शािमल ह ।
इसके िलए मने सब यव था वयं ही क थी — मंिदर के इितहास का अ ययन िकया था,
भोजन क यव था क , बस ठीक िकया और इस एक िदवसीय या ा के िलए आव यक अ य
कार क यव थाएं भी क ।
जैसा िक चेयरमैन ने मुझे िश ा दी थी िक िकसी भी यवसाय क मल ू भत
ू बात का ान होने
म िबना िकसी िवपणन बजट के छोटे तर कारोबार शु करने वाला यवसायी था।
सामा यतौर पर लोग ाहक पाने के िलए बहत अिधक धन खच करते ह लेिकन मेरे पास
ऐसा िव ीय सहयोग नह था।
यिद म अपने ाहक क संतुि के मुतािबक काम कर पाता तो जादुई सफलता िमलती। मने
अथशा खोला और वहाँ पर एक अ य सू हाथ लगा:
मे महाभारत
रा पयटन यवसाय चल पड़ा। अब पीछे मुड़ने का सवाल ही नह था। रामायण दौरे से लेकर
दौरे तक म इस तरह के अनठ
ू े दौरे तैयार करने लगा िजसक िवदेश म बसे लोग
को चाहत रहती थी। म अथशा का अ ययन करते रहा और चाण य से मागदशन ा करते
रहा:
प
यटन यवसाय म होने का अपना लाभ है। इसका सबसे बड़ा लाभ मुझे अपने हनीमन ू के
बंध म लगा।
एक वै ेल एजट के साथ मेरा अपना यवसाियक र ता था, वह मेरा अ छा दो त बन
गया था। वह हनीमन ू पैकेिजंग का िवशेष था और उसे उ कृ थान क जानकारी थी। मान
या न मान, मगर उसने मेरे संपणू हनीमनू या ा को ायोिजत िकया।
उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘आप पैसे क िच ता न कर। हमारे प रवार म सबकुछ है।’’ उ ह ने मेरे
ठहरने के िलए सव म होटल तथा या ा के िलए सव म बस क यव था क । हम इनम से
िकसी भी सुिवधा के िलए भुगतान नह करना पड़ा। हमने िज़ंदगी के इस ल ह का लु फ उठाया।
डॉ टर क केवल िशकायत थी, ‘‘कैसे कोई पित अपने हनीमन ू पर खच नह करे गा?’’
िन संदेह पित अपनी प नी पर खच करे , इसका अपना आनंद है।
इसका एक िवक प उसने मेरे सामने रखा, ‘‘तुम मुझे हर साल हनीमन ू पर ले जाओगे।’’ म
भ च का रह गया। उसने एक और मांग क , ‘‘हर बार नई जगह पर।’’
म अपनी ेयसी क पहली मांग को नकार कैसे सकता था? आिखर जीवनभर साथ रहने का
मामला था। जब से मने यह वचन िदया था तब से हम हर बार िववाह का सालिगरह मनाने के
िलए अलग—अलग जगह पर जाते रहे । हम दोन वष म होने वाली इस या ा क ती ा करते
रहते थे।
हनीमन ू से वापस घर आने के बाद हमने महसस ू िकया िक मुझे अपने यवसाय को बढ़ाने के
िलए नई रणनीित क आव यकता है। मुझे नए कमचा रय क भत करनी थी, िवपणन पर
अिधक खच करना था और बड़े ऑिफस से काम करने क ज रत थी। मेरा कारोबार ठीक—
ठाक चल रहा था लेिकन इतने पैसे नह थे िक यवसाय का बहत बड़ा फै लाव िकया जाए।
मागदशन के िलए आदतन मने अथशा का सहारा िलया:
मने सोचा िक कौन अिधक शि शाली राजा है जो मेरी र ा करे गा? म केवल एक ही यि
के बारे म सोच सका। वही बड़े उ ोगपित, चेयरमन िजनक कंपनी म पहले म काम कर चुका
था।
मने उस बात को भी याद िकया जो उ ह ने मुझसे यागप देने के समय म कही थी। उ ह ने
कहा था, ‘‘जाओ, अपने िदल क पुकार सुनो। तु ह जब कभी मेरी सहायता क ज रत हो तो
तु ह सहायता देकर मुझे खुशी िमलेगी।’’
मुझे अपने कारोबार को बढ़ाने के िलए सचमुच उनक मदद क ज रत थी। इसिलए मने
उनसे िमलने का समय मांगा और िमलने के िलए पहँच गया।
उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘आप सही माग पर ह। आव यकता है िक आप अपने यवसाय के िलए
अ छी योजना बनाएं ।’’
‘‘िजस यवसाय को आगे बढ़ाने क इ छा हो उसे आंकने का उपाय भी होना चािहए और
उसके िलए अ छा बंधन दल होना चािहए।’’ मने उनके पास आिथक सहायता के िलए आया था
मगर मने महसस ू िकया िक िजन िवभ न प के बारे म वे मुझसे कह रहे थे मने उनके बारे म
ठीक से ग़ौर नह िकया था।
‘‘तु ह ज रत है िक तुम इस उ ोग के पेशेवर लोग को अपने पास रखो। वे तु हारे पास
अपने अनुभव लेकर आएं गे जो िक बहत ज री है। िसफ अकेला िदमाग से यवसाय को आगे
नह बढ़ाया जा सकता। हम अनेक अ छे हाथ और अनेक िदमाग क ज रत होती है।’’ उनका
