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आप म
चाण य
एक आधुिनक िकंगमेकर क साहसपण
ू पहल क दा तान

Chanakya in You

राधाकृ णन िप लई

जयको पि लिशंग हाउस


अहमदाबाद बगलोर भोपाल भुबने वर चे नई
िद ली हैदराबाद कोलकाता लखनऊ मु बई

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काशक
जयको पि लिशंग हाउस
ए-2 जश चबस, 7-ए सर िफ रोजशहा महे ता रोड
फोट, मु बई - 400 001
jaicopub@jaicobooks.com
www.jaicobooks.com

© राधाकृ णन िप लई

CHANAKYA IN YOU
आप म चाण य
ISBN 978-81-8495-968-0

अनुवादक : डॉ. ओ. पी. झा

पहला जयको सं करण: 2017

िबना काशक क िलिखत अनुमित के इस पु तक का कोई भी


भाग, िकसी भी कार से इ तेमाल नह िकया जा सकता, न कॉपी
कराई जा सकती है, न रकािडग और न ही क यटू र या िकसी
अ य मा यम से टोर िकया जा सकता है।

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अंतव तु

1. दादाजी क सलाह
2. भारत का इितहास
3. राज-िनमाता
4. अथ-शा
5. शतरं ज यानी C-H-E-S-S
6. मेरे अंदर नेत ृ व-कौशल का िवकास
7. पु तक ेम
8. चाण य पर िट पणी
9. गु - सबसे बड़ा
10. दादाजी से िपताजी तक
11. एक िश क, एक छा
12. छ: माह के िलए िवदाई
13. अंतया ा
14. मेरे अथशा गु
15. िनयम
16. िव ा-आरं भ
17. आ म म वेश
18. अलग तरह के लेखाकार
19. भ यवसायी
20. अ ययन प ित
21. िविभ न मत – आपका मत
22. िचंतन – मानव समाज को एक उपहार
23. िचंतन के साथ कम भी
24. स मेलन
25. अंितम िदन
26. घर–आगमन
27. योितष-शा ने राह िदखायी
28. सं कृत के ोफेसर

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29. सा ा कार
30. िवज़न पर चचा
31. चेयरमैन के पास िश ण
32. मेरे नए बॉस
33. दो अ छी खबर
34. जुड़ाव
35. आगे क राह
36. यवसाय योजना
37. थम चरण
38. िव े ता से सहयोगी तक
39. बड़ी या ा
40. आ याि मक सहया ी
41. गित का अगला चरण
42. बचपन के िम का मागदशन
43. डॉ टर का अनुरोध
44. एक भारतीय यवसायी का या यान
45. संतान-सुख
46. धन से मो
47. वा तिवक चुनौती
48. डॉ टर ने एक डॉ टर बनाया
49. िव ान से लेखक तक
50. सवािधक िबकने वाली पु तक
51. आजादी का अ ुत एहसास
52. मेरे अंदर का नेत ृ वकता
53. पा रवा रक यि
54. अपनी राह का चयन
55. ढ़ िन यी बन
56. या मने ऐसा िकया?
57. वयं क खोज
58. मेरी बाद क िज़ंदगी
59. अंितम या यान
समापन िट पणी

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1
दादाजी क सलाह

मे रे दादाजी बहत यारे थे ......


मुझे लगता है िक सभी दादाजी यारे होते ह। मगर अपने दादाजी के साथ मेरा र ता कुछ
अलग तरह का था। सबसे पहले यह प कर दँू िक म अपने नानाजी को देख नह पाया, मेरे
जीवन म दादाजी ही थे। साथ ही, मेरा लालन—पालन एक महानगर म हआ जबिक मेरे दादा—
दादी अपने गाँव म रहते थे।
इसिलए हर बार छु ी म उनके पास जाने के िलए इंतजार करते रहता था। यह हमलोग के
िलए — मेरे और दादा—दादी के िलए एक खास मौका होता था। वे अपने पोते—पोितय का
इंतजार करते रहते थे िक वे उनके पास आकर समय िबताएं । म जब छोटा था तभी जान गया था
िक जब तक म उनके साथ रहँगा तब तक मेरी शरारत पर इस दुिनया म कोई भी अंकुश नह
लगा पाएगा ..... मेरे माता—िपता भी नह । मुझे मनमानी करने क परू ी छूट थी।
एक कहावत है : ‘‘दादा—दादी और पोते—पोती य एक—दूसरे को पसंद करते ह?’’
‘‘ य िक उनका दु मन एक ही होता है ...’’
यही वजह है िक इन दो पीिढ़य के बीच एक अनठ ू ा र ता होता है। माता—िपता के प म
आपक बहत सारी िज मेदा रयां होती ह। इसिलए आप ब च के साथ उतना समय नह दे पाते ह
िजतना िक आपको देना चािहए जबिक आप हक कत म उनके साथ अ छा—खासा व त
गुजारना चाहते ह गे।
जहाँ तक मेरे दादा—दादी का सवाल है उ ह दुिनया—दारी के िलए काफ व त था और वे
चाहते थे िक िकसी को वे यार कर तथा वह उस यार को महसस ू करे । उ ह अपने जीवन क
तिृ पोते—पोितय के यार से होती थी। और ब चे उनके जीवन—अनुभव को उनसे कहािनयाँ
सुनकर, उनके साथ बगीचे, मैदान और बाजार म घम ू कर ा करते थे।
मेरे दादाजी को कहानी सुनाने म महारत हािसल थी। कई कहािनयाँ उनके खुद के जीवन से
जुड़ी होती थ , मगर अिधकांश कहािनयाँ दूसरे के जीवन पर ही आधा रत होती थ । वे हम अपना
पु तकालय िदखाते थे िजनम पु तक भरी पड़ी रहती थ । दादी रसोई म य त रहती थी और

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सबके िलए तरह—तरह के पकवान बनाया करती थी।
मुझे और मेरे चचेरे भाई—बहन को उनक िकताब म कोई खास िदलच पी नह रहती थी,
मगर उनका हम सब पर बहत अिधक भाव था और उनका पु तकालय तो अ ुत था। यहाँ पर
उनक अपनी दुिनया थी। िकताब बहत ही सलीके से रखी गई ं थ । वे िवषय के मुतािबक सजाकर
रखी गई थ । उन पर िज द लगी होत थ और उन पर लेबल लगा रहता था। उ ह ने हम एक
रिज टर भी िदखाया िजसम िविभ न कार क पु तक क सच ू ी थी — िव ान से िव
सािह य तक तथा किवता से पिटंग तक। उनक अिभ िच का फलक बहत बड़ा था। मुझे उनके
भारी—भड़कम अलफाज से भरी िकताब को पढ़ने से कह अिधक िदलच पी उनसे कहािनयाँ
सुनने म थ । साथ ही दादाजी िविभ न पु तक के अपने अ ययन के आधार पर घटना म को
यादकर वैसी कहानी गढ़ने क कला म बहत ही िनपुण थे िजसे हम ब चे समझ सकते थे।
हमसे काफ बड़े एक चचेरे भाई थे जो बहत ही पढ़ाकू थे। उ ह ने एक बार दादाजी से पछू ा:
‘‘दादाजी, िकसका अिधक मह व है — िकताब पढ़ने का या िफर कहािनयाँ सुनने का?’’
दादाजी ने बहत ही उ साह म कहा — ‘‘दोन का। हर िकसी को िकताब पढ़ने म न तो
िदलच पी होती है और न ही धैय मगर हर कोई कहानी सुनना चाहता है। तुम देखोगे िक एक
बार जब तु ह कहानी म िदलच पी हो जाती है तो तुम वही नह रह जाते जो तुम पहले थे।’’ िफर
हमलोग जो उनके आसपास बैठे थे उन सबक ओर इशारा करते हए उ ह ने कहा : “तुम लोग
खुशिक मत हो िक तुम कूल जाते हो। तु ह िकताब पढ़ने क वाकई आदत डालनी चािहए।’’
ऐसा महसस ू हआ िक दादाजी ने मुझे एक संदेश िदया है। हमलोग उन िगने—चुने
खुशिक मत लोग म से थे िज ह अ छी िश ा िमली। और इसिलए हम िकताब पढ़नी चािहए।
दुिनया म बहत—से ऐसे ब चे ह िज ह कूल जाने का अवसर ही नह िमलता है। इसिलए वे पढ़
—िलख नह सकते। ऐसे ब च के पास दुिनया को समझने का एक मा सहारा होता है
परं परागत शैली म िक से—कहानी सुनना। और तभी से मने िकताब पढ़ने क आदत िवकिसत
करने का िनणय िलया — एक ऐसी आदत िजसका पालन मेरे दादाजी जीवनभर करते रहे ।
उस शाम हमलोग को दादीजी, और चाचा—चाची के साथ बाजार जाना था। हम लोग उस
व त का इंतजार कर रहे थे य िक हम उ मीद थी िक सड़क िकनारे क िकसी दुकान से हम
कुछ चटपटी चीज िखलायी जाएगी। लेिकन िकसी वजह से मुझे बाहर जाने का मन नह हआ। म
चाहता था िक अिधक से अिधक समय अपने दादाजी के साथ रहँ।
जब मेरे सभी चचेरे भाई—बहन बाजार चले गए तब म दादाजी को ढूँढ़ने के िलए पु तकालय
पहँच गया। वह अपनी कुस पर बैठे हए िकसी िकताब को पढ़ने म त लीन थे। जब उनक नजर
मेरी ओर गई तो वे मुझे अकेले खड़े देखकर हैरत म पड़ गए।
‘‘तुम बाजार य नह गए?’’
मने इतमीनान से जवाब िदया : ‘‘दादाजी, म आपक िकताब देखना चाहता था।’’
उनके चेहरे पर मु कान छा गई जैसे वे कहना चाहते ह — ‘‘बहत खबू मेरे ब चे, िकताब
क दुिनया म तु हारा वागत है।’’
अगले एक घंटे के दौरान उ ह ने िविभ न रै क पर सहे जकर रखी हई अपनी िकताब से

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हमारा प रचय कराया। उ ह ने अपनी कुछ ि य पु तक को खोलकर मुझे िदखाया उन सभी म
उनके िलखे हए नोट थे।
मुझे िजन ंथ ने सबसे अिधक आकिषत िकया वे थे भारत के ाचीन ंथ। उनके पास सब
कुछ — रामायण, महाभारत और उपिनषद् जैसे ंथ से लेकर पंचतं जैसे िश ा द कहािनय
क िकताब थ । तब मुझे उनके पास कहािनय के खजाने का राज मालम ू हआ।
अचानक मेरे िदमाग म एक सवाल आया और मने उनसे पछ ू िलया : ‘‘दादाजी, इनम से
आपक सबसे ि य पु तक कौन—सी है?’’
उ ह ने फौरन जवाब िदया: ‘‘कौिट य का अथशा ।’’
मने िव मय के साथ िकया : दादाजी, उसम या है?’’
वे मेरे मन क बात जान गए। उ ह ने उस ंथ को िनकाला और मुझे टेबल के पास ले गए।
‘‘कौिट य को चाण य के नाम से भी जाना जाता था।’’
थोड़ी ही देर म म कहानी क एक नई दुिनया म वेश करने लगा।

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2
भारत का इितहास

बा सजारुनाईसेदेवापस हो रहे मेरे चचेरे भाई—बहन के उ ेजना से भरे शोर—गुल मुझे दूर से ही
ने लगा। वे सभी दादाजी के पास दौडे —दौड़े पु तकालय म आए। वहां पर उनके
आने के दो मकसद थे। एक तो वे यह जताना चाहते थे िक वे दादाजी से और भी कहािनयाँ
सुनना चाहते ह। दूसरा वे मुझे यह बताकर सताना चाहते थे िक बाजार न जाकर म बहत कुछ से
वंिचत रह गया। लेिकन वे नह जानते थे िक बाजार न जाकर दादाजी के साथ घर पर रहने से
मुझे लाभ ही लाभ िमला है। उ ह या मालम ू िक मने दादाजी के साथ िबताए उन खास ल ह को
अपने जीवनभर क पँज ू ी बना लँग ू ा।
एक बार िफर हमलोग दादाजी के पास अगली कहानी सुनने के िलए बैठ गए। मेरे चचेरे भाई
—बहन के िलए यह एक नई कहानी थी मगर मुझे यह समझना था िक कौिट य के अथशा
म या है।
असली बात बताने से पहले कहानी का ताना—बाना बुनने का दादाजी का ढं ग बहत ही
िदलच प था। वे इस अंदाज़ म य का बखान करते थे जैसे वे हमारी आँख के सामने घिटत हो
रहे ह और हम उसी समय म जी रहे ह । हमारी क पनाशीलता को उवरा बनाने क उनम अ ुत
मता थी।
उ ह ने कहना शु िकया, ‘‘भारत का इितहास अनठ ू ा है। यह बहत ही संप न एवं िव ततृ है।
भारत के इितहास म जहां एक ओर िकले, महल एवं मंिदर जैसे मारक का वणन है, वह दूसरी
ओर इसम राजे—महाराजे, साधु—संत सिहत िव ान से लेकर कला तक के िविभ न िवषय से
संबंिधत सािह य का उ लेख है। मगर इसका सबसे अहम प है अ या म।’’
ू ा, ‘‘दादाजी, यह अ या म या होता है?’’
मेरे एक चचेरे भाई ने पछ
‘‘तुमने अ छा िकया। अ या म ई र क खोज है, यह जीवन का अथ समझने का एक
यास है। यह सामा य से िविश बनने क या ा है, अपने अंदर क िवशाल संभावनाओं को
तलाशने का मा यम है। यह असंभव को संभव कर िदखाने क मता है। साथ ही अपने अहंकार
को न करने का नाम आ याि मकता है।’’

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दादाजी थोड़े —से ओजपण ू श द म भारतीय इितहास के मल ू त व का वणन कर रहे थे।
मेरे एक िज ासु चचेरे भाई ने पछ ू ा, ‘‘भारत म मुझे अ या म कहाँ िमलेगा?’’
‘‘हर जगह। यह हर जगह मौजदू है। तुम इसे मंिदर एवं अ य पज ू ा थल म देख सकते हो।
यह हमारे घर और सड़क पर िमल सकता है। तुम िजस मिू त क पज ू ा करते हो उसम या िफर
यान क अव था म यह िमल सकता है। यह हमारी सं कृित का मल ू त व है।’’
म उलझन म पड़ गया। दादाजी भाव के तर पर बात कर रहे थे जो िक हमारी समझ से परे
थी। हो सकता है िक उनक बात को सही अथ म समझने क तब मेरी उ नह हई हो अथवा उन
बात का बोध मुझे आगे चलकर होता। मने अनुमान िकया िक अ या म को समझने के िलए एक
खास तर क समझदारी का होना अिनवाय है।
मने उनसे पछू ा, ‘‘दादाजी या बड़े होने पर म समझदार हो जाऊंगा?’’
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘जब तुम समझदार हो जाते हो, तभी तुम वा तव म बड़े होते हो।
समझदारी उ से नह , बि क जीवन के बारे म समझ से आती है। ऐसे बहत से लोग होते ह जो
उ के िहसाब से बढ़ ू े हो जाते ह लेिकन जीवन के बारे म वे नादान ही रहते ह। दूसरी ओर अनेक
ब चे अपने िज मेदार आचरण के कारण बहत समझदार होते ह।
वा तव म, हमारे अनेक संत ने कम ही उ म अनेक पीिढ़य को अपने उपदेश से मागदशन
िकया। ाने र महाराज, आिदशंकराचाय, वामी िववेकानंद जैसे संत ने युवा अव था म ही
अपने शरीर का याग िकया मगर इ ह ने बुजुग नर—ना रय का मागदशन िकया। गु —
िश य परं परा म अनेक ऐसे उदाहरण ह जहां पर गु क उ िश य से कम थी।’’
‘‘िश क क उ छा से कम? अरे वाह’’, म मन ही मन मु कुराया और कहा, ‘‘िफर या
बात है, यिद म ज द समझदार बन गया तो अपने कूल के िश क को भी कुछ पाठ पढ़ाऊंगा।’’
उलझन से उबरने के िलए हम सभी भाइय —बहन ने एक साथ िकया, ‘‘लोग समझदार
कैसे बनते ह?’’
‘‘समझदारी िवकिसत करने के अनेक माग ह। मगर सबसे सरल माग है इितहास का
अ ययन करना। इितहास अतीत म इस धरती पर ज म लेने वाले लोग के अनुभव से भरा हआ
है। इसम उन घटनाओं, कहािनय और संग का उ लेख है िजनसे तु हारे पवू ज को गुजरना
पड़ा। यह उन उपाय के बारे म बताता है िजनके सहारे स यताओं ने समय क चुनौितय का
सामना करते हए अपना अि त व बनाए रखी। इसम हमारे पवू ज क गलितय का भी उ लेख है।
और सवािधक मह वपण ू है िक इसम तु हारी कहािनय का भी उ लेख है। इसिलए लोग िह ी
को िहज— टोरी भी कहते ह।’’
म अपने कूल म इितहास का अ छा छा नह था लेिकन दादाजी ने इसम मेरी िदलच पी
जगा दी। ‘‘दादाजी, मुझे इितहास म िदलच पी नह है य िक ऐितहािसक ितिथय को म याद
नह रख सकता। यह काम मेरे िलए अ यंत किठन है।’’
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘हाँ, म समझता हँ। कभी—कभार ितिथय से उलझन पैदा होती
है लेिकन इितहास से मेरा मतलब कुछ ितिथय को याद करके परी ा म िलखने मा से नह है।
इितहास से मेरा मतलब उन गलितय से बचना है िजसे अ य लोग ने क थी।

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इस दुिनया म तीन तरह के लोग होते ह। पहले तरह के लोग गलितयां करके उनसे सीखते
ह, दूसरे तरह के गलितयां करते रहते ह मगर उनसे कभी नह सीखते ह और तीसरे तरह के
लोग सबसे बुि मान होते ह जो दूसर क गलती से सीखते ह।
यिद तुम होिशयार हो तो तुम महसस
ू करोगे िक तु ह वयं पर योग करने क ज रत नह
पड़े गी। तुम पहले चरण ही सफलता ा कर सकते हो। िजस काम को परू ा करने म अनेक
पीिढ़य को म करना करना पड़ा उसको तुम कुछ ही वष म परू ा कर सकते हो। यही ान क
शि है जो पु तक को प म एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के पास पहँच जाती है।’’
म एक अलग ही भावलोक म पहँच गया था लेिकन ‘पु तक ’ श द को सुनते ही एक ही
झटके म सचेत हो गया। प रचचा को सही िदशा म मोड़ने के िलए मने कहा, ‘‘दादाजी, आप तो
कौिट य के अथशा के संबंध म चचा कर रहे थे।’’
शु म म अपने चचेरे भाई—बहन से नाराज था। दादाजी ने इस वाता क शु आत उस समय
क थी जब वे लोग बाजार से आ चुके थे लेिकन शोरगुल के बीच वे मु य िबंदु से ही भटक गए।
मगर अब पुन: ऐसा लगने लगा था िक दादाजी पुन: असली बात पर लौट रहे थे। म कौिट य के
बारे म अिधक से अिधक जानकारी ा करना चाहता था।
‘‘कौिट य का समय ईसा पवू चौथी शताि द था .......’’
मेरे सामने इितहास का एक नया अ याय खुलने लगा था ....

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3
राज-िनमाता

“उ
ह तीन नाम से जाना जाता था।’’ इनम से येक नाम के पीछे एक—एक कहानी है।
दादाजी ने इन कहािनय के बारे म िव तार से अ ययन िकया है।
‘‘िव णुगु , कौिट य और चाण य।’’
‘‘सबसे पहले उ ह िव णुगु नाम से जाना जाता था। यह उनका आिधका रक रे काड म
उि लिखत नाम था, जैसा िक हमारे ज म माण—प म अंिकत होता है। उनके दो त उ ह
िव णु नाम से पुकारते थे।
बाद म उ ह कौिट य नाम से जाना गया। यह उनका सबसे अनठ ू ा नाम था। इितहास के ंथ
म एवं िव तसमाज म कौिट य नाम काफ िव यात है।’’
उस समय मने महसस ू िकया िक अथशा के साथ कौिट य नाम का उ लेख िकया जाता है
न िक िव णुगु अथवा चाण य। मगर वा तव म अथशा है या? मुझे यक न था िक इस
का समाधान आगे चलकर िमल जाएगा। उस समय म कौिट य नाम का अथ जानने का यास
कर रहा था।
‘‘इस संबंध म बहत—सी कहािनयां और संदभ उपल ध ह िक उ ह कौिट य नाम कैसे िदया
गया। भारत म गो था है। गो परं परा — ऋिष परं परा के आधार पर नाम रखे जाते ह। िव ान
लोग बताते ह िक उनका ज म कौिट य गो म हआ था। इसिलए उनका नाम कौिट य पड़ा।
एक दूसरी मा यता है िक उनके पवू ज कुिटला गाँव से आए थे। एक िवचार यह भी है िक भारत
म लोग के मल ू गाँव के नाम पर लोग के नाम रखे जाते ह। उनके मल ू गाँव का नाम कुिटला
रहने के कारण उनका नाम कौिट य रखा गया।’’
उसके बाद दादाजी ने तीसरा ि कोण रखा जो िक अिधक सश था।
‘‘सबसे िस मत यह है िक उ ह ने अपने श ुओ ं को छल से परा त करने के िलए कूटनीित
का योग िकया, इसिलए उनका नाम कौिट य पड़ा।
तीसरा नाम चाण य जनसामा य के बीच अिधक लोकि य हआ। उनके िपता का नाम चणक

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थे। चणक नंद वंश के अंितम शासक धनानंद के दरबार म मं ी थे। चणक का पु चाण य अपने
राजनीित िव ान के िव ान एवं िवशेष िपता को अपना आदश मानते थे। इस कार चणक के
पु को नेह से चाण य कहा जाता था।’’
इस बात का मुझे बाद म अपने जीवन म अनुभव हआ िक हर पु के मन म उसके िपता आदश
होते ह। िपता—पु का संबंध अनठ ू ा होता है।
एक बालक क नजर म उसके िपता क छिव बहत बड़ी होती है। मगर बाद म जब पु वयं
िपता बनता है तब उससे िपता क भिू मका का सही अथ मालम ू होता है। िपता एवं पु जीवन म
एक दूसरे के ित ा, स मान एवं सराहना का भाव रखते ह।
‘‘चँिू क पु ने िपता को ही अपना आदश माना था, इसिलए वह खुद भी राजनीित िव ान का
िश क बना तथा िविभ न राजाओं के दरबार म उ ह हर प रि थितय पर रणनीित संबंधी
परामश िदया।
चाण य उस समय के सबसे िवशाल िव िव ालय, त िशला िव िव ालय म िश क एवं
छा थे। उ ह ने महान राजा बनने के िलए िविभ न उपाय के संबंध म िश ण िकया। इसिलए
उ ह राज—िनमाता के प म जाना जाता था।’’
बहत खबू ! वा तव म ‘राज—िनमाता’ श द मुझे अ छा लगा।
दादाजी ने हम लोग के बीच बहस छे ड़ दी िक ‘‘राजा अिधक शि शाली होता है अथवा राज
—िनमाता।’’
हम म से अिधकांश का मत एक जैसा था और हमने जवाब िदया, ‘‘िन संदेह राजा’’।
‘‘कोई यि राजा बन सकता है मगर राजा का एक अविध के बाद पतन हो सकता है।
दूसरी ओर कोई अनेक राजाओं को िसंहासन पर बैठा सकता है। साथ ही राजा हमेशा राज—
िनमाता के पयवे ण, मागदशन एवं िनयं ण म रहता है। इस तरह राज—िनमाता बहत
शि शाली होता है। वह िबना िकसी पद के शि शाली होता है। वह िबना स ा के सब कुछ पर
िनयं ण रखता है।’’
बड़ा होकर जब म अिधक िज मेदार बन गया तो मने महसस ू िकया िक राज—िनमाता का
अि त व आज भी है। राज—िनमाता जीवन के येक े म होते ह : राजनीित, यवसाय,
िव िव ालय, सरकारी संगठन आिद। राज—िनमाता बनना राजा बनने से बेहतर होता है।
‘‘उ ह ने अनेक िश य को िशि त िकया। िजनम से एक थे मौय वंश के पहले शासक
च गु मौय। ऐसा नह है िक उनके दूसरे िश य राजा नह बने बि क चाण य के िस ांत का
सवािधक भाव च गु मौय पर पड़ा। िव के राजा और राज—िनमाता के उदाहरण के प म
भारत के चाण य—च गु क जोड़ी क सवािधक चचा क जाती है।’’
चाण य का जीवन बहत ही िदलच प है। यह कहािनय से भरा हआ है और येक घटना से
एक मह वपण ू सीख िमलती है। िन संदेह दादाजी हम सभी कहािनयां एक ही बैठक म नह
सुनाई। हमने उन कहािनय को अनेक बार म सुना और इस दौरान हमने दादाजी के जीवन
पय त पु तक पढ़ते रहने क साधना से ेरणा ली।
कैसे धनानंद ने चणक क ह या कर दी; कैसे चाण य को अपनी जान बचाने और िश ा

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ा करने के िलए भागना पड़ा; कैसे वे त िशला के सवि य छा और उसके प ात वहां के
आचय बने। अंतत: लौटकर चाण य ने न िसफ धनानंद को हराया बि क िसंकंदर को परा त
िकया।
जब दादाजी ने िसंकंदर क चचा क उस समय हमलोग बहत ही उ ेिजत हो गए य िक
हमने अपने कूल के पाठ्य पु तक म िसंकंदर के बारे म पढ़ा था।
‘‘जी हां, वही िसंकंदर जो दुिनया को जीतने के िलए चला था उसे भारत म मँुह क खानी
पड़ी। एक यि — चाण य क बुि म ा के कारण िव के महानतम िवजेता को दुम दबाकर
भागना पड़ा।’’
चाण य के जीवन का हरे क पहलू अ वेषण क िवषय है। उ ह ने अपराजेय ेरक जीवन
जीया। वे िसफ एक महान आचाय ही नह थे बि क एक िविश रणनीितकार, िचंतक, िव ान
और स चे देशभ भी थे।
वे िकतने िविश यि थे!
दादाजी ने कहा िक ‘‘अपनी िविभ न भिू मकाओं का भावी ढं ग से िनवाह करते हए वे सदैव
धम के प म खड़े रहे ।’’
धम? मने िकया िक धम या होता है।
‘‘इस श द म िनिहत मम को समझने के िलए तु ह हमारे ाचीन भारतीय ंथ का अ ययन
करना पड़े गा। इस संबंध म इन ंथ म िव तार से वणन है। लेिकन यिद तु ह अपने दैिनक
जीवन म धम को स यक थान देना है तो इसके िलए तु ह कौिट य का अथशा पढ़ना
पड़े गा।’’
यहां से मेरे जीवन म शु हो गई अथशा क भिू मका — यह थी वयं अपने अंदर चाण य
को ढूंढने क अनंत या ा क शु आत।

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4
अथ-शा

दा दाजी के पास कौिट य के अथशा क जो ित थी वह काफ मोटी थी और वह सं कृत म


िलखी हई थी। मने इसे खोलकर देखा तो इसम जगह—जगह पर जहां कह भी खाली
थान था वहां पर दादाजी क िलखी हई िट पिणयां िदख ।
साथ ही दादाजी के पास अथशा के दो अनुवाद क ितयां भी मौजदू थ — एक अं ेजी म
तथा दूसरी उनक े ीय भाषा म। हालांिक वे सं कृत के िव ान थे और अं ेजी म भी िनपुण थे
तथािप अनुवाद के तुलाना मक अ ययन से अथशा क उनक समझ अिधक गहरी हई।
जहां तक अथशा को समझने का था तो मुझे उस मोटे ंथ म से कुछ भी समझ म
नह आया। िकताब के िवशाल आकार को ही देखकर म भयभीत हो गया। इतनी मोटी िकताब
कौन पढ़ना चाहे गा? साथ यह मेरे िलए एक अनजान — अप रिचत भाषा सं कृत म रिचत ंथ
था।
मेरे मन म दो थे। अथशा इतना जिटल य लगता है? या चाण य क िश ा को
जानने के िलए सं कृत सीखना आव यक है?
जब मने दादाजी के सामने इन को रखा तो उ ह ने इनका उ र िव तारपवू क िदया।
‘‘अथशा केवल एक ंथ नह है, यह एक दशन भी है। यह एक कार का शा है। शा
म ऋिषय के ान को ंथ प म पीढ़ी दर पीढ़ी संजोकर रखा गया है। यिद तुम ऐसे ंथ को
समझना चाहते हो तो तु ह एक गु क आव यकता होगी जो इन ंथ म मौजदू ान को
तु हारे सामने प एवं बोधग य प म तुत कर द।’’
सं कृत संबंधी मेरी िज ासा का समाधान तुत करते हए उ ह ने कहा, ‘‘िकसी भी शा
के अ ययन के िलए सं कृत का ान आव यक नह है िकंतु सं कृत जानने से तु ह बहत बड़ा
लाभ िमलेगा य िक हमारे अिधकांश ाचीन ंथ क रचना सं कृत म हई ह। तुम यह भी
महसस ू करोगे िक इस भाषा क अपनी सुंदरता है।
यिद तुम इन ंथ के अ य भाषाओं म अनिू दत पाठ को पढ़ोगे तो तुम पाओगे िक इन
अनुवाद क अपनी सीमाएं ह। पाठ क मल ू भाषा का ान होने से उस पाठ म मौजदू भाव को

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पणू प से समझने म मदद िमलेगी।’’
म जानता था िक भारतीय सं कृित म िकस प म सं कृत का मिहमामंडन िकया गया था।
‘‘दादाजी, या इसी कारण से सं कृत को देव—वाणी कहा गया है?’’
दादाजी के चेहरे पर एक रह यमयी मु कान थी। उ ह ने कहा, ‘‘देवगण तो मौन भाव को
जान जाते ह।’’
ई र को िकसी भाषा या तक से नह जाना जा सकता है। वे इन दोन से परे ह मगर भाषा के
मा यम से उन तक पहंचने के माग का ान हो सकता है।
सं कृत जैसी अ छी एवं वै ािनक भाषा के मा यम से ई र क उस अवधारणा से अवगत हो
सकते हो िजसका अनुभव हमारे ऋिष-मुिनय ने िकया था। लेिकन िसफ सं कृत का िव ान हो
जाने से काम नह चलता है।’’
इसके बाद इस न हा बालक ने एक गंभीर पछू ा, ‘‘तब ई र को कैसे जाना जा सकता
है?’’
‘‘अहंकार के याग से।’’ दादाजी के इस उ र ने मुझे मौन कर िदया।
मेरी आँख म आँख डालकर उ ह ने कहा, ‘‘िन य करो िक जीवन के ारं िभक वष म ही
तुम सं कृत भाषा का ान ा कर लोगे।’’
मेरे माता—िपता ने मुझे अं ेजी मा यम के कूल म भत करवाया था इसिलए मुझे सं कृत
के ित िकसी कार का अकादिमक झुकाव नह था। मगर दादाजी क सलाह या इसे उपदेश
कहं तो बेहतर होगा, को मने अपने मन म बसाए रखा। सही समय पर इस बीज को व ृ के प
म कट होकर पुि पत—प लिवत होना था।
जीवन म सही समय पर सही मागदशन होने से बहत कुछ बदल जाता है। च गु चाण य
ारा राजा बनाए जाने से पवू एक साधारण बालक थे। लेिकन केवल राजा बना देने से रा य नह
चलता है। राजा बनने के बाद रा य के भावी संचालन के िलए कुछ िस ांत एवं उपाय क
जानकारी चािहए। यही अंतर है एक साधारण राज—िनमाता और चाण य जैसे राज—िनमाता के
बीच।
‘‘लोग राजा या नेता िविभ न उपाय के सहारे बन जाते ह : धन, शि , पदानु म या
िविभ न कार के अशोभनीय उपाय के मा यम से। यिद तु ह भी इस तरह से पद िमल जाता है
तो तु हारे अंदर लोग को िदशा देने क मता होनी चािहए।’’
इस िवषय पर मने इससे पहले कभी नह सोचा था। मने तो यह मान रखा था िक येक राज
कुमार एक िदन राजा बनता है लेिकन ऐसा हर बार नह होता है।
‘‘यिद पदधारी अयो य यि है तो वह अपने पद पर अिधक िदन तक िटका नह रह सकता
है। इसी कारण से चाण य ने अथशा क रचना क तािक राजागण इसक मदद से यह समझ
सक िक स ा क बागडोर संभालने के बाद रा य का संचालन िकस प म िकया जाए।’’
कौिट य के अथशा क रचना उपदेशा मक िनयमावली क शैली म क गई है िजससे राजा
को जीवन के हर मोड़ पर िनणय लेने म मदद िमल सके। इसम मौजदू ६००० सू क मदद से
बहत—से िवषय क चचा क गई है। इसम नेत ृ व कौशल, अथशा , मंि य क िनयुि ,

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अपराध—मु समाज का िनमाण, कानन ू — यव था के पालन, िनणय एवं दंड देने, शासन,
िवदेश—नीित, यु —कला, अंतरा ीय संबंध एवं अ य िवषय सिहत १८० िवषय क चचा क
गई है।’’
अरे बाबा! एक राजा को इन सभी बात क जानकारी रखनी पड़ती है? दादाजी ने िजस ल बी
सच ू ी का अभी—अभी बखान िकया था उसे सुनकर मेरे हाथ—पाँव सु न हो गए। म कभी भी
राजा नह बनना चाहंगा। इतनी सारी चीज को कौन सीखे?
म अपने कूल म कभी भी अ वल नह रहा और न ही ऐसा बनने क मेरी कोई मह वाकां ा
रही। और मुझे मालम ू हो गया िक इस हे तु ६००० उपदेशा मक सू से भरा सं कृत भाषा म रिचत
एक ंथ है। इसे तो पढ़ना बहत क किठन है।
म सोच रहा था िक दादाजी या तो पागल ह अथवा इस िकताब को पढ़ने वाले वे पहले
ितभाशाली यि ह िज ह ने इसे पढ़ने के बाद अपनी ि य पु तक घोिषत कर दी। म एक सीधा
—सादा जीवन जीना चाहता था। जब हम मौज—म ती से भरी िजंदगी जी सकते ह तो भांड़ म
जाए दुिनया?
दादाजी आगे बताते रहे : ‘‘इस िवषय के अित र चाण य दुग िनमाण िश प, र न—िव ा,
आयुवद, श िव ा, औषिध िव ा, मनोिव ान एवं दशनशा सिहत अ य बहत से िवषय म
पारं गत थे।
इसिलए उ ह लोग परम मेधावी मानते ह और उ ह हर युग के िलए एक महानतम
रणनीितकार के प म मरण करते ह।’’
इन सब बात क जानकारी िमलना वाकई बहत ही िदलच प था। जैसे—जैसे दादाजी
चाण य के बारे म बताते गए वैसे —वैसे चाण य के ित मेरी ा बढ़ने लगी।
दादाजी ने पछू ा, ‘‘ या तु ह मालम
ू है िक शतरं ज के खेल का अिव कार चाण य न ही िकया
था?’’
‘‘शतरं त के खेल का अिव कार?’’ चाण य म मेरी िदलच पी तो और भी बढ़ गई।
‘‘चाण य ने हर िकसी को ठीक तरह से सोचने क िश ा दी। शतरं ज के खेल का व प ही
ऐसा है िजसम यि को रणनीित पर िवचार करना पड़ता है।
अं ेजी म शतरं ज को चेस कहा जाता है मगर आप अनुमान लगाएं गे िक इसके येक अ र
CHESS का या अिभ ाय है?

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5
शतरं ज यानी C-H-E-S-S

पु राने जमाने म यु होना एक आम बात थी। ऐसा नह है िक वतमान म यु नह होता लेिकन


पुराने समय म कुछ यादे ही होता था। मजबत
ू सेना रखना और श ुओ ं को परािजत करना
राजा के मु य काय म से एक था।
चाण य ने अपने िश य को सतत यु के िलए तैयार रहने क िश ा दी थी। सेना म एक
कहावत चिलत है िक ‘‘यु रण े म नह लड़ा जाता है बि क सेनापित के िदमाग म।’’
सेना क तैयारी म रणनीित क अहम भिू मका होती है। चाण य ने रणनीित पर िवचार करने
पर काफ बल िदया। अथशा म इसे आ वीि क कहा गया है।
आ वीि क ? इसके उ चारण म जीभ पर बल देना पड़ता है। इस श द के अथ को ठीक से
समझने के िलए मने दादाजी से िकया, “आ वीि क का या अथ है?’’
‘‘यह दशनशा पर आधा रत साम रक िच तन का िव ान है।’’
एक बालक के प म भी मने जो बात उनसे सुनी उससे मं मु ध हो गया था लेिकन म उस
समय इससे अिधक कुछ नह समझ सका। उस समय म िकसी दाशिनक चचा म नह पड़ना
चाहता था। म तो अिधक से अिधक कहािनयां सुनना चाहता था। िवषय बदलने को कोिशश करते
हए मने पछू ा, ‘‘दादाजी शतरं ज और चाण य के बीच या संबंध है?’’
‘‘यिद तुम शतरं ज के खेल पर ग़ौर करोगे तो देखोगे िक इस खेल का ढाँचा यु जैसा है।
इसम उसी तरह क चाल चलते ह जैसे यु म श ु के िव चला जाता है। यह यु का वांग
रचने वाला खेल है।’’
इसके बाद उ ह ने मुझे इस खेल के कुछ मल ू िनयम क जानकारी देना ारं भ िकया :
ू भत
‘‘इसम दो प होते ह िजनके पास समान मता होती है — समान सं या म सैिनक, हाथी,
घोड़े आिद। लेिकन इस खेल म वही प जीतता है जो सव म रणनीित के साथ चाल चलता है।’’
उस िदन मुझे शि के बारे म एक बात का ान हो गया। इसका कोई मायने नह िक आपके
पास या है अथवा आपके साथ कौन है बि क यह मह वपण ू है िक आपने उनका उपयोग िकस

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तरह से िकया है।
आगे दादाजी ने कहा : ‘‘चाण य चाहते थे िक िकसी भी प रि थित म उनके िश य क सोच
रणनीित आधा रत ह । इसी से कोई यि िवजेता बनता है अथवा परािजत होता है।’’
हमारी सोच को धारदार बनाने के िलए उ ह ने सलाह दी िक ‘‘हमारी सोच रणनीित आधा रत
होने से साथक होती है।’’
इस तरह का ू ना िविच होता है। हमलोग एक—दूसरे का मँुह देखने लगे जैसे हम
पछ
आपस म पछ ू रहे ह िक, ‘‘ या रणनीित आधा रत िचंतन िवकिसत करना वा तव म संभव है?’’
मगर, यह हमलोग के िलए एक नई बात थ ।
दादाजी ने जानबझू कर धीमी आवाज म कहा, ‘‘रणनीित आधा रत िचंतन िवकिसत करने का
सव म तरीका खेल खेलना है।’’
ऐसा जवाब सुनकर िकस ब चे को खुशी नह होगी? हमारे माता—िपता ने हम अिधक खेल
—कूद करने पर रोक लगा दी थी और पढ़ाई तथा होमवक को ाथिमकता देने के िलए कहा था।
मगर दादाजी ने इसके ठीक िवपरीत सलाह दी थी।
‘‘लेिकन खेलने के उ े य से मत खेलो। िजस समय तुम खेल खेलते हो उस समय िचंतन
करो। िकसी भी खेल म िवजेता और िविजत होते ह। िवजय एवं पराजय दोन से सीख िमल सकती
है। िजसम सीखने क आदत होती है, वह वयं म सुधार करते रहता है और जीत उसके िलए
वाभािवक बन जाती है।’’
िफर से अथशा क चचा करते हए दादाजी ने कहा : ‘‘अथशा के १५ भाग म से ८ भाग
म यु क तैयारी एवं यु करने के संबंध म चचा क गई है। शांित के समय म तुम िजतना
पसीना बहाओगे यु म उतना ही कम र बहे गा। काया वयन से अिधक मह व योजना बनाने
का है। वा तव म, िजतनी अिधक सुचा योजना होगी उतना ही अिधक भावी काया वयन
होगा।
उन िदन शंतरज के जैसे ही सै य यहू क रचना क जाती थी। इसे चतुरंग कहा जाता था।
चतुर का अथ चार होता है और अंग यानी भाग। यांनी सेना के चार अंग अथात् भाग होते थे।’’
ाचीन समय के यु —कौशल क चचा करते हए उ ह ने कहा: ‘‘चार तरह के सैिनक दल
होते थे — रथदल, गजदल, अ दल और पैदल।
यु े क ओर बढ़ते हए दल के येक सद य अपनी शि एवं तर के अनु प वाहन का
योग करते थे।
इसिलए चाण य वा तिवक यु िछड़ने से पवू अपने िश य से यु क तैयारी करने क
अपे ा रखते थे। अब तुम समझ सकते हो िक िव का पहला यु खेल चतुरंग का अिव कार
हआ। दो दो त राजभवन क सुख—सुिवधा के बीच इस खेल को बैठकर खेल सकते थे। इससे
उ ह यु करने के नए—नए तरीक के इज़ाद करने म मदद िमलती थी।’’
मने सोचा िक यह एक अ छा िवचार है। वा तिवक यु िछड़ने से पहले यु का अ यास करो।
यह बात मुझे समझ म आ गई।
ू ा, ‘‘मगर दादाजी, शतरं ज के खेल म ऊँट
मेरे एक और िज ासु चचेरे भाई ने दादाजी से पछ

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भी होते ह।’’
‘‘तुमने सही पकड़ा है।’’ दादाजी हमेशा वतं िचंतन क सराहना करते थे। ‘‘समय के साथ
चतुरंग के खेल म बहत प रवतन हआ। यु क शैली म भी प रवतन हआ। म देश म यु म
ऊँट जैसे दूसरे ािणय का भी उपयोग िकया जाता है। हमारी सेना राज थान एवं गुजरात जैसे
रा य म अभी भी ऊँट का योग करती है य िक इस ाणी को इन े क ठीक समझ होती है
और वह यहां के िलए अ यंत उपयोगी होता है।
चँिू क यह खेल भारत म लोकि य हो गया, इसिलए जो िवदेशी यापारी यहां आए वे इस खेल
को दूसरे देश म ले गए। जब उन लोग ने इस खेल को अरब देश म खेला तो वहां पर ऊँट यु
का अहम िह सा होता था, इसिलए ऊँट को शतरं ज के खेल म शािमल कर िलया गया। जब यह
खेल यरू ोपीय देश म पहँचा तो इसम और अिधक सुधार िकया गया। आज भी अथशा म शतरं ज
का मल ू िस ांत िनिहत है।’’
ू भत
उसके बाद जो बात सामने आयी वह सचमुच हमारी आँख खोलने वाली थ :
‘‘तु ह मालम ू है िक वा तव म Chess एक संि ा र है? या तु ह इसके पण ू प क
जानकारी है?
C- Chariots
H- Horses
E - Elephant
S- Soldiers
इस कार चतुरंग अथात् चेस यानी शतरं ज बन गया।
इसके बाद हम अपने अतीत को वतमान को जोड़ सके। अपने देश के अतीत को मरण
करके हमारा दय गव से भर गया।
‘‘लेिकन दादाजी, म तो राजा नह बनना चाहता हँ। मुझे इसम तिनक भी िदलच पी नह है।’’
मने उ ह इसिलए बीच म रोका तािक वे समझ सक िक ये बात अ छी ह मगर हमारे काम क
नह ।
‘‘तुमसे िकसने कह िदया िक चाण य के िवचार िसफ उ ह लोग के िलए है जो राजा बनना
चाहते ह?’’ उ ह ने ित िकया। इस बात का कोई अथ नह िक तुम कौन हो अथवा तु हारा
काय— े या है। कौिट य का अथशा सबके िलए लाभकारी है।’’
मने आ यपण ू ि स उ ह देखते हए पछ ू ा, ‘‘सबके िलए?’’
‘‘जी हां, हर कोई जो नेत ृ व करना चाहता है चाहे उसका काय े कुछ भी हो।’’
यह बात मुझे समझ म आ गई। म नेत ृ व करना चाहता था, मगर कैसे ?

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6
मेरे अंदर नेत ृ व-कौशल का िवकास

दा दाजी ने कहा िक, ‘‘नेत ृ व कौशल बहत ही आकषक अवधारणा है। इसके बहत—से
आयाम ह। यह लोग को अ चतर ल य ा करने के िलए नेत ृ व करने; किठन
प रि थितय म सही िनणय लेने; असंभव को संभव कर िदखाने; समहू को े रत करने तथा
वाता को काय प देने क मता है। यह केवल खेल के िनयम को समझने तक नह है बि क
खेल म िवजय ा करना भी है। कुल िमलाकर, यह उस चीज को देखने क मता है िजसे दूसरे
देख नह पाते ह।’’
नेत ृ व के बारे म यही पहला िवचार था जो मेरे मन—मि त क म घर कर गया। मने
उ सुकतावश िकया, ‘‘कोई नेत ृ वकता कैसे बनता है?’’
मेरे उ साह से दादाजी म जोश जग गया। उ ह ने कहा : ‘‘बहत अ छा ! नेत ृ व मता
िवकिसत करने के िलए अनेक उपाय ह — नेत ृ व कौशल पर पु तक का अ ययन करके, दूसरे
नेत ृ वकताओं का साि न य ा करके, दूसरे नेत ृ वकताओं क जीवनी को पढ़कर तथा
नेत ृ वकताओं के बारे म िवचारकर। सं ेप म, नेत ृ वकता बनने के िलए नेत ृ वकता के समान
सोचना और काय करना पड़ता है।’’
उस ानी मानव ने आगे कहा, ‘‘नेत ृ व कौशल केवल पद— ित ा ा करने तक सीिमत
नह है बि क यह नैितक प से सही होना भी है।’’
‘‘नैितक प से सही का या मतलब है?’’
‘‘भारतीय ंथ के अनुसार नेत ृ वकता को सव थम धािमक होना चािहए। राजा के धािमक
होने के कारण ही आदश राजा को राजिष कहा जाता था यानी ऋिष के समान अथवा दाशिनक
राजा होते थे।’’
मने जानना चाहा िक, ‘‘नेत ृ वकता को धािमक य होना चािहए?’’
‘‘िकसी नेत ृ वकता के जीवन के सबसे बड़े संकट को धम संकट कहा जाता है। यह सही एवं
गलत के बीच फक को समझते हए िनणय लेना तथा उस िनणय पर अमल करना है।’’

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जैसे मेरे अंदर का नेत ृ वकता जाग गया हो, उसी अंदाज़ म मने िकया, ‘‘तो या
अथशा के अ ययन से नेत ृ वकता बना जा सकता है?’’
‘‘अथशा क रचना नेत ृ वकताओं के िलए ही क गई थी और केवल नेत ृ वकता ही इसके
िवषाय—व तु को ठीक से समझ सकते ह। अ य लोग बात को सही संदभ म नह समझ
पाएं गे।’’
िवषय को परू ी तरह से दूसरे धरातल पर ले जाते हए दादाजी ने कहा, ‘‘मगर अथशा के
अ ययन से पहले भगव ीता का अ ययन करना चािहए।’’
भगव ीता? इन दो पु तक म या संबंध है?
‘‘जैसा िक मने कहा है धम संकट यानी नैितक तर पर ं िकसी नेत ृ वकता के िलए
सबसे बड़ी चुनौती होती है। भगव ीता म रणभिू म के म य म खड़े सव े यो ा अजुन के ं
का िच ण है।
अजुन यु करने के िलए काफ स म थे लेिकन जब रणभिू म म कम करने क बात आयी तो
वे पीछे हटने लगे। वे बहत बड़े संशय से त हो गए िक अपने सगे—संबंिधय के िव यु
कर अथवा नह कर?
इसका या समाधान हआ?
‘‘यह से कृ ण क भिू मका शु हई। उ ह ने अ याि मक और भौितक क याण के िलए
उपदेश िदया। भगव ीता म कृ ण और अजुन के बीच संवाद है। कृ ण के मागदशन से उ सािहत
होकर अजुन अंतत: यु म िवजयी हए। कृ ण ने अजुन को न केवल धम संकट क ि थित म
िनणय लेने के िलए मागदशन िकया बि क महाभारत यु के दौरान िविभ न प रि थितय म
अपनायी जाने वाली रणनीितय एवं तकनीक कौशल क भी जानकारी दी।
मुझे याद आया िक िपछली या ा के दौरान दादाजी ने मुझे यु से जुड़ी हई बहत—सी
कहािनयां सुनायी थ ।
‘‘जब भगव ीता को आधार बनाकर अथशा का अ ययन िकया जाता है तो एक राजा
आदश राजा बन जाता है। वह एक धािमक राजा बन जाता है न केवल िस ांत के तर पर,
बि क यवहा रक तर पर भी। उसम दशनशा और रणनीित के ान का संयोग बन जाता है।
दोन पु तक म तु हारे अंदर िनणया मक शि और नेत ृ व कौशल उभारने क मता है।’’
या दादाजी उस समय मेरे अंदर के नेत ृ वकता को उभार रहे थे?
‘‘अपने अंदर के नेत ृ वकता को उभारने के िलए अपने अंदर के चाण य को उभारना होगा।
इस काम म अथशा तु हारी मदद करे गा।’’
मुझे यह कतई मालम ू नह था िक भगव ीता और अथशा जीवनभर के िलए मेरी ेरक
शि यां बन जाएं गी।
दादाजी ने मुझे यह चेतावनी भी दी थी: ‘‘याद रखो, नेत ृ व—कौशल को िसफ राजा तक ही
सीिमत नह रखो। आज के लोकतांि क िव म हर यि राजा हो सकता है। अथशा से हर
कोई लाभ ले सकता है — ी-पु ष, येक े एवं पेशा के लोग, हर देश एवं पीढ़ी के लोग।’’

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मेरा यह एक नए आयाम के साथ प रचय था। य िप चाण य ने च गु को और कृ ण ने
अजुन को उपदेश िदया लेिकन वे संदेश हमारे , तु हारे और दूसरे लोग के िलए भी उतने ही
मह वपण ू ह। ये संदेश सावदेशीय ह। हर कोई इस ान पी मोती को चुनकर उसका उपयोग
अपने जीवन म कर सकता है।
बचपन म म यह नह जानता था िक आगे चलकर म कौन—सा पेशा अपनाऊँगा लेिकन मने
यह िनणय ले िलया था िक चाहे म िजस े म जाऊँ, म एक नेत ृ वकता बनंग ू ा, लोग को े रत
क ं गा और सकारा मक योगदान दंूगा।
हमारी अ प अविध क छु ी क समाि हो गई। येक छु ी के अंत म जुदा होते समय बहत
ही दुख होता था। लेिकन हर बार हम अगली छु ी का इंतज़ार करने लगते थे। शहर लौटकर हम
दादाजी ारा िदए गए ान पर िवचार करने लगते थे।
उन शांत ण म अकेले बैठकर मने कुछ िनणय िलए िजनका असर मेरे परू े जीवन पर पड़ा।
लेिकन मुझे या मालम ू था िक यह दादाजी के साथ मेरी अंितम मुलाकात थी।
इसके कुछ ही िदन के बाद दादाजी चल बसे। यह अचानक हो गया और मेरे माता—िपता ने
सोचा िक गांव जाकर अं येि म मेरा शािमल होना ज री नह है, जैसा िक पहले लोग िकया
करते थे। म वहां पर तेरहव िदन पहंचा जब हमारे बहत—से सगे—संबंधी वहां पहंचे थे।
काश, म दादाजी से एक बार और िमल सकता! मने उ ह घर के हर कोने म ढूंढा लेिकन म
जानता था िक वे अब इस दुिनया म नह ह .... वे सदा के िलए जा चुके ह।
उ ह ढूंढने के च कर म म उनक पु तकालय गया। म उस कुस तक गया जहां बैठकर वे
बहत—सी मनोरं जजक कहािनयां हम सुनाया करते थे।
वहां पर म उनके ि य ंथ कौिट य के अथशा को टेबल पर पाया। यह िकताब खुली हई
थी। ऐसा लग रहा था िक वे जीवन के अंितम ण म भी उसका अ ययन कर रहे थे। कौन यह
जानता था िक उनक ि य पु तक मेरी भी ि य पु तक बन जाएगी।
मेरा मन नह माना और मने यह िकताब ले ली। मने दादीजी से पछ ू ा, ‘‘ या म यह िकताब ले
सकता हं?’’
उ ह ने कहा, ‘‘ले लो, तु हारे दादाजी ये सारी िकताब तु हारे िलए छोड़ गए ह।’’

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7

पु तक म

म ृ यु मजीवन को एक नया प र े य देता है।


ुझे अपने जीवन म मौत से पहला सा ा कार दादाजी के मौत के प म हआ। मने उनके
िवयोग म अनेक िदन तक रोता रहा। हालांिक मेरे माता—िपता ने मुझसे कहा िक म ृ यु अटल है,
िकसी क पहले मौत होती है तो िकसी क बाद म।
इस बात का नह है िक िकतनी ल बी आयु िमली है बि क यह है िक ेरक जीवन
रहा है अथवा नह । कुछ लोग जीते जी भी मुद क िज़ंदगी जीते ह जबिक कुछ लोग मरने के बाद
भी अपनी क ित के कारण जीिवत रहते ह।
इस संबंध मुझे बहत ही िदलच प ान कठोपिनशद् से िमला िजसका अ ययन मने बाद म
िकया था। यह एक अलग तरह का ंथ है।
इस ंथ म िकशोर निचकेता और म ृ यु के देवता यमराज के बीच संवाद है। निचकेता प ृ वी
पर मनु य के अि त व एवं शा तता तथा म ृ यु के बाद क गित के संबंध म मौिलक पछ
ू ता
है।
मुझे मालम
ू था िक दादाजी अपने भौितक काया को छोड़ चुके थे िकंतु वे हमारे िलए िचर
नत ू न मिृ तय क िवशाल िनिध छोड़ गए थे। हम कैसे एक तरीय जीवन जीएं , इस संबंध म
हमारे िलए बहमू य िट स दे गए थे। समय बीतता गया और म शहरी जीवन के भाग—दौड़ म
बड़ा हो गया। िफर भी म दादाजी ारा िदए गए सव म उपहार यानी पु तक ेम को संजोए रहा।
मने दादाजी के पु तकालय क अिधकांश पु तक ले ली जबिक मेरे िपता ने कहा था — ‘‘हमारे
घर म इनके िलए पया जगह नह है।’’ इनम से कुछ मह वपण ू पु तक थ — वेद, सू ,
महाभारत और संत क जीवनी। ऐसा नह है िक मने उन सभी पु तक को पढ़ िलया लेिकन
मुझे ऐसा लगता है िक य नपवू क रखी हई इन पु तक के प ृ के मा यम से दादाजी आज भी
मेरे से बात कर रहे ह।
म अपने लास का टॉपर तो नह हआ करता था, मगर ऐसा भी नह था िक म सबसे पीछे क
कतार म रहने वाला छा था। म कभी भी कूल अथवा कॉलेज म फेल नह हआ लेिकन मेरा

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मकसद कभी भी लास म थम आने का भी नह रहा। लेिकन मेरे अंदर एक बात ऐसी थी
िजसक सराहना मेरे लास के े छा , िश कगण और दो त — सभी िकया करते थे। वह
था मेरा पु तक ेम।
कूल अथवा कॉलेज के समय म जब कभी मुझे अवसर िमलता था तो म पु तकालय चला
जाता था। इसका अथ यह नह है िक म अपने दो त के साथ आनंद के ण नह गुजारता था,
अथवा िसनेमा देखने या िफर सड़क िकनारे िबकने वाली साम ी का लु फ नह लेता था अपने
सीिमत बजट से, जैसा िक छा का होता है।
लेिकन इन सबके के बीच व त िनकालकर पु तकालय म घुस जाता था और अिधक से
अिधक िकताब को देखते—पलटते रहता था। वा तव म, मेरे दो त के बीच यह बात चिलत
एवं समय के साथ िस भी हो चुक थी िक यिद म उनके साथ नह हं तो ‘‘म पु तकालय म
ज र िमलंग ू ा।’’
कॉलेज के पु तकालय अ य मुझे चाहते थे। म उन कुछ िगने—चुने छा म से था जो सभी
कार क पु तक पढ़ते थे, केवल पाठ्य —पु तक तक ही सीिमत नह रहते थे। िव ान कथा
से लेकर उप यास तक, ाचीन भारतीय सािह य से लेकर आधुिनक बंधन क पु तक तक —
हर कार क पु तक म पढ़ा करता था।
पु तकालय अ य मुझे कुछ िट स भी िदया करते थे : ‘‘एक नई िकताब आयी है। इसे पढ़कर
देखो। तु ह अ छा लगेगा।’’ वह आईस म बेचने वाले क तरह करते थे। बाजार म जब भी कोई
नया लेवर आता है तो आईस म वाला चाहता है िक लोग उसे चखे।
म िकताब क खुशबू का दीवाना था। िकताब के होते हए मने कभी भी खुद को अकेला
महसस ू नह िकया। मने खुद को हमेशा उनके करीब पाया। उनके संसग म वयं को सहज पाया।
िकताब सबसे करीबी दो त हो सकती है। यह दो त आपको एक नज रए से वािकफ़ करवाता है
िफर भी आपके िनजी ि कोण पर िकसी तरह का बंधन नह लगाता है। म केवल िकताब पढ़ता
ही नह था बि क उ ह सुना भी करता था। िकताब उ ह के साथ बात करती ह जो सुनना चाहता
है।
पु तकालय म पु तक पर संगो ी का आयोजन हआ करता था और म उसम शािमल हआ
करता था। उस दौरान बहत ही व थ एवं बौि क िवचार—िवमश हआ करता था। यहां तक िक
मेरे काफ िव ान और पढ़ाकू दो त भी मुझे चाहते थे य िक उन लोग के बीच प रचचाएं होती
रहती थी और हर बार म उनम अपना योगदान िदया करता था। म ाय: महसस ू करने लगा था
िक म भी एक बुि जीवी हँ।
एक िदन पु तक िवमोचन संबंधी सच ू ना कॉलेज के सचू ना—प पर लगी हई थी। िवमोचन
थल शहर के दूसरे छोर पर था। पु तक िवमोचन म उस पु तक के लेखक के साथ एक नामी
ह ती आने वाले थे। वा तव म म यह जानना चाहता था िक पु तक िवमोचन म या होता है
लेिकन मेरे एक भी दो त साथ जाने के िलए उ साही नह थे, इसिलए मने अकेले जाने का
िनणय िलया।
यह जीवन भर मिृ त पटल पर संजोकर रखने लायक अनुभिू त थी। वह पु तक भंडार बहत
बड़ा था और उसके शे फ िकताब से भरे हए थे। आसपास का प रवेश सामा य ही था मगर इस

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अवसर पर वहां बहत से लोग के आने से वातावरण आकषक बन गया था।
जो नामी ह ती पधारे थे वे िफ म िनदशक थे और खुद भी पु तक ेमी थे। यही कारण था िक
वह एक अपे ाकृत कम नामी लेखक क पु तक के िवमोचन के िलए भी तैयार हो गए। मुझे
ऐसा लगा िक अिधकांश लोग उस िस िनदशक को देखने के िलए आए थे, न िक उस पु तक
को पढ़ने अथवा लेखक से िमलने के िलए आए थे।
लेिकन उस नामी ह ती ने एक मह वपण ू िट पणी क : ‘‘दो त , आज दुिनया म लाख
पु तक ह। लेिकन ये महज िकताब ही नह ह बि क इनम उन लाख लोग के अनुभव दज ह
िज ह ने जीवन को अलग—अलग नज रए से देखा।’’
एक यि ने लेखक से पछ ू ा िक वे पु तक लेखन के िलए िकससे े रत हए। इस पर उ ह ने
कहा, ‘‘अ ययन आपका मनु य बनाता है जबिक लेखन आपको संपण ू मनु य बनाता है।’’
उ ह ने वांत: सुखाय के िलए पु तक िलखी थी।
मने अपने जीवन पर एक ि डाली। म ताउ िकताब का सं ह करते रहा, जगह और पैसे
क कमी के बावजदू । मेरी माँ ने कहा था : ‘‘तुम कोई सकुलेिटंग लाइ ेरी का सद य य नह
बन जाते? तािक पु तक को पढ़ने के बाद उ ह वापस कर सको।’’ यह जगह क कमी संबंधी
सम या का एक िनदान था। मगर पु तक के सं ह, उनके प ृ पर िट पिणयां अंिकत करने
तथा जीवन के िविभ न संदभ म उ ह उ त ृ करने के लोभ से कौन वंिचत रहना चाहे गा? कौन
जानता था िक मेरा पु तक ेम मुझे एक िदन बे ट सेिलंग पु तक का लेखक बना देगा।
पु तक का सं ह करना और उ ह पढ़ना एक बात है िकंतु उनसे उपयोगी िट पिणय को
जमा करना एक अलग बात है।
अब म इस बात को प करने जा रहा हं ...

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8
चाण य पर िट पणी

ए कक बारपढ़ाईमेरकरनी
ी एक िशि का ने मुझसे कहा था, ‘‘िकसी िवषय को समझने के िलए तीन तरह
चािहए; इसे यं ू कहं िक उसे तीन बार पढ़ना चािहए लेिकन हर बार अलग—
अलग ि से।’’ उ ह ने आगे कहा, ‘‘पहली बार िकसी िकताब को तुम शोध प के िलए पढ़ते
हो। यह उससे होकर सीधे तौर पर, सरसरी िनगाह से गुजरने जैसा होना चािहए। पड़ताल करो
िक िकताब म तु हारी िदलच पी जग रही है अथवा नह । यिद तालमेल नह बैठ रहा है तो इसे
छोड़ दो।’’ समय बंधन क ि से यह एक अ छा िटप था य िक आज दुिनयाभर म लाख
िकताब कािशत हो रही ह।
‘‘यिद िकताब म आपक िदलच पी जग रही है तो इसे दूसरी बार पढ़। इस बार इसे
गंभीरतापवू क पढ़। कलम अथवा पिसल साथ म रख और िट पणी िलख। यिद कोई हो तो
उसका समाधान कर और उस पर िवशेष क राय ा कर।’’ उनक बात को सुनकर हैरानी
नह हई। िश ा के े म उनके योगदान के िलए उनका काफ स मान था।
‘‘तीसरे तरह के अ ययन को पुनरावलोकन अ ययन कहा जाता है। अपने सभी के
समाधान के बाद आप पु तक को पुन: पढ़ते ह। इस बार आप उस िवषय के िवशेष जैसे हो जाते
ह।’’ इस पर आगे उ ह ने कहा, ‘‘अब आप इस पु तक पर कह जाकर या यान भी दे सकते
ह।’’ मुझे यह िवचार अ छा लगा। िकसी पु तक के पाठक से आप उस पु तक पर िवशेष व ा
तक बन सकते ह।
एक िवचार, एक संभावना मेरे मन म घर करने लगी। चाण य के जीवन म िच तो
बा यकाल से थी। इसका ेय दादाजी को जाता है।
बा यकाल से लेकर तब तक मने चाण य पर बहत—सी पु तक जमा कर ली थ । मने इनम
से कुछ पु तक गली—मोह ले के िव े ताओं से खरीदी थ , कुछ बड़े पु तक—क से तथा
कुछ िविभ न नगर —शहर के मण के दौरान। मुझे यह जानकर काफ आ य हआ िक कई
पीिढ़य के अनेक लोग ने चाण य पर िलखा है।
चाण य के जीवन और िश ा पर भी िविभ न भाषाओं म बहत—सी पु तक उपल ध थ । कुछ

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पु तक िव तापण ू और अकािमक शैली म िलखी गई थ , जबिक अ य पु तक समा य कार क
थ । कुछ म तो नई तरह से साथक बात कह गई थ लेिकन अ य पु तक म बार—बार एक ही
बात को दुहरायी गई थ मगर उ ह अलग—अलग तरीके से कहा गया था। म चाण य क
कहानी से हटकर कुछ बताना चाहता था।
चाण य पर सबसे लोकि य पु तक थी चाण य नीित िजसम सामा य आदमी को एक अ छी
और सुखद िज़ंदगी जीने के िलए मागदशन िदया गया है। इसे समझना सरल है। चाण य के
िवचार पर आधा रत अ य पु तक ह — नीित शा और चाण य नीित स ू । मु ारा स
नामक पु तक चाण य के जीवन और राजा धनानंद को िसंहासन से हटाने के संबंध म चाण य
क रणनीित पर आधा रत नाटक है। और उसके बाद, िन संदेह मेरे दादाजी क ि य पु तक —
कौिट य का अथशा है।
मने इन सभी पु तक पर नोट्स बनाया और भिव य म उपयोग के िलए उ ह एक फाइल म
रख िदया। समय—समय पर अपने िम और िश क को भािवत करने के िलए उनम से कुछ
कहािनय को उ त ृ करता रहा। मगर, इसके बावजदू अथशा इन सभी पु तक से अलग था।
यह गहन एवं यापक पु तक है िजसे पहली बार पढ़ने पर समझना आसान नह था। सच म, इसे
ठीक तरह से समझने के िलए मुझे बहत ही यान कि त करना पड़ा। दादाजी ने अपनी पु तक
म कुछ िट पिणयां िलखी थ , वा तव म वे मेरे िलए लाभकारी रह ।
मने अनुमान लगाया िक मने चाण य के जीवन के कुछ पहलुओ ं को समझ िलया है, मगर
उस समय तक मने चाण य के जीवन क सभी पहलुओ ं को नह समझ सका था। या मेरी
िशि का क यह बात उिचत नह थी िक िकसी पाठ को तीन बार पढ़ने पर यि उसका
िवशेष बन जाता है?
अब तक मने संपण ू अथशा को दस बार से भी अिधक पढ़ा था। इसम ६००० सू ह और मने
सभी सू को बहत ही िन ापवू क पढ़ा था। इसके बावजदू मुझे लगता था िक अब भी मेरे
अ ययन म कुछ कमी है।
एक िदन िपता जी मुझे स संग म ले गए थे। स संग म जाना मेरे प रवार क सं कृित का
िह सा था। उस िदन वचन करने वाले साधु बहत ही मनोरम उपदेश दे रहे थे:
‘‘िकसी भी ंथ को समझने के िलए चार कार क कृपा क आव यकता होती है: आ म
कृपा, ई र कृपा, गु कृपा और शा कृपा।
आप िनज यास से वयं पर जो कृपा करते ह वह आ म कृपा है। िकसी भी आलसी यि
को कभी भी िकसी ंथ क समझ नह हो सकती। ंथ के अ ययन के िलए िन ा एवं समपण
क आव यकता होती है।’’ बहत खबू , मुझे लगता है िक मने अपने यास म िकसी कार क
कमी नह छोड़ी है।
‘‘ई र कृपा आप पर भगवान ारा क जाने वाली अनुकंपा है। यिद आप ई र क एक ओर
एक कदम बढाएं गे तो ई र आपक ओर दस कदम बढाएं गे। आप िजतना अिधक यास करगे
उतना ही अिधक ई र क अनुकंपा आप पर बरसेगी।’’ मुझे अचरज होने लगा िक मेरे अथक
यास के बावजदू मुझ पर ई र कृपा म थोड़ी कमी है।

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‘‘गु कृपा िश क क आप पर अनुकंपा है। शा का अ ययन कभी भी वयं नह करना
चािहए बि क िकसी िवशेष िश क के मागदशन म करना चािहए। िश क उस शा के
अ ात आयाम को आपके सामने खोलकर रख दगे।’’ इससे मेरे मन म एक उठा: या
िकसी ंथ को समझने के िलए वा तव म िकसी िश क क आव यकता होती है?
‘‘अंत म, शा कृपा वयं म सद ंथ क कृपा है। यि िकस शा का अ ययन करे गा
यह उस पर िनभर है। िविभ न लोग िविभ न कार के ंथ का अ ययन करते ह िफर भी वे
िनतांत ान—शू य रहते ह। वे शा वाचते रहते ह मगर शा के रह य को नह जानते।’’
जी हाँ, कुछ ऐसी बात थ िज ह म कभी नह जान पाया।
उस रात म चाण य और उनक िश ा क अपनी अ ययन—िविध पर िवचार करने लगा। जब
म छोटा था तभी से दादाजी ने मुझे अपनी कहािनय के मा यम से िकताब पढ़ने, नोट बनाने और
स चे मन से यास करने के िलए मेरे अंदर िच जगाते रहे । इस िदशा म म िजतना कर सकता
था उतना मने िकया। िफर भी ये चार कार क कृपा मुझे पया प म नह िमल सक थ । मुझे
और अिधक ई र कृपा, गु कृपा और शा कृपा क ज रत थी।
अगले िदन सुबह म म उ ह साधु के पास गया। हम उ ह वामी जी कहा करते थे। मने उनसे
ू ा: ‘‘ वामी जी, यि को ये सभी कृपा कैसे ा हो सकती ह? म चाण य और उनके
पछ
अथशा को परू ी तरह से समझना चाहता हँ। वे मेरे और मेरी पीढ़ी के लोग के िलए अभी भी
रह य बने हए ह। या चाण य को परू ी तरह से समझा जा सकता है?’’
‘‘भारतीय परं परा म कुछ भी असंभव नह है लेिकन शा को समझने के िलए समय —
िस गु िश य एवं अ ययन क गु कुल िविध का अनुसरण करना चािहए।’’
‘‘ये िविधयाँ या ह?
इसके बाद उनका स संग पुन: ारं भ हो गया .....

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9
गु - सबसे बड़ा


ह साधु एक ानी पु ष थे। उनका बहत कुछ मेरे दादा जी से िमलता था जो गहन िवचार
को सरल श द म य करते थे। अथवा ऐसा तो नह िक येक ानी यि और अ छी
तरह से कहानी कहने वाल म म अपने दादा जी को ही ढूँढ़ता था?
थोड़ा समझदार होने पर मुझे यह बात समझ म आयी िक कुछ लोग कभी भी नह मरते ह।
हालांिक भौितक शरीर खाक म िमल जाता है लेिकन यि के िवचार और आदश सदैव जीिवत
रहते ह।
समझदार .... इस श द पर म कुछ देर के िलए अटक गया मगर इस श द के मा यम से म
दादा जी के कालखंड म पहँच गया। उ ह ने मुझे इसका अथ समझाया था।
‘‘दादा जी, या म बड़े होने पर समझदार हो जाऊँगा?’’
‘‘जब यि समझदार होता है तभी वह बड़ा होता है।’’
यह सच है िक उ के िलहाज से म बड़ा हो गया मगर जहाँ तक समझदारी का सवाल है
उसके िलए अभी ल बा सफर तय करना है।
वतमान संग क ओर मेरा यान आकिषत करते हए साधु ने कहा, ‘‘भारतीय सं कृित एवं
परं परा को समझने के िलए दो बात क जानकारी आव यक है।’’
‘‘ थम, गु —िश य परं परा।’’ ऐसा लग रहा था िक इस बात को प करने के िलए वे एक
दूसरी दुिनया म खो गए थे। ‘‘गु महज एक िश क ही नह होते जैसा िक हम आज के कूल
—कॉलेज म पाते ह। गु िकसी िवषय को क ा म पढ़ाने वाले िश क ही नह होते ह। वे पेशेवर
यो यता रखकर या यान देने वाले िश क ही नह होते। िन संदेह, गु िवषय का भी ान देते
ह लेिकन वे अपने िश य को सद् मागदशन से ई र का भी सा ा कार करा देते ह।
गु िव ान, गिणत, लेखा अथवा भाषाओं का ान भी दे सकते ह मगर वे िवषय के मा यम
से िश य को जीवन का बोध कराते ह।
ऐसा नह है अपने छा का क ा म थम आने पर ही गु को स नता होती है बि क जब

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िश य एक अ छा मनु य बनता है तो गु को तिृ होती है। इस कार गु एक ानी पु ष होते
ह िजनक अपे ा रहती है िक उनके िश य भौितक एवं आ याि मक — दोन कार के ान म
िनपुण हो।
और वह िश य भी आदश नह कहलाता जो क ा म थम होकर अपने कॅ रयर म केवल
धनाजन ही करता है। िश य को गु के साथ सदा के िलए मन और िवचार से एकाकार हो जाना
चािहए।’’
म सोचने लगा िक या हमारी वतमान िश ा— णाली म ऐसी अवधारणाएं मौजदू ह।
‘‘गु और िश य का संबंध िद य होता है। एक—दूसरे के ित असीम ा होती है। गु
अपना संपण ू ान अपने िश य पर उड़े ल देता है और िश य भी गु के ित समिपत सेवा भाव से
उस ान को आ मसात कर लेता है।’’
एक ण के िलए म मौन हो गया और वयं से िकया िक या मेरे जीवन म ऐसे गु ह
अथवा केवल िवभ न िवषय को पढ़ाने वाले िश क से ही मेरा प रचय रहा है?
ऐसा लगा िक साधु महाराज ने मेरे मन क बात को भाँप ली है, ‘‘स चा गु तो ई र ही ह,
दूसरा कोई नह । भगवान ही गु प म हमारे स मुख उपि थत होते ह। इसके िलए िश य को
आदश तुत करना पड़ता है और िज ासु बनना पड़ता है।
भारत म गु का थान माता—िपता से भी ऊपर होता है। माता—िपता हमारे थम गु और
िश क होते ह। यहाँ पर अ यंत शि शाली राजा और स ाट भी अपने गु के आगे शीश झुकाते
थे।
दूसरी है, गु कुल आधा रत िश ा— णाली। गु कुल उस आ म को कहते थे जहाँ पर गु
का िनवास थान होता है और संपण ू िव से छा वहाँ आकर िनवास एवं अ ययन करते थे।’’
मने इसे प करने का यास िकया, ‘‘यह तो आधुिनक कॉलेज के हो टल जैसा है।’’
इस पर उ ह ने कहा, ‘‘िब कुल ऐसा भी नह । दोन के बीच भारी अंतर है। आधुिनक समय म
हो टल छा के ठहरने के िलए एक जगह है। इसम िश क एवं छा के बीच क ा म भी संपक
होता है। शेष समय म दोन क अलग—अलग दुिनया होती है।’’ उनक बात म वजन था।
‘‘गु कुल म गु और िश य एक प रवार क तरह रहते थे। वे एक—दूसरे का यान रखते
थे। वे दैिनक काय म एक—दूसरे का हाथ बँटाते थे और एक—दूसरे को नजदीक से जानते थे।
छा क ा म पढ़ाए जाने वाले पाठ से ही नह ान ा करते थे बि क गु के आचरण से भी
बहत—कुछ िसखते थे।’’
इसके बाद उ ह ने एक बहत बड़ी बात कही। ‘‘िश य अपने गु क तीन बात से ान ा
करते थे — उनके आचार, उनके िवचार और उनके यवहार से। आचार से ता पय गु के
आचरण, िवचार से उनके िचंतन और यवहार से उनका लोग के साथ यवहार से है। ये तीन
आपस म एक—दूसरे से जुड़े हए ह।’’
गु एक आदश ित प यानी रोल मॉडल हआ करते थे। गु कुल णाली म, चौबीसो घंटे
िसखने का अवसर ा होता था। िश य सतत गु के साि न य म रहकर उनके ि या-कलाप
से ान ा करते थे। िश य गु के साथ औपचा रक एवं अनौपचा रक वातालाप के साथ—साथ

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दैिनक अ यास क ाओं के मा यम से ानाजन िकया करते थे।’’
म बाद म, वामीजी के आ म से वापस आ गया। लेिकन म जान गया िक गु —िश य एवं
गु कुल पंरपरा के मा यम से भारत म ान को जीिवत रखा गया। मने महसस ू िकया िक
अथशा के अनेक बार अ ययन के मा यम से मने वयं—कृपा क है। लेिकन शेष तीन :
ई र—कृपा, गु —कृपा और शा —कृपा से म वंिचत था।
मुझे ऐसे गु कहां िमलगे जो इन ाचीन प ितय से मुझे अथशा का अ ययन करा सक?
या म एक आदश िश य था? या आज भी ऐसे गु कुल अि त व म ह जो हो टल से कह
अिधक प रवार ह? इन के समाधान के िलए कहां जाया जाए?
मेरे दादा—दादी अब इस दुिनया म नह ह। लेिकन मुझे अपने माता—िपता का साि न य
ा है। समय के संग मेरे माता—िपता मेरे रोल मॉडल बन गए।
म ज दी से अपने घर गया और घर म घुसते उनसे कहा, ‘‘पापा, मुझे आपसे थोड़ी सहायता
क ज रत है।’’

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10
दादाजी से िपताजी तक

िज जीवन
स प रवार म मेरा ज म हआ था वह बहत ही गितशील िचंतन का था। बचपन से ही म
के िविभ न े से जुड़े लोग को अपने घर आते हए देखता था।
हमारे घर म ल बी प रचचाओं का चलते रहना एक आम य था। राजनीित से लेकर िव ान
म अ तन गितिविध तक, कला—संगीत से लेकर यवसाय म चल रहे ड तक िविभ न कार
के िवषय पर चचाएं होती रहती थ ।
मेरे दोन — माता एवं िपता काफ पढ़े —िलखे थे और उ ह वैि क मामल क अ छी समझ
थी। मगर सबसे जो बड़ी बात थी, वह थी घर के कण—कण म वािहत होने वाली आ याि मक
सं कृित।
म यह नह कह रहा हँ िक मेरा प रवार धािमक प रवार था बि क सही मायने म यह एक
आ याि मक प रवार था।
िन संदेह, हमलोग सभी भारतीय पव— योहार मनाते थे। साथ ही घर म दैिनक पजू ा—पाठ
भी हआ करता था। इसके साथ ही, घर पर आ याि मक पु ष का भी आगमन होता रहता था
और वे लोग दाशिनक चचाएं िकया करते थे। ये लोग िकसी न िकसी आ याि मक संगठन से जुड़े
रहते थे अथवा िकसी अलग धम के अनुयायी होते थे या अपनी वतं मता से घर पर आया
करते थे। प रचचा िसफ रामायण और महाभारत तक ही सीिमत नह रहती थी बि क इसम
बाइबल, कुअरान, गु ंथ सािहब और आगम पर िवचार—िवमश िकया जाता था। एक खुला
सां कृितक माहौल था िजसम लोग नए दाशिनक आयाम को उजागर करने के िलए त पर रहते
थे।
दादा जी कहा करते थे िक, ‘‘प रचचा तक—िवतक जैसी नह होती है। तक—िवतक के
दौरान लोग खुद को सही सािबत करने म लगे रहते ह जबिक प रचचा म स य को जानने का
यास करते ह।’’
हम स य को जानने के िलए प रचचा एवं िवमश िकया करते थे। कई बार हम एक—दूसरे के
िवचार से सहमत नह होते थे लेिकन एक—दूसरे का स मान अव य करते थे। िजस तरह से

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दादा जी ने मुझे भािवत िकया था उसी तरह उ ह ने मेरे िपता जी को भी भािवत िकया था। यह
तो मुझे बाद म पता चला िक दादा जी और िपता जी के बीच जो िवचार—िवमश होते थे उसके
संबंध म िपता जी नोट तैयार करके रखते थे।
वा तव म, हमारे घर क दीवार पर दादा जी के वचन को े म म मढ़वाकर लटकाया गया था।
इस संबंध म पापा ने कहा िक, ‘‘मुझे यह नह पता िक ये िवचार िकस ंथ म उि लिखत ह, मगर
मने इ ह अपने िपता जी से सुना, इसिलए म इ ह िपता जी के वचन के प म आदर दे रहा हँ।’’
इसम अंिकत था : ‘‘हो सकता है िक म आपसे सहमत नह होऊं, मगर अपनी अंितम साँस
तक म असहमत होने क आपक वतं ता को आपसे नह छीनंग ू ा।’’
जब तक—िवतक िकसी बड़े िववाद को प लेने लगता था तो हम म से कोई े म म अंिकत
इस िवचार क ओर संकेत करता था और सबके चेहरे पर मु कान िबखरने लगती थी।
मेरी माता भी बहत ही िन ायु तेज वी नारी थी। अनेक बार वे अपने िवचार से हम हैरत म
डाल देती थ । माता जी हम नई िदशा म सोचने के िलए िववश कर देती थ । यिद मेरे िपता जी
महाभारत से भी म के कथन का उ लेख करते थे तो उसके काट म मेरी माता जातक कथा क
उि को उ त ृ करती थ ।
हमारे घर का माहौल हँसी—खुशी एवं ान—चचा ये भरा हआ रहता था। वे कहा करते थे िक
हमने पवू ज म म अव य ही कोई बहत बड़ा पु य िकया था िक हम ऐसे महान प रवार म ज म
िमला। सचमुच म बहत ही भा यशाली था।
‘‘िपता जी, म कौिट य के अथशा का अ ययन गु —िश य परं परा एवं गु कुल प ित से
करना चाहता हँ।’’ हालांिक यह महज एक घोषणा जैसा लग रहा था। वा तव म म न िसफ िपता
जी का िवचार जानना चाहता था बि क इस संबंध म माँ के मत को भी जानना चाहता था।’’
िपता जी जब तक इस पर िवचार करते उससे पहले ही माँ का जवाब तैयार था। मुझे लगता है
िक हर प रवार म लगभग ऐसा ही होता है जहां मिहला अपना िवचार य करने के िलए त पर
रहती ह, यहां तक िक जब उनसे कुछ नह पछ ू ा जाता है तब भी।
‘‘अंतत: वह िदन आ ही गया। म तो उसी िदन जान गई थी जब तुम दादा जी के कमरे म
अकेले उनसे िमलने गए थे, उस िदन जब हमलोग गाँव म बाजार गए थे।’’ कौन कहता है मिहला
मानव मनोिव ान को नह जानती है?
िपता जी ने कहा : ‘‘शा अपनी ओर अपने तरीके से आकिषत करता है। जब पुकारा जाता
है तो कोई मना नह कर सकता है। इसे ऋिषय क पुकार’ कहा गया है। जब ऐसी पुकार होती है
तो धरती पर तु ह इनके अनुसरण करने से कोई रोक नह सकता।’’
बहत खबू ! मने इन वष के दौरान िपता जी से जो कुछ सुना था उसम यह वचन सबसे अिधक
गहन था। वह िब कुल मेरे दादा जी क तरह बोल रहे थे। भला कैसे नह ह , आिखर वे दादा जी
के ही तो बेटे थे, उनके भी डी. एन. ए. म वही बात थी। आधुिनक िव ान ने इसे डी. एन. ए. का
मामला िस कर िदया है। बुि म ा दादा जी से िपता जी म आ गई। और अब समय था उस
बुि म ा का मुझम आने का।
एक पुरानी कहावत है िक तु हारी माँ तु ह िपता से िमलवाती है और तु हारे िपता तु ह गु से

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िमलवाते ह।
जब कोई ब चा ज म लेता है तो अपनी माँ के नजदीक रहता है। उसके बाद उसक माँ धीरे —
धीरे उसका प रचय उसके िपता से करवाती है। जब पढ़ाई—िलखाई का समय आता है तब उसका
िपता उसे गु के पास ले जाता है।
‘‘िश ा ारं भ करने क परं परा को िव ारं भ परं परा के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग इसे
उपनयन भी बोलते ह यानी जनेऊ धारण करना। इसे वैिदक िश ा क औपचा रक शु आत के
नाम से भी जाना जाता था।’’ िपता जी ने प िकया।
‘‘चाहे राजपु हो अथवा कृषक पु हो या िफर यापारी का पु अथवा िकसी िमक का
सबको समान प से िश ा का अिधकार था। िव ारं भ के बाद िपता अपने पु को गु के पास
छोड़ देते थे। उसके बाद कई वष तक वह बालक गु कुल म रहकर िव ा अ ययन करता था।’’
मने पछू ा : ‘‘िकतने वष तक?’’
‘‘औसतन १२—१४ वष तक लेिकन यह िनणय उसका गु लेता था िवषय क मता एवं
यो यता के आधार पर। िश ा ाि के बाद छा को अपने प रवार एवं समाज म रचना मक
जीवन यतीत करने के िलए वापस नगर म भेज िदया जाता था।’’
‘‘िपता जी, मेरा गु कुल कहाँ है?’’ वे मु कुराने लगे जैसे िक उ ह ने वष पहले इस का
जवाब तैयार कर िलया था।

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11
एक िश क, एक छा


ह मेरे जीवन म एक अि तीय समय था अथवा इसे जीवन म एक बहत बड़ा मोड़ कह सकते
ह। मेरे कॉलेज परी ा म दो माह का समय ही बचा हआ था। यह कॉलेज म मेरा अंितम साल
था। इसके बाद म ेजुएट हो जाता।
भारत म ेजुएट होना एक बड़ी बात है अथवा कोई इसे एक सामा य बात भी कह सकता है।
इसे ऐसा मान िलया जाता है िक आपक औपचा रक िश ा परू ी हो गई और अब आपको नौकरी
क तलाश करनी है तथा पैसे कमाने ह।
मेरे कॉलेज म कुछ छा पाट टाइम जॉब भी करते थे और थोड़ा—बहत कमा भी लेते थे। कुछ
अपे ाकृत िनधन छा को अपने माता—िपता क ज रत को परू ा करने के िलए कुछ अिधक
पैसे क आव यकता रहती थी। कुछ छा संप न होने के बावजदू अ य कंपिनय म नौकरी
करने लगे थे अथवा प रवार के यवसाय म हाथ बँटाने लगे थे। ऐसा इसिलए था िक हर कोई
सोचता था िक िश ा ा करने के बाद उसे अंत म कमाना ही तो है।
हमारे समाज म एक अजीब सम या है। हम िजस िकसी से िमलते ह वह एक ही करता है,
‘‘आप या करते ह?’’ इसका मतलब साफ होता है िक आपक जीिवका का साधन या है?
इसम इस जवाब क अपे ा होती है िक आपके आय का साधन या है : ‘‘म इस कंपनी म काम
करता हँ’’, ‘‘म एक डॉ टर हँ’’, ‘‘म यवसाय करता हँ’’।
बाद म मुझे अपने जीवन म मालम ू हआ िक यरू ोप जैसे िविभ न सं कृितय वाले थान म इस
के जवाब कुछ इस तरह से होते ह: ‘‘म फुटबॉल खेलता हँ’’, ‘‘म पटर हँ”, ‘‘म लेखक हँ’’।
उनके िलए इस तरह के पछ
ू ने का मतलब होता है िक जीवन म आपक अिभ िच या
है? आपक हॉबी या है? आपको अपने जीवन म िकस काम म आनंद आता है? आपका पेशा
आपक अिभ िच के अनु प बन जाता है। भारत म आपका पेशा पहले और िजस काम म आपका
मन लगता है वह बाद म — चाहे वह हॉबी हो अथवा स ाहांत गितिविध।
ऐसी ि थित उ प न होने के पीछे बहत से कारण ह। िवदेशी शासन से वतं ता िमलने के
बाद हमारे देश म धीरे —धीरे आिथक गित हो रही है। साथ ही यहां पर लोग को न िसफ अपना

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बि क अपने प रवार का भी भरण-पोषण करना पड़ता है। साथ ही प रवार का आकार बड़ा होता
था िजसम यि िसफ अपनी िनजी गित के िवषय म सोच नह सकता था।
भारत म लोग को अपनी प नी—ब चे के साथ—साथ माता—िपता, दादा—दादी और अ य
सगे—संबंिधय तथा दो त क देखरे ख करनी पड़ती थी। उसे िज मेदा रय का वहन करना
पड़ता था — वयं तथा भाई—बहन क िशि त करना, बहन क शादी करना, बढ़ ू े माँ—बाप
क सेवा करना तथा सामािजक दािय व का िनवाह करना।
‘‘आप या करते ह?’’ जब कोई मुझसे यह पछ ू ता है तो इसके साथ ही मेरा एक जवाब
तैयार रहता था: ‘‘म कॉलेज म पढ़ता हँ।’’ ू ने वाले को चुप कराने के िलए इतना पया
पछ
होता था।’’ अिधकांश लोग इससे आगे जाकर छानबीन करने का यास नह करते थे।
लेिकन दो माह के बाद मुझे एक अलग तरह के जवाब का आव यकता होगी। या तो मुझे
िकसी अलग कोस म नाम िलखवाना पड़े गा तािक म एक मानक उ र दे सकँ ू : ‘‘म मा टर
िड ी म हँ।’’ अथवा मुझे िकसी आिथक गितिविध से जुड़ना होगा। अ यथा म समािजक ि से
अनुपयु हो जाऊंगा। लोग मुझे अनुपयु अथवा अनु पादक मानने लगगे।
मगर जीवन के उस किठन मोड़ पर िपता जी ने मुझसे जो बात कही वह बहत ही उ मु सोच
थी।
‘‘कॉलेज क परी ा समा होने पर कुछ िदन आराम करो। िफर िकसी गु कुल म िनवास
करो। अपने भिव य क िच ता मत करो। अपना भिव य खुद बनाओ। वयं पर थोड़ा समय दो।
वयं के अंदर झाँककर देखो। जीवन के संबंध म िवचार करो। गु कुल म गु के मागदशन म
अथशा का अ ययन करो।
म उनके जैसा िपता पाकर वयं को बहत ही सौभा यशाली महसस ू कर रहा था। िपता जी ने
मुझे िकसी िघसे—पीटे लाइन म नह धकेला।
माँ ने कहा, ‘‘पु , गु कुल म आपको अलग कार का वातावरण िमलेगा। वहाँ पर यान और
िचंतन का प रवेश होता है। ऐसी जगह सव िद यता छायी रहती है। वहाँ पर आप वयं को
सुरि त महसस ू करगे।’’
अिधकांश माताएं अपने ब चे और उनक सुर ा को लेकर िचंितत रहती ह। और एक मेरी माँ
थ जो मेरे िपता जी के साथ मुझे भावी जीवन क िदशा ा करने के िलए गु कुल भेज रही थी।
िपता जी ने कहा, ‘‘अनेक कार के गु कुल होते ह। एक ऐसा होता है िजसम हजार से भी
अिधक छा होते ह। यह आ याि मक ान के िज ासुओ ं का आ म हो सकता है। यह अनुसंधान
क भी हो सकता है अथवा ‘एक िश क—एक छा ’ जैसा भी हो सकता है। तुम िकस कार के
गु कुल म जाना पसंद करोगे?’’
इस ने मुझे हैरत म डाल िदया। मुझे नह मालम ू था िक मेरे सामने इतने अिधक िवक प
मौजदू हो सकते ह। जीवन के संबंध म खोज ारं भ करना मेरे िलए अपने आप म सौभा य क
बात थी और अब िविभ न कार के गु कुल क खोज भी उसी तरह का काम था। लेिकन
उपल ध िवक प म से िकसी एक का चयन करना मेरे िलए किठन सािबत हो रहा था।
सबसे पहले, म पहली बार गु कुल णाली से प रिचत हआ था, इसिलए मेरे सामने सम या

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उ प न हो गई िक म िकसका चयन क ं ? मुझे कैसे पता चलेगा िक िकस—िकस तरह के
गु कुल होते ह जब तक म वयं इस ि या से होकर वयं न गुज ं ? यह तो उसी तरह का
काम हआ िक आप िकसी नई जगह जाएं और वहाँ कोई आपसे पछ ू े िक आपका ि य यंजन कौन
—सा है।
सच बात तो यह है िक इस संबंध म आपका मत कुछ भी नह होगा बि क आप दूसरे लोग
यानी िकसी थानीय यि से जानकारी ले सकते ह। इस बारे म एक मत यह है िक महाभोज
क यव था क जाए और उसम हर साम ी को चखा जाए।
भो य साम ी क िविवधता पर काश डालते हए मने अपने िपता जी से कहा, ‘‘म उस
गु कुल जाना चाहता हँ िजसम हर कार के गु कुल का व प उपल ध हो।’’ म चाहता था िक
अकादिमक शोध िजसका आधार हो, जहाँ का प रवेश आ याि मक हो और जहाँ पर दो त का भी
साि न य हो। िफर भी सबसे आकषक थी:
‘‘एक िश क—एक छा वाली यव था’’।
िपता जी ने अपनी डायरी से एक टेिलफोन न. ढूँढा और कहा : ‘‘इनको फोन करो, तु ह
अथशा का गु िमल जाएगा।

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12
छ: माह के िलए िवदाई

वे संिकयाकृतथा।के चिवँिू कानवे थेशीऔरसेपतीस वष तक एक िव िव ालय म ोफेसर के प म अ यापन


वािनवतृ होने वाले थे इसिलए उनके अंदर ान के सार क
लालसा बहत ही ती थी। वाभािवक तौर पर जब कोई यि सेवािनवतृ होने लगते ह तब लोग
यह मान बैठते ह िक अब उसके कॅ रयर का अंत हो गया है। बहत थोड़े से ही लोग समझ पाते ह
िक यह एक नए अ याय क शु आत है, खेल क दूसरी पारी अब शु होने जा रही है।
इसम अंतर केवल इतना होता है िक आप खेल बेहतर तरीके से खेलगे। जीवन के पहले भाग
म आपका समय पैसे कमाने, प रवार का भरण-पोषण करने, अपने ब च को िशि त करने और
अ य िज मेदा रय को वहन करते हए गुजर जाता है। दूसरी पारी म जब आप सेवा िनवतृ हो चुके
रहते ह तब तक आपके ब चे का कॅ रयर बन चुका होता है और िव ीय ि से आप एक मजबत ू
ि थित म होते ह। आपक अिधकांश सांसा रक िज मेदा रयां परू ी हो चुक होती ह।
यिद आप तन—मन के व थ होते ह तो आपके सामने दो िवक प होते ह : पहला, आराम
क िज़ंदगी गुजारते हए मौत क ती ा कर अथवा जीवन को एक अलग नज रए से देखते हए
नए आवेग से आगे बढ़।
िजन लोग क सोच सतही दुिनया से आगे क होती है उनके िलए सेवािनविृ त िकसी वरदान
से कम नह होता। इसम आपको मनचाहा काम करने क आजादी होती है। आपको न केवल
वतं ता होती है बि क आप प रप वता के साथ अपना अगला कदम रखते ह।
जब उ ह ने मेरा कॉल उठाया तो मने उनसे कहा, ‘‘सर, म अथशा का अ ययन करना
चाहता हँ।’’
मने अपने उ चारण म ‘अथसा ’ कहा था, इस पर उ ह ने जवाब िदया : ‘‘यह अथशा है,
अथसा नह । उनका जोर ताल य ‘श’ पर था, द त ‘स’ पर नह ।
ये महान सं कृत के िव ान मुझे अपने िश य के प म रखते उससे पहले ही इ ह ने मेरी
गलती को ओर संकेत दे िदया। आप उस समय क मेरी ि थित का अंदाज़ा लगा सकते ह। मने
अथशा को अनेक बार पढ़ा था और मन ही मन वयं को इसका िव ान भी समझने लगा था।

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अब िजस यि को म अपना गु बनाने जा रहा था उनके साथ पहली बार क बातचीत के
दौरान मु य श द के उ चारण म ही मने गलती कर दी।
पहली गद म ही म ि लन बो ड हो गया।
‘‘सर, मेरे िपता जी ने मुझे बताया है िक अथशा पढ़ाने के िलए आप उपयु यि ह गे।
या आप मेरे गु बनगे?’’ म इस बात का यास कर रहा था िक म कॉल करने के अपने उ े य
से उ ह भलीभांित अवगत करा दंू। मने अनुमान िकया िक इस तरह के अनुरोध उनसे बहत—से
लोग करते ह गे, इसिलए वे बहत अिधक उ साही नह थे िक आिखर म उनसे या चाह रहा हँ। म
आ त हँ िक िव िव ालय म ोफेसर रहते हए बहत ही सरलता से छा उनक ओर आकिषत
होते ह गे।
‘‘तुम अथशा का अ ययन य करना चाहते हो?’’ वे मेरे िज ासा का ता पय जानना
चाहते थे।
मने िकसी तरह से जवाब देने का यास िकया, ‘‘वैसे ही सर।’’
उ ह ने आ य य करते हए पछ ू ा, ‘‘वैसे ही?’’ म इस बात से अवगत था िक कोई ाचीन
भारतीय ंथ का अ ययन िबना मतलब का नह करता है, खासकर कॅ रयर के पीछे भागती हई
इस दुिनया म। म भी इसी दुिनया का िह सा था। इसिलए मेरा जवाब तक—स मत नह था।
‘‘ या तुम अकादिमक दुिनया म कदम रखना चाहते हो और अथशा पर कोई शोध करना
चाहते हो?’’
मने महसस ू िकया िक िव िव ालय म जो छा उनके संपक आए ह गे वे अकादिमक सेवा म
अपना कॅ रयर बनाने हे तु उनका मागदशन चाहते ह गे। कई बार अथशा जैसे ंथ पर िवशेष
कार के शोध करने से यि को िकसी सरकारी कॉलेज म िश क क नौकरी िमलना तय
रहता है।
‘‘सं कृत म आपक यो यता या है?’’
इस को सुनते ही मेरे हाथ—पैर फूल गए। मने अपने जीवन म कभी भी सं कृत का
अ ययन नह िकया था। मेरे पास सं कृत क आधारभत ू यो यता नह थी और म उस यि से
बात कर रहा हँ जो सं कृत भाषा के मध ू य िव ान माने जाते ह।
‘‘िकसी कार क आधारभत ू यो यता नह ?’’ उनक विन से ऐसा लगा िक वे दूसरी बार
अचि भत हए ह। मेरी आशा न हो चुक थी और सोचा िक टेिलफोन रख दँू। मानिसक तौर म
अथशा क बात भल ू चुका था, अलिवदा अथशा उ भर के िलए!
‘‘तब िकस बात से े रत होकर आप अथशा का अ ययन करना चाहते ह?’’
यही वह था िजसका जवाब म आ मिव ास और स चाई के साथ दे सकता था। ‘‘मेरे
दादा जी सं कृत के िव ान थे और जब म छोटा था तब उ ह ने अथशा के साथ मेरा प रचय
करवाया था लेिकन िकसी गु के साि न य म इस ंथ के अ ययन का अवसर मुझे नह ा
हआ।’’
दूसरी ओर कुछ ण के िलए चु पी रही। ऐसा लगता था िक वे कुछ सोच रहे ह।

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‘‘ या तुमने अथशा का अ ययन पहले कभी िकया है?’’
इस बार म आ मिव ास से भर गया। जैसे िकसी मुद म जान आ गई हो। मने खर वर म
कहा, ‘‘जी हां सर, मने इसे अनेक बार पढ़ा है। मने सभी ६००० सू पढ़े ह, मगर अं ेजी म। मने
इसे सं कृत म पढ़ने का यास िकया है लेिकन इस भाषा क सभी बा रिकय को समझ नह
सका हँ।’’
‘‘ठीक है, अ छी बात है। इस तरह आपक प ृ भिू म है।’’ ऐसा लगा िक मने परी ा पास कर
ली है। ‘‘ या आप छ: माह के िलए यहाँ आ सकते हो?’’
‘‘जी हाँ, मने इसे वीकार िकया।
‘‘जी हाँ सर, जैसा आप कहगे।’’ म अपने नए गु के ित वयं को समिपत करना चाहता
था।
उ ह िव िव ालय म अपने अंितम चरण के काय को परू ा करने म कुछ महीने बचे हए थे और
मुझे नातक क पढ़ाई परू ी करने म दो माह का समय और चािहए था। बहत ही अ छा तालमेल
था। बाद म अनेक बार दूरभाष से बातचीत के दौरान हमने कुछ िनणय िलए। मुझे उस गाँव म
जाना था जहाँ पर उनका िनवास थान था। वहाँ पर एक आ म था िजसम शोध पु तकालय भी
था।
वह आ म उनके घर के नजदीक था। वे येक िदन दो घंटे तक पढ़ाया करगे। िदन के शेष
समय म पु तकालय म अ ययन करना पड़े गा। िजस गाँव म मुझे ठहरना था उसम भी एक आ म
था।
म शहर से गाँव जाने को लेकर उ सािहत था, इसिलए कुछ माह बाद नातक क होने वाली
परी ा मेरे िलए महज एक औपचा रकता रह गई थी। म अपने जीवन म ारं भ होने वाले नए
अ याय को लेकर बहत ही िज ासु था।
और एक िदन वह समय आ गया....

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13
अंतया ा


क कहावत है: अ ात का भय बना रहता है। म दपण के सामने खड़ा होकर वयं को
िनहारा करता था। म अपने भिव य से बेखबर था, यह मेरे िलए अ ात था। िफर भी म अंदर
से बहत खुश था। बहत ही उ सुकता थी।
दपण म जो श स था उसने मुझसे कहा, ‘‘तुम िकसी वा या ा पर नह िनकल रहे हो
बि क तुम अंतया ा पर जा रहे हो। यह अ ात से ात क ओर एक या ा है। यह अथशा
िसखने के िलए नह है बि क यह अथशा के अनु प जीने क या ा है।’’
और वही आवाज अिधक जोर देकर य होने लगी: ‘‘तुम चाण य के ान क खोज म नह
िनकल रहे हो बि क वयं म चाण य क खोज के िलए िनकल रहे हो।’’
म सपने से तब जगा जब मेरी माँ ने मुझसे कहा: ‘‘चलो तैयार हो जाओ। जाने का समय हो
गया। तुमने खाने का पैकेट रख िलया है ना? उसे मत भल ू ना।’’
पहली बार म इतने अिधक समय के िलए घर से बाहर िनकल रहा था। अनेक बार म दो त के
साथ िपकिनक और घम ू ने—िफरने के िलए कुछ िदन तक बाहर गया था मगर इस बार म
अकेले जा रहा था और वह भी सीधे छ: माह के िलए।
मेरे दो त यह नह समझ सके िक म जीवन म या करने जा रहा हँ। उ ह ने सोचा िक म
िकसी ऐसे—वैसे गाँव म िकसी िविच सं कृत ंथ का अ ययन करने जा रहा हँ। ऐसा लग रहा
था िक अपने जीवन म जो कुछ करने जा रहे ह उसके ित वे आ त ह। ह ह ह ...।
मने उ ह समझाने का यास िकया, ‘‘म गु —िश य परं परा के अनु प एक गु के
मागदशन म कौिट य के अथशा के अ ययन के िलए आ म म िनवास करने जा रहा हँ।
हालांिक उ ह ने मेरे सामने कुछ नह कहा लेिकन मुझे पता है िक वे इस संबंध म आपस म
बात करते ह गे िक यह पागल हो गया है। मने अपने एक दो त को यह कहते हए सुना:
‘‘सं कृत एवं ई र संबंधी ान को सेवािनविृ त के बाद भी ा िकया जा सकता है। हमलोग
अभी नौजवान ह। इस समय हम अपने कॅ रयर पर यान देना चािहए।’’ मने िनणय िलया िक इस
समय कुछ न कहा जाए। समय हर का जवाब दे देगा।

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जब म ेन पर चढ़ा तब मेरी माँ क आँख से आँसू छलकने लगे। हालांिक म जानता था िक
यह दुख या जुदाई के आँसू नह ह बि क खुशी के आँसू ह। वह खुश थी िक उसका बेटा उस माग
पर जा रहा था िजस पर बहत कम लोग जाने का साहस करते ह — ाचीन भारतीय सािह य के
अ ययन का।
म जानता हँ िक जब िकसी माँ से उनक संतान जुदा होती है तो वह उनक सलामती और
सुर ा के िलए िचंितत रहती ह। लेिकन अ यंत ही आ याि मक कृित के होने के कारण मेरी माँ
हमेशा से यह िव ास करती थी िक जीवन या ा म सव प र संर क एवं पालनहार ई र ही होते
ह।
िपता जी तट थ भाव म थे। वे इस बात से आ त थे िक म अपनी िदशा से प रिचत हँ। उ ह ने
मुझे अपनी देखभाल के िलए पया धनरािश दे दी थी और गु जी से वयं बातचीत भी कर ली
थी तािक वे उनके लड़के का उिचत मागदशन करते रह।
मने अपने माता—िपता के चरण— पश कर उनका आशीवाद िलया। मन ही मन मने अपने
दादा—दादी का भी आशीवाद िलया। मेरे दादा जी के श द मेरे िवचार म समाए हए थे।
म उस साधु के वचन को भी याद िकया िज ह ने िविभ न स संग के मा यम से मेरे जीवन
पर असर डाला था: ‘‘संत मानव जीवन को बेहतर करने के िलए सदैव यासरत रहते ह। संत
क िश ा उसी तरह क होती है जैसा िक बीज जमीन के अंदर पड़ा रहता है और समय आने पर
अपना भाव िदखाता है। उनक जड़ गहरी होती जाती ह और व ृ का आकार बड़ा होते जाता
है।’’
बचपन से िकतने साधुओ ं ने मुझे आशीवाद िदया है? मेरे दादा—दादी, मेरे माता—िपता,
मागदशन करने वाले साधु और मेरे नए गु िजनसे म िमलने के िलए जा रहा था। मुझे लगता है
िक जीवन स संग से भरा हआ है यानी ऐसे लोग के साि न य से िजनके सदिवचार ह।
जैसे ही ेन खुली, वैसे ही मने इन लोग के आशीवाद को महसस ू िकया। यह दो िदन क
या ा थी। रे लगाड़ी म मने अपने दादाजी के अथशा क मल ू ित को पढ़ना और अ यास
करना शु िकया। अंदर ही अंदर मने खुद को भी एक अ य परी ा के िलए तैयार करने लगा।
म जीवन म पहली बार अपने अथशा गु से िमलने के िलए जा रहा था और मुझे भय था
िक वे अथशा म से कोई ू द। इसके िलए मुझे जवाब तैयार रखना है।
न पछ
पहली बार अनौपचा रक प से जो टेिलफोन बातचीत के दौरान हमने गलती क थी उसे इस
समय म दुहराना नह चाहता था। ‘अथशा , अथसा नह ।’ म इस बार ‘श’ का प प से
उ चारण क ं गा। मुझे ऐसा लगता है िक िजस तरह से मने इस गु से िमलने के िलए तैयारी क
थी वैसी तैयारी तो म अपने िकसी कूल या कॉलेज क परी ा क तैयारी के िलए भी नह क
थी। यिद मने पहले इस कार क तैयारी क होती तो मुझे िव ास है िक म हर क ा म थम
आया होता।
रे लगाड़ी अपने गंत य थल पर पहँच गई। इस छोटे से टेशन के लेटफाम पर जब म उतरा
तब तक अपरा का समय हो गया था। म उस िचलिचलाती धपू म अपना सामान ख चकर बस
टॉप तक लाया। अपने गु के घर तक जाने के िलए बस से एक घंटे का सफर था।

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ल बी या ा क थकान से मेरे अंदर कमजोरी आ गई थी। म भख ू ा भी था, मगर िसफ पानी
पीकर उस यि से िमलने के िलए म आगे क या ा पर िनकल पड़ा जो सदा के िलए मेरा भा य
बदलने वाले थे। जैसे ही म बस से उतरा तो एक दुकानदार ने मुझे अपने गु के घर का रा ता
बता िदया। शहर क तुलना म उस गाँव म बड़े —बड़े घर थे। जैसे—जैसे म उन घर के आगे से
गुजर रहा था, लोग मेरी ओर उ सुकतापवू क देख रहे थे। मुझे लग रहा था िक म िकसी अलग ह
से आया हआ ाणी हँ और अभी—अभी इस धरती पर उतरा हँ। उसके बाद म ार तक पहँच गया।
मने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही डोरबेल जैसी आवाज उ प न हई। इससे घर के अंदर
कुछ हलचल हई। दो लोग बाहर िनकले और मेरी ओर बढ़े ।
िन संदेह इनम से पहले यि मेरे गु थे।
लेिकन वे दूसरे कौन थे...?

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14
मेरे अथशा गु

“तु मेहारेरे िपतािपताजीजीकेकाबारेफोनम िजतने


आया था। वे जानना चाहते थे िक तुम पहँचे हो िक नह ।’’ मेरे गु
उ सुक थे, वे उतने मेरे बारे म नह थे; कम से कम महसस ू
तो ऐसा ही हो रहा था। वे मुझे अपने घर के अंदर ले गए।
मुझे ऐसा लगा िक मेरे जैसे बहत से छा उनसे सं कृत म मागदशन लेने आए थे। मेरे िलए तो
वही मेरे गु थे मगर उनके मेरे जैसे बहत—से िश य थे। जो यि िव िव ालय म ३५ वष तक
अ यापन िकया है उनके पास तो काफ िश य ह गे ही।
वे दुबले—पतले और चु त—दु त थे। उनके बाल सफेद हो गए थे जो िक मेरे मुतािवक गु
होने के िलए उपयु है। यिद आपके िसर से आपक उ का पता नह चलता है तो लोग समझगे
िक इसके मि त क म कुछ है ही नह ।
दूसरे यि के प म उनके साथ उनक प नी थी। जब म अपने घर से िवदा हआ था तब मेरे
िपता ने मेरे गु के प रवार के संबंध म थोड़ी जानकारी दी थी। उनक प नी ने कहा : ‘‘मुझे
लगता है िक तु ह इस घर को ढूंढ़ने म कोई तकलीफ नह हई होगी।’’
यह थोड़ा गाँव के अंद नी िह से म है, इसिलए बस टॉप से थोड़ा चलकर आना पड़ता है
लेिकन यहाँ पर कोई भटकता नह है। शहर क तरह नह , बि क ही गाँव ही सुरि त होता है।
जैसे ही मने उनके बड़े से घर म वेश िकया वैसे ही गु जी ने अपनी ान चचा ारं भ क :
‘‘तुम गाँव और शहर के बीच अंतर को जानते हो?’’ वे एक बार िफर से मेरी परी ा लेना चाहते
थे।
जब तक म कुछ कहता उससे पहले ही उ ह ने कहा, ‘‘गाँव म हर कोई एक—दूसरे को
जानता है जबिक शहर म लोग अपने पड़ोसी को भी नह जानते ह।’’ इसका भाव बहत ही गहरा
था।
उ ह ने अपनी बात को प करते हए कहा, ‘‘गाँव िसफ एक िनवास थान नह है बि क
यह एक वहृ तर प रवार है। यहाँ हर कोई एक—दूसरे को जानता है। लोग एक—दूसरे के दुख—
सुख के साथी होते ह। यिद कोई एक आदमी सम या त होता है तो परू ा गाँव उसक मदद

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करता है।’’ जी हाँ, मुझे याद है िक जब हम छु ी म गाँव जाया करते थे तो परू ा गाँव दादा जी के
पास जमा हो जाता था।
‘‘शहर म लोग के पास एक—दूसरे के िलए व त नह होता है, यहाँ तक िक अपने पड़ोसी
के िलए भी नह । म अखबार म पढ़ते रहता हँ। हाल ही म एक प रवार म लोग क मौत हो गई।
पड़ोिसय को एक स ाह के बाद पता चला जब मत ृ शरीर से दुगध िनकलने लगा।’’ इन दो
कार के सामािजक जीवन म बहत अंतर है।
मने सकुशल पहँचने के संबंध म अपने माता—िपता को सिू चत कर िदया।
मेरे गु क प नी ने आदेश िदया, ‘‘नहा—धोकर खाना खाने के िलए आ जाओ।’’
म सोचने लगा िक उ ह िकस कार संबोिधत क ं । मने सुना था िक ाचीन काल म जब
लोग गु कुल म पढ़ने जाते थे तो ज री नह िक गु सं यासी ही ह , गु िववािहत भी होते थे।
गु क प नी वहाँ िनवास कर रहे छा क वाभािवक प से माता के समान हो जाती थी।
वहाँ के छा उ ह गु मा कहा करते थे। यह संबोधन मुझे भी उिचत तीत हआ। इस तरह से
मुझे एक गु के साथ—साथ गु मा भी िमल गई — पैकेज डील क तरह एक म दो।
मेरी गु मा भी कोई साधारण औरत नह थी। वे वयं भी सं कृत क िवदुषी थी और अपने
पित क तरह इसम पीएच.डी. थ । मेरे गु ने ही उ ह िववाह के बाद आगे पढ़ाई के िलए े रत
क थी। उनके ब चे भी काफ पढ़े —िलखे थे और शहर म कॉरपोरे ट े म अपना कॅ रयर
िवकिसत कर रहे थे।
उ च िशि त, मह वाकां ी और कॅ रयर उ मुखी युवाओं के िलए गाँव म बहत अिधक अवसर
नह होते थे। यह िव ान दंपती आसानी से िकसी शहर म जाकर रह सकते थे लेिकन इ ह दोन
दुिनया क अ छी बात से लगाव था।
वे अपने गाँव म ही रहे लेिकन अनेक संगोि य और स मेलन म भाग लेने के िलए या ाएं
क । इ ह ने सं कृत म िजन पु तक और शोध आलेख क रचना क उनके पाठक िव भर म
फै ले हए ह। इस कार उनको दुिनया के िविभ न देश के िव िव ालय से अपने िवचार तुत
करने के िलए आमंि त िकया जाता था।
वहाँ पहंचने से पहले उनके संबंध म मेरी धारणा यह थी िक वे एक िनधन एवं िवन ामीण
यि ह गे जो अ य िकसी कार का अवसर नह ा होने के कारण सं कृत पढ़ाते थे। भोजन
के समय उनके साथ चचा के दौरान मेरी यह धारणा बदल गई। उ ह ने गाँव म रहने का िनणय
बहत ही सोच—समझकर िलया था।
‘‘जब पहली बार तुमने यहाँ आने के िलए फोन िकया था तो म तु ह अपने य त या ा
काय म के कारण अपने छा के प म रखने के िलए तैयार नह था।’’ उस दूरभाष वातालाप
के दौरान कुछ ण के िलए वे चुप हो गए थे, उ ह ने उसका उ लेख िकया।
मने उ सुकतावश पछ ू ा, ‘‘तब िफर आपने मुझे अपने छा के प म य रखा?’’
‘‘जब मने तुमसे पछ ू ा िक तु ह अथशा पहने के िलए िकसने े रत िकया तो तुमने अपने
दादा जी का नाम िलया। इससे म अिवभत ू हो गया।’’ अब समझा, मामला िदल का है।
‘‘तु ह पता है। मेरा एक पोता है जो मेरे बेटे के साथ जो मेरे बेटे—बह के साथ िवदेश म रहता

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है।’’ उ ह ने मु कुराते हए अपनी प नी क ओर देखा। ‘‘जब हम वहाँ जाकर अपने पोते के साथ
समय यतीत करते ह तो हमेशा वह ाचीन भारत क कहािनयाँ सुनना चाहता है। िपछली या ा
के दौरान मने उ ह चाण य क कहानी सुनायी थी ....’’
म समझ चुका था िक वे आगे कुछ कहने वाले ह।
‘‘मने उसे कौिट य के अथशा के बारे म कहा था। लेिकन उस बालक का छोटा—सा
मि त क अभी चाण य क कहानी से अिधक हण करने क ि थित म नह था।’’ गु जी ने
बीज बो िदया था और समय आने पर वह बीज धरती को फाड़कर व ृ के प म प रणत हो
जाएगा।
या एक अलग प रवार म इितहास क पुनराविृ त हो रही थी? मुझे लगता है हर प रवार —
हर पीढ़ी म दादा से पोते को सां कृितक मू य िमलने क परं परा रहती है।
‘‘लेिकन तु ह अपने छा के प म वीकार करने का इससे भी बड़ा कारण था यहाँ आकर
छ: माह रहकर अ ययन करने क तु हारी ओर से वीकृित। तु हारी ितब ता को देखकर म
बहत खुश हआ। शहर म रहने वाले बहत कम लोग ऐसा कर पाते ह।’’ एक ितब छा के प
म मा यता िमलने पर मेरा दय गदगद हो गया। मुझे यह बहत अ छा लगा।’’
‘‘अब हम अगले छ: माह के िलए अ ययन क परे खा तैयार करने के िलए त पर हो जाना
चािहए।’’
गु मा ने अपने पित से कहा, ‘‘उसे पहले थोड़ा िव ाम करने द। बेचारा बालक इतनी दूर क
या ा करके आया है।’’

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15
िनयम

गु केमािलएक तैसलाह के अनु प म थोड़ी देर िव ाम करने के बाद अपने पहले िदन के अ ययन
यार होना चाहता था। म नह जानता था िक या ा के कारण मुझे इतनी थकान हो
गई होगी िक जब उठूंगा तब तक सय ू ा त हो चुका होगा। जब मने िखड़क से बाहर झांका तो
अंधेरा हो चुका था। मुझे अपराध—बोध होने लगा।
म वयं को कोसने लगा : ‘‘ या तुम इसीिलए यहाँ आए हो? सोने के िलए? पहले िदन क ा
शु करने का िकतना अ छा तरीका है। तु हारे गु तु हारी ती ा कर रहे ह और तुम न द
ख चे जा रहे हो जैसे कल सोना ही नह है।
जहाँ गु जी बैठे हए थे उघर म भागे—भागे गया। उनके आसपास कुछ लोग बैठे हए थे। जब म
उनक ओर तेजी से बढ़ रहा था तभी उ ह ने मेरी ओर देखते हए ईशारा िकया।
‘‘यही वह लड़का है िजसके बारे म म बात कर रहा था। यह शहर से यहाँ अथशा का
अ ययन करने आया है।’’ उ ह ने गौरवपण ू अंदाज़ म आगंतुक को बताया।
उन लोग के साथ बातचीत के दौरान पता चला िक वे एक संगो ी का आयोजन करने वाले
थे िजसम गु जी व ा होने वाले थे।
‘‘म िनि तपवू क आऊंगा। आप अपनी तैयारी जारी रख और मेरे नाम के साथ आमं ण प
छपवा ल।’’ गु जी बात को सुनकर आयोजकगध अ यंत स न हए और वे संतु िदख रहे थे।
वे जो चाहते थे उ ह वो िमल गए — गु जी के समय एवं वीकृित।
आगे उ ह ने कहा, ‘‘कम से कम अगले छ: माह तक यहाँ से बाहर कह नह जाऊंगा। यह
बालक इतना प र म करके शहर से आया है। मुझे इसके साथ अ छा—खासा समय िबताना है।
साथ ही, म अभी—अभी िव िव ालय से सेवािनवतृ हआ हँ। मुझे थोड़ा व त वयं पर भी देना है।
चँिू क आपका थानीय काय म है, इसिलए मुझे कह या ा नह करनी है। म वहाँ आऊंगा।’’
मेरी ओर गौरवपण ू ि से देखते हए उ ह ने लोग से कहा, ‘‘सामा य प रपाटी यह है िक
लोग पढ़ने के िलए गाँव से शहर क ओर जाते ह तथा शहर के लोग िवदेश जाते ह। लेिकन
िकतनी बार आपने देखा है िक लोग शहर से पढ़ने के िलए गाँव आते ह?’’ अब मुझे अपने उस

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मधुर प का ान हआ जो उ ह पसंद आया था।
वा र आयोजक ने गु जी से अनुरोध िकया, ‘‘इ ह भी काय म म लेते आइए।’’
‘‘िव कुल, ये वहाँ जाएं गे। म इ ह अपने साथ लेते आऊंगा।’’ या मुझे गु जी के साथ नह
जाने क छूट थी?
जब हमलोग उन सबको िवदा देने के िलए ार तक आए तो उनम से जो सबसे कम उ के थे
वह मेरे पास आकर धीरे से मुझे कहा, ‘‘आप बहत भा यशाली ह िक इ ह ने आपको अपना िश य
वीकार िकया है।’’ म जानता था िक म भा यशाली हँ मगर उसके बाद इ ह ने जो कहा, वह
वाकई बहत ही झुकाने वाली बात थी:
‘‘मने इनके अंदर पीएच.डी. िकया है। वे मेरे शोध िनदशक थे। चार साल तक म धैयपवू क
ती ा करते रहा तब इ ह ने मुझे अपने िश य के प म वीकार िकया। और अगले चार वष
तक अपने शोध काय के दौरान ये मेरे पर उतना समय नह दे सक ह िजतना समय आपको
िमलने वाला है।’’ या इस यि को मेरे से ई या हो रही थी अथवा मेरे उ कष पर पहंचने से पवू
ही वह खुद इनके िवषय होने पर शेखी बघार रहे थे?
‘‘म येक स ाह इनका आधा घंटा समय ले पाता था और आपको छ: माह इनका परू ा
मागदशन िमलेगा और वो भी दैिनक आधार पर। आपक िक मत का या कहना, आप िक मत
के बहत धनी ह।’’ इतना कहने के बाद वे अ य लोग के साथ दूर चले गए।
‘‘अपने उस अथशा क िकताब िदखाओ िजसका अ ययन तुमने अभी तक िकया है।’’ गु
जी जानना चाहते थे िक अभी तक हमने या पढ़ा है।
मने उ ह वह पु तक िदखायी िजसका अ ययन दादा जी ने िकया था और बाद म मुझे दी गई।
इस पर दादा जी क िट पणी थी और मेरी भी। इस मेरा अलग से भी एक नोटबुक था। इसम इतने
वष के दौरान अथशा के संबंध म जो भी मेरे िदमाग म उपजे थे वे सभी अंिकत थे। मुझे
इन के उ र क ती ा थी।
‘‘यह अथशा का अ छा सं करण है। इसम अं ेजी अनुवाद भी अ छा है। अगले छ: माह तक
अ ययन के िलए आधार ंथ के प म इसका उपयोग करो।’’ मुझे यह सुनकर अ छा लगा िक
मुझे पुन: शु से काम नह करना है।
‘‘लेिकन दूसरे िव ान ारा िलखे गए अथशा के अ य सं करण को भी तु ह पढ़ने क
ज रत है य िक इससे अलग—अलग ि कोण को समझने म मदद िमलेगी। अपने ान को
कभी भी एक यि अथवा एक पु तक तक सीिमत नह रखो। अपना िदमाग खुला रखो।’’
‘‘म मन म बात को अंिकत करते जा रहा था। उ ह ने मागदशन जारी रखा: ‘‘हमलोग को
अगले छ: माह के िलए समय सारणी तैयार कर लेनी चािहए।’’ उ ह ने पहले ही एक समय सारणी
तैयार कर ली थी: ‘‘तुम मेरे घर के पास इस आ म म रहोगे। यह कोई साधारण आ म नह है।
यह क सरकार ारा मा यता ा भारतिव ा क भी है। इसम एक िव — तरीय पु तकालय
है िजसम दुलभ ंथ ह।’’ जी हां, मुझे आ म के इस प क जानकारी पहले से ही थी।
‘‘म इनके परामशक मंडल म हँ और उनक शोध—सिमित का िह सा हँ। परू े िव के
सं कृत िव ान का एक समहू है जो ाचीन सं कृत ंथ के पुन ार क िदशा म काम कर

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रहा है।’’ भारतिव ा से मेरा प रचय पहली बार हो रहा था।
‘‘आ म के प रवेश म िनवास करने से तु हारे अंदर आ याि मक िवकास म भी मदद िमलेगी।
तुम येक िदन आ म से मेरे घर आओगे और िफर म क ा लँग ू ा। कल म तु ह अ ययन प ित
के संबंध म अिधक जानकारी दँूगा।’’ उ ह ने मु कुराते हए कहा। मुझे लगा िक वे समझ चुके ह
िक उनके िनदश को समझने के िलए मुझे थोड़ा व चािहए।
‘‘आज रात तुम यह कोगे। कल सुबह हमलोग गणेश—पज ू ा करगे और उसके बाद तु हारा
औपचा रक अ ययन शु होगा।’’ जी हां, िकसी भी ल य को ा करने हे तु काय ारं भ करने से
पवू भगवान गणेश क पज ू ा क जाती है तािक माग म आने वाली बाधाओं को वे दूर कर द।
भगवान गणेश सफलता सुिनि त करते ह।
मेरे गु जी परं परा और आधुिनकता दोन म िव ास करते थे। वे अनु ान म िव ास करते
थे मगर उनके मह व और उनके पीछे तक से भी प रिचत थे। बाद उ ह ने मुझे अ या म के तक
प का भी ान िदया।
मेरे कंधे पर हाथ रखते हए उ ह ने उस िदन के िलए मुझे िव ाम क अनुमित दे दी।
‘‘कल तु हारा दूसरा ज म होगा ......’’