अनुभव बोल रहा था।
‘‘मुझे इस संबंध म खुद थोड़ा िचंतन करने दो और अगले स ाह हमलोग साथ िमलकर
यवसाय योजना बनाएं गे।’’ म कुछ बोल नह रहा था बि क सुन रहा था।
अपना करोबार शु करने के बाद पहली बार म िचंतत था। म जानता था िक मुझे आगे बढ़ना
है लेिकन म यह नह जानता था िक मुझे अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के िलए इस उ ोग के
अनुभवी लोग क ज रत होगी।
जब म अगले स ाह चेयरमैन से िमला। उनके साथ कुछ लोग बैठे हए थे जो उनके रणनीित
दल के सद य थे। उ ह ने पयटन उ ोग क गितशीलता, सरकारी नीितय और बाजार संभावना
के बारे िव ततृ यौरा तुत िकया।
चेयरमैन ने आगे कहा, ‘‘तुम देख रहे हो िक इस उ ोग म बड़ी संभावना है लेिकन इसम खेल
को एक नया श ल देने वाले िखलाड़ी क ज रत है। हम केवल परं परागत माग का ही अनुसरण
नह करना चािहए बि क नए रा ते भी तैयार करने चािहए िज ह दूसरे लोग अनुसरण कर।’’
थोड़ी देर िचंतन करने के बाद उ ह ने कहा, ‘‘हम इस यवसाय को ऑटोमेशन मोड म
करना चािहए। इसके हम उपल ध सव म ौ ोिगक का इ तेमाल करना चािहए। यही एक
म एक अजीब तरह क चुनौती का सामना कर रहा था। म िवकास के िलए अिधक िनवेश चाह
रहा था। साथ म िजस यवसाय को शू य से ारं भ करके खड़ा िकया था उस पर िकसी अ य
का िनयं ण भी नह चाह रहा था।
चाण य हमेशा कहा करते थे िक किठन प रि थित म िम क सहायता लेनी चािहए। मुझे
बचपन का एक अ छा िम था जो हर प र थित म मुझे सही सलाह देता था। म उनसे िमलकर
अपना हाल बताया।
मेरे िम एक बड़ी बहरा ीय कंपनी म काम कर रहे थे। वे वहाँ पर िव मुख थे। उ ह ने भी
अपने कॅ रयर म तेजी से तर क क थी। रणनीित संबंधी सलाह देने और यवसाय म मागदशन
देने म वे िनपुण थे।
उ ह ने कहा, ‘‘िनवेशक क मदद से आगे बढ़ने वाले येक यवसायी को ऐसी प रि थित
का सामना करना पड़ता है। आपको आगे बढ़ने क त रत है लेिकन आप अपनी कंपनी का
िनयं ण दूसरे के हाथ म नह देना चाहते ह।’’
मने दुहराया, ‘‘वे कंपनी म िह सेदारी चाह रहे ह।’’
िम ने मेरे से िकया, ‘‘इसके िसवा म और या मांगगे?’’ मेरे पास इस का प
जवाब नह था।
उ ह ने प िकया, ‘‘जो कोई पैसे का िनवेश करता है उसे यवसाय म िह सेदारी मांगने
का उिचत हक है। िजस तरह से तु हारे िलए यह एक यवसाय है उसी तरह से उनके िलए भी यह
एक यवसाय है। इसिलए यह उिचत है िक तु ह िह सेदारी प ित पर सही ढं ग से बात करनी
चािहए।’’
उसने आगे कहा, ‘‘इसका सकारा मक प इस कार देखो। तु ह न केवल उनका पैसा िमल
रहा है बि क इतनी बड़ी कंपनी चलाने का उनका यापक अनुभव भी तु ह िमल रहा है। एक
तरह से तुम भा यशाली हो।’’
डॉ संटरबंिधयअपनेकेनएसाथघरभी—घुलपित—िमल
के घर म आसानी से रम गई। वह मेरे माता—िपता एवं सगे—
गई। मेरे िलए यह एक सुखद संकेत था।
भारत म िववाह अलग कार का होता है। मुझे िविभ न िम और सगे—संबंिधय के घर म
भोजन के िलए आमंि त िकया जाता था।
मुझे लगा िक िनमं ण के इस िसलिसला शी अंत हो जाएगा िकंतु एक साल से अिधक तक
चलता रहा। म अपने काय और पित धम के बीच तालमेल बैठाते रहा।
हमारी सं कृित म बेिटयाँ जैसे स चती ह, उनसे हम प रिचत ह। लालन—पालन, यार, ममता
और िश ा देने वाले माता—िपता के घर को छोड़कर वे प नी और बह क नई भिू मका को
वीकार करती ह। वे इस नए प रवार को अपना मान लेती ह, मगर वे अपने माता—िपता के
प रवार को छोड़ नह पाती ह। म ृ यु पय त वे दोन प रवार क देखभाल करती ह।
पी–एच.डी. परू ा करने के बाद डॉ टर िव िव ालय म पढ़ाने लग । अपने े म िवशेष
होने के नाते वह संगो ी एवं स मेलन म भाग लेने के िलए बराबर या ाएं करती रहती थ ।
एक रात भोजन करते समय अचानक वह पछ ू बैठी, ‘‘आप अपनी पी—एच.डी. कब करने क
योजना बना रहे ह?’’
इस से मुझे आ य हआ। अपने यवसाय को आगे बढ़ाने के च कर म मुझे पी—एच.डी.