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16
िव ा-आरं भ

म नेपहलयहथी।सुिनिगु
त िकया िक अगले िदन सय ू दय से पवू जग जाऊं। घर म पहले से ही चहल—
जी और गु मा पहले ही जग चुके थे। मुझे रसोई घर से आने वाली आवाज
सुनाई दे रही थी। मने नान िकया और तैयार होकर हॉल म धीरे से झांका और उनक िदनचया
को देखकर दंग रह गया।
गु जी पहले से मेरी ती ा कर रहे थे। उ ह ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘आओ, पहले हमलोग
पजू ा कर।’’ वे मुझे एक छोटे—से कमरे म ले गए जहां पर एक छोटा—सा मंिदर बना हआ था।
वहां पर िविभ न देवी—देवताओं के िच थािपत थे। दीपक जल रहा था। भगवान गणेश क
ितमा म य म थािपत थी।
‘‘भगवान गणेश ान के देवता ह। महाभारत के लेखक एवं वेद के संकलनकता वेद यास
के ंथ के आशुलेखन (तेजी से िलखने का काम) का काम इ ह ने ही िकया था।’’ गु जी ने
मुझे भगवान गणेश से संबंिधत दाशिनक प क जानकारी दी। ‘‘यिद हमारे पास ीगणेश का
यह अिभलेख नह होता तो हम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ान को पहंचाने म स म नह
होते।’’
उ ह ने मुझे एक आसन पर बैठाया और मं पढ़ते हए मेरे माथे पर ितलक लगाया। उसके बाद
उ ह ने वयं तुित क । उ ह ने अपने साथ मुझे भी ाथना करने के िलए कहा। उसके बाद
उ ह ने अथशा क मेरी ित लेकर भगवान के सामने रख दी। इस पर पु प अिपत करते हए
उ ह ने कहा, ‘‘अब भगवान गणेश के साथ—साथ ाम देवता, अ य देव , अपने पवू ज , अपने
माता—िपता और अ य शुभिचंतक का भी यान करो।’’
जैसे ही मने उनम से येक को यान करने के िलए अपनी आँख बंद क , वैसे ही गु जी ने
कहा, ‘‘अपने अ ययन को पण ू एका ता और िन ा से परू ा करने के िलए इन सबका आशीवाद
लो।’’
उसके बाद उ ह ने अपनी दराज से ा क माला िनकाली और उसे भगवान िशव क
ितमा के सामने रख िदया। उ ह ने कुछ मं का उ चारण िकया। उसके बाद ा माला को

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मेरे हाथ म डालते हए उ ह ने कहा, ‘‘यह ा माला कैलाश मानसरोवर का है। मने इसे अपनी
िपछली या ा के दौरान वहां से लाया था। यह बहत ही िद य थल का है।’’ मने इस माला को
हण िकया और बहत ही ा भाव से अपनी आँख बंद करते हए उसे पश कराया।
‘‘इसम १०८ मनके ह।’’ म जानता था िक इस सं या का आ याि मक मह व है। बहत से
लोग इस तरह क माला का उपयोग करते ह। ‘‘इस माला पर तु ह येक िदन गाय ी मं का
जप करना चािहए।’’, ऐसा गु जी ने आदेश िदया। इसका मतलब यह हआ िक मुझे येक िदन
गाय ी मं का जप करना है। इस मं के जप करने से लोग क बुि खर होती है।
ाचीन काल म भी िव ारं भ के समय गाय ी मं का उ चारण िकया जाता था। इस तरह से
िव ारं भ िकए जाने पर म वयं को सौभा यशाली समझ रहा था। उसके बाद उ ह ने उदीयमान
सय ू देव क ओर संकेत करते हए कहा, ‘‘अब, भगवान सय ू देव क ाथना करो। वा तव म ये
बहत ही शि शाली ह। ये सभी ान के ोत ह।
मरण रहे , अथशा का तु हारा अ ययन तु हारी साधना है। हर कदम पर भगव कृपा का
अिभलाषी बने रहो। ऐसे भी ण आएं गे जब तु ह अपना अ ययन नीरस और थका देने वाला
लगने लगेगा लेिकन येक काय को िन ापवू क परू ा करना।’’ उ ह ने कहा िक अ ययन के
ित यि का ि कोण बहत मायने रखता है।
म उनके सामने शांत बैठा रहा और िफर गाय ी मं का उ चारण िकया। ा माला पर
मं जाप िकया और सय ू देव क तुित क । उसके बाद एक छोटी—सी आरती क गई। मने अपने
गु जी और गु माता के चरण पश करके उनका आशीवाद िलया।
उसके बाद गु मा ने कहा, ‘‘जलपान तैयार है। उसके िदन के जलपान म कुछ िवशेषता थी।
वह न केवल वािद था बि क िद य भी था। अभी तक मने जो कुछ खाया था उसम यह
सव म साद था। भोजन करते हए मने गु जी से पछ ू ा, ‘‘गु जी, भारतिव ा या है?’’
‘‘यह भारतीय मलू के सभी कार के ान—िव ान का अ ययन है। वैिदक गिणत, आयुवद,
नाट्यशा ... यहां तक िक तु हारे अथशा का अ ययन भी भारतिव ा के अंतगत है।’’ बाद म
मुझे पता चला िक इंडोलोजी यानी भारतिव ा श द का ईज़ाद पि मी अकादिमक िव ान ने
भारत से जुड़े सभी कार के ान के िलए िकया था — भारतीय सं कृित, परं परा, सािह य आिद
के िलए।
गु जी ने मुझे सिू चत िकया िक ‘‘भारतिव ा के अिधकांश िव ान भारत के बाहर के ह।’’ म
इस बात के ित आ त नह हँ िक मुझे खुशी होनी चािहए अथवा दुखी। खुश इसिलए होना
चािहए िक भारतीय ान का सार िवदेश म हो रहा है और इस पर अनुसंधान चल रहा है। और
दुख का िवषय यह है िक हमलोग अपने ाचीन ान को मह व नह दे रहे ह।
आगे म अपने गु क बात सुनकर आशावान हो उठा: ‘‘लेिकन ि थित बदल रही है। अनेक
भारतीय भारतिव ा म गहन िच लेने लगे ह।’’
अब भारतिव ा के िविधवत छा कहे जाने से मुझे अ छा लगा। ‘‘तुम जैसे छा को भारतीय
ान का अ ययन करना चािहए और इसे आधुिनक समय के मुतािबक ासंिगक बनाना
चािहए।’’

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िजस बड़ी सम या का उ लेख वे करने जा रहे थे उसको म समझ सका। ‘‘ ाचीन भारतीय
ान के साथ सम या है हमारी वतमान पीढ़ी के िलए इसक ासंिगकता। िन संदेह, भारतीय
अपनी िवरासत पर गव करते ह लेिकन जब जीवन म इनके योग करने क बात आती है तो हम
असफल हो जाते ह। यह पर दूसरे देश को लाभ िमल जाता है।’’
भारत के साथ दूसरे देश क तुलना करते हए उ ह ने कहा, ‘‘हमारे से नए एवं छोटे देश को
देखो। उ ह ने हमसे तेजी से गित क है। यहां पर अतीत म इतना अिधक बौि क काय संप न
होने के बावजदू वतमान म हम अपने अि त व के िलए संघष कर रहे ह।’’ म उ ह यान से सुन
रहा था। म उनके दद को महसस ू कर सका।
‘‘हमने अपने अतीत को मिहमामंिडत िकया है। लेिकन हम अपने ाचीन ंथ के अ ययन
एवं अनुसंधान करने क आव यकता है और आधुिनक सम याओं का समाधान िनकालना है।
अपने अतीत को समझते हए हम अपने विणम भिव य के िलए काम करना है। हम अपने देश एवं
अपने ान को नई ि से समझने क ज रत है।’’
मुझे एक कायसच ू ी थमा दी गई .....

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17
आ म म वेश


ह आ म गु जी के घर से २० िमनट क दूरी पर ि थत था।
‘‘आज हम आ म तक पैदल जाना चािहए। तुम रा ते से प रिचत हो सकोगे। वहां जाने
के िलए बस सुिवधा भी उपल ध है िजससे तुम तेजी से आवागमन कर सकोगे। केवल बस
के आने—जाने का समय पता कर लो।’’, उ ह ने कहा।
जैसे ही हम पैदल जा रहे थे बहत से लोग क— ककर हम देख रहे थे। वे लोग गु जी को
नम कार कर रहे थे। मने गु जी के वचन को मरण िकया : ‘‘गाँव के सभी लोग एक—दूसरे
से प रिचत होते ह।’’ उनके बीच बातचीत से मुझे पता चला िक गु जी के साि न य म आकर
मेरे अ ययन करने क बात हर िकसी को मालम ू थी। िन संदेह मुझे लग रहा था िक म अपने घर
म सुरि त हँ।
आ म के अंदर वेश करते ही सुर ाकम ने गु जी को नम ते िकया। कुछ अ य कमचारी
भी वहां आकर गु जी को नम कार िकया। आ म कई एकड़ जमीन म फै ला हआ था। सबसे
पहले वे मुझे एक छोटे—से मंिदर के अंदर ले गए। ‘‘यह मंिदर यहां पर अनेक युग से है। हमलोग
बचपन म इसके िक से सुने थे। ऐसा कहा जाता है िक िज ह यहां पर आशीवाद िमल जाता है वह
अपने ान का सार संपण ू िव म करता है। अनेक वष तक यह मंिदर उपेि त रहा लेिकन
एक िदन इसक देवी एक धनी यवसायी के सपने म आयी। देवी ने उसे मंिदर के पुनिनमाण का
आदेश िदया।
इस कहानी म अब िदलच पी बढ़ गई। ‘‘जब वह यवसायी यहां आए तो उ ह ने न िसफ मंिदर
का िनमाण िकया बि क इस थल को अंतरा ीय तर के ान क के प म िवकिसत करने
का िनणय भी िलया। उसके बाद अनेक लोग उनके इस काय म सहयोग देने के िलए आगे आए।
आज यह भारतिव ा अ ययन का िव िस क बन गया है।’’
उसके बाद गु जी मुझे आ म के शासिनक कायालय म ले गए। उस धनी एवं स जन
यवसायी का फोटो िदखाते हए, ‘‘इनका बेटा अभी इस आ म के ट ी ह और यहां पर होने वाले
शोध काय के िलए रािश क यव था सतत करते रहते ह। हालांिक वे बहत ही य त यवसायी

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ह िफर भी यहां पर आयोिजत सभी गितिविधय म सि य प से संल न रहते ह। चलो िमलते ह
उनसे।’’
िकसी कारणवश मुझे धनी लोग के बारे म अ छी धारणा नह थी। उन लोग ने धन कमाने
के च कर म परू ी दुिनया को धोखा िदया है। यवसायी लोग ही घस ू देकर सरकार को धोखा
देना जानते थे।
जैसे ही गु जी ने उनसे मेरा प रचय करवाया वैसे ही उ ह ने मेरी आँख म झांककर देखा
और कहा, ‘‘बहत खबू , आप यहां पर कौिट य के अथशा का अ ययन करने आए हो।’’ उ ह
भी दूसरे लोग क तरह पता चल चुका था िक म यहां पर इस पु तक के अ ययन के िलए आया
हँ।
‘‘आपको मालम ू है िक यह एक सामा य धारणा बन चुक है िक कौिट य का अथशा क
उपयोिगता ाचीन काल म राजाओं और रा य के संचालन के िलए थी। जबिक यह धारणा स य
नह है। इसका उपयोग िकसी भी े म िकसी भी सम या के िनदान हे तु िकसी भी कालखंड म
िकया जा सकता है।’’
उ ह ने यह बात इतनी अिधक ामािणकता और आ म—िव ास के साथ कही िक यह मेरे
अंदर िबजली क तरह क धने लगी।
‘‘अथशा क मदद से म एक सफल यवसायी बन सका।’’
ओहो, म यह या सुन रहा हँ? यवसाय और अथशा ? ये सभी मेरे मन म उमर रहे थे
िक तभी एक युवक वहां पर आया। यह नौजवान आ म का शासन एवं लेखा देखता था। मेरे
गु जी ने उनसे कहा, ‘‘इ ह ले जाकर आ म िदखाओ।’’ उसके बाद गु जी और यासी
यवसायी भारतिव ा से संबंिधत िकसी शोध काय पर गंभीर चचा म य त हो गए।
मुझे आ म के िविभ न िह स म घुमाया गया और वहां कायरत लोग से िमलाया गया।
उ ह ने मुझे शासिनक खंड, रसोई घर, भोजनालय, शोधािथय के िलए छा ावास और स जी
वाले खेत िदखाए।
वहां पर गे आ व म कुछ सं यासी भी थे। ‘‘ये िविभ न आ याि मक संगठन के सं यासी
ह। ये भी यहां पर अ ययन करने तथा अपनी आ याि मक साधना करने आए ह। इस थान को
आ याि मक साधना थल के प म भी जाना जाता है।’’
उसके बाद वे मुझे एक िवशाल भवन म ले गए। ‘‘यह इस आ म का सबसे मुख थान है —
पु तकालय। दुिनयाभर से लोग यहां पर सिदय पहले िलखे गए ंथ को ढूंढने आते ह।’’
िजस ण मने ‘पु तकालय’ श द सुनता हँ उसी ण म पु तक क दुिनया म चला जाता हँ।
जब म। िकसी पु तकालय म होता हँ तो मुझे लगता है िक म अपन घर म हँ। जैसे घर म अपनापन
का आभास होता है वैसे ही मुझे पु तकालय म होता है।
पु तकालय के आकार से म भािवत हआ। उ ह ने बहत ही गव के साथ मुझे बताया, ‘‘यहाँ
पर भारतिव ा क १००००० से अिधक पु तक ह।’’
‘‘एक लाख से अिधक पु तक?’’ यह तो मेरे जैसे पु तक ेमी लड़के के िलए िकसी सपने के
साकार होने जैसा था।

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उ ह ने प िकया, ‘‘जी नह , केवल भारतिव ा पर एक लाख से अिधक पु तक ह। हमारे
पास यहाँ पर बहत अिधक पु तक ह। लेिकन हमलोग इस मामले बहत ही खास नज रया रखते
ह िक हम िकस तरह क पु तक इस पु तकालय म रखनी है।’’ इसके बाद मुझे समझ आयी िक
इस क को भारतिव ा शोध क य माना जाता है। यह अकादिमक अ ययन का बहत िविश
े है।’’
उ ह ने एक कोने म टेबल क ओर संकेत िकया। ‘‘यह टेबल देख रहे हो। यह तु हारे िलए
आरि त है।’’ यह अनुभाग शोधािथय के िलए है। यहाँ पर अलग—अलग को ह। गंभीर
अ येताओं को अलग से टेबल दी जाती है जहाँ पर वे अपनी पु तक रख सक और नोट बना सक।
‘‘इन को म िकसी को आकर शोधािथय को तंग करने क अनुमित नह दी जाती है।
बहत से लोग इसे यान क के प म भी देखते ह।’’ मुझे गौरव का अनुभव हआ िक मुझे यहाँ
पर शोधाथ माना जा रहा था। मेरे कॉलेज के दो त इस समय होते तो मेरी उपलि ध को देखते।
मने एक ू ा, ‘‘इसका संचालन कौन करते ह? इसक इतनी अ छी तरह से रख—
पछ
रखाव और इतना िद य प रवेश कैसे रह पाता है?’’
उ ह ने जवाब िदया, ‘‘इस थान के संचालन म बहत से लोग का योगदान है लेिकन िजस
भ यवसायी से हमलोग अभी िमले ह उनक भिू मका सबसे अहम है। वह बहत ही भ यि ह।
एक आदश यवसायी।’’
मने पलायनवादी नज रए से िकया, ‘‘भ यवसायी या यह संभव हो सकता है?’’
उ ह ने ित िकया, ‘‘ या तुम इनक कहानी जानना चाहोगे?’’
मने कहा, ‘‘िन संदेह।’’
‘‘हमलोग भोजन क म चलते ह। वहाँ पर चाय पीते हए इसक चचा करगे।’’

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18
अलग तरह के लेखाकार


सोई घर म लोग काफ य त थे। वे दोपहर का खाना परोसने क तैयारी कर रहे थे। यहाँ पर
येक िदन लगभग एक सौ लोग भोजन करते ह।
रसोई भारी के साथ मेरा प रचय करवाया गया। ‘‘ये यहाँ पर छ: माह तक रहगे। ये
अथशा के अ येता ह और ये उसी शहर से ह िजसका उ लेख हमने आपसे िकया था।’’
उसके बाद उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘ये रसोई बनाने वाले लोग आ म के आसपास के गाँव के
रहने वाले ह। उ ह यहाँ से रोजगार िमलता है और वे इस आ म के ित समिपत रहते ह। वे सभी
अब एक प रवार के सद य जैसे हो गए ह।’’ इन सभी म आ म का काय करने से एक गौरव का
भाव रहता है।
हम दोन टेबल पर आमने—सामने चाय लेने लगे। मने थोड़ा नकारा मक वर म पछ ू ा,
‘‘अपने इस यासी के बारे कुछ बताइए।’’ मुझे लगता है िक मेरे उस आ म के गाइड ने मेरे भाव
को थोड़ा—बहत परख िलया होगा।
इस पर मने उसका ि कोण जानना चाहा, ‘‘यह ज री नह िक येक धनी आदमी धत ू ही
हो।’’ इस पर उ ह ने कहा, ‘‘म भी पहले तु हारी तरह ही सोचता था। बाद म यहाँ आने वाले बहत
—से लोग से िमलने पर मने महसस ू िकया िक यिद धनी यि े प रयोजनाओं म योगदान
देते ह तो वे वत: े हो जाते ह।’’
मने पछू ा, ‘‘कोई धनी यवसायी िकसी े काम म योगदान य दगे? वे चाहते ह िक उस
थान पर हर जगह उसका नाम िलखा रहे । आप िविभ न मंिदर , िग रजाघर , मसिजद और
अ य धािमक थान एवं संगठन को देिखए उनम दान देने वाल को िवशेष मह व िदया जाता है
और उनके नाम मोटे अ र म िलखे होते ह। इसी वजह से वे दान देते ह।’’
मु कुराते हए उ ह ने इस िवषय पर अपना मत य िकया, ‘‘जी हां, कुछ हद तक इस बात
म दम है लेिकन धनी लोग ारा दान देने का यही एक मा कारण है, ऐसा कहना उिचत नह
है। म िपछले बीस साल से इस आ म म लेखापाल के प म काम कर रहा हँ। म आ म क आय
के ोत से वािकफ हँ, कौन दान देते ह और िकतनी रािश देते ह। आपको यह जानकर आ य

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होगा िक दान देने वाले म से अिधकांश लोग इस बात पर जोर देते ह िक उनके नाम कट नह
िकए जाएं । वे अपना नाम गु रखना चाहते ह।
म यह नह कहता िक दान देने वाल का नाम नह कट िकया जाना चािहए अथवा िजन
प रयोजनाओं को लोग सहयोग देते ह उनम उनका दिशत नह िकए जाएं । यह एक अलग
िवषय है। मह वपण ू यह है िक आपको धन और धनी लोग के ित खुले मन से रहना चािहए।
कौिट य के अथशा को भी धन का शा कहा जाता है। आप यहाँ पर िनवास करने के दौरान
दुिनया म धन के िविभ न कार के चालन का अ ययन करगे।’’
बहत खबू ! यह लेखापाल भी अथशा का उ लेख कर रहा है। म तो हत भ रह गया। म यहाँ
पर िकस तरह के लोग से िमल हँ। पहले तो उस यासी ने इस ंथ का उ लेख िकया और अब
यह लेखापाल भी यही कर रहा है ...... आगे नह मालम ू क कौन—कौन इसका उ लेख करने
वाला है। रसोइया और सुर ाकम , मेरा संतुलन िबगड़ते जा रहा था।’’
मने उनसे पछ ू ा, ‘‘ या आपने कौिट य के अथशा का अ ययन िकया है?’’
‘‘उस तरह से नह पढ़ा है िजस तरह से आप यहाँ पढ़ने आए ह।’’ उ ह ने गौरवपण ू भाव से
कहा, ‘‘आपके गु जो आपको यहाँ लाए ह वे बहत महान यि ह। वे अथशा के िवशेष ह।
इस ंथ से जुड़ी िकसी भी शंका के समाधान के िलए दुिनयाभर के िव ान यहाँ आते ह।’’ जी हां,
म जानता था िक वे इस ंथ के िवशेष ह।
उ ह ने मेरी ओर यं या मक मु कान के साथ देखते हए कहा य िक वे जानते थे िक म उस
यासी को भ पु ष के प म नह मानता था, ‘‘एक िदन हमारे भ यासी ने गु जी से कहा
: सर, दुिनयाभर से इतने अिधक लोग कौिट य के अथशा के िवषय म आपसे ान लेने के
िलए आते ह लेिकन आप वह ान हमलोग को नह देते ह।’’ गु जी ने उनके अनुरोध को मान
िलया। उ ह ने कौिट य के अथशा पर हमलोग के सम एक या यान माला तुत क ।’’
मने जानना चाहा, ‘‘आपका ‘हमलोग ’ से या ता पय है?’’
‘‘आ म म रहने वाले शोधाथ , यासी, शासिनक कमचारी, आिद। शु म इसम केवल
हमलोग शािमल थे लेिकन बाद म आसपास के गाँव के लोग भी आने लगे। बाद म तो यह सं या
१०० तक पहँच गई।’’
अब मुझे इसम अिधक िदलच पी आने लगी, ‘‘ये या यान िकतने ल बे समय तक चले?’’
‘‘अथशा के सम व प पर यह या यानमाला ३० िदन तक चली। कायालय के
िनधा रत समय के बाद यह येक िदन लगभग डे ढ़ घंटे तक होता था। उन िदन आपके गु जी
िव िव ालय म काम करते थे। वे इस या यान के िलए समय कायालय अविध के बाद ही दे
सकते थे। इसिलए हम सभी शाम म या यान स आयोिजत करने पर सहमत हो गए थे।’’
उस काय म के ित वे भावुक हो गए और कहने लगे : ‘‘यह हमलोग के िलए िन य
स संग जैसा हो गया। हमलोग को चाण य के यि व, जीवन, अथशा और इसके छ: सौ
सू क जानकारी ा हई। चाण य क अ य कृितयां अथवा वे रचनाएं िजनका ेय चाण य
को जाता है, वे ह : लघु चाण य, राजनीित शा , चाण य नीित, चाण य सू , और अ य
अथशा जो चाण य से पहले और बाद म िलखे गए थे।’’

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‘‘यह या? अथशा के अित र चाण य कह अ य पु तक भी ह?’’ मुझे इस बात क
जानकारी नह थी।
‘‘चाण य से पहले १४ अथशा िलखे गए थे और इससे भी अिधक सं या म अथशा बाद
म िलखे गए।’’ बहत खबू , या कहना, यह लेखापाल तो खुद एक िश क था। उ ह ने ज द ही
महसस ू िकया िक उ ह अब अिधक नह बोलना चािहए और एक अ छे पयटन गाइड क तरह
आ म का मण कराना चािहए, न िक अपने ान का दशन करना चािहए।
‘‘मगर आप बहत ही भा यशाली ह। लेिकन हम म से िकसी को उस फामट म अथशा के
अ ययन का अवसर नह िमला जो आपको िमलने जा रहा है — छ: माह तक एक गु —एक
िश य णाली म एक िवषय पर यान कि त होकर अ ययन करना।’’ उसके बाद उ ह ने िवन
होने का यास करते हए कहा, ‘‘अ छा अब मुझे आपको वह कमरा िदखाना चािहए िजसम आप
रहगे।’’ वे मुझे पास के गिलयारे क ओर ले गए।
म और भी कुछ जानना चाहता था: ‘‘उस या यानमाला के दौरान िलखी गई िट पिणयाँ
मौजदू ह या?’’
‘‘जी हां, उस समय हमारे यहाँ के भारतिव ा के एक छा गु जी क या यानमाला म
िट पणी िलखा करता था। बाद म सभी िट पिणय को िमलाकर एक छोटी—सी पु तक का प
िदया गया जो िक इस पु तकालय म उपल ध है।’’ उ ह न पीछे क ओर संकेत िकया िजस थान
से मुझे यह ान ा हो सकता था।
‘‘मगर यिद आप स चे अथ म अथशा को जीवन म उतारना चाहते ह तो अपने यासी से
िमलकर चचा क िजए िक आज के समय म इसक या उपयोिगता है।’’ उ ह ने मु कुराते हए
कहा।
‘‘हमारे यासी कौिट य के अथशा का उपयोग करने वाले जीवंत उदाहरण ह — वे बाहर
से भी धनी ह और अंदर से भी।’’

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19
भ यवसायी


मलोग वापस उस कमरे म गए िजसम गु जी और वे यासी बैठे हए थे।
‘‘सर, हमने इ ह यह जगह िदखा दी है, जैसा िक कहा गया था।’’ लेखापाल ने यासी
से कहा। यह िविच है, मगर अब म इ ह एक यासी कहके संबोिधत नह करना चाहता
था। इसके बदले मुझे ‘भ यवसायी’ कहना चाहता था। यिद यह पद स च था तो कभी म वयं
ऐसा होना चाहता था।
या? मने ऐसा सोचा। या अब म भी एक यवसायी बनना चाहता हँ?
यह कैसे हआ? अभी—अभी ेजुएट होने वाले लड़के क तरह है मने अपने भावी जीवन और
कॅ रयर के बारे म कुछ नह सोचा है। हमारी पीढ़ी के अिधकांश लड़क का यही हाल था। हम म
से िकसी को भी प प से यह मालम
ू नह था िक वह जीवन म या चाहता था। हमारे सामने
जो भी अवसर आता उसे हम उसे वीकार कर लेना चाहते थे।
मने वयं से कहा िक यिद कोई यवसायी भ यि हो सकता है और अथशा का
उपयोगी जीवन म कर सकता है तो य नह ? लेिकन म यह बात उस भ यवसायी से ही
िसखना चाहता था।
‘‘म आशा करता हँ िक यह थान तु ह अ छा लगा होगा।’’ उ ह ने मुझसे कहा। लेिकन
इसके साथ ही उनक बात से ऐसा लगा िक एक यासी के प म िकसी आगंतुक को आ म
िदखाकर वह खुश ह।
‘‘मुझे उ मीद है िक जो कमरा आपको यहाँ िनवास करने हे तु आबंिटत िकया गया है वह
आपको सुखद लगा होगा।’’ वे यह सुिनि त करना चाहते थे िक मेरी यहाँ पर अ छी तरह से
देखरे ख क जा रही है तािक म घर जैसा महसस ू कर सकँ ू ।
उ ह ने मुझे आ त करते हए कहा, ‘‘यिद कोई सम या हो तो उसके िनदान हे तु यहाँ पर
बहत—से लोग ह।’’
उसके बाद वे गु जी क ओर मुखाितव हए और िफर से अपनी बातचीत उसी िबंदु से शु क

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जहाँ पर उसे छोड़े थे। ‘‘जी हां सर, आप ठीक कह रहे ह। समाज के वहृ तर क याण हे तु कर
अदायगी मह वपण ू है। हालांिक अथशा म भी सरकार म ाचार क बात कही गई है िफर भी
यह एक धािमक समाज क ओर संकेत करता है।’’ वे दोन एक गंभीर िवषय पर िवमश कर रहे
थे।
उ ह ने चचा को िवराम देते हए कहा, ‘‘अ छा, हमलोग इस पर आगे िव तार से चचा करगे।
मेरे पास और भी कुछ ह।’’
उसके बाद गु जी ने मुझसे कहा, ‘‘तो ठीक है। अब तुम आ म म िव ाम करो। म घर जा रहा
हँ। मुझे अभी थोड़ा लेखन काय करना है। अब हमारी मुलाकात कल घर पर होगी। खुश रहो।’’
इतना कहने के बाद वे चले गए।
अब वह भ यवसायी और म — दो ही लोग थे। उ ह ने अनौपचा रक तौर पर मुझसे पछ ू ा,
‘‘कौिट य के अथशा के अ ययन के िलए आपको िकसने े रत िकया?’’
‘‘मेरे दादाजी ने।’’ मुझे परू ी कहानी िफर से कहनी पड़ी। मुझे यह महससू होने लगा िक या तो
म कोई अनठ ू ा आदमी हँ िजसने िव कुल नई िक म का अ ययन करने जा रहा है अथवा एक
ऐसा आदमी हँ जो नह जानता है िक वह ऐसा य करने जा रहा है।
उ ह ने बहत ही बेतक लुफ होकर कहा, ‘‘इस पु तक से मुझे एक यवसायी बनने म मदद
िमली।’’
म उनसे िव कुल यही बात पछ ू ना चाह रहा था िक यह कैसे संभव हआ? मने उ ह आगे कुछ
कहने के िलए उकसाया।
‘‘अिधकांश समय जब आप शा अथवा ंथ का अ ययन करते ह तो उनका वा तिवक
जीवन म उपयोग के संबंध म आपक धारणा प नह होती है। इन श द म िनिहत ान
किठन प रि थितय एवं जीवन भी चुनौितय म अपनी साथकता दिशत करते ह। अथशा ने
मेरे जीवन म वही भिू मका िनभायी।’’
उनके श द से मुझ जीवन म भावी चुनौितय का सामना करने के िलए मागदशन िमलता।
‘‘म सौभा यशाली था िक मेरा ज म एक संप न प रवार म हआ — एक यवसायी प रवार
म। यह प रवार न िसफ आिथक ि से संप न था बि क यह जीवन मू य क ि से भी एक
संप न प रवार था।’’
अपने िपता को याद करते हए उ ह ने कहा, ‘‘मेरे िपता ने अपना बहत—सा पैसा
आ याि मक काय पर यय िकया। उनक अनके प रयोजनाओं म से एक है उनका यह आ म
िजसम वे चाहते थे िक ाचीन भारतीय ंथ का पुन ार हो।’’
मुझे इस संबंध म और भी बात बताइए। म िदलच पी ले रहा था तािक वे अपनी कहानी को
जारी रख।
‘‘जब उ ह ने इस थान को बनाया तब वे इस पर पैसे खच करने के साथ—साथ परू े देश का
मण करके िविभ न कार क पांडुिलिपय का भी सं ह िकया। इसका भी उतना ही मह व था।
यहाँ पर बहत से दुलभ ंथ ह िजनके बारे म दुिनया को बहत अिधक पता नह है। हम आप जैसे
िव ान को यहाँ पर आमंि त करते ह तािक वे इन ंथ पर पुन: शोध करके उ ह हमारी पीढ़ी

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के िलए उपल ध करवाएं ।
ाचीन ंथ म जैसी िच आपको है वैसे ही िच मुझे भी थी मगर वा तिवक या ा तो
अ ययन के बाद ारं भ होती है। जहाँ कह भी मने यवसाय िकया वहाँ मुझे चुनौितय का सामना
करना पड़ा। उस समय मने अथशा का सहारा िलया और अपनी सम याओं का समाधान
अथशा म पाया।’’
मने उनक बात को और भी प ू ा, ‘‘कोई उदाहरण?’’
प से जानने के िलए पछ
‘‘उदाहरण के प म, अथशा म धन क पहचान, धन का सज ृ न, धन का बंधन और धन
के िवतरण जैसे बहत—से िवषय पर चचा क गई है। इसिलए म धन के सुजन से पहले म यह
जानना चाहता था िक धन आएगा कहाँ से। साथ ही म केवल धन का सज ृ न अथवा बंधन नह
करना चाहता था बि क म चाहता था िक िजस समाज से मुझे धन ा हआ है उस समाज को
मुझे धन वापस करना चािहए।’’ सचमुच म इन बात से भािवत हो गया।
‘‘अथशा आपको इन सम याओं के िनदान म भी मदद करता है: जैसे आप अपने यहाँ
बंधक क िनयुि कैसे करगे, िविभ न पाटनर के बीच तालमेल कैसे बैठाएं गे और बाजार क
ित प ा से कैसे िनबटगे।’’
वो जब यह बात बोल रहे थे उस समय मेरे मि त क म अपने जीवन का खाका तैयार हो रहा
था।
‘‘सर, मेरे जीवन म अभी सचमुच कोई िदशा नह है िक मुझे या करना चािहए और िकस
िदशा म जाना चािहए। मगर अब एक िवचार मेरे मन म आ रहा है......’’ म थोड़ा संकोच करते हए
कहा, “म भी एक यवसायी बनना चाहता हँ।’’ म यह जानना चाहता था िक उ ह मेरे िवचार
पसंद ह अथवा नह ।
‘‘बहत खबू ! एक भ यवसायी होने से बेहतर कुछ भी नह है जो समाज के िवकास म
सकारा मक योगदान देते ह।
ू ा, ‘‘म ऐसा कैसे हो सकता हँ।’’
मने उ सुकतापवू क पछ
‘‘इसक िचंता न कर। पहले अथशा का अ ययन कर। आपके समाने आपका जीवन पथ
वयं श त हो जाएगा।’’ उ ह ने मु कुराते हए कहा।
पहली बार मुझे अपने जीवन म उस का समाधान िमला िक लोग बहत िदन से पछ ू रहे
थे, ‘‘तुम जीवन म या करना चाहते हो?’’
अब मुझे उन लोग को गव से जवाब देना चािहए, ‘‘एक अलग तरह का यवसायी।’’
आगे का माग िदखाने के िलए मेरे पास अथशा था।

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20
अ ययन प ित

म सअगले

िदन सवेरे जग गया लेिकन मुझे आ म क िदनचया के बारे म कुछ भी पता नह था।
ू दय से पहले भी परू ी गितिविध हो रही थी। मंिदर म घंटानाद हो रहा था। कुछ लोग वेद
मं का उ चारण कर रहे थे। दूसरी ओर पाकशाला म ना ता तैयार िकया जा रहा था।
म तैयार हो गया और मंिदर चला गया। जब म वहाँ पहँचा तो पुजारी आरती कर रहे थे। साद
लेने के बाद म आ म प रसर म अनुभव करने के िलए एक च कर लगाया जहाँ मुझे अगले छ:
माह तक रहना था।
यह मेरे िलए परू ी तरह से एक तरोताजा और नया अनुभव था। िचिड़या चहकने लगी थी। गाँव
के लोग अपने रोजमरा के काम पर िनकलने लगे थे। वहाँ पर मेरी माँ क तरह कोई भी मुझे
जगाने वाले नह थे जो मुझसे कहे िक उठो, ना ता तैयार है।
कुछ समय के बाद, पाकशाला म घंटी बजने लगी। यह संकेत था िक ना ता तैयार है। म
भोजनालय तक गया और वहाँ अ य लोग के साथ शािमल हो गया।
िजस िकसी के साथ मेरा प रचय होता उसे म अपना दो त बना लेता था य िक म जानता था
िक अगले छ: माह म मुझे उनके सहयोग एवं समथन क आव यकता होगी। कुल िमलाकर यही
लोग तो मेरे नए प रवार के सद य थे।
म अपने कमरे म गया और अथशा क पु तक एवं नोटबुक ले आया। उसके बाद म
पु तकालय म गया और जो कोना मुझे आबंिटत िकया गया था उसम अपनी पु तक रखकर
पढ़ने के िलए बैठ गया। पु तकालया य ने गमजोशी के साथ मु कुराते हए मुझसे कहा,
‘‘पु तकालय म जरा घम ू कर देख लीिजए। यहाँ पर आपको अथशा क अ य पु तक िमलगी।’’
मने उनक सलाह का पालन िकया और साफ—सुथरे ढं ग से रखी चयिनत पु तक का
मुआयना िकया। उसके बाद अथशा शीषक खंड क ओर गया।
इस खंड म दो सौ से अिधक पु तक थ । ये िविभ न िव ान ारा िलखी पु तक थ । इनम से
कुछ अनुवाद थे, कुछ िट पिणय के सं ह, कुछ या यानमालाओं को पु तकाकार प िदए गए
थे और कुछ संगोि य क कायवािहय के संकलन थे। कुछ पु तक पतली केवल ३० प ृ क

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थ और कुछ वहृ द आकार के भा य थे।
अपने िवषय पर िविभ न कार क इतनी अिधक पु तक देखकर म स न हआ। मने उस
अथशा क एक ित भी देखी िजसे मेरे दादा जी ने मुझे दी थी।
उसके बाद मने एक पु तक देखी इं ोड शन टु अथशा यानी अथशा क भिू मका। यह
वही पु तक थी िजसका उ लेख मेरे से आ म के लेखापाल ने क थी। गु जी ने आ म
िनवािसय के िलए अथशा पर जो या यानमाला दी थी, यह उसका संकलन था।
िविभ न कार के इन पु तक से गुजरते हए मुझे अपने घर जैसा सुकून िमला। म अ य खंड
क ओर भी गया और िविभ न िवषय पर िविभ न कार क पा डुिलिपय को देखा। इनम से
कुछ ताड़—प पर िलखे हए थे तो कुछ व पर िलखे हए थे।
‘‘आप कोई भी िकताब ले सकते ह और उसे अपने टेबल पर अ ययन के िलए रख सकते ह।’’
ऐसा पु तकालया य ने कहा जो मेरे आसपास मंडरा रहे थे तािक वे मेरी हर संभव मदद
सुिनि त कर सक।
म यह नह जानता था िक कहां से शु क ं लेिकन इस िद य थल पर उपल ध ान के
भंडार को देखकर म अ यिधक स न हो गया। मने मन ही मन सोचा िक चाहत होते हए भी म
इन सभी पु तक को एक जीवन—काल म पढ़ नह सकं ू गा।
म अपने अ ययन टेबल पर वापस आया, अपनी आँख बंद क और ई र से आगे का माग
िदखाने के िलए ाथना क ।
उसके बाद मने अथशा क अपनी ित िनकाली और पढ़ना शु िकया।
जैसे ही मने पहला प ृ पलटा उसका पहला ोक एक ाथना जैसा था:
ऊँ नम: शु बहृ पित याम्
म इस ोक के अथ समझने का यास करने लगा। शु और बहृ पित कौन थे। मने कुछ
संदभ ंथ का सहारा िलया और पाया िक शु असुर के गु थे जबिक वहृ पित देव के गु थे।
आचाय चाण य को एक ही साथ इन दो गु ओं क ाथना य क होगी? मुझे आ य होने
लगा। मने इस बात को नोट कर िलया तािक इस पर गु जी से मागदशन ा िकया जाएगा।
मने कुछ घंटे पु तकालय म िबताए और अथशा पर अनेक यि गत नोट तैयार िकए।
दोपहर के भोजन के समय म मने थोड़ा िव ाम िकया और उसके बाद म िफर से पढ़ाई शु क ।
िदन के अंत म म गु जी के घर गया और वहाँ पर उनके साथ चचा क ।
वे मेरी ती ा कर रहे थे। ‘‘तो िदनभर म तुमने या िकया?’’
‘‘मने पु तकालय म उपल ध अ य अथशा के बारे म जानकारी जुटाने का काम िकया।’’
मने िबना िकसी अहंकार के यह बात कह दी।
‘‘तु हारा िन कष या था?’’
मने जवाब िदया, ‘‘इस िवषय पर काफ पु तक उपल ध ह। म चाहंगा िक इस पर यथासंभव
अिधक से अिधक पु तक का अ ययन क ं । इसके बाद म इनके बीच तुलना क ं गा। म चाहंगा
िक इनम जो बात मुझे समझ म नह आएं गी उनके संबंध म मुझे आपका मागदशन ा हो।’’

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‘‘यह अ ययन क अ छी प ित है। तुम िकताब पढ़ो और जो बात तु ह समझ म नह आए उन
पर हम चचा करगे और िमलजुलकर प करगे।
हमारी परं परा म एक आदश छा वही होता है जो तैयारी करके आता है।’’ मुझे ऐसा लगा िक
वे प प से मेरे से स न ह।
‘‘अिधकांश छा िश क के पास आकर अपनी पु तक पलटते ह और चाहते ह िक गु उन
प ृ म मौजदू ान क घँटू ी उसके गले म डाल द।’’
‘‘इस कार अथशा के अ ययन क प ित होगी िक तुम िविभ न पु तक से ोक पढ़ो,
उनके बीच तुलना मक अ ययन करो और िफर मेरे पास आओ। म तु हारी शंकाओं का समाधान
कर दँूगा।’’
‘‘अथशा के एक अ याय का एक िदन म अ ययन करके तुम सुिवधाजनक ढं ग से छ: माह
म पु तक परू ा कर लोगे।’’
इस औसत तर का ल य का िनघारण यवहा रक था।
उ ह ने पछू ा, ‘‘आज तुम मेरे सामने कौन—सा लेकर आए हो?’’
मने जो पु तकालय म नोट िलया था उसको पढ़ना शु िकया, ‘‘सर, चाण य एक ही साथ
शु ाचाय और बहृ पित दोन क ाथना य कर रहे ह। या इसम िवरोधाभास नह है?’’
उ ह ने कहना ारं भ िकया, ‘‘म प करता हँ.....’’

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21
िविभ न मत – आपका मत

सी भी िवषय को िव तार से जानने के िलए तुमको इसक प ृ भिू म से प रिचत होना


िक पडे ़गा। यह अि त व म य आया?
‘‘अथशा के अनेक अथ ह। इसे आम तौर पर राजनीित का िव ान कहा जाता है लेिकन
राजनीित िव ान एक सवसमावेशी िव ान है। इसम अथशा , समाजशा , कानन ू और कला
सभी समािहत ह।’’ गु जी ने प िकया। ‘‘िकसी िवषय को जानने का सव म तरीका है िक
पहले उस े िवभ न िश क अथवा िवशेष ारा िकए गए काय से प रिचत हआ जाए। इससे
तुमको न केवल उस िवषय क ऐितहािसक प ृ भिू म का प रचय िमलेगा बि क िविभ न
ि कोण से प रिचत होने का अवसर िमलेगा। दोन शु ाचाय और बहृ पित राजनीित िव ान
यानी अथशा के िश क थे।’’ इस बात क जानकारी मुझे नह थी।
‘‘इसिलए अपनी पु तक अथशा यानी कौिट य का अथशा िलखने से पवू चाण य ने
अपने सभी पवू वत आचाय को नमन िकया है।’’
मने िकया, ‘‘ या शु ाचाय और बहृ पित के अथशा हमारे पास उपल ध ह?’’
‘‘वे समय के साथ न हो गए। मगर आपक मालम ू नह िक उप ध सभी पांडुिलिपय का
सही तरह से शोध करने पर भारत के िकसी कोने म तु हे इनके अथशास भी िमल सकते ह।
िजस तरह से कौिट य का अथशा ा हआ था।’’
‘‘कौिट य का अथशा िमला? कब? कहाँ?’’ मेरे मन म तो यह धारणा थी िक इस ान
िनिध का लेखन यवि थत तरीके से क गई होगी और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी बहत ही य न से
सहे ज कर रखा गया होगा। मुझे नह मालम ू िक यह खो गया और इसक पुनख ज क गई।
‘‘बहत साल पहले यामशा ी नामक सं कृत िव ान ने मैसरू िव िव ालय उपल ध
िविभ न पुरानी सं कृत पांडुिलिपय िफर से यवि थित िकया। इस ि या, म उ ह अचानक
कौिट य का अथशा िमला।’’ इस कहानी का वणन करते हए गु जी आँख से खुशी छलकते
हए देखा।
‘‘संयोग से उनके हाथ अलादीन का िचराग लग गया।’’ हमारे िलए उ ह ने कैसा अ ुत

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खजाना खोज िलया।
‘‘वे इस खोज से इतने स न हए िक उ ह ने इसका अं ेजी म खुद अनुवाद िकया िजससे
यह ंथ अं ेजी भाषी देश म लोकि य हआ।’’ इस कार इस ंथ का िविभ न िवदेशी भाषाओं म
अनुवाद हआ।
गु जी अ यिधक उ ेिजत होकर बोले, ‘‘मगर या तुम जानते हो? उ ह ने शेष सभी
पांडुिलिपय को यवि थत कर उ ह वग कृत िकया और आने वाली पीिढ़य के िलए सुरि त
िकया। वे एक महान पांडुिलिप सं हकता थे। तुम उस पु तकालय म जाकर दूसरे िवषय के भी
िविभ न पांडुिलिपय को देख सकते हो।’’ मने मन ही मन िन य िकया िक कभी उस
िव िव ालय म जाउं गा।
चाण य ारा शु ाचाय और बहृ पित दोन क तुित िकए जाने क बात पर लौटते हए गु
जी ने प िकया िक इसका गहन भाव है।
‘‘अथशा को राजनीित शा के प म भी जाना जाता है। बहृ पित और शु दोन गु थे।
इितहास के िविभ न मोड़ पर इन दो गु ओं ने अपने—अपने िश य को जो परामश िदए थे वे
पर पर िवरोधी थे। िविभ न मु पर उनके अलग—अलग िवचार थे। एक िवषय पर अलग—
अलग िवचार।
‘‘चाण य अपनी पु तक अथशा िलखने से पवू इन सभी अथशा का अ ययन िकया था।
इसिलए उ ह ने इन गु ओं ने जो िवचार य िकए थे उनका खंडन—मंडन िकए िबना उन
सभी को नमन िकया और उनके िवचार को खुले मन से थान िदया। वा तव म, चाण य ने
िविभ न प रि थितय म वयं अलग—अलग िवचार य िकए और ये िवचार पहले के िश क
से िभ न थे।’’
मुझे यह िवचार अ छा लगा िक िकसी िवषय पर आपके अपने ि कोण होने चािहए। दूसरे के
िवचार का अंधानुकरण नह करना चािहए।
‘‘तो इससे तु ह या िश ा िमलती है?’’
‘‘म सोचता हँ िक पवू वत िश क के मत से िश ा ा करना सव म तरीका है, यिद आप
उनसे सहमत नह ह तब भी — और िफर आप अपने ि कोण से आगे बढ़।’’ मने मंत य रखा।
‘‘बहत खबू !’’ गु जी मेरे जवाब से खुश थे। उ ह ने कहा, ‘‘साथ ही पवू वत गु ओं के
मह व को इस आधार पर कभी भी कम करके न आँक िक उनके िवचार अब ासंिगक नह ह।
सभी गु ओं को समान प से मह व द। यही इसका वा तिवक संदेश है।’’ वे चाहते थे िक म इस
संदेश को िवशेष प से नोट क ं ।
उ ह ने िकया, ‘‘तुमने जो ान तुरंत अिजत िकया है उसे अपने िनजी जीवन कैसे
उपयोग म लाओगे?’’
म नह सोचता था िक मुझे ऐसे का सामना करना पड़े गा। मने महसस ू िकया िक मेरे
गु क अिधक िदलच पी अथशा के िनजी जीवन म यवहा रक प से उपयोग करने म है।
ू ा, ‘‘िकस े म यवहा रक उपयोग?’’
अपनी अपनी सोच को िदशा देने के उ े य ये पछ
‘‘िकसी भी े म। अथशा के ान का उपयोग िकसी भी प रि थित अथवा पेशा म िकया

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जा सकता है।’’
‘‘ या यवसाय म भी?’’ म एक कार का अनुमान लगाने का जोिखम उठाने जा रहा था।
‘‘िव कुल! जैसा िक मने कहा था, इसका योग िकसी भी े म िकया जा सकता है।’’
उ ह ने दुहराया।
मने वयं को एक यवसायी के प म देखना ारं भ िकया और एक जैसी प रि थित पर मन
ही मन िवचार िकया िजसम इस तुित का उपयोग िकया जा सकेगा।
अपने िवचार को समेटते हए मने इस कहानी क रचना क कोिशश करने लगा: ‘‘मान
िलिजए िक म अपने ऑिफस म बैठा हआ हँ और मेरे दो कमचा रय के बीच म लड़ाई हो गई है।
मने उन दोन को अपने कमरे म बुलाता हँ और दोन क बात सुनता हँ। मने दोन के प पर
ग़ौर क ं गा।’’
गु जी यान से सुन रहे थे। ‘‘उसके बाद?’’
‘‘उसके बाद प रि थित के मू यांकन हे तु म अपनी िनणय मता का उपयोग क ं गा। यहाँ
तक िक म उन दोन के प अलग—अलग सुनने के बाद भी म उनके प से भािवत नह
होऊंगा। मेरे अपने ि कोण ह गे, अपना तक होगा।’’ मने इस कार तुत िकया।
उ ह ने स नतापवू क कहा, ‘‘बहत खबू , बहत अ छा!’’
इसके बाद एक अलग प रि थित तुत करते हए उ ह ने मेरी परी ा ली: ‘‘यिद तुम उसके
बॉस हो और तु ह िनणय करना पड़े िक तुम म से सही कौन है तो तुम या करोगे?’’
‘‘म भावुकता म नह बहंगा और ऐसा िनणय लंग ू ा जो मेरे संगठन के वहृ तर िहत म हो। म
एक अ छा िनणयकता होने का यास क ं गा और सही िनणय दंूगा।’’ मने वयं गहराई से एवं
प प से िवचार करते हए पाया।
‘‘अब तुम एक नेत ृ वकता के प म सोचने लगे हो। याद रखो िक नेत ृ वकता का एक गुण
होता है िक प रि थितय का अ छी तरह से मू यांकन करे और सही िनणय ल।’’ गु जी ने
परामश िदया।
‘‘कल हमलोग सही िदशा म िचंतन करने पर िवचार करगे।’’
‘‘िचंतन के िवषय म िचंतन?’’ म संशय त हो गया।
‘‘जी हाँ’’, चाण य क तरह — इसे आ वीि क कहा जाता है। जी हाँ, मने यह श द पहले
सुना है।
‘‘अथशा के पहले कंध को िवनयािधका रकम् कहा जाता है। इसम िजस िवषय पर िवमश
िकया गया है उसे िव ास मुदेश: कहा गया है। इसम चाण य ने आ वीि क क थापना ारं भ
क है। हमलोग कल इस पर िव तार से चचा करगे।’’
उस रात सोने से पवू मेरे अंदर प रवतन ारं भ हो चुका था।
मने वा तव म प रवतन के िलए िवचार करना ारं भ कर िदया था।

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22
िचंतन – मानव समाज को एक उपहार


ब म सुबह सोकर उठा तो बहत ही तरोताजा था। वह िदन कुछ अलग िदख रहा था। या
ऐसा बाहर के खबू सरू त नजारे के कारण था? या नए प रवेश म अनुकूल होने क िच ता
अब दूर हो चुक थी और अब आ म म अनुकूल हो चुका था?
जैसा िक गु जी ने परामश िदया था उस अनु प मने िदनभर मे अथशा का पहला अ याय
आ वीि क थापना का अ ययन िकया। इसम इस अ याय और आ वीि क श द के बारे म
थोड़ा वणन था। यह रह यमय होने के साथ—साथ बांधकर रखने वाला अ याय भी था। िफर भी
म इसको परू ी तरह से समझ नह पाया।
इस संबंध म अ य िव ान ारा दूसरी पु तक म विणत भा य को मने देखा। इसके बहत से
अनुवाद थे। आ वीि क का अथ दशनशा , िव ा, आ याि मक ान, तकयु िचंतन
आिद िदए हए थे।
मगर उस िदन म सोच म रहा िक इस पर गु जी या कहगे। अथशा का ान इस सू से
ारं भ होता है:

आ वीि क , यी, वाता, दंडनीित चेित िव ा (1.2.1)

‘‘एक राजा को चार कार के ान क आव यकता होती है — आ वीि क यानी


दशनशा , यी यानी वेद, वाता यानी अथशा , दंडनीित या राजनीितशा ।’’ गु जी ने
इसका अनुवाद िकया। ‘‘एक बार इन चार का ान ा कर लेने पर नेत ृ वकता बहत ही स म
और सजृ नशील हो जाता है। इनम से येक का िव तारपवू क वणन अथशा म िकया गया है।
मगर इनम सबसे मह वपण ू आ वीि क है।’’ गु जी ने इस बात पर जोर िदया।
‘‘गु जी, यह इतना मह वपण ू यो है?’’ मने इसको अपनी —सच ू ी म शािमल कर िलया

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था।
‘‘चाण य ने वयं इस अ यान म इस अवधारणा का िव े षण िकया है:

आ वीि क को सभी िव ान के िलए योित माना गया है, सभी कम


का साधन और सभी कानून एवं कत य का आधार कहा गया है।
(1.2.12)

‘‘यह एक मागदिशका शि है।’’ गु जी ने जोर देकर कहा। ‘‘िचंतन सभी कम क न व है।


इसके आधार पर मानव समाज का िवकास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी म होता है।’’
आ वीि क श द का सव म अनुवाद ‘िचंतन का िव ान’ है। िचंतन मानव समाज कृित
द उपहार है। मानव को एक अ यंत उपयोगी संपदा िमली है ‘बुि ’। इसी के कारण हम ई र
क सभी रचनाओं के बीच सव े माना जाता है।’’ जी हाँ, िचंतन ही हमारे अि त व का आधार
है।
‘‘लेिकन सबसे अचरज क बात है िक मानव सोचना ही नह चाहता है।’’ गु जी ऐसा कहते
हए दुखी हो गए।
मने जानना चाहा, ‘‘हम य नह िचंतन पसंद करते ह?’’
‘‘िचंतन म काफ अिधक ऊजा का यय होता है। वै ािनक शोध से भी यह िस हो चुका है
िक तकपण ू ढं ग से िचंतन करना आसान नह है। इस काय म बहत अिधक ऊजा लगती है। इससे
लोग थक जाते ह। आदमी सुगमता चाहता है।
इतनी ऊजा का अप यय य ? सबसे अ छा है िक िचंतन ही न िकया जाए? लेिकन आ य
क बात है िक मानव समाज ने िचंतन के बल पर ही गित क है — िचंतक नेत ृ वकता के बल
पर। वे किठन खड़े करते ह और उनके किठन समाधान भी चाहते ह। वे यथा ि थित को
तोड़ते ह।’’
मने पछू ा, ‘‘अतएव या हम यह सुिनि त करने क ज रत है िक िचंतन गित और िवकास
के िलए िकया जाए? और या कुल िमलाकर यही आ वीि क है?’’
‘‘न केवल िचंतन, बि क सही िदशा म िचंतन, दाशिनक िचंतन िवशेष प से।’’ उ ह ने
प िकया।
‘आ वीि क एक वैकि पक िचंतन है। यह एक पाि क िचंतन है यानी बंद ड बे िनकलकर
िचंतन करना। लेिकन अगर कह कावट है तो यह इस पर भी खड़ा करता है।’’ इसके
बहत से प ह।
‘‘केवल िचंतन मह वपण ू नह है। इसे धम पर आधा रत होना चािहए।’’ अब म थोड़ा—थोड़ा
समझने लगा था िक आ वीि क को दशनशा य कहा जाता है।
‘‘यहाँ तक िक दशनशा एवं आ या म के आधार के िबना भी आप सोच सकते ह तथा नई

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चीज क रचना कर सकते ह। लेिकन ऐसा करके आप अ य लोग और पयावरण को अिधक
नुकसान पहँचा सकते ह।’’ गु जी ने गंभीरतापवू क कहा।
‘‘ या यही कारण है िक चाण य ने अपने पहले अ याय म ही आ वीि क का वणन िकया
है?’’ मने िकया।
‘‘यह दाशिनक सोच ही वह आधार है िजस पर चाण य नेत ृ वकता का िनमाण करते ह। कुल
िमलाकर, वे एक राजिष यानी दाशिनक राजा अथवा संत समान राजा तैयार करना चाहते थे।’’
‘‘गु जी, आ वीि क एक अनठ ू ा श द है। या इस श द का आिव कार चाण य ने िकया
था? कुछ समय से मेरे अंदर यह िज ासा उ प न हो रही है।
‘‘नह , नह । यह कोई नया श द नह है। तु ह आ वीि क श द भारत के बहत से ाचीन
ंथ म िमलेगा — महाभारत, ीम ागवत और अ य सं कृत ंथ म। सं कृत िव ान के बीच
यह काफ लोकि य श द है। आ वीि क का अि त व चाण य से भी पहले से है।’’ अरे राम,
इतना िस श द लेिकन म िजतने लोग को जानता हँ उनम से कोई श द से प रिचत नह है।
इस प रचचा म अचानक मोड़ आ गया। गु जी ने कहा, ‘‘ या तु ह मालम ू है िक महाभारत
म ौपदी का एक नाम आ वीि क है?’’
सच म? ‘‘म नह जानता था।’’ मने वीकार कर िलया। इसके बाद मुझे आगे अ ययन करने
के िलए कुछ संदभ ंथ के नाम सुझाए गए।
‘‘साम रक िचंतन के इितहास पर भारत म िवपुल मा ा म सािह य उपल ध है। हमारे पवू ज
कोई साधारण लोग नह थे। वे अ यंत मेधावान मानव थे। वे ऋिष पु — महान िचंतक एवं
आ याि मक पु ष क संतान थे।’’
उनका िव े षण आगे भी जारी रहा:
“आ वीि क को िव ा आ मबोध का परम ान भी कहा जाता है।’’ वे कुछ देर कने के
बाद िफर कहने लगे, ‘‘इस कार तु ह पता चलेगा िक हमलोग आ याि मक और भौितक —
दोन ही ि य से संप न थे। आ वीि क तु ह एक ही साथ आ याि मक एं व भौितक दोन
सफलताओं का ान देती है।’’
मने आगे नह िकया। मुझे अचरज भी हो रहा था और म हत भ भी था। एक ही श द के
मा यम से गु जी ने अथशा म िनिहत ान के सागर को उड़े लकर रख िदया। म आ य कर
रहा था िक शेष िकताब म चाण य ने और भी िकतनी बात कही होगी।
गु जी ने मेरे अंदर का भाव पढ़ िलया। ‘‘आज के िलए इतना पया है। हमने चाण य क
सोच को समझने के िलए तु हारी या ा ारं भ कर दी है। लेिकन अभी बहत ल बी या ा तय
करनी है।’’ उ ह ने सहानुभिू तपवू क कहा।
मने सोचना बंद कर िदया अथवा या िचंतन ारं भ ही िकया था?

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23
िचंतन के साथ कम भी

म आअपनीवीिहीकदुिनया
के िचंतन म इतना डूब गया था िक सच कहँ तो थोड़ा बेसुध हो गया था। मने
म खुद को इतना खोया हआ कभी भी महसस ू नह िकया था। व का
पिहया चलता रहा। म अपने िचंतन म एकांत का आनंद लेने लगा।
कहावत है िक यि को अकेलापन महसस ू नह करना चािहए िकंतु एकांत का आनंद लेना
चािहए। म एकांत था िकंतु वयं से जुड़ा हआ महससू कर रहा था। म िचंतन के बारे म िचंतन कर
रहा था।
अगले िदन अथशा के अ ययन के दौरान एक आकषक ोक से मेरा सामना हआ :

िकसी धनध ु ारी के धनष


ु से िनकले हए बाण िकसी यि क म ृ यु हो
अथवा नह हो या िफर वह िकसी को भी ित नह पहंचा सके िकंतु एक
बिु मान यि क बिु से गभ म पल रहे िशशु क भी म ृ यु हो सकती
है। (10.6.51)

ती ण बुि ! मने महससू िकया िक चाण य यही चाहते थे। नेत ृ वकता अपनी बुि का
उपयोग यथासंभव सव म तरीके से करे । म इतना अिधक े रत हआ िक म एक साथ कई घंटे
तक अथशा पढ़ते रहा। म शु से अंत तक अनेक अ याय को पलटा। म। पहली बार इस त य
से प रिचत हआ िक इस पु तक म िचंतन के िविभ न पहलुओ ं का उ लेख िकया गया है।
जब म गु जी के पास शाम क क ा म गया तो मने उनसे पछ ू ा, ‘‘ या यह अथशा और
खासकर आ वीि क नह ह जो आपको िसखाते ह िक अपनी बुि का पण ू उपयोग िकस कार
िकया जाए?’’
‘‘और यह भी िक अपनी बुि का उपयोग कहाँ नह िकया जाए।’’ गु जी ने प प से

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कहा।
‘‘कहाँ बुि का उपयोग नह करना चािहए?’’ मुझे अचरज हआ और म थोड़ा परे शान भी हआ।
मने सोचा था िक म बुि को ती करने के उपाय के िलए सही िन कष तक पहँचा था।
‘‘बुि मान लोग के साथ एक सम या यह होती है िक सोचना बंद नह करते। वे इतना
अिधक सोचते ह िक वे कम ही नह करते।’’, उ ह ने कहा।
‘‘केवल िव े षण ही करते रहने से यि को लकवा मार देता है।’’ उ ह ने मु कुराते हए
कहा। ‘‘तुम ठीक कह रहे हो। अथशा तकपण ू िचंतन के िलए े रत करने वाला ंथ है लेिकन
इसके साथ यह भी सच है िक अ यंत बुि मान यि इस त य से भी प रिचत होते ह िक बुि
और मानवीय समझ से परे भी कोई चीज होती है। तुम अथशा के छठे खंड को देखो िजसम
एक राजा अथवा नेत ृ वकता के गुण का उ लेख िकया गया है।’’ उ ह ने एक ित क ओर
संकेत िदया।
मने तुरंत ही इस ित को अपने हाथ म िलया और संबंिधत प ृ को पलटा :

‘‘राजा क उ कृ ता के आधार ह ..... बिु एवं साहस।

उ ह ने इस ोक का भाव िव तार से प िकया और मुझे एक आदश नेत ृ वकता क


क पना करने के िलए े रत िकया।
‘‘एक उ कृ नेत ृ वकता वह होता है जो बुि मान एवं गितशील (साहस क ि से)। िबना
गितशीलता और जोश के नेत ृ वकता दूसर को ऊजावान नह बना सकता है। और िबना ऊजा
के कोई यि काम नह कर सकता है। नेत ृ वकता वह होता है जो दूसर को े रत करे ।’’
उ ह ने यह बात इतना बलपवू क कहा िजसे म कभी भल ू ही नह सकता।
‘‘हाँ, िचंतन करना अ छी बात है लेिकन जब कम करने समय हो तब िव ास के साथ कदम
उठाना चािहए।’’ मने पछू ा, ‘‘गु जी, हम कैसे जान पाएं गे िक हम िकतना िचंतन करना चािहए
और कब सोचना बंद कर देना चािहए?’’
‘‘बहत अ छा । आव यकता है िचंतन और कम करने क तथा कम और िचंतन करने
क । िचंतन एवं कम एक साथ होने चािहए, दोन के बीच तालमेल हो।’’
एक महान यि ने कहा है, ‘‘अपने काय क योजना बनाएं और अपनी योजना पर अमल
कर।’’
‘‘हर ि से िवचार कर लेने के बाद ही यि को कम क ओर अ सर होना चािहए। िबना
कम के सभी योजनाएं यथ ह।’’ उ ह ने ऐसी सलाह दी।
‘‘सोचना छोड़कर िव ासपवू क कम करने के िलए यि मजबत ू आ याि मक आधार
चािहए। आ याि मक यि जानता है िक कब िचंतन करना चािहए और कब कम। दोन के बीच
संतुलन क आव यकता होती है।’’

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मने आ य कट करते हए पछ ू ा, ‘‘यिद मुझे आ याि मक आधार नह है और मने अ या म के
माग पर अभी कदम ही रखा है तो ऐसी ि थित म या होगा?’’
‘‘सरल है। ऐसी ि थित म एक आ याि मक गु क सलाह ल। ऐसे यि तु ह बताएं गे िक
कब कम करना चािहए। तु ह आज भी ऐसे मागदशन करने वाले िमल जाएं गे।’’
मुझे अपने िपता जी के साथ एक यवसायी क चचा क याद आने लगी जो मेरे घर आए थे।
मने उनके बीच वातालाप सुनी थी:
‘‘इस यवसाय म आप कैसे आए?’’ िपता जी ने पछ ू ा।
‘‘यह बहत सरल है। मेरे गु ने मुझे यवसाय शु करने के िलए कहा और मने शु कर
िदया। मने उसके बाद अिधक सोच—िवचार नह िकया। और देिखए िक म िकतना धनी हो गया।
यह गु —कृपा ही है।’’ उस सफल यवसायी ने मु कुराते हए कहा।
चँिू क मेरा मन बार—बार अथशा क ओर लौट जाता था, इसिलए मने सोचा िक यिद
भिव य म मेरे सामने ऐसी जिटल प रि थित उ प न हई तो या म उस समय िनणय ले सकँ ू गा।
‘‘राजा के पास सदैव राजगु होते थे जो उनका थम परामशक होते थे।’’ गु जी ने मुझे
ाचीन भारत म चिलत इस यव था के बारे म जानकारी दी।
‘‘राजगु आ याि मक ान संप न मेधावी यि होते थे। वे जानते थे िक या करना है
और कैसे करना है। सभी महान राजा अपने परामशक और आ याि मक गु ओं क मदद से
महान बन सके।’’
म जो भी अ याय पढ़ता था उसके संबंध म मेरे गु जी मुझे बार—बार सोचने पर िववश करते
थे।
समय इस तरह बीत गया जैसे उसको पंख लगे ह । मने अचानक महसस ू िकया िक चार माह
बीत गए।
अब मेरे पास दो माह ही शेष थे? मुझे समय का मरण हआ। उसके बाद मने ग़ौर िकया िक
मने अथशा के िकतने अ याय को परू ा िकया है। म तो आधी पु तक भी नह परू ा कर सका
था।
म उस ि केट के ब लेवाज क तरह अिधक प र म करने लगा और अिधक घंटे तक पढ़ने
लगा जो अचानक अिधकािधक रन बनाने के िलए यास करने लगता है। म अब १८ घंटे तक
पढ़ाई करने लगा था और सं कृत पर भी अपनी पकड़ बना ली थी। आ म म रहने वाले दूसरे
लोग मुझे पु तकालय म देर तक पढ़ते और सुबह ज द उठते हए देखते थे। म ६००० सू को छ:
माह याद करने के अपने ल य को परू ा करने क जोरदार यास करने लगा।
मेरे यास को देखकर गु जी ने एक िदन मुझसे कहा, ‘‘पु तकालय म अ ययन करने के
िसवा अथशा के अ ययन के अ य तरीके भी ह।’८
मने जानना चाहा, ‘‘वे कौन—से तरीके ह?’’
‘‘अथशा के िविभ न िवशेष से मुलाकात करके।’’, उ ह ने कहा।
‘‘अगले दो िदन म हमलोग अथशा पर आयोिजत स मेलन संगो ी म भाग लेने जा रहे ह।

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वहाँ पर तु ह बहत—से लोग से बहत कुछ िसखने के िलए िमलेगा।’’

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24
स मेलन

म सिलएुबहचला
म वभािवक
गया। गु
प से जब उठता था उससे पहले जग गया और गु जी से िमलने के
जी को स मेलन थल तक ले जाने के िलए एक कार क यव था क
गई थी।
मुझे मरण हआ िक आयोजक से पहले िदन ही गु जी के घर पर भट हई थी। वे गु जी को
स मेलन म आमंि त करने के िलए योता देने के िलए आए थे।
इस दो िदवसीय रा ीय संगो ी म देश के िविभ न भाग से लोग पधारे हए थे। इस स मेलन
म ितभागी अथशा के िविभ न प पर अपने—अपने आलेख तुत करने वाले थे। इसम
ोफेसर, िश क, छा और रपोटर आिद भाग लेने वाले थे।
हमलोग समय से पहले स मेलन थल पर पहँच गए। स मेलन का उ ाटन करने के िलए
रा य के मु यमं ी आए। जैसे ही मु यमं ी का आगमन हआ उ ह चाय एवं अनौपचा रक
बातचीत जैसे वागत स कार हे तु वी.आई.पी. क म ले जाया गया। इस स मेलन म मेरे गु जी
का बीज व य होना था। वे अथशा के िव िव यात िवशेष थे। वह पर मुझे पता चला िक
गु जी के काय एवं अकादिमक उपलि ध के कारण मु यमं ी उ ह यि गत प से जानते थे।
उस वी.आई.पी. क म मु यमं ी और अ य आयोजक के साथ गु जी भी आमंि त िकए गए
थे। ‘‘मेरे पास आओ। मेरे से िव कुल िचपक कर रहो वरना तुम इस भीड़ म खो जाओगे।’’ उ ह ने
एक आिधका रक लहजे म कहा। म भी समझ गया था िक यिद म गु जी के साथ नह रहा तो
मुझे कोई भी वी.आई.पी. क के पास भी नह फटकने देगा।’’
‘‘पहली बार म िकसी राजनेता को इतने नजदीक से देख रहा था। मुझे लगा िक म िकसी
व न—लोक म हँ। आसपास जो लोग थे वे ताकतवर ह ती लग रहे थे और वे जो बातचीत कर
रहे थे उसके कुछ अंश मेरी समझ म नह आए। लेिकन चलते—चलते मु यमं ी ने मेरे गु जी
के िलए जो कहा था उसका मेरे ऊपर थायी असर पड़ा : ‘‘सर, आपने सुशासन पर चाण य के
िवचार के संबंध म जो आलेख िलखा वह पढ़ रहा था। मेरा अनुरोध है िक या आप मेरे मंि मंडल
के सािथय के िलए इसी िवषय पर एक स दगे?’’ गु जी तुरंत सहमत हो गए और मु यमं ी

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के सहायक को इस पर आगे काम करने का आदेश िदया गया।
म एक ऐसे गु से अथशा का ान ा कर वयं को गौरवाि वत महसस ू कर रहा था
लेिकन उ ह मु यमं ी जैसे भावशाली लोग आंमि त कर रहे थे यह अपने आप म स मान का
िवषय था।
‘‘ या मने तुमसे कहा नह था िक तुम एक िक मत वाला लड़का हो?’’ िजस यि ने गु
जी के मागदशन म पीएच.डी. क थी और उनके िनवास पर िमले थे, ने मुझसे कहा। मने िसर
िहलाया और मु कुराया। म अब परू ी तरह से समझ गया िक उनका या अिभ ाय था।
जब समारोहपवू क स मेलन का उ ाटन हो गया तब बहत—से गणमा य यि मंच पर
िवराजमान हो गए। गु जी मु यमं ी के बगल म बैठे हए थे। एक के बाद दूसरे भाषण म
अथशा क शंसा क जा रही थी। उ ाटन समारोह के बाद मु यमं ी चले गए और चाय के
िलए अवकाश िदया गया।
गु जी ने ग़ौर िकया िक हम सचमुच संपण ू स मेलन से बहत भािवत था लेिकन उ ह ने
यह भी महसस ू िकया िक म भीड़ म िकंिचत खो जैसा गया था। उ ह ने मेरी पीठ थपथपाते हए
मेरा उ साहव न िकया और कहा, ‘‘अथशा का वा तिवक अ ययन अब ारं भ होने जा रहा है।
गु जी ने मुझे अलग म ले जाकर कहा, ‘‘अब मु यमं ी के साथ मीिडया के लोग भी चले
गए है। अब अथशा के िविभ न पहलुओ ं पर िवशेष लोग अपने—अपने व य दगे। तुम उन
सबसे िसखने के िलए तैयार हो जाओ। अपना संपक िवकिसत करो और उनसे दो ती करो। यह
तु ह जीवनभर के िलए सहायक होगा।’’
इसके बाद तकनीक आलेख क तुित ारं भ हई। इसम पैनल के िवशेष अथशा के
िविभ न प पर अपने िवचार य करते जा रहे थे — दशनशा से लेकर बंधन, नेत ृ व,
िवदेश नीित और अंतरा ीय मामल तक पर। उस स मेलन म हमारे बीच एक सै य िवशेष भी
थे।
अभी तक म यह समझता था िक म ही अथशा पर अ ययन करना चाहता हँ लेिकन इस
स मेलन ने मेरी धारणा बदल दी। लेिकन यही काम करने वाले अनेक लोग थे, केवल उनके
तरीके अलग—अलग थे।
मुझे दादा जी क याद आयी िज ह ने मुझसे एक बार कहा था, ‘‘अथशा िकसी एक यि ,
रा अथवा पीढ़ी क नह है। यह उन सबके िलए खुला है जो महान चाण य को समझना चाहता
था।’’
गु जी सच कह रहे थे। इन सभी िवशेष को सुनने के बाद म अथशा को िविभ न
ि य से समझना ारं भ िकया। यह िसखने का एक महान अवसर था।
िविभ न िव ान से मेरा प रचय हआ िज ह ने गु जी एवं आयोजक के साथ अपने िवचार
य िकए थे। उ ह ने ऐसा माहौल िकया िजससे म सुकून से रह सकँ ू ।
अगले दो िदन तक म सभी स म शािमल हआ। िट पिणयाँ िलख , अथशा पर उपल ध हर
कार क सामि य को जमा िकया, िव ान के साथ संपक थािपत िकया और पु तक दशनी
म अथशा पर दिशत पु तक को भी खरीदा।

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मुझे यह भी कहा गया िक इस स मेलन म तुत सभी आलेख और कारवाई के आधार पर
एक पु तक तैयार क जाएगी। मने उस संभािवत पु तक क एक ित भी बुक करा ली तािक
उसे म अपने यि गत पु तकालय का िह सा बना सकँ ू ।
स मेलन जब समापन के करीब था तब एक युवा ोफेसर मेरे पास आकर बोले, ‘‘ या तुम
वही छा नह हो जो गु जी से अथशा पढ़ रहा है?’’
मने जवाब िदया, ‘‘हाँ’’। लेिकन म याद करने क कोिशष कर रहा था िक या िपछले दो
िदन म उनके साथ मेरी बातचीत हई थी। म आ त नह था।
‘‘िनकट भिव य म अथशा पर हमलोग भी ऐसा ही स मेलन आयोिजत करने जा रहे ह।
या आप उसम उपि थत ह गे और अपना आलेख तु करगे?’’ उ ह ने अनुरोध िकया।
‘‘म?’’ म भाव—िवभोर हो गया और यह नह जानता था िक िकस तरह िति या य
क ं । ‘‘नह , नह , सर! मने इस े म अभी—अभी कदम रखा है। म िव ान नह हँ। आपलोग
िजतना काम कर रहे ह उसक तुलना म म कुछ भी नह जानता हँ। म तो गु जी का अभी—
अभी छा बना हँ।’’
वो मु कुराए, ‘‘गु जी के हाल म बने छा ? इसी से अगले स मेलन म व ा होने क
यो यता आपने अिजत कर ली।’’
म कुछ कहता उससे पहले उ ह ने कहा, ‘‘म आपके पास स मेलन का िववरण भेज दँूगा।’’

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25
अंितम िदन

गु ू ा, ‘‘ या तुम वापस घर जाने के िलए बहत उ सुक हो?’’


मा ने पछ
मने महसस ू िकया िक वहाँ पर मेरे अ ययन का यह आिखरी माह था। अ छे िदन तेजी से
बीत जाते ह। जी हाँ, म अपने माता—िपता और दो त से िमलना चाहता था। लेिकन मुझे अब
गु कुल से जाना होगा, इस िवचार से म दुखी हो गया।
मने यह भी महसस ू िकया िक अथशा के ोक को ितिदन रटने का जो मेरा ल य था
उससे म पीछे चल रहा हँ। मुझे अभी भी २००० ोक याद करने थे। समय पर अपने अ ययन को
परू ा करने क िदशा म म िकसी भी कार क कोताही नह बरतना चाहता था। यह मेरे िलए एक
मैराथन दौड़ जैसा था। म समय के िव लड़ रहा था। म िदन म केवल पढ़ाई ही करता था और
रात म भी अिधकािधक व इसी काम म लगाता था। वभािवक से अिधक समय शोध काय के
िलए देता था।
अनेक अवसर पर िबजली गुल हो जाती थी और मुझे पु तकालय म भी न द आ जाती थी। अब
म समझ गया िक िकसी तरह मेधावी और अ छे अंक ा करने वाले छा अ ययन करते ह। म
उ ह क तरह प र म करना चाहता था। इसका तनाव मेरे चेहरे पर झलकता था।
‘‘तु ह या हो गया है?’’ जब म गु जी के यहाँ शाम म गया तब उ ह ने मेरे ित िचंितत
िदखे। ‘‘तुम इतने सु त और बुझे—बुझे से य लग रहे हो?’’
‘‘गु जी, म िदन—रात एक करके शेष भाग को परू ा करना चाहता हँ। मने अपना यास
दुगुना कर िदया है य िक यह मेरा अंितम माह है।’’ म यह अपे ा कर रहा था िक गु जी मेरे
यास क सराहना करगे।
मगर उ ह ने इसके िवपरीत मुझसे कहा, ‘‘इस तरह से पढ़ना बंद कर दो। जाकर अपनी
िकताब बंद कर दो। एक स ाह का िव ाम लो।’’
‘‘िव ाम?’’ म उ ह ठीक से सुना अथवा नह , मुझे इसक जानकारी नह थी।
‘‘अ यिधक काम मत करो। इससे भावी ढं ग से पढ़ने क तु हारी मता भािवत होगी।’’

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िफर आगे उ ह ने कहा, ‘‘इस गाँव के आसपास बहत—से सुंदर थान ह। िपछले पाँच माह के
दौरान तुम इस आ म के िसवा कह नह गए। आसपास के ाकृितक थल म िवचरण करो और
वयं उसके साि न य म रहो।’’
इन श द से बहत सुकून िमला। मेरी वचा जो पहले रबड़ बड क तरह िखंची हई थी अब
ढीली पड़ गई।
गु जी और गु मा ने पयटन योजना का खाका तैयार िकया िजसम आसपास के कुछ
ाचीन मंिदर , पवत और समु तट पर जाने क योजना थी। उ ह ने अपने कुछ िम को खबर
कर दी और उन थान म मेरे ठहरने क यव था कर दी।
गु जी का स त आदेश था, ‘‘अपने अथशा क िकताब को यह छोड़कर जाना।’’ गु मा
ने अपनी िचरप रिचत मु कान के साथ मेरी ओर देखा, ‘‘कई बार िकसी चीज को बेहतर ढं ग से
समझने के िलए आप जो हो रहा है उसे होने देते ह।’’
जब म घम ू —िफर कर वापस आया तो लगा िक म बैटरी क तरह िफर से चाज हो गया हँ। अब
म िकसी भी चुनौती के िलए तैयार था। गु जी ारा द कुछ तकनीक का सहारा लेकर मने
एक स ाह पहले ही पु तक को समा कर िदया।
‘‘अब अपनी परी ा के िलए तैयार हो जाओ।’’ गु जी ने घोषणा क । म हत भ रह गया। म
यहाँ पर िफर से कोई परी ा देने के िलए नह आया था। तीन घंटे के —प के आधार पर
यि के ान क परी ा लेने वाली िश ा यव था से मुझे घण ृ ा थी। दुभा यवश, म इसके
िव बहस नह कर सका। िबना िकए मुझे आदेश का पालन करना था।
‘‘ठीक है, मुझे प का उ र कब देना है?’’ मने उनसे पछ ू ा तािक उस िहसाब से म
तैयारी कर सकँ ू ।
‘‘कौन—सा प ?’’ उ ह ने खेलपणू अंदाज़ म यं य िकया। ‘‘तुमने िपछले छ: माह म
अथशा के संबंध म जो भी अ ययन िकया है, उस पर आधा रत एक शोध—प तैयार करो।
उसी से पता चल जाएगा िक तुमने इस िवषय को िकस प म समझा है।’’ मने गहरी साँस ल
और सुकून महसस ू िकया।
और इस कार अथशा पर अपनी समझ पर मने अपना पहला शोध—प िलखा। मने
पु तकालय म उपल ध कुछ शोध पि काओं से साम ी ली तािक यह एक गंभीर ोफेशनल काय
िदखे। कुल िमलाकर, अब मेरे से एक िव ान वाली अपे ा थी।
िजस िदन म गु जी के पास अपना शोध—प जमा िकया उसके अगले िदन उ ह ने मुझे
बुलाया।
‘‘बहत अ छा काम! अथशा पर तु हारी िवचार — ि या मुझे अ छी लगी िक इसका
आधुिनक यवसाय म कैसे उपयोग िकया जा सकेगा। यह बहत ही अनठ ू ा ि कोण है।’’ मने
अपनी परी ा उ ीण कर ली।
‘‘बहत खबू !’’ उ ह ने मु कुराते हए कहा। ‘‘अब तु हारा कोस परू ा हआ। घर के िलए रवाना
होने से पहले अपना माण—प अव य ले लो।’’
ू ा, ‘‘ माण—प ?’’ या यह ा करना वभािवक था?’’
मने पछ

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‘‘तुम भारतिव ा के पहले छा हो िजसने हमारे आ म रहकर यवि थत प से शोध िकया
है। याद रखो, क सरकार ारा हम एक शोध सं थान के प म मा यता ा है।’’ उ ह ने प
िकया।
‘‘कुछ िदन पहले, यासी और म तु हारे और पढ़ाई के ित तु हारी ितब ता के बारे बात
कर रहे थे। तुमने जो कोस परू ा िकया है उस संबंध म हमने तु ह माण—प देने का िनणय
िलया है।’’ यह मेरे िलए िबना मांगे िमलने वाली सौगात जैसी थी।
‘‘वा तव म, आ म िनवासी एक व र िव ान साधु भी तु हारी ितब ता से भािवत ह।
उ ह ने भी ऐसी ही सलाह दी है।’’ ओहो, मुझे नह पता था िक आ म के लोग मेरे काम पर इतनी
नजदीक से गौर कर रहे ह।
तब उ ह ने मधुर आवाज म कहा, ‘‘तुम एक मेधावी छा थे। ऐसे छा िमलना हर िश क का
सपना होता है।’’ जब गु जी ने यह बात कही तो म भावुक हो गया।
‘‘यह माण—प तु ह संपण ू जीवन म मदद करे गा।’’ िफर उ ह ने कहा, ‘‘अभी तो तु ह यह
कागज का एक टुकड़ा लग रहा है लेिकन इससे जो तु ह अकादिमक दुिनया म ित ा िमलेगी
वह तु ह बहत दूर तक ले जाएगी। यह अथशा पर तुमने जो अ ययन िकया है उसका माण—
प है। ऐसा लग रहा था िक गु जी िजस भिव य को देख पा रहे थे उसे मेरे अंदर का युवा लड़का
नह देख पा रहा था।
‘‘ मा कर गु जी, मुझे िकतनी फ स देनी होगी यानी गु दि णा म िकतना देना होगा?’’
यह अंितम बात थी िजसे मुझे य करना था।
‘‘कुछ भी फ स नह । अथशा को अपने जीवन म उपयोग म लाने क ितब ता बनाए
रखो। याद रखो, शा िसखने के िलए नह होता है बि क शा जीया जाता है।’’ ये श द सुनते
ही मेरे गाल पर आँसू टपकने लगे।
आ म के अपने अंितम िदन म यासी से िमलने गया और उ ह ध यवाद िदया।
‘‘सर, आपको ध यवाद। म आपसे कुछ कहना चाहता हँ।’’ उ ह ने िज ासापवू क मेरी ओर
देखा। ‘‘म आपक तरह एक भ यवसायी बनना चाहता हँ।’’ मने वीकार िकया। उ ह ने कुछ
भी नह कहा। केवल मेरी ओर मु कुराकर देखा।
जैसे ही म अपने गु जी और गु मा से आशीवाद लेकर बस टॉप क ओर बढ़ा, वैसे ही मेरे
अंतस म एक आवाज उठी, ‘‘जाओ, अपने ान से दुिनया को जीत लो, अब तुम इसके िलए तैयार
हो।’’
मेरे जीवन के एक अ याय का अंत हआ और दूसरे क शु आत।

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26
घर–आगमन


हानगरीय जीवन म वापस जाने के िलए ेन पर बैठते समय मने जो िपछले िदन जीवन
जीया उस पर ग़ौर करने लगा। म अतीत पर िवचार करने लगा — मेरे दादा जी, बचपन म
िकताब म मेरी िच, अथशा के अ ययन करने क उ कंठा, िफर उसे गु कुल और गु
—िश य परं परा म अ ययन करना।
म पुन: वतमान ि थित म लौट गया — मेरा मन अ यंत फुि लत था। मने िपछले छ: माह
का संपणू प से आनंद िलया — भिव य क िचंता िकए िबना।
मेरा अंतस पण ू तया त ृ था। मने जो सबसे अहम बात महसस ू क वह थी, मने यह काय िबना
िकसी अपे ा रखे िकया था।
अंतत: म अपने भिव य के िवषय म सोचने लगा। एक बार घर पहंचते ही मेरा यह आनंदपण ू
मानस शहर के भागदौड़ वाली िज़ंदगी म फँसकर रह जाएगा।
लोग तो पछ ू गे ही, ‘‘अब आगे या करने क योजना है?’’ उस व त शायद ही मेरे पास इस
बात का जवाब था। लेिकन म चाहता था िक भिव य के िलए म अपना माग वयं तय क ं , न िक
दूसरे लोग मेरे िलए माग तय कर।
जब म घर पहंचा तो मने महसस ू िकया िक एक दशक गुजर गया है। बहत कुछ बदल गए थे
लेिकन बहत कुछ पहले जैसे ही थे।
पद बदल गए थे लेिकन फिनचर वही थे। हमारे सं ह म अनेक पु तक जुड़ गई थ लेिकन
िकताब क दराज उतनी ही िचरप रिचत थ ।
अपने बेटे को वापस घर म देखकर मेरी माँ फटाफट बोली, ‘‘सबसे पहले हमलोग भोजन
कर।’’ इस बात से मुझे गु मा क याद आयी। उ ह ने मुझसे यही बात कही थी जब म पहली बार
उनसे िमला था।
िफर पापा ने पछ ू ा, ‘‘कैसी रही या ा?’’ या यह गु जी मुझसे पछ
ू रहे थे? मेरे अचरज का
िठकाना नह रहा। इससे मुझे उस जगह से संपक बनाने म एक ण लगा िजस जगह को म छ:

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माह पहले छोड़कर गया था।
जब म यहाँ नह था तब मेरे दो त क िज ासा से मुझे अवगत कराते हए िपता जी ने
मु कुराकर मुझसे कहा, ‘‘तु हारे दो त परे शान थे िक तुम कहाँ लापता हो गए थे।’’
मेरी माँ अपने िह से क कहािनय के साथ सुर म सुर िमलाते हए बोली, ‘‘तुम अनेक
प रवा रक समारोह और उ सव म भी शािमल नह हो सके। इन त वीर को देखो।
उसके बाद म अपना अनुभव सुनाने लगा। मने उ ह वहाँ यतीत क हई अपनी जीवन शैली,
आ म के िद य प रवेश, पु तकालय का वह कोना जो मेरा यान को बन गया, वहाँ िनवास
के दौरान गु जी और गु मा का मेरे ित यवहार, उस स मेलन म शािमल होना िजसम
मु यमं ी आए थे और एक आगामी संगोि म व ा के प उपि थत होने के िलए अनपेि त
आमं ण के संबंध म उ ह सुनाया।
अचानक िपता जी के हाव—भाव म बदलावा आ गया उ ह एक मह वपण ू बात याद आ गई।
उ ह ने कहा, ‘‘ ेजुएशन का परी ा प रणाम भी कुछ माह पहले आ चुका है। तुमने उ कृ अंक
ा िकए ह। वा तव म, एक िवषय म तो तुम परू े कालेज म थम आए हो।’’
मेरे िपता जी के अनुसार मेरे जीवन का यह सबसे अ छा अकादिमक दशन था। िफर भी म
इसके ित उ ेिजत नह था। मने बस अपना कंधा िहलाया और कहा, ‘‘तो या हआ?’’
मगर मने धीरे से अपना बैग िखसकाया और अथशा पर मने जो भारतिव ा शोध पाठ्य म
परू ा िकया था उस पर गु जी ारा िदये गये माणप को बाहर िनकाला। म कालेज से िमलने
वाले माण—प क तुलना म हाथ म रखे हए इस माण—प के ित अिधक गौरवाि त था।
मेरे माता—िपता ने इसे अचरज भरी िनगाह से देखा। मेरी ही तरह उनको भी यह क पना
नही थी िक म िकसी कार के अकादिमक माण—प के साथ लौटूँगा।
ू ते हए बोली, ‘‘मेरे ब चे, यह तो अंको का अ ुत ितशत है।’’
मेरी माँ खुशी से झम
म कुछ समझा नह । ितशत? या ितशत?
“देखो, तुमने ९२ ितशत अंक और ए+ ेड ा िकया है। यह माण—प म है।
मने माण—प को ग़ौर से देखा। जब गु जी ने मुझे यह िदया था तो मने इसम अपना नाम
देखा था और उस िव िव ालय का लोगो िजससे मेरा शोध सं थान संब था। अब मने महसस ू
िकया िक गु जी ने इस परी ा य कही थी।
‘‘ या कहना, मने तो अपने जीवन म कभी भी इतना अ छा अंक ा नह िकया था।’’
यह संयोग तो बेहतर हआ। मने हाल ही म संप न कॉलेज परी ा तथा भारतिव ा शोध
पाठ्य म दोन म उ कृ अंक ा िकए। या इ ह को गु कृपा, ई र कृपा और शा कृपा
कहा गया है?
माँ ने कहा, ‘‘आज शाम तु हारे दो त आने वाले ह। उ ह ने कहा है।’’
म दो त से िमलने—जुलने म बहत िच नह ले रहा था मगर साथ ही म जानना चाह रहा
था िक िजतने समय तक म बाहर था उस दौरान िकया हआ।
जब शाम म हमारी मुलाकात हई तो अंतहीन बातचीत होती रही। एक दो त ने कहा िक उसे

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तो कभी भी पास करने क उ मीद ही नह थी जब दूसरे को जीवन म पहली नौकरी लग गई थी।
एक लड़क क मंगनी हो चुक थी और अगले कुछ माह म उसक शादी होने वाली थी। ऐसा
लग रहा था िक उसके माता—िपता को उसके ेजुएशन करने भर क ती ा थी।
कुछ दो त नौकरी क तलाश म थे जबिक कुछ ने आगे के कोस म वेश ले िलया था।
‘‘तुम आगे या करोगे?’’ म जानता था िक इस से मेरा सामना होगा।
लेिकन मेरे पास भी जवाब तैयार था : ‘‘म एक यवसायी, उ मी बनने जा रहा हँ।’’
उन सबको मेरी बात से अचरज होने लगा। हमलोग के बीच वष से दो ती थी लेिकन मने
कभी भी उनके साथ इस तरह क इ छा य नह क थी। उ ह ने सोचा िक मेरे मन म वैसे ही
ऐसा याल आ गया है।
‘‘म इस मामले म गंभीर हँ। म एक यवसायी बनना चाहता हँ। म धन का सज ृ न करना
चाहता हँ।’’ म चाहता था िक वे प प से मेरी बात सुन।
इनम से एक ने पछ ू ा, ‘‘तुम िकस यवसाय म जाना चाहते हो?’’
‘‘एक भ यवसाय।’’ उस यासी को याद करते हए मने कहा।
‘‘वो तो ठीक है मगर कौन—सा यवसाय?’’
वा तव म म इस बारे म िवचार नह िकया था।
इसिलए मने सोचना शु िकया .......

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27
योितष-शा ने राह िदखायी


क बार िफर मने िपता जी से मदद मांगी।
‘‘पापा, म एक भ यवसायी बनना चाहता हँ। म िकसी के अधीन काम नह करना
चाहता हँ। म अपना बॉस खुद ही बनना चाहता हँ।’’ म बोलता रहा और िपता जी धैयपवू
सुनते रहे ।
‘‘यह बात बहत अ छी है मगर बेटे तुम कौन—सा यवसाय करना चाहते हो।’’ िपता जी
अिधक योजनाब ढं ग से िवचार करना चाहते थे लेिकन मने िबना सोचे—समझे जवाब िदया:
‘‘िजस यवसाय से म धनी बन सकँ ू , बहत धनी?’’
िपता जी ने इस तरह से हाव—भाव िदखाया जो िक मेरे पहले जवाब से अिधक ठोस था।
उ ह ने सीधे तौर पर पछ ू ा, ‘‘अ छा, िकतना धनी?’’
म अपनी राग अलापते रहा, ‘‘सच म धनी, वा तिवक प म धनी। मेरे कहने का मतलब है
िक म दुिनया का सबसे धनी आदमी बनना चाहता हँ।’’
परू ी तरह से चु पी। मेरे इन श द के बाद स नाटा छा गया।
मने महसस ू िकया िक मने बचकानी बात कर द । म अपने मन के अधीन होकर जो सो बकने
लगा और बेवकूफ कर बैठा।
िपता जी ने मेरा हौसला बढ़ाते हए कहा, ‘‘बहत खबू ! दुिनया का सबसे धनी आदमी बनने म
कुछ भी गलत नह है।’’ मुझे थोड़ा गु सा आ गया य िक मुझे महसस ू हआ िक िपता जी मेरा
मजाक उड़ा रहे ह।
‘‘सॉरी पापा!’’ मेरी आँख डबडबायी हई थ । ‘‘जब कोई मुझसे पछ ू ता है िक तुम जीवन म
या बनना चाहते हो तो म बहत हताश हो जाता हँ।’’
मेरी माँ ने मुझे अपनी बाँह म भरकर मुझे आिह ते से पुचकारने लगी। िपता जी ने मेरे
मनोबल को बढ़ाने का यास िकया, ‘‘पु , म इस मामले म गंभीर हँ। बड़े सपने देखने और
दुिनया का सबसे धनी यि बनने म कोई भी बुराई नह है। भावी पीिढ़य के िलए तुम एक

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आदश बन सकते हो। तु हारे सपने को साकार करने म म तु हारी मदद कर सकता हँ। इन
श द से मेरा तनाव कम हआ।
‘‘मुझे यह बताओ िक यह िवचार तु हारे मन म कैसे आया?’’ मुझे यह लगा िक वे सचमुच म
जानना चाह रहे थे।
मने उनके ित कृत महसस ू िकया। म यवग य प रवार के अिधकांश माता—िपता संतान
को ऐसे ल य क ओर बढ़ने क िदशा से हतो सािहत करते ह लेिकन मेरे माता—िपता चाहते थे
िक म अपने सपने को साकार क ं । उनके से मने महससू िकया िक अभी मेरे अंदर सही
िदशा नह थी।
मुझे इस सम या का िनदान करना था। मुझे आ म के यासी के साथ हई बातचीत क याद
आयी। उनको मने ‘भ यवसायी’ कहा था।
म उनसे कहा िक यासी ने कहा था, धन का सज ृ न एक वरदान है और अपने उपािजत धन
से वे बहत से अ छे काय म मदद कर सकते थे।
‘‘लेिकन पापा, म यह नह जानता िक मुझे कौन—सा यवसाय करना चािहए।’’ मने दुखी
होकर वीकार िकया।
उ ह ने कहा, ‘‘िच ता न करो, योितष से तु ह रा ता िमल जाएगा।’’
‘‘यह बहत ही बेतुका जवाब था। मुझे नह मालम ू िक पापा या सोच रहे ह। उ ह ने मेरी
उलझन को भाँप िलया और आगे कहा :
‘‘ योितष हमारे ऋिषय ारा िनिम िद य िव ान है िजसम उस तरह के पेिचदे मामल को
सुलझाया जाता है जैसा िक तु हारा है।’’
इस समय से पहले तक मुझे नह पता था िक मेरे िपता जी योितष म िच रखते ह।
‘‘बहत—से लोग को योितष क िव कुल ही समझ नह है अथवा उ ह इस िवषय तथा
योितष के बारे म गलत धारणा है। योितषशा एक िव ान है और इसके अ येता योितष
एक वै ािनक। चँिू क हमारी मुलाकात गलत वै ािनक से होती है, इसिलए हम िव ान और इसके
िनयम को नह समझ सकते ह। इसका मतलब यह नह है िक िव ान ही अपण ू है।’’ हाँ, इस बात
म जान थी।
उ ह ने इस बात पर जोर िदया िक ‘‘हमारे सामने िव ान के िव े षण के िलए वै ािनक
चािहए। इसिलए मु य बात यह है िक सही योितष क आव यकता है जो योितषशा को
प कर सक।
िपछले कुछ वष म योितषशा क जो बदनामी हई है उससे वे िचंितत थे।
‘‘यह दुभा यपण ू है िक बहत—से तथाकिथत योितष ने इस े का इतना अिधक
यवसायीकरण िकया है िक लोग का इस िव ान से िव ास ही हट गया है।’’
मुझे अथशा म उि लिखत चाण य के उस वचन क याद आयी :

िश ा, िन , याकरण, छं दशा , योितष और कमकांड – ये छ:

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वेदांग ह। (1.3.3)

जी हाँ, चाण य ने योितषशा और खगोलशा दोन का अ ययन िकया था तथा उस


ान का उपयोग किठन प रि थित म राजाओं को मागदशन करने के िलए िकया था।
‘‘ योितष के साथ दूसरी सम या यह है िक लोग इसके मा यम से अपना भिव य जानना
चाहते ह जबिक यि को अपना भिव य वयं िनिमत करना पड़ता है।’’
मेरे िपता जी मुझे उन सभी कारक से प रिचत करवाना चाहते थे िजनके कारण जनता का
इस िव ान के ित मोह भंग हआ।
मेरे चेहरे पर के भाव को भांपते हए उ ह ने अपनी बात जारी रखी—
‘‘ठीक है, इस बात को इस तरह से समझो। येक यि म कुछ ज मजात ितभा होती है
िजसे हम उस यि के िलए ई र द उपहार मानते ह। लेिकन उस ितभा पर यान न देकर
हम िबना सोचे समझ दूसरे िक नकल करने लगते ह उस काम का िजसके िलए हम नह बने
होते ह।’’ यह बात मेरी समझ म आ गई।
आगे उ ह ने कहा, ‘‘गधा गीत नह गा सकता। वह इसके िलए नह बना है। हालांिक गधा जो
काम कर सकता है उसे दूसरे ाणी नह कर सकते ह। गधा भारी बोझ ढो सकता है। गधा से गीत
का अ यास करवाना और उसे गीत गाने पर िववश करना गलत है।’’
अब म गधे के इस उदाहरण से तुलना कर सका िक आज के नौजवान को िकस कार
िचिक सा अथवा अिभयांि क जैसो कुछ काय म जबरन धकेला जाता है जबिक उनका
वाभािवक प से इस िदशा म झान नह होता है।
यिद हर िकसी के उस गुण क पहचान क जाए िजसम वह अ छा है तो हम उसके आधार पर
एक बेहतर भिव य का िनमाण कर सकते ह।
‘‘यह पर योितष क भिू मका सामने आती है। यह िसफ यही नह बताता है िक आपके अंदर
कौन—सा गुण है बि क आपको अपने ल य तक पहँचने के िलए िदशा-िनदश भी तैयार कर
देता है।’’ इससे योितष के बारे म मेरे मन म जो गलत धारणा थी वह दूर हई।
इसके बाद िपता जी ने मु कुराते हए कहा, ‘‘लेिकन यान रखो िक तु ह उस माग पर वयं
चलना पड़े गा, केवल िदशा-िनदश समझ लेने से काम नह चलेगा।
‘‘हम एक अ छे वै ािनक को कैसे ढूँढ़गे? हम इस काम के िलए कैसे यास करगे?’’ मने
अपना संदेह य िकया िक आज क दुिनया म या वा तव म अ छे योितषी उपल ध ह।
‘‘जी हाँ, मेरे एक दो त ह। वे िव िव ालय म ोफेसर ह। उ ह ने इस िवषय म पीएच.डी. क
है। मुझे उनसे बात करके उनसे समय लेने दो।’’ पापा क गए और टेिलफोन डायरे टरी देखने
लगे।
अथशा म िनिहत चाण य के ान ने मेरी र ा क । इसने मेरे जीवन के जिटल मोड़ पर
मेरा मागदशन िकया — कॅ रयर चुनने म।

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यह तो एक शु आत थी।
अपने नाम क साथकता के अनु प योितष मुझे जीवन के हर मोड़ पर मागदशन करते रहा
है — योित एवं ई र अथात ई र क योित।
अतएव इसे योितष कहा जाता है।

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28
सं कृत के ोफेसर

यो ितषी ने हम अपने कायालय म बुलाया। वे हमारे शहर के िव


बहत ही व र ोफेसर थे।
िव ालय म सं कृत के

िकसी सं कृत के ोफेसर के साथ मेरी यह दूसरी मुलाकात थी, पहली मुलाकात मुझे गु जी
के साथ हई थी। हर कह िकताब ही िकताब, सं कृत िवभाग म मेरी क पना से परे सि यता थी।
जैसे ही हम ोफेसर साहब के कमरे म बैठे वैसे ही वे कहने लगे: ‘‘िवगत वष म सं कृत म
अ ययन करने वाल क सं या बढ़ती जा रही है। हमारे सभी कोस म सीट भरे हए ह। नए छा
के यहाँ पर अ ययन करने क ती ा सच ू ी काफ ल बी हो गई है।’’
मेरे िपता जी से उनक मुलाकात अनेक वष पवू सं कृत भाषा चार काय म म हई थी। तब
से उनक िम ता गाढ़ होती गई। वे एक—दूसरे को चाहते थे।
‘‘मने आपके पु के िलए एक योितष चाट यानी कुंडली तैयार क है।’’ उ ह ने िबना िकसी
िवल ब के काम क बात शु कर दी।
उनके सामने मेरी ज म कुंडली थी और उ ह ने इस पर कुछ िट पणी भी िलखकर तैयार क
थी। म उनक बात सुनने के िलए उ सुक था।
‘‘यह एक अि तीय कुंडली है। मने अपने जीवन म बहत—सी कुंडिलय का अ ययन िकया
है। लेिकन यह एक िवशेष कुंडली है। आपके लड़के म बहत ही मजबत ू इ छा शि है। यह वे साभी
काम कर सकते ह िजससे जीवन म सफलता सुिनि त कर सके।’’ म इस बात से खुश था िक
कोई मेरे िपता के सामने मेरी शंसा कर रहा है।
उ ह ने अपनी गणना के संदभ म कहा, ‘‘लेिकन इनक कुंडली सबसे अ छी बात है बहृ पित
क ि थित।’’
म अचानक उलझन म फँस गया। ‘‘सर, इस बहृ पित से या मतलब है?’’
‘‘सं कृत म बहृ पित को गु कहा गया है, वैिदक योितषशा के अनुसार। यह भा य और
वैभव के वामी ह। गु का भाव धम, दशन, आ याि मकता, धन एवं संतान पर पड़ता है। गु

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के अनुकूल होने से नाम, याित, सफलता, ित ा और धन ा होने के साथ—साथ लोग के
साथ अ छे संबंध बनते ह।’’
‘‘वैिदक योितष?’’ मने इस संबंध म िव तार से जानना चाहा।
‘‘िव म अनेक कार क योितष प ितयां ह। भारत म हम वैिदक योितष का अनुसरण
करते ह य िक भारतीय दशन का आधार वेद है।’’ उ ह ने िव म चिलत अ य प ितय के
उदाहरण िदए।
ताब ऐसे लगा िक वे मेरी िखंचाई करते हए कह रहे ह , ‘‘तु हारे चाण य ने भी अथशा म
कहा है िक राजा को वेद का अ ययन करना चािहए।’’ िपता जी ने प तौर पर उ ह मेरे
अ ययन के बारे म बता िदया था।
म ने याद करने क कोिशश क िक कहाँ पर चाण य ने यह बात कही है और मुझे आसानी
से यह बात याद आ गई :

दशनशा , तीन वेद, अथशा और राजनीित िव ान – ये िव ान ह


(िजनका अ ययन नेत ृ वकता को करना चािहए।) (1.2.1)

इसी अ याय म चाण य ने आ वीि क के मह व पर काश डाला है।


‘‘तु हारे मामले म चँिू क तु हारे गु बल ह, इसिलए तुम जो भी माग चुनोगे उसी म तु हे
सफलता िमलेगी।’’ ाफेसर ने मु कुराते हए यह बात कही।
मेरे िलए गु एक ह से अिधक मेरे िलए यि थे। म अपने जीवन म िश क के आशीवाद
का य अनुभव कर रहा था, न िक अंत र म घम ू ने वाले िकसी उप ह का। जब तक म
जीवन म सफल नह हो जाता था तब तक मेरे िलए इसका कुछ भी मह व नह था।
‘‘तुम मुझसे पछू सकते हो। म तु हारा मागदशन क ं गा।’’ उ ह ने मेरे िलए खुला
अवसर िदया।
‘‘ या म एक सफल यवसायी बन सकता हँ?’’ मेरा पहला था।
‘‘जैसा मने कहा है, तु हारी इ छा—शि मजबत ू है। तुम जो भी काम करोगे उसम सफल हो
जाओगे। इसिलए यवसाय अथवा अकादिमक या िकसी अ य े म सफल होना कोई सम या
नह है।’’ यह जानकर मुझे अ छा लगा।
‘‘मुझे िकस तरह का यवसाय करना चािहए?’’
‘‘तु हारी कुंडली म कुछ िवशेष संकेत िदए गए ह िजसके आधार पर तुम लेखन, भाषण, धातु
के करोबार अथवा हरे रं ग से जुड़े यवसाय म अ छा कर सकते हो। वा तव म, तुम बहत से
यवसाय कर सकते हो यिद तुम चाहो तो, उन सबम तुम सफल हो सकते हो।
आगे कुछ कहने से पहले वे कुछ ण के िलए के, ‘‘लेिकन तु हारे अंदर मानिसक प ता
कुछ समय के बाद ही होगी। गणना के अनुसार कुछ साल बाद तुम अपना यवसाय शु कर

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सकते हो।’’
इससे म थोड़ी देर के िलए हतो सािहत हआ। लेिकन तुरंत संभल गया और मेरे मन म जो
सबसे भारी था वह पछू बैठा, ‘‘तो मुझे अब या करना चािहए?’’
मने अपना ेजुएशन परू ा कर िलया था और इसके बाद तुरंत कोई यवसाय करना चाहता
था।
‘‘मेरी सलाह है िक कुछ समय के िलए तु ह कोई नौकरी कर लेनी चािहए।’’
मुझे इस सलाह के ित घण ृ ा थी।
‘‘बस यही काम तो म नह करना चाहता। मेरे दो त नौकरी म लगते जा रहे ह। लेिकन म
लोग को नौकरी देना चाहता हँ।’’ मने उनसे यह बात इसिलए कही िक वे मेरे िलए िकसी
िवक प क तलाश करगे।
‘‘अभी तु हारी जो उ है उसम तु ह जीवन का अनुभव नह है। िकसी कंपनी म काम करने
से तो लाभ िमलेगा। उस अनुभव के सहारे तुम अपना यवसाय ारं भ कर सकते हो। कोई नौकरी
वेतन के िलए नह , बि क अनुभव के िलए करो।’’ उ ह ने मुझे सलाह दी।
उनक तुित इतनी अ छी थी िक मुझे उनक सलाह अ छी लगी। म िकसी भी कार से उस
सलाह पर िवचार करने के िलए तैयार हआ।
मेरे िपता क ओर देखते हए उ ह ने कहा, ‘‘यह जीवन के हर चरण म अपना अ ययन जारी
रखेगा। यह उ च िश ा ा करे गा। यह िव ान और बुि जीिवय के बीच रहना पसंद करे गा।’’
यह सच था। मने पहले सोचा था िक ेजुएशन कर लेना मेरे िलए पया था। लेिकन छ: माह
तक अथशा का अ ययन करने के बाद जीवनभर अ ययन करते रहने क इ छा मेरे मन—
मि त क म घर कर गई।
‘‘सर, अभी—अभी मने सच ू ना प पर देखी है िक सं कृत एम.ए. म नामांकन शु हो गया
है। या म इसम वेश ले सकता हँ?
‘‘म तु ह सं कृत म फाउं डेशन कोस करने क सलाह दँूगा, उसके बाद तुम एम.ए. कर
सकते हो।’’
इस भाषा को िसखने का िवचार मुझे अ छा लगा। लेिकन मुझे बाद म पता चला िक सं कृत
से एम.ए. करने के िलए पहले यन ू तम नातक क िड ी सं कृत म चािहए। इस भाषा म पवू
यो यता न होने पर कोई केवल फांउडे शन कोस म ही नामांकन ले सकता है।
‘‘तुम साथ म कोई नौकरी भी कर सकते हो। एक स ाहांत कोस है इसिलए तुम स ाहभर
नौकरी कर सकते हो और शिनवार—रिववार को क ा म उपि थत हो जाओगे।’’ ोफेसर ने
सलाह दी।
अब बात तय हो गई। अगला काम था नौकरी क तलाश।

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29
सा ा कार

म नेयनौकरी क तलाश शु कर दी। यह बात अपने दो त को बताना मुझे अ छा नह लगा


िक मने उ ह पहले ही अपनी भावना से अवगत करा िदया था िक मुझे यवसाय शु
करना है।
एक िदन म अखबार पढ़ रहा था। संयोग से मने एक बड़ी कंपनी म पद रि का िव ापन
देखा। इसम िबजनेस डे वलपमट ए ज यिू टव का पद था। इसम ‘िबजनेस’ श द ने मेरी आँख को
आकिषत िकया।
मने इस पद के िलए आवेदन िदया था और मुझे एक स ाह के अंदर सा ा कार के िलए
बुलाया गया। इस िस कंपनी ने नए तरह का यवसाय शु क थी। यह अपनी िब और
िवपणन टीम म िव तार करने के िलए इसे युवा कायशि क तलाश थी।
पहली बार म इतने बड़े कॉरपोरे ट ऑिफस म गया था। म औपचा रक प रधान म था और
सा ा कार म बुलाए जाने हे तु वागत क म काफ समय तक ती ा करते रहा। मने ग़ौर
िकया िक उनम से अिधकांश िचंितत िदख रहे थे।
मने उनम से अनेक अ यिथय के साथ अनौपचा रक बातचीत क और महसस ू िकया िक कुछ
लोग को वा तव म उस नौकरी क स त तलाश थी। कुछ गरीब प रवार से थे और यह काम
िमल जाने से उसक िक मत सदा के िलए बदल सकती थी।
म वयं से कहने लगा िक कभी भी िकसी जॉब को छोटा मत समझो। यह अनेक लोग को
स मान क िज़ंदगी देता है। इस बात का मेरे िलए कोई मायने नह था िक यह काम मुझे िमले
अथवा नह । लेिकन दुिनया म हजार बि क लाख लोग के िलए यह ण करो या मरो का होता
है।
अब मेरी बारी आ गई। कह न कह म मेरे मन क गहराई म यह बात थी िक मुझे चयन नह
िकया जाना चािहए। ऐसा नह था िक मने काम करने का अपना इरादा बदल िदया था बि क यह
िवचार था िक िकसी ज रतमंद को यह काम िमले।
यह कहावत है िक जब आपको िकसी चीज क अपे ा नह होती है तो आपको वह चीज िमल

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जाती है।
सा ा कार के दौरान मने आसानी से बहत से का जवाब िदया। मने उस कंपनी तथा
उसके उ पाद पर शोध िकया कर िलया था। मेरा आ मिव ास काफ बढ़ा हआ था और यिद मुझे
यह जॉब नह भी िमलता तो मुझे िकसी कार क परे शानी नह होती।
इसके बाद सा ा कार लेने वाल ने मुझसे सबसे मह वपण ू पछू ा : ‘‘आप िकतने वेतन
क अपे ा कर रहे ह?’’
मेरा अनुमान है िक वे लोग मेरे जवाब से काफ स न हए ह गे : ‘‘मने िबजनेस डे वलपमट
ए ज यिू टव के पद के िलए आवेदन िदया है। म वेतन के िलए कैसे कह सकता हँ यिद म कंपनी
का यवसाय फै ला नह पाया तो?’’
कुछ िमनट के अंदर उ ह ने कहा, ‘‘ठीक है, आप चुन िलए गए ह। अगले माह से िश ण
ारं भ होगा।
कंपनी म काम शु करने म अभी कुछ व त था तब तक मने िव िव ालय जाकर स ाहांत
सं कृत फांउडे शन कोस म वेश ले िलया।
मेरे जीवन का एक नया अ याय ारं भ होने वाला था। म एक साथ काम करने और अ ययन
करने वाला था। म इस बात से गौरवाि वत था िक मुझे अपने पहले यास म ही जीवन क पहली
नौकरी िमल गई।
मेरे कुछ दो त अभी भी नौकरी पाने के िलए संघषरत थे। म उनक सफलता के िलए मन ही
मन ाथना कर रहा था। म ऐसा इसिलए नह कर रहा था िक म जानता था िक उ ह नौकरी क
तलाश है बि क उनम ऐसी मता थी और उ ह िनयिमत आय क आव यकता थी।
अभी कंपनी म काम शु करने म एक स ाह का समय था िक वहाँ से अचानक कॉल आया,
‘‘ या आप कल हमारे चेयरमैन से िमलने आ सकते ह?’’ यह संदेश एक आदेश अिधक अनुरोध
तीत हो रहजा था।
मने उ र िदया, ‘िब कुल आ सकते ह सर।’’
म समझ नह पा रहा था िकस बीच म या घिटत हो गया। मने तो नौकरी ले ली थी। पर या
सा ा कार का अंितम दौर अभी शेष था?
इस बार म इस त य को ह के—फु के ढं ग से नह ले रहा था िक मुझे एक और सा ा कार
का सामना करना है। कंपनी ने मेरे पर समय का िनवेश िकया था मने उसका स मान िदया। इस
बड़ी कंपनी म एक बार िफर जाने के बारे म सोचकर मने वयं के िलए इसे ग रमा क बात
समझा।
मने वागत क म वेश करते ही महसस ू िकया िक सा ा कार के िलए दूसरा कोई भी नह
ह। एक ही ण म मेरे िदमाग से यह िवचार लु हो गया और मुझे चेयरमैन के क म बुलाया
गया।
भारत क एक िवशाल कंपनी ुप के चेयरमैन के सामने खड़े होकर म यह जानने क
कोिशश करने लगा िक आिखर या हआ है।

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एक ण के िलए लगा िक यह कोई सपना है। मने इनको टेिलिवजन पर, अखबार म और हर
उस मंच पर जहां बड़े उ ोगपित जमा होते ह वहाँ देखा है।
‘‘आओ नवयुवक। अपना थान हण करो।’’ उ ह ने मुझे कुस पर बैठने के िलए बुलाकर
शांत करने क कोिशश क । ‘‘आप या लगे, चाय अथवा कॉफ ?’’
‘‘जी नह सर, म ठीक हँ। िसफ एक लास पानी से काम चल जाएगा।’’ पानी लाने का आदेश
देकर वे वहाँ मेज पर रखे कागजात को पलटने लगे।
‘‘अगले माह से शु होने वाले िश ण के पहले िदन नए भत िकए गए कािमक को मुझे
संबोिधत करना है। एक िनयिमत काय क तरह म अंितम प से चुने गए अ यािथय क सच ू ी
पर ग़ौर कर रहा था। इस कार म जानता हँ िक मेरी टीम म कौन लोग शािमल हो रहे ह।’’ ऐसा
उ ह ने कहा।
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘लेिकन तु हारे सी.वी. को देखकर म काफ भािवत हआ।
इसिलए मने तु ह चचा के िलए बुलाया है।’’
इस बात से मेरा संशय बढ़ गया। मेरे सी.वी. म तो प प से िलखा हआ था िक मुझे कोई
भी काय अनुभव नह था। म तो अभी—अभी नातक िकया था। ऐसे म मेरे म या िवशेष इ ह ने
देखा है?
‘‘सर, मेरे सी.वी. म ऐसा या है िजससे आप भािवत हए ह?’’ मने ऐसा पछ ू ा। म जानना चाह
रहा था िक आिखर बात या है।
‘‘आपने कौिट य के अथशा पर भारतिव ा पाठ्य म परू ा िकया है। यह बात मुझे िदलच प
लगी। इसम िलखा है िक आपने सभी छ: हजार सू का अ ययन िकया है और इस संबंध म
माण—प संल न है।’’ उ ह ने प िकया।
अंतत: उस बैठक पर जो रह य का घना कोहरा छाया हआ था वह हठ गया। ‘‘सर, मने यह
कोस अपनी िच के कारण क , िकसी ोफेशनल यो यता के िलए नह ।’’ ऐसा तीत हो रहा था
िक म अथशा के अपने उप म को कम करके आँक रहा हँ, मगर स चाई तो यह थी िक म
अपने इसी अ ययन के कारण िव क सबसे बड़ी कंपिनय म से एक के सामने बैठा हआ था।
उ ह ने मुझसे चाण य, अथशा और इस िवषय म मेरी समझ के बारे म अिधकाअिधक बात
क । मने उनसे िचंतन के िव ान आ वीि क , धम आधा रत नेत ृ व और गु जी ारा द
बहत—सी जानका रय क चचा क ।
यह प रचचा, सा ा कार नह , लगभग एक घंटे तक चली।
उसके बाद चेयरमैन ने मुझसे कहा, ‘‘मेरे पास तु हारे िलए दूसरा ताव है।’’
‘‘कौन—सा ताव?’’ म त ध एवं सशंिकत हो गया।

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30
िवज़न पर चचा

“अ
थशा पर तु हारे अ ययन के साथ—साथ मने तु हारे बारे म सा ा कार लेने वाले
क िट पणी भी देखा।’’ उ ह ने मेरी सी.वी. िदखाते हए उस अंिकत ह तिलिखत
िट पणी िदखायी।
उस पर िलखा हआ था : इ ह वेतन क अपे ा नह है यह पहले कंपनी के यवसाय को
बढ़ाना चाहता है।
चेयरमैन ने मुझसे कहा, ‘‘इस बात से म अ यंत भािवत हआ।’’
‘‘जॉब के िलए आवेदन देने वाले अिधकांश लोग इस मन:ि थित म नह होते ह। वे यहाँ मोटी
तन वाह और हमारे कंपनी क सोहरत से जुड़ने क चाहत म आते ह। आप िजस उ म ह उसम
ऐसी विृ का होना बहत ही अ छा है।’’
म आपसे कुछ पछ ू ना चाहता था इसिलए आपको यहाँ पर बुलाया।’’ वे ण भर के िलए ठहर से
गए जैसी िकसी गहन िचंतन म ह ।
‘‘ या आप सीधे मेरे अंदर यानी चेयरमैन के ऑिफस म काम करना चाहगे?’’
मुझे अपनी िक मत पर यक न नह आया। मेरे सामने जो ताव था वह एक सपना जैसा था।
‘‘यक नन सर!’’ मने उस अवसर को लपक िलया।
‘‘मगर’’, उ ह ने मुझे सावधान करते हए कहा, ‘‘इसम एक बंिदश है। आपको कुछ भी
तन वाह नह दी जाएगी। पहले जो नौकरी का ताव आपको िदया गया था उसम जॉब के साथ
ठीक—ठाक वेतन भी िदया जाता। लेिकन जब आप मेरे अंदर काम करगे तो आपको वेतन नह
िदया जाएगा।’’
यह एक और इ तहान था। वे मुझे परखना चाहते थे िक सचमुच म िबना आमदनी के काम
करने म िव ास करता था अथवा कंपनी को महज भािवत करने के िलए ऐसा कहा था।
वो कहते गए, ‘‘याद रहे , आपके िलए पहला ताव अभी भी य का य है — आपका जॉब,
तन वाह, िश ण और ज रत पड़े तो या ा भ े भी िदए जाएं गे यिद आप िबजनेस डे वलपमट

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ए ज यिू टव यानी यवसाय िवकास कायकारी बनने का िवक प चुनते ह। मगर मेरा ताव
वीकार करने पर आपको तन वाह तो नह िमलेगी और एक छोटे आदमी बनकर मेरे अंदर
डे क जॉब करते रहगे।’’
मने मन ही मन ताव पर सावधानीपवू क िवचार िकया। मने बस एक िकया:
‘‘ प कहँ तो म एक यवसायी बनना चाहता हँ। यही वजह है िक मने यवसाय िवकास पद
के िलए आवेदन िदया था तािक यवसाय बढ़ाने क कला जान सकँ ू । यह ऑिफस म बैठे—बैठे
कैसे िसखँगू ा?”
‘‘म तो एक यवसायी हँ, यह बात परू ी दुिनया जानती है। मगर बहत—से लोग इस बात से
बेखबर ह िक म एक िश क भी हँ। िश क पेशा से मुझे बहत ेम है।’’ उ ह ने मु कुराते हए
कहा।
चेयरमैन बोलते गए, ‘‘यही कारण है िक म िविभ न िव िव ालय और बंधन सं थान म
अितिथ या याता के प म जाता हँ। अपना ान बाँटकर मुझे आनंद िमलता है लेिकन आप
जैसे अ छे छा तो िवरले ही िमलते ह। आपको एक छा के प म अपनी ितब ता िदखानी
होगी और म आपको यवसाय के बारे म सब कुछ बताऊँगा।’’
या कहना! मेरे िलए एक और गु — और वो भी यवसाय गु ।’’ मुझे अथशा का एक
ोक याद आया :

‘‘िव ान म िश ण और अनशु ासन तभी ा होते ह जब उस िव ान


के िश क क स ा के ित समपण होता है। (1.5.6)

व ृ सहयोग नामक पाठ म चाण य हम िश ा देते ह िक िविभ न े के अनुभवी लोग से


हम ान ा करते ह।
मुझे िव के सबसे बड़े उ ोगपितय म से एक से य तौर पर यवसाय का ान ा होने
वाला था। म इससे अिधक अपने िसतार को या ध यवाद दे सकता था।
मने आ ासन िदया, ‘‘म तैयार हँ, सर!’’
म जानता था िक वे मेरी सहमित चाह रहे थे तब इतने मह वपण ू यि का एक घंटे से
अिधक समय इस चचा म य न क ं ?
‘‘ठीक है, म अपने एच.आर. टीम को तु हारे िलए संशोिधत ताव भेजने के िलए कहँगा —
चेयरमैन के ऑिफस म मैनेजमट ेनी के प म।’’ उ ह ने ऐसा कहा और उनक सिचव उनका
िनदश लेते रहे ।
‘‘मगर, याद रहे , वेतन नह ।’’ हम दोन हँसने लगे।
पहले क िनयुि म जो मेरा कायभार हण ितिथ थी वही बनी रही। लेिकन अंतर केवल
इतना था िक मुझे चेयरमैन के ऑिफस म पहले रपोट करना था।