करने के अपने सपने क ितलांजिल देनी पड़ी। यह मुझे अतीत म लेकर चला गया। पी—
एच.डी.? नह , म नह ...’’
वह कुछ पछ ू ती उससे पहले मने प िकया। ‘‘म अपने यवसाय को आगे बढ़ा रहा हँ, मेरी
अनेक ितब ताएं ह। िकस कार म पुन: संपण ू अकादिमक ि या से गुज ं गा? म नह
सोचता िक ऐसा संभव होगा.... मेरी अब अ ययन म िच नह रही।’’
डॉ टर होिशयार थी। उसने मेरे पर दबाव नह डाला। उसके मन म अलग रणनीित थी।
‘‘ या तु ह इस शिनवार को समय है? या तुम िव िव ालय आ सकते हो? मेरे छा तु हारे
डॉ तटरुम बहत
ने मुझे औपचा रक सटू पहनने के िलए कहा। जब मने सटू पहन ली तो उसने कहा िक
आकषक लग रहे हो। जब हम सबने िव िव ालय क ओर थान िकया तब
मेरा आ मिव ास बढ़ा हआ था।
मने महसस ू िकया िक जो बात एक छोटी—सी अवधारणा के प म शु हई थी वह बड़ी
संगो ी का प ले ली। मेरे स का आयोजन एक सभागार म िकया गया था िजसम २०० से
अिधक छा के भाग लेने क उ मीद थी, साथ म िविभ न िवभाग के ोफेसर भी।
िजस िवभाग म मेरी प नी पढ़ाया करती थी सबसे पहले उसके व र तम िश क और
िवभागा य से िमलवाने के िलए मुझे ले जाया गया।
‘‘हमारे प रसर म आपका आगमन सुखद है। समय देने के िलए आपको ध यवाद। आपके
काय के बारे म आपक प नी हमलोग को अ तन जानकारी देती रहती है, खासकर कौिट य
के अथशा पर जो शोध आपने िकया है।’’
‘‘मैडम, म वयं को स मािनत महसस ू कर रहा हँ िक मेरी छोटी—सी उपलि ध पर मुझे
बोलने का अवसर िदया जा रहा है। यह सब ई र क कृपा और अनेक बुजुग के आशीवाद के
प रणाम व प ा हआ है।’’, ऐसा मने कहा।
चाय लेते हए मने पछू ा, ‘‘ या कोई िविश े है िजसके बारे म आप चाहती ह िक आपके
छा के साथ म बात क ं ?’’
इस पर उ ह ने कहा, ‘‘यिद आप यह प कर िक अथशा आपके यवसाय म िकस
कार ासंिगक रहा तो अ छा होगा, इससे हमारे छा को भारतीय ंथ को पढ़ने क ेरणा
िमलेगी।’’
उ ह ने बात को आगे बढ़ाते हए कहा, ‘‘आप एक नौजवान ह और आपने इतना कुछ हािसल
कर िलया है। युवा पीढ़ी आपको अपना रोल मॉडल मानती है। उ ह जीवन म सफल होने के िलए
कुछ िट स अव य द।”
म कएक—एक ई ंट जोड़कर अपने यवसाय का महल खड़ा कर रहा था। मगर अभी भी मुझे बहत
ु छ िसखना था। मेरी कंपनी िदन दूनी रात चौगुनी गित से उ नित करती जा रही थी। अब
यह एक िव यात एवं स मािनत कंपनी बन गई थी। पैसे तो आ रहे थे लेिकन हमारे सामने
चुनौितयां भी बढ़ती जा रही थ ।
एक िदन चेयरमैन ने मुझसे अनौपचा रक प स पछ ू ा, ‘‘ या आप जानते ह िक सवािधक
जिटल यवसाियक चुनौती या है?’’