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म वहाँ समय से पहले पहँच गया था। मने वयं को िविश पाया। सुर ा गाड को बता िदया
गया था िक मुझे सीधे चेयरमैन के कायालय म जाने िदया जाए। म बैठकर अपने आदरणीय
चेयरमैन क ती ा करने लगा।
जब वे आए तो उ ह ने सबके बीच सबसे पहले मुझे देखा। ‘‘ऑिफस म पहले िदन आपका
वागत है।’’ उनके श द से दूसरे को संकेत िमल गया िक म ही िबग बॉस के साथ काम करने
वाला इंसान हँ।
उ ह ने मुझे अपने ऑिफस के अंदर आने के िलए कहा और अपने तीन सहायक के साथ जो
वे दैिनक समी ा करते थे उस टीम का िह सा बनने का यौता िदया। अ य मु पर चचा करने
के साथ—साथ उ ह ने कुछ रपोट पेश िकए, बैठक के काय म क चचा क और या ा—वतृ ांत
भी सुनाए गए। म जानने क कोिशश कर रहा था िक चेयरमैन के ऑिफस क काय— णाली
या थी। उसी व त एक सहायक ने कहा, ‘‘सर, नए िश ु आ गए ह। उ ह संबोिधत करने का
समय हो गया है।’’
उ ह ने मेरी ओर देखा, ‘‘चलो चल।’’
जैसे ही हम िल ट म घुसे वैसे ही चेयरमैन ने मुझसे कहा, ‘‘म सभी नए भत िकए गए लोग
को पहले िदन संबोिधत करना चाहता हँ तािक म उ ह कंपनी के उस िवज़न से अवगत करा सकँ ू
िजसके बल पर इसने इन वष के दौरान गित क है।’’
िल ट से बाहर होने पर हम एक कमरे म ले जाया गया जहाँ िविभ न ोफाइल के भत िकए
गए ५० नए लोग बैठे हए थे। मने पाया िक उनम से कुछ वही लोग थे िज ह ने मेरे साथ
सा ा कार म भाग िलया था।
उन सबको अचरज हो रहा था िक म उन सबके बीच बैठने के बजाय चेयरमैन के साथ आया
हँ।
म उस लड़के के मु कुराते हए चेहरे को देखकर खुश हआ िजसे अंितम ण म मेरे थान पर
भत क गई। मुझे याद आ रहा था िक वह मुझसे िकतना हताश होकर कह रहा था िक उसे
नौकरी िकतनी अिधक आव यकता थी।
भत िकए गए सभी नए लोग के चेहरे पर वही भाव थे जो भाव पहले िदन चेयरमैन के साथ
मुलाकात म मेरे चहरे पर थे। वे सभी ायु अचरज म थे िक वे उसी यि के सामने ह िज ह
संपणू उ ोगजगत स मान करता है।
उ ह ने कंपनी के ि कोण एवं भत िकए गए लोग से कंपनी क अपे ा िवषय पर लगभग
आधे घंटे तक भाषण िदया। उसके बाद उ ह ने लोग से पछू ने के िलए कहा। उ ह ने के
उ र अनौपचा रक लहजे म सहज भाव से िदया।
इससे हम सभी उनके साथ खुद को सहज महसस ू कर सके और लगा िक हम उस िवशाल
संगठन का िह सा बन गए ह।
उ ह ने अपने भाषण का समापन करते हए कहा, ‘‘म उ मीद करता हँ िक यह आप सबके
िलए िसखने का एक बहत बड़ा अवसर होगा और आप सभी कंपनी के िवज़न को फै लाने वाले
दूत ह गे। याद रहे िक हम केवल यवसाय नह करते, बि क अपने िविभ न यवसाय के

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मा यम से समाज क सेवा करते ह।
वहाँ से जाते व िफर मुझे चेयरमैन के साथ उनके ऑिफस वापस जाने के िलए कहा गया।
उ ह ने मेरी ओर देखकर कहा, ‘‘तु हारे िलए मेरा एक ही िनयम है, केवल एक िनयम।’’

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31
चेयरमैन के पास िश ण

‘भ
यवसायी’ क अवधारणा मेरे मन म अब प हो गई थी। पहले आ म के यासी
और बाद म हमारे चेयरमैन — दोन समाज क सेवा करना चाहते थे।
चेयरमैन का केवल एक ही िनदश था : ‘‘अब से तुम मेरे से कोई भी सवाल नह
करोगे। तुम जो भी जानना चाहते हो वह तुम देखकर समझ सकते हो।’’
मुझे इस िनदश से थोड़ा आ य हआ। अब मुझे चुपचाप वही काम करना था जो मुझसे कहा
जाता, उससे अिधक कुछ भी नह ।
चेयरमैन ने इस बात को इस प म प िकया, ‘‘जब तु हारा िदमाग से भर जाता है
तो यह बंद हो जाता है। िसखने के िलए धैय चािहए। जब एक बार धैय धारण करना सीख जाओगे
तो तु ह सारे के उ र िमल जाएं गे।’’
उ ह ने मेरे मन क उलझन को भाँप िलया। उ ह ने कहा, ‘‘िचंता मन करो। बाद म तु ह
सवाल करने क आजादी िमलेगी। लेिकन म तुमसे कहंगा िक ये कब पछू ने ह। तब तक
कंपनी के हर काम, हर गितिविध से कुछ—न—कुछ सीखो।”
इसके बाद अगली बैठक का समय हो गया और उ ह ने मुझे साथ चलने के िलए कहा।
कई िदन तक म उनके साथ छाया क तरह उनका अनुसरण करते रहा। म उनके िनदश का
पालन करते रहा तथा मक ू पयवे क क भिू मका म बना रहा। वे मुझे बैठक और सामािजक
काय म , अपने घर और िजस लब के सद य थे वहाँ, और यहाँ तक िक उस आ याि मक
संगठन म ले गए जहाँ पर वे स ाह म एक बार भगवदगीता िसखने जाते थे — सब जगह ले
गए।
मने उनक कंपनी म काम करने के िलए वाइन िकया था। लेिकन उ ह ने अपनी परू ी
दुिनया — सावजिनक एवं िनजी। मेरे मन म अनेक सवाल खड़े हए लेिकन मने खुद पर
िनयं ण रखा।
बाद म िकसी दूसरे यि के साथ बातचीत म वे य अथवा अ य प से मेरे सवाल

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का जवाब दे िदया करते थे। म जानता था िक वे एक अ छे िश क ह, केवल उनके िसखाने क
शैली अलग है।
छ: माह बीत गए। एक ओर म चेयरमैन से जुड़ा हआ था मगर कुछ नह रहा था तो दूसरी ओर
म िव िव ालय म सं कृत क ाओं म पढ़ने जाया करता था। इस महान भारतीय भाषा का ान
ा करने के िलए म किठन प र म कर रहा था।
इन छ: महीन के दौरान जो हआ वह जीवन को बदल देने वाला था। मुझे नह मालमू िक ऐसा
कब हआ, लेिकन हो गया। मने खुद के अंदर बहत प रवतन महसस ू िकया। म अिधक िवचार—
िवमश करने लगा था। म िवचार करता था िक लघु एवं वहृ त् तर पर यह यवसाय समहू कैसे
काम करता है। मने अथशा के पुन: अ ययन के िलए अपनी सं कृत िश ा का उपयोग िकया।
अब म चाण य के कहे श द म नए अथ ढूँढ़ पाता था।
म िनवाध प से येक िदन नोट्स तैयार करते जा रहा था। येक िदन ऑिफस म म जो
कुछ िसखता था उसे िलख लेता था। सं कृत म बढ़ रहे अपने ान के िलए मेरे पास अलग उ र
—पुि तकाएं हआ करती थ ।
इस समय तक २५ से अिधक नोटबुक तैयार हो गए। मने अथशा का एक ोक िलखा जो
एक िश क का छा को िनदश था :

िदन–रात के बचे हए समय म उसे नई बात िसखनी चािहए और जो पहले


सीखी हई बात ह उ ह आ मसात करना चािहए और जो नह सीखी गई
ह उनका बार–बार वण करना चािहए। (1.5.15)

म सतत सीख रहा था। म हर ण का आनंद ले रहा था। म िकसी इ तहान क तैयारी नह
कर रहा था बि क जीवन क चुनौितय से सामना करने के िलए तैयारी कर हा था।
एक िदन चेयरमैन ने मुझसे अचानक कहा, ‘‘अब तु हारे मन म जो हो उसे पछ
ू सकते
हो।’’
यह बात मुझे हैरत म डालने वाली थी। उस समय तक मेरा मन सीख चुका था िक से
मन म चलने वाली आकुलता से कैसे बचा जाए। लेिकन पहला ू ने के िलए मँुह खोलने म
पछ
थोड़ा समय लग गया।
‘‘ यि धन का सज ृ न कैसे करता है?’’ इस का उ र म उसी समय जानना चाहता था
िजस समय म पहली बार यहाँ आया था।
उ ह ने कहना ारं भ िकया, ‘‘धन का वाह चार चरण म होता है। पहला है धन क पहचान,
दूसरा धन का सज ृ न, तीसरा धन का बंधन और िफर धन का िवतरण।’’ उ ह ने मेरे िलए राह
तैयार कर दी।
‘‘यिद कोई धनी बनना चाहता है तो उसे पहले अवसर क पहचान करनी होगी। सामा य तौर

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पर लोग अवसर क खोज बाहर करते रहते ह। लेिकन यास इसके िवपरीत होने चािहए। अपनी
ितभा और शि य को पहचानो। वह ई र द संपदा है। हम म से अिधकांश लोग इसक
पहचान करना भल ू जाते ह।’’
उ ह ने आगे कहा, ‘‘अवसर िमल जाने मा से तुम धनी नह बन जाते। धन के सज ृ न के
िलए किठन प र म क आव यकता होती है। उदाहरण के तौर पर, यिद सोने के खान का पता
लग जाता है तो या इससे हम सोना िमल जाता है? इसके िलए खनन ि या जानने क
ज रत होती है, िफर उस क चे सोने को संशोिधत करना पड़ता है। यह सब किठन प र म के
प रणाम से ही होता है।’’
इसके बाद उ ह ने मुझे अपना अनुभव सुनाया : ‘‘एक बार एक समाचार रपोटर ने मुझसे मेरे
नए यवसाय के बारे म पछ ू ा। ‘सर, आपका यह यवसाय तो रातोरात सफल हो गया।’
चेयरमैन के चहरे पर नफरत का भाव उभर आया। ‘‘लोग धन सज ृ न के काय को कैसे ह के
—फु के ढं ग से लेते ह।
उ ह ने उ र िदया, ‘‘जी हां, हम रातोरात सफल हो गए। लेिकन यह रात बड़ी ल बी थी।’’ हम
दोन हँस पड़े ।
उ ह ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘हम जो धन सिृ जत करते ह उसके उिचत तरीके से बंधन
क ज रत रहती है। धन क बचत करो, इसका िनवेश करो, इसे किठन समय के िलए बचाकर
रखो। धन के सज ृ न के बाद हम इसका सही बंधन नह करते ह। हमारा धन एक समय के बाद
समा हो जाता है। हम धन के िलए जीवन पय त यास नह करते। आपका धन बढ़ते रहना
चािहए।’’ मुझे उनक सलाह पसंद आयी।
िफर यह गहरी साँस लेते हए उ ह ने कहा, ‘‘अंतत: धन दूसरे को िदया जाना चािहए — यह
धन का िवतरण कहलाता है।’’
मेरे मन म दूसरे भी खड़े हो रहे थे। लेिकन पछ
ू ने से पहले ही उ ह ने भांप िलया और
कहा, ‘‘अब और नह ।’’ म चुप हो गया। लेिकन मुझे नह मालम ू था िक मेरे अचरज का एक
और कारण है।’’
‘‘मेरे ऑिफस म अब तु हारा िश ण समा हो गया। कल से तुम हमारे खिनज एवं धातु
िवभाग म काम करोगे। इसके बाद तुम उसे िवभाग के सी.ई.ओ. के पास रपोट करोगे, मुझे
नह ।’’
उ ह ने फोन उठाकर कहा, ‘‘सी.ई.ओ. को मेरे पास भेजो।’’

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32
मेरे नए बॉस


िनज एवं धातु भाग के सी.ई.ओ. एक अनुभवी यि थे। उ ोग जगत म उ ह काय को
गित देने वाला यि माना जाता था। वे एक उ च िश ा ा यि थे और उ ह
दुिनयाभर क या ा का अनुभव था। उनक िकसी िट पणी का असर शेयर बाजार के
उतार-चढ़ाव पर पड़ता था।
चेयरमैन ने सी.ई.ओ. से कहा, ‘‘जैसा िक कल बोड मीिटंग म मने आपसे कहा था, वह कल
से आपक टीम का िह सा बन जाएगा।’’
‘‘सर, उसके काम के बारे म आपके ऑिफस से मुझे सकारा मक रपोट िमली है। यहाँ से आगे
का काम म देख लँग ू ा।’’ मेरे ित यह सी.ई.ओ. का थम उदगार था।
िकस काम क वे बात कर रहे थे? म तो एक मक ू ा था। मगर उस समय मुझे पछ
ू ने
क इज़ाजत नह थी। इसिलए म अपने और सी.ई.ओ. क िट पणी दोन को नजरअंदाज़ कर
िदया।
‘‘तुम माह म एक बार मुझसे िमलोगे। हालांिक तुम सी.ई.ओ. को रपोट करोगे लेिकन म
तु हारी गित पर नजर रखँग ू ा।’’ बहत खबू , चेयरमैन के पास हर िकसी पर नजर रखने का
अपना तं होगा। ऐसा मने महसस ू िकया।
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘कल से आपको वेतन िमलेगा। ये अपको िव तार से बताएं गे।’’
उ ह ने सी.ई.ओ. क ओर संकेत करते हए कहा।
‘‘सबसे बड़ी िदलच प बात यह है िक हमारे सी.ई.ओ. से आप कोई भी पछू सकते ह।
इसक कोई सीमा नह है।’’ हम तीन हँसने लगे।
जैसे ही मुझे चेयरमैन के ऑिफस से हटाकर सी.ई.ओ. के ऑिफस म काम क िज मेदारी दी
गई, वैसे ही मने महसस ू िकया िक मेरे िदमाग को न पछ ू ने के िलए तैयार कर िदया गया है।
सच कहँ तो इससे मेरे ऊपर कुछ भी फक नह पड़ा।
जब म वापस घर आया तो मने महसस ू िकया िक अगले माह से वेतन िमलने क खबर से मुझे

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िकसी कार क खुशी नह िमल रही थी। इस बात से परू ी तरह से साकां होते हए भी म अंदर से
पांत रत हो चुका था।
अगले िदन म सी.ई.ओ. के कायालय म गया। चेयरमैन के क क तुलना म सी.ई.ओ. का
क छोटा था लेिकन इसक भ यता उतनी ही थी। उनम संगठन क स ा चेयरमैन जैसी ही थी।
मुझे चाण य के अथशा क बात आयी िक मं ी को भी अपने े म राजा के समान ही
अिधकार ा होता है।
इस समहू के संपणू यवसाय म खिनज एवं धातु भाग का लगभग ४० ितशत योगदान था।
इसिलए िकसी भी मायने म इस कंपनी को छोटा नह समझा जा सकता था। इसम हजार
अिभयंता, तकनीक िवद और अ य कार के कमचारी इसम कायरत थे। इसका देशभर म
ऑिफस फै ला हआ था और िवदेश म भी चालन था।
जब मने काय के िलए रपोट क तो सी.ई.ओ. के वचन इस कार थे : ‘‘नए ऑिफस म
आपका वागत है। ये रहा आपका कायभार हण हे तु ताव। इसम कंपनी क नीितय का
उ लेख है। मुझे आशा है िक आपको कंपनी के शत एवं िनबंधन आपके अनुकूल ह गे।’’ उ ह ने
मेरे हाथ म कागजात थमा दी।
म उसको यानपवू क पढ़ा जैसे िक वह मेरे िलए वा तव म मह वपण ू ह । मुझे पद िदया गया
वर बंधक — चालन यानी सीिनयर मैनेजर—ऑपरे शन। मेरा वेतन चार गुणा अिधक था
िजतना िक मेरा ारं िभक वेतन होता। यह मेरे िलए सुखद आ य था। म जानता था िक यह
कंपनी काफ अ छा वेतन देती है लेिकन चार गुणा अिधक तो मेरे जैसे कम उ के लड़के के
िलए वाकई अिधक था। मने चुपचाप ताव पर ह ता र कर िदया और ताव—प रख िलया।
‘‘तो ठीक है, अब आप अपना पछू सकते ह।’’ यह आदेश जैसा ही था।
अंतत: मने पछ
ू ने का साहस जुटाया। इस विृ को म भलू चुका था बॉस क उपि थित म
पछ
ू ने का।
‘‘सर, इस े के िलए मेरे पास कोई तकनीक ान नह है। इसके अित र म यहाँ पर
यवसाय िवकास िसखने के िलए आया था। आपने मुझे यह पद कैसे िदया?’’
‘‘हमारे चेयरमैन एक अ ुत यि ह। उनम िकसी यि क खिू बय को पहचानने क
मता है, यहाँ तक िक उस यि को वयं अपने गुण का आभास न हो।’’ उ ह ने ऐसा कहा।
‘‘जब वष पहले म इस कंपनी म शािमल हआ तो मेरे पास कोई तकनीक यो यता नह थी।
लेिकन यह आप काम करते करते सीख लगे। तकनीक यो यता से यवसाय के िवकास म
सहायता िमलती है। और शु करने का सबसे अ छा तरीका होता है िक जमीनी तर पर
यवहा रक ान ा िकया जाए।
यही कारण है िक हमने आप को चालन म शािमल कर िलया है तािक आप हमारे यवसाय
क वा तिवकता से प रिचत हो सक। आपके काम म यापक तर पर मण शािमल होगा।
इसिलए आप अपने िव िव ालय के आचाय को उस अनु प सिू चत कर द। यिद आप क ा म
उपि थत नह हो पाते तो उ ह उलझाकर रख।’’ सी.ई.ओ. को हमारे स ाहांत सं कृत कोस क
जानकारी थी।

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मेरा जॉब गितिविधय से भरा हआ था। मुझे खदान म जाना पड़ता था जो िक दूर थ े म
ि थत थे, यहाँ तक िक जंगल म भी जाना पड़ता था। अनेक बार मुझे अपने गंत य तक जाने के
िलए घंट सड़क माग से या ा करनी पड़ती थी िजसम म धल ू —धस ू रत हो जाता था, यह मेरे म
एक बहत बड़ा प रवतन था।
ारं भ म यवसाय समझने के िश ण ा करने के बाद बाद मुझसे अपे ा थी िक म
सी.ई.ओ. को समय—समय पर िविभ न कार क रपोट स पँ।ू
छु ी के िदन म भी शायद ही म कभी घर पर रहता था। जब कभी म घर पर होता था तो
सं कृत क क ा करने जाता था और िजस क ा म नह पहँच पाया था उसके काम को परू ा
करने म लगा रहता था। मुझे ऑिफस और घर दोन जगह पर कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी।
एक साल से अिधक का समय हो गया था और मने एक स ाह क छु ी ली थी, वो भी
िव िव ालय म सं कृत क परी ा देने के िलए। हर िकसी के िलए यह आ य का िवषय था,
मगर म परी ा म अपनी क ा म थम आया।
म सं कृत के ोफेसर के पास गया। ‘‘सर, या म अब सं कृत एम.ए. म वेश ले सकता
हँ?’’ वे परू े वष के दौरान मेरे काय को बहत ही यान से देख रहे थे।
‘‘तु ह एम.ए. म वेश पाने के िलए अभी भी सं कृत म बी.ए. िड ी क आव यकता है। तु ह
बी.ए. दूसरे िवषय म है।’’
कुछ देर तक सोचने के बाद उ ह ने कहा, ‘‘ठीक है, कोस के िलए आवेदन दे दो। चँिू क तु ह
फांउडे शन कोस म थम थान ा हआ है और तु हारे पास अथशा म भारतिव ा पाठ्य म
परू ा करने का माण—प है, इसिलए म तु हारे िलए अ ययन सिमित के पास िवशेष सं तुित
कर सकता हँ। देखते ह िक वहाँ पर या होता है।’’
मने महसस ू िकया िक माण—प िकतना काम आ रहा है।
इस मोड़ पर मुझे गु जी क याद आने लगी।

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33
दो अ छी खबर


पने दो त से िफर से मुलाकात हई। इस बार हमने उस कॉलेज म िमलने का िनणय िलया
िजसम हमलोग पढ़ते थे, न िक छा ावास म। मुझे इन सबसे िमले हए बहत समय हो गया
था, हालांिक ये सब आपस म िनयिमत प से िमलते रहते थे।
दो त ने पछ ू ा, ‘‘तुम कहाँ लापता हो गए थे?’’
मने उ ह बताया िक िकस कार ऑिफस काम संभालने और अ ययन करने म म काफ
य त हो गया था और उ ह यह भी बताया िक एक बड़ी कंपनी म काम करना िकतना िश ा द
अनुभव होता है।
अब तक मेरे अंदर दो सहायक भी हो चुके थे। अपने बॉस को रपोट करने के साथ—साथ म
खुद भी बॉस बन गया था और दूसरे क रपोट लेता था।
मेरे सभी दो त कुछ न कुछ कर रहे थे। अब उ ह इस तरह के से जझ
ू ना नह पड़ता था
िक ‘‘जीवन म आगे या करने क योजना है?’’ इनम से कुछ नौकरी करने लगे थे; कुछ अपने
प रवार के यवसाय म शािमल हो गए थे। एक ने अकादिमक दुिनया म अपने कॅ रयर बनाने का
िनणय ले ली और पी—एच.डी. कर रही थी।
मने उसके साथ थोड़े और समय तक यह जानने के िलए रहा िक पी—एच.डी. म या होता
है। मने िकसी के पास अपनी यह इ छा य नह क िक म खुद िजस एम.ए. म वेश पाना
चाहता था उसे परू ा करने के बाद पी—एच.डी. करना चाहता था।
‘‘हमारे कॉलेज म एक संगो ी होने जा रही है। या तुम उसम भाग लेकर अपना आलेख
तुत करोगे?’’ इन श द से मुझे अथशा पर आयोिजत स मेलन क याद आ गई िजसम मने
आ म के आने के बाद व ा के प म भाग िलया था।
‘‘म परू ी तरह से कह नह सकता िक म संगो ी म भाषण दे सकता हँ। मुझे िवगत कुछ वष
से शोध का अ यास छूट गया है। म अपने काय म बहत य त रहा हँ। म नह जानता िक वा तव
म म कुछ योगदान दे सकं ू गा।’’ मने अपने िझझक के बारे म उसे बता िदया।

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‘‘यह कोई सम या नह है। तुम अथशा और वतमान समय के यवसाय म उसके उपयोग
के संबंध म व य दे सकते हो। यह एक अ छा िवषय हो सकता है। कुल िमलाकर, यह बंधन
पर संगो ी है। तुम आधुिनक प र य म ाचीन ान क ासंिगकता पर काश डाल सकते
हो।’’ मुझे अपने दो त का सुझाव अ छा लगा।
जब म घर पहँचा तो माँ ने मु कुराते हए कहा, ‘‘िव िव ालय के सं कृत िवभाग से तु हारे
िलए फोन आया था। उ ह ने कहा है िक तुम कल वहाँ पहँचकर एम.ए. म वेश ले सकते हो।’’
मुझे अपने कान पर िव ास नह हो रहा था। अ ययन सिमित ने एम.ए. म सीधे वेश के मेरे
अनुरोध को मान िलया है — वा तव म यह एक िवशेष मामला था। उसी समय एक दूसरा फोन
आया। सी.ई.ओ. कह रहे थे : ‘‘मुझे कल आपसे िमलना है। चेयरमैन का आपके िलए मह वपण ू
संदेश है।’’
दोन समाचार वागत यो य थे।
दूसरे िदन म तैयार होकर िव िव ालय म नामांकन करवाने के िलए गया। म सं कृत के
ोफेसर के पास गया और उ ह सं तुित करने के िलए ध यवाद िदया।
वे हँसने लगे, ‘‘म जानता था िक तु हारे मामले म अनुमित िमलना इतना आसान नह
होगा।’’ लेिकन वे प रणाम से संतु थे।
‘‘मगर, याद रखो िक एम.ए. करने के िलए बड़ी ितब ता चािहए। तु ह िनयिमत प से
क ा म उपि थत होना पड़े गा। तुम अपने कायालय के समय से इसका तालमेल िकस कार
बैठाओगे?’’
िबना िकसी संशय के मने उनसे कहा, ‘‘सर, इसके िलए िच ता करने क ज रत नह है। म
कर लँग ू ा।’’ उनको ध यवाद देने के बाद म अपने कायालय क ओर भागा जहाँ पर चेयरमैन के
साथ मेरी बैठक होने वाली थी।
जैसे ही सी.ई.ओ. और मने चेयरमैन के कमरे म वेश िकया वैसे ही हमने महसस ू िकया िक
यह हमारे काय क िनयिमत समी ा और सामा य प रचचा जैसी बैठक नह थी। चेयरमैन के
साथ ऑिफस म दो अ य लोग भी थे। वे बंधनदल के व र सद य थे। उ ह ने मु कुराकर मेरा
वागत िकया।
चेयरमैन ने कहना ारं भ िकया, ‘ि य व स, आपके िलए हमारे पास अ छा समाचार है।’’
एम.ए. म वेश पाने के अ छे समाचार के सुख का आनंद अभी ले ही रहा था तब म सोचने लगा
िक दूसरा अ छा समाचार या हो सकता है।
‘‘बोड ने तु ह खिनज एवं धातु भाग म पदो नत करके सहायक िनदेशक बनाने का िनणय
िलया है।
यह समाचार िकतना सुखद था!
सी.ई.ओ. ने कहा, ‘‘हमारी कंपनी के इितहास म तुम सबसे कम उ के यि इतने अ प
समय म इतने उ च पद पर पहँचने वाले हो।’’ म चेयरमैन से पछ
ू ने क आदत भल ू चुका था
मगर चेयरमैन को मेरे अ य के उ र देने क आदत पड़ गई।
‘‘तुमने अपने काम म काफ ितब ता का दशन िकया है। तुमने अ प समय म जो

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उपलि ध क है उसे ा करने म लोग को अनेक दशक लग जाते ह। तुमने न िसफ कंपनी क
गित म यापक योगदान िदया है बि क इस कार क मन:ि थित िवकिसत कर ली है िजसक
आव यकता एक अ छे यवसायी को होती है।’’ ऐसा उ ह ने कहा।
‘‘इस तरह यह मीिडया के िलए एक बड़ी खबर है। तुम िस हो जाओगे।’’ सी.ई.ओ. िविभ न
कार के टी.वी. सा ा कार के अ य त बन गए थे। इसिलए उ ह पता था िक इस बात को
यवसाय प कार एक सनसनीखेज खबर के प म लगे।
चेयरमैन के कायालय म ऊजा का तर बहत ऊँचा था; हर कोई मेरे काम क सराहना कर
रहे थे। लेिकन मेरे अंदर थोड़ा दुख था। अभी दूसरी बार पदो नित? मने वयं से िकया।
या म इसी काम के िलए कंपनी म आया था? मेरी िजंदगी ठीक—ठाक तरीके से चल रही
थी लेिकन या म ऐसी िजंदगी चाहता था? उ च पद का मतलब है और अिधक िज मेदारी। मने
जैसा काम अभी तक िकया है, उसी तरह से मुझे बार—बार काम करना पड़े गा। इससे िफर
पदो नित होगी।
यह अनवरत चलने वाला च था।
म कंपनी म यवसाय िसखने के िलए आया था, यहाँ पर नौकरी करने के िलए नह । साथ ही,
मने एम.ए. म वेश ले िलया था िजसे परू ा करने के िलए अिधक अ ययन क आव यकता थी।
मने गधे क तरह काम िकया था और अब इस गधे को अिधक भारी बोझ ढोना पड़े गा।
चेयरमैन ने कहा, ‘‘मने सी.ई.ओ. से कहा है िक वे सभी औपचा रकताओं को परू ा कर ल।
आप नई भिू मका के िलए तैयार हो जाओ।’’
हमलोग चेयरमैन के कमरे से बाहर आ गए। सी.ई.ओ. काफ खुश थे। उ ह ने कहा,
‘‘नौजवान, मुझे आप पर गव है। आपने कर िदखाया। बधाई हो।’’
उनसे आँख िमलाए िबना मने धीमे वर म कहा, ‘‘सर म यागप देना चाहता हँ।’’

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34
जुड़ाव


गले िदन सुबह म म चार बजे ही जग गया। म इतने सवेरे जागता नह था। मुझे देर रात
तक काम करने क आदत पड़ गई थी। अल सुबह उठने पर म तरोताजा महसस ू नह
करता था।
वह िदन कुछ अलग तरह का था। मने धड़ी देखी तो अचरज करने लगा िक मुझे इतने सवेरे
जगने क या ज रत थी। म िफर से िब तर पर लेट गया। हालांिक मने ज द ही महसस ू िकया
िक मुझे अब सोने क ज रत नह है।
म उठ गया और यायाम िकया। मेरे अंदर सय ू नम कार करने क ऊजा संिचत थी। नान
करने के बाद मने अपनी दैिनक पज ू ा क । उसके बाद िदनभर काम करने के िलए तैयार हो गया।
मुझे लगा िक मेरे पास काफ समय है।
म पहली बार यान म बैठ गया। मने वयं को अंत थ पाया। जब मेरी आँख खुल तो मने
उगते हए सरू ज को देखा। उगते हए सय ू को देखना शहरी लड़क क सं कृित म नह है। उगते
हए सरू ज को िनहारना एक िद य अनुभव था।
सरू ज के उगते और रोशनी के फै लते ही मने महसस ू िकया िक मेरे अंदर का बालक एक
प रप व यि बन गया है।
माँ मेरे कमरे म आकर बोली, ‘‘ऐसा या हो गया?’’ उ ह आ य हो रहा था। उ ह ने पछ ू ा,
‘‘ या तु ह कह जाना है? तुम इतने सवेरे य जग गए?’’
म मी मेरे अिनयिमत या ाओं क अ य त हो चुक थी — सुबह सवेरे हवाई जहाज पकड़ना,
दूसरे शहर म जाने के िलए दरवाजे पर कार का खड़े होना, देर रात घर लौटना। केवल एक ही
बात वह पछ ू ती थी िक मेरे िलए खाना बनाकर रखना है अथवा नह ।
म यह सब जानता था और मने कहा, ‘‘िच ता मत करो। हमलोग उिचत समय पर ना ता
करगे।’’
मने अपने घर पर िकसी को यह दुखद समाचार नह िदया िक मने नौकरी छोड़ने का िनणय

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िलया है। लेिकन मुझे आगे या करना है, इस संबंध म कोई ठोस िनणय मेरे मन म अभी भी नह
हआ था। म जानता था िक मुझे यवसाय करना था लेिकन यह िनि त नह था िक िकस कार
का यवसाय करना है।
चेयरमैन ने बाद म कहा, ‘‘म इस बात से वािकफ था िक तुम मेरी कंपनी को छोड़ दोगे,
लेिकन मुझे इस बात क अपे ा नह थी िक तुम अचानक ही छोड़ दोगे।’’ वह मेरे ित िचंितत थे।
‘‘तु ह पदो नत करने का िनणय मेरा नह था। सी.ई.ओ. ने इसक सं तुित क थी और बोड
ने इसे मंजरू कर िलया। म जानता था िक तुम जहाँ वहाँ काम कर िदखाओगे। तुमने मेरे अनुमान
को सही िस कर िदया। लेिकन भिव य म जो काम तुम करना चाहते हो उसम भी म तु हारी
मदद करना चाहता हँ।’’
‘‘सर, मने यहाँ पर बहत कुछ सीखा है। आप मेरे बॉस से अिधक मेरे मागदशक थे। मुझे संपण

जीवन आपके मागदशन क आव यकता रहे गी। इस समय मेरे सामने यह प नह है िक म
या क ं गा लेिकन मेरे िलए यह ता कािलक िचंता का िवषय नह है। म कुछ समय वयं के
साथ यतीत करना चाहता हँ, म अवकाश चाहता हँ।’’ मने आ मिव ास के साथ यह बात कही।
उ ह ने सहमित के साथ अपना िसर िहलाया। ‘‘जाओ, अपने दय क पुकार सुनो। यिद कभी
भी तु ह मेरी आव यकता महसस ू हो तो मुझे तु ह सहायता करके खुशी होगी।’’
उस िदन म उस आलेख को तैयार करने का म कर रहा था िजसे पढ़ने के िलए मेरे दो त ने
मुझे आमंि त िकया था। मने उस आलेख को तैयार करने हे तु किठन प र म िकया िजसका
शीषक था : कौिट य के अथशा म बंधन के मल ू िस ांत।
जब म उससे िफर िमला तो वह बोली, ‘‘मुझे यक न है िक यह अलग तरह का काम होगा।’’ म
उससे अपने शोध प को प रमािजत करने म उसका मागदशन चाह रहा था। आलेख परू ा करने
के बाद मने उसे संगो ी के िलए तुत कर िदया जो िक कुछ ही िदन के बाद आयोिजत होने
वाली थी।
‘‘अथशा म तुम पी—एच.डी. य नह कर लेते?’’ उ ह ने सुझाव िबना यह जाने दे दी िक
मने पहले से यह काम करने का मन बना िलया था।
म उसे ‘डॉ टर’ कहकर संबोिधत करता था। मेरी दो त अपना शोध काय आधा संप न कर
चुक थी। अपना शोध काय परू ा करने पर उ हे पी—एच.डी. क उपािध िमलती। उसके बाद उसे
डॉ टर कहा जाने लगता, िचिक साशा संबंधी डॉ टर नह , बि क अकादिमक डॉ टर।
‘‘अभी इसम बहत देर है। अभी से मुझे डॉ टर मत कहो।’’
मुझे उसक िति या अ छी लगी और मने और अिधक िखझाया, ‘‘डॉ टर ..... मैडम, यह
सुनने क आदत डाल लो य िक लोग तो आपको डॉ टर ही कहगे। कुछ ही समय म यह बात
हक कत म प रणत हो जाएगी।’’ म उसम आ मिव ास जगाना चाहा। उसने एक ऐसे िम को
पाकर मु कुरायी जो उसके पी—एच.डी. परू ा करने और अकादिमक कॅ रयर म जाने क कामना
से अवगत था।
संगो ी म मेरी आलेख तुित अ छी रही और लोग ने जमकर उसक ता रफ क । बंधन
िवभाग के मुख ने मुझे अलग ले जाकर कहा, ‘‘आपको अपने शोध काय म कौिट य के दशन

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पर काम करना चािहए।’’
मेरे डॉ टर िम ने आ य य करते हए कहा, ‘‘तुम जानते हो वे िवभागा य ह और वे
आलोचना करने के िलए िस ह। यिद उ ह ने तु हारी शंसा क है तो यह वाकई बहत अ छी
बात है। बधाई हो!’’
मने अपनी शेखी बधारते हए कहा, ‘‘िन संदेह, म जो कुछ करता हँ, वह बहत अ छी तरह से
करता हँ।’’
उसने दूसरी ओर देखते हए कहा, ‘‘ओह तुम और तु हारा बढ़ा हआ अहंकार।’’
हमलोग ठहाका मारकर हँसने लगे। म बहत खुश था िक अपने शोध क दुिनया म अपना
थान हण करने जा रहा था। उसक आँख म झांकते हए कहा, ‘‘ध यवाद डॉ टर।’’ मने एक
जुड़ाव महसस ू िकया। हमारे बीच कुछ ण तक पण ू मौन छाया रहा जैसे व त ठहर सा गया हो।
मने पछू ा, ‘‘ या तुम मेरे से शादी करोगी?’’
हमारे बीच मौन जारी रहा........

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35
आगे क राह

डॉ बिटरकऔरजो मने एक ही कॉलेज से ेजुएशन िकया था। हमलोग न िसफ एक ही क ा म थे


मेरे दो त थे वही उसके भी दो त थे। पहले म कभी यह नह जानता था िक यह
वह लड़क है िजससे म शादी करना चाहँगा।
उसके सामने ताव रखने के बाद मुझे खुद पर आ य हआ। सब कुछ इतना अचानक हो
गया िक मने प रणाम पर तो िवचार िकया ही नह । इससे भी बड़ी बात यह थी िक उसने मेरे
ताव को तुरंत वीकार कर िलया।
लोग कहते ह िक जब तु ह िकसी से यार हो तो उसे ताव देने के अवसर म चक ू नह
करनी चािहए। हालांिक जब उसने जीवन संिगनी बनने के मेरे ताव को वीकार कर िलया तो
मने महसस ू िकया िक मेरे जीवन क अभी कोई िदशा ही नह है। तब म िववाह जैसी बड़ी
िज मेदारी क बात कैसे कर रहा हँ?
मुझे अपराध बोध हआ और म वापस उसके पास गया, ‘‘म तुमसे यार करता हँ लेिकन तुम
अपना मन बदलने और िकसी दूसरे को चाहने िलए आज़ाद हो।’’ म चाहता था िक वह अपने
िनणय पर पुनिवचार करे ।
‘‘ या बात है? या तु हारे मन म कोई और लड़क है?’’
‘‘नह , तु ह वह हो िजसे मने अपने जीवन म यह ताव िदया है लेिकन म नह चाहता िक
हमारे संबंध असफल हो जाएं ।’’ म परे शान था। ‘‘अभी मेरा जीवन िदशाहीन है। लोग मुझे इतनी
बड़ी कंपनी म इतना बड़े काम को छोड़ने पर मख ू कह रहे ह। मेरी जगह पर कोई ऐसा सुनहला
जॉब पाकर शादी कर ली होती लेिकन म तो अभी यह भी नह जानता िक म आगे या क ं गा।’’
उसने मेरे कंधे पर हाथ रखते हए कहा, ‘‘िच ता मत करो। म जानती हँ िक तुम एक िदन
कुछ बड़ा करोगे। तुम आज जो हो उसके िलए मने तु ह पसंद नह िकया है, बि क तु हारे अंदर
जो मता है उसके िलए मने तु ह चाहा है ..... जो िक वा तव म बड़ी मता है।’’
म उसके साथ अपना िवचार साझा करना चाहता था, ‘‘तुम जानती हो िक मेरे अंदर एक
मखू तापण ू सपना है। म दुिनया का सबसे धनी आदमी बनना चाहता हँ।’’ म इंतजार कर रहा था

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िक वह मेरी बात पर हँसे।
मगर उसने कुछ यँ ू कहा, ‘‘हमलोग पहले से ही धनी ह। हम एक—दूसरे के साथ जो ह। धन
होना तो बस समय क बात है।’’ सामा य तौर पर भारतीय नारी पर िववाह का बहत बड़ा
सामािजक दबाव होता है। वह अपनी पी—एच.डी. परू ा करने तक इंतजार कर सकती थी। और
तब तक मुझे जीवन अगले कदम के बारे म िनणय लेने के िलए समय िमल जाता।
इस दौरान मुझे कुंभ मेला जाने का अवसर ा हआ। यह मेला एक थल पर मानव का
िवशाल संगम होता है। इसका प रवेश िद य था। म अपने दो त के साथ पिव गंगा म नान
करने गया था।
जैसे ही हमलोग नदी के तट पर िवचरण कर रहे थे वैसे ही हमने अपने साथ िवदेिशय क
एक टोली को टहलते हए देखा। उनके साथ एक या ा गाइड भी था जो उ ह कुंभ मेले के दौरान
ली गई त वीर के बारे म बता रहा था।
कुछ देर टहलने बाद हमलोग तरोताजा होने के िलए एक चाय दुकान पर चाय लेने के िलए
के थे। वह पर वे िवदेशी लोग भी आ गए। हमलोग ने एक—दूसरे को अिभवादन िकया और
िफर ग प—श प करने लगे।
उनम से एक ने कहा, ‘‘हमलोग भारत म कहाँ क या ा कर? हमारे पास हर जगह क
सचू ना उपल ध है। मगर या आपको ऐसा कोई थान मालम ू है जहाँ हम असली भारत को
महसस ू कर सक और उसे अपने कैमरे म कैद कर ले जाएं ?’’
‘‘आप कभी भी कैमरे म असली भारत को कैद नह कर पाएं गे।’’ मने उ ह यं या मक लहजे
म कहा।
‘‘भारत महज देखने और या ा करने क चीज नह है। आपको भारत को अलग नज रए से
देखने क ज रत है। इसके पास वह ऊजा है जो आपको पांत रत कर सकती है। आप जहाँ
कह भी जाते ह, वहाँ उस ऊजा को महसस ू कर, यह भारत का आ याि मक प है।’’ िवदेशी
लोग मेरे उ र से िवि मत थे।
‘‘भारत म ताजमहल से लेकर अजंता और एलोरा क गुफाएं ह। लेिकन इसके पास आपको
देने के िलए इितहास और दशन भी ह। यहाँ पर िविवध कार क भो य सामि यां और पव—
यौहार ह मगर इसके पास ऐसी सं कृित है जो आ याि मक है।’’ म देश के ित अपने गौरवपण ू
भाव का बखान करते रहा।
उसम से एक पयटक ने पछ ू ा, ‘‘ या आप या ा गाइड अथवा वै ेल एजट ह?’’
मने मु कुराते हए कहा, ‘‘इनम से कुछ भी नह ।’’ हालांिक इसके बाद म गंगा िकनारे ि थत
अपने िशिवर म चला गया और गहन िचंतन म डूब गया।
मने भारत म आने वाले पयटक क सं या पर िवचार िकया और उन पयटक को यहाँ के
इितहास एवं स कृित से अवगत कराने वाले पयटन गाइड मांग पर िवचार िकया। अ त होते सय ू
क िकरण मेरी आँख पर पड़ी। मुझे पयटन गाइड का मांग एवं आपिू त पर िवचार आने लगे।
मने डॉ टर को फोन िकया, जो िक हमारे साथ नह आयी थी। मने उ ेिजत होकर उसे
बताया, ‘‘सुनो, मुझे जवाब िमल गया।’’

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वाह समझने का यास करने लगी, ‘‘कौन—सा जवाब?’’
‘‘मेरा मतलब है िक िजस से म अभी तक जझ ू रहा था िक मुझे कौन—सा यवसाय
करना है। म वै ेल संबंधी यवसाय करना चाहता हँ।’’ जब मने यह बात कही तब मेरे अंदर
संतुि का भाव था।
लेिकन दूसरी ओर परू ी तरह से चु पी थी।
‘‘म वापस आकर इस बारे म िव तार से बताऊँगा।’’ म उस समय इससे अिधक कुछ भी नह
कहना चाहता था।
उस रात जब मेरे सभी दो त सो गए थे तब म गंगा के तट पर टहल रहा था। म एकांत था
लेिकन अकेला नह महसस ू कर रहा था। म वयं को जीवनी शि से ओत ोत महसस ू कर हा
था।
म जानता था िक माँ गंगा ने लाख लोग को अपने अंदर क पुकार सुनने के िलए े रत
िकया है। गंगा महज एक नदी नह है। इसे एक ऋिष ने तप या करके वग से धरती पर लाया
था। अनके युग से यह नह वािहत है और अपने संपक म आने वाले लोग को पावन करती रही
है।
कुंभ मेला म, माँ गंगे क िद य उपि थित म और िवदेिशय क टोली के साथ अनौपचा रक
बातचीत म मुझे आगे क राह िमल गई।

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36
यवसाय योजना

ने पयटन उ ोग, इसके िव — यापी झान और इसक चालन यव था पर शोध िकया।


म मने पाया िक कुछ देश क संपणू अथ यव था पयटन पर ही िनभर है।
लोग िविभ न कारण से या ा करते ह — साहसी या ा, िश ा, यवसाय अथवा िव ांित के
िलए। भारत म पयटक के आने के बहत—से कारण ह।
िव पयटन म भारत म आने वाले पयटक का ितशत बहत ही कम है। लेिकन यहाँ पर
पयटन क सं या िवराट है।
मने इस े म यवसाय क संपण ू संभावना को कागज पर उकेड़ा और उसे अपने डॉ टर के
सामने तुत िकया। मने कहा, ‘‘इस े म िवशाल संभावना है। भारत म इस समय बहत—से
वै ेल एजट ह लेिकन सही मायने म अ छे पयटन गाइड अथवा ऑपरे टर का अभाव है। हम इस
े का वहृ त प म िवकास कर सकते ह।’’
ू ा, ‘‘इस यवसाय म िनवेश कहाँ से आएगा?’’
उसने िबना िकसी उ साह के पछ
‘‘यह सव म प है। इस यवसाय के थम चरण म हम िकसी कार के िनवेश क ज रत
नह है।’’ वह तो िव कुल िमत हो गई। तुम िकस कार िबना िनवेश के यवसाय करोगे?
मने उससे कहा, ‘‘पयटन उ ोग का सबसे अ छा प यह है िक आपको ाहक पहले
भुगतान करता है और उसके बाद आप उसे सेवा दान करते ह।’’
वह अब और भी िमत हो गई। ‘‘म इसे प करता हँ, जब आप ेन अथव लेन से या ा
करते ह तो या ा करने के िलए पहले आप भुगतान करते ह, सही है न?’’ उसने सहमितपवू क
अपना िसर िहलायी।
‘‘इस कार आप भुगतान पहले करते ह और सेवा बाद म लेते ह।’’ अब उसने समझना ारं भ
क।
‘‘जब आप हवाई जहाज क िटकट बुक कराते ह और अंितम समय म इसे र करवा लेते ह।
आप या ा नह करते ह, तब या होता है?’’

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उसने कहा, ‘‘र करने का भार काट लेने के बाद आप रािश लौटा देते ह।’’
‘‘हाँ, इस बात म दम है। यिद आप या ा करते ह तो आप पहले भुगतान करते ह और कंपनी
को सेवा देने से पहले आप अपने पैसे का उपयोग करने देते ह। यिद आप या ा नह करते ह तो
र करने के भार के प म एक छोटी—सी रािश कंपनी को देते ह। इसिलए िकसी भी प म
कंपनी को उसी िदन लाभ िमल जाता है।’’
या ा यवसाय का मेरा िववरण जारी रहा, ‘‘अब इस तक को या ा पैकेज के संदभ म देख।
एक वै ेल एजट के प म आप परू ा या ा पैकेज देते ह — भोजन, या ा और िनवास। आपके
ताव म ये सभी सेवाएं शािमल होती ह। आप यह बेचते ह और आप एक बड़े कारोबार म शािमल
हो जाते ह।’’
वह बोली, ‘‘सुनने म अ छा लगता है।’’
‘‘इस तरह क अि म रािश से आप छोटे तर पर अपना यवसाय ारं भ कर सकते ह। जब
हम अपने यवसाय को बढ़ाने क सोचगे ह तभी हम िनवेशक क ज रत पड़े गी।’’ हम दोन
एक—दूसरे को इस बारे और अिधक मंथन करने के िलए े रत कर रहे थे।
शु म ऐसा लग रहा था िक सब कुछ बहत आसान है। लेिकन बाद म मने महसस ू िकया िक
कागज पर जो आसान िदखता है उसम हक कत म आने पर अनेक चुनौितयाँ सामने आती ह।
मगर अ छी बात यह थी िक म जानता था िक मुझे कहाँ यान देना है — पयटन यवसाय।
मने आपने माता—िपता से कहा िक म पयटन यवसाय शु करने जा रहा हँ। उ ह ने पहले
क ही तरह मेरा उ साहव न िकया।
डॉ टर ने पछ ू ा, ‘‘ या म अपने माता—िपता को इस बारे म बता सकती हँ?
मने महसस ू िकया िक वह हमारे संबंध के बारे म अपने माता—िपता से बात करने के िलए
सही समय क ती ा कर रही थी। अब म अपना यवसाय शु करने वाला था, ऐसे म उसके
पास उस किठन का उ र होना चािहए िजसे हर लड़क का बाप पछ ू ता है, ‘‘लड़का या
करता है?’’
मने सुझाव िदया, ‘‘हम थोड़ा इंतजार करना चािहए जब तक िक हमारा यवसाय ठीक से
चलने न लगे।’’
वह मेरे जवाब से बहत खुश नह हई। लेिकन िववाह यो य क या और कर भी या सकती
थी, उसे तो अपने माता—िपता और ेमी के बीच संतुलन बनाए रखना था?
मने उसे याद िदलायी, ‘‘तुमने तो कहा था िक पी—एच.डी. परू ा करने तक तुम इंतज़ार कर
सकती हो।’’
‘‘हाँ, मने कहा था लेिकन मेरे माता—िपता क सोच अलग है। वे कहते ह िक म िववाह के
बाद भी अपना पी—एच.डी. जारी रख सकती हँ।’’ उसने प िकया िक उसके पास बहत सारे
ताव आ रहे ह और उसके माता—िपता उनम से कुछ ताव पर गंभीरतापवू क िवचार कर रहे
ह।
म अपने यवसाय के संबंध म िवचार को लेकर परू ी तरह से उ सािहत था लेिकन मेरे पास
पया कारण था िक म एक बार पुन: वयं को असफल यि मानने लगँ।ू

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मिहलाएँ कुदरती प से मनोवै ािनक होती ह। वे आपका चेहरा देखकर आपके मन के भाव
को परख लेती ह। वह मेरे पास आकर बोली, ‘‘िच ता न करो। म अपने माता—िपता को समझा
ू ी। अपने यवसाय के बारे म सोचो, हम इसे बहत बडा बनाना है।’’
लँग
‘‘हम इसे बड़ा बनाना है ...’’ डॉ टर के इन ष द ने मुझे उ सािहत कर िदया। बड़ी सोच
रखना मुझे पसंद है लेिकन ‘‘हम इसे बड़ा बनाना है’’ म बात ही कुछ और थी। अब वह मेरे सपन
का, मेरे यवसाय का िह सा बन गई थी।
मने अपने गु जी और िजस आ म म अथशा का अ ययन िकया था उसके यासी से इस
संबंध आशीवाद लेने के िलए उ ह फोन िकया। उस भ यवसायी यासी से मने कहा, ‘‘सर,
यवसाय म आने के िलए आपने मुझे े रत िकया। अब मुझे अपने जैसा बनने द।’’
उ ह ने जवाब िदया, ‘‘तुम मेरे से बेहतर बनोगे।’’ यह बात मुझे अ छी लगी।
कुछ देर कने के बाद उ ह ने मुझसे पछ ू ा, ‘‘तुम जानते हो, ऐसा य ?’’
वे खुद इसका जवाब द, इसके िलए मने थोड़ी ती ा क । ‘‘ य िक तुमने यवसाय म आने
से पहले ही बहत कम उ म अथशा का अ ययन कर िलया है। म उतना सौभा यशाली नह
था।’’
उसके बाद गु जी ने कहा, ‘‘ येक िदन अथशा के कुछ ोक को याद करो। इससे
जीवन क दैिनक सम याओं के िनदान म आपको चाण य का मागदशन िमलेगा।’’
मोरी िक मत बदलने वाली थी।

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37
थम चरण

कु छिकयासंकथा।ोच कमे इससाथबातमनेसेउसआकंपनीत नहके चेथायरमैिकन वहके साथ िमलने के िलए गया जहाँ मने काम
अपने उस कमचारी को अपना आशीवाद
दगे िजसको उ ह ने एक उ कृ अवसर िदया था।
उ ह ने कहा, ‘‘आइए, म आ य कर रहा था िक आप कहाँ गुम हो गए थे।’’ उनके वचन बहत
ही उ साहव क थे।
चेयरमैन से एक बार पुन: िमलना सौभा य क बात थी। मने उ ह अपने िवचार एवं यवसाय
योजना से अवगत कराया। उ ह ने मेरी बात म िदलच पी ली। ‘‘पयटन एक अ छा यवसाय है।
मुझे सदा इस काम को करने क इ छा थी लेिकन कभी भी इस काम पर गंभीरतापवू क िवचार
करने के िलए समय ही नह िमल पाया।’’
जब चेयरमैन ने मेरे से ये सब बात कह तो मुझे खुशी िमली िक ऐसे सफल यवसायी ने मेरी
योजना पर मुहर लगा दी है। उ ह ने इसके बात जो बात कही वह और भी अ छी थी, ‘‘हो सकता
है म आप ही के मा यम से अपने इस सपने को साकार क ं गा।’’
इस कार मुझे ऐसा लगा िक मुझे अपने यवसाय के िलए एक िनवेश िमल गया है लेिकन
पैसे हे तु ताव रखने का यह उिचत समय नह था। सबसे पहले म खुद को सािबत करना
चाहता था। म िचंतन यापक तर पर करना चाह रहा था िकंतु शु आत छोटे तर पर करना
चाहता था।
इस िदशा म मने जो पहला काम िकया वह था अपने गहृ नगर के िस मंिदर को एक
िदवसीय आ याि मक मण का आयोजन िकया। म चाहता था िक इस मंिदर या ा म थोड़े —से
लोग शािमल ह ।
इसके िलए मने सब यव था वयं ही क थी — मंिदर के इितहास का अ ययन िकया था,
भोजन क यव था क , बस ठीक िकया और इस एक िदवसीय या ा के िलए आव यक अ य
कार क यव थाएं भी क ।
जैसा िक चेयरमैन ने मुझे िश ा दी थी िक िकसी भी यवसाय क मल ू भत
ू बात का ान होने

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से उस यवसाय म आगे बढ़ने म सुिवधा होती है। यह एक मह वपण ू कारक था। यह िकसी
िपकिनक के जैसा था। मने इसका लु फ उठाया।
िदलच प बात यह थी िक इस या ा म जो भी शािमल हए थे वे सभी मेरे प रिचत थे। या ा म
शािमल अितिथय म एक आ य क बात यह थी िक उनम मेरी भावी सासु माँ भी शािमल हो गई
थ । मेरी डॉ टर ने मेरी इस या ा का िवपणन अपने प रवार म कर दी थी।
‘‘ये मेरे कॉलेज के दो त म से ह, िज ह आप जानते ह। वे पयटन यवसाय शु करने जा रहे
ह। यह हमारे नगर के मंिदर क एक िदवसीय या ा है। माँ आप य नह इस या ा म शािमल हो
जाती ह?’’
यह उसका अपनी माँ को रझाने का एक यास था तािक वह आपने भावी दामाद को काम
करते हए देख सक।
डॉ टर खुद नह आयी, हालांिक म चाहता था िक मेरी जीवन संिगनी मेरे यवसाय के थम
चरण म मेरे साथ रहे । कदािचत वह चाहती थी िक उसक माँ वतं प से मेरे बारे म सोच। मेरी
माँ अपने बेटे के थम काय—िन पादन को देखने के िलए या ा म शािमल हो गई ं। मेरे मना
करने के बावजदू उ ह ने अपनी या ा— यय का वहन वयं िकया।
इस या ा के दौरान सबसे अ छी बात यह रही िक परू े िदन बस म मेरी माँ और भावी सासु माँ
एक—दूसरे के बगल क सीट पर बैठी रही। वे एक—दूसरे से पहली बार िमली थ । बातचीत
करने के िलए मिहलाओं को िकसी प रचय अथवा वजह क ज रत नह होती है।
मुझे प का यक न है िक िदनभर म वे एक—दूसरे के बारे म बहत कुछ जान गए ह गे —
प रवार, मायके, खाने—पीने क आदत और दूसरी अिभ िचय के बारे म तथा अ य बहत सारी
बात। वैवािहक र ते पर बात क शु आत करने का िकतना अ छा तरीका था!
मने अ छे पयटक गाइड, पयटन बंधक और मेजबान क भिू मका अदा क । अिधकांश या ी
व र नाग रक थे। बस पर चढ़ते—उतरते व मुझे उनका िवशेष यान रखना था।
या ा के दौरान छोटा—सा यवधान उपि थत हआ। बस के एक च के क टायर फट गई।
हालांिक बहत ज द दूसरी टायर लगा दी गई। मगर मेरे िलए यह एक बड़ी सबक थी िक भिव य
म या ा के दौरान के अित र तैयारी रखने क योजना बनानी चािहए।
िदन के अंत म हर िकसी ने मेरी शंसा क , लेिकन म उन सबका आशीवाद चाह रहा था।
मेरी माँ और डॉ टर क माँ ने एक—दूसरे के संपक म बने रहने के िलए फोन नं. क अदला—
बदली क । डॉ टर क योजना कामयाब हई, इसे देखकर मने मु कुराया।
म िव कुल थक गया था और िव ाम करना चाहता था। उसी समय घर म फोन क घंटी बजने
लगी। म समझ गया िक यह डॉ टर का फोन था, ‘‘या ा कैसी रही?’’ वह इस तरह से पछ ू रही
थी जैसे उसको कुछ भी मालम ू नह ।
रात म खाना परोसते समय मेरी माँ ने िपता जी को परू ी कहानी कह सुनायी। मुझे यक न है
िक डॉ टर के घर म भी इसी तरह कहानी दुहरायी गई होगी।
मने अपनी डॉ टर से फोन पर कहा, ‘‘यिद तुम जानना चाहती हो िक िदनभर म या हआ तो
अपनी माँ से पछ ू ो।’’

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इससे वह लजा गई। िफर मने उसे आदेश िदया, ‘‘अब जाकर अपने माता—िपता से कह दो
िक तुम मुझ से शादी करना चाहती हो।’’
अब उनके िवरोध करने क बारी थी। उ ह ने धीमे वर म कहा, ‘‘नह , अभी नह , उिचत
समय क ती ा करो।’’
मने िदनभर के खच का लेखा—जोखा िकया और पाया िक मुझे थोड़ा लाभ िमला है। मने इस
िहसाब—िकताब को अपने माता—िपता के पास रखा और कहा, ‘‘यह आपके आशीवाद के
कारण है। ध यवाद!’’
मेरे माता—िपता ने मुझे गले से लगा िलया। यह छोटी—सी शु आत मेरे साथ—साथ मेरे
माता—िपता के िलए मह वपण ू थी। मने महससू िकया िक मेरा ल य तो अिधकािधक िवदेशी
याि य को भारत म या ा करने के िलए ो सािहत करना था लेिकन देश म या ा यव था क
काफ मांग थी।
भारत प रवतन के दौर से गुजर रहा था। भारतीय लोग भी िव तरीय या ा का अनुभव
लेना चाहते थे और इसके िलए वे अित र खच करने के िलए तैयार थे।
म अपनी अगली या ा को बेहतर बनाने के िलए सोचते—सोचते सो गया।

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38
िव े ता से सहयोगी तक

म अगले िदन सुबह सवेरे क जग गया और अथशा के कुछ प ृ


पर सबसे पहले नजर मेरी नजर गई वह य प से मेरे िलए
को पढ़ने लगा। िजस सू
ासंिगक था।

शासन का सफल संचालन सहयोिगय क मदद से ही संभव है। पिहया


अपने आप घूमने नह लगता है। इसिलए राजा को मं ी रखना चािहए
और उनसे मं णा करनी चािहए। (1.7.9)

मने महससू िकया िक मने यवसाय क शु आत कर दी है लेिकन अभी यह एक आदमी तक


िसमटा हआ यवसाय था। यिद मुझे अपने यवसाय को आगे बढ़ाना है तो मुझे और सहयोिगय
क ज रत पड़े गी।
पयटन यवसाय िव े ताओं और आपिू तकताओं पर िनभर है। इस करोबार म या ा के िलए बस
मािलक , ठहरने के िलए होटल मािलक और एक थान से दूसरे थान तक या ा करने के िलए
एयरलाइ स और रे लगािड़य के सहयोग क आव यकता होती है। िकसी दौरे को ठीक तरह से
आयोिजत करने के िलए इन सभी के बीच यापक सहयोग क आव यकता होती है।
मेरा पहला िनणय यह था िक उ ह िव े ता अथवा आपिू तकता न कहा जाए बि क सहयोगी
कहा जाए। हम एक—दूसरे के सहयोगी बनने के बाद ही अपने काय का वामी बन सकते ह
और उ कृ सेवा दान करने क िदशा म काय कर सकते ह।
इसका अगला चरण था ऐसी कंपिनय का नेटवक तैयार करना जो मेरे सहयोगी बनते —
या ा एजट, या ा गाइड, होटल, उ ोग सहयोगी और अ य।
मने पयटन उ ोग म शािमल िविभ न समहू क सच ू ी बनायी और महसस ू िकया िक यह
उ ोग बहत बड़ा है। इस बड़े खेल म बहत—से िखलाड़ी लगे हए थे। बहरा ीय कंपनी से लेकर

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छोटी कंपिनय तक म थोड़े —से लोग या ा एजट के प म काय कर रहे थे, मगर इससे बहत—
से लोग को रोजगार िमला हआ था।
मने यह पाया िक तथाकिथत वै ेल एजट का काम फोन पर कार बुक करना था। कुछ लोग
अपना कारोबार घर से ही चलाते थे तो कुछ दूसरे लोग बड़े वातानुकूिलत कायालय म बैठकर
अपना यवसाय करते थे।
जब म इस िसलिसले म लोग से िमला और इस उ ोग के बारे म आव यक बात सीखी तब
मने िमलने वाले लोग क िमलीजुली िति या महसस ू क । कुछ बड़ी कंपिनय ने मेरी अनदेखी
क य िक उ ह ने मुझे नया िखलाड़ी समझा और सोचा िक म अभी कुछ नह जानता हँ। कुछ
अ प समय काम करने वाले लोग मेरे से उ साहपवू क इस उ मीद के साथ िमले िक मुझसे उ ह
अ छा यवसाय िमलेगा।
उसके बाद म एक स र वष से अिधक उ के यि से िमला। उ ह ने मुझे अपना अनुभव
बताया, ‘‘तेजी िसखने का सव म तरीका लोग से अलग—अलग िमलना नह है, बि क या ा
मेला अथवा दशनी म शािमल होना है जहाँ पर इस उ ोग से जुड़े अिधकांश लोग यवसाय
िविनमय के िलए आते ह।’’ उ ह ने मुझे यह भी बताया िक एक माह बाद अगली बड़ी दशनी
आयोिजत होगी।
इस बड़ी दशनी म शािमल होने के िलए मुझे मामल ू ी शु क का भुगतान करना पड़ा लेिकन
म खुश था िक िनवेश क तुलना म लाभ अिधक रहा। एक के बाद दूसरे दुकान म मुझे पयटन
उ पाद एवं सेवाओं के बारे म अ छी जानकारी ा हई।
इस तीन िदवसीय दशनी के दौरान मने सभी दुकान से चार साम ी और पुि तकाएं ा
क । म अपरा म आयोिजत या यान और स म भी शािमल हआ िजनम इस उ ोग के
िवशेष के या यान होते थे। मने प र मपवू क नोट्स तैयार िकए। मने इसम बहत—से दो त
बनाए और महसस ू िकया िक ये सभी मेरे यवसाय म भावी सहयोगी ह गे। यह वाकई हम सभी के
िलए लाभ ही लाभ क ि थित थी। पयटन पर पर िनभरता का उ ोग है और हम एक—दूसरे क
आव यकता थी।
म उ ह ाहक दँूगा और वे बदले म मुझे उ म सेवा दगे, जैसे िक िनवास के िलए अ छे होटल
तथा या ा के िलए अ छे वाहन। दूसरी ओर हमारे ाहक पयटक होते थे जो युि संगत यय म
तरीय सेवा ा करते हए नई जगह के बारे म जानकारी ा करना चाहते थे।
यह दशनी का अंितम िदन था। लोग अपनी दुकान समेट रहे थे और अयोजक एक अ य
सफल दशनी के आयोजन से खुश थे। घर लौटने से पहले म खाने—पीने क दुकान पर
सडबीच और कॉफ लेने गया। अनुभवी िदखने वाले एक यि मेरे बगल म बैठे हए थे और
उ ह ने मेरे साथ बातचीत शु क । म उनसे यह जानना चाहता था िक िकस वजह से वे इस या ा
दशनी क ओर आकिषत हए।
उ ह ने प िकया िक ‘‘म भारत दौरे पर आया था और देखना चाहता था िक एक पयटन
थल के प म भारत म िकस तरह से नए िवकास काय हए ह।’’
वे भारतीय मल ू के थे और तीन पीिढ़य से िवदेश म रह रहे थे। वहाँ पर वे भारतीय संघ के

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अ य थे जो िक उस देश म िविभ न कार क गितिविधय का आयोजन करता था। इनम
िदवाली, होली और नवरा जैसे काय म आयोिजत िकए जाते थे। वे लोग वहाँ पर जाने वाले
भारतीय नेताओं क मेजबानी करते थे और वहाँ बसे भारतीय क शि का दशन करते थे।
‘‘कुछ साल पहले हमारे भारतीय संघ ने ह र ार के एक दौरे का आयोजन िकया। सभी इससे
बहत स न हए। हमलोग िफर से समहू के साथ भारत क एक और या ा करने का िवचार कर
रहे ह, इसिलए म इस बार थान का चयन करने के िलए आया हँ।’’ उ ह ने कहा। उनक इस
या ा का यही उ े य था।
मने जानना चाहा, ‘‘आप लोग िकस तरह के थान क या ा करना चाहते ह?’’
“हँ .... म अभी ठीक तरह से नह बता सकता। म ताजमहल या जयपुर जैसी जगह क
तरीय या ा नह करना चाहता य िक हम म से अिधकांश लोग इन थान क या ा कर चुके
ह। हमलोग ऐसी जगह क तलाश म ह जो हमारी आ मा को छू सके।’’
उ ह ने आगे कहा, ‘‘िपछले साल भारत से एक साधु हमारे देश म आए थे और उ ह ने
रामायण पर आ याि मक वचन िकया। हमलोग रामायण से स दय पर मु ध हो गए और हमलोग
अपने मल ू देश म इन थान क या ा करना चाहते ह।
‘‘कौन—से थान?’’ मुझे इसम एक अवसर नजर आने लगा।
‘‘राम क ज मभिू म अयो या, पंचवटी जहाँ पर राम, ल मण और सीता वनवास के दौरान रहे
थे, रामे रम् ...... रामायण म विणत सभी थल का दौरा करना चाहते ह।’’ उ ह ने जवाब िदया।
‘‘इस तरह आपका मतलब है रामायण प रपथ?’’ मने इस बात को पु करना चाहा।
उ ह ने उ ेिजत होते हए जवाब िदया, ‘‘जी हाँ, रामायण या ा हमारे िलए िनधा रत है।’’
मने उनसे तहक कात क , ‘‘यिद कोई इस दौरे को आयोिजत करे गा तो इसम िकतने लोग
के भाग लेने क अपे ा है?’’
‘‘लगभग २०० लोग, लेिकन और भी लोग शािमल हो सकते ह।’’
‘‘ या म आपके िलए इस दौरे क यव था कर सकता हँ?’’ मने इसम यवसाय का अवसर
देखा और इसे लपक िलया।
‘‘ या आप ऐसा कर सकते ह?’’ वे खुश थे मगर इस बात से आ त नह थे िक मेरे जैसे
कम उ के लड़के से ऐसा हो पाएगा। कुछ देर िवचार करने के बाद उ ह ने कहा, ‘‘ठीक है, आप
अपना िववरण भेज।’’
यह मेरे यवसाय के सबसे बड़ी उपलि ध क शु आत थी।

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39
बड़ी या ा

म िबना िकसी िवपणन बजट के छोटे तर कारोबार शु करने वाला यवसायी था।
सामा यतौर पर लोग ाहक पाने के िलए बहत अिधक धन खच करते ह लेिकन मेरे पास
ऐसा िव ीय सहयोग नह था।
यिद म अपने ाहक क संतुि के मुतािबक काम कर पाता तो जादुई सफलता िमलती। मने
अथशा खोला और वहाँ पर एक अ य सू हाथ लगा:

अथ यव था के बंधन म हमेशा सि य रहो य िक संपदा का आधार


आिथक गितिविध है; य िक िनि यता से हमेशा आिथक क होता
है। सि य नीित के अभाव म वतमान संप नता और भिव य म िमलने
वाले लाभ – दोन को ित पहँचती है। (1.19.35.36)

चाण य ने धन सज ृ न करने वाली गितिविध पर जोर िदया है। म यवसाय के अवसर को यह


कहकर गँवा िदया होता िक मुझे इस बारे म पहले से अनुभव नह है। मगर मने अपने ल य को
पाने के िलए सि यतापवू क काम िकया और वैभव का सज ृ न िकया।
मने इस संबंध म कुछ अनुसंधान िकया और कई अनुभवी वै ेल एजट के साथ बात क
िजनसे म दशनी म िमला था। मने रामायण प रपथ का एक खाका तैयार िकया और उनलोग
से या ा यव था और अ य आव यकताएं जो पहली बार आने वाले पयटक को हो सकती है, के
बारे म पछू ा।
सबके एक ही मानक होते थे, ‘‘आपके साथ िकतने पयटक ह गे?’’
मुझे बहत ही होिशयारी के साथ जवाब देना पड़ता था, ‘‘शु म दो सौ ही लेिकन आप से ठीक
तरह से बात पट जाएगी तो अिधक पयटक भी शािमल हो सकते ह।’’ मने िजन लोग के साथ

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बातचीत क , उ ह इतनी सं या काफ लगी। चचा के दौरान वे मुझे गंभीरतापवू क लेने लगे।
एक स ाह के समय म मने परू े िववरण के साथ या ा योजना तैयार क — ितिदन क
या ा, िनवास के व प, भोजन क पसंद और अ य वे सभी बात जो एक पयटक चाहता है।
उसके बाद मने उस यि को फोन िकया िजनसे दशनी म िमला था।
वे मेरे से बात करके स न लग रहे थे, ‘‘आपके और मेरे बीच जो चचा हई थी उसके बारे म
सोच रहा था।’’
मने गौरवपण ू भाव के साथ कहा, ‘‘आप िजस तरह के दौरा चाह रहे थे उसका मोटे तौर पर
मने एक खाका तैयार िकया है।’’
‘‘बहत अ छा। इसे मेरे पास भेज दीिजए। कल म भारत से जा रहा हँ। अपने संघ के सद य के
साथ मेरी थोड़ी बातचीत हई थी और हर कोई भारत म आ याि मक दौरा संबंधी िवचार से
रोमांिचत है।’’ उ ह ने प िकया।
यह मेरे िलए एक अ छी खबर थी िक संघ के सद य भी इस दौरे को लेकर मेरे जैसे ही गंभीर
थे।
उ ह ने मु कुराते हए कहा, ‘‘मुझे आशा है िक आप हमलोग से उिचत शु क ही लगे।’’
म जानता था िक यवसाय म हर िनणय का आधार आिथक होता है। हालांिक म कुछ कहता
उससे पहले ही उ ह ने कहना शु कर िदया, ‘‘लेिकन इस बात को लेकर आप िचंितत न ह ।
यिद आप ठीक से काम करगे तो आपने िजतने शु क का उ लेख िकया है उससे अिधक हम
आपको दगे और भिव य म भी इससे अिधक यवसाय देते रहगे। इतना कहकर उ ह ने बातचीत
को िवराम िदया।
िवदेश म ि थत भारतीय संघ के उस भ यि के साथ म दौरे के संबंध म दो स ाह तक
बातचीत करते रहा। उ ह मेरे ताव एवं या ा योजना अ छे लगे। म उनसे िविभ न
आव यकताओं के बारे म पछ ू ताछ करने लगा, यथा — भोजन शाकाहारी होना चािहए; एक
कमरे म दो से अिधक लोग नह होने चािहए; बस वातानुकूिलत होनी चािहए; बहत ही ज दबाजी
म थका देने वाला दौरा नह होना चािहए। मुझे म इसम बहत कुछ िसखना था।
अंतत: उ ह ने एक िदन मुझे फोन करके बताया, ‘‘नौजवान, आपने जो हमारे िलए दौरा
िनधा रत िकया है उसको हमने वीकार कर िलया है। हम यह बताइए िक आपको अि म रािश
िकस प म भेज।’’ म रोमांिचत हो उठा। म यह नह जानता था िक िकस तरह से जवाब दँू। म
पयटन म इसे बड़ा व प देने पर वयं भी एक या ा पर ही था। अपनी उ ेजना पर अंकुश लगाते
हए मने उनसे पछ ू ा, ‘‘सर, िकतने लोग आएं गे?’’ मेरे पछ
ू ने का आशय आगंतुक क सही सं या
का पता लगाना था।
‘‘बहत खबू ! हमने दो सौ लोग क योजना बनायी है लेिकन अिधक लोग को शािमल करने
क मांग हो रही है। हमलोग तीन सौ तक हो सकते ह। मेरी कोिशश यह है िक सं या इससे
अिधक नह बढ़े । यिद म थोड़ी ढील दे दँू तो सं या पाँच सौ तक पहँच सकती है।
पाँच सौ तक लोग? म खुद को लालची के प म दिशत नह करना चाहता था और उनका
प सुनते रहा।

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‘‘नौजवान, या आपको मालम ू है बहत अिधक लोग के साथ आना बहत बड़ी िज मेदारी है।
सब कुछ के बावजदू , थोड़ी भी गलती होने से दोष मेरे िसर मढ़ िदया जाएगा।’’ उ ह ने गंभीर
वर म कहा।
कुछ ण ककर मने उनसे कहा, ‘‘सर, म समझ रहा हँ। म परू े दौरे क पण ू िज मेदारी लेता
हँ। कृपया आप िनि त रह, म हर बात का यि गत तौर पर याल रखँग ू ा।’’
दादाजी क तरह उ ह ने मुझसे पछ ू ा, ‘‘नौजवान, म आपसे एक पछ ू सकता हँ या?’’
म सुन रहा था, ‘‘ज र पिू छए सर।’’
‘‘मने आपक प ृ भिू म क जाँच क है और यह पाया िक इतनी अिधक सं या म िवदेशी
पयटक के स कार का आपके पास अनुभव नह है। तब आपको इस दौरे को सफल बनाने के
संबंध म कैसे इतना आ मिव ास है?’’
मुझे आ य हो रहा था िक उ ह ने मेरे बारे म शोध कर िलया था। जो यि मुझे काम देकर
इतना बड़ा जोिखम उठाने के िलए तैयार था उनके साथ म झठ ू नह बोलना चाहता था।
मने ईमानदारी के साथ कहा, ‘‘सर, यह रामायण या ा है। इसके संबंध म योजना बनाने से
पहले मने भगवान राम से ाथना क ।’’
म थोड़ा का और िफर प िकया, ‘‘म एक आ याि मक प रवार से हँ। मेरे दादा—दादी
और माता—िपता ने मुझे िसखाया है िक काम भि पवू क करना चािहए। मेरे िलए यह केवल एक
दौरा नह है बि क यह भु ीराम के भ क सेवा है। िजस तरह से हनुमानजी को कम करने
के िलए उ ह ने शि दी थी उसी तरह से वे मुझे भी यह काम करने क शि दगे।’’
म यह नह जानता िक ये श द कैसे मेरे मन म आए लेिकन मने जो कुछ कहा वह िदल से
कहा। म इस दौरे म एक यवसायी नह बि क भ बने रहना चाहता था।
अंतत: जब दो माह के बाद यह दल पहँचा तो इसम छ: सौ पचास पयटक थे। लोग को शािमल
करने क अ यिधक माँग को देखते हए ऐसा लगता था िक उस भ यि का मेरे म िव ास
था।
भारत का बीस िदवसीय देश— यापी दौरा एक किठन काय था। हालांिक सभी लोग न केवल
स न थे बि क आ याि मक प से सबल भी लग रहे थे। दल म शािमल एक बुजुग मिहला ने
मुझे आशीवाद देते हए कहा, ‘‘िजस तरह से हनुमानजी ीराम के ि य थे वैसे ही तुम हो जाओ।’’
िजस भ यि ने मुझे यह अवसर िदया था उ ह ने कहा, ‘‘हमलोग खुश ह। हम आपको एक
बड़े दौरे के आयोजन का अवसर दगे।’’
उ ह ने मु कुराकर कहा, ‘‘महाभारत या ा क तैयारी ारं भ कर दीिजए।’’

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40
आ याि मक सहया ी

मे महाभारत
रा पयटन यवसाय चल पड़ा। अब पीछे मुड़ने का सवाल ही नह था। रामायण दौरे से लेकर
दौरे तक म इस तरह के अनठ
ू े दौरे तैयार करने लगा िजसक िवदेश म बसे लोग
को चाहत रहती थी। म अथशा का अ ययन करते रहा और चाण य से मागदशन ा करते
रहा:

जो काम िकसी सहयोगी क मदद से क जाए उसम दोहरी नीित


अपनानी चािहए। (7.1.18)

म इस सू के भाव पर गहराई से िवचार िकया। मने महसस


ू िकया िक वयं हर काम करने से
बेहतर है िकसी सहयोगी के साथ िमलकर काम िकया जाए। ऐसी सहभािगता म यि को दोहरी
नीित पर िवचार करना चािहए अथात् लाभ ही लाभ क ि थित।
पयटन उ ोग म मुझे िब े ता और आपिू तकता के प म सहयोगी थे लेिकन मुझे एक
यवसायी सहयोगी क आव यकता थी। मेरे ऊपर काम का बोझ पहले से ही बहत था और म
वयं पर इससे अिधक बोझ नह डाल सकता था। मेरे पास कुछ किन कमचारी थे लेिकन उ ह
मेरे मागदशन क ज रत थी। मने िनणय िलया िक एक अ छे सहयोगी का साथ िलया जाए
िजससे मेरा यवसाय अगले तर तक पहँच सके।
जब म इन सब बात पर िवचार कर रहा था तभी मेरी डॉ टर का फोन आ गया, ‘‘मेरा पी—
एच.डी. शोध— बंध जमा करने क अंितम ि थित म है।’’ म यह नह समझ पाया िक वह इस
बात से खुश है अथवा दुखी। जो लोग अपने पी—एच. डी. क तैयारी के अंितम पड़ाव पर ह
उनके िलए यह तो या ा के अंत के समान है। तब उसको खुशी य नह हो रही थी?
‘‘म अब इसे और अिधक िदन तक िछपाकर नह रख सकती। हम अपने माता—िपता से

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बात करनी चािहए।’’ उसने जोरदार ढं ग से अपनी बात रखी।
जब शाम म हमारी भट हई तो मने महसस ू िकया िक डॉ टर पी—एच. डी. के नाम पर अपने
घर पर िववाह क बात को टालती जा रही थी। लेिकन अब यह भी कोई ठोस कारण नह रहा।
‘‘ या पहले तुम अपने माता—िपता से बात करोगे या पहले म अपने माता—िपता से बात
क ं ?’’ वह इस ण क ती ा कर रही थी।
म एक ण के िलए क गया। म कुछ िदन से अपने यवसाय के िलए संघषरत था। हालांिक
मने अ छा काम िकया था लेिकन इससे बहत अिधक पैसा नह बना पाया।
मने जो कुछ कमाया उसका िनवेश यवसाय म ही कर िदया था। संघष का समय चल ही रहा
था लेिकन धीरे —धीरे अ छे समय का भी आगाज हो रहा था।
मुझे एक यवसायी सहयोगी क आव यकता थी मगर मने महसस ू िकया िक मुझे पहले एक
जीवन साथी क आव यकता है। मुझे आ मिव ास हो गया था िक म जीवन म कुछ भी कर
सकता हँ, इसिलए म इसके िलए तैयार था।
इस संबंध म म अपने माता—िपता से िमला और अपने जीवन म मौजदू इस डॉ टर के िवषय
म उ ह बताया। वे दोन इस बात से वािकफ थे िक हमलोग कॉलेज के िदन से दो त ह मगर
उ ह यह नह मालम ू था िक हम एक—दूसरे को इस प म देख रहे ह।
चचा के दौरान मने महसस ू िकया िक मेरी माता को हमारे और डॉ टर के बीच इस गाढ़
दो ती पर अचरज था। मगर साथ ही मेरी माता और डॉ टर क माता के बीच मेरे ारा आयोिजत
उस थम दौरे से अ छी दो ती हो गई थी।
अ य प रवार म भी इस दो ती को सकारा मक नज रए से देखा गया। डॉ टर के प रवार
वाले मुझे जानते थे। साथ ही उसके िपता वयं एक यवसायी थे और उ ह मेरे कॅ रयर के संघष
काल से कोई आपि नह थी। दोन प रवार एक—दूसरे से िमले और सगाई क ितिथ तय हो
गई। हमारे अिधकांश दो त के िलए यह एक सुखद आ य था और इससे हर कोई खुश था।
सव म ेम िववाह वही होता है जो प रवार के सद य क रजामंदी से तय होता है। हालांिक
हमलोग अलग—अलग समुदाय से थे। लेिकन दोन प रवार के बीच मन िमल रहा था। दोन
प रवार के र तेदार इस सगाई समारोह म शािमल हए। सगाई समारोह को थोड़े भ य तर पर
आयोिजत िकया गया। हमदोन जीवन—भर के िलए हमसफर बनने जा रहे थे।
िववाह के िलए शुभ ितिथ िनधा रत करते समय डॉ टर का एक ही अनुरोध था। ‘‘िववाह क
ितिथ छ: माह बाद तय क जाए तब तक मेरी पी—एच.डी. परू ी हो जाएगी।’’ वह अपनी इस िड ी
के अंितम चरण म थी और नह चाहती थी िक िववाह के कारण उसक पढ़ाई पर असर पड़े । इस
पर सहमत होने म हमम से िकसी को आपि नह थी।
मेरे िपता जी मुझे थोड़े एकांत म ले गए और म भारत म होने वाले िववाह के इस संुदर प से
अिवभत ू था। ‘‘भारत म िववाह को महज एक संबंध नह माना जाता है। एक केवल तु हारे और
तु हारी प नी के बीच का संबंध नह है और न ही यह केवल दो प रवार के बीच का र ता है।
यह तुम दोन और ई र के बीच का संबंध है।
जब क या का िपता उसका हाथ वर के हाथ म डालता है तब उसे एक आ याि मक संिगनी

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के प म वर को सुपुद करता है। तुम दोन को आ याि मक माग पर साथ—साथ आगे बढ़ना
है।’’ िववाह को िजस तरह से िद य व प िदया जाता है उससे म भावुक हो गया।
िपता जी ने पछू ा, ‘‘ या तु ह मालम
ू है िक सं कृत म प नी को सहधिमणी कहा जाता है?’’
‘‘सहधिमणी का अथ आ याि मक पथ पर साथ चलने वाली होता है।’’ उ ह ने रामायण के
एक ोक का उ रण िदया और कहा, ‘‘ येक मानव ई र ाि के िलए आ याि मक माग पर
है। तु हारे पित अथवा प नी इस माग पर तु हारा सहयोगी बने न िक अवरोधक।
यिद िववाह संबंध क न व अ या म पर आधा रत हो तो यह संबंध अिधक मजबत ू और अिधक
गाढ़ होता है। येक िववाह म र ते म उतार—चढ़ाव आता है। इसम अनठ ू े चुनौितय का
सामना करना पड़ता है। आ याि मक आधार के रहने से दंपित को इन चुनौितय का सामना
करने म सहायता िमलती है और घर एक मंिदर बन जाता है।’’ जब मने यह बात डॉ टर से
बतायी तो वह भी भावुक हो गई।
सगाई के कुछ माह बाद उसे डॉ टर क िड ी िमल गई। अब परू ी दुिनया उसे डॉ टर कहकर
पुकारती।
हमारा िववाह हमारे जीवन क सबसे सुंदर घटना थी। दोन प रवार के बीच ेम गाढ़ हो
गया। मेरे िववाह वे सभी लोग आए जो मुझे ि य थे — मेरे गु जी, गु मा, यासी भ यवसायी,
बड़े यवसायी चेयरमैन िजनके अंदर म काम िकया था और हमदोन के अनेक िम ।
मेरे जीवन का एक नया अ याय ारं भ हआ। पित के पद पर मेरी पदो नित हो गई।

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41
गित का अगला चरण


यटन यवसाय म होने का अपना लाभ है। इसका सबसे बड़ा लाभ मुझे अपने हनीमन ू के
बंध म लगा।
एक वै ेल एजट के साथ मेरा अपना यवसाियक र ता था, वह मेरा अ छा दो त बन
गया था। वह हनीमन ू पैकेिजंग का िवशेष था और उसे उ कृ थान क जानकारी थी। मान
या न मान, मगर उसने मेरे संपणू हनीमनू या ा को ायोिजत िकया।
उ ह ने मुझसे कहा, ‘‘आप पैसे क िच ता न कर। हमारे प रवार म सबकुछ है।’’ उ ह ने मेरे
ठहरने के िलए सव म होटल तथा या ा के िलए सव म बस क यव था क । हम इनम से
िकसी भी सुिवधा के िलए भुगतान नह करना पड़ा। हमने िज़ंदगी के इस ल ह का लु फ उठाया।
डॉ टर क केवल िशकायत थी, ‘‘कैसे कोई पित अपने हनीमन ू पर खच नह करे गा?’’
िन संदेह पित अपनी प नी पर खच करे , इसका अपना आनंद है।
इसका एक िवक प उसने मेरे सामने रखा, ‘‘तुम मुझे हर साल हनीमन ू पर ले जाओगे।’’ म
भ च का रह गया। उसने एक और मांग क , ‘‘हर बार नई जगह पर।’’
म अपनी ेयसी क पहली मांग को नकार कैसे सकता था? आिखर जीवनभर साथ रहने का
मामला था। जब से मने यह वचन िदया था तब से हम हर बार िववाह का सालिगरह मनाने के
िलए अलग—अलग जगह पर जाते रहे । हम दोन वष म होने वाली इस या ा क ती ा करते
रहते थे।
हनीमन ू से वापस घर आने के बाद हमने महसस ू िकया िक मुझे अपने यवसाय को बढ़ाने के
िलए नई रणनीित क आव यकता है। मुझे नए कमचा रय क भत करनी थी, िवपणन पर
अिधक खच करना था और बड़े ऑिफस से काम करने क ज रत थी। मेरा कारोबार ठीक—
ठाक चल रहा था लेिकन इतने पैसे नह थे िक यवसाय का बहत बड़ा फै लाव िकया जाए।
मागदशन के िलए आदतन मने अथशा का सहारा िलया:

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यिद दो शि शाली राजाओ ं के बीच ि थत ह तो र ा के िलए दोन के
बीच अिधक शि शाली जो हो उसका आ य लेना चािहए। (7.2.13)

मने सोचा िक कौन अिधक शि शाली राजा है जो मेरी र ा करे गा? म केवल एक ही यि
के बारे म सोच सका। वही बड़े उ ोगपित, चेयरमन िजनक कंपनी म पहले म काम कर चुका
था।
मने उस बात को भी याद िकया जो उ ह ने मुझसे यागप देने के समय म कही थी। उ ह ने
कहा था, ‘‘जाओ, अपने िदल क पुकार सुनो। तु ह जब कभी मेरी सहायता क ज रत हो तो
तु ह सहायता देकर मुझे खुशी िमलेगी।’’
मुझे अपने कारोबार को बढ़ाने के िलए सचमुच उनक मदद क ज रत थी। इसिलए मने
उनसे िमलने का समय मांगा और िमलने के िलए पहँच गया।
उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘आप सही माग पर ह। आव यकता है िक आप अपने यवसाय के िलए
अ छी योजना बनाएं ।’’
‘‘िजस यवसाय को आगे बढ़ाने क इ छा हो उसे आंकने का उपाय भी होना चािहए और
उसके िलए अ छा बंधन दल होना चािहए।’’ मने उनके पास आिथक सहायता के िलए आया था
मगर मने महसस ू िकया िक िजन िवभ न प के बारे म वे मुझसे कह रहे थे मने उनके बारे म
ठीक से ग़ौर नह िकया था।
‘‘तु ह ज रत है िक तुम इस उ ोग के पेशेवर लोग को अपने पास रखो। वे तु हारे पास
अपने अनुभव लेकर आएं गे जो िक बहत ज री है। िसफ अकेला िदमाग से यवसाय को आगे
नह बढ़ाया जा सकता। हम अनेक अ छे हाथ और अनेक िदमाग क ज रत होती है।’’ उनका
अनुभव बोल रहा था।
‘‘मुझे इस संबंध म खुद थोड़ा िचंतन करने दो और अगले स ाह हमलोग साथ िमलकर
यवसाय योजना बनाएं गे।’’ म कुछ बोल नह रहा था बि क सुन रहा था।
अपना करोबार शु करने के बाद पहली बार म िचंतत था। म जानता था िक मुझे आगे बढ़ना
है लेिकन म यह नह जानता था िक मुझे अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के िलए इस उ ोग के
अनुभवी लोग क ज रत होगी।
जब म अगले स ाह चेयरमैन से िमला। उनके साथ कुछ लोग बैठे हए थे जो उनके रणनीित
दल के सद य थे। उ ह ने पयटन उ ोग क गितशीलता, सरकारी नीितय और बाजार संभावना
के बारे िव ततृ यौरा तुत िकया।
चेयरमैन ने आगे कहा, ‘‘तुम देख रहे हो िक इस उ ोग म बड़ी संभावना है लेिकन इसम खेल
को एक नया श ल देने वाले िखलाड़ी क ज रत है। हम केवल परं परागत माग का ही अनुसरण
नह करना चािहए बि क नए रा ते भी तैयार करने चािहए िज ह दूसरे लोग अनुसरण कर।’’
थोड़ी देर िचंतन करने के बाद उ ह ने कहा, ‘‘हम इस यवसाय को ऑटोमेशन मोड म
करना चािहए। इसके हम उपल ध सव म ौ ोिगक का इ तेमाल करना चािहए। यही एक

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रा ता है आगे बढ़ने का।’’ दूसरे लोग नोट्स लेते रहे और उ ह ने यवसाय योजना म सच ू ना
ौ ोिगक बजट को जोड़ िदया।
‘‘परू ी दुिनया हमारे िलए बाजार है और हम इस बाजार पर क जा कं यटू र के मा यम से
करना है।’’ उन िदन कं यटू र का उ ोग म उपयोग न केवल कैलकुलेटर के प म शु हआ था
बि क इसका उपयोग रणनीित तैयार करने के िलए भी िकया जाता था।
चेयरमैन म उ सािहत होकर कहा, ‘‘इस तरह से आगे बढ़ने वाले हमलोग भारत क पहली
पयटन कंपनी ह गे।’’
अगली दो बैठक म चेयरमैन के िव टीम के लोग आिथक यौरा तैयार करने म जुटे रहे । इस
यवसाय म िजतने िनवेश क ज रत थी उस मुतािबक पैसे के संदभ म वे बड़ी रािश तक पहंच
गए।
मने अपनी सीिमत सोच से िजतना चेयरमैन से मांगने के िलए सोचा था उससे कह अिधक
यह रािश थी।
इसके बाद चेयरमैने ने मेरे से एक किठन ू ा, ‘‘आपके िहसाब से इसम िकस तरह क
पछ
िह सेदारी होगी?’’
म इस तरह क चचा के िलए तैयार नह था। लेिकन बाद म मने महसस ू िकया िक यिद कोई
िनवेशक आपके यवसाय म योगदान देता है तो वह आपक कंपनी म एक िह सेदारी ा करता
है य िक वाभािवक प से वह आपक कंपनी म िह सेदार बन जाता है।
मने जो यवसाय खड़ा िकया है उसम िकसी और को अहम िह सेदारी य दँू? ऐसा मने
सोचा। मने महसस ू िकया िक चेयरमैन बेवजह पैसे का िनवेश नह करगे; मुझे अपने यवसाय
का संपण ू िववरण उनके सामने कट करना पड़े गा। मुझे भय था िक एक उ मी के प म म
अपनी वतं ता खो दंूगा।
या म एक बार िफर उनका कमचारी बन जाउं गा और दैिनक आधार पर उ ह रपोट क ं गा?
या म इसीिलए नौकरी छोड़ी थी िक एक मोड़ पर िफर म वापस आ जाउं गा? अब म उनसे पैसे
लेने से िझझक रहा था। आज वे मेरे से िह सेदारी क बात कर रहे थे लेिकन कल वे मेरे यवसाय
पर क जा कर लगे।
‘‘इसे भल ू जाइए। म एक छोटे यवसायी के प म ठीक हँ।’’ मने ाय: समापन करते हए
कहा, जब ......

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42
बचपन के िम का मागदशन

म एक अजीब तरह क चुनौती का सामना कर रहा था। म िवकास के िलए अिधक िनवेश चाह
रहा था। साथ म िजस यवसाय को शू य से ारं भ करके खड़ा िकया था उस पर िकसी अ य
का िनयं ण भी नह चाह रहा था।
चाण य हमेशा कहा करते थे िक किठन प रि थित म िम क सहायता लेनी चािहए। मुझे
बचपन का एक अ छा िम था जो हर प र थित म मुझे सही सलाह देता था। म उनसे िमलकर
अपना हाल बताया।
मेरे िम एक बड़ी बहरा ीय कंपनी म काम कर रहे थे। वे वहाँ पर िव मुख थे। उ ह ने भी
अपने कॅ रयर म तेजी से तर क क थी। रणनीित संबंधी सलाह देने और यवसाय म मागदशन
देने म वे िनपुण थे।
उ ह ने कहा, ‘‘िनवेशक क मदद से आगे बढ़ने वाले येक यवसायी को ऐसी प रि थित
का सामना करना पड़ता है। आपको आगे बढ़ने क त रत है लेिकन आप अपनी कंपनी का
िनयं ण दूसरे के हाथ म नह देना चाहते ह।’’
मने दुहराया, ‘‘वे कंपनी म िह सेदारी चाह रहे ह।’’
िम ने मेरे से िकया, ‘‘इसके िसवा म और या मांगगे?’’ मेरे पास इस का प
जवाब नह था।
उ ह ने प िकया, ‘‘जो कोई पैसे का िनवेश करता है उसे यवसाय म िह सेदारी मांगने
का उिचत हक है। िजस तरह से तु हारे िलए यह एक यवसाय है उसी तरह से उनके िलए भी यह
एक यवसाय है। इसिलए यह उिचत है िक तु ह िह सेदारी प ित पर सही ढं ग से बात करनी
चािहए।’’
उसने आगे कहा, ‘‘इसका सकारा मक प इस कार देखो। तु ह न केवल उनका पैसा िमल
रहा है बि क इतनी बड़ी कंपनी चलाने का उनका यापक अनुभव भी तु ह िमल रहा है। एक
तरह से तुम भा यशाली हो।’’

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म िव कुल भी उनक बात से सहमत नह था। मेरे दो त ने मेरे मन को भांप िलया और उसने
अपनी बात को एक उदाहरण के मा यम से प करना चाहा।
‘‘हर माँ के िलए उसका ब चा मह वपण ू होता है। माँ का अपने ब चा से लगाव होता है। वह
अपने ब चे के िलए अपना परू ा यार और ममता यौछावर कर देती है। माँ ब चे को िखलाती है,
बीमार होने पर उसका यान रखती है, उसे चलना और बोलना िसखाती है।’’ म इस बात को
समझ सकता था। एक यवसायी के प म पहले ही िदन से मने अपनी कंपनी का यान एक
ब चे क भांित रखा।
‘‘इसके बाद ब चे को कूल म भत करने क सबसे मह वपण ू चुनौती सामने आती है। यह
बहत किठन होता है िक ब चे को उस कूल म भेज िदया जाए जो माँ और ब चे दोन के िलए
अप रिचत है। यह ब चा भी अजनबी से िमलने पर िवरोध करे गा।’’
हालांिक माँ जानते रहती है िक दुिनया क चुनौितय का सामना करने के िलए ब चे को
कूली िश ा ज री है।
या तुम जानते हो िक कूल म सबसे मह वपण ू यि कौन होता है?
मने तुरंत जवाब िदया, ‘‘िश क।’’
मेरे िम ने मु कुराते हए कहा, ‘‘िव कुल सही। हालांिक माँ ब चे क पहली िशि का होती है
लेिकन उसके िश ा क एक सीमा होती है। माँ जानते रहती है िक ब चे को कूल जाना है और
वहाँ पर उसे िवषय िवशेष के िश क ान दगे।’’ मुझे उसक यह बात समझ आ गई।
उ ह ने आगे प िकया, ‘‘ यवसाय म भी िनवेश के मामले म समझना चािहए िक जो पैसा
िनवेश कर रहा है उसके पैसे को ही िसफ नह देखना चािहए बि क िनवेशक आपका िश क भी
बन सकता है।’’ म िजतने लोग से िमला था उनम चेयरमैन सबसे अ छे यवसाय िश क थे।
‘‘तुम भा यशाली हो। तु ह न केवल एक िनवेशक िमल रहा है बि क हमारे देश के सबसे
आदरणीय एवं अ छे यवसायी तु हारे िह सेदार बन रहे ह।’’ मेरे दो त मेरे ित बहत खुश थे।
अंत म सलाह के िनचोड़ के तौर पर उ ह ने कहा, ‘‘इस पर दुबारा मत सोचो। यवसाय म
आगे बढ़ने के िलए यह एक विणम अवसर है। दोन हाथ से इस अवसर को लपक लो।’’
‘‘तुम जानते हो िक हम बचपन के दो त ह लेिकन िपछले कुछ वष से तु हारे ित मेरा आदर
बढ़ गया है।’’ ऐसा उ ह ने कहा।
मने प ीकरण चाहा, ‘‘आदर?’’
‘‘हाँ, आदर। हमम से अिधकांश लोग बड़ी कंपिनय म मोटी तन वाह पर काम करते ह
लेिकन तु हारे जैसे उ मी बनने क जोिखम नह उठा सकते ह। मेरी तरह तु हारे पास भी इस
चेयरमैन के अंदर मोटी तन वाह पर व र पद पर काम करने का िवक प था। लेिकन तुमने
ऐसा नह करने का िनणय िलया था।’’ वह थोड़ा भावुक हो गया।
‘‘अब वही यि तु हारा सहयोगी बनना चाहता है, तु हारे यवसाय म िनवेश करना चाहता
है। अब तु ह इससे अिधक या चािहए?’’
जैसे ही हम जुदा होने लगे उ ह ने मेरी आँख म झांका और कहा, ‘‘तुम केवल मेरे दो त ही

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नह हो बि क मेरे रोल मॉडल भी हो। म भी चाहता हँ िक एक िदन इस बड़ी नौकरी को छोड़कर
अपना छोटा—सा करोबार शु क ँ ।’’
मने उसक पीठ थपथपायी और कहा, ‘‘सचमुच? तुम मेरे से बेहतर यवसायी सािबत होगे।
मेरी ओर देखो, म खुद का यवसाय चला रहा हँ, िफर भी आगे बढ़ने के िलए तुमसे परामश लेने
आता हँ।’’
वह हँसने लगा, ‘‘सलाह देना आसान है लेिकन खुद उसका पालन करना किठन है।’’
म जीवन म एक बार पुन: िदशािनदश ा करके स न था। मने चेयरमैन का ताव मान
िलया और िह सेदारी के तौर—तरीके को संरचना मक व प िदया। उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘हम
एक बड़े शु आत क योजना तैयार करनी चािहए िक हम िव मंच पर पहँच गए ह। वह तु हारी
कंपनी का दूसरा सं करण होगा....’’
मने उ ह रोका, ‘‘सर हमारी कंपनी।’’ वे हँसने लगे।
मने महसस ू िकया िक चेयरमैन के एक िनवेशक एवं िह सेदार के प म आने साथ ही मेरी
कंपनी का बहत कुछ बदल गया। मेरे आ मिव ास का तर उठ गया। म दुिनयाभर के पेशेवर
लोग एवं िवशेष से िघरा रहता था।
हमने योजना बनायी क यह शुभारं भ िकसी पंच िसतारा होटल से िकया जाए। मेरी कंपनी के
नए अवतार के शुभारं भ काय म क बागडोर चेयरमैन और उनक टीम ने संभाल ली। मीिडया
के बहत—से लोग उपि थत थे।
इस अवसर पर उ ोग जगत क बड़ी—बड़ी हि तयां मौजदू थ । चेयरमैन ने बहत ही गौरवपण ू
अंदाज म सबसे मेरा प रचय करवाया। बहत से टी.वी. चैनल ने मेरा सा ा कार िलया।
मेरे बचपन के दो त उस काय म म उपि थत थे। उ ह ने कहा, ‘‘जरा सोचो िक यिद तुम इस
ताव को नह माने होते तो या तुम अपनी कंपनी का यह उछाल देखे होते?’’
मने िसर िहलाया और कहा, ‘‘माँ हमेशा चाहे गी िक िश क के मागदशन म ब चा आगे बढ़े ।’’
हम दोन ने एक—दूसरे को गले लगा िलए।’’

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43
डॉ टर का अनरु ोध

डॉ संटरबंिधयअपनेकेनएसाथघरभी—घुलपित—िमल
के घर म आसानी से रम गई। वह मेरे माता—िपता एवं सगे—
गई। मेरे िलए यह एक सुखद संकेत था।
भारत म िववाह अलग कार का होता है। मुझे िविभ न िम और सगे—संबंिधय के घर म
भोजन के िलए आमंि त िकया जाता था।
मुझे लगा िक िनमं ण के इस िसलिसला शी अंत हो जाएगा िकंतु एक साल से अिधक तक
चलता रहा। म अपने काय और पित धम के बीच तालमेल बैठाते रहा।
हमारी सं कृित म बेिटयाँ जैसे स चती ह, उनसे हम प रिचत ह। लालन—पालन, यार, ममता
और िश ा देने वाले माता—िपता के घर को छोड़कर वे प नी और बह क नई भिू मका को
वीकार करती ह। वे इस नए प रवार को अपना मान लेती ह, मगर वे अपने माता—िपता के
प रवार को छोड़ नह पाती ह। म ृ यु पय त वे दोन प रवार क देखभाल करती ह।
पी–एच.डी. परू ा करने के बाद डॉ टर िव िव ालय म पढ़ाने लग । अपने े म िवशेष
होने के नाते वह संगो ी एवं स मेलन म भाग लेने के िलए बराबर या ाएं करती रहती थ ।
एक रात भोजन करते समय अचानक वह पछ ू बैठी, ‘‘आप अपनी पी—एच.डी. कब करने क
योजना बना रहे ह?’’
इस से मुझे आ य हआ। अपने यवसाय को आगे बढ़ाने के च कर म मुझे पी—एच.डी.
करने के अपने सपने क ितलांजिल देनी पड़ी। यह मुझे अतीत म लेकर चला गया। पी—
एच.डी.? नह , म नह ...’’
वह कुछ पछ ू ती उससे पहले मने प िकया। ‘‘म अपने यवसाय को आगे बढ़ा रहा हँ, मेरी
अनेक ितब ताएं ह। िकस कार म पुन: संपण ू अकादिमक ि या से गुज ं गा? म नह
सोचता िक ऐसा संभव होगा.... मेरी अब अ ययन म िच नह रही।’’
डॉ टर होिशयार थी। उसने मेरे पर दबाव नह डाला। उसके मन म अलग रणनीित थी।
‘‘ या तु ह इस शिनवार को समय है? या तुम िव िव ालय आ सकते हो? मेरे छा तु हारे

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बारे म पछ ू रहे थे। यिद तुम आ सको तो वे लोग तु हारे साथ कुछ व त िबताना चाहगे और तुमसे
यवसाय िव तार का अनुभव ा करना चाहगे।’
‘‘तु हारे छा मेरे बारे म पछ
ू ते ह?’’ म कुछ समझा नह ।
‘‘एक िदन वे टी.वी. पर तु हारा सा ा कार देखे थे और वे तु हारे काम से प रिचत ह। वे कह
रहे थे िक तुम उनके बीच अपने यवसाय के व प पर या यान देने के िलए आते तो अ छा
होता।’’ म उ सुक हो गया। म नह जानता था िक लोग मेरे पर नजर रख रहे ह।
मेरे माता—िपता दोन उस चचा म शािमल हो गए। माँ ने कहा, ‘‘मेरे दो त ने भी टी.वी. पर
सा ा कार देखा और वे शंसा कर रही थ । िपता जी ने कहा, ‘‘कुछ लोग ने अखबार म
चेयरमैन के साथ तु हारा फोटो देखा।’’
म फूलकर चौड़ा होने लगा। म यह जानकर स न हो गया िक अनेक लोग एक यवसायी के
प म मेरी उपलि ध से प रिचत थे। मने डॉ टर से कहा, ‘‘लेिकन मेरे पास या यान तैयार
करने के िलए समय नह है।’’
‘‘यह कोई औपचा रक या यान नह होगा, बि क छा के साथ अनौपचा रक बातचीत
होगी।’’ वह मुझे आभास कराना चाहती थी िक यह एक सामा य—सा काम है।
म इस संबंध म िवचार ही कर रहा था िव वह बोली, ‘‘बस एक घंटे के िलए आओ। इस संबंध म
बात करो िक कैसे यवसाय ारं भ हआ, कैसे आपने इसको चलाया और िकस कार बड़े
िनवेशक इसम शािमल हो गए — एक कमचारी से उ मी बनने के िलए पांत रत मन:ि थित से
जुड़े सभी अनुभव।’’
िपताजी ने कहा, ‘‘तुम इसम इस बात का भी उ लेख कर सकते हो िक तु हारे यवसाय के
हर कदम पर अथशा ने तु हारी िकस कार सहायता क । चाण य के साथ जो तु हारा सू
जुड़ा हआ है उससे लड़के—लड़िकय को ाचीन भारत के ान को अ ययन करने क ेरणा
िमलेगी।
डॉ टर ने बात को आगे बढ़ाते हए कहा, ‘‘मेरे छा तु हारे जीवन के वा तिवक अनुभव को
सुनकर खुश ह गे। उनक कुछ िज ासाएं ह गी िजनका समाधान तुम स के अंत म कर दोगे।’’
इसके बाद मने वयं को सहज महसस ू िकया। मुझे शोध—प तैयार नह करना पड़ा, मुझे
िसफ अपनी कहानी सुनानी है। ‘‘ठीक है, मुझे शिनवार को िकस समय आना है?’’
‘‘अगले िदन िव िव ालय जाने के बाद म इस संबंध म पुि करती हँ।’’अगले िदन शाम म
डॉ टर ने कहा, ‘‘शिनवार को सुबह साढ़े दस बजे आपके िलए कैसा रहे गा?’’ मने हामी भर दी।
डॉ टर ने उ सािहत होकर कहा, ‘‘तुम जानते हो, जब मने कहा िक तुम िव िव ालय म आ
रहे हो तो िश क और छा के बीच यह खबर जंगल के आग क तरह फै ल गई। अब दूसरे
िवभाग के छा क ओर से भी ऐसी मांग होने लगी ह। सबसे अ छी बात है िक मेरे िवभागा य
सिहत दूसरे िश क तु ह सुनने के िलए आ रहे ह।’’
अब म खुद को परे शान और िचंितत महसस ू करने लगा। ‘‘तुमने कहा था िक यह एक
अनौपचा रक चचा होगी; लेिकन यह तो इससे अिधक होने जा रहा है। ऐसे म म या बोलंग ू ा?’’
‘‘वही कहानी जो तुम मेरी क ा म कहते। अंतर केवल इतना होगा िक इसम लोग क

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सं या थोड़ी अिधक होगी। मगर इससे या फक पड़ता है?’’
मेरी माँ भी इस चचा म शािमल हो गई। ‘‘ या इस काय म म म षािमल हो सकती हँ। इसी
तरह से म उस जगह को भी देख लंग ू ी जहाँ मेरी बह पढ़ाती है और ोताओं के बीच बैठकर अपने
बेटे को भी सुनँग ू ी।’’
डॉ टर बहत खुश हो गई। ‘‘बहत अ छा िवचार है म मी! इस तरह से आप मेरे सहकिमय से
भी िमल सकगी। आप जो मेरे िलए खाना भेजती ह उसक वे सब बहत शंसा करते ह।’’ इन
मिहलाओं का काम करवाने का अपना ढं ग होता है।
उसके बाद बह ने अपने ससुर क ओर देखा और उनसे कहा, ‘‘पापा, लीज आप भी इसम
शािमल होइए ना।’’ िपता जी के चेहरे को देखकर ऐसा लगा िक वे इसम शािमल होने के िलए
बस आमं ण क ती ा कर रहे थे।
अब मने ह त ेप िकया, ‘‘ठीक है, मगर अब तुम अपने माता—िपता को भी न बुला लो।’’
डॉ टर का चेहरा उतर गया। ‘‘अ छा बाबा, म उ ह अगली बार बुला लँग ू ी।’’
म थोड़ा उि न था लेिकन अंदर से स न भी था। म एक शै िणक सं थान म पुन: जा रहा
था। उस थान पर िजसे म पसंद करता हँ। मुझे ऐसा लगा िक एक बार म पुन: वयं से जुड़ रहा
हँ।
और िफर वो शिनवार आ गया .....

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44
एक भारतीय यवसायी का या यान

डॉ तटरुम बहत
ने मुझे औपचा रक सटू पहनने के िलए कहा। जब मने सटू पहन ली तो उसने कहा िक
आकषक लग रहे हो। जब हम सबने िव िव ालय क ओर थान िकया तब
मेरा आ मिव ास बढ़ा हआ था।
मने महसस ू िकया िक जो बात एक छोटी—सी अवधारणा के प म शु हई थी वह बड़ी
संगो ी का प ले ली। मेरे स का आयोजन एक सभागार म िकया गया था िजसम २०० से
अिधक छा के भाग लेने क उ मीद थी, साथ म िविभ न िवभाग के ोफेसर भी।
िजस िवभाग म मेरी प नी पढ़ाया करती थी सबसे पहले उसके व र तम िश क और
िवभागा य से िमलवाने के िलए मुझे ले जाया गया।
‘‘हमारे प रसर म आपका आगमन सुखद है। समय देने के िलए आपको ध यवाद। आपके
काय के बारे म आपक प नी हमलोग को अ तन जानकारी देती रहती है, खासकर कौिट य
के अथशा पर जो शोध आपने िकया है।’’
‘‘मैडम, म वयं को स मािनत महसस ू कर रहा हँ िक मेरी छोटी—सी उपलि ध पर मुझे
बोलने का अवसर िदया जा रहा है। यह सब ई र क कृपा और अनेक बुजुग के आशीवाद के
प रणाम व प ा हआ है।’’, ऐसा मने कहा।
चाय लेते हए मने पछू ा, ‘‘ या कोई िविश े है िजसके बारे म आप चाहती ह िक आपके
छा के साथ म बात क ं ?’’
इस पर उ ह ने कहा, ‘‘यिद आप यह प कर िक अथशा आपके यवसाय म िकस
कार ासंिगक रहा तो अ छा होगा, इससे हमारे छा को भारतीय ंथ को पढ़ने क ेरणा
िमलेगी।’’
उ ह ने बात को आगे बढ़ाते हए कहा, ‘‘आप एक नौजवान ह और आपने इतना कुछ हािसल
कर िलया है। युवा पीढ़ी आपको अपना रोल मॉडल मानती है। उ ह जीवन म सफल होने के िलए
कुछ िट स अव य द।”

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जब मुझे सभागार म ले जाया गया तो खचाखच भरे हॉल को देखकर मुझे अचरज हआ।
प रचय करवाने के बाद मुझे मंच पर इस िवषय पर या यान देने के िलए बुलाया गया,
‘‘आधुिनक यवसाय म चाण य के ान का उपयोग।’’
मने ारं भ िकया, ‘‘जब पहली बार मेरे दादाजी ने अथशा से मेरा प रचय कराया तो मने
सोचा भी नह था िक इस ंथ पर म एक िदन िकसी िव िव ालय के स मािनत मंच पर
या यान दंूगा।’’
म थोड़ा भावुक हो गया, ‘‘सबसे पहले म अपने दादाजी, अथशा के मेरे गु , यहाँ उपि थत
मेरे माता—िपता को मेरा नमन तथा इस िव ालय के आचायगण एवं सभी ि य छा को
अिभवादन।’’ म मानता हँ िक मने अपने एक ारं िभक संबोधन से सभा के साथ एक संपक सू
थािपत कर िलया था।
‘‘म आपसे बताना चाहता हँ िक िश क होना सबसे बड़ा सौभा य है। मुझे खुशी है िक मेरी
प नी इस िव िव ालय म िश ण काय कर रही ह। प तौर जब म उनके कॅ रयर से वयं के
कॅ रयर क तुलना करता हँ तो मुझे ई या होने लगती है।’’
सभी लोग हँसने लगे।
‘‘मुझसे चाण य के ान का जीवन एवं यवसाय म योग िवषय पर कहने के िलए कहा
गया है। इसिलए म आपसे कहना चाहता हँ िक यिद आपको चाण य के ान को समझना है तो
आपको भारतीय अ या म को समझना पड़े गा। चाण य एक महान िश क एवं नपृ —िनमाता थे
लेिकन इससे भी बड़ी बात यह थी िक उनका आ याि मक आधार ठोस था।’’
‘‘यिद आप चाण य को समझना चाहते ह तो भगव ीता, रामायण और उपिनषद जैसे अ य
ंथ को पढ़। ऐसा म बचपन से करता रहा हँ और इससे मेरे म जीवन क सभी चुनौितय का
सामना करने के िलए आ मिव ास पैदा हआ है।’’
म उनके सामने या यान देते रहा िक म कैसे एक छोटे—से गाँव म एक सं कृत िश क से
अथशा सीखा, कैसे मने उ मी बनने का िनणय िलया, कैसे जीवन म रोजगार के अवसर को
पैदा करना अिनवाय था तथा अपने अ य अनुभव के बारे म।
‘‘रोजगार पाने क अपे ा रोजगार देने के िलए य न कर।’’ मेरे इस कथन क लोग ने
तािलय क गड़गड़ाहट के साथ वागत िकया। ‘‘आज मेरी कंपनी म ५०० से अिधक लोग
कायरत ह।
हालांिक हर बार जब मेरे सामने चुनौती आती है तो म अथशा को पलटता हँ और मुझे
समाधान िमल जाता है।’’
मने लगभग एक घंटे तक या यान िदया। उसके बाद ो र स शु हआ। अनेक कार
के ू े गए, यथा — िकस कार िव ीय सहयोग ा करने वाले लोग को ढूँढा जाए,
पछ
िकसी यवसाय म सफलता का मल ू मं या है, आिद।
मने उनम से अिधकांश के उ र िदए लेिकन यह युवा लड़क ने जो मुझसे पछू ी वह
मुझे सबसे अ छा लगा, ‘‘ या यह लड़क के िलए संभव है िक वह अपने काय और पा रवा रक
जीवन का बंधन करे और दोन म सफल ह ?’’

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मने जवाब िदया, ‘‘चाण य के अनुसार कुछ भी असंभव नह है।’’ मने िफर आगे कहा,
‘‘मिहलाएं बहत—से काय कर सकती ह। वा तव म, पु ष उन काय को नह कर सकते ह।
पु ष क तुलना म मिहलाओं म भावना मक बुि अिधक होती है। इसिलए वे सफल हो सकती
ह। हालांिक, यह सुिनि त अव य कर िक आपको मात ृ व का आनंद लेती ह। इसी से नारी क
पणू ता है।’’
मेरे इस व य के सभा म मौन छा गया। मने ये बात कहने के िलए योजना नह बनायी थी,
ये बात अनायास ही मँुह से िनकल पड़ । मने अपनी माँ और प नी क ओर देखा। दोन के चेहरे
पर मेरे कथन के ित शंसा का भाव झलक रहा था।
मेरे या यान के बाद िवभागा य ने मुझसे कहा, ‘‘आपका या यान बहत अ छा था। यह
हम सबके िलए बहत ही यावहा रक एवं लाभकारी था।’’
आिखर म उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘युवाओं को े रत करने के िलए आपको ऐसे और भी
या यान देने चािहए।’’
मने इंकार कर िदया, ‘‘जी नह मैडम, म इस काम के िलए बहत छोटा हँ। म अपनी प नी क
तरह पी—एच.डी. भी नह हँ। यह उसका े है। म इस े म य वेश क ं ?’’
उ ह ने ितवाद िकया, ‘‘तब आप पी—एच.डी. य नह कर लेते?’’
मेरी प नी मेरी ओर देखकर मु कुरा रही थी। ऐसा लग रहा था िक उस ोफेसर के मा यम से
वह वयं बात कर रही थी। म अब इसके बारे म गंभीरतापवू क िवचार करने लगा।
घर लौटने मेरे माता—िपता मेरे से गौरवाि वत थे और उ ह ने इस बात को कट भी क ।
जब म प नी के साथ एकांत म था तो प नी ने गला साफकर कहा, ‘‘आज तुमने या यान
म कहा िक िकस तरह नारी को मात ृ व का आनंद लेना चािहए ......’’

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45
संतान-सख

िव वाह िसफ दो यि का िमलन नह है, यह दो प रवार का िमलन है। िववाह का एक उ े य


संतनो पि तािक आपके बाद मानव संतित आगे बढ़ती रहे ।
‘‘हमारी अगली पीढ़ी आने वाली है।’’ यह कहते हए डॉ टर क आँख झुक हई थ । मुझे नह
मालमू था िक इस खबर पर कैसी िति या य कर। मने िविच ि थित महसस ू क । लेिकन
अचानक मुझे लगा िक म िपता बनने जा रहा हँ और डॉ टर माता। म खुश था लेिकन थोड़ा
सहमा हआ भी था य िक म इस नई िज मेदारी का वहन करना नह जानता था।
डॉ टर ने धीरे से अपनी नजर उठाय और मेरी ओर देखी। उसने मुझे संशय त और अ प
पाया। वह आ चय एवं िच ता के साथ पछ ू ी, ‘‘ या तुम खुश नह हो?’’
‘‘जी हाँ, मै। संशय त हँ लेिकन ......’’ मुझे िवचार करने के िलए कुछ समय एकांत क
ज रत थी।
वह एकाएक परे शान हो गई, ‘‘मगर य ?’’
‘‘मेरे कहने का मतलब है िक हम माता—िपता बनने जा रहे ह। सही है न?’’
‘‘जी हाँ, हम ज द ही माता—िपता बनने जा रहे ह।’’
मने वयं को शांत िकया और मु कुराते हए कहा, ‘‘बहत खबू ! मुझे िव ास नह हो रहा है।’’
म खुशी से िच लाने लगा और उसे अपनी बाँह म भर िलया।
माता—िपता बनना आनंददायक है लेिकन इसके साथ िज मेदारी भी आती है। म एक
िज मेदार माता—िपता बनना चाहता था।
उस िदन अपने द तर म बैठे हए मने महसस ू िकया िक पहली बार म िपता बनने जा रहा हँ
लेिकन मेरा प रवार पहले से बड़ा है — कंपनी म काम करने वाले सभी लोग तो मेरे ही प रवार
के सद य ह। यिद म इतने सारे लोग का यान रख रहा हँ तो म अपने ब च का भी यान रख
सकता हँ।
िपत ृ व के िलए चाण य ने अ ुत परामष िदया है:

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पहले पाँच साल तक ब च को लाड़- यार द। उसके बाद अगले दस साल
तक उसे अनश ु ािसत कर। इसके प ात् उसके साथ िम वत यवहार
कर। (चाण य नीित)

ई र ने हम जुड़वे ब चे से नवाजा — एक लड़क और एक लड़का। वे देखने म एक जैसे थे


लेिकन लोग दोन क अलग—अलग प म पहचान कर सकते थे।
ब चे के ज म के साथ अनेक कार के आयोजन, सं कार काय म तथा नामकरण सं कार
से लेकर िविभ न मंिदर के दशन करने से हमलोग य त हो गए। द तर म रहते हए भी सच म
मेरा मन घर पर ही लगा रहता था। म घर आकर ब च को देखने का इंतजार करते रहता था।
मेरे माता—िपता और डॉ टर के माता—िपता म िमलना—जुलना अिधक होने लगा। दो त
और सगे—संबंिधय का भी आना—जाना अिधक होने लगा।
िपत ृ व का पहला चरण बहत ही आ यजनक होता है। ब चे माता—िपता को भगवान मानते
ह। माता—िपता के कहे हर बात को वे सच मानते ह।
जैसे ही मेरे ब चे बड़े हए तो मने महसस
ू िकया िक मेरी बेटी हमेशा बेटे से कािबल रही। वह
कहा करती थी, ‘‘सुनो, म तुमसे पाँच िमनट बड़ी हँ। इसिलए मेरे से आदर से पेश आओ।’’
इसी दौरान मने अपने जीवन का सबसे किठन िनणय िलया: पी—एच.डी. म वेश ले िलया।
अब मुझे अपने समय को तीन भाग म िवभािजत करके िज मेदा रय का वहन करना था —
अपने यवसाय पर, िपत ृ व धम का अ छी तरह से पालन करने तथा पी—एच.डी. के िलए
अ ययन एवं शोध करने।
मेरे पी—एच.डी. के गाइड बहत ही बुि मती एवं ममतामयी थ । वे घर और कायालय म मेरी
िज मेदा रय को जानती थ । उ ह मुझे कुछ सू िदए।
‘‘याद रख िक िव िव ालय म शोध काय के दौरान आपको दो समानांतर गितिविधय का
सामना करना पड़ सकता है। पहला है अ ययन कर और अपना शोध काय सुचा प से कर।
दूसरा है शासिनक पहलू िजसके तहत आपको औपचा रकताओं को परू ा करना है। इन दोन के
बीच संतुलन बैठाने का यास कर।’’ उनके इस सू से मुझे काफ मदद िमली।
अब म पी—एच.डी. पाठ्य म म औपचा रक प से वेश ले िलया था। मुझे िव िव ालय
िनयिमत प से जाना पड़ता था। मेरे िलए यह एक अ छा अनुशासन था। म अपना काफ व त
पु तकालय म िबताता था, पु तक पढ़ने एवं अ य शोधािथय से बात करने म।
मुझे शोध— िविध क ाओं म उपि थत होना पड़ता था तािक म िव िव ालय के शोध
ि या से अवगत हो सकँ ू । उस समय मुझे पता चला िक ऐसे कुछ छा ह जो मेरी इस या ा म
साथ दगे।
साथ शोध कर रहे एक पी—एच.डी. शोधाथ ने मुझसे पछ ू ा, ‘‘आपके शोध का िवषय या
है?’’