मने जवाब िदया, ‘‘अिधकािधक पैसे ा करना।’’
‘‘पैसे क यव था करना एक सतत चुनौितपण ू काय है। वा तिवक यवसाियक चुनौित है
सही यि को अपनी कंपनी म भत करना।’’
मने लोग को पहले यह कहते हए सुना था िक यवसाय को आगे बढ़ना का असली रह य है
सही ितभा को अपनी ओर आकिषत करके उनका बंधन करना।
‘‘बहत से लोग मुझसे उस साधन के बारे म पछ
ू ते ह िजसके सहारे मने यवसाय म सफलता
अिजत क है।’’ चेयरमैन मुझे वा तिवक ान दे रहे थे।
‘‘हालांिक म उन लोग को बहत कार से जवाब देता हँ, मगर म यि गत तौर पर महसस ू
करता हँ िक वे आपके खास लोग होते ह िजनके सहारे आप अपने यवसाय को आगे बढ़ाते ह।
यवसाय के नेत ृ वकता के प म आप केवल िदशा दे सकते ह, रणनीित िवकिसत कर सकते ह
तथ नीित तैयार कर सकते ह। अंतत: आपके वे लोग होते ह जो आपको सफलता िदलाते ह।’’
जब म अथशा को पलट रहा था तब मने स म मंि य के चयन संबंधी चाण य के परामश
का एक अ याय देखा। िकसी भी यवसाय म अ छे बंधक के चयन के िलए यह परामश बहत ही
ासंिगक है।
चाण य ने भावी मं ी/ बंधक के चयन म िन निलिखत गुण पर िवचार करने क सलाह दी
है :
मु कझेे पी—एच.डी. म दािखला िलए हए तीन साल हो गए थे। अपनी प नी के ठोस उ साहव
कारण ही म इस े म कदम रख सका।
न
हर कोई सफलता क कामना करते ह लेिकन किठन माग पर बहत कम लोग चलते ह। इसी
तरह म अनुमान लगा रहा हँ िक हर िशि त यि पी—एच.डी. करना चाहता है जो िक िश ा
जगत क सव च िड ी है।
हालांिक इ छा और ल य म अंतर होता है। हर कोई कुछ बनना चाहता है लेिकन बहत कम
लोग अपनी चाहत को ल य बनाकर उसे पाने के िलए किठन प र म करता है।
इसी अंदाज़ म मने अपनी पी—एच.डी. करने क इ छा को अपना ल य बना िलया और इसे
परू ा करने के िलए किठन प र म करने लगा, अपने यवसाियक काय म और घर पर समय
क ितब ता के बावजदू । हालांिक पी—एच.डी. क िदशा म मेरी गित बहत धीमी थी।
एक िदन मेरे गाइड ने मुझे फोन क , ‘‘आकर मुझसे िमिलए। मुझे आपके साथ एक मह वपण ू
चचा करनी है।’’ जब कभी वे बुलाती थ तो म िचंितत हो जाता था य िक मुझे पता था िक एक
िश क के प म मेरे शोध काय के िलए एक मह वपण ू सू दगी।
जब म उनसे िमला तो उ ह ने बहत ही िदलच प बात बतायी। ‘‘हम लोग एथस, यन ू ान जा रहे
ह।’’ इस वष यन ू ान म दशनशा िव काँ ेस का आयोजन िकया जा रहा है। यह दुिनयाभर के
अकादमीिवद्, िव ान और दशनशाि य का सबसे बड़ा स मेलन था जो एक मंच से िविभ न
िवषय पर बात करगे।
चँिू क म अथशा पर पी—एच.डी. कर रहा था, इसिलए मुझे चाण य से नेत ृ व दशन पर
शोध—आलेख तुत करने के िलए कहा गया था।
‘‘आपके आलेख को अंतरा ीय िव त् पैनल ारा चुन िलया गया है और आपको वहाँ
या यान देने के िलए बुलाया गया है।’’ उ ह ने मु कुराते हए कहा।
‘‘यन ू ान से पा ा य दशन का ादुभाव हआ जहाँ पर सुकरात, लेटो और अर तू का ज म
अ
कादिमक दुिनया बहत िविच है। मने सोचा था िक पी—एच.डी. िड ी लेने के बाद मेरी
अकादिमक या ा परू ी हो जाएगी। हालांिक मने महसस ू िकया िक यह तो एक दूसरी याया
क महज शु आत है।
म अपने गाइड को शोध काय म उनके िनरं तर सहयोग करने के िलए उ ह ध यवाद देने के
िलए गया था। मने महसस ू िकया िक अब मेरे ब चे न ह—मु ह बड़े हो गए थे और िविभ न
कार के पछ
ू रहे थे।
जब वे मुझे पछू ते थे िक दुिनया कैसे चलती है तो मुझे लगता था िक वे मुझे मेरे शोध—काय
के बारे म पछ
ू रहे ह।
चार साल के शोध काय ने मेरे अंदर के एक अलग यि को उभार िदया। मने यह सीखा िक
िवचार क प ता के िबना िकसी बात को वीकार नह करना। यह एक अ छी मानिसकता है।
यह आपको सही तरीके से सोचना िसखाता है — आ वीि क ।
सोचने का यह तरीका जीवनपय त आपक पँज ू ी बनी रहती है। आपक पी—एच.डी. उपािध
आपके साथ जीवनभर रहती है। जीवनभर लोग आपको डॉ टर कहकर संबोिधत करते ह —
ीमान् या ीमती कहकर नह । दुिनया आपको स मािनत िव ान के प म मानती है और
अलग नजर से देखती है।
‘‘पी—एच.डी. जीवन का एक नया ि कोण होता है। यह एक नई िखड़क होती है िजससे
आप बाहर क दुिनया को देखते ह।’’ मेरी गाइड ने कहा।