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‘‘कौिट य का अथशा और इसका नेत ृ व दशन — आधुिनक यवसाय म इसका
उपयोग।’’
वह बहत भािवत हआ। ‘‘बहत खबू ! यह तो बहत ही िदलच प है। एक बार यह शोध काय
परू ा होने पर मुझे िव ास है िक आप इस िवषय को पढ़ाने लगगे।’’
उस समय मने महसस ू िकया िक अिधकांश लोग अपना पी—एच.डी. अकादिमक कॅ रयर म
आगे बढ़ने के िलए करते ह। हालांिक म पहले से ही चाण य और उनके ान का उपयोग अपने
यवसाय म कर रहा था। मुझे िकसी अ य अकादिमक कॅ रयर क आव यकता नह थी।
मने महसस ू िकया िक ई र न कर, यिद भिव य म मेरा यवसाय ठीक तरह से नह चला तो
म अपनी प नी क तरह अकादिमक एवं िश क के प म काय क ं गा। िबना िकसी योजना के
मेरे पास एक अ य कॅ रयर है — िश ण का।
मने अपने साथी शोधाथ से कहा, ‘‘जी, बाद म मुझे िश क बनने क योजना है।’’
मेरे कॅ रयर का यह समय बहत ही तनावपण ू था। हर मोच पर मुझे समय देने क ज रत थी।
म िनवाध प से काम करते जा रहा था।
अनेक बार एक ही िदन म यवसाय के िलए अनेक नगर क या ा करनी पड़ती थी, पु तक
पढ़ना, नोट्स बनाना, बोड मीिटंग म शािमल होना और अपने कमचा रय ारा तुत रपोट को
पढ़ना पड़ता था।
हालांिक जब कभी म घर लौटकर आता था तो ब चे दौड़े —दौड़े मेरे पास आते थे और उनके
‘पापा...’ कहते ही मेरे तनाव दूर हो जाते थे। म िफर से वयं को तरोताजा महसस ू करने लगता
था। येक रात मुझे अपने ब च का यह अनुरोध अ छा लगता था िक ‘‘पापा, कोई कहानी
सुनाओ ना।’’
मासम ू ब चे लोग को बहत कुछ िसखाते ह। वे आपक बात सुनते ह, आपको मानते ह और
आपक शंसा करते ह। ब च को कहानी सुनाते समय आप महसस ू करते ह िक यह उनके साथ
बातचीत करने का सबसे अ छा तरीका है।
इससे मुझे अपने बचपन क याद ताजा हो जाती थ जब मेरे दादाजी मुझे कहािनयाँ सुनाया
करते थे।

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46
धन से मो

मा एक िदन म अपने द तर म बैठे अपनी यवसाियक गितिविध पर िवचार कर रहा था तो म


पाया अब मेरे पास अनेक कंपिनयाँ ह। य िप मल
ू प से म पयटन यवसाय म था लेिकन
कुछ नई कंपिनयाँ भी बन गई ह।
हमने एक बस सेवा कंपनी क शु आत क थी। इसके बाद हमने एक ऐसी कंपनी थािपत
क थी िजसका एक काम था यो य पयटन गाइड तैयार करना जो भारतीय मारक के बारे म
जानकारी रखते ह तथा पयटक को इस संबंध म िव ततृ जानकारी दे सक।
इन कंपिनय पर ग़ौर करते हए मने पाया िक जैसा मने शु म सोचा था यवसाय उससे
अलग तरह का है। म पीछे झुक गया।
इस समय तक हमने काफ धन संिचत कर िलया था और मेरा यवसाय बढ़ता ही जा रहा था।
यह महसस ू करके अ छा लग रहा था िक इतने वष के मेरे प र म का फल एक साथ िमलने
लगा था।
इसके बाद मने धन के दशनशा पर िवचार करने लगा। आिखर धन या है? लोग कहते ह
िक पैसे के बदौलत दुिनया चलती है। पैसे के आगे दुिनया िसर झुकाती है।
इस पैसे क कृित या है? साथ ही, अथशा भी धन पर िवचार करता है। यह ंथ समय
क कसौटी पर खड़ा उतरा है य िक इसम पैसे एवं धन पर िवमश िकया गया है।
मने अथशा को पलटा तो मुझे ये श द िदखे:

इस िव ान के (अथशा ) के अि त व म आने से आ याि मक


क याण, भौितक उ नित एवं आनंद क ाि होती है। इससे
आ याि मक बरु ाई, आिथक ित और घण
ृ ा से बचा जा सकता है।
(15.1.72)

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मने महसस ू िकया िक पैसे से न केवल आिथक सुख बि क आ याि मक आनंद भी िमलता है।
म इस िवचार पर िकसी प रप व यि के साथ चचा करना चाहता था। मने चेयरमैन को फोन
िकया और उनसे िमलने के िलए समय मांगा।
‘‘िव कुल, कुछ त काल है या?’’ मेरे वर म मौजदू आकि मकता को भांपते हए उ ह ने
ऐसा पछू ा।
‘‘सर, पैसे और धन क कृित पर म आपके साथ बात करना चाहता हँ।’’
वे कुछ ण के िलए मौन रहे । िफर उ ह ने जवाब िदया, ‘‘अभी आ जाओ।’’
चेयरमैन ने अपने िदनभर के काम को समेट िलया और मेरे िलए तैयार हो गए। ‘‘हमलोग
समु िकनारे चलकर बात करते ह।’’
चेयरमैन जब कभी भी गंभीर प से िवचार करना चाहते थे तो वे समु िकनारे टहलने के
िलए जाते थे। शाम का समय था और यह समय सय ू ा त देखने के िलए भी सबसे उपयु होता है।
‘‘सर, पैसे के संबंध म आप अपनी समझ से मुझे अवगत कराइए।’’ मने बाचतीच क शु आत
क।
‘‘इस दुिनया म पैसा एक सश औजार है। यह आ यजनक काय कर सकता है। इससे तुम
बहत से भौितक पदाथ खरीद सकते हो। इसके सहारे नई व तुओ ं का आिव कार कर सकते हो।
असंभव काय कर सकते हो। यह तु ह दूसर क मदद करने म सहायक हो सकता है।’’ कुछ देर
ककर उ ह ने कहा, ‘‘धन से मो िमल सकता है।’’
म भ च का रह गया। मने पछ ू ा, ‘‘सर, आप आ याि मक मो क बात कर रहे ह?’’
‘‘जी हाँ, उसी मो क ।’’
मने अिव ास कट करते हए पछ ू ा, ‘‘धन से मो ?’’
मेरे चेहरे को देखकर उ ह ने कहा, ‘‘बहत—से मानते ह िक धन ही बुराई क जड़ है और
संसार म येक सम या का कारण। ये लोग संक ण मानिसकता के ह।’’ उनके चेहरे पर िवषाद
िदख रहा था।
उ ह ने आगे कहा, ‘‘भारत अनेक वष तक एक वैभवशाली देश था और साथ ही इसने बहत
अिधक आ याि मक उ नित भी क थी। वैभव अ या म म सहायक है। द र ता म यि ई र पर
वा तिवक प म यान कि त नह कर सकता य िक मन अि त व र ा क िचंता म ही लगा
रहता है।
दूसरी ओर जब यि के पास पया धन हो जाता है तो वह जीवन संबंधी दाशिनक
पछू ने लगता है, ‘‘म कौन हँ? या जीवन—म ृ यु से परे भी कुछ है?’’
मने तो इस प पर पहली बार िवचार िकया था। ‘‘यह ज री नह िक सभी धनी यि
आ याि मक ह लेिकन धनी यि अ या म को अलग ढं ग से समझ सकता है।’’ उ ह ने प
िकया।
तब मने उनसे पछ ू ा, ‘‘सर, या पैसे के कारण हम मोह त नह होते?’’
उ ह ने एक ू कर जवाब िदया, ‘‘ या द र ता वैरा य क गारं टी देता है?’’
पछ

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मने िफर पछ ू ा, ‘‘पैसे से यि घमंडी हो सकता है?’’
उ ह ने जवाब िदया, ‘‘ चुर मा ा म धन होने से आप दान कर पाएं गे।’’
‘‘धन यि को लालची बना सकता है।’’
‘‘धन ज रतमंद क सहायता करने म मददगार हो सकता है।
‘‘सर पैसा ही सब कुछ नह होता ह।’’
उ ह ने मु कुराकर पछ ू ा, ‘‘ या द र ता एक गुण है?’’
म उनसे सहमत नह था। ‘‘अिधक धन से अिधक सम याएं आती ह।’’
‘‘अिधक धन होने से आपके सामने िवक प के चयन क वतं ता होती है।’’
‘‘पैसे के पीछे भागने क कोई सीमा नह हो सकती।’’
उ ह ने कहा, ‘‘आनंद क कोई सीमा नह होनी चािहए।’’
म उनसे ू ते रहा और वे जवाब देते रहे । मुझे िविभ न पहलुओ ं से अवगत कराते रहे ।
पछ
बहत देर तक चचा करने के बाद, अंत म उ ह ने एक बहत सुंदर बात कही।
‘‘हमारे देश म वैभव को िद य माना गया है। इसे देवी ल मी का प िदया गया है। लेिकन
याद रखो िक यिद वैभव को आ याि मक व प न िदया जाए तो यह हािनकारक हो सकता है।
धन अपने आप म अ छा या बुरा नह होता। यह बात इसे रखने वाले यि पर िनभर है।’’
म थोड़ा सहमत हो गया जब उ ह ने देवी ल मी का उदाहरण िदया। ‘‘सर, कोई यि पैसे
को िद य प कैसे दे सकता है?’’
वे स न हो गए। ‘‘अ छा है। इसके उपाय ह।’’
उ ह ने प िकया, ‘‘ल मी भगवान िव णु क प नी ह। मरण रहे िक भगवान िव णु संपण ू
संसार का पालन करते ह। इस काय म उ ह ल मी क सहायता चािहए। ल मी जी उनके चरण
के पास िवराजमान रहती ह और ेमपण ू यान के साथ उनक सेवा त लीन रहती ह।’’
मुझे उनक उपमा पसंद आयी। उ ह ने कहा, ‘‘िव णु ान के तीक ह और ल मी वैभव के।
यिद तुम केवल ल मी क आराधना करोगे तो उनके पित िव णु नाराज हो जाएं गे। यिद तुम िव णु
क आराधना करोगे तो ल मी जी वत: आएं गी। जहाँ पित वह प नी। इसिलए ान क
आराधना करो धन वत: ही आ जाएगा।’’
इस पर हमदोन हँसने लगे। सय ू ा त हो चुका था। जब वापस घर आया तो इस धनी यवसायी
का वह कथन मेरे कान म गँज ू ने लगा, ‘‘धन से तु ह मो िमलेगा।’’
यि धन से भी मो ा कर सकता है। मने महसस ू िकया िक लोग अपने धन को लेकर
अपराधबोध से त रहते ह। पहली बार दुिनया के सबसे धनी आदमी बनने के अपने ल य के
ित म अपराध—बोध मु था।
म संतु होकर सोने के िलए चला गया।

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47
वा तिवक चन
ु ौती

म कएक—एक ई ंट जोड़कर अपने यवसाय का महल खड़ा कर रहा था। मगर अभी भी मुझे बहत
ु छ िसखना था। मेरी कंपनी िदन दूनी रात चौगुनी गित से उ नित करती जा रही थी। अब
यह एक िव यात एवं स मािनत कंपनी बन गई थी। पैसे तो आ रहे थे लेिकन हमारे सामने
चुनौितयां भी बढ़ती जा रही थ ।
एक िदन चेयरमैन ने मुझसे अनौपचा रक प स पछ ू ा, ‘‘ या आप जानते ह िक सवािधक
जिटल यवसाियक चुनौती या है?’’
मने जवाब िदया, ‘‘अिधकािधक पैसे ा करना।’’
‘‘पैसे क यव था करना एक सतत चुनौितपण ू काय है। वा तिवक यवसाियक चुनौित है
सही यि को अपनी कंपनी म भत करना।’’
मने लोग को पहले यह कहते हए सुना था िक यवसाय को आगे बढ़ना का असली रह य है
सही ितभा को अपनी ओर आकिषत करके उनका बंधन करना।
‘‘बहत से लोग मुझसे उस साधन के बारे म पछ
ू ते ह िजसके सहारे मने यवसाय म सफलता
अिजत क है।’’ चेयरमैन मुझे वा तिवक ान दे रहे थे।
‘‘हालांिक म उन लोग को बहत कार से जवाब देता हँ, मगर म यि गत तौर पर महसस ू
करता हँ िक वे आपके खास लोग होते ह िजनके सहारे आप अपने यवसाय को आगे बढ़ाते ह।
यवसाय के नेत ृ वकता के प म आप केवल िदशा दे सकते ह, रणनीित िवकिसत कर सकते ह
तथ नीित तैयार कर सकते ह। अंतत: आपके वे लोग होते ह जो आपको सफलता िदलाते ह।’’
जब म अथशा को पलट रहा था तब मने स म मंि य के चयन संबंधी चाण य के परामश
का एक अ याय देखा। िकसी भी यवसाय म अ छे बंधक के चयन के िलए यह परामश बहत ही
ासंिगक है।
चाण य ने भावी मं ी/ बंधक के चयन म िन निलिखत गुण पर िवचार करने क सलाह दी
है :

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1. िसखने के इ छुक : वह यि खुले िदमाग का हो। बंधन के सम त िस ांत को
िसखने के प ात् िश ु को काय थल पर अपने व र अिधकारीगण से यवहा रक प का
ान ा करना चािहए।
2. भावी ढं ग से वण करने क यो यता : वण के अंतगत सुनने के साथ—साथ
िचंतन करना भी आता है।
3. िवमश क मता : उसे प रि थितय को िविभ न ि य से देखना चािहए। बंधन के
े म तािकक एवं रचाना मक — दोन कार के िचंतन क आव यकता होती है।
4. गलत ि कोण को नकारने क यो यता : उसम वयं िन कष पर पहंचने क मता
होनी चािहए। उसम िविभ न िवचार के बीच अंतर करने क मता होनी चािहए।
5. स यिन ा, यि िन ा नह : यह यि को सम या से अलग करके देखने क
मता है। उसम अपने सतक िव े षण के प ात् ात स य पर िटके रहने क मता होनी
चािहए।

म अचरज म था िक चाण य ने िकसी यि को िनयु करने से पहले कैसे उसके


मनोवै ािनक प पर ग़ौर करते थे। मने चयन के इन िस ांत का उपयोग िकया और नए
िश ु बंधक को िनयु करने से पवू उनका इन गुण के आधार पर परी ण िकया।
इसके प रणाम पर आ य हो रहा था। नए बंधक को िनयु करते समय मने एक और
तकनीक का योग िकया।
जब कभी म िकसी कॉलेज म या यान देने के िलए जाता था तो म उन युवा लड़के—
लड़िकय से बात करता था जो मेरे यवसाय म शािमल होना चाहते थे। मने उनका परी ण िलया
और उनम से अनेक युवा मह वाकां ी लोग को िनयु िकया।
एक िदन मेरे एक िम , जो वयं बड़ा यवसाय करते ह, ने मुझसे पछू ा, ‘‘कैसे लोग आपक
कंपनी को छोड़कर नह जाते?’’ जबिक म लोग को अपने यहाँ िटकाए रखने के िलए संघष
करते रहता हँ मगर आपके कमचारी आपके ित वफादार एवं ितब िदखते ह और आपके यहाँ
बने रहते ह।
‘‘मेरे यहाँ लोग कमचारी के प म शािमल नह होते ह बि क वे छा के प म आते ह।
आपक कंपनी और मेरी कंपनी म एक मुख अंतर यह है।’’ मने गव के साथ कहा।
‘‘तु हारे यवसाय म लोग तु ह बॉस मानते ह लेिकन मेरे यवसाय म लोग मुझे गु एवं
िश क मानते ह। यिद आपक टीम आपको िश क मानेगी तो उनक ितब ता जीवनभर के
िलए रहे गी।’’
उ ह ने पछ ू ा, ‘‘ ितपिू त के िलए या?’’
‘‘आप अपनी मता के अनु प उ ह अ छी तन वाह द। याद रखो िक िसफ पैसे से लोग
आपक कंपनी म िटके नह रहते। उनके िटके रहने का वा तिवक कारण होता है िक उ ह यह
अनुभिू त होनी चािहए िक उनक देखभाल करने वाला कोई है।’’ मने इस संबंध म उ ह चाण य
का परामश बताया:

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सभी ि थित म िवपदा त जा का उ ह िपता के समान यान रखना
चािहए। (4.4.43)

म अथशा के ोक क या या उनके िलए इस प म क , ‘‘उ ह आप अपने ब चे क


तरह यार द और िफर देख इसका जादू।’’ हालांिक लोग मुझे एक युवा यवसायी मानते थे
लेिकन म तो बुजुग क तरह सोचता था।
मने अपने अंदर यवसाय मुख क भत शु क । सबसे अनठ ू ा अनुभव हआ जब मने अपने
अंदर एक सी.ई.ओ. को िनयु िकया जो मुझे रपोट करे । म एक यवसाय नेत ृ वकता था
लेिकन मेरे अंदर नेत ृ वकतागण थे जो मुझे रपोट करते थे।
चेयरमैन ने मुझसे एक बार कहा था, ‘‘वा तिवक यवसाय है अनेक यवसाय का एक साथ
संचालन करना।’’ मने महसस ू िकया िक लोग अनेक यवसाय चलाते ह, इसिलए आपको इन
यवसाय को चलाने वाले अ छे लोग चािहए।
हालांिक आप अपने यवसाय मुख को अ य कमचा रय क तरह नह मान सकते ह।
आपको उ ह अपने लाभ म से एक अंश, वतं ता और मागदशन देने ह गे। साथ ही उ ह भी
अपने यवसाय के िलए िज मेदार एवं जवाबदेह होना चािहए।
हमारी एक कंपनी बहत अ छा यवसाय कर रही थी। इसिलए हमने िनणय िलया िक रािश
उगाहने के िलए जनता के बीच शेयर यानी आई.पी. ओ. जारी करने का िनणय िलया।
अपने भावी िनवेशक के बीच िविभ न कार क तुितयाँ देना मेरे िलए िसखने का एक
बहत बड़ा अनुभव था।
मीिडया के साथ ऐसी ही एक बातचीत के दौरान, एक कार ने मुझसे पछ ू ा, ‘‘आपको
यवसाय का अ छा अनुभव है। अपने अनुभव पर आप िकताब िलखगे तो कैसा रहे गा?’’
एक ण के िलए म अवाक् रह गया।‘‘मने कभी पु तक िलखने के बारे म सोचा ही नह था।’’
वे मु कुराने लगे। ‘‘हर काम तो पहली बार ही िकया जाता है।’’
या म पु तक िलखने लायक ितभाशाली था और अपने अनुभव को दूसर के साथ साझा
करने के कािबल था? मने ऐसा कभी सोचा नह था लेिकन एक िति त प कार ने मुझे सुझाव
िदया और मने महसस ू िकया िक इस िवचार म दम है।
मुझे अथशा का ान देने वाले गु का ज मिदन था। मने उ ह फोन िकया। हर साल म
ऐसा करता था।
शुभकानाओं के बाद उ ह ने अचानक गंभीर वर म पछ ू ा, ‘‘आपके पी—एच.डी. का या
हआ?’’

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48
डॉ टर ने एक डॉ टर बनाया

मु कझेे पी—एच.डी. म दािखला िलए हए तीन साल हो गए थे। अपनी प नी के ठोस उ साहव
कारण ही म इस े म कदम रख सका।

हर कोई सफलता क कामना करते ह लेिकन किठन माग पर बहत कम लोग चलते ह। इसी
तरह म अनुमान लगा रहा हँ िक हर िशि त यि पी—एच.डी. करना चाहता है जो िक िश ा
जगत क सव च िड ी है।
हालांिक इ छा और ल य म अंतर होता है। हर कोई कुछ बनना चाहता है लेिकन बहत कम
लोग अपनी चाहत को ल य बनाकर उसे पाने के िलए किठन प र म करता है।
इसी अंदाज़ म मने अपनी पी—एच.डी. करने क इ छा को अपना ल य बना िलया और इसे
परू ा करने के िलए किठन प र म करने लगा, अपने यवसाियक काय म और घर पर समय
क ितब ता के बावजदू । हालांिक पी—एच.डी. क िदशा म मेरी गित बहत धीमी थी।
एक िदन मेरे गाइड ने मुझे फोन क , ‘‘आकर मुझसे िमिलए। मुझे आपके साथ एक मह वपण ू
चचा करनी है।’’ जब कभी वे बुलाती थ तो म िचंितत हो जाता था य िक मुझे पता था िक एक
िश क के प म मेरे शोध काय के िलए एक मह वपण ू सू दगी।
जब म उनसे िमला तो उ ह ने बहत ही िदलच प बात बतायी। ‘‘हम लोग एथस, यन ू ान जा रहे
ह।’’ इस वष यन ू ान म दशनशा िव काँ ेस का आयोजन िकया जा रहा है। यह दुिनयाभर के
अकादमीिवद्, िव ान और दशनशाि य का सबसे बड़ा स मेलन था जो एक मंच से िविभ न
िवषय पर बात करगे।
चँिू क म अथशा पर पी—एच.डी. कर रहा था, इसिलए मुझे चाण य से नेत ृ व दशन पर
शोध—आलेख तुत करने के िलए कहा गया था।
‘‘आपके आलेख को अंतरा ीय िव त् पैनल ारा चुन िलया गया है और आपको वहाँ
या यान देने के िलए बुलाया गया है।’’ उ ह ने मु कुराते हए कहा।
‘‘यन ू ान से पा ा य दशन का ादुभाव हआ जहाँ पर सुकरात, लेटो और अर तू का ज म

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हआ। इ ह ने मानव जाित को एक िदशा दी।
यनू ान क राजधानी एथस म ए ोपॉिलस जैसे अनेक ऐितहािसक थल ह जहाँ िव के लोग
अभी भी ेरणा लेते ह। ओलंिपक खेल क शु आत भी एथस से ही हई थी।
‘‘हमलोग भारतीय िश मंडल के सद य के प म जाएं गे। हमलोग इस दल के सद य
ह गे।’’ सचमुच भारत का ितिनिध व करना ित ा का िवषय है। ा य दशनशा क
शु आत भारत से हई और पा ा य दशनशा क शु आत यन ू ान से।
हम अपने दशनशा को लेकर वहाँ जा रहे थे। कई माह क तैयार के बाद अकादिमकजन
का एक दल भारत से यन ू ान के िलए रवाना हआ।
मेरे आलेख तुित क अंतरा ीय िव मंडल ने सराहना क । हमलोग को अ य देश के
िव ान के साथ िम ता भी थािपत हो गई।
मुझे आ य हो रहा था िक अकादिमक दुिनया बहत बड़ी और आपस म जुड़ी हई है। िव
कां ेस म १०० से अिधक देश के ५००० से अिधक ितिनिधय ने भाग िलया। मुझे एक अलग
दुिनया भी िदखाई दी।
हवाई जहाज से लौटते समय मेरी गाइड ने मुझसे कहा, ‘‘अपनी पी—एच.डी. यथाशी परू ी
कर ल। आपको नए अवसर ा ह गे।’’
मने िनणय िलया िक छ: माह म अपनी पी—एच.डी. परू ी कर लँग ू ा। रा ते म जो भी अवरोध
आएं म िनधा रत समय म ही अपने ल य को परू ा क ं गा।
अगला कदम था अपने वष के शोध का िनचोड़ शोध—सार तुत करना था। इसक मंजरू ी
िमलने के बवद मुझे शोध— बंध तुत करना था। अंितम चरण था सा ा कार म उपि थत
होना। इस सारी ि याओं को परू ा करने के बाद डॉ टर क िड ी दी जाती।
मेरी शोध ि या समापन क ओर थी। जैसा िक मेराथन दौड़ म होता है, अंितम चरण म गित
तेज करनी पड़ती है।
आगे बढ़ते हए म इस बात पर भी ग़ौर कर रहा था िक कैसे मेरी पी—एच. डी. या ा शु हई
थी। या ा के दौरान मने पी—एच.डी. उपािध ा करने के संबंध म अंत ि पायी।
इसम जो सबसे पहली बात मेरी समझ म आयी वह थी िक यह भारतीय िश ा यव था मे
मौजदू अ य पाठ्य म से िभ न होता है। अ य पाठ्य म म परी ा म उपि थत होना पड़ता है
और प रणात: जो अंक ा होते ह उससे भिव य िनधा रत होता है। वा तव म पी—एच.डी.
पाठ्य म म पंजीकृत हो जाने के बाद कोई औपचा रक परी ा नह होती है। इसम केवल शोध
करना पड़ता है और उसका िन कष ा करना रहता है।
दूसरा ान जो मुझे िमला वह था िक शोधाथ एवं शोध-िनदशक के बीच तालमेल होना
चािहए। यह बहत ही गाढ़ या ा होती है।
यह एक गु —िश य परं परा है िजसम छा को गाइड के वष के अकादिमक अनुभव का
लाभ िमलता है और छा को शोध काय परू ा करने के िलए गाइड उसे िदशा िदनश देता है।
मने अपना थीिसस तुत कर िदया था और सा ा कार का समना कर रहा था। मेरे गाइड के

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अित र बाहर के िव िव ालय के एक िवशेष ने मेरे थीिसस यानी शोध— बंध का
मू यांकन िकया था।
दो घंटे के सा ा कार के दौरान मुझसे मेरे शोध िवषय के हर संभव पहलुओ ं से जुड़े पछ ू
गए। इसका उ े य था िक मेरे शोध िन कष का मू यांकन करना िक इससे अकादिमक दुिनया
को या लाभ िमलेगा।
दो घंटे के बाद दूसरे िव ान ने कहा, ‘‘अ छा काम, डॉ टर। हमलोग शी ही आपको प रणाम
से अवगत कराएं गे।’’ मुझे कमरे के बाहर ती ा करने के िलए कहा गया।
कमरे से बाहर जाते समय मेरी गाइड मुझे देखकर मु कुराने लगी और मने तुरंत महसस ू
िकया िक दूसरे िवशेष ने मुझे डॉ टर कहा है। यह सू म संकेत था िक म अंितम चरण म सफल
हो गया। हालांिक वे िनयम से बंधे थे और सीधे तौर पर मुझे प रणाम नह बता सकते थे। मुझे
िलिखत प से बताया जाता। लेिकन म जान गया था िक काम परू ा हो गया।
अगले कुछ माह के बाद सभी औपचा रकताओं के परू ा होने पर मुझे एक प िमला और
डॉ टर क उपािध ा करने के िलए दी ांत समारोह म शािमल होने का िनमं ण िमला। मने
अपनी प नी को सहयोग देने के िलए केवल ध यवाद कहा। एक डॉ टर ने दूसरे को डॉ टर बना
िदया।
डॉ टर ने मेरी ओर देखा और संतोषपवू क कहा, ‘‘बधाई हो डॉ टर। अब तुमने अकादिमक
दुिनया के पहले ल य को परू ा कर िलया है, अब तुम अपना अगला ल य कब परू ा करोगे?’’
मेरा अगला ल य या था?

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49
िव ान से लेखक तक


कादिमक दुिनया बहत िविच है। मने सोचा था िक पी—एच.डी. िड ी लेने के बाद मेरी
अकादिमक या ा परू ी हो जाएगी। हालांिक मने महसस ू िकया िक यह तो एक दूसरी याया
क महज शु आत है।
म अपने गाइड को शोध काय म उनके िनरं तर सहयोग करने के िलए उ ह ध यवाद देने के
िलए गया था। मने महसस ू िकया िक अब मेरे ब चे न ह—मु ह बड़े हो गए थे और िविभ न
कार के पछ
ू रहे थे।
जब वे मुझे पछू ते थे िक दुिनया कैसे चलती है तो मुझे लगता था िक वे मुझे मेरे शोध—काय
के बारे म पछ
ू रहे ह।
चार साल के शोध काय ने मेरे अंदर के एक अलग यि को उभार िदया। मने यह सीखा िक
िवचार क प ता के िबना िकसी बात को वीकार नह करना। यह एक अ छी मानिसकता है।
यह आपको सही तरीके से सोचना िसखाता है — आ वीि क ।
सोचने का यह तरीका जीवनपय त आपक पँज ू ी बनी रहती है। आपक पी—एच.डी. उपािध
आपके साथ जीवनभर रहती है। जीवनभर लोग आपको डॉ टर कहकर संबोिधत करते ह —
ीमान् या ीमती कहकर नह । दुिनया आपको स मािनत िव ान के प म मानती है और
अलग नजर से देखती है।
‘‘पी—एच.डी. जीवन का एक नया ि कोण होता है। यह एक नई िखड़क होती है िजससे
आप बाहर क दुिनया को देखते ह।’’ मेरी गाइड ने कहा।
‘‘आपके सामने बहत से नए अवसर आएं गे। अपनी आँख—कान खोलकर रिखए। जब
अवसर सामने आए तो उसे जान न द।’’
उ ह ने अपना अनुभव साझा िकया, ‘‘मुझे यह मालम ू नह था िक डा टर क उपािध से म
या कर सकती थी। मेरे शोध िनदशक ने मुझे यह बात बतायी। म एक औसत दज क यि थी
लेिकन उनके मागदशन के कारण म इस िव िव ालय म हँ और भावी िचंतक —िव ान का
मागदशन कर रही हँ।’’

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म बहत ही अचरज से भरा रहता था जब वह अपना अनुभव मुझसे साझा करती थ ।
‘‘म िव मण क , िविभ न सरकारी सिमितय म िवशेष के प म रही, िश ा नीितयां
बनाय और ान के सार म योगदान दी।’’ उ ह ने गव के साथ यह बात बतायी।
म कुछ अिधक ेरक बात चाह रहा था। मने उनसे पछ ू ा, ‘‘ या िश क होना पया नह है?
या यह एक भ पेशा नह है? या होगा यिद िबना पी—एच.डी. िड ी के िश ण काय िकया
जाए?’’
‘‘इसम कोई संशय नह िक िश ण काय अपने आपम एक भ पेशा है िजसम िश क छा
का मागदशन करते ह। लेिकन पी—एच.डी. िड ी होने से आप न केवल छा को बि क संपण ू
िश ा यव था को भािवत करते ह।’’
मुझे अब उनक प ृ भिू म समझ म आ गई। दुिनयाभर म कूल और कॉलेज म लाख िश क
ह लेिकन उनम से बहत कम औपचा रक प से पी—एच.डी. परू ा कर पाते ह। तब हम पाते ह िक
वे अलग तरह से योगदान दे रहे ह।
मने अपने अथशा गु क बात को याद िकया। जब म उनके साथ एक स मेलन म गया
था तब उ ह मु यमं ी ने अनुरोध िकया था िक उनके मंि मंडल के सािथय के िलए या यान
द।
मु यमं ी अव य ही बहत से िश क को जानते ह गे लेिकन मेरे गु के तरह िवशेष
िश क अलग तरह के होते ह। उ ह अपने प रिचत िकसी अ य िश क को आमंि त नह िकया
केवल मेरे गु को ही य ? मेरे गु को ान के े म उ कृ तर का िवशेष माना जाता
है।
िवशेष क हमेशा मांग होती है। पी—एच.डी. िड ी होने से आप उस े के िवशेष हो जाते
ह। ‘‘आपने अथशा म पी—एच.डी. क है। अब आप अपने शोध का ान परू े संसार म फै ला
दीिजए। यह आपका अगला ल य होना चािहए।’’ मेरे गाइड ने मुझे ऐसा िनदश िदया।
मेरे कुछ कहने से पहले वे पुन: बोलने लग , ‘‘म जानती हँ िक आप एक य त आदमी ह।
यवसाय म आपक य तता है। आपको बहत—सी िज मेदा रय का वहन करना पड़ता है
लेिकन आप अपने य त काय म म से ही कुछ समय िनकािलए और देश के युवाओं का
मागदशन क िजए। उ ह आपके जैसे रोल मॉडल क ज रत है।’’
ये मेरे गाइड क मेरे िलए सलाह ही नह थी बि क ये िनदश भी थे। ‘‘छ: माह म कम से कम
एक शोध प अव य िलख और यिद संभव हो तो अपने अनुभव के आधार पर एक पु तक भी
िलख।’’ उ ह ने कहा।
ल बी बातचीत के बाद म उनके कमरे से बाहर आ गया। वह मु कुरायी। ‘‘िव िव ालय म
आते रिहए। पी—एच.डी. उपािध ा करने के बाद गायब नह हो जाइए।
मने सहमितपवू क िसर िहलाया और उ ह ने कहा, ‘‘याद रिखए पी—एच. डी. या ा का अंत
नह बि क यह एक बड़ी या ा क शु आत है, एक अंतहीन या ा क शु आत।
शोध काय परू ा करने के बाद मुझे लगा िक मेरे कंघे से बड़ा बोझ हट गया है। अब म उ चतर
िज मेदा रय को वहन करने के िलए तैयार था।

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एक िदन म अपने कायालय म बैठक ले रहा था उसी समय एक से स मैनेजर ने अपनी टीम
से कहा, ‘‘ यवसाय म गित करने का सव म तरीका है उ ोलन शि का योग करना। यिद
म उ ोलन शि का योग करते हए दस लोग तक पहंच सकता हँ तो म एक सौ लोग तक भी
पहँच सकता हँ। जीवन म आगे बढ़ने के िलए उ ोलन शि के योग को याद रखो।’’
मुझे अचानक यह िवचार पसंद आया। म अपने शोध िन कष को जनमानस तक पहंचाने के
िलए िकस उ ोलन शि का योग क ं ? यिद यि गत प से मुझे या यान देना हो तो म
हजार कॉलेज म या यान दे सकता हँ।
या एक थान पर बैठे लाख लोग तक पहँचने का कोई उपाय है? तब मने महससू िकया
िक अपने शोध काय के सार हे तु ान के े म सव म उ ोलन शि है पु तक लेखन।
बहत—से लोग िकताब पढ़ते ह। जो लोग आपसे यि गत प से िमल भी नह सकते ह वे
भी आपके लेखन म िव मान ान का लाभ उठा सकते ह। वा तव म, िकताब लेखक क म ृ यु
के बाद भी कायम रहती ह।
वरना चाण य िकस कार अपना ान हमारी पीढ़ी के लोग तक पहंचा सकते थे? उनके
पास अपने अनुभव और िन कष को अथशा के प म तुत करने क ि थी।
यिद चाण य ने अथशा नही िलखा होता तो उनका ान सदा के िलए न हो गया होता।
महान चाण य से भािवत होकर मने वयं एक पु तक िलखने का िनणय िलया। मेरे अंदर बैठा
िव ान लेखक बनना चाहता था।
म काशन क दुिनया से अनिभ था लेिकन मेरा अगला ल य था एक पु तक िलखना —
सवािधक िबकने वाली पु तक।

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50
सवािधक िबकने वाली पु तक

म का
ने अपनी पहली पु तक िलखने क तैयारी के दौरान एक पु तक म पढ़ा, ‘‘पु तक िलखने
सबसे अ छा तरीका है इसे िलख लेना।’’ म नह जानता था िक कैसे पु तके िलखी जाती
ह और काशन क दुिनया कैसे काम करती है लेिकन पु तक िलखने के ित म ढ़— ित
था।
मेरे यवसाय के एक लाइंट एक अिभजा य लब का सद य था। समय—समय पर वे लोग
लब के सद य के साथ िकसी िवषय पर चचा करने के िलए िकसी बाहरी व ा को आमंि त
करते थे। एक बार मेरे से लाइंट ने ‘‘चाण य और आधुिनक यवसाय म उनक ासंिगकता’’
िवषय पर या यान देने के िलए अनुरोध िकया। मने सहमित दे दी।
जब म वहां या यान देने के िलए गया तो मने महसस ू िकया िक शहर के सबसे धनी
यवसायी उसके सद य ह। वे िवभ न प ृ भिू मय से थे।
चाण य के ान पर या यान सुनने के िलए पण ू सं या म लोग थे। मुझे ऐसा लगता है िक
मने अपने आधे घंटे के या यान म उ ह भािवत कर िदया। या यान के बाद भी प रचचा होती
रही।
या यान के बाद एक बुजुग मेरे पास आए। उ ह ने कहा, ‘‘नौजवान, आपने बहत अ छा
या यान िदया। या आप इस िवषय पर पु तक िलखने का यास कर सकते है?’’ मुझे आ य
होने लगा य िक म इस िवषय पर पु तक कािशत करने के िलए बहत िदन से सोच रहा था।
उ ह ने मुझे अपना िविजिटंग काड िदया। मने देखा िक वह भारत के सबसे बड़े काशन के
चेयरमैन थे। मने उ ह ायु भाव से देखा। उनक कंपनी के पास हजार लोग अपनी पु तक
कािशत कराने के िलए आवेदन िदया होगा लेिकन बहत कम लोग के ताव को मंजरू ी िमली
होगी। और यहां पर ई र क अनुकंपा से इतने बड़े आदमी मुझे पु तक िलखने के िलए कह रहे
ह।
मने तुरंत जवाब िदया, ‘‘िव कुल िलखंग
ू ा सर।’’
उ ह ने सुझाव िदया, ‘‘हमलोग कायालय म िमलते ह अपने संपादक य टीम के साथ।’’

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अगले स ाह म उनके कायालय म गया। हम तीन लोग बैठक म थे। संपादक य टीम का
यवहार दो ताना था।
उनम से एक जो मेरे या यान म भी आए थे, ने कहा,‘‘सर उस िदन के आपके भाषण से
हमलोग काफ भािवत थे। आपका इस िवषय पर काफ भाव है। जैसा िक हमारे चेयरमैन ने
कहा है हम आपके साथ इस िवषय पर पु तक तैयार करने क संभावना तलाशी जाए।’’
म स न था िकंतु संकोच कर रहा था। ‘‘आपके उादार ि कोण के िलए आपको ध यवाद।
इस प रयोजना पर काम करने से मुझे खुशी है। लेिकन मुझे इस बात को वीकार करने म कोई
संकोच नह है िक पु तक लेखन का मुझे कुछ भी अनुभव नह है। एक पु तक को तैयार करने
म िकस बात क आव यकता होती है।’’
वे मु कुराने लगे। ‘‘इसीिलए तो हमलोग यहां पर ह। इसके िलए आप परे शान न ह । हमलोग
हमेशा वैसे अ छे लेखक क मता को उभारकर बाहर लाते ह जो हमारे काशन क गित म
सहायक हो। आपका टॉिपक — कौिट य का अथशा और आधुिनक यवसाय म इसका
उपयोग — हमारे िलए अ छा लगता है।’’
इस बात से इस प रयोजना पर काम करने के िलए मेरा आ मिव ास बढ़ गया। उस समय
हमारे बीच संपादक य टीम क एक और युवा लड़क आ गई, ‘‘सर, हमने आपके बारे म थोड़ा
शोध िकया है। िविभ न कार के यवसाय करने के साथ—साथ आपने कौिट य के अथशा
पर पी—एच.डी. भी क है।’’
‘‘जी हां, मने क है।’’ यह बात मने गव के साथ वीकार क । मुझे अपने गाइड क बात याद
आयी िज ह ने कहा था िक पी—एच.डी. करने के बाद आपका अलग संपक हो जाएगा।
मु य संपादक ने कहा, ‘‘ या आगे काम करने के िलए हम आपके पी—एच.डी. के शोध—
बंध को देख सकते ह।’’
मने कहा, ‘‘इसम कोई सम या नह है।’’
चेयरमैन भी इस वातालाप म शािमल हो गए, ‘‘यह अ छा काम है। आपको पहले से िलखने
का अनुभव है। कोई बात नह िक आप पहले से पु तक नह िलख ह। शोध का अनुभव और शोध
— बंध िलखने से मदद िमलती है।’’
मने उनके पास अपना शोध— बंध भेज िदया। एक स ाह के बाद संपादक य टीम से फोन
आया। ‘‘सर, या हमलोग आपके षोध— बंध को ही पु तक प म कािशत कर दे तो कोई
िद कत?’’ मेरी खुशी का िठकाना नह रहा।
‘‘आपका शोध बंध सरल श द म िलखा गया है िजसे सामा य पाठक भी समझ लगे।
हमलोग ने महसस ू िकया है िक इसे थोड़ा प रमािजत कर िदया तो यह एक अ छी पु तक बन
सकती है।’’ संपादक ने कहा।
पहली बार पु तक िलख रहे लेखक को और या चािहए? सबसे पहले िकसी कंपनी के
चेयरमैन आपसे संपक करते ह, िफर मु य संपादक कहते ह िक आपने पहले जो कुछ िलख
रखा है उसे पु तक का प िदया जा सकता है। मुझे लगा िक मुझे इस पु तक के िलए साम ी
जुटाकर नह िलखना है बि क साम ी पहले से तैयार है।

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अगले कुछ माह के दौरान हमने शोध बंध को संशोिधत िकया और एक अ छी िदखने वाली
पु तक का व प दे िदया। काशन ने इसका मू य इतना कम रखा िजसे पाठक आसानी से
खरीद सके।
िवमोचन से पवू जब पु तक क एक ित मेरे हाथ म आयी वह मेरे िलए एक भावुक ण था।
ऐसा लगा िक म अपने नवजात िशशु को गोद म िलया हआ हँ।
एक माँ के प म तो म कभी भी ि शु को ज म नह दे सकँ ू गा लेिकन म इससे समझ सकता
हँ िक अपने थम संतान के ज म के बाद माँ िकतनी खुश होती होगी।
स : सत ू ा माँ क अपने नवजात िशशु को देखकर अनुभिू त होती है, ‘‘मेरा एक अंश मुझसे
अलग हो गया है, मगर इसने मुझे पण ू बना िदया है।’’
मने अपने काशक से पछ ू ा, ‘‘पु तक तैयार है। हम इसे बे ट सेलर कैसे बना सकते ह?’’
चेयरमैने ने जवाब िदया, ‘‘इसके िलए हम कम से कम १०,००० ितयां बेचनी होगी।’’
एक यवसायी के प म मेरे िलए कोई ि य ल य बड़ा नह होता है। ‘‘बस इतना ही?
इतना तो म खुद ही िबकवा दँूगा। हम बड़ा ल य रखना चािहए।’’ मने आ मिव ास के साथ
कहा।
अगले कुछ माह के बाद िव िव ालय प रसर म पु तक का िवमोचन एक भ य समारोह म
िकया गया िजसम ३०० से अिधक लोग उपि थत हए। मने पु तक के चार के िलए यापक
अिभयान िकया। मने १४ नगर म पु तक समारोह का आयोजन िकया। अंतत: इसक एक लाख
ितयाँ िबक गई।
यह पु तक देश का बे ट सेलर बना और इसके ५० सं करण कािशत हए। इसके िलए
मीिडया भी ध यवाद के पा ह िज ह ने इसक अ छी समी ाएं कािशत क ।
संपादक ने मु कुराते हए पछ ू ा, ‘‘आप अपनी अगली पु तक कब िलखगे?’’

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51
आजादी का अ त
ु एहसास

िक ताब आपको िसि िदलाती ह। बे ट सेिलंग पु तक आपको सोहरत क बुलंदी पर ले


जाती है। मेरी पहली पु तक मेरे िलए एक यास था िक म काश उ ोग क कायशैली को
समझ सकँ ू ।
म अपने थम काशक को ध यवाद देता हँ िक उनके साथ काम करते हए मने उस खेल
को समझ िलया।
अगले पाँच साल के दौरान मने तीन िकताब िलख ।
एक टेिलिवजन प कार ने मुझसे सीधा सा रत होने वाले सा ा कार म पछू ा, ‘‘आप एक के
बाद दूसरे बे टसेलर कैसे िलख लेते ह?’’
मने मु कुराते हए उ ह कहा, ‘‘म पु तक िलखता हँ और मेरी कोिशश रहती है िक वे बे ट
सेलर ह ।’’ इन वष के दौरान पु तक और काशन उ ोग के व प म प रवतन आया है। मने
महसस ू िकया िक ांिडं ग और िवपणन सफलता का मल ू आधार है।
आपके पास अ छी िकताब हो सकती है, लेिकन यिद आपने उसका िवपणन ठीक से नह
िकया तो िकताब के दुकान के िकसी कोने म पड़ी रहगी और गुमनामी म वत: न हो जाएं गी।
हालांिक पु तक से जुड़ी गितिविधय का सतत आयोजन करते रहने से लोग इस पर ग़ौर
करते ह, इसके बारे म चचा करते ह और दूसरे को इसे पढ़ने के िलए कहते ह। अंतत: बात ही
बात म कोई पु तक बे ट सेलर बन जाती है।
इसी समय एक िस िफ म कंपनी ने मेरे से संपक क और कहा िक मेरी पहली िकताब पर
वे िफ म बनाना चाहते ह। इससे मुझे अचरज हआ। यह पु तक बंधन पर था और म समझ नह
सका क इस पर िफ म का िनमाण कैसे होगा।
िनमाता ने मुझे आ त िकया, ‘‘िचंता न कर। हम जानते ह िक कैसे िफ म बनायी जाती है।
यह हमारा काम है, बस आप हाँ कह दीिजए।’’
मने उ ह सहमित दे दी।

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एक साल के अंदर एक मेरी पहली िकताब पर एक बंधन िफ म का िनमाण हो गया। भारत
एवं िवदेश के िबजनेस कूल म इ क काफ सराहनी क गई। इसे कुछ अंतरा ीय िफ म
समारोह म पुर कार के िलए भी भेजा गया। इसके बाद बहत से लोग मेरी दूसरी िकताब पर
िफ म एवं धारावािहक बनाने के िलए मुझे ताव देने लगे।
जीवन एक नया मोड़ ले रहा था। म एक व न लोक म था। मेरे पास िसि , धन, ित ा,
सब कुछ वत: आते जा रहे थे। इसी समय एक यि ने मुझसे पछ ू ा, ‘‘आपका अगला ल य या
है?’’
मेरे जवाब से उ ह अचरज होने लगा, ‘‘मेरे पास कोई भी ल य नह है। मेरे सारे ल य परू े हो
गए। म अब भगवान से या मांगँ?ू ’’ प रपण ू तम अथ मेरे पास सब कुछ था — सतत फै ल रहा
यवसाय, यारा—सा प रवार, बुि मान ब चे और अ छे दो त।
हालांिक इस बीच एक िदलच प यह हई थी िक बहत—से धनी यवसायी मेरे से सलाह लेने
लगे थे। उनम से अिधकांश मेरे से धनी थे और उ एवं अनुभव म मेरे से व र थे।
मने एक बार एक धनी यवसायी से पछ ू ा, ‘‘सर, म आपसे उ म छोटा हँ तथा आपका अनुभव
भी मेरे से अिधक है। तब आप मेरे पास य आते ह?’’
उ ह ने कहा, ‘‘सर, आपके पास एक चीज है जो मेरे पास नह है।’’
‘‘वह या?’’
‘‘चाण य के ान क यवहार म उपयोग।’’
इस बात म स चाई थी। म चाण य और उनके अथशा का उपयोग यवहा रक जीवन म कर
रहा था। एक िश क, यवसायी और परामशक के प म म चाण य के परामश का अनुसरण
कर रहा था।
बहत-सी कंपिनयां और यवसाियक संगठन मुझे अपने यहां बीज व व देने के िलए
आमंि त करती थ । इससे मुझे यवसाय को उसके सम प र े य म समझने का अवसर ा
हआ। पी—एच.डी. िड ी और बे ट सेिलंग लेखक के दजा होने से मुझे अनेक थान पर
या यान के िलए बुलाया जाने लगा।
एक िदन एक कंपनी के चेयरमैन जो मेरे या यान के दौरान उपि थत थे, ने मुझसे कहा,
‘‘सर, म जानता हँ िक आप एक य त यि ह? मगर या आप मेरी कंपनी के परामश मंडल
म शािमल ह गे? इससे मुझे यवसाय को िदशा देने म मदद िमलेगी।’’
उ ह ने आगे कहा, ‘‘म आपको अपनी कंपनी म शेयरधारक भी बना दंूगा। यक न मािनए िक
म आपके समय एवं परामश के िलए आपको सव म तरीके से ितपिू त कर दंूगा।’’
मने कभी नह सोचा था िक िकसी अ य के यवसाय म परामश देने के बदले मुझे वािम व
म िह सेदारी िमलेगी।
इस संबंध म िदशा पाने के िलए मने एक महान िव ान का अथशा पर भा य को पलटकर
देखा। िलखा हआ था:

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धन केवल वही नह है जो आपके पास है बि क जो आपके अंदर है वह
भी आपका धन ही है।

मने आंत रक िवकास िकया था। म अपना मू य तब तक नह समझ पाया जब तक िकसी ने


उसका उ लेख मुझसे नह िकया। मैने अपनी आँख बंद कर ल और ऐसे कृपापण ू जीवन के िलए
ई र को ध यवाद िदया।
उस िदन भगव ीता का पाठ करते समय मने महसस ू िकया िक एक यवसायी का सव प र
ल य समाज क सेवा होनी चािहए न िक धन का सं ह और पैसे के पीछे भागते रहना।
अंतत: मने िव का सवािधक धनी यि बनने के अपनी इ छा का याग कर िदया। मने
वयं को मु महसस ू िकया। मेरी कोई इ छा शेष नह थी। म कामनामु अव था म था। मने
वयं को संतु और त ृ महसस ू िकया।
िफर भी मुझे इस संसार म दूसरे को उ चतर एवं उ े यपणू जीवन को ा करने म मागदशन
करना था। मने लोग को चाण य के ान का उपयोग करने तथा अपने यवसाय को चाण य
अनु प खड़ा करने म परामश देने लगा।
लोग हमारे अपने यवसाय के भिव य के बारे म सोच सकते ह जब हम दूसरे को परामश देने
म लगे हए थे।
मेरे वयं के यवसाय को बहत से टीम के सद य, सी.ई.ओ. और अ य बंधक देख रहे थे। म
दूसर के मा यम से काम करवाने क कला सीख गया था। दूसरे एवं मेरे अपने यवसाय क
देखरे ख करने वाले लोग को म केवल रणनीितगत परामश दे रहा था।
एक कहावत है, ‘‘जब आप सा य क कामना करते ह तो ई र उसे आपके मा यम से परू ा
कर देता है।’’ ऐसा लगा िक ई र मुझे संसार का सबसे धनी यि बनाना चाहते ह जबिक मुझे
इसम िदलच पी नह रह गई थी।
कभी आप रा ते क तलाश करते ह और कभी रा ते आपक तलाश करते ह......

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52
मेरे अंदर का नेत ृ वकता

स मय आपको सब कुछ िसखा देता है। म भी अब युवा नह रहा और मेरे से व र


होते जा रहे थे।
ू े
लोग बढ़

कुछ समय से मेरे चेयरमैन के वा य म िगरावट आ रही थी। लेिकन िपछले कुछ वष के
दौरान इस समहू क कंपिनय ने काफ गित क ।
मेरी अपनी भी पयटन कंपनी ने काफ गित क और समहू क सव म काम करने वाली
कंपिनय म से थ ।
एक िदन चेयरमैन ने मुझे घर बुलाया। वे िब तर पर थे और अभी—अभी डॉ टर उनको
देखकर गए थे। उ ह ने कहा, ‘‘मने अपनी िज़ंदगी जी ली है।’’ इससे म समझ गया िक उ ह ने
कोई मह वपण ू बात कहने के िलए मुझे बुलाया है।
उ ह ने आगे कहा, ‘‘डॉ टर ने मुझे अभी—अभी कहा है िक अपने वा य के ित सचेत
रह। म जानता हँ िक अब इस धरती को छोड़ने का मेरा समय आ गया है।’’
‘‘मेरे िपता ने अपना यवसाय मुझे स पा था और मने इसे आगे बढ़ाने के िलए अपनी ओर से
भरसक यास िकयार। मुझे स नता है िक मने अपनी भिू मका बखबू ी िनभायी।’’ ऐसा कहते हए
वे संतु िदखे। ‘‘अब मेरा एक अंितम कत य है — अपने बाद के चेयरमैन को िनयु करना।’’
वे अतीत क मिृ तय को खंगालने लगे, ‘‘अनेक वष से हमारे समहू क कंपिनय के
चेयरमैन एक ही प रवार से वंशानुगत होते आए ह। मगर अब एक बड़े प रवतन का समय आ
गया है।’’
उ ह ने मेरी आँख म देखा और कहा, ‘‘समय बदल गया है और हमलोग अब एक पेशेवर प
से संचािलत यवसाियक घराना बन गए ह। इसिलए पहली बार हमलोग चाह रहे ह िक अगला
चेयरमैन ऐसा यि होना चािहए जो िक बड़े भारतीय बहरा ीय कंपनी को चलाने म स म हो
— यह िनणय उसक पा रवा रक प ृ भिू म के आधार पर नह होना चािहए बि क उसके काय के
आधार पर।

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अब वे मलू बात पर आए, ‘‘म चाहता हँ िक तुम हमारे समहू क कंपिनय के अगले चेयरमैन
बनो।’’ वे एक ण के िलए क गए और म परू ी तरह से मौन हो गया।
चेयरमैन अिववािहत थे। वे मानते थे िक उ ह ने अपने यवसाय से िववाह कर िलया है और
सभी कमचारी उसके अपने ब चे ह।
‘‘हर कोई यह सोचते थे िक उनके कोई न कोई सगे संबंधी उनके बाद नेत ृ व संभालगे
लेिकन हम म से कोई नह जानता था िक वह यि कौन होगा। वे अपने चचेरे भाई—बहन
और उनके ब च म से िकसी एक को चुन सकते थे। उनम से सभी काफ िशि त और यो य थे।
िफर भी चेयरमैन ने उन सबको नजरअंदाज़ कर मुझे चुना।
उ ह ने मु कुराते हए याद िकया, ‘‘जब पहली बार मने तु ह अपने कायालय म सा ा कार
के िलए बुलाया तो म जानता था िक तु हारे म हम एक भावी नेत ृ वकता िमल गया है। तुम एक
अ छे राजकुमार थे िज ह राजा के प म तैयार िकया जा सकता था। िफर भी म तु हारी परी ा
लेना चाहता था। म कहना चाहता हँ िक मेरी येक परी ा म तुम उ कृ प से सफल हए।’’
मुझे चाण य के अथशा म कही हई वह बात याद आयी:

राजा को चािहए िक वह राजकुमार को िशि त करे । (5.6.39)

चेयरमैन ने अ छी तरह से मुझे िशि त िकया था। म खुश था िक उ ह ने िश ण के दौरान


मुझे राजा मान िलया था। ‘‘अगली बोड बैठक म म इसक औपचा रक घोषणा क ं गा।’’ चेयरमैन
ने समापन करते हए कहा।
मने कभी क पना भी नह क थी िक मुझे कभी इतना बड़ा ओहदा िदया जाएगा। मने महसस ू
िकया िक िजतना बड़ा पद मुझे िदया जा रहा है उससे जुड़ा दािय व उससे भी बड़ा होगा।
‘‘िचंता न करो। मुझे यक न है िक तुम इसे अ छी तरह से संभाल लोगे। हमारे समहू का
भिव य तु हारे हाथ म सुरि त है।’’ चेयरमैन ने मुझे आ त िकया।
मेरी अपनी आशंकाएं थ लेिकन मुझे उनके ान और ितभाओं को खोज िनकालने क
मता पर कभी भी आशंका नह थी। म चुप रहा।
चेयरमैन अगली बोड बैठक म बहत किठनाई का सामना करते हए आए य िक उनका
वा य िनरं तर िबगड़ता जा रहा था। हम म से अिधकांश लोग यह जानते थे िक यह उनक
अंितम बोड बैठक होगी और वे औपचा रक प से अगले चेयरमैन के पद क घोषणा कर दगे।
म इस बात से आ त नह था िक मेरे नाम क घोषणा पर बोड के अ य सद य िकस प म
अपनी िति या य करगे। हालांिक मेरे िलए यह सुखद आ य रहा िक मेरे नाम क घोषणा
होते ही हर कोई खुशी से ताली बजाने लगे। सबसे अ छी बात थी िक एक भी आदमी मेरे िव
नह था।
मने िन य कर िलया था िक यिद एक भी यि मेरे नाम के िव होगा तो चेयरमैन क

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सं तुित के बावजदू म इसे वीकार नह क ं गा। हालांिक अब मेरे कहने के िलए कुछ रह नह
गया था। समहू के लोग ने कहा: ‘‘हम सभी आपके साथ ह।’’
आने वाले िदन म प रि थितयां बदल गई ं थ । मने नए और सबसे युवा चेयरमैन के प म
िमलीजुली भावना के साथ पदभार संभाला। एक ओर मने नई भिू मका संभाली और दूसरी ओर
चेयरमैन जो मुझे अपने बेटे क तरह इस भिू मका के िलए तैयार िकया वे अपने अंितम िदन िगन
रहे थे।
एक िदन दोपहर म यह घटना घटी। म अपने कायालय म था। फोन क घंटी बजी, ‘‘सर, अब
नह रहे ।’’
म नह जानता था िक इस पर िकस तरह से िति या य िकया जाए। हम सभी जानते थे
िक चेयरमैन अंितम हालत म ह। िफर भी ऐसी घड़ी म कोई भी अपनी भावना पर काबू नह रख
सकता है।
चेयरमैन के कायालय जो िक अब मेरा कायालय था म बैठे हआ म ब चे क तरह रोने लगा।
इसी कायालय म बैठे—बैठे उ ह ने मेरा मागदशन िकया था और वष तक मुझे सलाह दी थी।
आज से मुझे मागदशन करने वाला कोई नह रहा। अब मेरे पास ऐसा कोई नह िजसके साथ म
जीवन और यवसाय से जुड़े किठन पर अपनी िज ासा का समाधन क ं । अब से मेरा
मागदशन कौन करे गा?
मेरी आँख दीवार पर लगी कैलडर पर गई िजसम वामी िववेकानंद क त वीर लगी हई थी।
उस पर एक बोध—वा य िलखा हआ था जो िक उस िदन का बोध—वा य था:
‘‘िजस िदन िपता क म ृ यु होती है उस िदन बेटा जवान हो जाता है।’’
अब मेरे पास कोई मागदशक नह था लेिकन मुझे यवसाय म दूसर को मागदशन करना
था। मने चेयरमैन का कायभार संभाला था लेिकन मने महसस ू िकया िक मुझे एक नई भिू मका
का िनवाह करने क ज रत थी — एक परामशक क , एक मागदशक क , अगले राजकुमार के
चयन के िलए अपनी आँख और कान खोलकर.....

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53
पा रवा रक यि

मे आरे बयािचे बड़ेमकहोप ृरहेभथेिू म। वेकेअबसाथकॉलेउ हजबड़ेम पहँकरनेच गएके थेअ। मेुतरेकाय
माता—िपता और प नी उ ह उिचत
म लगे हए थे।
कहा जाता है िक ‘अपने ब च को पहले जीवन मू य िसखाएं िफर उ ह मू यवान व तु द।’
मेरे ब चे वैभवपणू प रवेश म ज म िलए थे। वे ऐशो—आराम क िज़ंदगी जी रहे थे। मुझे
अनुमान है येक पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी के प र म का उपयोग करती है।
हालांिक म यवसाियक प ृ भिू म वाले एक म यवग य प रवार म पैदा िलया था लेिकन अब
मेरा प रवार एक उ च आय वाला प रवार बन गया था।
मेरे िलए अब उ च अथवा म यवगग जैसा आिथक वग करण कोई मह व नह था। अब म
आ याि मक प ृ भिू म वाले लोग को अिधक मह व देता था।
मेरी तरह मेरे ब चे भी आ याि मक प रवेश म बड़े हए थे। भगव ीता पढ़ते हए और उपिनषद्
समझते हए तथा राम एवं कृ ण क कहािनयां सुनते हए वे सहज प से बड़े हए थे।
मेरे बचपन क तुलना म मेरे ब च का बचपन अिधक लाभकारी रहा। मुझे अपने दादा—दादी
से िमलने के िलए अपने गाँव जाना पड़ता था य िक म अपने माता—िपता के साथ रहता था
जबिक मेरे ब च को यह लाभ है िक उनके िलए उनके दादा—दादी हमेशा उपल ध रहते ह।
मेरी प नी िव िव ालय म अपने िश ण पेशा के ित ितब थी। उ ह अकादिमक े म
काफ ित ा िमली। उ ह ने भी पु तक िलखना शु क और पाठक ने उनक पु तक क
सराहना क ।
दुिनयाभर म िविवधतापण ू काय म संल न एक बहरा ीय कंपनी के चेयरमैन होने के कारण
म बहत य त रहता था। लेिकन मने यह सुिनि त िकया िक म एक पा रवा रक यि भी बना
रहंगा। म काय और जीवन के बीच यथासंभव संतुलन बनाए रखने क कोिशश करता था।
मुझे इस बात को वीकार करने म कोई िझझक नह है िक कंपनी से जुड़ी िविभ न
िज मेदा रय के कारण ऐसा हर बार संभव नह होता था। िफर जब मुझे समय िमलता था तो

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प रवार के साथ अ छा—खासा समय यतीत करता था। जैसा िक चाण य ने कहा था, जब ब चे
बड़े हो जाएं तो उनके साथ समान यवहार करना चािहए।
य िप मेरे ब चे ऐशो—आराम म पल रहे थे लेिकन हमलोग ने उ ह समझा िदया था िक इसे
सदा थायी न मान। उ ह जीवन म अपन ितभा के बल पर आगे बढ़ना है।
एक िदन जब म ब च के साथ बैठा था तो बेटी ने पछ ू ी, ‘‘पापा, िकसी यि को वा तव म
या सफल बनाता है?’’
मुझे आ य हआ और म जानना चाहा िक िकस कारण से वह ऐसा पछ
ू रही थी।
‘‘नह पापा, पहले आप यह बताइए िक िकस बात से यि जीवन म सफल होता है?’’
मने कुछ देर तक सोचा और जवाब िदया, ‘‘ यि अनेक कारण से सफल होता है लेिकन
मेरा अनुभव यह है िक सफलता के पीछे तीन कारक का संयोग होता है — किठन प र म, टीम
काय और ई र—कृपा।
मेरा बेटा भी इस चचा म शािमल हो गया। ‘‘ या आप इसे िव तारपवू क बताएं गे?’’
‘‘जब आप काय ारं भ करते ह तो आपको किठन प र म करना पड़ता है। बाद म जीवन म
पाते ह िक केवल किठन प र म ही पया नह होता है। उसके बाद आप दूसरे लोग के साथ
िमलकर काम करने लगते ह और िफर आप टीम काय का मह व समझते ह।’’
िफर मने आगे कहा, ‘‘जब आप अपनी या ा के बारे पीछे मुड़कर सोचने लगते ह तो अपनी
सफलता के कारण पर आ य करने लगते ह। आप महसस ू करते हो िक कुछ अ ात कारण क
मदद से आप सफलता के िशखर पर पहंचे ह। वे अ ात कारण जो आपको सफल बनाते ह, वे
ई र क कृपा है।’’
मेरी बेटी ने िकया, ‘‘ या सफलता म भा य क भी मुख भिू मका होती है?’’
म थोड़ा दाशिनक होते हए कहा, ‘‘भा य का ही दूसरा नाम ई र कृपा है। यिद आप ई रीय
काय को करने का िनणय लेते हो तो संसार क सभी शि यां आप क सहायता म खड़ी हो
जाती ह।’’
बेटी ने िफर क , ‘‘पापा, यवसाय म आपक या ा कैसी रही है?’’
मने जवाब िदया, ‘‘मेरे िलए मेरी यवसाियक या ा एक आ याि मक या ा रही है।’’
मने महसस ू िकया िक वे इन सब बात को िकसी पुि तका म िलखती जा रही थी। मने
जानना चाहा, ‘‘तुम ये सब बात य िलख रही हो?’’
डॉ टर एवं मेरे माता—िपता हँसने लगे। डॉ टर ने प िकया, ‘‘आपक बेटी को कॉलेज म
एक प रयोजना है। उ ह एक सफल यि पर अ ययन करके उनक सफलता के कारण का
िव े षण करना है।’’ और िफर मु कुराते हए उसने कहा, ‘‘और इसने अपनी प रयोजना के िलए
आपको चुना है।’’
मेरी बेटी नाराज हो गई, ‘‘म मी, मने आपसे कहा था िक उ ह इस प रयोजना के बारे म नह
बताना है।’’
म खुश था िक मेरे ब चे मुझे एक सफल यि मानते थे। ‘‘िच ता मत करो। तुम मेरे से कोई

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भी ू सकते हो। तुम अपनी प रयोजना के िलए मेरे से जो कुछ पछ
पछ ू ना चाहो, पछ
ू सकते हो,
म तैयार हँ।’’
बाद के वष म मेरी बेटी ने इन नोट्स का उपयोग अपनी पहली िकताब िलखने म क , माई
फादस स सेस िट स।
आप अपने ब चे को िसखाना चाहते ह लेिकन ब चे भी िसखने के िलए तैयार होने चािहए।
जब ऐसा होता है तब आपके अनुभव आसानी से अगली पीढ़ी तक पहँच जाते ह।
मने महसस ू िकया िक ब चे आपक कथनी से नह बि क करनी से िसखते ह। आप उ ह ठग
नह सकते। वे आपको तुरंत पकड़ लगे। जो आप सोचत ह उसे अव य किहए और जो कहते ह
उसे परू ा कर।
प रवार का एक अ य प यह है िक प रवार म अिधक लोग होने से ब च को िसखने का
बेहतर माहौल िमलता है।
हमारी संयु प रवार यव था ब च को िविभ न पीिढ़य एवं सगे—संबंिधय से िसखने का
अवसर देती है।
मेरे ब चे जब छोटे थे तब मने उनक ज म—कुंडली का िव े शण िकया था और म जानता
था िक वे पया बुि मान ह तथा अपना कॅ रयर खुद चुन लगे। म ये भी जानता था िक मेरी तरह
उ ह यवसाय तथा धन—सज ृ न म िदलच पी नह है।
ब च को अपनी मताओं का दशन करना चािहए लेिकन उ ह अपने माग के चयन क
वतं ता भी होनी चािहए।
एक िदन मेरे बेटे ने मुझसे कहा, ‘‘पापा, म सरकारी नौकरी करना चाहता हँ।’’
इससे मुझे सदमा लगा।

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54
अपनी राह का चयन


क यवसायी के प म मने सरकार और राजनेताओं को करीबी से देखा है। म यह िनणय
नह दे रहा हँ िक राजनेता अ छे होते ह अथवा बुरे। न तो म यह कह रहा हँ िक सरकार और
इसके िनयम बुरे ह।
मेरा मत यह है िक सरकार क दुिनया एक यवसायी क दुिनया से िव कुल ही अलग होती
है। हम सभी अपनी छोटी—सी दुिनया म रहते ह। मेरे जैसे यवसायी को अपने अनुसार जीवन
जीने क परू ी वतं ता होती है लेिकन सरकार के अपने कायदे—कानन ू होते ह।
अब तक सरकार म मेरे बहत—से दो त हो गए थे। म आ त नह था िक मेरा बेटा िजस
दुिनया म जाना चाह रहा था उसके बारे म वह जानता था अथवा नह ।
मने उससे सीधा िकया, ‘‘तु हारे सामने इतने िवक प ह िफर भी तुम सरकारी सेवा म
य जाना चाहते हो?’’
‘‘कोई भी सरकारी काम नह पापा, म भारतीय िवदेश सेवा — आई.एफ. एस. म जाना चाहता
हँ।’’ उसने गव के साथ कहा।
मने उससे कहा, ‘‘ठीक से प करो।’’ म हमेशा यह मानता था िक ब चे अपना कॅ रयर
खुद चुन िकंतु जब ऐसा समय आया तो म उनके सामने अवरोध बन रहा था।
‘‘पापा, देश सेवा के अनेक मा यम ह। उनम से एक है लोक सेवा म होना।’’ उसने िफर कहा।
‘‘आज दुिनया एक वैि क ाम बनती जा रही है। िविभ न देश के बीच िनकट संपक बनते
जा रहा है। ऐसे म हमे अपनी सं कृित को यथासंभव सव म तरीके से िदखाने क आव यकता
है। म महसस ू करता हँ िक म आई.एफ.एस. अिधकारी के प म अपने देश क सेवा कर सकता हँ
— महान भारतीय सं कृित का राजदूत।’’
‘‘तो तुम एक नौकरशाह बनना चाह रहे हो?’’ यह िवचार मुझे िव कुल ही पसंद नह था।
‘‘ य नह ?’’ उसने पलटकर जवाब िदया। उसे गु सा आ गया। ‘‘ या कौिट य ने अपने
अथशा के भाग एक के अ याय 16 म राजदूत के मह व पर काश नह डाला है?’’

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म अपने बेटे के उ रण पर भ च का रह गया। उसने उस ंथ का उ ाण दे िदया जो जीवनभर
मेरा मागदशक रहा है। मने बहत—से लोग को अथशा का ान िदया और जीवन के हर
कदम पर इसका पालन िकया। लेिकन मने कभी क पना भी नह क थी िक एक िदन मुझे इस
ंथ को अपने ब च क नजर से देखना पड़े गा।
म कुछ िति या य करता उससे पहले ही उसने अथशा क अपनी ित ले आया।
‘‘देिखए पापा, चाण य दूत एवं राजदूत के कत य के बारे म या कहते ह।’’

संवाद स िे षत करना, संिध के शत क र ा करना, अपने राजा के


मान–स मान क र ा करना, िम रा का अिध हण करना, श ओ ु ं
के िम को उकसाना और उनम भेद उ प न करना, दु मन के भू–भाग
म गु चर एवं सैिनक को संदशे भेजना। (1.16.33)

‘‘आप जानते ह िक पापा, बचपन से जबसे आपने अथशा के साथ मेरा प रचय कराया है
तब से यह अ याय मेरे मन म बस गया है। एक राजदूत क रणनीितगत भिू मका पर िवचार
क िजए।’’ म उसक बात को सुन रहा था।
‘‘म अपने देश क र ा इस प म करना चाहता हँ। भारत भिव य म वैि क तर पर जो
खेल खेलेगा म उसका िह सा बनना चाहता हँ।’’ उसने समापन िकया।
कुछ देर के िलए हम दोन मौन हो गए। मेरे पु ने जो सदमा मुझे िदया था उससे म उबरने क
कोिशश कर रहा था। उसे अपनी चु पी तोड़ी, ‘‘यिद आप सहमत नह ह तो म यह काम नह
क ं गा।’’ उसक आँसी आँख को म देख सका।
म बहत िवत हो गया, ‘‘नह बेटे, म यह नह कह रहा िक तु ह सरकारी सेवा म शािमल
नह होना चािहए। म यही आशा करता हँ िक तुम अपने िनणय के िविभ न पहलुओ ं के बारे म
ठीक से िवचार कर लो।’’ उससे मेरी यही सलाह थी।
‘‘पापा, बचपन से मने अपने िलए केवल यही एक सपना देखा है। म एक आई.एफ.एस.
अिधकारी बनने के िलए िसिवल सेवा क तैयारी करते रहा हँ।’’ उसने मुझे िदखाया िक आगामी
ितयोगी परी ा के बारे म उसने कैसी तैयारी क है।
उसने आगे कहा, ‘‘पापा, आप मेरे रोल मॉडल रहे ह। मने आपको हमेशा ा क नजर से
देखा है। आप ही क तरह मने चाण य और उसके िवचार को पसंद िकया है। अब म अपने जीवन
कॅ रयर के प म इस भिू मका का िनवाह करना चाहता हँ।
मने महसस ू िकया िक येक पीढ़ी अपनी पवू वत पीढ़ी से होिशयार होती है। उसने अपना
होमवक ठीक से िकया था। वह जानता था िक वह इस कॅ रयर को लेकर आगे बढ़ने वाला है। मने
उसे हतो सािहत नह िकया और न ही एक बोझ बना।
मने मु कुराया, ‘‘इस संबंध म अपना माँ से अव य बात कर लो और अपने दादा—दादी का

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आशीवाद ले लो।’’
वह भी मु कुराने लगा, ‘‘मने यह काम काफ पहले कर िलया था। आप ही अंितम यि थे
िजनसे मुझे आने वाली परी ा के िलए आशीवाद लेना था।’’
मने महसस ू िकया िक म अपने प रवार और ब च से अंतरं ग नह रहा। िफर म चाहता था िक
परी ा म अपना सव े दशन करे । ‘‘मेरा आशीवाद, मेरा आशीवाद सदा तु हारे साथ है।’’
हमने एक—दूसरे को गले लगा िलया।
मुझे उस जैसे बेटे के बाप होने पर गव हो रहा था। मगर मेरे मन म एक अ य िवचार क धने
लगा। मने उससे पछ ू ा, ‘‘ या तु हारी दीदी ने भी अपना कॅ रयर चुन िलया है?’’
‘‘ या पापा? आप इस तरह से पछ ू रहे ह जैसे आपको कुछ मालम ू ही नह ।’’
म िनरा बेवकूफ लग रहा था। मेरे दोन ब च ने अपना कॅ रयर और भिव य तय कर िलया था
लेिकन म उनक पसंद से वािकफ नह था। इसके िलए उ ह दोष देने के बजाय, मने अपनी
गलती महसस ू क और उसे मान िलया। “नह , मुझे नह मालम ू िक उसने अपने िलए कौन —सा
भिव य चुना है?’’
‘‘जाइए। जाकर उसी से पछ ू लीिजए।’’
एक डरे हए चहू े क तरह, म अपनी बेटी को खोजने लगा। मने उसे उसके कमरे म पाया, एक
कोने म बैठी हई थी।
जैसे ही चुपचाप म उसके कमरे म गया, वह मेरी ओर देखी और बोली, ‘‘तो पापा, आपको
आपके खबू सरू त बेटे ने बता िदया िक वह या करना चाहता है। आप यहां पर मेरे कॅ रयर के बारे
म पछू ने के िलए आए ह। म ठीक कह रही हँ ना?’’
उसने गव से कहा, ‘‘म एक कलाकार बनना चाहती हँ।’’

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55
ढ़ िन यी बन

जानता था िक मेरी बेटी एक अ छा पटर है। वह एक अ छी गाियका भी है तथा दो कार के


म शा ीय न ृ य भी सीख चुक है — भारतनाट्यम तथा कुिचपुड़ी।
मने िकया, ‘‘तुमने िकस कला मा यम म आगे बढ़ने का िनणय िलया है?’’
िबना िकसी िहचक के उसने कहा, ‘‘संगीत। म वषभर इसका गहन अ ययन करना चाहती
हँ। उसने अपनी योजना बतायी।
‘‘भारत म परं परागत संगीत िसखाने वाले अनेक घराने ह। मुझे इन परं परागत गायन के
उ ताद म से एक के पास जाकर संगीत िसखना पड़े गा और गु कुल परं परा म अ ययन करना
पड़े गा।’’
गु कुल श द से मुझे अथशा के अ ययन के िलए अपनी या ा क याद आने लगी। इसने
मेरे परू े जीवन को बदलकर रख िदया था।
‘‘मने राज थान म ि थत इस घराने का परू ा िववरण ा कर िलया है। यह बढ़ ू े गु जी
ित ा के िशखर पर ह। म एक साल उनके अंदर िसखंग ू ी। म इस िवषय म एम.ए. भी कर
सकती हँ और संगीत म पी—एच.डी. भी करने क योजना है।’’
हमारी पीढ़ी के लोग म कॅ रयर चुनने को लेकर इतनी प ता नह थी। हमारे ब चे एक
अलग युग म ज म ह। िनि त तौर पर वे योजना बनाने और उनके काया वयन म हमसे काफ
आगे ह।
इस अनुभिू त से िक अपने अपने प रवार से उतना अंतरं ग नह रहा, िदनभर मेरे अंदर िमि त
भाव था। म यान नह दे सका िक मेरे ब चे प रप व युवा बन गए ह। मुझे इस बात क खुशी भी
थी िक वे वतं प से सोच रहे ह।
मेरी डॉ टर मेरे मन क भाव समझ गई। ‘‘ या यह ठीक नह है?’’ उसने संकेत दी और पछ ू
बैठी िक या अपने पसंद के कॅ रयर चुनने के कारण ही तो हम आज जो ह, वह ह।’’
मने उस पर मु कुराया, ‘‘हंहं..’’

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हमदोन खलील िज ान और उनक पु तक ‘िद ोफेट’ के दीवाने थे। जब कभी हमारे ब चे
ृ करती थ :
और हमारे बीच मतभेद होता था तो डॉ टर इस पु तक से पंि याँ उ त

आपके ब चे आपके नह ह
वे जीवन के ित चाहत क उपज ह
वे आपके मा यम से यहाँ आए ह मगर आपसे नह
हालांिक वे आपके साथ ह, मगर आपके अधीन नह ।

इन पंि य के गहन आ याि मक अथ ह। म शांत हो गया और अपने वाभािवक लय म लौट


आया। म अपने ब च के ित गवाि वत महसस ू करने लगा।
भारत म बहत से माता—िपता अपने ब च के ित िचंितत रहते ह। हालांिक िचंितत होने के
बजाय, यि को अपने ब च का यान रखना चािहए। िचंितत होने और यान रखने म काफ
अंतर है। िचंितत होना आराम कुस क तरह है जो िहलती—डुलती तो है परं तु कह जाती नह है।
यान रखना सही मायने म ेम है और इससे िज मेदारी आती है।
यान रखने वाले माता—िपता का जीवन के इस जिटल मोड़ पर अपने ब च के ित कैसी
भिू मका होनी चािहए? वाभािवक प से मने अथशा को पलटा और चाण य का मागदशन
पाया:

कोई भी वचनब ता परामश करके करनी चािहए। केवल एक के साथ


परामश करके वह किठन िवषय पर िनणय लेने म स म नह हो
सकेगा। लेिकन बहत–से मंि य के साथ परामश करने पर उ ह िनणय
करने और गोपनीयता बनाए रखने म किठनाई होगी। (1.15.2., 35,
40)

मने सोचा िक अपने ब च का मागदशन करने का सव े तरीका उनक पसंद के े के


िवशेष से मागदशन करवाया जाए। म भारत के िवदेश सेवा से सेवािनव ृ सव े तीन
अिधका रय क सच ू ी तैयार क और इस तरह तीन सफल गायक क सच ू ी तैयार क । तब म
अपने ब च के साथ उनसे िमलने के िलए गया।
ऐसा कहा जाता है िक दुिनया म तीन तरह के लोग होते ह। एक वे जो गलती करते ह और
गलती से िसखते ह। दूसरे वे जो गलती करते रहते ह और कभी नह िसखते ह। तीसरे ेणी म वे
लोग होते ह जो दूसर क गलती से िसखते ह।
इन िवशेष ने मेरे ब च को अपनी चयिनत कॅ रयर हे तु मागदशन िकया। इन सफल एवं
अनुभवी िवशेष के ान इतने मू यवान थे िक चचा के दौरान उपि थत रहने से म भी उनसे

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बहत—सी बात सीख ।
मने इस युि का योग अपने यवसाय म भी िकया था। जब कभी मुझे कोई नया
यवसाियक िनणय लेना रहता था तो म तीन िवशेष क सच ू ी बनाता था और उनके साथ
परामश करता था। मने महसस ू िकया िक इससे म बहत से खतर से बच गया, अपनी या ा शु
करने से पहले भी।
मेरे ब च को यह लाभ था िक उ ह आिथक िचंता नह करनी थी। वे सौभा यशाली थे िक वे
एक धनी बाप के यहाँ पैदा हए थे। उ ह पैसे कमाने क िचंता नह थी। उ ह अपने मन पसंद काम
करने थे। मने अपने ब च को एक तरीय जीवन—यापन के िलए पया धन अिजत कर िदया
था। म एक िपता के प म अपने कत य का वहन कर रहा था।
िफर भी मेरे ब चे मेरे से होिशयार लग रहे थे। उ ह ने डॉ टर और मेरे से प प से कहा,
‘‘जो धन है वह आपका अिजत है मगर हम अपना धन अिजत करगे।’’
म खुश था िक उ ह ने सरल जीवन जीया और पैसे को स मान िदया। म यान से देखता था
िक वे िफजल ू खच नह ह।
म वयं पर ई र क कृपा महसस ू कर रहा था। ई र हमारे ऊपर अपनी कृपा क वषा करते
जा रहे थे। कंपनी बहत अ छी गित करती जा रही थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी। हमारे पास
एक सौ से अिधक कार के यवसाय थे और तीन लाख से अिधक कमचारी। हमारे कायालय एवं
प रयोजनाएं दुिनया के हर देश म थे।
म अचानक अलग कारण से सुिखय म आ गया। मेरी यवसाियक समझा क मा यता
‘िबजनेसमैन ऑफ िद ईयर’ और ‘लीडर इन िबजनेस’ जैसे पुर कार के िदए जाने िमलने लगी।
औ ोिगक िवकास के िलए मुझे धानमं ी के पैनल म आमंि त िकया गया। मने भारत
सरकार के िश मंडल के सद य के प म भी िविभ न देश क या ाएं क । अनेक अ छी
यवसाियक नीितय के िनमाण म भी मने सहायता दी।
और िफर एक िदन जादू हो गया। मुझे अपने एक ए ज यिू टव अिस टट ने फोन िकया।
उसने उ ेिजत होकर पछ ू ा, ‘‘सर, आपने आज का अखबार देखा है?’’
मने जानना चाहा, ‘‘नह , इसम या है?’’
‘‘सर ..... सर .....’’

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56
या मने ऐसा िकया?

म ऑिफस
हो?’’
जाने के िलए अपने घर पर तैयार हो रहा था। ‘‘िकस अखबार क तुम बात कर रहे

ए ज यिू टव अिस टट ने जोर से कहा, ‘‘सर, कोई भी अखबार उठा ल, सबक मु य खबर
एक ही है।’’
वह इतना अिधक उ ेिजत था िक उसक बात का कोई कारण जान पड़ा। टेबल के पास रखे
अखबार क एक ित लेने के िलए म गया। इसे िकसी ने छुआ नह था य िक सब अपनी
ात:कालीन िदनचया म य त थे।
मने मु य प ृ पर अपनी त वीर देखी। मुझे घोिषत िकया गया था ...
अचानक अपने कमरे से मेरी बेटी िच लाते हए बाहर िनकली, ‘‘पापा, आपने अखबार देखा है
या?’’ वह एक दूसरा अखबार िदखा रही थी िजसे वह अपने कमरे म ले गई थी।
‘‘इसम िलखा है िक एक नामी पि का ने आपको भारत का सबसे धनी यि घोिषत िकया
है।’’
म भ च का रह गया। मने अखबार पढ़ना शु िकया और पाया के एक सव ण म मुझे भारत
का सबसे धनी जीिवत यि घोिषत िकया गया है।
एक ण के िलए मेरा मन अतीत म चला गया जब यह मेरा सपना हआ करता था और म इस
सपने को परू ा करने क िदशा म प र म करता था। हालांिक बहत साल पहले ही म पैसे क
वा तिवकता से प रिचत हो गया था। उसके बाद मेरे िलए यह कोई ल य नह रह गया था।
मेरे िलए पैसे तो सं या का खेल है जो ऊपर नीचे होते रहता है। ऐसा नह है िक मेरे पैसे के
बारे म दुिनया को पता है तो म ही सबसे धनी यि हं, और भी लोग मेरे से अिधक धनी हो
सकते ह। सं ेप म, दुिनया िजसे एक बड़ी उपलि ध मानती थी उससे म बहत उ ेिजत नह था।
लेिकन साथ ही, मने महसस ू िकया िक उन लोग को कम करके नह कहा जाए जो ऐसे
सपने देख रहे ह। या म उ ह लोग जैसा नह था जब बहत सा पहले मने अपनी या ा शु क

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थी?
कहा जाता है िक पैसे ही सब कुछ नह है लेिकन ऐसा कहने से पहले पैसा कमाओ। म इस
ल य को ा करने के बाद आ मिव ास के साथ कह सकता हँ िक पैसे से बहत कुछ िकया जा
सकता है लेिकन बहत—कुछ ऐसा है िजसे पैसे से नह िकया जा सकता है।
हालांिक िक िकसी भी अथ म यि को पैसे तथा मानव जीवन एवं समाज म इसके मह व
को नकारना नह चािहए।
अगले कुछ स ाह तक फोन क घंिटयां बजती रह और बधाई संदेश आते रहे । मीिडया म मेरे
अिधकािधक सा ा कार आते रहे और म अपनी सफलता क कहानी सुनाने के िलए िविभ न
मंच से िनमं ण ा करते रहा।
अिधकांश प कार का एक ही मानक होता था और उसके एक ही मानक जवाब भी
ू ते थे, ‘‘िकस कारण से आप सबसे धनी बने?’’
होता था। वे पछ
मेरा जवाब था, ‘‘मने लोग म िनवेश िकया। जहां कह भी मने सफल यवसाय करने क
मता वाले लोग को पाया मने उनक कंपनी म िनवेश िकया। उनक गित से मेरी गित हई।’’
यह सच है िक मेरी अपनी कंपनी को चेयरमैन के प म चलाते हए नए िवचार वाले लड़के—
लड़िकय पर मने ग़ौर िकया।
मने उनक यवसाियक समझ को खोजा और उनम तथा उनक कंपनी म िनवेश िकया। मने
िजतनी भी कंपनी म िनवेश िकया वे सभी के सभी सफल नह हए। लेिकन जब एक बार ये
कंपिनयां सफलता ा करती थ तो अ य कंपिनय म हए घाटे क भरपाई कर देती थी। कुल
िमलाकर म हमेशा बहत बड़ा िवजेता ही रहता था।
म न केवल इन कंपिनय म िव ीय िनवेश करता था बि क इनके ोमोटर के मागदशन एवं
संर ण हे तु समय भी देता था, िजस तरह से मेरे चेयरमैन ने मुझे शु आती िदन म मागदशन
िकया था।
िकसी कंपनी को उसके शु आती िदन से लेकर िव ीय सफलता क उपलि ध तक उसका
मागदशन करना मेरी सफलता का सही कारण है। अब तक म यह समझ चुका हँ िक िनवेश
िकस तरह से काम करता है और अब यह मेरे िलए एक खेल बन गया है। सव थम, आप पैसे के
पीछे भगते ह लेिकन बाद म पैसे आपके पीछे भागते ह।
म केवल पैसा अिजत ही नह कर रहा था बि क उसे वापस समाज म भी देता था। मेरा
अिधकांश धन सामािजक काय पर यय होता था। िवशेष प से शोध गितिविधय पर खच
करना मुझे बहत पसंद था।
म िकसी े िवशेष म शोध काय के ित समिपत लोग पर खच करना पसंद करता था।
अथशा पर अपने शोध से मुझे समझ म आ गया िक अ छे शोध से यि एवं संसार को
िकतना अिधक लाभ हो सकता है।
मेरे कॉलेज के एक दो त उ चतर िश ा और शोध के िलए अमरीका चले गए थे। उ ह ने एक
बार मुझसे कहा था, ‘‘ ितभा के सड़ने से अ छा है ितभा का पलायन।’’
हालांिक इन वष के दौरान ि थित म प रवतन आया है। भारत अब एक षोध आधा रत देश

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बन गया है िजसम अनेक नवो मेशी काय हए ह। शोध काय म न केवल अनेक लोग िनवेश कर
रहे ह बि क सरकार भी।
एक समय म भी जमीनी तर पर, कूल और कॉलेज म नवो मेषण को बढ़ावा देने के िलए
भारत सरकार ारा गिठत सिमित का मुख था। इस काय से मुझे बहत संतुि िमली।
कुछ लोग ने मुझे लोकोपकारी कहा, तो कुछ लोग अिभयानी पंज ू ीपित कहा, कुछ ने नए
िवचार का िव ीय पोषक कहा और कुछ ने नवो मेष का समथक कहा। स चाई तो यह थी िक म
भारत के युवाओं के साथ नजदीक से काम कर हा था और उनक करोड़ डॉलर क मती िवचार
क सराहना करता था।
भारत के नौजवान ने मुझे असफल नह होने िदया।
य िप िजस सं था को शोध काय के िलए रािश देना मुझे सबसे अ छा लगता था वह था वही
मेरा आ म िजसम मने कौिट य के अथशा पर शोध िकया था।
इन वष के दौरान यह आधुिनक अकादिमक शोध सुिवधाओं के साथ एक आधुिनक आ म
बन गया है। मेरी तरह यहां पर हजार छा ने भारतिव ा पर शोध काय िकए ह और उन लोग ने
भारत के ान का सार वैि क तर पर िकया है।
तब एक िदन मेरे यवसाियक िनवेश क वाभािवक गित के प म मुझे ‘‘िव का सबसे
धनी यि घोिषत कर िदया गया।’’ मगर या मने ये सब वयं िकए? इन सबके िलए म
चाण य को ध यवाद देता हँ।
एक िस अंतरा ीय पि का ने िव के सवािधक धनी यि य क सच ू ी कािशत क
और मेरी पर मु य आलेख छापा। इसके आवरण प ृ पर मेरा फोटो छपा था।
मेरे फोटो के साथ शीषक था — ‘‘एक भ यवसायी ....’’

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57
वयं क खोज

यह महसस ू करने लगा िक आप जैसे—जैसे बड़े होते जाते ह, वैसे ही एक अ य शि


म आपके साथ काम करने लगती है। एक समय ऐसा भी आया जब म अपने यवसाय क
िगनती भलू गया। यह गित िनयं ण से परे थी और इसे रोका नह जा सकता था।
लोग सोचते थे िक एक बड़े यवसाियक समहू क उ नित के िलए म किठन प र म कर रहा
हँ। मगर वा तव म, म अकता होते जा रहा था। म बाहरी दुिनया म किठन प र म कर रहा था
लेिकन अंदर से मेरे अंदर िन काम भाव बढ़ते जा रहा था।
मने महससू िकया िक यि क अपनी कामनाओं क पिू त के बाद आ याि मक उ नित का
यास करना चािहए। मेरी उ भी काफ हो गई थी। लेिकन म व थ था। िफर भी म समय से
पहले एक िनणय ले िलया — चेयरमैन के पद के यागप देने का।
जब मने अपने इस िनणय से बोड के सद य को अवगत कराया तो वे हत भ रह गए। वे
चाहते थे िक म कम से कम दस साल इस पद पर और बना रहँ।
‘‘कोई सम या नह है। मने अपना काम अ छी तरह से िकया है और संतुि के भाव से इस
पद का याग करना चाहता हँ।’’ मै। अपनी बात पर अिडग था। सभी यवसाय वत: अपनी गित
से संचािलत थे। हमारे पास ि तीय पंि का नेत ृ व तैयार था।
अब बड़ा सवाल था िक कौन अगला चेयरमैन बनेगा। बहत पहले मने चेयरमैन के प रवार से
एक लड़क को संभािवत ने ी के प म चुना था — उनक भांजी को।
वह बहत ही ितभाशाली लड़क थी। मेरा मानना था िक उनके डी.एन.ए. म एक अ ुत
यवसाय भाव था। एक सव े िबजनेस कूल म पढ़ने के कारण उसक सोच भी उ कृ थी।
मने उसके प र े य म चाण य के ान का उपयोग िकया:

जब राजकुमार ान ा करने क ि थित म ह तो िवशेष को उ ह


िशि त करना चािहए। (1.17.27)

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एक मा अंतर था, इस बार राजकुमार नह , राजकुमारी थी।
मने उसे िशि त एवं तैयार िकया था। म जानता था िक वह इस दािय व को वहन करने के
िलए तैयार है। वह इस देश क एक पुराने यवसाियक समहू क मुख बनने वाली पहली मिहला
होगी।
नारी नेत ृ व का समय आ गया था। हम समाज को भी एक संदेश देना चाहते थे िक हम सही
मायने म नारी नेत ृ व म िव ास करते ह।
अिधकांश बोड सद य मेरे िनणय से सहमत हो गए। कुछ क अपनी आशंकाएं थ लेिकन म
जानता था िक वे य प से मेरे िनणय का िवरोध नह कर सकगे य िक मेरे नेत ृ व म
कपनी ने अनेक गुणा गित क थी।
मने उ ह िव ास म लेते हए कहा, ‘‘मेरा िव ास करो। समय यह सािबत कर देगा िक मेरा
यह सव े िनणय था।’’
यह कायालय म मेरा अंितम िदन था। अगले िदन नए नेत ृ व के कायभार संभालने क तैयारी
करने के बाद शांत बैठा हआ था। मनं अपने टेबल पर रखे चेयरमैन क त वीर को देखा।
‘‘सर, मुझे आशा है िक मने आपके स पे हए काम को परू ा िकया।’’ मने अपने ेरणा— ोत
एवं मागदशक से कहा। म इस महान आदमी के ित कृत ता—भाव से भरा हआ था। आज म जो
कुछ था उसे इ ह ने ही बनाया था।
अनेक वष पहले इसी िदन उ ह ने नेत ृ व करने के िलए प रवार से बाहर के पहले यि
यानी मेरा चयन िकया था। आज म िफर से यवसाय प रवार को वापस लौटाने जा रहा था।
दरवाजे पर द तक हई। नई चेयरमैन या यँ ू कहँ चेयरवम ू न ने कमरे म वेश िकया। वे मेरे
सामने चुपचान बैठ गई। म उसक भावना को समझ सकता था। मने कुछ नह बोला और चाहता
था िक वातालाप क शु आत करे ।
कुछ समय के बाद, उसने कहा, ‘‘सर मेरे भाई के थान पर मुझे चुनने के िलए आपको
ध यवाद!’’
पहली बार मने महसस ू िकया िक उसक सबसे बड़ी सम या उसे अपने नेत ृ व कौशल के ित
आ मिव ास को लेकर नह थी बि क मिहला नेत ृ व को अवसर देने के संबंध म था।
जब म वयं के यवसाियक नेत ृ व का समापन करने जा रहा था तब मुझे अपने समाज के
बारे म एक कठोर पाठ िसखने को िमला।
नारी को उनके यथायो य समानता का अवसर अभी भी नह िदया जा रहा था। खासकर
यवसाियक घरान म अनेक पीिढ़य से पु ष का वच व था, उनम प रपाटी को तोड़ना बहत
किठन था।
िबना इस बात को महसस ू िकए, मने नई प रपाटी चलाने का िनणय ले िलया था।
मेरी आँख म देखते हए, उ ह ने कहा, ‘‘सर, म आपके मू य का सदा स मान क ं गी।’’ म
जानता था िक वह ऐसा नह करे गी।
तब उसने एक ू ी जो मुझे सोचने के िलए िववश कर िदया, ‘‘मुझे एक नेत ृ व करने
पछ

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वाली के प म या सव े परामश देना चाहगे?’’
मने सहज उ र िदया, ‘‘िजस िदन तुम सेवािनव ृ होओगी, उस िदन अगले नेत ृ वकता को
चुनने के िलए अपने दय क बात सुनना।’’ हमलोग ठठाकर हँसने लगे।
उस शाम म जब अपने िन य यान के िलए बैठा तो म सहज प से यान कर सका। म अंदर
से सहज महसस ू कर रहा था।
एक महान यि ने कहा था, ‘‘ यान कोई ि या नह है बि क एक मानिसक ि थित है।’’
म वयं को यान थ पा रहा था। म वयं को िव ांत महसस ू कर रहा था। म वयं म अिधकािधक
सहज महसस ू कर रहा था।
उस रात म एक िद य आ याि मक अनुभिू त से गुजरा।
सफू संत मी ने कहा, ‘‘तुम समु क एक बँदू नह हो बि क बँदू म समु हो।’’ मने उस
रात इसे अनुभव िकया।
मेरी चेतना का िव तार हआ। मने वयं को असीम महसस ू िकया। म जानता था िक मने
सम त मानिसक बंधन को तोड़ िदया है िज ह कोई अ य नह , मने वयं तैयार िकया था। मेरा
शरीर मेरे से अलग लग रहा था। म जानता था िक शरीर म म नह , बि क शरीर मेरे म है।
सजग अव था म िबना कुछ िकए म मौन वयं म ि थत रहा। पहली बार मुझे बु व का
अनुभव हआ। मने अपनी आ मा को महसस ू कर िलया।
मने िनवाण ....मो .... जीवन—मुि क अव था को पा िलया। मने मानव जीवन के सही
उ े य को ा कर िलया।
खेल समा हो चुका था। नतक और न ृ य एक हो चुका था। कोई त ै नह रह गया था। अंदर
—बाहर का भेद िमट चुका था। सब कुछ एक म समा गया था। म सदा के िलए वयं म िवलीन हो
गया।
मेरा मन — मन िवहीनता क ि थित म पहँच गया।

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58
मेरी बाद क िज़ंदगी

मो के अथवा आ मानुभिू त के बारे म अलग—अलग समझ ह। बहत—से मानते ह िक इसे म ृ यु


बाद ही ा िकया जा सकता है।
मगर म वयं के अनुभव से पाता हँ िक यह सबके िलए सहज है। हमलोग आ याि मक पथ पर
अ सर मानव नह ह बि क मानव पथ पर अ सर आ याि मक जीव ह।
हमारे उपिनषद एवं अ य ंथ म इसका िव तार से वणन है। म इस संबंध म बचपन से पढ़ते
आ रहा हँ लेिकन पहली बार अहम् ाि म यानी म हँ का यवहा रक आभास मुझे पहली
बार हआ।
कोई आ य कर सकता है िक आ मानुभिू त के बाद या होता है। उसके बाद यि या
करता है?
आपके जीवन का प र े य परू ी तरह से बदल जाता है। आपक जीवन ि िव कुल बदल
जाती है। सबकुछ एक िद य खेल बन जाता है। अब आप आनंद के िलए काम नह करते ह। आप
आनंद से काम करते ह। आप कामनािवहीन ि थित को उपल ध हो जाते ह।
तो या ऐसा आदमी सु त हो जाता है?
जी नह , बि क इसका उ टा होता है। आ मानुभिू त के बाद आप परू ी तरह से बाहरी दुिनया म
सि य रहते ह, िव कुल अलग तरह से।
आ मानुभिू त से पहले यि वाथ क पिू त के िलए काम करता है। अब आप समाज के
वहृ तर िहत के िलए काम करते ह। आपने वयं िजस आ याि मक आनंद को ा िकया है दूसरे
को उसे उपल ध कराने के िलए आप िनरं तर काय करने लगते ह।
म भी परू ी सजगता के साथ पण
ू सि य हो गया लेिकन मेरी सि यता अलग तरह क थी।
अब म यवसाय म नह था लेिकन बहत—सी सामािजक एवं आ याि मक गितिविधय से जुड़ा
हआ था।
मने अपना प रवार नह छोड़ा था बि क मेरे प रवार का िव तार हो गया था। म महसस ू िकया

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िक संपण ू संसार ही अपना प रवार है।
म अिधक उ साह के साथ काम करते रहा। म लाभकारी ि थित म था य िक मेरे पास काफ
धन था और ऐसी प रयोजनाओं का पता करने लगा िजनम धन क आव यकता थी। म अिधक से
अिधक दान करने लगा। हालांिक िबना मांगे मेरे पास अिधकािधक धन आता रहा।
िजतना अिधक म देता था उतना ही अिधक मेरे पास आते जा रहा था। मगर वािम व का भाव
नह था। म अिधकािधक सद्काय करने के िलए ई र का िनिम मा था।
मेरा बेटा आई.एफ.एस. म सव च थान ा िकया। िश ण के बाद उसक तैनाती अनेक
देश म हई जहां उसने मजबत ू अंतरा ीय संबंध के िनमाण म योगदान िदया। वह सचमुच अपने
काम से खुश था और उसका आनंद ले रहा था।
भारत आिथक प से उ नित कर रहा था और वह हमारे देश के िलए अ छी िवदेश नीितय के
िनमाण म जुटा हआ था। देश एवं िवदेश के सरकारी महकम म उसके काम क सराहना क जा
रही थी।
मेरी बेटी ने संगीत म अपनी पी—एच.डी. परू ी क और पण ू कािलक गाियका बन गई। अ छी
बात यह थी िक न केवल उसके गायन म िनखार आ गया बि क उसने एक संगीत िव ालय भी
थािपत कर ली।
वह इस पेशे म आने के िलए नए गायक को ो सािहत कर रही थी। वह एक परं परागत गु
—िश य परं परा पर आधा रत गु कुल चला रही थी जहाँ वह नए लड़के—लड़िकय को
िन:शु क िश ा देती थ ।
दोन — मेरे बेटे और बेटी ने उिचत समय पर िववाह िकए। उनके जीवन साथी अनुकूल थे,
वा तव म वे आ याि मक साथी थे।
ौघोिगक को ध यवाद, िजसके कारण अिधकांश समय हमलोग अपने—अपने काय के
कारण एक—दूसरे से अलग होते हए एक—दूसरे के संपक म रहते थे।
मेरी डॉ टर अपनी अकादिमक े म काम करती रही। उसके मागदशन म बहत से छा ने
अपनी पी—एच.डी. परू ी क । िव िव ालय से सेवािनव ृ होने के बाद अपने पास आने वाले छा
का वह मागदशन िकया करती थी।
मेरे माता—िपता बढ़ ू े हो चुके थे मगर वे व थ थे। लेिकन समय के सथ उनक शारी रक
गितिविध कम हो गई।
उनके िनयिमत वा य प र ण म मेरे पा रवा रक डॉ टर ने कहा, ‘‘शहरी जीवन आपके
माता—िपता के िलए अनुकूल नह हो सकता। इसके िलए उ ह कृित के संपक म शांत जीवन
जीने द।’’ यह बात न िसफ मेरे माता—िपता को बि क हमलोग को भी अ छी लगी।
शहर के बाहर हमारा एक बड़ा—सा फाम हाऊस था जहां पर बड़े बड़े कमरे थे और एक
पु तकालय भी। मेरे िलए यि गत थान भी था।
स ाहांत हमारे प रवार के लोग वहाँ जाया करते थे। अब हमने इस काय म को पलट देने का
िनणय िलया। हमलोग उस फाम हाऊस म रहने लगे और अपने शहर के मकान म स ाहांत
गुजारने लगे।

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इसके अनके लाभ िमले। हम लगा िक हम िकसी गाँव म रह रहे ह।
मेरे जैसे यि के िलए िजसने अपना संपण ू जीवन शहर के य त वातावरण म िबताया हो,
यह एक बड़ा प रवतन था। जीवन शांत गित से चल रहा था और मेरे पास िचंतन एवं सजना मक
रचना के िलए पया समय था।
इसका एक और लाभ था िक मुझे अनाव यक आगंतुक से िमलना नह पड़ता था। एक
यवसायी के प म सेवािनव ृ के वष बाद भी मुझे या यान देने के िलए िनमं ण िमलते रहता
था। अब चंिू क म शहर से बहत दूर रहता था, इसिलए मुझे फोन पर उपल ध न होने का बहाना
था।
मने अिधकािधक पु तक िलखने म अपना समय लगाता रहा। अब मेरे िलए इस बात का कोई
मायने नह था िक मेरी पु तक बे ट सेलर बन रही ह अथवा नह । म लेखन का आनंद ले रहा
था। म इसिलए िलखता था य िक यह मेरे अंदर क अिभ यि थी।
य िप मने इस समय यह भी महसस ू िकया िक मेरा लेखन िविभ न कार के पाठक को भी
आकिषत कर रहा था।
सामा य तौर पर मुझे पसंद करने वाल म यवसायी लोग होते थे जो अपने पैसे एवं यवसाय
के संबंध म मुझसे सुझाव लेते थे। अब वे लोग मुझसे आ याि मक पछ
ू ते थे।
मने महसस ू िकया िक मेरा लेखन बदल गया है। मने अपना आनंद पा िलया था और दूसर
को स चे आनंद क ाि कराने के िलए मागदशन करने लगा। एक िदन ऐसे ही एक
आ याि मक िज ासु आए और उ ह ने अनुरोध िकया, ‘‘सर, हम चाहते ह िक आप एक स मेलन
म या यान द।’’
म उसे मना क ं उससे पहले मने महसस ू िकया िक इस नौजवान को मालम ू था िक म
या यान से परहे ज करता हँ।
उसने दुहराया, ‘‘सर, कृपया मना करने से पहले मेरी बात सुन लीिजए।’’

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59
अंितम या यान

“स
र, मने आपक सभी पु तक पढ़ी ह और यहाँ तक िक आपक आ मकथा भी।’’ िफर
उसने कहा, ‘‘म बचपन से आपका अनुसरण करते रहा हँ। आप मेरे रोल मॉडल ह।’’
िकसी स मेलन म या यान देने का यह पया कारण नह था। मेरे हजार
शंसक थे िज ह ने मुझे अपना रोल मॉडल बनाया था।
उसके अगले कथन ने मेरा यान आकिषत िकया, ‘‘बहत साल पहले यन ू ान म आयोिजत
िव दशनशा काँ ेस म भारत के ितिनिध के प म आपने या यान िदया था।’’
‘‘उस समय आपने कौिट य के अथशा और बंधन म इसक ासंिगकता िवषय पर
या यान िदया था।’’ उसे सही त य मालमू था।
‘‘अगले साल िव दशनशा काँ ेस का आयोजन भारत म िकया जा रहा है। हमलोग
इसका आयोजन पहली बार करने जा रहे ह।’’
यह बात मेरे िलए एक खबर थी। अपने पी—एच.डी. शोध िनदिशका और अ य िम के साथ
यनू ान जाने क याद ताजा हो गई ं। ‘‘बहत खबू , हमलोग इसका अयोजन करने जा रहे ह?’’
भारतीय होने पर मुझे गव था।
‘‘सर, अनेक वष तक भारत और इसके दशन को वह स मान नह िमल सका। आप हमारी
सं कृित म पैदा हए ह। आप न केवल संसार के सबसे धनी यि बने ह बि क आपक सफलता
आ याि मक मू य पर आधा रत है और आपने जीवन के हर मोड़ पर अथशा का अनुसरण
िकया है।’’
उसने आगे कहा, ‘‘आप सबसे धनी यि बने और बहत से लोग ने सदमाग पर चलते हए
धनाजन का रा ता अपनाया। आज भारत िव का सबसे धनी देश है।’’
म सुनते जा रहा था। उनका अनुरोध इस बात पर समा हआ, ‘‘यह िव के िलए एक बड़ा
संदेश होगा यिद आप िव दशनशा काँ ेस म बीज व य दगे। इससे दुिनया को एक नई
िदशा िमलेगी। भारत और इसक स यता का ितिनिध व करने वाला आपसे बेहतर दूसरा कोई

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नह है।’’
मने अपने सभी गु ओं का यान िकया और मन ही मन उनसे ाथना क । मने उनसे कहा,
“म सहमत हँ। लेिकन यह मेरा अंितम या यान होगा।’’
म नह जानता िक वह खुश हआ होगा या दुखी मगर वह िजस काम के िलए आया उसका वह
काम हो गया, उसे मेरी वीकृित िमल गई।
अगले कुछ माह के दौरान हर कोई आ य करता था िक इतने ल बे अंतराल के बाद मने
या यान देने के िलए सहमित दी थी। इसे मेरे अंितम या यान के प म भी चा रत िकया
गया।
इस घटना को देश क सबसे बड़ी घटना माना जा रहा था, ओलंिपक और िव फुटबाल कप
के आयोजन से भी बड़ा। लगभग १८० देश से अिधक के िव ान , धािमक नेताओं, िव
दाशिनक , समुदाियक नेताओं तथा राजनीितक मुख का भारी जमावड़ा आयोिजत हआ। भारत
के रा पित एवं धानमं ी ने िव समुदाय का वागत िकया। और यहाँ पर म बहज व य देने
जा रहा था।
म जानता था िक लाख लोग इस उ ाटन समारोह को अपने कं यटू र , मोबाइल और इंटरनेट
पर देखगे।
मने इस कार ारं भ िकया, ‘‘महान ऋिषय क धरती पर आप सबका वागत है। बु क
धरती पर आप सबका वागत है। म यहां पर िकसी देश नह , बि क एक स यता के ितिनिध के
प म खड़ा हँ। यह िव क सबसे ाचीन जीवंत सं कृित है जो िक समय क कसौटी पर खड़ी
उतरी है।
हमने अपने आ याि मक मू य के आधार पर वष तक िव का मागदशन िकया है। स य
संभाषण करने वाले िव के िकसी भी कोने के लोग हमारे ाचीन शा त ान से मागदशन
ा कर सकते ह। आज आप दुिनया के िविभ न भाग से पधारे अिधकांश लोग कर सकते
ह िक ‘‘भारत का दशन या है?’’ भारत म कोई एक दशन नह है बि क िव को देने के िलए
इसके पास बहत से दशन ह।
िव के अनेक भाग से सिदय तक लोग हमारे दशन को समझने के िलए आते रहे । बदले म
हमने उनके दशन और सं कृितय को सीखा है। हमने िव के िविभ न भाग से पधारे लोग के
संपक म आकर अपनी ान—सपंदा को अिधक संप न बनाया है।
हमारी सं कृित िविभ न मत को स मान देती है। यहां िविवधता को इसक शि मानी जाती
है न िक कमजोरी। एक ही स य के ित िविभ न ि कोण अपनाने से हमारा दशनशा
संप न हआ है। चार वेद, महाभारत, रामायण और उपिनषद जैसे हमारे ाचीन भारतीय ंथ म
आ मा संबंधी िवमश है जो िक हम सभी म िव मान है।
िव भर से पधारे हए िचंतक का यान म एक बात क ओर आकिषत करना चाहता हँ िक
भारत को वे न केवल एक आ याि मक देश के प म देख बि क इसे भौितक प से सफल एक
देश के प म भी देख। हम यि के प रपण ू संप नता क बात करते ह। हम दोन — भौितक
उ नित यानी अ युदय और आधि मक उ नित यानी िन: ेयस चाहते ह।

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भौितक उ नित का आधार धम होना चािहए। धम हम जीवन के हर कदम पर मागदशन
करता है। यह एक ऐसी शि है जो हम एक साथ बनाए रखती है और यि स य पहंचने के
िलए मागदशन करती है।
म वयं को सौभा यशाली मानता हं िक म जीवनभर धम का अनुसरण एक महान पु तक के
आधार पर करते रहा — चाण य िणत कौिट य का अथशा । ये हमारे देष के महान
दाशिनक म से एक थे। उ ह हम ान िदया है िक सुख धम से िमलता है — सुख य मल ू म् धम।
म आप सभी से अनुरोध करता हं िक आप अपने देश धम के इस संदेश को ले जाएं ।
हम एक बार पुन: उन सम याओं और मु पर चचा एवं बहस करनी चािहए िजनसे आज िव
िघरा हआ है। हम दाशिनक उ र ा करने का यास करना चािहए। हम अगली पीढ़ी को यह
बोध कराने के िलए मागदशन करना चािहए िक भौितक एवं आ याि मक उ नित एक ही पंछी
को दो पंख ह। सफल उड़ान के िलए दोन पंख क ज रत होती है।’’
मेरे या यान क लोेग ने मु कंठ शंसा क । मने अपनी आँख बंद क और कैलास
मानसरोवर क पहली या ा क त वीर मेरे मन म आ गई।
मने अथशा का न िसफ अ ययन िकया था, बि क अपने जीवन म इसे जीया था।

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अपने पोते–पोितय को सलाह


मय आप से बहत कुछ ले लेता है।
मेरे िदल के करीब जो भी लोग थे वे सभी इस संसार से िवदा हो चुके थे — मेरे माता
—िपता, अथशा के मेरे गु , भ यवसायी, मेरे चेयरमैन, िविभ न आ याि मक गु
और मेरे अ य दो त।
मने इन सबके िदए हए ान को याद िकया। जीवन के िवभ न मोड़ पर ये लोग मेरे
मागदशक रहे ह। जब कभी पीछे मुड़कर देखता हं तो इनके ित कृत ता के भाव से भर जाता
हं।
समय के साथ म भी शारी रक प से कमजोर हो गया था िकंतु मानिसक प से मजबत ू
तथा पण ू महसस ू कर रहा था। म िकस बात क ती ा कर रहा था — सुकून से भरी म ृ यु?
वा तव म, म तो वष पहले मर चुका था। असली म ृ यु शरीर क नह होती बि क अहंकार
क । ऐसा मेरे साथ वष पहले हो गया था। देह अपनी सहज या ा पर था।
जब समय आएगा तो व ृ से सख ू े प े क भांित अलग हो जाएगा। प को पेड़ से िगराने के
िलए िकसी यास क ज रत नह होती है। भगवान मुझे जहां ले जाएं गे वहां म जाने के िलए
तैयार था... मुझे िकसी बात क परवाह नह थी।
मेरे ब च के भी ब चे हो गए थे। मेरे चार पोते—पोितयां थ । डॉ टर और हम एक गाँव म बस
गए थे, फाम हाऊस म बहत साल गुजारने के बाद।
डॉ टर और म एक साथ समय गुजारकर स नता का अनुभव कर रहा थे। लोग कहते ह िक
उ बढ़ने से यार भी गहरा हो जाता है। िववाह के इतने वष के प ात् हम एक—दूसरे को परू ी
तरह से जान गए थे। हमारे बीच पण ू लय कायम था। हम जब कभी बात करते थे तो एक—दूसरे
को समझते रहते थे। अनेक बार हमलोग िबना बोले ही बात कर लेते थे। मौन भी हमारे स ेषण
का तरीका था।
म अपना अिधकांश समय अ ययन, यान और पु तक लेखन म यतीत करता था। दुिनयाभर

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भौितक एवं आ याि मक उ नित के िज ासु लोग हमसे मागदशन लेने आते रहते थे िक भौितक
संपादा के सज ृ न से लेकर ई र ाि तक कैसे कर।
वािषक छु य म हमारे दोन ब चे अपने ब च और जीनव साथी के साथ हमसे िमलने आया
करते थे। छोटे ब च को अपने पास देखना बहत ही आनंददायक होता था।
एक िदन म अपने पु तकालय म बैठा हआ था उसी समय मेरे पोते—पोती अंदर आ गए।
उ ह ने हमारी पु तक देख और कहानी सुनने क िज ासा कट क । ‘‘दादाजी आपके पास
बहत सारी पु तक ह। या आपने उ ह पढ़ा है?’’
म ठठाकर हँस पड़ा, ‘‘इनम से अिधकांश को, सबको नह ।’’
मेरी एक पोती ने सवाल क , ‘‘पु तक पढ़ने का सव े तरीका या है?’’
मने सुझाव िदया, ‘‘पु तक पढ़ने का सव े तरीका है इसे िकसी गु के मागदशन म पढ़ा
जाए।’’
मेरे पोते ने मुझसे िकया, ‘‘दादाजी, इनम आपक सबसे ि य पु तक कौन—सी है?’’
म मौन था। मने याद िकया, वष पहले मने अपने दादाजी से यही िकया था। उ होने जो
जवाब िदया था उससे मेरी िज़ंदगी बदल गई थी।
मुझे कुछ नया नह कहना था, ‘‘कौिट य का अथशा ।’’
मुझे लगा िक मेरे पोते मेरे से अिधक होिशयार ह जब मने ऐसे ही अपने दादाजी से िकया
था। पोते ने पछू ा, ‘‘दादाजी, कौिट य के अथशा से म िकस कार लाभाि वत हो सकता हँ?’’
मने पलटकर पछ ू ा, ‘‘लाभ?’’ म हत भ रह गया। तब मने महसस ू िकया िक मेरे इस पोते म
मेरा जीन है, एक यवसायी का जीन। एक यवसायी हर बात म अपना लाभ देखता है।
य िप मेरे पोते—पोितय को यवसाय म िच नह है िफर भी हो सकता है पीिढ़य बाद
प रपाटी िफर से चल पड़े ।’’
मुझे एक उपयु उ र देने के िलए सोचना पड़ा। इस बार भी अपनी र ा के िलए म अथशा
का सहारा िलया।

अथशा नाम यह िव ान जीवन के अि त व से जुड़ा हआ है, यह


भौितक एवं आ याि मक समिृ दान करता है, यह आनंद देने के
साथ–साथ आ याि मक दोष का नाश करता है, आिथक ित से
ृ ा को दूर करता है। (15.1.72)
बचाता है तथा घण

इस ोक क या या करते हए मने कहा, ‘‘यह तु ह घण ृ ामु कर देगा।’’ िफर अंत म मने


कहा, ‘‘आप जब अथशा का अ ययन करते ह तो िविच बात होती है। ान आपके िचंतन का
अिभ न िह सा बन जाता है। आपक िचंतन ि या अिधक प र कृत हो जाती है।’’

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यह सलाह तो मैने अपने पोते—पोितय को दी थी िकंतु मेरी यह सलाह भारत के सभी
युवाओं, ब च और पोते—पोितय को है।
‘‘मेरे दादाजी ने मुझे सं कृत भाषा पढ़ने के िलए े रत िकया था। म आप सभी को इस महान
भाषा को पढ़ने का सुझाव देता हँ। यह आपके और हमारे ाचीन ंथ के बीच संवाद का बहत
अ छा मा यम है।’’
तब आजादी के बाद के भारत म हई गित पर ग़ौर करते हए मने कहा, ‘‘आप क पीढ़ी
भा यशाली है। आपको अपने अि त व के िलए संघष नह करना पड़ रहा है। हमलोग अब धनी
एवं िवकिसत देश ह। लेिकन इस संप नता म आलसी न बन। आपको कम करते रहना पड़े गा।’’
वे सब मेरी ओर िज ासा के साथ देख रहे थे।
‘‘जब देश सबसे धनी हो जाता है तो अ य देश उसक बात सुनते ह। इसिलए इस देश क
कथनी और करनी का अनुसरण दुिनया करे गी। िव नेता होने के कारण भारत एवं भारितय
को बड़ी िज मेदारी परू ी करनी होगी।
मने उन सभी नर—ना रय को एक बार पुन: मरण िकया िज ह ने इस देश को महान
बनाने के िलए आ मोसग िकया। ‘‘भारत को अपनी खोयी हई आ मा िमल गई। यह भौितक एवं
आ याि मक संप नता से प रपण ू है। आप सभी को इस काय को आगे बढ़ाना है।’’
मेरे पोते ने िकया, ‘‘हम यह काय कैसे करगे?‘
‘‘हमारे ाचीन ंथ का अ ययन करो। वे आपको जीवन के हर कदम पर मागदशन करगे।
आप सभी को हमारे ाचीन ान से ेरणा लेनी चािहए और विणम भिव य के िलए कम करना
चािहए।’’
उनम से सबसे छोटी मेरी पोती ने िकया, ‘‘ या तब हम भी चाण य क तरह समझदार
हो जाएं गे?’’
‘‘िव कुल, तुम हो जओगी। तुम केवल समझदार ही नह बनोगी बि क दूसरे को समझदार
बनने म मदद भी करोगी।’’
उ ह मु कुराकर देखते हए मने कहा, ‘‘यह तु हारे अंदर के चाण य को उभारे गा.....
आप म चाण य को ।

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समापन िट पणी

ले खन से मुझे हमेशा परम आनंद िमला है। दो बे ट सेलर पु तक िलखने के बाद मुझे बहत
संतुि िमली लेिकन इससे मेरे कंधे पर एक िज मेदारी भी आ गई िक पाठक के अगले बे ट
सेलर ा करने क चुनौितय को परू ा करने क ।
तब म सोचने लगा िक मुझे आगे या िलखना चािहए।
म हमेशा से क पना धान कथा सािह य क ओर आकिषत रहा हँ। यह हमेशा से मेरे मन के
करीब रहा है। इसिलए मने महसस ू िकया िक अब समय आ गया है जब म कुछ अलग प र े य से
िलखँ।ू
सफलता पाने के िलए अनेक वष से म बहत—से यात उ ोगपितय का मागदशन करते
रहा हँ। ये लोग चाहते ह िक भिव य म इनक संतान भी अद य सफलता ा कर। केवल यही
लोग ही नह बि क संपण ू युवा पीढ़ी उपलि ध क तलाश म है और इसके िलए उपयु ान को
अपने जीवन म उतारना चाहती है।
इसी िवचार ने मुझे वा य िकया िक म कौिट य के अथशा क अपनी समझ को का पिनक
ताने—बाने म िपरोकर तुत क ं िजसका उपयोग हर यि के जीवन म हो सके।
जब इसक पांडुिलिप को काशक के सम तुत क गई तो उ ह ने एक सुझाव िदया,
‘‘हम इस पु तक को एक वाह म पढ़ सकते ह!’’ उनका अगला था, ‘‘ या यह आपक
अपनी कहानी है?’’ िजसका जवाब मने सं ेप म िदया िक येक पु तक म लेखक के िनजी
अनुभव क छाप तो रहती ही है।
जी हां, पु तक के कुछ अंश मेरे अपने जीवन से जुड़े हए ह। लेिकन सबसे मह वपणू बात है
िक इसम ऐसे िविभ न लोग क दा तान ह िजनके संपक म म आया था।
‘आप म चाण य’ युवा भारत के उन सपन , हताशाओं एवं चुनौितय को उजागर करने का
एक यास है िजनसे यह देश हर कदम पर जझ ू रहा है। यह उन दूर ि संप न यि य के िलए
भी है िज ह ने देश को वैभव के िशखर पर लाया है।
मुझे आशा है िक आपको पु तक पढ़ने म आनंद आया होगा जैसा िक मुझे इसके लेखन म
आया। और आप इस कहानी से अंतरं ग संबंध थािपत कर पाए ह गे जैसे िक यह कहानी आपक
अपनी कहानी हो।
इस पु तक को कथा सािह य के साथ—साथ बंधन एवं जीवन—िश ा पी पु तक क
तरह भी पढ़ा जा सकता है िजससे आपको जीवन म आगे बढ़ने म मदद िमल सकती है।
अथशा एवं चाण य का ान मुझे मेरी या ा म इसी तरह मागदशन करते रह ......

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— राधाकृ णन िप लई

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लेखक प रचय

बंधन एवं परामश म औपचा रक प से िशि त राधाकृ णन िप लई सं कृत म एम.ए. ह। वे


चाण य एवं अथशा के मा यता ा शोधाथ ह।
इस े म अपने योगदान के िलए इ ह वष २००९ म सरदार पटेल अंतरा ीय पुर कार से
स मािनत िकया गया। एस.पी.एम. फाउं डेशन एवं मुबई िव िव ालय क टीम के सद य के प
म वे अपने अनुभव एवं प र म से अिजत ान का उपयोग नेत ृ व—कौशल िवकिसत करने के
िविभ न काय म के िनमाण म करते ह। आ याि मक पयटन अिभयान, आ मदषन के वे
सं थापक ह। चाण य इं टीट्यटू ऑफ पि लक लीडरिशप (www.ciplmumbai.in) के
सं थापक िनदेशक ह। यह नेत ृ व कौशल अकादमी है जो िक राजनेताओं एवं िज ासुओ ं को
िशि त करती है। अपनी थम पु तक ‘कॉरपोरे ट चाण य’ क भारी सफलता के बाद इ ह ने
दूसरी बे ट सेलर ‘चाण याज 7 से े ट्स ऑफ लीडरिशप’ िलखी। राधाकृ णन िप लई ने अपनी
यवसाियक कथा आप म चाण य के मा यम से चाण य को जीवंत कर िदया है।

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