‘‘आपके सामने बहत से नए अवसर आएं गे। अपनी आँख—कान खोलकर रिखए। जब
अवसर सामने आए तो उसे जान न द।’’
उ ह ने अपना अनुभव साझा िकया, ‘‘मुझे यह मालम ू नह था िक डा टर क उपािध से म
या कर सकती थी। मेरे शोध िनदशक ने मुझे यह बात बतायी। म एक औसत दज क यि थी
लेिकन उनके मागदशन के कारण म इस िव िव ालय म हँ और भावी िचंतक —िव ान का
मागदशन कर रही हँ।’’
म का
ने अपनी पहली पु तक िलखने क तैयारी के दौरान एक पु तक म पढ़ा, ‘‘पु तक िलखने
सबसे अ छा तरीका है इसे िलख लेना।’’ म नह जानता था िक कैसे पु तके िलखी जाती
ह और काशन क दुिनया कैसे काम करती है लेिकन पु तक िलखने के ित म ढ़— ित
था।
मेरे यवसाय के एक लाइंट एक अिभजा य लब का सद य था। समय—समय पर वे लोग
लब के सद य के साथ िकसी िवषय पर चचा करने के िलए िकसी बाहरी व ा को आमंि त
करते थे। एक बार मेरे से लाइंट ने ‘‘चाण य और आधुिनक यवसाय म उनक ासंिगकता’’
िवषय पर या यान देने के िलए अनुरोध िकया। मने सहमित दे दी।
जब म वहां या यान देने के िलए गया तो मने महसस ू िकया िक शहर के सबसे धनी
यवसायी उसके सद य ह। वे िवभ न प ृ भिू मय से थे।
चाण य के ान पर या यान सुनने के िलए पण ू सं या म लोग थे। मुझे ऐसा लगता है िक
मने अपने आधे घंटे के या यान म उ ह भािवत कर िदया। या यान के बाद भी प रचचा होती
रही।
या यान के बाद एक बुजुग मेरे पास आए। उ ह ने कहा, ‘‘नौजवान, आपने बहत अ छा
या यान िदया। या आप इस िवषय पर पु तक िलखने का यास कर सकते है?’’ मुझे आ य
होने लगा य िक म इस िवषय पर पु तक कािशत करने के िलए बहत िदन से सोच रहा था।
उ ह ने मुझे अपना िविजिटंग काड िदया। मने देखा िक वह भारत के सबसे बड़े काशन के
चेयरमैन थे। मने उ ह ायु भाव से देखा। उनक कंपनी के पास हजार लोग अपनी पु तक
कािशत कराने के िलए आवेदन िदया होगा लेिकन बहत कम लोग के ताव को मंजरू ी िमली
होगी। और यहां पर ई र क अनुकंपा से इतने बड़े आदमी मुझे पु तक िलखने के िलए कह रहे
ह।
मने तुरंत जवाब िदया, ‘‘िव कुल िलखंग
ू ा सर।’’
उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘हमलोग कायालय म िमलते ह अपने संपादक य टीम के साथ।’’
कुछ समय से मेरे चेयरमैन के वा य म िगरावट आ रही थी। लेिकन िपछले कुछ वष के
दौरान इस समहू क कंपिनय ने काफ गित क ।
मेरी अपनी भी पयटन कंपनी ने काफ गित क और समहू क सव म काम करने वाली
कंपिनय म से थ ।
एक िदन चेयरमैन ने मुझे घर बुलाया। वे िब तर पर थे और अभी—अभी डॉ टर उनको
देखकर गए थे। उ ह ने कहा, ‘‘मने अपनी िज़ंदगी जी ली है।’’ इससे म समझ गया िक उ ह ने
कोई मह वपण ू बात कहने के िलए मुझे बुलाया है।
उ ह ने आगे कहा, ‘‘डॉ टर ने मुझे अभी—अभी कहा है िक अपने वा य के ित सचेत
रह। म जानता हँ िक अब इस धरती को छोड़ने का मेरा समय आ गया है।’’
‘‘मेरे िपता ने अपना यवसाय मुझे स पा था और मने इसे आगे बढ़ाने के िलए अपनी ओर से
भरसक यास िकयार। मुझे स नता है िक मने अपनी भिू मका बखबू ी िनभायी।’’ ऐसा कहते हए
वे संतु िदखे। ‘‘अब मेरा एक अंितम कत य है — अपने बाद के चेयरमैन को िनयु करना।’’
वे अतीत क मिृ तय को खंगालने लगे, ‘‘अनेक वष से हमारे समहू क कंपिनय के
चेयरमैन एक ही प रवार से वंशानुगत होते आए ह। मगर अब एक बड़े प रवतन का समय आ
गया है।’’
उ ह ने मेरी आँख म देखा और कहा, ‘‘समय बदल गया है और हमलोग अब एक पेशेवर प
से संचािलत यवसाियक घराना बन गए ह। इसिलए पहली बार हमलोग चाह रहे ह िक अगला
चेयरमैन ऐसा यि होना चािहए जो िक बड़े भारतीय बहरा ीय कंपनी को चलाने म स म हो
— यह िनणय उसक पा रवा रक प ृ भिू म के आधार पर नह होना चािहए बि क उसके काय के
आधार पर।
मे आरे बयािचे बड़ेमकहोप ृरहेभथेिू म। वेकेअबसाथकॉलेउ हजबड़ेम पहँकरनेच गएके थेअ। मेुतरेकाय
माता—िपता और प नी उ ह उिचत
म लगे हए थे।
कहा जाता है िक ‘अपने ब च को पहले जीवन मू य िसखाएं िफर उ ह मू यवान व तु द।’
मेरे ब चे वैभवपणू प रवेश म ज म िलए थे। वे ऐशो—आराम क िज़ंदगी जी रहे थे। मुझे
अनुमान है येक पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी के प र म का उपयोग करती है।
हालांिक म यवसाियक प ृ भिू म वाले एक म यवग य प रवार म पैदा िलया था लेिकन अब
मेरा प रवार एक उ च आय वाला प रवार बन गया था।
मेरे िलए अब उ च अथवा म यवगग जैसा आिथक वग करण कोई मह व नह था। अब म
आ याि मक प ृ भिू म वाले लोग को अिधक मह व देता था।
मेरी तरह मेरे ब चे भी आ याि मक प रवेश म बड़े हए थे। भगव ीता पढ़ते हए और उपिनषद्
समझते हए तथा राम एवं कृ ण क कहािनयां सुनते हए वे सहज प से बड़े हए थे।
मेरे बचपन क तुलना म मेरे ब च का बचपन अिधक लाभकारी रहा। मुझे अपने दादा—दादी
से िमलने के िलए अपने गाँव जाना पड़ता था य िक म अपने माता—िपता के साथ रहता था
जबिक मेरे ब च को यह लाभ है िक उनके िलए उनके दादा—दादी हमेशा उपल ध रहते ह।
मेरी प नी िव िव ालय म अपने िश ण पेशा के ित ितब थी। उ ह अकादिमक े म
काफ ित ा िमली। उ ह ने भी पु तक िलखना शु क और पाठक ने उनक पु तक क
सराहना क ।
दुिनयाभर म िविवधतापण ू काय म संल न एक बहरा ीय कंपनी के चेयरमैन होने के कारण
म बहत य त रहता था। लेिकन मने यह सुिनि त िकया िक म एक पा रवा रक यि भी बना
रहंगा। म काय और जीवन के बीच यथासंभव संतुलन बनाए रखने क कोिशश करता था।
मुझे इस बात को वीकार करने म कोई िझझक नह है िक कंपनी से जुड़ी िविभ न
िज मेदा रय के कारण ऐसा हर बार संभव नह होता था। िफर जब मुझे समय िमलता था तो
ए
क यवसायी के प म मने सरकार और राजनेताओं को करीबी से देखा है। म यह िनणय
नह दे रहा हँ िक राजनेता अ छे होते ह अथवा बुरे। न तो म यह कह रहा हँ िक सरकार और
इसके िनयम बुरे ह।
मेरा मत यह है िक सरकार क दुिनया एक यवसायी क दुिनया से िव कुल ही अलग होती
है। हम सभी अपनी छोटी—सी दुिनया म रहते ह। मेरे जैसे यवसायी को अपने अनुसार जीवन
जीने क परू ी वतं ता होती है लेिकन सरकार के अपने कायदे—कानन ू होते ह।
अब तक सरकार म मेरे बहत—से दो त हो गए थे। म आ त नह था िक मेरा बेटा िजस
दुिनया म जाना चाह रहा था उसके बारे म वह जानता था अथवा नह ।
मने उससे सीधा िकया, ‘‘तु हारे सामने इतने िवक प ह िफर भी तुम सरकारी सेवा म
य जाना चाहते हो?’’
‘‘कोई भी सरकारी काम नह पापा, म भारतीय िवदेश सेवा — आई.एफ. एस. म जाना चाहता
हँ।’’ उसने गव के साथ कहा।
मने उससे कहा, ‘‘ठीक से प करो।’’ म हमेशा यह मानता था िक ब चे अपना कॅ रयर
खुद चुन िकंतु जब ऐसा समय आया तो म उनके सामने अवरोध बन रहा था।
‘‘पापा, देश सेवा के अनेक मा यम ह। उनम से एक है लोक सेवा म होना।’’ उसने िफर कहा।
‘‘आज दुिनया एक वैि क ाम बनती जा रही है। िविभ न देश के बीच िनकट संपक बनते
जा रहा है। ऐसे म हमे अपनी सं कृित को यथासंभव सव म तरीके से िदखाने क आव यकता
है। म महसस ू करता हँ िक म आई.एफ.एस. अिधकारी के प म अपने देश क सेवा कर सकता हँ
— महान भारतीय सं कृित का राजदूत।’’
‘‘तो तुम एक नौकरशाह बनना चाह रहे हो?’’ यह िवचार मुझे िव कुल ही पसंद नह था।
‘‘ य नह ?’’ उसने पलटकर जवाब िदया। उसे गु सा आ गया। ‘‘ या कौिट य ने अपने
अथशा के भाग एक के अ याय 16 म राजदूत के मह व पर काश नह डाला है?’’
‘‘आप जानते ह िक पापा, बचपन से जबसे आपने अथशा के साथ मेरा प रचय कराया है
तब से यह अ याय मेरे मन म बस गया है। एक राजदूत क रणनीितगत भिू मका पर िवचार
क िजए।’’ म उसक बात को सुन रहा था।
‘‘म अपने देश क र ा इस प म करना चाहता हँ। भारत भिव य म वैि क तर पर जो
खेल खेलेगा म उसका िह सा बनना चाहता हँ।’’ उसने समापन िकया।
कुछ देर के िलए हम दोन मौन हो गए। मेरे पु ने जो सदमा मुझे िदया था उससे म उबरने क
कोिशश कर रहा था। उसे अपनी चु पी तोड़ी, ‘‘यिद आप सहमत नह ह तो म यह काम नह
क ं गा।’’ उसक आँसी आँख को म देख सका।
म बहत िवत हो गया, ‘‘नह बेटे, म यह नह कह रहा िक तु ह सरकारी सेवा म शािमल
नह होना चािहए। म यही आशा करता हँ िक तुम अपने िनणय के िविभ न पहलुओ ं के बारे म
ठीक से िवचार कर लो।’’ उससे मेरी यही सलाह थी।
‘‘पापा, बचपन से मने अपने िलए केवल यही एक सपना देखा है। म एक आई.एफ.एस.
अिधकारी बनने के िलए िसिवल सेवा क तैयारी करते रहा हँ।’’ उसने मुझे िदखाया िक आगामी
ितयोगी परी ा के बारे म उसने कैसी तैयारी क है।
उसने आगे कहा, ‘‘पापा, आप मेरे रोल मॉडल रहे ह। मने आपको हमेशा ा क नजर से
देखा है। आप ही क तरह मने चाण य और उसके िवचार को पसंद िकया है। अब म अपने जीवन
कॅ रयर के प म इस भिू मका का िनवाह करना चाहता हँ।
मने महसस ू िकया िक येक पीढ़ी अपनी पवू वत पीढ़ी से होिशयार होती है। उसने अपना
होमवक ठीक से िकया था। वह जानता था िक वह इस कॅ रयर को लेकर आगे बढ़ने वाला है। मने
उसे हतो सािहत नह िकया और न ही एक बोझ बना।
मने मु कुराया, ‘‘इस संबंध म अपना माँ से अव य बात कर लो और अपने दादा—दादी का
आपके ब चे आपके नह ह
वे जीवन के ित चाहत क उपज ह
वे आपके मा यम से यहाँ आए ह मगर आपसे नह
हालांिक वे आपके साथ ह, मगर आपके अधीन नह ।
म ऑिफस
हो?’’
जाने के िलए अपने घर पर तैयार हो रहा था। ‘‘िकस अखबार क तुम बात कर रहे
ए ज यिू टव अिस टट ने जोर से कहा, ‘‘सर, कोई भी अखबार उठा ल, सबक मु य खबर
एक ही है।’’
वह इतना अिधक उ ेिजत था िक उसक बात का कोई कारण जान पड़ा। टेबल के पास रखे
अखबार क एक ित लेने के िलए म गया। इसे िकसी ने छुआ नह था य िक सब अपनी
ात:कालीन िदनचया म य त थे।
मने मु य प ृ पर अपनी त वीर देखी। मुझे घोिषत िकया गया था ...
अचानक अपने कमरे से मेरी बेटी िच लाते हए बाहर िनकली, ‘‘पापा, आपने अखबार देखा है
या?’’ वह एक दूसरा अखबार िदखा रही थी िजसे वह अपने कमरे म ले गई थी।
‘‘इसम िलखा है िक एक नामी पि का ने आपको भारत का सबसे धनी यि घोिषत िकया
है।’’
म भ च का रह गया। मने अखबार पढ़ना शु िकया और पाया के एक सव ण म मुझे भारत
का सबसे धनी जीिवत यि घोिषत िकया गया है।
एक ण के िलए मेरा मन अतीत म चला गया जब यह मेरा सपना हआ करता था और म इस
सपने को परू ा करने क िदशा म प र म करता था। हालांिक बहत साल पहले ही म पैसे क
वा तिवकता से प रिचत हो गया था। उसके बाद मेरे िलए यह कोई ल य नह रह गया था।
मेरे िलए पैसे तो सं या का खेल है जो ऊपर नीचे होते रहता है। ऐसा नह है िक मेरे पैसे के
बारे म दुिनया को पता है तो म ही सबसे धनी यि हं, और भी लोग मेरे से अिधक धनी हो
सकते ह। सं ेप म, दुिनया िजसे एक बड़ी उपलि ध मानती थी उससे म बहत उ ेिजत नह था।
लेिकन साथ ही, मने महसस ू िकया िक उन लोग को कम करके नह कहा जाए जो ऐसे
सपने देख रहे ह। या म उ ह लोग जैसा नह था जब बहत सा पहले मने अपनी या ा शु क
“स
र, मने आपक सभी पु तक पढ़ी ह और यहाँ तक िक आपक आ मकथा भी।’’ िफर
उसने कहा, ‘‘म बचपन से आपका अनुसरण करते रहा हँ। आप मेरे रोल मॉडल ह।’’
िकसी स मेलन म या यान देने का यह पया कारण नह था। मेरे हजार
शंसक थे िज ह ने मुझे अपना रोल मॉडल बनाया था।
उसके अगले कथन ने मेरा यान आकिषत िकया, ‘‘बहत साल पहले यन ू ान म आयोिजत
िव दशनशा काँ ेस म भारत के ितिनिध के प म आपने या यान िदया था।’’
‘‘उस समय आपने कौिट य के अथशा और बंधन म इसक ासंिगकता िवषय पर
या यान िदया था।’’ उसे सही त य मालमू था।
‘‘अगले साल िव दशनशा काँ ेस का आयोजन भारत म िकया जा रहा है। हमलोग
इसका आयोजन पहली बार करने जा रहे ह।’’
यह बात मेरे िलए एक खबर थी। अपने पी—एच.डी. शोध िनदिशका और अ य िम के साथ
यनू ान जाने क याद ताजा हो गई ं। ‘‘बहत खबू , हमलोग इसका अयोजन करने जा रहे ह?’’
भारतीय होने पर मुझे गव था।
‘‘सर, अनेक वष तक भारत और इसके दशन को वह स मान नह िमल सका। आप हमारी
सं कृित म पैदा हए ह। आप न केवल संसार के सबसे धनी यि बने ह बि क आपक सफलता
आ याि मक मू य पर आधा रत है और आपने जीवन के हर मोड़ पर अथशा का अनुसरण
िकया है।’’
उसने आगे कहा, ‘‘आप सबसे धनी यि बने और बहत से लोग ने सदमाग पर चलते हए
धनाजन का रा ता अपनाया। आज भारत िव का सबसे धनी देश है।’’
म सुनते जा रहा था। उनका अनुरोध इस बात पर समा हआ, ‘‘यह िव के िलए एक बड़ा
संदेश होगा यिद आप िव दशनशा काँ ेस म बीज व य दगे। इससे दुिनया को एक नई
िदशा िमलेगी। भारत और इसक स यता का ितिनिध व करने वाला आपसे बेहतर दूसरा कोई
स
मय आप से बहत कुछ ले लेता है।
मेरे िदल के करीब जो भी लोग थे वे सभी इस संसार से िवदा हो चुके थे — मेरे माता
—िपता, अथशा के मेरे गु , भ यवसायी, मेरे चेयरमैन, िविभ न आ याि मक गु
और मेरे अ य दो त।
मने इन सबके िदए हए ान को याद िकया। जीवन के िवभ न मोड़ पर ये लोग मेरे
मागदशक रहे ह। जब कभी पीछे मुड़कर देखता हं तो इनके ित कृत ता के भाव से भर जाता
हं।
समय के साथ म भी शारी रक प से कमजोर हो गया था िकंतु मानिसक प से मजबत ू
तथा पण ू महसस ू कर रहा था। म िकस बात क ती ा कर रहा था — सुकून से भरी म ृ यु?
वा तव म, म तो वष पहले मर चुका था। असली म ृ यु शरीर क नह होती बि क अहंकार
क । ऐसा मेरे साथ वष पहले हो गया था। देह अपनी सहज या ा पर था।
जब समय आएगा तो व ृ से सख ू े प े क भांित अलग हो जाएगा। प को पेड़ से िगराने के
िलए िकसी यास क ज रत नह होती है। भगवान मुझे जहां ले जाएं गे वहां म जाने के िलए
तैयार था... मुझे िकसी बात क परवाह नह थी।
मेरे ब च के भी ब चे हो गए थे। मेरे चार पोते—पोितयां थ । डॉ टर और हम एक गाँव म बस
गए थे, फाम हाऊस म बहत साल गुजारने के बाद।
डॉ टर और म एक साथ समय गुजारकर स नता का अनुभव कर रहा थे। लोग कहते ह िक
उ बढ़ने से यार भी गहरा हो जाता है। िववाह के इतने वष के प ात् हम एक—दूसरे को परू ी
तरह से जान गए थे। हमारे बीच पण ू लय कायम था। हम जब कभी बात करते थे तो एक—दूसरे
को समझते रहते थे। अनेक बार हमलोग िबना बोले ही बात कर लेते थे। मौन भी हमारे स ेषण
का तरीका था।
म अपना अिधकांश समय अ ययन, यान और पु तक लेखन म यतीत करता था। दुिनयाभर
ले खन से मुझे हमेशा परम आनंद िमला है। दो बे ट सेलर पु तक िलखने के बाद मुझे बहत
संतुि िमली लेिकन इससे मेरे कंधे पर एक िज मेदारी भी आ गई िक पाठक के अगले बे ट
सेलर ा करने क चुनौितय को परू ा करने क ।
तब म सोचने लगा िक मुझे आगे या िलखना चािहए।
म हमेशा से क पना धान कथा सािह य क ओर आकिषत रहा हँ। यह हमेशा से मेरे मन के
करीब रहा है। इसिलए मने महसस ू िकया िक अब समय आ गया है जब म कुछ अलग प र े य से
िलखँ।ू
सफलता पाने के िलए अनेक वष से म बहत—से यात उ ोगपितय का मागदशन करते
रहा हँ। ये लोग चाहते ह िक भिव य म इनक संतान भी अद य सफलता ा कर। केवल यही
लोग ही नह बि क संपण ू युवा पीढ़ी उपलि ध क तलाश म है और इसके िलए उपयु ान को
अपने जीवन म उतारना चाहती है।
इसी िवचार ने मुझे वा य िकया िक म कौिट य के अथशा क अपनी समझ को का पिनक
ताने—बाने म िपरोकर तुत क ं िजसका उपयोग हर यि के जीवन म हो सके।
जब इसक पांडुिलिप को काशक के सम तुत क गई तो उ ह ने एक सुझाव िदया,
‘‘हम इस पु तक को एक वाह म पढ़ सकते ह!’’ उनका अगला था, ‘‘ या यह आपक
अपनी कहानी है?’’ िजसका जवाब मने सं ेप म िदया िक येक पु तक म लेखक के िनजी
अनुभव क छाप तो रहती ही है।
जी हां, पु तक के कुछ अंश मेरे अपने जीवन से जुड़े हए ह। लेिकन सबसे मह वपणू बात है
िक इसम ऐसे िविभ न लोग क दा तान ह िजनके संपक म म आया था।
‘आप म चाण य’ युवा भारत के उन सपन , हताशाओं एवं चुनौितय को उजागर करने का
एक यास है िजनसे यह देश हर कदम पर जझ ू रहा है। यह उन दूर ि संप न यि य के िलए
भी है िज ह ने देश को वैभव के िशखर पर लाया है।
मुझे आशा है िक आपको पु तक पढ़ने म आनंद आया होगा जैसा िक मुझे इसके लेखन म
आया। और आप इस कहानी से अंतरं ग संबंध थािपत कर पाए ह गे जैसे िक यह कहानी आपक
अपनी कहानी हो।
इस पु तक को कथा सािह य के साथ—साथ बंधन एवं जीवन—िश ा पी पु तक क
तरह भी पढ़ा जा सकता है िजससे आपको जीवन म आगे बढ़ने म मदद िमल सकती है।
अथशा एवं चाण य का ान मुझे मेरी या ा म इसी तरह मागदशन करते रह ......